डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-39

राम-नाम-गुन अमित-अपारा।

पावहिं संभु-सेष नहिं पारा।।

      जइस असीम-अनंत अकासा।

      महिमा राम अनंत-अनासा।।

प्रभु-प्रकास कोटि सत भानू।

पवन कोटि सत बल प्रभु जानू।।

     कोटिक सत ससि-सीतलताई।

     अरबन धूमकेतु-प्रभुताई ।।

प्रभू अनंत-अगाध-अथाहा।

तीरथ कोटिक सुचि नर नाहा।।

      इस्थिर-अचल कोटि हिमगिरि सम।

      प्रभु गँभीर सत कोटि सिंधु सम ।।

सकल मनोरथ पुरवहिं नाथा।

कोटिक कामधेनु रघुनाथा।।

     कोटिन्ह ब्रह्मा,कोटिन्ह सारद।

      कोटिन्ह बिषनू,रुद्र बिसारद।।

सुनहु गरुड़ रामहिं प्रभुताई।

निरुपम-अकथ नाथ-निपुनाई।।

      धनकुबेर सत कोटि समाना।

       बहु प्रपंच माया भगवाना।।

प्रभु-गुन-सागर-थाह न मिलई।

यहिं तें भजन राम कै करई ।।

     काग-बचन सुनि मगन खगेसा।

      तासु चरन छूइ कहै नरेसा।।

बिनु गुरु ग्यान न हो भगवाना।

तुम्ह सम गुरू पाइ मैं जाना।।

     बिनु गुरु-कृपा न भव-निधि पारा।

     जा न सकहिं जन यहि संसारा।।

संसय-ब्याल करालहि काटा।

बिष-प्रभाव कारन सन्नाटा।।

     जानउ मैं नहिं प्रभु-प्रभुताई।

     मोहें तुम्ह सम गुरू बताई।।

कृपा तुम्हार भे मोह-बिनासा।

प्रभु-प्रति प्रेम जगायो आसा।।

     जाना सभ रहस्य प्रभु रामा।

      राम अनंत-अखंड-बलधामा।।

दोहा-हे सर्वग्य भुसुंडि गुरु,तव चरनन्ह मन लाग।

        मोहिं बतावउ आजु तुम्ह,पायो कस तन काग।।

                        डॉ0हरि नाथ मिश्र

                           9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र।

 *दोहे*(फागुन)

फागुन मास गुलाल का,रंग-हास-परिहास।

पाकर ही ऋतुराज को,हर्षित चित्त उदास।।


आम्र-मंजरी की महक,कोयल-मीठे बैन।

फागुन के उपहार से,मिले हृदय को चैन।।


बहे पवन जब फागुनी,विरह-वह्नि जल जाय।

विरह-तप्त-हिय में दिखे,अग्नि-सरित उफनाय।।


प्रकृति सुंदरी सज-सँवर, लगे दैव उपहार।

जल-थल-नभ,वन-बाग में,फागुन मस्त बहार।।


भ्रमर मगन मकरंद ले,उड़-उड़ गाएँ गीत।

हर हिय को मोहित करे,अलि-गुंजन मनमीत।।


फागुन मास सुगंध का,करता गंध-प्रसार।

गंध-युक्त वातावरण,है अद्भुत उपचार।।


सब ऋतुओं का केंद्र ही,होता फागुन मास।

जन-धन का ऋतुएँ सदा,करतीं सतत विकास।।

            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।

                9919446372

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


हमारे फ़ैसले होते कड़े हैं

अगरचे फ़ायदे इसमें बड़े हैं


जहाँ तुमने कहा था फिर मिलेंगे

उसी रस्ते में हम अब तक खड़े हैं


सुनाकर भी इन्हें हासिल नहीं कुछ

हमारे रहनुमा चिकने घड़े हैं


छुड़ाया लाख पर पीछा न छूटा

गले वो इस तरह आकर पड़े हैं


किसी के तंज़ छू पाये न हमको 

कि अपने क़द में हम इतने बड़े हैं


अमीरों से उन्हें डरते ही देखा

ग़रीबी से जो रात-ओ-दिन लड़े हैं


जहाँ कह दो वहाँ चल देंगे *साग़र*

यहाँ पर कौन से पुरखे गड़े हैं


🖋विनय साग़र जायसवाल

11/3/19

सुनीता असीम

 मेरी राहों में तूने ही किए केवल उजाले हैं।

तेरे भीतर  समाए सब मेरे मन्दिर शिवाले हैं।

***

महर कर दो ज़रा मुझपर दरस दे दो मुझे कान्हा।

बड़ी मुश्किल से विरहा के ये पल मैंने निकाले हैं।

***

न मेरा कुछ भी है मुझमें सभी तेरा है सरमाया।

ये माया मोह के बंधन सभी तेरे हवाले हैं।

***

मिलेगा आसरा तेरा यही मन्नत मनाती हूं।

तुझे पाने की खातिर तो पढ़े कितने रिसाले हैं।

***

इबादत में नहीं कच्ची मुझे कमजोर मत समझो।

बड़े तूफान अंदर से सदा मैंने संभाले हैं।

***

सुनीता असीम

१७/३/२०२१

डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

 सद्भावों में गहरापन हो

                  (चौपाई)


सद्भावों में गहरापन हो।

दुर्भावों में बहरापन हो ।।

रहे प्रेम में नित आलापन।

दिल का मिट जाये कालापन।।


सुंदर गाँवों का जमघट हो।

मृतक भावना का मरघट हो।।

शुभ भावों का गेह बनाओ।

सब में आत्मिक नेह जगाओ।।


शोभनीय धरती का हर कण।

सुंदर बनने का सब में प्रण।।

सभी बनायें उत्तम उपवन।

कल्याणी हो सब का जीवन।।


सारस्वत साधक का मेला।

शिव-आराधक का हो रेला।।

मानवता की चलें टोलियाँ।

सब की मधुर मिठास बोलियाँ।।


जग में आये शिव परिवर्तन।

पावनता का हो संवर्धन।।

निज में हो सामूहिक चेतन ।

हो सारा जग शांतिनिकेतन।।


हर पत्थर कोमल बन जाये।

निष्ठुरता से मल बह जाये।।

क्रूर बने अति मोहक मानव।

मर जायें पृथ्वी के दानव।।


सुंदर भावों के गाँवों में।

प्रिय हरीतिमा की छाँवों में।।

रहना सीखो सत्य श्याम बन।

सद्भावों का दिव्य राम बन।।


दरिद्रता   (दोहे)


जो दरिद्र वह अति दुःखी, दीन-हीन अति छीन।

तड़पत है वह इस कदर, जैसे जल बिन मीन।।


तन -मन -धन से हीन नर, को दरिद्र सम जान।

है दरिद्र की जिंदगी, सुनसान मरु खान।।


है दरिद्र की जिंदगी, बहुत बड़ा अभिशाप।

जन्म-जन्म के पाप का, यह दूषित संताप।।


अगर संपदा चाहिये, कर संतों का साथ।

सन्त मिलन अरु हरि कृपा, का हो सिर पर हाथ।।


जिस के मन में तुच्छता,वह दरिद्र का पेड़।

है समाज में इस तरह, जिमि वृक्षों में रेड़ ।।


वैचारिक दारिद्र्य का, मत पूछो कुछ हाल।

धन के चक्कर में सदा, रहता यह बेहाल।।


धन को जीवन समझ कर, जो रहता बेचैन।

वह दरिद्र मतिमन्द अति, चैन नहीं दिन-रैन।।


डॉ०रामबली मिश्र की कुण्डलिया


चलना जिसको आ गया, वही बना इंसान।

जो चलना नहिं चाहता, वही दनुज हैवान।।

वही दनुज हैवान,  किसी को नहीं सेटता।

टेरत अपना राग, स्वयं में रहत ऐंठता।।

कहत मिश्रा कविराय, सीख लो सुंदर कहना।

मत बनना मतिमन्द, बुद्धि से सीखो चलना।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार चारण हार्दिक आढा

