*शौर्य की भाषा का कालजयी ग्रन्थ है भारत के इक्कीस परमवीर-वी के सिंह*
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
भारत के इक्कीस परमवीर ग्रन्थ का लोकार्पण
*शौर्य की भाषा का कालजयी ग्रन्थ है भारत के इक्कीस परमवीर-वी के सिंह*
मन्ना शुक्ला
परम पावन मंच का सादर नमन
.... सुप्रभात
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ढ़ाई आखर प्रेम में, निहित जगत का सार।
प्रेम बिना रीता लगें, जग जीवन आसार।।
त्याग समर्पण भावना,परहित सेवा भाव।
पावन प्रेम स्वरूप से, सजा रहें मन गाँव।।
प्रेम दिवस मनाइये, बाँध प्रीति की डोर।
द्वेष भाव मन के मिटें, नाच उठें मनमोर।
डगर प्रेम की कठिन है, पग पग बिखरें शूल।
प्रेम सुधा बरसात से ,खिलतें हिय में फूल ।।
पावन बन्धन प्रेम के, बँध जाते भगवान।
प्रेम भाव महिमा बड़ी, करें सदा गुणगान।
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मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
निशा अतुल्य
पुलवामा दिवस
14.2.2021
💐🙏🏻💐
श्रद्धा सुमन
समर्पित तुम्हें
ओ वीर मेरे
शहीदी दिन
पुलवामा के वीर
तुम्हें नमन ।
कर्तव्य निष्ठ
अनुपम है शौर्य
समर्पित हैं ।
दुश्मन कांपे
तुम्हारे ही शौर्य से
वीर सिपाही।
झुकाते शिश
मातृभूमि के लिए
खड़े हैं तने ।
तुम्हारी धरा
आसमान तुम्हारा
यहाँ से वहाँ ।
डोलते रहें
सागर को चीरते
तेज नजर ।
तुम्हें नमन
समर्पित हैं भाव
वीर नमन ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
डॉ. राम कुमार झा निकुंज
दिनांकः १३.०२.२०२१
दिवसः शनिवार
छन्दः मात्रिक
विधाः दोहा
विषयः वेदना
शीर्षक इठलाते लखि वेदना
इठलाते लखि वेदना , खल सम्वेदनहीन।
झूठ लूट धोखाधड़ी , धनी विहँसते दीन।।
लावारिस क्षुधार्त मन , देख फैलते हाथ।
आश हृदय कुछ मिल सके ,कोई बने तो नाथ।।
आज मरी लखि वेदना , दीन दलित अवसाद।
दया धर्म करुणा कहाँ , ख़ुद होते आबाद।।
मरी सभी इन्सानियत , मरा सभी ईमान।
हेर फेर कर लाश में , नहीं कोई पहचान।।
देह वसन आवास बिन , रैन बसेरा रात।
बंज़ारन की जिंदगी , शीत ताप बरसात।।
दरिंदगी चहुँओर अब , लूट रहे जग लाज।
कायरता निर्लज्जता , निर्वेदित समाज।।
आहत जन आतंक से , देश द्रोह अंगार।
मार काट दंगा करे , दया वेदना मार।।
फूट रहे निर्वेद स्वर , लोभ मोह मद स्वार्थ।
रिश्ते नाते सब मरे , भूले सब परमार्थ।।
मातु पिता गुरु श्रेष्ठ को , तजी आज सन्तान।
जिस माली पुष्पित चमन,दी उजाड़ मुस्कान।।
सीमा रक्षक जो वतन , देते निज बलिदान।
प्रश्नचिह्न उन शौर्य पर , उठा रहे नादान।।
नाम मात्र कलि वेदना,पा निकुंज मन पाद।
भूल सभी पुरुषार्थ को , तहस नहस बर्बाद।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक
नई दिल्ली
एस के कपूर श्री हंस
*पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित।।* *14 फरवरी*
*शीर्षक।।शहीद हमारे अमर महान हो गए।*
*।।मुक्तक।।*
नमन है उन शहीदों को जो
देश पर कुरबान हो गए।
वतन के लिए देकर जान
वो बे जुबान हो गए ।।
उनके प्राणों की कीमत से
ही सुरक्षित है देश हमारा।
उठ कर जमीन से ऊपर
वो जैसे आसमान हो गए।।
*रचयिता।।। एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।प्रेम से जीत सकते हर*
*दिल का मुकाम हैं।।*
मन में प्रेम तो सुख
बेहिसाब है।
बस क्रोध कर देता
काम खराब है।।
क्रोध में जीत नहीं मिले
है हार इसमें।
साथ आ गई घृणा तो
सब बर्बाद है।।
करो दुआ सबके लिए कि
दवा समान है।
महोब्बत का छोर तो जमीं
आसमान है।।
जरूरत नहीं किसी तीर
और तलवार की।
प्रेम से हम जीत सकते हर
दिल का मुकाम हैं।।
हम जन्म नहीं पर चरित्र
के जिम्मेदार हैं।
हर किसी के मन में चित्र
के जिम्मेदार हैं।।
