डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सप्तम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

                            9919446372

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।आँसू कोई मामूली चीज़ नहीं*,

*कोई अनकही दास्तान हों जैसे।।*

*।।विधा।।मुक्तक।।*


आँसू तो मानो   जैसे अनकहा

बयान           हैं।

खुशी गम का मानो   तो  जमीं

आसमान      हैं।।

आँसू मोती हैं लफ्ज़   हैं  और

हैं       दर्द      भी।

बहते मानो पीछे    लिये   जैसे

दास्तान         हैं।।


आँसू वो शब्द हैं जिन्हें  कागज़

कलम मिल न सका।

यह वो सैलाब    जो     दिल के

भीतर सिल न सका।।

दर्द और खुशी     का पैमाना ये

छलका           हुआ।

गम का वह     फूल      है आँसू

जो खिल  न   सका।।


मुकाम मिलने न मिलने    दोनों

का  सबब   आँसू हैं।

हर बूंद में    छिपी        कहानी

ऐसा गज़ब   आँसू है।।

नहीं कह     कर भी बहुत कुछ

कहते   हैं       आँसू।

खुशी और गम दोंनों में      बहे

ऐसा अजब आँसू है।।


जब दिल और दिमाग    दबाब

कुछ सह नहीं पाता है।

जब जिन्दगी से मिला   जवाब

कुछ कह नहीं जाता है।।

फूट पड़ते हैं आँसू  इक दरिया

सा        बन        कर।

जब पूछने को    कोई    सवाल

भी रह नहीं   आता  है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।             9897071046

                      8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सजल(मात्रा भार-16)

बाग एक गुलजार चाहिए,

जिसमें रहे बहार चाहिए।।


कभी न रूखा होए जीवन,

एक अदद बस प्यार चाहिए।।


आपस में बस रहे एकता,

ऐसा ही व्यवहार चाहिए।।


सत्य-अहिंसा-मानवता ही,

जीवन का आधार चाहिए।।


रहे स्वच्छता ध्येय हमारा,

ऐसा उच्च विचार चाहिए।।


जो भी हैं असहाय व रोगी,

उचित उन्हें उपचार चाहिए।।


घृणा-भाव का हो विनाश अब,

प्रेम-भाव-विस्तार चाहिए।।

       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

           9919446372

निशा अतुल्य

 मातृभाषा दिवस 

21.2.2021 


मातृभाषा मेरा अभिमान है 

मातृभाषा जीवन का ज्ञान है 

मिल जाएगा सब कुछ तुम को 

करो सम्मान ये ही शान है ।


करो संरक्षण इसका 

ये माता की सिखाई जुबान है

सम्मान दिल से हो इसका

ये जीवन का आधार है ।


ये ही भाषा अपनी ऐसी 

जो देती माँ सम प्यार है 

अपनत्व भरा इसमें ऐसा

प्रान्त की ये पहचान है ।


संवेदना भरी इसमें मन की

मानवता से भरी ये महान है 

अहसास कराती अपनत्व का

ये भरी दुपहरी ममता की छाँव हैं ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

अनिल गर्ग

 उखड़ती ज़िन्दगियों  को,

वो अक्सर संभाल लेता है !

अच्छे अच्छों को,

मौत के मुँह से निकाल लेता है !! 


न वो हिन्दू देखता है,

न कभी मुसलमान देखता है !

इंसा का साथी है वो,

हर शख्स में बस इंसान देखता है !! 


केस कितना भी गंभीर हो,

वो हिचकिचाता नहीं कभी ! 

मुकद्दमे की पेचीदगी देखकर,

वो सकुचाता नहीं कभी !! 


उसके हाथों में जो हुनर है,

बखूबी जानता है वो ! 

अपने पेशे को ईश्वर की,

पूजा मानता है वो !! 


जब भी जाता है वो अदालत,

अपने ईष्ट को याद करता है ! 

सफल हो जाए मुकद्दमा,

यही प्रार्थना करता है !! 


केस कितना भी बड़ा हो,

वो जी जान लगा देता है ! 

मुवक्किल को जिताने में,

वो पूरा ज्ञान लगा देता है !! 


अगर हो जाए सफल तो,

हजारों दुआएँ लेता है !

अगर वो हार जाए तो,

लोगों का क्रोध सहता है !! 


खरी खोटी वो सुनता है,

फिर भी खामोश रहता है ! 

अपनी असफलता का उसको,

बहुत अफसोस रहता है !!


वो जानता नहीं किसी को,

मगर धीरज बंधाता है ! 

निरंतर कर्म के पथ पर,

वो बढ़ते ही जाता है !! 


उसे मालूम है कि जिन्दगी,

तो भगवान ने दी है ! 

पर करे जन की सेवा वह

यह उसकी भी हसरत है ! !


अनिल गर्ग, कानपुर

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 हिन्दी से तुम प्यार करो 


हिंदुस्तान के रहने वालों ,

हिंदी से तुम प्यार करो ।


ये पहचान है मां भारत की,

 हिंदी  का सत्कार  करो ।


हिंदी के  विद्वानों  ने तो ,

परचम जग में फहराए।


 संस्कार  के सारे  पन्ने,

 हिंदी से ही हैं पाए ।


 देवनागरी लिपि में अपनी,

 छुपा  हुआ अपनापन है ।


अपनी प्यारी भाषा हिंदी,

 भारत मां का दरपन है ।


हिंदुस्तानी  होकर तुमने ,

यदि इसका अपमान किया ।


तो फिर समझो भारत वालों ,

खुद का ही नुकसान किया।


 हिंदुस्तान के रहने वालों,

 हिंदी से तुम प्यार करो ।


यह पहचान है माँ भारत की ,

हिंदी  का सत्कार  करो ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

रवि रश्मि अनुभूति

 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


     🙏🙏


सपने सज गये 

**************

छायी चहुँ दिशि उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग 

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग 


बजे अब तो ढोल - मंजीरे , गूढ़ बात हो तेरी - मेरी

टोलियाँ सजी आयीं अब तो , बार - बार डालें ये फेरी  

बोलें सभी प्रेम की बोली ,  , रहे गा फाग भी संग - संग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....


