एस के कपूर श्री हंस

 [14/03, 8:40 am] +91 98970 71046: *विषय।।बाल साहित्य।।*

*विधा।।बाल शिक्षाप्रद कविता।।*

*शीर्षक।।स्कूल में शुरू हो गई*

*फिर से अब पढ़ाई है।।*

1

बिल्ली मौसी दूध मलाई

मेरी तुम मत खाना।

मुझ को खा पीकर     है

स्कूल को     जाना।।

करनी है    मुझको    तो 

खूब          पढ़ाई।

बंदर मामा मत कर  मेरी

छत पर    लड़ाई।।

2

कॅरोना में घर   बैठ  कर

आयी   बारी  है।

शुरू हुई फिर  स्कूल  की

तैयारी          है।।

हाथी दादा    मिलने हम

चिड़ियाघरआयेंगे।

बंदर मामा आकर  केला

तुम्हें    खिलायेंगे।।

3

भगवान जी से     मिलने

मंदिर    जाना है।

उनसे प्रार्थना करके  हम

को  आना     है।।

हम खूब करें  पढ़ाई  यह

आशीर्वाद   मिले।

स्कूल में सबसे मिल कर

वैसे ही मन खिले।।

4

आज स्कूल जाते   लड्डू

मिला खाने    को।

मना कर      दिया   हमने 

अनजाने      को।।

मम्मी पापा ने मना  किया 

ऐसे कुछ लेने को।

अच्छा नहीं  होता   किसी

को कुछ देने को।।

5

आज बूढ़ी काकी  को हम

ने सड़क पार कराई।

बचाया चिंटू मिंटू को  कर

रहे थे दोनों लड़ाई।।

टीचर जी ने बताया हमको

बात अच्छी  सीखें।

बिना मास्क  सड़क  पर यूँ

ही   नहीं     दीखें।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।।     9897071046

                     8218685464

[14/03, 8:40 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।   ।।संख्या  17 ।।*

*।।काफ़िया।।  हर ।।*

*।। रदीफ़।।  अच्छी बात नहीं।।*

*बहर     22-22-22-22-22-22-2*


जहर की खेती बोई जाये अच्छी बात नहीं।

दुनिया हम को नाच नचाये अच्छी  बात नही।।


हमको करना होगी गुलशन की पहरेदारी।

कातिल आबोहवा मुस्काये अच्छी बात नहीं।।


प्यार मुहब्बत के पौधों से भरना है सारा गुलशन। 

 नफ़रत हर सू आँख दिखाये अच्छी बात नहीं।।


इतनी पहरेदारी है कैसे यह है मुमकिन।

दुश्मनआकर घात लगाये अच्छी बात नहीं।।


ऐ *हंस* यहाँ पर छुप छुप कर के कोई दुश्मन।

मेरे  बच्चों को उकसाये अच्छी बात नहीं।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।     9897071046

                   8218685464

[14/03, 8:40 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।    ।। संख्या  18।।*

*।।काफ़िया।। आज  ।।*

*।।रदीफ़।।   है       ।।*


तेरे अहम को जाने किस बात का नाज़ है।

आखरी सफ़र को भी दूसरों का मोहताज़ है।।


जाने कितने सिकंदर दफ़न हैं इस जमीं में।

तेरा क्यों यह वहम कि तेरे सर पर  ताज है।।


जिसने दिल दुनिया का जीता वही है कमाई।

वही साथ जाता बस यह एक खुला राज़ है।।


नेकी कर दरिया में डाल का हो फ़लसफ़ा।

अपने कद से नहीं कामों होता फ़राज़ है।।


अमीरी गरीबी का फर्क हर जगह लागू नहीं।

प्रभु की चौखट से  नाता इसका दूर दराज है।।


तेरे बुलाने पर जमा होते हैं कितने लोग।

कीमत गर है तो बस तेरी यह आवाज़ है।।


" *हंस*" बिताई जिसने जिन्दगी हाथों में हाथ लेकर।

वही फिर जाकर बना दुनिया में सरफ़राज़ है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।        9897071046

                    8218685464


*फ़राज़।   ।।।।।।।     ऊँचा*


*सरफ़राज़   ।।।।।।।।   सम्मानित*

निशा अतुल्य

कालचक्र
14.3.2021

मैं काल चक्र 
निरन्तर चलता ही रहता हूँ 
तुम करते रोकने की कोशिश मुझे
पर मैं कहाँ रुकता हूँ ।

कर्मों की गति से निर्धारण
तुम्हारे मिलने बिछड़ने के होते हैं 
कौन बच पाया मुझसे 
ले प्रभु अवतार
मेरे ही रथ पर चलतें हैं ।

राग ,विराग ,लोभ ,मोह 
सब मेरे मुझमें ही रहते हैं 
त्याग,तपस्या,सद विचार भी
मुझमें ही तो पलते हैं ।

मैं गतिशील रुक नहीं पाता
न थकता न हारा हूँ 
जिसने जानी ताकत मेरी 
उसको सब कर्मों से तारा है ।

सूर्य,चंद्र ,हवा और जल 
चलते काल संग ही है 
उद्गम और समर्पण भी 
रहता मेरे बस में ।

