"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
सुषमा दीक्षित शुक्ला
निशा अतुल्य
एस के कपूर श्री हंस
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
विनय साग़र जायसवाल
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
रवि रश्मि अनुभूति
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार नाथ मिश्र
परिचय
नाम : समरनाथ मिश्रा
पिताजी का नाम : श्री रामकृष्ण मिश्रा
माता जी का नाम : श्रीमती बबीता मिश्रा
जन्म तिथि : 12 जनवरी 1982
शिक्षा : विज्ञान संकाय में स्नातक
मोबाइल नं. : 7999497053
ई मेल पता : samarnathmishra1982@gmail.com
प्रकाशित पुस्तक : समर स्पंदन ( ISBN - 978-93-90223-32-9)
रचनाएं
१.
कैसे कह दूँ , तुम यहाँ नहीं ।।
मेरे हृदय के परिव्यास में
कोई ठौर नहीं , तुम जहाँ नहीं ।।
कैसे कह दूँ , तुम यहाँ नहीं ।।
चित में तुम , तुम चिंतन में
अवरोहारोह के प्रतिक्षण में
प्रतिक्षातुर दृग दर्पण के
तुष्टि में , स्वार्थ , समर्पण में
उत्कण्ठा में , उत्प्रेरण में
विस्मृति में हो , हो सुमिरन में
व्याप्त समर में नखशिखांत
प्रसरण में , अवगुंठन में
जीवन के बिखरे पृष्ठों में
प्रियतम मेरे ! तुम कहाँ नहीं ।।
कैसे कह दूँ , तुम यहाँ नहीं॥
मेरे हृदय के ; परिव्यास में
कोई ठौर नहीं, तुम जहाँ नहीं ।
कैसे कह दूँ , तुम यहाँ नहीं॥
गीत मे तुम , तुम गुञ्जन में
स्मृतियों के स्वर व्यञ्जन में
लिप्साओं के आलिंङ्गन में
आशाओं के उर -स्पंदन में
अश्रु से धुलकर रचे हुए
अँखियों के श्यामल अंजन में
मदन मदिर मुस्कानों से
इन अधरों के रति रञ्जन में
इन भावों में ; अनुभावों में
कोई तौर नहीं , तुम जहाँ नहीं ।
कैसे कह दूँ ; तुम यहाँ नहीं ।।
पतझड़ में तुम , तुम सावन में
तुम ग्रीष्म के मुकुलित यौवन में
हो शुभ्र शिशिर के शैशव में
हुलसित हेमन्त के बचपन में
तुम वर्षा के भीगे रागों में
औ शीत की कामुक ठिठुरन में
शरद शील कौमार्य में तुम
तुम हर ऋतु के आकर्षण में
खिले बसन्त में , मन-तरु पर
कोई बौर नहीं , तुम जहाँ नहीं ।
कैसे कह दूँ , तुम यहाँ नहीं ।।
कैसे कह दूँ , तुम यहाँ नहीं ।।
२.
लेखनी मशाल है
निज रश्मियां पुनीत ले,
जो तिमिर को जीत ले.
पथ प्रशस्त जो करे,
वो लखनी मशाल है !!
जो तीक्ष्ण तीव्र दक्ष हो,
तटस्थ हो, निष्पक्ष हो,
जो बात न्याय की करे,
वो लेखनी मशाल है !!
जो सत्य का सिपाही हो,
रक्त जिसकी स्याही हो,
कटे मगर झुके नहीं,
वो लेखनी मशाल है !!
मन से भय निकाल दे,
लहू मे जो उबाल दे,
” समर ” का आह्वान जो,
वो लेखनी मशाल है !!
आईना हो समाज का,
साक्षी कल और आज का,
जो काल से कला करे,
वो लेखनी मशाल है !!
जो मिटाती भ्रान्तियां,
जो बुलाती क्रान्तियां,
कायाकल्प जो करे,
वो लेखनी मशाल है !!
आक्रान्त जिससे ताज हो,
जो “आम ” की आवाज हो,
निरीह का मशीह जो,
वो लेखनी मशाल है !!
लो लक्ष्य पर सटीक हो,
जो विजय प्रतीक हो,
सतत चलायमान जो,
वो लेखनी मशाल है !!
३.