प्रेम - प्रीत की लगन लगी अब , सपने अपने गये अभी सज

बात भाईचारे की करें , फहरायें  कामयाबी का ध्वज

ऐसी हो एकता हमारी , लोग रहेंगे अभी तो दंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....


लुभाता है सौंदर्य हमको , गुनगुनाती जागती उमंग 

सपने सज गये अंग रंग , बज रही लो कहीं जलतरंग 

मिलन हो सजन से अब सबका , सपने सज गये प्रेमिल रंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....


छायी चहुँ दिशा उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम संग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....

▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

21.2.2021 , 3:21 पीएम पर रचित ।

मुंबई   ( महाराष्ट्र ) 

€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€

🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दोहे*

          वासंतिक छवि(दोहे)

सुरभित वातावरण है,कोकिल-कंठ सुरम्य।

वासंतिक परिवेश में,प्रकृति-छटा अति रम्य।।


अलि-गुंजन अति प्रिय लगे,अति प्रिय सरित-तड़ाग।

पुष्प-गंध प्रिय नासिका,प्रिय आमों की बाग।।


सरसों से शोभा बढ़े,धरा-वस्त्र प्रिय पीत।

बार-बार मन यह कहे,आ जा प्यारे मीत।।


गुल गुलाब,टेसू खिले,आम्र-मंजरी गंध।

चहुँ-दिशि गंध प्रसार कर,बहती पवन-सुगंध।।


तन-मन प्रियतम याद में,विरही मन अकुलाय।

वासंतिक परिवेश भी,सके न अग्नि बुझाय।।


रवि-किरणें अति प्रिय लगें,चंद्र लगे बहु नीक।

पर,विरही मन को लगे,जैसे वाण सटीक।।


रति-अनंग का मास यह,मधु-मधुकर-मधुमास।

प्रकृति-छटा अति रुचिर है,प्रगति-प्रकाश-विकास।।

                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


 अपना जलवा ज़रा सा दिखा दीजिए

चाँद का शर्म से सर झुका दीजिए


कह सकूँ आपसे प्यार करता हूँ मैं

ऐसा माहौल तो कुछ बना दीजिए


 एक बीमारे-उल्फ़त है सामने

उसको उसकी दवाई पिला दीजिए


एक मुद्दत से डूबे हैं हम प्यार में

आज सारे ही पर्दे हटा दीजिए 


चोरी चोरी तो मिलते ज़माना हुआ

अब तो खुलकर जहां को बता दीजिए


हर तरफ़ तीरगी दिल के आँगन में है 

प्यार की शम्अ फिर से जला दीजिए 


दिल उदासी में *साग़र* है डूबा हुआ

प्यार की इक ग़ज़ल ही सुना दीजिए


🖋️विनय साग़र जायसवाल

14/2/2021

मन्शा शुक्ला

 परम पावन मंच का सादर नमन

      सुप्रभात

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


कहे वेद वाणी

नमो शूल पाणी

नमो सच्चिदानन्द

दाता पुरारी।

निराधार के हो

तुम आधार ज्योति

तुलसी के मानस के

मर्मज्ञ मोती

दानियों मे अग्रगण्य

औढ़रदानी महादेव

शम्भु है  शत्  शत् नमामि

नमामि,नमामि ,है शत् शत्

नमामि,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,।।


जय भोलेनाथ🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

नूतन लाल साहू

 गूढ़ रहस्य


व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है

अंदर मन का खोल ताला

निज से पहचान हो जायेगा

वाणी सत्य और पावन हो तो

बढ़ गई,जीवन की शान समझो

जिसने भी छोड़ा,सुख दुःख का चिंतन

समझो,भगवान है उसके सनमुख

बांटे ज्ञान के हीरे मोती

इसमें कभी भी,कमी नहीं होती है

व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है

परदा दूर करे,आंखो का

भगवान से नाता जोड़

जग की ममता को जिन्होंने भी छोड़ा

भगवान का मिल जायेगा सहारा

सत्य नाम का प्याला,भर भर कर

खुद पीये और सबको पिलावे

सच कहता हूं,प्यारे

विषयो का विष मिट जाता है सारा

भक्ति बिना,प्रभु जी नहीं मिलता

मन का कष्ट,कभी नहीं टलता

मेरी तेरी के भरम,छोड़ दो

कण कण में,प्रभु जी नजर आयेगा

व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु, व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-10

