अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2021 काव्य रंगोली नारी श्रद्धा सम्मान 2021

 

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2021


[08/03, 7:56 am] कवि रवीन्द्र प्रसाद, शिक्षक, झारखण्ड: नारी महान संस्कृति है
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नारी नारायणी तू
जननी कल्याणी तू
बेटी बहन माता है
सृष्टि की विधाता है।।

बेटियाँ गीत हैं संगीत हैं
आत्मा हैं ये मनमीत हैं
प्राण हैं घ्राण हैं श्वाँस हैं
माता पिता के आश हैं।।

कुल की पावन विधान हैं
संस्कृति की संविधान हैं
सृष्टि की आधारशिला ये
पाल रहीं पीयूष पिला ये।।

सृष्टि की अनुपम कृति है
नारी महान संस्कृति है
संस्कार की अनुकृति है
विश्व की यह विभूति है।।

जन-जन की अनुभूति है
बल बुद्धि विद्या श्रुति है
पुरुषार्थ की ये सीढ़ी है
बढ़ाती वंश की पीढ़ी है।।

आशीष पुत्रियों को नित्
अहर्निश सदा मिलता रहे
कामना यही प्रभु से नित्
आशीष सदा बरसता रहे।।

       रचना मौलिक एवं स्वरचित व सर्वाधिकार@ सुरक्षित है।
     रचनाकार:---
    रवीन्द्र प्रसाद "दैवज्ञ "
सम्पर्क सूत्र 8804276009
[08/03, 8:00 am] +91 88409 22449: *महिला दिवस काव्य रंगोली 21*
*अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस*
*काव्य सृजन समारोह*
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*नारी तू नारायणी*
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नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है
मां-बहन-बेटी-बहू कितने फर्ज निभाती है।
सुख हो या दुःख साथ सदा निभाती है
नारी तू नारायणी अपना फर्ज निभाती है।
बेटी रूप में तू घर बाबुल का चहकाती है
पत्नी रूप में तू घर पति का महकाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है।
बांध भाई की कलाई पर स्नेह का धागा
रक्षा कवच  बन जाती है
वक्त पड़े तो तू दुर्गा-चण्डी-काली बन जाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है।
ईश्वर का वरदान तू अनोखा
सृष्टि का आधार कहलाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर साथ निभाती है।
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स्वरचित व मौलिक रचना रचनाकार- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
मोबाइल नंबर- 6388172360
[08/03, 8:02 am] कवि सुरेश लाल श्रीवास्तव अम्बेडकरनगर: नारी जीवन-सम्मान

नारी- सम्मान   निराकृत से,
दुःखमय समाज हो जाता है।
नारी को सुख पहुंचाने से,
सुखमय समाज हो जाता है।।

इतिहास प्रत्यक्षित करने से,
यह विदित हमें हो जाता है।
जब-जब नारी अपमान बढ़ा,
उठता समाज गिर जाता है।।

निज देश में नारी की महिमा,
सज्जित थी पुरातन कालों में।
गायत्री, सावित्री अरु अनुसूया,
पूजित   थीं  उन  समयों में ।।

नारी    की  पूजा   होने  से,
उस काल की महिमा भारी थी।
सुखमय   समीर   चहुँ ओर बहे,
किंचिद     न     दुश्वारी   थी ।।

मध्य-काल   के  आते  ही,
नारी-जीवन अपमान बढ़ा।
जीवन -सम्मान  बचाने को,
सतियों   का  है ग्राफ चढ़ा।।

इनके जीवन की धारा को,
हर तरह से पहुँची पीड़ा थी।
फिर    भी  अपने बलबूते से,
रजिया, दुर्गा   हुंकार  उठीं।।

मीरा   के  भक्ती तानों से,
दुर्गा    के  बलिदानों से।
नारी -जागरण की डंका को,
कोई रोक सका न बजने से।।

ब्रिटिश -काल    में नारी ने,
अपनी शक्ति थी दिखलायी।
पुरुषों के समान नारियाँ भी,
रणक्षेत्रों    में   उतर  आईं।।

लक्ष्मी बाई,  विजय लक्ष्मी,
अरुणा आसफ अब बोल उठीं।
इनके     शक्ति   प्रदर्शन से,
अंग्रेजों  की  सत्ता डोल उठी।।

नारी महिमा का यह बखान,
जो  भी    है   सो  कम है।
हर क्षेत्र में नारियों का परचम,
लहराया  अब   भारत  में है।।

इंदिरा, बेदी,   मदर टेरेसा,
संधू की अब है शान बढ़ी।
एवरेस्ट विजेता बनी बछेन्द्री,
जज बनी फातिमा बीबी थीं।।

नारियाँ   अपनी     प्रतिभा से,
भारत  का मान   बढ़ा हैं रहीं।
मेधा पाटेकर  की सामाजिकता,
विश्व में आज भी   गूँज रही।।

मिशन शक्ति की ज्योति अब,
चहुँ   दिसि    प्रसरित  होय।
नारी -जीवन      सम्मान  से,
भारत    की    उन्नति   होय।।

        रचनाकार-----
       ----सुरेश लाल श्रीवास्तव--
                प्रधानाचार्य
         राजकीय इण्टर कालेज
       अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
   उत्तर प्रदेश,224122






परमादरणीय डॉ सरोज गुप्ता जी, सादर प्रणाम, रचना सेवा में सादर सम्प्रेषित
[08/03, 8:12 am] कवयत्री सीमा शुक्ल बेसिक टीचर मंझवा गद्दोपुर रायबरेली रोड अयोध्या: कमजोर कहां हो तुम नारी?

तुम भरती हो नभ में उड़ान,
संचालित करती रेल यान,
घर की थामें हो तुम कमान,
हर गुण है तुममें विद्दमान
जीवित करती हो सत्यवान,
ममता का गुण सबसे महान।

तुम नया जन्म ले लेती हो
जब बन जाती हो महतारी
कमजोर कहां हो तुम नारी।

मन प्रेम छलकता सागर है,
अंतस करुणा की गागर है।
अमृत रसधार बहे आंचल,
हर पीड़ा सहती हो अविचल।
जीवन में अनुपम धीर भरा।
है नयन नेह का नीर भरा।

तुम देहरी का जलता दीपक
घर घर में तुमसे उजियारी।
कमजोर कहां हो तुम नारी?

मन में नित भाव समर्पण है।
हर रूप प्रेम का दर्पण है।
प्रियतम की संग सहचरी हो
मां रूप बाल की प्रहरी हो।
मन क्षमा दया उर त्याग लिए,
प्रति पल जीती अनुराग लिए।

तुम ईश्वर की सुंदर रचना
यह सृष्टि सृजन तुमसे जारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?

युग से इतिहास लिखा तुमने
वीरों को नित्य जनां तुमने।
नित नीर बहाना छोड़ो तुम
अन्याय भुलाना छोड़ो तुम
तुम उमा,रमा हो ब्राम्हणी,
तुम झांसी वाली हो रानी।

शमशीर उठा संहार करो
डाले कुदृष्टि जो व्यभिचारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?

सीमा शुक्ला अयोध्या।
[08/03, 8:23 am] दुर्गा प्रसाद नाग: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 के पावन अवसर पर "नारी" विषय पर मेरी यह रचना कार्यक्रम प्रमुख आदरणीया माताश्री सरोज गुप्ता जी के चरणों में सादर समर्पित__

दोहा –
" नारी सुख का मूल ही नारी सुख की खान,
नारी का सम्मान कर होते मनुज महान।"

चौपाई–

इसलिए अगर सुख पाना हो तो नारी का सम्मान करो।
जो नाम अमर कर जाना है तो नारी का सम्मान करो।।

जग में वह देश उठा ऊंचा जिसने नारी का मन किया।
पर मिला खाक में लंका सा जिसने उसका अपमान किया।।

पहले जब महिला मण्डल का भारत में आदर ऊंचा था।
तब उसका चरण कलम वंदन करता संसार समूचा था।।

थे एक राम सीता के हित जिनने रावण का नाश किया।
पांडव थे जिसने कौरव का नारी के लिए विनाश किया।।

अब हरी जा रही हैं कितनी हरदम ही नारी भारत में।
पर कौन खोज करता उनकी रघुराई सा इस भारत में।।

कितनी ही पांचाली के अब नित वस्त्र उतरे जाते हैं।
पर कौन पाण्डवों की नाई बदले में शस्त्र उठाते हैं।।

इसलिए देश यह सदियों से हो रहा रात दिन गारत है।
अब तो बस नाम ही भारत है, भारत अब नहीं वो भारत है।।

भारत की बहनों माताओं यदि अब भी आप जाग जाए ।
तो निश्चय ही हम लोगो के सारे दुःख दैन्य भाग जाएं।।

फिर से यह भारत पहले के भारत सा गौरववान बने।
बलवान बने धनवान बने गुणवान बने विद्वान बने।।

बहनों तुम चाहो तो अब भी, आ सकता है फिर वक्त वही।
दिखलादो तुममें अब भी है, अपनी माता का रक्त वही।।

उठ पड़ो देख ले सब कोई भारत की कैसी नारी हैं।
दुर्गा यदि नहीं तो दुर्गा की अब भी कन्याएं प्यारी हैं।।
__________________________

दुर्गा प्रसाद नाग
नकहा– खीरी
उत्तर प्रदेश
मोo– 9839967711
[08/03, 8:33 am] कवयित्री सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ: ऐ!मातृशक्ति अब जाग जाग।
ऐ!शक्तिपुंज अब जाग जाग ।

रणचंडी बन तू स्वयं आज।
मत बन निरीह नारी समाज।

उठ हो सशक्त भय रहा भाग ।
अबला का चोला त्याग त्याग ।

चल अस्त्र उठा तज लोक लाज ।
शोषण का ले जग से  हिसाब ।

भारत की नारी दुर्गा है ,
भारत की नारी सीता है ।

रणचण्डी बन वह युद्ध करे ,
गीता सी परम पुनीता है ।

मां कौशल्या, जसुदा बनकर ,
जग् को सौगात दिया उसने ।

लक्ष्मीबाई रजिया बनकर ,
बैरी को मात दिया उसने ।

  वह  अनुसुइया वह सावित्री ,
वह पार्वती का मृदुल रूप ।

वह राधा है वह सरसवती
माँ लक्ष्मी का अनुपम स्वरूप ।

इसको अपमानित मत करना ,
ऐ!दुनिया वालों सुन लो तुम ।

सब  नरक भोग कर जाओगे ,
अब कान खोलकर सुन लो तुम ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला
[08/03, 8:37 am] भरत नायक "बाबूजी"
मु. पो. - लोहरसिंह
जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़): *"नारी"* (ताटंक छंद गीत)
****************************
विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
****************************
*नारी अनुकृति परमेश्वर की, पूजन की अधिकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
नाते अनगिन जग में उसके, जिन पर तन-मन वारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*नारी के बिन नर आधा है, नर भी रचना नारी की।
त्याग-तपस्या की प्रतिमा है, जय हो जन हितकारी की।।
प्रीति दायिनी हर पल है वह, स्नेहिल अति  सुखकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है ।।

*सतत सजगता से नारी की, जग निश्चिंत सदा मानो।
विडंबना फिर यह कैसी है? सहती वह विपदा जानो।।
मान सभी उसका भी रखना, नारी शुचि प्रणधारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*देव करें उपकार वहाँ पर, मान जहाँ पाती नारी।
है अवलंब सदा वह घर की, फिर क्यों न सुहाती नारी??
नारी तो है द्वार स्वर्ग का, महिमा उसकी न्यारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*नारी का उपहास न करना, उसका मान बढ़ाना है।
रोक भ्रूण की हर हत्या को, पुत्री-प्राण बचाना है।।
नव प्रतिमान सुता नित गढ़ती, सुत पर भी वह भारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, पूजन की अधिकारी है।।

*सृष्टि समाहित जिस नारी में, उसकी किस्मत फूटे क्यों?
थाम ऊँगली तुम्हें चलाया, उसकी लाठी छूटे क्यों??
अपना भी कर्तव्य निभाओ, कर्ज-मुक्ति की बारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।

*मानवता का मान रखो तो, संशय कहीं न होता है।
तोष मिले सत्कर्मों से ही, नाश कुकर्मों होता है।।
कर्म कभी मत करना ऐसा, जिसमें जग-धिक्कारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग!)
मो. 9340623421
*******************************
[08/03, 9:15 am] Bharti Jain Divyanshi Nr 21: *अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य रंगोली*
में प्रेषित है 👇👇👇

गीत :-

सीने में रखती है ममता, आँखों में चिंगारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

एक तरफ बन महिष- मर्दिनी ,
दुश्मन मार गिराती है।
छुई-मुई ,बन लजवन्ती सी,
दूजी ओर लजाती है।।

समझो मत इसको बेचारी, ये तलवार दुधारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

ये अनुसुइया, सावित्री भी,
रामायण की सीता है।
यही अहल्या , शबरी राधा,
मीरा, भगवत -गीता है।।

है दशरथ की कौशल्या ये, मनुज नहीं अवतारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

कहीं निर्भया, कहीं दामिनी,
कण-कण रूप भवानी है।
प्राण लुटा दे भारत माँ पर,
वो झाँसी की रानी है।।

कदम-कदम पर पौरुष के सँग, इसकी भागीदारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।

ये सतलुज, रावी, चिनाव है,
ये गंगा की धारा है।
दिव्य शक्ति ये परमेश्वर की,
काली का हुंकारा है।।
मर्यादा है इसका गहना, मत समझो लाचारी है।
अबला नहीं सदा से सबला ,ये भारत की नारी है।।

जय हिंद! जय मातृ शक्ति!