प्रसंग : ब्रम्हर्षि विश्वामित्र दैत्य उपद्रव से आकुल हो राजा दशरथ से आश्रम रक्षार्थ राम लक्ष्मण को माँगने आते हैं ।
समाचार सुन धावत आए , अयोध्यापति दरबार में ।
किए दण्डवत बोले - " ऋषिवर ! प्रस्तुत हुँ सत्कार में ।।
" आज धन्य ना मुझसा कोई , मंगल सदा महेश धरें ।
किसविध सेवा करूँ महर्षि! सेवक को आदेश करें ।।"
बोले ब्रम्हर्षि " बड़े उपद्रव , करते सुबाहू औ मारीच ।
यज्ञ कर्म व्यवधान करें ये , निश्चर निकर नराधम नीच ।।"
बोले अजसुदन भृकुटि तान , " तत्क्षण सेना भिजवाता हूँ ।
आततायी इस खल दल बल को , मृत्यु मिलन कराता हूँ ।।"
कहे ऋषिराई " महाराज यह , सरल उपाय शुचित नहीं ।
गुरूकुल परिसर , यज्ञभुमि पर , सैन्य पराक्रम उचित नहीं ।"
करबद्ध विनत दशरथ बोले , " जैसा भी कहें उपयुक्त करुँ ।
जिसे कहें श्री चरणों की रक्षा में , उसे नियुक्त करुँ ।।"
विश्वामित्र पुलकित हो बोले " अस्तु भूप ! अब जानें दें ।
राजकुँवर द्वय राम - लक्ष्मण , सँग हमारे आने दें ।।"
सजल नयन बोले तब दशरथ , " क्षमा करें हे ऋषि- रावी ।
कोमलांग मेरे किशोर दो , दैत्य भयंकर मायावी ।।"
" शिरोधार्य कर आज्ञा कैसे , सिंह सम्मुख मृगछान धरुँ ।
प्राण उत्सर्ग कहें , कर दूँ , कैसे सुत दोनों दान करूँ ।।"
दीन वचन सुनि हँसि मुनि बोले - " कातरता शोभाय नहीं ।
चक्रवर्ती अखिलाधिपति , रघुवंशी हो असहाय नहीं ।"
" एक अकेले रामचंद्र , त्रिलोक विजित कर सकते हैं ।
एक तीर से हिं रामानुज, कुल दैत्य प्राण हर सकते हैं।"
" भुज प्रलंब , गिरी वक्ष , सबल, आयुध स्व अंग निर्भीक हैं।
कोमलांग नहीं तनय तुम्हारे , पराक्रम पुण्य-प्रतीक हैं ।"
" रघुकुल रीति नीति महामन् , तनिक राखिए ध्यान में।
खड्ग न वह शोभा पाती है , पड़ी रहे जो म्यान में ।"
" हे राजन् ! है वही क्षत्रिय , निज जन मन भय त्राण करे।
शस्त्र सुयशी जो "समर" भुमि में , शत्रु का लहु पान करे।"
" रघुकूल की भावी सत्ता को , कीर्ति ध्वजा लहराने दो।
प्रखर प्रतापी पौरुष से , परिचित मही को हो जाने दो ।"
" हे रघुकुलभानू ! हे दशरथ ! अब हृदय वृत्त पाषाण करो।
राष्ट्र धर्म के परित्राण हित , राम-लक्ष्मण दान करो ।।"
स्थिर प्रज्ञ हो दशरथ बोले - " आज्ञा शिरोधारण करता हूँ।
ऋषि चरणों में , धर्म काज हित , दोनों सुत अर्पण करता हूँ ।।"
४.
#प्रेम_में
लिखने बैठा प्रेम कविता
नाम तेरा लिख आया मैं
देखते दर्पण अनायास फिर
खुद से ही शरमाया मैं ॥
दुनिया लगती अलबेली सी
हर पल लगता सपना सा
फागुन का ये असर है या कि
बिन धतूर बौराया मैं ॥
प्रेम में पड़कर मन की मेरे
ऐसी हालत हो गई है
जब कोई तेरा नाम पुकारे
मैं कहता हूं "आया मैं "॥
कितनी सारी बातें थीं जो
कहनी थी उससे लेकिन
जब वो आई पास मेरे
कुछ भी ना कह पाया मैं॥
रह जाए ना मन की मन में
सोंच सोंच घबराता हूं
और कह दूं तो रूठ न जाए
कितना हूं भरमाया मैं॥
उलझा उलझा सा है लेकिन
फिर भी अच्छा लगता है
उसका मुखड़ा चांद सलोना
और चकोर ललचाया मैं॥
५.