रमारमन प्रभु रच्छा करऊ।

सरनागत-रच्छक तुम्ह अहऊ।।

     भुजा बीस रावन-दस सीसा।

     राच्छस सकुल हतेउ जगदीसा।।

प्रभु तुम्ह अहहु अवनि-आभूषन।

धनु-सायक-निषंग तव भूषन ।।

      भानु क किरन-प्रकास समाना।

       नाथ तेज तव धनु अरु बाना।।

तुमहिं करत निसि-तम कै नासा।

मद-ममता अरु क्रोध बिनासा।।

      जे नहिं करहिं प्रीति पद-पंकज।

       रहहिं मलिन-उदास ते सुख तज।।

रुचिकर लगै जिनहिं प्रभु-लीला।

मान-लोभ-मद प्रति मन ढीला ।।

       सो साँचा सेवक प्रभु होवै।

       करै पार भव-सिंधु,न खोवै।।

अरु बिचरै जग संत की नाई।

बिनू मान-अपमान लखाई ।।

      राम क सत्रु अहहि अभिमाना।

       जनम-मरन औषधी समाना।।

नाथ सील-गुन-कृपा-निकेता।

राम महीप दीन जन-चेता।।

       करउ नाथ रच्छा तुम्ह मोरी।

        देवहु अचल भगति मों तोरी।।

दैहिक-दैविक-भौतिक तापा।

राम क कथा हरै परितापा।।

       सुनै जे छाँड़ि कथा आसक्ती।

        ओहिका मिलै मुक्ति अरु भक्ती।।

राम-कथा बिबेक दृढ़ करई।

बिरति-भगति प्रबलहि बहु भवई।।

      मोह क नदी पार जन जावहिं।

       चढ़ि के तुरत भगति के नावहिं।।

दोहा-निसि-बासर तहँ अवधपुर,कथा राम कै होय।

        मगन सुनहिं पुरवासिनहिं,अंगदादि-हनु सोय।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

भारत के इक्कीस परमवीर ग्रन्थ का लोकार्पण


 *शौर्य की भाषा का कालजयी ग्रन्थ है भारत के इक्कीस परमवीर-वी के सिंह* 
इक्कीस एपिसोड बनाये जायेंगे-सुरेश चव्हाणके
सभी भाषाओं में अनुवाद कराया जायेगा-पी के मिश्रा

