गायत्री जैन जी मन्दसौर की बेटी पर कविता अवश्य सुने
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-5
सानुज धरे चरन गुरु रामा।
मुनि नायक बसिष्ठ अरु बामा।।
कहहु राम आपनु कुसलाई।
पूछे गुरु तब कह रघुराई।।
गुरुहिं कृपा रावन-बध कीन्हा।
लंका-राज बिभीषन दीन्हा।।
जाकर गुरु-पद महँ बिस्वासा।
पूरन होहि तासु अभिलासा।।
भरतै धाइ राम-पद धरेऊ।
जिनहिं देव-सिव-ब्रह्मा परेऊ।।
प्रभू-चरन गहि भरत भुवालू।
विह्वल भुइँ पे परे निढालू।।
बड़े जतन प्रभु तिनहिं उठाए।
पुलकित तन प्रभु गरे लगाए।।
छंद-अइसन मिलन प्रभु-भरत कै,
मानो मिलन रस लागहीं।
अपनाइ तनु जिमि रस सिंगारहिं,
प्रेम-रस सँग पागहीं ।।
सोरठा-जब पूछे श्रीराम, रहे बरस दस चारि कस।
रटतै-रटतै राम,कहे भरत सुनु भ्रात तब।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
भारत के इक्कीस परमवीर का लोकार्पण 14 फरवरी को हिंदी भवन दिल्ली में।
भारत के इक्कीस परमवीर का लोकार्पण 14 फरवरी को हिंदी भवन दिल्ली में।
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हिन्दी साहित्य के लिये अनुपम ऐतिहासिक,काव्य ग्रन्थ, शौर्य पराक्रम की भाषा का काव्य ग्रन्थ, देश के इक्कीस परम वीर चक्र विजेताओं की सर्वोच्च वीरता का अंतरराष्ट्रीय काव्य ग्रन्थ " भारत के इक्कीस परम वीर" का लोकार्पण समारोह 14 फरवरी 2021 को देश की राजधानी दिल्ली के हिन्दी भवन में होगा। जिसमें भारत के कई राज्यों के एवं विदेश के रचनाकार सहभागिता करेंगे।
भारत के इक्कीस परमवीर संकलन के सम्पादक प्रख्यात साहित्यकार एवं काव्यकुल संस्थान के अध्यक्ष डॉ राजीव कुमार पाण्डेय ने बताया बताया कि भारत ने अपने वीर जाँबाज सैनिक जिन्होंने अपने अदम्य साहस बलिदान से देश के स्वाभिमान की रक्षा की और राष्ट्रीय ध्वज की मर्यादा को अक्षुण्ण बनाये रखा,युद्ध भूमि में दुश्मन के दांत खट्टे कर विजय पताका फहराई । उन्हें भारत ने अपने सर्वोच्च सैनिक सम्मान से परम वीर चक्र से सम्मानित किया।
देश के ऐसे सच्चे वीर सपूतों की वीरता को हिंदी साहित्य में उचित स्थान मिले और हमारी पीढियां उनके चरित्र को पढ़कर गौरव कर सकें एवं देश के लिये सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकें । इसलिये काव्यकुल संस्थान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर नवम्बर में परम वीर चक्र विजेताओं पर डिजिटल रूप से 151 कवियों का कवितापाठ कराकर एक रिकॉर्ड स्थापित किया था। उन्हीं में से चयनित 101 कवियों की रचनाएं संकलित कर *भारत के इक्कीस परमवीर* काव्य संकलन तैयार किया गया जिसमें संकलन कर्ता के दायित्व को वरिष्ठ गीतकार ओंकार त्रिपाठी ने निभाया। इस ग्रन्थ को सुंदर कलेवर में जिज्ञासा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
श्री पाण्डेय ने बताया कि इस ग्रन्थ का भव्य लोकार्पण 14 फरवरी रविवार दोपहर 2 बजे हिंदी भवन विष्णु दिगम्बर मार्ग दिल्ली में होगा,जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में जनरल (डॉ) वी के सिंह (सेवानिवृत्त) केंद्रीय राज्य मंत्री सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली नगर निगम के पूर्व महापौर एवं दिल्ली साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेश चंद्र शर्मा करेंगे। इस भव्य समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल