"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
एस के कपूर श्री हंस
विनय साग़र जायसवाल
निशा अतुल्य
डा. नीलम
डॉ0 निर्मला शर्मा
सुनीता असीम
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रकाश रेगर
परिचय:-
नाम,चन्द्र प्रकाश रेगर
मो,8441039551
पता,नैनपुरिया पो,नमाना,तह,नाथद्वारा,
राजसमंद ,राजस्थान
शिक्षा:-GNM,NURSING
अनुभव:-3years
पहली कविता प्यार अंधा है,
वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ
जीवन की क्षणभंगुरता में,
सतत बह रही इस सरिता में,
योगदान का मूल्य समझकर,
उनका भी आधार बचाओ।
वृक्ष लगाओ,वृक्ष बचाओ।
सृजन सृष्टि के आदिकाल से,
निर्मित पूर्व मानव कपाल से,
प्राणवायु के दानी हैं जो,
उनके भी अब प्राण बचाओ।
वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ
प्राणवायु से प्राण बचायें,
फल देकर वे भूख मिटायें,
उमड़ घुमड़ते मेघ खींच लें,
ऐसे चहुं दिशि विटप बढ़ाओ।
वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।
अपना घर आवास निहारो,
कितना है सहयोग विचारो,
तुम भी उनके सहयोगी बन,
गली-गली विस्तार दिलाओ।
वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ
शीतल छाया के आंगन में,
चौदह वर्ष राम रहे वन में,
रोपे अपने कर कमलों जो,
उनका भी परिवार बढ़ाओ।
वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।
अमराई श्रीराम को भायी,
फुलवारी में सीता पायी,
जिस अशोक ने शोक हरे सब,
उसका भी अब शोक हटाओ।
वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ।
कृतघ्न हुए जग मानव सारे,
केवल अपना स्वार्थ संवारे,
जिनके परोपकार से है जग,
उन पर भी उपकार दिखाओ।
वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।
🙏🏼,रावण नहीं दरिन्दों को जलाओ,🙏🏼
सत्ययुग कि बात सत्ययुग पर छौडौ,
कलयुग है भाई रावण नही दरिन्दों को पकडो,
छुआ नही कभी माँ सीता को उसे हम हर वर्ष जलाते हैं,
फिर नजाने क्यों बलात्कारी को सजा न दे पाते हैं,,
अंहकार ने रावण को अपने स्वभाव से भटकाया था,
मनुष्य वो भी था पर हवस के कारण कभी हाथ नही लगाया था,,
जिन्होंने बच्ची से भुडी नारी तक जुर्म कर डाला है,
फिर भी न जाने क्यों उस पर को अटूट फेसला आया है,
ऊस जलने वाले रावण का एक सवाल है,
मुझे छोडो,क्या बलात्कारीयौ को जलाने की औकाद है,
मेने माँ सीता को रखा अशोक वाटिकाऔ मै सुरक्षित,,
तुम बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाऔगे,,,
बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाओगे,
🙏🏼🌹क़लम की आवाज़🌹🙏🏼
कभी प्रेम लिखती है
कभी विद्रोह करती है
कभी स्वप्न बुनती है
कभी द्रवित बहती है
ढ़लती कवि रंग में
कवि जैसी रहती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेहीसाब होती है,,
हर्षित करे ये उर कभी
कभी आक्रोश भरती है
सत्य दिखला दे कभी
कभी भ्रमित करती है
तेज इसमें प्रकाश सा कभी
कभी अंधकार लिखती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेहीसाब होती है,,
सम्मान लिखे नारी का कभी
कभी गाथा वीरों की लिखती है
बदल देती है सिहासन कई
जब कागज़ पर चलती है
इतिहास रच देती है नए
जब सत्य लिखती है