काल चक्र की गति निरन्तर
रोक सके न कोई इसे
काँटा पकड़ खड़ा रहे तू 
कब युग पलटे पता नहीं ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डॉ बीके शर्मा

श्री अटल जी को समर्पित मेरी कविता
**********************
 बिगड़ी बात बन गई
******************

बन गई बन गई 
बिगड़ी बात बन गई 

पहले तो वे हमसे नाराज थे
छुपा रहे जैसे कोई राज थे
एक रोज वे इत्तेफाक से मिले
मिट गए सारे शिकवे गिले

ऐसा लगा जैसे सांसे थम गई
बन गई बन गई 
बिगड़ी बात बन गई

 न वे आगे बढ़े
 ना कुछ हमने कहा 
नजर फिर से मिली 
दिल का गम तो गया 

ना होश उनको रहा
न सोच मेरी रही
होंठ उनके खुले 
बात मैंने कहीं 

वह आगोश में आ
सांसो में रम गई 
बन गई बन गई
बिगड़ी बात बन गई

 डॉ बीके शर्मा
 उच्चैन भरतपुर राजस्थान

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दूरियाँ*
           *दूरियाँ*(गीत)
आदमी आदमी में रहें दूरियाँ,
मग़र आदमियत से न हों दूरियाँ।
अगर आदमियत से हुए दूर हम-
करेंगी वमन विष का भी दूरियाँ।।

गले हम मिलें या मिलें हम नहीं,
मिलें हाथ से हाथ या फिर नहीं।
अगर दिल से दिल का मिलन हो रहा-
मिटेंगी ही निश्चित सभी दूरियाँ।।

सदा हाथ जोड़े हम करते नमन,
सदा मीठी भाषा का रक्खें चलन।
अगर मीठी बोली का करते अमल-
बढ़ेंगी कभी भी नहीं दूरियाँ।।

प्रचुर भाव देवत्व पलता वहाँ,
विमल सोच मस्तिष्क निर्मल जहाँ।
इस तरह भाव-संगम-हृदय यदि बने-
त्वरित भाग जाएँ जो थीं दूरियाँ।।

घड़ी संकटों की है आती अगर,
लड़ें उससे हम सब सदा हो निडर।
एकता-मंत्र का सूत्र यदि पा लिए-
रहेंगी कभी फिर नहीं दूरियाँ।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

डॉ०रामबली मिश्र

 हरिहरपुरी की कुण्डलिया


नारी अरि होती नहीं, नारी मित्र समान।

जो नारी को समझता, वह रखता शिव ज्ञान।।

वह रखता शिव ज्ञान, गमकता रहता प्रति पल।

भेदभाव से मुक्त, विचरता बनकर निर्मल।।

कहत मिश्रा कविराय, दिखे यह दुनिया प्यारी।

देवी का प्रतिमान, दिखे यदि जग में नारी।।


जिसे देख मन खुश हो जाता

                    (चौपाई)


जिसे देख मन खुश हो जाता।

हर्षोल्लास दौड़ चल आता।।

वह महनीय महान उच्चतम।

मनुज योनि का प्रिय सर्वोत्तम।।


परोपकारी खुशियाँ लाता।

इस धरती पर स्वर्ग बनाता।।

सब की सेवा का व्रत लेकर।

चलता आजीवन बन सुंदर।।


कभी किसी से नहीं माँगता।

अति प्रिय मादक भाव बाँटता।।

मह मह मह मह क्रिया महकती।

गम गम गम गम वृत्ति गमकती।।


उसे देख मन हर्षित होता।

अतिशय हृदय प्रफुल्लित होता।।

मुख पर सदा शुभांक विराजत।

दिव्य अलौकिक मधुर विरासत।।


रचनाकार:डॉ०रामबली


मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।।।। बाल साहित्य

 *विषय।।बाल साहित्य।।*

*विधा।।बाल शिक्षाप्रद कविता।।*

*शीर्षक।।स्कूल में शुरू हो गई*

*फिर से अब पढ़ाई है।।*

1

बिल्ली मौसी दूध मलाई

मेरी तुम मत खाना।

मुझ को खा पीकर     है

स्कूल को     जाना।।

करनी है    मुझको    तो 

खूब          पढ़ाई।

बंदर मामा मत कर  मेरी

छत पर    लड़ाई।।

2

कॅरोना में घर   बैठ  कर

आयी   बारी  है।

शुरू हुई फिर  स्कूल  की

तैयारी          है।।

हाथी दादा    मिलने हम

चिड़ियाघरआयेंगे।

बंदर मामा आकर  केला

तुम्हें    खिलायेंगे।।

3

भगवान जी से     मिलने

मंदिर    जाना है।

उनसे प्रार्थना करके  हम

को  आना     है।।

हम खूब करें  पढ़ाई  यह

आशीर्वाद   मिले।

स्कूल में सबसे मिल कर

वैसे ही मन खिले।।

4

आज स्कूल जाते   लड्डू

मिला खाने    को।

मना कर      दिया   हमने 

अनजाने      को।।

मम्मी पापा ने मना  किया 

ऐसे कुछ लेने को।

अच्छा नहीं  होता   किसी

को कुछ देने को।।

5

आज बूढ़ी काकी  को हम

ने सड़क पार कराई।

बचाया चिंटू मिंटू को  कर

रहे थे दोनों लड़ाई।।

टीचर जी ने बताया हमको

बात अच्छी  सीखें।

बिना मास्क  सड़क  पर यूँ

ही   नहीं     दीखें।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।।     9897071046

