अखिल भारतीय साहित्यिक मंच)सहरसा


 *साहित्य साधक मंच के द्वारा कवि सम्मेलन का शानदार आयोजन*


10 फरवरी 2021 के संध्या साहित्य साधक (अखिल भारतीय साहित्यिक मंच)सहरसा ,बिहार द्वारा आहूत आनलाईन काव्य गोष्ठी जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि साहित्यकार डॉ. राणा जयराम सिंह 'प्रताप' ने की।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री माधुरी डड़सेना 'मुदिता' जी थी l कार्यक्रम का श्री गणेश अध्यक्ष के द्वारा मां शारदे के प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन एवं विशिष्ट अतिथि के द्वारा माल्यार्पण के साथ हुआ, शिव प्रकाश साहित्य जी के शानदार संचालन में

कवयित्री डॉ. लता जी द्वारा सरस्वती वंदना की प्रस्तुति की गई।

प्रथमतः हरियाणा से उपस्थित सरला कुमारी द्वारा  किसान पर एक कविता प्रस्तुत की गई - 

"लिखती मैं किसान के लिए, लिखती मैं इंसान के लिए।

नहीं लिखती मैं धनवान के लिए, नहीं लिखती मैं भगवान के लिए।"

लखनऊ उत्तर प्रदेश से सरिता त्रिपाठी ने अपने कविता के माध्यम से कहा-प्रियतम तेरी याद में, हाल हुआ बेहाल। नैनो से आंसू झरे, तुमको नहीं ख्याल।।

छत्तीसगढ़ से आरती मैहर गीत ने श्रृंगार रस की एक कविता:-  देखें मैंने हैं कई सपने, होते उनमें मेरे अपने। पूरे कहां होते सपने,दगा दे जाते हैं अपने।

रायबरेली उत्तर प्रदेश से गीता पांडे अपराजिता ने प्रस्तुत किया:-सागर की गहराई में, जैसे कोई फूल खिला हो। कौन कहेगा अबला नारी, सचमुच तू तो सबला हो। वहीं इस कार्यक्रम में डॉ. विनय सिंह, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश

,सुरंजना पाण्डेय, पश्चिमी चंपारण बिहार,प्रीति चौधरी "मनोरमा", बुलन्दशहर, उत्तरप्रदेश,अंजना सिन्हा रायगढ़,संदीप यादव, अधिवक्ता, उच्च न्यायालय-इलाहाबाद,डॉ लता,नई दिल्ली,रेखा कापसे "होशंगाबादी" म.प्र.,नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई,जितेन्द्र कुमार वर्मा खैरझिटीया छत्तीसगढ़,संतोष कुमार वर्मा"कविराज' कोलकाता,डॉ राजश्री तिरवीर, बेलगांव कनार्टक,अमर सिंह निधि, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश,सुशीला जोशी, विद्योतमा, मुजफ्फरनगर,राधा तिवारी 'राधेगोपाल' उत्तराखंड,प्रियदर्शनी राज,जामनगर गुजरात,संतोष अग्रवाल,मध्य प्रदेश

मीना विवेक जैन, मंच के राष्ट्रीय सलाहकार सपना सक्सेना दत्ता, तोरणलाल साहू, अमित कुमार बिजनौरी, केवरा यदु मीरा, अनुश्री, सहित कई प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।


वही दूसरे चरण में वर्तमान राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शशिकांत शशि जी को राष्ट्रीय महासचिव, तथा सियाराम यादव मयंक को राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया साथ ही राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अमर सिंह निधि एवं सह मीडिया प्रभारी अमन आर्या को बनाया गया।

अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि आदरणीया माधुरी डड़सेना 'मुदिता' जी ने कहा:- बड़े हर्ष की बात है, कि आज साहित्य साधक मंच अपने ऊंचाई को छूने के लिए लालायित है,और इस दृष्टिकोण से सप्ताह भर में कई विधाओं में साहित्यकार सृजन कर रहे हैं। उन्होंने नवांकुर साहित्यकारों के प्रति विशेष स्नेह व्यक्त किया जो अपने जिज्ञासानुरूप अपने भावों को सर्जन विधा में स्थान देकर आगे बढ़ा रहे हैं । उन्होंने साहित्य साधक मंच के मुख्य अतिथि पद के रूपमें सबों के प्रति साधुवाद एवं आभार जताया। अध्यक्षीय उद्बोधन में आदरणीय डॉ. राणा जयराम सिंह 'प्रताप' ने साहित्यकारों को मंचीय अनुशासन का अनुपालन करते हुए निरन्तर साहित्य-साधना करते रहने और मंच को प्रगति-शिखर की ओर गतिमान करने की अपील की। अंत मेंमंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्ण कुमार क्रांति ने धन्यवाद ज्ञापन में मंच के समस्त साहित्यकारों के प्रति उनके योगदान के लिए साधुवाद और बहुत-बहुत आभार व्यक्त किया।