🙏🙏🙏

रचनाकार--भारती जैन 'दिव्यांशी'
मुरैना मध्य प्रदेश
मोबाइल--7000896988
                8103384949
(स्वरचित)
[08/03, 9:15 am] Nk अर्चना द्विवेदी अयोध्या फैजाबाद बेसिक टीचर: नारी दिवस की शुभकामनाएं

*दोहे*

नर-नारी जब साथ हों,गढ़ें नवल सोपान।
राष्ट्र प्रगति का पथ चुने,हो जग में उत्थान।।

अम्बर चूमे पाँव को,नारी करे प्रयास।
अपनों के सहयोग का,होता जब आभास।।

पग-पग पर सम्बल मिले,धरती करे विकास।
स्वर्ण अक्षरों में लिखा,नारी का इतिहास।।

नारी को प्रभु ने दिया, अतिशय रूप अनूप।
जैसे प्रतिदिन भोर में, खिलती छत पर धूप।।

करते हैं हर देवता,ऐसी भूमि निवास।
जीवन के अस्तित्व में,नारी का हो वास।।

जीवन की बाजी लगा, नार करे उत्थान।
काज सभी कर डालती,लेती है जो ठान।।
          अर्चना द्विवेदी
            अयोध्या
           सर्वाधिकार सुरक्षित
[08/03, 9:20 am] कवयित्री रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'
लखनऊ: *देवी स्वरूप माँ बनकर सृष्टि को उद्भूत व परिपालन एवं संवर्धन करते हुए हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करने वाली समस्त नारी शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अनंत हार्दिक शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत हैं रजनी की दो कुण्डलियाँ-*
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नारी का होता नहीं, जहाँ कहीं सम्मान।
खुशियाँ जातीं रूठ हैं, रोता है भगवान।
रोता है भगवान, न करता देश तरक्की।
खोती जग पहचान, बात यह पूरी पक्की।।
संकट खड़े विशाल, पड़े नित विपदा भारी।
सदन वही खुशहाल, जहाँ खुश रहती नारी।।
👩👩👩👩👩👩👩👩
नारी के सम्मान हित, करते बातें लोग।
पर संभव यह कार्य हो, होता नहीं प्रयोग।।
होता नहीं प्रयोग, समस्या बढ़ती जाती।
देवी सम है पूज्य, मगर यह पीटे छाती।।
करें इसी पर वार, प्रताड़ित करते भारी।
होता है अपमान, सहे कब तक यह नारी।।
👵👵👵👵👵👵👵👵
*©रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'*
*लखनऊ✍*
*उत्तर प्रदेश*
*स्वरचित एवं मौलिक*
*1/12/2019 के संकलन से उद्धृत*
🙏🙏🌹🌻🌻🌹🙏🙏
[08/03, 9:42 am] प्रमिला पांडेय कानपुर: महिला दिवस
मां को समर्पित रचना

तुम गीता हो ,रामायन हो ,
तुम चारो वेदो की थाती।
तुम आरती, पूजा ,वंदन हो।
तुम जलती दीपक में बाती ।।
तुम स्वर हो मधुर कोकिला का तुम राग - रागिनी वर दाती।
तुम दोहा , रोला ,भजनामृत ।
तुम ही दीपक मल्हार गाती।।

तुम मधुर चाॅदनी चंदा की ।
तुम दिनकर का उजियारा हो
तुम ही बसंत सी पुरवाई
तुम  पतझड का पखवारा हो।
तुम ही नदियों में गंगा हो
तुम ही संगम की धारा हो।
तुम मंदिर, मस्जिद,गिरजाघर तुम  ही नानक गुरुद्वारा हो।।

 

प्रमिला पान्डेय
कानपुर
संम्पर्क सूत्र
7905988068
[08/03, 10:34 am] +91 96104 47000: आओ सभी बहने मिलकर हम भारत का उत्थान करें
भारत के आँगन से आओ शुरू नया अभियान करें

प्रश्न यही है कियूं आखिर, बहनों पर अत्याचार हुए ?
राजनीति के चक्रब्यूह में,कियूं बेटी पर वार हुए?
जले न नारी लुटे न इज्जत,शपथ उठायें ध्यान धरें|
भारत के आँगन से आओ,शुरू नया अभियान करें ||

नारी की ताकत बनकर,अब ऐसी अलख जगानी है |
दुर्गा काली तुम बन जाओ, बनना हमें भवानी है ||
कब तक रोयेंगे छिप-छिप,कर माँ चंडी का ध्यान धरें ?
भारत के आँगन से आओ,शुरू नया अभियान करें||

तीन रंग की ध्वजा सम्हालो, सश्त्र उठाओ हांथों में|
हर पापी का नाश करो, तुम मत टूटो जज्बातों में||
चलो एक उज्जवल भारत, का पुनः नया निर्माण करें|
भारत के आँगन से आओ, शुरू नया अभियान करें||

बहुत दुसाशन यहाँ मिलने, गलियों में चौबारों में|
मगर नहीं गोविन्द मिलेंगे, स्वार्थ भरे बाज़ारों में||
धरा और आकाश नापने, की शक्ती का ध्यान धरें|
भारत के आँगन से आओ शुरू नया अभियान करें ||
अमित तिवारी (आजाद )
जयपुर,राजस्थान
9610447000
[08/03, 10:34 am] +91 70142 26037: सादर मंच
दिनांक-7-03-21
विषय-=महिला दिवस पर विशेष
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नारी तुम हो घर की इज्जत ,और रिश्तो की शान हो।
हर युग में पूजित तुम नारी, सबसे बड़ी महान हो।
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घर कि तुम मर्यादा हो, रुप अनेकों तेरे हैं।
माता पुत्री बहन भार्या, रिश्तों में नाम घनेरे हैं।
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जीवन की तुम छाया हो, मोह  ममता कि तुम माया हो
करे समर्पित अपना जीवन, प्रेम सिक्त का साया हो।
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नारी का अभिमान सदा ही, प्रेममय उसका घर है
हो नारी का सम्मान जहां, प्रमुदित नारी का वह घर है।
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नारी का सम्मान बचाना, सच्चा धर्म हमारा है।
वही सफल इंसान जगत में, लगे सभी को प्यारा है।
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प्रेम लुटा कर अर्पण करती, तन और मन बलिदान है।
कभी रूप रणचंडी बनकर, रखती निज का स्वाभिमान है।
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कवि संत कुमार सारथि नवलगढ़
[08/03, 10:36 am] Nr नीतू सिंह चौहान Lko: मंच को नमन
विषय - महिला दिवस  ( नारी)
विधा  - गजल
सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
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नारियाँ अब चांद छूने आसमां चढने लगी हैं।
देखिये हर रोज एक इतिहास ये गढने लगी हैं।।

रूढियों के बंधनों को तोडकर के नारियाँ अब।
हौसलों से नित नये आयाम पर बढने लगी हैं।

खौफ कोई अब नहीं, आजाद होकर जी रही वो।
पंक्षियों सी गगन में ले पर नये उडने लगी हैं।।

मुश्किलों से ना डरी वो, पार हर बाधा किया है।
राह के हर कंटकों से, रात- दिन लडने लगी हैं।।

ज्ञान की उर में जलाकर लौ,उजाला कर रही वो।
जब कभी रूढियां बन शूल, हिय खाने लगी हैं।।

