काव्यरंगोली नववर्ष 2021 कलमवीर सम्मान 2020-21

 नववर्ष 2021 समारोह कलमवीर सम्मान 2020-21।

आत्मीय मित्रों सादर अभिवादन पँचपर्व समारोह में पुरस्कार हेतु निम्न रचनाकारों का चयन किया गया फोटो आडियो ओर नियम विरुद्ध पोस्ट मूल्यांकन में शामिलन्हि कई गयी आगे 25 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र वन्दना का आयोजन होगा।

सभी को बधाई कृपया काव्यरंगोली में सारी प्रतियोगिताएं समारोह निःशुल्क होते है बस नियम पालन आवश्यक,आप लोग संस्था को आर्थिक सहयोग भी प्रदान करे जिससे यह रथ चलता रहे।जिनका सुची में नाम है वह हमसे व्यक्तिगत सर्टीफिकेट मंगवा सकते है और उसका प्रिंट आउट निकलवा सकते है।

आशुकवि नीरज अवस्थी

संस्था प्रमुख

9919256950


1-कैलाश गिरि गोस्वामी

2-रंजनी शर्मा 'सुमन', इंदौर

3-आचार्य शुभेंदु (प्रदीप) त्रिपाठी

4-अनिल कुमार मिश्र, राँची, झारखंड

5-अभिषेक अजनबी

6-रशीद अहमद शेख़ 'रशीद'

7-दुर्गा प्रसाद नाग

8-इंजी0शिवनाथ सिंह लखनऊ

9-संगीता श्रीवास्तव 'सुमन छिंदवाड़ा

10-डॉ अर्चना प्रकाश लखनऊ

11-विजय कुमार सक्सेना बिल्सी बदायूं

12-रूणा रश्मि "दीप्त" राँची , झारखंड

13-डा0 कुसुम चौधरी गंगागंज लखनऊ

14-डॉ संध्या श्रीवास्तव दतिया मप्र

15-ज्योति तिवारी बेंगलुरु

16-मधु शंखधर प्रयागराज

17-प्रो.शरद नारायण खरे प्राचार्य मंडला

18-प्रदीप भट्ट

19-नीरजा नीरू लखनऊ

20-पण्डित राकेश मालवीय प्रयागराज

21-निर्भय गुप्ता लिंजीर रायगढ़




🌹नया-पुराना साल🌹

गया पुराना साल याद कुछ,

ऐसी कड़वी छोड़ गया।

घर में सबको बन्द किया,

इक टीस हृदय में जोड़ गया।


युग बीते, सदियाँ बीतीं,

ग्रन्थों की कथाएँ पढ़ीं-सुनीं।

मुनियों का त्याग भरा जीवन,

प्राकृतिक छटाएँ बहुत गुनीं।


2020 का साल पुराना,

गहन आपदा लाया था।

जीवन में हर एक कदम पर,

अनदेखी मौत का साया था।


बीत गया वह साल भयानक,

जो न लौटकर आएगा।

सिखा गया साहस से जीना,

संकट दूर भगाएगा।


दो हजार इकइस आएगा,

बस कुछ पल की दूरी है।

पर कोरोना गया नहीं है,

इसलिए बचाव ज़रूरी है।


स्वागत है इस नए साल का,

कुछ आशाएँ लिए हुए।

वक़्त चलेगा चालें अपनी,

हमें साथ में लिए हुए।


हम मानव हैं, मानवता का,

धर्म निभाना है हमको।

चाहे जितने संकट आएँ,

बढ़ते जाना है हमको।


सुखमय जीवन रहे सभी का,

यही हमारी चाहत है।

मिले सभी को रोज़ी-रोटी,

जिस बिन जीवन आहत है।

🌳🌷🌹🌸🌺🌳

आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

🌳🌹🌷🌺🌸🌳

आचार्य शुभेंदु (प्रदीप) त्रिपाठी

🌳🌷🌹🌸🌺🌳



 सफर यह दो हजार बीस का छुपा गया कई राज़ अपने ज़हन में ,कहीं कोरोना विभीषिका का कहर तो कहीं निरीह हथिनी की व्यथा, निर्भया को न्याय तो कही एक देश एक संविधान का नारा, अयोध्या में दीपों की जगमगाहट ,

नागरिकता कानून का दावा ,तमाम पहलुओं को दृष्टिगत रखते हुए स्वरचित रचना---

"दे गया फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का शायद,

दो हजार बीस का यह अनोखा सफर ,

वुहान से जिन्न निकला ऐसा कि,

स्तब्ध हो गई ये दुनिया रंगीली,

जड़ें वट वृक्षों की भी हिला दी इसने,

सुने हो गए मां के आंचल भी,

लील गया कई मासूमों को,

मातम छाया ऐसा चहुंओर,

कोरोना का मंजर कुछ ऐसा,

निरीह मूक हथिनी की व्यथा से,

मानवता हुई शर्मसार धरा पर,

मिली शान्ति निर्भया की आत्मा को,

दरिंदे भी जब फांसी पर झूले,

समान नागरिकता कानून से भी,

पहचान मिली नागरिकता की ऐसी,

कश्मीर की पावन वसुधा पर अब,

एक संविधान एक देश फिर गूंजे, 

जगमगाए दीपों से अयोध्या फिर,

रामलला जब निज गॄह में बिराजें,

जात-पात, ऊंच-नीच, भेदभाव,

सबसे कर लो अब किनारा,

प्रेम,दया, करुणा, स्नेह, भाईचारा,

देशभक्ति, राष्ट्रहित,अपनापन,

बसें हर भारतवासी  के मन में,

विश्व गुरु सा उन्नत भाल सजे,

फिर अखण्ड भारत के मस्तक पे,

आओं करें हम मिलकर स्वागत,

दो हजार इक्कीस के नव सफर का,

नव उमंग,नव ऊर्जा ,नव उल्लास लिए,

मन में नव चेतना ,नव उम्मीद लिए,

स्वप्न नवीन संजोए हर्षित मन में,

पंखों में आकाश समेटे उड़ेंगे हम,

स्वच्छंद उन्मुक्त गगन में फिर से।

              स्वरचित

           सुनील चाष्टा

            सलूम्बर


💐💐💐💐💐💐💐 नव-वर्ष 2021 पर असीमित,अनंत मंगलकामनाओं के साथ सादर समर्पित है एक स्वरचित कविता-


नमन तुम्हें नव-वर्ष हमारा

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स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

आकर दिल में बस जाओ

सतरंगी आभा बिखेरकर

सब मन पुलकित कर जाओ।


जग से बीमारी दूर रहे सब

कोई किसी पर आश्रित न हो

सब हँसी खुशी जग में विचरें

कहीं द्वेष न हो,कहीं कष्ट न हो।


दुःखी नहीं हो जग में कोई

हर घर में खुशहाली हो

सब रिश्तों में स्नेह-उर्वरा

बची रहे,हरियाली हो।


स्वस्थ रहें,सानंद रहें सब

अधर सभी मुस्कान धरें

स्नेह-प्रेम की बारिश ही हो

सब प्रसन्न जग में विचरें!!


नमन तुम्हें नव वर्ष हमारा

बड़ी आस हम सबको तुझसे

सारे दुःख तुम हर लो हे प्रभु

साहित्य-प्रेम का रस बरसे


अनिल कुमार मिश्र,राँची,झारखंड

 मो 7858958537

9105879322

💐💐💐💐💐


सभी स्नेहीजनों को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, यह वर्ष आप सभी के जीवन में अपार खुशियाँ लेकर आए ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूँ .नववर्ष पर कुछ दोहे सादर समर्पित


*।।दोहे।।*


बीता है संघर्ष में , हम सबका ये साल ।

ईश्वर अब नववर्ष में, हर घर हो खुशहाल।।


कुछ हमने जो खो दिए, माँ वाणी के लाल।

शक्ति उन्हें प्रभु दीजिए,जो परिजन बेहाल।।


रोजी रोटी के लिए, भटक रहे हैं लोग ।

दयादृष्टि प्रभु कीजिए ,मिटे भूख का रोग ।।


माँ वाणी अब खोलिए, निज मंदिर के द्वार।

पढ़लिखकर ही मात हो, बच्चों का उद्धार।।


हम सब अभिनंदन करें, हो मंगलमय साल ।

दुःख-दर्दों का अंत हो, ये जग हो खुशहाल।।


मान सिंह 'मनहर'

👍👍👍👍👍👍👍👍 नया वर्ष हो     नया हर्ष हो।

नव जीवन हो    नया पर्व हो।

नयी प्रीति हो    नयी रीति हो।

नयी जीत हो     नयी गीत हो।

नव संकल्प हो   नया विकल्प हो।

नया जोश हो     नया ओज हो।

जो चाहत हो     सब सुफल हो ।

नया वर्ष        शुभमंगलमय हो। नववर्ष 2021 की शुभकामनाए.               *विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र*

     नरई संग्रामगढ प्रतापगढ 

9198989831

👍👍👍👍👍👍👍👍

 नव-वर्ष 2021 असीमित,अनंत मंगलकामनाओं के साथ सादर समर्पित है एक स्वरचित कुंडलिया छंद-


स्वागत  है  नववर्ष का, जग हो सकल निरोग।

सभी सुखी सम्पन्न हों, ऐसा करें प्रयोग।।

ऐसा करें प्रयोग, मिटे अब नफरत उर से।

प्रेम भाव भरपूर, शान्ति जग में हो फिर से।।

कहता 'शिव' दिव्यांग, लगे ना कोई लागत।

रखें प्रेम सद्भाव, करें हम सबका स्वागत।।


~शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'

मैगलगंज-खीरी उ०प्र०

 मो.- 9919881145



💐💐💐💐💐💐💐


 विषय- नववर्ष


नव वर्ष झूम कर आया है।

खुशियाँ अनंत ले आया है। 

महके सबके हैं घर आंगन।

 जैसे ऋतु बसंत लाया है ।

 नववर्ष घूम कर आया है।


 मन चंगा है,खुशियाँ अगिनत।                        नव तरंग मन   में      उमंग।

मन में उठती एक हिलोर है।                                  खुशियों की हो रही भोर है।  

  सौगात जीवन में लाया है।

  नववर्ष झूमकर आया है।


   पशु-पक्षी भी यूँ चहक रहे ।

   दाना - पानी पी  महक रहे।

   चिडि.या चहकती हर द्वार है।

   खुशियों की आई बहार है।

  अनुपम सुख साथ में लाया है।

   नववर्ष झूमकर आया है।


   बच्चे -बूढे. हो रहे मगन।

   नवयुवक-युवती परेशान है।

   कैसे मनाएँ नववर्ष यहाँ।

  चहूँ ओर लगा विराम है।

   कोई केक, जलेबी लाया है।

   नववर्ष झूमकर आया है।

   

   सबके मन में उठ रहे प्रश्न।

   स्कूल जायेंगे क्या बच्चे।

  .कोरोना वायरस  जायेगा।

   नववर्ष वैक्सीन लायेगा। 

   नव जीवन का ये प्रकाश है।

   सुख-शांति  साथ में लाया है।

    नववर्ष झूमकर आया है।


   मौलिक रचना

 रंजनी शर्मा 'सुमन', इंदौर


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 नव वर्ष मनाएं

   मन मंदिर में खुशियां छाई,

   सूरज की किरणें मुस्काइ।

   राष्ट्र हित का प्रण उठाएं,

   आओ हम नव वर्ष मनाएं।


    पुष्प सुगंध बिखेर रही है,

    मन मंदिर में दीप जली है।

     मानव हित का प्रण उठाएं,

    आओ हम नव वर्ष मनाएं।


    सर्वधर्म समभाव हमारा,

    मानव हित है भाव हमारा।

     धर्म यज्ञ का प्रण उठाएं,

    आओ हम नव वर्ष मनाएं।


    कहें निकेश हम एक हैं,

    नाम अनेक हैं ईश के,

    मानव धर्म का प्रण उठाएं,

    आओ हम नव वर्ष मनाएं।

      कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार 7250087926

💐💐💐💐💐



 नमस्कार साथियों मैं *अभिषेक अजनबी* आजमगढ़ से आप सभी लोगों को नूतन वर्ष 2021 की कल्याणकारी शुभकामनाए देता हूं।आप सभी के पद पंकज के अपनी चंद पंक्तियां समर्पित करता हूं 🙏🏼🙏🏼

*नूतन वर्ष 2021 के आगमन पर*

नया साल दे रहा अनुभूतियां नई नई।

आओ गढे़ं जग जीतने की  नीतियां नई नई।

जो दबाए ख़्वाब उसे सरेआम कीजिए

मौन पड़े प्रेम को नया नाम दीजिए।

द्वेष दंस भूलचुक मन से साफ कीजिए।

प्रियजनों के गलतियों को खुलके माफ कीजिए।

दर्द वाला पल सफल तरीके से बदल गया।।

मनुष्यता का ग्रंथ आग में भी जल संभल गया।

प्रकृति ने बीता साल क्रूरता से ले गई।

पर मानिए मनुष्यता को नया सीख दे गई।

हर जीव  का सम्मान हो उच्च स्वाभिमान हो।

नए साल में सभी को ऐसा  नया ज्ञान हो।

हर युवा की शक्ति को खुलकर अधिकार दे।

हौसले के तुंग चड़ वो चांद भी  उतार दे।

चित्त पड़ी चेतना फिर से दहाड़ दे।

सामने पहाड़ हो तो नाखूनों से फाड़ दे।

क्लेश अब ना शेष हो एक नया परिवेश हो।

इस मही का मेरे प्रभु शुद्धता सा वेश हो।

पूरा मुल्क साथ देकर आफताब  कीजिए।

प्रिय जनों के गलतियों को खुलके माफ कीजिए।

    नूतन वर्ष की शुभकामनाएं

           *अभिषेक अजनबी के कलम से*




नववर्ष नही मनाएंगे

नये साल के कैसे जश्न में तुम डूब गए हो।

अपने संस्कार को भी अब तुम भूल गए हो।


सनातन इतिहास को भी तुमने भुला दिया।

तुमलोगों ने अपने हिंदुत्व को भी डूबा दिया।


अपनी सभ्यता को जिसने भी मिटाया है।

अपने हाथों से अपने घर को जलाया है।


चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा हमारा नया साल है।

बस कैलेंडर बदल देने से बदलता नहीं साल है।


लाखों वर्षों की परम्परा को हम कैसे भुलाएंगे।

ईसाइयत के इस नववर्ष को हम कैसे अपनाएंगे।


मेरी मानो अपने संस्कृति को बस जानो तुम। 

मेरी मानो अपने गौरव को बस पहचानो तुम।


इस सदी को हिंदुत्व की सदी हमको अब बनाना है।

अपने गौरवशाली इतिहास को फिर से दोहराना है।


भगतसिंह के कातिलों क़ा नववर्ष नहीं मनाएंगे।

 कुछ भी हो पश्चिमी सभ्यता को नहीं अपनाएंगे।


मेरे साथ आपलोग भी इसमे मेरा साथ दो।

मेरी मानो इस नए वर्ष को अब भी त्याग दो। 


© रचनाकार-ओमप्रकाश झा

 दरभंगा,बिहार

 मोबाइल नंबर-8877679311




आया नूतन वर्ष

भला मनाए कोई कैसे,

दुखद समय में हर्ष।

गया नहीं कोरोना जग से, 

आया नूतन वर्ष।


लाखों लोग हुए हैं पीड़ित,

लाखों गए सिधार।

लाखों कारोबार हुए ठप,

लाखों हैं बेकार।


अवरोधित हो गया धरा पर,

सभी ओर उत्कर्ष।

गया नहीं कोरोना जग से,

आया नूतन वर्ष।


वैक्सीन की खोज हो रही,

विविध चल रहे शोध।

मास्क और नियम पालन का,

सबसे है अनुरोध।


महारोग से विश्व कर रहा,

अविरल है संघर्ष।

गया नहीं कोरोना जग से,

आया नूतन वर्ष।


कैसे प्रेषित करें बधाई,

कैसे हो सुखगान।

तन-मन दोनों मलिन हुए हैं,

खड़े कई व्यवधान।


कोरोना से हुआ जगत में,

कहाँ नहीं अपकर्ष।

गया नहीं कोरोना जग से,

आया नूतनवर्ष।

*-रशीद अहमद शेख़ 'रशीद'*





 काव्य रंगोली नववर्ष 2021 के सुअवसर पर

प्रस्तुत रचना

 नववर्ष 



जीवन में आएँ कितना भी कठिन संघर्ष

डटे रहना सिखाता है नववर्ष 


गिरकर उठना लड़ना हारकर जीतना 

फिर मनाना एक पर्व 

आगे बढ़ना सिखाता है नववर्ष 


असफलता से भी सफलता का मूलमंत्र का मिलता है निष्कर्ष

हिम्मत से चलना सिखाता है नववर्ष 


शोक के कुछ क्षण भी दे जाते हैं उत्सव और उत्कर्ष 

सब मिला करता है जीवन में सिखाता है नववर्ष 


परिस्थितियों में विपरीत स्थिति नियति देती है एक समय फिर हर्ष

सब परिवर्तित होता है सिखाता है नववर्ष


भविष्य के लिए निर्णय लेना उचित है 

पर करना चाहिए विचार और विमर्श

चयनता को समझाता है नववर्ष 


तन का नहीं मन का भी किया जाना चाहिए स्पर्श

पवित्रता की महत्वता सिखाता है नववर्ष 


नीतेश उपाध्याय स्वरचित




 कलमकार सम्मान-20-21

      """"""""""""""""""""""""""""""""

     $ नववर्ष आपका अभिनंदन$

    

गतवर्ष-20 तुम्हारा अभिवंदन।

नववर्ष-21आपका अभिनंदन।।

तीन   सौ   पैसठ   पृष्ठों   का ।

इतिहास लिखा हर  दृष्टों का।।

भला  -  बुरा  बिसराया  है  ।

नववर्ष - 21फिर आया  है ।।


      गतवर्ष  रहा  महामारी  का।

      कोरोना   की   बीमारी  का।।

      दुनिया  की   रफ्तार  रुकी ।

      जिसके आगे सरकार झुकी।।

      अब फिर सुधरेगी काया  है।

      खोज वैक्सीन  को  पाया है।।


चीन ने जो घुसपैठ कराई ।

उल्टे उसने मुॅह की खाई।।

बढ न पाये  दुश्मन आगे ।

शौर्य देख आतंकी  भागे ।।

पाक  को  धूल चटाया है।

ड्रैगन को मार भगाया है।।


         नववर्ष नये अरमानों का ।

        बढने के हर  पैमाने  का।।

         धर्म  मंदिर हमें बनाना है।

         कर्म मंदिर हमें सजाना है।।

      नक्शा मस्जिद का बनाया है।

      समता का  ढोल बजाया है।।


दुश्मन के छक्के छूट गये ।

हैं पाक-चीन भी टूट गये।।

कश्मीरी जनता पुनः खिली।

जहाॅ लोकतंत्र की जीत मिली।।

 प्रभु  श्रीराम   की  माया   है ।           जहाॅ   राष्ट्र ध्वजा फहराया है।।


          जग लोहा माॅगे  गहरा  है ।

          सर्वत्र तिरंगा  फहरा   है।।

        नव  वसंत की कलियों का।

       तमसावृत सूनी गलियों का।।

        अवरोध हटा रवि आया है।

       यह मौन निमंत्रण लाया  है।।


पुनः जगत -गुरू बनाना है।

ताज भारत को पहनाना है।।

नव प्रभात ने विगत रात का।

पूर्व  निशास ने नये प्रात का।।

कर वंदन कुंकुम भाल लगाया है।

'विवेकनिधि' तन-मन हर्षाया है।।


दुनिया  का शिरमौर हो,

               मेरा  भारत   वर्ष  ।

दिन-दूनी उन्नति करे,

               मंगलमय नववर्ष ।।


           डाॅ-कृष्णावतार उमराव

                        'विवेकनिधि'

          निदेशक-कलाॅजलि,मथुरा

आर-बी-एस-नेशनल पब्लिक स्कूल ,सैनानी आर-बी-सिंह मार्ग सारंग विहार  , बालाजीपुरम रिफायनरी नगर एन-एच-2मथुरा (281006)

मो-नं-9411890437

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 नव वर्ष 2021 के शुभ आगमन पर आप सभी प्रिय साथियों को प्रस्तुत है मेरी यह रचना----"नव वर्ष 2021-स्वागतम"


स्वागतम,स्वागतम,   नववर्ष का स्वागतम,

आइये-----स्वागतम, स्वागतम, स्वागतम।

आप के पधारने से  भाई-बहन सब मगन,

एक-दूजे का मुबारक़वाद है छा गया गगन

स्वागतम, स्वागतम,  नववर्ष का स्वागतम,

आइये-----स्वागतम, स्वागतम, स्वागतम।


प्रभु से कर रहे हैं,    हम   सहृदय वन्दनम,

सुख-संवृद्धि का ए साल हो,  अपने वतन।

कोरोना-कहर का दुनिया से हो जाये पतन

रोजगार शिक्षा स्वास्थ्य का होवे खुब जतन

स्वागतम, स्वागतम, नववर्ष का  स्वागतम,

आइये-----स्वागतम, स्वागतम,  स्वागतम।


कट्टरवाद, जातिवाद का   हो देश से गमन,

हत्या,चोरी,घूसखोरी को नसीब हो कफन।

हत्यारे पापी आतंकियों का हो जाये दफन

भाई-चारा,सद्भाव पुष्पित हो देश के चमन

स्वागतम, स्वागतम नव वर्ष,का  स्वागतम,

आइये-----स्वागतम, स्वागतम, स्वागतम।


'विद्याज्ञान' का नौनिहालों में,   हो  उन्नयन,

इस राह चल पड़ा है संवाद शिक्षण मिशन

निर्वाध अग्रसर रहे,  यह मिशन का कदम,

करते सहयोग इसमें,  शिक्षक भाई-बहन।

स्वागतम,स्वागतम नव वर्ष का, स्वागतम,

साथ-साथ मेरा आप सभी, को भी नमन।


रचइता-'विजय मेहँदी'(सहाoअध्यापक)---

Composite     English    Medium-

Schoolशुदनीपुर ,मड़ियाहूं,जौनपुर(UP)