 कवि का नाम - चारण हार्दिक आढा

पिताजी का नाम - ककल दान जी

गांव - पेशुआ

जिला - सिरोही

राज्य - राजस्थान

मो +91 78498 05093


       1. शीर्षक  - युवा का उत्साह


युवा का उत्साह हर साहस से बड़ा है।  

आसमान की उंचाई तक,पर्वत-सा अटल खड़ा है।


यूवाओ को इस उम्र में,सब कुछ करना है प्राप्त ।

उत्साह की सीमा नहीं, सब कुछ मिल जाए पर नही पर्याप्त ।।


कांटे आए तो भी रुका नहीं, उत्साह इतना की

गिरा पर हारा नही।


उत्साह उतना की सब कुछ मिल जाये,

अकेला खडा है पर डरा नही।


उत्साह से कई सफर तय करने की उम्मीद

लिये रहता है।


आसमान भी नाप लूंगा , मन में उत्साह लिये

कहता है।

 

कई बार असफलताओं की ,मार सहता है।

एक दिन सफल बनूंगा मन में उत्साह लिये कहता।


हारो के हार से, आखिरकार जीत कर जीत का तिलक लगाता है।


हार का गम  हटा, जीत की खुशी मनाता है।

हार-हार कर जो ना हारा,युवा का उत्साह

कहलाता है।


युवा के संघर्ष की कहानी, कवि  हार्दिक आढा

सुनाता है।

                                                                                                       कवि- चारण हार्दिक आढा


        2. नि: शब्द कवि भी शब्द है


शब्द शब्द पर नि : शब्द प्रलोभन , 

शब्द शब्द पर आह भरी है

नि:शब्द है देखो शब्द प्रभारी , 

जिसने शब्द मे चाह भरी है ।


जिन शब्दो से दुनिया जीती , 

कुछ शब्दो से हारी है ,

शब्द शब्द पर शब्द है भारी , 

फिर भी मौन है शब्द प्रभारी ।


नि:शब्द कवि भी शब्द टटोले , 

मानो शब्दो की होली,

कुछ घड़ियों मे कवि मौन है , 

नि: शब्द मे फिर भी शब्दों की होली


शब्द शब्द पर नि : शब्द प्रलोभन ,

 शब्द शब्द पर आह भरी है

नि:शब्द है देखो शब्द प्रभारी , 

जिसने शब्द मे चाह भरी है ।


                                     कवि चारण हार्दिक आढा


              3. मां शारदे की वंदना


स्वर और शब्द तुझी से पा रहा हू

मै ज्ञान कि दिशा में जा रहा हू

तू ही है मेरे कंठ की वाणी

मैं तेरी वंदना ही गा रहा हूं।


नींद आई तो ख्वाब मे भी

मा तेरी ही कल्पना है

हर शब्द मे मेरे मा तेरी आराधना है

मेरे कंठ के शून्य स्वर में भी

 मा तेरी ही वंदना है।


हर शब्द तुझी से आते हैं

सुर तेरी वंदना गाते है

हर शब्द के मीठे बोल वही मानूंगा

जो तेरी वंदना सुनाते है।


अंबर से बड़ा पृष्ठ चाहिए 

तेरी वंदना गाने को

तारो से ज्यादा शब्द चाहिए 

वर्णमाला छोटी है

तेरे गुणगान गाने को।


कवि चारण हार्दिक आढा


                  4. अभिमन्यु की वीरता 


मानो रण विकराल खड़ा  था, सामने वह भी अपनी जिद पर अड़ा था। 


धुरंधरों को सिखलाने को , वीर की परिभाषा बतलाने को। 


एक वीर चक्रव्यूह भेदने गया था, काल से लड़ने गया था। 


धुरंधरों के सामने वह भी अकेला खड़ा था, वह अभिमन्यु महान बड़ा था। 


निर्भीक वह वीर गया था लड़ने को, पर उसे यह मालूम न था वो कायरों से लड़ने गया था। 


सामने विद्वान और दानवीर खड़ा था वह वीर रण मे घाव खाकर अर्ध मूर्छित सा लड़ा था। 


उन सब कायरो से वह वीर लड़ा था, उन कौरवों की कायरता पर वह मन ही मन वह हंस पड़ा था। 


माना वह प्रहर का परिणाम अभिमन्यु के पक्ष में न था, पर हमारा प्रणाम उस वीर के पक्ष में है। 


                               कवि - चारण हार्दिक आढा 


        5. गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

भूलो पिछली बातो को बुरे दिन रातो को,

फिर शुरुआत करो नव वर्ष चहकता आया है

राह को आसान करो भूलो मुश्किल बातो को।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

दुख की बात को भूलो सुख को याद करो,

नव वर्ष भली भांति खुशियों सा छाया है

नव उजाला है इससे ना फरियाद करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

आंखो में जो ख्वाब है उन्हे हकीकत में तब्दील करो,

अंधेरे को मिटाता नए दिन नया उजाला आया है,

ख्वाबों का महल है जो उसे हकीकत में तब्दील करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

बैर को भूलो अपनापन अपनाओ तुम,

स्वभाव वहीं है भले बदली हमारी काया है

झूठ नहीं अब सच्चापन अपनाओ तुम।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

पुराने दिनों को विदाई नई यादे बनाओ तुम,

नया दिन नई शुरुआत का उजाला छाया है

अच्छी यादें आंखो में खुशी के मोती बनाओ तुम।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

युवा याद करो उत्साह को फ़िर शुरुआत करो

भूलो हार को याद रखो नव वर्ष जीत दिलाने आया है

गुस्सा नहीं अब फिर  शांति की शुरुआत करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

पहले किये वो प्रयास थे अब जीत निश्चित है,

नव वर्ष तेरी जीत का परचम लहराने आया है

खुशियां आयेंगी दुख बीतेगा  ये अब निश्चित है।


                   कवि - चारण हार्दिक आढा


                 

             6. बता किरदार कैसा हो


नए अध्याय नई कहानी गठित कर रहे होंगे बता किरदार कैसा हो।

वहीं खाली सा पृष्ठ हो , या स्वर्ण लीपित वो लेख हो

शून्य की ध्वनि हो , या प्रखर शोर उल्लेखित हो

नई क़लम नई बात हो, या पुराने पृष्ठ का आधार हो,

नए अध्याय नई कहानी गठित कर रहे होंगे बता किरदार कैसा हो।


शब्द का हाहाकार हो , अलंकारों का भिन्न प्रकार हो

सीमित ना हो बात कोई, असीमित इसका विस्तार हो

प्रलयकारी शब्द मे शांति  ही इसका लक्ष्य हो,

नए अध्याय नई कहानी गठित कर रहे होंगे बता किरदार कैसा हो।


       कवि चारण हार्दिक आढा


एस के कपूर श्री हंस

 ।ग़ज़ल।।    संख्या 24।।*

*।।काफ़िया।। आर ।।*

*।।रदीफ़।। करते हैं।।*


*मतला।*

दिल में नफरत जुबां पर प्यार करते हैं।

बहुत से लोग बस यही व्यापार करते हैं।।


*हुस्ने मतला।*

सामने तुम्हारे तो वह इकरार करते हैं।

पीठ पीछे चुपचाप से  इंकार करते हैं।।


फितरत समझ पाना मुश्किल इनके खंजर की।

सामने साधकर निशाना पीछे वार करते हैं।।


ले कर चलते हैं नदी    पार करवाने को।

बीच मंझधार उल्टी     पतवार करते हैं।।


आस्तीन के सांप से तेरे ही बिल में छिपे हैं।

पहले मार कर फिर से होशियार करते हैं।।


*"हंस "* बन कर मसीहा पा लेते हैं यकीन तुम्हारा।

फिर तुम्हारी ही गोट से तुम्हाराआरपार करते हैं।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।       9897071046