# अहिल्या क्युँ पाषाण हुई ???
गुरू विश्वामित्र के साथ जनकपुर की ओर जाते हुए एक निर्जन आश्रम देख श्रीराम ने जिज्ञासा प्रगट की तो गुरू ने अहिल्या की कथा सुनाई और तदुपरांत प्रभू ने अपने चरणरज से अहिल्या का उद्धार किया ।
सहस्त्र वर्षों के जड़त्व यातना से त्राण पाकर अहिल्या प्रभु से क्या कहती है -
पाकर पावन पदरज प्रभु के
शैल अहिल्या नार हुई
युग युग की जड़ता से मुक्त
सम्प्राण पुन: साकार हुई
कञ्चनाभ किञ्जल कृशकायी
सुँदर मुख सुखकार अहे
अनुभूत कर उर स्पन्दन
अविरल अश्रुधार बहे
स्मृतियों के बंध खुले ; औ'
स्वयम् से एकाकार हुई
नयन निरखि निज सम्मुख श्रीहरि
द्रवित नमित ऋषिनार हुई
कर अभिनंदन , रघुनंदन का
भाव सिक्त हो मदिरांगी
करुण कण्ठ से , कम्पित स्वर में
बोली गौतम वामांगी
श्रांत हृदय में भाव सिंधु धर
हरि सम्मुख अवधान हुई
कहो - "कौशिल्यापुत्र ! अहिल्या
किस कारण पाषाण हुई ???"
"परपुरुषगामिनी हुई कलंकिनी
खण्डित मेरा सतीत्व हुआ
तीन लोक में , युग युगान्त
कलुषित निन्दित व्सक्तित्व हुआ"
"बस एक प्रहर में , पुण्य धर्म का
सारा सञ्चय रीत गया
वह एक प्रहर जो , निश्चित विधि से
प्रहर पुर्व हिं बीत गया"
"इन्द्र चन्द्र की कपट कुमाया
मोहित आश्रमस्थली हुई
देवराज की असुर वृत्ति से
एक निश्छला छली गई"
"शीतल सुरभित मधुर यामिनी
चन्द्र ने कामागार किया
रुप धरे गौतम का ; इन्द्र ने
भावुक प्रेमोद्गार किया"
"सुन प्राणप्रिय की प्रणय याचना
मैंने रति श्रृंगार किया
निज पति जान हिं , देवभूप को
मैंने अंगीकार किया"
"परख न पाई पातक पशु को
यह मेरा अपराध रहा
किन्तु व्योम साक्षी है , पाप में
तनिक न मेरा साध रहा"
"इक व्यभिचारी के कुताप से
नार अबोधिनी म्लान हुई
कहो कौशिल्यापुत्र ! अहिल्या
किस कारण पाषाण हुई ???"
"जिसने किया छल , दुष्ट सबल खल
देवराज कहलाता है
स्वर्गिक सुख ऐश्वर्य भोगता
किञ्चित नहीं लजाता है"
"उसका अनुचर , रजनीगगनचर
पाप का था अवलंब बना
किन्तु कान्ति किरीट कंत वह
सुन्दरता का बिम्ब बना"
"दोनो हि पातक अपराधी
किन्तु उनको दण्ड नही
कैसे धीर धरुँ , हे राघव !
न्याय है ये , पाखण्ड नही"
"सबल पातकी सुयशी सुफल और
अबला हत अवसान हुई
कहो कौशिल्यापुत्र ! अहिल्या
किस कारण पाषाण हुई ???"
"कहो कौशिल्यापुत्र ! अहिल्या
किस कारण पाषाण हुई ???"