विष्णुकांत चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) , एडीशनल डीजी बीसी एफ पी के मिश्र, प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया के चेयरमैन सी एम प्रसाद, वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक ओम निश्छल, वरिष्ठ कवयित्री डॉ इंदिरा मोहन, के कर कमलों द्वारा इस ग्रन्थ का लोकार्पण भारत के कई राज्यों से आये साहित्यकारों एवं बुद्धिजीवियों के समक्ष किया जाएगा।
इस अवसर पर इस ग्रन्थ के रचनाकारों को परमवीर सृजन सम्मान से अलंकृत किया जायेगा।
विराट कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये आयोजन समिति में यशपाल सिंह चौहान, ब्रज माहिर, अनुपमा पाण्डेय 'भारतीय' कुसुमलता 'कुसुम' दीपा शर्मा, गार्गी कौशिक, राजेश कुमार सिंह 'श्रेयस' डॉ रजनी शर्मा 'चन्दा' , अशोक राठौर, राजीव कुमार गुर्जर को लिया गया है।
प्रेषक
डॉ राजीव कुमार पाण्डेय
राष्ट्रीय अध्यक्ष
काव्यकुल संस्थान(पंजी) गाजियाबाद
मोबाइल -9990650570
ईमेल - kavidrrajeevpandey@gmail.com
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-4
अवधपुरी महँ प्रकृति सुहानी।
नगरी भे जनु सोभा-खानी।
त्रिबिध समीर बहन तब लागा।
धारि उरहिं रामहिं अनुरागा।
सीतल सलिला सरजू निरमल।
लागल बहै प्रसांत-अचंचल।।
परिजन-गुरु अरु अनुज समेता।
चले भरत जहँ कृपा-निकेता।।
चढ़ि-चढ़ि भवन-अटारिन्ह ऊपर।
नारी लखहिं बिमान प्रभू कर ।।
पूर्णचन्द्र इव प्रभु श्रीरामा।
अवधपुरी सागर अभिरामा।।
पुरवासी सभ लहर समाना।
लहरत उठि-उठि लखैं बिमाना।।
कहहिं राम लखाइ निज नगरी।
लखु,कपीस-अंगद बहु सुघरी।।
लखहु बिभीषन-कपि तुम्ह सबहीं।
अवधपुरी सम नहिं कहुँ अहहीं।।
सरजू सरित बहै उत्तर-दिसि।
मम नगरी बड़ सुघ्घर जस ससि।।
बड़ पवित्र अह सरजू-नीरा।
मज्जन करत जाय जग-पीरा।।
मम संगति-सुख ताको मिलई।
मज्जन करन हेतु जे अवई ।।
परम धाम मम नगर सुहावन।
बहु प्रिय मम पुरवासी पावन।।
प्रभु-मुख सुनि अस नगर-बखाना।
भए मगन कपि-भालू नाना ।।
धन्य भूमि अस सभ पुरवासी।
होंहिं जहाँ कर राम निवासी।।
उतरा झट बिमान तेहिं अवसर।
पाइ निदेस राम कै सर-सर।।
दोहा-उतरि यान श्रीराम कह,पुष्पक जाहु कुबेर।
रखि के हरष-बिषाद उर,उड़ बिमान बिनु देर।।
प्रभु-बियोग कृष बपु-भरत,लइ बसिष्ठ गुरु बाम।
पुरवासिन्ह लइ संग निज,गए पहुँचि जहँ राम।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
नूतन लाल साहू
विश्वास
दुनिया का सबसे सुंदर पौधा
विश्वास होता है
जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है
उठ जाग मुसाफिर,भोर भई
अब रैन कहा, जो सोवत है
जो सोवत है,वो खोवत है
जो जागत है,सो पावत है
जो कल करना है,आज कर लें
जो आज करना है,वो अब कर लें
जब चिड़ियों ने चुग गया खेत तो
फिर पछतावे,क्या होवत है
कैसे बैठे हो,आलस में
तुमसे राम नाम कहा न जाय
जानकी नाथ सहाय करें तब
कौन बिगाड़ करे नर तेरा
दुनिया का सबसे सुंदर पौधा
विश्वास होता है
जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है
सोचत सोचत उमर बीत गई
काल, शीश मंडराय
लख चौरासी योनि भटक
बड़े भाग्य से,मानुष देह पाया है
डरते रहो कि यह जिंदगी
कहीं बेकार न हो जाये
मंजिल असल मुकाम की
तय करनी है, तुम्हें
राजा भी जायेगा,जोगी भी जायेगा
गुरु भी जायेगा,चेला भी जायेगा
माता पिता और भाई बन्धु भी जायेंगे
