डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पहला अध्याय-8
  *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-8
सुनहु कंस ई भगिनी तोरी।
तव तनया सम थोरी-थोरी।।
    सद्यहि भवा बिबाह यही कै।
    मंगल-चिन्ह न मिटा कहीं कै।।
ताकर उचित नहीं बध करना।
तुम्ह सम दीनबंधु जे अपुना।
    पुनि सुकदेव कहत अस भयऊ।
     कंसहि बहुबिधि बसु समुझवऊ।।
भयहि-भेद अरु साम-प्रसंसा।
पुनि-पुनि कीन्ह कंस-अनुसंसा।।
     पर नहिं कंसा केहु बिधि माना।
      देवकि-बध निज मन रह ठाना।।
जलन-दंभ-हठ खलहिं सुभावा।
कपट-कुटिलता भरा छलावा।।
    तब बिचार बसुदेवहिं कीन्हा।
     केहु बिधि बध-अवसर नहिं दीन्हा।।
जे जन प्रबुध-बिबेकी अहहीं।
निज प्रयास करि संकट टरहीं।।
     टरै न संकट जदि केहु भाँती।
     दोसी नहीं,नहीं ऊ घाती ।।
दोहा-अब मैं देबउँ निज तनय,दुष्ट कंस के हाथ।
          प्रान बचाइब देवकी, बिधिना दैहैं साथ।।
          होई जब मोरे सुतय, कंसहि जनु मरि जाय।
          बिधि-बिधान जनु मोर सुत,कंसहि मारि गिराय।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919446372

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--
फ़लक से क़मर को उतारा कहाँ है
अभी उसने ख़ुद को सँवारा कहाँ है

उदासी में डूबी है तारों की महफ़िल
बिना चाँद के ख़ुश नज़ारा कहाँ है

हुआ जा रहा है फ़िदा दिल उसी पर
अभी हमने उसको निखारा कहाँ है

है बरसों से कब्ज़ा  तो इस पर हमारा 
ये दिल अब तुम्हारा  तुम्हारा कहाँ है

फ़साने में तन्हा हो तुम ही तो रोशन
कहीं नाम इसमें हमारा कहाँ है

लबों को सिया अपने इस वास्ते ही 
तुम्हें मेरा लहजा  गवारा कहाँ है 

भरोसा है तुझ पर बड़ा हमको *साग़र*
किसी और को यूँ पुकारा कहाँ है 

🖋️विनय साग़र जायसवाल
7/4/2021
फ़लक-आसमान ,गगन
क़मर-चाँद ,शशि 
फ़िदा-क़ुर्बान ,आशिक़
रोशन-प्रकाशमान ,प्रदीप्त 
गवारा-स्वीकार, पसंद

सीमा शुक्ला अयोध्या

टपक रहा छप्पर से पानी वह निर्मम  बरसात  लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

सिसक  रही  हैं भारत माता, दंगे की तस्वीर  लिखो।
बचपन में जो बोझ उठाते वह बिगड़ी तकदीर लिखो।
जेठ  दोपहरी  स्वेद  बहाते  हलधर  की लाचारी को।
जो  दहेज की भेंट  चढ़ी लिख दो अबला बेचारी को।

छोड़ गया जिस मां को बेटा उस मां के जज्बात लिखो
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

लिख  दो  मूक  सिसकियां  रोती  जो अंधेरी रातों  में।
दानव  भेष  घूमते  मानव  हवस भरी जिन आंखों में।
तड़प  रही  है भूख बिलखती नित्य पड़ी पुटपाथों  पर,
कागज  कलम  नहीं  ईंटें  है  नन्हे  - नन्हे  हाथों  पर।

नहीं जला जिस घर में चूल्हा उस घर  के हालात  लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

लिखो बाण से शब्द करें जो भेद कुटिल व्यभिचारी पर।
शब्दों  से  कर  दो  प्रहार  दानव  से   अत्याचारी   पर। 
लिखो बेबसी ममता की तुम, व्याकुल थकी निगाहों को,
पड़े   फफोले जहां  पांव   दुष्कर  पथरीली   राहों  को।

निर्धन  के  मंडप  से  लौटी  बिन  फेरे  बारात  लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

 सीमा शुक्ला अयोध्या।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*मन बंजारा*
            *मन बंजारा*(गीत-16/14)
नहीं ठहरता एक जगह पर,
सचमुच मन बंजारा है।
निरख कली की सुंदर छवि को-
जाता वह गुरु-द्वारा है।।

कभी चढ़े यह गिरि-शिखरों पर,
कभी सिंधु-तट जा ठहरे।
कभी खेत-खलिहानों से हो,
वन-हरीतिमा सँग लहरे।
पवन-वेग सी गति है इसकी-
मन चंचल जलधारा है।।
      सचमुच मन बंजारा है।।

मन विहंग सम डाल-डाल पर,
कसुमित पल्लव-छवि निरखे।
पुनि बन मधुकर विटप-पुष्प के,
मधुर पाग-मकरंद चखे।
पुनि हो हर्षित निरख रुचिर मुख-
गोरी का जो प्यारा है।।
     सचमुच मन बंजारा है।।

कभी दुखित हो मन यह रोता,
जब अपार संकट होता।
पर विवेक को मीत बनाकर,
धीरज कभी नहीं खोता।
रखकर ऊँचा सदा मनोबल-
मन तो कभी न हारा है।।
     सचमुच मन बंजारा है।।

मन अति चंचल चलता रहता,
जीवन-पथ पर इधर-उधर।
कभी हो कुंठित,कभी सजग हो,
बस्ती-बस्ती,नगर-नगर।
लाभ-हानि,यश-अपयश,सुख-दुख-
मन जय-हार-सहारा है।।
     सचमुच मन बंजारा है।।

कभी गगन-शिख तक ले जाता,
कभी रसातल दिखलाता।
कभी स्वप्न अति नूतन रचकर,
बलखाते यह ललचाता।
कभी कराए मधुर पान मन-
कभी स्वाद जो खारा है।।
       सचमुच मन बंजारा है।।
                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

*कुण्डलिया*
होती जग में मित्रता,बचपन की ही गाढ़,
ऐसे  ही  संबंध  में, रहे  प्रेम  की  बाढ़।
रहे  प्रेम  की बाढ़, त्याग का भाव पनपता,
नहीं होय बिखराव,काम भी नहीं बिगड़ता।
कहें मिसिर हरिनाथ, ज़िंदगी कभी न रोती,
यदि हो सच्चा साथ, मित्रता  सच्ची  होती।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

चलते पकड़े हाथ दो, बच्चे  मीत  समान,
बचपन की ही मित्रता,में  बसते भगवान।
में  बसते  भगवान, न  मित्रता  ऐसी  टूटे,
कहते  वेद-पुराण, लुटेरा  कभी  न  लूटे।
कहें मिसिर हरिनाथ,मीत दो कभी न लड़ते,
दुनिया करे विरोध, हाथ  वे  पकड़े  चलते।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ. सीमा भाँति “नीति”, अमेरिका

 संक्षिप्त परिचय:

डॉ. सीमा भाँति “नीति “ , अमेरिका महाविद्यालय प्रधानाचार्या , पद से स्वेच्छिक अवकाश ग्रहण !

एम. ए., एम. एड., पीएच . डी., पी. जी. डिप्लोमा इन कम्प्यूटर साइंस !

कहानी ,कविता आलेख लेखन ,विभिन्न साझा संकलन, पत्रिकाओं में प्रकाशन !

राष्ट्रीय  एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों  में सहभागिता व संचालन !

राष्ट्रीय  एवं अन्तराष्ट्रीय  पुरस्कार !

काव्य संग्रह -शीघ्र प्रकाश्य 

सम्प्रति : अध्यक्ष, नेचुरल प्रोडक्ट कम्पनी  !

स्वतंत्र लेखन ,वेबिनार: गोष्ठी   आयोजन, सहभागिता, संचालन !

      पेटिंग, हस्तकला, फूड कार्विंग, कारपेट मेकिंग, क्ले मॉडलिंग , ज्वैलरी डिज़ाइनिग, इन्टीरियर, वेस्ट मेटिरियल रीसाइक्लिंग आदि!


सम्पर्क: 

 Ph.+15516661713


#1

#विषय: समाज

#रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “ नीति”, अमेरिका 

#स्वरचित मौलिक रचना 


समाज वर्तमान, भूत, भविष्य का दर्पण,

सभ्यता, संस्कार, संस्कृति को अर्पण,

निरंतर पल्लवित करता रहता सुसंस्कृत,

सुसंस्कृत जन ही करते समाज को अलंकृत,

ये ही हैं जीवन्त समाज के कुबेर सशक्त स्तंभ,

अपने हुनर, कर्म से कीर्ति के नित नए लगाए खंभ।


मूल इकाई समाज की व्यक्ति से बना परिवार, 

जिसमें हो स्नेह, सामंजस्य, समरसता की बहार,

जन जो कुटुंब व समाज का अभिन्न विशेष अंग,

उसमें सद्गुण, सच्चाई के साथ कुछ बुराई के दंश,

है संवाहक कुरीति-रीति, रूढ़िवादी, विवेकपूर्ण का,

यहाँ दर्शन रीति रिवाज के नाम पर नित नये स्वाँग का।


कुरीति- दहेज, शोषण, भ्रूण हत्या, नारी व्यभिचार,

धार्मिक उन्माद, दंगा, भ्रष्टाचार, भेदभाव, दुष्कर्म,

विषबेल पोषित अब जड़ से उखाड़ करो सत्कर्म,

हर स्तर पर हो समाज सुख-समृद्ध, सशक्तिकरण,

सजृनात्मकता, हुनर प्रेरणा, स्वस्थ समाज अनुसरण,

स्वतंत्रता, दायित्व, नारी, बुजुर्ग आदि मान अंत:करण।


समाज व्यक्ति में निरंतर चलता रहे ह्रदय मंथन,

कुरीति, रूढ़िवादिता, व्यभिचार, अवगुण उन्मथन,

सद्भाव, प्रेम, सद्गुण, धर्म, जाति सबका मान उन्नयन,

स्वस्थ व्यक्ति समाज स्नेहशील बनाना प्रथम ध्येय,

“नीति” कहे संतुलित समाज, सद्गुण ओज अनुष्ठेय,

सत्त कर्तव्य पथ पर समरस समाज राष्ट्र हमारा उद्देश्य, हमारा उद्देश्य........