            कवयित्री नीतू सिंह चौहान
               जानकी अपार्टमेंट, बल्दीखेडा,
                  लखनऊ- 226012
                    मो0-  9453562919
[08/03, 10:39 am] कवयत्री नीरजा नीरू5/243
जानकी पुरम विस्तार
लखनऊ: *नहीं*चाहती*बनना*देवी*
~~~~~~~~~~~~~~

नहीं चाहती बनना देवी
बस इन्सान ही रहने दो
कतरो  मेरे पंख न देखो
मुझको मन की कहने दो

नहीं चाहती तुम मेरा
चंदन से ही अभिषेक करो
नहीं चाहती तुम मेरा
वंदन बस मुँह को देख करो
माँ के गर्भ में तो मुझको
जन्म समय तक रहने दो
कतरो मेरे ..

नहीं चाहती फल फूलों से
रोज मेरा श्रृंगार करो
नहीं चाहती धन दौलत को
मुझको निश्चित प्यार करो
मुझको मेरे दावानल में 
आप अकेले दहने दो
कतरो मेरे ...

नहीं चाहती निश दिन ही तुम
चरण कमल मेरे धोओ
नहीं चाहती मंगल स्वर लहरी में 
जग के पापों को रोओ
मुझको वस्तु न समझो बस तुम
मानव बन कर सहने दो
कतरो  मेरे ..

दुर्गा ,काली, लक्ष्मी कहकर
मत पूजो  तुम नारी को
सामाजिक ढाँचे में लेकिन
रख दो आधी पारी को
मंदिर ड्योढ़ी न मुझे सजाओ 
बस सम्मान से रहने दो
कतरो  मेरे ...

          _नीरजा'नीरू'
              लखनऊ
[08/03, 10:48 am] कवयित्री कुसुम चौधरी गंगागंज लखनऊ: अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
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नारी तेरी अजब कहानी,कितनी
                    पीड़ा सहती  है।
गम के प्याले हरदम पीती नहीं
                   किसी से कहती है।

    माँ बहना ,पत्नी बन करके
          रिश्ता सदा निभाती है।
    सबको भोजन ताजा देकर
           बासी तू फिर खाती है।

नारी तू ममता की मूरत कितनी
                  भोली लगती है ।
गम के -----**-------------------।

     तेरे ऊपर अत्याचारों का अंबार
                            लगा रहता ।
      अन्तर्मन में कष्टों का तेरे
               शैलाब भरा रहता ।

फिर भी नहीं हारती नारी ,कुन्दन
                    सी तू जलती है।।
गम के ----------------------------।

    रानी लक्ष्मीबाई बनकर प्राणों
                   का बलिदान किया।
   मत पूछो अब तक नारी ने
          कितना है विषपान किया।

अंध रूढियों मेंजलकरके,बलि-
                  बेदी पर चढ़ती है।
गम के------------------------।

   जीत-जीतकर नारी हरदम-
          अपनो से फिर हारी है।
    सृष्टि रचयिता बनकर नारी -
         ,कुसुम, सदा बलहारी है।

सावित्री,अनुसुइया बनकर-
       अखबारों में छपती है।
गम के----------------------- ।

         डा0 कुसुम चौधरी
          गंगागंज लखनऊ
[08/03, 11:17 am] कवि शिवेंद्र मिश्र मैगलगंज: अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..

नारी*
नारी भगिनी औ वधू,नारी नर की शक्ति।
नारी जननी पुत्रियां, बिन नारी जग रिक्त।।
*कविता*
एक नारी जीवन मे हर पल,
संघर्ष   सदा   करती   रहती।
बचपन  से  वृद्धावस्था  तक,
बस घुट घुट कर जीती रहती।
वह इस दुनियाँ में आती जब,
पितु  मस्तक  रेखाएँ  छाती।
निज नेह बांटकर अपनो को,
सबके  दिल में हैं  छा जाती।
आंगन में किलकारी भरकर,
सबके दुःख  दर्द चुरा लेती।
रखती हर पग है फूंक फूंक,
निज-जन की मर्यादा सेती।
जीवन भर हर कठिनाई को,
बस हंसते हंसते सह जाती।
जब मां का आंगन छोड़ सदा,
अपने पति के घर को जाती।
स्वयं की समस्त इच्छाओं को,
निज अन्तर-मन में दफनाती।
जग में  जब  'मां' का रुप  धरे,
ममता  का  आँचल  फैलाती।
फिर बनके तपस्या की मूरत,
उपकार अनेकों  वह करती।
अपनी  इच्छाओं  का  स्वाहा,
कर्तव्य  की  बेदी  में  करती।
पति-पुत्र, पौत्र की  सेवा में,
अपना जीवन अर्पित करती।
'शिव' अनुपम कृति ये ईश्वर की,
इसकी  न  कोई  तुलना  होती।
शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'
( मैगलगंज-खीरी )
[08/03, 11:20 am] डॉ विद्यासागर मिश्रा लखनऊ: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर छन्द-

करते जो अत्याचार भारतीय नारियों पे,
उन अत्याचरियों को सबक सिखाइये।
डरिये न रंच मात्र ऐसे दुष्ट-पापियों से,
व्यभिचारियों के शीश धड़ से उड़ाइये।
नारियों की लाज पर आंच नहीं आने पाये,
देवी के समान यह इनको बचाइये।
भारतीय नारियों की लाज को बचाने हेतु,
आप भी जटायु के समान बन जाइये।।
डॉ0विद्यासागर मिश्र "सागर"
लखनऊ उ0प्र0
मो0नं09452018190
[08/03, 11:58 am] कवयित्री स्नेहलता नीर रुड़की: आप सभी को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹🌹🌹

कुंडलिया छन्द
*************
1
नारी भोली गाय है,ये  मत समझो आप।
उसमें दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती की छाप।।
सरस्वती की छाप, भरम मत मन में पालो।
देख सुकोमल गात,दृष्टि कुत्सित मत डालो।
'नीर' कभी वह फूल,कभी तलवार दुधारी।।
सृजन और संहार, निभाती दोनों नारी।।

2

'नारी' माँ,अर्धांगिनी,बेटी , भगनी, मित्र।
सब रूपों में सन्निहित,प्रेम  भाव  का इत्र ।।
प्रेम भाव का इत्र,लुटा  घर  स्वर्ग बनाती।
दे ममता की  छाँव,सदा  जीवन महकाती।।
बनिता अबला नहीं,आज वह सब पर भारी।
करो  मान-सम्मान,  बढ़ेगी  आगे  नारी।।

-स्नेहलता"नीर"
1960 प्रीत विहार रुड़की
जनपद हरिद्वार ,उत्तराखंड 267667
[08/03, 12:18 pm] कवयत्री अनामिका श्रुति सिंह नागपुर: काव्य रंगोली
महिला दिवस के अवसर पर मेरी    एक कविता    -

भग्न हृदय
🌹🌹🌹

नारी जीवन सदा महान
सब करते इसका गुणगान
सीता हो या सावित्री हो
जग में कर गई अपना नाम ।

आदर्श स्थापित कर ऊँचा
जग में रहना कितना मुमकिन
सीता और सावित्री को भी
था चैन कहाँ रत्ती भर लेकिन।

सतयुग हो या त्रेता हो
द्वापर या कलयुग की रात
ग्रंथ उठाकर बांचे जो
हर जगह भग्न हृदय की बात ।

कभी सुना था किस्सो में
धंस जाती एक हाथ धरा
बेटियों के जन्म लेते ही
मां-बाप का बोझ बढ़ा।

क्या शापित है नारी सदा
इस धरा का बोझ उठाने को
प्यार ,दया और निष्ठा जैसी
कोमल भाव बहाने को।

सीता सावित्री तो नहीं
यह नवयुग की नारी है
पर त्याग, तपस्या, निष्ठा तो
युग- युग की विरासत पाई है।

खुद ही बंधी रही डोर से
शाप मुक्त कैसे होगी
होगी भले ही भग्न हृदय
पर भाव रिक्त नहीं होगी।

अनामिका सिंह
चंद्रपुर, महाराष्ट्र
7990615119
[08/03, 5:22 pm] कवियित्री गीता गुप्ता 'मन' C/o पंकज सिंह
नवीपुरवा धर्मशाला रोड
हरदोई: दोहे-नारी

नारी श्रद्धा रूप है, देवी रूप समान।
ममता का भण्डार है, सदा करो सम्मान।

नारी जीवन संगिनी, देती नर का साथ।
संकट कितना हो बड़ा, नही छोड़ती  हाथ।

कर्तव्यों की नींव है, वनिता  बड़ी महान।
जननी बन पालन करें, प्रेम पले सन्तान।

सीता अनुपम त्याग से, वैदिक युग की शान।
नारी देविस्वरूप है,ज्ञानवान गुणवान।

है ममता ,अनुराग की, समझो नारी   खान।
अबला न समझो इसे,रणचण्डी है जान।

आया संकट देश में, नारी बन पतवार।
बाँधा बेटा पीठ  पर,चला रही तलवार।

स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव-उत्तरप्रदेश
[08/03, 6:49 pm] +91 85328 52618: 🍋🍓    गीतिका  🍓🍋
              *************************
                          💧  नारी  💧
                     आधार- छंद-विधाता
         मापनी- 1222  1222  1222  1222
                 समांत- आन, पदांत- है नारी
     🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

हमारी  सृष्टि में  भगवान का  वरदान  है  नारी ।
वही  बेटी वही जननी अथक  पहचान है नारी ।।

बडी़ है त्याग की मूरति तपस्या जो करे सब को,
करे पय खून से पोषित  सभी की जान है नारी ।

लिया  जो जन्म  कहते  हैं पराई  है  चली  जाये,
बनी ससुराल में आश्रित बड़ी अनजान  है नारी ।

जगत की माँ प्रथम शिक्षक कराती बोध है हमको,
सिखा कर सत्य कथनों को भरे सत ज्ञान है नारी ।

बनाती  सुत सुताओं को  सदा ही योग्य  शिक्षा दे,
बसा  देती  सभी के  घर सुखी अरमान  है नारी ।

मनाती  है मनौती  वह  सभी संतान  के सुख  को,
सभी  उपवास व्रत करती  खुशी का दान है नारी ।

सजग ममता  दिखाती है  रहे खटती  हमेशा वह ,
खिलाती  है प्रथम  हमको बचा पकवान है नारी ।

कभी  सीता  कभी  राधा  कभी  अनुसूइया  माता,
गढ़ी है  कीर्ति सत पथ पर  हमारी  शान है  नारी ।

बनी  झाँसी  महारानी   नहीं  मानी  गुलामी  थी ,
महा  रणचंडिका बन के  वतन का  मान है नारी ।

सदा वह  दम्भ को  सहती  बहू  बेटे नहीं  समझें ,
दुखी फिर भी करे  चिन्ता गमों का  पान है नारी ।

कहें लक्ष्मी उसे घर की अरे उसका कहाँ घर है ?
पराश्रित है सदा ही वह दुखित मुस्कान है नारी ।।

             🍎🍀🌴💧🌸🌀🌺

🌴🌻...रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
               मो0- 8532852618
[08/03, 7:12 pm] कवयत्री पूनम रानी रांची: अन्तर्राष्टीय महिला दिवस  पर समस्त नारी-शक्ति  का वन्दन-अभिनन्दन  करती चार पंक्तियाँ:---
प्रतियुग-प्रति-ब्रह्माण्ड विदित है  ,
जिसकी महिमा भारी !
ब्रह्मा-विष्णु-महेश "बाल" बन,
जाते हैं  बलिहारी !!
पुत्री-पत्नी-मातृ रंप में,
अति आदर अधिकारी !
सकल सृष्टि का "मूल"-
प्रकृति की,
अनुपम "कृति" है "नारी" !!

[08/03, 7:52 pm] निरुपमा मिश्रा नीरू हैदर गढ़ बाराबंकी: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतु

विषय - नारी
विधा - दोहा

नारी बिन जीवन नही, जाने यह संसार।
यही सृष्टि का रूप है, यही जगत आधार।१।

जिस घर में होता नही, नारी का सम्मान।
विपदा की पहचान है, वह घर नरक समान।२।

विषम परिस्थिति को सदा, लेती रही संभाल।
सुख का बनती आसरा, दुख में बनती ढाल।३।

इंद्रधनुष जैसे लगे, नारी के हर रूप।
माँ बहन संगिनी सुता, जीवन सरल अनूप।४।

मानवता के हित में सदा, रखना है यह ध्यान।
शिक्षित सभ्य समाज हो, नारी का सम्मान।५।

नारी के माधुर्य में, शक्ति रूप सौंदर्य।
जीवन में है संतुलन, स्नेह शौर्य एश्वर्य।६।

अपने ही परिवेश में, लाना हमें सुधार।
सुरक्षित नारी अस्मिता, मिले सभी अधिकार।७।

वाणी कर्म विचार से, करिए मत अपमान।
आहत मन नैना सजल,चुभता शूल समान।८।

रचनाकार- निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
पता - हैदरगढ़-बाराबंकी (उ०प्र०)
मोबाइल नंबर- 8756697686
[08/03, 8:14 pm] कवि विनय कुमार बुद्ध असम: *नारी*
(विधा: चौपाई)
●●●●●●●●●
बहन सुता दारा महतारी ।
नारी जगत शक्ति अवतारी ।।
पर उपकार धरा महँ आई ।
नारी महिमा बरनि न जाई ।।

जहँ नारी पाबत दुख नाना ।
सो घर होयहु नरक सामना ।।
जे नर करहि नारि अवमाना ।
काहू न अधम ताहि समाना ।।

घाट बाट घर गली लजाई ।
दुष्टन नहीं तजे कटुलाई ।।
राबण बैठहि घात लगावा ।
आपन आपन सुता बचावा ॥

बैठहु कारन कवन बिचारा ।
नारी भोगत कष्ट अपारा ।।
करहु जतन सब सज्जन भ्राता।
समय रहत चेतहु अब ताता ।।        

हर घर सुता पढ़हि जब आजू ।
करहि प्रगति तब सकल समाजू।
धन्य धन्य समस्त परिवारा।
कान्धा देई बनै सहारा ।।
    ✒️ *विनय कुमार बुद्ध*, न्यू बंगाईगांव, असम, फोन: 9435913108.
[08/03, 9:14 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: कठिन होगी डगर लेकिन,
न तुम कभी डगमगाना।
करके दृढ़ संकल्प मन में,
पाँव को आगे बढ़ाना।

आत्म रक्षा के सभी गुण,
सीख सखियों को सिखाना।
रुक न जाना तुम ठिठक कर,
जीत कर दुनिया दिखाना।

खुद लड़ो अपनी लड़ाई,
छोड़ दो आँसू बहाना।
जो कहे कमजोर तुमको,
बल उसे अपना दिखाना।

बेड़ियाँ सब तोड़ डालो,
अपना तुम डंका बजाना।
नारियाँ भी कम नहीं हैं,
अब सभी को तुम बताना।

जिस्म को फौलाद कर लो,
भेड़ियों से डर न जाना,
कह रही 'प्रतिभा' सभी से,
लाज तुम अपनी बचाना।

प्रतिभा गुप्ता
भिलावां,आलमबाग
लखनऊ
मो-8601546171
[08/03, 9:19 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: महिला दिवस पर विशेष:

नारी में सीता बसती है।
नारी में राधा रमती है।।
नारी की अपनी गरिमा है।
नारी की अपनी महिमा है।
नारी अपने में सुषमा है।
नारी आराध्य अनुपमा है।।
नारी ममता की सागर है।
नारी करुणा की आगर है।
नारी से नर सम्मानित है।
नारी से नर अनुशासित है||
ऊषा की प्रथम अरुणिमा है।
ऋतु की मधुमास प्रियतमा है।।
चंदा की चारु चांदनी है।
संस्रति की सुभग कामिनी है।।

नारी तुम सुभग कामिनी हो!

-  योगेंद्र नाथ द्विवेदी
Mobile Number 07007571382
[08/03, 9:36 pm] कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी": काव्य रंगोली अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन समारोह हेतु
8 मार्च महिला दिवस
कार्यक्रम प्रमुख आदरणीया सरोज दीदी के समक्ष सादर प्रेषित

शीर्षक-: हे नारी !
विधा-: कविता

नारी तुम सुंदर चित्रण हो ।
