अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2021
[08/03, 7:56 am] कवि रवीन्द्र प्रसाद, शिक्षक, झारखण्ड: नारी महान संस्कृति है
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नारी नारायणी तू
जननी कल्याणी तू
बेटी बहन माता है
सृष्टि की विधाता है।।
बेटियाँ गीत हैं संगीत हैं
आत्मा हैं ये मनमीत हैं
प्राण हैं घ्राण हैं श्वाँस हैं
माता पिता के आश हैं।।
कुल की पावन विधान हैं
संस्कृति की संविधान हैं
सृष्टि की आधारशिला ये
पाल रहीं पीयूष पिला ये।।
सृष्टि की अनुपम कृति है
नारी महान संस्कृति है
संस्कार की अनुकृति है
विश्व की यह विभूति है।।
जन-जन की अनुभूति है
बल बुद्धि विद्या श्रुति है
पुरुषार्थ की ये सीढ़ी है
बढ़ाती वंश की पीढ़ी है।।
आशीष पुत्रियों को नित्
अहर्निश सदा मिलता रहे
कामना यही प्रभु से नित्
आशीष सदा बरसता रहे।।
रचना मौलिक एवं स्वरचित व सर्वाधिकार@ सुरक्षित है।
रचनाकार:---
रवीन्द्र प्रसाद "दैवज्ञ "
सम्पर्क सूत्र 8804276009
[08/03, 8:00 am] +91 88409 22449: *महिला दिवस काव्य रंगोली 21*
*अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस*
*काव्य सृजन समारोह*
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*नारी तू नारायणी*
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नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है
मां-बहन-बेटी-बहू कितने फर्ज निभाती है।
सुख हो या दुःख साथ सदा निभाती है
नारी तू नारायणी अपना फर्ज निभाती है।
बेटी रूप में तू घर बाबुल का चहकाती है
पत्नी रूप में तू घर पति का महकाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है।
बांध भाई की कलाई पर स्नेह का धागा
रक्षा कवच बन जाती है
वक्त पड़े तो तू दुर्गा-चण्डी-काली बन जाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर कष्ट उठाती है।
ईश्वर का वरदान तू अनोखा
सृष्टि का आधार कहलाती है
नारी तू नारायणी जीवन भर साथ निभाती है।
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स्वरचित व मौलिक रचना रचनाकार- सुनील कुमार
जिला- बहराइच,उत्तर प्रदेश।
मोबाइल नंबर- 6388172360
[08/03, 8:02 am] कवि सुरेश लाल श्रीवास्तव अम्बेडकरनगर: नारी जीवन-सम्मान
नारी- सम्मान निराकृत से,
दुःखमय समाज हो जाता है।
नारी को सुख पहुंचाने से,
सुखमय समाज हो जाता है।।
इतिहास प्रत्यक्षित करने से,
यह विदित हमें हो जाता है।
जब-जब नारी अपमान बढ़ा,
उठता समाज गिर जाता है।।
निज देश में नारी की महिमा,
सज्जित थी पुरातन कालों में।
गायत्री, सावित्री अरु अनुसूया,
पूजित थीं उन समयों में ।।
नारी की पूजा होने से,
उस काल की महिमा भारी थी।
सुखमय समीर चहुँ ओर बहे,
किंचिद न दुश्वारी थी ।।
मध्य-काल के आते ही,
नारी-जीवन अपमान बढ़ा।
जीवन -सम्मान बचाने को,
सतियों का है ग्राफ चढ़ा।।
इनके जीवन की धारा को,
हर तरह से पहुँची पीड़ा थी।
फिर भी अपने बलबूते से,
रजिया, दुर्गा हुंकार उठीं।।
मीरा के भक्ती तानों से,
दुर्गा के बलिदानों से।
नारी -जागरण की डंका को,
कोई रोक सका न बजने से।।
ब्रिटिश -काल में नारी ने,
अपनी शक्ति थी दिखलायी।
पुरुषों के समान नारियाँ भी,
रणक्षेत्रों में उतर आईं।।
लक्ष्मी बाई, विजय लक्ष्मी,
अरुणा आसफ अब बोल उठीं।
इनके शक्ति प्रदर्शन से,
अंग्रेजों की सत्ता डोल उठी।।
नारी महिमा का यह बखान,
जो भी है सो कम है।
हर क्षेत्र में नारियों का परचम,
लहराया अब भारत में है।।
इंदिरा, बेदी, मदर टेरेसा,
संधू की अब है शान बढ़ी।
एवरेस्ट विजेता बनी बछेन्द्री,
जज बनी फातिमा बीबी थीं।।
नारियाँ अपनी प्रतिभा से,
भारत का मान बढ़ा हैं रहीं।
मेधा पाटेकर की सामाजिकता,
विश्व में आज भी गूँज रही।।
मिशन शक्ति की ज्योति अब,
चहुँ दिसि प्रसरित होय।
नारी -जीवन सम्मान से,
भारत की उन्नति होय।।
रचनाकार-----
----सुरेश लाल श्रीवास्तव--
प्रधानाचार्य
राजकीय इण्टर कालेज
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर
उत्तर प्रदेश,224122
परमादरणीय डॉ सरोज गुप्ता जी, सादर प्रणाम, रचना सेवा में सादर सम्प्रेषित
[08/03, 8:12 am] कवयत्री सीमा शुक्ल बेसिक टीचर मंझवा गद्दोपुर रायबरेली रोड अयोध्या: कमजोर कहां हो तुम नारी?