हिन्दी भवन दिल्ली में सम्पन्न हुआ भव्य लोकार्पण समारोह
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भारतीय सेना के अद्भुत शौर्य एवं पराक्रम की भाषा का अद्भुत अंतर्राष्ट्रीय काव्यग्रँथ है *भारत के इक्कीस परमवीर* । इस ग्रन्थ में लिखी कविताओं से हमारी पीढ़ियों में देशभक्ति का  संचार होगा।
 वैश्विक स्तर पर हिंदी के लिये समर्पित काव्यकुल  संस्थान (पंजी.)  द्वारा हिंदी भवन दिल्ली में आयोजित 'भारत के इक्कीस परमवीर' अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रह के लोकार्पण अवसर पर उपरोक्त विचार मुख्य अतिथि जनरल वी के सिंह(सेवानिवृत्त) केंद्रीय राज्य मंत्री सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने प्रकट किये।
जनरल वी के सिंह ने कहा इस ग्रन्थ के सम्पादक  एवं काव्यकुल संस्थान के अध्यक्ष डॉ राजीव कुमार पांडेय ने बड़ा श्लाघनीय कार्य कर देश की सेना का मान बढ़ाया है। इस प्रकार का कालजयी ग्रन्थ हिंदी साहित्य की अनुपम निधि है। 
कार्यक्रम के अध्यक्ष दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेश चन्द्र शर्मा पूर्व महापौर ने कहा भारत के परमवीरों की गाथा का   गायन करने वाला पहला काव्य ग्रन्थ है जहाँ एक साथ इक्कीस परमवीरों को पढ़ा जा सकता है। साथ ही कहा कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन काव्यकुल संस्थान के साथ हमेशा खड़ा रहेगा।
मुख्य समीक्षक ख्यातिलब्ध साहित्यकार, समालोचक ओम निश्छल ने *भारत के इक्कीस परमवीर* ग्रन्थ को ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हुए कहा कि किसी धर्म ग्रन्थ की तरह पुनीत एवं पावन है जो भारतीय सेना की शौर्य  गाथा को  उद्घाटित करता है। वीररस की कविताएं उत्साह का संचार करती हुई हमें देश के प्रति अपने कर्तव्य का बोध कराती हैं।
विशिष्ट अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल वी के चतुर्वेदी(से.नि.) ने  इस ग्रन्थ को अभूतपूर्व काव्य संग्रह की संज्ञा दी।
विशिष्ट अतिथि बी सी एफ के पूर्व एडिशनल डी जी पी के मिश्रा ने कहा कि इस ग्रन्थ का सभी सभी भाषाओं में अनुवाद कराया जाएगा। वरिष्ठ साहित्यकार इंदिरा मोहन, सुदर्शन चैनल के सी ई ओ सुरेश चौहाणके ने इसे संग्रहणीय ग्रन्थ बताया।
सुदर्शन चैनल के चेयरमैन सुरेश चौहान ने घोषणा की की इस किताब के आधार पर 21 एपिसोड बनाये जायेंगें।
जब मंच के द्वारा इस ग्रन्थ का लोकार्पण किया गया तब पूरा हिंदी भवन भारत माता की जय से गूँजने लगा।।
ग्रन्थ की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए संकलन कर्ता ओंकार त्रिपाठी ने बताया कि बीते वर्ष 22 नवम्बर में काव्यकुल संस्थान ने परमवीर चक्र विजेताओं पर 151 कवियों का ऑनलाइन कार्यक्रम किया था। उन्ही कवियों में से चयनित 101 कवियों की कविताओं को इस ग्रन्थ में संकलित किया गया है, जिसमें भारत अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, रूस, तंजानिया, दोहा कतर, केन्या आदि देशों के रचनाकार हैं।
इस लोकार्पण समारोह में भारत के कई राज्यों से आये वे साहित्यकार जिनकी कविताओं को इस ग्रन्थ में स्थान मिला ऐसे  51 साहित्यकारों को परमवीर सृजन सम्मान से सम्मानित किया गया।
इस ग्रन्थ में प्रकाशित कवियों से उनकी कविता का पाठ कराया गया। इस अवसर पर प्रीतम कुमार झा,सुधा बसोर गाजियाबाद,सुनीता पुनिया दिल्ली,मोहन संप्रास, फरीदाबाद
साधना मिश्रा लखनऊअनुपमा पांडेय "भारतीय" गाजियाबाद,यशपाल सिंह चौहान नई दिल्ली,रीता गौतम गोरखपुर,  सूर्यप्रकाश श्रीवास्तव "सूर्य",डॉ राम निवास'इंडिया', दिल्ली,नेहा शर्मा,नोयडा, नोएडा,राजेश कुमार सिंह "श्रेयस" लखनऊ,सुनील सिंधवाल 'रोशन' दिल्ली,ब्रज माहिर फरीदाबाद,दीपा शर्मा गाजियाबाद,आचार्य शुभेन्दु(प्रदीप)त्रिपाठी दिल्ली,पं. विनय शास्त्री 'विनयचंद', डॉ भोला दत्त जोशी, पुणे,जय प्रकाश शर्मा , नागपुर,डॉ अशोक कुमार 'मयंक' दिल्ली,कुसुमलता 'कुसुम', नई दिल्ली, कुमार रोहित रोज़, दिल्ली,सन्तोष कुमार पटैरिया महोबा, उत्तर प्रदेश,राजकुमार छापड़िया, मुंबई,सन्तोष कुमार प्रजापति 'माधव' महोबा उत्तर प्रदेश,डॉ पुष्पा गर्ग 'हापुड़',रजनीश स्वछन्द दिल्ली,गार्गी कौशिक, गाजियाबाद,मीरा कुमार मीरू, ग़ाज़ियाबाद ,मधु शंखधर 'स्वतंत्र' प्रयागराज,शरद कुमार सक्सेना "जौहरी " एडवोकेट कानपुर
आचार्य प्रद्योत पाराशर,डॉ उदीशा शर्मा, गाजियाबाद,वेदस्मृति ‘कृती’ पुणे ,इंजी०अशोक राठौर, ग़ाज़ियाबाद,विद्या शंकर अवस्थी ,कानपुर,  चंचल पाहुजा, गाजियाबादडॉ. अनिता जैन 'विपुला'  उदयपुर राजस्थान ,राजीव कुमार गुर्जर मुरादाबाद,सोमदत्त शर्मा 'सोम' नोयडा
,ज्ञानवती सक्सैना ‘ ज्ञान’जयपुर, राजस्थान, ऋतु यादव अबूधाबी,डॉ अंजू अग्रवाल,डॉ रजनी शर्मा 'चंदा',रांची झारखंड,कैप्टन(डॉ)ब्रह्मानन्द तिवारी 'अवधूत' मैनपुरी, अवनीश अग्रवाल दोहा क़तार,बृंदावन राय 'सरल' सागर,मध्य प्रदेश, अशोक कुमार जाखड़ हरियाणा, कुन्ती हरिराम झाँसी आदि इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बने।
इस अवसर पर डॉ राजीव कुमार पाण्डेय  को सम्पादन कार्य के लिये एवं ओंकार त्रिपाठी को संकलन कार्य के लिये भी सम्मानित किया गया।
आयोजन समिति के सदस्य यशपाल सिंह चौहान, ब्रज माहिर,राजकुमार छापड़िया, ब्रह्मप्रकाश वशिष्ठ 'बेबाक' अनुपमा पाण्डेय भारतीय, कुसुमलता कुसुम,दीपा शर्मा,गार्गी कौशिक, अशोक कुमार राठौर, राजेश कुमार सिंह श्रेयस, राजीव कुमार गुर्जर ने सभी अतिथियों का बुके , शाल एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। कुसुमलता 'कुसुम'के द्वारा माँ वाणी की वंदना सुमधुर कंठ से की गयी। धन्यवाद ज्ञापन यशपाल सिंह चौहान किया। संचालन डॉ राजीव कुमार पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम का समापन वन्देमातरम के साथ हुआ।

प्रेषक 
डॉ राजीव कुमार  पाण्डेय
राष्ट्रीय अध्यक्ष
काव्यकुल संस्थान(पंजी)
मोबाइल 9990650570

मन्ना शुक्ला

 परम पावन मंच का सादर नमन

    ....   सुप्रभात

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


ढ़ाई आखर प्रेम में, निहित जगत का सार।

प्रेम बिना रीता  लगें, जग जीवन आसार।।


त्याग समर्पण भावना,परहित सेवा भाव।

पावन प्रेम स्वरूप से, सजा रहें  मन गाँव।।


 प्रेम दिवस मनाइये, बाँध प्रीति की डोर।

द्वेष भाव मन के मिटें, नाच उठें मनमोर।


डगर प्रेम की कठिन है, पग पग बिखरें शूल।

प्रेम सुधा बरसात से ,खिलतें हिय में फूल ।।


 पावन बन्धन प्रेम के, बँध जाते भगवान।

प्रेम भाव महिमा बड़ी, करें सदा गुणगान।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