सुनीता असीम

 विषय-मां पर दोहे


मां की सेवा सब करो, कर दे बेड़ा पार।

तीन देव से है बड़ी,इसपर सब बलिहार।

***

मत मांगे तू भीख यूँ, करके हाथ पसार।

दुख भरे सुख करनी मां,महिमा अपरम्पार।

***

फैला देती रोशनी,देखे जिस जिस ओर।

मात कृपा हो हर दिशा,न ओर मिले न छोर।

***

आंचल में हो दुख भले, सुख की करे बयार।

महकाती है सृष्टि यूँ, जैसे  दाल  बघार।

***

जितनी हो सेवा करो,जब तक टूटे तार।

पछताना मत बाद में, दिना बचे हैं चार।

***

सुनीता असीम

११/२/२०२१

सुषमा दिक्षित शुक्ला

 बासन्ती विरह 


सुनु आया मधुमास सखि,

 लगा हृदय बिच बाण ।


देहीं तो सखि  है यहाँ ,

 प्रियतम ढिंग हैं प्राण ।


केहिके हित संवरूं सखी,

 केहि हित करूं सिंगार।


 बाट निहारूं रात दिन ,

क्यूँ सुनते नाहि पुकार।


 ऋतु बासन्ती सुरमई ,

पिया मिलन का दौर ।


 पियरी सरसों खेत में ,

बगियन  में है  बौर ।


कैसो ये मधुमास सखि,

जियरा  चैन ना पाय ।


नैनन से आंसू  झरत ,

उर बहुतहि अकुलाय ।


 पिय कबहूँ तो आयंगे ,

वापस घर की राह ।


बाट निहारूँ दिवस निसि ,

उर धरि उनकी चाह।


 सबके प्रियतम संग हैं ,

बस मोरे हैं परदेस।


 जियरा तड़पत रात दिन ,

याद नहीं कछु शेष ।


मन मेरो पिय सँग  है,

 ना भावे कोई और ।


वो दिन सखि कब आयगो ,

 पिय सिर साजे मौर ।


 रात दिवस  नित रटत हूँ,

 मैं उनही को नाम ।


उनके बिन ना चैन उर,

ना  मन को आराम ।


डर लागत है सुनु सखी ,

वह भूले तो नाह ।


 हम ही उनकी प्रेयसी ,

हम ही उनकी चाह।


ऋतु बासंती सुनु ठहर ,

जब लौं  पिया ना आय ।


तू ही सखि बन जा मेरी,

 प्रियतम  दे मिलवाय ।


 सुषमा दिक्षित शुक्ला

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *मधुमास*(चौपाइयाँ)