                     8218685464

*।।ग़ज़ल।।   ।। संख्या  25 ।।*

*।। काफ़िया।। आर ।।*

*।।रदीफ़।।  में   ।।*


प्रेम दुकान चलाता हूँ नफरत के बाज़ार में।

सकूँ बहुत मिलता है इस घाटे के भी व्यापार में।।


सलाम मिलता है हर तरफ से  यारों का।

गिनती शुमार हो गई है इक़ दिलदार में।।


महोब्बत की जुबां से जीत मिल रही हर तरफ। 

यकीन ही हट गया है अब किसी भी हथियार में।।


सोने चांदी का गुमां सीने से   ही हट गया है।

जब से खजाना भर गया है मेरा दौलते प्यार में।।


बचा नहीं वक़्त नफ़रत के लिए जिन्दगानी में।

निकल जाता है वक़्त अब प्रेम के इकरार में।।


*"हंस"* कहते कोई दौलत जाती नहीं साथ में ऊपर।

पर महोब्बत ले जाने का हक हमारेअख्तियार में।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/16)

किसके सँग मैं खेलूँ होली,

साजन अभी न लौटे घर को।

व्यथा कहूँ मैं किससे हिय की-

पिया गए अनजान शहर को??


खुशियों का है उत्सव होली,

सभी मिटा दें दिल की दूरी।

गले लगाकर प्रेम-भाव से,

कर लें इच्छा मन की पूरी।

प्रेम-रंग होली का देखो-

रँगता दिखता गाँव-नगर को।।

       पिया गए अनजान शहर को।।


अमराई में बैठ कोकिला,

मधुर मिलन का गीत सुनाए।

वन-उपवन की मधु सुगंध में,

लगे,प्रकृति-परिवेश नहाए।

सुनकर पपिहा की पिव बोली-

सतत निहारूँ पिया-डगर को।।

       पिया गए अनजान शहर को।।


सखियाँ अपने प्रियतम के सँग,

होली-रंग-गुलाल खेलतीं।

भीगी चुनरी,मुदित मना सब,

होली का हुड़दंग झेलतीं।

देख मचलता मन भी मेरा-

छू लूँ मैं भी पिया-अधर को।।

       पिया गए अनजान शहर को।।


मिले अगर साजन होते तो,

उनसे हँसी-ठिठोली करती।

बाहों का मैं हार बनाकर,

उनकी बाहों में भी रहती।

नहीं हाथ से जाने देती-

होली के इस शुभ अवसर को।।

  पिया गए अनजान शहर को।।

 किसके सँग मैं खेलूँ होली,

साजन अभी न लौटे घर को।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

             9919446372

कवि निकेश सिंह निक्की

 संक्षिप्त परिचय

 नाम निकेश सिंह निक्की

 जन्म स्थान खोकसा रसलपुर थाना दलसिंहसराय पोस्ट बम्बैया हरलाल जिला समस्तीपुर बिहार

 विशेष अभिरुचि :- साहित्य लेखन, समाजसेवा एवं राजनीति

 कृति अखण्ड भारत (काव्य संग्रह) 

  जागो पुनः एक बार (काव्य संग्रह)

 जनक्रांति काव्य संग्रह

 उर्मिला के पीर कहानी संग्रह 

 स्मृति के पार कहानी संग्रह

  पति परमेश्वर नाटक

प्रकाशित दीक्षा प्रकाशन दिल्ली

 सम्मान साहित्य रत्न, साहित्य सारथी गौरव, साहित्य गौरव, काव्य गौरव, महाकवि जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान आदि एवं प्रशस्ति पत्र द्वारा सम्मानित

ण्मोकार आधा साहित्य आधा मिडिया आदि चैनल पर काव्य पाठ 

 संस्थापक बिहार नौजवान सेना समाजिक संगठन

 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य राष्ट्रवादी लेखक संघ भारत

 विशेष एक दर्जन से अधिक सांझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित


भारत गाथा

जिस भारत के ज्ञाननिधि में,

सकल विश्व नहलाता था।

खड़ी नालंदा बता रहीं है,

सकल विश्व ललचाता था।



जिसके आगे मैक्समूलर भी,

मां कह न फूल समाता था।

इत्सांग भी जिसके गुण को,

गाते ही थक जाता था।


जब जगत में फैला था,

तिमिर का व्यापक सम्राज्य।

तभी लिख कर छोड़ा भारत,

पावक का अनुपम इतिहास।


पढना लिखना कोई न जाने,

 सकल विश्व में कौन सिखावें।

 छः शास्त्र नव ग्रंथ के ज्ञाता,

 सकल विश्व भारत को मानें।


कहें निकेश भारत की गाथा,

सकल विश्व में भाग्य विधाता।

देकर सकल विश्व को ज्ञान,

आज बनी है स्वयं अनजान।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार


जनता चुप क्यों है

हंसी ठिठोली बहुत हुआ,

अब गांडीव सी टंकार करो।

या केशव के पांचजन्य सा,

प्रयली प्रचंड हुंकार करो।


वोटों के लालच में देखो,

घोषणा कैसी होती है।

देश द्रोहियों को भी अब,

फूलों की स्वागत होती है।


कोई भी उठ कर आता है,

उलूल जुलूज बक जाता है।

देशद्रोही कानून को भी ,

खत्म करने की बात कर जाता है।


भारत की अपमान देखकर,

 फिर भी जनता चुप क्यों हैं।

उलूल जुलूल बात करने वालों की,

जीभ काटने में क्यो डर है।


कहें निकेश अब गरजेगे,

 बनकर गांडीव की टंकार।

 छोड़ेंगे नहीं अब उसको,

 जो राष्ट्र से करें खिलवाड़।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार



गौरवशाली बिहार

मिथिला के पहचान बिहार के,

हम भारत के रखवाले हैं।

विद्यापति की काव्य ध्वनि हम,

 कुंवर सिंह के भाले हैं।


गौरवशाली मगध की गाथा,

 आज इतिहास सुनाती है।

चक्रवर्ती अशोक की शौर्य,

 कण कण में बिहार गाती है।


दिनकर की इतिहास संजोए,

 अविरल गंगा धार है।

अमर कहानी तिलका की,

 गा रही इतिहास है।


धन्य धन्य वलिहारी हूं,

क्योकि मैं बिहारी हूं।

 तक्षशिला और नालंदा की,

 पद चिन्ह और पुजारी हूं।


कहें निकेश हे मां मिथले,

 कोटि-कोटि है नमन तुझे।

 अगले जन्म में भी देना,

  गौरवशाली बिहार मुझे।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार



भारत का रखवाला हूं

आंसुओ में पला बढ़ा हूं,

सच पर मरने वाला हूं।

 झोपड़ियों का चारण मैं,

 भारत का रखवाला हूं।


दूध दूध चिल्ला रहें,

बालक को मैंने देखा है।

पेट आग में जल रहें,

भिक्षुक को मरते देखा है।


मैं दुखियों का एक सहारा,

शब्द मेरी तलवार है।

मेरी लेखनी नहीं रुकेंगी,

 क्रांति का इंतजार है।


वो अमृत पी पीकर भी,

नित दिन मरते जातें हैं।

 हम बिष हलाहल पीकर,

 सदा अमर पद पाते हैं।


कहें निकेश मैं ज्वाला हूं,

 भारत का रखवाला हूं।

भूखें नंगें दलितों का,

 आंसू गाने वाला हूं।

कवि निकेश सिंह निक्की


समस्तीपुर बिहार


एस के कपूर श्री हंस

 [15/03, 6:15 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या 20।।*

*।। काफ़िया।। ओल ।।*

*।।रदीफ़।।  कर रखो ।।*


हमेशा एक खिड़की    खोल कर रखो।

रूठ भी जाओ मगर मीठा बोल कर रखो।।


इंसानियत का एक    ही    तकाज़ा है।

हर बात को तुम बस खूब तोल कर रखो।।


दुनिया में गर चाहिये  सबकी वाह वाही।

अपना हर किस्सा बहुत तोल मोल कर रखो।।


हर बात कहो अच्छी  नियत साफ दिल से।

मत कोई बात     बेवजह झोल कर रखो।


गर तालुकात बिगड़    भी जायें किसी बात पर।

फिर भी जुबां में अपनी मिठास घोल कर रखो।।


" *हंस*" जिन्दगी के सफ़र में जीत का एक ही तरीका है।

अपने किरदार का मोल अनमोल कर रखो।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।    9897071046