निशा अतुल्य

 पुलवामा दिवस

14.2.2021

💐🙏🏻💐


श्रद्धा सुमन 

समर्पित तुम्हें 

ओ वीर मेरे 


शहीदी दिन

पुलवामा के वीर

तुम्हें नमन  ।


कर्तव्य निष्ठ

अनुपम है शौर्य

समर्पित हैं ।


दुश्मन कांपे

तुम्हारे ही शौर्य से 

वीर सिपाही।


झुकाते शिश

मातृभूमि के लिए

खड़े हैं तने ।


तुम्हारी धरा

आसमान तुम्हारा

यहाँ से वहाँ ।


डोलते रहें

सागर को चीरते

तेज नजर ।


तुम्हें नमन 

समर्पित हैं भाव 

वीर नमन  ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः १३.०२.२०२१

दिवसः शनिवार

छन्दः मात्रिक

विधाः दोहा

विषयः वेदना

शीर्षक इठलाते लखि वेदना


इठलाते    लखि  वेदना , खल  सम्वेदनहीन।

 झूठ    लूट   धोखाधड़ी , धनी विहँसते दीन।।


लावारिस    क्षुधार्त  मन , देख   फैलते   हाथ।

आश हृदय कुछ मिल सके ,कोई बने तो नाथ।।


आज मरी लखि वेदना , दीन दलित अवसाद।

दया  धर्म  करुणा कहाँ ,  ख़ुद  होते  आबाद।। 


मरी  सभी  इन्सानियत , मरा   सभी   ईमान।

हेर  फेर  कर   लाश  में , नहीं कोई  पहचान।। 


देह   वसन  आवास  बिन , रैन  बसेरा   रात।

बंज़ारन    की  जिंदगी  , शीत  ताप बरसात।। 


दरिंदगी  चहुँओर  अब ,  लूट  रहे जग लाज।

कायरता     निर्लज्जता , निर्वेदित     समाज।। 


आहत जन   आतंक से  ,  देश द्रोह    अंगार।

मार   काट   दंगा  करे  , दया    वेदना   मार।।


फूट  रहे  निर्वेद  स्वर , लोभ  मोह मद स्वार्थ।

रिश्ते   नाते   सब  मरे , भूले   सब   परमार्थ।। 


मातु पिता गुरु श्रेष्ठ को , तजी आज सन्तान।

जिस माली पुष्पित चमन,दी उजाड़ मुस्कान।।


सीमा रक्षक  जो  वतन , देते निज बलिदान।

प्रश्नचिह्न उन शौर्य पर  , उठा    रहे  नादान।।


नाम मात्र  कलि वेदना,पा निकुंज मन पाद।

भूल सभी पुरुषार्थ को , तहस नहस बर्बाद।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक 

नई दिल्ली

एस के कपूर श्री हंस

*पुलवामा शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित।।*  *14 फरवरी*

*शीर्षक।।शहीद हमारे अमर महान हो गए।*

*।।मुक्तक।।*


नमन है उन शहीदों को जो

देश पर कुरबान हो गए।



वतन  के  लिए देकर जान

वो   बे जुबान  हो   गए ।।



उनके प्राणों  की  कीमत से

ही सुरक्षित है देश हमारा।



उठ  कर  जमीन  से   ऊपर

वो जैसे आसमान हो गए।।


*रचयिता।।। एस के कपूर*

*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।।।।।*


मोब  9897071046।।।।।।।।

8218685464।।।।।।।।।।।।।


*।।रचना शीर्षक।।*

*।।प्रेम से जीत सकते हर*

*दिल का मुकाम हैं।।*


मन में   प्रेम     तो   सुख

बेहिसाब     है।

बस   क्रोध    कर    देता

काम खराब   है।।

क्रोध में जीत   नहीं मिले

है    हार   इसमें।

साथ आ गई      घृणा तो

सब     बर्बाद है।।


करो दुआ सबके लिए कि

दवा   समान    है।

महोब्बत का छोर तो जमीं

आसमान       है।।

जरूरत नहीं किसी    तीर

और तलवार की।

प्रेम से हम जीत सकते हर

दिल का मुकाम हैं।।


हम जन्म नहीं  पर  चरित्र

के    जिम्मेदार हैं।

हर किसी के मन  में चित्र

के जिम्मेदार    हैं।।

क्रोध लेकर   आता   शत्रु

और     चार   चार।

जीव में घटित हर  विचित्र

के    जिम्मेदार   हैं।।


किरदार करता है    फतह

हर    दिल       में।

चेहरे से मिलती  ना जगह

हर   दिल       में।।

प्रेम की डोर     बहुत   ही 

बारीकओ नाजुक।

इससे मिले रहने के वजह

हर     दिल      में।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464


 *मातृ पितृ पूजन दिवस।।।।।।*

*(क) हमारी माता।हमारी जीवनदायिनी।हाइकु*

1

माता हमारी

चांद सूरज जैसी

है वह न्यारी

2

माता का प्यार

अदृश्य वात्सल्य का

फूलों का हार

3

माता का क्रोध

हमारे    भले     लिये

कराता   बोध

4

घर की शान

माता रखती ध्यान

करो सम्मान

5

माँ का दुलार

भुला दे हर दुःख

चोट ओ हार

6

माता का ज्ञान

माँ प्रथम  शिक्षक

बच्चों की जान

7

घर की नींव

मकान   घर बने

लाये  करीब

8

त्याग  मूरत

हर दुःख  सहती

हो जो सूरत

9

प्रभु का रूप

सबका रखे ध्यान

स्नेह स्वरूप

10

घर की  धुरी

ममता दया रूपी

प्रेम से  भरी

11

आँसू बच्चों के

माँ ये देख न पाये

कष्ट  बच्चों  के

12

प्रेम निशानी

माँ जीवन दायनी

त्याग कहानी

*(ख)हमारे पिता।हमारे पालनहार।हाइकु*

1

पिता हमारे

संकट में रक्षक

ऐसे सहारे

2

पिताजी सख्त

घर    पालनहार

ऊँचा है  तख्त

3

पिता का साया

ये बाजार  अपना

मिले   ये  छाया

4

पिता    गरम

धूप में   छाँव जैसे

है भी   नरम

5

घर की धुरी

परिवार  मुखिया

हलवा पूरी

6

पिता जी माता

हमारे जन्मदाता

सब हो जाता

7

पिता साहसी

उत्साह का संचार

मिटे उदासी

8

पिता से धन

हो जीवन यापन

ऋणी ये तन

9

पिता कठोर

भीतर से कोमल

न ओर छोर

10

शिक्षा संस्कार

होते जब विमुख

खाते हैं मार

11

पिता का मान

न  करो अनादर

ये चारों धाम

*रचयिता। एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली* 9897071046/8218685464