जय हिन्द 🇮🇳-------जय शिक्षक वृन्द 👨‍🏫




 प्रश्न और प्रार्थना 

प्रतीक्षारत है, सारी जगती जिसकी, 

आया फिर देखो, वो नया वर्ष ।

पर पूछे मन बार बार खुद से ही,

ये दु:ख लाया या लाया हर्ष ।


कुछ को सर्दी गर्मी नहीं कहे कुछ,

ऊँचे बँगलों में जो रहते हैं ।

है भूख प्यास जिनके हिस्से में,

जीवन भर अभाव ही सहते हैं ।


सुधर जा कहे कुदरत मुँह खोल कर,

नहीं तो झेल भूकम्प-बाढ़-महामारी ।

देख, तेरे ही दिये घावों से रिसते हैं,

प्रदूषण-गर्मी- पानी की क़िल्लत भारी ।


किया पशु-पंछी-वनस्पति सबका नाश,

जीने के लिये भी करता अब संघर्ष है ।

नियत में खोट है भरा अभी भी उसकी,

सम्मेलनों तक ही सीमित विमर्श है ।


फिर भी देता हूँ शुभ कामनाएँ हृदय से,

उपेक्षा नहीं, पूर्ण अपेक्षाओं की सरगम हो ।

हर पल में रंग भरे हों फागुन के,

धानी सावन सा खुश हर मौसम हो ।



जयप्रकाश अग्रवाल 

काठमांडू, नेपाल 

+977 9840006847





🌹सन् २०२० की अंतिम रचना 

दिनांकः ३१.१२.२०२०

दिवसः गुरुवार

छन्दः मात्रिक

विधाः गीत (राधेश्यामी छंद आधारित)

शीर्षकः नववर्ष 2021


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नव वर्ष सुहाना हो सबका , हर घर में खुशियाँ सारी हो , 

हर नर को मिले नया जीवन , किसलय सी कंचन क्यारी हो।


हे ईश सुनो अरदास करूँ, नववर्ष सुहाने पल लाये।

हर घर में खुशियाँ हो ढेरों , नर मिलकर मंगल नित गाये।

हो हरी-भरी हरपल धरती, ये वर्ष सदा सुखकारी हो।

हलधर के सर से कर्ज हटे ,यह पूरी विनय हमारी हो।


हृद प्रेम सलिला बहती सदा,मिलकर रहते नर-नारी हो।

हर नर को मिले नया जीवन , किसलय सी कंचन क्यारी हो।


दुख के बादल सब हट जाएं , मुख नये साल में खिल जाए।  

नभ में गूंजे नवगीत सदा, हर हृद में फिर मस्ती छाए ।

न मिले हृदय को घात कोई ,ना ही कोई लाचारी हो।

नववर्ष दिवाकर की किरणें, लगती उर को अति प्यारी हो। 


हर नारी को सम्मान मिले , ऐसा मेरे गिरधारी हो।

हर नर को मिले नया जीवन , किसलय सी कंचन क्यारी हो।


कर जोड़ करूँ नित मैं वंदन , जीवन ये फिर से खिल जाए।

दुख भूल पुराने सब अपने , अलि पंकज सम फिर मिल जाए । 

हरि एक गुजारिश है मेरी , अब अंत सकल कष्टों का हो।

बस एक पुकार यही सुनना , प्रभु नाश यहाँ भ्रष्टों का हो। 


महके मकरंद बना जीवन , महकी जैसे फुलवारी हो।

हर नर को मिले नया जीवन , किसलय सी कंचन क्यारी हो।

स्वरचित

सारिका विजयवर्गीय"वीणा"

नागपुर 





 (नव वर्ष शुभ कामना गीत)

सुबह का ये सूरज,है पैगाम लाया।

चिड़ियों ने मिलकर, मधुर स्वर में गाया।

नवयुवकों ने अपनी, खुशी को जताया।

फागुन के खातिर ये गुलाल लाया।


नया साल आया, नया साल आया।।


नव वर्ष को नव रंग से सजाना।

नई भावना से इसे अब मनाना।

नफ़रत को अपने, हृदय से मिटाना।

हृदय रूपी मन्दिर में, मूरत बिठाना।

फैशन की बदली, नई चाल लाया।


नया साल आया, नया साल आया।।


बुजुर्गो  से मिलता है, सबको सहारा।

किसी की तरफ है, मेरा ये इशारा।

रोती है कश्ती,न मिलता किनारा।

जीता सभी कुछ, आखिर में हारा।

सूने हृदय में न ये ख्याल आया।


नया साल आया, नया साल आया।।


छोड़ो ये बातें, जमाने को देखो।

महफ़िल में बोतल पैमाने को देखो।

नेता के वादे, बहाने को देखो।

जो वादे किए थे, उन्हे टाल आया।


नया साल आया, नया साल आया।।


सियासत को छोड़ो, सराफत में आओ।

मजहब के नाम पर पैसा कमाओ।

नया कोई मुद्दा सभा में उठाओ।

जले चाहे दुनिया, तुम 'फिल्टर' जलाओ।

जनता का तुमको क्यों ख्याल आया।


नया साल आया, नया साल आया।।


दुनिया को छोड़ो,अपनी बता दो।

अपनी कोई लव स्टोरी सुना दो।

पढ़ाई लिखाई हवा में उड़ा दो।

कॉलेज में अपनी ताकत दिखा दो।

फैशन में छात्रों का, ये हाल आया।


नया साल आया, नया साल आया।।


जरा सोंच लो, कुछ घर की खबर है।

दाल लोन चावल से, क्यों बेखबर है।

टेढ़ा है ये रस्ता, लंबा सफर है।

मितव्ययी बनो कुछ, इसी में बसर है।

फिर न कहना ये जंजाल आया।


नया साल आया, नया साल आया।।


अगर खुशी चाहो, तो खुद को सुधारो।

ज़माने में न तुम, बुराई निखारो।

कीचड़ में खुद को, कमल सा उभारो।

करो ' योग' अपना जीवन संवारो ।

 भागा "तिमिर" जब दिया इक जलाया।


नया साल आया, नया साल आया।।



दुर्गा प्रसाद नाग

नकहा- खीरी

(उत्तर प्रदेश)

मो.9839967711




 शीर्षक - गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

भूलो पिछली बातो को बुरे दिन रातो को,

फिर शुरुआत करो नव वर्ष चहकता आया है

राह को आसान करो भूलो मुश्किल बातो को।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

दुख की बात को भूलो सुख को याद करो,

नव वर्ष भली भांति खुशियों सा छाया है

नव उजाला है इससे ना फरियाद करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

आंखो में जो ख्वाब है उन्हे हकीकत में तब्दील करो,

अंधेरे को मिटाता नए दिन नया उजाला आया है,

ख्वाबों का महल है जो उसे हकीकत में तब्दील करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

बैर को भूलो अपनापन अपनाओ तुम,

स्वभाव वहीं है भले बदली हमारी काया है

झूठ नहीं अब सच्चापन अपनाओ तुम।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

पुराने दिनों को विदाई नई यादे बनाओ तुम,

नया दिन नई शुरुआत का उजाला छाया है

अच्छी यादें आंखो में खुशी के मोती बनाओ तुम।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

युवा याद करो उत्साह को फ़िर शुरुआत करो

भूलो हार को याद रखो नव वर्ष जीत दिलाने आया है

गुस्सा नहीं अब फिर  शांति की शुरुआत करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

पहले किये वो प्रयास थे अब जीत निश्चित है,

नव वर्ष तेरी जीत का परचम लहराने आया है

खुशियां आयेंगी दुख बीतेगा  ये अब निश्चित है।


कवि - चारण हार्दिक आढा

गांव - पेशूआ

जिला - सिरोही

राज्य - राजस्थान





काव्य रंगोली नववर्ष 2021 हेतु

                मुक्तक1

(आज अंग्रेजी नववर्ष पर सादर समीक्षार्थ प्रस्तुत है...


यादों ही यादों में यह पल गुजर जाएगा।

बातों ही बातों में यह दिन गुजर जाएगा।।

हर दिन याद आएगी हमें ऐसे पलों की,

 न जाने कब यह जीवन गुजर जाएगा ।।


मुक्तक 2*


अंग्रेजी नववर्ष की आपको खूब बधाई हो।

हर पल सारे काज बने ,नाम की खूब कमाई हो।।

साहित्य सेवा आप सब मिलकर करना खूब।

कविता लिखते लिखते आपकी कलम घिसाई हो।।

 

 

कवि कृष्ण कुमार सैनी"राज" दौसा,राजस्थान मोबाइल~9785523855





स्वागत नववर्ष 2021 का*

हर   रंग से     भरा   रंगीन हो

ये  नववर्ष  आपका।

कभी  भी  न ग़मगीन  हो यह

नववर्ष     आपका।।

नया साल स्वास्थ्य सेहत  का 

हो खज़ाना बेमिसाल।

सुनहरे  सपनो  सा हसीन  हो

नववर्ष        आपका।।

*।।।।।।।।।।।*

चाँदनी सी बरसती रहेआपकी

हर   इक   राह      में।

ख़ुशी ही खुशी     चमकती रहे

हर   इक   निगाह  में।।

नववर्ष पर मिले हर   सफलता

ऊँचे आसमां की तरह।

जीवन की हर   खुशी दमकती 

रहे जैसे  ख़्वाबगाह में।।

*।।।।।।।।।।।*

नववर्ष  लेकर   आये   बस नई

खुशियाँ  हज़ारों हज़ार।

रहे न  कोई    मायूस जहान  में

छाये   बहार ही बहार।।

कॅरोना संकट  मिटे  यहाँ     हर 

किसी के   जीवन   से।

नववर्ष  में  हो  बस        अमनों

चैन   से   ही    क़रार।।

*।।।।।।।।।।।।*

हर   चेहरा      यूँ       ही     सदा

बस  मुस्कराता   रहे।

नित नई   सी    खुशियाँ   जीवन

में   ये   लाता     रहे ।।

नववर्ष     नई    सौगातें     लेकर

आये  सब    के   घर।

हो  वही    बस   जो    हमेशा  ही

संबको     भाता  रहे।।

*रचयिता व शुभकामना प्रेषक।।* 

*एस के कपूर "श्री हंस"*

*6. पुष्कर एन्क्लेव*,

*स्टेडियम रोड*,

*बरेली।।ऊ प्र।।  243005* 

मोब  9897071046

        8218685464





[ नया कलंडर आ गया


निकाल दिया था जिसे वह कैसे घर के अंदर आ गया है

देखो जनवरी फरवरी के बाद सीधा दिसम्बर आ गया है

सब अनिष्ट ही अनिष्ट घटा है यह साल दो हजार बीस में

सभी मना रहे जश्न देख कर कि नया कलंडर आ गया है


© सुमित रंजन दास

    कहुआ , बिहार




[काव्य रंगोली नववर्ष* 2021 हेतु 

गुजरे साल की मेरी आख़िरी ग़ज़ल ......


ये पैरों के चक्कर ही बतला रहे हैं

सफ़र तो था सीधा ये उलझा रहे हैं |


न जाने कहाँ ज़िंदगी का ठिकाना 

इधर रास्ते सिर्फ़ भटका रहे हैं |


कई चाहतें और बाक़ी कसौटी

इसी वास्ते दर्द़ सहला रहे हैं |

 

नहीं आसमाँ पर कहीं आज तारे

महज़ कोहरे ही नज़र आ रहे हैं |


हमें दे रहे थे अभी तक दिलासा 

वही आज कैसा तो घबरा रहे हैं |


है ख़तरों के अब भी निशाँ सामने पर 

मुक़द्दस उजाले भी कुछ आ रहे हैं |


ठिठक कर 'सुमन' ने भी फिर यह कहा था 

वही आ रहे हैं वही आ रहे हैं |


© संगीता श्रीवास्तव सुमन

 छिंदवाड़ा मप्र


मनहरण घनाक्षरी ..... नववर्ष स्वागत 


तोरण सजाके करें, स्वागत नए मास का 

जीवन सजे सतत  , वर्ष हो उल्लास का |


बीत जाए मौसम ये , दुखद अहसास का 

जाए दिसंबर छोड़ , पत्र मधुमास का |


हो अमन चैन यहाँ , बैर हो नहीं घात हो 

हर्ष के हज़ार दीप, सुख के उजास का |


विपदा जो आये नई , काट हो हमारे पास

हाथ हाथ दीप जले , प्रेम का विश्वास का |


संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'

छिंदवाड़ा मप्र 


एक मुक्तक


बुरे सपने भुलाकर मैं करूँ दिल से  तेरा स्वागत ,

नई आशा की राहों से कि मंज़िल से तेरा स्वागत | 

बरस नव सुख 'सुमन' बन जा सरस जीवन रहे मेरा , 

नए अरमाँ हसीं दुनिया की झिलमिल से तेरा स्वागत |


©संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'


 


नव वर्ष की शुभ कामनाएँ :

नया वर्ष अब आएगा

खुशियो की बारात लाएगा 


न कोरोंना होगा,

न चिकन गुनिया होगा


सारे जहा मे आनंद ही होगा 

देश का सुंदर विकास होगा 


पाठशाला ए खुलेगी

बच्चो को अच्छी शिक्षा मिलेगी 


रेलगाड़ी, रोडवेज चलेगी

बगियन मे कलियाँ  खिलेगी


शो रूम सारे बाजार खुलेंगे 

चीजे सभी आसान मिलेगी 


पुराना साल चला जाएगा 

नया साल खुशिया बहुत लाएगा 


कोरों ना भूतकाल बनेगा 

नया सुनहरा साल बनेगा 


कवि गुलाब कहे 

चलो हम गीत मजे के गाए 

नए साल में खुशिया अपार पाए 


डॉ गुलाब चंद पटेल 

कवि लेखक अनुवादक 

अध्यक्ष महात्मा गांधी साहित्य मंच गांधीनगर 

Mo 8849794377






 (कविता)   :-नव वर्ष -;

       रवि किरणों का पीताम्बर डालें,

       नया वर्ष फिर द्वार खटकाये ।

        बीस बीस अब हुआ पुराना,

      इक्कीस ने दिव्य पंख फैलाये ।

      घुमड़ती यादें शोर मचाएँ,

       सुधियों के झरोखें खुल जाएँ ।

       मन की स्वर्णिम अमराई भी ,

      केरोना पर जीत का शंख बजाएं।

      स्ट्रेन कॅरोना और वंशज इनके,

       इक्कीस में त्राहि त्राहि कर भागें।

      योग संस्कार जो छूट गए थे ,

      जीवन अंग पुनः बन जाएं ।

       भव्य भव्यतम हो वर्ष इक्कीस,

       अतिशय बरसे नेह प्रेम आशीष।

      नए वर्ष में हो संकल्प नए नए ,

      परहित निरत कर्म सब भाये ।

      नया सबेरा नित बरसाए ,

       सब पर खुशियों के रंग नए ।

        वन्दन वन्दन अभिनन्दन है ,

       इक्कीस तुम्हें शत नमन हमारे ।

         डॉ अर्चना प्रकाश ,लखनऊ ।

        मो 9450264638





 शीर्षक...(.नव वर्ष)


अकाल मृत्यु में न जाने

कितने खोए

आज तक न जागे जो 

कोरोना में सोए


माँ  कहीं थी और बेटा कहीं था

जाँच कहीं हुई थी

और लेटा कहीं था


दो हजार बीस ने वो

जहरीले वीज बोए

आज तक न जागे......


बीस बिष पतन को 

इक्कीस आइये


बजरंग आप बनके 

इक कीस आइए


आप जानते हो बीते

साल कितना रोए

आज तक न जागे.....


प्रगति हुई वाधक गति

शील कीजिये


आपदा पतन में अब न

ढील दीजिए


नया वर्ष हँसाए न अखियां भिगोए

आज तक न जागे......