आया अब मधुमास सुहाना।

प्रियजन को है गले लगाना।।


आम्र-मंजरी महँ-महँ महँके।

खग-कुल प्रमुदित होकर चहके।।


मदमाते भौंरे मड़राएँ।

कलियाँ भी खिल-खिल इतराएँ।।


कमल-पुष्प सँग सर अति शोभन।

जिन्हें देख हर्षित हों लोचन।।


कोयल-बोल लगे मन-भावन।

प्रकृति सुंदरी-रूप सुहावन।।


प्रियतम की यादें हैं आतीं।

कहें लताएँ भी बलखातीं।।


कामदेव भी वाण चलाएँ।

सृष्टि-धर्म-दायित्व निभाएँ।।


है मधुमास तुम्हारा स्वागत।

अर्चन-वंदन हे अभ्यागत।।


थलचर-जलचर-नभचर सब में।

प्रेम-संचरण हो सब उर में ।।

           "©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 माँ

           *माँ*

देती है जन्म माँ ही,तुमको भी और हमको,

कर लो सफल ये जीवन,छू-छू के उस चरण को।।


सह-सह के लाख विपदा,माँ ने तुम्हे है पाला,

गीले में खुद को रख कर,पोषा है निज ललन को।।


त्रिदेव को सुलाया,पलने पे माँ की ममता,

सीता को माँ है माना,शत-शत नमन लखन को।।


माता विधायिका है,है रक्षिका व पालिका,

झुकता रहे ये मस्तक,उसके ही नित नमन को।।


निर्मित है होती संस्कृति,माँ के ही संस्कारों से,

उनपर करो ही अर्पण,नित प्रेम के सुमन को।।


माँ ही तो होती लक्ष्मी,दुर्गा-सरस्वती भी।

हो प्रेम-वारि अर्पित,जीवन के इस चमन को।।


चिंतन व धर्म-कर्म की,है केंद्र-बिंदु माँ ही,

होने न व्यर्थ देना,उस ज्ञान-कोष-धन को।


माता से श्रेष्ठ होता,कोई नहीं जगत में,

रखना सदा सुरक्षित,शिक्षा-प्रथम-सदन को।।

                    © डॉ0हरि नाथ मिश्र

                      9919446372

मौनी अमावस्या आशुकवि नीरज अवस्थी

 आज मौनी अमावस्या के उपलक्ष्य में मेरे द्वारा रचितकुदरती दोहे--


घन के उर से कर रही रिमझिम बूंदे गान।

बिना भेद के कर रही अभिसिंचित श्रीमान।

भीग गया तन मन मेरा भीग गये है प्रान।

मौन अमावस्या सुखद हुआ करो स्नान।


मौन धरो दानी बनो जब तक यह में प्रान।

गुरुवारी मौनी पड़ी करो दान स्नान।

दान पुण्य के साथ ही करो प्रेम व्यवहार।

जन जन में उपजाइये शिक्षा प्रद सहकार।

ठिठुरन आयी लौट कर लगे सभी को शीत।

जीवन मे सबको मिले सीधा सच्चा मीत।

राग द्वेष मिट जाय सब संकट का हो अंत।

सबको शुभ कारी लगे सुंदर सुखद बसन्त।

सोमवती मौनी अमावस्या पर विशेष-

आत्मीय मित्रो आज सोमवती मौनी अमावस्या पर मौन व्रत एवम मौन रहते हुए स्नान का महत्व है।स्मृतिशेष मेरी पूज्य माता जी का कथन है कि "याक चुप्प म हजार बलाई टरती है" वास्तव में आप के पास सबसे बड़ा साधन अस्त्र शस्त्र है कोई तो वह मौन है अतः जब भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़े मौन आपको सारी समस्याओं से निजात देकर लक्ष्य तक पहुंचाएगा।आप सभी लोग सदैव प्रसन्न रहे।

आशुकवि नीरज अवस्थी मो0-9919256050

💐💐💐💐💐

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।। सूरत नहीं सीरत मायने रखती है*

*किरदार की जिन्दगी में।।*


जैसा देते आप     यहाँ वैसा

ही लौट कर    आता है।

विश्वास     घाती एक   दिन

खुद भी धोखा खाता है।।

आज नहीं तो    कल   मिल

जाता    है     छल  उन्हें।

आदर देने वाला ही   सामने

से      सम्मान   पाता है।।


तिल तिल कर    मरना  नहीं

मुस्करा कर ही जीना है।

वास्तविक आनंद  जीवन में

मेहनत  खून  पसीना है।।

छोड़ कर देखो    अहम   को

मंत्र जीने का आ जायेगा।

मत गवांना   इस जीवन  को

एक अनमोल नगीना है।।


कभी बहुत मुश्किल तो कभी

आसान    भी है  जिन्दगी।

कश्मकश भी बहुत  तो  कभी

नादान      भी है जिन्दगी।।

लाखों रंग समेटे हुए  जिन्दगी

अपनी   इस        जंग में।

हर   सवाल   का जवाब लिये

ऐसा इम्तिहान है  जिंदगी।।


हार और   जीत     तो  हमारी

सोच    का   किस्सा  है। 

गर मन में ठान लिया तो जीत

बनती हमारा हिस्सा है।।

वक्त की कद्र करो   तो  समय

करता  हमारी  इज़्जत।

किरदार की  खूबसूरती से  ही

मिटता    हर घिस्सा है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

बच्चों के लिए स्कूल खुलने पर छोटी सी रचना - "आहिस्ता ही सही गुलज़ार हुई बगिया को देख, था तिमिर घिर चुका दानिस्ता तदबीर को देख"- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