                     8218685464

दिल्ली में ऐतिहासिक साहित्यिक कार्यक्रम पुस्तक विमोचन एवम महिला सम्मान समारोह सम्पन्न

 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विप्र फाउंडेशन द्वारा दिल्ली में आयोजित श्री अभ्युदय उत्सव ऐतिहासिक रहा। देश भर से पधारी एक हजार से अधिक महिलाओं की पावन उपस्थिति में महिला स्वावलम्बन, संस्कार संरक्षण व कन्या विवाह में सहयोग जैसे विषयों पर मंथन व निर्णय हुए। समाज की दस तेजस्विनी युवतियों नूपुर शर्मा, बाँसुरी स्वराज, सुरभि मिश्रा, मीनाक्षी जोशी, युक्ति भारद्वाज, स्वाति शर्मा, शालिनी भारद्वाज, सुधा श्रीमाली, अंजलि कौशिक, सुमन जोशी का सम्मान हुआ। गृहिणियों द्वारा लिखित कविताओं की पुस्तिका श्री काव्य प्रवाह का प्रकाशन, विभिन्न प्रदेशों की सौ महिलाओं द्वारा पारंपरिक गीतमाला, कोरोना वारियर्स महिलाओं को सेवा श्री उपाधि अर्पण , विख्यात कलाकार सीमा मिश्रा द्वारा लोकगीतों की प्रस्तुति से सजा यह समारोह अविस्मरणीय रहेगा। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि डॉ.मल्लिका नड्डा, मुख्य वक्ता श्रीमती प्रियंका चतुर्वेदी : सांसद, विशिष्ट अतिथि सात बार के विधायक श्रद्धेय श्री सत्यनारायण शर्मा, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती रेखा शर्मा, सांसद श्री रमेश कौशिक, अर्थशास्त्री प्रो.गौरव वल्लभ, पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा, देश विख्यात आध्यात्म प्रचारक सुश्री जया किशोरी, दिल्ली विधानसभा सदस्य श्री अनिल वाजपेयी, jsw के उप प्रबन्ध निदेशक डॉ विनोद नोवाल व श्रीमती लता नोवाल प्रभृति शीर्षस्थजनों की प्रेरक उपस्थिति व सम्बोधन ने आयोजन को नई ऊँचाइयां प्रदान की।


स्वागताध्यक्ष श्रीमती ममता शर्मा पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग, स्वागतमंत्री श्रीमती सोनाली शर्मा व संयोजिका श्रीमती चन्द्रकान्ता राजपुरोहित के नेतृत्व में विप्र महिला नेतृत्व के शानदार सामंजस्य से संपन्न इस दिव्य आयोजन के कुछ चित्र आपके अवलोकनार्थ तीन खण्डों में प्रेषित हैं जो आपको अपने संगठन विप्र फाउंडेशन के प्रति और अधिक गौरव बोध कराएँगे।



महाशिवरात्रि आशुकवि नीरज अवस्थी काव्य रंगोली

 महाशिवरात्रि

महादेव की अर्चना,मन में अति विश्वाश।

बम बम भोले जो कहे ,पूरी होती आस

कर्म और प्रारब्ध से जिनके सोये भाग्य

शिव शंकर की भक्ति से भाग्य जायगे जाग


राम कृष्ण शिव को भजे जीवन का आलम्ब।

बिगड़ी बात बनायेगे राघव कृष्णा संभु।


शिव शंकर को जो भजे केवल सुबहो शाम।

उनके दुःख दारुण हरे गंगा धर भगवान।


नीरज इस संसार में जो बदकिस्मत लोग।

शिव् भक्ती से मिटत है दुःख दरिद्र अरु रोग।।


          महाशिवरात्रि


महाशिवरात्री 11फरवरी 2021 पर--


करते है मंगल दूर करते अमंगल,

मृत्यु हरते अकाल त्रिपुरारी भोलेनाथ जी।

कर में त्रिशूल मृगचर्म परिधान धारी,

दीनन के नाथ हम अनाथ भोले नाथ जी।।

सृष्टि को बचाने हित पी गये हलाहल विष,

दानी महादानी हैं हमारे भोलेनाथ जी।

भाल में मयंक जिनकी जटाओं में गंग धार,

सर्पमाल भस्म को रमाये भोले नाथ जी।।

रात्रि महारात्रि शिवरात्रि शिव को प्यारी अति,

बार बार आपको मनाऊँ भोले नाथजी।

जीव जन्तु नीरज से जन जुड़े जो धरती के,

उनके दुःखो को दूर करो भोलेनाथ जी।।

आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक मङ्गलमय शुभकामनायें।

भगवान आशुतोष आप की सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करे।।

आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256959



समस्त जीवों के दुःख हर्ता ,हमारे भोले नमामि शम्भू।

समस्त सृष्टी के बिघ्न हर्ता ,हमारे भोले नमामि शम्भू।

हर एक से होवे जब निराशा ,त्रिनेत्र शम्भू से एक आशा।

दुर्भाग्य नाशक सौभाग्य दाता,हमारे भोले नमामि शम्भू।

बहुत सरलता से मान जाते,जन--हित में विष भी पी जाते।

त्रिशूल धारी बृषभ सवारी,हमारे भोले नमामि शम्भू।

है चंद्रमा भाल पे बिराजे,और जटाओं में गंग साजै।

अकाल मृत्यु को हरने वाले,हमारे भोले नमामि शम्भू।

आशुकवि नीरज अवस्थी मो.-9919256950




आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक मङ्गलमय शुभकामनायें।

भगवान आशुतोष

आप की सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करे।।

आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256959



काव्य रंगोली नारी श्रद्धा सम्मान 2021 अन्तर्राष्जट्रीय महिला दिवस पर आयोजित समारोह 8 मार्च 2021