कवि राजेश तिवारी

भृगुवंशी कुलपहाड़ महोबा उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना





 मेरी एक रचना 2021 को सम्प्रित -


बीत गया जो कल 

~~~~~~~~~~~~~~

बीत गया जो पल उसे भूल जाते है ,

आने वाले कल का जश्न मनाते है ,


अरमान है दिल मे पुड़ी और मीठाई का ,

पर सुखी रोटी पर संतोष कीए जाते है ,


मिले खुशबू बेली और चमेली का ,

पर रजनीगंधा की ओर बढे जाते है ,


हम जानते है प्रेम एक मर्ज हुआ करता है ,

फिर देवदास की तरह शराब पिये जाते है ,


कुछ गलतिया हम जानकर ही करते है ,

फिर भी गलतियो पे पश्चाप कीये जाते है ,


हम आशा और उम्मीद पर समाज बदलते है ,

पर देखते ही सबकुछ बदल जाते है ,


कल रो रहे थे 'रूपेश' गुजरे हूए ज़माने पर ,

आज नववर्ष पर उल्लास मनाये जाते है !


~ रुपेश कुमार©️

चैनपुर , सीवान, बिहार 

==================



 नई साल आई रे, जनवरी साथ लाई रे।

डीजे ऊपर नाच कूद कै खूब मनाई रे।।


चढ़ी जाड़ा की करड़ाई, छाई धुंध घणेरी छाई।

नाच कूद और केक काट कै खूब मनाई रे।

नई साल आई रे.....


नई साल के मौके पै, हम होटल म्ह चाला रै।

बर्गर पिज्जा डोसा इडली, जी भर कै खाला रै।

हैप्पी न्यू ईयर सभनै भोत घणो भाई रै।।

नई साल आई रे......


नव वर्ष मुबारक कह कै सभनै गलै लगावा।

ऊंच नीच और छुवाछात का सारा भेद मिटावा।

हिन्दू मुस्लिम नहीं बणा, हम बनजा सारे भाई रै।।

नई साल आई रै......


ऊंची उड़े उड़ान हम, लेकर आंखों में सपने।

दुश्मन कोई रहे नहीं, बन जाये सब अपने।

नव वर्ष मुबारक सभको, कहे भारती भाई।

नई साल आई रे......


   - भूपसिंह 'भारती'

आदर्श नगर नारनौल।




 नव वर्ष नई उम्मीद


नव वर्ष है स्वागत तुम्हारा ,

पोटली में नववर्ष की क्या- क्या तुम खुशियां लेकर आए?


 आस भरना उन बेबसों में ,

रास्ता जो तकते तुम्हारा ।

शायद आशा पूर्ण हो उनकी,

 आता साल सब खुशियाँ लाए ।


ठंड से ठिठुरते भिक्षुकों को भी ,

तुम राहतों की उष्मा देना ।


दरिंदगी से जूझती बेटियों  का दर्द समझ कर,

 एक नया विश्वास देना ।


हो सके गर तुमसे इतना  घर से ठुकराए बुजुर्गों के लिए जो, 

उनके पोते -पोतियों के मन में दादा -दादी के लिए  प्यार जयगा देना ।


कर सको कुछ और अच्छा ,

तो बस घरों में अपनापन प्रेम जगाकर वृद्ध आश्रमों को भी बंद करवाना। 


 कुछअपंगों-अपाहिजों की लाठी भी  बन करके आना।


 मायूस और सताए कृषकों के मन की चैन भी बन करके आना ।


गरीब ,दुखी ,मजबूर पिता के मन  को,

 धैर्य का संबल भी दिलाना।


 कोरोना से पीड़ित रोगियों को निरोगिता की राहत दिलाना ।

कोरोना जैसे वायरस को ,

अब तो तुम जड़ से मिटाना।


 दूर बैठे देश में जो है हमारे भाई बंधू ,

उनको भी नव वर्ष में तुम ,

आन अपनों से मिलाना ।

नववर्ष है स्वागत तुम्हारा ....     पोटली में नववर्ष की क्या क्या तुम खुशियां लेकर आए?


 मेरे प्यारे फौजी भाई 

सीमा पर   डटे हैं फौलादी बनके ,

उनके लिए नववर्ष प्यारे अमन-चैन तुम आना ।



 कैसे भूलूँ वेदना उन शहीदों के परिवार ,बच्चों ,विधवाओं की ?उनके लिए तुम उनके सभी प्रश्नों का उत्तर बनके आना।


 देखो वह नन्हा गुब्बारे वाला ,

ले सकोगे उससे कुछ  तो उसकी सारी मजबूरियों को जाते साल को देते जाना ।


अपरिपक्व नवयुवक -नवयुवतियाँ

 जो नशे में है डूबे रहते ,

अच्छे बुरे से करवा के अवगत परिपक्वता उनमें तू लाना ।


एक यही एक यह विनती है तुमसे हृदयहीन सत्ताधारियों के मन में ,

संवेदनशीलता जगाते आना ।


बहुत है कामनाएंँ मन में मैं यहीं पर छोड़ती हूं ,

उम्मीदों का दामन पकड़ कर फिर इच्छाओं को बांँधती हूंँ ।

नव वर्ष है स्वागत तुम्हारा......... नई उम्मीदें जोड़ती हूंँ। 


कहने सुनने को बहुत कुछ सोच रखा है हृदय में ।

चलो बस इतना करना,

संपूर्ण विश्व के मानवों की  आशाएंँ तुम पूर्ण करना।



धन्यवाद 

रचनाकार :डॉ रमणीक शर्मा अंबाला शहर (हरियाणा से )





 2021 की ओर -------

धीरे-धीरे 

संकोच भरे कदमों से बढ़ रहे हैं हम 

2020 की विभीषिका से 

अभी गुजर रहे हैं हम 

भय का साया अभी गया नहीं 

चिंताओं की सूची में कुछ नया नहीं 

2021 ----------

फिर भी स्वागत है तुम्हारा 

हाथों में शुभ थाल अभिनंदन तुम्हारा 

गुजरता यह साल 

कैसे-कैसे दिन दिखा गया 

कभी महंगाई तो कभी शहनाई 

सभी पर छाप बना गया 

बेरोजगारी का मारा युवा 

भूख से घायल हुआ 

बेईमानी के नए-नए 

पैंतरे भी सिखा गया 

हाथों से अब पर्स 

छीने नहीं जाते दिखते 

तकनीक से पैसा 

अब हवा हो गया 

आम आदमी ऐसे वैसे 

हर तरह से फनां हो गया 

2021----------- 

फिर भी स्वागत है तुम्हारा 

पलके बिछाए उम्मीदें लगाए 

वंदन है तुम्हारा 

आंदोलनों की चली है आँधियां 

हर तरफ असंतोष ने 

अपना रंग है बिखराया 

फिजाएँ बदलने लगी हर तरफ 

दुश्मन ने भी गिरगिट सा 

रंग दिखलाया 

हमने बाँधकर कफन शीश पर 

दुश्मन को आईना दिखाया 

2021-----------

 फिर भी स्वागत है तुम्हारा 

सिर झुका प्रेम से नमन है तुम्हारा 

समस्याएं बहुत थी 

फिर भी बिखरे ना हम

 सभी एकजुट होकर 

व्यक्तित्व से निखरे थे हम 

विश्व भर में भारतीयता का 

परचम लहराया 

विदेशी को छोड़ा 

स्वदेशी को अपनाया 

जानी स्वयं की ताकत 

अन्याय को दबाया 

2021---------

फिर भी स्वागत है तुम्हारा

आत्मीय प्रेमसिक्त अभिनन्दन तुम्हारा

मुस्कुराने गीत गाने की 

वजह तो है 

नए साल में नई कुछ 

उम्मीदें तो है 

छोड़कर सब 

नकारात्मक भाव मन के 

आओ संकल्पित हो चलें 

सकारात्मक भाव से 

2021 --की दहलीज आने को है 

अब नया सूर्य गगन में मुस्कुराने को है 

होगा सब कुछ नया 

और सब कुछ सही 

सर्वे भवंतु सुखिन: 

की भावना वही 

2021------------ 

आओ ह्रदय से 

जोशीला स्वागत है तुम्हारा 

रहेंगे ना ऐसे ही हमेशा ये दिन 

पाएंगे मंजिल ये लक्ष्य है हमारा ।


डॉ0 निर्मला शर्मा

 दौसा राजस्थान




[ काव्य रंगोली नववर्ष 2021 हेतु 



नये साल के कैसे जश्न में तुम डूब गए हो।

अपने संस्कार को भी अब तुम भूल गए हो।


सनातन इतिहास को भी तुमने भुला दिया।

तुमलोगों ने अपने हिंदुत्व को भी डूबा दिया।


अपनी सभ्यता को जिसने भी मिटाया है।

अपने हाथों से अपने घर को जलाया है।


चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा हमारा नया साल है।

बस कैलेंडर बदल देने से बदलता नहीं साल है।


लाखों वर्षों की परम्परा को हम कैसे भुलाएंगे।

ईसाइयत के इस नववर्ष को हम कैसे अपनाएंगे।


मेरी मानो अपने संस्कृति को बस जानो तुम। 

मेरी मानो अपने गौरव को बस पहचानो तुम।


इस सदी को हिंदुत्व की सदी हमको अब बनाना है।

अपने गौरवशाली इतिहास को फिर से दोहराना है।


भगतसिंह के कातिलों क़ा नववर्ष नहीं मनाएंगे।

 कुछ भी हो पश्चिमी सभ्यता को नहीं अपनाएंगे।


मेरे साथ आपलोग भी इसमे मेरा साथ दो।

मेरी मानो इस नए वर्ष को अब भी त्याग दो। 


© रचनाकार-ओमप्रकाश झा

 दरभंगा,बिहार

 मोबाइल नंबर-8877679311





नव वर्ष मंगलकारी हो...


स्वागत है नए साल का, सबके लिए हितकारी हो,

समाज का विकास हो, सबके लिए शुभकारी हो।

समरसता, सद्भावना व प्रेम की अविरल धारा बहे,

अमीर व ग़रीब सबके लिए नव वर्ष मंगलकारी हो।।


मुझसे अपने रूठे हुए हैं, नव वर्ष में उनको मना लूँ,

पूर्ण हो लक्ष्य, जो तय किए, राह कुछ ऐसी बना लूँ।

मैं यह मानता हूँ, विजय मिलना न इतना आसान है,

कठिन साधना से ही सफलता के सोपान बना लूँ।।


पूर्व की भाँति ही मैं सत्पथ पर सतत चलता रहूँगा,

भयभीत करने की कोशिश करेंगे पर मैं न डरूँगा।

माना सच बोलने से मेरा बहुत ही नुकसान हुआ है,

असत्य का प्रतिकार करने से मैं न कभी न रुकूँगा।।


नव वर्ष में सृजन से चाहता हूँ कि हो नव परिवर्तन,

मेरे शब्द आवाज़ बने, जिनके हक़ का होता हनन।

समाज से उँच-नीच या अमीर ग़रीब की खाई मिटे,

इतिहास बन जाए, ऐसा हो मेरा साहित्य सृजन।।


नव वर्ष में राष्ट्र व समाज का हो सर्वांगीण विकास,

दबे कुचले हाशिए पर रहे लोगों को जगे नई आस।

सभी के चेहरे पर मुस्कराहट और ख़ुशहाली आए,

नव वर्ष में नव निर्माण हो कहीं पर न हो विनाश।।

★★★★★★★★★★★★★

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

नव किरण प्रकाशन

बस्ती {उत्तर प्रदेश}

मोबाईल 7355309428





[ नववर्ष--2021 आप सभी को मंगलमय हो !!

*******************************************

मंगलमय नववर्ष आपको,

          खुशियाँ छायें तन मन में।

आशा और विश्वास नया हो,

          नयी  चेतना   जीवन  में।

रहें प्रफुल्लित सदा सभी जन,

          आँख किसी की नम न हो।

स्वार्थ भाव सब मिटे धरा से,

          प्रेम   परस्पर   कम  न  हो।

रहें सुखी निरोग सभी जन,

          हर्ष  व्याप्त  हो  जीवन  में।

शस्य  श्यामला  धरा  रहे ,

          औ पुष्प पल्लवित उपवन में।

भरे रहें धन धान्य सभी के,

          कभी  किसी  को गम  न  हो।

ज्योति सत्य की जले हृदय में,

          लेश  मात्र  भी  तम  न  हो।

दीन हीन अब रहे न कोई,

          कर   ऐसा   उपकार   प्रभू।

भक्ति भावना भरे हृदय में,

          तेरी   जय   जयकार   प्रभू।

मिटे अमंगल की सब छाया,

          घर  आंगन  या  जंगल  हो।

हाथ जोड़ कर यही प्रार्थना,

          हे  प्रभू   सबका  मंगल  हो।।

               *****************

विजय कुमार सक्सेना "विजय"

कस्बा--बिसौली, जिला--बदायूँ, उ0 प्र0

मो0 न0--9456065978





[ आज का विषय 

शीर्षक - नया साल 

नए साल की नए फुहारे 

देखो सब के द्वार पुकारे 

संकल्प शक्ति को जागृत करें 

अपना अपना भाग्य सवारे 

यही कामना ईश्वर से है 

संकट के क्षण शीघ्र  सिधारे  

खुशियों के पल रहे हमेशा 

जीवन में हो सदाबहारे

आंखों के रास्ते से आकर 

दिल में सबके आप पधारे 

इस जीवन को जीना हो तो 

प्रेम दृष्टि से सदा निहारे 

नई सदी का साल 2021 है 

आगे की अब आप बिचारे 

कह डाला  "बेबी " के दिल ने 

अब प्रणाम मेरा स्वीकारें 

डाँ गीता पांडेय 'बेबी' जबलपुर






नव वर्ष 2021 

अभिनंदन नववर्ष का, करते हैं हम आज |

यश वैभव खुशियाँ मिलें पूरे होवेन काज |


खट्टी मीठी याद दे, वर्ष गया है बीस  |

मन में आशा भर रहा , नवल वर्ष है इक्कीस |


वैर भाव  सब भूलकर, रहें सभी जन साथ |

सुख-दुख में हिल मिल चलें ,गहे हाथ में हाथ |


प्रेममय सब रिश्ते हों , ना होवे तकरार |

मात-पिता को ना कभी, समझे कोई भार |


नैनों में जो स्वप्न हैं , मन में है जो आस |

पूरी हों नववर्ष में यही कामना खास |


सुनीता माहेश्वरी 

नाशिक





[ काव्य रंगोली पटल को मेरा अभिवादन 🙏🏻सभी को नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं🎊🌟🌹🎊🌟🌹


स्वरचित कविता प्रस्तुत कर रही हूं🙏🏻

🌸✨🌸✨🌸✨🌸✨

 साल विदा हो रहा

 नववर्ष आ रहा,

 नव विहग ज्यों चहचहाये

 मन प्रमुदित गा रहा ।🌺


बीसवें इस वर्ष ने

 देखे बहुत से  पड़ाव ,

महामारी का यह दौर

 त्राहि-त्राहि चारों ओर।🌺


 नव वर्ष नव है आस

 नव कदम नव प्रयास,

 जा रहे को अलविदा कहता

 नवप्रभात आ रहा ।🌺

                साल विदा हो रहा.....


अपने सभी जुड़ते रहें

 साथ मिल बढ़ते चले,

 स्वप्नदीप करें उजाला

 रवि उदित होने वाला ।🌺


बीता है जो उसे भुलाना

 आ रहे को है सजाना,

 यह संदेश देता हुआ

 नव प्रकाश छा रहा।🌺


 साल विदा हो रहा 

नव वर्ष आ रहा...🌺


दीपा पन्त 'शीतल'

 उदयपुर राजस्थान





[ काव्य रंगोली नव वर्ष 2021

31 दिसंबर 2020

विषय-नये साल 

विधा-कविता

भाग जा 2020

आजा 2021

*********************

2020 अब तू चला जा,

अब ना जगत को रुला,

रो रोकर रुंध गया गला,

तेरा नहीं होगा रे! भला।


आया था जब ये 2020,

खुशी बहुत मनाई जगत,

चंद दिवस जब बीते तेरे,

कर डाली सबकी दुर्गत।


कोरोना की महामारी ले,

मार डाले कितने ही जन,

रो रहे हैं बूढ़े और बच्चे,

फूंक डाला तूने ही वतन।


अब भी तू सता रहा है,

नागनाथ अब लगता है,

अंत आ गया तेरा देखो,

बेशक मन से सजता है।


छीन लिये जन रोजगार,

किये हैं लाखो बेरोजगार,

काम को भटके घर द्वार,

पैसा भी ना मिला उधार।


किसान,मजदूर जमके रोये,

दुकानदार भी चैन ना सोये,

कर्मी लगते थे खोये खोये,

हर जन तब नयन भिगोये।


कितनी हस्तियां लील दी,

कितने बस्तियां जलाई हैं,

गरीब ,बेसहारा रो रहा है,

यूं भागने में ही भलाई है।


स्कूल कालेज बंद करवा,

पढ़ाई की सबकी चौपट,

अधिकारी भागे फिरते है,

जा वरना खाएगा मटामट।


जगत का रोका है विकास,

होगा अब तेरा भी विनाश,

चला जा अब ले ले विदाई,

मत नहीं बन और कसाई।


देख दस्तक दे रहा 2021,

खैर रखेगा मेरा जगदीश,

छोड़ दे रास्ता नूतन वर्ष,

वो करेगा जग, परवरिश।


सलाम करते विदा करे,

चले जाने में हो भलाई,

फिर लौटकर न आना,

खाई गया जमके मलाई।


आ जा रे! नूतन 2021,

क्यों लगा रहा अब देरी

लोगों को खुश कर देना,

देर हो चुकी अब भतेरी,


लौटा देना जग का प्यार,

किसान लगते थके- हार,

सभी ने खोल दिये द्वार,

नैन तके जन कई हजार।


सुनहरा इतिहास लिखना,

फिर लौटाना वो रोजगार,

भाई भाई बढ़ाना है प्सार,

बाट खुशी,ना रख उधार।


तरस रहे सुख चैन को वो,

चाह रहा जग भी विकास,

अन्याय और पाप कर्म का,

कर देना है आकर विनाश।


बच्चे बूढ़ों को गले लगाना,

महिलाओं को तुम बचाना,

रो रहे कितने जग के लोग,

बस उनको तुम ही हँसाना।


ऐसा करना जग का उद्धार,

भाई भाई में जागे वो प्यार,

किसान, मजदूर  फिर हँसे,

बढ़ा देना है उनका व्यापार।


एकता, भाईचारा पैदा करो,

उन्नति और विकास बढ़े दर,

फिर भक्तजन दौड़े हरिद्वार,

बोलते जाये वो बस हर हर।


ऐसा कर दिखाना तू 2021,

याद करे यह दुनिया सारी,

सदियों तक भूला न पाये,

तेरी सूरत अनोखी प्यारी।


लो पलक- फावड़े बिछाये,

आ जाओ अब दौड़के तुम,

देखों सभी 2021 आ रहा,

क्यों बैठे हो तुम गुमसुम। 

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**********************

स्वरचित नितांत मौलिक रचना

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*होशियार सिंह यादव

मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर 01

कनीना-123027 जिला महेंद्रगढ़ हरियाणा

 व्हाट्सअप एवं फोन 09416348400





नव वर्ष की अग्रिम शुभकानाओं के साथ प्रस्तुत हैं मेरी रचनाएँ

🌹🌹😊😊


1.दोहे :


बहुत खट्टा थोड़ा मीठा 2020

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देकर दुख कितने हमें, बीत रहा ये साल।

किंतु बना है सीख की, ये तो एक मिसाल।।


खुशियों के ही संग जो, हुआ साल आरंभ।

किंतु शीघ्र ही हो गई, विपदा ये प्रारंभ।।


 बना बड़ा जंजाल था, फैल रहा जो रोग।

विस्मित अरु भयभीत थे, सकल विश्व के लोग।।


मानव जीवन को लगा, बीमारी का फेर।

आकर इसी चपेट में, हुए अनेकों ढेर।।


दुख तकलीफों के लिए, सदा रहेगा याद।

बना हुआ था वर्ष ये, प्रकृति की फरियाद।।


श्वास कठिन था हो गया, हुई प्रदूषित वायु।

किंतु बढ़ी जब स्वच्छता, बने सभी दीर्घायु।।


संस्कृति भी भूले सभी, परंपरा की बात।

याद दिलाकर दे गया, वर्ष हमें सौगात।।


पहुँच गया जो चाँद पर, अपना ये विज्ञान।

किंतु पुरातन बात से, रहे नहीं अनजान।।


गतिविधियाँ सब बंद थीं, थमा हुआ संसार।

किंतु स्वजन का था मिला, सबको नेह अपार।।


सहयोगी बिन कठिन हुआ, जब गृहणी का काम।

मिलकर सभी कुटुंब ने, दिया उसे अंजाम।।


खुशियाँ लेकर आ रहा, है जो नूतन वर्ष।

दीपक आशा के लिए, स्वागत करें सहर्ष।।


खोई जो खुशियाँ सभी, मिले हमें फिर आज।

पुष्पित सुरभित ही सदा, होता रहे समाज।।

©️®️

रूणा रश्मि "दीप्त"

राँची , झारखंड

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2.सरसी छंद :


गुडबाय 2020

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बीस बीस का वर्ष तुम्हें अब, कहते हम गुडबाय।

है बस इतनी चाहत ऐसा, वर्ष कभी नहि आय।


दर्द भरा बीता है अपना, ये पूरा ही वर्ष।

करते हैं उम्मीद मिले अब, जीवन में पल हर्ष।


बहुत सताया कोरोना ने, दिया साल भर दर्द।

जाने कब छोड़ेगा पीछा, जग का ये बेदर्द।


बँधे हुए हम गृह के भीतर, रहे स्वजन से दूर।

इस पूरे ही साल मनुज तो, बना रहा मजबूर।


ठहर गया था जगत थमी थी, इसकी हर रफ्तार।

संकट में था जीवन सबका, भयाक्रांत संसार।


यूँ तो होता कठिन बहुत ही, कहना ये गुड बाय।

किंतु पीड़ से भरे वर्ष को, कहते मन हर्षाय।


आने वाला साल हमारी, खुशियाँ लेकर आय।

मन में ऐसी आस लिए हम, कहते हैं गुड बाय।

©️®️

रूणा रश्मि "दीप्त"

राँची , झारखंड

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3. रोला छंद :


नवल विहान

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लेकर नवल विहान, वर्ष ये नूतन आया।

गम की सारी बात, भूल ये मन हर्षाया।।


है सबको ही आस, वर्ष ये पावन होगा।

खुशियाँ लिए अपार, बड़ा मनभावन होगा।


छाए हैं जो आज, विपति के बादल काले।

पवन झकोरों संग, उड़ेंगे बन मतवाले।


पुष्पित सुरभित बाग, बनेगा जीवन अपना।

होगा सबका पूर्ण, जिंदगी का हर सपना।


लेकर नई बहार, रुत नई अब आएगी।

दुख का होगा अंत, खुशी चहुँदिस छाएगी।

©️®️

रूणा रश्मि "दीप्त"

राँची , झारखंड




[ विधा:-कविता

शीर्षक:- खुशियों की सौगात

पूछे मुझसे सब एक सवाल

नूतन वर्ष क्या है लाया?

दूँ मैं सबको एक ही जवाब

खुशियों की सौगात लेकर आया।

सूखे पत्तें हरे करने आया,

झूमकर सबका अंतर्मन हर्षाया।

 घर-घर हर्षित दीप जलाया,

लाकर उजाला तम दूर भगाया।

लाया है रौनक सकल जहां,

लौटाया मंगल दिवस नाचे सब यहाँ।

किया संचार नव किरण सर्व हृदय,

दिया न रहने गम कर  अद्भुत सृजन ।

                

            रीतु प्रज्ञा

          दरभंगा, बिहार

      स्वरचित एवं अप्रकाशित




 🌹विषय:- नव वर्ष🌹

साल पुराना है जाने वाला ,

पुरानी भूली बिसरी यादें ले जाने वाला।।

बड़ा अजीब सा बीता ये साल ,

भीषण रोग से ग्रसित हुआ पूरा संसार।।

ना इसकी कोई दवा मिली,

ना इसका कोई तोड़ मिला।।

पर सीखा गया बहुत कुछ ये.....

प्रकृति ने सबक कई है सिखलाये,

अच्छे बुरे के चहरे से नकाब हटवाए।।

अपनों का क्या मोल है,

जीवन कितना अनमोल है,

आवश्यकता जीवन में सबकी होती है,

चाहे कोई किसी भी स्तर को हो,बस शाश्वत सत्य प्रेम के दो बोल है।।

ईश्वर से प्रार्थना है कि ये कटु वर्ष बीत जाए,

आने वाला नव वर्ष सबके जीवन में खुशियां और रोशनी लाए।।

नव वर्ष सभी का मंगलमय हो,

सुख,समृद्धि और हरियाली लाए,

धर्म फले फूले और सभी दिन त्यौहार से आए ।।

समझ अभी पाए है कि क्या दीवाली होली और सावन तीज़ होता है ,

अपने संग हो तो हर पल, हर दिन उत्सव सा होता है।।

अमन चैन हो चारो तरफ ,विश्व शांति की हम गुहार लगाए,

भाईचारा बढ़े सभी मै,कल्याण सभी का हो जाए।।

संकल्प ले इस नव बेला पर की ना कोई वृद्धाश्रम बने,

मां बाप घर में रहे,घर घर बहू बेटी का मान बढ़े।।

प्रकृति की गोद में जैसे वनस्पति फलती,फूलती जाती है,

ठीक वैसे ही प्रभु कृपा से नववर्ष सभी के लिए कृपा दायक रहे।।


नगेन्द्र बाला बारेठ

हाल निवासी दिल्ली




मधु के मधुमय मुक्तक

दो हजार बीस की बिदाई

31/12/2020

◆दो हजार सन् बीस ने, ऐसा खेला खेल।

दूरी में जीवन दिया, अर्थ कर्म सब झेल।

त्राहि माम् करते सभी, करे बहुत संघर्ष,

जीवन की गाड़ी यहाँ, दौड़ी हो बेमेल।।


◆बीस गया भय त्रास में, जीवन बन जंजाल।

जाने कितने ही गए, मनुज काल के गाल।

कैद घरों में थे सभी, थी सतर्कता मूल ,

जिसने संयम को धरा, विजय तिलक उस भाल।।


◆जाए अब सन् बीस तो, विपदा जाए साथ।

खुशियों की बरसात हो, पुनः मिलाएँ हाथ।

नया साल इक्कीस यह, अन्तस दे विश्वास,

कर्म धर्म परिपूर्ण हो, मेरे दीनानाथ।।


◆कोरोना से छीन कर , जी लो जीवन तंत्र।

भय जीवन में व्याप्त कर, बना दिया बस यंत्र।

जाने को सन् बीस यह, करूँ कामना एक,

अब हो सन् इक्कीस में, सहज सुखद शुभ मंत्र।।

*मधु शंखधर स्वतंत्र*

*प्रयागराज*

 *साल 2020 की सीख*


जाने वाला साल बीस यह बातें कई सिखाया है।

अहंकार छल दम्भ व्यर्थ है सबको यही बताया है।

मानवता का धर्म श्रेष्ठ है सबको हिय से अपनाओ,

प्रेम भाव से रहो साथ सब जीवन तो बस माया है।।

*मधु शंखधर स्वतंत्र*

*प्रयागराज*




 नव वर्ष की शुभकामनाएं

********************


आओ मिलकर गीत सुनाए,

     नव वर्ष का हर्ष मनाए।

मिलकर उजाला और फैलाए,

     उज्ज्वल अभिलाषा और जगाए।

आओ मिलकर गीत सुनाए,

     नव वर्ष का हर्ष मनाए।

रौशन मन से सबको महकाए,

     नव वर्ष का हर्ष मनाए।

आगे बढ़े और बढ़ते जाए,

    हर कदम पर सदा मुस्कुराए।

आओ मिलकर गीत सुनाए,

     नव वर्ष का हर्ष मनाए।

नव उमंगे खुशहाली फैलाए,

     जीवन को और आगे बढ़ाए।

सौम्य सुन्दरता हर होंठो पे छाए,

     अन्तःमन,ह्रदय सदा मुस्कुराए।

आओ मिलकर गीत सुनाए,

      नव वर्ष का हर्ष मनाए।

मिलकर उजाला और फैलाए,

     उज्ज्वल अभिलाषा और जगाए।

✍️स्वरचित और मौलिक रचना

  विनोद परिहार "शुभ"

(अध्यापक, कवि, लेखक)

   मुण्डारा, बाली, पाली

   राजस्थान

  8890145391

[





***********

इस वर्ष करो ना ने सबके जीवन में मचाई हलचल,

 नव वर्ष लाए सबके जीवन में सुनहरे पल,

 इस साल के साथ भगवान करोना की भी कर दो विदाई,

 आने वाले नव वर्ष की सबको बधाई ,

सुखी बसे संसार सब ,दुखिया रहे न कोई ,

यह अभिलाषा हम सबकी, भगवान पूरी होय,

 दिल में दया उदारता,

 मन में प्रेम और प्यार ,

ह्रदय में धैर्य वीरता, सबको दो करतार,

 हाथ जोड़ विनती करूं, सुनिए कृपा निधान ,

अच्छी संगत दीजिए ,सबका हो कल्याण,

 पाप से हम को बचाइए, कर के दया दयाल,

 अपना भक्त बनाय के सबको करे निहाल ,


आप सभी के जीवन में नया साल सुखद रात सुप्रभात नव सौगात लेकर आए ,

इसी आशा के साथ नव वर्ष की शुभकामनाएं

रमा बहेड हैदराबाद तेलंगाना राज्य

[




 नव वर्ष की शुभकामनाएं


नया साल  जिससे भाये।


 मातु शारदे !ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।

 वीणापाणि हमें वह स्वर दो, सहज सुखद लेखन पायें।



 दिन में खून पसीना बहता ,रात सुहानी हो जाती ।

श्रम के बस जर्रे जर्रे से , बात कहानी हो जाती।

 कलम अगर इतिहास लिखे तो, करुणा लेखन बन जाये।

वीणापाणि! हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पाये।


मातु शारदे! ओजस भर दो ,नया साल जिससे भाये।(1)


बाल, युवा,मातायें, बहनें, सुखमय जीवन जी पायें।

शिक्षित होकर दशों दिशा में, अपना परचम लहरायें।

मातृ भूमि की सौंधी खुशबू, शोभित लेखन में आये।

वीणापाणि हमें वह स्वर दो, सहज सुखद लेखन पायें।

मातु शारदे! ओजस भर दो,नया साल जिससे भाये।(2)


कोरोना की विकट समस्या ,डेंगू का भय फैला है।

 सीमा पर है सैनिक उलझे, हर चीनी दिल मैला है ।

नव प्रकाश माता जग को दो ,कृपा बरसती ही जाये।

वीणापाणि !हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पायें।


मातु शारदे! ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।(3)


विश्व युद्ध की आशंका से, झूल रहा जग है सारा।

 नर्तन होगा अगर मृत्यु का, जो  जीता वो जग हारा।

सूनी मांगे ,सूनीआंखें, क्रंदन लेखन बन जाये।

 वीणापाणि! हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पायें।


मातु शारदे! ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।(4)


सहज लेखनी चले हमेशा, कालचक्र की लिख  गाथा।

सृजन लेखनी से होता जो ,चूम रही जग का माथा।

मातु शारदे !वीणा के सुर ,झंकृत लेखन में आये।

 वीणापाणि! हमें वह स्वर दो ,सहज सुखद लेखन पायें।


 मातु शारदे  !ओजस भर दो, नया साल जिससे भाये।(5)


डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव," प्रेम"


वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी ब्लड बैंक,

जिला चिकित्सालय, सीतापुर।

261001(पिन)

मोब 9450022526





 नव वर्ष


नव किरण उगने वाली है,

अब भोर नई होने वाली है,

कुछ क्षण कुछ पल में इस साल की विषेली लहर थमने वाली है,

 चारो दिशाओं में सकारात्मक ऊर्जा है,

जो देती संदेश न्यारी है,

अब ना कोई मन में कटुता हो ना कोई मैल हो किसी के लिए,

हर दिन बस मन में उत्सव हो और स्नेह हो सबके लिए,

दिये जले हर तरफ ,रोशन सा हो जग,

लगे कि दीवाली है,

खुशियों का,आनंद ,आत्म सुख का ,संतोष का रंग ऐसे फैले जैसे

लगे कि होली है,

लहर हो प्रेम की लगे जैसे सावन है,

सरहद पर बैठा है जो कोई हमारे लिए, अपनों को छोड़ कर, और सोच रहा है मन में कि कोई उसका भी नए साल में 

इंतज़ार कर रहा होगा,

तो उसके लिए भी नया साल अमन चैन भरा हो,

सरहद पर शांति हो,

उसके लिए भी दुआ है हमारी की जो हमारी हिफाज़त के लिए बैठा है वहां,

मालिक उसको भी सुकून दे,

विश्व शांति और सूख के साथ नव वर्ष का आगाज़ हो।।


नगेन्द्र बाला बारेठ

हाल निवासी दिल्ली





 नववर्ष 2021 के आगमन पर एक रचना :- नववर्ष


गया वर्ष  संघर्षों में बीता, खुशियाँ लेकर  नववर्ष आएगा ।

सपने सबके  पूरे होने पर, चहुँओर  उजियारा सा छाएगा ।।