 बच्चों के लिए स्कूल खुलने पर छोटी सी रचना

            ______गज़ल_____

आहिस्ता ही सही गुलज़ार हुई बगिया को देख,

था तिमिर घिर चुका दानिस्ता तदबीर को देख।


अब कोरोना का ये दरिया थम गया है जहां में,

चल रहे थे कशमकश सारे हर नशेमन को देख।


खिल उठें  हैं  चेहरे नज़ारे  हैं अदीवा देख सारे,

है हक़ीकत शिक्षा का मंदिर उसकी अडीना को देख।


अब ये खुशियां वाबस्ता हैं बच्चों सी जागीर से,

दामन सारा भीग गया मुदर्रिस के हौसले को देख।


है ये गौरव शिक्षा जनसलभ कायद़े-कानून से

फैले गांव से शहरों तलक अब सफ़ीने को देख।


हम तो सजदे में खड़े हैं तहज़ीब के पेश-ए- नज़र,

फैली खुशियां अरुणिमा है व्याकुल मुदर्रिस को देख।


    दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल


गुलज़ार - खिला हुआ बाग-बगीचा

दानिस्ता तदबीर - सोच कर निकाली हुई युक्ति

नशेमन - घर, घोंसला

आदीवा - सुखद, कोमल

अडीना - पवित्र, गुडलक

वाबस्ता - जुड़ी हुई

मुदर्रिस - शिक्षक या अध्यापक

सफ़ीने - आदेश पत्र, समन, नाव, कश्ती

अरुणिमा - लालिमा




डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-6

भेंटेउ राम सत्रुघन भाई।

लछिमन-भरतहिं प्रीति मिलाई।।

     धाइ भरत सीता-पद धरेऊ।

    अनुज शत्रुघन साथहिं रहेऊ।।

सभ पुरवासी राम निहारहिं।

कौतुक की जे राम सराहहिं।।

     अगनित रूप धारि प्रभु रामा।

      मिलहिं सबहिं प्रमुदित बलधामा।।

सभकर कष्ट नाथ हरि लेवा।

हरषित सबहिं राम करि देवा।।

     रामहिं कृपा पाइ तब छिन मा।

     रह न सोक केहू के मन मा ।।

बिछुड़ल बच्छ मिलै जस गाई।

मातुहिं मिले राम तहँ धाई ।।

     मिलहिं सुमित्रा जा रघुराई।

      कैकइ भेंटीं बहु सकुचाई।।

लछिमन धाइ धरे पद मातुहिं।

कैकेई प्रति रोष न जातुहिं ।।

     सासुन्ह मिलीं जाइ बैदेही।

      अचल सुहाग असीसहिं लेही।।

करहिं आरती थार कनक लइ।

निरखहिं कमल नयन प्रमुदित भइ।।

    कौसल्या पुनि-पुनि प्रभु लखहीं।

     रामहिं निज जननी-सुख लहहीं।।

जामवंत-अंगद-कपि बीरा।

लंकापति-कपीस रनधीरा।।

     हनूमान-नल-नील समेता।

     मनुज-गात भे प्रभु-अनुप्रेता।।

भरतहिं प्रेम-नेम-ब्रतसीला।

बहुत सराहहिं ते पुर-लीला।।

      तिनहिं बुलाइ राम पुनि कहहीं।

       गुरु-पद-कृपा बिजय रन पवहीं।।

पुनि प्रभु कहे सुनहु हे गुरुवर।

ये सभ सखा मोर अति प्रियवर।।

      इनहिं क बल मों कीन्ह लराई।

       रावन मारि सियहिं इहँ लाई।।

ये सभ मोंहे प्रान तें प्यारा।

प्रान देइ निज मोहिं उबारा।।

      जदपि सनेह भरत कम नाहीं।

       इन्हकर प्रेम तदपि बहु आहीं।।

दोहा-सुनत बचन प्रभु राम कै, मुदित भए कपि-भालु।

         छूइ तुरत माता-चरन, छूए राम कृपालु ।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                             9919446372

नूतन लाल साहू

 रहस्य


अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है

संतुष्टि सबसे बड़ा संपत्ति

मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत, और

वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता होता है

अजर, अमर,अविनाशी प्रभु जी

बिगड़े काम बनाता है

एकाध यदि न हो पाया तो

इंसान,क्यूं शोर मचाता है

अगर कुछ अहित हो भी जाए तो

खो मत देना होश

हरि की इच्छा समझकर

कर लेना संतोष

प्रारब्धो का योग फल है

दुःख सुख की सौगात

आम आदमी यूं लगा है

जैसे कि पिचका आम

संतुष्टि सबसे बड़ा संपत्ति और

मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत है

होनी तो होकर ही रहेगा

बदल सका न कोय

चाहे कितना ही निरमा मलो

कौव्वा,हंस न होय

जिन प्रश्नों का हल,इंसान को

समझ में नहीं आ रहा है

उन्हें छोड़ दें,प्रभु जी पर

पर,समय बर्बाद न कर

समय आयेगा समय पर

इसको निश्चित जान

एक तुम्हारे ही नहीं है

सबके दाता है,प्रभु श्री राम

अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है

संतुष्टि सबसे बड़ा संपत्ति

मुस्कुराहट सबसे बड़ी ताकत और

वफादारी सबसे अच्छा रिश्ता होता है


नूतन लाल साहू

नूतन लाल साहू

 आलस्य


जिसने कहां कल

दिन गया टल

जिसने कहां परसो

बीत गए बरसो

जिसने कहां आज

उसने किया राज

अंदर मन का ताला खोल

हो जायेगा,निज से पहचान

खुल गया,अंदर का कण कण तो

बढ़ जायेगी,जीवन की शान

दैव दैव तो आलसी पुकारे

दूर करे,आंखो का परदा

जग की ममता को छोड़

भगवान से नाता जोड़

जिस जिस ने प्रभु से प्यार किया

श्रद्धा से मालामाल हुआ

एक शब्द दो कान है

एक नज़र दो आंख है

यूं तो गुरु गोबिंद एक ही है

झांक सके तो झांक

मत उलझो, तुम

जहां के झूठे ख्यालों में

जो अपने को जान गया

वो ही भवसागर पार हुआ

पाया है,मानुष का यह तन

नर से तू बन जा,नारायण

वर्तमान को साथ ले

बीते से कुछ सीख

चाहता है,परम सुख तो

आलस्य को त्याग दें

जिसने कहां कल

दिन गया टल

जिसने कहां परसो

बीत गए बरसो

जिसने कहां आज

उसने किया राज


नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।लहरों से सीखिये गिर गिर कर*