               डा. सीमा  भाँति “नीति”, अमेरिका 

               स्वरचित मौलिक  रचना


#2


# विषय: नन्हें दिल की एक प्यार भरी गुहार

# स्वरचित मौलिक रचना

# रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका    


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एक नन्हा दिल, जो अभी इस दुनिया में ही नहीं आया,

बस उसके होने का एहसास कोख को ही हो पाया।

गुफ़्तगू माँ-बाप की सुनते ही वो बहुत  घबराया,

माँ को सकुचाता घबराता रोता देख अधिक बिचकाया।

तन्हाई पा के थोड़ा घबराते हुए इस तरह बोला, 

ये अल्ट्रसाउंड, डॉक्टर ना जाने बाबा क्या बोला।


क्यूँ कोने में बैठी सुबक सुबक रोती हो करहाती ,

क्यूँ अभी तक चुपचाप यूँ तकिया पर बिलखती।

अब मेरे ना होने के आदेश को चुपचाप करती अमल,

ओ माँ ! इतनी जल्दी क्या है मुझे करने की अलग ।

तू ही तो कहती थी बस ये है मेरा नौ महीने घर,

फिर तू आयेगा इस खलक में करने रोशन घर ।


क्या मुझसे हुई कोई गुस्ताखी तो फिर बता ना माँ,

अभी पकड़ता ‘कान’, पर कैसे? कान तो है ही नही माँ।

चाहता हूँ बात करना बाबा से भी माँ मैं , दिल ,

पर जब वो तुझ से बात नहीं करते हिलमिल।

डर लगता है, तो मैं कैसे? तू ही कुछ कर ना माँ,

अपने लिए कभी ना हुई खड़ी पर अब तो हो माँ।


मेरी ख़ातिर ही अड़ा अंगद पैर माँ, ओ मेरी प्यारी माँ,

नन्हा प्यार दिल सिसक सिसक कर के पुकारे माँ।

माँ सुन लो, दादी सुन लो, कोई तो सुन लो मेरी गुहार,

मुझे अभी ज़बरदस्ती नहीं बिलकुल नहीं आना बाहर।

नौ महीने आराम से इस गुलाबी मख़मली में रहने दो घर में,

बस मारो मत, बचाओ माँ ! आने दो साकार रूप में इस प्यारे जहाँ में, इस प्यारे जहाँ में ........ 


💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞


             डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका    

              स्वरचित मौलिक रचना


#3


#विषय: मानवता के लाल

# स्वरचित मौलिक रचना

# रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका 


सुनी थी पारियों ( angles) की कहानी दादी - नानी से , 

आज इस धरा पे अवतरित है करोना वोर्रीरस आसमाँ से । 

हथेली पर जान , परिवार , सब लेकर निस्वार्थ भाव से , 

फिर भी कुछ मानवता के दुश्मन खड़े हुए इस राह में स्वार्थ से ।

अब तो हो गयी हद ही अश्लीलता व उनके व्यवहार से , 

देवदूत जो करने आए थे रक्षा हमारी , पड़ गए जान के लाले उनके । 

साष्टांग प्रणाम उन माताओं को, ये निकले  जिनकी गोद से , 

“नीति”  सहित कण कण ब्रह्मांड का , नतमस्तक इनके समक्ष कृतज्ञता से । 

प्रार्थना , एकता , समर्पण मूलमंत्र केवल , एकमात्र मूलमंत्र दिल से ,

विजयी अवश्यभामि , जय हो, जय हो, ‘मानवता के लाल’ जय हो !!!


               स्वरचित मौलिक रचना

             डॉ. सीमा भाँति “नीति”, अमेरिका


डॉ0हरि नाथ मिश्र

पहला अध्याय-7
    *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-7
भोज-बंस कै तुमहिं अधारा।
एकमात्र बंसज होनहारा।।
    बड़-बड़ सूर-बीर-बलवाना।
    तुम्हरो जसु गावहिं बिधि नाना।।
अहहि एक ई अबला नारी।
दूजे ई तव बहिना प्यारी।।
    तीजा मंगल-परिनय-अवसर।
    यहि का बध नहिं होई सुभकर।।
सुनहु बीरवर धरि के ध्याना।
होय जनम सँग मृत्युहिं आना।।
    आजु होय वा कबहूँ होवै।
     कहहुँ साँच ई होवै-होवै।।
होवै जब सरीर कै अंता।
धरहि जीव बपु अपर तुरंता।।
    जिव तन तजै करम अनुसारा।
     जस पग-चापहि उठै दुबारा।।
तजहि तिरुन जबहीं जल-जोंका।
अपर तिरुन कै मिलतै मौका।।
    कबहुँ-कबहुँ नर जाग्रत-काले।
    बैभव चहइ इंद्र कै पा ले।।
भाव-बिभोर मगन ह्वै सोचै।
निज विपन्न गति सपन बिमोचै।।
    बिसरै जनु अस्थूल सरीरा।
    अमरपुरी-सुख लहहि अधीरा।।
भूलै जीव अइसहीं देहा।
कर्म-कामना विह्वल नेहा।।
    प्रबिसहि अपर सरीरहि जीवा।
    कइके प्रथम बपू निरजीवा।।
जीव क मन बिकार-भंडारा।
इच्छा-तृष्ना-बिषय-अगारा।।
     जेहि मा अंत समय मन रमई।
      ताहि सरीर जीव पुनि धरई।।
चंचल जीव समीरहि नाई।
जल बिच ससी-रबी-परिछाँई।
      इत-उत हिलै पवन लइ बेगा।
      वइसइ रहै जीव संबेगा।।
रहइ जीव जग जे-जे देहा।
रखइ मोह,मानै निज गेहा।।
     यहि सरीर कै आवन-जावन।
      भ्रम बस समुझइ निजहि करावन।।
जे चाहसि जग निज कल्याना।
करिव न द्रोह कबहुँ अपमाना।।
दोहा-द्रोही जन भयभीत रहँ, सत्रुन्ह तें यहि लोक।
        मरन बाद डरपहि उहइ, जाइ उहाँ परलोक।।
                          डॉ0हरि नाथ मिश्र
                            9919446372

नूतन लाल साहू

सफलता का राज
विवेक का सही प्रयोग

आप सभी जानते है
सच कड़वा होता है
पर सफलता का
कोई शॉर्टकट नही होता है
आदमी में सत्य को
कहने और सुनने की
शक्ति होनी चाहिए
सत्य का मुंह बंद न करें
ये हर व्यक्ति को चाहिए
हमें सफलता तभी मिलेगी
जब हमारे हाथ में,जो भी काम है
धैर्य रखकर सुझबुझ से
उस पर निरंतर परिश्रम करेंगे
अवगुण प्रत्येक व्यक्ति में 
निश्चित रूप से होता है
लेकिन उन्हें स्वीकार
कोई विरला ही करता है
और जो भी स्वीकार करता है
वो महात्मा बन जाता है
महान दार्शनिक सुकरात जी
अपने अवगुण को किया स्वीकार
क्रोधावेग में उससे
एक चूक हो गई
शिष्य के विवेक पर
उसने नहीं दिया ध्यान
फिर हुआ उसे पाश्चाताप
अपने सभी अवगुणों को कैदकर
बन गया महात्मा सुकरात
विवेक और सिर्फ विवेक ही
एकमात्र शक्ति है
जिसके चलते व्यक्ति अपने
अवगुणों पर अंकुश रख सकता है
यही तो है
सफलता का राज

नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

[0चलो एक पौधा प्रेम का, मिलकर*
*लगाया जाये।।*
*।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  66  ।।*
*।।काफ़िया ।। ।। आया   ।।*
*।।रदीफ़।।   ।। जाये ।।*
1
चलो एक पौधा प्रेम का, मिलकर लगाया जाये।
महोब्बत ही खुदा यह ,संबको बताया जाये।।
2
नफरत करने वाले ,कभी भी पनपते नहीं।
इस बात को अब, संबको दिखाया जाये।।
3
मायूसी और उदासी से ,निकलें लोग जरा।
हौसलों का नगमा ,संबको सुनाया जाये।।
4
मिलकर जीने में ही है ,कौम की भलाई।
इस बात को बहुत दूर, तक फैलाया जाये।।
5
जो रूठ बैठे गुमसुम,अलग चौखटों पर।
अब उनको जरूर ही, आज मिलाया जाये।।
6
हर किसी नज़र में ,दर्द बेसब्री हो मिलने की।
इक ऐसाआला जहान ,मिलकर बनाया जाये।।
7
मैं की बात नहीं, अब हो बस बात हम की।
कुछ ऐसा फ़लसफ़ा ,अब चलाया जाये।।
8
*हंस* हँसी खुशी मिलकर, रहने की बात हो।
कुछ ऐसा फसाना ही, अब पढ़ाया जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

[।।रचना शीर्षक।।*
*।।चमक ही चमक नहीं ,हमें रोशनी चाहिये।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
*न 1 ।*
वही अपनी  संस्कार   संस्कृति
यहाँ   पुनः बुलाईये।
वही स्नेह प्रेम की भावना फिर
यहाँ   लेकर आईये।।
हो उसी  आदर  आशीर्वाद  का
यहाँ     बोल   बाला।
हमें  चमक   ही    चमक    नहीं
यहाँ  रोशनी  चाहिये।।
*न 2 ।*
सच से   दूर    हर         बात  में
नई सजावट आ  गई है।
रिश्तों में नकली   चमक       सी
अब  बनावट आ  गई है।।
मन भेद  मति          भेद   आज
बस  गये हैं भीतर  तक।
कैसे करें यकीं    कि  यकीन   में
भी  मिलावट आ  गई है।।   
*न 3।*
तुम्हारा चेहरा  बनता   कभी तेरी
पहचान        नहीं      है।
चमक दमक से    मिलता  किसी
को   सम्मान  नहीं है।।
लोग याद रखते  हैं    तुम्हारे दिल
व्यवहार को  ही  बस।
न जाने कितने    सिकंदर   दफन
कि नामोंनिशान नहीं है।।    
*न 4 ।*
जाने हम     कहाँ         से  कहाँ 
अब         आ    गये  हैं।
चमकती   दौलत        को    हम
आज पा      गये      हैं।।
सोने के        निवालों     से  अब
अरमान।    हो        गए।
आधुनिकता में           भावनायों
को ही           खा गए हैं।।
*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस"।बरेली।*
मो।।।।।।   9897071046
                8218685464

