सुषमा दीक्षित शुक्ला

गीत     मां 

चंदन जैसी मां तेरी ममता ,
तेरी मिसाल कहां दूं मां ,,।
जनम मिले गर  फिर धरती पर,
 तेरा ही लाल बनूंगा मां,,,।

 तूने  कितनी रातें वारी ,
जाग जाग कर मुझे सुलाया ।
अपने नैनों की ज्योति से,
 तूने मुझको जग दिखलाया ।

कैसे चुकाऊँ कर्ज़ दूध का ,
कितना मलाल करूंगा  मां ,,
तेरी मिसाल  कहाँ दूं मां ,,,
जनम मिले गर,,,,,।

 चल कर खुद तपती राहों में,
 तूने मुझको गोद उठाया ।
नज़र लगे ना कभी किसी की
 काला टीका सदा लगाया ।

मेर जीवन का तू हिसाब थी ,
किससे सवाल करूंगा मां । 
तेरी मिसाल कहाँ दूं मां ,,,।
जनम मिले गर,,,,

जीवन पथ से काँटे चुनकर,
 तूने सुंदर फूल सजाया ।
मां ना कभी कुमाता होती ,
औलादों ने भले रुलाया ।

 धरती नदिया पर्वत अम्बर ,
 तेरी मिसाल कहाँ दूं मां ।
जनम मिले गर,,,

तेरे पावन अमर प्यार को ,
मैं नादां था समझ न पाया ।
ईश्वर भी ना तुझसे बड़ा है,
 अब यह मेरी समझ में आया।

 आंचल में फिर मुझे छुपा ले ,
तेरा ख्याल रखूंगा मां,,,।
 तेरी मिसाल कहां  दूं मां ।
जनम मिले गर ,,,,। 

गीतकार 
सुषमा दीक्षित शुक्ला  लखनऊ
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दिनांक 10,04,2021

एस के कपूर श्री हंस

।।हो सके तो तुम बस इंसान बन कर देखो।।

*।।ग़ज़ल।। ।।संख्या 74 ।।*
*।।काफ़िया।। ।। आन ।।*
*।।रदीफ़।। ।। बन कर देखो ।।*
1
हो सके तो तुम इंसान बन कर देखो।
खुद पर भी जरा गुमान कर देखो।।
2
जरूरी नहीं है बस आसमां को छूना।
महफ़िल का सदरे निशान बन कर देखो।।
3
नफ़रतों से तोड़ दो हर नाता तुम जरा।
जहाँ प्यार का सौदा वो दुकान बनकर देखो।।
4
जहाँ बरसे दौलत चाहिये वह महल नहीं।
अमनो चैन सुकून का मकान बनकर देखो।।
5
एक छत के तले रहे खुशी से पूरा कुनबा।
तुम बस प्रेम का खानदान बनकर देखो।।
6
तुम बन सकते मुल्क तरक्की के हिस्सेदार।
कोशिश हो मुल्क की शान बनकर देखो।।
7
इंसानियत की रोशनी कभी बुझने न पाये।
इस दुनिया के ऐसे मेहमान बन कर देखो।।
8
*हंस* बिना कहे काम आये हर किसी के।
तुम बस वह एहसान बन कर देखो।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464

।।रचना शीर्षक।।*
*।।रिश्तों की किताब खोल कर*
*पढ़ते रहा करिये।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
रिश्तों की किताब खोल कर 
देखते रहा करिये।
मीठे बोल बोल कर भी
देखते रहा करिये।।
हर रिश्ता बहुत लाजवाब
अपने में होता है।
प्रेम के तराजू में तोल कर
देखते रहा करिये।।
2
रिश्तों का हिसाब महोब्बत
के पैमाने से होता है।
दिल से दिल तक एहसास
पहुंचाने से होता है।।
रिश्तें बदलना तुरंत दिल को
होता है महसूस।
रिश्तों का स्पर्श अपने गिरते
को उठाने से होता है।।
3
आप बांसुरी या बांस का तीर
बन सकते हैं।
रिश्तों की मिठास या बेवजह
तकरीर बन सकते हैं।।
आपके अपने हाथ है रिश्तों
को सहेज कर रखना।
आप चाहें हमदम हमराह हाथों
की लकीर बन सकते हैं।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।। 9897071046
                   8218685464

 *विषय - बाल कविता।।पतंग* 
*शीर्षक।।*
*आज हमको पतंग उड़ानी।*
*बिल्ली मौसी बड़ी सयानी।।*