क्रोध लेकर आता शत्रु
और चार चार।
जीव में घटित हर विचित्र
के जिम्मेदार हैं।।
किरदार करता है फतह
हर दिल में।
चेहरे से मिलती ना जगह
हर दिल में।।
प्रेम की डोर बहुत ही
बारीकओ नाजुक।
इससे मिले रहने के वजह
हर दिल में।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*
मोब।।। 9897071046
8218685464
*मातृ पितृ पूजन दिवस।।।।।।*
*(क) हमारी माता।हमारी जीवनदायिनी।हाइकु*
1
माता हमारी
चांद सूरज जैसी
है वह न्यारी
2
माता का प्यार
अदृश्य वात्सल्य का
फूलों का हार
3
माता का क्रोध
हमारे भले लिये
कराता बोध
4
घर की शान
माता रखती ध्यान
करो सम्मान
5
माँ का दुलार
भुला दे हर दुःख
चोट ओ हार
6
माता का ज्ञान
माँ प्रथम शिक्षक
बच्चों की जान
7
घर की नींव
मकान घर बने
लाये करीब
8
त्याग मूरत
हर दुःख सहती
हो जो सूरत
9
प्रभु का रूप
सबका रखे ध्यान
स्नेह स्वरूप
10
घर की धुरी
ममता दया रूपी
प्रेम से भरी
11
आँसू बच्चों के
माँ ये देख न पाये
कष्ट बच्चों के
12
प्रेम निशानी
माँ जीवन दायनी
त्याग कहानी
*(ख)हमारे पिता।हमारे पालनहार।हाइकु*
1
पिता हमारे
संकट में रक्षक
ऐसे सहारे
2
पिताजी सख्त
घर पालनहार
ऊँचा है तख्त
3
पिता का साया
ये बाजार अपना
मिले ये छाया
4
पिता गरम
धूप में छाँव जैसे
है भी नरम
5
घर की धुरी
परिवार मुखिया
हलवा पूरी
6
पिता जी माता
हमारे जन्मदाता
सब हो जाता
7
पिता साहसी
उत्साह का संचार
मिटे उदासी
8
पिता से धन
हो जीवन यापन
ऋणी ये तन
9
पिता कठोर
भीतर से कोमल
न ओर छोर
10
शिक्षा संस्कार
होते जब विमुख
खाते हैं मार
11
पिता का मान
न करो अनादर
ये चारों धाम
*रचयिता। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली* 9897071046/8218685464
नूतन लाल साहू
त्याग
सभी सिद्धिया मिलेंगी
यदि मौन धारण किया
इस रहस्य की बात को
कौन समझ सका है
आता है सबका शुभ समय
फिर काहे को घबराता है
लिख के रख लें एक दिन
होगा,काम तुम्हारा
पर,जरा जरा सी बात पर
तू क्यों रोता है
त्याग के बिना
कुछ भी संभव नहीं है
क्योंकि सांस लेने के लिए भी
पहले सांस छोड़ना पड़ता है
सारी बातें, कह चुके है
तुलसी सूर कबीर
बचा खुचा सब लिख गए
केशव और रहीम
भूतकाल इतिहास है
वर्तमान है उपहार
जिसने झेला ही नहीं है
दुःख संकट संघर्ष
वह क्या खाकर पायेगा
जीवन में उत्कर्ष
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से सीखो
स्वप्न में ही सब कुछ त्याग दिया
आया प्रलयंकारी संकट
पर ईमान को न बिकने दिया
वो नर से नारायण बन गया
याद करो समय बहुत बीत गया
पर उसे कौन भूल सका
त्याग के बिना
कुछ भी संभव नहीं है
क्योंकि सांस लेने के लिए भी
पहले सांस छोड़ना पड़ता है
नूतन लाल साहू
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-9
निरगुन-सगुन राम कै रूपा।
भूप सिरोमनि राम अनूपा।।
निज भुज-बल प्रभु रावन मारे।
सकल निसाचर कुल संहारे।।
मनुज-रूप लीन्ह अवतारा।
अघ-बोझिल महि-भार उतारा।।
जय-जय-जय सिय-राम गुसाईं।
सरनागत-रच्छक,जग-साईं ।।
माया बस मग मा जे भटकहि।
नर-सुर-रच्छक जे मग अटकहि।।
नाग-चराचर जे जग आहीं।
नाथहि कृपा जबहिं ते पाहीं।।
भवहिं मुक्त ते तीनहुँ तापा।
जगत-बिदित नाथ-परतापा।।
मिथ्या ग्यानी अरु अभिमानी।
नाथ-कृपा-महिमा नहिं जानी।।
ताकर होहि अधोगति लोका।
होंहिं भले ते देव असोका।।
तजि अभिमान भजै जे रामा।
ताकर कष्ट हरैं श्रीरामा ।।
जिन्ह चरनन्ह कहँ सिव-अज पूजहिं।
बंदि-बंदि जिन्ह सुर-मुनि छूवहिं ।।
छुइ चरनन्ह जिन्ह उतरी गंगा
छुवत जिनहिं भइ नारि उमंगा।।
अस चरनन्ह कर करि अभिवादन।
मिलहिं अनंतइ सुख मन-भावन।।
बेद कहहिं प्रभु बिटप समाना।
मूल अब्यक्त जासु जग जाना।।
हैं षट कंध,त्वचा तरु चारी।
साखा जासु पचीसहि भारी।।