तुम भरती हो नभ में उड़ान,
संचालित करती रेल यान,
घर की थामें हो तुम कमान,
हर गुण है तुममें विद्दमान
जीवित करती हो सत्यवान,
ममता का गुण सबसे महान।
तुम नया जन्म ले लेती हो
जब बन जाती हो महतारी
कमजोर कहां हो तुम नारी।
मन प्रेम छलकता सागर है,
अंतस करुणा की गागर है।
अमृत रसधार बहे आंचल,
हर पीड़ा सहती हो अविचल।
जीवन में अनुपम धीर भरा।
है नयन नेह का नीर भरा।
तुम देहरी का जलता दीपक
घर घर में तुमसे उजियारी।
कमजोर कहां हो तुम नारी?
मन में नित भाव समर्पण है।
हर रूप प्रेम का दर्पण है।
प्रियतम की संग सहचरी हो
मां रूप बाल की प्रहरी हो।
मन क्षमा दया उर त्याग लिए,
प्रति पल जीती अनुराग लिए।
तुम ईश्वर की सुंदर रचना
यह सृष्टि सृजन तुमसे जारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?
युग से इतिहास लिखा तुमने
वीरों को नित्य जनां तुमने।
नित नीर बहाना छोड़ो तुम
अन्याय भुलाना छोड़ो तुम
तुम उमा,रमा हो ब्राम्हणी,
तुम झांसी वाली हो रानी।
शमशीर उठा संहार करो
डाले कुदृष्टि जो व्यभिचारी
कमजोर कहां हो तुम नारी?
सीमा शुक्ला अयोध्या।
[08/03, 8:23 am] दुर्गा प्रसाद नाग: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 के पावन अवसर पर "नारी" विषय पर मेरी यह रचना कार्यक्रम प्रमुख आदरणीया माताश्री सरोज गुप्ता जी के चरणों में सादर समर्पित__
दोहा –
" नारी सुख का मूल ही नारी सुख की खान,
नारी का सम्मान कर होते मनुज महान।"
चौपाई–
इसलिए अगर सुख पाना हो तो नारी का सम्मान करो।
जो नाम अमर कर जाना है तो नारी का सम्मान करो।।
जग में वह देश उठा ऊंचा जिसने नारी का मन किया।
पर मिला खाक में लंका सा जिसने उसका अपमान किया।।
पहले जब महिला मण्डल का भारत में आदर ऊंचा था।
तब उसका चरण कलम वंदन करता संसार समूचा था।।
थे एक राम सीता के हित जिनने रावण का नाश किया।
पांडव थे जिसने कौरव का नारी के लिए विनाश किया।।
अब हरी जा रही हैं कितनी हरदम ही नारी भारत में।
पर कौन खोज करता उनकी रघुराई सा इस भारत में।।
कितनी ही पांचाली के अब नित वस्त्र उतरे जाते हैं।
पर कौन पाण्डवों की नाई बदले में शस्त्र उठाते हैं।।
इसलिए देश यह सदियों से हो रहा रात दिन गारत है।
अब तो बस नाम ही भारत है, भारत अब नहीं वो भारत है।।
भारत की बहनों माताओं यदि अब भी आप जाग जाए ।
तो निश्चय ही हम लोगो के सारे दुःख दैन्य भाग जाएं।।
फिर से यह भारत पहले के भारत सा गौरववान बने।
बलवान बने धनवान बने गुणवान बने विद्वान बने।।
बहनों तुम चाहो तो अब भी, आ सकता है फिर वक्त वही।
दिखलादो तुममें अब भी है, अपनी माता का रक्त वही।।
उठ पड़ो देख ले सब कोई भारत की कैसी नारी हैं।
दुर्गा यदि नहीं तो दुर्गा की अब भी कन्याएं प्यारी हैं।।
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दुर्गा प्रसाद नाग
नकहा– खीरी
उत्तर प्रदेश
मोo– 9839967711
[08/03, 8:33 am] कवयित्री सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ: ऐ!मातृशक्ति अब जाग जाग।
ऐ!शक्तिपुंज अब जाग जाग ।
रणचंडी बन तू स्वयं आज।
मत बन निरीह नारी समाज।
उठ हो सशक्त भय रहा भाग ।
अबला का चोला त्याग त्याग ।
चल अस्त्र उठा तज लोक लाज ।
शोषण का ले जग से हिसाब ।
भारत की नारी दुर्गा है ,
भारत की नारी सीता है ।
रणचण्डी बन वह युद्ध करे ,
गीता सी परम पुनीता है ।
मां कौशल्या, जसुदा बनकर ,
जग् को सौगात दिया उसने ।
लक्ष्मीबाई रजिया बनकर ,
बैरी को मात दिया उसने ।
वह अनुसुइया वह सावित्री ,
वह पार्वती का मृदुल रूप ।
वह राधा है वह सरसवती
माँ लक्ष्मी का अनुपम स्वरूप ।
इसको अपमानित मत करना ,
ऐ!दुनिया वालों सुन लो तुम ।
सब नरक भोग कर जाओगे ,
अब कान खोलकर सुन लो तुम ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला
[08/03, 8:37 am] भरत नायक "बाबूजी"
मु. पो. - लोहरसिंह
जिला - रायगढ़ (छत्तीसगढ़): *"नारी"* (ताटंक छंद गीत)
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विधान- १६ + १४ = ३० मात्रा प्रतिपद, पदांत SSS, युगल पद तुकांतता।
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*नारी अनुकृति परमेश्वर की, पूजन की अधिकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
नाते अनगिन जग में उसके, जिन पर तन-मन वारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*नारी के बिन नर आधा है, नर भी रचना नारी की।
त्याग-तपस्या की प्रतिमा है, जय हो जन हितकारी की।।
प्रीति दायिनी हर पल है वह, स्नेहिल अति सुखकारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है ।।
*सतत सजगता से नारी की, जग निश्चिंत सदा मानो।
विडंबना फिर यह कैसी है? सहती वह विपदा जानो।।
मान सभी उसका भी रखना, नारी शुचि प्रणधारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*देव करें उपकार वहाँ पर, मान जहाँ पाती नारी।
है अवलंब सदा वह घर की, फिर क्यों न सुहाती नारी??