                  8218685464

[15/03, 6:15 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।    ।।संख्या    19।।*

*।। काफ़िया।। आनी।।*

*।।रदीफ़।।   है    ।।*


तुम्हारी अदालत ओ मुंसिफ कलम वही पुरानी है।

सच की हार झूठ के हाथ वही  कहानी है।।


लिखा पढ़ी सब मालूम होती    है फर्जी।

सुना दिया     फैंसले को बस     जुबानी  है।।


अंदर मिट्टी बाहर चूना ऊपर से बस लीपापोती।

यह पैसे की खनक दौलत की मेहमानी है।।


अजब गजब सा दौर यह आज चल रहा।

जमाने की कैसी यह बन  गई रवानी है।।


झूठ की राह पर भीड़  आज है बेइंतहा।

सच की राह आज भी सूनी अनजानी है।।


" *हंस*"  सच कमजोर हुआ जरूर पर हारा नहीं।

रहता है जीत कर गर ऊपरवाले की मेहरबानी है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।*

मोब।।।        9897071046

                   8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-37

माँगु भसुंडि आजु बर कोऊ।

मन भाए जे बोलउ सोऊ ।।

    तत्व ग्यान-बैराग-बिबेका।

    मुनि दुर्लभ जे ग्यान अनेका।।

रिद्ध व सिद्धि सकल सुख-खानी।

मोच्छ समेत तुमहिं जे जानी ।।

     बिनु संदेह तुमहिं मैं देऊँ।

     भव-भय सकल तुरत हरि लेऊँ।।

सुनि प्रभु-बचन बिचारे हमहीं।

धन-सम्पत्तिहिं सुख नहिं मिलहीं।।

     राम क भगति सकल सुख-धामा।

     मिलै न सुख बिनु भक्तिहिं रामा।।

जल बिनु मीन,भगति बिनु सेवक।

छटपटाहिं बिनु नावहिं खेवक ।।

     अबिरल भगतिहिं सुर-मुनि चाहहिं।

      बिमल बिसुद्ध पुरान-श्रुति गावहिं।।

कलप-तरू-कृपालु भगवाना।

दीजै मोहिं सोइ अग्याना ।।

     एवमस्तु कह राम कृपाला।

     दीन्ह भगति तब दीन दयाला।।

तुम्ह बड़ भागी, मम अनुरागी।

अबिरल भगति कै तुमहीं भागी।।

     तव उर रहहि सकल गुन बासा।

      पायो मम प्रसाद बिस्वासा ।।

भक्ति-बिराग,ग्यान-बिग्याना।

मम रहस्य व लीलहिं जाना।।

    बिनु प्रयास तुम्ह जाने सबहीं।

    देबहुँ अस बर अब मैं तुमहीं।।

माया-भ्रम नहिं ब्यापै तोहीं।

करत रहहु अनुरागहिं मोहीं।।

   अब तुम्ह सुनहु बचन मम कागा।

   जानउ मम सिद्धांत सुभागा।।

अखिल जगत मम माया रचना।

जीव-चराचर जे इहँ बसना ।।

     सकल जगत सँग हमरो नेहा।

     सबतें अधिकहिं मनुज सनेहा।।

द्विज श्रुति-धारी,धरम-बिचारी।

रखहुँ सनेह तिनहिं सँग भारी।।

     पुनि ग्यानी-बिरक्त-बिग्यानी।

      तिन्हकर नेह-बोल अरु बानी।

प्रिय तें प्रियतर लगहिं मोहीं।

इन्हतें प्रियतर सेवक तोहीं।।

दोहा-भगति-बिहीन बिरंचि प्रिय,प्रिय सभ जीव समान।

         भगतिवंत बरु नीच अपि,लागहिं प्रिय सम प्रान।।

                       डॉ0हरि नाथ मिश्र

                        9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/16)

नहीं चैन से सोने देती,

याद पिया की मुझे सताए।

ऊपर से पपिहा की पिव-पिव-

तन-मन मेरे आग लगाए।।


घर-आँगन-चौबारा सूना,

सूना लगता है जग सारा।

सुनो, याद में तेरी साजन,

बहती रहती अश्रु की धारा।

चंद्र-चंद्रिका जग को भाती-

मुझको चंदा नहीं सुहाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


लख कर सखियाँ मुझको कहतीं,

बोलो,तुमको हुआ है क्या?

उनसे कैसे यह मैं कह दूँ,

याद तुम्हारी सताए पिया?

पर माथे की रूठी बिंदिया-

सबको सारा राज बताए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


रात बिताऊँ जाग-जाग कर,

दिन में राह निहारूँ तेरी।

बाहों में आ भर लो बालम,

यह है अब तो चाहत मेरी।

सायक कुसुम धनुष अनंग ले-

सर-सर सायक प्रखर चलाए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


 कली चमन में खिली देख कर,

भौंरे उन पर मर-मिट जाएँ।

सरसों फूली पीली-पीली,

देख हृदय सबके ललचाएँ।

पीली चुनरी पहन प्रकृति भी-

लगती रह-रह मुझे चिढ़ाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


आकर दर्शन दे दो साजन,

तकें नैन ये राहें तेरी।

रहा न जाए अब तो मुझसे,

फैली हैं ये बाहें मेरी।

जीवन का है नहीं भरोसा-

जलता दीपक कब बुझ जाए??