पर्ण असंख्य सुमन तरु अहहीं।
मीठा-खट्टा दुइ फल लगहीं।।
लता एक आश्रित तरु आहे।
फूलत नवल पल्लवत राहे।
अस तरु,बिस्व-रूप भगवाना।
नमन करहुँ अस तरु बिधि नाना।।
ब्रह्म अजन्म अद्वैत कहावै।
अनुभव गम्यहि बेद बतावै।
तजि बिकार मन-बचन-कर्म तें।
करि गुनगान सगुन ब्रह्म तें ।।
जे जन करहीं प्रभू-बखाना।
पावैं करुनाकर गुनखाना।।
दोहा-अस बखान करि राम कै, गए बेद सुरलोक।
तुरत तहाँ सिव आइ के,बिनती करहिं असोक।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
निशा अतुल्य
अर्जुन कहता"एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है"
13.2.2021
मन के अंदर का झंझावत केशव
पूरा एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है
ये खड़े हुए जो रणक्षेत्र में
सब मेरे मन के अंदर ही हैं ।
मार इन्हें रण जीत लिया तो
राज्य मैं पा जाऊँगा
पर हे केशव मार इन्हें मैं
अपने से गिर जाऊँगा ।
हँस केशव ने देखा अर्जुन को
बोले थोड़ा मुस्कुराकर
हे पार्थ, क्यों द्रौपदी भूल गए
जिसका अपमान भरी सभा हुआ ।
बैठे थे धुरंधर बहुत वहाँ
थे ओंठ सभी के सिले हुए
कोई पितामह था उनमें
और कोई गुरु महान वहाँ ।
सास ससुर सिंहासन बैठे थे
राज्य कर्मचारी सभी वहाँ
नहीं किसी के ओंठ हिले तब
तुम अपमानित झुके वहाँ।
राज्य के लिए नहीं लड़ो तुम
है अंदर जो कुरुक्षेत्र तुम्हारे
ज्वाला उसकी कुछ तेज करो
पति धर्म निभाओ अपना
और कुरुक्षेत्र को खत्म करो ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*वसंत*
ऋतुराज
हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है,
कोयल-कूक, भ्रमर-मृदु गुंजन।
दें तुमको आवाज़-तुम्हारा स्वागत है।।
फूल खिल गए गुलशन-गुलशन,
जिनपर करें तितलियाँ नर्तन।
बजे गीत के साज़-तुम्हारा स्वागत है।।
प्रकृति अनोखी सजी हुई है,
आम्र-मंजरी लदी हुई है।
हुआ प्रीति आगाज़-तुम्हारा स्वागत है।।
फूली सरसों छटा बिखेरे,
सजी धरा को लखें चितेरे।
मनमोहक महि-लाज-तुम्हारा स्वागत है।।
थलचर-जलचर-नभचर सब में,
नदी-तड़ाग-गिरि, वन-उपवन में।
रति-अनंग-साम्राज्य-तुम्हारा स्वागत है।।
तुम प्रतीक मधुमास सुहावन,
प्रेमी-प्रेयसि के मनभावन।
हो तुमहीं सरताज-तुम्हारा स्वागत है।।
तुम्हीं नियंता सब ऋतुओं के,
हो अभियंता रस-तत्त्वों के।
दस दिशि तेरा राज-तुम्हारा स्वागत है।।
मगन-मुदित जग हो पा तुमको,
मिलता सुख असीम है सबको।
खग-मृग सकल समाज-तुम्हारा स्वागत है।।
हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
सवेरे-सवेरे
*सवेरे-सवेरे*
कोइ आ के जगाया सवेरे-सवेरे।
प्रीति-आसव पिलाया सवेरे-सवेरे।।
संग में ले अपने चरागे मोहब्बत।
आ,अँधेरा भगाया सवेरे-सवेरे।।
रहा द्वंद्व दिल में पता भी नहीं था।
आ,किसी ने जताया सवेरे-सवेरे।।
जो गया भूल था भी सबक जिंदगी का।
आ,किसी ने सिखाया सवेरे-सवेरे।।
बेवजह सोचते आँख जब लग गई थी।
स्वप्न प्यारा सा आया सवेरे-सवेरे।।
अभी स्वप्न में जो रहा नक़्शा अधूरा।
आ,कसी ने बनाया सवेरे-सवेरे।।
सधी जब नहीं थी वो ग़ज़ल रात मुझसे।
आ,किसी ने सधाया सवेरे-सवेरे।।
नाज था जिस महक पे दिले बागबाँ को।
बह,हवा ने चुराया सवेरे-सवेरे ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल--
1.
हसीं ख़्वाब जो तुमने पाले हुए हैं
ये सब दाँव तो देखे भाले हुए हैं
2.
बुलंदी पे हैं आप जिसकी बदौलत
उसी पर ही तोहमत उछाले हुए हैं
3.
मिली पेट भर आज बच्चों को रोटी
यूँ हीं तो नहीं हाथ काले हुए हैं
4.
पुरानी हवेली पे हम रंग कर के
बुज़ुर्गों की अज़्मत सँभाले हूए हैं
5.
बराबर अँधेरों से की है लड़ाई
कहीं जाके तब यह उजाले हुए हैं
6.
नज़र डाल तू चारा चुगने से पहले
शिकारी कमन्दे भी डाले हुए हैं
7.