समर नाथ मिश्र
काव्य रंगोली आज का समम्मानित कलमकार चन्दा डांगी - चित्तौड़गढ़ (राज)
श्रीमती चन्दा डांगी - चित्तौड़गढ़ (राज)
--शिक्षा_B.A., Reiki Grandmaster
प्रकाशन _नई दुनिया, दैनिक भास्कर में पत्र प्रकाशन
अग्नि शिखा कथा धारा में लघुकथाएं प्रकाशित, राजश्री पत्रिका में लेख , अमृत राजस्थान में कविताएँ,आचार्य महाप्रज्ञ में कविता प्रकाशित
1996 से पालीथीन मुक्त भारत के लिए प्रयासरत
लगभग 100 विद्यालयों में हजारों बच्चों को पालीथीन का उपयोग कम करने की शपथ दिलाई
लगभग 300 व्यक्तियों का रेकी द्वारा ईलाज किया और 60 व्यक्तियों को रेकी सिखाई
सम्मान_कर्तव्य मंच चित्तौड़गढ़, LNJ भीलवाड़ा, लायनेस क्लब निम्बाहेड़ा, कार्यालय उपखण्ड अधिकारी भदेसर, नगर परिषद् चित्तौड़गढ़,संस्कृति क्लब चित्तौड़गढ़, स्टेट फेडरेशन युनेस्को (पाली), राजस्थान दिवस उपखण्ड स्तर, युनिट हेड अल्ट्राटेक सीमेंट आदित्य पुरम्,सी.एस. आर. आदित्य सीमेंट,महावीर इन्टरनेशनल भदेसर, आचार्य तुलसी फाउंडेशन अभिनन्दन पत्र दो बार, अनेक राजकीय विद्यालयों द्बारा,अखिल भारतीय अग्नि शिखा गौरव रत्न
सम्मान, अखिल भारतीय अग्नि शिखा मंच साहित्य सम्मान,जिला यूनेस्को एसोसिएशन चित्तौड़गढ़, अग्नि शिखा कलम योद्धा सम्मान दो बार,द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्डर सम्मान,रेड डायमंड अचीवर्स अवार्ड,अमृत राजस्थान द्वारा कोरोना योद्धा सम्मान, साहित्य मित्र मण्डल जबलपुर द्वारा
16/8/20 सहभागिता सम्मान
22/8/20 साहित्य श्री सम्मान
23/8/20 सहभागिता सृजन सम्मान
30/8/20 श्रेष्ठ सृजन सम्मान
6/9/20 उत्तम सृजन सम्मान आचार्य तुलसी ब्लड डोनेशन की सदस्य………….ब्लड पुराने तीन बार
स्पीक मेके _फुड इन्चार्ज…….2012 से पुराने कपड़े इकट्ठा करके गाँवों में बांटना
आकाश वाणी वार्ता तीन बार
श्रीमती चन्दा डांगी - चित्तौड़गढ़ (राज)---शिक्षा_B.A., Reiki Grandmaster
प्रकाशन _नई दुनिया, दैनिक भास्कर में पत्र प्रकाशन
अग्नि शिखा कथा धारा में लघुकथाएं प्रकाशित, राजश्री पत्रिका में लेख , अमृत राजस्थान में कविताएँ,आचार्य महाप्रज्ञ में कविता प्रकाशित
1996 से पालीथीन मुक्त भारत के लिए प्रयासरत
लगभग 100 विद्यालयों में हजारों बच्चों को पालीथीन का उपयोग कम करने की शपथ दिलाई
लगभग 300 व्यक्तियों का रेकी द्वारा ईलाज किया और 60 व्यक्तियों को रेकी सिखाई
सम्मान_कर्तव्य मंच चित्तौड़गढ़, LNJ भीलवाड़ा, लायनेस क्लब निम्बाहेड़ा, कार्यालय उपखण्ड अधिकारी भदेसर, नगर परिषद् चित्तौड़गढ़,संस्कृति क्लब चित्तौड़गढ़, स्टेट फेडरेशन युनेस्को (पाली), राजस्थान दिवस उपखण्ड स्तर, युनिट हेड अल्ट्राटेक सीमेंट आदित्य पुरम्,सी.एस. आर. आदित्य सीमेंट,महावीर इन्टरनेशनल भदेसर, आचार्य तुलसी फाउंडेशन अभिनन्दन पत्र दो बार, अनेक राजकीय विद्यालयों द्बारा,अखिल भारतीय अग्नि शिखा गौरव रत्न
सम्मान, अखिल भारतीय अग्नि शिखा मंच साहित्य सम्मान,जिला यूनेस्को एसोसिएशन चित्तौड़गढ़, अग्नि शिखा कलम योद्धा सम्मान दो बार,द ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्डर सम्मान,रेड डायमंड अचीवर्स अवार्ड,अमृत राजस्थान द्वारा कोरोना योद्धा सम्मान, साहित्य मित्र मण्डल जबलपुर द्वारा
16/8/20 सहभागिता सम्मान
22/8/20 साहित्य श्री सम्मान
23/8/20 सहभागिता सृजन सम्मान
30/8/20 श्रेष्ठ सृजन सम्मान
6/9/20 उत्तम सृजन
मानवाधिकार सुरक्षा संगठन
निम्बाहेड़ा (चित्तौड़गढ़) (राजस्थान)
8/3/21
अग्नि शिखा कलम योद्धा सम्मान
साहितयिक मित्र मंडल श्रेष्ठ लेखक सम्मान
आचार्य तुलसी ब्लड डोनेशन तीन बार
सदस्य……स्पीक मेके _फुड इन्चार्ज …
.2012 से पुराने कपड़े इकट्ठा करके गाँवों में बांटना
आकाश वाणी वार्ता तीन बार
सम्प्रति _homemaker समाज सेवी)
चन्दा डांगी आदित्य सीमेंट चित्तौड़गढ़ राजस्थानसम्प्रति _homemaker समाज सेवी)
चन्दा डांगी आदित्य सीमेंट चित्तौड़गढ़ राजस्थान
$$ सुरक्षा $$
गाड़ी धीमे धीमे हांक भाया
टाबर नाले वाट,भाया टाबर नाले वाट
सीट बेल्ट लगाइले थुं तो
कभी ना टुटे हाड़ कभी ना टुटे हाड़
थुं तो चोखो रे वे आज
भाया टाबर नाले वाट!
