होली 2021 आशुकवि नीरज अवस्थी

 



 बसंत   एवम्  होली   

आशुकवि नीरज अवस्थी - KAVYA RANGOLI - https://kavyarangoli.page/article/aashukavi-neeraj-avasthee/ofOlBQ.html

माघी पूर्णिमा 28 फरवरी 2021
कविता लिखने से कभी लिख ना पाया गीत।
मातु शारदे की कृपा से लिख जाते गीत।1
खण्ड काव्य भी रच दिए समय हुआ अनुकूल।
एक पंक्ति में फंस गए गए व्याकरण भूल।2
नित्य सृजन साहित्य का करते सुकवि सुजान।
जैसे धरती शीश पर धरे शेष भगवान।3
जो जन्मा है जगत में,उसका होगा अंत।
सदा आपके ह्रदय में बीते सुखद बसन्त।। 4
नीरज नयनो से करूँ वन्दन बारम्बार।
हंस वाहिनी की कृपा बरसे अपरम्पार।।5
आशुकवि नीरज अवस्थी 2021

फाग महोत्सव
आज से  आपको नित्य ही एक नया छंद प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा यह पूरे माह चलेगा रात 10 बजे स्टेटस में।

देवर-भौजी,जीजा-साली, सरहज ते मनुहार।
फागुन में आ गले लगाऊं हो जाओ तैय्यार।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

लाल लाल मुंह हमने रंगा, खा कर मीठा पान।
लाल लाल मुंह हमने रंगा, खा कर मीठा पान।
भर पिचकारी तेरे मेरी ओ मेरी दिलजान।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

पेड़ आम के लदे बौर से महके डाली डाली।
पेड़ आम के लदे बौर से महके डाली डाली।
हर प्राणी के जीवन मे हो जबरदस्त दससाली।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

पत्नी बिल्कुल नीकि न लागय जैसे डेली ड्यूटी।
पत्नी बिल्कुल नीकि न लागय, जैसे डेली ड्यूटी।
सारी सरहज मन का भावे, जैसे पेरिस ब्यूटी।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दादा तो परदेस बसे है,घरे अकेली भौजी।
दादा तो परदेस बसे है,घरे अकेली भौजी।
लरिकन का टॉफी पकराई, बिस्कुट अउजी,अउजी।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दुष्ट कोरोना पलटी मारे,
रंग फ़ाग सब फीका।।
दुष्ट कोरोना पलटी मारे,
रंग फ़ाग सब फीका।।
घर के लरिका मरे जाय,
ठेलुहन का बाटे टीका।
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
आशुकवि नीरज अवस्थी

अबकी होली मा परिगा परधानी क्यार चुनाव।
अबकी होली मा परिगा परधानी क्यार चुनाव।
हरिजन सीट भई तो बड़े बड़ेंन कि बूड़ी नाव।
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
आशुकवि नीरज अवस्थी


होली का त्योहार मनावै,दारू पी कै लल्लू।
होली का त्योहार मनावै,दारू पी कै लल्लू।
अपनी इज्जत खुदै गवावै बने काठ के उल्लू।
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
जोगीरा सारारारारा
आशुकवि नीरज अवस्थी


घर घर पापड़ चिप्स बने है,हमरे घर मा कचरी।
घर घर पापड़ चिप्स बने है,हमरे घर मा कचरी।
महगाई की मार पर रही, ताल भवा घर बखरी।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

लाल लाल हैं गाल तुम्हारे, उजली उजली खाल।
लाल लाल हैं गाल तुम्हारे, उजली उजली खाल।
पतली कमर छिपकली जैसी ,नैना बने रसाल।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

निजीकरण का चल रहा है भारत मे जोर।
निजीकरण का चल रहा है भारत मे जोर।
योगी मोदी ठीक है बाकी दिखते चोर।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दाढ़ी लम्बी हो रही जाने क्या है राज।
दाढ़ी लम्बी हो रही जाने क्या है राज।
चिड़िया कुछ समझी नही क्या कर देगा बाज।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

नीक मीठ पकवान बनाओ खाओ ओर खिलाओ।
नीक मीठ पकवान बनाओ खाओ ओर खिलाओ।
अपने अपने आइटम के घर होली खेलै जाओ।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

पंचायती चुनाव आ गए,गुणा भाग का दौर।
पंचायती चुनाव आ गए,गुणा भाग का दौर।
पांच साल मा पेटु भरा ना ये दिल मांगे मोर।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

न्यायालय आदेश आ गया,प्रत्याशी बिल्लाय।
न्यायालय आदेश आ गया,प्रत्याशी बिल्लाय।
संशोधित आरक्षण सूची सीट बदल ना जाय।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

साली सरहज भाभियाँ हमसे रहती दूर।
साली सरहज भाभियाँ हमसे रहती दूर।
यह रिश्ते मस्ती भरे मौज लेव भरपूर
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा



फगुआ भौजी के लिए साली जी को नोट।
फगुआ भौजी के लिए साली जी को नोट।
आवे सरहज सामने मनवा लोटमपोट
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

होली में हो हँसी ठिठोली,नेह प्रेम की बोली।
होली में हो हँसी ठिठोली,नेह प्रेम की बोली।
प्यार मोहोब्बत से दिल जीतो छोड़ो लाठी गोली
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

मुझे भुलाने वालों तेरी याद बहुत है आई।
मुझे भुलाने वालों तेरी याद बहुत है आई।
अता पता सन्देश नही मिसकाल क्यो नही आई
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

साली जीजा से करे,अनुपम सच्चा प्यार।
साली जीजा से करे,अनुपम सच्चा प्यार।
सरहज धोखेबाज से रहो सदा हुशियार।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा


हमरे भौजी एकौ नाही,केहिके रंग लगाई।
हमरे भौजी एकौ नाही,केहिके रंग लगाई।
मेहरी कि भौजी लिफ्ट न देती,कहौ कहाँ मरिजाई।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा


जिसके घर मे दुःख दरिद्र हो उससे नाता रखना।
जिसके घर मे दुःख दरिद्र हो उससे नाता रखना।
बड़े आदमी होकर दुखियो के भी संकट हरना।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा
आशुकवि नीरज अवस्थी

राधा कृष्ण बाल योगेश्वर जैसा करिए प्यार।
राधा कृष्ण बाल योगेश्वर जैसा करिए प्यार।
जिसने याद किया दुख में पहुंचे करुणा अवतार।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

दुश्मन से कर प्रीति पर, मत करना विश्वास।
दुश्मन से कर प्रीति पर, मत करना विश्वास।
बूढ़ा भूखा भेड़िया नही करेगा घास।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

इस होली में दारू भांग नशे को देना त्याग।
इस होली में दारू भांग नशे को देना त्याग।
अपने जामा में रहकर लूटो फगुई का फाग।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

हमरी भौजी याक सुनीता सुकलाइन है टॉप।
हमरी भौजी याक सुनीता सुकलाइन है टॉप।
पछपन की है उमर मगर लगती है लल्लनटॉप।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा


रानी ऊषा निशा प्रभाती कुन्नी बबली डाली।
रानी ऊषा निशा प्रभाती कुन्नी बबली डाली।
बसी वन्दना मम नैनो में हाय रंजना साली।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

सोना मोना शिल्पी लाली शशीकला ओ पुतली,
सोना मोना शिल्पी लाली शशीकला ओ पुतली,
चन्द्रप्रभा पत्तो परभतिया, हमरी साली असली।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

फाग महोत्सव 28 मार्च 2021नित्य एक नया छंद
प्रियम आरती स्वीटी रानी हमसे रहती दूर।
प्रियम आरती स्वीटी रानी हमसे रहती दूर।
होली में भी मुंह ना बोली खट्टे है अंगूर।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा
आशुकवि नीरज अवस्थी

मेरी प्यारी सरहज मधु है ज्योति करे प्रकाश।
मेरी प्यारी सरहज मधु है ज्योति करे प्रकाश।
टोनी भाई लाल विदुर साले लोगन ते आस।।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा

फाग महोत्सव 29 मार्च 2021नित्य एक नया छंद
इस होली में बाइस महिने का है सबका श्याम।
इस होली में बाइस महिने का है सबका श्याम।
मेरे सारे दुःख दर्दो को जिसने दिया विराम।
जोगीरा सा रा रा रा रा,
जोगीरा सा रा रा रा रा
जोगीरा सा रा रा रा रा
आशुकवि नीरज अवस्थी

राम कृष्ण दुर्गा सहित, गौरी शंभु सुजान।
गणपति की कर वन्दना धर शारद का ध्यान।
इस होली नव वर्ष में मेरी विनती मान।
जिनको हमसे प्रेम है, उनका हो कल्याण।
होली में बोले नही,जिनको अति अभिमान।
वह मेरे संसार से होये अंतर्ध्यान।।
आशुकवि नीरज अवस्थी


मुक्तक ...
मुझे पग पग मिला धोखा, सहारा किस को समझूँ मै.
डुबाया हाथ से किश्ती, किनारा किस को समझूँ मै.
जो मेरे अपने थे, वो काम जब, आये नहीं मेरे..
तो तुम तो गैर हो, तुमको दुलारा कैसे समझूँ मै.
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950       

इस होली में वह मिल जाये, जो बचपन मे खेली थी।
रीति प्रीति की मिलन बिछड़ना प्रीती एक पहेली थी।
बीस साल से खोज रहा हूँ कितनी हेली मेली थी।
दिल्ली में मिल गयी अचानक अब तक नई नवेली थी।।
आशुकवि नीरज अवस्थी

     
होली जलती दिलो में भस्म हो गया प्यार।
मेल मिलन की है बहुत ही ज्यादा दरकार।।
दूरी इतनी बढ़ गई ,जैसे धरती चंद।
इसी लिए फीकी लगी अग्नि होलिका मंद।
अग्नि होलिका मंद, तो,कैसे जले विषाद।
खाने में पकवान है,नही मिल रहा स्वाद।
द्वेष भावना का शमन करिए कृपा निधान।
मंगलमय होली रहे यह दीजै बरदान।
आशुकवि नीरज अवस्थी

अटल विश्वास हो भगवान पर तो काल भी टलता।
लगाया नेह था प्रह्लाद ने फिर किस तरह जलता।
वो फ़ायरफ़्रूफ़ लेडी जल गई भगवान की माया,
कभी उसकी इजाजत के बिना पत्ता नही हिलता।।
आशुकवि नीरज अवस्थी

बहुत कविताये है लेकिन यह मुक्तक सबसे अलग है ईश्वर पर भरोसा रखते हुए अटूट श्रद्धा रखिये उससे ऊपर कोई नही।होली की अशेष बधाइयां
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


दिलों में प्रेम की गंगा बहाने आ रही होली.
सभी शिकवे गिलों को दूर करने आ रही होली.
धरा से दूर होती जा रही सर्दी कड़ाके की ,
सभी के उर मे अति स्नेह को उपजा रही होली..

अगर अपना कोई रूठे,तो झट उसको मना लेना.
बिगड़  जाए कोई  रिश्ता तो झट ,उसको बना लेना.                                                                          नयन में नीर नीरज के,अमित अविरल असीमित है.
अगर मिल जाउ होली मे , गले मुझको लगा लेना     
2-किसी को याद कर लेना, किसी को याद आ जाना ,
बड़ा रंगीन है मौसम हमारे पास आ जाना. 
सभी  बागों मे अमराई है, मौसम खुशनुमा यारों,
कसम तुमको है"प्रीती"तुम मेरे ख्वाबों में आ जाना.
                                               
   
दिल के बागों में प्रीति पुष्प खिला कर देखों 
नेह  का रंग अमित प्रेम लुटा कर देखो..                            
तेरी यादें  मुझे लिपटी है अमरबेलों सी,
होली आती है मुझे फ़ोन लगा के देखो.. [5]    
                    
तेरे चेहरे को रंगदार बना सकता हूँ,। तुझको मे अपना राजदार बना सकता हूँ ।
दुनियाँ  की भीड़ में तुम खो गये,अकेले हम , 
जो मिले गम उसे मे यार बना सकता हूँ,, [6]     

गोरे गालों को न बदरंग  करो,
प्रीति के रंग को न भंग करो.
ये तो शालीन पर्व मिलने का ,
भूल कर इसमे ना हुड़दंग करो.[7] 

दुश्मनों को गले लगाते हैं,
प्रीति के गीत गुनगुनाते है,
नेह  रुपी गुलाल हाँथो से,
प्रीति के रंग हम लगाते हैं.. [8]     

दुख शोक परेशानी सारी,होलिका अगिन में जल जाए..                                  
सब बैर भाव बदरंग त्याग सब जन मन माफिक फल पाए.
घर घर मे प्यार अपार रहे,जन जन में भाईचारा हो.
दुश्मन भी आकर गले मिले ऐसा ब्यवहार हमारा हो .-

(9)

जिस जिस भाई बहनों ने होली की बधाई संदेश भेजे उनको मेरी चन्द पंक्तियां समर्पित है--💐💐

             आभार गीत

जिसने भी हमको भेजी होली की मित्र बधाई।
मेरे दर्द भरे मन में खुशियों की हवा चलाई।
उनके लिये प्रार्थना है वह बहने हो या भाई।
इसी वर्ष उनकी शादी हो बजे खूब शहनाई।।

जिनका है परिवार बस गया उनके होये बच्चे।
बिल्कुल मेरे तेरे जैसे सारे जग से अच्छे।
मैं भावुकता में बहता हूँ तुम मेरी परछाईं।
दुआ हमारी घर में सबके प्रतिदिन बटे मिठाई।

हर दिन होली के जैसा हो रात बने दीवाली।
जीवन के हर एक कोने में दिखे सिर्फ खुशहाली।
सुख समरद्धि विजय की धुन है कानो से टकराई।
सबका मैं आभारी हूँ जिस ने भी दिया बधाई।।

                     
दिल के बागों में प्रीति पुष्प खिला कर देखों 
नेह  का रंग अमित प्रेम लुटा कर देखो..                             तेरी यादें  मुझे लिपटी है अमरबेलों सी,
होली आती है मुझे फ़ोन लगा के देखो.. [5]    
                    
तेरे चेहरे को रंगदार बना सकता हूँ,। तुझको मे अपना राजदार बना सकता हूँ ।
दुनियाँ  की भीड़ में तुम खो गये,अकेले हम , 
जो मिले गम उसे मे यार बना सकता हूँ,, [6]     

गोरे गालों को न बदरंग  करो,
प्रीति के रंग को न भंग करो.                                                                   ये तो शालीन पर्व मिलने का ,
भूल कर इसमे ना हुड़दंग करो.[7]    
                                                  दुश्मनों को गले लगाते हैं, प्रीति के गीत गुनगुनाते है,                                                                            नेह  रुपी गुलाल हाँथो से,प्रीति के रंग हम लगाते हैं.. [8]     

जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।1
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.2

बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 3
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 4    
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950