गए वर्ष में घर बहुत उजड़े हैं, देश का धन बर्बाद हो गया,

डॉक्टरों व नर्सों ने मिलकर, लिख डाला है इतिहास नया,

समूचा देश  अब जाग चुका है,  कोई नहीं  भरमा पाएगा ।

सपने सबके  पूरे होने पर, चहुँओर  उजियारा सा छाएगा ।।


मानव मन  प्रफुल्लित होगा,  स्वागत करेंगे  सब मिलकर,

सुखी जीवन की  आशाएँ होंगी, मन में ना होगा कोई डर,

शांति-संदेश की धारा बहेगी, अपनत्व का  राग फैलाएगा ।

सपने सबके  पूरे होने पर, चहुँओर  उजियारा सा छाएगा ।।


हर अच्छा सपना  सच होकर, जीवन में  खुशियाँ लाएगा ।

सपने सबके  पूरे होने पर, चहुँओर  उजियारा सा छाएगा ।।


इं० शिवनाथ सिंह, लखनऊ

मोबाइल   9451086722




 शुभकामना 

स्वागत दिल से मैं करूं ऐ दिसंबर

तुम जाते जाते अच्छा कर जाना

संग ले जाना इन कड़वी यादों को

सौगात खुशी कि तुम दे जाना

ऐसा साल ना आए जीवन में कभी

इंसानों को जिसने अलग किया

यादें ही रह गई दिलों में

जिसने अपनों को खो दिया

जल्दी से जल्दी बीते अंतिम महीना

नए वर्ष की करनी हमको तैयारी

करे प्रार्थना ईश्वर से हम सब मिलकर

फिर ना आए ऐसी बीमारी

नए वर्ष में नया सवेरा लेकर आना

सफल जीवन रहे हमारा

इसी के साथ नववर्ष की शुभकामना


शोभा पाठक

अलीबाग




 काव्य रंगोली नववर्ष 2021

विषय_नववर्ष (मेरा नया साल)

विधा_कहानी 

सभी रचनाकारों को नववर्ष 2021की हृदय से बधाई। 

(यह कहानी मेरी मौलिक है)

_हमारा नातू अर्णव यूँ तो आठवीं कक्षा का विद्यार्थी है।वह बहुत तेज और एडवांस में सोचता है।

  आज सुबह ही मुझे गुड मार्निग जी कहा और बोला"बाबाजी 2020 का आज अंतिम दिन है। आप 2021में क्या करने का,क्या नहीं करने का,की योजना तैयार कीजिए आपके पास आज का पूरा दिन शेष बचा है।"

   मैंने अर्णव से कहा "बेटाजी बात तो तुमने ,पते की की है।मुझे 2021के लिए आज योजना तैयार करनी चाहिए। "

  अर्णव आनलाईन क्लास के लिए चला गया। मुझसे यह कहकर कि जब वह आयेगा तो 2021 की योजना मुझसे पूछेगा।

   मैं सोचता रहा।मुझे 2021 में क्या संकल्प लेना चाहिए  ।जिससे नया साल सुख,शांति और कुशलता से व्यतीत हो। 

   मेरे दिल ने मुझसे कहा कि "डाॅ •साहब, सबसे पहले तो आपको शारीरिक रूप से फीट रहना चाहिए। कारण यह है कि आपकी उम्र 66वर्ष के लगभग हो रही है। सेहत ठीक रखेंगे तो आप मानसिक रूप से, स्वस्थ रहेंगे और साहित्य की सेवा तन मन से कर पायेंगे। "

   मैंने अपने दिल से कहा "मित्र कल से मैं, रोज सुबह की सैर ,योगा और कसरत करने जाउंगा।कम से कम एक घंटा रोज ही।मैं जाता तो हूँ परंतु कभी-कभी ठंड के कारण गैप हो जाता है और मैं गोल मार जाता हूँ। "

   फिर मेरे दिल ने मुझसे कहा "नये साल में आप संकल्प लें कि मीठा खाना बंद करेंगे ,भोजन भी जरूरत से कम करूंगा,ताकि पानी का उपयोग ज्यादा कर सकूँ। "

  मैंने दिल को जवाब दिया "हाँ यार,कुछ ज्यादा ही खा लेता हूँ। उससे मुझे तकलीफ भी होती है। अब मैं मीठा खाना पूरी तरह से बंद कर दूंगा। परंतु एक बात तो है कि मैं पेट भर भोजन कभी नहीं करता और परिवार में सबसे ज्यादा पानी मैं ही पीता हूँ। भोजन के कारण मेरा पेट कभी खराब हुआ हो तो बताओ।"

   दिल ने भी मेरी बात पर अपनी सहमति दे दी। आखिर सत्य तो सत्य होता है न भाई। 

   परंतु दो संकल्प तो मैंने अपने स्वेच्छा से लिया।मैंने दिल से कहा"देखो भाई नये साल में मेरा पहला संकल्प है कि मैं अपनी चुनिंदा कहानियों को एक किताब की सूरत में तब्दील करूँ और उसे प्रकाशित करवाऊं।रिटायरमेंट के बाद तो मेरे पास समय की कोई कमी नहीं है और पुस्तक के लिए स्टाॅक भरपूर है।"

   नये वर्ष के लिए मेरा दूसरा संकल्प है कि पूरे वर्ष भर ,किसी को भी कोई चुभती हुई बात नहीं बोलूंगा, भले ही वह परिचित हो या अपरिचित। "

   होता यह है कि वार्तालाप के समय हम सत्य कह देते हैं और वह सीधे जाकर दिल को लग जाती है। किसी का दिल भी दुखाना उचित तो नहीं है। भले ही बात सत्य ही,कही गयी हो।

   मेरी बातें सुनकर तो मेरा दिल झूम उठा।खुशियाँ मनाने लगा।शायद उसे मेरा संकल्प पसंद आया हो। आखिर वह मेरा दिल था।मेरी जरूरतों को पूरी तरह से समझता था।वह मेरा हितैषी जो ठहरा।

  कुछ समय बाद हमारा नातू अर्णव घर आया।मुझसे कहा"बाबा आपने नये साल का संकल्प तैयार कर लिया "

   मैंने अर्णव को सारांश में बताया।अर्णव ने मुझसे कहा "मुझे यकिन है कि 2021 में आप अपने संकल्प पर ठोस रहकर उसे पूरा जरूर कर लेंगे।"

     कहानीकार

   डाॅ•मधुकर राव लारोकर 'मधुर '  नागपुर (महाराष्ट्र)

मोबाइल 8999920648




 नए वर्ष में ,,,,,,


नए वर्ष पर गीत,,,,,


नए वर्ष में हम सब सोचें, कैसे

हमको रहना है।।

जु़ल्म,सितम, आतंक किसी का

हमें न हरगिज सहना है।।


कोरोना से बचकर जीना, मर्यादा

पालन करना।

अपने सच को जिंदा रखने,रूह में

दर्पण को भरना।


नए साल में आप सभी से,ऐसा अपना कहना है।।

ज़ुल्म सितम आतंक किसी का हमें न हरगिज सहना है।।


आंधी आए तूफां आए,या आए

कोई आफ़त।

हम सब मिलकर करें सामना,दिल

में रखें नहीं नफरत।


सरिता जैसे लक्ष्य साधकर, हमको  अविरल बहना है।।

ज़ुल्म सितम आतंक किसी का हमें न हरगिज सहना है।।


नए साल में  कोरोना से, भारत

मुक्त कराएं हम।

पहिले जैसे गीत खुशी के,भारत भर में गाएं हम।


सत्य अहिंसा नेह आज भी,इस भारत का गहना है।।

ज़ुल्म सितम आतंक किसी का, हमें न हरगिज सहना है।।


नए वर्ष में हम सब सोचें , कैसे हमको रहना है।।

ज़ुल्म सितम आतंक किसी का , हमें न हरगिज सहना है।।


बृंदावन राय सरल सागर एमपी मोबाइल नंबर 786 92 18 525

31/12/2020




बिदाई (छत्तीसगढ़ी) 


मया मोह के डसना लगा के

सुतगे सूरज,बनगे *गयेबछर*,

नवा साल के अगवानी करत हें

रतिहा भर नाचत हें लहर थहर!


खट मिट अनुभव मा बीतिस 

करोना काल के गये बछर,

पुरखा मन के घरू उपाय ले

जमो मनिषे मन गइन सम्हर!


हर साल के नवा कहानी रथे

सन 2020 के बनगे इतिहास,

विश्व व्यापी विषाणु आपदा के

कारण बनगे जैविक हथियार!


डट के मुकाबला करीन हे जम्मो

दीहिन हे मिल के मुंह तोड़ जवाब,

बड़े बड़े के हदरिस अर्थ व्यवस्था

*भारत* चमकाइस अपन रूआब!


मानव भूगर्भ बुधिमानी के संसाधन

सकल संपन्न हे हामर भारत माता , 

नवोन्मेष नित खोज करोइया हैं इहां

आध्यात्म विज्ञान के तात्विक ज्ञाता!


युग युगांतर मा करवट बदलत हे

साल के उपर साल के नवा बछर,

भरे मन ले बिदा करत हन तोला 

मन में रहगे तनिक खटास कसर!


काबर तैं विष राक्षस ला जनमाये

काबर दुनिया के मइनसे ला डरवाये?

काबर तालाबंदी कराये धंधा पानी के 

काबर बुड़गा मन ल हालू सरग उठाये? 


तोर सुरता आही घोख लागही 

आज रतिहा भर के दुहजार बीस,

तोर छाती ला फांद कांधा मा चढ़के

अवइया हे बिहन्ने दु हजार इक्कीस!


-अंजनीकुमार'सुधाकर'

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1 -1-2021


 नया अध्याय

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नव वर्ष की शुभ घड़ी का करो सत्कार।

दो पलट  पन्ना ,लो खुशियां स्वीकार।।


करके बुलन्द नित्य नया सपना।

जीवन डगर में है आगे बढ़ना।।


ख्वाहिशों की खोल लो अब गठरी।

मुश्किलों को अब कर दो सकरी।।


प्रेम भाव भक्ति और विश्वास का।

जलाओ दीप ,बुलंद हौसलों का।।



पुराने दुखों की मटकी को तोड़ों।

उम्मीद के सपनों से नाता जोड़ो।।


करो पार मुश्किलों की चट्टान को।

कर लो पर आंधी और तूफान को।।


सुनों यार नववर्ष दो हजार इक्कीस।

मत दोहराना किस्सा ए दो हजार बीस।।


ख़ुशीहाली के सिक्कों से झोली भरना।

नही कोरोना वायरस से तुम डरना।।


नववर्ष की अनन्त शुभकामनाएं

अंजनी अग्रवाल ओजस्वी

कानपुर नगर उत्तरप्रदेश





हर पल खुशहाल हो ऐसा नया साल हो*


दायित्व में पस्त अधिकारों की होती बेक़रारी।

हाय तौबा मचा लेते हैं खड़ा होकर किनारी।

विगत क्या आगत क्या रंगों की उलझन बड़ी,

जान-ए ली चिलम जिनका पर चढ़े अंगारी।

शून्य कोई होना नहीं चाहता

शून्य कोई पाना नहीं चाहता।

जिन्दगी कल थी उन्नीस–बीस,

कल हो जाएगी इक्कीस-बाइस।

लगे हुए हैं सब कोई बेचने में

एस्किमो को आइस।

गाँठ में जोड़ कर रखें पाई-पाई

दे लेते हैं नव वर्ष की हार्दिक बधाई।

सारे फ़साद की सोर उम्मीद है।

नमी में आग का कोर उम्मीद है।

सोणी के घड़े सा हैं सहारे सारे,

ग़म की शाम में भोर उम्मीद है।


विभा रानी श्रीवास्तव

पटना







प्रथम चरण:-

अत्यंत दुखद रहा वर्ष 2020

दे गया मन में अनचाहा टीस

बहुतों के टूट गए सपने

बहुतों ने खो दिए अपने

मजबूर हो गए सब घर में रहने को

पहले से ही थे एक दूजे से दूर, अपनों से भी दूर रहने को

रोते बिलखते तड़पते हुए लोग, हजारों मील पैदल चलते हुए लोग

काल के रूप में मुंह खोले हुए कोरोना

ना जाने कितनों को लीले हुए कोरोना

हो गया  सब पर कोरोना भारी

इस सदी की सबसे बड़ी महामारी

द्वितीय चरण:-

यह नहीं है हमारा नववर्ष 

जिसका लोगों में इतना हर्ष

जिसने ने हमको लूटा मारा 

जिन्होंने नाश किया हमारी सभ्यता संस्कृति 

जिनकी वजह से आज हम झेल रहे है इतनी विपत्ति 

जिनकी वजह से हो गए टुकड़े भारत के 

जिनके वजह से लाखों लोग हो गए बलिदान भारत के 

जिनके वजह से आज भारत बर्बाद है जिनकी वजह से फैला भारत में जातिवाद है 

जिनकी वजह से खत्म हो गया साधुवाद है 

जिनकी वजह से हमने खो दिया तख्तो ताज है

जिनकी वजह से आज अलग-अलग समाज है 

क्या है नवीन ऐसे अंग्रेजी साल में 

दारु पीना मौज मनाना बीत जाता है बवाल में

तृतीय चरण:-

मेरा नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा

है सब कुछ नवीन,देवों का है वास सदा

नव पल्लव नवीन उत्साह

नई उमंगे और नई चाह

नई सोच और नई राह

सब कुछ नया नवेला सा दिखता है अलबेला सा

निष्कर्ष:- बंद करो अंग्रेजी नववर्ष मनाना

सीखो वेद पुराणों से हिंदू नववर्ष अपनाना

सत्येंद्र पांडे 'शिल्प'

ग्राम व पोस्ट चंदापुर विकासखंड वजीरगंज जिला गोंडा उत्तरप्रदेश

८८५०१२१७९७





नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक बधाई

एवं  शुभकामनाए |

आया नव वर्ष बन उमंग तरंग भर दे |

उत्साह उत्सव बढ़े मस्त मलंग कर दे |

बढ़े सुख समृद्धि यस कृति धन बृद्धि |

सुंदर परिवार स्वस्थ हर अंग कर दे |

                                        शुभेक्षु 

श्याम कुँवर भारती

महासचिव -महिला कल्याण समिति ढोरी ,बोकारो 

महसचिव – राष्ट्रीय कवि कुटुंब 

प्रांतीय संगठन मंत्री – राष्ट्रीय कवि संगम झारखंड 

राष्ट्रीय सचिव – आभास भारत 

सह संपादक सह राष्ट्रीय सलाहकार – सामयिक परिवेश हिन्दी पत्रिका 

सदस्य झारखंड रीज़न -उपभोकता जागरूकता समूह (CAG)

ट्राई  ,सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय ,भारत सरकार





 जिंदगी में.... यह साल



यह साल ,


बहुत ख़ास रहा |


जिंदगी की कड़वी  यादों में |


मीठी बातों का भी  स्वाद  रहा |



यह साल बहुत ख़ास  रहा |


किन भरमों में जी रहे थे।


आज तक .........?



उनसे  जब  ,


आमना -सामना  हुआ|



क्या  कहूं ..........!


जिंदगी में, इस  साल |


तुज़र्बों का एक काफ़िला  -सा  रहा |



कुछ  के चेहरे से नकली नकाब उतरे,


कुछ को छोड़कर,


हर चेहरा दागदार रहा।।


 कुदरत ने हर चेहरे पर मास्क लगाकर,


 चेहरे की अहमियत का वो  सबक दिया।



यह  साल बहुत ख़ास रहा |



जहां कुछ जिंदगी की हकीकतें समझ गए।


 किस दौड़ में जी रहे थे.....


 बंद घरों में करके कैद में रख दिए।


 


वहीं कुछ चेहरे दिल में सिमट गए।


 जिंदगी बंद करती है एक दरवाजा,


तो कहीं कई  दरवाजे खुल गए।


हर उस प्रेरणा  का


शुक्रिया ........


जिस ने जिंदा होने का,


अहसास दिला दिया।



 जिंदगी की अहमियत का,


इस साल ने वो  सबक दिया।


 जो समझेंगे..... सालों को जी जाएंगे।


वरना हर साल में...  बस


सालों के कैलेंडर ही बदलते रह जाएंगे।



 यह साल बहुत खास रहा।


मैं  हारता हुआ भी हर बाज़ी मार गया |



जिंदगी  का हर  दिन अच्छा या  बुरा,


हर अनुभव  बहुत ही ख़ास रहा |



नये साल  को सींचूगा 


इन अहसासों से |



जिंदगी  को  जीने के, वे-मिसाल उमदा,


इन  तरीको से | 


यह  साल बहुत ही ख़ास रहा |


 जिंदगी की हकीकतों  को दिखाता बेमिसाल आईना रहा।



 स्वरचित रचना


 प्रीति शर्मा" असीम"

  नालागढ़ हिमाचल -पंजाब




 सुस्वागत 2021

शीर्षक नव वर्ष


   नया साल हो गुलज़ार

 अभिनंदन है नव वर्ष आपका ह्रदय से करते हम सत्कार 

नए-नए आगाज लिए हम कर रहे तुम्हारा इंतजार

नव पल्लव नई उमंग और नवजीवन का हो संचार

नव वर्ष का नया खुमार  कर देना सबको खुशहाल

कोरोना का कर संहार  तू चल के आना मतवाली चाल

बीता साल बहुत मुश्किल था सब थे कोरोना से बेहाल


 कितनी ही  लोगो की जानो को कोरोना असमय लील गया 

जीवन चक्र में चलते चलते जैसे कोई ग्रहण लग गया


आशाओं के नए कुसुम ले तुम नई शुरुआत लेकर ले आना

टूटे बिखरे तन मन में नूतन निखार तुम भर जाना

अपने शुभ कदमों से तुम हर  घर आंगन में मंगल करना


गए वर्ष में व्यापारी गण झेल रहे थे मंदी की मार

मध्यम वर्गीय लोगों के खत्म हो गए  थे कारोबार

ओ नए  साल तुम उनके दिल में आशाओं का करना शुमार

उनकी खाली झोली में कर देना सौगातो की बौछार


सूने मंदिर मस्जिद गिरजाघर सूने थे सारे तीर्थ स्थान

सूने थे सारे विद्यालय, महाविद्यालय सूने सारे मॉल बाजार 

फिर से फूल खिला आस्था का  सूनापन  कर देना   गुलजार

फिर से चहके   बालक बालिकाएं फिर से झूमे विद्यालय में बहार


दूर हो गए थे अपनों से कैद थे घर के कैद खानो में 

 डरे सहमे से रहते थे हम मिलने और मिलाने में

शादी ब्याह वर्षगांठ, सालगिरह सब फीके फीके मनते थे

अपनों की दुआ आशीर्वाद को हर जन मन तरसते थे

त्योहारों के रंग थे बदरंग   सूना था सावन का झूला

दशहरा दीपावली बेमजा चले गए और रावण भी चुपचाप जला 

ओ नए साल तुम इस बार रौनके बहार बनके आना

हिलमिल सब जीवन जिए खुशियों का खजाना ले आना

ओ नये साल ओ नये साल मस्ती मे भर कर आना

गत वर्ष की कड़वी यादों को तुम दफन करके आना

  स्वरचित उषा जैन कोलकाता




 शीर्षक- खट्टी-मीठी यादें

***********************

        कविता 

   ----------------

स्वागत है नववर्ष तुम्हारा।

मौसम लगता कितना प्यारा।।


  खट्टी-मीठी यादें भूलो।

  नील गगन को उड़कर छूलो।।


अवनी ओढे़ चूनर धानी।

मुसकाती फूलों की रानी।।


  धूप सुहानी छतपर आई।

  सँग में अपने खुशियाँ लाई।।


नफरत को हम दूर भगायें।

प्यार-मुहब्बत को अपनायें।।


  ,,कुसुम,, खिले हैं बगिया-बगिया।

    आओ झूमें गायें सखियाँ।।


     डा0 कुसुम चौधरी

    गंगागंज लखनऊ





 2021नववर्ष मंगलमय हो

नमन शारदे नववर्ष की पावन

बेला पर ‌स्वरचित‌  रचना 

मन प्रफुल्लित अति उमंग

बीत गया गत साल।।

नववर्ष   आगमन स्वागत

पहनाऊं मोती माल।।

सभी प्रसन्न अति‌ अहलादित

बाज रही शहनाई।।

नववर्ष ‌पहुचा द्वारे

स्वागत ‌बेला आई।।

घर घर में दीप जले

मंगलाचरण व्यवहार।।

सुख वैभव सम्पन्नता ने

खोले अपने द्वार।।

हर प्राणी हो निरोगी

होवे शुद्ध आचार।।

चारों तरफ हो खुशियां

चहुं ओर फैले प्यार।।

संसार में हो शांति

बहे प्रेम रसधार।।

नववर्ष ‌सभी को मंगल मय

हर सपना हो साकार।।

प्रभु से यही कामना

यह वर्ष सभी को भाए

सबके जीवन में नित

नयी खुशियां लाए।।

सभी प्रियजनों को नूतन वर्ष की 

ज्योति तिवारी

बैंगलुरू  1/1/21





 आंग्ल नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

             नव वर्ष

,,,,,,,,,,,,,,,,,,....................

 नया वर्ष है नया दिवस है ,

नया गगन  है,   नई धरा है ।

नया चंद्र   है  नई चंद्रिका ,

नवीन नक्षत्र.  नव निशा है ।।


नवीन गायन नवीन लय है ,

 नई नवेली   कवि प्रिया है ।

नया सृजनहै नवीन प्रतिभा ,

 नवीन शैली   नई विधा है ।।


नवीन आलोकमय है कण ,

नए वर्ष का जगत नया   है।

 नवीन पुष्पों में   गंध नूतन ,

नवल कवि उर  नईविधा  है ।।


सौख्य   भोगों यही कामना है ,

नव वर्ष सुख दे यही भावना है ।

तुम्हारे निकट कोई बाधा ना आए

 यही व्यंजना   है यही कल्पना है।।


 सुबोध कुमारशर्मा 

शेरकोटी 

गदरपुरउत्तराखंड

मो ,9917535361

[1/1, 7:49 AM] +91 88580 90582: नमस्कार साथियों मैं *अभिषेक अजनबी* आजमगढ़ से आप सभी लोगों को नूतन वर्ष 2021 की कल्याणकारी शुभकामनाए देता हूं।आप सभी के पद पंकज में अपनी चंद पंक्तियां समर्पित करता हूं 🙏🏼🙏🏼

*नूतन वर्ष 2021 के आगमन पर*

नया साल दे रहा अनुभूतियां नई नई।

आओ गढे़ं जग जीतने की  नीतियां नई नई।

जो दबाए ख़्वाब उसे सरेआम कीजिए

मौन पड़े प्रेम को नया नाम दीजिए।

द्वेष दंस भूलचुक मन से साफ कीजिए।

प्रियजनों के गलतियों को खुलके माफ कीजिए।

दर्द वाला पल सफल तरीके से बदल गया।।

मनुष्यता का ग्रंथ आग में भी जल संभल गया।

प्रकृति ने बीता साल क्रूरता से ले गई।

पर मानिए मनुष्यता को नया सीख दे गई।

हर जीव  का सम्मान हो उच्च स्वाभिमान हो।

नए साल में सभी को ऐसा  नया ज्ञान हो।

हर युवा की शक्ति को खुलकर अधिकार दे।

हौसले के तुंग चड़ वो चांद भी  उतार दे।

चित्त पड़ी चेतना फिर से दहाड़ दे।

सामने पहाड़ हो तो नाखूनों से फाड़ दे।

क्लेश अब ना शेष हो एक नया परिवेश हो।

इस मही का मेरे प्रभु शुद्धता सा वेश हो।

पूरा मुल्क साथ देकर आफताब  कीजिए।

प्रिय जनों के गलतियों को खुलके माफ कीजिए।

  अभिषेक अजनबी 

मोबाइल number- 8858090582




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स्वागतम्

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जीवन नित खुशहाल हो, पलता है उत्थान।

जाने वाला जा रहा, लेकर कुछ अरमान।।


जाने वाले को नमन, आगत का सम्मान।

यही दुआ, है कामना, आगत हो बलवान।।


अब केवल शुभ ही फले, हो मानव का मान।

चैन- ख़ुशी महके सदा, हे प्रभु दयानिथान।।


जीवन यूंही बीतता, पर देता है हर्ष।

अंतर के आवेग से, जीते हम संगर्ष।।


आने वाले काल मै, जग छू ले आकाश।

कभी नहीं मुरझये अब, इंसा का विश्वाश।।


बीते ने भी है दिया, बारहमासी साथ।

अब आया दहलीज पर, नया पकड़ने हाथ।।


      डा. संध्या श्रीवास्तव

       दतिया, मध्य प्रदेश

    (9981593005)




  


क्या कुछ खोया और अब क्या कुछ मिलेगा


हांँ  जाना  तो  था  ही  आज  मुझे ।

यह राज की बात  बताऊंँगा  तुझे ।।


आज रात को 12 बजे तक का मेहमान था ।

इसलिए मन से दुःखी चित्त से परेशान था ।।


क्योंकि 2021 ने मुझे धक्के देकर भगा दिया ।

और  मुझे  उल्टा - सीधा कहकर भगा दिया ।।


वह  कहता  है  कि 

तूने अपने काल में बहुत बुरा किया है ।

किसी  को  कुछ  नहीं  दिया  और ,

रोजगार  तक  भी  छीन  लिया  है ।।


तुझे शर्म नहीं आई ऐसा सब करते ।

रहे  सब  दूर  तुझसे डरते - डरते ।।


कोरोना वायरस तेरे मन को क्यों भाया है ?

जो  उसको  लेके  तू  दुनिया  में आया  है ।।


बस तेरी यही औकात है ?

क्या  यही  तेरी  बात  है ?


तू यहांँ  से जा , अब  मैं  आ  रहा  हूंँ । 

तुझ अपने दिल की बात बता रहा हूँ ।। 


तुझे यहाँ से विदा करने के लिए ।

तेरी  करने  को  भरने  के  लिए ।।


मैने  तुझे  बहुत  बार  समझाया ।

लेकिन तेरी समझ में कुछ नहीं आया ।।


जरा  अब  तू  जल्दी  सोते  से  जाग  जा । 

अपना काला मुह करके यहाँ से भाग जा ।।


अन्यथा  तेरी  ही  करतूत  तुझे  बताऊंँगा ।

और ऐसे नहीं माना तो डंडे से मनवाऊँगा ।।


सब लोग मेरा स्वागत करने के लिए खड़े हैं ।

और तुझे अपने घर से निकालने को लगे हैं ।।


देख सब जगह मेरा स्वागत है ।

कभी  तेरा  था  आज  मेरा  है ।।


मैं अच्छे काम के  दिन  सबको गिनवाऊंँगा ।

कैसे बीतेगा 2021 यह सबको दिखाऊंगा ।।


देखो मेरे लिए जनता में है कितना बड़ा  हर्ष ।

"उदार" की ओर से मंगलमय हो यह नववर्ष ।।


               जय   हिन्द   ---  जय   भारत ।

                भारत    माता    की     जय ।।



   देशराज  शर्मा  "उदार"

ग्राम-मनूपुरा   रोशनपुर   जागीर पोस्ट  ---  हंसूपुरा   (वाया  --  नूरपुर)

तहसील  --- चान्दपुर   स्याऊ

जनपद  -बिजनौर उ प्र)

 मो0 91 8273499768

 +91 9389654762







 आज तुम्हारा अंतिम दिन का  कार्यकाल है। कल तुम बीता हुआ साल हो जाओगे लेकिन यह मत समझ लेना कि तुम याद नहीं आओगें।


 मेरा वादा है तुमसे मैं तुम्हें अच्छी सोच अच्छी याद के साथ संजो कर रखूँगी।  अच्छे विचार क्यो..?....यही प्रश्न है न तुम्हारा....सही बात है पर शायद मेरे पास सटीक उत्तर है।मेरी बात सब माने यह आवश्यक नहीं परन्तु कोई भी न सहमत हो ऐसा भी नहीं..... मैं तुमको अपना मित्र घोषित करती हूँ। सदा हँस कर याद करूंगी 2020 को ... क्योंकि तुम (2020)मुझे बहुत कुछ सिखा गए सबसे बड़ी बात तो यह है कि लेखन व लेखनी का महत्व भी समझा गए हो। बहुत बड़ा बदलाव आया मेरे जीवन में।इस बदलाव ने मुझे साहित्य की कई विधाओं से परिचित कराया सारथी के जैसे सही दिशा दिखाता गया।

       अभी तुम रात 12 बजे तक तो साथ हो न ....अच्छे से विदा करूँगी तुम्हें। एक सच्चे मार्गदर्शक की भांति तुमने अपनो का महत्त्व, घर का औचित्य, जीवन का मोल बताया ।

       

   मेरे लिए तुम खास रहे मेरे मित्र के सभी धर्म तुमने निभाए इसलिए तो  हमें अपनों का, परायो का परिचय कराया। आर्थिक ,राजनीतिक सामाजिक सभी दृष्टिकोण से अवगत कराते रहे तुम ।मुझे आता है याद बार-बार संबंधों की महत्ता समझी मैंने शायद इसी बार माँ दिन भर काम करती है मशीन के जैसे चलती रहती है वह 2020 में भी नहीं थकी ।  मेरे दोस्त तू तो भाई यादगार बन जाएगा कई परेशानियों को झेल कर भी कार्यकाल पूरा करके ही जाएगा मेरी मुझसे पहचान करा कर जाएगा मैं भी लिख सकती हूं यह बता कर के ही जाएगा। मैं कभी नहीं कहूंगी कि तू जल्दी से जा, तू शुभ नहीं है ,बल्कि क्षमाप्रार्थी है हम कि तुझे कुछ ना दे सके।यादें बनकर हमेशा साथ रहोगे तुम 2020 तूने तकनीक में हम लोगों को उन्नत बनाया रसोई घर में पुरुषों से भी काम कराया घर का मूल्य तूने ही  बताया । अनमोल शब्द का अर्थ अब समझ आया । जीवन की आधारभूत आवश्यकता रोटी ,कपड़ा ,मकान का अर्थ समझा गया । सुन  मेरे सखा तू 2021 में भी मित्र रहेगा।मेरी यादों में तू सदा जिएगा।


कविता पंत

स्वरचित संस्मरण

अहमदाबाद, गुजरात




 नववर्षाभिनंदन--2021

     ---------------------

        (शुभकामनाएँ)

मस्तक पर खुशियों का चंदन

करें कर्म औ'श्रम का वंदन

आशाओं को करें बलवती,

कुंठाओं का रोकें क्रंदन

    नवल वर्ष का है अभिनंदन ।


कटुताओं को याद करें ना

आंसू बनकर और झरें ना

मायूसी का घड़ा रखा जो,

उसको हम अब और भरें ना

     करें वक्त का हम अभिवंदन

     नवल वर्ष का है अभिनंदन ।


बीता कल तो बीत गया अब

एक वर्ष फिर रीत गया अब

जिसने विश्वासों को साधा,

ऐसा पल तो जीत गया अब

    नवल सूर्य फिर से नव साधन

      नवल वर्ष का है अभिनंदन ।


गहन तिमिर तो हारेगा अब

दुख,सारा ग़म भागेगा अब

नवल जोश उल्लास सजेगा

नवल पराक्रम जागेगा अब

    नवल काल को है अभिवादन

    नवल वर्ष का है अभिनंदन ।


     -प्रो.शरद नारायण खरे

                प्राचार्य

शासकीय जे एम सी महिला महाविद्यालय, मंडला(म.प्र)-481661

         (मो.9425484382)

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 औपचारिकता - नया साल 

आजकल हम हर त्योहार

औपचारिकता के लिए

मनाते हैं

हो दीपावली या नया वर्ष 

यूं ही मनाते हैं

सबको शुभकामनाएं

भेजकर अपना कर्तव्य

निभाते हैं

पहिले मिलकर शुभकामनाएं

देते थे

फिर फोन से

देने लगे

आज सोशल मीडिया के

इस युग में वाटसआप फेसबुक

से भेजते हैं शुभकामनाएं

न किसी की खैर खबर

लेते हैं न देखते हैं

किसी की भावनाँए

आधुनिकता के इस दौर

में शून्य हो गई हैं संवेदनाएं

हर दिन को 

नये साल की तरह मनाएं

हो सकता है कि अगला दिन 

हमारी जिंदगी में

आये या न आये


लेखक

             डॉ  प्रताप मोहन "भारतीय"308,चिनार-2 ओमेक्स पार्क -वुड-बद्दी

173205 (HP)

मोबाईल-9736701313






              गीत


दिल से दिल फिर मिलेंगे नए साल में

गुल नए फिर खिलेंगे नए साल में


इस गए साल ने है रुलाया बहुत

दिल को सब के है इसने सताया बहुत

ख्वाब मासूम आंखों ने पाले बहुत

दूर मुंह से रहे पर निवाले बहुत

भूल कर गम सभी हम है आगे बढ़े

फिर नए ख्वाब पालें नए साल में


दिल से दिल फिर..............


खूबसूरत रहेगा सभी के लिए

फिर बहाने मिलेंगे हंसी के लिए

दूरियां नफरतों की  मिटेंगी सभी

फिर कली चाहतों की खिलेंगे कहीं

दूरियों से बहुत तंग सब आ चुके

फिर गले सब मिलेंगे नए साल में


दिल से दिल फिर .........


है दुवाएं मेरी ये सभी के लिए

कोई तरसे नहीं फिर खुशी के लिए

है नया साल आया नए ख्वाब ले

हम नई मंजिलों की नई राह लें

मंजिलें खुद हमारा पता पूछती

हम बढ़ाएं कदम फिर नए साल में


दिल से दिल .......


प्रदीप भट्ट





आप सभी को नववर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए


नववर्ष पर एक गीत