हेल्मेट लगाइले थु तो,
कदी नई फुटे माथो
कदी नई फुटे माथो
थुं तो चोखो रे वे आज
आगे पाछे देख रे भाया
टाबर नाले वाट
मास्क पहनले, हाथ धोयले
भीड़ मे थुं मत जाय
भीड़ मे थुं मत जाय
और वैक्सीन लगाय
जद ही तो थुं स्वस्थ रेवेगा
बात या मुं समझाये थाने
बात या मुं समझाये
हाथ जोड़ने करूं विनती
सुरक्षा को राखो ध्यान
परिवार वाला खुश रेवेला
अतरो राखो ध्यान।
चन्दा डांगी आदित्य सीमेंट
W/o shri A.k.Dangi
Code no.5569 project
खाली तख़त काटने को दौड़े मन व्याकुल है उर बेज़ार, बबुआ संग शहर चले गये सब जन हो तैयार।
विनय साग़र जयसवाल
सुनीता असीम
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
एस के कपूर श्री हंस
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार सुवर्णा अशोक जाधव
परिचय:
* सुवर्णा अशोक जाधव
* मोबाइल: 9819626647
* ईमेल: goldanj@gmail.com
* माजी वरिष्ठ सहायक संचालक, व्यवसाय शिक्षा विभाग,
* शिक्षा-एम ए, एम फील (हिंदी), एम ए (मराठी), एमबीए (एच आर), हिंदी अनुवाद पदविका, DLL & LW
* पता -हंसमणी सोसायटी ब्लॉक नंबर बावीस सर्वे नंबर 132/ए , दांडेकर ब्रीज पेट्रोल पंप के पिछे सिंहगड रोड पुणे411030
* साहित्य- हिंदी "शिकायत" कविता संग्रह और मराठी में सय, सखी, आरसा कविता संग्रह प्रकाशित, "रंग जीवनाचे" मराठी लेख संग्रह प्रकाशित। मरवा चारोली संग्रह प्रकाशित। विविध पत्रिकाओ में लघुकथा प्रकाशित।
दिवाली अंक में मेरे द्वारा ली गई मुलाकातें प्रकाशित ( ओमप्रकाश सहगल, सुरुचि सुराडकर, प्रिया कालिका बापट)
* समीक्षा-अनेक पुस्तकों की समीक्षा लिखी।
*अनुवाद- लगन से गगनतक (प्रेरणादायक लेख)और लाॅकडाऊन (कविता) का हिंदी से मराठी में अनुवाद
और तीन किताबों का मराठी से हिंदी में अनुवाद।
* "निल "मराठी सिनेमा में भूमिका की खंखखखखखखख।
* अनेक पुरस्कारों से सम्मानित
*संस्था पदाधिकारी
मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष.. राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना
अध्यक्ष...समास मुंबई
विश्वस्त... तेजस्विनी संस्था, पुणे
उपाध्यक्ष... मुंबई प्रदेश अखिल भारतीय मराठी साहित्य परिषद*-
****-*
अधर
*
किसी ने यह सोचा नहीं था
की एक दिन यह भी होगा खुलेआम इतराने वाला
अधर पर्दे में कैद होगा।
न जाने किसकी नजर लग गई अधरों पर अब
मास की पट्टी आ गई ।
कोरोना के डर से
अधर पर पर्दा
करने का है फरमान ।
पर्दा करना पड़ता है ।
अब इतराने के
मन में ही रह गए अरमान।
कान में बाली ,हाथ में कंगन
सब सजते संवरते थे पहन के गहने ,
अब अधर भी लगे हैं सजने सवरने ।
उसके लिए पैठणी
और सोने चांदी के मास्कभी लगे हैं बनने।
उसे कहना समझ करलोग लगे हैं पहनने ।
पहले हंसना ही था अधरका गहना
पर उसके भाग्य में आया ,
हंसी छुपा कर मास्क में रहना।
अधर का कामअब आंखें करने लगी है
आंखें ही अब हंसने बोलने लगी है।
*****
[ होली
रंगो का त्यौहार है होली
प्यार मोहब्बत का त्यौहार है होली गिले-शिकवे मिटाने का त्यौहार है होली।
घूमते है बनाकर टोली
अपने रंग में रंग डाल खेलते हैं होली।
गुझिया खाने का और भांग पीने का
बहाना है होली,
रंगने और रंग डालने का त्यौहार है होली।
अपने साथ हो तो रंगो बीना भी रंगीन हैं होली,
अपने साथ ना हो तो रंग होते हुए भी बेरंग है होली।
पेड़ का दर्द
सदा मुस्कुराने वाला पेड़ निराश दिखाई दिया ,
मैंने पूछा
"क्या हुआ बाबा?"