                                                                                   बसंत में---------                                                                                                नीबू के फूल महके,है ,देखो बसंत में.
अमराई बौर की, है जी देखो बसंत में.
नव कोपले पेड़ो  में, है निकली  बसंत में .
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में.
मधुमक्खियों के छत्ते शहद से भरे हुए,
उनके बेचारे बच्चे भूख से मरे हुए.
कंजड़ के हाथ अमृत देखो बसंत में.
पतझड़ सा मेरा जीवन, देखो  बसंत में. 
सरसों की पीली पीली चुनरिया उतर गई.
गेहू की बाली खेत में झूमी ठहर गई.
गन्ना लगाये देखो ठहाके बसंत में..
पतझड़ सा मेरा जीवन ,देखो  बसंत में. 
लव मुस्कुरा रहे है दर्दे दिल बसंत में,
मिलाता नहीं है कोई रहम दिल बसंत में,
बस अंत लग रहा हमें नीरज बसंत में,.
पतझड़ सा मेरा जीवन देखो  बसंत में. 
30 वर्षो से यह वन्द आज बन्द हो गया 23 मई 2020
चिड़ियों की चहचहाना है किलकारियाँ नही,
होली का पर्व सर पे है , पिचकारियाँ नही..
सूना है घर दुवार नौनिहाल के बिना,
मनमीत बिना प्रीति के तड़पे बसंत मे ..
पतझर सा मेरा जीवन देखो बसंत में[५]''
भगवान के खेलों को तो भगवान ही जाने।
भगवान भरोसे को बहुत ठीक से जाने
वारिस मेरा है श्याम पुत्र बाप की तरह,
नीरज खुशी के सिंधु में डूबे बसन्त में।
आशुकवि नीरज अवस्थी
.....................................आप सभी का सादर आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

होली पर आप सभी को चंद पंक्तियाँ अग्रिम समर्पित करता हूँ..---------------

       होली पर कविता
भारत की नारियां सभी हो राधिका के तुल्य,
मानंव हो जैसे वासुदेव कृष्ण श्याम से।।
कष्ट कट जाये दुःख दूर रहे जिंदगी से,
प्यार से मनाये होली दूर रहे जाम से।।
रंग रंग से रंगो कुरंग से बचो सदा,
लुटाते रहो प्रीती का गुलाल सुबह शाम में।
देश की अखण्डता व् एकता सलामती हो,
नीरज की एक ही प्रतिज्ञा प्रण प्राण से।
💐💐💐💐💐💐💐💐

 बसंत   एवम्  होली     
जब बसंत का मौसम आया ऐसी हवा चली। 
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..।। 
नयी कोपले पेड़ और पौधो पर  हरियाली.
उनके मुख मंडल की आभा गालो की लाली.। 
चंचल चितवन उनकी नीरज खोजै गली गली।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली।
कोयल कूकी कुहू कुहू और पपिहा पिउ पीऊ , 
अगर न हमसे तुम मिल पाई तो कैसे जीऊ।
मै भवरा मधुवन का मेरी तुम हो कुंजकली ।।
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.
बागन में है बौर और बौरन मां  अमराई 
कामदेव भी लाजै देखि तोहारी तरुनाई ,
तुमका कसम चार पग आवो हमरे संग चली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली.. 
हरी चुनरिया बिछी खेत  में सुन्दर सुघड़  छटा । 
नीली पीली तोरी चुनरिया काली जुल्फ घटा ।
आवै फागुन जल्दी नीरज गाल गुलाल मली.
लगा झूमने उनका यौवन हर एक कली खिली..     
आशुकवि नीरज अवस्थी
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950

होली 2021 सभी को कल्याणकारी ओर प्रसन्नता दायक हो-
*प्रतिदिन प्रतिपल नवसंवत का,
तुमको मंगलकारी हो ।*
*घर आंगन द्वारे खेतों तक ,
*खुशियों की फुलवारी हो ।*
*मीत प्रीति की रीत यही है ,*
*अमित अगाध नेह बांटो,*
*दो हजार इक्किस की होली,*
*सबको ही सुख कारी हो।*

*वात्सल्य देवर भाभी का,*
*युगो युगो तक बना रहे।*
*लता सहारा हरदम पाए ,*
*तना हमेशा तना रहे ।*
*जीजा साली के रिश्तो की ,*
*मर्यादा गुमराह न हो,*
*हर रिश्तो में जन जन का,*
*विश्वास अलौकिक बना रहे।।*

आशुकवि नीरज अवस्थी
प्रबन्ध सम्पादक काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका
संस्थापक अध्यक्ष
श्याम सौभाग्य फाउंडेशन
पंजी ngo
खमरिया पण्डित खीरी
9919256950

कमर तोड़ महंगाई मे, त्योहार मनाना मुश्किल है.
दुशमन बाँह गले मे डाले जान बचाना मुश्किल है,
खोया पहुचा आसमान,पकवान बनाना मुश्किल है.
दारू तौ है महँगी, अबकी भाँग पिलाना मुश्किल है;[२]
नेता अइहै द्वारे-द्वारे चाय पिलाना मुश्किल है.
गन्ना भी अनपेड बिका कपड़ा बनवाना मुश्किल है;[३]
विरह वेदना अगनित पीड़ा मिलन प्रीति का मुश्किल है.
होली का त्योहार प्रीति की रीति निभाना मुश्किल है;[४]

आप सब का अपना ही ---आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

जिसने भी हमको भेजी होली की मित्र बधाई।
मेरे दर्द भरे मन में खुशियों की हवा चलाई।
उनके लिये प्रार्थना है वह बहने हो या भाई।
इसी वर्ष उनकी शादी हो बजे खूब शहनाई।।

जिनका है परिवार बस गया उनके होये बच्चे।
बिल्कुल मेरे तेरे जैसे सारे जग से अच्छे।
मैं भावुकता में बहता हूँ तुम मेरी परछाईं।
दुआ हमारी घर में सबके प्रतिदिन बटे मिठाई।

हर दिन होली के जैसा हो रात बने दीवाली।
जीवन के हर एक कोने में दिखे सिर्फ खुशहाली।
सुख समरद्धि विजय की धुन है कानो से टकराई।
सबका मैं आभारी हूँ जिस ने भी दिया बधाई।

आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950

होली 2021

 हम किसी भी  त्योहार पर रोना नही रोना चाहते लेकिन कमर तोड़ महंगाई और पंचायत चुनाव के परिप्रेक्ष्य में चन्द लाइने देखे।


कमर तोड़ महंगाई मे, त्योहार मनाना मुश्किल है.

दुशमन बाँह गले मे डाले जान बचाना मुश्किल है,

खोया पहुचा आसमान,पकवान बनाना मुश्किल है.

दारू तौ है महँगी, अबकी भाँग पिलाना मुश्किल है;[२]

नेता अइहै द्वारे-द्वारे चाय पिलाना मुश्किल है.

गन्ना भी अनपेड बिका कपड़ा बनवाना मुश्किल है;[३]

विरह वेदना अगनित पीड़ा मिलन प्रीति का मुश्किल है. 

होली का त्योहार प्रीति की रीति निभाना मुश्किल है;[४]


आप सब का अपना ही ---आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार पूनम यादव,वैशाली (बिहार )

 मेरा  परिचय 


पूनम यादव 


जन्म - 15/08/1994


पिता - श्री प्रभु प्रसाद यादव 

माता - अनिता राय



शिक्षा - स्नाकोतर (जन्तु विज्ञान )

कम्प्यूटर  (adca)


राष्ट्रीय साहित्यिक (राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान, आचार्य रामचंद्र शुक्ल साहित्य  सम्मान  एव the pen club सम्मान ,  व  अन्य संस्थान से वाद विवाद प्रतियोगिता, निबंध लेख प्रतियोगिता, कबड्डी प्रतियोगिता  , संगीत प्रतियोगिता, गोला फेंक, बैडमिंटन, लम्बी कूद प्रतियोगिता से सम्मान प्राप्त इत्यादि!


शौक -  विज्ञान एवं साहित्य की किताबें पढ़ना!


रूचि ~  कविता लिखना ।


बिहार पटल प्रभारी - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान(रजिं) ,भारत


पता - सदापुर महुआ 

पोस्ट - महुआ , थाना - महुआ 

जिला - वैशाली ,

पिन - 844122        

Whatapps - 8434357256

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शीषर्क - बेईमानी का धुंआ 





तेरे ही बेईमानी का धुंआ जो निकला, फैला हर परिवेश में।

तभी तो भष्टाचार की आग लगी है, आज हमारे देश में।


ये लपटें बढ़ रहे है ऐसे, जिसे रोक लेना अब आसान नही ।

केवल सच का करें प्रदर्शन, आज वैसा हिन्दुस्तान नही ।


कहना तो मुमकिन बहुत है, पर कर लेना कोई खेल नही ।

जब नियम बनाने वाले ही स्वयं नियम को सकते झेल नही ।


आज स्वयं लुटेरा बन बैठा, जब संचालक इस देश का ।

तो कौन करेगा फैसला , न्याय सहित इस केस का ।


आज टूट रहा ये मुल्क हमारा, इन नेता ओ की  ताना तानी से।

रक्षा करना है हमें देश की, इन लोगो के भष्ट मनमानी से ।


आज धिक्कारती हर महल तुम्हारी मत भर मुझको बेइमानी से ।

अब भी वक्त है संभलो यारों, यही विनय है हर हिन्दुस्तानी से।


ना हो मातृभूमि की सेवा तो तुम चुपचाप ये कह देना ।

पर बंद करो तुम सब ऐसे गद्दारो जैसा  सह देना ।


इस गद्दारो के आवारापन से ,भारत का   

नीवं यदि हिल जाएगा ।

जरा भान रहे सम्मान देश का मिट्टी मे मिल जाएगा ।


पूनम यादव 

वैशाली जिला से




गीतिका

लिख सकू तो, मैं आ कुछ बेहिसाब लिखॅ दु।

हो पढ़ने लायक कुछ ऐसा किताब लिख दु।

जाग उठे पुरी दुनिया सच के अंदाज में

दिल के कोने-कोने मे, मै वो इंकलाब लिख दु।


इस धरती से हो जाए झूठ का सर कलम

पूरी दुनिया मे, मै सच्चाई का सैलाब लिख दु।


बहुत जलजले है, जिस दुनिया मे हम पले है 

सारे प्रश्न का मुहब्बत ही एक जवाब लिख दु।


उतरने लगा है कोई दिल की गहराई में

दर्द से भरा दिल है ये खबर तुझे महताब लिख दु।


बलिदान हो मेरी खुशियाँ किसी और के खातिर 

खुद को हराकर उन्हे जीत का खिताब लिख दु।


पर्दे डालकर सच छुपाने से क्या फायदा 

लिख सकू तो सच को बेनकाब लिख दु।


छुप जाए सच कभी न हो पाए उजागर 

गलतफहमी मे न मैं कोई दवाब लिख दु।


हर आॅखे जी रहे है, आँसुओं में डूबकर 

बुझते दिल में मैं पूनम कोई ख्वाब लिख दु।


पूनम यादव 

वैशाली जिला से



पानी और रंगो ने अपनी दिल खोली।

 ये रगं गुलालों की अपनी हमजोली ।

घर घर निकल पड़ी दोस्तो की टोली 

चलो हम सब मिलकर मनाये होली ।

  

होली की हार्दिक बधाई 

पूनम यादव


तु पड़ जितना भी काटों, पर मुझे उड़ान बनना है।

मेरा जिद एक ही है , बस मुझे महान बनना है।


पुरे विश्व में ये देश मेरा एक अलग परचम लहराये

भारत माँ के आँचल का वही सम्मान बनना है।


अधिकार मांगो ठीक है पर फर्ज भी भुलो नही 

इसी उद्देश्य के लिए हमे जन उत्थान बनना है।


हर दिल में उतर जाऊ मैं,जाग्रति

आगाज लेकर 

हमें पूरे विश्व पटल पर एक नई पहचान बनना है


तु पड़ जितना भी, ,,,,,।

मेरा जिद एक ही,,,,,,,।

पूनम यादव, वैशाली  (बिहार )



शीषर्क -भारत छोड़ो देशद्रोहीयो 


भारत छोड़ो देशद्रोहीयों तेरा आखिरी वांरट ये जारी है ।

बहुत देखे कारनामें तेरे बहुत सह ली हमने गद्दारी है।


अरे बहुत चला ली घर हमने अब देश चलाना बाकी है ।

भारत के चप्पे-चप्पे में जब फैल चुकी तेरी चालाकी है।


भारत है ये देश हमारा जाग उठी इस देश की नारी है।

छुपो मत बाहर निकलो जो जो भी वतन व्यापारी है।


तुम जैसे भष्ट बईमानो से तो हम बच्चे भी हुए प्रभावी है।

क्या दशा बना दी भारत की जिस भारत के हम भावी है।


देश के ऐसे लुटनहारो का बहुत जरूरी यह गिरफ्तारी है।

यदि भारत की सरकार चुप तो आज ये आदेश हमारी है।


पूनम यादव, वैशाली  (बिहार )



रघुकुल तिरंगा 


मेरे मन में एक ही  शोर हो।

राम नाम की गुंज चहुँओर हो।


मेरे मन में एक ही मोड़ हो।

रे मन राममय भक्ति विभोर हो ।


वही है मझधार के कोर हो।

रे मन नदियाँ बही बिजोर हो।


ले लो डुबकी छूटेगी सब पाप हो।

राममय नदियाँ है पुण्य का धाम हो।


जोड़ दो मन के मेरे भी तार हो।

उनकी चरणों की कृति अपार हो।


मेरे मन भी भवसागर से पार हो।

कर दो मृत्यु से  मेरा उद्धार हो।


जिसके संग लक्ष्मण जैसा भाई हो।

धन्य धन्य वह वीर रघुराई हो।


श्रीराम की भक्ति जिसने पाई हो।

धन्य वह जो भजता प्रभुताई हो।  


जो प्रेम भक्ति आनन्द का झंडा हो।

जिसमे लक्ष्मणरूपी भावुक डंडा हो।


जिसके संग परम पतिव्रता स्नेही हो।

जिसके प्राणप्रिया सीता वैदेही हो ।


जो परम धमज्ञ गुणी संगा हो।

धन्य-धन्य यह रघुकुल तिरंगा हो।


पूनम यादव,वैशाली  (बिहार )


8434357256


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार तिवारी "मक्खन" झांसी उ.प्र.

 पं.राजेश कुमार तिवारी  " मक्खन"

कवि / साहित्यकार

एम. ए.(संस्कृत ) बी. एड.

जन्म तिथि 1/12/1964

पता : टाइप 2/528 बी एच ई एल 

आवास पुरी भेल झांसी ( उ. प्र.)

