विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--


बाक़ी हुरूफ़ जो ये मेरी दास्तां के हैं

अहसान यह भी मुझ पे किसी मेहरबां के हैं


रह रह के बिजलियों को है इनकी ही जुस्तजू 

तिनके बहुत हसीन मेरे आशियां के हैं 


भूले हुए हैं लोग गुलामी की बेड़ियाँ 

गुमनाम आज नाम कई पासबां के हैं


इन रहबरों ने आज वफ़ा की किताब से 

नोचे वही वरक़  जो मेरी दास्तां के हैं 


हँसते हुए ही दारो-रसन पर चढ़ेंगे हम 

फ़रज़न्द हम भी दोस्तो हिन्दोस्तां के हैं 


इन तेज़ आँधियों का चराग़ों न ग़म करो 

फानूस बन के लोग खड़े आशियां के हैं 


फिर मकड़ियों ने जाल बुने हैं जगह जगह

गर्दिश में फिर नसीब क्या अपने मकां के हैं


रौशन चराग़ कर के रहेंगे ए-सुन हवा 

पाबंद हम तो आज भी अपनी ज़ुबां के हैं


साग़र चमन को दिल से जो सींचा है इसलिए

हर सू महकते फूल मेरे गुलसितां के हैं


🖋️विनय साग़र जायसवाल 

22/5/1986

निशा अतुल्य

 30.1.2021

*बापू की पुण्य तिथि जिन्होंने विश्व को  अहिंसा प्रेम और सत्य का पाठ पढ़ाने की पहल की*

🙏🏻😊


बापू कहाँ हो

जीवन भटक रहा

आओ संभालो ।


ये किसान जो

भरता उदर को 

है अन्नदाता ।


किसान बिल

आंदोलन आधार

भटक गया ।


देश महान

क्यों किया अपमान 

कैसा विधान ।


तिरंगा शान

देश का अभिमान

भूल गए क्यों ।


पूत तुम्हारे

सीमा पर हैं खड़े

दे बलिदान ।


हैं शर्मशार

उसका बलिदान 

क्यों किया कृत्य ।


बापू बोलो तो

क्या सिखाया तुमने

ये बलिदान ।


सत्य,अहिंसा 

खो गया बलिदान 

नमन तुम्हें ।


संभालो बापू

भटक रहा है क्यों 

देश महान ।


नमन तुम्हें 

पुण्य तिथि तुम्हारी

तुम्हें प्रणाम    🙏🏻💐



स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *अमर शहीद*(दोहा ग़ज़ल)