      तन-मन मेरे आग लगाए।

      याद पिया की मुझे सताए।।

               "©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

निशा अतुल्य

 बाल कविता

15.3.2021


माँ आ गई होली प्यारी 

मुझको रंग दिला दो तुम 

रंग बिरंगे प्यारे प्यारे

गुब्बारे दिलवादों तुम ।


रंग भरूँगा गुब्बारों में 

चढ़ कर छत सबको मारूंगा

भीग जाएंगे जब वो रंग से

ताली खूब बजाऊँगा ।


माँ बोली ये क्या कहते हो 

ये बात है बहुत बुरी 

चोट लग जाये कहीं किसी को

ऐसे नहीं खेलो होली ।


रंग लगाओ गुलाल लगाओ 

गले प्रेम से मिलो सबसे

चाट पकौड़ी गुंजिया पापड़

खाओ सब मिल ढेर सारे ।


टेसू का जो रंग बनाया

स्वयं भीगो,और भीगो डालो

गुलाल उड़ाओ खूब लगाओ ।

सबको रंग में रंग डालो ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

 राम बाण🏹


मन के मौला मन के मौजी

 मन में राग जगाये हैं।

भ्रमर भ्रमर गुंजित मन ने, 

   कितने बाग सजाये है।


इच्छाओं के बादल उमड़े, 

घुमड़ घुमड़ के गरज रहे।

लोकतंत्र के प्यादे घर में,

धमकी देकर धमक रहे।

सेना पर पत्थर फेंके वो, 

    भटके राही पाये है।


कहीं सोच है कहीं लोच है,

  कहीं सड़क ये रोक रहे।

किसके किस्से गढ-गढकर,

    कुत्ते कौमी भौंक रहे।

आशाओं के पानी उतरे, 

  कितने ख्वाब बहाये हैं।


सेवा की सरकार निराली, 

 मुफ्त लुत्फ है लुटा रही।

हसीन सपने सजा-सजाकर, 

   गुप्त में दाल पका रही।

अम्मी चाची फूफी ने भी,

  अनशन बाग लगाये है।


अब्बू खां की बकरी गायब 

  पता नहीं क्यों कहांँ गई।

लंगर खाने और जनाने

  धौंस जमाने वहाँ गई।

समझ रखे हैं नासमझी की

    मद में घात लगाये हैं।


लोकतंत्र की साख मिटाने

   किनने दाग लगाये हैं।


            डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

नूतन लाल साहू

 प्रेरणा के स्रोत


संस्कारो से बड़ी

कोई वसीयत नहीं होती

और ईमानदारी से बड़ी

कोई विरासत नही होती है

जिंदगी में हम,कितने सही है

और कितने गलत है

ये सिर्फ दो ही शख्स जानते है

परमात्मा और आत्मा

शब्द भी

एक तरह का भोजन है

किस समय कौन सा शब्द

परोसना है

वह समझ जाए तो

दुनिया में उससे बढ़िया

रसोइया कोई नहीं होगा।

हाथ जोड़ने से

तन में विनम्रता आती है

हाथ जोड़ने से

भक्ति में पवित्रता आती है

हाथ जोड़ने से

मन में शत्रुता नही रहती

हाथ जोड़ने से

चेहरे पर प्रसन्नता आती है

समय के साथ परिवर्तन ही

सुखमय जीवन का आधार है

जो अच्छा लगे

उसे ग्रहण करो

जो बुरा लगे,उसका

त्याग कर दो

चाहे वह विचार हो

या फिर कर्म हो

जिंदगी में अगर कोई

सबसे सही रास्ता दिखाने वाला

दोस्त है,तो वो है अनुभव

कभी आपको लगे कि

मैं अकेला क्या कर सकता हूं

तो एक नजर सूरज को देख लेना

वो अकेला ही

सारे संसार को,आलोकित करता है


नूतन लाल साहू




समय ही शक्तिशाली है


समय और स्थिति

बदलती रहती है

कोई किसी का अपमान ना करें

आप शक्तिशाली हो सकते है,पर

समय आपसे अधिक

शक्तिशाली है

कल न हम होंगे

न कोई गिला शिकवा होगा

सिर्फ सिमटी हुई यादों का

सिलसिला होगा

जो लम्हे है

चलो हंस कर,बिता लें

न जाने कल क्या

जिंदगी का फ़ैसला होगा

क्यों भिड़ता है समय से

समय है,पहलवान

बड़े बड़ो के समय ने

काट दिये है कान

जो पंगा ले,समय से

वह पीछे पछताय

समय किसी के बाप का

होता नही है गुलाम

आता है सबका शुभ समय

फिर काहे को घबराता है

लिख के रख लें एक दिन

काम तुम्हारा अवश्य ही होगा

समझ न पाया कोई भी

तकादीरो का राज

अगर समय अनुकूल नहीं तो

सब कुछ है बेकार

आप शक्तिशाली हो सकते है, पर

समय आपसे अधिक शक्तिशाली है


नूतन लाल साहू

दोहे डॉ रामबली मिश्र

 सौरभ    (दोहे)


सौरभ को जीवन समझ, यह जीवन का अंग।

सुरभित सुंदर भाव से, बनता मनुज अनंग।।


सौरभ खुशबूदार से, मानव सदा महान।

सदा गमकता रात-दिन, रीझत सकल जहान।।


सौरभ में मोहक महक, सौरभ अमित स्वरूप।

सौरभ ज्ञान सुगन्ध से, बनत विश्व का भूप।।


जिसमें मोहक गन्ध है, वह सौरभ गुणशील।

सौरभ में बहती सदा ,मधु सुगन्ध की झील।।


स्वादयुक्त आनंदमय,अमृत रुचिकर दिव्य।

सौरभ अतिशय सौम्य प्रिय, सहज मदन अति स्तुत्य।।


सौरभ नैसर्गिक सहज, देवगन्ध का भान।

सदा गमकता अहर्निश, सौरभ महक महान।।


सौरभ दिव्य गमक बना, आकर्षण का विंदु।

सौरभ को ही जानिये, महाकाश का इंदु।।


मानवता  (दोहे)


मानवता को नहिं पढ़ा, चाह रहा है भाव।

यह कदापि संभव नहीं, निष्प्रभाव यह चाव।।


नहीं प्राणि से प्रेम है, नहीं सत्व से प्रीति।

चाह रहा सम्मान वह ,चलकर चाल अनीति।।


मन में रखता है घृणा, चाहत में सम्मान।

ऐसे दुर्जन का सदा, चूर करो अभिमान।।


मानव से करता कलह, दानव से ही प्यार।

ऐसे दानव को सदा, मारे यह संसार।।


मानवता जिस में भरी, वह है देव समान।

मानवता को देख कर, खुश होते भगवान।।


मानव बनने के लिये, रहना कृत संकल्प।

गढ़ते रहना अहर्निश, भावुक शिव अभिकल्प।।


मानवता ही जगत का, मूल्यवान उपहार।

मानवता साकार जहँ, वहाँ ईश का द्वार।।


रचनाकार:

डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार ममता जैन पुणे

 


*_डॉ. ममता जैन(एम.बी.ए., पी.एच. डी): एक परिचय_*

*अभूतपूर्व उपलब्धियां*
♦पुरातत्व शोध हेतु साइप्रस      इजरायल आईलैंड मिश्र अमेरिका आदि देशों की सांस्कृतिक सद्भाव यात्राएं।

♦इंडिया नहीं भारत को आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की प्रेरणा से हिंदीअभियान को जन जन तक पहुंचाने हेतु देश और विदेश कीअनेक विश्वविद्यालयों में संगोष्ठी सेमिनार एवं जन जागरूकता के अनेक कार्यक्रमो का आयोजन एवं संयोजन
♦मात्र 18 वर्ष की अवस्था में भारतीय जैन मिलन के अंतर्गत 'कुमारिका मिलन 'बनाकर युवतियों में सामाजिक और धार्मिक चेतना का शंखनाद।

♦मात्र 21 वर्ष की अवस्था मेंअवस्था में पत्रकारिता में पीएचडी कर साइप्रस (यूरोप)मेंप्रथम ऑनलाइन पत्रिका अभिव्यक्ति का प्रारंभ (जिसको वहां के हाई कमिश्नर श्री पवन वर्मा जी द्वारा के शुभ संदेश के द्वारा प्रकाशित किया गया।अपर हाई कमिश्नर श्री मनोहर राम जी के द्वारा जिसका विमोचन किया गया।
♦21 वर्ष की अवस्था में ग्रीस लंदन,अमेरिका आदि की सांस्कृतिक सद्भाव यात्राएं कर जैन धर्म का प्रचार प्रसार करने वाली सर्वप्रथम जैन युवती जिसने सबसे पहले ब्रिटिश म्यूजियम में जाकर जैन प्रतिमाओं का सूचीकरण किया ।इजिप्ट म्यूजियम में जैन प्रतिमाओं का सूचीकरण किया ।

♦जिनको हाई कमिश्नर द्वारा स्वयं एंबेसी में सम्मानित किया गया। जिनकी लिखित पुस्तको के अनेकों साहित्यिक सम्मान मिले।