नूतन लाल साहू

 त्याग


सभी सिद्धिया मिलेंगी

यदि मौन धारण किया

इस रहस्य की बात को

कौन समझ सका है

आता है सबका शुभ समय

फिर काहे को घबराता है

लिख के रख लें एक दिन

होगा,काम तुम्हारा

पर,जरा जरा सी बात पर

तू क्यों रोता है

त्याग के बिना

कुछ भी संभव नहीं है

क्योंकि सांस लेने के लिए भी

पहले सांस छोड़ना पड़ता है

सारी बातें, कह चुके है

तुलसी सूर कबीर

बचा खुचा सब लिख गए

केशव और रहीम

भूतकाल इतिहास है

वर्तमान है उपहार

जिसने झेला ही नहीं है

दुःख संकट संघर्ष

वह क्या खाकर पायेगा

जीवन में उत्कर्ष

सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से सीखो

स्वप्न में ही सब कुछ त्याग दिया

आया प्रलयंकारी संकट

पर ईमान को न बिकने दिया

वो नर से नारायण बन गया

याद करो समय बहुत बीत गया

पर उसे कौन भूल सका

त्याग के बिना

कुछ भी संभव नहीं है

क्योंकि सांस लेने के लिए भी

पहले सांस छोड़ना पड़ता है


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-9

निरगुन-सगुन राम कै रूपा।

भूप सिरोमनि राम अनूपा।।

     निज भुज-बल प्रभु रावन मारे।

     सकल निसाचर कुल संहारे।।

मनुज-रूप लीन्ह अवतारा।

अघ-बोझिल महि-भार उतारा।।

    जय-जय-जय सिय-राम गुसाईं।

     सरनागत-रच्छक,जग-साईं ।।

माया बस मग मा जे भटकहि।

नर-सुर-रच्छक जे मग अटकहि।।

    नाग-चराचर जे जग आहीं।

    नाथहि कृपा जबहिं ते पाहीं।।

भवहिं मुक्त ते तीनहुँ तापा।

जगत-बिदित नाथ-परतापा।।

      मिथ्या ग्यानी अरु अभिमानी।

       नाथ-कृपा-महिमा नहिं जानी।।

ताकर होहि अधोगति लोका।

होंहिं भले ते देव असोका।।

      तजि अभिमान भजै जे रामा।

       ताकर कष्ट हरैं श्रीरामा ।।

जिन्ह चरनन्ह कहँ सिव-अज पूजहिं।

बंदि-बंदि जिन्ह सुर-मुनि छूवहिं ।।

     छुइ चरनन्ह जिन्ह उतरी गंगा

      छुवत जिनहिं भइ नारि उमंगा।।

अस चरनन्ह कर करि अभिवादन।

मिलहिं अनंतइ सुख मन-भावन।।

      बेद कहहिं प्रभु बिटप समाना।

      मूल अब्यक्त जासु जग जाना।।

हैं षट कंध,त्वचा तरु चारी।

साखा जासु पचीसहि भारी।।

     पर्ण असंख्य सुमन तरु अहहीं।

      मीठा-खट्टा दुइ फल लगहीं।।

लता एक आश्रित तरु आहे।

फूलत नवल पल्लवत राहे।

      अस तरु,बिस्व-रूप भगवाना।

      नमन करहुँ अस तरु बिधि नाना।।

ब्रह्म अजन्म अद्वैत कहावै।

अनुभव गम्यहि बेद बतावै।

      तजि बिकार मन-बचन-कर्म तें।

      करि गुनगान सगुन ब्रह्म तें ।।

जे जन करहीं प्रभू-बखाना।

पावैं करुनाकर गुनखाना।।

दोहा-अस बखान करि राम कै, गए बेद सुरलोक।

         तुरत तहाँ सिव आइ के,बिनती करहिं असोक।

                            डॉ0हरि नाथ मिश्र

                                9919446372

निशा अतुल्य

 अर्जुन कहता"एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है"

13.2.2021


मन के अंदर का झंझावत केशव

पूरा एक कुरुक्षेत्र मेरे अंदर भी है

ये खड़े हुए जो रणक्षेत्र में 

सब मेरे मन के अंदर ही हैं ।


मार इन्हें रण जीत लिया तो

राज्य मैं पा जाऊँगा 

पर हे केशव मार इन्हें मैं

अपने से गिर जाऊँगा ।


हँस केशव ने देखा अर्जुन को

बोले थोड़ा मुस्कुराकर 

हे पार्थ, क्यों द्रौपदी भूल गए 

जिसका अपमान भरी सभा हुआ ।


बैठे थे धुरंधर बहुत वहाँ

थे ओंठ सभी के सिले हुए 

कोई पितामह था उनमें 

और कोई गुरु महान वहाँ ।


सास ससुर सिंहासन बैठे थे

राज्य कर्मचारी सभी वहाँ

नहीं किसी के ओंठ हिले तब

तुम अपमानित झुके वहाँ।


राज्य के लिए नहीं लड़ो तुम

है अंदर जो कुरुक्षेत्र तुम्हारे 

ज्वाला उसकी कुछ तेज करो 

पति धर्म निभाओ अपना 

और कुरुक्षेत्र को खत्म करो ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *वसंत*