~~~~~~~~~~~


आशाओं के मंजर को चुन

सबमें जीवन प्राण भरें

नया वर्ष है ,नया हर्ष है 

आओ नव निर्माण करें


देतीं दस्तक रवि की  किरणें

हर खिड़की दरवाजे पर

शीतल मलय समीर थिरकती

नव प्रभात के  बाजे पर

प्यारे प्यारे नव पल्लव ये

इठलाते ले अमृत को

भर देते नव प्राण सभी में

जो उद्धृत हैं निवृत को


पुष्पित गुंजित धरा कह रही 

नूतन युग पाषाण धरें

नया वर्ष है नया हर्ष है

आओ नव निर्माण करें


बीती काली रात भुलाओ

और भुलाओ  सारे दुख

छिपे हुए जो वीराने  में

सम्मुख लाओ सारे सुख

स्वप्न गढ़ो  तुम नव जीवन के

नया नया उल्लास भरो

बाधाओं का  डटकर के  तुम

हिम्मत से प्रतिकार करो


श्वासों  की  लड़ियों  से कह दो 

अभी नहीं निर्वाण वरें

नया वर्ष है नया हर्ष है

आओ नव निर्माण करें


देश भूमि ये मांग रही है

फिर से तो बलिदान बड़ा

तोड़ो दुश्मन के  गढ़ को अब 

जो हँसता  है वहाँ खड़ा

चोर ,डाकुओं और भेदियों 

को उठकर पहचानो  तुम

खींच रहे हैं जो दीवारें

छद्म वेश में  होकर गुम


संविधान ये हमसे कहता

नर नर  का न प्रमाण हरें

नया वर्ष है नया हर्ष है

आओ नव निर्माण करें


   

  नीरजा 'नीरू'

 लखनऊ (उ०प्र०)




बदला


मौसम का आज रूख बदला 

हवाओं  का  स्वरूप  बदला।


तेरे  काजल का  रंग बदला।

आँखोंमैं ठहरा समंदर बदला।


खामोशियों का  ढंग  बदला।

होठों पर था मेरा नाम बदला।


मंजिल का  ठिकाना  बदला।

चलते चलते मैंने शहर बदला।


इबादत करतें हुए खुदा बदला।

ठोकरे खाकर ठिकाना बदला।


मेरा  पूछा गया  सवाल बदला।

तेरा दिया  हुआ जवाब  बदला।


तूने किया था वो वादा  बदला।

तीखी नज़र  से इरादा बदला।


बात  करने का  अंदाज़ बदला।

मूड  कर  जाते  रास्ता बदला।


इस  बदले मैं खुद  पूरा बदला।

बेमौत मार गया  हमें ये बदला।


नीक राजपूत गुजरात

9898693535






 मुक्तक..

अरे!नव वर्ष आया है,पिरोकर हर्ष की लड़ियाँ।

सिखाकर जायेंगी हमको, सफ़र के कर्ष की कड़ियाँ।

महज़ निष्कर्ष है इतना,इसी का नाम जीवन है।

करें स्वागत सहज दिल से,मिलें उत्कर्ष की घड़ियाँ।।

                अर्चना द्विवेदी

             अयोध्या उत्तरप्रदेश




*मैं हूँ साल दो हज़ार बीस*

क्षमा करना 😞

नफ़रत स्वाभाविक है , 

छीना जो है बहुत कुछ... 

बच्चों से , पिता को.. 

बच्चों से , माँ को.. 

बहन से , भाई को.. 

पत्नी से , पति को.. 

ना जाने , कितने

रिश्तों से रिश्तों को.. 

कारोबार , ऐशो आराम , सुख चैन ,

फ़ेहरिस्त लंबी है.. द्वेष है... 

क्रोध है , नाराज़गी है ,

प्रश्न यह सभी का है.. 

कब जाओगे ?? 🤔

कब आएगी चैन की नींद ?? 

जा रहा हूँ... 😔 *मैं हूँ*

*साल दो हज़ार बीस*।।


लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने.. 

नदियों को *साफ़ पानी...* 

पेड़ों को *हरियाली...* 

पहाड़ों को *झरने...*

बेघर पशु-पक्षियों को *घर...*

धड़कनों को *साँसें...* 

जीवन को *अर्थ...*

रिश्तों को *प्यार...*

बागों में *फूलों की बहार...*

सर्दी को *बर्फ़...* 

गर्मी को *ठंडी हवाएँ...*

सूखे को *बरसात...* 

ज़िंदगी को *मौसमी सौगात...*

रखना याद , 

*हर हार के बाद है जीत...*

जा रहा हूँ... ☹️         *मैं हूँ*

*साल दो हज़ार बीस*।।


दुखों को नहीं , 

खुशियों को याद रखना... 

मिली है जो सीख , 

उसे संभाल कर रखना... 

*प्रकृति से ,*

*अब और मत खेलना*

संसार सब का है , 

याद रखना... 

ज़्यादा नहीं , थोड़े की  है ज़रूरत... 

लालच भरी ज़िंदगी की , 

बदलनी है अब सूरत... 