सम्प्रति : जिला परिषद इण्टर कालेज भेल झांसी

मो. व वाट्सेप नं. 09451131195

पिता : श्री मनप्यारे लाल तिवारी

माता : श्री मति कौशिल्या देवी 

जन्म स्थान : ग्राम पिपरा पो . बघैरा जि. झांसी 

विधा :कविता ,गीत ,गजल ,हास्य, व्यंग अनेक पत्र, पत्रिकाओं में प्रकाशित ,आकाश वाणी से प्रसारित , कुछ चैनलों से प्रसारण अनेक मंचों पर काव्य पाठ एवं समाचार पत्र व मासिक पत्रिका का सम्पादन ।विशेषांक आदि ।

समीक्षा : तपस्विनी ( उपन्यास , लेखक सत्य प्रकाश शर्मा , सानिध्य बुक्स प्रकाशन नई दिल्ली )

सम्बन्ध : मंत्री ,सत्यार्थ साहित्य कार संस्थान झांसी 

               महा मंत्री , कवितायन साहित्य संस्था झांसी

               सचिव , नवोदित साहित्य कार परिषद भेल झांसी

               उपाध्यक्ष , प्रगतिशील साहित्य संस्था झांसी

सम्मान : ( निम्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है )

१. सत्यार्थ साहित्य कार संस्थान झांसी

२. कवितायन साहित्य संस्थान झांसी

३. सरल साहित्य संस्थान झांसी

४. निराला साहित्य संस्थान बड़ागांव झासी

५. काव्य क्रांति परिषद झांसी

६. बुन्देल खण्ड साहित्य संगीत कला संस्थान झांसी 

७. श्री सरस्वती काव्य कला संगम नगरा झांसी द्वारा साहित्य सम्मान 

८.विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा साहित्य सम्मान

९. वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई साहित्य सम्मान

१०. बुन्देली साहित्य व संस्कृति परिषद द्वारा विधान सभा भोपाल में साहित्य सम्मान

११. आचार्य श्री १०८ श्री ज्ञान सागर महाराज द्वारा साहित्यकार सम्मान

१२. नवांकुर साहित्य एवं कला परिषद झांसी द्वारा कीर्ति शेष पं. बन्द्री प्रसाद त्रिवेदी स्मृति सम्मान 

१३. विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा लक्ष्मी बाई मैमोरियल एवार्ड  सम्मान

१४ . विश्व मानवाधिकार मंच द्वारा राष्ट्रीय गौरव सम्मान

१५. निराला साहित्य संगम संस्थान द्वारा साहित्य समाज सेवा सम्मान


होली 


मधुर बोली होली , जो कानों में आई ।

तन मन में मेरे भी ,   मस्ती थी छाई ।


वो बचपन का माहौल  मुझे याद आया ।

थे संग में सखा सब  फागुन गीत गाया ।

पडी पीक  पावन वो पिचकारी सुहाई ।..............१


भस्म होलिका को सब सिर पर सजाते ।

रसिया कबीरा          फाग के गीत गाते ।

ढोलक मजीरा झाँझ  नगड़िया बजाई ।............२


भंग का संग सुन्दर       यौवन तरंग होता ।

महबूब मुख को देखत मन भी सब्र खोता ।

जवानी दिवानी रही तब तन थी छाई ।.............३


अब हाल ये बुढापा तुम्हें क्या सुनाये ।

है दाँत नहीं मुख में चूमें चाट  न  खाये ।

है जान नहीं तन में , पर जान याद आई ।..........४


राजेश तिवारी 'मक्खन'

झांसी उ प्र


होली 


तुम्हें अब रंग में रंगना , नहीं मैं चाहता मोहन ।

तुम्हारे रंग रंगजाँऊ , यही बस चाहता मोहन ।

तुम्हें नित देखने को मैं ,नयन जो  बंद करता हूँ,

मुझे भी तुम निहारो तो , यही बस चाहता मोहन ।..........॥१॥


लगा दो श्याम रंग ऐसा ,  दूसरा चढ़ नहीं पाये ।

लगा दो नाम का चस्का , रातदिन जो रटा जाये ।

जिधर देखू उधर मुझको , श्याम ही श्याम दिखते हों ,

कोई संसार की वस्तु ,   श्याम को छोड़ न भाये ।...........॥२॥


राजेश तिवारी 'मक्खन'

झांसी उ प्र



माँ जगजननी जगत धात्री जगपालन कारी ।

उमा  रमा  ब्रह्माणी  माता माँ भव भय हारी ।।

माँ  सीता सावित्री  गीता माँ  सबसे प्यारी ।

माँ की महिमा मैं क्या वरनु माँ सबसे न्यारी ।।......१


माँ कबीर की साखी  सुन्दर , माँ  काबा  काशी ।

अल्प बुद्धि से मैं क्या कहदू  , महिमा है खासी ।।

माँ तुलसी  की  रामायण  है , मीरा पद वासी ।

माँ की कृपा  कटाक्ष होत  ही, दुर बुद्धि नासी ।।.......२


माँ वेदों का मूल स्रोत है , माँ मंगल  वाणी ।

माँ है सब सुख सार यार , माँ ही  है कल्याणी ।।

माँ ही  स्वर  की शुभ देवी है , माँ  वीणा पाणी ।

मातृ की प्रेरणा से उपजत है , निरमल हिय वाणी ।।.......३


माँ गंगा यमुना कावेरी , सरस्वती सतलज है ।

शीतल मंद सुगंध पवन नित , माँ ही यह मलयज है ।।

माँ पाटल  चम्पा  वेला  , माँ पावन पुष्प जलज है ।

माँ ही नृत्य मोर की थिरकन , माँ ही एक सहज है ।।..........४


माँ ममता का मान सरोवर , हिमगिर उच्च शिखर है ।

माँ पूनम की धवल चांदनी , दिनकर ज्योति प्रखर है ।।

माँ जिस पर करुणा कर देती , उसका भाग्य निखर है ।

जिस पर माँ की भ्रगुटी टेड़ी , वह तो अवश्य बिखर है ।।........५


माँ धरती की हरी दूब है , माँ केसर की क्यारी है ।

सकल विश्व में श्रेष्ठ हमारी , भारत माता प्यारी है ।।

यह पूरब के पुण्य हमारे , सुन्दर  मति हमारी है ।

दिये मातु संस्कार सुमति संग , निश्चत बुद्धिसुधारी है ।।.........६


माँ धरती के धैर्य सरीखी , माँ ममता की खान है ।

माँ की उपमा केवल माँ से , माँ सचमुच भगवान है ।।

मातृ भूमि की महिमा माने , वह ही देश महान है ।

मक्खन सा मन जिसका होता , वही सही इंसान है ।।................७


माँ सामाग्री शकुन्तला है , माँ सु नीति की जननी  ।

माँ सुरेश की सह धर्मणी , माँ सु भ्रात की भगनी ।।

दिव्य नीति की ज्योति जलाई बनी सुभग ये सजनी ।

वह अनन्त आकाश सुशोभित  हुई शुभ तारा गगनी  ।।..................८

मैं घोषणा करता हूँ कि मेरी यह रचना मौलिक व स्वरचित है ।

कवि 

राजेश तिवारी  "मक्खन "

टाइप 2/528 भेल झांसी उ. प्र.

9451131195

ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं


तेरी लीला गजब निराली ,

जय हो जय जय कृष्ण मुरारी ।

जय हो जय जय कृष्ण मुरारी ,

जय हो गिरि गोबर्धन धारी ।।,....,


मौसम क्या वसंत को आयो ,

डाड़ो होरी को गड़वायो ।

आयो सज पीताम्बर धारी ।.....,.,,...१


रसिया संग खेलन खौ प्यारी , 

पहनी सखी सुरंग तन सारी ।

मन में खुशी है छायी भारी ।............२


मक्खनप्रिय संग सखा सुहाये ,

जुर मिल वरसाने सब आये ।।

खेलें फाग दिव्य वनवारी ।......,,,,.,,३


दैखें या छवि धन्य सो नैना ,

बोलें मधुर मधुर प्रिय बैना ।।

प्रभु पर तन मन सब बलिहारी ।..........४


व्रज  में लट्ठ मार जा होरी ,

मन उमंगमय खेलत गोरी ।।

राजेश अपलक नयन निहारी।.............५


राजेश तिवारी 'मक्खन'

झांसी उ प्र



युवराज आपका अभिनन्दन ,  ऋतुराज आपका अभिनन्दन ।।


नूतन पल्लव परिधान पहिन ,

लतिकायें वंदन वार बनी ।

कर केलि कोकिला कूक रही ,

मंजरी आम तरु आन तनी ।।

अलि यत्र तत्र करते गुन्जन ।..............................१


मद मस्त हुए मधुकर आके ,

गुन गुन करके मड़राते है ।

कलियों का करते आलिंगन ,

चुम्बन ले के उड़ जाते है ।।

वहे वायु ऐसी जैसे हो नन्दन ।........................२


 सरसों की प्यारी क्यारी पर ,

देखो तितली मड़राती है ।

कभी इत आती कभी उत जाती , 

पीकर पराग इठलाती है ।।

सुन्दर सदृश्य का अभिवंदन ।.......................३


बागों में बहारें आने लगी ,

तरुओं पर छाई तरुनाई ।

मानव के मन भी उमंग भरे ,

बाकी वसंत की ऋतु आई ।।

सुमनान्जलि सहित करू वंदन ।......................४


ऋतुराज आगमन शुभ होवे ,

जन मानस में सद्भाव भरो ।

इस सृष्टि के हर प्राणी का ,

कल्याण करो कल्याण करो ।।

दुनिया में कही न हो क्रन्दन ।...........................५


राजेश तिवारी "मक्खन"

झांसी उ.प्र.


ंंंंंंंंंंं

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार शर्मा

 परिचय 

नाम  आशु शर्मा 


शैक्षणिक योग्यता  पोस्ट ग्रेजुएट (कैमिस्ट्री)  बी एड

सम्प्रति शिक्षाविद (कोचिंग)  गीतकार, लेखक,  अनुवादक, संपादक 

सम्पर्क सूत्र-

+91 88500xxxx

उपलब्धियां  मेरे द्वारा निम्न लिखी चार पुस्तकें एमेज़ोन पर उपलब्ध हैं ।

1.किताब ए ज़िन्दगी 

2.Come on success for all 

3. Tea time khyal  कड़क ज़ायका 

 4. उपन्यास 'कंटीली झाड़'


राबिन शर्मा की '5ए एम क्लब' तथा अवि योरिश की 'तुम्हें नवनिर्माण करना होगा' का सम्पादन , रयूहो ओकावा की 'लक्ष्य के नियम' सहित कई पुस्तकों का अनुवाद व सम्पादन किया है ।


ईमेल  ashus1223@gmail.com


 1. ख़्वाब 


सूरज और चाँद को 

आँखों में भर कर 

जुगनू ढूंढने 

निकल पड़ते थे हम 

फौलादी सपने थे तब 

उनके टूटने से 

से कहाँ डरते थे हम 

और अगर कभी 

ऐसा हुआ 

कोई सपना जो पूरा 

नहीं हुआ 

तो इसका भी गम 

नहीं करते थे हम 

तब की बात है यह

जब बच्चे थे हम

रिश्तों में कच्चे पर 

अहसासों के सच्चे थे हम


 वक़्त बीता 

फिर थोड़े बड़े हुए

थोड़े थोड़े 

ज़मी पर खड़े हुए

अब भी उड़ लेते थे 

सपनों के आसमानों में 

और ले आते थे उन्हें 

पकड़ अपने ठिकानों में 

महल सजा लेते थे हम 

अपने छोटे छोटे मकानों में 

सपनों की सौदागिरी 

ढूँढते थे दुकानों में

फिर डरते भी थे 

कहीं ऐसा न हो कि 

ज़मी से भी उखड़ जाएं

और गिर पड़ें आसमानों से


जवानी में जब कदम पड़े 

हम अब भी थे सपनों पर अड़े 

छोड़ खुला दरीचों को 

ताकते थे दहलीज़ों पर खड़े 

इक चोर दरवाज़ा भी था रखा

लगा रखे थे जिस पर पहरे कड़े

पंख तो थे उड़ने को मगर 

पर सपने थे पिंजरे में पड़े 

पिंजरे की दीवारों के अन्दर

ख़्वाब हकीकत आपस में लड़े 

कभी ख़्वाब तो कभी हकीकत ने 

तमाचे थे इक दूजे पर जड़े 

अब धीरे धीरे हमने भी 

सपनों के गहने थे गढ़े


अब पहुँच गए 

उस मोड़ पर हम 

सपनों में अब

नहीं बचा है दम 

हिम्मत नहीं हारी है हमने 

पर ख्याली दुनिया में 

रहते हैं कम 

कभी हंसते 

तो कभी रोते हैं 

पर नहीं पालते 

कोई भी गम

कभी पलती हकीकत 

ख्वाबों में तो 

कभी ख़्वाब हकीकत 

में पालते हम



रचनाकार    आशु शर्मा 

मुम्बई 




2. ज़ख्म


तन भीगा है 

मन भी भीगा

सूखे अश्क भी गीले हैं 

अब के बारिश के मौसम ने 

पुराने ज़ख्म भी छीले हैं 


भरे नहीं थे 

हरे नहीं थे 

कई परतों में दबे पड़े थे 

पानी की बूँदों में धुल कर 

सामने मेरे खड़े थे 


भूल चुके थे 

गम अपने को 

फिर रहे यूँ बेफिक्र थे 

टिप टिप बूंदों की आहट में 

मेरी बेचैैनी के जिक्र थे 


सड़कें गीली 

छत पर पानी 

बूँदे दिखती पत्तों पर मोती हैं 

सावन की बौछारें हैं पर

तन्हाईयाँ हम पर रोती हैं


रचनाकार आशु शर्मा

 मुम्बई 



3.जननी माँ 


माँ की बाहों में हमने 

स्वर्ग के झूले झूले हैं

तेरे आँचल की खुशबू 

माँ आज तलक नहीं भूले हैं 


हर जन्म मुझे तेरी गोद मिले 

इक यही दुआ बस करते हैं

हर बात तेरी है याद हमें 

और यादें ताज़ा रखते हैं 


माँ की रोटी की खुशबू के 

आज भी हम भूखे हैं

अश्क हैं बहते अब भी मगर 

गीले नहीं हैं सूखे हैं


चाहूँ कहना कह न पाऊँ

माँ की ममता का हिसाब नहीं 

यह ब्यौरा जिस में मिल जाए 

लिखी गई कोई किताब नहीं


रचनाकार आशु शर्मा 

मुम्बई 



4. चलो इक ख़्वाब बुनें


चलो इक ख़्वाब बुनें

और पूरा करने को 

थोड़ा थोड़ा तुम चुनो

थोड़ा थोड़ा हम चुनें


बुनियाद अहसास रखने को 

दिलों के पास रखने को

कुछ रेशम तुम ले आना 

कुछ मेरे पास रखा है 

अहसास को बुनने का 

स्वाद हमने चखा है 


जिन्दादिल बनाने को

और थोड़ा सजाने को 

रंगों को भी चुनना है 

आपस में मिलकर 

कुछ शोख कुछ अहसास रंग

बोल उठेंगें खिलकर 


फिर ख़्वाब इक जिन्दा होगा

न तुम न मैं और 

न ही कोई अधूरापन 

कभी आपस में शर्मिन्दा होगा


रचनाकार आशु शर्मा 

मुम्बई 




 5. देखो बसन्त है आया 


चीर पीताम्बर पहन धरा का 

कण कण है मुस्काया 

धानी चुनरी ओढ़ के सज गई

रोम रोम हर्षाया

देखो बसन्त है आया 


फूलों ने भी महक महक कर

हवा में इत्र फैलाया 

नई कोपलें निकल आई हैं

नवजीवन है पाया

देखो बसन्त है आया


पक्षियों ने भी कलरव करके 

मौसम है महकाया 

भौरों की मदमस्त गुंजार ने 

वन उपवन महकाया 

देखो बसन्त है आया 


शरद ऋतु जाने को आई 

मौसम कुछ गरमाया 

पेड़ पौधों हर प्राणी के जीवन 

में आनन्द है छाया 

देखो बसन्त है आया 


ऋतुओं का राजा प्रकृति का 

यौवन ले कर आया 

दुल्हन जैसी सज गयी धरती 

पर्वतों ने मुकुट सजाया 

देखो बसन्त है आया

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ. अर्चना मिश्रा शुक्ला कानपुर