।।कुछ करो कि जिंदगी मुस्कराने लगे।।*
*।।ग़ज़ल।।    ।। संख्या 65 ।।*
*।।काफ़िया।। ।।आने  ।।*
*।।रदीफ़।।   ।।लगे  ।।*
1
कुछ करो कि जिंदगी   मुस्कराने लगे।
हर फूल गुलशन का खिलखिलाने लगे।।
2
तपिश कम हो इस    जमाने   की सारी।
हर  तरफ से  हवा ठंडी सरसराने  लगे।।
3
मायूसी खत्म हो हर किसी के जहन से।
बस्ती का हर घर  रोशन जगमगाने लगे।।
4
नफरत की हर दिवार ढहे दिलों से सबके।
कीड़ा महोब्बत का दिलों में कुलबुलाने लगे।।
5
लफ्ज़ ही मिट जाये, दुश्मनी का लिखावट से।
हर जुबां महोब्बत ही, बस बड़बड़ाने लगे।।
6
मंगल में जिंदगी नहीं,जिंदगी में मंगल की सोचें।
हर किसीके दर्द में दिल सबका तड़फड़ाने लगे।।
7
*हंस* किसीको भी किसीकेअमन से जलन न हो।
हर कोईअपनी खुशी खूब ही दिखलाने लगे।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---

सब काम हो रहे हैं रईसों के वास्ते
कुछ कीजिए हुज़ूर ग़रीबों के वास्ते 

है ज़िम्मेदारी आपकी हर शख़्स ख़ुश रहे
हाकिम नहीं हैं सिर्फ़ अज़ीज़ों के वास्ते

गर आस रौशनी की है तो यह भी सोचना 
है तेल भी ज़रूरी चरागों के वास्ते

अब तक वो काम देखिए पूरा नहीं हुआ 
छोड़ा था जो भी काम अदीबों के वास्ते 

दिल खोल कर के लूट रहे आज डॉकटर
इल्ज़ाम क्यों हैं सारे वकीलों के वास्ते

कहना फ़कत है आज नये दौर से हमें
कुछ एहतराम रखिये ज़ईफों के वास्ते

*साग़र* किसी भी राह में ख़ौफ़-ओ-ख़तर न हो 
इतना तो कीजिएगा हसीनों के वास्ते 

🖋️विनय साग़र जायसवाल
6/4/2021
हाकिम-शासक, बड़ा अधिकारी
अदीबों-साहित्यकारों ,लेखकों

निशा अतुल्य

*विश्व स्वास्थ्य दिवस पर सभी को समर्पित* 
*सोच समझ कर कदम बढ़ाओ*
7.4.2021

बहुत कठिन है ये समय 
रखो अपना ध्यान 
बाहर कहीं जाना नहीं 
धोओ हाथ बार बार ।

मास्क मुख पर रहे सदा
नहीं मिलाना हाथ 
दो गज की दूरी का 
सब रखना संज्ञान ।

हो जाये अगर कोरोना
करना प्राणायाम 
कपालभाति,अनुलोम विलोम से,
करो स्वस्थ फेफड़े और करो आराम।

टेस्ट  कराओ फौरन 
आइसोलेशन अपनाओं
ताल मेल बढ़ा जीवन में
दूरी के महत्त्व को समझाओ
और जीवन में अपनाओ ।

समाजिक दायित्व है जो हमारे
अपनाकर उन्हें सबको बताओ
अपने नैतिक धर्म का कर पालन
स्वस्थ समाज बनाने में भागीदारी निभाओ ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डा. नीलम

*बच्चों की मुश्किल*

बमुश्किल आई थीं खुशियॉं
लौट गईं मुख दिखला के
बड़े दिनों में स्कूल खुले थे
बंद हो गये कोरोना के डर से

फिर वही प्राचीरें घर की
वही घर के गलियारे होंगे
फोन तो होगा हाथ में
पर कहॉं पे यार हमारे होंगे

अब तो कोफ्त हो गई यारों
बिन माॅंगी इन छुट्टियों से
पेट दर्द और सिर दर्द के
बहाने ,मुॅंह चिढ़ा,लगा रहे ठहाके 

अब तो नियत समय
फोन पे होगी ही पढ़ाई
कोई बहाना नहीं मिलेगा
पढ़ें हों क्यों न ओढ़ रजाई

बस्ते मुॅंह बिसराए पढ़े हैं
पुस्तकों ने निजात पाई
सब कुछ अब तो हो रही
ऑन लाइन ही पढ़ाई

यारी-दोस्ती ,धौल-धप्पा
वो धींगा-मस्ती , हॅंसी -ठट्ठा
सभी  रह गए स्कूल के अंदर
घर में बैठे हम हो रहे नकलची बंदर*। 

*नकलची बंदर--यानि नकल करके परीक्षा दे रहे हैं। एक मोबाईल प्रश्नकर्ता,दूसरे से उत्तर देख रहे हैं।

       *बच्चों की मुश्किल*

बमुश्किल आई थीं खुशियॉं
लौट गईं मुख दिखला के
बड़े दिनों में स्कूल खुले थे
बंद हो गये कोरोना के डर से

फिर वही प्राचीरें घर की
वही घर के गलियारे होंगे
फोन तो होगा हाथ में
पर कहॉं पे यार हमारे होंगे

अब तो कोफ्त हो गई यारों
बिन माॅंगी इन छुट्टियों से
पेट दर्द और सिर दर्द के
बहाने ,मुॅंह चिढ़ा,लगा रहे ठहाके 

अब तो नियत समय
फोन पे होगी ही पढ़ाई
कोई बहाना नहीं मिलेगा
पढ़ें हों क्यों न ओढ़ रजाई

बस्ते मुॅंह बिसराए पढ़े हैं
पुस्तकों ने निजात पाई
सब कुछ अब तो हो रही
ऑन लाइन ही पढ़ाई

यारी-दोस्ती ,धौल-धप्पा
वो धींगा-मस्ती , हॅंसी -ठट्ठा
सभी  रह गए स्कूल के अंदर
घर में बैठे हम हो रहे नकलची बंदर*। 

*नकलची बंदर--यानि नकल करके परीक्षा दे रहे हैं। एक मोबाईल प्रश्नकर्ता,दूसरे से उत्तर देख रहे हैं।

       डा. नीलम

डॉ0 निर्मला शर्मा

श्रमिक
जेठ की तपती दुपहरी
पूस की बर्फ़ीली रातें
कोई भी मौसम होता
श्रमिक कभी नहीं सोता

हाड़तोड़ करता परिश्रम
न शिकायत न कोई गम
सन्तोषी रहता सदा ही
राम जप कहता सदा ही

ईमान का पक्का श्रमिक
इरादों से डिगे न तनिक
काम कैसा भी हो कठिन
उत्साह नहीं होता मलिन

तन से निकला जो पसीना
धरती उगले उससे सोना
उपजाऊ बनाता कभी वह
ठोकता मंजिल कभी वह

डॉ0निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान

सुनीता असीम

यहीं आवाज़ आई चारसू से।
बुराई से लड़ो ला-तक्नतू से।
****
नहीं बच्चे भी सुनते अब किसी की।
बने मां-बाप के हैं         वो अदू से।
****
मिले मंजिल उसे कोशिश करे जो।
है मिलता क्या नहीं हिम्मत जुनू से।
****
मिलन आसान होता है अगर जो।
न मतलब कोई है फिर आरजू से।
****
गलत जब काम मुझसे हो गया हो।
बची फिरती हूं रब के रूबरू से।
****
नहीं जब काम अच्छे करने तुमको।
रहा क्या फायदा फिर है वुजू से।
****
सुलझते जब नहीं झगड़े हों घर के।
उन्हें सुलझा लो फिर तुम गुफ्तगू से।
****
ला-तक्नतू=हिम्मत
अदू=दुश्मन

सुनीता असीम
७/४/२०२१

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रकाश रेगर

 परिचय:-

नाम,चन्द्र प्रकाश रेगर


मो,8441039551

पता,नैनपुरिया पो,नमाना,तह,नाथद्वारा,

राजसमंद ,राजस्थान


शिक्षा:-GNM,NURSING 


अनुभव:-3years


पहली कविता प्यार अंधा है,



वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


जीवन की क्षणभंगुरता में,

सतत बह रही इस सरिता में,

योगदान का मूल्य समझकर,

उनका भी आधार बचाओ।

वृक्ष लगाओ,वृक्ष बचाओ।


सृजन सृष्टि के आदिकाल से,

 निर्मित पूर्व मानव कपाल से,

प्राणवायु के दानी हैं जो,

उनके भी अब प्राण बचाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


प्राणवायु से प्राण बचायें,

फल देकर वे भूख मिटायें,

उमड़ घुमड़ते मेघ खींच लें,

ऐसे चहुं दिशि विटप बढ़ाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


अपना घर आवास निहारो,

कितना है सहयोग विचारो,

तुम भी उनके सहयोगी बन,

 गली-गली विस्तार दिलाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ


शीतल छाया के आंगन में,

चौदह वर्ष राम रहे वन में,

रोपे अपने कर कमलों जो,

उनका भी परिवार बढ़ाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


अमराई श्रीराम को भायी,

फुलवारी में सीता पायी,

जिस अशोक ने शोक हरे सब,

उसका भी अब शोक हटाओ।

वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ।


कृतघ्न हुए जग मानव सारे,

केवल अपना स्वार्थ संवारे,

जिनके परोपकार से है जग,

उन पर भी उपकार दिखाओ।

वृक्ष लगाओ, वृक्ष बचाओ।


🙏🏼,रावण नहीं दरिन्दों को जलाओ,🙏🏼


सत्ययुग कि बात सत्ययुग पर छौडौ,

कलयुग है भाई रावण नही दरिन्दों को पकडो,


छुआ नही कभी माँ सीता को उसे हम हर वर्ष जलाते हैं,

फिर नजाने क्यों बलात्कारी को सजा न दे पाते हैं,,


अंहकार ने रावण को अपने स्वभाव से भटकाया था,

मनुष्य वो भी था पर हवस के कारण कभी हाथ नही लगाया था,,


जिन्होंने बच्ची से भुडी नारी तक जुर्म कर डाला है,

फिर भी न जाने क्यों उस पर को अटूट फेसला आया है,


ऊस जलने वाले रावण का एक सवाल है,

मुझे छोडो,क्या बलात्कारीयौ को जलाने की औकाद है,


मेने माँ सीता को रखा अशोक वाटिकाऔ मै सुरक्षित,,

तुम बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाऔगे,,,


बहन बेटी भी घर पर नहीं रख पाओगे,


🙏🏼🌹क़लम की आवाज़🌹🙏🏼


कभी प्रेम लिखती है

कभी विद्रोह करती है

कभी स्वप्न बुनती है

कभी द्रवित बहती है

ढ़लती कवि रंग में

कवि जैसी रहती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहीसाब  होती है,,


