"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ० रामबली मिश्र
बहुत दूर…
बहुत दूर रहकर भी नजदीकियाँ हैं।
दिल से अदब से मधुर शुक्रिया है।।
मिली राह निःशुल्क अहसास की है।
नहीं दूरियाँ हैं नहीं गलतियाँ हैं।।
मन की है स्वीकृति तो सब कुछ सरल है।
गरल में भी अमृत की मधु चुस्कियाँ हैं।।
तरलता मधुरता सुघरता सहजता।
कली सी चहकती मधुर बोलियाँ हैं।।
नजदीक वह जो हृदय में बसा है।
बसेरे में चम-चम सदा रश्मियाँ हैं।।
न भूलेंगे जिसको वही तो निकट है।
बहुत दूर रहकर खनक चूड़ियाँ हैं।।
जहाँ मोह साकार बनकर विचरता।
वही तो मोहब्बत का असली जिया है।।
नहीं चिंता करना कभी दिल के मालिक।
दिल में ही रहतीं मधुर हस्तियाँ हैं।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
सुषमा दीक्षित शुक्ला
रात भर हाँथ मलता रहा चाँद है।
चाँदनी रूठकर गुम कहीं हो गयी।
सारे तारे सितारे लगे खोजने ।
रातरानी छिपी या कहीं खो गयी ।
मीठे मीठे मोहब्बत के झगड़े सनम।
करके कोई दीवानी कहीं सो गयी।
जुस्तजू में तड़पता रहा चाँद है ।
दास्तां फ़िर पुरानी नयी हो गयी ।
आसमानी मोहब्बत जमीं पर खिली ।
प्यार के बीज खुद सुष जमी बो गयी ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
कुछ दर्द दिया यदि है तुमको , समझो अपना अब माफ करो।
मन साफ रखो तुम ये अपना , हृद में न कभी तुम द्वैष धरो।
जलते नर जो तुम से नित हैं , उनके हृद प्रेम प्रकाश भरो।
बन के रहता नर जो अपना , उसके हृद की तुम पीर हरो।
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
डॉ० रामबली मिश्र
सब अपने। (तिकोनिया छंद)
सब अपने हैं,
भाव बने हैं।
प्रिय अंगने है।।
सर्व बनोगे,
गगन दिखोगे।
सिंधु लगोगे।।
बनो अनंता,
दिख भगवंता।
शिवमय संता।।
गले लगाओ,
क्षिति बन जाओ।
प्रेम बहाओ।।
अश्रु पोंछना।
दुःख हर लेना।
प्रियतम बनना।।
दुःख का साथी,
सबका साथी।
जगत सारथी।।
पंथ बनोगे,
स्वयं चलोगे।
धर्म रचोगे।।
उत्तम श्रेणी,
सदा त्रिवेणी।
पावन वेणी।।
सबको उर में,
अंतःपुर में।
हरिहरपुर में।।
सबको ले चल,
पावन बन चल।
मानव केवल।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
डा. नीलम
*जानती हूं*
जानती हूं नहीं आयेगा
अब कोई यहां
अनजान बनकर फिर भी
एक आस लिए
चली आती हूं
सूनी गलियां ,सूने चौपाल
है सूनी-सूनी सीढ़ियां
अनजानी आहट फिर भी
हर सीढ़ी से आती है
हवाओं में आज भी
तेरे कहकहे सुनाई देते हैं
कभी छूकर निकल
जाती हवा जो
तेरी शरारतन मेरी
जुल्फ बिखेरने की अदा
याद कराती है
जानती हूं अब यहां
नहीं कोई आयेगा
पर पंछियों की
चहचहाहट में दोस्तों की
मस्तियां महसूस करती हूं
वो उड़ना पंछियों का
इकदूजे के पीछे
याद आ जाता है
सहेलियों का धौल-धप्पा
ओ' बेवजह,बिनबात
उन्मुक्त हो खिलखिलाना
जानती हूं अब नहीं
यहां कोई आयेगा
फिर भी निहारती हूं
सूने पथ
जहां कांधो पर
अपने से ज्यादा
वजनदार बस्तों को
आसानी से उठाए
लकदक गणवेश* में
कदम दर कदम
भविष्य का डाक्टर,इंजी.,
नेता,अभिनेता नन्हा वर्तमान
बेखबर आपस में बतियाता
खट्टी-मीठी गोलियों सा
जात पात की बीमारी से
अछूता भविष्य की ओर
भागता आता दिखाई दे जाए
जानती हूं अब नहीं यहां
कोई आयेगा।
डा. नीलम
निशा अतुल्य
जिंदगी न मिलेगी दोबारा
5.1.2021
कर ले बंदे काम कुछ न्यारे
लोग तुझे भी कुछ जाने प्यारे
जिंदगी न मिलेगी दोबारा
मन में विश्वास जगाले ।
छोड़ प्रपंच भेद भाव के
सब जन को तू गले लगा ले ।
होगा सफल मिला जो जीवन
प्रभु के गुण मन तू गा ले ।
बड़ी कृपा मात पिता की हम पर
सुन्दर जीवन जिनसे पाया
नहीं उऋण हो सकते कभी गुरु जन से
जिन्होंने जीवन को सफल बनाया ।
प्रभु कृपा जान मानव तू स्वयं पर
जो उसने सुन्दर संसार दिखाया ।
कर जोड़ नमन प्रभु बारम्बारा तुम्हें
राह जीवन की तुमने सुगम बनाया ।
कर परहित कर्म तन मन से
जिंदगी न मिलेगी दोबारा ।
होगा भव से पार तभी मन
जब मन में तूने प्रेम जगाया ।
कर ले सब वो कार्य मानव
जिसके लिए दुनिया में आया
राग, द्वेष ,मोह ,माया दे त्याग
प्रभु ने जीवन दे उपकार कराया।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
जय माँ शारदे
लवंगलता सवैया
आठ जगण एक लघु
बनाकर भात चली रख शीश , निहार रहे उसका तन बादल।
चले जब डोल हिले कटि केश , करे हृद चोट बजे पद पायल।
सरोज समान खिली शुचि देह , अनंग प्रहार हुआ हृद पागल।
विलोल रही चुनरी शुभ देह , ललाम लगे मुख दाड़िम सा फल।
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
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