कभी युद्ध लिखती है
कभी विनाश लिखती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेहिसाब होती है,,
है क़लम वो सच्ची जहाँ में
जो कवि का ह्रदय लिखती है
लिखती है वो बात समाज की
जो ना किसी के भय में रहती है
है क़लम तब तक वो बड़े काम की
जब तक ना वो पैसों में बिकती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेहिसाब होती है।
🌹🙏🏼जय किसान🙏🏼🌹
दुनिया को पेट भरवा वाला थे,
चलता री जौ रे,
आवें ला कई रोग,सकंट थे,
लडता री जौ रे,,
खेती करनी ईण जनम् मै जाणें
शरहद पर तकियों लगा के सौणौ रे,,
दुनिया को पेट भरवा वाला थे,
चलता री जौ रे,,
खेती करवा वाला ही जाणै,
अन्न निपजाणौ या शरहद पे जा मरणौ रे,,
खुद भुखा रेवण वाला थे,दुनिया
को पेट भरता री जौ रे,
आंदोलन मैं लडता लडता कई माता
बहना रा सुहाग उझड गिया,
सिर पर कफ़न बाद थे,
खेती करता री जौ रे,
बीज रोपण मै लिदौं लोन भी,
माथे पड्गियौ रे,
इंण कारणें कई किसान
फंदौं गले लिदौ रे,,
खेती करणों वेही जाणें जौ
56,इंच री छाती राखें,
छोटा मोटा बैठ गाड़ी मै देश विदेशा मै घुमैं,
आवे सकंट जब
देश में अन्नदाता कह वतला वें,,
खुद भुखा रेवण वाला थे,
दुनिया को पेट भरता री जौ रे,
खुद,भुखा रेवण वाला
दुनिया को पेट भरता रीजो रै
🌹🌹प्यार मै मग्न🌹🌹
दिल से निकले शब्दों को
अक्सर पंनौ पर उतार लिया करता हूँ
बस इस तरह अपने दिल के
दर्द को शांत कर दिया करता हूँ
तेरी खामोशी को मै अक्सर
समज ने कि कोशिश जो करता हूँ
तु भलेही दुर है मुझसे फिर भी में
अपने पास महसूस करता हूँ
तेरे हावभाव को कुछ हद तक
में समज ने में जो लगा हूँ
बस इसी कि खोज में जो
में निकला हूँ
कुछ यादौ को मै फिर से
दौहराने जो लगा हूँ
कोई हुँई तो नहीं कही भुल
हम से इसी कि खोज में लगा हूँ
शब्द के सहारे शब्दों को
जो जोड़ने लगा हूँ
सच् बताऊ तो बितें दिनौ को
लेकर आज फिर रोने लगा हूँ
कोई न तु खुश है जिसमें उसमें
मै भी खुश हूँ
बस इसी सहारे जीने लगा हूँ
तु खुश रहना बस इतनी
आराधना ईश्वर से करने लगा हूँ
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार अरविंद 'असीम
1-नाम-अरविंद श्रीवास्तव
2-साहित्यिक उपनाम-अरविंद 'असीम
3-साहित्य सेवा-हिंदी व अंग्रेजी में लिखित व संपादित पुस्तकें, गाईड्स , सीरीज,ग्रामर बुक्स व हिंदी पत्रिकाएं 106 के पास ,बच्चों के लिए विद्यालय हेतु कई नाटकों का लेखन
4-पत्रिकाओं का संपादन-5 मासिक, अर्धवार्षिक,वार्षिक पत्रिकाएं
5-अभिनय-डाॅक्यूमेंट्री फिल्म 'बिटिया रानी ' में महत्वपूर्ण भूमिका ,कई नाटकों में विद्यालय स्तर पर अभिनय
6-आकाशवाणी के तीन केंद्रों से संबद्धता-कहानी वाचन,आलेख वाचन,काव्य पाठ
7-वीडियो एल्बम-आज का वातावरण, प्रेम के रंग (काव्य पाठ)-इंदौर व मुंबई से निर्गत
8- *सम्मान-विदेश में* (मास्को रूस, काठमांडू तथा म्यान्मार बर्मा में) 7 सम्मान
*देश में-लोकसभा अध्यक्ष श्री* *ओमकृष्ण बिरला जी द्वारा 'साहित्य श्री ' सम्मान सहित 140 से अधिक* सम्मान ।
*महत्वपूर्ण दायित्व- अध्यक्ष-एकल अभियान परिषद जिला-दतिया, संरक्षक-संस्कार भारती जिला-दतिया, संयोजक-मगसम दतिया जिला,*