और जायेगा,रुपयों का थैला
जानकी नाथ सहाय करें तब
कौन बिगाड़ करै,नर तेरा
वो ही तो,भक्त जनों का संकट
क्षण में दूर करेगा
दुनिया का सबसे सुंदर पौधा
विश्वास होता है
जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है
नूतन लाल साहू
एस के कपूर श्री हंस
*।।रचना शीर्षक।।*
*।। यह जीवन आज और बस इसी*
*पल में है।।*
यह जीवन आज और बस
इसी पल में है।
वह जीता नहीं जिन्दगी जो
रहता कल में है।।
ना राज ना नाराज़ जीवन
बसता बस आज में।
जो सोचता भविष्य की सदा
वो जीता छल में है।।
आज में ही आनन्द का हर
आभास लीजिए।
अच्छे कल की मत आज ही
आप आस कीजिए।।
यदि आज अच्छा है तो कल
खुद संवर जायेगा।
बस संबकोअच्छी भावना का
अहसास दीजिए।।
हर रोज़ जिन्दगी एक नया
आज देती है।
कर्म ही होती पूजा यही
आवाज़ देती है ।।
तेरा कल तेरे आज का ही
होता है सुफल।
रोज़ ही जिन्दगी संबको यही
आगाज़ देती है।।
कल की सोच कर जो हमेशा
दुःखी रहता है।
आज को भी खो कर नहीं वो
सुखी रहता है।।
जान लो बिना मेहनत निराशा
ही हाथ है लगती।
करे हर काम समझ के वो सदा
बहुमुखी रहता है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।*
मोब।। 9897071046
8218685464
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल-
आँखों आँखों में दास्तान हुई
यह ख़मोशी भी इक ज़ुबान हुई
इक नज़र ही तो उसको देखा था
इस कदर क्यों वो बदगुमान हुई
कैसा जादू था उसकी बातों में
एक पल में ही मेरी जान हुई
इस करिश्मे पे दिल भी हैरां है
वो जो इस दर्जा मेहरबान हुई
मिट ही जाते हैं सब गिले शिकवे
गुफ्तगू जब भी दर्मियान हुई
जब से वो शामिल-ए-हयात हुए
ज़िंदगी रोज़ इम्तिहान हुई
इक लतीफ़े से कम नहीं थी वो
बात जो आज साहिबान हुई
जब से रूठे हुए हैं वो *साग़र*
हर तरफ़ जैसे सूनसान हुई
🖋️विनय साग़र जायसवाल
8/2/2021
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*गीत*(16/14)
वृंत-वृंत पर फूल खिलें हैं,
और समीर सुगंधित है।
कलियों पर भौंरे मड़राएँ-
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
पवन फागुनी की मादकता,
हृदय सभी का हुलसाए।
सजनी को उसके साजन की,
मीठी यादें दिलवाए।
बहक उठे मन उसका चंचल-
जो प्रियतम-सुख वंचित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
आम्र-मंजरी की सुगंध पा,
विरही मन भी बौराए।
तड़पे जल बिन मीन सदृश वह,
इधर-उधर भी भरमाए।
लगे नहीं मधुमास सुहाना-
उसको तो जग-वंदित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
पंछी अपने नीड़ बनाएँ,
कल-कल सरिता बहती है।
जीव-जंतु सब प्रेम जताएँ,
नई जिंदगी पलती है।
नव पल्लव से सजा वृक्ष भी-
खुशियों से अनुरंजित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
रचे लेखनी रुचिकर रचना,
छवि मधुमास बसा मन में।
कवि-मन योगी जैसा रमता,
उच्च कल्पना के वन में।
ध्यान मग्न जो भाव उपजता-
होता मधुरस-सिंचित है।।
उपवन मधुकर-गुंजित है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
सुषमा दीक्षित शुक्ला
ये पवन बसन्ती मतवाली,
फागुन आया पीत बसन
राग रंग कुछ मुझे न भाता ,
जब से मथुरा गया किशन।
सपना सा हो गया सभी कुछ,
हुई कहानी सी बातें ।
रह रह उठती हूक हृदय में ,
कौन सुने मन की बातें।
सोच रही थी अपने मन में,
किशन कन्हैया मेरा है ।
नहीं जानती थी गोकुल में,
पंछी रैन बसेरा है ।