नारी तो है द्वार स्वर्ग का, महिमा उसकी न्यारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*नारी का उपहास न करना, उसका मान बढ़ाना है।
रोक भ्रूण की हर हत्या को, पुत्री-प्राण बचाना है।।
नव प्रतिमान सुता नित गढ़ती, सुत पर भी वह भारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, पूजन की अधिकारी है।।
*सृष्टि समाहित जिस नारी में, उसकी किस्मत फूटे क्यों?
थाम ऊँगली तुम्हें चलाया, उसकी लाठी छूटे क्यों??
अपना भी कर्तव्य निभाओ, कर्ज-मुक्ति की बारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
*मानवता का मान रखो तो, संशय कहीं न होता है।
तोष मिले सत्कर्मों से ही, नाश कुकर्मों होता है।।
कर्म कभी मत करना ऐसा, जिसमें जग-धिक्कारी है।
सृष्टि-वृष्टि-संतुष्टि-शांति है, ममता की फुलवारी है।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़ (छ.ग!)
मो. 9340623421
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[08/03, 9:15 am] Bharti Jain Divyanshi Nr 21: *अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य रंगोली*
में प्रेषित है 👇👇👇
गीत :-
सीने में रखती है ममता, आँखों में चिंगारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।
एक तरफ बन महिष- मर्दिनी ,
दुश्मन मार गिराती है।
छुई-मुई ,बन लजवन्ती सी,
दूजी ओर लजाती है।।
समझो मत इसको बेचारी, ये तलवार दुधारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।
ये अनुसुइया, सावित्री भी,
रामायण की सीता है।
यही अहल्या , शबरी राधा,
मीरा, भगवत -गीता है।।
है दशरथ की कौशल्या ये, मनुज नहीं अवतारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।
कहीं निर्भया, कहीं दामिनी,
कण-कण रूप भवानी है।
प्राण लुटा दे भारत माँ पर,
वो झाँसी की रानी है।।
कदम-कदम पर पौरुष के सँग, इसकी भागीदारी है।
अबला नहीं सदा से सबला, ये भारत की नारी है।।
ये सतलुज, रावी, चिनाव है,
ये गंगा की धारा है।
दिव्य शक्ति ये परमेश्वर की,
काली का हुंकारा है।।
मर्यादा है इसका गहना, मत समझो लाचारी है।
अबला नहीं सदा से सबला ,ये भारत की नारी है।।
जय हिंद! जय मातृ शक्ति!
🙏🙏🙏
रचनाकार--भारती जैन 'दिव्यांशी'
मुरैना मध्य प्रदेश
मोबाइल--7000896988
8103384949
(स्वरचित)
[08/03, 9:15 am] Nk अर्चना द्विवेदी अयोध्या फैजाबाद बेसिक टीचर: नारी दिवस की शुभकामनाएं
*दोहे*
नर-नारी जब साथ हों,गढ़ें नवल सोपान।
राष्ट्र प्रगति का पथ चुने,हो जग में उत्थान।।
अम्बर चूमे पाँव को,नारी करे प्रयास।
अपनों के सहयोग का,होता जब आभास।।
पग-पग पर सम्बल मिले,धरती करे विकास।
स्वर्ण अक्षरों में लिखा,नारी का इतिहास।।
नारी को प्रभु ने दिया, अतिशय रूप अनूप।
जैसे प्रतिदिन भोर में, खिलती छत पर धूप।।
करते हैं हर देवता,ऐसी भूमि निवास।
जीवन के अस्तित्व में,नारी का हो वास।।
जीवन की बाजी लगा, नार करे उत्थान।
काज सभी कर डालती,लेती है जो ठान।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या
सर्वाधिकार सुरक्षित
[08/03, 9:20 am] कवयित्री रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'
लखनऊ: *देवी स्वरूप माँ बनकर सृष्टि को उद्भूत व परिपालन एवं संवर्धन करते हुए हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करने वाली समस्त नारी शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की अनंत हार्दिक शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत हैं रजनी की दो कुण्डलियाँ-*
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नारी का होता नहीं, जहाँ कहीं सम्मान।
खुशियाँ जातीं रूठ हैं, रोता है भगवान।
रोता है भगवान, न करता देश तरक्की।
खोती जग पहचान, बात यह पूरी पक्की।।
संकट खड़े विशाल, पड़े नित विपदा भारी।
सदन वही खुशहाल, जहाँ खुश रहती नारी।।
👩👩👩👩👩👩👩👩
नारी के सम्मान हित, करते बातें लोग।
पर संभव यह कार्य हो, होता नहीं प्रयोग।।
होता नहीं प्रयोग, समस्या बढ़ती जाती।
देवी सम है पूज्य, मगर यह पीटे छाती।।
करें इसी पर वार, प्रताड़ित करते भारी।
होता है अपमान, सहे कब तक यह नारी।।
👵👵👵👵👵👵👵👵
*©रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका'*
*लखनऊ✍*
*उत्तर प्रदेश*
*स्वरचित एवं मौलिक*
*1/12/2019 के संकलन से उद्धृत*
🙏🙏🌹🌻🌻🌹🙏🙏
[08/03, 9:42 am] प्रमिला पांडेय कानपुर: महिला दिवस
मां को समर्पित रचना
तुम गीता हो ,रामायन हो ,
तुम चारो वेदो की थाती।
तुम आरती, पूजा ,वंदन हो।
तुम जलती दीपक में बाती ।।
तुम स्वर हो मधुर कोकिला का तुम राग - रागिनी वर दाती।
तुम दोहा , रोला ,भजनामृत ।
तुम ही दीपक मल्हार गाती।।
तुम मधुर चाॅदनी चंदा की ।
तुम दिनकर का उजियारा हो
तुम ही बसंत सी पुरवाई
तुम पतझड का पखवारा हो।
तुम ही नदियों में गंगा हो
तुम ही संगम की धारा हो।
तुम मंदिर, मस्जिद,गिरजाघर तुम ही नानक गुरुद्वारा हो।।
प्रमिला पान्डेय
कानपुर
संम्पर्क सूत्र
7905988068
[08/03, 10:34 am] +91 96104 47000: आओ सभी बहने मिलकर हम भारत का उत्थान करें
भारत के आँगन से आओ शुरू नया अभियान करें
प्रश्न यही है कियूं आखिर, बहनों पर अत्याचार हुए ?