एवं लगभग 7 अन्य साहित्यिक व समाज सेवा से संबंधित संस्थाओं में राज्य व जिला स्तरीय शीर्ष पदभार ।
विशेष-जून 2018 में *मास्को में* 2पुस्तकों का विमोचन ,जनवरी 2020 में 3 पुस्तकों का विमोचन *रंगून* (बर्मा)में सम्पन्न ।
संपर्क-150 छोटा बाजार दतिया (म•प्र•)475661
मोबाइल-9425726907
(1) माँ
रिश्ते- नाते जन्म जन्म के
कोई न मां से प्यारा।
मां की ममता, त्याग अलौकिक
चरणों में सुख सारा ।
माँ की गोद में बचपन बीता
हमें सिखाया चलना ,
सभ्य, नेक इंसान बनें
दुनियादारी में ढलना।
जब भी हम गुमराह हुए
तब मां ने हमें उबारा
रिश्ते -नाते जन्म जन्म के
कोई न मां से प्यारा ।
संतति पर यदि दुर्दिन आते
मां रक्षण करती ,
टकरा जाती हर बाधा से
नहीं मौत से डरती ।
जब संकट के बादल छाए
मां ने दिया सहारा
रिश्ते-नाते जन्म- जन्म के
कोई न मां से प्यारा ।
सदा स्वप्न माँ देखा करती
सुखी रहे संतान,
खुद भूखी रह,हमें खिलाती
संतति पर कुर्बान ।
मां के चरणों में जन्नत सुख
माँ ने हमें निखारा
रिश्ते नाते जन्म- जन्म के
कोई न माँ से प्यारा।
डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम"
(कविता)
(2) *कलम के अरमान*
लेखक की कलम
नहीं कोई सामान्य कलम।
इसमें होती क्षमता अपार
और अद्भुत होते उद्गार ।
कलम की ताकत से
कलम की हिम्मत से।
दुनिया में क्रांति आई
लोगों में चेतना छाई ।
कलम ज्ञान- गंगा बहाती
विवेक की सुगंध फैलाती।
अगर कलम न होती
तो दुनिया अंधेर में होती ।
कौन सुनता ,
मजलूमों की आवाज
मजदूर रहता दुखी, मोहताज ।
तो आइए कलम उठाएं
अपनी क्षमता जगाएं।
लिख डालें पैरों के छालों पर
जवानी में पिचके गालों पर।
सूखे होठों और भूखे पेटों पर
बेरोजगार मजदूर बेटों पर ।
शोषण की शिकार महिलाओं पर
सड़क किनारे भूख से मरती गायों पर।
दमन और अन्याय रोकने के लिए
अंधकार से मुकाबला करने के लिए।
मित्रों !कलम के पूर्ण होंगे अरमान
कलम का बढ़ जाएगा सम्मान ।
*डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'*
(3) *कविता (खुशी)*
मैंने अनवरत श्रम किया
कठिन जीवन जिया।
वांछित सफलता पाई
पर वह नहीं मिल पाई ।
जीवन में नाम कमाया
पर्याप्त सम्मान पाया ।
फिर भी थी जिसकी तलाश
वह नहीं मिल पाई ।
यह बात समझ नहीं आई ।
पर एक दिन
जब एक गिरते को उठाया
बीमार को अस्पताल पहुंचाया ।
एक रोते हुए को हंसाया
भूले -भटके को रास्ता दिखाया।
एक भूखे को भोजन कराया
प्यासे को पानी पिलाया ।
तो वह मुझे अनायास मिल गई
मेरे सूने मन- आंगन में उतर गई।
दरअसल खुशी मांगने से नहीं
बांटने से मिलती है
वह पाने में नहीं,
देने में ही मिलती है।
डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
(4) *कविता ---देश प्रेम*
देश- प्रेम के प्रवल भाव से
मन के सुंदर सुमन विहंसते।
सदा गंध अनुपम होती है
बलिदानों के पृष्ठ महकते।
उग्रवाद, आतंक है फैला
देश प्रेम ही इसका हल है ।
देशभक्ति से बढ़कर, मित्रों
दुनिया में ना कोई बल है।
सीमाओं की रक्षा करना
इसी भावना का पोषक है ।
और वतन पर मरना-मिटना
इसी भावना का द्योतक है।
देश प्रेम की नहीं भावना
वह प्राणी केवल पत्थर है ।
कौन कहेगा उसको मानव
वह तो पशु से भी बदतर है।
देश प्रेम के सरस भाव को
अब 'असीम' हम स्वीकारें।