हर्षित करे ये उर कभी

कभी आक्रोश भरती है

सत्य दिखला दे कभी

कभी भ्रमित करती है

तेज इसमें प्रकाश सा कभी

कभी अंधकार लिखती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहीसाब होती है,,


सम्मान लिखे नारी का कभी

कभी गाथा वीरों की लिखती है

बदल देती है सिहासन कई

जब कागज़ पर चलती है

इतिहास रच देती है नए

जब सत्य लिखती है

कभी युद्ध लिखती है 

कभी विनाश लिखती है

ये क़लम की आवाज़ है 

यूँ ही बेहिसाब होती है,,


है क़लम वो सच्ची जहाँ में

जो कवि का ह्रदय लिखती है

लिखती है वो बात समाज की

जो ना किसी के भय में रहती है

है क़लम तब तक वो बड़े काम की

जब तक ना वो पैसों में बिकती है

ये क़लम की आवाज़ है

यूँ ही बेहिसाब होती है।


 🌹🙏🏼जय किसान🙏🏼🌹


दुनिया को पेट भरवा वाला थे,

चलता री जौ रे,

आवें ला कई रोग,सकंट थे,

लडता री जौ रे,,


खेती करनी ईण जनम् मै जाणें 

शरहद पर तकियों लगा के सौणौ रे,,

दुनिया को पेट भरवा वाला थे,

चलता री जौ रे,,


खेती करवा वाला ही जाणै,

अन्न निपजाणौ या शरहद पे जा मरणौ रे,,

खुद भुखा रेवण वाला थे,दुनिया 

को पेट भरता री जौ रे,


आंदोलन मैं लडता लडता कई माता 

बहना रा सुहाग उझड गिया,

सिर पर कफ़न बाद थे,

खेती करता री जौ रे,


बीज रोपण मै  लिदौं लोन भी,

माथे पड्गियौ रे,

इंण कारणें कई किसान

 फंदौं गले लिदौ रे,,


खेती करणों वेही जाणें जौ

56,इंच री छाती राखें,

छोटा मोटा बैठ गाड़ी मै देश विदेशा मै घुमैं,

आवे सकंट जब 

देश में अन्नदाता कह वतला वें,,


खुद भुखा रेवण वाला थे,

दुनिया को पेट भरता री जौ रे,

खुद,भुखा रेवण वाला 

दुनिया को पेट भरता रीजो रै


🌹🌹प्यार मै मग्न🌹🌹


दिल से निकले शब्दों को

अक्सर पंनौ पर उतार लिया करता हूँ 

बस इस तरह अपने दिल के

दर्द को शांत कर दिया करता हूँ


तेरी खामोशी को मै अक्सर

समज ने कि कोशिश जो करता हूँ

तु भलेही दुर है मुझसे फिर भी में

अपने पास महसूस करता हूँ


तेरे हावभाव को कुछ हद तक

में समज ने में जो लगा हूँ 

बस इसी कि खोज में जो 

में निकला हूँ 


कुछ यादौ को मै फिर से 

दौहराने जो लगा हूँ

कोई हुँई तो नहीं कही भुल

हम से इसी कि खोज में लगा हूँ


शब्द के सहारे शब्दों को 

जो जोड़ने लगा हूँ

सच् बताऊ तो बितें दिनौ को 

लेकर आज फिर रोने लगा हूँ


कोई न तु खुश है जिसमें उसमें

 मै भी खुश हूँ 

बस इसी सहारे जीने लगा हूँ

तु खुश रहना बस इतनी

आराधना ईश्वर से करने लगा हूँ

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार अरविंद 'असीम

 

1-नाम-अरविंद श्रीवास्तव
2-साहित्यिक उपनाम-अरविंद 'असीम



3-साहित्य सेवा-हिंदी व अंग्रेजी में लिखित व संपादित पुस्तकें, गाईड्स , सीरीज,ग्रामर बुक्स व हिंदी पत्रिकाएं  106 के पास ,बच्चों के लिए विद्यालय हेतु कई नाटकों का लेखन
4-पत्रिकाओं का संपादन-5 मासिक, अर्धवार्षिक,वार्षिक पत्रिकाएं
5-अभिनय-डाॅक्यूमेंट्री फिल्म 'बिटिया रानी ' में महत्वपूर्ण भूमिका  ,कई नाटकों में विद्यालय स्तर पर  अभिनय
6-आकाशवाणी के तीन केंद्रों से संबद्धता-कहानी वाचन,आलेख वाचन,काव्य पाठ
7-वीडियो एल्बम-आज का वातावरण, प्रेम के रंग (काव्य पाठ)-इंदौर व मुंबई से निर्गत
8- *सम्मान-विदेश में* (मास्को रूस, काठमांडू तथा म्यान्मार बर्मा  में) 7 सम्मान
*देश में-लोकसभा अध्यक्ष श्री* *ओमकृष्ण बिरला जी द्वारा 'साहित्य श्री ' सम्मान सहित 140 से अधिक* सम्मान ।
*महत्वपूर्ण दायित्व- अध्यक्ष-एकल अभियान परिषद जिला-दतिया,  संरक्षक-संस्कार भारती जिला-दतिया, संयोजक-मगसम दतिया जिला,*
एवं लगभग 7 अन्य साहित्यिक व समाज सेवा से संबंधित संस्थाओं में राज्य व जिला स्तरीय शीर्ष पदभार ।
विशेष-जून 2018 में *मास्को में* 2पुस्तकों का विमोचन ,जनवरी 2020 में 3 पुस्तकों का विमोचन *रंगून* (बर्मा)में सम्पन्न  ।
संपर्क-150 छोटा बाजार दतिया (म•प्र•)475661
मोबाइल-9425726907

(1)     माँ
रिश्ते- नाते जन्म जन्म के
कोई न मां से प्यारा।
मां की ममता, त्याग अलौकिक
चरणों में सुख सारा ।
          माँ की गोद में बचपन बीता
           हमें सिखाया चलना ,
           सभ्य,  नेक इंसान बनें     
           दुनियादारी में ढलना।
           जब भी हम गुमराह  हुए
            तब मां ने हमें उबारा
            रिश्ते -नाते  जन्म जन्म के
            कोई न मां से प्यारा ।
संतति पर यदि दुर्दिन आते
मां रक्षण करती ,
टकरा जाती हर बाधा से
नहीं मौत से डरती ।
जब संकट के बादल छाए
मां ने दिया सहारा
रिश्ते-नाते जन्म- जन्म के
कोई न मां से प्यारा ।
             सदा स्वप्न माँ  देखा करती
              सुखी रहे संतान,
              खुद भूखी रह,हमें खिलाती      
               संतति पर कुर्बान ।
              मां के चरणों में जन्नत सुख     
               माँ ने हमें निखारा
              रिश्ते नाते जन्म- जन्म के     
               कोई  न माँ से प्यारा।
डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम"
           (कविता)
        (2)      *कलम के अरमान*
लेखक की कलम
नहीं  कोई सामान्य कलम।
इसमें होती क्षमता अपार
और अद्भुत होते  उद्गार ।
कलम की ताकत से
कलम की हिम्मत से।
दुनिया  में क्रांति आई
लोगों में चेतना छाई ।
कलम ज्ञान- गंगा बहाती
विवेक की सुगंध फैलाती।
अगर कलम न होती
तो दुनिया अंधेर में होती ।
कौन सुनता ,
मजलूमों  की आवाज
मजदूर रहता दुखी, मोहताज ।
तो आइए कलम उठाएं
अपनी क्षमता  जगाएं।
लिख डालें पैरों के छालों पर
जवानी में पिचके गालों पर।
सूखे होठों और भूखे पेटों पर
बेरोजगार मजदूर बेटों पर ।
शोषण की शिकार महिलाओं पर
सड़क किनारे भूख से मरती गायों पर।
दमन और अन्याय रोकने के लिए
अंधकार से मुकाबला करने के लिए।
मित्रों !कलम के पूर्ण होंगे अरमान
कलम का बढ़ जाएगा सम्मान ।
*डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'*
   (3)     *कविता (खुशी)*
मैंने अनवरत श्रम किया
कठिन जीवन जिया।
  वांछित सफलता पाई
पर वह नहीं मिल पाई ।
जीवन में नाम कमाया
पर्याप्त सम्मान पाया ।
फिर भी थी जिसकी तलाश
वह नहीं मिल पाई ।
यह बात समझ नहीं आई ।
पर एक दिन
जब एक गिरते को उठाया
बीमार को अस्पताल पहुंचाया ।
एक रोते हुए को हंसाया
भूले -भटके को रास्ता दिखाया।
एक भूखे को भोजन कराया
प्यासे को पानी पिलाया ।
तो वह मुझे अनायास मिल गई
मेरे सूने मन- आंगन में उतर गई।

दरअसल खुशी मांगने से नहीं 
बांटने से मिलती है
वह पाने में नहीं,
देने में   ही मिलती है।
डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
  (4)   *कविता ---देश प्रेम*
देश- प्रेम के प्रवल भाव से
मन के सुंदर सुमन विहंसते।
सदा गंध अनुपम होती है
बलिदानों के पृष्ठ महकते।
            उग्रवाद, आतंक है फैला
            देश प्रेम ही इसका हल है ।
           देशभक्ति से बढ़कर, मित्रों
           दुनिया में ना कोई बल है।
सीमाओं  की रक्षा करना
इसी भावना का पोषक है ।
और वतन पर मरना-मिटना
इसी भावना का द्योतक है।
            देश प्रेम की नहीं भावना
            वह प्राणी केवल पत्थर है ।
            कौन कहेगा उसको मानव        
            वह तो पशु से भी बदतर है।
देश प्रेम के सरस भाव को
अब 'असीम' हम  स्वीकारें।
सत्य ,धर्म के बन अनुयाई
देशभक्ति को और निखारें।
    *डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'*      
         150 छोटा बाजार दतिया     
         (मध्यप्रदेश) 475661
        मोबाइल 9425726907

(5)   *क्यों रोता है तू*
चिंतन कभी-कभी
चिंता में क्यों होता है तू
देख दशा दुनियादारी की
क्यों रोता है तू ।