 जीवन परिचय

नाम- डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

पति का नाम- नागेन्द्र प्रकाश शुक्ला

स्थाई पता- 1/139 अम्बेड़कर पुरम्, आवास विकास नं0 3, कल्यानपुर, पिन कोड- 208017, उत्तर प्रदेश

फोन नं0- 7905975057, 9451281671

जन्म एवं जन्मस्थान- 20/06/1976, ग्राम लोमर, जिला- बाॅदा, उत्तर प्रदेश

शिक्षा- परास्नातक हिंदी, संस्कृत, विद्या वाचस्पति उपाधिधारक 2004, बी0एड0

व्यवसाय- शिक्षक

प्रकाशन विवरण- बालगीत, नित्या पब्लिकेशन, भोपाल


काव्यपाठ का विवरण- संस्कार भारती जहांगीराबाद, हिमालय अपडेट न्यूज, मेरी कलम से काव्य मंच रीवा, स्वर्णिम

        साहित्य, महाविद्यालय स्तर पर काव्यपाठ-1994, शिवपुराण पाठ में काव्य सम्मेलन में प्रस्तुति।

अप्रकाशित रचनाएं-

1- माँ शंखुला महिमा

2- बातगीत भाग दो

3- नल दमयंती काव्यमय वृत्तान्त

4- कर्ण की काव्यमय संक्षिप्त कथा

5- युद्ध और आधुनिक काव्य

6- मेरी कहानियाँ

7- समसामयिक कविताएं

8- समसामयिक लेख आलेख

9- विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख ,आलेख ,कहानियां

कविता आदि।

 पुरस्कार व सम्मान

1- सद्‌भावना पुरस्कार 1994

2- कला साहित्य नाट्य विज्ञान परिषद द्वारा पुरस्कृत 1995

3- सम्मान अलकरण 1996

4- क्रीड़ा कौशल सांस्कृतिक पुरस्कार 1990

5- सांस्कृतिक चेतना निर्माण पुरस्कार 1996

6- हिम रतन प्रेरणा सम्मान2021

7- नारी शक्ति सागर सम्मान 2021

8- विंध्य कलम गौरव सम्मान 2021

9- हिमालयन रत्न सृजन सम्मान 2020

10- उ० प्र० शक्तिस्वरूपा प्रणयन सम्मान 2021



**** आजादी के सपूत ****

दिल लगा बैठे थे अपने देश से

आशिकों सी वो वफा फिर कर गए

सिर उठाकर ये जिए और कह गए

सिर झुकाने की यहाँ आदत नही

ये अमर बलिदान, भारत -भूमि मे

राजगुरू ने राज ,भारत को दिया ।

सुखदेव ने सुखराह देकर चल दिया ।

ये भगत भक्ति की धारा दे गए,

ये शहादत देश हित में कर गए ।

वीरमाता के अजब ये पूत थे,

मातृभूमि में जाँ निछावर कर गए ,

भारती माँ को आजादी दे गए,

दासता की बेड़ियों को काटकर,

चूमते फाँसी का फंदा वो गए,

देश की माटी में वो चंदन बने,

भारती माँ का वो वंदन कर गए,

है नमन शत-शत ये भारत देश का, 

पथ तुम्हारे हम चलें यह कह गए,

जो विरासत में हमे वो दे गए,

वीर सैनिक बन युवा धारण करें,

अब ये परिपाटी निभाते हम चलें ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश


*****माँ की सीख*****

लड़खड़ा कर गिरना

मेरी आदत नहीं ।

लड़खड़ा कर सीधे खड़ा होना,

सदा माॅ ने सिखाया ।

हौसला ऐसा बढ़ाया

कि कारवाँ चल निकला 

निकला ही नही

निकला ही नही

दौड़ा

भागा और नई ऊँचाइयों को

दोनो हाँथों से पाया

पाया और लुटाया

यही तो मेरी माँ ने सिखाया ।

और गिराने वालो को!!!

अचम्भे में डाल देना

हैरत तो उनको तब हुई,

जब शमशान से उठ,

उस रुह ने

अपना नया जन्म पाया ।

अपने स्वाभिमान की खातिर

अपने असतित्व की खातिर

अपनी पहचान की खातिर

यह संघर्ष है न

यह भी मेरी माँ ने सिखाया ।


डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ता

शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश



+++ वर्ष की आखिरी सॉझ +++

आज का दिन तो ऐसे बीत रहा है,

जैसे बस व ट्रेन में उतरते चढ़ते लोग,

जैसे लिफ्ट में निकलते घुसते लोग,

स्टेशन मे आते जाते लोग,

पिक्चर हाल मे जाते लोग,

और देखकर निकलते लोग,

आज मन की भावुकता बढ़ गई,

जाते हुए साल मे,

कितना कुछ सुना है बेचारे इस साल ने,

कोरोना की आफत उठाए पूरा साल है,

माना कि बहुत कुछ छूटा इस साल है ,

बहुत कुछ नया करके भी गया,

बहुत कुछ नया देकर भी गया,

अब नए के स्वागत को,

सब बाँह फैलाए खड़े हैं,

मन कुछ भावुक हो चला,

ऐ जाते हुए साल,

आना और जाना ही तो सत्य है,

इस सत्य को जीना पड़ता है,

जीते हैं जीते रहेगें,

पर आज मन कुछ भावुक हो चला है ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर

उत्तर प्रदेश

7905975057



कविता

शीर्षक- ‘गरीबी’

घर हीन, भूमि से हीन

वो फिरते मारे-मारे

फुटपाथों को घेर

कभी उद्यानों में वह

हर सरकारी आफिस की, दीवारों से जुड़

कही हरित पट्टी पर, 

वह हैं पन्नी ताने

यही सुखद उनका घर

पीढ़ी दर, पीढ़ी है

कुछ छोटे-मोटे काम करें

दो-चार रोटियों की खातिर

हर शाम झोपड़ी में लौटें

कुछ गिना-चुना सामान लिए

किरणों से अमृत कहाॅ गिरे???

उनके घर खीर न बनती है!!!

सूखी रोटी ही मिल जाएं 

यह खुशनसीबी उनकी है।

सिसकी भरती माँ मिलती है

हठ बच्चे उससे करते हैं

मचल-मचल माॅ-बापू से

माँगें अपनी वो करते हैं

बेबस वत्सलता विलख रही

कह-कह अभागिनी विलख रही

ममता की रोती आॅखों में 

मुस्कान अभी कैसे आए ???

जादू की छड़ी न आएगी

जो चमत्कार कर जाएगी

उनको हक उनका देना है

हर देश की जिम्मेदारी है

हम सबकी जिम्मेदारी है।


डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश



******   बेटी   ******

बेटी बचाने वालों को कभी

करीब से देखा है क्या ????

मैने तो हजारों लरजती सांसों

हॉ सांसों !!!

की कपकपाहट के साथ

एक बेटी को 

बेटी बचाते देखा है ????

दुनिया की दुनियादारी में

एक नारी को अपना सम्मान बचाते देखा है

मैने एक बेटी को

एक बेटी बचाते देखा है ????

माॅ के घर से विदा हो

पति के आंगन को संवारते देखा है

जिसे परमेश्वर माना

उसकी दुत्कार , धिक्कार और तिरस्कार

साथ में तीन-तीन बेटियों का उपहार

बेटी का उपहार अकेलेदम झेला है

अपनी जिम्मेदारी से जो बाप भागा है!!!

माँ ने अकेले ही

बेटी को बचाया है

राह चलते चलते 

मिला कोई अपना

जिसने बेटियो सहित

बेटी की माॅ को भी अपनाया है 

वह दिन भी आया

जब बेटी पराई होती है

एक- एक कर

दीन-हीन दशा में भी

डोली पर बिठाया

इस तरह एक बेटी को बचाया

छुटकी बिटिया की बारी

और माँ - बाप की हीनता भारी 

कण- कण और तृण-तृण को मोहताज खड़ी थी माई

बापू का सर नतमस्तक

सिर रखे हाँथ तो कोई

बेटी को बचाया था 

उस बेटी ने उठाया

बेटी के भाग्य से

लक्ष्मी ने लक्ष्मी बरसाया

चॉदनी सी छाया 

सर्वत्र फैलाया 

इस तरह मैने भी एक बेटी बचाया

एक बेटी बचाया

जीवन परिचय

नाम- डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

पति का नाम- नागेन्द्र प्रकाश शुक्ला

स्थाई पता- 1/139 अम्बेड़कर पुरम्, आवास विकास नं0 3, कल्यानपुर, पिन कोड- 208017, उत्तर प्रदेश

फोन नं0- 7905975057, 9451281671

जन्म एवं जन्मस्थान- 20/06/1976, ग्राम लोमर, जिला- बाॅदा, उत्तर प्रदेश

शिक्षा- परास्नातक हिंदी, संस्कृत, विद्या वाचस्पति उपाधिधारक 2004, बी0एड0

व्यवसाय- शिक्षक

प्रकाशन विवरण- बालगीत, नित्या पब्लिकेशन, भोपाल


काव्यपाठ का विवरण- संस्कार भारती जहांगीराबाद, हिमालय अपडेट न्यूज, मेरी कलम से काव्य मंच रीवा, स्वर्णिम

        साहित्य, महाविद्यालय स्तर पर काव्यपाठ-1994, शिवपुराण पाठ में काव्य सम्मेलन में प्रस्तुति।

अप्रकाशित रचनाएं-

1- माँ शंखुला महिमा

2- बातगीत भाग दो

3- नल दमयंती काव्यमय वृत्तान्त

4- कर्ण की काव्यमय संक्षिप्त कथा

5- युद्ध और आधुनिक काव्य

6- मेरी कहानियाँ

7- समसामयिक कविताएं

8- समसामयिक लेख आलेख

9- विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख ,आलेख ,कहानियां

कविता आदि।

 पुरस्कार व सम्मान

1- सद्‌भावना पुरस्कार 1994

2- कला साहित्य नाट्य विज्ञान परिषद द्वारा पुरस्कृत 1995

3- सम्मान अलकरण 1996

4- क्रीड़ा कौशल सांस्कृतिक पुरस्कार 1990

5- सांस्कृतिक चेतना निर्माण पुरस्कार 1996

6- हिम रतन प्रेरणा सम्मान2021

7- नारी शक्ति सागर सम्मान 2021

8- विंध्य कलम गौरव सम्मान 2021

9- हिमालयन रत्न सृजन सम्मान 2020

10- उ० प्र० शक्तिस्वरूपा प्रणयन सम्मान 2021



**** आजादी के सपूत ****

दिल लगा बैठे थे अपने देश से

आशिकों सी वो वफा फिर कर गए

सिर उठाकर ये जिए और कह गए

सिर झुकाने की यहाँ आदत नही

ये अमर बलिदान, भारत -भूमि मे

राजगुरू ने राज ,भारत को दिया ।

सुखदेव ने सुखराह देकर चल दिया ।

ये भगत भक्ति की धारा दे गए,

ये शहादत देश हित में कर गए ।

वीरमाता के अजब ये पूत थे,

मातृभूमि में जाँ निछावर कर गए ,

भारती माँ को आजादी दे गए,

दासता की बेड़ियों को काटकर,

चूमते फाँसी का फंदा वो गए,

देश की माटी में वो चंदन बने,

भारती माँ का वो वंदन कर गए,

है नमन शत-शत ये भारत देश का, 

पथ तुम्हारे हम चलें यह कह गए,

जो विरासत में हमे वो दे गए,

वीर सैनिक बन युवा धारण करें,

अब ये परिपाटी निभाते हम चलें ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश


*****माँ की सीख*****

लड़खड़ा कर गिरना

मेरी आदत नहीं ।

लड़खड़ा कर सीधे खड़ा होना,

सदा माॅ ने सिखाया ।

हौसला ऐसा बढ़ाया

कि कारवाँ चल निकला 

निकला ही नही

निकला ही नही

दौड़ा

भागा और नई ऊँचाइयों को

दोनो हाँथों से पाया

पाया और लुटाया

यही तो मेरी माँ ने सिखाया ।

और गिराने वालो को!!!

अचम्भे में डाल देना

हैरत तो उनको तब हुई,

जब शमशान से उठ,

उस रुह ने

अपना नया जन्म पाया ।

अपने स्वाभिमान की खातिर

अपने असतित्व की खातिर

अपनी पहचान की खातिर

यह संघर्ष है न

यह भी मेरी माँ ने सिखाया ।


डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ता

शिक्षक व रचनाकार

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश



+++ वर्ष की आखिरी सॉझ +++

आज का दिन तो ऐसे बीत रहा है,

जैसे बस व ट्रेन में उतरते चढ़ते लोग,

जैसे लिफ्ट में निकलते घुसते लोग,

स्टेशन मे आते जाते लोग,

पिक्चर हाल मे जाते लोग,

और देखकर निकलते लोग,

आज मन की भावुकता बढ़ गई,

जाते हुए साल मे,

कितना कुछ सुना है बेचारे इस साल ने,

कोरोना की आफत उठाए पूरा साल है,

माना कि बहुत कुछ छूटा इस साल है ,

बहुत कुछ नया करके भी गया,

बहुत कुछ नया देकर भी गया,

अब नए के स्वागत को,

सब बाँह फैलाए खड़े हैं,

मन कुछ भावुक हो चला,

ऐ जाते हुए साल,

आना और जाना ही तो सत्य है,

इस सत्य को जीना पड़ता है,

जीते हैं जीते रहेगें,

पर आज मन कुछ भावुक हो चला है ।

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर

उत्तर प्रदेश

7905975057



कविता

शीर्षक- ‘गरीबी’

घर हीन, भूमि से हीन

वो फिरते मारे-मारे

फुटपाथों को घेर

कभी उद्यानों में वह

हर सरकारी आफिस की, दीवारों से जुड़

कही हरित पट्टी पर, 

वह हैं पन्नी ताने

यही सुखद उनका घर

पीढ़ी दर, पीढ़ी है

कुछ छोटे-मोटे काम करें

दो-चार रोटियों की खातिर

हर शाम झोपड़ी में लौटें

कुछ गिना-चुना सामान लिए

किरणों से अमृत कहाॅ गिरे???

उनके घर खीर न बनती है!!!

सूखी रोटी ही मिल जाएं 

यह खुशनसीबी उनकी है।

सिसकी भरती माँ मिलती है

हठ बच्चे उससे करते हैं

मचल-मचल माॅ-बापू से

माँगें अपनी वो करते हैं

बेबस वत्सलता विलख रही

कह-कह अभागिनी विलख रही

ममता की रोती आॅखों में 

मुस्कान अभी कैसे आए ???

जादू की छड़ी न आएगी

जो चमत्कार कर जाएगी

उनको हक उनका देना है

हर देश की जिम्मेदारी है

हम सबकी जिम्मेदारी है।


डा0 अर्चना मिश्रा शुक्ला

प्राथमिक शिक्षक व साहित्यकार

कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश



******   बेटी   ******

बेटी बचाने वालों को कभी

करीब से देखा है क्या ????

मैने तो हजारों लरजती सांसों

हॉ सांसों !!!

की कपकपाहट के साथ

एक बेटी को 

बेटी बचाते देखा है ????