मानव जीवन के पन्नों का ।।

साहस हो शील नेह श्रद्धा ।
तुम जीती हो मुस्कानों में ।।
बुझती लौ सी आशाओं में ।
तुम प्राण फूँकती प्राणों में ।।

तुम लज्जा का श्रृंगार किये ।
अधरों पर कोमलता लेकर ।।
तुम सृजन विश्व का करती हो ।
निज आँचल में ममता लेकर ।।

तुम त्याग धैर्य की मूरत हो ।
परहित के कष्ट उठाती हो ।।
निज सुख का कर बलिदान सदा ।
विष रूप अश्रु पी जाती हो ।।

हे नारी ! तुम हो शक्ति पुंज ।
करती तुम नव निर्माण सदा ।।
निश्चित जय सदा पराजय पर ।
दुष्टों का कर संहार सदा ।।

पीड़ा को सहज ही सहती हो ।
मुख पर धारण मुस्कान किये ।।
तुम मौन का पहने भूषण हो ।
इक्षाओं का हर घूँट पिये ।।

क्या क्या लिख दूँ नारी तुमको ।
तुम हो अंनत निर्मल धारा ।।
भव्यतम रूप लघु शब्दों में ।
कैसे उकरे चित्रण प्यारा ।।

प्रकृति बिन प्रेम नहीं जीवित ।
नारी से मोल है अन्नों का ।।
नारी तुम सुंदर चित्रण हो ।
मानव जीवन के पन्नों का ।।

स्वरचित-: शिवांगी मिश्रा
               धौरहरा,
              लखीमपुर खीरी
[08/03, 9:37 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन हेतु

एक बार चट्ट से जो टूट गया धागा कोई
आप किसी युक्ति से दोबारा जोड़ देंगे क्या?
चाक पर चढ़ा, बना और फिर पक गया
देख कुदरूप बार-बार फोड़ देंगे क्या?
धार सरिता की तेज बहे निज वेग में ही
आप जहाँ चाहे वहाँ वैसे मोड़ देंगे क्या?
बेटी हो हमारी,आपकी हो या किसी की भी हो
उसे सरकार के सहारे छोड़ देंगे क्या?
~शाश्वत अभिषेक मिश्र
[08/03, 10:27 pm] कवि ओंकार त्रिपाठी दिल्ली बाय राजीव पाण्डेय जी: *काव्य रंगोली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतू।*

दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

जो जननी बन सन्तानों को अमृत सा पय-पान कराती।
सुर्य किरण बन जो अग-जग को ज्योति सरोवर में नहलाती।
जिसकी परछाईं दुलार है जिसकी ममतामय पुकार है
जो नारी दिग्भ्रमित मनुज को हर पल हर क्षण राह दिखाती।
जो कश्ती है स्वयं आज वह डूब रही क्यों बीच धार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

नारी के शोषण की गाथा दिल को दहलाने वाली है।
आज प्रभा के आनन पर क्यों छाई सघन घटा काली है।
सीता-सावित्री के कुल पर क्यों है विपदाओं का साया।
रस की नदी आज नीरस है क्यों मधु की प्याली खाली है।
आज भरी है किसने पावक, नारी मन के तार-तार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

कहीं पुरुष द्वारा शोषित है कहीं सास के व्यंग सताते।
बिन दहेज के क्यों नारी तन ज्वाला में झुलसाये जाते।
पत्थर शिला समझकर उसको क्यों ठोकर मारी जाती है।
क्यों न अहिल्या के चरणों में रघुवर फिर से शीश झुकाते।
नारी है मधु ऋतु की रानी फिर भी व्याकुल है बहार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

पुरुषों ने नारी के तन को केवल एक खिलौना माना।
गौतम ने कब यशोधरा सत्य कहो पूरा पहचाना।
नारी सिर्फ समर्पण वश ही बनती नर की अंक शायिनी।
रूप शमा पर जलने को आतुर रहता है हर परवाना।
लय माधुरी बसानी होगी फिर से सांसों की सितार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

नारी को वर्चस्व चाहिये फिर से पुरुषों के समाज में।
एक प्रबल स्वर लहरी बनकर फिर वह गूंजे सुप्त साज में।
नारी श्रद्धा और लाज की जग में रही सहचरी अब तक।
उसे सजाना होगा फिर से हमको गौरव भरे ताज में।
नारी जय की परिचायक है लेकिन कुण्ठित रही हार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।

ओंकार त्रिपाठी,
दिल्ली
@सर्वाधिकार सुरक्षित
[08/03, 10:48 pm] Nr 21 शालिनी तनेजा: *काव्य रंगोली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतू।*
************†************
"नारी" - तू खुद ही सक्षम

नारी तू खुद ही सक्षम है
    नव अंकुर तुझ में मुस्काता
जग क्या देगा अधिकार तुझे
     जब तु ही जग की निर्माता

झलक तेरे सार्मथ्य की
    उस पल भी जग ने देखी थी
लक्ष्मीबाई के रुप में
     जब तु हम सब के सम्मुख थी

कभी-कभी सम्मुख ना आकर भी
    तुने सार्मथ्य दिखाया है
तेरी ही शिक्षा से शिवाजी सा   
      शासक इस राष्ट्र ने पाया है

राष्ट्र भक्ति की पाराकाष्ठ
     तब भी जग ने देखी थी
असाधारण बलिदान तु जब
   पन्ना बनकर, कर बैठी थी

नारी के हर रुप में तु
     पुरुर्पों का संबल बनती है
फिर क्यों महिला सशक्तिकरण की
     बात ये दुनिया करती है?

     स्वरचित-
       शालिनी तनेजा (दिल्ली +91 9654861075)
[09/03, 8:12 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस को समर्पित नौ दोहे!🙏 

अटल सत्यवादी  रहे , हरिश्चंद्र  महाराज !
पत्नी शैव्या पुत्र की दे,बलि जिसके काज !!

अग्नि परीक्षा दें सिया,फिर भी हो वनवास!
रामराज्य के लिए भी , सीता सहतीं त्रास !!

पीड़ित है अपनी सुता, मां को आया ध्यान !
फटा हृदय तब भूमि का, मिला वहीं स्थान। 

चंद दिनों की प्रीत थी,वर्षों का अवसाद !
हुए द्वारकाधीश तुम , राधा सहे विषाद!!

लगे द्रोपदी दांव पर , द्यूत बने जब धर्म !
धर्मराज के धर्म का, जाने क्या था मर्म !!  

यशोधरा के प्रश्न का, उत्तर दो हे बुद्ध!
भागे थे क्यों छोड़कर,ये जीवन का युद्ध!!

राहुल का अपराध तो,कुछ बतलाओ आज!
पितृ धर्म से विमुख हो ,आयी ना क्यों लाज!! 

आज जशोदा बेन भी,भुगत रहीं वनवास!
नारी ही क्यों सदा ही , सहे पुरुष का त्रास !!

युगों युगों से जो हुआ , अनुचित अत्याचार !
क्या अनुचित जो अब करे,नारी भी प्रतिकार !!
                     
                    श्रीकांत त्रिवेदी, लखनऊ
[10/03, 9:48 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतु
**************************
दिन-रात मैं खटती रहती हूं
मेहनत से नहीं डरती हूं
बस एक दिवस से क्या होगा
सारे दिवस तो मुझसे हैं ।

मेरे बिना क्या जीवन होगा
मेरे बिना धरती सूनी है
कण कण में है मेरा बसेरा
मैं हूं तो हरियाली है ।

कदम मिलाकर चलें आज से
महिलाओं के संग
स्वर्ग सी सुंदर दुनिया होगी
होंगे प्यार के रंग ।

              @ महेंद्र जोशी
‌                     नोएडा
                9818198456
[10/03, 10:20 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन समारोह हेतु

हे नारी का अभिमान जगो,
रण की भीषण हुंकार जगो।
कल  नही  तुम  आज जगो,
हाथों में लेकर तलवार जगो।।2।।

जगना हैं तो बस आज जगो,
माँ  पद्मिनी  की  आन जगो।
लक्ष्मीबाई की ललकार जगो,
ले  एक  नया  इतिहास जगो।।2।।

तुमको तो अब  जगना होगा,
यह  समर तुम्हें लड़ना होगा।
यदि आज नहीं तो कब होगा,
हे  नारी  अब  न  कल  होगा।।2।।

अब न त्रेता, द्वापर युग होगा,
न राम  कृष्ण  का  युग होगा।
पांचाली अब खुद लड़ना होगा,
अब केश रक्त से धुलना होगा।।2।।

हे नारी अब तुम संधान करो,
ये वार तुम अंतिम बार करो।
रण भीषण अबकी बार करो,
यह रण ही अंतिम बार करो।।2।।

~कुमार नमन
लखीमपुर-खीरी

डॉ अभिमन्यू पाराशर काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

 

नाम-डॉ अभिमन्यू पाराशर



पिता का नाम-श्री रामानंद शर्मा,
माता का  नाम-श्रीमती सुमन देवी,
पत्नी--श्रीमती रीना शर्मा,
पुत्र--दक्ष पाराशर,
जन्म स्थान : गाँव--शिमला,
तहसील-- खेतड़ी, जिला--झुंझुनूं (राजस्थान)
शिक्षा--शास्त्री , शिक्षा-शास्त्री, आचार्य(नव्य व्याकरण), सामुद्रिक रत्न,  एम.ए.(अंग्रेजी), (हिंदी),बी.लिव, पत्रकारिता,
रुचि-साहित्यसृजन, कविता, ज्योतिष/हस्तरेखा,समाज-सेवा,
संपर्क न.-9413723865,
              8769588160,
ईमेल:-astroabhimanyu89@gmail.com

संस्थाओं में पद
: राष्ट्रीय अध्यक्ष, बेटी बढ़ाओ फाउंडेशन,
:अध्यक्ष, साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति मंच एवं धर्मार्थ सेवा संस्थान,
:प्रदेश संरक्षक , विश्व सनातन वाहिनी (देवस्थान प्रकोष्ठ राजस्थान)
:अध्यक्ष, जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान(रजि.)

सम्मान
:ज्योतिष/हस्तरेखा में गोल्डमेडलिस्ट,
:डॉ जितेंद्र सिंह पूर्व सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री द्वारा 'साहित्य श्री' उपाधि से सम्मानित,
:देश की कई संस्थाओं  से सम्मानित,
: कला श्री सम्मान,
:कोरोना योद्धा  सम्मान कई संस्थाओं से प्राप्त,
:ग्रामीण पत्रकारिता के लिए सम्मानित।
: लीजेंड दादा साहब अवार्ड से सम्मानित।
:राष्ट्रीय समाज सेवा रत्न अवार्ड से सम्मानित।
:भारत सेवा रत्न गोल्ड मैडल अवार्ड से सम्मानित।

लेखन:--
अनेक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक समाचार पत्रों में लेखन,
ज्योतिष की पत्रिकाओं में लेखन।
साहित्यिक पत्रिकाओं मे लेखन l

विषय:--मेरी भाषा

हम तो सिर्फ करते हैं 14 सितंबर को ही हिंदी का सम्मान,
कहते हैं जिसको हम सब राष्ट्रभाषा नहीं रहता किसी को ध्यान,
हर समय बोलने वालों का करते हैं हम अपमान,
याद आता है बस हमें तो हिंदी बचाओ अभियान,
एक दिन भाषण देकर नेता क्यों समझते हैं खुद को महान ,
और दिन लगता है हिंदी बोलने से उनको अपना अपमान,
अब तो सुधर जाओ देशवासियों मत करो अपमान,
हमारी  राष्ट्रभाषा हिंदी को दिलवाओ अंतरास्ट्रीय पहचान,।

पं. अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश सदन
गाँव---शिमला, जिला--झुंझुनूं(राजस्थान)
9413723865,

मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन

मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन ,
वो फ़ानु भाई की चाय, समोसा और मटर,
टूट पड़ते थे हम इस कदर ।

वो आपस में मिलकर खेलना
अभिमन्य,प्रकाश, अमित, पन्नालाल ,लोहान ,रविंद्र का एक साथ खाना
याद आता है वह हॉस्टल का जमाना ।

वो एग्जाम के दिनों में रातों का जागना,
एक दूसरे के नोट से पढ़ना
बार-बार डेट शीट चेक करना परीक्षा शुरू होने से पहले ही खत्म होने पर क्या-क्या करेंगे
  ये सपने देखना ।

वो परीक्षा हाल में चुप बैठना मौका मिलते ही दाएं बाएं झांकना बड़ा याद आता है ..........
बस यार यह बता दे.....
बस पाणिनी के सूत्र दिखा द
यार हिंट दे दे बस .....
यह कह कह कर सबको परेशान करना ।

वो कालेज के दिन दोस्तों का फसाना ।
याद आता है बस वो हॉस्टल का जमाना ,
वो एक साथ नहाना,
कालेज की घंटी का बजना ,
फिर एक साथ दौड़ जाना ,
आज भी  याद आता है वो गुजरा हुआ पल सुहाना ।

वो रातों का पढ़ना,
गोल चक्कर पर जाकर चाय पीना,
आकर के खेलना,
याद आता है गुजरा पल सुहाना।

वो  सर्दियों की धूप में पार्क ग्राउंड में बैठना,
बातें करते करते वो छोटी-छोटी घास का उखाड़ना बड़ा याद आता है ,
वो ग्रुप में बैठकर हर आने-जाने वाले पर कमेंट पास करना ,
वो कॉलेज के दिन और दोस्तों का फसाना ,
"पाराशर "भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना ।

वो  छुट्टी का दिन बिट्स में बिताना ,
मन की टेंशन को बिरला मंदिर में भगाना,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना।

वो  बुधवार के दिन का इंतजार करना।

गणेश जी के मंदिर में जाना, तिवारी सर का सत्कार करना,
वो मिलना जुलना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो शाम  की यादें वो पल सुहाना पार्क में बैठकर घंटों बतियाना, एक दूसरे का हालचाल जाना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो हॉस्टल के साथियों को आदर देना,
शास्त्री जी ,आचार्य जी ,कहकर बुलाना ,
भारतीय संस्कृति की परंपरा को निभाना,

वो कॉलेज के वार्षिक उत्सव की पहले से तैयारी करना ,
और वार्षिक उत्सव के दिन अपने पुरस्कार का इंतजार करना ,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना,

कि काश : कोई लौटा दे वो पल पुराना,
"पाराशर" भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना।


शीर्षक:-- एक खास रिश्ता.

रिश्ता है एक बहुत ख़ास, जुड़ा है अपनापन और विश्वास।

राखी के धागों के संग, करवाता है अहसास।

रिश्ते तो बहुत है दुनिया में, मगर ये रिश्ता है खास ।
खुशी हो या गम हो कोई ,
उसे हो जाता है अहसास। क्योंकि बहन हो या भाई, होता दोनों को अटूट विश्वास।
भावनाओं का होता है विशेष वास ,
महसूस मात्र से हो जाता है आभास ।
खूबियों की करते हैं अक्सर तलाश,
फिर उनको ही बनाते हैं अपना निवास ।
ये ना होते कभी भी हताश, आखिर मंजिल मिलती है  इनके  ही पास।
करते हैं अपने नए सफर की तलाश ,
"पाराशर "इसलिए ही होता है यह रिश्ता खास

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

शीर्षक:--जीतेगा इंडिया, हारेगा कोरोना,
मैं हूँ शिक्षा की नगरी,
जो रहती हूं हमेशा साफ-सुथरी,
यह कैसा दिन है आया,
हाय किसकी नजर लगी बुरी,