कहा आज महफ़िल में सबने ही *साग़र*
कई शेर तेरे निराले हुए हैं
🖋️विनय साग़र जायसवाल
कमन्दे-फंदे ,पाश , फंदेदार रस्सी
3/2/2021
कवि डॉ. भोला दत्त जोशी जी होंगे परमवीर चक्र सहित्य सृजन सम्मान से सम्मानित
परमवीर सृजन सम्मान
हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही गौरवशाली इतिहास का साक्षी रहा है फिर भले ही वह गार्गी के ध्वनि तरंगों द्वारा शब्द संप्रेषण के सिद्धांत की बात हो, महान वैज्ञानिक शून्य एवं दशमलव पद्धति के जनक आर्यभट हों, संसार के प्रथम नाटककार आचार्य भरत, शुल्वसूत्र के जनक बोधायनाचार्य , आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रमुख वैद्य चरक और सुश्रुत, एकेश्वरवाद के जनक आदि शंकराचार्य , शांति और अहिंसा सिद्धांत के प्रमुख प्रसारक भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी जी। वीरता के इतिहास को स्वर्णिम पन्नों में लिखने वाले वीर राणा प्रताप , वीर योद्धा शिवाजी, रानी लक्ष्मी बाई आदि ने अपने समर्पण और बलिदानी कार्यों से देश के गौरव को बढ़ाया और कभी उसके मान को आंच नहीं आने दी।
भारत की अंग्रेजी शासन से आजादी के बाद भी यही परंपरा कायम रखते हुए जिन वीरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर देश की आन बान और शान को अक्षुण्ण बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी उन्हें देश ने सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा।ऐसे 21 वीरों को
विशिष्ट सम्मान देने के उद्देश्य से डॉ राजीव पांडेय जी के मार्गदर्शन में दुनिया भर से 151 कवियों ने परमवीर चक्र विजेताओं पर स्व रचित कविताएं आभासी गोष्ठी के माध्यम से गूगल मीट पर पढ़ीं और जिसे फेसबुक पर सीधा प्रसारित भी किया गया था। यह कवि सम्मेलन 22 नवंबर 2020 को संपन्न हुआ था। गौरव की बात है कि उनमें से 101 कवियों के उन काव्यों को पुस्तक रूप प्रकाशित कर अद्भुत कार्य किया है। गाजियाबाद से प्रकाशित इस पुस्तक के संपादक डॉ राजीव पांडेय जी एवं संयोजक श्री ओंकार त्रिपाठी जी हैं। सेना का सम्मान हमारा परम कर्तव्य है। उन वीरों के शौर्य के कारण ही हम नागरिक अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं।
इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी काव्य संग्रह में डॉ भोला दत्त जोशी, पुणे की दो कविताएं " परमवीर चक्र विजेताओं का हम शतश: वंदन करते हैं " और " सर्वोच्च बलिदानी वीर सपूत " प्रकाशित हुईं हैं जिनमें उन सभी वीरों की वीरगाथाओं का उल्लेख किया गया है। उनकी वीरता को नमन करते हुए कवि ने स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया है और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है।
प्रख्यात कवि डॉ. भोला दत्त जोशी
ने लिखा -
'सूबेदार बानासिंह संघर्ष कर सियाचिन में विजयी हुए थे
शहीद अरुण के वज्रप्रहार ने पाकटैंक बहु ध्वस्त किए थे
परमवीरचक्र-सम्मानित सैनिक-रज का पूजन करते हैं
परमवीर चक्र विजेताओं का,हम शतशः वंदन करते हैं।'
एक अन्य रचना वह लिखते हैं -
'भारत मां की रक्षा में जिन वीरों ने सर्वोच्च बलिदान दिया
उनकी अमर गाथाओं को,परमवीर चक्र देकर मान दिया।
मेजर सोमनाथ कुमाऊं रेजीमेंट के पाक सीमा पर डटे रहे
एक एक कर दुश्मन को मारा अंत तक बहादुरी से डटे रहे'
हर्ष का अवसर है कि प्रकाशित पुस्तक ' भारत के इक्कीस परमवीर ' का विमोचन सेना के सर्वोच्च अधिकारी पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह राज्य मंत्री, सड़क परिवहन मंत्रालय, भारत सरकार के हाथों 14 फरवरी को दोपहर दो बजे दिल्ली के हिंदी भवन में देश एवं विदेशों से आए कई गणमान्य कवियों और सेना वरिष्ठ अधिकारी वर्ग की उपस्थिति में हो रहा है। परमवीर चक्र विजेताओं में ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव साक्षात् उपस्थित होने वाले हैं। डॉ भोला दत्त जोशी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए ' परमवीर सृजन सम्मान ' से सम्मानित किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि डॉ भोला दत्त जोशी की विभिन्न विधाओं में 15 किताबें एवं 19 सांझा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्हें पहले अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानों मसलन अमेरिका के केंद्रीय विश्वविद्यालय से डी.लिट. से सम्मानित किया जा चुका है।