राजनीति के चक्रब्यूह में,कियूं बेटी पर वार हुए?
जले न नारी लुटे न इज्जत,शपथ उठायें ध्यान धरें|
भारत के आँगन से आओ,शुरू नया अभियान करें ||
नारी की ताकत बनकर,अब ऐसी अलख जगानी है |
दुर्गा काली तुम बन जाओ, बनना हमें भवानी है ||
कब तक रोयेंगे छिप-छिप,कर माँ चंडी का ध्यान धरें ?
भारत के आँगन से आओ,शुरू नया अभियान करें||
तीन रंग की ध्वजा सम्हालो, सश्त्र उठाओ हांथों में|
हर पापी का नाश करो, तुम मत टूटो जज्बातों में||
चलो एक उज्जवल भारत, का पुनः नया निर्माण करें|
भारत के आँगन से आओ, शुरू नया अभियान करें||
बहुत दुसाशन यहाँ मिलने, गलियों में चौबारों में|
मगर नहीं गोविन्द मिलेंगे, स्वार्थ भरे बाज़ारों में||
धरा और आकाश नापने, की शक्ती का ध्यान धरें|
भारत के आँगन से आओ शुरू नया अभियान करें ||
अमित तिवारी (आजाद )
जयपुर,राजस्थान
9610447000
[08/03, 10:34 am] +91 70142 26037: सादर मंच
दिनांक-7-03-21
विषय-=महिला दिवस पर विशेष
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नारी तुम हो घर की इज्जत ,और रिश्तो की शान हो।
हर युग में पूजित तुम नारी, सबसे बड़ी महान हो।
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घर कि तुम मर्यादा हो, रुप अनेकों तेरे हैं।
माता पुत्री बहन भार्या, रिश्तों में नाम घनेरे हैं।
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जीवन की तुम छाया हो, मोह ममता कि तुम माया हो
करे समर्पित अपना जीवन, प्रेम सिक्त का साया हो।
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नारी का अभिमान सदा ही, प्रेममय उसका घर है
हो नारी का सम्मान जहां, प्रमुदित नारी का वह घर है।
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नारी का सम्मान बचाना, सच्चा धर्म हमारा है।
वही सफल इंसान जगत में, लगे सभी को प्यारा है।
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प्रेम लुटा कर अर्पण करती, तन और मन बलिदान है।
कभी रूप रणचंडी बनकर, रखती निज का स्वाभिमान है।
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कवि संत कुमार सारथि नवलगढ़
[08/03, 10:36 am] Nr नीतू सिंह चौहान Lko: मंच को नमन
विषय - महिला दिवस ( नारी)
विधा - गजल
सभी को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
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नारियाँ अब चांद छूने आसमां चढने लगी हैं।
देखिये हर रोज एक इतिहास ये गढने लगी हैं।।
रूढियों के बंधनों को तोडकर के नारियाँ अब।
हौसलों से नित नये आयाम पर बढने लगी हैं।
खौफ कोई अब नहीं, आजाद होकर जी रही वो।
पंक्षियों सी गगन में ले पर नये उडने लगी हैं।।
मुश्किलों से ना डरी वो, पार हर बाधा किया है।
राह के हर कंटकों से, रात- दिन लडने लगी हैं।।
ज्ञान की उर में जलाकर लौ,उजाला कर रही वो।
जब कभी रूढियां बन शूल, हिय खाने लगी हैं।।
कवयित्री नीतू सिंह चौहान
जानकी अपार्टमेंट, बल्दीखेडा,
लखनऊ- 226012
मो0- 9453562919
[08/03, 10:39 am] कवयत्री नीरजा नीरू5/243
जानकी पुरम विस्तार
लखनऊ: *नहीं*चाहती*बनना*देवी*
~~~~~~~~~~~~~~
नहीं चाहती बनना देवी
बस इन्सान ही रहने दो
कतरो मेरे पंख न देखो
मुझको मन की कहने दो
नहीं चाहती तुम मेरा
चंदन से ही अभिषेक करो
नहीं चाहती तुम मेरा
वंदन बस मुँह को देख करो
माँ के गर्भ में तो मुझको
जन्म समय तक रहने दो
कतरो मेरे ..
नहीं चाहती फल फूलों से
रोज मेरा श्रृंगार करो
नहीं चाहती धन दौलत को
मुझको निश्चित प्यार करो
मुझको मेरे दावानल में
आप अकेले दहने दो
कतरो मेरे ...
नहीं चाहती निश दिन ही तुम
चरण कमल मेरे धोओ
नहीं चाहती मंगल स्वर लहरी में
जग के पापों को रोओ
मुझको वस्तु न समझो बस तुम
मानव बन कर सहने दो
कतरो मेरे ..
दुर्गा ,काली, लक्ष्मी कहकर
मत पूजो तुम नारी को
सामाजिक ढाँचे में लेकिन
रख दो आधी पारी को
मंदिर ड्योढ़ी न मुझे सजाओ
बस सम्मान से रहने दो
कतरो मेरे ...