अमर शहीदों को नमन,नमन सपूत-जवान।

हे माटी के लाल तुम,हो भारत की शान ।।


हर मौसम में रह सजग,किए सुरक्षित लाज।

प्राण-समर्पण कर दिए,रखे देश का मान।।


रौंद शीष अरि का सभी,बढ़ा देश का नाम।

भारत माँ की प्राण दे,बचा लिए सब आन।।


युद्ध रहा हो कारगिल,या फिर था वो चीन।

सबका तोड़ गुरूर ये,दिए हमें पहचान।।


वीर सपूत शहीद हैं,परम त्याग की मूर्ति।

ये रक्षक-प्रहरी नहीं,ये लगते भगवान ।।


राष्ट्र-सुरक्षा हेतु ये,तज निज कुल-परिवार।

धूल चटा दी शत्रु को,लड़ निज सीना तान।।


डटे रहे हर वक्त सब,सीमा पर ये लाल ।

अमर शहीदों का सदा,करें सभी सम्मान।।

              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

लवी सिंह बहेड़ी, बरेली ये मेरा हिंदुस्तान

 इस माटी में जन्म लिया 

ये मेरा हिन्दुस्तान है,

ये मेरा अभिमान है 

ये मेरा सम्मान है,

मेरा भारत देश महान है 

ये मेरा हिंदुस्तान है ।।


न धर्म जाति का बन्धन है

न सूना घर आँगन है,

हर घर में खुशहाली है 

यहाँ रोज़ ईद दीवाली है,

मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरिजाघर एक समान है 

मेरा भारत देश महान है,

ये मेरा हिंदुस्तान है ।।


यहां गोली खाकर सीने पर भी

हर जवान हँसता है,

हर भारतवासी के दिल में 

बस हिंदुस्तान बसता है,

मातृभूमि की लाज की खातिर

सर्वस्व अपना लुटाता है,

जहाँ बात आये देश की आन की 

कभी गांधी तो कभी भगत सिंह बन जाता है,

हर युवा विवेकानन्द और बच्चा- बच्चा कलाम है,

मेरा भारत देश महान है,

ये मेरा हिंदुस्तान है ।।


लवी सिंह

बहेड़ी, बरेली


वैष्णवी पारसे

 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 


हम भारत के लोग 


हम भारत के लोग

मानवता हमारा धर्म 

दिल में हमारे अपनत्व 

जानते प्रेम का मर्म


त्याग हमारा गुण

भाव हमारे निर्मल 

स्नेह की बहती गंगा

मन से सदा निश्छल 


सभ्यता के हम धनी

विशाल हमारा मन

अपना किसी को कहते

करते सर्वस्व अर्पण 


प्रेम त्याग वत्सल 

बांटते सदा प्यार

भूखा न कोई जाता

आए अगर द्वार


विश्व पटल पे गूंजती

सदा हमारी संस्कृति 

कहते जो वही करते

ऐसी हमारी प्रकृति 


प्यारा हमारा भारत

भगवा हमारी शान

हर दिल में तिरंगा 

हर नजर में सम्मान 


जब तक जियेंगे

एकता के साथ रहेंगे 

भारत माता की जय

पल पल कहेंगे


हैं बस इतनी आस

दामन तेरा हो हाथ

अगर दुबार जन्में

भारत माँ तेरा हो साथ


स्वरचित

वैष्णवी पारसे

सुषमा दिक्षित शुक्ला

 ये मातृ भूमि का वन्दन है 


ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है । 

हम  सब तेरे रखवाले  मां,

ये माँ बच्चों का बंधन है।

 ये मातृभूमि का वन्दन है अभिनन्दन है ।

तेरी  आन न जाने पाये ,

तुझपे जान लुटा देंगे ।

तेरे चरणों में लाकर के ,

शत्रू शीश झुका देंगे ।

ये मातृभूमि का वन्दन  है अभिनंदन है ।

हम  सब तेरे रखवाले मां,

 ये मां बच्चों का बंधन है ।

चंदन जैसी तेरी ममता ,

 है रखनी  तेरी शान हमें ।

अगर जरूरत पड़ी वक्त पर,

 न्योछावर है  प्रान  तुम्हें  ।

ये मातृभूमि का वन्दन  है अभिनंदन है।

 हम सब तेरे रखवाले ,

मां ये मां बच्चों का बंधन है ।

मां तेरा क्रंदन असहनीय ,

ऐ! मातृभूमि तू प्यारी है ।

हम तेरे प्यारे बालक हैं,

 तू हम सब की फुलवारी है ।

ये मातृभूमि का वंदन है अभिनंदन है ।

हम सब तेरे रखवाले मां  ,

ये माँ बच्चों का बंधन है ।


सुषमा दिक्षित शुक्ला

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 ------वतन-----


.तन वतन के लिये

मन वतन के लिए

भाव भावनाए वतन का प्रवाह

वतन ही जिंदगी वतन ही पहचान ।।

वतन पर जीना मरना ही 

ख्वाब हकीकत अरमान 

वतन सलामत रहे 

वतन से ही रिश्ता खास अभिमान ।।

वतन की संस्कृति संस्कार तिरंगा

 शान स्वभिमान तिरंगा

वंदे मातरम माँ भारती के

आराधन का मूल मंत्र सम्मान तिरंगा।।

सीने में वतन की जज्बे  की ज्वाला।

 सांसो धड़कन की गर्मी

वतन की अस्मत  प्राण।।

चाहे जितने भी आये माँ

भारती को बनाने गुलाम

त्याग बलिदानी धरती के माँ

भारती के बीर सपूतों ने माँ भारती की आजादी की रक्षा में दे दी जान।।

वतन की राह चाह में हो

गए कुर्बान ना कोई अफसोस

ना कोई ग्लानि हँसते हँसते

लड़ते तिरंगे को दिया ऊंचाई

आसमान।।

दुश्मन जो आंख दिखाए

उसका कर दे वो हाल 

जल बिन जैसे मछली तड़पे

पानी बिन तरसे जीवन को

मौत की मांगें भीख मर्दन कर दे

कर दे मान।।

वतन धर्म ,वतन कर्म दायित्व

सपनो में भी वतन भौतिकता

नैतिकता  में वतन की गरिमा

गौरव का पल पल मर्यादा की

गौरव गाथा गान का भान।।

आजादी के दीवानों परवानों के

बलिदानों के उद्देश्य पथ का पथिक

स्वतंत्रता गणतंत्र के मौलिक

मूल्यों का अवनि आकाश आन

वान का जीवन जान।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर

सती शंकर भरत के साधु संतों की देश भक्ति बलिदान---


कौन कहता है माँ भारती के

सत्य सनातन  का साधु संत

धर्म कर्म साधना आराधना शास्त्र

आचरण का सिर्फ प्रवचन सुनाते।।

जब- जब राष्ट्र समाज पर क्रुरता आक्रांता आता।।


जागृत हो साधु संतों का समाज

मंदिर से क्रांति चेतना के अंगारों में खुद की आहूति करते भेंट चढ़ाते।।


घंटे और घड़ियालों की आवाजों से

राष्ट्र समाज को नित्य झकझोरता सावधान  करता।।

कुरूक्षेत्र के युद्ध भूमि से योगेश्वर कृष्ण के गीता ज्ञान का हो प्रत्यक्ष प्रमाण धर्म युद्ध में पांचजन्य की

शंख नाद है करता।।

भारत ने भुला दिया सत्य सनातन के

साधु संतों सन्यासियों की देश भक्ति।।

बलिदान का गौरवशाली इतिहास

सर्वश्व न्यवछावर कर बचा लिया 

जिसने भारत की लाज।।

भारत की आजादी गणतन्त्र के शुभ

पर्व माँ भारती की रक्षा अस्मत पर मिट जाने वाले संतो की हम याद दिलाते ।।


मिट गए

हज़ारो जल नदी की रक्त सी हो गयी

लाल।।

अफगानी आक्रांता के नियत और 

इरादे रौंदना भारत भूमि पे था करना मौत का था नंगा नाच ।।     


विकृत विचारों का

दानव दुष्ट निकल पड़ा भारत को करने

शर्म सार भारत भूमि की मर्यादा का करने तार तार।।


नागा साधु संतों ने किया प्रतिकार

एक हाथ मे वेद पुराण दूजे हाथ तलवार।।


 दुश्मन से करने दो दो हाथ हर हर महादेव जय भवानी की गूंज गान।।

नागा साधु संतों ने भारत की मर्यादा

रक्षा में सर्वश्व किया बलिदान 

नापाक इरादों के दुशमन कर दिया धूल धुसित भगा लेकर जान।।

बचा लिया होने से भारतीयों का

कत्लेआम ना जाने कितने भारत वासी दानवता की चढ़ते भेट मंदिर तोड़े जाते होती वहाँ आज़ान।।                              


आज

वर्तमान में भारत की पीढ़ी गुलामी

की एक अलग काला अध्याय सुनते

और सुनाते।।

ना  जाने क्यों भुल गया भारत का इतिहास भारत के सत्य सनातन के नाग साधु संतो के सौर्य पराक्रम का बलिदान।।

गनतंत्र दिवस पर नागा साधु संतों के बलिदान बीरता का इतिहास  हम भारत वासी है गाते श्रद्धा से 

 शीश झुकाते।।


भारत की आज़ादी अस्मत पर ना जाने  कितने ही इतिहास

अनजाने -जाने हम याद दिलाते ।।                    


भारत की आज़ादी अस्मत के बलिदानों  को कृतज्ञ राष्ट्र के माथे का चंदन  गौरव गरिमा मान अभिमान सुनते ।।