सत्य ,धर्म के बन अनुयाई
देशभक्ति को और निखारें।
*डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'*
150 छोटा बाजार दतिया
(मध्यप्रदेश) 475661
मोबाइल 9425726907
(5) *क्यों रोता है तू*
चिंतन कभी-कभी
चिंता में क्यों होता है तू
देख दशा दुनियादारी की
क्यों रोता है तू ।
आपाधापी ,धन लोलुपता
शांति नहीं अब दिखती
उसकी चादर क्यों उजली
रह -रह कर बात खटकती
बीज अशांति के निज मन में
क्यों बोता है तू।
चिंतन कभी ••••••••
आंगन कुछ व्याकुल सा
दिखती देहरी डरी हुई
भाई -भाई में दरके रिश्ते
बंदूके भरी हुई
संबंधों में आई दरार
क्यों नेत्र भिगोता है तू
चिंतन कभी •••••••
सोच और करनी में
थोड़ा अंतर रहता है
अच्छा करने वाला भी
कष्टों को सहता है
गलत सोच रख
दुख सागर में
नाव डुबोता है तू।
चिंतन कभी •••••••
डाॅ• अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
150,छोटा बाजार दतिया (मध्यप्रदेश)475661
मोबाइल-9425726907
एस के कपूर श्री हंस
डॉ0 हरि नाथ मिश्र।
सम्राट
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
डा. नीलम
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार रामकेश एम. यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई
लेखक : रामकेश एम. यादव का संक्षिप्त जीवन -परिचय !
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि, साहित्यकार पत्रकार, शिक्षक, समाजसेवी रामकेश एम. यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के फूलपुर (अब मार्टिनगंज ) तहसील के उच्च शिक्षित गांव तेजपुर में 5 फ़रवरी, 1961 ईसवी को एक संपन्न किसान परिवार में हुआ है। आपकी प्राथमिक शिक्षा गांव में और उच्च शिक्षा (एम. ए. ) आज़मगढ़ के डी. ए. वी. डिग्री कालेज में संपन्न हुई और बी.एड. की शिक्षा लाल बहादुर शास्त्री स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय मुग़लसराय, वाराणसी में संपन्न हुई। आप मुंबई की बृहन्नमुंबई महानगरपालिका में (1991में ) एक शिक्षक के पद पर कार्य करते हुए 1 मार्च, 2019 को सेवानिवृत्त हो गए। अब आप पूर्ण रूप से मुंबई में ही रहकर साहित्य साधना में तल्लीन हो गए हैं।
भारत - पाक जंग (1999) के दौरान भारतीय जवानों के हौसला अफजाई के लिए आपने बहुत से लेख और कविताएं लिखे। जंग के बाद मुंबई, चर्नी रोड स्थित महात्मा गांधी लाइब्रेरी ने पांच भाषाओं में एक पुस्तक प्रकाशित की जिसका नाम है : कारगिल एक झलक ! उसमें आपका एक लेख- प्रेम की भाषा नहीं समझता पाकिस्तान, प्रकाशित हुआ। आपका 1600 से अधिक लेख, पत्र लेख, कविता, कविता खण्ड, साक्षात्कार आदि देश के विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुका है। आपकी साहित्यिक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए आपको सम्मानित भी किया गया। जैसे : पण्डित दीनदयाल पुरस्कार, समाज रक्षक पुरस्कार,साहित्य भूषण सम्मान,सरस्वती पुरस्कार, उत्कृष्ट साहित्य सेवा पुरस्कार, दर्पण पुरस्कार,
साहित्यरत्न पुरस्कार, शिक्षक गौरव सम्मान,
महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार,द्रोणाचार्य पुरस्कार, साहित्य भूषण पुरस्कार, साहित्य रत्न पुरस्कार ,