करो ना है भाई परीक्षा की घड़ी,
मेरा दिल घबराता, कब खत्म होगी ये घड़ी,
घर बंदी से जी घबराया,
ये कैसा दिन है आया,
कोरोना है महामारी,
ये छूत की बीमारी,
ऐसे में घर से निकलना,
पड़ जाएगा भारी,
साबुन से हाथ धोना हैं जरूरी,
आपस मे बना के रखना  थोड़ी दूरी,
6 फ़ीट का बना के रखना सबसे फासला,
पर मन की मन से मत रखना
दूरी।
इस दुःख की घड़ी में "पाराशर" तुम अपना संयम ना खोना,
वो दिन भी आएगा जल्दी, जब जीतेगा इंडिया, हारेगा कोरोना।
पं. अभिमन्यू पाराशर,
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान गाँव-- शिमला, जिला---झुंझुनूं, राजस्थान 332746
9413723865, 8769588160
astroabhimanyu89@gmail.com


शीर्षक  :-"मोबाइल और संस्कार"

इंसान को शांति नहीं
मोबाइल से नज़र हटती नहीं
सुबह उठते ही चाहिए मोबाइल
अब बच्चे बड़ो के पैर छूते नहीं
यह कैसा बदला है मानव
की अब किसी से मिलता नहीं
मोबाइल की हर ध्वनि से वाकिफ
लेकिन कोई
अपनो की पुकार सुनता नहीं
और इस गिरती दुनिया में
मोबाइल से ऊपर कोई उठता नहीं,
है गलत नहीं, यह फोन की आदत
अगर हो उपयोग सही की बाबत
ये तो है केवल संपर्क का साधन
और है मिलों दूर के दोस्त से "पाराशर"
जुड़े रहने का संसाधन।
पं. अभिमन्यू पाराशर
गाँव--शिमला, जिला--झुंझुनूं,(राजस्थान)


शीर्षक :--मां की ताकत .....
मां जिसको नाम दिया दुनियां और विधाता ने ।।
वो अनमोल सहारा धूप बारिस में जो दिया छाता ने।।
जिसको चाहे उसको सम्राट बना देती ममता के प्रभाव से।।
जिस पर टेढी नजरें कर दे उसको मटियाती अपने ताव से ।।
ये वो तगडियत जो सबरी बन सफलाती है ।।
ये वो बिगडियत जो कैकयी बन बनवासाती है।।
ये अंजनी के रूप में हनुमान जग को देती है।।
और कभी मंथरा संग मिल रूलाती है।।
इसकी ताकत को नकारना विनाशाई और बडी  नादानी है।।
ये ममताए तो मीठा पानी नहीं तो प्रलयंकाई और बडी दुख निशानी है।।
एक रूपया किराया लेकर तगडा अपमान आघात भी कर सकती करीने से।।
ये पानी अभाव अकाल ला सकती और पानी भरमार प्रलय  निज सीने से ।।
ये जिद पर आ जाए तो ईश कृपा भी थोडी है ।।
मेहर करे तो रेगिस दौडती घोडी है।।
पागल खराब अपराधी ठग गठ इसको झूठ में नाहर कहते हैं।
इसने नीति की उक्त आतताई मनमानी करते हैं।।
इसकी नीति भी रोचक अनूठी जच जाने की बयानी है।।
उक्त आतताई संग नीति और निज सुत संग अनिती कहानी है।।
इसकी मेहर इसकी मर्जी और सौभाग्य से मिला करती है ।।
मिल ग ई तो बंजर पौ बारह नहीं मतो समुंदर बनता  सूखी धरती है।।
मां की  कृपा मां की मर्जी बडी रोचक बडी अपरमपार है।।
इसको साध के रखना ये तीखी  बडी शमशीर और  धार है ।।
एक सुत ऐसा भी आज जग को जग हित में बतियाता हूं ।।
जो सुत नित अह़ं रहित हो कृपा 
याचना किया करता है ।।
पर मां का हठ नित सुत नकार किया करता है।।
सुत चमत्कार सेवा  नाम रोशन वादा देकर मदद मां चरणों में मंगियाता है।।
पर मां मन कठोर हो निज सुत धकियाता है।।
बस यही आकर हम महान हिंदुस्तानी खुद से ही ठगी किया करते है ।।
हम अपने ही एक झूठे लोक में जिया करते हैं।।
मां बाप कभी बुरे नहीं हो सकते लोह लीक कह बखनाते हैं।।
और सच को सच कहने से मुकराते हैं।।
मां कौशल्या तो मां कैकयी भी होती है ।।
राम बनवास गमन पर एक रोती दूजी मुसकाती है ।।
एक की सखी नीति दूजी बदबू मंथरा मितराती है ।।
पिता दशरथ तो पिता हिरण्य भी धरम लेख बतलाते हैं।।
पर हम तो आंख मूंद झूठ ही गाते हैं
कवि राज संग अभि अपने  वल्लभ कवि दिनकर धोक लगा कवियाए हैं।।
हमें मां को पूजना है आदरना है पर सच भी बखान होता रहे यही गाए हैं ।।
  --पं.अभिमन्यू पाराशर
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान ,शिमला(झुंझुनूं)
राजस्थान 9413723865

शीर्षक:-- मेरे अरमान:मेरे पिता
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मेरे सपने मेरी जान है पिता,
मेरे अरमान है मेरे पिता,
मेरी सांसे, मेरी धड़कन,
मेरी आवाज है मेरे पिता,
मैं उनका प्रतिरूप प्यारा हूं वो जग में लाए मुझको,
मैं वो उजियारा हूं,
मैं उनका प्रतिरूप पयारा हूं,
निज साँसे  पूरी कर,
निज  जीवन तो पशु भी जीया  करते हैं,
पर नचिकेता वही जो पिता के दुख पीया करते हैं,
सुत पिता को पियारे,
और सम्माने भरपूर ,
यही जीवन की सार्थकता और मानव का नूर।

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)

शीर्षक:-- योग-दिवस
सुख और स्वास्थ्य का चुम्बक योग हैं,
रोगों को भगाने का संयोग योग हैं,
ये दुनिया को हिन्द का अनुपम दान योग हैं,
सूर्य वंदना से शुभारंभ योग हैं,
स्वयं में स्फूर्ति भरने के लिए योग हैं,
प्रातःकाल घर से निकल पड़ना योग हैं,
यदि जग चाहे होना सुखी, स्वस्थ, शतायु,
तो सिख ले हिन्द से ,
गौ-पालन, शाकाहार, नशा रहित , योग , संगीत चिरायु।
          अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)


*मेरे पापा*
मेरे पापा मेरे सारथी, रथ दौड लगाएगा।।
मेरी लेखनी ही गांडीव मेरा विफलता मार भगाएगा।।
मेरे पापा लेखनीधर,लेखनी पूंजी दी वरदान में।।
मैं उनका नाम रोशनाउंगा अखिल हिंदुस्तान में।।
उंहोंने मुझे अनमोल ब्रह्म जीवन दिया, दुनिया जहान में।।
मैं शुभ सफल करमों के कशीदे पढूंगा उनके मान और सम्मान में।।
पापा मुझे जग में लाए और मैं लाया उनका पोता।।
भाग्य हमारे जगें रहें और अभाग्य रहे सोता।।
मेरे पापा अनमोल पिता  भी हैं।।
मेंरे संरक्षक और सफलता   भी हैं।।
मेरे पापा पूज्नीय ह्रधय श्रद्धा सरोकार से।।
वे शतायु रह हमें संरक्षाएं सफलाए जीवन व्यापार से।।

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

शीर्षक: *पिता की महिमा*
पिता जगत में अनमोल हैं , पिता ही हैं पालनहार ।।
पिता  में समाई खुशिया अपार,
,पिता ही हैं त्योंहार।।
पिता ने जीवन अनमोल दिया, रोटी देकर पाला ।।
पिता की  आशिर चाबी से खुले है जय का ताला।।
पिता कंधे पर बिठा,मंदिर के दर्शन दर्शाए।।
पिता के खिलाए आम मूंगफली बहुत याद आए।।
पिता जगत में अनमोल हैं पिता संरक्षक साए।।
पिता जगत में अनमोल साया, पिता है पालनहार ।।
पिता है खुशियों का मेला और पिता है जेवनार ।।
सो हर पुत्र को पिता सम्मान सेवा करनी चाहिए।।
पिता अनमोल हैं पिता की महिमा गाहिए।।(गाईए)
पिता जनक, पिता दशरथ और पिता जमदगनी हुए।।
हम अच्छे बेटे बने, ईति(ईतिहास) से बढकर श्रेष्ठ कर्म करें नए।।
जरूरी नही हर पिता मिनस्टर औ धनदार हो।।
गरीब हो पर आत्मा में प्यार हो।।
निज संतती से आत्मीय सरोकार हो  ।।
प्यार सम्मान श्रद्धा ही अनमोल गुण जो पिता संतती रिश्ते को सफलाए हैं।।
ये गुण  बाजार नही बिकते, हर महान ने मन में उपजाएं हैं।।
इनको उपजाया अपनाया वो ही श्रेष्ठ रिश्ताधारी है ।।

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

अभिमन्यू पाराशर
साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति भवन(गाँव--शिमला,
जिला--झुंझुनू (राजस्थान)
9413723865

             

              परिचय

नाम-अभिमन्यू पाराशर
पिता का नाम-श्री रामानंद शर्मा,
माता का  नाम-श्रीमती सुमन देवी,
पत्नी--श्रीमती रीना शर्मा,
पुत्र--दक्ष पाराशर,
जन्म स्थान : गाँव--शिमला,
तहसील-- खेतड़ी, जिला--झुंझुनूं (राजस्थान)
शिक्षा--शास्त्री , शिक्षा-शास्त्री, आचार्य(नव्य व्याकरण), सामुद्रिक रत्न,  एम.ए.(अंग्रेजी), (हिंदी),बी.लिव, पत्रकारिता,
रुचि-साहित्यसृजन, कविता, ज्योतिष/हस्तरेखा,समाज-सेवा,
संपर्क न.-9413723865,
              8769588160,
ईमेल:-astroabhimanyu89@gmail.com

संस्थाओं में पद
:अध्यक्ष, साहित्यकार टी.सी.प्रकाश स्मृति मंच एवं धर्मार्थ सेवा संस्थान,
:प्रदेश अध्यक्ष, विश्व सनातन वाहिनी (देवस्थान प्रकोष्ठ राजस्थान)
:अध्यक्ष, जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान(रजि.)

सम्मान
:ज्योतिष/हस्तरेखा में गोल्डमेडलिस्ट,
:डॉ जितेंद्र सिंह पूर्व सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री द्वारा 'साहित्य श्री' उपाधि से सम्मानित,
:देश की कई संस्थाओं  से सम्मानित,
: कला श्री सम्मान,
:कोरोना योद्धा  सम्मान कई संस्थाओं से प्राप्त,
:ग्रामीण पत्रकारिता के लिए सम्मानित।
लेखन:--
अनेक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक समाचार पत्रों में लेखन,
ज्योतिष की पत्रिकाओं में लेखन।

शीर्षक:--मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन

मुझको लौटा दो वो कालेज के दिन ,
वो फ़ानु भाई की चाय, समोसा और मटर,
टूट पड़ते थे हम इस कदर ।

वो आपस में मिलकर खेलना
अभिमन्य,प्रकाश, अमित, पन्नालाल ,लोहान ,रविंद्र का एक साथ खाना
याद आता है वह हॉस्टल का जमाना ।

वो एग्जाम के दिनों में रातों का जागना,
एक दूसरे के नोट से पढ़ना
बार-बार डेट शीट चेक करना परीक्षा शुरू होने से पहले ही खत्म होने पर क्या-क्या करेंगे
  ये सपने देखना ।

वो परीक्षा हाल में चुप बैठना मौका मिलते ही दाएं बाएं झांकना बड़ा याद आता है ..........
बस यार यह बता दे.....
बस पाणिनी के सूत्र दिखा द
यार हिंट दे दे बस .....
यह कह कह कर सबको परेशान करना ।

वो कालेज के दिन दोस्तों का फसाना ।
याद आता है बस वो हॉस्टल का जमाना ,
वो एक साथ नहाना,
कालेज की घंटी का बजना ,
फिर एक साथ दौड़ जाना ,
आज भी  याद आता है वो गुजरा हुआ पल सुहाना ।

वो रातों का पढ़ना,
गोल चक्कर पर जाकर चाय पीना,
आकर के खेलना,
याद आता है गुजरा पल सुहाना।

वो  सर्दियों की धूप में पार्क ग्राउंड में बैठना,
बातें करते करते वो छोटी-छोटी घास का उखाड़ना बड़ा याद आता है ,
वो ग्रुप में बैठकर हर आने-जाने वाले पर कमेंट पास करना ,
वो कॉलेज के दिन और दोस्तों का फसाना ,
"पाराशर "भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना ।

वो  छुट्टी का दिन बिट्स में बिताना ,
मन की टेंशन को बिरला मंदिर में भगाना,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना।

वो  बुधवार के दिन का इंतजार करना।

गणेश जी के मंदिर में जाना, तिवारी सर का सत्कार करना,
वो मिलना जुलना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो शाम  की यादें वो पल सुहाना पार्क में बैठकर घंटों बतियाना, एक दूसरे का हालचाल जाना आज भी याद आता है वो पल सुहाना ।

वो हॉस्टल के साथियों को आदर देना,
शास्त्री जी ,आचार्य जी ,कहकर बुलाना ,
भारतीय संस्कृति की परंपरा को निभाना,

वो कॉलेज के वार्षिक उत्सव की पहले से तैयारी करना ,
और वार्षिक उत्सव के दिन अपने पुरस्कार का इंतजार करना ,
आज भी याद आता है वो पल सुहाना,

कि काश : कोई लौटा दे वो पल पुराना,
"पाराशर" भूले से भी नहीं भूलेंगे वो हर पल सुहाना।


शीर्षक:--मेरी भाषा

हम तो सिर्फ करते हैं 14 सितंबर को ही हिंदी का सम्मान,
कहते हैं जिसको हम सब राष्ट्रभाषा नहीं रहता किसी को ध्यान,
हर समय बोलने वालों का करते हैं हम अपमान,
याद आता है बस हमें तो हिंदी बचाओ अभियान,
एक दिन भाषण देकर नेता क्यों समझते हैं खुद को महान ,
और दिन लगता है हिंदी बोलने से उनको अपना अपमान,
अब तो सुधर जाओ देशवासियों मत करो अपमान,
हमारी  राष्ट्रभाषा हिंदी को दिलवाओ अंतरास्ट्रीय पहचान,।

शीर्षक:- बेटियां है अनमोल

बेटियां हैं अनमोल इसे बचाओ रे,
बेटियां हैं अनमोल,
इन्हें खूब पढ़ाओ, लिखाओ,  और आगे बढ़ाओ,
बेटियां हैं अनमोल,
बेटियां होती सबकी प्यारी इन को बढ़ाना हम सबकी जिम्मेदारी,
जब भी तुम कोई मांगलिक कार्य करवाओ,
' सबको तुम आठवां वचन दिलाओ ,
बेटियां हैं अनमोल,

'पाराशर' तुमने ठान लिया है,
बेटी ने जग को सुंदर नाम दिया है,
कन्या भ्रूण हत्या रोको रे,
गोल्डमेडल का तुम गला न घोटो रे,
बेटियां हैं अनमोल, इनको बचाओ रे,

अभिमन्यू पाराशर
हिंदी
हिंदी हिन्द का अनमोल उपहार....
हिंदी हिन्द का अनमोल उपहार,हिंदी प्यारा शब्द संसार है।।
हिंदी ने अनमोल रतन दिए बच्चन ,सुमन,दिनकर शब्द कार है।।
हिंदी संपन्न ,हिन्द वैज्ञानिक, हिंदी हिन्द राष्ट्र प्यार है।।
हिंदी सम्नाओ ,अटल हिंदी सपूत साकार है।।
हिन्द राष्ट्र एकता का हिंदी बेजोड़ फेवि कोल जोड़का र है।।
हिंदी को यथोचित  सम्मान मिले इसकी दर कार है।।
बालि वु ड फिल्मों में शुद्ध हिंदी प्रयोग हो, सुनिश्चित हिन्द सरकार करे।।
हिन्द में हिंदी नस टा ने वालों को लगाम हिन्द सत्ता क़ार करें।।
हिंदी दिए अनमोल सितारे,बच्चन परसाई सुमन पंत प्रसाद दिनकर जय जय कार है।।
हिंदी हिन्द जीवन रेखा,हिंदी प्राण संचार है।।
धरा से अभिराज स्वर्ग से परसाई सुमन दिनकर जयघोष सुमधुर पुरजोर है।।
हिंदी अनंत सागर ज्ञान का जिसका नहीं कोई छोर है ।।
         _अभिमन्यू पाराशर
      शिमला(झुंझुनूं)राजस्थान
9413723865