*फिर उठना।।*


इक जर्रा भी      आफताब

बन   सकता   है।

इक लफ्ज़    भी   जज्बात

बन  सकता   है।।

करने वाले कर   देते  चाहे

हालात कैसे  हों।

डूबते को  तिनका भी बन

खैरात  सकता है।।


बुरे वक्त में ही    अच्छे   बुरे

की पहचान होती है।

ढूंढो समाधान  तो    जिंदगी

आसान    होती  है।।

बिखर  कर   भी     संवरना 

सीखो    दुनिया में।

फिर  हर       तकलीफ  दूर

आसमान  होती है।।


हर लहर   गिर    कर    नये

जोश से   उठती है।

हर कठनाई   हौंसलों     के

आगे झुकती    है।।

परीक्षा समझ   कर    सहो

हर   दुःख      को।

मुस्कराने से ही   तकलीफ

हर   रुकती     है।।


खुद पे रखो यकीन तो बुरा

वक्त    गुज़र जाता है।

सब्र से धागा  उलझनों  का

पल में सुलट जाता है।।

मन मस्तिष्क शीतल     रहे

हर     निर्णय      में।

बिगड़ कर भी   हर हालात 

फिर सुधर जाता है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

निशा अतुल्य

 लेखनी और विचार

10.2.2021



बहती मन की भावना

कभी आँखों के रास्ते राह बनाती 

कभी लेखनी से पिघल जाती 

मैं हो कभी आहत 

संभलती,उठती,चलती जाती ।


विचारों की लौ जलाती नकारात्मकता 

जिसे नहीं समझ पाती दुनिया

करती परिहास विचारों का मेरे 

चलती लेकर संग बेवज़ह स्वयं की कुंठा ।


मन के उद्गार मेरे 

निरन्तर करते यात्रा

मन से मस्तिष्क तक 

बन कर ज्वाला निकलते

लेखनी से मेरे ।


पिघलते,मचलते,जलते विचार 

करें खड़ा 

बनाने को एक भगत,राजगुरु, आजाद 

 फिर से पाने को स्वतंत्रता 

अपनी मानसिक परतंत्रता से 

मन से मस्तिष्क तक उमड़ते

बिखरते,संवरते,पिघलती लेखनी से

हो पंक्ति बद्ध साथ मेरे चलते 

बहते मनोभाव मेरे ।


स्वरचित 

निशा"अतुल्य"

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल ----


कैसे उत्तर दे पाते हम दानिस्ता तदबीर से 

निकले हैं मफहूम हज़ारों उसकी इक तहरीर से


शायद उसको रोक रहीं हैं रस्मे-वफ़ा की ज़ंजीरें 

रो रो कर लिपटा जाता है वो मेरी तस्वीर से


प्यार मुहब्बत की यह दुनिया हर कोशिश आबाद रहे 

सारी ख़ुशियाँ वाबस्ता हैं इस दिल की जागीर से


कहने को तो सारी दूरी तय कर लेते हम यारो

बाँध दिये हैं पाँव किसी ने क़समों की ज़ंजीर से


ऐ दुनिया कुछ ख़ौफ नहीं है इन ऊँची दीवारों का 

हिम्मत वाले कब डरते हैं ख़्वाबों की ताबीर से


आँखों से आँसू बहते हैं दामन भीगा भीगा है 

कैसे दिल का हाल सुनायें हम उनको तफ़सीर से


शायद हम भी बिक ही जाते इन दिलकश बाज़ारों में

चलती रही है जंग हमारी सारी उम्र ज़मीर से


किस किस का अफ़सोस करें कैसे दिल के ज़ख़्म भरें

कर देता है वार कई वो ज़ालिम इक इक तीर से


हार गये हम एक नशेमन की तामीर में  ही *साग़र* 

बनते हैं यह  महलों से घर शायद सब तक़दीर से


🖋 *विनय साग़र जायसवाल*

दानिस्ता तदबीर -सोच कर निकाली हुई युक्ति

वाबस्ता-जुड़ी हुई 

ख़्वाबों की ताबीर-सपनों का फल 

नशेमन-घोंसला , घर ,नीड़

तफ़सीर-विस्तार ,व्याख्या सहित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *त्रिपदियाँ*