             ऋतुराज

हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है,

कोयल-कूक, भ्रमर-मृदु गुंजन।

दें तुमको आवाज़-तुम्हारा स्वागत है।।


फूल खिल गए गुलशन-गुलशन,

जिनपर करें तितलियाँ नर्तन।

बजे गीत के साज़-तुम्हारा स्वागत है।।


प्रकृति अनोखी सजी हुई है,

आम्र-मंजरी लदी हुई है।

हुआ प्रीति आगाज़-तुम्हारा स्वागत है।।


फूली सरसों छटा बिखेरे,

सजी धरा को लखें चितेरे।

मनमोहक महि-लाज-तुम्हारा स्वागत है।।


थलचर-जलचर-नभचर सब में,

नदी-तड़ाग-गिरि, वन-उपवन में।

रति-अनंग-साम्राज्य-तुम्हारा स्वागत है।।


तुम प्रतीक मधुमास सुहावन,

प्रेमी-प्रेयसि के मनभावन।

हो तुमहीं सरताज-तुम्हारा स्वागत है।।


तुम्हीं नियंता सब ऋतुओं के,

हो अभियंता रस-तत्त्वों के।

दस दिशि तेरा राज-तुम्हारा स्वागत है।।


मगन-मुदित जग हो पा तुमको,

मिलता सुख असीम है सबको।

खग-मृग सकल समाज-तुम्हारा स्वागत है।।

हे वसंत ऋतुराज!तुम्हारा स्वागत है ।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सवेरे-सवेरे

               *सवेरे-सवेरे*

कोइ आ के जगाया सवेरे-सवेरे।

प्रीति-आसव पिलाया सवेरे-सवेरे।।


 संग में ले अपने चरागे मोहब्बत।

आ,अँधेरा भगाया सवेरे-सवेरे।।


रहा द्वंद्व दिल में पता भी नहीं था।

आ,किसी ने जताया सवेरे-सवेरे।।


जो गया भूल था भी सबक जिंदगी का।

आ,किसी ने सिखाया सवेरे-सवेरे।।


बेवजह सोचते आँख जब लग गई थी।

 स्वप्न प्यारा सा आया सवेरे-सवेरे।।


अभी स्वप्न में जो रहा नक़्शा अधूरा।

आ,कसी ने बनाया सवेरे-सवेरे।।


 सधी जब नहीं थी वो ग़ज़ल रात मुझसे।

आ,किसी ने सधाया सवेरे-सवेरे।।


नाज था जिस महक पे दिले बागबाँ को।

 बह,हवा ने चुराया सवेरे-सवेरे ।।

                 ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                  9919446372

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल--

1.

हसीं ख़्वाब जो तुमने पाले हुए हैं

ये सब दाँव तो देखे भाले हुए हैं 

2.

बुलंदी पे हैं आप जिसकी  बदौलत

उसी पर ही तोहमत उछाले हुए हैं

3.

मिली पेट भर आज बच्चों को रोटी 

यूँ हीं तो नहीं हाथ काले हुए हैं 

4.

पुरानी हवेली पे हम रंग कर के

बुज़ुर्गों की अज़्मत सँभाले हूए हैं

5.

बराबर अँधेरों से की है लड़ाई

कहीं जाके तब यह उजाले हुए हैं

6.

 नज़र डाल तू चारा चुगने से पहले

 शिकारी कमन्दे भी  डाले हुए हैं

7.

कहा आज महफ़िल में सबने ही  *साग़र*

कई शेर तेरे निराले हुए हैं 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

कमन्दे-फंदे ,पाश , फंदेदार रस्सी

3/2/2021

कवि डॉ. भोला दत्त जोशी जी होंगे परमवीर चक्र सहित्य सृजन सम्मान से सम्मानित

 परमवीर सृजन सम्मान


हमारा भारत देश प्राचीन काल से ही गौरवशाली इतिहास का साक्षी रहा है फिर भले ही वह गार्गी के ध्वनि तरंगों द्वारा शब्द संप्रेषण के सिद्धांत की बात हो, महान वैज्ञानिक शून्य एवं दशमलव पद्धति के जनक आर्यभट हों, संसार के प्रथम नाटककार आचार्य भरत, शुल्वसूत्र के जनक बोधायनाचार्य , आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रमुख वैद्य चरक और सुश्रुत, एकेश्वरवाद के जनक आदि शंकराचार्य , शांति और अहिंसा सिद्धांत के प्रमुख प्रसारक भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी जी। वीरता के इतिहास को स्वर्णिम पन्नों में लिखने वाले वीर राणा प्रताप , वीर योद्धा शिवाजी, रानी लक्ष्मी बाई आदि ने अपने समर्पण और बलिदानी कार्यों से देश के गौरव को बढ़ाया और कभी उसके मान को आंच नहीं आने दी। 


भारत की अंग्रेजी शासन से आजादी के बाद भी यही परंपरा कायम रखते हुए जिन वीरों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर देश की आन बान और शान को अक्षुण्ण बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी उन्हें देश ने सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा।ऐसे 21 वीरों को