सोची बात नहीं होती है,
होनी ही होकर होती।
हंसकर जीना चाह रही थी
लेकिन है आंखें बहती ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
निशा अतुल्य
अतुकांत
जीवन
9.2.2021
शाख से गिरे पीले पत्ते
कुछ कहते हैं ,
देखो
कुछ दोहराते हैं,
जीवन का सार बताते हैं
होना है कल हमको भी जुदा
धीरे से समझातें हैं ।
खिलती कलियाँ
मुस्काती हैं
जीवन का राज बताती हैं
काँटो संग भी मुस्काना
झूम झूम बतलाती हैं ।
काले भँवरे यूँ डोल रहे
कलियों के मुख चूम रहें
गिर जाएगी कल ये कलियाँ
नई कली फिर आएगी
जीवन का सन्देश सुनाएगी ।
पतझड़ के बाद बसंत ही है
हर जीवन सुख दुख का डेरा
कभी साथ मिला इनका हमको
कभी हाथ छूटा जीवन का ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
डॉ. राम कुमार झा निकुंज
दिनांकः ०९.०२.२०२१
दिवसः मंगलवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
शीर्षकः बढ़े मान चहुँदिक प्रगति
गौरव है मुझको वतन , शत शत उसे प्रणाम।
बढ़े मान चहुँदिक प्रगति , जन धन यश सुखधाम।।
हो शिक्षा सब जनसलभ, स्वस्थ रहे जन गात्र।
जाति धर्म भाषा बिना , मानक बने सुपात्र।।
मर्यादित आचार हो , नित प्रेरक वात्सल्य।
मौलिकता पुरुषार्थ हो , कर्मशील साफल्य।।
साधु समागम कठिन जग, सद्गुरु दुर्लभ लोक।
मातु पिता भू गगन सम , मिले ज्ञान आलोक।।
राष्ट्रधर्म कर्तव्य हो , लोकतंत्र विश्वास।
परमारथ सेवा वतन , नीति प्रीति आभास।।
हरित भरित सुष्मित प्रकृति , ऊर्वर भू संसार।
तजो स्वार्थ संभलो मनुज , प्रकृति बने उपहार।।
यह ग्लेशियर चेतावनी , भूकम्पन तूफ़ान।
जलप्लावन ज्वालामुखी , रोक प्रकृति अपमान।।
जो कुछ जीवन में मिला , समझ ईश वरदान।
पाओ सुख संतोष को , खुशी प्रीति यश मान।।
सब प्राणी समतुल्य जग , सबका जग अवदान।
पंच भूत निर्मित जगत , जीओ बन इन्सान।।
जन मन मंगल भाव मन ,जन विकास अवदान।
जीवन अर्पित देश को , मातृशक्ति सम्मान।।
छवि निकुंज मन माधवी , खिले कुसुम मकरन्द।
फैले खुशियाँ अरुणिमा,धवल कीर्ति निशिचन्द।।
कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
निशा अतुल्य
मूषक
7.2.2021
सुनो गणेश
लंबोदर विशाल
सवारी चूहा ।
मूषक राज
करते मनमानी
है अभिमानी
लड्डू भाता
ले हाथ बैठ जाता
तुम्ही विधाता ।
प्रथम पूज्या
रिद्धि सिद्धि ले संग
बुद्धि प्रदाता ।
रोली, चँदन
तेरे भाल सजाऊँ
दूर्वा चढ़ाऊँ ।
मूषक राज
अर्जी लगाओ मेरी
सुनो पुकार ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
सुनीता असीम
हे कन्हैया मैं तुम्हें ज़िन्हार करती हूँ।
मान जाओ मैं तुम्हीं से प्यार करती हूँ।
*****
इक नज़र मुझपे कभी तो डाल लेना तुम।
दिल मेरा तुझसे लगा इकरार करती हूँ।
*****
तुम भले मिलना नहीं मुझसे कभी देखो।
नाम अपना नाम तेरे यार करती हूँ।
*****
दिल धड़कता है मेरा तब जोर से कान्हा।
आइने में जब तेरा दीदार करती हूँ।
*****
अब पराया और अपना भा नहीं सकता।
मान अपना सब तुझे श्रृँगार करती हूँ।
*****
मान जाओ हे सुदामा के सखा मोहन।
फिर न कहना मैँ नहीं मनुहार करती हूँ।
*****
अब सुनीता कह रही तुमसे यही माधव।
कंत अपना बस तुम्हें स्वीकार करती हूँ।
*****
ज़िन्हार=सावधान
सुनीता असीम
६/२/२०२१
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल
1
हल मसाइल का अगरचे आज तक निकला नहीं
क्यों निज़ाम-ए-सलतनत को आपने बदला नहीं
2.