देव-भूमि पर विपदा आई,

संभव नहीं हानि-भरपाई।

कोप प्रकृति का है यह भाई।।

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पिघल ग्लेशियर हुआ प्रवाहित,

नदियों में घर हुए समाहित ।

हुए सभी जन हतोत्साहित।।

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प्रकृति संतुलन को है कहती,

मनुज-सोच है बहुत फितरती।

भौतिक-सुख उद्देश्य समझती।।

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ऐसी सोच बदलनी होगी,

प्रकृति की रक्षा करनी होगी।

सुख-सुविधा कम रखनी होगी।।

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वन-संरक्षण ही ध्येय रहे,

पर्वत-सरिता से नेह रहे।

तभी सुरक्षित भव-गेह रहे।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

गायत्री जैन जी मन्दसौर की बेटी पर कविता अवश्य सुने

 गायत्री जैन जी मन्दसौर की बेटी पर कविता अवश्य सुने


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-5

सानुज धरे चरन गुरु रामा।

मुनि नायक बसिष्ठ अरु बामा।।

     कहहु राम आपनु कुसलाई।

      पूछे गुरु तब कह रघुराई।।

गुरुहिं कृपा रावन-बध कीन्हा।

लंका-राज बिभीषन दीन्हा।।

    जाकर गुरु-पद महँ बिस्वासा।

     पूरन होहि तासु अभिलासा।।

भरतै धाइ राम-पद धरेऊ।

जिनहिं देव-सिव-ब्रह्मा परेऊ।।

     प्रभू-चरन गहि भरत भुवालू।

     विह्वल भुइँ पे परे निढालू।।

बड़े जतन प्रभु तिनहिं उठाए।

पुलकित तन प्रभु गरे लगाए।।

छंद-अइसन मिलन प्रभु-भरत कै,

              मानो मिलन रस लागहीं।

       अपनाइ तनु जिमि रस सिंगारहिं,

              प्रेम-रस सँग पागहीं ।।

सोरठा-जब पूछे श्रीराम, रहे बरस दस चारि कस।

           रटतै-रटतै राम,कहे भरत सुनु भ्रात तब।।

                           डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

भारत के इक्कीस परमवीर का लोकार्पण 14 फरवरी को हिंदी भवन दिल्ली में।

 भारत के इक्कीस परमवीर का लोकार्पण 14 फरवरी को हिंदी भवन दिल्ली में।


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हिन्दी साहित्य के लिये अनुपम  ऐतिहासिक,काव्य ग्रन्थ, शौर्य पराक्रम की भाषा का काव्य ग्रन्थ, देश के इक्कीस परम वीर चक्र विजेताओं की सर्वोच्च वीरता का अंतरराष्ट्रीय  काव्य ग्रन्थ " भारत के इक्कीस परम वीर"  का लोकार्पण समारोह 14 फरवरी 2021 को  देश की राजधानी दिल्ली के हिन्दी भवन में  होगा। जिसमें भारत के कई राज्यों के एवं विदेश के रचनाकार सहभागिता करेंगे।

भारत के इक्कीस परमवीर संकलन के सम्पादक प्रख्यात साहित्यकार एवं काव्यकुल संस्थान के अध्यक्ष डॉ राजीव कुमार पाण्डेय ने बताया  बताया कि  भारत ने अपने वीर जाँबाज सैनिक जिन्होंने अपने अदम्य साहस  बलिदान से देश के स्वाभिमान की रक्षा की और राष्ट्रीय ध्वज की मर्यादा को अक्षुण्ण बनाये रखा,युद्ध भूमि में दुश्मन के दांत खट्टे कर विजय पताका फहराई । उन्हें भारत ने अपने सर्वोच्च सैनिक सम्मान से परम वीर चक्र से सम्मानित किया। 

देश के ऐसे सच्चे वीर सपूतों की वीरता को हिंदी साहित्य में उचित स्थान मिले और हमारी पीढियां उनके चरित्र को पढ़कर गौरव कर सकें एवं देश के लिये सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकें । इसलिये काव्यकुल संस्थान ने  अंतरराष्ट्रीय स्तर नवम्बर में परम वीर चक्र विजेताओं पर डिजिटल रूप से 151 कवियों का कवितापाठ कराकर एक रिकॉर्ड स्थापित किया था। उन्हीं में से  चयनित 101 कवियों  की रचनाएं संकलित कर *भारत के इक्कीस परमवीर* काव्य संकलन तैयार किया गया जिसमें संकलन कर्ता के दायित्व को वरिष्ठ गीतकार ओंकार त्रिपाठी ने निभाया। इस ग्रन्थ को सुंदर कलेवर में जिज्ञासा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। 

श्री पाण्डेय ने बताया  कि इस ग्रन्थ का भव्य लोकार्पण 14 फरवरी रविवार दोपहर 2 बजे हिंदी भवन विष्णु दिगम्बर मार्ग दिल्ली में होगा,जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में जनरल (डॉ) वी के सिंह (सेवानिवृत्त) केंद्रीय राज्य मंत्री सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय  होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली नगर निगम के पूर्व महापौर एवं दिल्ली साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेश चंद्र शर्मा करेंगे।  इस भव्य समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल विष्णुकांत चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) , एडीशनल डीजी बीसी एफ पी के मिश्र, प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया के चेयरमैन  सी एम प्रसाद, वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक ओम निश्छल, वरिष्ठ कवयित्री डॉ इंदिरा मोहन, के कर कमलों द्वारा इस ग्रन्थ का लोकार्पण भारत के कई राज्यों से आये साहित्यकारों एवं बुद्धिजीवियों के समक्ष किया जाएगा।