दुनिया की दुनियादारी में

एक नारी को अपना सम्मान बचाते देखा है

मैने एक बेटी को

एक बेटी बचाते देखा है ????

माॅ के घर से विदा हो

पति के आंगन को संवारते देखा है

जिसे परमेश्वर माना

उसकी दुत्कार , धिक्कार और तिरस्कार

साथ में तीन-तीन बेटियों का उपहार

बेटी का उपहार अकेलेदम झेला है

अपनी जिम्मेदारी से जो बाप भागा है!!!

माँ ने अकेले ही

बेटी को बचाया है

राह चलते चलते 

मिला कोई अपना

जिसने बेटियो सहित

बेटी की माॅ को भी अपनाया है 

वह दिन भी आया

जब बेटी पराई होती है

एक- एक कर

दीन-हीन दशा में भी

डोली पर बिठाया

इस तरह एक बेटी को बचाया

छुटकी बिटिया की बारी

और माँ - बाप की हीनता भारी 

कण- कण और तृण-तृण को मोहताज खड़ी थी माई

बापू का सर नतमस्तक

सिर रखे हाँथ तो कोई

बेटी को बचाया था 

उस बेटी ने उठाया

बेटी के भाग्य से

लक्ष्मी ने लक्ष्मी बरसाया

चॉदनी सी छाया 

सर्वत्र फैलाया 

इस तरह मैने भी एक बेटी बचाया

एक बेटी बचाया

डा ० अर्चना मिश्रा शुक्ला


डॉ.राजश्री तिरवीर बनीं साहित्य साधक (अखिल भारतीय साहित्यिक मंच) के कर्नाटक राज्य प्रभारी



आज साहित्य साधक (अखिल भारतीय साहित्यिक मंच) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कृष्ण कुमार क्रांति जी द्वारा डॉ. राजश्री तिरवीर जी   बेलगांव, कर्नाटक  निवासी ,मराठा मंडल कला और वाणिज्य महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापिका,कर्नाटक से हिंदी में एम.ए, पी.एच डी, स्लेट , डी.लिट, एम. ए में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने के उपलक्ष्य में कर्नाटक विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक प्राप्त को साहित्य साधक अखिल भारतीय साहित्यिक मंच का कर्नाटक राज्य प्रभारी बनाया गया। वर्तमान में  डॉ. राणा जयराम सिंह 'प्रताप',राष्ट्रीय संरक्षक; सपना सक्सेना दत्ता एवं डॉ. शारदाचरण,राष्ट्रीय सलाहकार; उदय नारायण सिंह एवं माधुरी डड़सेना 'मुदिता' राष्ट्रीय उपाध्यक्ष; शशिकांत शशि,राष्ट्रीय महासचिव एवं  दिनेश कुमार पाण्डेय, राष्ट्रीय सचिव; सियाराम यादव 'मयंक', राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष; अमर सिंह निधि, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी एवं अमन आर्या,सह मीडिया प्रभारी; वशिष्ठ प्रसाद,राष्ट्रीय कार्यालय सचिव के साथ  संजय श्रीवास्तव,बिहार राज्य प्रभारी; पूनम देवी,उत्तर प्रदेश राज्य प्रभारी; संतोष अग्रवाल,मध्य प्रदेश राज्य प्रभारी; रूपा व्यास,राजस्थान राज्य प्रभारी;  सरला कुमारी,हरियाणा राज्य प्रभारी; विनोद कश्यप,पंजाब राज्य प्रभारी; राधा तिवारी 'राधेगोपाल', उत्तराखंड राज्य प्रभारी; डॉ. लता, दिल्ली राज्य प्रभारी; प्रियंका साव, बंगाल राज्य प्रभारी;जितेंद्र कुमार वर्मा, छत्तीसगढ़ राज्य प्रभारी  एवं  अनूप शर्मा,असम राज्य प्रभारी द्वारा कर्नाटक राज्य प्रभारी डॉ. तिरवीर जी को शुभकामनाएं  प्रेषित की गई। इसके साथ ही साहित्य साधक मंच के रेखा कापसे जी, सुरंजना पाण्डेय जी सहित सभी सदस्यों ने डॉ.राजश्री तिरवीर को कर्नाटक राज्य प्रभारी बनने के शुभकामनाएं प्रेषित की।

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार अंजना चोटाई मुम्बई

 नाम:अंजना चोटाई

प्लेस: अलीबाग


एज्युकेशन: बी.कोम

9595750785


❄️चांद❄️

      🌙                       

मेरी छत पर आज, चांद नजर आया ।

खुला आसमान, रोशनी से जगमगाया।

कभी बादलों में छुपता, जैसे,

बुरके में छिप रहा नजर आया।

चांद भी क्या खुब है ,                                 कैसा शीतल तेज ले आया।

ना सर पे कोई घूंघट,

ना शर्मीली अदा,

 ये कैसा रुप लिये,

 धरती पर उतर आया।

दुल्हन-सी सजी,

 हर सुहागिन के जीवन में,

 खुशियाँ और उमंग भर लाया।

आज दिल खोल के शीतलता लिए अपनी

मघुर गरिमा के साथ,                                 

 पति-पत्नी के प्यार में आज,

फिर से बसंत ले आया। 

 करवाचौथ का हो 

 शरदपूणिॅमा का हो                                                        या चांद हो  ईद का भले ही,                                        हर दिन हर पल देख के तुझे,

 दिलों में हर धडी 

आनंद-ही-आनंद छाया।

        ‌             अंजना चोटाई

       ‌                 अलीबाग

                       ४/११/२०२०

--------------------------------------

💥नशा💥

  

नशा ऐसा हो जाये सांवरिया

तेरे ही रंग में रंग जाऊं।

तेरी ही बंसी की धुन में खो जाऊं।

तेरी ही भक्ति में डुब जाऊं ।

तेरी ही शरण में लिन हो जाऊं।

 बस तेरे ही गून गाऊं तल्लिन हो जाऊं।

तेरे नैनों में बस जाऊं।

तेरी नज़रों में समां जाऊं ।

भले बूरे का भेद न जानु,

सम दृष्टि के भाव लीए,

सब के दिल में तेरी ही छबि पाऊं।

जन -जन में कण-कण में बस तुजे ही में पाऊं।

संसार के बिच रहकर भी

मैं तुज संग प्रीत लगाऊं।

तेरी-मेरी प्रीत की रित अनोखी

ये बात में किसीको ना समझा पाऊं।

हे गिरीधर, मुरलिधर तेरे दर्शन की आश है, मैं कैसे तुज को  पाऊं?

 मेरे श्याम सुंदर कब तेरे संग मैं रास रचाऊं?

सारा जीवन तुझे पाने को

 विरह के नशेंमें तड़पाऊं।

तेरी ही प्रतीक्षा में बस मैं जीवन बिताऊ।

                अंजना चोटाई

                  अलीबाग

                   महाराष्ट्र

--------------------------------------


 रंग🌈


दुनिया के है रंग बहुत,कई सारे

जीवन है सुख-दुख का मेला और सतरंगी रंगों का घेरा।

देखने को हमें यहां मिलते रोज ही विविध रंग

कभी हसी-खुशी के  हंसते लहराते खुशियां बिखेरते प्यारे रंग।

तो कभी ग़म के अंधेरो में डुबे दुखी अरमानों के रंग।

कभी जीत की खुशी के रंग 

कभी हार की निराशा के रंग।

मन के भी तो है कितने रंग,              प्रियतम के याद में डुबे प्यार का रंग

तो कभी विरह में छलके आंसुओं का बेरंगी रंग।

ये रंगों की लंबी परिभाषा

इन रंगों पर लिखने बैठो

 तो कई रंग मिल जाते हैं,

शब्दों के रंग,भावों के रंग

खट्टी-मीठी बातों का रंग

सच्ची- झूठी तकरारों के रंग

दुनियादारी के ये रंग बहुत है,

रंगों की है ये जो गाथा ‌।    धरती के सारे रंग निराले

नीला,पीला,हरा,लाल,गुलाबी सब नशीला

होली की खुशियों से जीवन बने 

रंगीला

               अंजना चोटाई

                 अलीबाग

                  महाराष्ट्र

--------------------------------------


🌻बसंत🌻


सुंदर रंगोसे सजी धरा बसंत के वैभवको चूमें  ‌                                                         ‌सृष्टि नवजीवन मदमस्ती में झूमे।                             प्रक्रृति नवपल्लवीत सुशोभित रूपयौवन सी 

जीवसृष्टि दिसे मनमोहित सुंदर प्रफफुलित।                    धरती निखरी  सजी दुल्हन सी हरी-भरी ओढीं पीली चूनर।   

 ताज़गी से भरी हवाओं में लहराये

जैसे की नव- यौवन सी मस्ती में डोले।

बसंत की मनमोहीनी लहरें संग,         नवयौवन के तन-मन हर्षे

पियां मिलन कि आश में बेचैन दिल तरसे।

पिया मिलन को मन में छाई है उदासी

में पियां बहावरी पिया मिलन कीं प्यासी।                                                                                      

               

               अंजना चोटाई

                 अलीबाग

                   महाराष्ट्र

-----------------------------------


 💦ओस की बूंदें💦

                                                

टपकती ओस की बूंदें पतों से ऐसी

चमकती नाजुक मोती जैसी।

अपनी शितल ठंड की अहसास  दे जाती

ठहरती नहीं ज्यादा उन डाली, फुलों, पतों पर , वो बह जाती

जैसे की मिट्टी की खुश्बू इन्हें  है याद आती।

सुरज की किरणों से जैसै वो नम हो जाती

वो धूल, मिट्टी में मिल के

खुद को जैसे कुरबान कर जाती।

सोचती हूं उठाकर रखलुं  इसे किंमती रत्नों की तरह अपने पास

पर देखते ही देखते आंखों से ओझल हो जाती 

ये ओस की बूंदें।


                   अंजना चोटाई

                     अलीबाग

                       महाराष्ट्र

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार ,प्रकाश दान बिजेरी

 कवि परिचय 


कवि का नाम - चारण प्रकाश दैथा 

पिताजी - मुरार दान 

 गांव - बिजेरी 

जिला - बीकानेर 

राज्य - राजस्थान 

रूचि - अनुभवों को कविताओं में ढालना 

मोबाइल - 7665361178

              8824153095


शीर्षक 1 पीड़ा पति की 

 

 शुरू शुरू के दौर में पतिदेव कहलाए थे ।

कुछ दिनों के बाद में जूते चंपल भी खाए थे ।।

जब समय शुरुआती का था तो घर भी उसने सजाया ।

कुछ दिनों के बाद में झाड़ू पौचा भी लगवाया ।।

एक दिन थे जब मैं देव तुल्य पूजा था।

कुछ समय के बाद मैं बहुत जोर से धुजा था ।।

बहुत खुश था पहले जब मां ने खाना खिलाया था ।

उठ गया लड्डू  मन में शादी का उसी ने मुझे रुलाया था ।।

याद है वह दिन जब पेंट शर्ट उसने  भी धोया था ।

फिर दौर एक ऐसा आया मन ही मन रोया था ।।

सलाह बहुत दी साथियों ने मत करना तू शादी ।

मुझे क्या पता कि होगी इतनी बर्बादी ।।


 शिर्षक -2 किस्से कलयुग के 


खाने-पीने और जमाने की कोई जान नहीं ।

उठने बैठने पहनावे का कोई ज्ञान नहीं।।

धोती कुर्ते साड़ी भूल गई सब गहने।

रंग रलिया में फिरते हैं फटी जिन्से पहने ।।

घर बैठकर बापू के देशी खाना भूल गए ।

महफिल जमाए दोस्तों में चाऊमीन बर्गर पर झूल गए ।।

सिनेमाओं का चस्का कर गया बर्बाद में ।

जब खुद कमाने पड़े तब बापू आया याद में ।।

फटी धोती पहने बापू बोए खेतों में जीरा ।

महंगी जिनसे पहन समझे सब अपने को हीरा ।।

बंडल उठाए चारे का जाए बापू लाडी में ।

बीवी के संग बैठ बेटा घुमे  महंगी गाड़ी में ।।

मां बाप अपनी इज्जत देते इनके हाथ में ।

रंग रलिया मना रहे हैं हुस्न वालों के साथ में ।।


          शिर्षक 3- नारी


चौखी कोनी लागे मने इण दुनिया री रीत ।

सगला स्यु ज्यादा हुई मने म्हारे बालम सु प्रीत ।।

दुनिया री रीत रे कारणे घर पापा रो छोड़ियो ।

घर बसावण बालम रो मैं लाल ओढ़णो ओढ़ियो ।।

खूब मेहनत करू हुं मैं कमावण म्हारो नाम ।

चंद लुगाइयां रे कारणे मैं हुई बहुत बदनाम ।।

टाबरा रे कारणे बिगड़ जावे म्हरो चैन ।

जद जावे बालम प्रदेश तब तरसे म्हारा नैण ।।

प्रेम री हुं पुतली सती म्हारो नाम ।

पीयर अने मायके मैं करू घणा हूं काम ।।

ऊनाल्लो हो या वर्षाल्लो हो भले ही सर्द ।

लागे जद म्हारे टाबरा रे घणों होवे  मने दर्द ।।

               

           शिर्षक 4-माॅं 


माॅं शब्द बहुत छोटा है पर अर्थ बहुत बड़ा है।

माॅं तेरे ही प्यार को मैंने कविता में गड़ा है ।।

याद आती है माॅं तेरी हाथ की जली रोटी की ।

याद आती है माॅं तेरी सुनाई खरी-खोटी की ।।

ऊब गया हूं माॅं मैं इस मैस का खाना खाकर ।

तेरी हाथ की जली रोटी खिला दे माॅं तु यहां आकर ।।

बहुत मिठाइयां मंगवाई माॅं मैंने होटलों पर से ।

मगर उस मिठास की कमी थी जो मिला मुझे तेरे कर से ।।

इश्क और मोहब्बत की रीत मुझे पसंद नहीं ।

माॅं तेरे प्यार सा ना मिला मुझे आनंद कहीं ।।

पसंद ना आई माॅं मुझे यह चमक-दमक सी छात्रावास ।

काश खुदा बना देता कोई तेरे आंचल सा आवास ।।

बेचैन हो जाता हूं अक्सर इस दुनिया की रीतों में ।

शुकुन मिलता है माॅं मुझे तेरे मीठे गीतों में ।।

अक्सर बेचैन हो जाते हैं कुछ लोग रोते-रोते ।

जिनकी माॅं नहीं होती थक जाते हैं वो माॅं की बाट जोते-जोते ।।

                           

             

      शिर्षक 5 - बुरा गया तू बीस 


ना जाने किस कदर गुजरा था यह दौर ।

मायूसी छाई थी हमारे चारों और ।।

किस कदर महामारी का रंग तेरे चढ़ गया था ।

यह सब होना वाजिब था कलयुग का स्तर जो बढ़ गया था ।।

पूरी दुनिया में तूने हड़कंप मचा दिया ।

तूने तो अपना इतिहास अलग ही रचा दिया ।।

मंदिर सारे बंद हुए जिन्हें देवालय कहते थे ।

अस्पताल हमारे काम आए जहां चिकित्सक रहते थे ।।

ऐसा लगता था जैसे यमराज स्वयं नीचे आया था ।

जहां भी देखो मातम ही मातम छाया था ।

बैठ गए सब घरों में जैसे पशु को पकड़े जाल ।

या कलयुग का स्तर बढ़ा या थी खुदा की चाल ।। 

लगा था चारों ओर सन्नाटा एक के पीछे एक का मरना ।

बस इतनी दुआ है खुदा से दोबारा ऐसा कभी मत करना ।।


2021 के "इंडियास वर्ल्ड रिकॉर्ड में"दर्ज डॉ मीना गोदरे

 न्यूज़


इंदौर की साहित्यकार समाज सेवी मीना गोदरे, अवनि क 2021 के "इंडियास वर्ल्ड रिकॉर्ड में"दर्ज किया गया।