"वट पूर्णिमा आयी"
उसने कहा ..
मैंने कहा, ,
"अच्छा है ना फिर,
कहां-कहां से महिलाएं आएंगी पूजा करेगी, तुम्हारा महिमा गाएगी"
पेड़ ने कहा ,
"उसी का तो रोना है "
गांव में अभी ठीक है
शहर में लेकिन बुरा हाल है।
गांव में महिला पेड़ों के
सखियों पेड़ का दर्द जानो ,
पेड़ लगाओ ,
पेड़ बचाओ।
*********
नारी
नारी नारी है ,
कहते है आजकल
सब पे भारी है ..............
नारी नारी है ,
प्यार -ममता से
लगती न्यारी है ..............
नारी नारी है ,
दिन-रात एक करे घरके लिए
तो सबको प्यारी है ...........
नारी नारी है ,
पर आज भी
अपनोंसे हारी है .......
नारी नारी है ,
पर अपनी आज़ादी के लिए
अभी भी जंग उसकी जारी है
--------------------------------
खामोश हूँ
खामोश हूँ
आगोश में हूँ ,
इसका मतलब यह नहीं
की मै डरपोक हूँ .......
जबाब दे सकती हूँ
तलवार बन सकती हूँ ,
पर मै ,
तोड़ने से जादा
जोड़ने में
विश्वास रखती हूँ ........
औरत हूँ ना ,
प्यार में मजबूर हूँ ,
इसलिए खामोश हूँ ........
लेकिन खामोश हूँ ,
इसका मतलब यह नहीं
की मै डरपोक हूँ .....
---------------------------------
निर्भया
निर्भया
रखा आपने मेरा नाम निर्भया
पर अभी भी नहीं हूँ मैं निर्भया |
सारे जहाँ में आत्मविश्वास से चलती हूँ मैं,
तरक्की के सपने देखती हूँ मैं,
स्वप्नपुर्ती के लिए कोशिश करती हूँ मैं |
फिर भी ......,
स्त्री होने के कारन ,
किसी के द्वारा शिकार होती हूँ मैं |
कोशिशों के बाद संवर जाती हूँ मै,
फिर घावों पर घाव सहती हूँ मैं..|
कई पीढीयों से बार बार
यही दुख भोग रही हूँ मैं..|
"भोगवस्तु "यह मेरी प्रतिमा बदलेगी कब?
इंसानियत से मेरे साथ सब पेश आयेंगे कब ?
सन्मान के साथ जियूंगी कब ?
जगह जगह पर अभी भी ,
देखती हूँ शोषित निर्भया ...,
निर्भया कहते हो ,
पर अभी भी नहीं हूँ मैं निर्भया ..........|
अभी भी नहीं हूँ मैं निर्भया ..........|
*****
*************
अनिल गर्ग
सुनीता असीम
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
निशा अतुल्य
सुषमा दीक्षित शुक्ला
सुनीता असीम
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार किनिया
नाम - हर्षिता किनिया
पिता - श्री पदम सिंह
माता - श्रीमती किशोर कंवर
गांव - मंडोला
जिला - बारां ( राजस्थान )
मो. न.- 9461105351
मेरी कविताएं निम्न है
1."मेरा नाम"
जब मैं बाबुल के घर आयी ,
हर्ष उल्लास और खुशियां लाई।
नामकरण जब हुआ मेरा,
"हर्षिता" मैं कहलाई ।।
2 .शीर्षक - " कवि"
ना हो जिसके मन में डर,
और ना ही है वो अमर,
जिसकी वाणी में दबंग आवाज हो ,
कलम सच्चाई लिखने के लिए हर पल तैयार हो।
ना हम किसी के मित्र है और ना ही शत्रु , सच्चाई लिखने का साहस हम रखते हैं,
एवं निडर भाव से कविताएं रचते है ,
तभी तो हम " कवि" कहलाते है...