 परम् आदरणीया डॉ सरोज गुप्ता जी हिंदी विभागाध्यक्ष शासकीय कला एवम वाणिज्य महाविद्यालय सागर मध्य प्रदेश जी जो कि इस कार्यक्रम की प्रमुख है निर्णायक गई और काव्य रंगोली परिवार की विशिष्ट सहयोगी भी ऐसी महनीय विभूति की प्रेरणादायक उपस्थित को नमन करते हुए पूरे पत्रिका परिवार की ओर से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जो कि आपने इस कार्यक्रम को उत्कृष्टता प्रदान करने हेतु समय दिया।श।


असली कोरोना योद्धा

 *इस कहानी को जरूर पढ़िए यह सत्य कथा नही साहस की पराकाष्ठा है इसे पढ़कर जो विचार उतपन्न हो उनको इस समूह में पोस्ट कर सकते है* https://chat.whatsapp.com/FBKTJoR6IJGF83FY8f9CIh


#शिव_का_आत्मबल l


हिंदी के कुलीन साधक आँशुकवि नीरज अवस्थी जी की नजर उसपर पड़ी पर पड़ी l उन्होंने मुझसे जैसा बताया था, वह बिल्कुल उतना ही अद्भुत, अनोखा, प्यारा था   l वह सिर्फ शरीर से ही सुन्दर, नहीं दिल से भी सुन्दर था   l शारीरिक बल की बात तो नही कह सकता हुँ, लेकिन उसके भीतर गजब का आत्मबल था   l रचनाकार  की   पुस्तक की कम्पोर्जिंग करने  के लिए उसे चुना गया, तो त्रुटियां ढूढ़ने और सही कराने का कार्य भी रचनाकार का ही हुआ lअब रचनाकार  शिव से संपर्क में था l जी मै बात कर रहा हुँ, उसी शिव की जिसका आत्मबल एक विशाल पर्वत की तरह है  l रचनाकार का  अगला प्रश्न था  कि कब मिलोगे बेटा? तो उसका उत्तर हुआ, सप्ताह में तीन दिन, और शेष दिन भी जरुरी हुआ तो चार बजे शाम के बाद l  तो फिर अन्य दिनों में क्या करते हो? बरबस मुख से निकल गया l  सर जी शेष तीन दिन डायालीसिस कराने जाता  हुँ, चेहरे पर ना कोई दबाव, ना कोई शिकन l मुँह से बरबस निकल गया.. वाह l आत्मविश्वास के चरम पराकाष्ठा को देखकर रचनाकार  एक दम अवाक, और स्तब्ध रह गया l  रचनाकार को  बिल्कुल विश्वास नही हो रहा था, जटिल गुर्दा रोग से पीड़ित शख्स का इतना मजबूत आत्मबल l

आर्थिक बेबसी किसी पहाड़ से कम नही है , मगर वह भी उसकेआगे नतमस्तक है, उसे तोड़ने की कोशिश कर रही होगी, लेकिन वह वज्र है, नही टूटेगा l उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  का आभार जिसका अंशदान इस  प्रदीप्त दीप लव को  जलाने के लिए  तेल सा हुआ l लेकिन उसकी  यात्रा लम्बी है,मंजिल अभी काफी आगे है, संघर्ष लम्बा था l खैर उसके प्रति रचनाकार के मन में दिनों दिन प्रेम बढ़ता गया l अक्सर रात को सोते वक्त जब नीरज जी से रचनाकार उसकी बात करता तो दोनों उसके प्रति विह्वल होकर कारुणिक भाव से भर जाते l दोनों साहियकार  अपने अपने अनुसार शिव का साहित्य अपने दिलों में रचते l