         यह संस्था देश की प्रतिष्ठित संस्था है जो भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड , है अंडर इंडियन एक 

1882 के तहत, लीगली रजिस्टर्ड "इंडियास वर्ल्ड रिकॉर्डस" के अंतर्गत  राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की उन सभी प्रतिभाओं को सम्मानित करती है जो पूरे विश्व में कुछ अलग करने का हौसला रखते हैं और 

किसी भी क्षेत्र में अपनी विशेष योग्यता से एक  नया कीर्तिमान स्थापित करते हैं।


2021 मैं इंदौर की साहित्यकार समाज सेवी मीना गोदरे का नाम इस रिकार्ड में दर्ज किया गया।

उन्होंने अपनी विशेष उपलब्धि के रूप में भारत की ही नहीं विश्व की प्रथम पुस्तक के रूप में "नव लोकांचल गीत नामक साझा संग्रह  कोरोना काल में संकलित व संपादित किया जिसकी योजना उन्होंने स्वयं बनाई और उसे कार्य रूप में परिणित । 

जिसमें पूरे भारत की 40 लोक भाषाओं को गीत और कविताओं के रूप में देवनागरी लिपि में लिखा गया है।

पुस्तक का उद्देश्य भारत की लुप्त होती  लोकभाषाओं /बोलियों का संरक्षण और संवर्धन है। क्योंकि यह भारतीय संस्कृति और सभ्यता  को पोषित करती हैं।

।दूसरे देशों में भी यह कार्य तीव्र गति से चल रहा है भारत में मीना गोदरे जी ने इसकी एक नए रूप में  पहल करके नया कीर्तिमान स्थापित किया है जिसमें  सभी रचनाएं मौलिक व नई हैं।

देश के विभिन्न क्षेत्रों के 93 रचनाकारों की 187 रचनाएं भिंन्न भिंन्न लोक भाषाओं में है ,जो हिंदी की पांच उप भाषाओं उसकी 18 बोलियां और 12 बोलियों का प्रतिनिधित्व करती है ।साथ ही चार अन्य भाषाओं की 10 बोलियां भी पुस्तक में है जो भारत की एकता और अखंडता को दर्शा रही है

                     साहित्य और समाज सेवा में 40 वर्ष तक की कार्य व उपलब्धियों का रिकॉर्ड और नई   पुस्तक की विशेषता देखकर उन्हें यह सम्मान दिया गया है ।उनका नाम इंडियास   वर्ल्ड रिकॉर्ड में हमेशा दर्ज रहेगा ।

इससे देश ही नहीं महिला समाज का भी सिर गर्व से ऊंचा हो गया है

              । इस सम्मान की खुशी में उन्हें अनेकों साहित्य समूह वरिष्ठ साहित्यकारों और मित्रों ने शुभकामनाएं दी है

डा.सुबोध मिश्रा जी नाशिक ,जय भारद्वाज जी हरियाणा ,लक्ष्मी- नारायणजी इंदौर कवि हरीश आचार्य जी राजस्थान

डा. पद्मासिंह इंदौर, हरेराम बाजपेई जी इंदौर ,पत्रकार प्रवीण शर्मा इंदौर जय भारद्वाज तरावड़ी हरियाणा बसंती पवार राजस्थान सनत कुमार जैन छत्तीसगढ़ ,डॉक्टर रंजना फतेहपुर, मधु मिश्रा उड़ीसा, रमाकांत मिश्रा श्यामलाल संस्था, डॉ नरेन्द्र दीपक जी

भोपाल, व्यास जी सूत्रधार संस्था, शिक्षा समन्वयक दामोदर जी इंदौर, पुष्पा रानी गर्ग इंदौर ,विक्रम मुनाली लखनऊ, विजयी भरत हिमाचल, अमृता राजेंद्र छत्तीसगढ़,डा. स्वाति तिवारी लेखिका सघ ,डा. जय कुमार जी जलज, रतलाम ,डा.राजेश भट्ट जी आकाशवाणी भोपाल ,डॉक्टर बुंदेला जी आकाशवाणी सागर, डॉक्टर हरि सिंह पाल आकाशवाणी दिल्ली, डॉ अनीता कपूर अमेरिका, डॉक्टर तेजेंद्र शर्मा लंदन, रेनू गुप्ता नेपाल ,स्वतंत्रता कश्मीर , सरला जैन अध्यक्ष अखिल भारतीय महिला परिषद, प्रभा जैन नाइस चेयर पर्सन, मनोरमा जोशी नवनीत जैन, कल्पना बंडी अर्पणा जोशी ,ज्योति सिंह ,अचला गुप्ता ,प्रभा तिवारी इंदौरआदि अनेक वरिष्ठ साहित्यकार और संस्था अध्यक्ष के अलावा हिंदी सृजन समूह ,अवनि सृजन समूह ,साहित्य कला परिषद, श्यामलम कला ,लायंस क्लब ,वंदे भारत मंच ,अखिल भारतीय मंच ,हिंदी साहित्य सभा ,वूमेंस सद्भावना महिला मंडल ,भोपाल समाज समिति, लेखिका संघ ,एहसास संस्था, हिंदी रक्षक मंच,साहित्य कला ,वीर परिवार बस्तर पाती आदिअनेक समूह के  साहित्यकार पदाधिकारियो, मित्रों और रिश्तेदारों में लगभग 500 से अधिक लोगों ने बधाई और शुभकामनाएं दी मीना गोदरे जी इन सब का आभार माना है🙏

                 मीना गोदरे अवनि ,इंदौर

विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल-


जब कभी ज़ीस्त पर कोई बार आ गया

नाम लेते ही उनका क़रार आ गया 

 

आप खोये हुए हैं कहाँ देखिये

आप के दर पे इक बेक़रार आ गया 


बहरे-ताज़ीम पैमाने उठने लगे

मयकदे में कोई मयगुसार आ गया 


आपके ख़ैरमक़्दम के ही वास्ते

देखिये मौसम-ए-पुरबहार आ गया 


आप क़समें न खायें हमारी क़सम 

छोड़िए छोड़िए ऐतबार आ गया 


जब अचानक कहीं कोई आहट हुई 

यूँ लगा हासिल-ए-इंतज़ार आ गया


दो क़दम जब भी मंज़िल की जानिब चला

उड़ के आँखों में *साग़र* ग़ुबार आ गया 


🖋️विनय साग़र जायसवाल

ज़ीस्त-

बार-बोझ ,भार

बहरे-ताज़ीम-स्वागत हेतु

मयगुसार-रिंद ,मयकश ,शराबी 

ख़ैरमक़्दम-स्वागत ,

पुरबहार -बहारमय ,बहारो से भरपूर

ग़ुबार-धूलकण

एस के कपूर श्री हंस

 [22/03, 9:17 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।   ।। संख्या 37।।*

*।।काफ़िया।। अता ।।*

*।।रदीफ़।। नहीं है ।।*

*बहर-1222-1222-122*

1

हमारा मन  वहाँ लगता  नहीं है।

जहाँ पर तू हमें दिखता  नहीं है।।

2

सिवा तेरे हमारा दिल किसी  का। 

कभी भी  रास्ता   तकता नहीं है।।

3

तुम्हारे हुस्न की   रंगत के  आगे।

कोई भी रंग अब फबता नहीं है।।

4

हमारा जोशे-दिल  देखो ख़ुदारा। 

तलाश-ए-यार में थकता नहीं है।।

5

हमारा पाँव गलियों     में तुम्हारी।

अभी भी जाने से  रुकता नहीं है।।

6

हैं हम तुम जिस्म दो पर जान इक हैं।

अलग अब कोई कर  सकता नहीं है।।

7

है तेरे हाथ में    साँसों की  डोरी।

हमारा ज़ोर कुछ  चलता नहीं है।।

8

नहीं हो *हंस* जब तुम साथ मेरे।

नज़ारा कोई     भी जचता नहीं है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।        9897071046

                      8218685464

[22/03, 9:17 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  12।।*

*।।काफ़िया।। आये।।*

*।।रदीफ़।। हो गए।।*


हम अपने घर में ही आज पराये हो गए।

हमारे पौधेआज दूजों के लगाये हो गए।।


अजब गजब किस्मत ने ऐसा खेल  खेला।

हमारे बताये रास्ते दूजों के दिखाये हो गए।।


गर्दिश में सितारे घिरे कभी न किसी के।

पत्थर से नाम हमारे ही  सफाये हो गए।।


जिस महफ़िल के सदर थे   हम कभी।

आज उस अंजुमन में सर झुकाये हो गए।।


गम नहीं है      फिर भी कोई   हमको।

अपनों के बीच हम जैसे भुलाये हो गए।।


*हंस* जिन रास्तों को सजाया हसीन सपनों से।

उन्हीं पर सरे राह हम लुटे लुटाये हो गए।।


*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"

*बरेली।।।।*

मोब।।।।।        9897071046

                      8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *कुण्डलिया*

देना कभी न चाहिए,दुष्ट जनों का साथ,

दूषित करते बुद्धि ये,अपयश आता हाथ।

अपयश आता हाथ,हँसाई होती जग में,

थू-थू करते लोग,नहीं कुछ रहता वश में।

कहें मिसिर हरिनाथ,समझ इसको है लेना,

करो बुद्धि से काम,न साथ दुष्ट का देना।।

            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                9919446372


             *कुण्डलिया*

साँच मीत होता वही, जो दे उचित सलाह,

पाप-कर्म से रोक कर,कह सुकर्म पे वाह।

कह सुकर्म पे वाह,गूढ़ को सदा छुपाता,

करे मदद जब गाढ़,व वादे सभी निभाता।

कहें मिसिर हरिनाथ,है मिलती उसको जीत,

बने बिगड़ता काम,यदि मिला साँच हो मीत।।

            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

                9919446372

वंदना शर्मा बिंदु देवास मध्य प्रदेश

 नाम      वंदना शर्मा   ।। विंदू।।


पति का नाम     रमेश चंद्र शर्मा


पिता स्वर्गीय कवि श्री कैलाश नारायण जी रावत


मां  श्रीमती सरोज देवी रावत


जन्म     8    अप्रैल


जिला   देवास   म . प्र.


प्रकाशन  विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओ का प्रकाशन व सम्मान नईदुनिया मि लेख पत्र व रचनाएं  प्रकाशित

सम्मान  ऑनलाइन कवि सम्मेलन मैं पुरस्कृत

ऑनलाइन श्लोक वाचन

हिंदी साहित्य लहर

अग्निशिखा मंच

काव्य धारा

साहित्य वसुधा

श्री नवमान साहित्य सम्मान

शुभ संकल्प आदि में सम्मान प्राप्त हुआ है



व्यवसाय   हाउस वाइफ  रचनाकार  कवित्री

मालवी लोकगीत, वाह बुंदेली लोकगीत


विचारधारा   धार्मिक   राष्ट्रवादी



स्थाई पता   देवास जिला मध्य प्रदेश

52  सर्वोदय नगर देवास

  



      