नन्दलाल मणि  त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश


 ----- हिन्द की सेना-----



बर्फ के चट्टानों पे एक हाथ

संगीन दूजे हाथ तिरंगा

रेतीले तूफानों में खड़ा बना

फौलाद देश की सीमाओं 

मुश्तैद जवान।।

नयी नवेली दुल्हन कर रही

होती है इंतज़ार ईश्वर से आशीर्वाद मांगती बना रहे सुहाग।।

बूढे माँ बाप की पथराई आँखे

अपने सपूत का एकटक इंतज़ार

बेटा देश की रक्षा में लम्हा लम्हा

दुश्मन से लड़ता होगा कब उसका

दीदार।।

आज सीमाओं पे जो हालात

दुश्मन कब किधर से आए

पता नहीं धोखा मक्कारी का

छद्म युद्ध लड़ रही सेना हिंदुस्तान।।

माँ भारती का हर नौजवान

दुश्मन से करता पल प्रहर दो

दो हाथ दुश्मन को औकात बताएं

भारत के बीर जवान।।

जय भवानी हर हर महादेव 

भारत की सेना का शंख नाद

विजयी विश्व तिरंगे की सेना

भारत का अभिमान।।

 दुश्मन चाहे जितना भी हो

चालाक  हिन्द की

सेना चकनाचूर करती अभिमान

धीर धैर्य बीर गंभीर साहस 

निष्ठा समर्पण पराक्रम पुरुषार्थ

हिन्द की सेना बाज़।।

शपथ तिरंगे की कफ़न तिरंगा

आन बान् सम्मान तिरंगा कर्तव्य

पथ पर बढ़ते जाना जीवन का

मूल्य मातृ भूमि की सेवा में दुश्मन

लहू का तर्पण या खुद के लहू

से बीरता की नई इबारत लिख जाना।।

                          

 नई नवेली दुल्हन भी भाग्य पर

इतराती देश की खातिर मर मिटने

वाले शौहर की मर्यादा को जीवन

भर निभाती ।                          


गर्व से नारी गैरव की

गाथा का किस्सा हिस्सा बन जाती।।

पथराई आँखों के माँ बाप अपने

बीर सपूतो को आशीषो का देते

वरदान ईश्वर से मांगते जन्मों जन्मों में देश पर मर मिटने वाली हो मेरी

संतान।।

हिन्द की सेना हिन्द का 

हर एक जवान वतन की

रक्षा में काल कराल विकट

विकराल ।।

हिन्द का जन जन करता नमन

प्रणाम हिन्द की सेना हिन्दुस्तान

की गौरव गाथा की शान स्वाभिमान।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 -----पराक्रम दिवस-------



पराक्रम का मतलब वो क्या जाने

जिसे  का पता नही भारत हिन्द हिंदुस्तान।

पर उपकार कर्म न्योछावर जीवन

पराक्रम का है मान।।

परमात्मा की सत्ता आत्म शक्ति का

संधान समपर्ण युग  समाज राष्ट्र

वर्तमान इतिहास की खातिर 

पराक्रम के मूल  मंत्र सम्मान।।

स्वयं स्वार्थ का त्याग नियत नीति

निर्धारक जन्म मृत्यु से निडर 

जीवन का उद्देश्य काल की गति

निधार्रण पराक्रम का सत्य सत्यर्थ

सर्व स्वीकार।।

प्रभावती जानकी नाथ की

आभा कटक भूमि भारत की

अविनि अभिमान।

आज वर्तमान अतीत के गौरव

गूंज का है गवाह।।

शिक्षा दीक्षा में गोरों को दिया चुनौती

व्यक्ति व्यक्तिव का अपना अंदाज़

पराक्रम का नव सूर्य सूर्योदय 

पराक्रम का युग पुरुष प्रवाह

सुभाष नाम।।     


 विनम्रता आभूषण धीर बीर गंभीर

नैतिक मूल्यों का मानव मानवता का पराक्रम अग्रदूत टकराव नही  

फौलाद इरादों का पराक्रम प्रखर प्रवाह।।

गांधी जी के उद्देश्यों की ज्वाला

आग अंगार सत्य अहिंसा के महात्मा

कर्म धर्म राष्ट्र मूल्य  बापू के

मकसद का उत्साह पराक्रम नेता नाम।।

पराक्रम का युग पुरुष सुभाष

शून्य से शिखर जीवन की नई

परिभाषा प्रमाण ।।।                   


निर्बाध बढ़ता

जाता लिखने खुद के वर्तमान से

एक नया इतिहास की शान।।

कल्पना की सत्यता का क्रांति

पुत्र भारत के बीर सपूतो की

संयुक्त शक्ति हिन्द की सेना का

नायक नेता सुभाष था गूंज गान।।

हिम्मत साहस की पूंजी मात्र

भारत की आजादी की ज्वाला

चिंगारी काल कराल विकट विकराल

दुश्मन का भय भान।।।                 


प्रथम पुरुष

विश्व का पास नही कुछ भी 

था ठन ठन गोपाल दृढ़ इच्छा

शक्ति निष्ठा समपर्ण पूँजी ।

किया अस्त्र शस्त्र आजाद हिंद फौज सेना का निर्माण।।

दानव दुश्मन ने हिम्मत हारी

समझ गया अर्थ पराक्रम 

खून और आजादी  के जंग

जज्बे की आवाज अंदाज़।।

भारत के इतिहास में नेता

सवंत्रता स्वतंत्र विचार की सोच

स्वतंत्रता की ज्वाला मिशाल मशाल

पराक्रम की पराकाष्ठा की अविनि

आकाश।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-54

सीता बिकल बिरह-दुख भारी।

रजनी-रजनीसहिं धिक्कारी।।

      सरै निसा नहिं बिरह-बियोगा।

      अब कस होंहि मिलन-संजोगा??

पुनि-पुनि सोचहिं सीता माता।

बिरह-बिकल मन कंपित गाता।।

      तब सिय बाम-भुजा अरु लोचन।

      फरकन लगे करन दुख-मोचन।।

निसा अरध भे रावन जागा।

डाँटत सारथि रथ चढ़ि भागा।।

      होत प्रात रन-भूइँ पधारा।

      जाइ तहाँ कपिनहिं ललकारा।।

सुनि ललकार कपिन्ह सभ भट्टा।

बिटप-पहार उपारि लइ ठट्टा।।

      धावत गए जहाँ रह रावन।

       किए प्रहार पहार-तरु धावन।।

बिकल भयो निसिचर-दल भारी।

घेरे पुनि रावन ब्यभिचारी ।।

     नखन्ह नोंचि  बिकल तेहिं कीन्हा।

     पुनि चपेटि बिदिर्न करि दीन्हा ।।

दोहा-होइ बिकल रावन तुरत,किय माया बिस्तार।

        लगा करन कौतुक करम, हर बिधि सोचि-बिचार।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