विशिष्ट सम्मान देने के उद्देश्य से डॉ राजीव पांडेय जी के मार्गदर्शन में दुनिया भर से 151 कवियों ने परमवीर चक्र विजेताओं पर स्व रचित कविताएं आभासी गोष्ठी के माध्यम से गूगल मीट पर पढ़ीं और जिसे फेसबुक पर सीधा प्रसारित भी किया गया था। यह कवि सम्मेलन 22 नवंबर 2020 को संपन्न हुआ था। गौरव की बात है कि उनमें से 101 कवियों के उन काव्यों को पुस्तक रूप प्रकाशित कर अद्भुत कार्य किया है। गाजियाबाद से प्रकाशित इस पुस्तक के संपादक डॉ राजीव पांडेय जी एवं संयोजक श्री ओंकार त्रिपाठी जी हैं। सेना का सम्मान हमारा परम कर्तव्य है। उन वीरों के शौर्य के कारण ही हम नागरिक अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं।


इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी काव्य संग्रह में डॉ भोला दत्त जोशी, पुणे की दो कविताएं " परमवीर चक्र विजेताओं का हम शतश: वंदन करते हैं " और " सर्वोच्च बलिदानी वीर सपूत " प्रकाशित हुईं हैं जिनमें उन सभी वीरों की वीरगाथाओं का उल्लेख किया गया है। उनकी वीरता को नमन करते हुए कवि ने स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया है और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है।

प्रख्यात कवि डॉ. भोला दत्त जोशी


ने लिखा - 


'सूबेदार बानासिंह संघर्ष कर सियाचिन में विजयी हुए थे

शहीद अरुण के वज्रप्रहार ने पाकटैंक बहु ध्वस्त किए थे

परमवीरचक्र-सम्मानित सैनिक-रज का पूजन करते हैं

परमवीर चक्र विजेताओं का,हम शतशः वंदन करते हैं।'

एक अन्य रचना वह लिखते हैं - 


'भारत मां की रक्षा में जिन वीरों ने सर्वोच्च बलिदान दिया 

उनकी अमर गाथाओं को,परमवीर चक्र देकर मान दिया।

मेजर सोमनाथ कुमाऊं रेजीमेंट के पाक सीमा पर डटे रहे

एक एक कर दुश्मन को मारा अंत तक बहादुरी से डटे रहे'


हर्ष का अवसर है कि प्रकाशित पुस्तक ' भारत के इक्कीस परमवीर ' का विमोचन सेना के सर्वोच्च अधिकारी पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह राज्य मंत्री, सड़क परिवहन मंत्रालय, भारत सरकार के हाथों 14 फरवरी को दोपहर दो बजे दिल्ली के हिंदी भवन में देश एवं विदेशों से आए कई गणमान्य कवियों और सेना वरिष्ठ अधिकारी वर्ग की उपस्थिति में हो रहा है। परमवीर चक्र विजेताओं में ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव साक्षात् उपस्थित होने वाले हैं। डॉ भोला दत्त जोशी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए ' परमवीर सृजन सम्मान ' से सम्मानित किया जाएगा। ज्ञातव्य है कि डॉ भोला दत्त जोशी की विभिन्न विधाओं में 15 किताबें एवं 19 सांझा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्हें पहले अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्मानों मसलन अमेरिका के केंद्रीय विश्वविद्यालय से डी.लिट. से सम्मानित किया जा चुका है।

परमवीर चक्र विजेताओं पर यह एक अनूठा , अद्भुत और पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ है जो मील का पत्थर साबित होगा। देश सबसे ऊपर है इसी बात को लोगों के ध्यान में लाना और सेना के बलिदान को उचित सम्मान देने की भावना नई पीढ़ी में अंकुरित करना इसका उद्देश्य है।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-8

मिलि सभ सासु सियहिं नहवाईं।

भूषन-बसन दिव्य पहिराईं ।।

       बामांगी सीता बड़ सोहैं।

       चढ़े बिमान ब्रह्म-सिव मोहैं।।

गुरु बसिष्ठ मँगाइ सिंहासन।

मंत्र उचारि दीन्ह प्रभु आसन।।

       राम-सिंहासन सुरुज समाना।

        करै जगत बहु-बहु कल्याना।।

देखि राम-सिय बैठि सिंहासन।

जय-जय करहीं सुरन्ह-ऋसीगन।।

       प्रथम तिलक बसिष्ठ गुरु कीन्हा।

        बाद असीस द्विजन्ह सभ दीन्हा।।

सोभा दिब्य निरखि सभ माता।

करहिं आरती प्रभु सुख-दाता।।

      सभे भिखारी भे धनवाना।

       पाइ क दान,खाइ पकवाना।।

देखि सिंहासन पे रघुराई।

सुरन्ह दुंदुभी मुदित बजाई।।

      भरत-शत्रुघन-लछिमन भाई।

       अंगद-हनुमत अरु कपिराई।।

साथ बिभीषन लइ धनु-सायक।

छत्र व चवँर-कटार अधिनायक।।

       सोहैं रघुबर सँग सभ लोंगा।

       हरषहिं सुख लहि अस संजोगा।।

सीता सहित भानु-कुलभूषन।

पहिरि पितंबर-भूषन नूतन।।

       लगहिं कोटि छबि-धाम अनंगा।

        साँवर तन,धनु-बान-निषंगा।।

राम-रूप अस संकट-मोचन।

बाहु अजान व पंकज लोचन।।

       अस प्रभु-रूप बरनि नहिं जाए।

        राम-रूप अस संकर भाए।।

दोहा-धारि भेष तब भाँट कै, आए बेदहिं चारि।

         करन लगे प्रभु-वंदना,सुंदर बचन उचारि।।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

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