_नीरजा'नीरू'
लखनऊ
[08/03, 10:48 am] कवयित्री कुसुम चौधरी गंगागंज लखनऊ: अंतराष्ट्रीय महिला दिवस
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नारी तेरी अजब कहानी,कितनी
पीड़ा सहती है।
गम के प्याले हरदम पीती नहीं
किसी से कहती है।
माँ बहना ,पत्नी बन करके
रिश्ता सदा निभाती है।
सबको भोजन ताजा देकर
बासी तू फिर खाती है।
नारी तू ममता की मूरत कितनी
भोली लगती है ।
गम के -----**-------------------।
तेरे ऊपर अत्याचारों का अंबार
लगा रहता ।
अन्तर्मन में कष्टों का तेरे
शैलाब भरा रहता ।
फिर भी नहीं हारती नारी ,कुन्दन
सी तू जलती है।।
गम के ----------------------------।
रानी लक्ष्मीबाई बनकर प्राणों
का बलिदान किया।
मत पूछो अब तक नारी ने
कितना है विषपान किया।
अंध रूढियों मेंजलकरके,बलि-
बेदी पर चढ़ती है।
गम के------------------------।
जीत-जीतकर नारी हरदम-
अपनो से फिर हारी है।
सृष्टि रचयिता बनकर नारी -
,कुसुम, सदा बलहारी है।
सावित्री,अनुसुइया बनकर-
अखबारों में छपती है।
गम के----------------------- ।
डा0 कुसुम चौधरी
गंगागंज लखनऊ
[08/03, 11:17 am] कवि शिवेंद्र मिश्र मैगलगंज: अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
नारी*
नारी भगिनी औ वधू,नारी नर की शक्ति।
नारी जननी पुत्रियां, बिन नारी जग रिक्त।।
*कविता*
एक नारी जीवन मे हर पल,
संघर्ष सदा करती रहती।
बचपन से वृद्धावस्था तक,
बस घुट घुट कर जीती रहती।
वह इस दुनियाँ में आती जब,
पितु मस्तक रेखाएँ छाती।
निज नेह बांटकर अपनो को,
सबके दिल में हैं छा जाती।
आंगन में किलकारी भरकर,
सबके दुःख दर्द चुरा लेती।
रखती हर पग है फूंक फूंक,
निज-जन की मर्यादा सेती।
जीवन भर हर कठिनाई को,
बस हंसते हंसते सह जाती।
जब मां का आंगन छोड़ सदा,
अपने पति के घर को जाती।
स्वयं की समस्त इच्छाओं को,
निज अन्तर-मन में दफनाती।
जग में जब 'मां' का रुप धरे,
ममता का आँचल फैलाती।
फिर बनके तपस्या की मूरत,
उपकार अनेकों वह करती।
अपनी इच्छाओं का स्वाहा,
कर्तव्य की बेदी में करती।
पति-पुत्र, पौत्र की सेवा में,
अपना जीवन अर्पित करती।
'शिव' अनुपम कृति ये ईश्वर की,
इसकी न कोई तुलना होती।
शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'
( मैगलगंज-खीरी )
[08/03, 11:20 am] डॉ विद्यासागर मिश्रा लखनऊ: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर छन्द-
करते जो अत्याचार भारतीय नारियों पे,
उन अत्याचरियों को सबक सिखाइये।
डरिये न रंच मात्र ऐसे दुष्ट-पापियों से,
व्यभिचारियों के शीश धड़ से उड़ाइये।
नारियों की लाज पर आंच नहीं आने पाये,
देवी के समान यह इनको बचाइये।
भारतीय नारियों की लाज को बचाने हेतु,
आप भी जटायु के समान बन जाइये।।
डॉ0विद्यासागर मिश्र "सागर"
लखनऊ उ0प्र0
मो0नं09452018190
[08/03, 11:58 am] कवयित्री स्नेहलता नीर रुड़की: आप सभी को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹🌹🌹
कुंडलिया छन्द
*************
1
नारी भोली गाय है,ये मत समझो आप।
उसमें दुर्गा,लक्ष्मी,सरस्वती की छाप।।
सरस्वती की छाप, भरम मत मन में पालो।
देख सुकोमल गात,दृष्टि कुत्सित मत डालो।
'नीर' कभी वह फूल,कभी तलवार दुधारी।।
सृजन और संहार, निभाती दोनों नारी।।
2
'नारी' माँ,अर्धांगिनी,बेटी , भगनी, मित्र।
सब रूपों में सन्निहित,प्रेम भाव का इत्र ।।
प्रेम भाव का इत्र,लुटा घर स्वर्ग बनाती।
दे ममता की छाँव,सदा जीवन महकाती।।
बनिता अबला नहीं,आज वह सब पर भारी।
करो मान-सम्मान, बढ़ेगी आगे नारी।।
-स्नेहलता"नीर"
1960 प्रीत विहार रुड़की
जनपद हरिद्वार ,उत्तराखंड 267667
[08/03, 12:18 pm] कवयत्री अनामिका श्रुति सिंह नागपुर: काव्य रंगोली
महिला दिवस के अवसर पर मेरी एक कविता -
भग्न हृदय
🌹🌹🌹
नारी जीवन सदा महान
सब करते इसका गुणगान
सीता हो या सावित्री हो
जग में कर गई अपना नाम ।
आदर्श स्थापित कर ऊँचा
जग में रहना कितना मुमकिन
सीता और सावित्री को भी
था चैन कहाँ रत्ती भर लेकिन।
सतयुग हो या त्रेता हो
द्वापर या कलयुग की रात
ग्रंथ उठाकर बांचे जो
हर जगह भग्न हृदय की बात ।
कभी सुना था किस्सो में
धंस जाती एक हाथ धरा
बेटियों के जन्म लेते ही
मां-बाप का बोझ बढ़ा।
क्या शापित है नारी सदा
इस धरा का बोझ उठाने को
प्यार ,दया और निष्ठा जैसी
कोमल भाव बहाने को।
सीता सावित्री तो नहीं
यह नवयुग की नारी है
पर त्याग, तपस्या, निष्ठा तो
युग- युग की विरासत पाई है।
खुद ही बंधी रही डोर से
शाप मुक्त कैसे होगी
होगी भले ही भग्न हृदय