  अचानक शिव के एक फोन ने रचनाकार को डरा दिया l  शिव ने बताया कि सर जी, वह कोविड पॉजिटिव हो गया है l रचनाकार डर गया l उसके मन में अनेक अशांकाओ  ने जन्म ले लिया लेकिन शिव तो अब भी वैसा ही था l उसका आत्मबल आज भी उसके साथ था l वह लगातार बोले जा रहा था कि वह बस कुछ दिन पी जी आई में रहेगा और एक दो सप्ताह में स्वस्थ होकर आ जाएगा l लेकिन रचनाकार डरा था, क्योंकि वह साहित्यिकार के साथ साथ स्वास्थ बिभाग से जुडा भी तो था l लेकिन शिव किसी चिकित्सक से ज्यादा सजग और जानकर हो गया था l वह तो हर दिन मौत को मात देता और अपने को विजेता साबित करता l अगले दश दिनों में शिव ने करोना को भी मात दे दिया l रचनाकार रोज उसको फोन करता l उसका हाल चाल लेता l लेकिन एक दिन रात को आये उसके फोन से एक आवाज निकली, सर जी मैंने करोना को हरा दिया l मुझे आज विश्वास हो गया था कि मनुष्य हारता है हिम्मत नहीं l हिम्मत तो जीतती ही जीतती है l हम इस योद्धा की क्या मदद करेगे l ईश्वर उसकी मदद आगे बढ़कर कर रहा है l हाँ हमें उसके आत्मबल को बढ़ाने की आवश्यकता है और उसके लिए जन सहयोग , भी अपेक्षित है, l जो हमें देना है l अंत में एकबार फिर कहुगा, कि उसका आत्मबल मजबूत ही नही, वज्र सदृश है l

रचनाकार ने यह सब लिखते हुए मन में एक बार और सोचा कि आत्मबल से भरे योद्धा के साथ हमें चलना होगा, क्योंकि हमें  उसके आत्मबल को टूटने नही देना है  l हमें उसके आत्मबल का कीर्तिमान बनते देखना है l रचनाकार की  लेखनी और  शब्द उसके शॉप के प्रमुख को भी धन्यवाद दे रहे थे , जिसकी हथेली एक श्रेष्ठ संरक्षक की तरह उसे उठाये रखी थी l 

रचनाकार  और उसका  साहित्य इस योद्धा से असीम स्नेह करता है l इस लिए उसने उसे अपनी इस कथा का नायक चुना  और ईश्वर से प्रार्थना किया कि हे ईश्वर! आप मेरे शिव के आत्मबल को इसी तरह और अधिक  मजबूत किये रखना l


©®राजेश_कुमार_सिंह

लखनऊ, उप्र, ( भारत )

+91 94152 54888


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-17

सब जन भजहिं अहर्निसि रामा।

बिनय-सील-सोभा-गुनधामा ।।

      पंकज लोचन,स्यामल गाता।

       प्रभु प्रतिपालक सभ जन त्राता।।

सारँग धनु निषंग धरि बाना।

संतन्ह रच्छहिं प्रभु भगवाना।।

     काल ब्याल,प्रभु गरुड़ समाना।

     भजहु राम प्रभु धरि हिय ध्याना।।

भ्रम-संसय-तम नासहिं रामा।

भानु-किरन इव प्रभु अभिरामा।।

      रावन-कुल जनु बीहड़ कानन।

      रामहिं अनल कीन्ह फुँकि लावन।।

अस प्रभु भजहु सीय के साथा।

कर जोरे झुकाइ निज माथा।।

      समरस राम अजहिं-अबिनासी।

       उन्हकर भजन बासना-नासी।।

राम-दिनेस उगत चहुँ-ओरा।

भे प्रकास जल-थल-नभ-छोरा।।

      भवा अबिद्या-रजनी नासा।

       अघ उलूक जनु छुपे अकासा।।

कामइ-क्रोध-कुमुदिनी लज्जित।

लखि प्रकास रबि गगन सुसज्जित।।

     लहहि न सुख गुन-काल-चकोरा।

      कर्म सहज मन-मत्सर-चोरा।।

मोहहि-मान-हुनर नहिं चलई।

खुलै दिवस मा इन्हकर कलई।।

     सभ बिग्यान-ग्यान जनु पंकज।

      बिगसे धरम-ताल-रबि दिग्गज।।

दोहा-उदित होत रबि कै किरन,बढ़हिं ग्यान-बिग्यान।

         काम-क्रोध-मद-लोभ सभ,छुपहिं उलूक समान।।

                      डॉ0हरि नाथ मिश्र

                          9919446372

प्रियदर्शिनी तिवारी

 अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर मेरे द्वारा स्वरचित कविता