*संशोधित*
............................................
बिल्ली मौसी बड़ी सयानी।
आज हमको पतंग उड़ानी।।
चलत चलत है इतरानी।
आसमान को है दिखानी।।
*आज हमको पतंग उड़ानी।*
*बिल्ली मौसी बड़ी सयानी।।*

दूर से आँखे हैं चमकानी।
बड़ो की तरह हैं धमकानी।।
नहीं अपनी पतंग कट जानी।
घूमे जैसे कि कोई दीवानी।।
*आज हमको पतंग उड़ानी।*
*बिल्ली मौसी बड़ी सयानी।।*

दूर से घूरे यूँ ही जुबानी।
हर दूजे पर रोब जमानी।।
सरपट दौड़े पतंग मरजानी।
दे दो ढ़ील समझो भाग जानी।।
*आज हमको पतंग उड़ानी।*
*बिल्ली मौसी बड़ी सयानी।।*

बस दिखती ऊपर से मरखानी।
अंदर से खोखली नादानी।।
बस तेज़ी फुर्ती खूब दिखानी।
समझे खुद को राकेट नानी।।
*आज हमको पतंग उड़ानी।*
*बिल्ली मौसी बड़ी सयानी।।*

उड़ाते ही हो जाये आसमानी।
कूद फांद की खूब कहानी।।
डोर खींच से ही शुरू शैतानी।
जल्दी से हाथ नहीं आनी।।
*आज हमको पतंग उड़ानी।*
*बिल्ली मौसी बड़ी सयानी।।*

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"* 
*बरेली।।*
मोब।। 9897071046
                   8218685464

।।रचना शीर्षक।।*
*।।गुज़ारो यह जिन्दगी ईश्वर का*
*उपहार समझ कर।।*
*।।विधा।। मुक्तक ।।*
1
सफर जारी रखो धूल को 
गुलाल समझ कर।
सफर जारी रखो न कोई
मलाल समझ कर।।
जिन्दगी का सफर जरा
हंस कर गुज़ारो।
अपने काम में आनन्द लो
जलाल समझ कर।।
2
मत गुज़ारो जिन्दगी कोई
कारोबार समझ कर।
गुज़ारो यह जिन्दगी कोई
सरोकार समझ कर।।
किसी अर्थ को मिली प्रभु
का अनमोल वरदान।
गुज़ारो यह जिन्दगी ईश्वर
का उपहार समझ कर।।
3
मत गुज़ारो ये जिंदगी जीत
हार समझ कर।
सहयोग करो सबसे अपना
संस्कार समझ कर।।
जरूरत से ज्यादा रोशनी
बना देती है अंधा।
बस गुज़ारो ये जिंदगी जीने
की पुकार समझ कर।।
4
न रुको बढ़ने आगे मुश्किल
की दीवार समझ कर।
बल्कि बढ़ो आगे इसको तुम
पतवार समझ कर।।
कठनाई जाकर संवारती है
तुम्हारेआत्मविश्वास को।
तुम बढ़ो आगे इसको हिस्सा
किरदार समझ कर।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464

नूतन लाल साहू

प्रेम गीत

नारी के बिना नर का
और नर के बिना नारी का
जीवन अधूरा लगता है
इसीलिए आज मैं भी
प्रेम गीत लिखता हूं
शक्ति का साथ मिला
भगवान शिव जी को
ज्ञान की देवी का साथ मिला
ब्रम्हा जी को और
लक्ष्मी जी का साथ मिला
भगवान श्री हरि विष्णु जी को
तभी तो ब्रम्हा विष्णु और महेश
जग रचयिता,पालनहार और
संहारक बन पाया
इसीलिए आज मैं भी
प्रेम गीत लिखता हूं
मेरी महबूबा ज्यादा 
पढ़ा लिखा नही है
उसके साथ बात कर ले तो
पागल भी पागल हो जाये
थोड़ी सी थपकी दे दे तो
पहलवान भी घायल हो जाये
एक आंख आधी है लेकिन
श्री देवी जैसी दिखती है
अगर खिजाब लगा लें तो
जुल्फें नागिन हो जाये
अंग अंग लगता है जैसे
गाड़ी की जनरल बोगी है
ढीलू ढीलू लगती है तो
कैसे ईलू ईलू गांऊ
नारी के बिना नर का
और नर के बिना नारी का
जीवन अधूरा लगता है
इसीलिए आज मैं भी
प्रेम गीत लिखता हूं