उनके होंटो पर था कुछ आँखों में था कुछ और ही
इसलिए उस गुफ्तगू से दिल ज़रा बहला नहीं
3.
उनके उस पुरनूर चेहरे में झलकता दर्द था
यूँ भी उनके दर्मियाँ यह दिल मेरा मचला नहीं
4.
चाँद के नज़दीक जाकर यूँ पलट आया हूँ मैं
उनके जैसा ख़ूबसूरत चाँद भी निकला नहीं
5.
जब तवज्जो ही नहीं है इस तरफ़ सरकार की
दिल की इस बारादरी का हाल भी सँभला नहीं
6.
बेवफ़ाई के तेरे दामन पे गहरे दाग़ हैं
धोते धोते थक गया तू पर हुआ उजला नहीं
7.
इस सियासत में हैं *साग़र* हर तरफ़ रंगीनियाँ
कौन है वो शख़्स जो आकर यहाँ फिसला नहीं
🖋️विनय साग़र जायसवाल
6/2/2021
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-2
बचा रहा बस एक दिवस अब।
अइहैं रामहिं पुरी अवध जब।।
होवन लगे सगुन बड़ सुंदर।
अवधपुरी महँ बाहर-अंदर।।
दाहिन लोचन-भुजा भरत कय।
फरकन लगी सगुन कइ-कइ कय।।
सगुन होत हरषी सभ माता।
दिन सुभकर अस दीन्ह बिधाता।।
होय भरत-मन परम अधीरा।
काहे नहिं आए रघुबीरा ।।
पुनि-पुनि कहहिं कवन त्रुटि मोरी।
भूले हमका जानि अघोरी ।।
लछिमन तुमहीं रह बड़ भागी।
रहत नाथ सँग बनि सहभागी।।
कपटी जानि मोंहि बिसरायो।
यहिं तें नहीं अबहिं तक आयो।।
पर प्रभु दीनबंधु-जगस्वामी।
तारहिं पतित-खडुस-खल-कामी।।
अइहैं नाथ अवसि मैं जानूँ।
यहिं तें भवा सगुन मैं मानूँ।।
तेहि अवसर आयो हनुमाना।
बटुक-बिप्र कै पहिरे बाना।।
तापस भेषहिं भरत कुसासन।
सोचत रहे राम कै आवन।।
दोहा-देखि पवन-सुत भरत कहँ,बिकल नयन भरि नीर।
पुलकित तन हरषित भए,कहहिं बचन धरि धीर।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
नूतन लाल साहू
कारवां गुज़र गया
सजग नयन से तूने देखा
रवि का रथ पर चढ़कर आना
किन्तु कभी क्या तूने देखा
धीमी संध्या की गति को
कारवां गुज़र गया,पर
प्रकृति ने अपना नियम न बदला
याद आता है वह दिन, अब भी
जब तेरे मेरे,आंसू का मोल एक था
पल में ही परिवर्तित होकर
तेरे मेरे भाव अनेक हुआ
कारवां गुज़र गया,पर
नहीं समझ सका कि मांजरा क्या था
यदि तू ने आशा छोड़ी तो
समझो अपनी परिभाषा छोड़ी
एक चिड़िया अपनी चोंच में तिनका
लिए जा रहीं हैं
वह सहज भाव में ही
उंचास पवन को,नीचा दिखाती
कारवां गुज़र गया,पर
नहीं समझ सका,प्रभु की लीला को
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं,निर्माण का सुख
अंधेरी रात में दीपक
जलाते कौन बैठा है
कारवां गुज़र गया, पर
नहीं समझ सका,काल की चाल को
अति क्रुद्ध मेघो की कड़क
अति क्षुब्ध विद्युत की तड़त
इन्द्र धनुष की छंटा
प्रलयंकारी मेघो पर
कारवां गुज़र गया, पर
नहीं समझ सका,ये कौतूहल को
नूतन लाल साहू
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*दोहा-लेखन*
विनय
विनय सदा करते रहें,प्रभु का रखकर ध्यान।
निश्चित जग में यश बढ़े, मिले हमें सम्मान।।
काल
देश-काल सँग पात्र का,रख विचार कर काम।
मिले सदा फल मधुर जग,सुंदर हो परिणाम।।
भावना
जिसकी जैसी भावना,वैसी उसकी सोच।
प्रभु की छवि पाषाण में,दिखती निःसंकोच।
शब्द
अक्षर-अक्षर मिल बने,किसी शब्द का रूप।
शब्द करे स्पष्ट जग,क्या है ज्ञान अनूप??