पर भाव रिक्त नहीं होगी।
अनामिका सिंह
चंद्रपुर, महाराष्ट्र
7990615119
[08/03, 5:22 pm] कवियित्री गीता गुप्ता 'मन' C/o पंकज सिंह
नवीपुरवा धर्मशाला रोड
हरदोई: दोहे-नारी
नारी श्रद्धा रूप है, देवी रूप समान।
ममता का भण्डार है, सदा करो सम्मान।
नारी जीवन संगिनी, देती नर का साथ।
संकट कितना हो बड़ा, नही छोड़ती हाथ।
कर्तव्यों की नींव है, वनिता बड़ी महान।
जननी बन पालन करें, प्रेम पले सन्तान।
सीता अनुपम त्याग से, वैदिक युग की शान।
नारी देविस्वरूप है,ज्ञानवान गुणवान।
है ममता ,अनुराग की, समझो नारी खान।
अबला न समझो इसे,रणचण्डी है जान।
आया संकट देश में, नारी बन पतवार।
बाँधा बेटा पीठ पर,चला रही तलवार।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
उन्नाव-उत्तरप्रदेश
[08/03, 6:49 pm] +91 85328 52618: 🍋🍓 गीतिका 🍓🍋
*************************
💧 नारी 💧
आधार- छंद-विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
समांत- आन, पदांत- है नारी
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
हमारी सृष्टि में भगवान का वरदान है नारी ।
वही बेटी वही जननी अथक पहचान है नारी ।।
बडी़ है त्याग की मूरति तपस्या जो करे सब को,
करे पय खून से पोषित सभी की जान है नारी ।
लिया जो जन्म कहते हैं पराई है चली जाये,
बनी ससुराल में आश्रित बड़ी अनजान है नारी ।
जगत की माँ प्रथम शिक्षक कराती बोध है हमको,
सिखा कर सत्य कथनों को भरे सत ज्ञान है नारी ।
बनाती सुत सुताओं को सदा ही योग्य शिक्षा दे,
बसा देती सभी के घर सुखी अरमान है नारी ।
मनाती है मनौती वह सभी संतान के सुख को,
सभी उपवास व्रत करती खुशी का दान है नारी ।
सजग ममता दिखाती है रहे खटती हमेशा वह ,
खिलाती है प्रथम हमको बचा पकवान है नारी ।
कभी सीता कभी राधा कभी अनुसूइया माता,
गढ़ी है कीर्ति सत पथ पर हमारी शान है नारी ।
बनी झाँसी महारानी नहीं मानी गुलामी थी ,
महा रणचंडिका बन के वतन का मान है नारी ।
सदा वह दम्भ को सहती बहू बेटे नहीं समझें ,
दुखी फिर भी करे चिन्ता गमों का पान है नारी ।
कहें लक्ष्मी उसे घर की अरे उसका कहाँ घर है ?
पराश्रित है सदा ही वह दुखित मुस्कान है नारी ।।
🍎🍀🌴💧🌸🌀🌺
🌴🌻...रवीन्द्र वर्मा मधुनगर आगरा
मो0- 8532852618
[08/03, 7:12 pm] कवयत्री पूनम रानी रांची: अन्तर्राष्टीय महिला दिवस पर समस्त नारी-शक्ति का वन्दन-अभिनन्दन करती चार पंक्तियाँ:---
प्रतियुग-प्रति-ब्रह्माण्ड विदित है ,
जिसकी महिमा भारी !
ब्रह्मा-विष्णु-महेश "बाल" बन,
जाते हैं बलिहारी !!
पुत्री-पत्नी-मातृ रंप में,
अति आदर अधिकारी !
सकल सृष्टि का "मूल"-
प्रकृति की,
अनुपम "कृति" है "नारी" !!
[08/03, 7:52 pm] निरुपमा मिश्रा नीरू हैदर गढ़ बाराबंकी: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतु
विषय - नारी
विधा - दोहा
नारी बिन जीवन नही, जाने यह संसार।
यही सृष्टि का रूप है, यही जगत आधार।१।
जिस घर में होता नही, नारी का सम्मान।
विपदा की पहचान है, वह घर नरक समान।२।
विषम परिस्थिति को सदा, लेती रही संभाल।
सुख का बनती आसरा, दुख में बनती ढाल।३।
इंद्रधनुष जैसे लगे, नारी के हर रूप।
माँ बहन संगिनी सुता, जीवन सरल अनूप।४।
मानवता के हित में सदा, रखना है यह ध्यान।
शिक्षित सभ्य समाज हो, नारी का सम्मान।५।
नारी के माधुर्य में, शक्ति रूप सौंदर्य।
जीवन में है संतुलन, स्नेह शौर्य एश्वर्य।६।
अपने ही परिवेश में, लाना हमें सुधार।
सुरक्षित नारी अस्मिता, मिले सभी अधिकार।७।
वाणी कर्म विचार से, करिए मत अपमान।
आहत मन नैना सजल,चुभता शूल समान।८।
रचनाकार- निरुपमा मिश्रा 'नीरू'
पता - हैदरगढ़-बाराबंकी (उ०प्र०)
मोबाइल नंबर- 8756697686
[08/03, 8:14 pm] कवि विनय कुमार बुद्ध असम: *नारी*
(विधा: चौपाई)
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बहन सुता दारा महतारी ।
नारी जगत शक्ति अवतारी ।।
पर उपकार धरा महँ आई ।
नारी महिमा बरनि न जाई ।।
जहँ नारी पाबत दुख नाना ।
सो घर होयहु नरक सामना ।।
जे नर करहि नारि अवमाना ।
काहू न अधम ताहि समाना ।।
घाट बाट घर गली लजाई ।
दुष्टन नहीं तजे कटुलाई ।।
राबण बैठहि घात लगावा ।
आपन आपन सुता बचावा ॥
बैठहु कारन कवन बिचारा ।
नारी भोगत कष्ट अपारा ।।
करहु जतन सब सज्जन भ्राता।
समय रहत चेतहु अब ताता ।।
हर घर सुता पढ़हि जब आजू ।
करहि प्रगति तब सकल समाजू।
धन्य धन्य समस्त परिवारा।
कान्धा देई बनै सहारा ।।
✒️ *विनय कुमार बुद्ध*, न्यू बंगाईगांव, असम, फोन: 9435913108.