*खुशियों से भरा  ,* साल

दो हज़ार इक्कीस है नज़दीक... 

जा रहा हूँ... 😰 *मैं हूँ*

*साल दो हज़ार बीस* ।।

          🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*अमित सिंह बाबा  संस्थापक अध्यक्ष पहल सतना एमपी

        9303310918




 प्रतियोगिता हेतु

शीर्षक - नव वर्ष

बारह बजे... 

हर मुख पर 

खुशी और मुस्कान आ गई .…


चारों तरफ से 

नववर्ष मुबारकबाद

 की आवाज आ गई... 


नवल वर्ष की 

प्रथम रश्मि का 

          करें अभिनंदन... 

 शुभ स्वरों से बजे शंख..

 मधुर प्रफुल्लित,

 नव चिंतन से हो

 दुष्ट प्रवृत्तियों का अंत…


नये वर्ष में हो…

नयी सोच ,

नया जोश ,

       नया गीत ,

       नया संगीत ,

नयी ऊर्जा ,

नयी  उमंग , 


लाए नववर्ष ,

हमारे जीवन में 

खुशियां ,उत्साह

     और हर्ष...


नीना महाजन नीर

गाजियाबाद

उत्तर प्रदेश





 दोहे --- मङ्गलमय नव वर्ष


मंगल मय नव वर्ष हो, आये सुख की बाढ़ ।

नफरत के काँटे जले, रिश्ते होय प्रगाढ़ ।।

~~~~~~~~~~~~~


आने वाले साल में, खुशियाँ मिले अपार ।

नहीं किसी के शीश पर, हो दुक्खों का भार ।।

~~~~~~~~~~~~~


आने वाले साल में, सब जन हों ख़ुशहाल ।

लगे सभी की लॉटरी, सब हों मालामाल ।।

~~~~~~~~~~~~~


आने वाले साल में, होए नहीं धमाल ।

अपने अपने क्षेत्र में, सब जन करें कमाल ।।

~~~~~~~~~~~~~

आने वाले साल में, चमके भारत भाल ।

दुश्मन का 'गिरि' दमन हो, गले नहीं अब दाल ।।

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आने वाले साल में, हों मस्ती के गीत ।

अपनी अपनी चाह का, मिले सभी को मीत ।।

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आने वाले साल में, ना हो शोक विषाद ।

हर्षित औ पुलकित रहें, रहें सभी दिलशाद ।।

~~~~~~~~~~~~~

आने वाले साल में, न हो कहीं पर जंग ।

दसों दिशाओं में दिखें, इश्क हक़ीकी रंग ।।


✍🏼 कैलाश गिरि गोस्वामी

9982505957



            



 नव वर्ष की सभी को अनन्त शुभकामनाएं


विधा-: गीत

शीर्षक-: नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।


नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।

सुखद हों हर क्षण यह वन्दन हो ।।

नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।


हर इक पल खुशियों का दामन ।

थामे अपनों का जीवन हो ।।

खिला चहकता कुसम कली सा ।

मुस्काता मधुमय जीवन हो ।।

गंगाजल सी वाणी हो और अन्तस् महके ज्यों चंदन हो ।।


नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।


नित प्रेम पुष्प ही उपजे उर में ।

निष्ठा त्याग भावना जन्में ।।

सदा सहायक हों परजन के ।

स्नेह भाव पुलकित हों मन में ।।

कुंज गली गोपी ग्वालों संग रास रचाते ज्यों यदुनंदन हों ।


नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।


प्रकृति का स्वागत करने को ।

नया सवेरा नित आएगा ।।

मन राधे कृष्ण रमा मय होकर ।

हर्ष का राग मधुर गायेगा ।।

करो समर्पित जीवन शिव को मिटे रोष दुख भय खंडन हो ।


नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।

नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।।

सुखद हों हर क्षण यह वन्दन हो ।।

नए वर्ष का.....अभिनंदन हो ।।


सर्वाधिकार मौलिक रचना-:

स्वरचित-:

कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी"

धौरहरा-लखीमपुर खीरी

उत्तर प्रदेश





 गीत


हाँ नयी उम्मीद लेके आज साथ में.. 

हांथ अपने यार का है थामें हांथ में.. 

त्याग कर व्याथायें सारी बीती रात में.. 

आ गये हैं देखिये तो नव प्रभात में.... 

हर किसी के चेहरे पे हर्ष आ गया...... (3) 

हो मुबारकां नया ये वर्ष आ गया.... 

देखते ही देखते ये वर्ष आ गया.... 


मानता हूँ वर्ष  यह  रहा बड़ा कठिन.. 

सिर्फ मुश्किलें मिली हमें हर एक दिन.. 

हमने हंंस के मुश्किलों का सामना किया, 

जीना भी है कैसा जीना मुश्किलों के बिन..

जीत का ये मौसम सहर्ष आ गया.. (3) 

हो मुबारकां नया ये वर्ष आ गया... 

देखते ही देखते ये वर्ष आ गया.... 


भूल चूक माफ करके प्यार दीजिये... 

साथ एक दूसरे का यार दीजिये..,. 

स्नेह अग्रजों से पाइये विनम्र बन, 

औ कनिष्ठकों को भी दुलार दीजिये.. 

ऐसा करके देखिए प्रहर्ष आ गया... (3) 

हो मुबारकां नया ये वर्ष आ गया....  

देखते ही देखते ये वर्ष आ गया...... 


सर्वाधिकार मौलिक रचना-:

 स्वरचित-:

कवि नितिन मिश्रा निश्छल

रतौली सीतापुर यूपी





कविता - "नूतन वर्ष"

__________________

जानें       कितने      घाव      हरे       हैं,

ऐ! मलीन मन आओ नूतन वर्ष मनायें।।


आते  -  जाते   तेरी   धमक    बताते   हैं,

है मानव को दारूण दु:ख तुमने पहुंचाये।

अबकी      ऐसे      तूं       है       निकला,

देख जवानी बचपन ऐसे भले बुढ़ापा ले आये।

ऐ!  मलीन   मन   आओ  नूतन  वर्ष  मनाये।।


टूट       गये       हैं        सपने       सारे,

मुकुलित        यौवन       हैं         भाये।

आंसू   का    हर    कतरा ‌  शबनम   से,

मुकुलित      नयनों       को      भिगाये।

ऐ! मलीन मन आओ नूतन वर्ष मनायें।।


कहर     कोरोना     के    क्या     कहने

जानें     कितने      दु:ख     हैं      ढाये।

लिये    मास्क     सब    घूम     रहे    हैं,

अब  तो  इससे   छुटकारा  मिल  जाये।

ऐ! मलीन मन आओ नूतन वर्ष मनायें।।


जानें       कब       स्कूल        खुलेगा,

फिर   न    कोई      सुशांत     छलेगा।

पैदल     अब     मजदूर     न      आयें,

नित  नव  किसलय  ऐसा  खिल  जायें।

ऐ! मलीन मन आओ नूतन वर्ष मनायें।।


नया    पंख      हो     अभिलाषा     का,

सुदृढ़      अर्थ      जगत     हो     जाये।

चले      चुनावी      समर      जहां     में,

बेईमानों      को      आघात      लगायें।

ऐ! मलीन मन आओ नूतन वर्ष मनायें।।


प्रभु    से   अरज़    हमारी      यह     है,

मंगल     काज़      सभी     हो     जाये।

बिना   रूग्ण   के    नया    विहान    हो,

दया    प्रेम    से     सब     भर     जायें।

जानें      कितने      घाव       हरे       हैं,

ऐ! मलीन मन आओ नूतन वर्ष मनायें।।


        - *दयानन्द_त्रिपाठी_दया





 नव वर्ष स्वागत कविता


चलो मिलकर गाएँ हम स्वागत - गान 

नववर्ष का आया नवल विहान

हँसते गाते हम मौज मनाते

छोड़े संकीर्णता लाएँ वितान 


जीवन वाटिका का हो उत्कर्ष

चहुँ ओर फैले अब हर्ष ही हर्ष 

व्यक्तित्व का करें अब हम संबोध 

लाएँ परिवर्तन करते रहें शोध 


आरोही पथ पर बड़े यह जीवन 

खुशियों का सुनाए मधुर गुंजन 

प्रगति की लतिका यह बढ़ती रहे

सफलता के सोपानों पर चढ़ती रहे 


रजनीगंधा का फूल बने 

जबतक दम हो तबतक महकें

नित नई कोपलें पुष्प खिले 

जीवन को हर पल नवाचार मिले 


जीने की अब नई आस मिले 

जीवन को नया उल्लास मिले 

अंतर्निहित क्षमता को विश्वास मिले 

टूटती साँसों को अब नई साँस मिले


प्रेम की सौंधी खुशबू से 

भर जाए मेरा घर - आँगन 

नई सुबह के साथ 

आए जीवन में नई किरण ।।


- चन्दन सिंह 'चाँद'





 "मुक्तक"


बीत गया है साल बीस कुछ  कड़ुवी  यादों को देकर ।

आ गया इक्कीस द्वार  पर  मीठे  सपनों  को  लेकर  ।

जीने का  एहसास  मरे  न अब  इतनी  सी  चाहत है ।

साल नया मत वो दुख देना बीस गया जो दुख देकर ।।


 प्रदीप बहराइची 

पयागपुर, बहराइच

 नव वर्ष की आकांक्षा


नव वर्ष में सृजन के गीत गाता चल ।

भाव अर्पण कर नव गीत गाता चल।


नव निर्माण में सबको,नव संकल्प लेना है ।


समर्पण भाव का उल्लास महके,पुष्प जैसा जीना है ।


उग रहा दिनमान देखो!ले नये वर्ष की किरण।


हो रहा चारो तरफ से,प्रकाशित नव वातावरण।


मनोबल भी उठे उँचा ,महा प्रज्ञा भी जल जाये।


सृजेता शक्ति साहस और प्रखरता प्रेरणा लाए।


प्रयोजन सिध्द हो जाए यही मनोकामना सबकी।


लोक -मंगल -पथ,सभी को सुझना चाहिये ।


क्रूरतम-दु:स्वप्न तम के,नव वर्ष में टूटना चाहिये।


मनुज को पीड़ा पतन से नव वर्ष में छूटना चाहिए ।


डॉ रश्मि शुक्ला (समाज सेविका)

समाजिक सेवा एवम् शोध संसथान (अध्यक्ष)









आप सभी को नववर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

छंद

खुशियां  मिले  अपार, रौशन  हो घर द्वार,

सबका    मंगलमय,  नववर्ष   हो    जाए।

जीवन  की हर  राह, सुगम  हो यही  चाह,

मन  सदा पावन  हो, औ  प्रहर्ष  हो जाए।

जो जी रहे अभावों में, रह  गए किताबों में,

उनके  भी  जीवन  में, ये  उत्कर्ष हो जाए।

पर  पीड़ा बाँट सके, कभी भी  न हारे थके,

लक्ष्य की सफ़लता के, वो आकर्ष हो जाए।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"

सीतापुर- उत्तर प्रदेश



🌹स्वागतम् नववर्ष 202🌹

दो हजार इक्कीस तुम आओ


स्वागत तुम्हारा वर्ष दो हजार इक्कीस तुम आओ, 

प्रथम दिन की प्रथम किरण से ज्योतिर्मय हो जाओ। 

मेघा बरसे प्रभा की धरा पर, जग भर दीप्तिमय हो, 

तिमिर छंट जाये मन का मस्तिष्क को प्रज्ञा दे जाओ।। 


कर अभिनन्दन तुम्हारा यही कामना है हृदय में हमारे, 

वर्ष 2020 की चोटों का दर्द न आये संग में तुम्हारे। 

तुम्हारा क्षण-प्रतिक्षण, दिन-प्रतिदिन सौभाग्यमय हो, 

चहुं ओर बिखरे उष्मा ओज की, स्वर्ग धरा को निहारे।। 


अपार आकाँक्षायें 2021 तुमसे सारा जग रखता है, 

नववर्ष शुभ हो हर कोई यह मंगल कामना करता है। 

तुम केवल वर्ष ही नहीं मानव जीवन-पथ के साथी हो, 

ना लगे तुम पर दाग ये आकांक्षा जन-जन रखता है।। 

सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 

देहरादून - उत्तराखण्ड







शीर्षक (नव वर्ष)


वर्ष नहीं ये मास नया है

दिवस नया कह सकते हैं

पौराणिक विधान के सागर उलटे न बह सकते हैं

फूलों की पंखुड़ी सिकुड़ती बूढ़े बाबा कांप रहे

सीतल सर्द हवाएं चलतीं

सर्दी का संताप रहे

दुपके पड़े रजाई में सब

ऐसे दिनों को हम कैसे ये

नया साल कह सकते हैं

पौराणिक विधान..........

हम भारत वासी हैं हिंदुस्तानी लेख निराला हैं

विद्वानों मनीषियों के सुन्दर विवेक की माला है

अपना हम नव वर्ष मनाये विना नहीं रह सकते हैं

पौराणिक विधान...........


ग्रंथों का है सिंधु हिन्द ये

वेदों का उच्चारण है

घड़ी सुभम नक्षत्र जानते

ज्योतिष का भण्डारण है


हंस वंस के अंश सत्य हैं

झूठ नहीं सह सकते हैं

पौराणिक विधान.........


ये अपना नव वर्ष नहीं हैं

मगर कोई प्रतिवंध नहीं

धर्म सनातन की निष्ठा में

है सुगंध दुर्गन्ध नहीं


दृढ संकल्प अगर कर लें

पल में विचार ढह सकते हैं

पौराणिक विधान.......


प्रतियोगिता हेतु

कवि राजेश तिवारी

भृगुवंशी कुलपहाड़ महोबा उ प्र 

मोबाईल नम्बर 7007748952






01-01-2021

प्रतियोगिता हेतु रचना

विधा-कविता

शीर्षक- *नव वर्ष तुम्हारे स्वागत में*

रचना-मीना जैन


किरणों का सजा स्वर्णिम वितान

नव वर्ष तुम्हारे स्वागत में:::

गूंज रहे हैं मंगल गान

नव वर्ष तुम्हारे स्वागत में:::

चल पड़ी हैं प्रभात फेरियाँ

लेकर एक नूतन संदेश

हर कोई यह प्रण ले आज

रखना स्वच्छ अपना परिवेश

बँट रहे बधाई के संदेश

नव वर्ष तुम्हारे स्वागत में:::

अंधकार से प्रकाश की ओर

चलो मिलकर प्रगति की ओर

नवीन ज्ञान, नूतन तकनीकें

सीख चलो उन्नति की ओर

जागी है नव चेतना

नव वर्ष तुम्हारे स्वागत में:::

अब न कहीं हो रोग, भुखमरी

सबका जीवन पथ प्रशस्त हो

वर्तमान का समय हमारा

प्रयास हमारा शत प्रतिशत हो

द्वार-द्वार पर दीप सजाये

नव वर्ष तुम्हारे स्वागत में:::

अपना देश, अपनी भाषा

सबसे बढ़कर प्रिय हमें

खो न देना कहीं प्रमादवश

स्वर्ण सुअवसर, शुभ समय

जय हो, जय हो का स्वर उठता

नव वर्ष तुम्हारे स्वागत में:::।

✍️मीना जैन

इन्दिरापुरम, गाजियाबाद।





 ।।नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।।


सत्य सनातन रही संस्कृति की पहचान  हमारी ।

इसकी रक्षा करने की है अपनी  जिम्मेदारी ।


जीवन के व्यवहार में नित अंग्रेजी कैलेंडर आता।

जन्म से मृत्यु तलक ही इससे हम सबका है नाता।


 विद्यालय की जन्म तिथि में यही सामने  दिखता।

इसके ही आधार से जग व्यापार व पेशा चलता।


न्याय व्यवस्था की तारीखों में इसको हैं पाते।

जब बढ़ती तारीख मुवक्किल के चेहरे मुरझाते।


जन्म दिवस की तारीखों से मन प्रसन्न हो जाता।

केक काटके सब मिलके  परिवार है जश्न मनाता।


शादी के उत्सव में भी तारीखें इसकी छपती । 

अतिथि आगमन होता सारी रंगत मोहक लगती।


कैसे इस कैलेंडर को हम खुद से अलग कर पायें।

 सारे राष्ट्रीय पर्व भला इसके बिन कैसें मनायें।


इसी लिए इस अंग्रेजी नववर्ष को दें सम्मान ।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर करें सदा अभिमान ।


      आनन्द खत्री 'आनन्द'

       बिसवा (सीतापुर)





 नव वर्ष पर दोहे


हुआ पुरातन वर्ष ये, दो हजार और बीस।

आधा गिनती में रहा, आधा था कटपीस।।


चीन ने ऐसा बो दिया, कोरोना का रोग।

विश्व आज व्याकुल हुआ, दंड रहा है भोग।।


आशा और उम्मीद है, दो हजार इक्कीस।

रोग दोष सब दूर हों, तुम हो पूरे पीस।।


मानव मन की गा रहा, ये पंडित राकेश।

विश्व हमारा हो सुखी, मिटे सभी के क्लेश।।


भाईचारा हो सकल, प्रेम रहे मन शुद्ध।

सबकी खैर मनाइए, नहीं सोचिए युद्ध।।


विश्व गुरु का देश यह, सबकी माने खैर। 

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।


सन्मति सबको दीजिए महाप्रभु जगदीश।

मानव तन तुम पाय के, रखो न मन में टीस।।


नूतन वर्ष जो आ रहा, सबका हो कल्याण।

मेरी मंगल कामना, पोषित हो हर प्राण।।


दीन दुखी कोई न हो, ना ईर्ष्या ना द्वेष।। 

सबकी हो सम्पन्नता, होवे वर्ष विशेष।।


राग रागिनी की लहर, झूमे चारों ओर।

तमस कालिमा की जले, सुरभित हो नव भोर।।


पंडित राकेश मालवीय 'मुस्कान' 

401 ए/ 108ए, बेनीगंज, प्रयागराज--16

मोबाइल नंबर 857422 1120






नव-वर्ष 

आया रे नव वर्ष लिए नव हर्ष और उल्लास !

करो जीवन में नव संघर्ष,

बने निज भाग्य तुम्हारा दास,

नया हो जीवन का उत्साह

नवल मन का हो हर विश्वास

बने सम्बल फिर बीता वक़्त ,

रचो फिर तुम नवीन इतिहास

आया रे नव वर्ष लिए नव हर्ष और उल्लास !

रहे न किंचित भी संदेह,

पूर्ण प्रण से हो हर एक श्वास

सफल हो लेकर नव उत्कर्ष,

नए जीवन पथ औ नव आस

करें कामना यही अनुराग,

पूर्ण हर होता रहे प्रयास !

आया रे नव वर्ष लिए नव हर्ष और उल्लास !


अनुराग दीक्षित 

कासगंज, 

उत्तर प्रदेश






 साल 2020के सबक "


 पहला सुख निरोगी काया,

 2020 में समझ में आया ।

योग, कसरत, प्राणायाम अपनाया,

 तन- मन को है स्वस्थ बनाया ।

मुश्किल दौर ना कहकर आवे, 

बचत करें सो बहु सुख पावे। 

जिसने इसे सहर्ष अपनाया, 

जीवन भर वह अति सुख पाया। 

जब भी संकट सिर पर आवे, 

राहे अपने साथ में लावे ।

मिलकर करो सबका सहयोग ,

केवल भोग नहीं सुख योग ।

मुँह का स्वाद ना सेहत लाए ,

जैसा खाए वैसा तन पाए ।

सेहतमंद हो भोजन सबका, 

करो संकल्प मिलकर जीवन का ।

हर संकट अवसर भी लाता ,

रोके राह तो खोल भी जाता ।

उठो चलो बनकर कर्मवीर, 

परिश्रम से ही मिलेगी जीत।


डॉ0 निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान




गत वर्ष बहुत दिखा गया।

रिश्तों का अहसास करा गया।

माटी का मोल बता गया।

खट्टी मीठी यादों संग, 

जीवन का सबक सिखा गया।


जी सकते हैं हम सादा जीवन,

संदेश जगत ने पाया है।

इस भाग दौड़ की दुनिया में,

कुछ समय अपनों संग बिताया है।


कोरोना ने इस दुनिया में,

भय का माहौल बनाया है।

उम्मीद लगाये बैठे है सब,

वर्ष दोहजार इक्कीस आयेगा।

वैक्सीन से कोरोना भाग जायेगा।


आया आया नया साल।

लेकर खुशियाँ बेमिसाल।

रखना सब अपना ख्याल।

चल रहा कोरोना काल।।



पं दुर्गादास पाठक🌹🇮🇳🙏


 



उतर गया है सूरज 

कालकूट के पर्वत पर,

झांक रहा था हांथ हिलाते 

अंतिमविदा होने तक!

 


बीता दिन-बीती रातें 

बीते कही सुनी सब बातें;

बीते लमहे पल की यादें 

फिर लौट कभी न आते!

   


मात्र लौटता है सूरज 

भारी मन उद्विग्न खिन्नता,

अग्नि शोलों में न दिख पाता 

दिल की धमस उद्विग्नता!

     


गिनती के अंकों में टिक टिक

समय का सूरज जगता सोता, 

अग्निहविष की आहूति देता

अपने में घुट घुट कर है रोता !

     


चल रहा अहर्निश पथ पर वह 

एक ताल लय एक मती गति;

उसके गाथा गायन बायन में  

ना अल्प अर्ध पूर्ण विराम यति!

   


प्रकृति भद्र सदा उत्साहित 

नव सृष्टिसृजन का उपक्रम;

इंद्रधनुषी जादुगरी से रचता 

जीवन एक पहेली विभ्रम!

 


नव संवत्सर का वर्ष आ गया 

जीवन में लाया नव उल्लास,

उषाकिरण भरेगी बन प्रभाती 

सबके जीवन में नवल उजास!

 -अंजनीकुमार'सुधाकर'