इस अवसर पर इस ग्रन्थ के रचनाकारों को परमवीर सृजन सम्मान से अलंकृत किया जायेगा।

विराट कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये आयोजन समिति में यशपाल सिंह चौहान, ब्रज माहिर, अनुपमा पाण्डेय 'भारतीय' कुसुमलता 'कुसुम' दीपा शर्मा, गार्गी कौशिक, राजेश कुमार सिंह 'श्रेयस' डॉ रजनी शर्मा 'चन्दा' , अशोक राठौर,  राजीव कुमार गुर्जर को लिया गया है।


प्रेषक 

डॉ राजीव कुमार पाण्डेय 

राष्ट्रीय अध्यक्ष 

काव्यकुल संस्थान(पंजी) गाजियाबाद

मोबाइल -9990650570

ईमेल - kavidrrajeevpandey@gmail.com

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-4

अवधपुरी महँ प्रकृति सुहानी।

नगरी भे जनु सोभा-खानी।

      त्रिबिध समीर बहन तब लागा।

       धारि उरहिं रामहिं अनुरागा।

सीतल सलिला सरजू निरमल।

लागल बहै प्रसांत-अचंचल।।

    परिजन-गुरु अरु अनुज समेता।

     चले भरत जहँ कृपा-निकेता।।

चढ़ि-चढ़ि भवन-अटारिन्ह ऊपर।

नारी लखहिं बिमान प्रभू कर ।।

     पूर्णचन्द्र इव प्रभु श्रीरामा।

      अवधपुरी सागर अभिरामा।।

पुरवासी सभ लहर समाना।

लहरत उठि-उठि लखैं बिमाना।।

     कहहिं राम लखाइ निज नगरी।

      लखु,कपीस-अंगद बहु सुघरी।।

लखहु बिभीषन-कपि तुम्ह सबहीं।

अवधपुरी सम नहिं कहुँ अहहीं।।

     सरजू सरित बहै उत्तर-दिसि।

     मम नगरी बड़ सुघ्घर जस ससि।।

बड़ पवित्र अह सरजू-नीरा।

मज्जन करत जाय जग-पीरा।।

      मम संगति-सुख ताको मिलई।

      मज्जन करन हेतु जे अवई ।।

परम धाम मम नगर सुहावन।

बहु प्रिय मम पुरवासी पावन।।

      प्रभु-मुख सुनि अस नगर-बखाना।

      भए मगन कपि-भालू नाना ।।

धन्य भूमि अस सभ पुरवासी।

होंहिं जहाँ कर राम निवासी।।

     उतरा झट बिमान तेहिं अवसर।

       पाइ निदेस राम कै सर-सर।।

दोहा-उतरि यान श्रीराम कह,पुष्पक जाहु कुबेर।

         रखि के हरष-बिषाद उर,उड़ बिमान बिनु देर।।

        प्रभु-बियोग कृष बपु-भरत,लइ बसिष्ठ गुरु बाम।

        पुरवासिन्ह लइ संग निज,गए पहुँचि जहँ राम।।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