♦एमबीए करने के बाद भी जिन्होंने सरकारी नौकरी या प्राइवेट नौकरी नहीं की बल्कि अपना पूरा जीवन समाज सेवा के क्षेत्र में लगा दिया जिन्होंने महिलाओं को "सीमित आय में असीमित सुख कैसे प्राप्त करे" ऐसे मंत्र दिए।परिवार और बच्चे के प्रति दायित्व बोध का अहसास करवाया।
♦विदेशों में जिन्होंने शाकाहार का विशेष प्रचार किया। साइप्रस जैसे  देश मे जहाँ सीफूड ही मुख्य खाना है वहाँ शाकाहार का प्रचार प्रसार किया। भारतमे भी इस ओर सक्रिय ।मुस्लिम समाज में विशेषकर शाकाहार का प्रचार प्रसार कियाऔर इसमें कुछ हद तक सफल भी हुई जब मुसलमान व्यक्तियों नेअपनी रोजो को शाकाहारी भोजन से खोला ।
*साहित्यिक  व धार्मिक क्षेत्र में अन्य उपलब्धि*
🔷 मुनि श्री प्रमाण सागर जी अक्षय सागर जी उत्तम सागर जी,वैराग्य सागर जी,मुनिपुगव श्री सुधा सागर जी महाराज के कार्यक्रमों में एवं महिला सम्मेलनो में  मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रण। अनेक महिला सम्मेलनके कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि के रूप मेंसम्मान।हैं।12 वर्ष पूर्व भी और इस वर्ष भी श्रवणबेलगोला महामस्तकाभिषेक में आयोजित विश्वस्तरीय महिला महिला में भी जिनको वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया।
🔷दूरदर्शन आकाशवाणी पर जिनकी वार्ताएं निरंतर प्रकाशित होती रही है।
🔷अनेकों कवि सम्मेलनका आयोजन एवं स्वयं कई कवि सम्मेलन में कवियत्री के रूप में की शोभा बढ़ा चुकी है।
शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष,श्री चंद्रप्रभु महिला मंडल की अध्यक्ष,अखिल  भारतीय महिला महासमिती की
मध्यांचल समन्वयक,लायनेस क्लब मिरेकल की पूर्व अध्यक्ष
🔷साहित्य और धर्म के क्षेत्र मेंअनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।जिसमें विशेष पुरस्कार "नारी गौरव" ,"समाज विभूषण"," साहित्य श्री" ,"महिला रत्न","काव्यश्री"कवि जायसी सम्मान।
🔷100 से भी से भी अधिक पत्र-पत्रिकाओं में जिनके  आलेख और शोध पत्र आ चुके  है ।देश की सभी प्रतिषिठत पत्र पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित
🔷प्रकाशित पुस्तक पर एम.फिल. प्रस्तावित

समाज के लिए विशेष रूप से जिन्होंने एकता समानता और सद्भाव के सूत्र दिए।

*सामाजिक और स्वास्थ्य के क्षेत्र*
वृद्धाश्रम ,अनाथलय,बालाश्रम,
गौशाला ,वृक्षारोपण आदि सामाजिक क्षेत्र में किए गए कार्यो की राज्य स्तर पर संस्तुति

🔷अपराधियों और रिमांड होम के बच्चों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य
🔷मंदबुद्धि और सैलबरी पाल्सी रोग से त्रस्त बच्चों को पठन सामग्रीआदि प्रदान करना व करवाना।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तथा दंत परीक्षण एवं मधुमेह परीक्षणआदि के लिए शिविरों का आयोजन।

🔷बालिकाओं के लिए आत्मरक्षा की कार्यशाला
नैतिक मूल्यों की स्थापना हेतु विभिन्न कार्यशाला 
पूर्व बच्चों के लिएआत्मविश्वास बढ़ाने हेतु विशेष कार्यशाला का आयोजन ।

*पुरस्कार/सम्मान*
*साहित्य श्री 1990
*युवा प्रतिभा सम्मान2003
*साहित्य सौरभ सम्मान2003
*काव्यश्री 2300
* संत कवि जायसी सम्मान
* राज किशोरी मिश्रा सम्मान *मातृछाया पुरस्कार
*नारी गौरव 2014
*आदर्श महिला पुरस्कार 2019
*समाज भूषण पुरस्कार2019
*काव्य गौरव 2019
* Star 2020 award by world records London (U.K)

*प्रकाशित पुस्तकें*
1.साइप्रस नहीं लुभाता
2.सीप के मोती
3.लहरों की मुस्कान
4.प्रतियोगिता दर्पण ,जागृति, पंजाब सौरव ,प्राकृत विद्या, ज्योति ,कादंबिनी ,ग्रहशोभा मनोरमा,   मुक्ता सरिता, नवभारत टाइम्स, जैन गजट ,जैन महिला  श्री देशना,समग्र दृष्टि आदि  में 100 से भी अधिक रचनाएं। प्रकाशितएनसीईआरटीहिंदी की सहायक पुस्तक हेतु 3 कहानियां स्वीकृत
50 से भी अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार और रविनार में संचालन एवं शोध वाचन
*संपादन*

अभिव्यक्ति त्रैमासिक पत्रिका  श्री देशना ,द इनफॉर्मल

*बेटियां*
बहुत बार सुनी थी मैंने
मेरी मां गाती थी मेरे लिए
" मैं बचपन को बुला रही थी
बोल उठी बिटिया मेरी
नंदन-वन सी  गूंज उठी
वह छोटी सी कुटिया मेरी
सच आज जब मेरी बेटी की  तुतलाती सुवास
हवाओं में तैरती  है
मेरा आंगन खिल जाता है
मैं भी वही पंक्तियां बुद बुदाती हूं मेरी सारी संवेदना और ममत्व का कोष भर जाता है
मेरी वत्सलता का मंगलदीप
जल उठता है
मुझे मेरी पूजा, मेरी आरती
मेरी बेटी ही लगती है
रंगोली की चमक
केतकी की महक
मंदिर से शांति
ममता की लोरी
उषा की किरण
भावों की आभा
अनुभूति की पुरवाई
सच, बेटी देहरी का दीप ही नहीं, पूरी की पूरी दीप मालिका होती है ।

डॉ ममता जैन पुणे

*सुबह का सूरज*
  
सुबह का सूरज
मेरे रोशनदान से झांकता है
छुप छुप कर जब भी देखता है
मुझसे मिलने की चाह लिए
मुझे पता लग जाता है
यह मेरे मायकेमेरे घर से मिलकर आया है
यही एक तो है
जिससे मैं पूछ लेती हूं सबके हालचाल
उठ जाती हूं सुबह
सूरज आएगा
जल तो दूंगी
आएगी मां की आवाज
नहा धो लो भगवान की पूजा करो नाश्ता तैयार करती हूं
मैं आवाज में खोती हूं
जब तक सूरज को जल देती हूं
आ जाती है दूसरी आवाज
नाश्ता तैयार नहीं हुआ क्या ?
बाद में देना जल
पूजना बाद में भगवान को
अधरों पर जम जाता है
तभी एक सवाल
सूरज तुम ही बताओ
यह क्या हो गया ?
सारा माहौल कैसे बदल गया? हम सबके बीच से
भगवान कहां और क्यों चला गया?

डॉ ममता जैन,पुणे

     
*रसोई*
   डॉ ममता जैन

रसोई बनाना ही नहीं
रसोई में बनना भी सीखती है
औरत
दाल -चावल ,सब्जी- रोटी
तरह-तरह के व्यंजनों के बीच ढलता है /बनता है /पकता है उसका व्यक्तित्व भी सांचे में
इन बर्तनों को नापते-तौलते
हाथ में लेते लेते जान गई हैं
देखते ही पहचानना
किसी भी धारिता /क्षमता और उपादेयता
आग से खेलना
उसे सहज लगता हैं
आँच झेलने में उसे तपिश नहीं लगती
अकेले सुनसान में भी रम जाती है
रसोई घर में एक औरत
यही उसके अंतरंग में
दाल की तरह प्रेशर कुकर में चुपचाप खदबदाती रहकर
उसकी भावनाएं पकती है
पर जानती है वह तपिश जब एक निश्चित तापमान ले लेगी
तब देगी एक सीटी
और जगा देगी पूरा परिवेश
पूरा परिवार
उबलते चावलों के भिगोने में उसने हमेशा एक चावल देखा है और पूरे भिगोने के चावलों की नीयत भाँप ली है /पहचान ली है इसलिए रसोई के बीच बैठी औरत को
असहाय /अबला / अशक्त  समझना नितांत भूल है
रसोई में उसने
खड़ा होना भी सीख लिया है
और अपने जीवन का नया  इतिहास
स्वयं अपनी कलम से लिख दिया है।

