*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-6
भेंटेउ राम सत्रुघन भाई।
लछिमन-भरतहिं प्रीति मिलाई।।
धाइ भरत सीता-पद धरेऊ।
अनुज शत्रुघन साथहिं रहेऊ।।
सभ पुरवासी राम निहारहिं।
कौतुक की जे राम सराहहिं।।
अगनित रूप धारि प्रभु रामा।
मिलहिं सबहिं प्रमुदित बलधामा।।
सभकर कष्ट नाथ हरि लेवा।
हरषित सबहिं राम करि देवा।।
रामहिं कृपा पाइ तब छिन मा।
रह न सोक केहू के मन मा ।।
बिछुड़ल बच्छ मिलै जस गाई।
मातुहिं मिले राम तहँ धाई ।।
मिलहिं सुमित्रा जा रघुराई।
कैकइ भेंटीं बहु सकुचाई।।
लछिमन धाइ धरे पद मातुहिं।
कैकेई प्रति रोष न जातुहिं ।।
सासुन्ह मिलीं जाइ बैदेही।
अचल सुहाग असीसहिं लेही।।
करहिं आरती थार कनक लइ।
निरखहिं कमल नयन प्रमुदित भइ।।
कौसल्या पुनि-पुनि प्रभु लखहीं।
रामहिं निज जननी-सुख लहहीं।।
जामवंत-अंगद-कपि बीरा।
लंकापति-कपीस रनधीरा।।
हनूमान-नल-नील समेता।
मनुज-गात भे प्रभु-अनुप्रेता।।
भरतहिं प्रेम-नेम-ब्रतसीला।
बहुत सराहहिं ते पुर-लीला।।
तिनहिं बुलाइ राम पुनि कहहीं।
गुरु-पद-कृपा बिजय रन पवहीं।।
पुनि प्रभु कहे सुनहु हे गुरुवर।
ये सभ सखा मोर अति प्रियवर।।
इनहिं क बल मों कीन्ह लराई।
रावन मारि सियहिं इहँ लाई।।
ये सभ मोंहे प्रान तें प्यारा।
प्रान देइ निज मोहिं उबारा।।
जदपि सनेह भरत कम नाहीं।
इन्हकर प्रेम तदपि बहु आहीं।।
दोहा-सुनत बचन प्रभु राम कै, मुदित भए कपि-भालु।
छूइ तुरत माता-चरन, छूए राम कृपालु ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372