परमवीर चक्र विजेताओं पर यह एक अनूठा , अद्भुत और पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ है जो मील का पत्थर साबित होगा। देश सबसे ऊपर है इसी बात को लोगों के ध्यान में लाना और सेना के बलिदान को उचित सम्मान देने की भावना नई पीढ़ी में अंकुरित करना इसका उद्देश्य है।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-8
मिलि सभ सासु सियहिं नहवाईं।
भूषन-बसन दिव्य पहिराईं ।।
बामांगी सीता बड़ सोहैं।
चढ़े बिमान ब्रह्म-सिव मोहैं।।
गुरु बसिष्ठ मँगाइ सिंहासन।
मंत्र उचारि दीन्ह प्रभु आसन।।
राम-सिंहासन सुरुज समाना।
करै जगत बहु-बहु कल्याना।।
देखि राम-सिय बैठि सिंहासन।
जय-जय करहीं सुरन्ह-ऋसीगन।।
प्रथम तिलक बसिष्ठ गुरु कीन्हा।
बाद असीस द्विजन्ह सभ दीन्हा।।
सोभा दिब्य निरखि सभ माता।
करहिं आरती प्रभु सुख-दाता।।
सभे भिखारी भे धनवाना।
पाइ क दान,खाइ पकवाना।।
देखि सिंहासन पे रघुराई।
सुरन्ह दुंदुभी मुदित बजाई।।
भरत-शत्रुघन-लछिमन भाई।
अंगद-हनुमत अरु कपिराई।।
साथ बिभीषन लइ धनु-सायक।
छत्र व चवँर-कटार अधिनायक।।
सोहैं रघुबर सँग सभ लोंगा।
हरषहिं सुख लहि अस संजोगा।।
सीता सहित भानु-कुलभूषन।
पहिरि पितंबर-भूषन नूतन।।
लगहिं कोटि छबि-धाम अनंगा।
साँवर तन,धनु-बान-निषंगा।।
राम-रूप अस संकट-मोचन।
बाहु अजान व पंकज लोचन।।
अस प्रभु-रूप बरनि नहिं जाए।
राम-रूप अस संकर भाए।।
दोहा-धारि भेष तब भाँट कै, आए बेदहिं चारि।
करन लगे प्रभु-वंदना,सुंदर बचन उचारि।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
नूतन लाल साहू
कर्म
कर्म का,धर्म से अधिक महत्व है
क्योंकि,धर्म करके
भगवान से मांगना पड़ता हैं
पर,कर्म करने से
भगवान स्वयं,फल देता है
पिंजरा रूपी काया से
स्वांस का पंछी बोले
तन है नगरी, मन है मंदिर
परमात्मा है जिसके अंदर
दो नैन है,पाक समुंदर
ओ पापी,अपने पाप को धो लें
हाथ में आया,रतन
लेकिन कदर न जानी
जानबूझकर तू,अनजान बनता है
जैसे सदा,तू जिंदा रहेगा
खुद ही खुद को तुम पहचानो
और करो,अमृत पान
उलझी हुई है,जिंदगी तेरी
कर्म कर,फिर से सजा लेे
गुरु की मूर्ति से ही सीख लें
एकलव्य,श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया
माता पिता की सेवा कर
श्रवण कुमार का नाम,अमर हो गया
कर्म ही बनाता है
सपनों को साकार
जिसने भी सत्कर्म किया
उसका बेड़ा पार हुआ
कर्म का, धर्म से अधिक महत्व है
क्योंकि, धर्म करके
भगवान से मांगना पड़ता हैं
पर,कर्म करने से
भगवान स्वयं फल देता है
नूतन लाल साहू
डॉ निर्मला शर्मा
भूकम्प
धैर्य धारिणी धरित्री का धैर्य जब
खंड खंड हो जाता
धरती करती हो रौद्र कम्पन
चहुँ ओर तांडव मच जाता
शोषण, दोहन और प्रतिबंधों की
जब आँच सुलगती है
तब क्रोध की भीषण ज्वाला की
लपटें धरती पे पहुँचती हैं
मानवीय तिरस्कार से आहत
जब वसुधा दहकती है
दारुण दुख का दरिया बन
भूकम्प में बदलती है
हो कम्प कम्प कम्पायमान
धरती करतल नृत्य करती है
सर्वत्र मचा है शोर और कोलाहल
मानव प्रजाति आर्त स्वर में क्रंदन करती है
ढह गई सभी अट्टालिकाएँ
सूनी पड़ी हैं सब वीथिकाएँ
सब नष्ट भृष्ट धरती करती है
गिरते कठपुतली से मानव
भूकम्प की लहर जब चलती है
चीत्कार मचा देता है भूकम्प
आपदा ये जब आती है
बचता न कोई इस त्रासदी से
आहत होता है जन जन
नष्ट कर जाता है सब कुछ
क्षण भर में ही मानव जीवन
ये प्राकृतिक आपदा बन
जाती बड़ी दुखदाई
तब मस्तक पर चिंता की रेखा खिंच
ये बात समझ में आई
धरती है पूज्या नहीं ये भोग्या
न करो तिरस्कार इसका तुम
है मानव जाति का सुदृढ़ आधार
रखो ध्यान इसका तुम
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
सुनीता असीम