आपाधापी ,धन लोलुपता
शांति नहीं अब दिखती
उसकी चादर क्यों उजली
रह -रह कर बात खटकती
बीज अशांति के निज मन में
क्यों बोता है तू।
चिंतन कभी ••••••••

आंगन कुछ व्याकुल सा
दिखती देहरी डरी हुई
भाई -भाई में दरके रिश्ते
बंदूके भरी हुई
संबंधों में आई दरार
क्यों नेत्र भिगोता  है तू
चिंतन कभी •••••••‌

  सोच और करनी में
थोड़ा अंतर रहता है
अच्छा करने वाला भी
कष्टों को सहता है
गलत सोच रख
दुख सागर में
नाव डुबोता  है तू।
चिंतन कभी •••••••
डाॅ• अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
150,छोटा बाजार दतिया (मध्यप्रदेश)475661
मोबाइल-9425726907

एस के कपूर श्री हंस

*।।विषय।।कलम।।*
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।कलम तीर है।।बलवीर है।।*
*।।असत्य को करता चीर चीर है।।*
*।।विधा।।हाइकु।।*
1
कलम तीर
कलम की ताकत
ये शमशीर
2
कलम शक्ति
कलम की पहुंच
करे भी भक्ति
3
कलम लिखे 
शब्दों की सरगम
जो शक्ति दिखे
4
कलम जादू
कर सके कमाल
वक़्त बदलू
5
कलम बोले
ये सारा सच खोले 
आदमी डोले
6
कलम नोंक
हिला दे सत्ता को भी
दम तो रोक
7
कलम यंत्र
दिखाये आइने सा
कलम मंत्र
8
कलम चित्र
सजीव चित्रण हो
लीला विचित्र
9
खोल दे राज़
यह कलम साज़
आये न बाज़
10
कलम कथा
पढ़ कर   भावुक
सब की व्यथा
11
कलम छोटा
काम करे ये मोटा
बहुत खोटा
12
शब्द प्रवाह
कलम से संभव
सत्य की राह
13
लिखे ये अर्थ
दुधारी तलवार
कभी अनर्थ
14
कलम शक्ति
मामूली नहीं यह
भाव रखती
15
कलम द्वेष
दुरुपयोग न हो
फैले विद्वेष

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464



।।कब जिन्दगी की आखिरी शाम आ जाये।।*
*।। ग़ज़ल ।।* *।। संख्या 62 ।।*
*।।काफ़िया।।   ।। आम ।।*
*।।रदीफ़।।    ।। आ जाये ।।*
1
कब जिंदगी कीआखिरी शामआ जाये।
कब बुलावे का वह पैगाम    आ जाये।।
2
सब से बना  कर   रखो      आप जरा।
कोई तकलीफ  सरे आम     आ जाये।।
3
बात करो यूँ कि    दिल में  उतर जाये।
बात करके दिल को आराम आ जाये।।
4
सबका साथ दो मुसीबत में तुम  जरा।
वक़्त पर कोई तुम्हारे  काम आ जाये।।
5
इंसानियत का साथ देते रहो हमेशा तुम।
कब ऊपरवाले का भेजा ईनाम आ जाये।।
6
बस अपना जमीर हमेशा संभाल कर रखो।
कोशिश हो हाथ में मन की लगाम आ जाये।।
7
*हंस* साथ जाने वाला तेरे कुछ भी नहीं।
बस महोब्बत की दौलत तमाम आ जाये।।

*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस*'"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464


*।।नेता का यही गुण है ।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
कभी शोला कभी शबनम
नेता का यही   गुण है।
सुबह प्रसाद     रात में रम
नेता का यही   गुण है।।
कथनी करनी के      अंतर
का उदाहरण   है नेता।
पैसे की बरसात   झमाझम
नेता का यही   गुण है।।
2
कभी नरम और कभी गरम
नेता का यही गुण है।
कब क्यों कैसे     आँखें नम
नेता का यही गुण है।।
नेता खुद नहीं कह पाता कि
आगे क्या करेगा वह।
हर बार दिखाना अपना दम
नेता का यही गुण है।।
3
मैं शब्द ऊपर, नहीं शब्द हम
नेता का यही गुण है।
मैं किसी    से   नहीं  हूँ  कम
नेता का यही गुण है।।
चोट से वोटऔर वोट से चोट
यह काम है रोज़ का।
कभी करते नहीं   कोई शरम
नेता का यही गुण है।।
4
कभी हमराज़ कभी   हमदम
नेता का   यही  गुण है।
कभी जनता को कर दे बेदम
नेता का   यही गुण है।।
कितने चेहरे और  कितने रंग
उसको भी मालूम नहीं।
कब किस पे क्यों रहमोकरम
नेता का यही   गुण है।।
5
कभी दुश्मनऔर कभी सनम
नेता का यही गुण है।
गिरगिट सा रंग  बदले हरदम
नेता का यही गुण है।।
आग पर रोटी  ,रोटी पर आग
जैसी समय की मांग हो।
करे दुनिया का     हर   करम
नेता का यही   गुण है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र।

*पहला*-5
   *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
कृष्न-चरित सुनि कलिमल-नासा।
मिटै भरम अरु बढ़ै हुलासा।।
     सुधामयी लीला जदुराई।
      करत पान हिय सभें जुड़ाई।।
कहे तुरत तब मुनि महराजा।
सुनि के प्रश्न परिच्छित राजा।।
     किसुन-कथा कै महिमा भारी।
     गंगा-जल इव सुचि अरु न्यारी।।
सालीग्राम-पदामृत नाईं।
बक्ता-श्रोता-कर्त्ता भाईं।।
    सुनहु परिच्छित कह सुकदेवा।
     जाहि समय प्रभु जनमै लेवा।।
मही रही बहु पीड़ित-दुखिता।
दंभी-अभिमानी नृप सहिता।।
बहु-बहु असुर-दैत्य चहुँ-ओरा।
रहा न जाकर ओरा-छोरा।।
    मही धारि तब धेनू रूपा।
    रोवत पहुँची ब्रह्म अनूपा।।
कृषित गात बिनु दाना-पानी।
कही जाइ निज दुखद कहानी।।
     सुनत मही कै कथा-प्रसंगा।
     ब्रह्मा चले देव-सिव संगा।।
पृथ्वी साथे सकल समाजा।
लइ पहुँचे पय-सागर तट जा।।
    जहाँ रहहिं पुरुषोत्तम देवा।
     जासु कृपा सभ देवन्ह लेवा।।
कीन्हा सभ मिलि तहँ अह्वाना।
'पुरुष-सूक्त'पढ़ि पुरुष-प्रधाना।।
    समाधिस्थ तब ब्रह्मा भयऊ।
    सुनत भए नभ-बानी तहँऊ।।
प्रभू-आगमन जग मा होई।
पृथ्बी अब नहिं गरिमा खोई।।
     ब्रह्मा कहे सुनहु सभ देवहु।
     जदुकुल जनम तुमहिं सभ लेवहु।।
जब लगि प्रभू करहिं तहँ लीला।
तब लगि रहहु उहाँ अनुसीला।।
   होंइहैं स्वयं प्रकट पुरुषोत्तम।
    बसुदेवहिं गृह जाइ नरोत्तम।।
सकल अपछरा अमरपुरी कै।
करिहैं सेवा किसुन हरी कै।।
   लेइ जनम गोपिन्ह कै तहवाँ।
   राधहिं सेवा करिहैं उहवाँ।।
स्वयं प्रकास सेष भगवाना।
जाहिं अनंत सकल जग जाना।।
    प्रिय भगवान सहस मुखधारी।
     प्रभु कै भ्रात जेठ अवतारी।।
सँग-सँग करिहैं दुष्ट-दलन वै।
जस चहिहैं प्रभु किसुन ललन ह्वै।।
दोहा-माया कृष्णहिं योग कै, बैभव-कला-प्रधान।
        आयसु पाइ क नाथ कै, लीला करी महान।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र।
                         9919446372

सम्राट

दूरियां मिटा कर सोचा लाओ हम भी प्यार कर लें
दबी हैं जो ख़्वाईसे लाओ हम भी इजहार कर लें
कुछ कहें,कुछ सुने,लाओ हमभी आँखेचार कर लें
दूरियां मिटा कर सोचा लाओ हम भी प्यार कर लें।।
बस,
ये नहीं सोच पाए कि बुरा अंजाम भी हो सकता है
ये नहीं सोच पाए कि इश्क़ बेकाम भी हो सकता है
ये नहीं सोच पाए कि बंदा गुलाम भी हो सकता है
ये नहीं सोच पाए कि बंदा बदनाम भी हो सकता है।।
गर सोचनें में व्यस्त होते तो क्या कभी इश्क़ करते
गर सोचनें में व्यस्त होते विरहाअग्नि में क्यों जरते
गर सोचनें में व्यस्त होते क्या कभी हम खाई भरते
गर सोचनें में व्यस्त होते तो जानबूझ कर क्यों मरते।।
हमनें सोचा आओ हम भी बातें कुछ बेकार कर लें
दूरियां मिटा कर सोचा लाओ हम भी प्यार कर लें।।

©️सम्राट की कविताएं

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(सुगंध)
यद्यपि लिपटे नित रहें,विषधर-कृष्ण भुजंग।
तदपि नहीं त्यागे कभी, चंदन-वृक्ष  सुगंध।।

बहे फागुनी पवन जब, आए  मस्त  वसंत।
भाए  नहीं  सुगंध  पर,नहीं  संग जब कंत।।

भ्रमर मस्त  मकरंद ले, छेड़ें  मधुरिम  तान।
पा सुगंध वन-बाग की,करे  कोकिला  गान।।

पुष्प-इत्र-पकवान की, प्यारी  लगे  सुगंध ।
बिन देखे मन मुदित हों,उनके भी जो अंध।।

हो सुगंध-अनुभूति जब,भव-चिंतन  हो दूर।
पाएँ तन-मन परम सुख, बरसे नभ  से नूर।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

डा. नीलम

*मोबाईल* 
 जी का जंजाल हुआ
मन का बवाल हुआ
बच्चों के हाथ आया
मोबाईल खतरनाक हुआ

विज्ञान का अविष्कार है
विश्व का संपर्क संचार है
पर...जबसे हाथ आया 
बचपन के मोबाईल मन-
मानसिक विकार हुआ

शिक्षा के नाम पर अनिवार्य
शिक्षक-शिष्यों के बीच ये
सेतुबंध हुआ
पर... शिक्षा का सबसे बड़ा
हनन् भी मोबाईल से हुआ

पढ़ाई के नाम पर खुला
मोबाईल है
अर्द्ध रात्रि मगर खुली
अश्लिल साईट है
देख देख बालमन का 
बुरा आचार हुआ

रोटी से जरुरी हुआ मोबाईल
दूध के बदले बहला बाल
हाथ में जब आया उसके
मोबाईल,मॉं का ऑंचल छोड़
व्यस्त हो मुस्करा रहा पा के
मोबाईल।

       डा. नीलम

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार रामकेश एम. यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई

 लेखक : रामकेश  एम. यादव का संक्षिप्त जीवन -परिचय !


बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि, साहित्यकार पत्रकार, शिक्षक, समाजसेवी रामकेश एम. यादव का जन्म  उत्तर प्रदेश के आजमगढ़  जनपद  के  फूलपुर  (अब मार्टिनगंज )  तहसील के उच्च शिक्षित गांव तेजपुर में 5  फ़रवरी, 1961 ईसवी को एक संपन्न किसान परिवार में हुआ है। आपकी प्राथमिक शिक्षा  गांव में  और उच्च शिक्षा (एम. ए. ) आज़मगढ़  के डी. ए. वी. डिग्री कालेज में संपन्न हुई और बी.एड. की शिक्षा लाल बहादुर शास्त्री स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय मुग़लसराय, वाराणसी में संपन्न हुई। आप मुंबई की बृहन्नमुंबई  महानगरपालिका में  (1991में ) एक शिक्षक के पद पर कार्य करते हुए 1 मार्च, 2019 को सेवानिवृत्त हो गए। अब आप पूर्ण रूप से मुंबई में ही रहकर साहित्य साधना में तल्लीन  हो गए  हैं।

भारत - पाक जंग (1999) के दौरान भारतीय जवानों के हौसला अफजाई के लिए  आपने बहुत से  लेख और कविताएं लिखे।  जंग  के बाद मुंबई, चर्नी रोड स्थित महात्मा गांधी लाइब्रेरी ने पांच भाषाओं में एक पुस्तक प्रकाशित की जिसका नाम है : कारगिल एक झलक ! उसमें आपका एक  लेख-  प्रेम की भाषा  नहीं  समझता पाकिस्तान, प्रकाशित हुआ। आपका 1600 से अधिक लेख, पत्र लेख, कविता, कविता खण्ड, साक्षात्कार आदि देश के विभिन्न समाचार पत्रों  में प्रकाशित  हो  चुका है। आपकी साहित्यिक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए आपको सम्मानित भी  किया गया।  जैसे  : पण्डित दीनदयाल पुरस्कार, समाज रक्षक पुरस्कार,साहित्य भूषण सम्मान,सरस्वती पुरस्कार, उत्कृष्ट साहित्य सेवा पुरस्कार, दर्पण पुरस्कार,

साहित्यरत्न पुरस्कार, शिक्षक गौरव सम्मान,

महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार,द्रोणाचार्य पुरस्कार, साहित्य भूषण पुरस्कार, साहित्य रत्न पुरस्कार ,

प्रामिनेन्ट सिटिजन आफ अवार्ड,महाराष्ट्र 

गुण गौरव पुरस्कार,राष्ट्रीय एकात्मता फेलोशिप, श्री संत एकनाथ महाराज स्मृती गौरव पुरस्कार,

आदर्श शिक्षक पुरस्कार,मुंबई रत्न गौरव पुरस्कार,गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार,पं.वंश नारायण मिश्र आदर्श शिक्षक पुरस्कार,नगर मित्र पुरस्कार,आरोग्य साहित्य सम्मान,साहित्य रत्न पुरस्कार, शिक्षक गौरव चिन्ह।  उत्तर साहित्यश्री-सम्मान 23/01/2021 (अभियान-

सामाजिक,सांस्कृतिक संस्था,मुंबई), विश्व भारतीय हिंदी सम्मान (2020)हिंदी पुस्तक बैंक,जबलपुर,मध्यप्रदेश। शारदा सम्मान -काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक संस्था लखीमपुर खीरी, उत्तरप्रदेश,आदि- आदि । 

अभी तक आपने पच्चीस पुस्तकें लिखी हैं  जैसे  : १) मैं सैनिक बनूँगा, २) तिरंगा, ३) वतन, ४) मेढक का संगीत, ५) हाथी का सपना, ६) सरहद, 

७) क्रांति , ८) मेरा देश महान, ९) याद करो कुर्बानी, १०) महफूज रहे देश ,११) मजदूरन,१२) देश-प्रेम,१३) कश्मीर न देंगे,१४) मुंबई काव्य संग्रह,१५) पानी बचाओ, १६) आज की नारी, 

१७) महाराष्ट्र का आईना  (भाग-१), १८) दुनिया यदि बचानी है? १९) महाराष्ट्र का आईना (भाग-दो), २०) आओ स्कूल चलें हम,  (नाटक)। 21) मधुशाला (काव्य-संग्रह), 22) बेटी बचाओ! काव्य-संग्रह, 23) किसान की बेटी,   24) कटते जंगल पूछ रहे हैं!,  25) चाँद पर बसेरा  काव्य-संग्रह!, और कुष्ठ रोग पुस्तक। आगे लेखन कार्य जारी है...। 

अब तक प्रकाशित पुस्तकों के विमोचनकर्ता क्रमशः इस प्रकार हैं -मा.श्री तुषार गांधी (राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र) २) मा.श्री गोविंद राघव खैरनार ३) मा.श्री. दारा सिंह- सिने अभिनेता और विश्व कुश्ती चैपियन। ४) मा.श्री गृह -राज्यमंत्री (महाराष्ट्र) 

श्री. कृपाशंकर सिंह ५) मा.श्री महादेव देवले  (महापौर-मुंबई), ६) मा.श्री मो. आरिफ (नसीम) खान, खाद्य-आपूर्ति राज्यमंत्री (महाराष्ट्र) ७) मा.श्री नवाब  मलिक-गृह निर्माण राज्यमंत्री (महाराष्ट्र), 

८) मा.श्री हुल्लड़ मुरादाबादी (हास्य कवि) ९) मा.श्री शैल चतुर्वेदी (हास्यकवि, सिने अभिनेता), १०) मा.श्री भूपेन्द्र चतुर्वेदी (कार्यकारी संपादक - 

नवभारत, मुंबई), ११) मा.श्री डॉ. शोभनाथ यादव (वरिष्ठ साहित्यकार और चिंतक), १२) आमदार मा.श्री भाई जगताप जी,  १३) मा.श्री.दलसुखभाई प्रजापति (महापौर), बड़ौदा, गुजरात, 

१४) मा.श्री.नंदकिशोरनौटियाल, कार्यकारी अध्यक्ष- महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी, १५) मा.श्री राजहंस सिंह (विरोधी पक्ष नेता, बृहन्मुंबई महानगरपालिका, मुंबई, १६)  माननीया श्रीमती 

डॉक्टर निर्मला सामंत (पूर्व मेयर (मुंबई), १७) मा. श्री दशरथ मधुकुंटा (पूर्व नगरसेवक – काजूपाड़ा, कुर्ला, मुंबई ) १८) मा.श्री मंगेश ए. सांगले,  (आमदार (गटनेता), (महाराष्ट्र नवनिर्माणसेना), १९) मा.श्री यशोधर शैलेश फणसे (मनपा सदन नेता) २०) मा.श्री सुनील प्रभु जी (महापौर-मंबई)। अभी कुछ पुस्तकों का लोकार्पण नहीं हो पाया  है। 

आपने बृहन्मुंबई महानगरपालिका प्राथमिक शिक्षण विभाग, पाँचवीं कक्षा के लिए सत्र २०१०-११ में पर्यावरण शोध (प्रकल्प) पर 

भी पुस्तक लिखी जो शिक्षणाधिकारी कार्यालय,दादर में जमा है। समय-समय पर आपको सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षणिक संस्थाएँ सम्मानित करती रही, उत्तरप्रदेश हो या महाराष्ट्र। 

२० मई,२०११ को उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष माननीय श्री सुखदेव राजभर,माननीय श्री डॉ. बलिराम (सांसद), महिला कल्याण राज्यमंत्री (उ.प्र.) माननीया श्रीमती विद्या चौधरी के शुभ 

हाथों शाल, श्रीफल, पुष्पगुच्छ और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया। उत्तर-प्रदेश स्थित बदायूँ के सांसद माननीय श्री धर्मेन्द्र सिंह यादव ने मुंबई में सम्मान किया। जंगलेश्वर महादेव मंदिर

सभागृह,असल्फा,घाटकोपर,मुंबई- महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री माननीय श्री राजेन्द्र दर्डा और मुंबई के तत्कालीन पालक मंत्री के शुभ हाथों आपका सम्मान किया गया। इस तरह आपका सम्मान होता ही रहता है।  आप कई राष्ट्रीय कार्यों  में भी भाग ले चुके हैं, जैसे –जनगणना,पल्स-पोलिओ,लोकसभा 

चुनाव,विधान सभा चुनाव बृहन्मुंबई

महानगरपालिका चुनाव,लोकसभा 

मतगणना,वोटर आई.डी.प्रगणक के रूप में,

मतदाता सूची संसोधन व अन्य राष्ट्रीय कार्य। बृहन्मुंबई महानगरपालिका शिक्षण विभाग,रोटरी क्लब आफ मुंबई नार्थ एण्ड की तरफ से वक्तृत्व स्पर्धा में निर्णायक के रूप में। आप मुंबई वृत्तपत्र लेखक संघ,परेल मुंबई, उत्तर प्रदेश ग्रामीण पत्रकार संघ सहित कई अन्य संस्थाओं के सदस्य हैं। बृहन्मुंबई महानगरपालिका शिक्षण विभाग 

भाषा विकास प्रकल्प प्रश्नमंच युग कवि पंत तथा मुंबई में होनेवाकी अन्य काव्य-स्पर्धाओं में आपको कई प्रमाणपत्र मिले हैं और यहाँ  स्थानिक काव्य मंचों पर कविता पाठ आप  करते रहते हैं। 

महाराष्ट्र पाठ्यपुस्तक निमिर्ती विभाग व अभ्यासक्रम संशोधन मण्डल पुणे -४ महाराष्ट्र द्वारा सत्र २००५-०६ से सत्र २०१५-१६ के दरम्यान पाँचवीं के पाठ्यक्रम  में आपकी दो कविताएँ जल 