 *शीर्षक.."इस मिट्टी की भाषा है हिन्दी"* 


इस मिट्टी की भाषा है हिन्दी,

जन जन की आशा है हिन्दी,

भारत मां की सेवा को तत्पर,

त्याग की परिभाषा है हिन्दी।


गीत कहानी काव्य सुनाती,

बच्चों का यह मन बहलाती,

लोरी की मीठी धुन में यह,

मधुर मधुर किलकारी गाती।


शान और गौरव इससे ही है,

 सम्मान बड़ों का इससे ही है,

साहित्य ज्ञान भी इससे ही है,

 शुभ मंगल गान भी इससे ही है।


पुष्पों के पंखुड़ियों जैसी,

हिन्दी बोली प्यारी लगती,

मिलन हो या हो चाहे बिछुड़न,

मातृभाषा ही न्यारी लगती।



बच्चों की तोतली बोली में,

हंसी, मजाक और ठिठोली में,

हिन्दी ही तो रंग जमाती,

सभी दीवाली और होली में।


इसका मान हम सभी बढ़ाएं

आओ कदम से कदम मिलाएं,

मातृभाषा हिन्दी की खातिर,

उत्थान हेतु हम आगे आएं।


रचयिता

प्रियदर्शिनी तिवारी

निशा अतुल्य

 सार

20.2.2021



जीवन का सार 

किसने समझा 

किसने जाना

भाग रहे सब 

हो स्वयं से  बेगाना ।


डोर हाथ में उसके बंधी है 

जब चाहे वो हमें नचाए

हम खुश है सोच सोच कर

जीवन को है हमें ही चलाए ।


जैसी उसकी मरजी होती

जीवन राह उस ओर ही मुड़ती

अच्छा बुरा तो सबको पता है 

फिर भी पथ से क्यों गिर जाना ।


भाव हमारे होते हैं वैसे 

जैसे ईश कठपुतली नचाते

रंगमंच ये दुनिया सारी

हम बस अपने पात्र निभाते ।


कर अपने किरदार को पूरा

समय हुआ ईश हमें बुलाते 

न कुछ व्यर्थ हुआ न सँजोया हमने

सब को छोड़ एक दिन चले जाते ।


स्वरचित 

निशा अतुल्य

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सप्तम चरण (श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-16

दोहा-हाटहिं बनिक कुबेर सम,सकल सराफ बजाज।

        राम-राज बिनु मूल्य के,बस्तुहिं मिलहिं समाज।।

निर्मल जल सरजू बह उत्तर।

घाट सुबन्ध न कीचड़ तेहिं पर।

     अलग-अलग घाटन्ह जल पिवहीं।

      गजहिं-मतंग-बाजि जे रहहीं ।।

नारी-पनघट इतर रहाहीं।

पुरुष न कबहूँ उहाँ नहाहीं।।

      राज-घाट अति उत्तम रहऊ।

       बिनु बिभेद मज्जन जन करऊ।।

सुंदर उपबन मंदिर-तीरा।

देवन्ह अर्चन होय गँभीरा।।

      इत-उत तीरे मुनि-संन्यासी।

       रहहिं ग्यानरस सतत पियासी।।

बहु-बहु लता-तुलसिका सोहैं।

इत-उत तीरे मुनिगन मोहैं।।

     अवधपुरी जग पुरी सुहावन।

      बाहर-भीतर अति मनभावन।।

रुचिर-मनोहर नगरी-रूपा।

पाप भगै लखि पुरी अनूपा।।

छंद-सोहहिं रुचिर तड़ाग-वापी,

              कूप चहुँ-दिसि पुर-नगर।

      मोहहिं सुरन्ह अरु ऋषि-मुनी,

             सोपान निरमल जल सरोवर।

      कूजहिं पखेरू बिबिध तहँ,

              अरु भ्रमर बहु गुंजन करहिं।

      पिकादि खग तरु-सिखन्ह कूजत,

               पथिक जन जनु श्रम हरहिं।।

दोहा-राम-राज महँ अवधपुर,समृधि-संपदा पूर।

      आठहु-सिधि,नव-निधि सुखहिं,मिलइ सभें भरपूर।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

                            9919446372

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*

*।।आँसू कोई मामूली चीज़ नहीं*,

*कोई अनकही दास्तान हों जैसे।।*

*।।विधा।।मुक्तक।।*


आँसू तो मानो   जैसे अनकहा

बयान           हैं।

खुशी गम का मानो   तो  जमीं

आसमान      हैं।।

आँसू मोती हैं लफ्ज़   हैं  और

हैं       दर्द      भी।

बहते मानो पीछे    लिये   जैसे

दास्तान         हैं।।


आँसू वो शब्द हैं जिन्हें  कागज़

कलम मिल न सका।

यह वो सैलाब    जो     दिल के

भीतर सिल न सका।।

दर्द और खुशी     का पैमाना ये

छलका           हुआ।

गम का वह     फूल      है आँसू

जो खिल  न   सका।।


मुकाम मिलने न मिलने    दोनों

का  सबब   आँसू हैं।

हर बूंद में    छिपी        कहानी

ऐसा गज़ब   आँसू है।।

नहीं कह     कर भी बहुत कुछ

कहते   हैं       आँसू।

खुशी और गम दोंनों में      बहे

ऐसा अजब आँसू है।।


जब दिल और दिमाग    दबाब

कुछ सह नहीं पाता है।

जब जिन्दगी से मिला   जवाब

कुछ कह नहीं जाता है।।

फूट पड़ते हैं आँसू  इक दरिया

सा        बन        कर।

जब पूछने को    कोई    सवाल

भी रह नहीं   आता  है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।*

मोब।।             9897071046

                      8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 सजल(मात्रा भार-16)

बाग एक गुलजार चाहिए,

जिसमें रहे बहार चाहिए।।


कभी न रूखा होए जीवन,

एक अदद बस प्यार चाहिए।।


आपस में बस रहे एकता,

ऐसा ही व्यवहार चाहिए।।


सत्य-अहिंसा-मानवता ही,

जीवन का आधार चाहिए।।


रहे स्वच्छता ध्येय हमारा,

ऐसा उच्च विचार चाहिए।।


जो भी हैं असहाय व रोगी,

उचित उन्हें उपचार चाहिए।।


घृणा-भाव का हो विनाश अब,

प्रेम-भाव-विस्तार चाहिए।।

       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

           9919446372

निशा अतुल्य

 मातृभाषा दिवस 

21.2.2021 


मातृभाषा मेरा अभिमान है 

मातृभाषा जीवन का ज्ञान है 

मिल जाएगा सब कुछ तुम को 

करो सम्मान ये ही शान है ।


करो संरक्षण इसका 

ये माता की सिखाई जुबान है

सम्मान दिल से हो इसका

ये जीवन का आधार है ।


ये ही भाषा अपनी ऐसी 

जो देती माँ सम प्यार है 

अपनत्व भरा इसमें ऐसा

प्रान्त की ये पहचान है ।


संवेदना भरी इसमें मन की

मानवता से भरी ये महान है 

अहसास कराती अपनत्व का

ये भरी दुपहरी ममता की छाँव हैं ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

अनिल गर्ग

 उखड़ती ज़िन्दगियों  को,

वो अक्सर संभाल लेता है !