प्रामिनेन्ट सिटिजन आफ अवार्ड,महाराष्ट्र
गुण गौरव पुरस्कार,राष्ट्रीय एकात्मता फेलोशिप, श्री संत एकनाथ महाराज स्मृती गौरव पुरस्कार,
आदर्श शिक्षक पुरस्कार,मुंबई रत्न गौरव पुरस्कार,गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार,पं.वंश नारायण मिश्र आदर्श शिक्षक पुरस्कार,नगर मित्र पुरस्कार,आरोग्य साहित्य सम्मान,साहित्य रत्न पुरस्कार, शिक्षक गौरव चिन्ह। उत्तर साहित्यश्री-सम्मान 23/01/2021 (अभियान-
सामाजिक,सांस्कृतिक संस्था,मुंबई), विश्व भारतीय हिंदी सम्मान (2020)हिंदी पुस्तक बैंक,जबलपुर,मध्यप्रदेश। शारदा सम्मान -काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक संस्था लखीमपुर खीरी, उत्तरप्रदेश,आदि- आदि ।
अभी तक आपने पच्चीस पुस्तकें लिखी हैं जैसे : १) मैं सैनिक बनूँगा, २) तिरंगा, ३) वतन, ४) मेढक का संगीत, ५) हाथी का सपना, ६) सरहद,
७) क्रांति , ८) मेरा देश महान, ९) याद करो कुर्बानी, १०) महफूज रहे देश ,११) मजदूरन,१२) देश-प्रेम,१३) कश्मीर न देंगे,१४) मुंबई काव्य संग्रह,१५) पानी बचाओ, १६) आज की नारी,
१७) महाराष्ट्र का आईना (भाग-१), १८) दुनिया यदि बचानी है? १९) महाराष्ट्र का आईना (भाग-दो), २०) आओ स्कूल चलें हम, (नाटक)। 21) मधुशाला (काव्य-संग्रह), 22) बेटी बचाओ! काव्य-संग्रह, 23) किसान की बेटी, 24) कटते जंगल पूछ रहे हैं!, 25) चाँद पर बसेरा काव्य-संग्रह!, और कुष्ठ रोग पुस्तक। आगे लेखन कार्य जारी है...।
अब तक प्रकाशित पुस्तकों के विमोचनकर्ता क्रमशः इस प्रकार हैं -मा.श्री तुषार गांधी (राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र) २) मा.श्री गोविंद राघव खैरनार ३) मा.श्री. दारा सिंह- सिने अभिनेता और विश्व कुश्ती चैपियन। ४) मा.श्री गृह -राज्यमंत्री (महाराष्ट्र)
श्री. कृपाशंकर सिंह ५) मा.श्री महादेव देवले (महापौर-मुंबई), ६) मा.श्री मो. आरिफ (नसीम) खान, खाद्य-आपूर्ति राज्यमंत्री (महाराष्ट्र) ७) मा.श्री नवाब मलिक-गृह निर्माण राज्यमंत्री (महाराष्ट्र),
८) मा.श्री हुल्लड़ मुरादाबादी (हास्य कवि) ९) मा.श्री शैल चतुर्वेदी (हास्यकवि, सिने अभिनेता), १०) मा.श्री भूपेन्द्र चतुर्वेदी (कार्यकारी संपादक -
नवभारत, मुंबई), ११) मा.श्री डॉ. शोभनाथ यादव (वरिष्ठ साहित्यकार और चिंतक), १२) आमदार मा.श्री भाई जगताप जी, १३) मा.श्री.दलसुखभाई प्रजापति (महापौर), बड़ौदा, गुजरात,
१४) मा.श्री.नंदकिशोरनौटियाल, कार्यकारी अध्यक्ष- महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी, १५) मा.श्री राजहंस सिंह (विरोधी पक्ष नेता, बृहन्मुंबई महानगरपालिका, मुंबई, १६) माननीया श्रीमती
डॉक्टर निर्मला सामंत (पूर्व मेयर (मुंबई), १७) मा. श्री दशरथ मधुकुंटा (पूर्व नगरसेवक – काजूपाड़ा, कुर्ला, मुंबई ) १८) मा.श्री मंगेश ए. सांगले, (आमदार (गटनेता), (महाराष्ट्र नवनिर्माणसेना), १९) मा.श्री यशोधर शैलेश फणसे (मनपा सदन नेता) २०) मा.श्री सुनील प्रभु जी (महापौर-मंबई)। अभी कुछ पुस्तकों का लोकार्पण नहीं हो पाया है।
आपने बृहन्मुंबई महानगरपालिका प्राथमिक शिक्षण विभाग, पाँचवीं कक्षा के लिए सत्र २०१०-११ में पर्यावरण शोध (प्रकल्प) पर