और सब्जी हिंदी बालभारती व हिंदी सुगम भारती में पढ़ाई जा चुकी हैं। आप रायल्टी प्राप्त कवि हैं। आपकी  बाल-कविताएँ तथा कहानियाँ बालजगत कार्यक्रम के तहत आल इंडिया रेडियो 

(आकाशवाणी ) मुंबई द्वारा समय-समय पर प्रसारित हुआ है।  आप अपने पैतृक गाँव तेजपुर में प्रधानमंत्री मा.श्री  अटल बिहारी वाजपेयी,

तत्कालीन मुख्यमंत्री उ.प्र.सुश्री मायावती,स्थानीय सांसद मा.श्री रमाकान्त यादव,स्थानीय विधायक मा.श्री हीरालाल गीतम से गुहार लगाकर मगई नदी पर पुल बनवाने में सफलता हासिल की है।  

सरायमीर रेलवे  स्टेशन के विस्तारीकरण तथा प्लेट फार्म ऊँचा करने हेतु रेल मंत्री भारत सरकार माननीय श्री लालू प्रसाद यादव जी से गुहार लगाए थे।  महाराष्ट्र के वर्धा नदी पर पुल बनवाने की माँग 

आपने की थी। महाराष्ट्र स्थित ठाणे जिले के मध्य रेल्वे पर स्थित अंबरनाथ तथा बदलापुर के बीच चिखलोली एक नया रेल्वे स्टेशन बनवाने की गुहार आपने रेलमंत्री भारत सरकार माननीय पवन 

कुमार बंसल जी और दूसरे रेल मंत्रियों एवं छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के मुख्य स्थानिक अधिकारी से लगाई तथा इस आशय के कई 

रजिस्टर्ड पत्र नई दिल्ली भी भेजे जो चिखलोली रेलवे स्टेशन बनाने की आम जनता की आशा को मंजूरी  मिली। २६ दिसंबर,सन् २००४ में सुनामी त्रासदी के पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिए ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा राहत कोष’ में पाँच हजार रुपये का आपने दान दिया।  पीड़ितों, प्रपीड़ितों  के प्रति आप हमेशा उदार दृष्टिकोण रखते  हैं। 

साहित्य के साथ-साथ राष्ट्र की सेवा करना आपका मुख्य ध्येय है।        

           जय हिन्द !  जय महाराष्ट्र ! 


                      (रामकेश एम. यादव )

                     कवि, साहित्यकार, मुंबई,



बाबू जी!

घुट -   घुटके   आजकल,

क्यों  रोते  हो   बाबू   जी,(2)

क्या आज तेरा कोई नहीं।


सबको  पढ़ा - लिखा के, 

रस्ता      दिखाए      तुम,

बेटी   से    कहीं   ज्यादा,

बेटों     को    चाहे    तुम।

बेटों   ने   ऐसे   हाल    में,

क्यों  छोड़ा   है  बाबू  जी,(2)

क्या आज तेरा कोई नहीं।

घुट -  घुटके....


निचोड़    कर       जवानी,

खड़ा      किए       महल।

जैसे     उगे     हैं       पंख,

परिन्दे    किए    वो  छल।

रो -  रो   के       बुनियाद,

कुछ कह रही है  बाबू जी,

क्या आज तेरा कोई नहीं।

घुट -घुटके......

बच्चों   के   अरमान  और 

आसमान      बने      तुम।

चलती   -  फिरती     बैंक,

और    दुकान    बने   तुम।

फाँके      में     कट      रहे,

क्यों   दिन   ये   बाबू   जी,

क्या आज  तेरा कोई नहीं।

घुट -घुटके.....

पाते   नहीं   हो  आजकल,

सूखी       भी       रोटियाँ।

किस  बिल में  जा छुपी हैं,

फूलों     की       डालियाँ।

आंसू    के     सैलाब     में,

क्यों    डूबे   हो   बाबू   जी,

क्या आज तेरा  कोई नहीं।

घुट -घुटके......


कुछ दिन के हो मुसाफिर,

हक़ीक़त  को  जान   लो।

पैसे    से    रखती    यारी,

दुनिया   को   जान   लो।

जख्मों   की  ये    तुरपाई,

न     होगी     बाबू     जी,

क्या आज तेरा कोई नहीं।

घुट -घुटके....


अच्छाइयों का रोज -रोज,

 हो     रहा     है       खून।

माता -पिता  को  छोड़के,

वो    बस     रहे      रंगून।

खून      अपना       पानी,

क्यों   हुआ   है   बाबू जी।

क्या आज तेरा कोई नहीं।

घुट -घुटके.....


जो   बो   रहे    हैं    कांटे,

उनको      धंसेंगे       वो।

बेटे भी   उनके   साथ  में,

कैसे          रहेँगे        वो।

उधार      कोई        आंसू,

न     देगा       बाबू     जी,

 क्या आज तेरा कोई नहीं। 

घुट -घुटके.........


गंगा!


बहती है जो गंगा,उसकी एक कहानी है,

मानों तो है माँ वो,  न मानों  तो पानी है।

राजा भगीरथ ने उसे धरती पर लाया है,

शिव की जटाओं से, गिरता वो पानी है।

गंगोत्री से निकली,मिलती गंगासागर में,

संस्कार देती हमें,कबीर की वो वाणी है।

खेत-खलिहानों की, उससे हरियाली है,

गौर से अगर देखो, लहरों में  जवानी है।

कीड़े  नहीं पड़ते,  उस गंगा  के पानी में,

औषधि गुण से भरी, वो तो  वरदानी है।

गन्दा करो न उसे,वह तो  पापनाशिनी है,

करती निहाल सबको,वह जग तारिणी है।

दौलत  पहाड़ों  का,  भले  तेरे आंगन  हो,

नहाया न गंगा जो,वो धड़कन  बेगानी है।

सुबह-शाम सोने की, रात-दिन चांदी की,

चंचल बदन  उसका,वो तो आसमानी है।

गंगा  का दर्द  समझो, पुरखों  ने  पूजा है,

वेदों में भी  देखो, उस माँ  की कहानी है।

कोई  वजू  करता, कोई  संगम नहाता है,

नभ  से है  उतरी  वो, बात ये  पुरानी  है।

पी  करके आंसू  वो, घुट-घुट के जीती है,

गंगा को ना बेचो,वो ब्रह्मा की निशानी है।


आईना!


आईना खुद देख,तब दिखा आईना,

तरफदारी में  उतरता नहीं आईना।

मेरे  चेहरे  पे पड़  जो  रही  झुर्रियां,

नहीं छुपा सकता उसे कोई आईना।

टूटकर  बिखर  जाना,  गवारा  इसे,

झूठ  का   पैर  छूता  नहीं  आईना।

क्या  जाने  भेद, गोरे -काले  का ये,

जैसा जो दिखता, दिखाता आईना।

सोने- चांदी के फ्रेम में भले जड़ दो,

किसी ऐब को छुपाता नहीं आईना।

फितरत समझता है हर आदमी का,

सच से बे-खबर नहीं रहता आईना।

बे-आबरू होकर घूमते जो भी जहाँ,

उन्हें नज़र नहीं  आता वही  आईना।

गला  कोई  दबाता झूठ आज  बोल,

खुद सलीब पे है चढ़ जाता आईना।

पत्थरों के  बीच  रहता बड़ी शान से,

देखो! डरता कभी न उससे आईना।

फायदे के लिए हम तोड़ रहे कायदा,

पर अपना फर्ज़ नहीं भूलता आईना।

वतन के लिए जिवो, वतन पर मिटो,

यही  मंत्र हमको  सिखाता  आईना।


बसंत!

कितना  नाराज   है   हमसे  बसंत,

दबे  पांव  आता  आजकल बसंत।

बाग -बगीचे को  उजाड़  रहे  लोग,

उनसे   खफ़ा   है    देखो !  बसंत।


अख़बारों  में सजती  बसंत पंचमी,

फोन के ऊपर अब मना रहे बसंत।

नकली  फूलों  का   आया  जमाना,

जीवन  से  दूर  हुआ  देखो  बसंत।


करे किससे आलिंगन,तरस रहा वो,

शर- शैय्या  पे  कैसे   सोये  बसंत?

कब तलक  सहे  पीर  बाणों की वो,

ठगा - सा  महसूस  कर रहा बसंत।


वनों  से दूर  हुई  कोयल  की  कूक,

उसकी तलाश में है आजकल बसंत।

मचलता था भौंरा  कलियों के ऊपर,

गुमी उस जवानी को ढूंढ़ रहा बसंत।


बूढ़े  भी  होते थे  जवां  इस  रितु  में,

छले उन नयनों  में झाँक रहा बसंत।

पीना जब आंसू तो  मजा फिर कहाँ,

आंसुओं  के  अधरों पे  सोया बसंत।


कोई खोजकर दे दे मदभरी जवानी,

बसंती   हवाओं   संग  झूमें   बसंत।

सराबोर  हो  जाय  ये  सारी  दुनिया,

मालूम  पड़े  फिर  से  आया  बसंत।


दूध का कर्ज !