महानगरीय सभ्यता
                  डॉ ममता जैन
                 
ना हवा न धूप
बस रात के अंधेरे में
चारदीवारी को देख
सुरक्षित हो जाना
एक अकेली दुनिया के बीच
अपने भीतर की आवाजे
  स्वयं सुन सुनकर
  अपनी ही परछाइयों
  से बतियाना
  पत्थरों के घरौंदों में तय करना पूरा सफर
   और झपकियों के बीच ही
   कैलेंडर की एक तारीख को
   बदलकर
   एक कदम बढ़ाना
   चुपचाप बदलते मौसम में
    विकास और प्रगति के
     महासागर के किनारे
     खड़े होकर
      समय के चक्र के निशानों के बीच
       लिस्ट पर चढ़ते उतरते भी
        मंजिलें गिनने में भी
       सीढ़ियो परचढ़ने से अधिक थकना
       मुझे उस आदमखोर जंगल
        में पहुंचाता है
        जो महानगरों के बीचोंबीच
         नागफनी- सा फैलता
         जा रहा है

बसन्तोत्सव 2021 काव्य रंगोली आशुकवि नीरज अवस्थी

 कविता लिखने से कभी लिख ना पाया गीत।

मातु शारदे की कृपा से लिख जाते गीत।1

खण्ड काव्य भी रच दिए समय हुआ अनुकूल।

एक पंक्ति में फंस गए गए व्याकरण भूल।2

नित्य सृजन साहित्य का करते सुकवि सुजान।

जैसे धरती शीश पर धरे शेष भगवान।3

जो जन्मा है जगत में,उसका होगा अंत।

सदा आपके ह्रदय में बीते सुखद बसन्त।। 4

नीरज नयनो से करूँ वन्दन बारम्बार।

हंस वाहिनी की कृपा बरसे अपरम्पार।।5

आशुकवि नीरज अवस्थी


एस के कपूर श्री हंस

 [14/03, 8:40 am] +91 98970 71046: *विषय।।बाल साहित्य।।*

*विधा।।बाल शिक्षाप्रद कविता।।*

*शीर्षक।।स्कूल में शुरू हो गई*

*फिर से अब पढ़ाई है।।*

1

बिल्ली मौसी दूध मलाई

मेरी तुम मत खाना।

मुझ को खा पीकर     है

स्कूल को     जाना।।

करनी है    मुझको    तो 

खूब          पढ़ाई।

बंदर मामा मत कर  मेरी

छत पर    लड़ाई।।

2

कॅरोना में घर   बैठ  कर

आयी   बारी  है।

शुरू हुई फिर  स्कूल  की

तैयारी          है।।

हाथी दादा    मिलने हम

चिड़ियाघरआयेंगे।

बंदर मामा आकर  केला

तुम्हें    खिलायेंगे।।

3

भगवान जी से     मिलने

मंदिर    जाना है।

उनसे प्रार्थना करके  हम

को  आना     है।।

हम खूब करें  पढ़ाई  यह

आशीर्वाद   मिले।

स्कूल में सबसे मिल कर

वैसे ही मन खिले।।

4

आज स्कूल जाते   लड्डू

मिला खाने    को।

मना कर      दिया   हमने 

अनजाने      को।।

मम्मी पापा ने मना  किया 

ऐसे कुछ लेने को।

अच्छा नहीं  होता   किसी

को कुछ देने को।।

5

आज बूढ़ी काकी  को हम

ने सड़क पार कराई।

बचाया चिंटू मिंटू को  कर

रहे थे दोनों लड़ाई।।

टीचर जी ने बताया हमको

बात अच्छी  सीखें।

बिना मास्क  सड़क  पर यूँ

ही   नहीं     दीखें।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।।     9897071046

                     8218685464

[14/03, 8:40 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।   ।।संख्या  17 ।।*

*।।काफ़िया।।  हर ।।*

*।। रदीफ़।।  अच्छी बात नहीं।।*

*बहर     22-22-22-22-22-22-2*


जहर की खेती बोई जाये अच्छी बात नहीं।

दुनिया हम को नाच नचाये अच्छी  बात नही।।


हमको करना होगी गुलशन की पहरेदारी।

कातिल आबोहवा मुस्काये अच्छी बात नहीं।।


प्यार मुहब्बत के पौधों से भरना है सारा गुलशन। 

 नफ़रत हर सू आँख दिखाये अच्छी बात नहीं।।


इतनी पहरेदारी है कैसे यह है मुमकिन।

दुश्मनआकर घात लगाये अच्छी बात नहीं।।


ऐ *हंस* यहाँ पर छुप छुप कर के कोई दुश्मन।

मेरे  बच्चों को उकसाये अच्छी बात नहीं।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।     9897071046

                   8218685464

[14/03, 8:40 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।    ।। संख्या  18।।*

*।।काफ़िया।। आज  ।।*

*।।रदीफ़।।   है       ।।*


तेरे अहम को जाने किस बात का नाज़ है।

आखरी सफ़र को भी दूसरों का मोहताज़ है।।


जाने कितने सिकंदर दफ़न हैं इस जमीं में।

तेरा क्यों यह वहम कि तेरे सर पर  ताज है।।


जिसने दिल दुनिया का जीता वही है कमाई।

वही साथ जाता बस यह एक खुला राज़ है।।


नेकी कर दरिया में डाल का हो फ़लसफ़ा।

अपने कद से नहीं कामों होता फ़राज़ है।।


अमीरी गरीबी का फर्क हर जगह लागू नहीं।

प्रभु की चौखट से  नाता इसका दूर दराज है।।


तेरे बुलाने पर जमा होते हैं कितने लोग।

कीमत गर है तो बस तेरी यह आवाज़ है।।


" *हंस*" बिताई जिसने जिन्दगी हाथों में हाथ लेकर।

वही फिर जाकर बना दुनिया में सरफ़राज़ है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।        9897071046

                    8218685464


*फ़राज़।   ।।।।।।।     ऊँचा*


*सरफ़राज़   ।।।।।।।।   सम्मानित*

निशा अतुल्य

कालचक्र
14.3.2021

मैं काल चक्र 
निरन्तर चलता ही रहता हूँ 
तुम करते रोकने की कोशिश मुझे
पर मैं कहाँ रुकता हूँ ।

कर्मों की गति से निर्धारण
तुम्हारे मिलने बिछड़ने के होते हैं 
कौन बच पाया मुझसे 
ले प्रभु अवतार
मेरे ही रथ पर चलतें हैं ।

राग ,विराग ,लोभ ,मोह 
सब मेरे मुझमें ही रहते हैं 
त्याग,तपस्या,सद विचार भी
मुझमें ही तो पलते हैं ।

मैं गतिशील रुक नहीं पाता
न थकता न हारा हूँ 
जिसने जानी ताकत मेरी 
उसको सब कर्मों से तारा है ।

सूर्य,चंद्र ,हवा और जल 
चलते काल संग ही है 
उद्गम और समर्पण भी 
रहता मेरे बस में ।

काल चक्र की गति निरन्तर
रोक सके न कोई इसे
काँटा पकड़ खड़ा रहे तू 
कब युग पलटे पता नहीं ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डॉ बीके शर्मा

श्री अटल जी को समर्पित मेरी कविता
**********************
 बिगड़ी बात बन गई
******************

बन गई बन गई 
बिगड़ी बात बन गई 

पहले तो वे हमसे नाराज थे
छुपा रहे जैसे कोई राज थे
एक रोज वे इत्तेफाक से मिले
मिट गए सारे शिकवे गिले