अच्छे अच्छों को,

मौत के मुँह से निकाल लेता है !! 


न वो हिन्दू देखता है,

न कभी मुसलमान देखता है !

इंसा का साथी है वो,

हर शख्स में बस इंसान देखता है !! 


केस कितना भी गंभीर हो,

वो हिचकिचाता नहीं कभी ! 

मुकद्दमे की पेचीदगी देखकर,

वो सकुचाता नहीं कभी !! 


उसके हाथों में जो हुनर है,

बखूबी जानता है वो ! 

अपने पेशे को ईश्वर की,

पूजा मानता है वो !! 


जब भी जाता है वो अदालत,

अपने ईष्ट को याद करता है ! 

सफल हो जाए मुकद्दमा,

यही प्रार्थना करता है !! 


केस कितना भी बड़ा हो,

वो जी जान लगा देता है ! 

मुवक्किल को जिताने में,

वो पूरा ज्ञान लगा देता है !! 


अगर हो जाए सफल तो,

हजारों दुआएँ लेता है !

अगर वो हार जाए तो,

लोगों का क्रोध सहता है !! 


खरी खोटी वो सुनता है,

फिर भी खामोश रहता है ! 

अपनी असफलता का उसको,

बहुत अफसोस रहता है !!


वो जानता नहीं किसी को,

मगर धीरज बंधाता है ! 

निरंतर कर्म के पथ पर,

वो बढ़ते ही जाता है !! 


उसे मालूम है कि जिन्दगी,

तो भगवान ने दी है ! 

पर करे जन की सेवा वह

यह उसकी भी हसरत है ! !


अनिल गर्ग, कानपुर

सुषमा दीक्षित शुक्ला

 हिन्दी से तुम प्यार करो 


हिंदुस्तान के रहने वालों ,

हिंदी से तुम प्यार करो ।


ये पहचान है मां भारत की,

 हिंदी  का सत्कार  करो ।


हिंदी के  विद्वानों  ने तो ,

परचम जग में फहराए।


 संस्कार  के सारे  पन्ने,

 हिंदी से ही हैं पाए ।


 देवनागरी लिपि में अपनी,

 छुपा  हुआ अपनापन है ।


अपनी प्यारी भाषा हिंदी,

 भारत मां का दरपन है ।


हिंदुस्तानी  होकर तुमने ,

यदि इसका अपमान किया ।


तो फिर समझो भारत वालों ,

खुद का ही नुकसान किया।


 हिंदुस्तान के रहने वालों,

 हिंदी से तुम प्यार करो ।


यह पहचान है माँ भारत की ,

हिंदी  का सत्कार  करो ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला

रवि रश्मि अनुभूति

 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '


     🙏🙏


सपने सज गये 

**************

छायी चहुँ दिशि उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग 

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग 


बजे अब तो ढोल - मंजीरे , गूढ़ बात हो तेरी - मेरी

टोलियाँ सजी आयीं अब तो , बार - बार डालें ये फेरी  

बोलें सभी प्रेम की बोली ,  , रहे गा फाग भी संग - संग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....


प्रेम - प्रीत की लगन लगी अब , सपने अपने गये अभी सज

बात भाईचारे की करें , फहरायें  कामयाबी का ध्वज

ऐसी हो एकता हमारी , लोग रहेंगे अभी तो दंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के संग .....


लुभाता है सौंदर्य हमको , गुनगुनाती जागती उमंग 

सपने सज गये अंग रंग , बज रही लो कहीं जलतरंग 

मिलन हो सजन से अब सबका , सपने सज गये प्रेमिल रंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम रंग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....


छायी चहुँ दिशा उमंग तरंग , पी ली सभी ने जैसे भंग .....

सभी ऊर्जस्वित प्रेम संग , लो सुनो अभी फाग के रंग .....

▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎▪︎


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

21.2.2021 , 3:21 पीएम पर रचित ।

मुंबई   ( महाराष्ट्र ) 

€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€€

🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दोहे*

          वासंतिक छवि(दोहे)