नूतन लाल साहू

 कामयाबी


कामयाबी सिर्फ,कदम बढ़ाने से

नहीं मिलती

सोच के दायरे भी

बढ़ाने पड़ते हैं

जितना कठिन संघर्ष होगा

जीत उतनी ही शानदार होगी।

कल की चिंता छोड़कर

करो आज की बात

तभी मिलेगी, आपको

कामयाबी की सौगात

जीवन के हर मोड़ पर

मिलते हैं,संत भी और राक्षस भी

जुदा भले हो,रास्ते

पर,मंजिल तो एक है

लाख करो,तुम अर्चना

पूजा तप और ध्यान

संकुचित मानसिकता वालो की इच्छा

पूरी नहीं करता है,भगवान

चाहे तो अपनी व्यवहार से

जांच लीजिए, आप

अगर किसी को,सांप ने काटा तो

मुमकिन है,वो बच जाय

पर,लालच और स्वार्थ ने डंसा तो

हरगिज बच न पाय

कामयाबी सिर्फ, कदम बढ़ाने से

नहीं मिलती

सोच के दायरे भी

बढ़ाने पड़ते हैं

जितना कठिन संघर्ष होगा

जीत उतना ही शानदार होगी।


नूतन लाल साहू


गणतंत्र दिवस


खोकर वीर सपूतों को

हमनें आजादी पाई है

भारत का संविधान बना

पर,भूल न जाना पीड़ा को

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

धर्म जुदा है, जाति जुदा है

पर, एक है भारत नेक है भारत

हमे मिटाना चाहे जो

वो खुद ही मिट जायेगा

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

हिमालय की बुलंदी से

सुनो आवाज आई है

तुम कौम की तकदीर हो

मालिक हो वतन के

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

तूफ़ानों और बादलों से भी

तिरंगा नही झुकेगा

कहता है,चक्र हम सबको

हमारा कदम नहीं रुकेगा

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस

हम भांति भांति के पंछी है

पर बाग हमारा एक है

हम सब का प्राणों से प्यारा

हिन्दुस्तान हमारा है

खोकर वीर सपूतों को

हमने आजादी पाई है

भारत का संविधान बना

पर,भूल न जाना पीड़ा को

अमर रहे गणतंत्र दिवस

अमर रहे गणतंत्र दिवस


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 त्रिपदियाँ

राष्ट्र-सुरक्षा परम धर्म है,

हर जन का यह श्रेष्ठ कर्म है।

जीवन का बस यही मर्म है।।

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अपनी माटी परम पुनीता,

जैसे जनक-नंदिनी सीता।

शत-शत नमन राम-परिणीता।।

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माटी के गौरव किसान हैं,

माटी के रक्षक जवान हैं।

भारत माँ के स्वाभिमान हैं।।

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दुनिया में बजता है डंका,

चाहे अमरीका या लंका।

भारत-जय की बिन कुछ शंका।।

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माता-मातृ-भूमि-सम्मान,

यदि हम करते,बढ़ेगी शान।

ऐसे भाव का रहता मान।।

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आओ माता-लाज बचाएँ,

हर दिन इसका पर्व मनाएँ।

मिल कर बिगड़े काम बनाएँ।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

             *गीत*(16/16)

नहीं चैन से सोने देती,

याद पिया की मुझे सताए।

ऊपर से पपिहा की पिव-पिव-

तन-मन मेरे आग लगाए।।


घर-आँगन-चौबारा सूना,

सूना लगता है जग सारा।

सुनो, याद में तेरी साजन,

बहती रहती अश्रु की धारा।

चंद्र-चंद्रिका जग को भाती-

मुझको चंदा नहीं सुहाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


लख कर सखियाँ मुझको कहतीं,

बोलो,तुमको हुआ है क्या?

उनसे कैसे यह मैं कह दूँ,

याद तुम्हारी सताए पिया?

पर माथे की रूठी बिंदिया-

सबको सारा राज बताए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


रात बिताऊँ जाग-जाग कर,

दिन में राह निहारूँ तेरी।

बाहों में आ भर लो बालम,

यह है अब तो चाहत मेरी।

सायक कुसुम धनुष अनंग ले-

सर-सर सायक प्रखर चलाए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


 कली चमन में खिली देख कर,

भौंरे उन पर मर-मिट जाएँ।

सरसों फूली पीली-पीली,

देख हृदय सबके ललचाएँ।

पीली चुनरी पहन प्रकृति भी-

लगती रह-रह मुझे चिढ़ाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


आकर दर्शन दे दो साजन,

तकें नैन ये राहें तेरी।

रहा न जाए अब तो मुझसे,

फैली हैं ये बाहें मेरी।

जीवन का है नहीं भरोसा-

जलता दीपक कब बुझ जाए??

      तन-मन मेरे आग लगाए।

      याद पिया की मुझे सताए।।

               "©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

*भारत माता*

          *वीरों की धरती भारत*

वीरों की धरती भारत को,

शत-शत नमन हमारा है।

अपनी धरती,अपना अंबर-

जग में और न प्यारा है।।


प्यारी-प्यारी इसी भूमि ने,

जन्म दिया सुत वीरों को।

इनका करके सदा स्मरण,

नमन करें तस्वीरों को।

सदा ऋणी हम रहते इनके-

तन-मन-धन सब वारा है।।


राणा-गाँधी-बोस-शिवा जी,

शेखर-सुख,अशफ़ाक़-तिलक।

भगत पुत्र सब भारत माँ के,

हैं स्वतंत्रता के ये जनक।

कर बुलंद आवाज़ स्वतंत्रता-

की अरि को ललकारा है।।


कितने तो शूली पर चढ़ के,

माता की आशीष लिए।

इस माटी की तिलक लगाकर,

वीर मुदित निज शीष दिए।

पुत्रों के ही बलिदानों से-

सदा शत्रु भी हारा है।।


आज पुनः संकट है आया,

माँ की लाज बचानी है।

आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा,

अरि को धूल चटानी है।

अपना तो इतिहास यही है-

हर दुश्मन को मारा है।।

          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दोहा-लेखन*

दोहा अद्भुत छंद है,चौबिस मात्रा-भार।

तेरह-ग्यारह-मेल ये,देता हर्ष अपार ।।


गागर में सागर सदृश,रहे भाव मय गीत।

मधुर गीत-संगीत सुन,रिपु भी बनते मीत।।


रहें धरोहर ही सभी,संस्कृति के आधार।

इन्हें सुरक्षित रख करें,पुरखों का आभार।।


माता अपनी अवनि है,पिता रहे आकाश।

भ्रात सिंधु,भगिनी नदी,मत हो मनुज हताश।।


इस अनंत आकाश में,तारे रहें अनंत।

हैं अनंत प्रभु-नाम भी,कहते ऋषि-मुनि-संत।।


पूर्ण चंद्र को देख कर,बाँह पसारे सिंधु।

छू कर नभ को ही कहे,यही प्रीति है बंधु।।


बड़े-बुज़ुर्गों का सदा,करें सभी सम्मान।

बने  रहें  पत्ते  हरे, पा तरु - प्रेम  महान।।

             ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

राजेश कुमार सिंह "श्रेयस" लखनऊ, उप्र तिरंगा फहराएंगे

 *तिरंगे को फहरायेगें*

[ काव्य पाठ, स्वास्थ सेवा महानिदेशालय ]