[08/03, 9:14 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: कठिन होगी डगर लेकिन,
न तुम कभी डगमगाना।
करके दृढ़ संकल्प मन में,
पाँव को आगे बढ़ाना।
आत्म रक्षा के सभी गुण,
सीख सखियों को सिखाना।
रुक न जाना तुम ठिठक कर,
जीत कर दुनिया दिखाना।
खुद लड़ो अपनी लड़ाई,
छोड़ दो आँसू बहाना।
जो कहे कमजोर तुमको,
बल उसे अपना दिखाना।
बेड़ियाँ सब तोड़ डालो,
अपना तुम डंका बजाना।
नारियाँ भी कम नहीं हैं,
अब सभी को तुम बताना।
जिस्म को फौलाद कर लो,
भेड़ियों से डर न जाना,
कह रही 'प्रतिभा' सभी से,
लाज तुम अपनी बचाना।
प्रतिभा गुप्ता
भिलावां,आलमबाग
लखनऊ
मो-8601546171
[08/03, 9:19 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: महिला दिवस पर विशेष:
नारी में सीता बसती है।
नारी में राधा रमती है।।
नारी की अपनी गरिमा है।
नारी की अपनी महिमा है।
नारी अपने में सुषमा है।
नारी आराध्य अनुपमा है।।
नारी ममता की सागर है।
नारी करुणा की आगर है।
नारी से नर सम्मानित है।
नारी से नर अनुशासित है||
ऊषा की प्रथम अरुणिमा है।
ऋतु की मधुमास प्रियतमा है।।
चंदा की चारु चांदनी है।
संस्रति की सुभग कामिनी है।।
नारी तुम सुभग कामिनी हो!
- योगेंद्र नाथ द्विवेदी
Mobile Number 07007571382
[08/03, 9:36 pm] कुं जीतेश मिश्रा "शिवांगी": काव्य रंगोली अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन समारोह हेतु
8 मार्च महिला दिवस
कार्यक्रम प्रमुख आदरणीया सरोज दीदी के समक्ष सादर प्रेषित
शीर्षक-: हे नारी !
विधा-: कविता
नारी तुम सुंदर चित्रण हो ।
मानव जीवन के पन्नों का ।।
साहस हो शील नेह श्रद्धा ।
तुम जीती हो मुस्कानों में ।।
बुझती लौ सी आशाओं में ।
तुम प्राण फूँकती प्राणों में ।।
तुम लज्जा का श्रृंगार किये ।
अधरों पर कोमलता लेकर ।।
तुम सृजन विश्व का करती हो ।
निज आँचल में ममता लेकर ।।
तुम त्याग धैर्य की मूरत हो ।
परहित के कष्ट उठाती हो ।।
निज सुख का कर बलिदान सदा ।
विष रूप अश्रु पी जाती हो ।।
हे नारी ! तुम हो शक्ति पुंज ।
करती तुम नव निर्माण सदा ।।
निश्चित जय सदा पराजय पर ।
दुष्टों का कर संहार सदा ।।
पीड़ा को सहज ही सहती हो ।
मुख पर धारण मुस्कान किये ।।
तुम मौन का पहने भूषण हो ।
इक्षाओं का हर घूँट पिये ।।
क्या क्या लिख दूँ नारी तुमको ।
तुम हो अंनत निर्मल धारा ।।
भव्यतम रूप लघु शब्दों में ।
कैसे उकरे चित्रण प्यारा ।।
प्रकृति बिन प्रेम नहीं जीवित ।
नारी से मोल है अन्नों का ।।
नारी तुम सुंदर चित्रण हो ।
मानव जीवन के पन्नों का ।।
स्वरचित-: शिवांगी मिश्रा
धौरहरा,
लखीमपुर खीरी
[08/03, 9:37 pm] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन हेतु
एक बार चट्ट से जो टूट गया धागा कोई
आप किसी युक्ति से दोबारा जोड़ देंगे क्या?
चाक पर चढ़ा, बना और फिर पक गया
देख कुदरूप बार-बार फोड़ देंगे क्या?
धार सरिता की तेज बहे निज वेग में ही
आप जहाँ चाहे वहाँ वैसे मोड़ देंगे क्या?
बेटी हो हमारी,आपकी हो या किसी की भी हो
उसे सरकार के सहारे छोड़ देंगे क्या?