पंछी


वो पंख कहां से लाऊं

मैं बन पंछी उड़ जाऊं


तोड़ के सब जंजीरों को

मैं स्वतंत्र हूं जाऊं


वो पंख कहां से लाऊं

मैं बन पंछी उड़ जाऊं


ना रोके  टोके  कोई

जब मैं पंख फैलाऊं


अपने मन में मस्त

मैं गीत खुशी के गांऊ


वो पंख कहां से लाऊं

मैं बन पंछी उड़ जाऊं


कभी डाल डाल 

कभी पात पात


कभी चहेक चहेक

मौजों को गले लगाऊं


वो पंख कहां से लाऊं

मैं बन पंछी उड़ जाऊं


डरती हूं इस दुनिया से

कहां कौन ताक में बैठा हो


मीठे बोल फेंक के दाना

जाल बिछाए बैठा हो


कौन है अपना कौन पराया

मुश्किल है पहचानना


अपना बनकर कसे शिकंजा

मुश्किल है इनसे बचना


वो पंख कहां से लाऊं

मैं बन पंछी उड़ जाऊं


वंदना शर्मा बिंदु देवास मध्य प्रदेश




मौसम


यूं ही नहीं मौसम बदलते हैं बार-बार

तुमसे मिलन को नैना झरते हैं बार-बार।


आंचल जो मेरा भीगे जैसे हुई बरसात

यूं ही नहीं मौसम बदलते हैं बार-बार।


सावन के पड़े झूले अमवा की डाल पे

लग रहे हैं मैंले तीज त्यौहार के


तुमसे मिलन की आस जो मन में जगी आज

उमड़ घूमड़ प्रेम ले  मन में हिलोरें।


जैसे बसंत आने का संदेश भेजते

यूं ही नहीं मौसम बदलते हैं बार-बार


तुम्हारे रंग में जब रंगने लगी में

सब रंग प्यारे लगने लगे अपने आप में


फागुन में रंग रहा हो जैसे तन मन मेरा

भीग रहा आंचल तुम्हारे रंग में।


ले रही अंगड़ाइयां उमंगे बार-बार

यूं ही नहीं मौसम बदलते हैं बार-बार



वंदना शर्मा बिंदु देवास मध्य प्रदेश   






गुड़िया


मैं माटी की गुड़िया

काची गार की पुड़िया।


मारो कोख में ना बाबा

मैं काची गार की पुड़िया।


भाग लिखवा के लाई में

जरा अपनाओ तो बाबा।


मैं माटी की गुड़िया

काची गार की पुड़िया।


नहीं मैं कम किसी से हूं

जरा आजमाओ तो बाबा।


नहीं बेटे से कम होती है

बेटियां जान जाओगे।


बेटा कुल का दीपक है

तो दो कुल तारती बिटिया।


करेगी नाम रोशन वो

जरा सा मान दो बाबा।


मैं माटी की गुड़िया

काची गार की पुड़िया

मैं माटी की गुड़िया।


वंदना शर्मा बिंदु

देवास मध्य प्रदेश।




रिश्ते


कुछ सुलझे कुछ उलझे, तुम संग मेरे रिश्ते

कुछ रह गए , अनसुलझे से रिश्ते ।


जीवन अगर मिला है पिता से,

तो पहचान हमको, मिली है तुम्हीं से।


कुछ खट्टे कुछ मीठे, तुम संग मेरे रिश्ते

कुछ रह गए  , फीके फीके से रिश्ते।


कुछ खोया कुछ पाया, मिलकर के तुमसे 

जीवन में ठहराव, आया तुम्हीं से।


कुछ तोरे कुछ कड़वे, तुम संग मेरे रिश्ते

कुछ रह गए कटुक ,  कसैले से रिश्ते।


विरासत में मिले , संस्कार पिता से

सम्मान हमको , मिला है तुम्हीं से।


कुछ चटपटे, नमकीन, तीखे से रिश्ते

कुछ रह गए , खारे खारे से रिश्ते।


इकरार इनकार , में बीता जमाना

चलता रहा  , जीवन का फसाना।


कुछ गरम कुछ नरम , तुम संग मेरे रिश्ते

कुछ रह गए , ठंडे-ठंडे से रिश्ते ।


कुछ झन्नाए कुछ सन्नाए , तुम संग मेरे रिश्ते

कुछ रह गए, सरसरा के ये रिश्ते।


तार से तार आपस में, उलझे हों जैसे

कुछ रह गए , फड़फड़ा के ये रिश्ते।


जब से जुड़े तार , रिश्तो के तुमसे

तभी से जतन से ,सहेजें हैं हमने।


नाजुक बड़े , ये अनोखे है रिश्ते

कुछ सुलझे ,कुछ उलझे ,तुम संग मेरे रिश्ते।


वंदना शर्मा बिंदु

                             देवास।




मास्क


बच्चों की खुशियां परिवार की जिम्मेदारी

एक छोटा सा मास्क है जिंदगी तुम्हारी।


अपनों के प्रति वफादारी बखूबी निभाएंगे

इसलिए एक छोटा सा मास्क लगाएंगे।


खुद जागे औरों को जगायेंगे

खुद बचे औरों को बचाएंगे


अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाएंगे

एक छोटा सा माइक हम भी लगाएंगे।


जिंदगी बहुमूल्य है इसे बचाएंगे

एक छोटा सा मास्क हम भी लगाएंगे


बाहर खड़ी पुलिस वो भी बड़ी सजग

कोरोना से बचाने तैयार है सदैव।


साथ हो तुम्हारा तो जीत लेंगे जंग।

करना नहीं है कुछ भी बस मास्क है लगाना


बस हाथ धोते रहना और मास्क है लगाना

थोड़ी सी दूरी रखना खुश रहना जिंदगी में



एक छोटा सा मास्क है जिंदगी तुम्हारी

एक छोटा सा मास्क है जिंदगी तुम्हारी।



वंदना शर्मा बिंदु देवास मध्य प्रदेश


विनय साग़र जायसवाल

 ग़ज़ल -


पहले दूजे का कुछ तो भला कीजिए

फिर तवक्को किसी से रखा कीजिए

हुस्ने मतला--

यह इनायत ही बस इक किया कीजिए

हमसे जब भी मिलें  तो हँसा कीजिए


 साथ लाते हैं क्यो़ सैकड़ों ख्वाहिशें

हमसे तन्हा कभी तो मिला कीजिए


हाल मेरा ही क्यों पूछते हैं सदा

अपने बारे में कुछ तो लिखा कीजिए


आपको है हमारी क़सम हमनफ़स

हमसे कोई कभी तो गिला कीजिए


 आप भी और बेहतर कहेंगे ग़ज़ल

दूसरे शायरों को पढ़ा कीजिए


आप *साग़र* की ग़ज़लों में हैं जलवागर 

थोड़ा बनठन के यूँ भी रहा कीजिए 


🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली

20/3/2021

निशा अतुल्य

 कविता दिवस 

मुक्त विधा

21.3.2021


कुछ जीवित रखने के लिए 

उनका परिष्कृत होना जरूरी है ।

जब से ये विचार मन में आया

मैं स्वयं को रचनाकार समझ बैठी

क़लम उठाया चंद अक्षरों को जोड़

कुछ पंक्तियां रच डाली ।

और निराला,महादेवी के समक्ष 

ख़ुद को समझने की हिमाकत कर डाली ।

न वो गूढ़ता न कोई सन्देश 

बस कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा,

एक कविता का शीर्षक गढ़ा 

अपने को रचनाकार घोषित कर दिया।

ऐसे नहीं बन जाता है कोई भारतेंदु,

जयशंकर प्रसाद,सुभद्रा 

संयोजन करना पड़ता है वर्णों से

भावों का और किसी उद्देश्य का ।

एक जन चेतना का 

और किसी की विषमताओं का

किसी दर्द का,किसी उल्लास का। 

लेखनी सार्थक तब ही होती है 

जब कोई किसी का दर्द अपने शब्दो में ढाल 

आईना दिखाता है समाज का ।

और हम जैसे खरपतवार क्या सच में 

काबिल है आज का दिवस मनाने को

कविता तुम में भाव जरूरी है 

एक चेतना और आईना 

जब तक न बन पाए शब्दों से 

लेखन कैसा भी हो निरर्थक है ।

और कविता दिवस की सार्थकता

मीरा,सूर,कबीर,रहीम,महाश्वेता,अमृतासंदेशवाहक तक सीमित है ।


स्वरचित

निशा"अतुल्य"

डॉ बीके शर्मा

 "चल साकी"

"""""""""""""""""

पग-पायल झनकार लिए आ

नयनों में कटार लिए आ

भला बुरा यह कहती दुनिया 

पल दो पल तू प्यार लिए आ


रोना-गाना  तो दुनिया में

यूं ही चलता रहता है

लगता आंगन छोटा मुझको 

तू सारा संसार लिए आ


आने वाला जग जाता यहां

जाने वाला सो जाता

तेरा मेरा संबंध यहां है 

सांसों के दो तारे लिए आ


एक दूजे का हाथ थाम कर

एक दूजे की बात मानकर 

"चल साकी" इस जगती से

चलने को रफ्तार लिए आ


 डॉ बीके शर्मा

 उच्चैन भरतपुर( राजस्थान)

9828863402

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *कविता-दिवस*(21मार्च)

       कविता

कविता नहीं मात्र कल्पना,

भाव गहन गहराई है।

भाव-सिंधु में  कवि-मन डूबे-

यह मोती उतिराई है।।


जीवन का हर रंग घुला जब,

मिला ढंग हर सुख-दुख का।

सुबह-शाम पंछी का कलरव,

बना गान जब कवि-मुख का।

बहे जो अक्षर-सरिता बन कर-

वही सत्य कविताई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।


गगन में उड़ता देख परिंदा,

कवि-मन उसे पकड़ लेता।

खिले फूल को देख चमन में,

झट-पट उसे जकड़ लेता।

भूखे बालक की पीड़ा में-

कविता जगह बनाई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।



अवनि दहकती है ज्वाला से,

जब-जब अत्याचारों की।

अबला की जब अस्मत लुटती।

कुत्सित सोच-विचारों की।

बन कटार तब प्रखर लेखनी-

कविता-धार बहाई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।


जब भी दुश्मन वार किया है,

सीमा के रखवालों पर।

वीर राष्ट्र के सैनिक अपने,

देश-भक्त मतवालों पर।

क्रांति-भाव का बन कवित्त यह-

विजयी बिगुल बजाई है।।

कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।।


कवि-उर की यह भाव बहुलता,

यह उड़ान मन-भावन है।

सर्दी-गर्मी हर मौसम में,

यह तो फागुन-सावन है।

कविता की ही बोली-भाषा-

भाषा की प्रभुताई है।।

  कविता नहीं मात्र कल्पना,भाव-गहन गहराई है।

 भाव-सिंधु में कवि-मन डूबे,यह मोती उतिराई है।।

           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र

              9919446372

डॉ.राम कुमार झा निकुंज

 दिनांकः २१.०३.२०२१

दिवसः रविवार

विधाः  स्वच्छन्द (दोहा)

विषयः स्वच्छन्द

शीर्षकः रंगरसिया राधा रमण 


वंदन पूजन हरि चरण , अर्पण        जगदानन्द।

राधा नटवर  प्रिय मिलन , ब्रज  होली   आसन्द।।१।।


राधा     माधव    मोहिनी  , करूँ   रंग    शृङ्गार।

खेलूँ     होली   साथ    में , जननी  जग आधार।।२।।


मन  मुकुन्द  राधा प्रिया  ,  प्रीति भक्ति  रसधार।

गाऊँ   महिमा    श्रीधरन , हो    जीवन    उद्धार।।३।।


कंठहार माधव सुभग , कौस्तुभ   मणि  गोपाल।

मनमोहन सरसिज वदन , कोमल  गाल  रसाल।।४।।


पीतवसन  मुखचन्द्र  रस , माधव    मत्त   मतंग।

ललित कलित यशुमति तनय, होली    रंग तरंग।।५।।


सुष्मित  सुरभित राधिके ,मधु माधव   मन  मोर।

भींगी तन मन   प्रेम जल , मुरलीधर     चितचोर।।६।।


मतवाली  सब    गोपियाँ ,  लेकर  गाल   गुलाल।

रंगरसिया     राधा रमण , रंग    लगायी     भाल।।७।।


चढ़ा रंग   गोविन्द   मन , खेले      होली    मस्त।

जोगीरा    मधुगान   से , ग्वाल    बाल    उन्मत्त।।८।।


नंदलाल लखि नंद को ,प्रमुदित यशुमति   अम्ब।

लीलाधर रच  रास को , मुदित जगत   अवलम्ब।।९।।


मातु  यशोदा  कृष्ण लखि, खोयी  सुख  आनंद।

लखि मुकुन्द माँ नेह को , खिला हृदय  मकरन्द।।१०।।


माधव    मधुवन   माधवी , रंजित   फागुन   रंग।

राधा   मुख  रस  माधुरी , पीकर   थिरके   अंग।।११।।


ब्रजवासी  मधुमत्त लखि , राधा   नटवर    लाल।

गाये   फगुआ   गान  नँच , रंग    लाल   गोपाल।।१२।।


राधा  माधव   मधुमिता , मन मुकुन्द   अभिराम।

खेली  होली  मीत   मन , पा  श्रीधर    सुखधाम।।१३।।


राधा वल्लभ शुभ मिलन, फागुन  मास   निकुंज।

ब्रजभूषण दर्शन  सफल, व्रज  होली   सुख पूँज।।१३।।


समरसता     के     रंग    में ,  सराबोर    त्यौहार।

होली    मानक    एकता ,  सद्भावन       उपहार।।१४।।


मधुरिम वन मधु माधवी , मुकुलित चारु  रसाल।

फागुन के  नवरंग    से , सरसिज  गाल  गुलाल।।१५।।


रीति प्रीति नवनीत  मन , होली     समरस   गीत।

प्रगति सुरभि बन   खुशनुमा , सहयोगी   सद्मीत।।१६।।


धन्य  धन्य   जीवन सफल, कृष्ण साथ व्रजवास।

धन्य   भूमि  लखि भारती ,  राधा कृष्ण  विलास।। १७।।


सुखद शान्ति खुशियाँ सकल, होली  रंग   बयार।

राधा   मोहन  भज    मनसि , फागुन मास बहार।।१८।।


कवि    निकुंज अभिलाष मन,राधा कृष्ण ललाम।

हो    दर्शन   होली   मिलन , राधा  प्रिय घनश्याम।।१९।।


कवि✍️डॉ.राम कुमार झा "निकुंज"

रचनाः मौलिक (स्वरचित)

नई दिल्ली

डॉ बी.के. शर्मा

 विश्व जल दिवस 

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22 मार्च 2021 के उपलक्ष में


जल ही जीवन है

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"जल ही जीवन है" ऐसा कहते हैं लोग |

फिर भी आंख बंद करके रहते हैं लोग ||

आज बहालो तुम फिर तरसोगे जल के लिए |

क्यों नहीं बचाते हो इसे आने वाले कल के लिए ||

"जल से ही कल है" ऐसा कहते हैं लोग |

फिर भी आंख बंद करके क्यों रहते हैं लोग ||

कल को जिंदगी का हंसी पल बना लो |

व्यर्थ में बहते हुए जल को बचा लो ||

"जल ही जीवन का हल है" ऐसा कहते हैं लोग |

फिर भी आंख बंद करके क्यों रहते हैं लोग ||

क्यों ना मेरी बात पर कोई करता अमल है |

इधर भूगर्भ में बड़ी हलचल है ||

"जल से ही सकल है" ऐसा कहते हैं लोग |

फिर भी आंख बंद करके क्यों रहते हैं लोग हैं ||

अगर है शर्म तो आंखों का पानी बदल दो |

मेरी बात को थोड़ा सा अमल दो ||

'जल नहीं तो कल नहीं" ऐसा कहते हैं लोग |

फिर भी आंख बंद करके क्यों रहते हैं लोग ||


 डॉ बी.के. शर्मा

 उच्चैन भरतपुर राजस्थान

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *सप्तम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-44

कहे तुरत सिवसंकर दानी।

तुमहिं न जनम-मरन-दुख हानी।।

     मानउ सत्य मोर अस बानी।

     मिटै न तोर ग्यान खगप्रानी।।

पहिला जनम अवधपुर तुम्हरो।

पायो राम-भगति तुम्ह सगरो।।

     द्विज-अपमान व संत-निरादर।

     यहि मा नहिं भगवान-समादर।।

जे बिबेक अस मन मा रखही।

नहिं कछु जग मा दुर्लभ रहही।।

      अस मुनि-बचन हरषि गुरु तहऊ।

      एवमस्तु कह निज गृह गयऊ ।।

प्रेरित काल बिन्ध्य-गिरि जाई।

रहेउँ भुजंग जोनि सुनु भाई।।

      तब तें जे तन मैं जग धरऊँ।

      बिनु प्रयास तजि नव तन गहऊँ।।

जे-जे तन धरि मैं जग आऊँ।

राम-भजन नहिं कबहुँ भुलाऊँ।।

       बिसरै नहिं मोहिं गुरू-सुभावा।

       कोमल-मृदुल नेह जे पावा ।।

द्विज कै जनम अंत मैं पाई।

लीला लखे बाल रघुराई।।

     प्रौढ़ भए पठनहिं नहिं भावा।

     जदपि पिता बहु चहे पढ़ावा।।

राम-कमलपद रह अनुरागा।

नहिं कछु औरउ मम मन लागा।।

      कहु खगेस अस कवन अभागा।

       कामधेनु तजि गर्दभि माँगा ।।

इषना त्रिबिध नहीं मन मोरे।

संपति-पुत्र-मान जे झोरे ।।

     सतत लालसा रह मन माहीं।

     कइसउँ दरस राम कै पाहीं।।

गिरि सुमेरु तब बट-तरु-छाया।

मुनि लोमस आसीनहिं पाया।।

     तातें सुने ब्रह्म-उपदेसा।

     अज-अनाम प्रभु अछत खगेसा।

निरगुन रूप ब्रह्म नहिं भावा।

ब्रह्म समग्र सगुन मैं पावा ।।

     राम-भगति-गति जल की नाई।

      मम मन-मीन रहहि सुख पाई।।

दोहा-सगुन रूप मैं राम कै, निरखन चाहुँ मुनीस।

        करु उपाय कछु अस मुनी,देखि सकहुँ प्रभु ईस।।

                          डॉ0हरि नाथ मिश्र

                            9919446372

चंचल हरेंद्र वशिष्ट,हिंदी प्राध्यापिका,थियेटर शिक्षक एवं कवयित्री

 रचनाकार का नाम: श्रीमती चंचल हरेंद्र  वशिष्ट

माता का नाम: श्रीमती माया देवी शर्मा

पिता का नाम: श्री भूषण दत्त शर्मा 'कश्यप'