सुरभित वातावरण है,कोकिल-कंठ सुरम्य।

वासंतिक परिवेश में,प्रकृति-छटा अति रम्य।।


अलि-गुंजन अति प्रिय लगे,अति प्रिय सरित-तड़ाग।

पुष्प-गंध प्रिय नासिका,प्रिय आमों की बाग।।


सरसों से शोभा बढ़े,धरा-वस्त्र प्रिय पीत।

बार-बार मन यह कहे,आ जा प्यारे मीत।।


गुल गुलाब,टेसू खिले,आम्र-मंजरी गंध।

चहुँ-दिशि गंध प्रसार कर,बहती पवन-सुगंध।।


तन-मन प्रियतम याद में,विरही मन अकुलाय।

वासंतिक परिवेश भी,सके न अग्नि बुझाय।।


रवि-किरणें अति प्रिय लगें,चंद्र लगे बहु नीक।

पर,विरही मन को लगे,जैसे वाण सटीक।।


रति-अनंग का मास यह,मधु-मधुकर-मधुमास।

प्रकृति-छटा अति रुचिर है,प्रगति-प्रकाश-विकास।।

                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


 अपना जलवा ज़रा सा दिखा दीजिए

चाँद का शर्म से सर झुका दीजिए


कह सकूँ आपसे प्यार करता हूँ मैं

ऐसा माहौल तो कुछ बना दीजिए


 एक बीमारे-उल्फ़त है सामने

उसको उसकी दवाई पिला दीजिए


एक मुद्दत से डूबे हैं हम प्यार में

आज सारे ही पर्दे हटा दीजिए 


चोरी चोरी तो मिलते ज़माना हुआ

अब तो खुलकर जहां को बता दीजिए


हर तरफ़ तीरगी दिल के आँगन में है 

प्यार की शम्अ फिर से जला दीजिए 


दिल उदासी में *साग़र* है डूबा हुआ

प्यार की इक ग़ज़ल ही सुना दीजिए


🖋️विनय साग़र जायसवाल

14/2/2021

मन्शा शुक्ला

 परम पावन मंच का सादर नमन

      सुप्रभात

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


कहे वेद वाणी

नमो शूल पाणी

नमो सच्चिदानन्द

दाता पुरारी।

निराधार के हो

तुम आधार ज्योति

तुलसी के मानस के

मर्मज्ञ मोती

दानियों मे अग्रगण्य

औढ़रदानी महादेव

शम्भु है  शत्  शत् नमामि

नमामि,नमामि ,है शत् शत्

नमामि,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  ,,।।


जय भोलेनाथ🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


मन्शा शुक्ला

अम्बिकापुर

नूतन लाल साहू

 गूढ़ रहस्य


व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है

अंदर मन का खोल ताला

निज से पहचान हो जायेगा

वाणी सत्य और पावन हो तो

बढ़ गई,जीवन की शान समझो

जिसने भी छोड़ा,सुख दुःख का चिंतन

समझो,भगवान है उसके सनमुख

बांटे ज्ञान के हीरे मोती

इसमें कभी भी,कमी नहीं होती है

व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है

परदा दूर करे,आंखो का

भगवान से नाता जोड़

जग की ममता को जिन्होंने भी छोड़ा

भगवान का मिल जायेगा सहारा

सत्य नाम का प्याला,भर भर कर

खुद पीये और सबको पिलावे

सच कहता हूं,प्यारे

विषयो का विष मिट जाता है सारा

भक्ति बिना,प्रभु जी नहीं मिलता

मन का कष्ट,कभी नहीं टलता

मेरी तेरी के भरम,छोड़ दो

कण कण में,प्रभु जी नजर आयेगा

व्यक्ति क्या है

ये महत्वपूर्ण नहीं है

परन्तु, व्यक्ति में क्या है

ये बहुत महत्वपूर्ण है


नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-10

रमारमन प्रभु रच्छा करऊ।

सरनागत-रच्छक तुम्ह अहऊ।।

     भुजा बीस रावन-दस सीसा।

     राच्छस सकुल हतेउ जगदीसा।।

प्रभु तुम्ह अहहु अवनि-आभूषन।

धनु-सायक-निषंग तव भूषन ।।

      भानु क किरन-प्रकास समाना।

       नाथ तेज तव धनु अरु बाना।।

तुमहिं करत निसि-तम कै नासा।

मद-ममता अरु क्रोध बिनासा।।

      जे नहिं करहिं प्रीति पद-पंकज।

       रहहिं मलिन-उदास ते सुख तज।।

रुचिकर लगै जिनहिं प्रभु-लीला।

मान-लोभ-मद प्रति मन ढीला ।।

       सो साँचा सेवक प्रभु होवै।

       करै पार भव-सिंधु,न खोवै।।

अरु बिचरै जग संत की नाई।

बिनू मान-अपमान लखाई ।।

      राम क सत्रु अहहि अभिमाना।

       जनम-मरन औषधी समाना।।

नाथ सील-गुन-कृपा-निकेता।

राम महीप दीन जन-चेता।।

       करउ नाथ रच्छा तुम्ह मोरी।

        देवहु अचल भगति मों तोरी।।

दैहिक-दैविक-भौतिक तापा।

राम क कथा हरै परितापा।।

       सुनै जे छाँड़ि कथा आसक्ती।

        ओहिका मिलै मुक्ति अरु भक्ती।।

राम-कथा बिबेक दृढ़ करई।

बिरति-भगति प्रबलहि बहु भवई।।

      मोह क नदी पार जन जावहिं।

       चढ़ि के तुरत भगति के नावहिं।।

दोहा-निसि-बासर तहँ अवधपुर,कथा राम कै होय।

        मगन सुनहिं पुरवासिनहिं,अंगदादि-हनु सोय।

                         डॉ0हरि नाथ मिश्र

                              9919446372

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