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-39

राम-नाम-गुन अमित-अपारा।

पावहिं संभु-सेष नहिं पारा।।

      जइस असीम-अनंत अकासा।

      महिमा राम अनंत-अनासा।।

प्रभु-प्रकास कोटि सत भानू।

पवन कोटि सत बल प्रभु जानू।।

     कोटिक सत ससि-सीतलताई।

     अरबन धूमकेतु-प्रभुताई ।।

प्रभू अनंत-अगाध-अथाहा।

तीरथ कोटिक सुचि नर नाहा।।

      इस्थिर-अचल कोटि हिमगिरि सम।

      प्रभु गँभीर सत कोटि सिंधु सम ।।

सकल मनोरथ पुरवहिं नाथा।

कोटिक कामधेनु रघुनाथा।।

     कोटिन्ह ब्रह्मा,कोटिन्ह सारद।

      कोटिन्ह बिषनू,रुद्र बिसारद।।

सुनहु गरुड़ रामहिं प्रभुताई।

निरुपम-अकथ नाथ-निपुनाई।।

      धनकुबेर सत कोटि समाना।

       बहु प्रपंच माया भगवाना।।

प्रभु-गुन-सागर-थाह न मिलई।

यहिं तें भजन राम कै करई ।।

     काग-बचन सुनि मगन खगेसा।

      तासु चरन छूइ कहै नरेसा।।

बिनु गुरु ग्यान न हो भगवाना।

तुम्ह सम गुरू पाइ मैं जाना।।

     बिनु गुरु-कृपा न भव-निधि पारा।

     जा न सकहिं जन यहि संसारा।।

संसय-ब्याल करालहि काटा।

बिष-प्रभाव कारन सन्नाटा।।

     जानउ मैं नहिं प्रभु-प्रभुताई।

     मोहें तुम्ह सम गुरू बताई।।

कृपा तुम्हार भे मोह-बिनासा।

प्रभु-प्रति प्रेम जगायो आसा।।

     जाना सभ रहस्य प्रभु रामा।

      राम अनंत-अखंड-बलधामा।।

दोहा-हे सर्वग्य भुसुंडि गुरु,तव चरनन्ह मन लाग।

        मोहिं बतावउ आजु तुम्ह,पायो कस तन काग।।

                        डॉ0हरि नाथ मिश्र

                           9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र।

 *दोहे*(फागुन)

फागुन मास गुलाल का,रंग-हास-परिहास।

पाकर ही ऋतुराज को,हर्षित चित्त उदास।।


आम्र-मंजरी की महक,कोयल-मीठे बैन।

फागुन के उपहार से,मिले हृदय को चैन।।


बहे पवन जब फागुनी,विरह-वह्नि जल जाय।

विरह-तप्त-हिय में दिखे,अग्नि-सरित उफनाय।।


प्रकृति सुंदरी सज-सँवर, लगे दैव उपहार।

जल-थल-नभ,वन-बाग में,फागुन मस्त बहार।।


भ्रमर मगन मकरंद ले,उड़-उड़ गाएँ गीत।

हर हिय को मोहित करे,अलि-गुंजन मनमीत।।


फागुन मास सुगंध का,करता गंध-प्रसार।

गंध-युक्त वातावरण,है अद्भुत उपचार।।


सब ऋतुओं का केंद्र ही,होता फागुन मास।

जन-धन का ऋतुएँ सदा,करतीं सतत विकास।।

            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र।

                9919446372

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल


हमारे फ़ैसले होते कड़े हैं

अगरचे फ़ायदे इसमें बड़े हैं


जहाँ तुमने कहा था फिर मिलेंगे

उसी रस्ते में हम अब तक खड़े हैं


सुनाकर भी इन्हें हासिल नहीं कुछ

हमारे रहनुमा चिकने घड़े हैं


छुड़ाया लाख पर पीछा न छूटा

गले वो इस तरह आकर पड़े हैं


किसी के तंज़ छू पाये न हमको 

कि अपने क़द में हम इतने बड़े हैं


अमीरों से उन्हें डरते ही देखा

ग़रीबी से जो रात-ओ-दिन लड़े हैं


जहाँ कह दो वहाँ चल देंगे *साग़र*

यहाँ पर कौन से पुरखे गड़े हैं


🖋विनय साग़र जायसवाल

11/3/19

सुनीता असीम

 मेरी राहों में तूने ही किए केवल उजाले हैं।

तेरे भीतर  समाए सब मेरे मन्दिर शिवाले हैं।

***

महर कर दो ज़रा मुझपर दरस दे दो मुझे कान्हा।

बड़ी मुश्किल से विरहा के ये पल मैंने निकाले हैं।

***

न मेरा कुछ भी है मुझमें सभी तेरा है सरमाया।

ये माया मोह के बंधन सभी तेरे हवाले हैं।

***

मिलेगा आसरा तेरा यही मन्नत मनाती हूं।

तुझे पाने की खातिर तो पढ़े कितने रिसाले हैं।

***

इबादत में नहीं कच्ची मुझे कमजोर मत समझो।

बड़े तूफान अंदर से सदा मैंने संभाले हैं।

***

सुनीता असीम

१७/३/२०२१

डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

 सद्भावों में गहरापन हो

                  (चौपाई)


सद्भावों में गहरापन हो।

दुर्भावों में बहरापन हो ।।

रहे प्रेम में नित आलापन।

दिल का मिट जाये कालापन।।


सुंदर गाँवों का जमघट हो।

मृतक भावना का मरघट हो।।

शुभ भावों का गेह बनाओ।

सब में आत्मिक नेह जगाओ।।


शोभनीय धरती का हर कण।

सुंदर बनने का सब में प्रण।।

सभी बनायें उत्तम उपवन।

कल्याणी हो सब का जीवन।।


सारस्वत साधक का मेला।

शिव-आराधक का हो रेला।।

मानवता की चलें टोलियाँ।

सब की मधुर मिठास बोलियाँ।।


जग में आये शिव परिवर्तन।

पावनता का हो संवर्धन।।

निज में हो सामूहिक चेतन ।

हो सारा जग शांतिनिकेतन।।


हर पत्थर कोमल बन जाये।

निष्ठुरता से मल बह जाये।।

क्रूर बने अति मोहक मानव।

मर जायें पृथ्वी के दानव।।


सुंदर भावों के गाँवों में।

प्रिय हरीतिमा की छाँवों में।।

रहना सीखो सत्य श्याम बन।

सद्भावों का दिव्य राम बन।।


दरिद्रता   (दोहे)


जो दरिद्र वह अति दुःखी, दीन-हीन अति छीन।

तड़पत है वह इस कदर, जैसे जल बिन मीन।।


तन -मन -धन से हीन नर, को दरिद्र सम जान।

है दरिद्र की जिंदगी, सुनसान मरु खान।।


है दरिद्र की जिंदगी, बहुत बड़ा अभिशाप।

जन्म-जन्म के पाप का, यह दूषित संताप।।


अगर संपदा चाहिये, कर संतों का साथ।

सन्त मिलन अरु हरि कृपा, का हो सिर पर हाथ।।


जिस के मन में तुच्छता,वह दरिद्र का पेड़।

है समाज में इस तरह, जिमि वृक्षों में रेड़ ।।


वैचारिक दारिद्र्य का, मत पूछो कुछ हाल।

धन के चक्कर में सदा, रहता यह बेहाल।।


धन को जीवन समझ कर, जो रहता बेचैन।

वह दरिद्र मतिमन्द अति, चैन नहीं दिन-रैन।।


डॉ०रामबली मिश्र की कुण्डलिया


चलना जिसको आ गया, वही बना इंसान।

जो चलना नहिं चाहता, वही दनुज हैवान।।

वही दनुज हैवान,  किसी को नहीं सेटता।

टेरत अपना राग, स्वयं में रहत ऐंठता।।

कहत मिश्रा कविराय, सीख लो सुंदर कहना।

मत बनना मतिमन्द, बुद्धि से सीखो चलना।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801



काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार चारण हार्दिक आढा

 कवि का नाम - चारण हार्दिक आढा

पिताजी का नाम - ककल दान जी

गांव - पेशुआ

जिला - सिरोही

राज्य - राजस्थान

मो +91 78498 05093


       1. शीर्षक  - युवा का उत्साह


युवा का उत्साह हर साहस से बड़ा है।  

आसमान की उंचाई तक,पर्वत-सा अटल खड़ा है।


यूवाओ को इस उम्र में,सब कुछ करना है प्राप्त ।

उत्साह की सीमा नहीं, सब कुछ मिल जाए पर नही पर्याप्त ।।


कांटे आए तो भी रुका नहीं, उत्साह इतना की

गिरा पर हारा नही।


उत्साह उतना की सब कुछ मिल जाये,

अकेला खडा है पर डरा नही।


उत्साह से कई सफर तय करने की उम्मीद

लिये रहता है।


आसमान भी नाप लूंगा , मन में उत्साह लिये

कहता है।

 

कई बार असफलताओं की ,मार सहता है।

एक दिन सफल बनूंगा मन में उत्साह लिये कहता।


हारो के हार से, आखिरकार जीत कर जीत का तिलक लगाता है।


हार का गम  हटा, जीत की खुशी मनाता है।

हार-हार कर जो ना हारा,युवा का उत्साह

कहलाता है।


युवा के संघर्ष की कहानी, कवि  हार्दिक आढा

सुनाता है।

                                                                                                       कवि- चारण हार्दिक आढा


        2. नि: शब्द कवि भी शब्द है


शब्द शब्द पर नि : शब्द प्रलोभन , 

शब्द शब्द पर आह भरी है

नि:शब्द है देखो शब्द प्रभारी , 

जिसने शब्द मे चाह भरी है ।


जिन शब्दो से दुनिया जीती , 

कुछ शब्दो से हारी है ,

शब्द शब्द पर शब्द है भारी , 

फिर भी मौन है शब्द प्रभारी ।


नि:शब्द कवि भी शब्द टटोले , 

मानो शब्दो की होली,

कुछ घड़ियों मे कवि मौन है , 

नि: शब्द मे फिर भी शब्दों की होली


शब्द शब्द पर नि : शब्द प्रलोभन ,

 शब्द शब्द पर आह भरी है

नि:शब्द है देखो शब्द प्रभारी , 

जिसने शब्द मे चाह भरी है ।


                                     कवि चारण हार्दिक आढा


              3. मां शारदे की वंदना


स्वर और शब्द तुझी से पा रहा हू

मै ज्ञान कि दिशा में जा रहा हू

तू ही है मेरे कंठ की वाणी

मैं तेरी वंदना ही गा रहा हूं।


नींद आई तो ख्वाब मे भी

मा तेरी ही कल्पना है

हर शब्द मे मेरे मा तेरी आराधना है

मेरे कंठ के शून्य स्वर में भी

 मा तेरी ही वंदना है।


हर शब्द तुझी से आते हैं

सुर तेरी वंदना गाते है

हर शब्द के मीठे बोल वही मानूंगा

जो तेरी वंदना सुनाते है।


अंबर से बड़ा पृष्ठ चाहिए 

तेरी वंदना गाने को

तारो से ज्यादा शब्द चाहिए 

वर्णमाला छोटी है

तेरे गुणगान गाने को।


कवि चारण हार्दिक आढा


                  4. अभिमन्यु की वीरता 


मानो रण विकराल खड़ा  था, सामने वह भी अपनी जिद पर अड़ा था। 


धुरंधरों को सिखलाने को , वीर की परिभाषा बतलाने को। 


एक वीर चक्रव्यूह भेदने गया था, काल से लड़ने गया था। 


धुरंधरों के सामने वह भी अकेला खड़ा था, वह अभिमन्यु महान बड़ा था। 


निर्भीक वह वीर गया था लड़ने को, पर उसे यह मालूम न था वो कायरों से लड़ने गया था। 


सामने विद्वान और दानवीर खड़ा था वह वीर रण मे घाव खाकर अर्ध मूर्छित सा लड़ा था। 


उन सब कायरो से वह वीर लड़ा था, उन कौरवों की कायरता पर वह मन ही मन वह हंस पड़ा था। 


माना वह प्रहर का परिणाम अभिमन्यु के पक्ष में न था, पर हमारा प्रणाम उस वीर के पक्ष में है। 


                               कवि - चारण हार्दिक आढा 


        5. गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

भूलो पिछली बातो को बुरे दिन रातो को,

फिर शुरुआत करो नव वर्ष चहकता आया है

राह को आसान करो भूलो मुश्किल बातो को।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

दुख की बात को भूलो सुख को याद करो,

नव वर्ष भली भांति खुशियों सा छाया है

नव उजाला है इससे ना फरियाद करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

आंखो में जो ख्वाब है उन्हे हकीकत में तब्दील करो,

अंधेरे को मिटाता नए दिन नया उजाला आया है,

ख्वाबों का महल है जो उसे हकीकत में तब्दील करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

बैर को भूलो अपनापन अपनाओ तुम,

स्वभाव वहीं है भले बदली हमारी काया है

झूठ नहीं अब सच्चापन अपनाओ तुम।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

पुराने दिनों को विदाई नई यादे बनाओ तुम,

नया दिन नई शुरुआत का उजाला छाया है

अच्छी यादें आंखो में खुशी के मोती बनाओ तुम।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

युवा याद करो उत्साह को फ़िर शुरुआत करो

भूलो हार को याद रखो नव वर्ष जीत दिलाने आया है

गुस्सा नहीं अब फिर  शांति की शुरुआत करो।


गए पुराने दिन नव वर्ष महकता आया है

पहले किये वो प्रयास थे अब जीत निश्चित है,

नव वर्ष तेरी जीत का परचम लहराने आया है

खुशियां आयेंगी दुख बीतेगा  ये अब निश्चित है।


                   कवि - चारण हार्दिक आढा


                 

             6. बता किरदार कैसा हो


नए अध्याय नई कहानी गठित कर रहे होंगे बता किरदार कैसा हो।

वहीं खाली सा पृष्ठ हो , या स्वर्ण लीपित वो लेख हो

शून्य की ध्वनि हो , या प्रखर शोर उल्लेखित हो

नई क़लम नई बात हो, या पुराने पृष्ठ का आधार हो,

नए अध्याय नई कहानी गठित कर रहे होंगे बता किरदार कैसा हो।


शब्द का हाहाकार हो , अलंकारों का भिन्न प्रकार हो

सीमित ना हो बात कोई, असीमित इसका विस्तार हो

प्रलयकारी शब्द मे शांति  ही इसका लक्ष्य हो,

नए अध्याय नई कहानी गठित कर रहे होंगे बता किरदार कैसा हो।


       कवि चारण हार्दिक आढा


एस के कपूर श्री हंस

 ।ग़ज़ल।।    संख्या 24।।*

*।।काफ़िया।। आर ।।*

*।।रदीफ़।। करते हैं।।*


*मतला।*

दिल में नफरत जुबां पर प्यार करते हैं।

बहुत से लोग बस यही व्यापार करते हैं।।


*हुस्ने मतला।*

सामने तुम्हारे तो वह इकरार करते हैं।

पीठ पीछे चुपचाप से  इंकार करते हैं।।


फितरत समझ पाना मुश्किल इनके खंजर की।

सामने साधकर निशाना पीछे वार करते हैं।।


ले कर चलते हैं नदी    पार करवाने को।

बीच मंझधार उल्टी     पतवार करते हैं।।


आस्तीन के सांप से तेरे ही बिल में छिपे हैं।

पहले मार कर फिर से होशियार करते हैं।।


*"हंस "* बन कर मसीहा पा लेते हैं यकीन तुम्हारा।

फिर तुम्हारी ही गोट से तुम्हाराआरपार करते हैं।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।       9897071046

                     8218685464

*।।ग़ज़ल।।   ।। संख्या  25 ।।*

*।। काफ़िया।। आर ।।*

*।।रदीफ़।।  में   ।।*


प्रेम दुकान चलाता हूँ नफरत के बाज़ार में।

सकूँ बहुत मिलता है इस घाटे के भी व्यापार में।।


सलाम मिलता है हर तरफ से  यारों का।