नूतन लाल साहू

 विश्वास


दुनिया का सबसे सुंदर पौधा

विश्वास होता है

जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है

उठ जाग मुसाफिर,भोर भई

अब रैन कहा, जो सोवत है

जो सोवत है,वो खोवत है

जो जागत है,सो पावत है

जो कल करना है,आज कर लें

जो आज करना है,वो अब कर लें

जब चिड़ियों ने चुग गया खेत तो

फिर पछतावे,क्या होवत है

कैसे बैठे हो,आलस में

तुमसे राम नाम कहा न जाय

जानकी नाथ सहाय करें तब

कौन बिगाड़ करे नर तेरा

दुनिया का सबसे सुंदर पौधा

विश्वास होता है

जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है

सोचत सोचत उमर बीत गई

काल, शीश मंडराय

लख चौरासी योनि भटक

बड़े भाग्य से,मानुष देह पाया है

डरते रहो कि यह जिंदगी

कहीं बेकार न हो जाये

मंजिल असल मुकाम की

तय करनी है, तुम्हें

राजा भी जायेगा,जोगी भी जायेगा

गुरु भी जायेगा,चेला भी जायेगा

माता पिता और भाई बन्धु भी जायेंगे

और जायेगा,रुपयों का थैला

जानकी नाथ सहाय करें तब

कौन बिगाड़ करै,नर तेरा

वो ही तो,भक्त जनों का संकट

क्षण में दूर करेगा

दुनिया का सबसे सुंदर पौधा

विश्वास होता है

जो जमीन में नहीं,दिलो में उगता है


नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।। यह जीवन आज और बस इसी*

*पल में है।।*


यह जीवन आज   और  बस

इसी   पल   में    है।

वह जीता नहीं   जिन्दगी जो

रहता  कल में    है।।

ना राज ना  नाराज़    जीवन

बसता बस आज में।

जो सोचता भविष्य  की सदा

वो जीता छल में है।।


आज में ही   आनन्द  का हर

आभास    लीजिए।

अच्छे कल की मत  आज ही

आप आस कीजिए।।

यदि आज अच्छा है  तो कल

खुद   संवर जायेगा।

बस संबकोअच्छी भावना का

अहसास    दीजिए।।


हर रोज़  जिन्दगी   एक   नया

आज    देती     है।

कर्म ही    होती  पूजा      यही

आवाज़  देती   है ।।

तेरा कल तेरे  आज   का    ही

होता    है  सुफल।

रोज़ ही   जिन्दगी संबको यही

आगाज़    देती  है।।


कल की सोच कर   जो हमेशा

दुःखी    रहता   है।

आज को भी खो कर   नहीं वो

सुखी    रहता   है।।

जान लो बिना मेहनत   निराशा

ही हाथ है   लगती।

करे हर काम समझ के वो सदा

बहुमुखी  रहता   है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।*

मोब।।             9897071046

                      8218685464

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल-


आँखों आँखों में  दास्तान हुई

यह ख़मोशी भी इक ज़ुबान हुई


इक नज़र ही तो उसको देखा था

इस कदर क्यों वो बदगुमान हुई 


कैसा जादू था उसकी बातों में

एक पल में ही मेरी जान हुई


इस करिश्मे पे दिल भी हैरां है 

 वो जो इस दर्जा मेहरबान हुई


मिट ही जाते हैं सब गिले शिकवे 

गुफ्तगू  जब भी दर्मियान हुई 


जब से वो शामिल-ए-हयात हुए

ज़िंदगी रोज़ इम्तिहान हुई


इक लतीफ़े से कम नहीं थी वो

बात जो आज साहिबान हुई


जब से रूठे हुए हैं वो *साग़र*

हर तरफ़ जैसे सूनसान हुई 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

8/2/2021

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/14)

वृंत-वृंत पर फूल खिलें हैं,

और समीर सुगंधित है।

कलियों पर भौंरे मड़राएँ-

उपवन मधुकर-गुंजित है।।


पवन फागुनी की मादकता,

हृदय सभी का हुलसाए।

सजनी को उसके साजन की,

मीठी यादें दिलवाए।

बहक उठे मन उसका चंचल-

जो प्रियतम-सुख वंचित है।।

     उपवन मधुकर-गुंजित है।।


आम्र-मंजरी की सुगंध पा,

विरही मन भी बौराए।

तड़पे जल बिन मीन सदृश वह,

इधर-उधर भी भरमाए।

लगे नहीं मधुमास सुहाना-

उसको तो जग-वंदित है।।

     उपवन मधुकर-गुंजित है।।


पंछी अपने नीड़ बनाएँ,

कल-कल सरिता बहती है।

जीव-जंतु सब प्रेम जताएँ,

नई जिंदगी पलती है।

नव पल्लव से सजा वृक्ष भी-

खुशियों से अनुरंजित है।।

      उपवन मधुकर-गुंजित है।।


रचे लेखनी रुचिकर रचना,

छवि मधुमास बसा मन में।

कवि-मन योगी जैसा रमता,

उच्च कल्पना के वन में।

ध्यान मग्न जो भाव उपजता-

होता मधुरस-सिंचित है।।

      उपवन मधुकर-गुंजित है।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                      9919446372

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 ये पवन बसन्ती मतवाली,

फागुन आया पीत बसन  


 राग रंग कुछ मुझे न भाता ,

जब से मथुरा गया किशन।


 सपना सा हो गया सभी कुछ,

 हुई  कहानी सी  बातें ।


रह रह उठती हूक हृदय में ,

 कौन सुने मन की बातें।


 सोच रही थी अपने मन में,

किशन  कन्हैया मेरा  है ।


 नहीं जानती थी गोकुल में,

 पंछी  रैन  बसेरा है ।


सोची बात नहीं होती है,

 होनी  ही होकर होती।


 हंसकर जीना चाह रही थी

 लेकिन है आंखें बहती ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

निशा अतुल्य

 अतुकांत

जीवन

9.2.2021


शाख से गिरे पीले पत्ते

कुछ कहते हैं ,

देखो

कुछ दोहराते हैं,

जीवन का सार बताते हैं 

होना है कल हमको भी जुदा

धीरे से समझातें हैं ।


खिलती कलियाँ

मुस्काती हैं 

जीवन का राज बताती हैं

काँटो संग भी मुस्काना

झूम झूम बतलाती हैं ।


काले भँवरे यूँ डोल रहे

कलियों के मुख चूम रहें

गिर जाएगी कल ये कलियाँ

नई कली फिर आएगी 

जीवन का सन्देश सुनाएगी ।


पतझड़ के बाद बसंत ही है

हर जीवन सुख दुख का डेरा

कभी साथ मिला इनका हमको

कभी हाथ छूटा जीवन का ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

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