ऐसा लगा जैसे सांसे थम गई
बन गई बन गई 
बिगड़ी बात बन गई

 न वे आगे बढ़े
 ना कुछ हमने कहा 
नजर फिर से मिली 
दिल का गम तो गया 

ना होश उनको रहा
न सोच मेरी रही
होंठ उनके खुले 
बात मैंने कहीं 

वह आगोश में आ
सांसो में रम गई 
बन गई बन गई
बिगड़ी बात बन गई

 डॉ बीके शर्मा
 उच्चैन भरतपुर राजस्थान

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दूरियाँ*
           *दूरियाँ*(गीत)
आदमी आदमी में रहें दूरियाँ,
मग़र आदमियत से न हों दूरियाँ।
अगर आदमियत से हुए दूर हम-
करेंगी वमन विष का भी दूरियाँ।।

गले हम मिलें या मिलें हम नहीं,
मिलें हाथ से हाथ या फिर नहीं।
अगर दिल से दिल का मिलन हो रहा-
मिटेंगी ही निश्चित सभी दूरियाँ।।

सदा हाथ जोड़े हम करते नमन,
सदा मीठी भाषा का रक्खें चलन।
अगर मीठी बोली का करते अमल-
बढ़ेंगी कभी भी नहीं दूरियाँ।।

प्रचुर भाव देवत्व पलता वहाँ,
विमल सोच मस्तिष्क निर्मल जहाँ।
इस तरह भाव-संगम-हृदय यदि बने-
त्वरित भाग जाएँ जो थीं दूरियाँ।।

घड़ी संकटों की है आती अगर,
लड़ें उससे हम सब सदा हो निडर।
एकता-मंत्र का सूत्र यदि पा लिए-
रहेंगी कभी फिर नहीं दूरियाँ।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

डॉ०रामबली मिश्र

 हरिहरपुरी की कुण्डलिया


नारी अरि होती नहीं, नारी मित्र समान।

जो नारी को समझता, वह रखता शिव ज्ञान।।

वह रखता शिव ज्ञान, गमकता रहता प्रति पल।

भेदभाव से मुक्त, विचरता बनकर निर्मल।।

कहत मिश्रा कविराय, दिखे यह दुनिया प्यारी।

देवी का प्रतिमान, दिखे यदि जग में नारी।।


जिसे देख मन खुश हो जाता

                    (चौपाई)


जिसे देख मन खुश हो जाता।

हर्षोल्लास दौड़ चल आता।।

वह महनीय महान उच्चतम।

मनुज योनि का प्रिय सर्वोत्तम।।


परोपकारी खुशियाँ लाता।

इस धरती पर स्वर्ग बनाता।।

सब की सेवा का व्रत लेकर।

चलता आजीवन बन सुंदर।।


कभी किसी से नहीं माँगता।

अति प्रिय मादक भाव बाँटता।।

मह मह मह मह क्रिया महकती।

गम गम गम गम वृत्ति गमकती।।


उसे देख मन हर्षित होता।

अतिशय हृदय प्रफुल्लित होता।।

मुख पर सदा शुभांक विराजत।

दिव्य अलौकिक मधुर विरासत।।


रचनाकार:डॉ०रामबली


मिश्र हरिहरपुरी

9838453801

एस के कपूर "श्री हंस"* *बरेली।।।। बाल साहित्य

 *विषय।।बाल साहित्य।।*

*विधा।।बाल शिक्षाप्रद कविता।।*

*शीर्षक।।स्कूल में शुरू हो गई*

*फिर से अब पढ़ाई है।।*

1

बिल्ली मौसी दूध मलाई

मेरी तुम मत खाना।

मुझ को खा पीकर     है

स्कूल को     जाना।।

करनी है    मुझको    तो 

खूब          पढ़ाई।

बंदर मामा मत कर  मेरी

छत पर    लड़ाई।।

2

कॅरोना में घर   बैठ  कर

आयी   बारी  है।

शुरू हुई फिर  स्कूल  की

तैयारी          है।।

हाथी दादा    मिलने हम

चिड़ियाघरआयेंगे।

बंदर मामा आकर  केला

तुम्हें    खिलायेंगे।।

3

भगवान जी से     मिलने

मंदिर    जाना है।

उनसे प्रार्थना करके  हम

को  आना     है।।

हम खूब करें  पढ़ाई  यह

आशीर्वाद   मिले।

स्कूल में सबसे मिल कर

वैसे ही मन खिले।।

4

आज स्कूल जाते   लड्डू

मिला खाने    को।

मना कर      दिया   हमने 

अनजाने      को।।

मम्मी पापा ने मना  किया 

ऐसे कुछ लेने को।

अच्छा नहीं  होता   किसी

को कुछ देने को।।

5

आज बूढ़ी काकी  को हम

ने सड़क पार कराई।

बचाया चिंटू मिंटू को  कर

रहे थे दोनों लड़ाई।।

टीचर जी ने बताया हमको

बात अच्छी  सीखें।

बिना मास्क  सड़क  पर यूँ

ही   नहीं     दीखें।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।।     9897071046

                     8218685464

दिल्ली में ऐतिहासिक साहित्यिक कार्यक्रम पुस्तक विमोचन एवम महिला सम्मान समारोह सम्पन्न

 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विप्र फाउंडेशन द्वारा दिल्ली में आयोजित श्री अभ्युदय उत्सव ऐतिहासिक रहा। देश भर से पधारी एक हजार से अधिक महिलाओं की पावन उपस्थिति में महिला स्वावलम्बन, संस्कार संरक्षण व कन्या विवाह में सहयोग जैसे विषयों पर मंथन व निर्णय हुए। समाज की दस तेजस्विनी युवतियों नूपुर शर्मा, बाँसुरी स्वराज, सुरभि मिश्रा, मीनाक्षी जोशी, युक्ति भारद्वाज, स्वाति शर्मा, शालिनी भारद्वाज, सुधा श्रीमाली, अंजलि कौशिक, सुमन जोशी का सम्मान हुआ। गृहिणियों द्वारा लिखित कविताओं की पुस्तिका श्री काव्य प्रवाह का प्रकाशन, विभिन्न प्रदेशों की सौ महिलाओं द्वारा पारंपरिक गीतमाला, कोरोना वारियर्स महिलाओं को सेवा श्री उपाधि अर्पण , विख्यात कलाकार सीमा मिश्रा द्वारा लोकगीतों की प्रस्तुति से सजा यह समारोह अविस्मरणीय रहेगा। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि डॉ.मल्लिका नड्डा, मुख्य वक्ता श्रीमती प्रियंका चतुर्वेदी : सांसद, विशिष्ट अतिथि सात बार के विधायक श्रद्धेय श्री सत्यनारायण शर्मा, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती रेखा शर्मा, सांसद श्री रमेश कौशिक, अर्थशास्त्री प्रो.गौरव वल्लभ, पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा, देश विख्यात आध्यात्म प्रचारक सुश्री जया किशोरी, दिल्ली विधानसभा सदस्य श्री अनिल वाजपेयी, jsw के उप प्रबन्ध निदेशक डॉ विनोद नोवाल व श्रीमती लता नोवाल प्रभृति शीर्षस्थजनों की प्रेरक उपस्थिति व सम्बोधन ने आयोजन को नई ऊँचाइयां प्रदान की।


स्वागताध्यक्ष श्रीमती ममता शर्मा पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग, स्वागतमंत्री श्रीमती सोनाली शर्मा व संयोजिका श्रीमती चन्द्रकान्ता राजपुरोहित के नेतृत्व में विप्र महिला नेतृत्व के शानदार सामंजस्य से संपन्न इस दिव्य आयोजन के कुछ चित्र आपके अवलोकनार्थ तीन खण्डों में प्रेषित हैं जो आपको अपने संगठन विप्र फाउंडेशन के प्रति और अधिक गौरव बोध कराएँगे।



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