गिनती शुमार हो गई है इक़ दिलदार में।।


महोब्बत की जुबां से जीत मिल रही हर तरफ। 

यकीन ही हट गया है अब किसी भी हथियार में।।


सोने चांदी का गुमां सीने से   ही हट गया है।

जब से खजाना भर गया है मेरा दौलते प्यार में।।


बचा नहीं वक़्त नफ़रत के लिए जिन्दगानी में।

निकल जाता है वक़्त अब प्रेम के इकरार में।।


*"हंस"* कहते कोई दौलत जाती नहीं साथ में ऊपर।

पर महोब्बत ले जाने का हक हमारेअख्तियार में।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।*

मोब।।।           9897071046

                      8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/16)

किसके सँग मैं खेलूँ होली,

साजन अभी न लौटे घर को।

व्यथा कहूँ मैं किससे हिय की-

पिया गए अनजान शहर को??


खुशियों का है उत्सव होली,

सभी मिटा दें दिल की दूरी।

गले लगाकर प्रेम-भाव से,

कर लें इच्छा मन की पूरी।

प्रेम-रंग होली का देखो-

रँगता दिखता गाँव-नगर को।।

       पिया गए अनजान शहर को।।


अमराई में बैठ कोकिला,

मधुर मिलन का गीत सुनाए।

वन-उपवन की मधु सुगंध में,

लगे,प्रकृति-परिवेश नहाए।

सुनकर पपिहा की पिव बोली-

सतत निहारूँ पिया-डगर को।।

       पिया गए अनजान शहर को।।


सखियाँ अपने प्रियतम के सँग,

होली-रंग-गुलाल खेलतीं।

भीगी चुनरी,मुदित मना सब,

होली का हुड़दंग झेलतीं।

देख मचलता मन भी मेरा-

छू लूँ मैं भी पिया-अधर को।।

       पिया गए अनजान शहर को।।


मिले अगर साजन होते तो,

उनसे हँसी-ठिठोली करती।

बाहों का मैं हार बनाकर,

उनकी बाहों में भी रहती।

नहीं हाथ से जाने देती-

होली के इस शुभ अवसर को।।

  पिया गए अनजान शहर को।।

 किसके सँग मैं खेलूँ होली,

साजन अभी न लौटे घर को।।

         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

             9919446372

कवि निकेश सिंह निक्की

 संक्षिप्त परिचय

 नाम निकेश सिंह निक्की

 जन्म स्थान खोकसा रसलपुर थाना दलसिंहसराय पोस्ट बम्बैया हरलाल जिला समस्तीपुर बिहार

 विशेष अभिरुचि :- साहित्य लेखन, समाजसेवा एवं राजनीति

 कृति अखण्ड भारत (काव्य संग्रह) 

  जागो पुनः एक बार (काव्य संग्रह)

 जनक्रांति काव्य संग्रह

 उर्मिला के पीर कहानी संग्रह 

 स्मृति के पार कहानी संग्रह

  पति परमेश्वर नाटक

प्रकाशित दीक्षा प्रकाशन दिल्ली

 सम्मान साहित्य रत्न, साहित्य सारथी गौरव, साहित्य गौरव, काव्य गौरव, महाकवि जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान आदि एवं प्रशस्ति पत्र द्वारा सम्मानित

ण्मोकार आधा साहित्य आधा मिडिया आदि चैनल पर काव्य पाठ 

 संस्थापक बिहार नौजवान सेना समाजिक संगठन

 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य राष्ट्रवादी लेखक संघ भारत

 विशेष एक दर्जन से अधिक सांझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित


भारत गाथा

जिस भारत के ज्ञाननिधि में,

सकल विश्व नहलाता था।

खड़ी नालंदा बता रहीं है,

सकल विश्व ललचाता था।



जिसके आगे मैक्समूलर भी,

मां कह न फूल समाता था।

इत्सांग भी जिसके गुण को,

गाते ही थक जाता था।


जब जगत में फैला था,

तिमिर का व्यापक सम्राज्य।

तभी लिख कर छोड़ा भारत,

पावक का अनुपम इतिहास।


पढना लिखना कोई न जाने,

 सकल विश्व में कौन सिखावें।

 छः शास्त्र नव ग्रंथ के ज्ञाता,

 सकल विश्व भारत को मानें।


कहें निकेश भारत की गाथा,

सकल विश्व में भाग्य विधाता।

देकर सकल विश्व को ज्ञान,

आज बनी है स्वयं अनजान।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार


जनता चुप क्यों है

हंसी ठिठोली बहुत हुआ,

अब गांडीव सी टंकार करो।

या केशव के पांचजन्य सा,

प्रयली प्रचंड हुंकार करो।


वोटों के लालच में देखो,

घोषणा कैसी होती है।

देश द्रोहियों को भी अब,

फूलों की स्वागत होती है।


कोई भी उठ कर आता है,

उलूल जुलूज बक जाता है।

देशद्रोही कानून को भी ,

खत्म करने की बात कर जाता है।


भारत की अपमान देखकर,

 फिर भी जनता चुप क्यों हैं।

उलूल जुलूल बात करने वालों की,

जीभ काटने में क्यो डर है।


कहें निकेश अब गरजेगे,

 बनकर गांडीव की टंकार।

 छोड़ेंगे नहीं अब उसको,

 जो राष्ट्र से करें खिलवाड़।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार



गौरवशाली बिहार

मिथिला के पहचान बिहार के,

हम भारत के रखवाले हैं।

विद्यापति की काव्य ध्वनि हम,

 कुंवर सिंह के भाले हैं।


गौरवशाली मगध की गाथा,

 आज इतिहास सुनाती है।

चक्रवर्ती अशोक की शौर्य,

 कण कण में बिहार गाती है।


दिनकर की इतिहास संजोए,

 अविरल गंगा धार है।

अमर कहानी तिलका की,

 गा रही इतिहास है।


धन्य धन्य वलिहारी हूं,

क्योकि मैं बिहारी हूं।

 तक्षशिला और नालंदा की,

 पद चिन्ह और पुजारी हूं।


कहें निकेश हे मां मिथले,

 कोटि-कोटि है नमन तुझे।

 अगले जन्म में भी देना,

  गौरवशाली बिहार मुझे।

कवि निकेश सिंह निक्की समस्तीपुर बिहार



भारत का रखवाला हूं

आंसुओ में पला बढ़ा हूं,

सच पर मरने वाला हूं।

 झोपड़ियों का चारण मैं,

 भारत का रखवाला हूं।


दूध दूध चिल्ला रहें,

बालक को मैंने देखा है।

पेट आग में जल रहें,

भिक्षुक को मरते देखा है।


मैं दुखियों का एक सहारा,

शब्द मेरी तलवार है।

मेरी लेखनी नहीं रुकेंगी,

 क्रांति का इंतजार है।


वो अमृत पी पीकर भी,

नित दिन मरते जातें हैं।

 हम बिष हलाहल पीकर,

 सदा अमर पद पाते हैं।


कहें निकेश मैं ज्वाला हूं,

 भारत का रखवाला हूं।

भूखें नंगें दलितों का,

 आंसू गाने वाला हूं।

कवि निकेश सिंह निक्की


समस्तीपुर बिहार


एस के कपूर श्री हंस

 [15/03, 6:15 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या 20।।*

*।। काफ़िया।। ओल ।।*

*।।रदीफ़।।  कर रखो ।।*


हमेशा एक खिड़की    खोल कर रखो।

रूठ भी जाओ मगर मीठा बोल कर रखो।।


इंसानियत का एक    ही    तकाज़ा है।

हर बात को तुम बस खूब तोल कर रखो।।


दुनिया में गर चाहिये  सबकी वाह वाही।

अपना हर किस्सा बहुत तोल मोल कर रखो।।


हर बात कहो अच्छी  नियत साफ दिल से।

मत कोई बात     बेवजह झोल कर रखो।


गर तालुकात बिगड़    भी जायें किसी बात पर।

फिर भी जुबां में अपनी मिठास घोल कर रखो।।


" *हंस*" जिन्दगी के सफ़र में जीत का एक ही तरीका है।

अपने किरदार का मोल अनमोल कर रखो।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।    9897071046

                  8218685464

[15/03, 6:15 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।    ।।संख्या    19।।*

*।। काफ़िया।। आनी।।*

*।।रदीफ़।।   है    ।।*


तुम्हारी अदालत ओ मुंसिफ कलम वही पुरानी है।

सच की हार झूठ के हाथ वही  कहानी है।।


लिखा पढ़ी सब मालूम होती    है फर्जी।

सुना दिया     फैंसले को बस     जुबानी  है।।


अंदर मिट्टी बाहर चूना ऊपर से बस लीपापोती।

यह पैसे की खनक दौलत की मेहमानी है।।


अजब गजब सा दौर यह आज चल रहा।

जमाने की कैसी यह बन  गई रवानी है।।


झूठ की राह पर भीड़  आज है बेइंतहा।

सच की राह आज भी सूनी अनजानी है।।


" *हंस*"  सच कमजोर हुआ जरूर पर हारा नहीं।

रहता है जीत कर गर ऊपरवाले की मेहरबानी है।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*

*बरेली।।*

मोब।।।        9897071046

                   8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-37

माँगु भसुंडि आजु बर कोऊ।

मन भाए जे बोलउ सोऊ ।।

    तत्व ग्यान-बैराग-बिबेका।

    मुनि दुर्लभ जे ग्यान अनेका।।

रिद्ध व सिद्धि सकल सुख-खानी।

मोच्छ समेत तुमहिं जे जानी ।।

     बिनु संदेह तुमहिं मैं देऊँ।

     भव-भय सकल तुरत हरि लेऊँ।।

सुनि प्रभु-बचन बिचारे हमहीं।

धन-सम्पत्तिहिं सुख नहिं मिलहीं।।

     राम क भगति सकल सुख-धामा।

     मिलै न सुख बिनु भक्तिहिं रामा।।

जल बिनु मीन,भगति बिनु सेवक।

छटपटाहिं बिनु नावहिं खेवक ।।

     अबिरल भगतिहिं सुर-मुनि चाहहिं।

      बिमल बिसुद्ध पुरान-श्रुति गावहिं।।

कलप-तरू-कृपालु भगवाना।

दीजै मोहिं सोइ अग्याना ।।

     एवमस्तु कह राम कृपाला।

     दीन्ह भगति तब दीन दयाला।।

तुम्ह बड़ भागी, मम अनुरागी।

अबिरल भगति कै तुमहीं भागी।।

     तव उर रहहि सकल गुन बासा।

      पायो मम प्रसाद बिस्वासा ।।

भक्ति-बिराग,ग्यान-बिग्याना।

मम रहस्य व लीलहिं जाना।।

    बिनु प्रयास तुम्ह जाने सबहीं।

    देबहुँ अस बर अब मैं तुमहीं।।

माया-भ्रम नहिं ब्यापै तोहीं।

करत रहहु अनुरागहिं मोहीं।।

   अब तुम्ह सुनहु बचन मम कागा।

   जानउ मम सिद्धांत सुभागा।।

अखिल जगत मम माया रचना।

जीव-चराचर जे इहँ बसना ।।

     सकल जगत सँग हमरो नेहा।

     सबतें अधिकहिं मनुज सनेहा।।

द्विज श्रुति-धारी,धरम-बिचारी।

रखहुँ सनेह तिनहिं सँग भारी।।

     पुनि ग्यानी-बिरक्त-बिग्यानी।

      तिन्हकर नेह-बोल अरु बानी।

प्रिय तें प्रियतर लगहिं मोहीं।

इन्हतें प्रियतर सेवक तोहीं।।

दोहा-भगति-बिहीन बिरंचि प्रिय,प्रिय सभ जीव समान।

         भगतिवंत बरु नीच अपि,लागहिं प्रिय सम प्रान।।

                       डॉ0हरि नाथ मिश्र

                        9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *गीत*(16/16)

नहीं चैन से सोने देती,

याद पिया की मुझे सताए।

ऊपर से पपिहा की पिव-पिव-

तन-मन मेरे आग लगाए।।


घर-आँगन-चौबारा सूना,

सूना लगता है जग सारा।

सुनो, याद में तेरी साजन,

बहती रहती अश्रु की धारा।

चंद्र-चंद्रिका जग को भाती-

मुझको चंदा नहीं सुहाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


लख कर सखियाँ मुझको कहतीं,

बोलो,तुमको हुआ है क्या?

उनसे कैसे यह मैं कह दूँ,

याद तुम्हारी सताए पिया?

पर माथे की रूठी बिंदिया-

सबको सारा राज बताए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


रात बिताऊँ जाग-जाग कर,

दिन में राह निहारूँ तेरी।

बाहों में आ भर लो बालम,

यह है अब तो चाहत मेरी।

सायक कुसुम धनुष अनंग ले-

सर-सर सायक प्रखर चलाए।।

      तन-मन मेरे आग लगाए।।


 कली चमन में खिली देख कर,

भौंरे उन पर मर-मिट जाएँ।

सरसों फूली पीली-पीली,

देख हृदय सबके ललचाएँ।

पीली चुनरी पहन प्रकृति भी-

लगती रह-रह मुझे चिढ़ाए।।

       तन-मन मेरे आग लगाए।।


आकर दर्शन दे दो साजन,

तकें नैन ये राहें तेरी।

रहा न जाए अब तो मुझसे,

फैली हैं ये बाहें मेरी।

जीवन का है नहीं भरोसा-

जलता दीपक कब बुझ जाए??

      तन-मन मेरे आग लगाए।

      याद पिया की मुझे सताए।।

               "©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                    9919446372

निशा अतुल्य

 बाल कविता

15.3.2021


माँ आ गई होली प्यारी 

मुझको रंग दिला दो तुम 

रंग बिरंगे प्यारे प्यारे

गुब्बारे दिलवादों तुम ।


रंग भरूँगा गुब्बारों में 

चढ़ कर छत सबको मारूंगा

भीग जाएंगे जब वो रंग से

ताली खूब बजाऊँगा ।


माँ बोली ये क्या कहते हो 

ये बात है बहुत बुरी 

चोट लग जाये कहीं किसी को

ऐसे नहीं खेलो होली ।


रंग लगाओ गुलाल लगाओ 

गले प्रेम से मिलो सबसे

चाट पकौड़ी गुंजिया पापड़

खाओ सब मिल ढेर सारे ।


टेसू का जो रंग बनाया

स्वयं भीगो,और भीगो डालो

गुलाल उड़ाओ खूब लगाओ ।

सबको रंग में रंग डालो ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

 राम बाण🏹


मन के मौला मन के मौजी

 मन में राग जगाये हैं।

भ्रमर भ्रमर गुंजित मन ने, 

   कितने बाग सजाये है।


इच्छाओं के बादल उमड़े, 

घुमड़ घुमड़ के गरज रहे।

लोकतंत्र के प्यादे घर में,

धमकी देकर धमक रहे।

सेना पर पत्थर फेंके वो, 

    भटके राही पाये है।


कहीं सोच है कहीं लोच है,

  कहीं सड़क ये रोक रहे।

किसके किस्से गढ-गढकर,

    कुत्ते कौमी भौंक रहे।

आशाओं के पानी उतरे, 

  कितने ख्वाब बहाये हैं।


सेवा की सरकार निराली, 

 मुफ्त लुत्फ है लुटा रही।

हसीन सपने सजा-सजाकर, 

   गुप्त में दाल पका रही।

अम्मी चाची फूफी ने भी,

  अनशन बाग लगाये है।


अब्बू खां की बकरी गायब 

  पता नहीं क्यों कहांँ गई।

लंगर खाने और जनाने

  धौंस जमाने वहाँ गई।

समझ रखे हैं नासमझी की

    मद में घात लगाये हैं।


लोकतंत्र की साख मिटाने

   किनने दाग लगाये हैं।


            डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

नूतन लाल साहू

 प्रेरणा के स्रोत


संस्कारो से बड़ी

कोई वसीयत नहीं होती

और ईमानदारी से बड़ी

कोई विरासत नही होती है

जिंदगी में हम,कितने सही है

और कितने गलत है