मन जब भी घबराता है।
तेरा साथ सुहाता है।
****
तू है मेरे तन मन में।
जन्म जनम का नाता है।
****
तुझमें मैं मुझमें है तू।
फिर क्यूँ हाथ छुड़ाता है।
****
दूर कभी पास हुए तुम।
रूप तेरा भरमाता है।
****
हम दोंनो जब मिल बैठें।
बातें खूब बनाता है।
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तुझ बिन श्याम अधूरी मैं।
छोड़ मुझे क्यूँ जाता है।
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मिलता तू उसको केवल।
रोकर सिर्फ बुलाता है।
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सुनीता असीम
१२/२/२०२१
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-7
भवन गए तब रघुकुल-नायक।
करुना-सिंधु राम,सुखदायक।।
देखन लगे अटारिन्ह चढ़ि सब।
साँवर रूप सराहहिं अब-तब।।
साजे रहे सभें निज द्वारा।
कनक-कलस सँग बन्दनवारा।।
पुरे चौक गज-मुक्तन्ह द्वारे।
गलिनहिं सकल सुगंध सवाँरे।।
चहुँ-दिसि गीति सुमंगल गावैं।
बाजा-गाजा हरषि बजावैं ।।
जुबती करहिं आरती नाना।
गावत गीति सुमंगल गाना।।
राम-आरती नारी करहीं।
सेष-सारदा सोभा लखहीं।।
नारि कुमुदिनी,अवध सरोवर।
सूरज बिरह रहे तहँ रघुबर।।
अस्त होत रबि लखि ते चंदा।
नारी कुमुद खिलीं सभ कंदा।।
हरषित करत सभें भगवाना।
कीन्ह भवन निज तुरत पयाना।।
जानि मातु कैकेई लज्जित।
प्रथम मिले मन मुदित सुसज्जित।।
बहु समुझाइ राम तब गयऊ।
आपुन भवन जहाँ ऊ रहऊ।।
जानि घड़ी सुभ सुदिन मनोहर।
द्विजन बुलाइ बसिष्ठ सनोहर।।
कहे बिठावउ राम सिंहासन।
पावहिं राम तुरत राजासन।।
सुनत बसिष्ठ-बचन द्विज कहहीं।
राम क तिलक तुरत अब भवहीं।।
सुनत सुमंत जोरि रथ-घोरे।
नगर सजा बोले कर जोरे।।
मंगल द्रब्यहिं अबहिं मँगायो।
अवधपुरी बहु भाँति सजायो।।
सुमन-बृष्टि कीन्ह सभ देवा।
सोभा पुरी चित्त हरि लेवा।।
राम तुरत सेवकन्ह बुलवाए।
सखा समेत सबहिं नहवाए।।
पुनि बुलाइ भरतहिं निज भ्राता।
निज कर जटा सवाँरे त्राता ।।
बंधुन्ह तिनहुँ सबिधि नहवाई।
गुरु बसिष्ठ कहँ सीष नवाई।।
आयसु पाइ तासु रघुराऊ।
छोरि जटा निज तहँ पसराऊ।।
पुनि प्रभु राम कीन्ह असनाना।
भूषन-बसन सजे बिधि नाना।।
दोहा-अनुपम छबि प्रभु राम कै, भूषन-बसनहिं संग।
लखि-लखि छबि अभिरामहीं,लज्जित कोटि अनंग।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
नूतन लाल साहू
अभिमान छोड़ दें प्यारे
आसमान में उड़ने वाले
धरती मां को पहचान ले
हमेशा नहीं रहना है जग में
रहना है,दिन चार
अभिमान को छोड़ दें प्यारे
हे पिंजरे की,ये मैना
भजन कर लें,प्रभु श्री राम की
मिलता है सच्चा सुख केवल
प्रभु जी के चरणों में
अभिमान को छोड़ दें प्यारे
चाहे बैरी सब संसार बने
जीवन चाहे,तुझ पर भार बने
चाहे संकट ने,तुझे घेरा हो
चाहे चारो ओर अंधेरा हो
बाल न बांका कर सकें कोई
जिसका रक्षक कृपा निधान हो
अभिमान को छोड़ दें प्यारे
जो मिला है,वह हमेशा
पास नहीं रह पायेगा
मै,मेरा यह कहने वाला
मन किसी का है दिया
मै नहीं,मेरा नहीं
यह तन,किसी का है दिया
देने वाला ने दिया है
वह भी दिया,किस शान से
सूखी जीवन का,क्या राज है
पहले यह जान लीजिए
अभिमान छोड़ दें प्यारे
अंत समय,पछताएगा
गया समय,नहीं आयेगा
डरते रहो यह जिंदगी
कहीं बेकार न हो जाए
अभिमान हरै,सुख शांति
हर क्षण,इसे याद रख
अभिमान छोड़ दें प्यारे
आसमान में उड़ने वाले
धरती मां को पहचान ले
हमेशा नहीं रहना है,जग में
रहना है दिन चार
अभिमान को छोड़ दें प्यारे
नूतन लाल साहू
एस के कपूर श्री हंस
*विषय।। बाग।।बगीचा।।उपवन।।*
*रचना शीर्षक।।हम सब फूल हैं*
*माँ भारती के उपवन के।।*
*विधा।।मुक्तक।।*
मेरा देश महान इक गुलशन
बाग बगीचा है।
मराठी गुजराती जैन सिंधी ने
मिल कर सींचा है।।
इसके फूलों के रखवाले हैं
सिख हिन्दू ईसाई।
मुस्लिमों ने भी देकर साथ
गोरों से खींचा है।।
माँ भारती का यह उपवन
एकता की मिसाल है।
हर पत्ता बूटा दिखता बहुत
ही खुशहाल है।।
एक फूल ना तोड़ने देंगें इन
नापाक चालबाजों को।
हरियाली इसकी हर रंग
बहुत बेमिसाल है।।
हमारी मातृभूमि की बगिया
विश्व में चमक रही है।