नूतन लाल साहू

डॉ0 निर्मला शर्मा

"  दौसा जिला हमारा "

राजस्थान के मानचित्र में ,
29 वाँ जिला हमारा। 
देवनगरी नाम से जाना जाए,
 दौसा जिला है प्यारा ।
कछवाहा राजवंश की यह,
 बनी प्रथम राजधानी ।
दौसा का गिरी दुर्ग स्थित है,
 स्थान देवगिरी पहाड़ी।
 प्राकृतिक, आध्यात्मिकता में ,
शहर हमारा न्यारा।
 सुंदर दास जी की जन्मभूमि यह, 
 वंदन नमन हमारा।
 पंच महादेवों की नगरी,
 घंटा ध्वनि सदैव बाजे।
पाँच रूप महादेव के,
 संपूर्ण नगर में विराजे ।
मेहंदीपुर बालाजी की प्रतिमा,
 महुआ नगरी में साजे,
 द्वार खड़े सब हाथ जोड़कर,
 दीन हो या फिर राजे।
 12 वीं शताब्दी की दुर्लभ कला,
 हर्षा माता मंदिर आभानेरी में मिला।
 झाझीरामपुरा, चांदबावड़ी 
ऐतिहासिक धरोहर ।
मोहनगढ़ का किला लुभाए,
 पर्यटकों वर्ष भर।
 लालसोट में अरावली पर,
 आस्था धाम निराला।
 पपलाज माता का मंदिर है,
 भक्तों का रखवाला ।
मोरेल ,बांणगंगा नदी यहाँ पर,
 कल -कल बहती जाए।
हेला ख्याल सांस्कृतिक धरोहर,
 मिट्टी के गीत सुनाए।
 30 बरस का हुआ जिला अब,
 हर्षोल्लास है छाया ।
दौसा के स्थापना दिवस पर,
 हर नगरवासी हरषाया।

 डॉ0 निर्मला शर्मा 
दौसा राजस्थान

संशोधित रचना

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 *दूसरा*-1
  *दूसरा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
उग्रसेन रह नृप अधिनायक।
अंधक बंस भोज जदु-नायक।।
    कंस तासु सुत बड़ बलवाना।
    मनबढ़-छली,अबुध-अग्याना।।
पितु सँग कपटयि कीन्हा कंसा।
राज-लोभ मा पिता बिधंसा।।
    मगधइ नृप सँग कीन्ह मिताई।
    जरासंध रह नाम जे पाई।।
द्विबिद-पूतना-केसी-धेनुक।
असुर अरिष्टहिं-मुष्टिक बेतुक।।
   तिरिनाबर्त-बकासुर-बाणा।
   असुर प्रलंब-अघासुर-चाणा।।
भौमासुर जस दैत्यहि राजा।
कंसहिं सँग रह सकल समाजा।।
   जदुबनसिन कहँ सभें सतावैं।
   मारहिं-पीटहिं बंस मिटावैं।।
कुरु-पंचाल व साल्व-बिदर्भा।
निषध-बिदेहहि, कोसल-गर्भा।।
    कैकय देस भागि सभ रहहीं।
    डरि-डरि के जदुबंसी सबहीं।।
यहि बिच कंस अघी-हत्यारा।
देवकि छे सुत मारहि डारा।।
    सप्तम गरभ देवकी धारा।
    जेहि मा सेष अनंत पधारा।।
सेष अनंत पाइ निज गर्भा।
स्वतः देवकी भईं प्रगल्भा।।
    हर्षित चित-मन हर-पल मुदिता।
    मुख-मंडल जनु रबि-ससि उदिता।।
पर ऊ जानि रहहिं घबराई।
इनहिं हती पुनि कंसइ धाई।।
    बढ़ा छोभ मन-उरहिं अपारा।
    बस ताकर अब प्रभू अधारा।।
जदुबनसिन कर नाथ सहायक।
तदपि सतावै कंस अनाहक।।
दोहा-निज माया कल्यानिहीं,कहे बुला तब नाथ।
        जाउ तुरत ब्रज मा अबहिं, माया-बल लइ साथ।।
                    डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372


दोहे*(गुरु)
गुरु-गरिमा गंभीर अति,गुरु ही ईश समान।
समझे जीवन को मनुज,पाकर गुरु से ज्ञान।।