दर्शन
दर्शन-पूजन से मिले,परम आत्मिक तोष।
प्रभु की महती कृपा से,बढ़े ज्ञान-धन-कोष।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372के
निशा अतुल्य
हमारी बेटियाँ
6.2.2021
नन्ही कलियाँ फूल बनेगी
इनसे ही बगियाँ महकेगी ।
खोल पँख गगन उड़ जाए
ये तो जा कर फ़लक छुएगी ।।
कोई कल्पना कोइ विलियम
कोई झांसी की रानी बनेगी ।
परचम फैराएगी गगन में
नई कहानी ये ही लिखेगी ।।
चिड़िया जैसी लगती कोमल
मेरी कॉम सी बलशाली है
पूरे जग में नाम करे ये
नाम फ़लक पर लिख आती है ।
दो दो कुल की लाज निभाती
सृष्टि का निर्माण करे ।
सींच रक्त,मांस,मज्जा से अपने
घर की मर्यादा रखे ।।
आँगन में जब मुस्काती
अपनी संवेदना महकाती
राज दुलारी मात-पिता की
सब में प्रेम विश्वास जगाती ।।
चलती रहती धुन में अपनी
आयाम नए नए गढ़ जाती
आँखों की चमक से अपनी
दोनों जहां चमकाती ।
स्वरचित
निशा अतुल्य
दीपक शर्मा
*मोहल्ला क्लाॅस*
बच्चों को इंतजार करते हुए
कई महीने हो गये
किंतु स्कूल अब तक तक नहीं खुला।
साहेब ने कह दिया -
"अब मोहल्ला क्लास पढ़ाइये।"
मैं हर रोज साढ़े आठ बजे
आॅफिस में दस्तखत बनाकर
चला जाता हूँ गाँव और झुग्गी बस्तियों की ओर
जहाँ घर के नाम पर
ज्यादातर
सरपत और घास-फूस की झोपड़ी मिलती है
और मिलते हैं
पुराने कच्चे खपरैल का मकान
जो ढहने की स्थिति में होते हैं
वर्ष में दो बार
चिकनी मिट्टी से इसकी लिपाई न की जाय
तो निश्चय ही ये ढह जायेंगे
पक्के मकान तो कहीं-कही ही दिखते हैं
बच्चों को ढूँढ़ते हुए
भारत माता के अनेक चेहरे
देखने को मिलते हैं
गाँव व झुग्गी बस्तियों में
इन बस्तियों में
नंग-धड़ंग बच्चे
कहीं कंचा, गड़ारी तो कहीं
चिब्भी खेलते हुए मिलते हैं
तथा खुले आसमान में
स्नान करती हुई औरतें भी
दिख जाती हैं
जो हमें देखते ही
साड़ी का पल्लू
गर्दन तक खींच लेती हैं
कुछ औरतें
घेरकर हमें खड़ी हो जाती हैं
पूछती हैं -
"हमारे लिए कोई नयी योजना है क्या?"
साथ ही साथ करती हैं अनेक शिकायतें -
"मारसाब हमें राशन कब मिलेगा?
लाॅकडाउन का पैसा
हमारे खाते में नहीं आया।
नन्हूकुआ का जूता और बस्ता फट गया है"
हम झूँझला उठते हैं
जी करता है कि कह दें कि
हमीं सरकार हैं क्या? "
तब कहाँ याद रहता है
हम सरकार न सही
किंतु सरकार के नुमाइन्दे तो हैं।
हमें जरा-सा
जुकाम या खाँसी आती है तो
भय-सा व्याप्त हो जाता है
कहीं हम कोरोना से ग्रसित तो नहीं
किंतु मोहल्ला क्लाॅस में न जाना
अपने उपर होने वाली
कार्यवाही की तैयारी होती है
हम माॅस्क लगाना नहीं भूलते
बच्चों से कहते हैं-
दूर-दूर बैठो!