तिरंगे को फहरते देख,

मेरा मन लहरता है l

कहता है,

फहरो फहरो, खुब फहरो,

नील गगन में l

मेरे चमन में l

तेरा सुगंध महाकता है ll

तुम्हे और ही अधिक ऊंचाइ पर, फहराना है l

तेरे यश और गुण को गुनगुनाना है ll

हमारे कदम आगे को बढ़ रहे हैंl

भारत के शौर्य को कह रहे हैं ll 

हमने अपनी सीमाओ को,

इसी शौर्य से सजाया है l

हिमालय की दुर्गम चोटियों पर,

तिरंगे को लहराया है ll

 हम विकास पथ पर अग्रसर हैं,

और आगे बढ़ रहे हैं l

ऊँचाइयाँ छू रहे हैं और,

विकसित राष्ट्र बन रहे हैं ll

चिकित्सा, शिक्षा, और विज्ञान के,

हर आयाम को छू लिया है हमने l

क्रूर करोना के कहर पर विजय पा लिया है हमने ll

हमें जंग जीतना आता है l

चाहें जंग सीमा पर दुश्मन से हो l

या वैश्विक महामारी, करोना से हो ll

हमें सबको हराना आता है ll

हिमालय के ललाट पर,

हमने चन्दन का तिलक लगाया है l

सागर की लहरों को सीने से लगाया है ll

कच्छ से असम तक हमारे हौंसले घूम आते हैं l

गंगा,यमुना,कावेरी के तट पर नहाते हैं ll

लाल किले का प्राचिर कहता है कि,

हम योद्धा हैं ll

हमने जंग जीत कर दिखाया है l

दुश्मन को उसके घर में हराया है ll

क्रूर करोना से दो दो हाथ किये हमने l महामारी में पीड़ित मानवता का जम कर साथ दिया हमने l

करोना योद्धा बन कर,

करोना को छकाया है l

बताओ न क्या भारत में,

करोना का दूसरा लहर आया है ll

क्षय के खिलाफ भी जंग की,

पूरी तैयारी है l

क्षय का क्षय होगा, आगे इसकी बारी है ll

वर्ष 2025 को क्षय मुक्ति वर्ष मनायेंगे l

उम्मीदों के पँख को जमकर लहरायेगे ll

गणतंत्र दिवस के अवसर पर,

तिरंगे को फहरायेगें ll


©®राजेश कुमार सिंह "श्रेयस"

लखनऊ, उप्र



दिनांक 25-01-2021

नूतन लाल साहू

 रिश्ता


रिश्तों को वक्त पर

वक्त देना,उतना ही जरूरी है

जितना पौधों को

वक्त पर पानी देना

अटूट रिश्ता हैं

भक्त और भगवान का

पर,मतलबी हो रहा है

धरती का इंसान

इसीलिए बहरे हो गये है

दीनबंधु भगवान

मत भुलो,प्रभु जी के नाम को

और नहीं,कुछ चाह

प्रभु जी,खुद ही करेगा

अपने भक्त का परवाह

रिश्तों को वक्त पर

वक्त देना,उतना ही जरूरी है

जितना पौधों को

वक्त पर, पानी देना

बुरे समय को देखकर

मत घबराना,इंसान

अगर कुछ बुरा हो भी जाये

तो खो मत देना होश

हरी की इच्छा समझकर

कर लेना संतोष

जी लेे बंदे,आज में

बीत गया सो भूल

दुःख में सुख को ढूंढना

शुरू कीजिए,आप

जिनको खुद पर है,आस्था

प्रभु जी पर है,विश्वास

कोई भी बाल न बांका कर सकें

इसे सत्य,तू जान

रिश्तों को वक्त पर

वक्त देना, उतना ही जरूरी है

जितना पौधों को

वक्त पर, पानी देना


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *षष्टम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-52

निज कर गहि गिरि-बिटप बिसाला।

किन्ह प्रहार सभ तुरत कराला ।।

     तिनहिं पकरि रावन पुनि मारहिं।

     पुनि कपि सो निज लातहिं ढारहिं।।

तब नल-नील चढ़े तिसु सीसा।

नखन्ह लिलार खरोंचहिं तीसा।।

      रुधिर देखि रावन बउराया।

      होके कुपित तिनहिं दउराया।।

जब निज कर तें पकरा तिनहीं।

चले छुड़ाइ भागि के सबहीं।।

      तब दसमुख गहि दस धनु-बाना।

      मुर्छित किया कपिन्ह-हनुमाना।।

मुर्छित हनुमत लखि जमवंता।

धावत गए तहाँ बलवंता ।।

       पर्बत-बृच्छ खींचि कपि-भालू।

        मारन लगे दनुज इर्ष्यालू।।

पकरि-पकरि जब पटकेसि रावन।

जामवंत मारे उर धावन ।।

दोहा-जामवंत-पग-घात पा,रावन गिरा अचेत।

        गिरत पकरि कपि बीस कहँ,रह जे परम सचेत।।

        पुनि सारथि इक अपर आ,रथ बिठाइ लंकेस।

         गया ताहि ले लंक मा,रह जहँ लंक-नरेस।।

                      डॉ0हरि नाथ मिश्र

                         9919446372

दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

 आजादी की खातिर व्याकुल रहे सदा बेकरार।हिन्द फौज बना डाली किया अचम्भित  वार।।


हिन्दुस्तान की धरा पर नेता जन्मे एक से एक।

पर इन नेताओं की भीड़ में बोस रहे बस एक।।

बोस रहे बस एक जग में क्षितिज तक भाये।

सुभाष चंद्र बोस ही  बस नेताजी बन पाये।।


आजादी  की  युद्ध  में  नारों  की  भरमार ।

नारा दिया 'दिल्ली चलो' बोस बुलाया यार।।


बोस तुम्हारी देश भावना रही बहुत ही न्यारी।

जयहिंद का डंका बजा  दौड़े सब  नर-नारी।।

दौड़े सब नर-नारी अंग्रेजों की नींव हिलादी।

दे नारा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें दूं आजादी।।



  - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

डॉ० रामबली मिश्र

 धर्म क्षेत्र।      (चौपाई)