महक इसकी बहुत दूर तक
दमक रही है।।
तिनका पत्ता डाली महफूज
हर भारतीय के हाथ में।
छू न पायेगा बाड़े की तार यही
इसकी धमक रही है।।
बेला चंपा चमेली गुलाब मिल
कर साथ साथ हैं।
गेंदा जूही कनेर मोगरा लिये
हाथों में हाथ हैं।।
दिल बहुत विशाल बगिया का
दे चैन आराम दर्द में।
ध्येय देना शीतल छाया ओ करना
बस परमार्थ है।।
चारों ओर आम नीम बरगद
की दीवार है।
चिनार चीड़ के दरख़्त रोकते हर
तीरो तलवार हैं।।
गुलमोहर चंदन वृक्ष महका रहे
इस बाग को।
मातृभूमि माँ भारती का उपवन
चहक रहा बार बार है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।।बरेली*
मो 9897071046/8218685464
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल
गर्दिश में आ गये हैं क्या आज सब सितारे
डूबी है नाव अपनी आकर के ही किनारे
आवाज़ देते देते साँसें ही थम गयीं थीं
कोई भला कहाँ तक बोलो उन्हें पुकारे
जब मौसम-ए-बहाराँ में साथ तुम नहीं हो
बेरंग लग रहे हैं दिल को सभी नज़ारे
बचता भी मैं कहाँ तक उस शोख की नज़र से
तक तक के तीर उसने मेरे जिगर पे मारे
राह-ए-सफ़र में इतनी दुश्वारियाँ थीं लेकिन
*मंज़िल पे आ गये हम बस आपके सहारे*
कैसे बताओ हमको यारो सुकून आये
नाराज़ जब हैं वोही जो खास हैं हमारे
इस बात का ही *साग़र* दिल को मलाल होता
बरसे थे संग हम पर हाथो से ही तुम्हारे
🖋️विनय साग़र जायसवाल
31/1/2021
मधु शंखधर स्वतंत्र
गज़ल
122 122 122 122
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
गुमां आप दिल में जो पाले हुए हैं।
यूँ हीं अंजुमन से निकाले हुए हैं।।
बदी आज भी दरबदर है भटकती,
वफा़ की जुबा़ँ पर भी ताले हुए हैं।।
बसर करना मुश्किल रहा साथ जिसके,
खुदी आज उसके हवाले हुए हैं।।
अँधेरों में घिर के बहुत की मशक्कत,
कहीं जाके तब यह उजाले हुए हैं।।
तुम्हें ढूँढ़ते हर नगर हर गली में,
चलें कैसे पैरों में छाले हुए हैं।।
जिन्हें कर पराया किया दूर खुद से,
वही आज हमको सम्हाले हुए हैं।।
ज़माना हमें *मधु* करे याद कैसे
यहाँ हीर राँझा निराले हुए हैं।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*गजराज*(दोहे)
सज-धज कर शोभन लगे,चलत-फिरत गजराज।
मस्त चाल मन-भावनी,वन्य-जीव-सरताज ।।
ओढ़ दुशाला झालरी,पग-पहिरावा लाल।
मग में झूमत जा रहे,जैसे वे ससुराल ।।
सूँड़ लचीला तो रहे,पर वह गज-हथियार।
तोड़े झटपट तरु-शिखा,डाले मुख के द्वार।।
भीमकाय ये जंतु गज,रखें समझ बेजोड़।
स्वामिभक्त होते सदा,शत्रु-मान दें तोड़।।
युद्ध-भूमि में जा करें, अद्भुत कला-कमाल।
स्वामी की रक्षा करें,बनकर रण में ढाल।।
जंगल के हैं जीव ये,पर समझें संकेत।
निज कुल की रक्षा करें,रहकर सदा सचेत।।
रहें सदा ये झुंड में,करके गठित समाज।
रखें सोच नर भाँति गज,धन्य-धन्य गजराज।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
निशा अतुल्य
बसंत
12.2.2021
हाइकु
खोल नयन
देखे बसंत मुस्काय
उर्जित धरा।
कलियाँ खिली
धीरे से फूल बनी
हँसती धरा।
भँवर आए
मधुर राग सुनाए
कली मुस्काई ।
बाण चलाए
काम,रति हर्षाए
उन्माद छाया ।
प्रेम की ऋतु
प्रणय निवेदन
करें हैं सभी ।
हैं ऋतुराज
बसंत सुकुमार
हर्षित है मन ।
भूल सबको
अब ढूंढ स्वयं को
कुछ न यहाँ ।
हो आल्हादित
कर मन शृंगार
हो सुवासित ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*माँ*(दोहे)
माता का वंदन करें,पूजें चरण पखार।
पालन-पोषण माँ करे,देकर ममता-प्यार।।
स्वयं कष्ट सह-सह करे,निज सुत का उत्थान।
बेटा-बेटी उभय का,रखे बराबर ध्यान ।।
जीव-जंतु के जन्म का,केवल माँ आधार।
इसी लिए इस सृष्टि पर,माँ का है उपकार।।
माँ की कोख कमाल की,अद्भुत प्रभु की देन।
राम-कृष्ण को जन्म दे,रावण-कंस-सुसेन।।
मूर्ति यही है त्याग की,रखे न निज सुख-ध्यान।
हे जननी तुम धन्य हो, तेरा हो यश-गान ।।
माँ के ही व्यवहार से,निर्मित होय चरित्र।
नहीं हृदय यदि स्वच्छ है,हों संतान विचित्र।।
माँ चाहे जैसी रहे, माँ है ईश्वर-रूप ।
पूजनीय है माँ सदा,इसका रूप अनूप।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