मोहल्ला क्लाॅस के समय
बच्चों के पिताओं व दादाओं
जा रहे होते हैं
किसी मजदूरी की तलाश में
उनकी जिह्वा
सुखी रोटियों पर
स्वाद नहीं तलाशती
किंतु दूसरे का स्वाद
फीका न पड़ जाये
इसके लिए करते हैं वे
पुरजोर मेहनत।
हम उनका साइकिल रोककर कहते हैं -
"चाचा आपके पास ऐंड्रायड मोबाइल है क्या? "
वे चौंककर कहते-
"ऐंड्रायड मोबाइल!
जउना में फिलिम अउर गाना बजेला उहै का?"
उन्हें समझाना पड़ता-
"हाँ! वही मोबाइल,
उम्मा दीक्षा ऐप अउर रीड एलाँग
डाउनरोड करना है
बच्चे अब आॅनलाइन पढ़ेंगे"
वे दिखाते हैं कीपैड मोबाइल
या खाली जेब झाड़ देते हमारे सामने
"साहेब हमारे पास मोबाइल ही नहीं है। "
तो हमें कहना पड़ता -
"कउनो बात नहीं
बच्चे को मोहल्ला क्लास में भेजा कीजिए!
या हम आपके घर
खुद आया करेंगे
अब सरकार
मेरा घर मेरा विद्यालय योजना चला रही है
ऐसे ही रोज आयेंगे हम आपके घर
सिखायेंगे आपके बच्चों को
गणित और भाषा
मगर समस्या एक अजीब है
हम पढ़ाते हैं जब
बच्चों को
अग्रेंजी वर्णमाला का अक्षर एsss
खूँटे पर बँधी बकरियाँ चिल्लाती है मेsss
उनके अभिभावक थमा जाते हैं
मेरे हाथों में मोटा-सा डंडा
कहते हैं -
"इन्हें रोज-रोज पीटा कीजिए साहेब!
ई गदेला लोग अइसे नहीं पढ़ेंगे"
हम डंडा नहीं थामते
आधारशिला के माध्यम से
तलाशते हैं बच्चे का विकास दर
जानना चाहते हैं
बच्चे के कमजोरी का कारण
ढूँढ़ते हैं खुद में कमियाँ
और प्रेरणा लक्ष्य पाने के लिए
करते हैं घोड़ा-दौड़।
-दीपक शर्मा
जौनपुर उत्तर प्रदेश
मो0 8931826996
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
सजल
मात्रा-भार-21
समांत-आनी
अब तो लिखनी एक कहानी चाहिए।
लिखकर सबको इसे सुनानी चाहिए।।
विस्मृत लगती संस्कृति अपनी जैसे।
गाथा संस्कृति की पुरानी चाहिए।।
हैं पथ से भटक गए कृषक कुछ अपने।
नई सोच की उन्हें किसानी चाहिए।।
हुआ प्रदूषित नदी-तड़ाग-जल सारा।
निर्मल अब तो सबको पानी चाहिए।।
हुई है चाल सियासत की अति बिगड़ी।
अब तो चाल नहीं मनमानी चाहिए।।
चहुँ-दिशि मचा है हाहाकार जगत में।
समझे इसको,ऐसा ज्ञानी चाहिए।।
रखे समर्पण भाव जो राष्ट्र हेतु ही।
मित्रों,बस ऐसी ही जवानी चाहिए।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*गीत*(लोक-भाषा में)
डरबै उसरा पे मड़ैया,
चिरई तोहका लइ के ना।
नाहीं करबै हम ढिठैया-
चिरई तोहका लइ के ना।।
गर्मी-सर्दी सब कछु सहबै,
खेती करबै ना।
थोड़-मोड़ हम अन्न उगाइब,
जाइब बजरिया ना।
लेबै तोहका हम मीठैया-
चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे--------।।
गाय-भैंस हम पालब बबुनी,
उन्हैं चराइब ना।
साँझ-सकारे दुधवा दूहब,
दही जमाइब ना।
सँग-सँग खाइब हमहुँ मलैया-
चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे-----------।।
करब रोपाई धान क गोरिया,
माह सवनवाँ ना।
गैहा झूमि के तोहउँ कजरी,
पहिरि कँगनवाँ ना।
हमहूँ बनबै संग कन्हैया-
चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे-------------।।