धर्म क्षेत्र अतिशय व्यापक है।

सकल विशुद्ध क्रिया-वाचक है।।

अति संवेदनशील धरातल।

सात्विक भाव प्रधान अटल तल।।


कर्म प्रधान विश्व की रचना।

कर्म फलद यह शिव की वचना। 

सुंदर सात्विक कर्म युधिष्ठिर।

दुर्योधन दूषित अति दुष्कर।।


धर्म क्षेत्र में सत्य-असत्या।

सत्य विजयश्री राक्षस हत्या।।

पाण्डव करता सदा धर्म है।

दुर्योधन करता अधर्म है।।


सीखो धर्म युधिष्ठिर बनकर।

धर्म क्षेत्र को अति पुनीत कर।।

धर्म क्षेत्र को पावन करना।

सत्य अहिंसा प्रेम वरतना।।


न्याय पंथ पर कदम बढ़ाना।

मानवता का पाठ पढ़ाना।।

सबके प्रति सम्मान भाव हो।

धर्म क्षेत्र का शुभ प्रभाव हो।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 आप सुनो तो 


आप सुनो तो तान छेड़ दूँ,

मन के गीत सुनाने को।

रूह हमारी भटक रही थी,

दिल का हाल बताने को।


बंजारों से दिन थे मेरे,

जोगन जैसी थी रातें।

अब आए हो कभी न जाना,

कर लूँ सब दिल की बातें।


बहुत दिनों के बाद मिले हो,

खोया प्यार निभाने को।

आप सुनो तो...


प्यार मेरा था जनम जनम का,

तुम थे मेरे दीवाने।

मैं शमां थी बुझने वाली,

अब आए हो परवाने।


आओ फिर से दोहरा दें हम,

मधुर मिलन के गाने को।

आप सुनो तो...


मैं चातक सी तड़प रही थी,

मृगतृष्णा में भटक रही थी।

हुई अकेली थी मैं बिल्कुल,

प्रीतम तुम बिन बिलख रही थी।


आज कहाँ से आन मिले तुम,

सोयी प्रीत जगाने को।

आप सुनो तो...


फिर बहार आई जीवन में,

खुशियों ने पैग़ाम दिया।

लौटा है वो प्रीतम मेरा,

फुलवा जिसने नाम दिया।


अगर कहीं ख़्वाब ये हुआ तो,

चाहूँ मैं मर जाने को।

आप कहो तो तान छेड़ दूँ ,

मन के गीत सुनाने को।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

सुनीता असीम

 हम  आपके ही प्यार में लाचार हो गए।

दिल हार बैठे अपना औ बेकार हो गए।

******

अपना बना लो श्याम नहीं देर अब करो।

सांसों की आप माला के आधार हो गए।

******

चितचोर चोर आप हो इल्जाम दो हमें।

मासूम तुम बने हम खतावार हो गए।

******

नज़रे करम जो आपका मुझपर हुआ कभी।

तब स्वप्न मेरे सारे ही साकार हो गए। 

******

देखा जो नेह दृष्टि से तुमने ओ माधवा।

उस वक्त से ही हम तेरे बीमार हो गए।

******

आसान तो नहीं कि भुला दें उन्हें कभी।

हम दास बन गए वो सरकार हो गए।

******

तुम बिन अधूरी आज सुनीता है सांवरे।

उसके लिए तो दर्श ही दरकार हो गए।

******

सुनीता असीम

२३/१/२०२१

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 *बेटियाँ* 


बेटियाँ शब्द  एक प्रतीक है ,

 अहसास है मर्यादा का ,

गहन अपनत्व का ,

माता के ममत्व का 

,पिता के दायित्व का ।

ये बेटियां गंगा  की पावन धार सी,

बाबुल के स्वक्षन्द आँगन में ,

रुनझुन पायल की झंकार बन,

सुकोमल पद्म पुष्प की भांति ,

पल्लवित पल प्रतिपल पनपती हैं।

सँवरती  है  निखरती हैं ,

माता पिता की डोर थाम बढ़ती हैं

भाई के साथ बचपने की ,

अल्हड़  सी  शैतानियां ,

उसकी नटखट सी नादानियां

 भैया के नखरे ,शरारतें

इन सबको  पावन प्यार का

 प्रारूप देती ये बेटियां,

समाज मे सर्वदा कमजोर,

 समझी जाने वाली, 

रक्षा की पात्र मानी जाने वाली ,

ये बेटियाँ  ही तो हैं जो

पल प्रतिपल सबका ख्याल, रखती  हैं  

बेइंतहा प्यार करती हैं 

पापा की दवाई हो या पानी देना,

माँ की कंघी हो या  फिर

काम मे हाथ बटाते रहना 

,या फिर भाई का बिखराया सामान 

करीने से लगाना ,

सब कुछ वही तो सम्हालती है।

कम पैसों मे काम चला 

अपना बचा हुआ पाकेट मनी तक  लौटा देतीं है  ये बेटियाँ ,

सचमुच कितना गजब ढाती हैं ये बेटियाँ ...

फिर एक दिन सबको रुला  दूर 

ससुराल चली जाती है ये बेटियाँ।

अपने रक्त सृजित रिश्ते छोड़ ,

पराये लड़के को प्रियतम  मान,

निछावर हो जाती  हैं ये बेटियाँ।

दूसरे के परिवार को स्वीकार 

अपनत्व लुटाती हैं ये बेटियाँ ।

कितने भी विपरीत हालात हों,

मगर फोन से ही सही  दूर होकर भी,

मंम्मी पापा को उनका रूटीन

याद दिलातीं हैं ये बेटियाँ ...।

सच तो ये है  कि समाज मे 

 हाशिये पर देखी जाने वाली 

ये कमजोर कही जाने वाली बेटियां,

वास्तव मे परिवार की सबसे

 मजबूत डोर होती हैं ये बेटियाँ ...।


  


  स्वरचित -

 ©  सुषमा दीक्षित शुक्ला

(सर्वाधिकार सुरक्षित) 