~शाश्वत अभिषेक मिश्र
[08/03, 10:27 pm] कवि ओंकार त्रिपाठी दिल्ली बाय राजीव पाण्डेय जी: *काव्य रंगोली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतू।*
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।
जो जननी बन सन्तानों को अमृत सा पय-पान कराती।
सुर्य किरण बन जो अग-जग को ज्योति सरोवर में नहलाती।
जिसकी परछाईं दुलार है जिसकी ममतामय पुकार है
जो नारी दिग्भ्रमित मनुज को हर पल हर क्षण राह दिखाती।
जो कश्ती है स्वयं आज वह डूब रही क्यों बीच धार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।
नारी के शोषण की गाथा दिल को दहलाने वाली है।
आज प्रभा के आनन पर क्यों छाई सघन घटा काली है।
सीता-सावित्री के कुल पर क्यों है विपदाओं का साया।
रस की नदी आज नीरस है क्यों मधु की प्याली खाली है।
आज भरी है किसने पावक, नारी मन के तार-तार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।
कहीं पुरुष द्वारा शोषित है कहीं सास के व्यंग सताते।
बिन दहेज के क्यों नारी तन ज्वाला में झुलसाये जाते।
पत्थर शिला समझकर उसको क्यों ठोकर मारी जाती है।
क्यों न अहिल्या के चरणों में रघुवर फिर से शीश झुकाते।
नारी है मधु ऋतु की रानी फिर भी व्याकुल है बहार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।
पुरुषों ने नारी के तन को केवल एक खिलौना माना।
गौतम ने कब यशोधरा सत्य कहो पूरा पहचाना।
नारी सिर्फ समर्पण वश ही बनती नर की अंक शायिनी।
रूप शमा पर जलने को आतुर रहता है हर परवाना।
लय माधुरी बसानी होगी फिर से सांसों की सितार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।
नारी को वर्चस्व चाहिये फिर से पुरुषों के समाज में।
एक प्रबल स्वर लहरी बनकर फिर वह गूंजे सुप्त साज में।
नारी श्रद्धा और लाज की जग में रही सहचरी अब तक।
उसे सजाना होगा फिर से हमको गौरव भरे ताज में।
नारी जय की परिचायक है लेकिन कुण्ठित रही हार में।
दीप शिखा सी जलती नारी फिर भी है क्यों अन्धकार में।
ओंकार त्रिपाठी,
दिल्ली
@सर्वाधिकार सुरक्षित
[08/03, 10:48 pm] Nr 21 शालिनी तनेजा: *काव्य रंगोली अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतू।*
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"नारी" - तू खुद ही सक्षम
नारी तू खुद ही सक्षम है
नव अंकुर तुझ में मुस्काता
जग क्या देगा अधिकार तुझे
जब तु ही जग की निर्माता
झलक तेरे सार्मथ्य की
उस पल भी जग ने देखी थी
लक्ष्मीबाई के रुप में
जब तु हम सब के सम्मुख थी
कभी-कभी सम्मुख ना आकर भी
तुने सार्मथ्य दिखाया है
तेरी ही शिक्षा से शिवाजी सा
शासक इस राष्ट्र ने पाया है
राष्ट्र भक्ति की पाराकाष्ठ
तब भी जग ने देखी थी
असाधारण बलिदान तु जब
पन्ना बनकर, कर बैठी थी
नारी के हर रुप में तु
पुरुर्पों का संबल बनती है
फिर क्यों महिला सशक्तिकरण की
बात ये दुनिया करती है?
स्वरचित-
शालिनी तनेजा (दिल्ली +91 9654861075)
[09/03, 8:12 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस को समर्पित नौ दोहे!🙏
अटल सत्यवादी रहे , हरिश्चंद्र महाराज !
पत्नी शैव्या पुत्र की दे,बलि जिसके काज !!
अग्नि परीक्षा दें सिया,फिर भी हो वनवास!
रामराज्य के लिए भी , सीता सहतीं त्रास !!
पीड़ित है अपनी सुता, मां को आया ध्यान !
फटा हृदय तब भूमि का, मिला वहीं स्थान।
चंद दिनों की प्रीत थी,वर्षों का अवसाद !
हुए द्वारकाधीश तुम , राधा सहे विषाद!!
लगे द्रोपदी दांव पर , द्यूत बने जब धर्म !
धर्मराज के धर्म का, जाने क्या था मर्म !!
यशोधरा के प्रश्न का, उत्तर दो हे बुद्ध!
भागे थे क्यों छोड़कर,ये जीवन का युद्ध!!
राहुल का अपराध तो,कुछ बतलाओ आज!
पितृ धर्म से विमुख हो ,आयी ना क्यों लाज!!
आज जशोदा बेन भी,भुगत रहीं वनवास!
नारी ही क्यों सदा ही , सहे पुरुष का त्रास !!
युगों युगों से जो हुआ , अनुचित अत्याचार !
क्या अनुचित जो अब करे,नारी भी प्रतिकार !!
श्रीकांत त्रिवेदी, लखनऊ
[10/03, 9:48 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021काव्य सृजन समारोह हेतु
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दिन-रात मैं खटती रहती हूं
मेहनत से नहीं डरती हूं
बस एक दिवस से क्या होगा
सारे दिवस तो मुझसे हैं ।
मेरे बिना क्या जीवन होगा
मेरे बिना धरती सूनी है
कण कण में है मेरा बसेरा
मैं हूं तो हरियाली है ।
कदम मिलाकर चलें आज से
महिलाओं के संग
स्वर्ग सी सुंदर दुनिया होगी
होंगे प्यार के रंग ।
@ महेंद्र जोशी
नोएडा
9818198456
[10/03, 10:20 am] नीरज अवस्थी काव्य रंगोली: काव्य रंगोली अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2021 काव्य सृजन समारोह हेतु
हे नारी का अभिमान जगो,
रण की भीषण हुंकार जगो।
कल नही तुम आज जगो,
हाथों में लेकर तलवार जगो।।2।।
जगना हैं तो बस आज जगो,
माँ पद्मिनी की आन जगो।
लक्ष्मीबाई की ललकार जगो,
ले एक नया इतिहास जगो।।2।।
तुमको तो अब जगना होगा,
यह समर तुम्हें लड़ना होगा।
यदि आज नहीं तो कब होगा,
हे नारी अब न कल होगा।।2।।
अब न त्रेता, द्वापर युग होगा,
न राम कृष्ण का युग होगा।
पांचाली अब खुद लड़ना होगा,
अब केश रक्त से धुलना होगा।।2।।
हे नारी अब तुम संधान करो,
ये वार तुम अंतिम बार करो।
रण भीषण अबकी बार करो,
यह रण ही अंतिम बार करो।।2।।
~कुमार नमन
लखीमपुर-खीरी