~~~~~~~~~~~



 दो  हजार  बीस  की,  रीत  गई  है  टीस।

हो मंगलमय आपका, नया साल इक्कीस।


माना बुरा बहुत  था, बीत चला  पर बीस।

नव उमंग अब दे रहा, नया साल इक्कीस।


जाते जाते भी हमें, सिखा गया कुछ बीस।

करते स्वागत आपका, नया साल इक्कीस।


इस कोरोनाकाल का, अंत करो जगदीश।

पूर्ण विषाणु मुक्त रहे, नया साल इक्कीस।


मातु  पिता  के सामने, सदा नवाएँ  शीश।

शुभ उनके आशीष से, नया साल इक्कीस।


कर जोड़ करे प्रार्थना, चलो  मनाये  ईश।

सुख समृद्धि भरा रहे, नया साल इक्कीस।


राम कृपा से जगत की, मिट जावे सब खीस।

ज्ञासु  आनंदमयी  रहे , नया  साल इक्कीस।


ब्रजेन्द्र मिश्रा 'ज्ञासु'






 कलमवीर २०२१के अन्तर्गत प्रकाशन हेतु।

‌            नव वर्ष-२०२१

           _____________

है नये वर्ष का नव विहान-उज्ज्वल किरणों का ज्योति दान।

शुभ कर्मों का संकल्प करें-मिले शान्ति सुख का वरदान।।

यह देश हमारा विकसित हो-सीमायें सभी सुरक्षित हों।

जग के सब देशों से अपने-रिश्ते प्रसून से सुरभित हों।

युद्ध न हो मैत्री सबसे हो-लक्ष्य हमारे परम महान।

है नये वर्ष का नव विहान-उज्ज्वल किरणों का ज्योति दान।।

सुख अरु समृद्धि की पवन बहे-कटु शब्द कभी कोई न कहे।

हो जन जन में भाई चारा-सब मिल जुल कर इक साथ रहें।

ऊंच नीच की पटेगी खाईं-सभी बराबर सभी समान।

है नये वर्ष का नव विहान-उज्ज्वल किरणों का ज्योति दान।

नेता सभी सुसंस्कृत ज्ञानी-राजनीति हो जन कल्यानी।

नष्ट न होय सदन की गरिमा-कहे न कोई अनुचित वानी।

वाद विवाद देश हित में हो-यह सशक्त गणतंत्र की शान।

है नये वर्ष का नव विहान-उज्ज्वल किरणों का ज्योति दान।।

ऐसी हो अपनी सरकार-स्वच्छ चले बिजनेस ब्यापार।

हर घर भोजन पानी बिजली-समूल नष्ट हो भ्रष्टाचार।

कार्यों में हो पारदर्शिता-अनाचार का शीघ्र निदान।

है नये वर्ष का नव विहान-उज्ज्वल किरणों का ज्योति दान।

धर्म न आपस में टकराएं-आतंकवाद से मुक्ती पाएं।

हो समान आचार संहिता-भेदभाव को दूर भगाएं।

आस्था का संगम गुरवानी-गीता बाइबिल और कुरान।

है नये वर्ष का नव विहान-उज्ज्वल किरणों का ज्योति दान।

बीता ब्यथा में पिछला साल-आया करोना बनकर काल।

कुंठा अभाव में दिन बीते-सारा देश हुआ बेहाल।

लेकर आयेगा नया वर्ष-वैक्सीन मुक्ति का समाधान।

है नये वर्ष का नव विहान-उज्ज्वल किरणों का ज्योति दान।।

        सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक भारत सरकार।




 प्यारे नन्हे मुन्नों को 

नव वर्ष की बधाई

।    बाल कविता


घर से स्कूल आते हो,

स्कूल से भाग जाते हो।

पढ़ाई से क्यो डरते हो,

मित्रो से क्यो लड़ते हो।

मन से खूब करो पढ़ाई,

नव वर्ष की तुन्हें बधाई।

🤷‍♂️🤷‍♂️🤷‍♂️🤷‍♂️🤷‍♂️🤷‍♂️


स्कूल में समय खोते हो,

घर मे खाना खा सोते हो।

खेलने में रुचि लेते हो,

पढ़ाई में फेल होते हो।

परीक्षा में होगी जग हंसाई

नव वर्ष की तुन्हें बधाई।


नव वर्ष में नव जोश हो

नव संकल्प नव होश हो।

नव सत्य नव लक्ष्य हो,

पढ़ाई लिखाई में दक्ष हो।

अज्ञानता से करो लड़ाई

नव वर्ष की तुम्हे बधाई।



रामेश्वर शांडिल्य





 आशाओं का नया सूर्य


नई आशाओं का नया सूर्य होगा उदय

 रे मनवा धीर धर....... 


आज है छाए गम के बादल 

कल होंगे उजियारे

आज जो छिन गए तेरे सपने

होंगे कल वो पूरे

रहेगा अनुकूल समय, अब न होगा निर्दय

रे मनवा धीर धर...... 


सुबह की लाली फैल रही

धोकर रात की स्याही

खुशियों की ओस मे भीग

इतराइ ज्यूँ नई ब्याही

नव बेला मे नवांकुर से भरा होगा हृदय

रे मनवा धीर धर....... 


फूलों की तरुणाई सा

तू मुस्कुरायेगा प्रतिपल

लहरायेगा तेरे भीतर

नई स्फूर्ति का परिमल

धन्य तेरा जीवन होगा, होगा नवोदय

रे मनवा धीर धर....... 


संतोष भाऊवाला




कुण्डलिया 

*दो हजार सन बीस*

(1)

कम हो साधन खर्च भी ,रखे न कोई खीस।

शिक्षा देकर है गया , दो  हजार सन बीस।।

दो  हजार सन बीस, सजगता बरते  रखना ।

करें स्वच्छता  नित्य , चीज उत्तम ही भखना ।।

कह निर्भय कर जोरि, भिन्नता सब में सम हो ।

रहे  सदा  सहयोग ,  वैर  आपस में कम हो।।


(2)

करना दोहन है नहीं ,  सब में  हैं जगदीश ।

कर सचेत सबको गया, दो हजार सन बीस ।।

दो हजार सन बीस , काटना कभी न जंगल ।

प्रकृति का अवदान ,  इसी से होता मंगल ।।

कह निर्भय कर जोरि,  करें जो होता भरना ।

रहे शुद्ध जलवायु ,  काम कुछ ऐसा करना।।


(3)


घर में अपना ध्यान दें , बन   घर का वागीश ।

प्रेम त्याग घर में भरा  , दो  हजार सन बीस ।

दो हजार सन बीस , बनाया घर को  पावन ।

रूखी  सूखी साथ  , बैठ मिल  कर ले जेवन ।।

कह निर्भय कर जोरि ,  आस मत रखना पर में ।

कर खुद अपना काम ,  किए जा बसना घर में।।



निर्भय गुप्ता 

ग्राम-लिंजीर 

पोष्ट-लोहरसिंह

जिला-रायगढ़  (छ.ग.)

मोबाइल-9826945856





काव्य रंगोली नववर्ष 2021 प्रतियोगिता* हेतु सादर प्रेषित

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*विषय* : नववर्ष

*दिनांक*: 01/01/2020

*विधा*: ग़ज़ल

*रचनाकार*:रोमित *हिमकर*


    *ग़ज़ल*-

छोड़ें    परम्परा   पुरानी   नए   साल   में 

आओ  लिखें   नई   कहानी  नए साल में


जिन अपनों ने ज़ख़्म दिए हैं मुझे हज़ारों

रिश्ते   उनके  बने  कहानी  नए  साल  में


दीपक  बुझे-बुझे   से  लगते   उल्फ़त  के

हमें  नई  है  ज्योति  जगानी  नये साल में


ग़ुरबत में मुह मोड़ लिया था कल सबने ही

आज वह दुनिया बनी  दिवानी नए साल में


नामुमकिन  हो जिसे भूलना आजीवन ही 

दे  दो   ऐसी  मुझे  निशानी  नए  साल  में


नफ़रत की है लगी आग हर सिम्त बुझाओ 

लाकर  तुम  उल्फ़त का पानी नए साल में


चाह यही है 'हिमकर' ख़ुशियाँ हों धरती पर

बन   जाएँ   सब  राजा-रानी  नए  साल  में

            रोमित *हिमकर*

बस्ती (उत्तर प्रदेश)





 नया साल बस इक ख़याल है,

वरना  हर  दिन  नया साल है।


कलतक जो मुमकिन था शायद,

आज न होगा क्या  मलाल है।


जो रफ़्तार वक़्त की कल थी,

आज  करीबन  वही  हाल है।


कल भी  दसों दिशाओं में था,

आज वही  उसका  जमाल है।


हरी-भरी  है शाख़  वक़्त की,

हर-पल  लमहे का ज़वाल है।


वही  अंधेरा , वही  उजाला,

सूरज  जैसा  ही, हिलाल है।


नये  साल  में  मुई  उम्र का,

बढ़ने, घटने  का  सवाल है।

 स्वरूप

जमाल-रोशनी,ज़वाल-पतन

हिलाल-चांद


किशन स्वरूप





 मेरी नववर्ष 2021 के लिए बधाई संदेश इस प्रकार से है-



प्रतिऋतु,मास,

प्रतिक्षण,शुभ श्रेयस्कर 

हो,

सर्व समुद्र,शैल,सर,

सरित सुयशकर हो,

श्रुति, स्मृति, सद्धर्म,सुरक्षा करें आपकी,

दिवसोदय,दिवसास्त,

आपके हॅऺस कर हों.


सच्चिदानन्द तिवारी शलभ  (लखनऊ से)






 नमन काव्य रंगोली

नववर्ष प्रतियोगिता

०१/०१/२०२१

शीर्षक–मंगलमय नववर्ष रहे।

…......................................

मंगलमय नव वर्ष रहे 

यह भाव सजाए रखना ,

राह चले नेकी का सदा 

वो राह बनाए रखना।

प्रेम सद्भाव मानवता को

 उर सजाए रखना,

हमको अपने यादों की 

वादियों में बसाए रखना।

मिले सुख शांति और समृद्धि

 यही कामना है मेरी,

नाम गीतो में मेरा अपने

 गुनगुनाए रखना।

मिले आशीष प्रथम पूज्य 

गजानन का सबको,

स्नेह की छांव अपने 

उर में बसाए रखना।

न मन में द्वेष भाव की

 कोई कहानी हो,

मंत्र करुणा दया ममता

 का जगाए रखना।

.….....................................

शिवानंद चौबे

भदोही यूपी





 हर दिन नया हैं

हर रात आखिरी।

समझ-समझ का फर्क है

वरना क्या पता।

जीवन का कौनसा पल आखिरी?


सत्य ,धर्म, संस्कृति के प्रति सम्मान प्रेम हृदय में हो।


 2021 के आगमन की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

नये वर्ष संग नव पहल करो।

हर इक दिन नई सहर करो।

हर रात्री को अन्तिम पहर करो।।


भौतिकता की लगी दौड़ में,

स्व-अस्तित्व पहचान करो।

जाति,धर्म,भाषा भेद छोड़,

इंसा हो इंसा का भेष धरो।।


नफ़रत,युद्ध,घृणा का त्याग करो।

प्रेम, शांति,सद्भाव का प्राण भरो।

जग हित का काम करो ।

स्व संग पर का उत्थान करो।।



सम्प्रदाय,लिंग,सि्थति से न द्वैष भरो

भीतर दबी सत्य आवाज़ का प्रवाह करो

प्रगति राह में कमाल करो।

हर इक दिन नई सहर करो।।



स्वरचित रचना- V.P.A.निकिता चारण

बाड़मेर,राजस्थान





 विदा बीस

प्रस्थान सन दो हज़ार बीस

मगर तूने दीन्ही बड़ी टीस।


कोरोना महामारी ऐसी आई

कि दुनिया को आ गई रुलाई।

पहले से ही क्या कम दूरी थी 

जो तूने आकर और दी बढ़ाई।


बीस होकर भी तू न रहा बीस

प्रस्थान सन दो हज़ार बीस।।



अपनों से दूर अस्पताल में अकेले

तन और मन के कष्ट जिनने झेले।

चंद रातों के अनुभव थे बड़े कसैले

सिकुड़ गई चाहतें पैर ही थे फैले।


संकट में याद केवल बस ईश

प्रस्थान सन दो हज़ार बीस।।


आने वाली सदियों में अब 

कभी कोई ऐसा वर्ष न आये

जो कोरोना सी महामारी लाये

मिलने देखने भी कोई न आये।


असाध्य रोगों के झुक गये शीश

प्रस्थान सन दो हज़ार बीस।


      डॉ सीमा श्रीवास्तव

         रायपुर छ.ग.

डॉ० रामबली मिश्र

 बहुत दूर…


बहुत दूर रहकर भी नजदीकियाँ हैं।

दिल से अदब से मधुर शुक्रिया है।।


मिली राह निःशुल्क अहसास की है।

नहीं दूरियाँ हैं नहीं गलतियाँ हैं।।


मन की है स्वीकृति तो सब कुछ सरल है।

गरल में भी अमृत की मधु चुस्कियाँ हैं।।


तरलता मधुरता सुघरता सहजता।

कली सी चहकती मधुर बोलियाँ हैं।।


नजदीक वह जो हृदय में बसा है।

बसेरे में चम-चम सदा रश्मियाँ हैं।।


न भूलेंगे जिसको वही तो निकट है।

बहुत दूर रहकर खनक चूड़ियाँ हैं।।


जहाँ मोह साकार बनकर विचरता।

वही तो मोहब्बत का असली जिया है।।


नहीं चिंता करना कभी दिल के मालिक।

दिल में ही रहतीं मधुर हस्तियाँ हैं।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 रात भर हाँथ मलता रहा  चाँद है।

चाँदनी रूठकर गुम कहीं हो गयी।

 

सारे तारे सितारे  लगे  खोजने ।

रातरानी छिपी या कहीं खो गयी ।


मीठे मीठे मोहब्बत के झगड़े सनम।

करके कोई दीवानी कहीं सो गयी। 


जुस्तजू में तड़पता रहा चाँद है ।

दास्तां फ़िर पुरानी नयी हो गयी ।


आसमानी मोहब्बत जमीं पर खिली ।

प्यार के बीज खुद सुष जमी बो गयी ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

 कुछ दर्द दिया यदि है तुमको , समझो अपना अब माफ करो। 

मन साफ रखो तुम ये अपना ,  हृद में न कभी तुम द्वैष धरो। 

जलते नर जो तुम से नित हैं , उनके हृद प्रेम प्रकाश भरो। 

बन के रहता नर जो अपना , उसके हृद की तुम पीर हरो। 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

दुतारांवाली अबोहर पंजाब

डॉ० रामबली मिश्र

 सब अपने।   (तिकोनिया छंद)


सब अपने हैं,

भाव बने हैं।

प्रिय अंगने है।।


सर्व बनोगे,

गगन दिखोगे।

सिंधु लगोगे।।


बनो अनंता,

दिख भगवंता।

शिवमय संता।।


गले लगाओ,

क्षिति बन जाओ।

प्रेम बहाओ।।


अश्रु पोंछना।

दुःख हर लेना।

प्रियतम बनना।।


दुःख का साथी,

सबका साथी।

जगत सारथी।।


 पंथ बनोगे,

स्वयं चलोगे।

धर्म रचोगे।।


उत्तम श्रेणी,

सदा त्रिवेणी।

पावन वेणी।।


सबको उर में,

अंतःपुर में।

हरिहरपुर में।।


सबको ले चल,

पावन बन चल।

मानव केवल।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डा. नीलम

 *जानती हूं*


जानती हूं नहीं आयेगा

अब कोई यहां

अनजान बनकर फिर भी

एक आस लिए 

चली आती हूं 

सूनी गलियां ,सूने चौपाल

है सूनी-सूनी सीढ़ियां

अनजानी आहट फिर भी

हर सीढ़ी से आती है

हवाओं में आज भी

तेरे कहकहे सुनाई देते हैं

कभी छूकर निकल 

जाती हवा जो

तेरी शरारतन मेरी

जुल्फ बिखेरने की अदा

याद कराती है


जानती हूं अब यहां

नहीं कोई आयेगा

पर पंछियों की 

चहचहाहट में दोस्तों की

मस्तियां महसूस करती हूं

वो उड़ना पंछियों का

इकदूजे के पीछे

याद आ जाता है 

सहेलियों का धौल-धप्पा

ओ' बेवजह,बिनबात

उन्मुक्त हो खिलखिलाना


जानती हूं अब नहीं

यहां कोई आयेगा

फिर भी निहारती हूं

सूने पथ 

जहां कांधो पर 

अपने से ज्यादा

वजनदार बस्तों को

आसानी से उठाए

लकदक गणवेश* में

कदम दर कदम 

भविष्य का डाक्टर,इंजी.,

नेता,अभिनेता नन्हा वर्तमान

बेखबर आपस में बतियाता

खट्टी-मीठी गोलियों सा

जात पात की बीमारी से

अछूता भविष्य की ओर

भागता आता दिखाई दे जाए

जानती हूं अब नहीं  यहां

कोई आयेगा।


      डा. नीलम

निशा अतुल्य

 जिंदगी न मिलेगी दोबारा

5.1.2021


कर ले बंदे काम कुछ न्यारे

लोग तुझे भी कुछ जाने प्यारे

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

मन में विश्वास जगाले ।


छोड़ प्रपंच भेद भाव के 

सब जन को तू गले लगा ले ।

होगा सफल मिला जो जीवन 

प्रभु के गुण मन तू गा ले ।


बड़ी कृपा मात पिता की हम पर

सुन्दर जीवन जिनसे पाया 

नहीं उऋण हो सकते कभी गुरु जन से

जिन्होंने जीवन को सफल बनाया ।


प्रभु कृपा जान  मानव  तू स्वयं पर

जो उसने सुन्दर संसार दिखाया ।

कर जोड़ नमन प्रभु बारम्बारा तुम्हें 

राह जीवन की तुमने सुगम बनाया ।


कर परहित कर्म तन मन से 

जिंदगी न मिलेगी दोबारा ।

होगा भव से पार तभी मन 

जब मन में तूने प्रेम जगाया ।


कर ले सब वो कार्य मानव 

जिसके लिए दुनिया में आया 

राग, द्वेष ,मोह ,माया दे त्याग 

प्रभु ने जीवन दे उपकार कराया।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

 जय माँ शारदे

लवंगलता सवैया


आठ जगण एक लघु


बनाकर भात चली रख शीश , निहार रहे उसका तन बादल। 


चले जब डोल हिले कटि केश , करे हृद चोट बजे पद पायल। 


सरोज समान खिली शुचि देह , अनंग प्रहार हुआ हृद पागल। 


विलोल रही चुनरी शुभ देह , ललाम लगे मुख दाड़िम सा फल। 


संदीप कुमार विश्नोई रुद्र

दुतारांवाली अबोहर पंजाब

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--


हादसा आज टल गया फिर से

खोटा सिक्का जो चल गया फिर से


दिल ने की थी शराब से तौबा

देख बोतल  मचल गया फिर से


तेरा आशिक़ तेरे इशारे पर 

देख घुटनों के बल गया फिर से


जानता था मैं उसकी फ़ितरत को 

बात अपनी बदल गया फिर से 


इस करिश्मे से महवे-हैरत हूँ 

बुझता दीपक जो  जल गया फिर से


इतना उस्ताद है वो बातों में

राख चेहरे पे मल  गया फिर से 


आ गयी याद कैकयी होगी

रथ का पहिया निकल गया फिर से


मशवरे दिल के मान कर *साग़र*

वक़्त अपना संभल गया फिर से 


विनय साग़र जायसवाल


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *नववर्ष*(दोहा)

स्वागत है नववर्ष का,खुला हर्ष का द्वार।

नवल चेतना से मिले,दिव्य ज्ञान - भंडार।।


बने यही नववर्ष ही,जग में प्रगति-प्रतीक।

कोरोना के रोग की,औषधि मिले सटीक।।


कला-ज्ञान-साहित्य का,होगा सतत विकास।

विमल-शुद्ध नभ-वायु का,बने जगत आवास।।


सुख-सुविधा-सम्पन्न कृषि,होंगे तुष्ट किसान।

भारत अपना  देश  ही , होगा  श्रेष्ठ - महान ।।


सरित-प्रपात-तड़ाग सब,देंगे निर्मल नीर।

निर्मल पर्यावरण से,जाती जन की पीर।।


देगा यह नववर्ष भी,जन-जन को संदेश।

मानवता ही धर्म है,जानें रंक-नरेश ।।

               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *मधुरालय*

                *सुरभित आसव मधुरालय का*5

प्रकृति सुंदरी बन-ठन थिरके,

जब प्याले की  हाला  में।

मतवाला हो  पीने वाला-

लगती मधु पगलाई  है।।

         लगे चेतना विगत पिये जो,

         भूले  सारे  दुक्खों  को।

          सुख-सागर में डूबे उसको-

            प्यारी ही तनहाई  है।।

भूला-खोया-सोया-सोया,

पुनि जब हो  चैतन्य वही।

करता यादें सुखद  पलों की-

जिनसे सब बन  आई है।।

        नहीं सरल-साधारण आसव,

         मधुर प्रेम-रस-घोल यही।

         है त्रिदेव का वास ये मिश्रण-

         इसमें मंत्र समाई  है ।।

एक बार यदि लग जा चस्का,

बार-बार मन उधर  खिंचे।

मिले स्वाद वा मिले न फिर भी-

सुरभि सभी को भाई  है।।

        शीतल-मंद-सुगंध पवन सम,

         ही जैसे  हैं  गुण  इसमें।

          गुण से गुण का गुणा करें यदि-

          सुरभि अमल वह  पाई है।।

जंक लगे कल-पुर्जे तन के,

जब भी ढीले पड़ते  हैं।

राही ने तब जा मधुरालय-

बिगड़ी बात  बनाई  है।।

         विकल-खिन्न-बेचैन मना जब,

         करता संगति साक़ी  की।

         एक घूँट तब साक़ी  देकर-

         करता दुक्ख विदाई  है।।

मन-रुग्णालय,तन-रुग्णालय,

मधुरालय है रुचिर  निलय।

तुष्टि-दायिनी औषधि इसकी-

ही भव-ताप-मिटाई  है।।

         देवों ने भी आसव पी कर,

        पा ली यहाँ अमरता  को।

         जरा-मृत्यु से नहीं भयातुर-

         जीवन-अवधि बढ़ाई  है।।

अमित-कलश सुर-जग का अद्भुत,

मधुरालय सुखदाई है।

जीवन में माधुर्य भरा  है-

कभी न आई-जाई  है।।

       परम दिव्य,स्वादिष्ट,मधुर यह,

       मधुरालय का आसव  है।

       इसी हेतु तो सुर-असुरों  की-

       हुई प्रसिद्ध  लड़ाई  है।।

विष को गले लगा शिव शंकर,

अमृत-कलश बचाया है।

ऐसा कर के महादेव ने-

अद्भुत रीति निभाई है।।

       मधुरालय का साक़ी आला,

       प्रेम-पाग-रस  देता है।

      वह त्रिताप से पीड़ित मन सँग-

       करता  सदा  मिताई  है।।

                    © डॉ0हरि नाथ मिश्र

                      9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 आदि-अंत तक    (तिकोनिया छंद)