ऐसा नहीं की हम सच्चाई को आसानी से कह देते हैं,
कही बार तो हम लोगो की आलोचनाएं भी सहते हैं,
हम गरीब की आवाज बन कर उन्हें न्याय दिलाते हैं ,
राजाओं को भी गुलाम बनने से बचाते हैं, लोकतंत्र के इस शासन में जनता को समझाते हैं,
भ्रष्टाचार क्या होता है उन्हें ये बतलाते हैं,
यूं ही नहीं हम "कवि" कहलाते है....
वीर शहीदों की गाथाएं हम लोगों को बताते हैं, और कई बार कारागृह में भी रात बिताते हैं,
हम कुछ पंक्तियों में बहुत बड़ा अर्थ छिपाते हैं, यूं ही नहीं हम " कवि" बन जाते हैं.....
सोती हुई प्रजा को हम जगाते है,
उनके साथ हुए अन्याय से उन्हें अवगत कराते हैं,
यूं ही नहीं हम "कवि" कहलाते हैं......
साहस ,शौर्य ,प्रेम एवं बलिदान ये सब हम में होता है,
तभी तो हमारी कलम बोल उठती हैं,
शहीदों के बलिदान को हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे,
अपनी कविताओं में रचकर उनका शौर्य नव पीढ़ी को बतलाएंगे ,
अन्याय का विरोध करते - करते हम चाहें मिट जाएंगे,
तभी तो हम "कवि" कहलाएंगे….
हास्य , व्यंग्य, वीर , रोद्र हर रस में कविताएं रचते हैं,
कविताओं को लोगों के समक्ष रखने के लिए रात - रात भी जगते है,
यूं ही नहीं हम "कवि" बन जाते है ।।
कवियत्री - हर्षिता किनिया
3 - "बेटियां "
हे भगवान ! तूने क्या बनाई है बेटियां ,
आज अपनी तो कल ,
पराई है बेटियां ।
हे भगवान..............
जिन मां - बाप ने पाल पोषकर हमें बड़ा किया है ,
उन्हीं ने आज धूम - धाम से हमें विदा किया है।
हे भगवान !तू ही बता हमने क्या गुनाह किया है?
कन्या भ्रूण हत्या बंद हो गई,
बेटियों की संख्या में भी वृद्धि हो गई,
पर विश्वास तो केवल बेटों पर ही किया जा रहा है।
बेटियों को तो एक मोहरा बना दिया गया है।।
हे भगवान !तू ही बता हमने क्या गुनाह किया है ?
तू ही बता हमने क्या गुनाह किया है ।।
कवयित्री - हर्षिता किनिया
4 शीर्षक - " माता- पिता"
ना धन मांगू,
ना दौलत मांगू ,
हर जन्म मिले मुझे यही मात - पिता ,
मैं रब से यही मांगू ।
कोशिश करती हूं कि ,
मैं इनकी हर ख्वाइश पूरी करू ।
इनके सपनों को पूरा कर,
जग में इनका नाम रोशन करू ।।
गर्व करें ये अपनी संतान पर,
खुशियों के रंग इनके जीवन में लाऊ।
मैं रब से यही फ़रियाद करू।।
हे आभार प्रकट करती ,
ईश्वर मैं तेरा,
जो तूने मुझको ऐसे मात- पिता दिए।
बिन कहे ही ये मेरी ,
सम्पूर्ण ख्वाइशों को पूरा करे ।।
हे धन्य हुई इनको पाकर ,
चरणों में इनके वंदन करती ।
हर जन्म मिले मुझे यही मां - बाप ,
मैं रब से यही फ़रियाद करती ।।
जो मांगा अब तक हमने,
इन्होंने लाकर दिया है।
हमारी हर ख्वाइशों को,
इन्होंने पूरा किया है।।
लाख करू जतन भी फिर भी,
इनका उपकार न चुका सकती ।
हर जन्म मिले मुझे यही मां- बाप ,
मैं रब से यही फ़रियाद करती।।
मैं रब से यही फ़रियाद करती।।
- हर्षिता किनिया
5 .शीर्षक - "क्या तुमको दीपक दिखलाऊं"
क्या तुमको दीपक दिखलाऊं,
कैसा घनघोर अंधेरा है।
थोड़े कदम बढ़ाओ आगे,
थोड़ी दूर सवेरा है।।
संभल - संभल कर चलना सीखो ,
तो आगे बढ़ जाओगे।
जग में नाम करोगे रोशन ,
अपनी मंजिल पाओगे।।
जब - जब कोई बढ़ा जगत में,
तूफानों ने घेरा है।
क्या तुमको दीपक दिखलाऊं,
कैसा घनघोर अंधेरा है..