लखनऊ ,उ०प्र० ।

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः २४.०१.२०२१

दिवसः रविवार

विधाः दोहा

विषयः बेटियाँ 

शीर्षकः👰 बेटी है शृङ्गार जग🤷🏻


जीवन    की   पहली  किरण , पड़ी  मनुज इह लोक।

बेटी   बहना  माँ     कहो , पत्नी   बन     हर    शोक।।१।।


प्रथम    सृष्टि   की  अरुणिमा , करती जग  आलोक।

निर्भय   नित   सबला  करो , बिन  बाधा    या  रोक।।२।।


बढ़ा      मनोबल      बेटियाँ , करो   साहसी     धीर।

पढ़ा   लिखा   समरथ    करो , निर्माणक    तकदीर।।३।।


ममता    समता  प्रीति   की ,  तनया   नित   आगार।

भरी   सदा    करुणा   दया ,  खुशियाँ    दे    संसार।।४।।


गेह      रोशनी       बेटियाँ  , दीपशिखा       सम्मान।

परहित     रत      मेधाविनी , परकीया    बन    शान।।५।।


सरला    सहजा    मिहनती , चढ़     तनया   सोपान।

रचे      कीर्ति    संसार   को , पाती   हर     अरमान।।६।।


शक्तिशालिनी      बेटियाँ , भरो     मनसि     उत्साह।

रक्षण    नित    बेटी    करो , पूर्ण   करो   हर   चाह।।७।।


सींचो   स्नेहिल     बेटियाँ , बिना     किसी   मनभेद।

जीवन     हो    हर्षित   सुलभ , करो   नहीं   उच्छेद।।८।।


मानक   कुल    की     बेटियाँ , विधलेखी   उपहार।

जननी    भगिनी    बेटियाँ ,  महाशक्ति     अवतार।।९।।


बेटी    है    शृङ्गार   जग , रखो    लाज    सम्मान। 

साधन  बन    उत्थान   का , नार्यशक्ति     वरदान।।१०।।


धीर   वीर  योद्धा  वतन , शिक्षित    ज्ञान  विज्ञान।

कुशला नित नेत्री वतन , अभिनेत्री   कृति    गान।।११।। 


लालटेन    प्रतिबिम्ब     नित , दर्शाती   अरमान।

बनी   सदा   उन्नत  पथी ,   बेटी  कुल अभिमान।।१२।।


संकल्पित      यायावरित ,  सहने    को    संघर्ष।

हर   बाधा  को     पार कर ,  चढ़े  सुता  उत्कर्ष।।१३।।


खिले निकुंज कीर्ति प्रभा ,बने चारु निशि  सोम।

लघु जीवन अनमोल धन,सुता विहग यश व्योम।।१४।। 


कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक(स्वरचित)

नई दिल्ली

निशा अतुल्य

 बेटी दिवस पर सभी नारिजाति को समर्पित 

बधाई 💐💐💐💐💐💐


हाइकू

24 .1.2021


पूजन करे

हर नवरात्र में 

कोख में मरे ।


जन्मे न बेटी

कहाँ से लाए बहू

जरा बता तो  ।


है पहचान 

घर की है मुस्कान 

बेटी महान ।


करो स्वीकार

दो संतति सम्मान 

है अधिकार ।


प्यारी लाडली

है लाज दो कुल की 

राज दुलारी  ।।


मिश्री की डली

फ़लक छूने चली

खोले जो पँख।


ठंडी है छाँव

लिखे है इतिहास

सदा ही नया


स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

मन्शा शुक्ला

 [24/01, 9:13 am] +91 75870 72912: परम पावन मंच को नमन

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


विषय  पर्यावरण

मनहरण घनाक्षरी

🌳🌳🌳🌳🌳


वृक्ष धरा की शान है

प्रकृति का श्रृंगार है

लाख जतन करके

वृक्षों को बचाईये।


हो  रही बंजर  धरा

पानी घटता जा रहा

जल है अमूल्य  बड़ा

पौधों को लगाईये।


प्रदूषण बढ़ रहा

बिषाक्त हो रही हवा

दूभर जीवन हुआ

जागृत हो जाईये।


कर्तन रुके वृक्ष का

सजें आँचल धरा का

बचा वृक्ष जल स्त्रोत

जीवन बचाईये।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर



विषय  पर्यावरण

मनहरण घनाक्षरी

🌳🌳🌳🌳🌳


वृक्ष धरा की शान है

प्रकृति का श्रृंगार है

लाख जतन करके

वृक्षों को बचाईये।


हो  रही बंजर  धरा

पानी घटता जा रहा

जल है अमूल्य  बड़ा

पौधों को लगाईये।


प्रदूषण बढ़ रहा

बिषाक्त हो रही हवा

दूभर जीवन हुआ

जागृत हो जाईये।


कर्तन रुके वृक्ष का

सजें आँचल धरा का

बचा वृक्ष जल स्त्रोत

जीवन बचाईये।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

नूतन लाल साहू

 जवान तुझे सलाम


हिमालय की बुलंदी से

सुनो आवाज आई है

सैकड़ों कुरबानियां देकर

हमने आजादी पाई है

हिन्दुस्तान की जवान,वो पत्थर है

जिसे दुश्मन,हिला नहीं सकते

अमन में,फूलों की डाली

जंग में,वो तलवार हैं

भारत मां की आजादी खातिर

खेली हैं,अपने खून की होली

हरदिन हरपल,शरहद पर खड़ा है

संतरी बन, सीना तान के

भारत मां के वीर सपूतों

जवान तुझे सलाम है

मिट जायेगा,जो टकरायेगा भारत मां से

यह वतन है,हिमालय के बेटों का

कहते हैं हम,ललकार के

दुश्मनों अब कदम रखना

जरा तुम संभाल के

आंधी आये या आये तूफान

हमें डरा नहीं सकता

नहीं झुकेगा सर,अब वतन का

हर जवानों की कसम है,हिन्दुस्तान का

भारत मां के वीर सपूतों

जवान तुझे सलाम है

सीना है,फौलाद सा

फूलों जैसा है,दिल

सुनकर गरज,जवानों की

सीने फट जाते हैं,चट्टानों का

सर कटा देते हैं, पर

न देंगे मिट्टी,वतन के

भारत मां के वीर सपूतों

जवान तुझे सलाम है


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 [24/01, 9:35 am] +91 99194 46372: *गीत*(16/14)