जितना  जिएँ हम  वतन के लिए,

जब भी मरें, हम  वतन के  लिए।

नहीं  कुछ  चाहिए  जहां  से हमें,

हमारी हर सांस है चमन के लिए।


बहार -ए - गुलशन  सलामत रहे,

आपस  में  सबसे  मोहब्बत रहे।

बहायेंगे  लहू   शहीदों  के   जैसे,

ऐसी  हमारी  कुछ  किस्मत  रहे।


दूध  के  जैसी  यहाँ  नदिया बहें,

गंगा-जमुनी हमारी विरासत रहे।

बनी  रहे  सरफ़रोशी  की तमन्ना,

इस माटी की अमर शहादत रहे।


माते !   तू   देना  अपनी   दुआयें।

जर्रा-जर्रा महके अमन की क्यारी।

हृदय हो  अलौकित  तेरी  प्रभा से,

खिले नित्य नूतन फूलों की डाली।


रखें हम सुरक्षित देश की सीमाएँ।

हम भी तो  दूध  का  कर्ज चुकाएँ।

लहराता  रहे   आसमां   में  तिरंगा,

आयें  लिपट के तो तिरंगे  में आएँ।


रामकेश एम. यादव(कवि,साहित्यकार)मुंबई


एस के कपूर श्री हंस

।। ग़ज़ल।।  ।।संख्या 59।।*
*।।काफ़िया ।। ।।अर ।।*
*।।रदीफ़  ।।   ।। हो गया।।*
1
जाने    कैसे दूर  ये शहर  हो  गया।
क्यों साथ अपने ये कहर  हो  गया।।
2
लिखा सीने से कलेजा निकाल कर।
क्यों ग़ज़ल का शेर  बेबहर हो गया।।
3
रखा था बांध कर   जिस  ठहराव को।
देखते देखते वो      ही  लहर हो गया।।
4
लाये जो दरिया पहाड़ों से निकालकर।
चलते   चलते वो क्यों   नहर हो  गया।।
5
बड़े मन से बनाये   जो पकवान हमने।
वही खाना चखे बिना   जहर हो गया।।
6
*हंस* देख न पाये सूरज की रोशनी को।
हमारे जागने से पहले ही सहर हो गया।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस

।।गुस्से में छिपा भी प्यार होता है।।*
*।।ग़ज़ल।।*  *।।संख्या 58।।*
*।।काफ़िया।। ।। आर ।।*
*।।रदीफ़ ।। ।।होता है।।*
1
गुस्से में छिपा भी  प्यार     होता   है।
चाहत का ऐसा ही  क़िरदार होता है।।
2
समझदार   को तो  इशारा काफी है।
इंकार    भी  लिए   इक़रार  होता है।।
3
जो करता  है       बेपनाह    महोब्बत।
उसे ही  रूठने का अख्तियार  होता है।।
4
गुस्सा तो बस चेहरे पर ही  दिखता है।
प्यार दिल के अंदर लगातार   होता है।।
5
जो रखे हक़ महोब्बत का   किसी पर।
वही जाकर गुस्से का हक़दार होता है।।
6
वही होता  जीवन में  इक़ सच्चा साथी।
वही सुख दुःख का  हिस्सेदार होता है।।
7
जो करता बस मुहँ   पर झूठी  तारीफ़।
वह आदमी अंदर  से   बेकार होता है।।
8
झाँकते रहो  अपने   अंदर भी  हमेशा।
क्यों किसी से बात पे तक़रार होता है।।
9
जिसके प्यार में बसा होता झूठा गुस्सा।
तुम्हारे लिए जैसे वो इक़ संसार होता है।।
10
*हंस* गुस्से ,नज़र, दिल को पढ़ना सीखो।
तेरे लिए वो इंसा यक़ीनन बेकरार   होता है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस "*
*बरेली।।।।*
मोब ।।।।       9897071046
                    8218685464

*।।विधा/विषय गद्य साहित्य ।।*
*।।होली व अन्य त्यौहार।।केवल पर्व ही नहीं।।संबधों की प्रगाढ़ता के सुअवसर हैं।।*

होली ,दीवाली, दशहरा व अन्य केवल रंगों के खेलने व आतिशबाजी के त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना,मिलना इसमें परमआवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है और दीपावली पर जाकर मिलना ,उनके हाथ से मीठा खाना, साथ हंसना बोलना ही पर्व की सार्थकता है।
कहा गया है कि, अंहकार मनुष्य के पतन का मूल कारण है। अंहकार मनुष्य की बुद्धि विवेक , तर्क शक्ति , मिलनसारिता तथा अन्य गुणों का हरण कर लेता है।व्यक्ति का जितना वैचारिक पतन होता है ,उतना ही उसका अंहकार बढता जाता है। अंहकार से देवता भी दानव बन जाता है और अंहकार रहित मनुष्य देवता समान हो जाता है।बड़ी से बड़ी गलती के तह में यदि जाये ,तो मूल स्रोत में अंहकार को ही पायेंगे।
ईर्ष्या व घृणा का मूल कारण भी अंहकार ही होता है ,जो अन्ततः कई क्षेत्रों में असफलता का कारण बनता है। होली ,दीपावली व अन्य त्योहार ,वो अवसर है ,जब कि ,मनुष्य समस्त विद्वेष व कुभावना का त्याग कर, शत्रु को भी मित्र बना सकता है।अंहकारी सदैव विनम्रता विहिन होता है।अंहकार आने से मनुष्य अपने वास्तविक रूप से भी ,धीरे धीरे दूर हटने लगता है और एक बहुरूपीये समान बन जाता है।वह कई झूठे आवरण अोढ लेता है और उसकी अपनी असलियत ही लुप्त होने लगती है।अंहकारी में , हम की भावना नहीं होती है।उसमें केवल मैं की भावना ही होती है।यह भावना नेतृत्व क्षमता व समाजिक लोकप्रियता के लिए अत्यंत घातक है।अंहकारी व्यक्ति में धीरे धीरे ,धैर्य , निष्ठा ,सदभावना का अभाव होने लगता है।अंहकार का खानदान बहुत बड़ा है और यह अकेले नहीं आता है और साथ में कोध्र, स्वार्थ, घृणा ,अहम, अलोकप्रियता ,अधीरता , आलोचना ,निरादर ,कर्मविहीन सफलता की लालसा ,अतिआत्म विश्वास, त्रुटि को स्वीकार न करना, आदि अनेक अवगुण स्वतः ही साथ आ जाते हैं।अतएव ,त्योहारों में बड़ापन दिखायें, एक कदम आगे बढे, दिल से गले लगायें।आप पायेंगे नफरत की बहुत मजबूत सी दिखने वाली दिवार, भरभरा कर एक झटके में ढह जायेगी।
सारांश यही है कि, होलिका दहन मे अहंकार को भी जला कर नाश कर दिया जाना चाहिए।जन्माष्टमी का प्रसाद का आदान प्रदान करें।दीपावली में एक दूसरे के यहाँ अवश्य जाये।मिलकर दशहरा पर्व पर रावण दहन करें।तभी इन पवित्र पावन पर्व की सार्थकता है।पहल करके देखिये, एक कदम बढ़ाइये, आप पाएंगे कि पहले ही दो कदम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।गले भी लगिये और दिलों को भी मिलाइये।आप देखेंगे कि त्योहारों की यह मिलन सारित, एक सकारात्मक परिणाम आपके जीवन में लेकर आयेगी।
*लेखक।।।।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।। 9897071046
8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पहला*-4
*पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
एकमात्र बस ई तन मोरा।
रह अलम्ब दुइ बंसन्ह थोरा।।
    ताहि जरायो अस्वतथामा।
    ब्रह्मइ-अस्त्र छोड़ि बलधामा।।
तब मम माता भगवत्सरना।
कीन्ह जाइ स्तुति अति करुना।।
     निज कर धारि चक्र भगवाना।
     मातु-गरभ प्रबिसे जग जाना।।
रहि के भीतर आतम रूपा।
जीवहिं सेवहिं प्रभू अनूपा।।
    बाहर रहि के काल समाना।
    जीव क नास करहिं भगवाना।।
लीला करहिं मनुज-तन धारी।
अचरज बिबिध करैं बनवारी।।
    लीला तासु सुनावहु अबहीं।
    करि-करि बिधिवत बरनन सबहीं।।
भए तनय बलदाऊ कैइसे।
दोनों मातुहिं अइसे-तइसे।।
    तनय रोहिनी प्रथम बतायो।
    मातु देवकी पुनि कस जायो।।
निज पितु-गृह तजि के कस गयऊ।
ब्रज मा कृष्ना असुरन्ह तरऊ।।
    कहँ-कहँ लीला कीन्ह कन्हाई।
     गोप-सखा सँग धाई-धाई।।
भगत-बछल प्रभु नंदकिसोरा।
मनि-जदुबनसिन-जसुमति-छोरा।।
   मारि गिराए कंसहिं मामा।
   कहहु मुनी काहें बलधामा।।
केतने बरस रहे द्वारका।
अबहिं बतावउ मुनिवर हमका।।
    पतनी केतिक रहीं किसुन कै।
    लीला जेतनी कीन्ह सिसुन्ह कै।।
जानउ सभ कछु तुम्ह मुनि-नाथा।
आदि-अंत सभ किसुनहिं गाथा।।
     हमहिं न भूख-पियासिहिं पीरा।
     लीला सुनहुँ जबहिं धरि धीरा।।
दोहा- सुनु,कह सौनक सूत जी,प्रश्न परिच्छित जानि।
          कहे कथा समुझाइ के,कृष्न-चरित गुनखानि।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*सजल*
 समांत--आरे
पदांत--होते हैं
मात्रा-भार--26
कभी नहीं मिलते जो,नदी-किनारे होते हैं,
जो दे समय पे साथ, वही  सहारे होते हैं।।

वैसे तो हैं स्रोत बहुत, उजियारा पाने के,
जो करें सदा प्रकाश, वही सितारे होते हैं।।

लाभ-हानि की चिंता कुछ,को रहती नहीं कभी,
ऐसा  करते  हैं  जो, मन -  बंजारे  होते  हैं।।

देकर वचन भूलते जो, होते  नाग  भयंकर,
ऐसे कपटी जन जिह्वा, दो  धारे  होते  हैं।।

निज कुल-परिवार त्याग जो,करें सुरक्षा माँ की,
ऐसे  सैनिक  भारत  माँ  को, प्यारे  होते  हैं।।

बड़े-बड़ों  की  सेवा  करना,अपना धर्म सनातन,
सेवा-रत - जन  कुल  के, सदा  दुलारे  होते  हैं।।

कर्म करें फल मिले नहीं, होता  सदा  असंभव,
रखें  सोच  विपरीत  वही,मन - मारे  होते  हैं।।
               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

विनय कुमार जायसवाल

ग़ज़ल---

माना मिला किसी का सहारा नहीं मुझे 
ईमान बेच दूँ ये ग़वारा नहीं मुझे

कहता तो है अज़ीज़ तू अपना मुझे मगर 
मुश्किल के वक़्त फिर भी पुकारा नहीं मुझे

मैं खैरियत से हूँ कहूँ कैसे किसी से मैं 
तूफान में दिखा है किनारा नहीं मुझे

बरसों इसी सवाल पे मैं सोचता  रहा 
क्यों कर मिला  जवाब  तुम्हारा नहीं मुझे 

उस बेवफ़ा पे प्यार लुटाया है आज तक
महसूस पर हुआ ये ख़सारा नहीं मुझे

मैं कामयाब हो न सका पर मेरे ख़ुदा 
मौक़ा दिया है तूने दुबारा नहीं मुझे

*साग़र* है  दिल में जिसकी मेरे अहमियत बहुत 
लेकिन कभी उसी ने शुमारा नहीं मुझे

🖋️विनय कुमार जायसवाल
3/4/21
ख़सारा-नुकसान

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