आदि-अंत तक,

जीवनभर तक।

जी भर तबतक।।


जन्म-मृत्यु तक,

सकल समय तक।

मन हो जबतक।।


स्वस्थ रहोगे,

काम करोगे।

सुखी बनोगे।।


बन उदाहरण।,

प्रिय उच्चारण।

शुभ्र आचरण।।


आजीवन कर,

श्रम से रचकर।

दिनकर बनकर।।


कर्म करोगे,

धर्म बनोगे।

मर्म रचोगे।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

एस के कपूर श्री हंस

।कंही तेरी कहानी अनकही न*

*रह जाये।।*


देख लेना    कहीं  अनकही तेरी

अपनी   कहानी न रहे।

रुकी सी बीते      जिन्दगी     में 

कोई   रवानी न    रहे।।

जमीन और   भाग्य  जो   बोया

वही    निकलता    है।

अपने स्वार्थ के   आगे    किसी

और पे मेहरबानी न रहे।।


दुखा कर दिल किसी का  कभी

कोई सुख पा नहीं सकता।

कपट विद्या से किसी  का कभी

दुःख भी जा नहीं सकता।।

पाप का घड़ा भरकर  एक दिन 

फूटता          जरूर     है।

बो कर बीज  बबूल   के   कभी

आम कोई ला नहीं सकता।।


कल की चिंता   मत कर तू जरा

आज  को भी संवार    ले।

मत डूबा रहे स्वार्थ में कि समय

परोपकार में भी गुजार ले।।

अपने कर्मों का निरंतरआकलन

तुम हमेशा     करते रहो।

प्रभु ने भेजा धरती पर तो  जरा

जीवन का कर्ज उतार ले।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।*

मोब।।             9897071046

                      8218685464


*।।नारी,प्रभु का उपहार।*

*पत्नी माँ बहन बेटी,त्याग* 

*अपरम्पार।।*

*।।विधा।।हाइकु।।*

1

है रचयिता

सृष्टि रचनाकार

मूर्ति ममता

2

पालनहार

है बच्चों की शिक्षक

देवे  आहार

3

आँगन पुष्प

बच्चों पे जान फिदा

न होये रुष्ट

4

ठंडी बयार

त्याग के लिए सदा

रहे तैयार

5

शक्ति स्वरूपा

परिवार संसार

ममता रूपा

6

त्याग की भाषा

माँ बेटी परिभाषा

न अभिलाषा

7

प्रेम का प्याला

घर आये संकट

बने वो ज्वाला

8

प्रेम गागर

जगत जननी है

भक्ति सागर

9

नारी अव्यक्त

ब्रह्मांड समाहित

ऐसी सशक्त

10

है अहसास

नारी बहुत खास

है आसपास

11

नारी प्रकाश

अंधेरा    दूर करे

सृष्टि सारांश

12

रूप अनेक

माँ बेटी पत्नी बने

प्रभु सी नेक

13

मूरत लज़्ज़ा

त्याग का मूल्य नहीं

सृष्टि की सज़्ज़ा

14

नारी पावन

घर का आँगन ही

मन भावन

15

माँ का आँचल

बहुत सुखदायी

भुलाये छल

16

नारी नरम 

सुन कर सबकी

न हो गरम

17

शर्म गहना

चाहे माँ पत्नी बेटी

या हो बहना

18

आज की नारी

सारे कार्य करे वो

यात्रा है जारी

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।           9897071046

                     8218685464

डॉ0 निर्मला शर्मा

 राम नाम

 राम नाम मन में बसा

राम बसा हर ओर

हनुमत सा कोई भक्त नहीं 

ढूँढे से भी और 

कलियुग के इस दौर में 

राम ही पार लगाय 

जपो राम का नाम तुम 

यही है एक उपाय 

मानवता और धर्म का 

पालन करो सदैव

चलो धर्म के मार्ग पर 

विपदा रहे न एक

प्राणी मात्र हर जीव में 

केवल राम समाय 

हनुमत हरि सेवा करें 

हिय में राम रमाय।


डॉ0 निर्मला शर्मा

दौसा राजस्थान

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-32

हनुमत देखि तुरत प्रभु धाए।

भेंटि ताहि निज गरे लगाए।।

      तहँ तुरतै तब बैद सुसेना।

      औषधि उचित लखन कहँ दीना।।

उठा लखन प्रभु गरहिं लगावा।

सुखदायक प्रभु बहु सुख पावा।।

     भे बिषाद-मुक्त सभ बानर।

     अंगद-जामवंत गुन-आगर।।

तब हनुमान सुसेन उठावा।

लाइ रहे जहँ वहिं पहुँचावा।।

    सुनि रावन लछिमन-कुसलाई।

      भवा बिकल बहु-बहु पछिताई।।

कुंभकरन पहँ गवा दसानन।

अति लाघव अरु आनन-फानन।।

      ताहि जगा सभ कथा सुनावा।

       भयो समर कस सकल बतावा।।

बानर-भालू भारी-भारी।

सभ मिलि के मम निसिचर मारी।।

      देवान्तक अरु दुर्मुख बीरा।

      मारे कपिन्ह अकम्पन धीरा।

बचि नहिं सका नरन्तक भ्राता।

मारे सबहिं महोदर ताता।।

सोरठा-सुनु रावन मम भ्रात,होंहि न अब कल्यान तव।

            कुंभकरन कह तात, काहें कीन्हा सिय-हरन।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                             9919446372

एस के कपूर श्री हंस

।।कष्टों से प्राप्त अनुभव जीवन

*की सर्वश्रेष्ठ पाठशाला है।।*


जब जिद  को ठान  लेते    तो

तूफान भी   हार जाते हैं।

मुश्किलों के बादल विश्वास के

सामने ठहर नहीं पाते हैं।।

अटूट  आस्था और आशा   का

पौधा कभी मुरझाता नहीं।

काम ऐसे   करते     कि     जन

जीवन में सुधार   लाते हैं।।


जीवन की    पाठशाला      में 

सीखते हैं      हर मंत्र।

जन जीवन   की       सेवा   में

लगाते हैं       हर यंत्र।।

संघर्ष की   सीढ़ियों    को चढ़

कर पहुंचते वो ऊपर।

बुद्धि,    विवेक,      साहस  से

साधते  हैं   हर   तंत्र।।


आत्म ज्ञान , आत्म बल से  ही

व्यक्ति सफल होता है।

आत्म  विश्वास से  हर समस्या

का    हल      होता  है।।

कष्ट  और विपत्ति देते हैं व्यक्ति

को शिक्षा और सामर्थ्य।

दुःखों में    मिला   अनुभव   भी

सिद्ध  सुफल   होता है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"* 

*बरेली।।*

मोब।।           9897071046

                    8218685464


*।।कोशिश करो*

*तो जा सकते हो शून्य से*

*शिखर पर।।*


अपने   तरकश  कभी तुम

हार का तीर   मत   रखना।

बिक  जाये  जो     सीने में

ऐसा जमीर  मत     रखना।।

जमीन पर रहो पर   उड़ान

भरो तुम    आसमान   की।

मन हो साफ तुम्हारा  जुबां

पे झूठी तकरीर मत रखना।।


अतीत का   पछतावा नहीं

आगे   की    सुध  लीजिए।

सुख में खुशी  दुःख  में भी

गमों कोआप जरा पीजिए।।

जान लीजिए    कि चिन्ता

से भविष्य संवरता नहीं है।

कल को संवारना  तो बस

आज से  कोशिश कीजिए।।


गर हार भी   गये  तो    भी 

आगे आप    बढ़ सकते हैं।

गिर कर   उठ कर     फिर

जाकर आप अड़ सकते हैं।।

चाहो तो   शून्य से  शिखर

पर जा    सकते   हैं  आप।

मत हारो   हौंसला   तो हर

ऊंचाईआप चढ़ सकते हैं।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।*

मोब।।।          9897071046

                     8218685464

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--


समझ रहा हूँ इश्क़ अब हुआ ये कामयाब है 

मेरी नज़र के सामने जो मेरा माहताब है

हुस्ने मतला----

बशर बशर ये कह रहा वो  हुस्ने -लाजवाब है 

जो मेरा इंतिख़ाब है जो मेरा इंतिख़ाब है


ज़मीन आसमाँ लगे सभी हैं आज झूमने 

तेरी निगाहे मस्त ने पिलाई  क्या  शराब है


तुझे तो मन की आँख से मैं देखता हूँ हर घड़ी 

मेरी नज़र के सामने फ़िज़ूल यह हिजाब है


छुपा सकेगी किस तरह  तू  मुझसे अपने  प्यार को

तेरी नज़र तो जानेमन खुली हुई किताब है 


 बढाऊँ कैसे बात को मैं उनसे अपने प्यार की 

हज़ार ख़त के बाद भी मिला न इक  जवाब है 


तुम्हें क़सम है प्यार की चले भी आइये सनम

बिना तुम्हारे ज़िन्दगी तो लग रही  अज़ाब है 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

2/1/2021

इंतिख़ाब -पसंद ,चयन 

हिजाब--परदा ,लाज ,शर्म

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/14)

प्रेम-सिंधु ने लिया हिलोरें,

याद पिया की आती है।

मन में उठा उबाल दरस का-

नहीं चंद्रिका भाती है।।


चमन सभी वीराने लगते,

यद्यपि फूल महकते हैं।

उड़ते पंछी लगें न प्यारे,

यद्यपि सभी चहकते हैं।

कल-कल बहती सरिता-धारा-

सिंधु-मिलन को जाती है।।

     याद पिया की आती है।।


जब-जब बहे पवन पुरुवाई,

अंग-अंग मेरा टूटे।

रूठ गए हैं साजन मेरे,

लगे,कर्म मेरे फूटे।

कब सवँरेगी क़िस्मत मेरी-

रह-रह बात सताती है??

      याद पिया की आती है।।


कागा बैठ मुँडेरी बोले,

गोरी, मत घबराओ तुम।

झील-पार हैं पिया तुम्हारे,

चाहो तो जा पाओ तुम।

कोयल भी कुछ ऐसी बातें-

गाकर रोज सुनाती है।।

     याद पिया की आती है।।


कैसे जाऊँ झील-पार मैं,

मुझको कोई बतलाए?

लाख दुआ मैं दूँगी उसको,

खोया साजन वो पाए।

लकड़ी-निर्मित नाव जगत में-

 पार छोड़ मन भाती है।।

      याद पिया की आती है।।


आती हूँ मैं पार झील के,

बैठ नाव तिर पानी को।

मिलकर तुमसे करूँगी प्रियतम-

पूरी शेष कहानी को।

रूठा सजन मनाकर सजनी-

पुनि जीवन-सुख पाती है।।

       याद पिया की आती है।।

                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                       9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 अंतिम इच्छा    (दोहे)


अंतिम इच्छा है यही, मिले यही परिवार।

यही मिलें माता-पिता, यही मिले घर-द्वार।।


यही मिलें भाई-बहन, मिले यही ससुराल।

यही मिले पत्नी सहज, बने मधुर रखवाल।।


मिले मुझे बेटा यही, मिले पौत्र दो रत्न।

पुत्रवधू शीतल मिले,बिना किये कुछ यत्न।।


यही गाँव मुझको मिले, यह अति सुंदर धाम।

इसी ग्राम में बैठकर, जपूँ सदा हरि नाम।।


माँ सरस्वती नित करें,मेरे उर में वास।

लिखता रहूँ सुलेख मैं, रहकर माँ के पास।।


रामेश्वर की शरण में, बैठ जपूँ शिवराम।

महामंत्र की गूँज से, मिले मुझे विश्राम।।


सन्त समागम हो सदा, युगल-बीहारी साथ।

नागा बाबा की कृपा ,से मैं बनूँ सनाथ।।


डीहबाबा छाया तले, रहूँ सदा मैं बैठ।

आध्यात्मिक परिक्षेत्र में, होय नित्य घुसपैठ।।


अंतिम इच्छा बलवती, हो आध्यात्मिक राग।

बाँधे सारे लोक को , मेरे मन का ताग।।


मेरे मन के दोष का, शमन करें भगवान।

मैं कबीर बनकर चलूँ, मिले राम का ज्ञान।।


महापुरुष आदर्श हों, जागे धार्मिक भाव।

ममता करुणा प्रेम का, हो मन में सद्भाव।।


मानवता के शिखर पर, करूँ बैठकर खेल।

अंतिम चाहत है यही, रखूँ सभी से मेल।।


मेरे पावन हृदय में, बसे सकल संसार।

ऐसा मुझे प्रतीत हो, सारा जग परिवार।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *बाल-गीत* 

  बंदर-भालू नाच दिखाते,

सोनू-मोनू गाना गाते।

ढोल बजाता गदहा आया-

हाथी ने भी झाँझ बजाया।।


फुदक-फुदक गौरैया आई,

तितली उसको देख पराई।

भौंरा भन-भन करता आया-

सुनकर मिट्ठू गाना गाया।।


म्यांऊँ करती बिल्ली मौसी,

आकर खाए हलुवा-लपसी।

उसे देखकर भगी गिलहरी-

तुरत पेड़ पर चढ़कर ठहरी।।


काँव-काँव कर कौआ आया,

रोटी लेकर तुरत पराया।

पास बैठ कर गुड़िया रानी-

मम्मी से आ कही कहानी।।


लेकर दही-जलेबी मम्मी,

कही सुनो हे प्यारी पम्मी।

छोड़ो खेल-तमाशा तुम अब-

खाओ दही-जलेबी अब सब।।


गुड्डू को भी तुरत बुलाओ,

अब मत ज्यादा शोर मचाओ।

खाकर करो पढ़ाई बच्चों।

 होगी तभी भलाई बच्चों।।

          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

               9919446372

डॉ० रामबली मिश्र

 एक बार मेरा कहा मान लीजिये


बुला रहा है दोस्त कोई जान लीजिये।

एक बार मेरा कहा मान लीजिये।।


वफा निभाने में बहुत माहिर है वह मनुज।

इंसान इक महान को पहचान लीजिये।।


वादा निभाता हर समय बेरोक-टोक के।

दृढ़प्रतिज्ञ दोस्त को स्वीकार कीजिये।।


प्रेम का प्रारूप वह मानव महान है।

आँखे घुमाकर एकबार देख लीजिये।।


प्रेम प्राणिमात्र से  करता सदा से है।

दोस्त के पैगाम को मुकाम दीजिये।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801


तुझको मेरा प्यार बुलाता  (सजल)


आओ मैं इक बात बताता।

तुझको मेरा प्यार बुलाता।।


विछड़ गये हो रहा में इक दिन।

मुझको मेरा प्यार सताता।।


कैसा यह संयोग दुःखद था।

मिला मिलन को धता बताता।।


किस्मत का है खेल अनूठा।

नहीं भाग्य में जो चल जाता।।


कितना है बलवान समय यह।

अपना बल-पौरुष दिखलाता।।


किस्मत में थी दुसह वेदना।

फिर कैसे नित रास रचाता।।


राह पूछते चल आना तुम।

तुझको मेरा प्यार बुलाता।।


अर्थ प्यार का अद्वितीय प्रिय।

मुझको तेरा प्यार सताता।।


दृढ़ विश्वास हृदय में बैठा।

श्रद्धा से सब कुछ मिल जाता।।


यहीं सोचकर जप करता हूँ।

ध्यानी-योगी सब पा जाता।।


मन से मिलन सहज संभव है।

निराकार तन भी मिल जाता।।


निराकार में सगुण तत्व भी।

सारा भेद-भाव मिट जाता।।


निहित सोच में सुख-विलास है।

पावन चिंतन मेल कराता।।


मिलना तय है नहिं कुछ शंका।

यही भाव हर्षित कर जाता।।


छिपा हर्ष में प्रिय का मिलना।

प्रमुदित मन में प्रिय बस जाता।।


मन में जो है साथ वही है।

मन से प्यार दिव्य मिल जाता।।


मन से प्यार करो अब वन्दे।

मन में छिपा प्यार दिख जाता।।


मन को परिधि क्षितिज का जानो।

मन से "प्यार" नाम मिल जाता।।


किसी बात की मत चिंता कर।

तप करने से प्रिय मिल जाता।।


तपते रहना सीख लिया जो।

वह सर्वोत्तम प्रियवर पाता।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुनीता असीम

 बनी ज़िन्दगी आज जंजाल है।

किए जा रही सिर्फ बेहाल है

*****

समय भी बदलता चला जा रहा।

कि इसकी बदलती रही चाल है।

*****

सभी का हुआ हाल ऐसा बुरा।

ये जानें कई ले गया साल है।

*****

नहीं आर्थिक हाल अच्छा रहा।

खजाना हुआ अपना बदहाल है।

*****

ये मकड़ी सरीखा करोना हुआ।

जिधर देखिए इसका ही जाल है।

*****

सुनीता असीम

नूतन लाल साहू

 कटु सत्य बातें


करम की गठरी लाद के

जग में फिरे इंसान

जैसा करे वैसा भरे

विधि का यही विधान

कर्म करे किस्मत बने

जीवन का ये मर्म

प्राणी तेरे भाग्य में

तेरा अपना कर्म।

चुन चुन लकड़ी महल बनाया

मुरख कहे घर मेरा

ना घर तेरा ना घर मेरा

चिड़िया रैन बसेरा

जब तक पंछी बोल रहा है

सब राह देंखे तेरा

प्राण पखेरु उड़ जाने पर

कौन कहेगा मेरा

लख चौरासी भोगकर,मुश्किल से

मानुष देह पाया है

यह संसार कांटे की बाड़ी

उलझ पुलज मर जाना है

क्या लेकर तू आया जगत में

क्या लेकर तू जा जावेगा

तेरे संग क्या जायेगा

जिसे कहता तू मेरा है

चांद सा तेरा बदन यह

ख़ाक में मिल जायेगा

करम की गठरी लाद के

जग में फिरे इंसान

जैसा करे वैसा भरे

विधि का यही विधान

कर्म करे किस्मत बने

जीवन का ये मर्म

प्राणी तेरे भाग्य में

तेरा अपना कर्म


नूतन लाल साहू


समय


समय बहरा है

किसी की नहीं सुनता

लेकिन वह अंधा नहीं हैं

देखता सबको है

समय न तो कभी बिकता है

और न ही समय कभी रुकता है

समय किसी के बाप का

होता नहीं हैं, गुलाम

समय आयेगा,समय पर

इसको निश्चित जान

समय से पहले किसी को भी

नहीं मिला सम्मान

उस इंसान का जीना भी क्या

जिसमें ज्ञान की ज्योति नहीं हैं

समय अगर मेहरबान हुआ तो

राम रतन धन पा जायेगा

समय बहरा है

किसी की नहीं सुनता

लेकिन वह अंधा नहीं हैं

देखता सबको है

चार दिन की चांदनी

फिर अंधेरी रात

समय का सदुपयोग नहीं किया तो

फिर पाछै पछतायेगा

दौलत,ताकत,दोस्ती,लोकप्रियता,प्यार

समय अगर अनुकूल नहीं

तो सब कुछ है बेकार

कल करे सो,आज कर

आज करे सो अब

पल में परलय होत है

बहुरी करेगा कब

समय का गणित,जीवन भर

समझ नहीं सका,इंसान

समय बहरा है

किसी की नहीं सुनता

लेकिन वह अंधा नहीं हैं

देखता सबको है


नूतन लाल साहू



डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*((श्रीरामचरितबखान)-33

जासु दूत हनुमान समाना।

सिव-बिरंचि सेवहिं सुर नाना।।

    अस प्रभु राम न नर साधारन।

     कीन्हा तासु बिरोध अकारन।।

नारद मोंहि तें कह इक बारा।

धरि नर-रूपहिं बिष्नु पधारा।।

     अब मैं जाइ राम के पाहीं।

      लेब दरस-सुख प्रभु रहँ जाहीं।।

नीलकमल इव सुंदर लोचन।

स्यामल बदन त्रितापु बिमोचन।।

    देहु भ्रात अब तुम्ह अकवारा।

   कोटिक मय-घट,महिष अपारा।।

लरि रन मरि तारब निज जीवन।

राम-कृपा नित मिलहिं अकिंचन।।

      महिष खाइ करि मदिरा-पाना।

      चला कुंभ जिमि गज बउराना।।

चलहि अकेलइ होंकड़त मग मा।

गरजन करत बज्र जनु छन मा।।

     देखत ताहि बिभीषन आवा।

      करि प्रनाम निज नाम बतावा।।

कुंभइकरन उठाइ बिभीषन।

कह तुम्ह भ्रात मोर कुलभूसन।।

     बड़े भागि तुम्ह प्रभु-पद पायउ।

      कारन कवन तु अबहिं बतावउ।।

सुनहु तात रावन इक बारा।

लात मारि के मोंहि निकारा।।

     रहे सिखावत जब हम नीती।

     कर न नाथ तुम्ह कोउ अनीती।।

जाउ देहु तुम्ह सिय रघुबीरा।

करिहैं कृपा नाथ रनधीरा।।

     भवा कुपित सुनि बचन हमारो।

     खींचि लात कसि मम उर मारो।।

दोहा-सुनहु बिभीषन रावनै,भवा काल बस मूढ़।

         धन्य-धन्य तव जनम सुनु,राम-भगति आरूढ़।।

                        डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

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