फागुन मा जब आई होली,
होली खेलब लइ रँगवा।
तीज-दिवारी अउर दसहरा,
सभें मनाइब सँगवा।
नाचब सँग मा ताता-थैया-
चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे--------------।।
सुख कै जिनगी जीयल जाई,
छोड़ि सहरिया ना।
रूखा-सूखा खाइ के सजनी,
होई बसरिया ना।
ई जिनगी भूल-भुलैया-
चिरई तोहका लइ के ना-डरबै उसरा पे------------।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
सुनीता असीम
दिल के सूनेपन को अब आबाद कर।
ग़म नहीं सुख की ज़रा तादाद कर।
****
कर लिया दुश्मन बनाके सामना।
गाँठ दिल की खोलकर इतिहाद कर।
***
बाग मन का सूखकर कांटा हुआ।
गुल मुहब्बत के खिलाकर शाद कर।
***
मानता खुद को विधाता तू अगर।
अश्क से आँखें मेरी आजाद कर।
***
ध्यान अरचन कुछ नहीं करती कभी।
भक्ति में पैदा मेरी उन्माद कर।
***
नींव मेरी ज़िन्दगी की तू फ़कत।
हार दिल मुझपर मुझे नाबाद कर।
***
तू सुनीता का कन्हैया है अगर।
वो तुझे बस तू उसे ही याद कर।
***
इतिहाद= संधि/मेल
तादाद़= संख्या में बहुत
सुनीता असीम
5/2/2021
नूतन लाल साहू
पल दो पल की बातें
जिंदगी उसी को आजमाती है
जो हर मोड़ पर चलना जानता है
कुछ पाकर तो,हर कोई मुस्कुराता है
पर जिंदगी,उसी की होती है
जो सब कुछ खोकर भी
मुस्कुराना जानता है
बांसुरी से सीख लें
एक नया सबक,ये जिंदगी
सीने में लाख जख्म हो
फिर भी गुनगुनाती है
किसी पर हंसने से बेहतर है
किसी के साथ हंसे
क्योंकि छोटी छोटी खुशियां ही तो
जीने का सहारा बनती है
मै सच कहता हूं
आत्मविश्वास के साथ
पैदल चलना
संदेह में दौड़ने से
कहीं बेहतर है
ये क्या सोचेंगे,वो क्या सोचेंगे
दुनिया क्या सोचेंगी
इससे ऊपर उठकर कुछ सोच
मै सच कहता हूं प्यारे
जिंदगी सुकून का
दूसरा नाम हो जायेगी
जिंदगी उसी को आजमाती है
जो हर मोड़ पर चलना जानता है
कुछ पाकर तो, हर कोई मुस्कुराता है
पर जिंदगी उसी की होती है
जो सब कुछ खोकर भी
मुस्कुराना जानता है
नूतन लाल साहू
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
* सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-1
बंदउँ कमल चरन रघुराई।
सरसिज नयन लखन के भाई।।
पीत बसन धारी प्रभु रामा।
बरन मयूर कंठ अभिरामा।।
कर महँ धनुष-बान बड़ सोहैं।
पुष्पक बैठि नाथ मन मोहैं।।
रघुकुल-मनी जानकी-स्वामी।
बेद-सास्त्र-नीति अनुगामी।।
राम-चरन बंदत अज-संकर।
करउँ नमन ते चरन निरंतर।।
कपिन्ह समेत राम रघुनाथा।
स्तुति करउँ नाइ निज माथा।।
कुंद-इंदु अरु संख समाना।
गौर बरन संकर जग जाना।।
करहुँ प्रनाम तिनहिं कर जोरे।
रजनी-बासर, संध्या-भोरे।।
जगत-जननि पारबती माता।
संकर-पत्नी जग सुख-दाता।।
वांछित फल सिव देवन हारा।
जीवन-नैया खेवन हारा।।
दोहा-भजै जगत जे राम-सिव,ताकर हो कल्यान।
संकर-रामहिं कृपा तें, कारजु होय महान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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