भी पुस्तक लिखी जो शिक्षणाधिकारी कार्यालय,दादर में जमा है। समय-समय पर आपको सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षणिक संस्थाएँ सम्मानित करती रही, उत्तरप्रदेश हो या महाराष्ट्र।
२० मई,२०११ को उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष माननीय श्री सुखदेव राजभर,माननीय श्री डॉ. बलिराम (सांसद), महिला कल्याण राज्यमंत्री (उ.प्र.) माननीया श्रीमती विद्या चौधरी के शुभ
हाथों शाल, श्रीफल, पुष्पगुच्छ और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया। उत्तर-प्रदेश स्थित बदायूँ के सांसद माननीय श्री धर्मेन्द्र सिंह यादव ने मुंबई में सम्मान किया। जंगलेश्वर महादेव मंदिर
सभागृह,असल्फा,घाटकोपर,मुंबई- महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री माननीय श्री राजेन्द्र दर्डा और मुंबई के तत्कालीन पालक मंत्री के शुभ हाथों आपका सम्मान किया गया। इस तरह आपका सम्मान होता ही रहता है। आप कई राष्ट्रीय कार्यों में भी भाग ले चुके हैं, जैसे –जनगणना,पल्स-पोलिओ,लोकसभा
चुनाव,विधान सभा चुनाव बृहन्मुंबई
महानगरपालिका चुनाव,लोकसभा
मतगणना,वोटर आई.डी.प्रगणक के रूप में,
मतदाता सूची संसोधन व अन्य राष्ट्रीय कार्य। बृहन्मुंबई महानगरपालिका शिक्षण विभाग,रोटरी क्लब आफ मुंबई नार्थ एण्ड की तरफ से वक्तृत्व स्पर्धा में निर्णायक के रूप में। आप मुंबई वृत्तपत्र लेखक संघ,परेल मुंबई, उत्तर प्रदेश ग्रामीण पत्रकार संघ सहित कई अन्य संस्थाओं के सदस्य हैं। बृहन्मुंबई महानगरपालिका शिक्षण विभाग
भाषा विकास प्रकल्प प्रश्नमंच युग कवि पंत तथा मुंबई में होनेवाकी अन्य काव्य-स्पर्धाओं में आपको कई प्रमाणपत्र मिले हैं और यहाँ स्थानिक काव्य मंचों पर कविता पाठ आप करते रहते हैं।
महाराष्ट्र पाठ्यपुस्तक निमिर्ती विभाग व अभ्यासक्रम संशोधन मण्डल पुणे -४ महाराष्ट्र द्वारा सत्र २००५-०६ से सत्र २०१५-१६ के दरम्यान पाँचवीं के पाठ्यक्रम में आपकी दो कविताएँ जल
और सब्जी हिंदी बालभारती व हिंदी सुगम भारती में पढ़ाई जा चुकी हैं। आप रायल्टी प्राप्त कवि हैं। आपकी बाल-कविताएँ तथा कहानियाँ बालजगत कार्यक्रम के तहत आल इंडिया रेडियो
(आकाशवाणी ) मुंबई द्वारा समय-समय पर प्रसारित हुआ है। आप अपने पैतृक गाँव तेजपुर में प्रधानमंत्री मा.श्री अटल बिहारी वाजपेयी,
तत्कालीन मुख्यमंत्री उ.प्र.सुश्री मायावती,स्थानीय सांसद मा.श्री रमाकान्त यादव,स्थानीय विधायक मा.श्री हीरालाल गीतम से गुहार लगाकर मगई नदी पर पुल बनवाने में सफलता हासिल की है।
सरायमीर रेलवे स्टेशन के विस्तारीकरण तथा प्लेट फार्म ऊँचा करने हेतु रेल मंत्री भारत सरकार माननीय श्री लालू प्रसाद यादव जी से गुहार लगाए थे। महाराष्ट्र के वर्धा नदी पर पुल बनवाने की माँग
आपने की थी। महाराष्ट्र स्थित ठाणे जिले के मध्य रेल्वे पर स्थित अंबरनाथ तथा बदलापुर के बीच चिखलोली एक नया रेल्वे स्टेशन बनवाने की गुहार आपने रेलमंत्री भारत सरकार माननीय पवन
कुमार बंसल जी और दूसरे रेल मंत्रियों एवं छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के मुख्य स्थानिक अधिकारी से लगाई तथा इस आशय के कई