ये सिर्फ दो ही शख्स जानते है

परमात्मा और आत्मा

शब्द भी

एक तरह का भोजन है

किस समय कौन सा शब्द

परोसना है

वह समझ जाए तो

दुनिया में उससे बढ़िया

रसोइया कोई नहीं होगा।

हाथ जोड़ने से

तन में विनम्रता आती है

हाथ जोड़ने से

भक्ति में पवित्रता आती है

हाथ जोड़ने से

मन में शत्रुता नही रहती

हाथ जोड़ने से

चेहरे पर प्रसन्नता आती है

समय के साथ परिवर्तन ही

सुखमय जीवन का आधार है

जो अच्छा लगे

उसे ग्रहण करो

जो बुरा लगे,उसका

त्याग कर दो

चाहे वह विचार हो

या फिर कर्म हो

जिंदगी में अगर कोई

सबसे सही रास्ता दिखाने वाला

दोस्त है,तो वो है अनुभव

कभी आपको लगे कि

मैं अकेला क्या कर सकता हूं

तो एक नजर सूरज को देख लेना

वो अकेला ही

सारे संसार को,आलोकित करता है


नूतन लाल साहू




समय ही शक्तिशाली है


समय और स्थिति

बदलती रहती है

कोई किसी का अपमान ना करें

आप शक्तिशाली हो सकते है,पर

समय आपसे अधिक

शक्तिशाली है

कल न हम होंगे

न कोई गिला शिकवा होगा

सिर्फ सिमटी हुई यादों का

सिलसिला होगा

जो लम्हे है

चलो हंस कर,बिता लें

न जाने कल क्या

जिंदगी का फ़ैसला होगा

क्यों भिड़ता है समय से

समय है,पहलवान

बड़े बड़ो के समय ने

काट दिये है कान

जो पंगा ले,समय से

वह पीछे पछताय

समय किसी के बाप का

होता नही है गुलाम

आता है सबका शुभ समय

फिर काहे को घबराता है

लिख के रख लें एक दिन

काम तुम्हारा अवश्य ही होगा

समझ न पाया कोई भी

तकादीरो का राज

अगर समय अनुकूल नहीं तो

सब कुछ है बेकार

आप शक्तिशाली हो सकते है, पर

समय आपसे अधिक शक्तिशाली है


नूतन लाल साहू

दोहे डॉ रामबली मिश्र

 सौरभ    (दोहे)


सौरभ को जीवन समझ, यह जीवन का अंग।

सुरभित सुंदर भाव से, बनता मनुज अनंग।।


सौरभ खुशबूदार से, मानव सदा महान।

सदा गमकता रात-दिन, रीझत सकल जहान।।


सौरभ में मोहक महक, सौरभ अमित स्वरूप।

सौरभ ज्ञान सुगन्ध से, बनत विश्व का भूप।।


जिसमें मोहक गन्ध है, वह सौरभ गुणशील।

सौरभ में बहती सदा ,मधु सुगन्ध की झील।।


स्वादयुक्त आनंदमय,अमृत रुचिकर दिव्य।

सौरभ अतिशय सौम्य प्रिय, सहज मदन अति स्तुत्य।।


सौरभ नैसर्गिक सहज, देवगन्ध का भान।

सदा गमकता अहर्निश, सौरभ महक महान।।


सौरभ दिव्य गमक बना, आकर्षण का विंदु।

सौरभ को ही जानिये, महाकाश का इंदु।।


मानवता  (दोहे)


मानवता को नहिं पढ़ा, चाह रहा है भाव।

यह कदापि संभव नहीं, निष्प्रभाव यह चाव।।


नहीं प्राणि से प्रेम है, नहीं सत्व से प्रीति।

चाह रहा सम्मान वह ,चलकर चाल अनीति।।


मन में रखता है घृणा, चाहत में सम्मान।

ऐसे दुर्जन का सदा, चूर करो अभिमान।।


मानव से करता कलह, दानव से ही प्यार।

ऐसे दानव को सदा, मारे यह संसार।।


मानवता जिस में भरी, वह है देव समान।

मानवता को देख कर, खुश होते भगवान।।


मानव बनने के लिये, रहना कृत संकल्प।

गढ़ते रहना अहर्निश, भावुक शिव अभिकल्प।।


मानवता ही जगत का, मूल्यवान उपहार।

मानवता साकार जहँ, वहाँ ईश का द्वार।।


रचनाकार:

डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

9838453801


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार ममता जैन पुणे

 


*_डॉ. ममता जैन(एम.बी.ए., पी.एच. डी): एक परिचय_*

*अभूतपूर्व उपलब्धियां*
♦पुरातत्व शोध हेतु साइप्रस      इजरायल आईलैंड मिश्र अमेरिका आदि देशों की सांस्कृतिक सद्भाव यात्राएं।

♦इंडिया नहीं भारत को आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की प्रेरणा से हिंदीअभियान को जन जन तक पहुंचाने हेतु देश और विदेश कीअनेक विश्वविद्यालयों में संगोष्ठी सेमिनार एवं जन जागरूकता के अनेक कार्यक्रमो का आयोजन एवं संयोजन
♦मात्र 18 वर्ष की अवस्था में भारतीय जैन मिलन के अंतर्गत 'कुमारिका मिलन 'बनाकर युवतियों में सामाजिक और धार्मिक चेतना का शंखनाद।

♦मात्र 21 वर्ष की अवस्था मेंअवस्था में पत्रकारिता में पीएचडी कर साइप्रस (यूरोप)मेंप्रथम ऑनलाइन पत्रिका अभिव्यक्ति का प्रारंभ (जिसको वहां के हाई कमिश्नर श्री पवन वर्मा जी द्वारा के शुभ संदेश के द्वारा प्रकाशित किया गया।अपर हाई कमिश्नर श्री मनोहर राम जी के द्वारा जिसका विमोचन किया गया।
♦21 वर्ष की अवस्था में ग्रीस लंदन,अमेरिका आदि की सांस्कृतिक सद्भाव यात्राएं कर जैन धर्म का प्रचार प्रसार करने वाली सर्वप्रथम जैन युवती जिसने सबसे पहले ब्रिटिश म्यूजियम में जाकर जैन प्रतिमाओं का सूचीकरण किया ।इजिप्ट म्यूजियम में जैन प्रतिमाओं का सूचीकरण किया ।

♦जिनको हाई कमिश्नर द्वारा स्वयं एंबेसी में सम्मानित किया गया। जिनकी लिखित पुस्तको के अनेकों साहित्यिक सम्मान मिले।

♦एमबीए करने के बाद भी जिन्होंने सरकारी नौकरी या प्राइवेट नौकरी नहीं की बल्कि अपना पूरा जीवन समाज सेवा के क्षेत्र में लगा दिया जिन्होंने महिलाओं को "सीमित आय में असीमित सुख कैसे प्राप्त करे" ऐसे मंत्र दिए।परिवार और बच्चे के प्रति दायित्व बोध का अहसास करवाया।
♦विदेशों में जिन्होंने शाकाहार का विशेष प्रचार किया। साइप्रस जैसे  देश मे जहाँ सीफूड ही मुख्य खाना है वहाँ शाकाहार का प्रचार प्रसार किया। भारतमे भी इस ओर सक्रिय ।मुस्लिम समाज में विशेषकर शाकाहार का प्रचार प्रसार कियाऔर इसमें कुछ हद तक सफल भी हुई जब मुसलमान व्यक्तियों नेअपनी रोजो को शाकाहारी भोजन से खोला ।
*साहित्यिक  व धार्मिक क्षेत्र में अन्य उपलब्धि*
🔷 मुनि श्री प्रमाण सागर जी अक्षय सागर जी उत्तम सागर जी,वैराग्य सागर जी,मुनिपुगव श्री सुधा सागर जी महाराज के कार्यक्रमों में एवं महिला सम्मेलनो में  मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रण। अनेक महिला सम्मेलनके कार्यक्रमों में बतौर मुख्य अतिथि के रूप मेंसम्मान।हैं।12 वर्ष पूर्व भी और इस वर्ष भी श्रवणबेलगोला महामस्तकाभिषेक में आयोजित विश्वस्तरीय महिला महिला में भी जिनको वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया।
🔷दूरदर्शन आकाशवाणी पर जिनकी वार्ताएं निरंतर प्रकाशित होती रही है।
🔷अनेकों कवि सम्मेलनका आयोजन एवं स्वयं कई कवि सम्मेलन में कवियत्री के रूप में की शोभा बढ़ा चुकी है।
शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष,श्री चंद्रप्रभु महिला मंडल की अध्यक्ष,अखिल  भारतीय महिला महासमिती की
मध्यांचल समन्वयक,लायनेस क्लब मिरेकल की पूर्व अध्यक्ष
🔷साहित्य और धर्म के क्षेत्र मेंअनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।जिसमें विशेष पुरस्कार "नारी गौरव" ,"समाज विभूषण"," साहित्य श्री" ,"महिला रत्न","काव्यश्री"कवि जायसी सम्मान।
🔷100 से भी से भी अधिक पत्र-पत्रिकाओं में जिनके  आलेख और शोध पत्र आ चुके  है ।देश की सभी प्रतिषिठत पत्र पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित
🔷प्रकाशित पुस्तक पर एम.फिल. प्रस्तावित

समाज के लिए विशेष रूप से जिन्होंने एकता समानता और सद्भाव के सूत्र दिए।

*सामाजिक और स्वास्थ्य के क्षेत्र*
वृद्धाश्रम ,अनाथलय,बालाश्रम,
गौशाला ,वृक्षारोपण आदि सामाजिक क्षेत्र में किए गए कार्यो की राज्य स्तर पर संस्तुति

🔷अपराधियों और रिमांड होम के बच्चों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य
🔷मंदबुद्धि और सैलबरी पाल्सी रोग से त्रस्त बच्चों को पठन सामग्रीआदि प्रदान करना व करवाना।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तथा दंत परीक्षण एवं मधुमेह परीक्षणआदि के लिए शिविरों का आयोजन।

🔷बालिकाओं के लिए आत्मरक्षा की कार्यशाला
नैतिक मूल्यों की स्थापना हेतु विभिन्न कार्यशाला 
पूर्व बच्चों के लिएआत्मविश्वास बढ़ाने हेतु विशेष कार्यशाला का आयोजन ।

*पुरस्कार/सम्मान*
*साहित्य श्री 1990
*युवा प्रतिभा सम्मान2003
*साहित्य सौरभ सम्मान2003
*काव्यश्री 2300
* संत कवि जायसी सम्मान
* राज किशोरी मिश्रा सम्मान *मातृछाया पुरस्कार
*नारी गौरव 2014
*आदर्श महिला पुरस्कार 2019
*समाज भूषण पुरस्कार2019
*काव्य गौरव 2019
* Star 2020 award by world records London (U.K)

*प्रकाशित पुस्तकें*
1.साइप्रस नहीं लुभाता
2.सीप के मोती
3.लहरों की मुस्कान
4.प्रतियोगिता दर्पण ,जागृति, पंजाब सौरव ,प्राकृत विद्या, ज्योति ,कादंबिनी ,ग्रहशोभा मनोरमा,   मुक्ता सरिता, नवभारत टाइम्स, जैन गजट ,जैन महिला  श्री देशना,समग्र दृष्टि आदि  में 100 से भी अधिक रचनाएं। प्रकाशितएनसीईआरटीहिंदी की सहायक पुस्तक हेतु 3 कहानियां स्वीकृत
50 से भी अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार और रविनार में संचालन एवं शोध वाचन
*संपादन*

अभिव्यक्ति त्रैमासिक पत्रिका  श्री देशना ,द इनफॉर्मल

*बेटियां*
बहुत बार सुनी थी मैंने
मेरी मां गाती थी मेरे लिए
" मैं बचपन को बुला रही थी
बोल उठी बिटिया मेरी
नंदन-वन सी  गूंज उठी
वह छोटी सी कुटिया मेरी
सच आज जब मेरी बेटी की  तुतलाती सुवास
हवाओं में तैरती  है
मेरा आंगन खिल जाता है
मैं भी वही पंक्तियां बुद बुदाती हूं मेरी सारी संवेदना और ममत्व का कोष भर जाता है
मेरी वत्सलता का मंगलदीप
जल उठता है
मुझे मेरी पूजा, मेरी आरती
मेरी बेटी ही लगती है
रंगोली की चमक
केतकी की महक
मंदिर से शांति
ममता की लोरी
उषा की किरण
भावों की आभा
अनुभूति की पुरवाई
सच, बेटी देहरी का दीप ही नहीं, पूरी की पूरी दीप मालिका होती है ।

डॉ ममता जैन पुणे

*सुबह का सूरज*
  
सुबह का सूरज
मेरे रोशनदान से झांकता है
छुप छुप कर जब भी देखता है
मुझसे मिलने की चाह लिए
मुझे पता लग जाता है
यह मेरे मायकेमेरे घर से मिलकर आया है
यही एक तो है
जिससे मैं पूछ लेती हूं सबके हालचाल
उठ जाती हूं सुबह
सूरज आएगा
जल तो दूंगी
आएगी मां की आवाज
नहा धो लो भगवान की पूजा करो नाश्ता तैयार करती हूं
मैं आवाज में खोती हूं
जब तक सूरज को जल देती हूं
आ जाती है दूसरी आवाज
नाश्ता तैयार नहीं हुआ क्या ?
बाद में देना जल
पूजना बाद में भगवान को
अधरों पर जम जाता है
तभी एक सवाल
सूरज तुम ही बताओ
यह क्या हो गया ?
सारा माहौल कैसे बदल गया? हम सबके बीच से
भगवान कहां और क्यों चला गया?

डॉ ममता जैन,पुणे

     
*रसोई*
   डॉ ममता जैन

रसोई बनाना ही नहीं
रसोई में बनना भी सीखती है
औरत
दाल -चावल ,सब्जी- रोटी
तरह-तरह के व्यंजनों के बीच ढलता है /बनता है /पकता है उसका व्यक्तित्व भी सांचे में
इन बर्तनों को नापते-तौलते
हाथ में लेते लेते जान गई हैं
देखते ही पहचानना
किसी भी धारिता /क्षमता और उपादेयता
आग से खेलना
उसे सहज लगता हैं
आँच झेलने में उसे तपिश नहीं लगती
अकेले सुनसान में भी रम जाती है
रसोई घर में एक औरत
यही उसके अंतरंग में
दाल की तरह प्रेशर कुकर में चुपचाप खदबदाती रहकर
उसकी भावनाएं पकती है
पर जानती है वह तपिश जब एक निश्चित तापमान ले लेगी
तब देगी एक सीटी
और जगा देगी पूरा परिवेश
पूरा परिवार
उबलते चावलों के भिगोने में उसने हमेशा एक चावल देखा है और पूरे भिगोने के चावलों की नीयत भाँप ली है /पहचान ली है इसलिए रसोई के बीच बैठी औरत को
असहाय /अबला / अशक्त  समझना नितांत भूल है
रसोई में उसने
खड़ा होना भी सीख लिया है
और अपने जीवन का नया  इतिहास
स्वयं अपनी कलम से लिख दिया है।

महानगरीय सभ्यता
                  डॉ ममता जैन
                 
ना हवा न धूप
बस रात के अंधेरे में
चारदीवारी को देख
सुरक्षित हो जाना
एक अकेली दुनिया के बीच
अपने भीतर की आवाजे
  स्वयं सुन सुनकर
  अपनी ही परछाइयों
  से बतियाना
  पत्थरों के घरौंदों में तय करना पूरा सफर
   और झपकियों के बीच ही
   कैलेंडर की एक तारीख को
   बदलकर
   एक कदम बढ़ाना
   चुपचाप बदलते मौसम में
    विकास और प्रगति के
     महासागर के किनारे
     खड़े होकर
      समय के चक्र के निशानों के बीच
       लिस्ट पर चढ़ते उतरते भी
        मंजिलें गिनने में भी
       सीढ़ियो परचढ़ने से अधिक थकना
       मुझे उस आदमखोर जंगल
        में पहुंचाता है
        जो महानगरों के बीचोंबीच
         नागफनी- सा फैलता
         जा रहा है

बसन्तोत्सव 2021 काव्य रंगोली आशुकवि नीरज अवस्थी

 कविता लिखने से कभी लिख ना पाया गीत।

मातु शारदे की कृपा से लिख जाते गीत।1

खण्ड काव्य भी रच दिए समय हुआ अनुकूल।

एक पंक्ति में फंस गए गए व्याकरण भूल।2

नित्य सृजन साहित्य का करते सुकवि सुजान।

जैसे धरती शीश पर धरे शेष भगवान।3

जो जन्मा है जगत में,उसका होगा अंत।

सदा आपके ह्रदय में बीते सुखद बसन्त।। 4

नीरज नयनो से करूँ वन्दन बारम्बार।

हंस वाहिनी की कृपा बरसे अपरम्पार।।5

आशुकवि नीरज अवस्थी


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