हम भारत के वासी हमको,

कण-कण इसका प्यारा है।

गर्व सदा है भारत पर ही-

भारतवर्ष हमारा है।।


सदियों पहले रहा विश्व-गुरु,

जीवन-सूत्र दिया जग को।

आज वही है गरिमा इसकी,

देता मूल मंत्र सबको।

पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण-

करता उर-उजियारा है।।

    भारतवर्ष हमारा है।।


कहीं खेत फसलों से लहरें,

कृषक अन्न उपजाते हैं।

कहीं बाग में फल भी पकते,

मीठे फल सब खाते हैं।

बादल उमड़-घुमड़ नभ बरसें-

बहती सरिता-धारा है।।

      भारतवर्ष हमारा है।।


ऋतुओं का यह देश निराला,

ऋतु वसंत-छवि न्यारी है।

विविध पुष्प उपवन में खिलते,

विलसित अनुपम क्यारी है।

हृदय-हरण कर प्रकृति मोहिनी-

देती शुचि सुख सारा है।।

      भारतवर्ष हमारा है।।


कश्मीर-शीष है मुकुट सदृश,

शोभा लिए हिमालय की।

गिरि-गह्वर में बसे देव-घर,

पूजा रुचिर शिवालय की।

सिंधु उमड़ता दिशि दक्षिण का-

सब कुछ लगता न्यारा है।।

     भारतवर्ष हमारा है।।


मंदिर-मस्ज़िद-गुरुद्वारे जो,

गिरजाघर भी यहाँ बने।

सबने अलख जगाई जग में,

भाव वही जो प्रेम सने।

बने विश्व परिवार एक जब-

रहता भाई-चारा है।।

     भारतवर्ष हमारा है।।

               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                   9919446372

[24/01, 6:46 pm] +91 99194 46372: *मधुरालय*

              *सुरभित आसव मधुरालय का*13

यह आसव मधुरालय वाला,

हृद अति हर्षाने वाला।

इसकी पद्धति ने ही जग को-

जीवन-कला सिखाई है।।

     मधुर मधुरिमा आसव वाली,

     सबको राह दिखाती है।

     विश्व-पटल के इस कोने से-

     उस कोने तक छाई है।।

जब भी औषधि काम न करती,

नहीं रोग को दूर करे।

देकर शरण इसी आसव ने-

मुरली मधुर बजाई है।।

      यमुन-पुलिन यह कृष्ण-बाँसुरी,

      राधा-रुक्मिणि-लाज-हया।

      कौरव-कंस-दुशासन-घालक-

      लंक में आग लगाई है।।

गीता-ज्ञान,वेद-मंत्र यह,

गुरु पुराण-श्रुति-चिंतन है।

अति प्राचीन-रुचिर रस-धारा-

जीवन-तत्त्व-पढ़ाई है।।

      सर्व धर्म-सम्मान-भावना,

      सब जन का हितकारी यह।

      रखे नहीं यह 8बैर किसी से-

      प्रेम-भाव-नरमाई है।।

सकल विश्व,यह धरती,अंबर,

सर-सरिता जो सिंधु महान।

सब में आसव,सब आसव में-

आसव जग गुरुताई है।।

     उद्धारक यह और सुधारक,

     यह तो कष्ट-निवारक है।

     सकल ज्ञान की कुंजी आसव-

     कुंजी गंग नहाई है।।

समिधा-हवन-कुंड यह आसव,

पावक पाप-जलावन यह।

वायु, व्योम में सतत प्रवाहित-

हवा शुद्ध पुरुवाई है।।

     सकल मंत्र अभिमंत्रित आसव,

     आसव मंत्र-कोष अक्षुण्ण।

     अमिय-बूँद यह झर-झर झरती-

      दुनिया पी हर्षाई है।।

शुद्ध हृदय जो पूण्य आत्मा,

उन्हीं को आसव सदा मिले।

पापी-कपटी-कलुषित हृदयी-

की भ्रम-जाल फँसाई है।।

    मधुर वचन मन शीतल करती,

   करता यह सिद्धांत अमल।

   हृदय-कालिमा,दूषित वाचा-

   इसको रास न आई है।।

भोगी कर स्नान अमल नित,

इस आसव की सरिता में।

भोग-वासना मय माया से-

करता ध्रुव विलगाई है।।

    आसव अमृत धरा-धाम का,

    जीवन को पावन करता।

    भले न मानव रहे जगत में-

     रहती तासु बड़ाई है।।

                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                 9919446372

एस के कपूर श्री हंस

हर किसी के दिल में घर एक

*बनाना सीखिये।।*


हर  दिल में तुम   इक  घर 

बनाना       सीखो।

किसी के दर्द में  तुम  दवा

बन जाना सीखो।।

ऊंची आवाज   नहीं ऊंची

बात   कहो   तुम।

वक्त रहते     सही   गलत

आजमाना सीखो।।


आँखों और दिल की जुबां

पढ़ना     सीखो।

बिना सीढ़ी के   तुम ऊपर

चढ़ना     सीखो।।

तुम्हारी  किस्मत  बनती है

प्रारब्ध    कर्म से।

अपना भाग्य  तुम  खुद ही

गढ़ना       सीखो।।


धारा के   विपरीत भी  तुम

चलना      सीखो।

संघर्ष अग्नि में तुम   तपना

गलना      सीखो।।

तेरे अंदर की क्षमता निकल

कर  आये  बाहर।

हो लाख  रुकावटें तुम आगे

बढ़ना      सीखो।।


विनम्र विनोदी सहयोगी तुम

बनना      सीखो।

हर काम  जीवन  में   धैर्य से

करना      सीखो।।

याद रखो  छवि  की उम्र तेरी

उम्र से होती ज्यादा।

हो बदनामी पहले उससे तुम

मरना       सीखो।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464



।।राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जन*

*पर रचना।।*

*।।घर में प्रेम और रौनक का रंग* 

*भरती है बेटियाँ।।*


पढ़ेंगी बेटियाँ   और आगे

बढ़ेंगी    बेटियाँ।

बराबर हक़ के    लिए भी

लड़ेंगी   बेटियाँ।।

बेटों से कमतर  कहीं नहीं

हैं बेटियाँ  हमारी।

हर ऊँची   सीढ़ी    पर भी

चढ़ेंगी    बेटियाँ।।


विश्व पटल परआज बेटियों

का खूब नाम है।

आज कर रही     दुनिया में

वह हर काम हैं।।

बेटी को जो देते  बेटों जैसा

प्यारऔर सम्मान।

अब  माता  पिता   कहलाते

वही महान      हैं।।


हर दुःख सुख   साथ     में    

संजोतीं  हैं बेटियाँ।

हर घर में प्रेम और   रौनक

बोती  हैं   बेटियाँ।।

बड़ी होकर करती सृष्टि की

रचना भी   नारी।

प्रभुकृपा बरसती वहीं जहाँ

होती हैं   बेटियाँ।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।         9897071046

                    8218685464

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