रजिस्टर्ड पत्र नई दिल्ली भी भेजे जो चिखलोली रेलवे स्टेशन बनाने की आम जनता की आशा को मंजूरी मिली। २६ दिसंबर,सन् २००४ में सुनामी त्रासदी के पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिए ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष’ में पाँच हजार रुपये का आपने दान दिया। पीड़ितों, प्रपीड़ितों के प्रति आप हमेशा उदार दृष्टिकोण रखते हैं।
साहित्य के साथ-साथ राष्ट्र की सेवा करना आपका मुख्य ध्येय है।
जय हिन्द ! जय महाराष्ट्र !
(रामकेश एम. यादव )
कवि, साहित्यकार, मुंबई,
बाबू जी!
घुट - घुटके आजकल,
क्यों रोते हो बाबू जी,(2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
सबको पढ़ा - लिखा के,
रस्ता दिखाए तुम,
बेटी से कहीं ज्यादा,
बेटों को चाहे तुम।
बेटों ने ऐसे हाल में,
क्यों छोड़ा है बाबू जी,(2)
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट - घुटके....
निचोड़ कर जवानी,
खड़ा किए महल।
जैसे उगे हैं पंख,
परिन्दे किए वो छल।
रो - रो के बुनियाद,
कुछ कह रही है बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट -घुटके......
बच्चों के अरमान और
आसमान बने तुम।
चलती - फिरती बैंक,
और दुकान बने तुम।
फाँके में कट रहे,
क्यों दिन ये बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट -घुटके.....
पाते नहीं हो आजकल,
सूखी भी रोटियाँ।
किस बिल में जा छुपी हैं,
फूलों की डालियाँ।
आंसू के सैलाब में,
क्यों डूबे हो बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट -घुटके......
कुछ दिन के हो मुसाफिर,
हक़ीक़त को जान लो।
पैसे से रखती यारी,
दुनिया को जान लो।
जख्मों की ये तुरपाई,
न होगी बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट -घुटके....
अच्छाइयों का रोज -रोज,
हो रहा है खून।
माता -पिता को छोड़के,
वो बस रहे रंगून।
खून अपना पानी,
क्यों हुआ है बाबू जी।
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट -घुटके.....
जो बो रहे हैं कांटे,
उनको धंसेंगे वो।
बेटे भी उनके साथ में,
कैसे रहेँगे वो।
उधार कोई आंसू,
न देगा बाबू जी,
क्या आज तेरा कोई नहीं।
घुट -घुटके.........
गंगा!
बहती है जो गंगा,उसकी एक कहानी है,
मानों तो है माँ वो, न मानों तो पानी है।
राजा भगीरथ ने उसे धरती पर लाया है,
शिव की जटाओं से, गिरता वो पानी है।
गंगोत्री से निकली,मिलती गंगासागर में,
संस्कार देती हमें,कबीर की वो वाणी है।
खेत-खलिहानों की, उससे हरियाली है,
गौर से अगर देखो, लहरों में जवानी है।
कीड़े नहीं पड़ते, उस गंगा के पानी में,
औषधि गुण से भरी, वो तो वरदानी है।
गन्दा करो न उसे,वह तो पापनाशिनी है,
करती निहाल सबको,वह जग तारिणी है।
दौलत पहाड़ों का, भले तेरे आंगन हो,
नहाया न गंगा जो,वो धड़कन बेगानी है।
सुबह-शाम सोने की, रात-दिन चांदी की,
चंचल बदन उसका,वो तो आसमानी है।
गंगा का दर्द समझो, पुरखों ने पूजा है,
वेदों में भी देखो, उस माँ की कहानी है।
कोई वजू करता, कोई संगम नहाता है,
नभ से है उतरी वो, बात ये पुरानी है।
पी करके आंसू वो, घुट-घुट के जीती है,
गंगा को ना बेचो,वो ब्रह्मा की निशानी है।
आईना!