पति का नाम: श्री हरेन्द्र देव वशिष्ट

जन्मस्थान: बनखंडा,जिला हापुड़,उत्तर प्रदेश,भारत 

शिक्षा: एम.ए.-हिंदी, एम.एड.,

पोस्ट एम ए हिंदी लिंग्विस्टिक डिप्लोमा कोर्स,(केंद्रीय हिंदी संस्थान) नई दिल्ली

थियेटर एप्रीसिएशन कोर्स( राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) नई दिल्ली

उर्दू सर्टिफिकेट कोर्स ( दिल्ली उर्दू अकादमी) दिल्ली

व्यवसाय: हिंदी भाषा प्राध्यापिका(सेंट एंथनी सीनियर सेकेंडरी स्कूल,नई दिल्ली )हिन्दी विभागाध्यक्षा एवं थियेटर प्रशिक्षक।

रंगमंच विशेषतः नुक्कड़ नाटकों से सम्बद्ध। 

प्रकाशित रचनाओं की संख्या: विद्यालय पत्रिका में समय-समय पर बहुत सी रचनाएं प्रकाशित।

विभिन्न समाचारपत्रों में रचनाएं प्रकाशित।

प्रकाशित एकल पुस्तकें: अभी कोई नहीं,

पहली पुस्तक प्रकाशन की प्रक्रिया में।

साझा काव्य संग्रह: अभी तक पांच साझा काव्य संग्रह  में रचनाएँ प्रकाशित।

विश्व हिंदी संस्थान,कनाडा, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच, महिला काव्य मंच, दक्षिणी दिल्ली इकाई की सक्रिय सदस्य, ट्रू मीडिया तथा चित्रगुप्त प्रकाशन समूह से संबद्ध।

ऑल इंडिया हिन्दी उर्दू एकता ट्रस्ट (रजि) से सम्बद्ध एवं अनेक साहित्यिक संस्थाओं से संबद्धता।

काव्य पाठ :  विद्यालय तथा अनेक मंचों पर काव्यपाठ। 

विद्यालय में विभिन्न उत्सवों एवं कार्यक्रमों में मंच संचालन,संयोजन आदि।

गतिविधियां: समाज सेवा, हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार एवं उत्थान हेतु प्रयासरत,

नुक्कड़ नाटकों का आयोजन एवं निर्देशन आदि , हिन्दी भाषा ज्ञान कक्षाएं आदि।

सम्मान: महिला काव्य मंच, गाजियाबाद इकाई द्वारा सम्मान पत्र, 

चित्रगुप्त प्रकाशन द्वारा हिन्दी दिवस पर रचना एवं एक आलेख के लिए विशेष सम्मान पत्र ,

आॅल इंडिया हिन्दी उर्दू एकता मंच की ओर से साहित्य साधना सम्मान पत्र एवं अनेक सम्मान पत्र, सहभागिता पत्र आदि।

विशेष गौरवपूर्ण: मेरी स्वरचित दो रचनाएँ अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच पर काव्य सृजन एवं काव्य पाठ के माध्यम से गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज़!

ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों में प्रतिभागिता,यूट्यूब पर आॅडियो,वीडियो काव्य प्रसारण आदि।

विशेष:  विभिन्न मंचों पर स्वरचित सरस्वती वंदना गायन,काव्य की अलग अलग विधा में

रूचि: हिन्दी साहित्य पठन, विशेषकर काव्य विधा में लेखन, कविता एवं पटकथा लेखन, रंगमंचीय गतिविधियां।

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चंचल हरेंद्र वशिष्ट, हिन्दी विभागाध्यक्षा,

हिन्दी प्राध्यापिका,थियेटर प्रशिक्षक, कवयित्री एवं समाज सेवी

आर के पुरम,नई दिल्ली

9818797390


' उठो! राष्ट्र के वीर '


उठो! राष्ट्र के वीरों,तुम गरजो और हुंकार भरो

जो आंख उठे हिंद की ओर तुम उसका संहार करो

हम अमन ,शांति के वाहक हैं, युद्ध नहीं नीति अपनी

पर जो जैसी भाषा बोले उस पर वैसा ही वार करो।


रिपु दमन को समर क्षेत्र में,निज प्राण हथेली पर रखकर

अर्जुन सम लक्ष्य साधकर तुम,कर्मपथ स्वीकार करो

युद्धवीर तुम, कर्मवीर तुम, अतुलित महाबली तुम

तान के सीना रण में , अरि के सीने पर वार करो।


उठो! देश के नव प्राण,दिखा दो ताकत उस शत्रु को

अपनी सबल भुजाओं से शत्रु दल पर प्रहार करो

मातृ भूमि की आन, बान और शान बचाए रखने को

मिट्टी में मिलाकर शत्रु,निज माटी पर प्रत्युपकार करो।


चुनौतियों की चट्टानों को अदम्य साहस से भेद के तुम

शत्रु की कुटिल नीतियों पर,तुम फ़ौलादी वार करो

वंदे मातरम् और जय हिंद,सज़ा के अपने मस्तक पर

जोश की ज्वाला उर में भरकर,पैनी तलवार की धार करो।


महाराणा,सुभाष के तुम वंशज,धीर,वीर और पराक्रमी

याद करो अपनी आज़ादी,फिर से आज ललकार करो

विजय तिलक और गौरव गान से मातृभूमि सुशोभित हो

लहरा के अपनी विजय पताका,भारत की जय जयकार करो।


स्वरचित एवं मौलिक रचना:

चंचल हरेंद्र वशिष्ट,हिन्दी भाषा शिक्षिका,रंगकर्मी एवं कवयित्री

आर के पुरम,नई दिल्ली

9818797390




शीर्षक: कलम की तकदीर


मैं तो माँ वाणी का वरदान मानी गई हूं पर... क्या हुआ है मेरी तक़दीर को.... ? 

यही सोचकर...

यही सोच करके ...वो

कलम भी आज फूट फूट कर रोई है

क्या लिखूं फिर से वही  कुकृत्य ?,

क्या लिखूं बेबसी पीड़िता की?

क्या फिर से लिखूं लचर प्रशासन और सुस्त कानून, 

क्या लिखूं दरिंदगी इन वहशियों की?

क्या यही रह गया लिखने को?

क्या ये वही हिंद नहीं,जहां मैंने लिखी गौरव गाथाएं वीरांगनाओं की और विदुषियों की विद्वता के बखान किए?

तो क्यूं आज मैं समाज की कालिख पर स्याही बिखेरने के काम आती हूं?

क्यूं नहीं टूट जाती मैं ये सब लिखने से पहले?

क्यूं नहीं लिख पाती मैं इन दुष्कर्मियों की सज़ा ए मौत का ऐलान...तुरंत?

क्यूं रुकती, लड़खड़ाती हूं बार बार न्याय दाताओं के हाथ में? 

मैं सिर्फ़ कहानी, किस्से,कविता और लेख लिखने के लिए ही तो नहीं, मैंं इंसाफ़ ,हक, सत्य और सज़ा देने के लिए भी तुम्हारे हाथ में हूं,....

तो क्यूं नहीं लिखते वो जो सच है जो न्याय संगत है ?

इसलिए आज कहती है ये कलम कि कितने भी कुकृत्य लिख लो इनके ,कितनी भी शर्म दिलाओ इन्हें

कितनी भी थू थू करो,कितनी भी सज़ा दिलाओ इन्हें,

अपनी मां का दूध लजाने वालों को लाज कहां आती है?

इनके कुकृत्यों पर तो धरती माँ भी थर्राती है

इन बेशर्मों का केवल एक ही इलाज है

सौंप दो इन्हें ,इनकी सज़ा खुद समाज है

जनता की कोई सुनवाई नहीं,कानून भी लचर है

जनता हिसाब कर देगी तुरंत ही ,पुलिस,कोर्ट सब बेअसर हैं

सरकारी राशन मुफ्त उड़ाते रहते, सालों तक पड़े पड़े ये

फिर भी बच जाते, अनुकूल दण्ड न पाते ये,

उल्टा लटका के नंगा,इनकी चमड़ी उतारो 

तड़पने दो इन्हें, जान से न मारो।

चील,कौओं,गिद्धों के सामने छोड़ दो

इनके जिस्म का माँस ऐसे ही नोंचने दो।


चंचल हरेंद्र वशिष्ट, हिन्दी भाषा शिक्षिका,रंगकर्मी एवं कवयित्री

नई दिल्ली





'ललकार '


रणचंडी,लक्ष्मी,दुर्गा,काली,मैं ही तो हूँ

लक्ष्मीबाई,सरोजिनी नायडु ,मैं ही तो हूँ


कल्पना भी,किरण बेदी हाँ, मैं ही तो हूँ

माँ ,बहन,बेटी,बहु,पत्नी भी मैं ही तो हूँ


शिवशक्ति,अर्धनारीश्वर में है मेरा स्वरूप

चाँदनी सी शीतल भी,मैं ही हूँ तपती धूप


लेकिन छुपकर जो करता है वहशी पन तू

पहले सुन ओ नीच दरिंदे,मानव तो बन तू


मुझे ज़रा ललकार तो,मत कर यूँ घात तू

मर्द है तो फिर आकर सामने से टकरा तू


कायर और नपुंसक की तरह छुपता है क्यूँ

किसी बात में नहीं है कम नारी,बस देख तू


भुजदण्डों में है ताकत तो जा सीमा पर लड़

देश की खातिर जा सीमा पर दुश्मन से भिड़


मर्दानगी न दिखा , उन औरतों पर तू उदंड

अबला तू कहता जिन्हें हैं वो शक्ति प्रचण्ड।



चंचल हरेन्द्र वशिष्ट,हिन्दी प्राध्यापिका,थियेटर शिक्षक एवं कवयित्री

आर के पुरम,नई दिल्ली



' सत्य पथ पर चल निर्भय '


कदम कदम पर हर मानव की बड़ी परीक्षा होती है

कठिनाई कितनी भी आए विजय सत्य की होती है।


दृढ़संकल्प अगर हो मन में मुश्किल आसां होती है

जीवन की कठिन राह में संयम की ज़रूरत होती है।


पाप,अधर्म,अनैतिकता कभी पर्दे में नहीं छुप सकते

एक न एक दिन इन कर्मों की कीमत चुकानी होती है।


ग़लत राह पर चलकर,कितने भी उठ जाओ ऊंचे

महफ़िल में ख़ुद की नज़रों में गर्दन ऊंची कब 

होती है।


जीवन तो है रिश्तों में ही, खून के हों या मुंह बोले

साथ न हो अपनों का गर, ज़िन्दगी अधूरी होती है।


यूं ही नहीं मिला करते,मोती दामन से समंदर के

लहरों से जो टकराते उनकी खाली झोली नहीं होती है।


आँधी हो या तूफ़ान हो चाहे,डटकर जो आगे बढ़ते

पाते वो ही मंज़िल को जिनकी राहें संघर्षरत होती है।


ऊँच नीच की बात हो भले, तुम भयभीत नहीं होना 

हर घनी स्याह रात की नित एक भोर सुनहरी होती है।


लूटपाट,बेईमानी से दौलत चाहे लाख कमाई हो 

जीवन में ऐसे काले धन से बरकत कभी नहीं होती है ।


जो झूठ की डगर पर चलते,भय उनके भीतर पलता

सच्चाई के पथ पर जो चलते,जीत उन्हीं की होती है


स्वरचित एवं मौलिक रचना

चंचल हरेन्द्र वशिष्ट,हिन्दी भाषा शिक्षिका,थियेटर प्रशिक्षक,कवयित्री एवं समाजसेवी

आर के पुरम,नई दिल्ली




'निकिता हत्या मामला' 

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आज के युवक-युवतियों के लिए संदेश!...

समय है सोचने और सँभलने का!....

👉👉

प्रेम का फेंककर जाल ये,जीना करते मुहाल हैं।

धर्मांतरण है मक़सद,मुहब्बत तो सिर्फ़ चाल है।


सोची समझी हैे साज़िश,प्रेम की नहीं कोई बात यहाँ 

विवाह के नाम पर धर्मांतरण या धर्मांतरण के लिए विवाह ।


नफ़रत की आँधी कैसी भी हो,मासूम निशाना बनते हैं

प्रेम,मुहब्बत के नाम पर कुछ शातिर मोहरे चलते हैं।


अल्हड़ किशोर या युवक युवती, कठपुतली बन जाते हैं 

नफरत के व्यापार के नाम पर न जाने कितने ही जान गँवाते हैं।


ये धर्म,मज़हब,संप्रदाय के झगड़े तब तक नहीं मिटेंगे

जब तक कट्टरपंथियों के दिलों में नागफनी खड़े रहेंगे।


खुले घूमते दुर्योधन,दुशासन,लेकिन चेहरों पे मुखौटे हैं

पहचान हुई है मुश्किल,पर नीयत,खयाल सब खोटे हैं।


धर्मनिरपेक्षता के नाम पर,भ्रमित न हो अब पीढ़ी अपनी

मिलजुलकर रहो समाज में पर,भूलो मत पहचान अपनी।


सचेत हो जाओ नई पीढ़ी ,इस द्युत क्रीड़ा से अब दूर रहो

प्रेम विवाह करो भले ही पर मज़हबी खेल से दूर रहो।


हे!आर्यपुत्र संतानों जागो,निज संस्कृति पर मान करो

अपनी हिंदुत्व परम्परा की जड़ों को सुदृढ़ करो।


हिंदु संस्कृति का संरक्षण करके,निज धर्म का सम्मान करो

गिरगिटों की चाल से बचो ,बुद्धि,विवेक से ध्यान करो।


हिंदु होने पर गर्व करो ,हिंदुत्व का विस्तार करो

हे राम कृष्ण के वंशजों,सत्य सनातन धर्म का प्रसार करो।


चंचल हरेन्द्र वशिष्ट,हिन्दी प्राध्यापिका,थियेटर प्रशिक्षक,कवयित्री एवं समाजसेवी

नई दिल्ली




एक रचना:

           ' इस बार होली में !'


धुल जाए कलुष हृदय का, इस बार होली में

बह जाए  मैल हर मन का ,इस बार होली में।


तेरे -मेरे बीच में न रहे बाकि कोई तकरार

सब शिकवे गिले  मिटाना ,इस बार होली में।


 तू और मैं भुला दें ,मिलकर बन जाएँ हम

 रिश्तों की जंग हटाना ,इस बार होली में।


बातों में ही सुलझा लें ,उलझनें विवादों की 

दिल से दिल को मिलाना,इस बार होली में।


मुहब्बत का पैगाम ये ,पहुंचा दो सीमा पार

नफ़रत की दीवार हटाना ,इस बार होली में।


मेरे  वीर सैनिकों, तुम शत्रु से खेलो होली 

तुम घर की फ़िक्र न करना,इस बार होली में।


जिस थाली में खाएं,उस में ही छेद करें जो

ऐसे गद्दारों से बचना ,इस बार होली में।


राष्ट्रहित में जुट जाएँ,मिलकर के हम सारे

सिर्फ दोषारोपण मत करना,इस बार होली में।


गले लगा लो उनको जिनके अपने बिछड़े हों

किसी आँख से आँसू पोंछना,इस बार होली में


होली का मेरा संदेश तुम घर-घर में पहुंचा दो

स्नेह का गुलाल मलना, इस बार होली में।


स्वरचित एवं मौलिक 

चंचल हरेंद्र वशिष्ट,हिंदी प्राध्यापिका,थियेटर शिक्षक एवं कवयित्री


आर के पुरम,नई दिल्ली

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