अखिल भारतीय साहित्यिक मंच)सहरसा
*साहित्य साधक मंच के द्वारा कवि सम्मेलन का शानदार आयोजन*
10 फरवरी 2021 के संध्या साहित्य साधक (अखिल भारतीय साहित्यिक मंच)सहरसा ,बिहार द्वारा आहूत आनलाईन काव्य गोष्ठी जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि साहित्यकार डॉ. राणा जयराम सिंह 'प्रताप' ने की।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री माधुरी डड़सेना 'मुदिता' जी थी l कार्यक्रम का श्री गणेश अध्यक्ष के द्वारा मां शारदे के प्रतिमा पर दीप प्रज्ज्वलन एवं विशिष्ट अतिथि के द्वारा माल्यार्पण के साथ हुआ, शिव प्रकाश साहित्य जी के शानदार संचालन में
कवयित्री डॉ. लता जी द्वारा सरस्वती वंदना की प्रस्तुति की गई।
प्रथमतः हरियाणा से उपस्थित सरला कुमारी द्वारा किसान पर एक कविता प्रस्तुत की गई -
"लिखती मैं किसान के लिए, लिखती मैं इंसान के लिए।
नहीं लिखती मैं धनवान के लिए, नहीं लिखती मैं भगवान के लिए।"
लखनऊ उत्तर प्रदेश से सरिता त्रिपाठी ने अपने कविता के माध्यम से कहा-प्रियतम तेरी याद में, हाल हुआ बेहाल। नैनो से आंसू झरे, तुमको नहीं ख्याल।।
छत्तीसगढ़ से आरती मैहर गीत ने श्रृंगार रस की एक कविता:- देखें मैंने हैं कई सपने, होते उनमें मेरे अपने। पूरे कहां होते सपने,दगा दे जाते हैं अपने।
रायबरेली उत्तर प्रदेश से गीता पांडे अपराजिता ने प्रस्तुत किया:-सागर की गहराई में, जैसे कोई फूल खिला हो। कौन कहेगा अबला नारी, सचमुच तू तो सबला हो। वहीं इस कार्यक्रम में डॉ. विनय सिंह, फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
,सुरंजना पाण्डेय, पश्चिमी चंपारण बिहार,प्रीति चौधरी "मनोरमा", बुलन्दशहर, उत्तरप्रदेश,अंजना सिन्हा रायगढ़,संदीप यादव, अधिवक्ता, उच्च न्यायालय-इलाहाबाद,डॉ लता,नई दिल्ली,रेखा कापसे "होशंगाबादी" म.प्र.,नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई,जितेन्द्र कुमार वर्मा खैरझिटीया छत्तीसगढ़,संतोष कुमार वर्मा"कविराज' कोलकाता,डॉ राजश्री तिरवीर, बेलगांव कनार्टक,अमर सिंह निधि, बाराबंकी, उत्तर प्रदेश,सुशीला जोशी, विद्योतमा, मुजफ्फरनगर,राधा तिवारी 'राधेगोपाल' उत्तराखंड,प्रियदर्शनी राज,जामनगर गुजरात,संतोष अग्रवाल,मध्य प्रदेश
मीना विवेक जैन, मंच के राष्ट्रीय सलाहकार सपना सक्सेना दत्ता, तोरणलाल साहू, अमित कुमार बिजनौरी, केवरा यदु मीरा, अनुश्री, सहित कई प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।
वही दूसरे चरण में वर्तमान राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शशिकांत शशि जी को राष्ट्रीय महासचिव, तथा सियाराम यादव मयंक को राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया गया साथ ही राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अमर सिंह निधि एवं सह मीडिया प्रभारी अमन आर्या को बनाया गया।
अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि आदरणीया माधुरी डड़सेना 'मुदिता' जी ने कहा:- बड़े हर्ष की बात है, कि आज साहित्य साधक मंच अपने ऊंचाई को छूने के लिए लालायित है,और इस दृष्टिकोण से सप्ताह भर में कई विधाओं में साहित्यकार सृजन कर रहे हैं। उन्होंने नवांकुर साहित्यकारों के प्रति विशेष स्नेह व्यक्त किया जो अपने जिज्ञासानुरूप अपने भावों को सर्जन विधा में स्थान देकर आगे बढ़ा रहे हैं । उन्होंने साहित्य साधक मंच के मुख्य अतिथि पद के रूपमें सबों के प्रति साधुवाद एवं आभार जताया। अध्यक्षीय उद्बोधन में आदरणीय डॉ. राणा जयराम सिंह 'प्रताप' ने साहित्यकारों को मंचीय अनुशासन का अनुपालन करते हुए निरन्तर साहित्य-साधना करते रहने और मंच को प्रगति-शिखर की ओर गतिमान करने की अपील की। अंत मेंमंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्ण कुमार क्रांति ने धन्यवाद ज्ञापन में मंच के समस्त साहित्यकारों के प्रति उनके योगदान के लिए साधुवाद और बहुत-बहुत आभार व्यक्त किया।
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