आईना खुद देख,तब दिखा आईना,
तरफदारी में उतरता नहीं आईना।
मेरे चेहरे पे पड़ जो रही झुर्रियां,
नहीं छुपा सकता उसे कोई आईना।
टूटकर बिखर जाना, गवारा इसे,
झूठ का पैर छूता नहीं आईना।
क्या जाने भेद, गोरे -काले का ये,
जैसा जो दिखता, दिखाता आईना।
सोने- चांदी के फ्रेम में भले जड़ दो,
किसी ऐब को छुपाता नहीं आईना।
फितरत समझता है हर आदमी का,
सच से बे-खबर नहीं रहता आईना।
बे-आबरू होकर घूमते जो भी जहाँ,
उन्हें नज़र नहीं आता वही आईना।
गला कोई दबाता झूठ आज बोल,
खुद सलीब पे है चढ़ जाता आईना।
पत्थरों के बीच रहता बड़ी शान से,
देखो! डरता कभी न उससे आईना।
फायदे के लिए हम तोड़ रहे कायदा,
पर अपना फर्ज़ नहीं भूलता आईना।
वतन के लिए जिवो, वतन पर मिटो,
यही मंत्र हमको सिखाता आईना।
बसंत!
कितना नाराज है हमसे बसंत,
दबे पांव आता आजकल बसंत।
बाग -बगीचे को उजाड़ रहे लोग,
उनसे खफ़ा है देखो ! बसंत।
अख़बारों में सजती बसंत पंचमी,
फोन के ऊपर अब मना रहे बसंत।
नकली फूलों का आया जमाना,
जीवन से दूर हुआ देखो बसंत।
करे किससे आलिंगन,तरस रहा वो,
शर- शैय्या पे कैसे सोये बसंत?
कब तलक सहे पीर बाणों की वो,
ठगा - सा महसूस कर रहा बसंत।
वनों से दूर हुई कोयल की कूक,
उसकी तलाश में है आजकल बसंत।
मचलता था भौंरा कलियों के ऊपर,
गुमी उस जवानी को ढूंढ़ रहा बसंत।
बूढ़े भी होते थे जवां इस रितु में,
छले उन नयनों में झाँक रहा बसंत।
पीना जब आंसू तो मजा फिर कहाँ,
आंसुओं के अधरों पे सोया बसंत।
कोई खोजकर दे दे मदभरी जवानी,
बसंती हवाओं संग झूमें बसंत।
सराबोर हो जाय ये सारी दुनिया,
मालूम पड़े फिर से आया बसंत।
दूध का कर्ज !
जितना जिएँ हम वतन के लिए,
जब भी मरें, हम वतन के लिए।
नहीं कुछ चाहिए जहां से हमें,
हमारी हर सांस है चमन के लिए।
बहार -ए - गुलशन सलामत रहे,
आपस में सबसे मोहब्बत रहे।
बहायेंगे लहू शहीदों के जैसे,
ऐसी हमारी कुछ किस्मत रहे।
दूध के जैसी यहाँ नदिया बहें,
गंगा-जमुनी हमारी विरासत रहे।
बनी रहे सरफ़रोशी की तमन्ना,
इस माटी की अमर शहादत रहे।
माते ! तू देना अपनी दुआयें।
जर्रा-जर्रा महके अमन की क्यारी।
हृदय हो अलौकित तेरी प्रभा से,
खिले नित्य नूतन फूलों की डाली।
रखें हम सुरक्षित देश की सीमाएँ।
हम भी तो दूध का कर्ज चुकाएँ।
लहराता रहे आसमां में तिरंगा,
आयें लिपट के तो तिरंगे में आएँ।
रामकेश एम. यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई
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