पहले अपनी मंजिल चुन लो,
फिर उस पर प्रस्थान करो।
पक्का वादा कर लो मन से,
फिर सबका कल्याण करो।।
क्या तुमको दीपक दिखलाऊं,
कैसा घनघोर अंधेरा है।
थोड़े कदम बढ़ाओ आगे,
थोड़ी दूर सवेरा है।।
- हर्षिता किनिया
6. शीर्षक - "मैं तिरंगा हूं"
मैं तिरंगा हूं ,
भारत की शान हूं।
कामगारों की कसौटी मैं,
किसानों की मुस्कान हूं ।।
केवल फहराये जाने के लिए ही नहीं हूं ,
मैं आप सभी का सम्मान हूं ,
मैं तिरंगा हूं , भारत की शान हूं।
मैने देखा है जमाना गांधी का ,
नेहरू के सीने में जिया हूं ।
हिंदुस्तान के बंटवारे का,
जहर भी मैं पिया हूं।।
मैं जैन हूं, सिख, इसाई,
बौद्ध , पारसी ,हिंदू हूं ,मुसलमान हूं,
मैं तिरंगा हूं भारत की शान हूं।
वीरों के दिल की धड़कन,
कामगारों की कसौटी,
किसानों की मुस्कान हूं।
मैं तिरंगा हूं ,तिरंगा हूं, तिरंगा हूं,
भारत की शान हूं ।।
कवयित्री
- हर्षिता किनिया
शीर्षक - "आत्मविश्वास "
मुश्किलें जरूर है ,
मगर ठहरी नहीं हूं मैं ।
मंजिल से जरा कह दो ,
अभी पहुंची नहीं हूं मैं ।।
कदमों को बांध न पाएंगी,
मुसीबत की जंजीरे ।
रास्तों से जरा कह दो ,
अभी भटकी नहीं हूं मैं ।।
सब्र का बांध टूटेगा ,
तो फना कर के रख दूंगी ।
दुश्मन से जरा कह दो ,
अभी गरजी नहीं हूं मैं ।।
दिल में छुपा कर रखी है ,
लड़कपन की चाहते ।
दोस्तों से जरा कह दो ,
अभी बदली नही हूं मैं ।।
साथ चलता है मेरे ,
दुआओ का काफिला ।
किस्मत से जरा कह दो,
अभी तनहा नहीं हूं मैं ,
अभी तनहा नहीं हूं मैं ।।
- हर्षिता किनिया
शीर्षक - "निवेदन एक बेटी का"
मैं भारत की बेटी आज तुमसे,
प्रसन्न चिन्ह ये करती ?
जब नारी का सम्मान जगत में तो,
क्यूं तुम्हारी बेटी आज घर में कैद हे बैठी ?
पहले 10 वीं तक पढ़ाकर ,
बड़े - बड़े सपने दिखलाएं,
जब पूरा करने का वक्त आया तो,
क्यूं वो पीछे हट जाये?
पढ़ा - लिखा कर तुम उसको,
अपनी नव पहचान दो ,
जग में नाम करेगी रोशन ,
उसकी भी पहचान हो ।
मैं भारत की बेटी........?
लोक - लाज के भय से तुम ,
उसके जीवन के रंग ना छिनों ,
और ना ही...
पुत्र को आगे बढ़ाने की चाह में,
उसके सपनों को ना तोड़ो।
नई उमंग की आशा लेकर ,
उसके जीवन में खुशहाली भर दो।।
किस शास्त्र में लिखा है कि ,
बेटी केवल घर - गृहस्थी संभालेगी ?
वो भी अपना सपना पूरा कर ,
अपनी मंजिल पायेगी।
मुक्त करो जंजीरों से,
उसको आगे बढ़ने दो।
उसको अपने जीवन में नव रंग है ,
भरने दो ।।
तुम्हारी खुशियों की खातिर वो ,
मोन आज है बैठी ।
अपनी ख्वाइशों को मारकर ,
आज मेरी सखि उदास घर पर हे बैठी !
मन की हर बात उसने मुझको हे बतलाई,
मगर मैं उसके परिवार को न समझा पाई ,
उदास चेहरे के साथ मैं उसके घर से लौट आई ।
कुछ दिन उपरान्त.........
फिर हम दोनों सखियों ने मिलकर,
एक नई पहल चलाई ।
गांव की हर लड़कियों को कराएंगे, अब हम पढ़ाई ।।
उसके साथ काम कर मुझको ,
बहुत प्रसन्नता है आई,
मगर अफसोस रहा की ,
मैं अपनी सखि का तो सपना ही पूरा न कर पाई।।
क्यूं उसके परिवार को ,
मैं ना समझा पाई ।।
कवयित्री - हर्षिता किनिया
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