गुरु वशिष्ठ से  मंत्र  ले,बने  राम  भगवान।
लेकर गुरु से  सीख ही,होता मनुज महान।।

गुरु-कुम्हार माटी लिए, गढ़े  शिष्य-घट  ठोस।
शिष्य-शुष्क-तरु हरित हो,चख गुरु-वाणी-ओस।।

तन-मन तो विधि का रचा,गुरु गढ़ता व्यक्तित्व।
केवल  ही  गुरु-कृपा  से,सफल रहे अस्तित्व।।

करें नमन शत-शत सदा,गुरु चरणों को मीत।
गुरु  के  आशीर्वाद  से, घटे  मूढ़ता - शीत।।

करना है भव-मंच पर,सकल कर्म अभिनीत।
गुरु के ही आशीष से, जीवन  बने  अभीत।।

गुरु ब्रह्मा,गुरु विष्णु ही,गुरु शिवशंकर जान।
स्वयं ब्रह्म गुरु को समझ, हे  मूरख  इंसान।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---
आप रुक जाइये कुछ पलों के लिए
चैन आयेगा दोनो दिलों के लिए

हाथ पर हाथ धरने से क्या फायदा
जुस्तजू तो करो मंज़िलों के लिए

इस लिए शेर मेरे यह मशहूर हैं
शेर कहता हूँ मैं दिलजलों के लिए

कैसे मुश्किल टिकेगी मेरे सामने
 मैं तो पैदा हुआ मुश्किलों के लिए

इक जगह इनका ईमान टिकता नहीं
कब समझ आयेगी मनचलों के लिए 

दर्दो-ग़म की हमारे किसे फ़िक्र है
हम तो शायर है बस महफ़िलों के लिए

 काँटों से ज़ख़्मी *साग़र* हुआ तन बदन 
चुनना चाहा था जब भी गुलों के लिए
🖋️विनय साग़र जायसवाल
8/4/2021

नूतन लाल साहू

सपना

मैंने तो सपने में देखा था
अदभुत स्वर्णिम सुनहरा पल
पर वाह रे कोरोणा
मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
क्या ये बहरा है
क्या ये अंधे भी हो गया है
जो देख सुन न पा रहा है
मां, बहिन और बेटियों के
आंसुओ की धार
जो टूट पड़ा है,बिजली बनकर
और मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
मैने तो सपने में देखा था
धरती मां हरियाली से आच्छादित है
धरती के हर इंसान के मन में
उमंग भरी हुई है
और अमन है चमन में
सुमन मुस्कुरा रही है
पर वाह रे कोरोणा
मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
सबके मन में छाई हुई है उदासी
जबकि धन की कमी नहीं है
साकार नहीं हो पा रही है
मधुर कल्पनाएं
धरी की धरी रह गई है
मैने तो सपने में देखा था
कल जो नई भोर होगी
खुशी से सराबोर होगी
पर वाह रे कोरोणा
मौत का तांडव मचा रहा है
क्या यही इक्कीसवीं सदी है

नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

हिंदुस्तान।।हमें अमन हिफाज़त का*
*पहरेदार बनना है।।*
*।।ग़ज़ल।।   ।।संख्या 69  ।।*
*।।काफ़िया।।  ।। आर  ।।*
*।।रदीफ़।।    ।। बनना है।।*
1
हिंदुस्तान को खुद  मुख्तार  बनना है।
पूरी दुनिया में      असरदार  बनना है।।
2
भाई चारे के पैगाम देना  है दुनिया को।
अमन हिफाज़त का पहरेदार  बनना है।।
3
गोलियां बारूद की चल रही हर तरफ।
उन्हें रोकने का भी लम्बरदार बनना है।।
4
कॅरोना से चल रही   लड़ाई दुनिया की।
रोकने   लिए हमको  सरदार बनना है।।
5
बना रहे हम आज सुई से लेकर हाथी तक।
कारोबार में भी हमको नम्बरदार बनना है।।
6
*हंस* करोड़ों  सालों की विरासत है देश की।
बताने दुनिया को हमें सलीकेदार बनना है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464
[09/04, 7:36 am] +91 98970 71046: *विषय।।ज से जल जीवन।।।।।।*
*शीर्षक।।जल  जीवन दायनी है।*
*दिनाँक।।09।।04।।।2021।।।।*
*।।जल संसाधन दिवस के अवसर पर*
*रचयिता।।।एस के कपूर श्री हंस।*
*।।।।बरेली।।।*
1
नदी   ताल में  कम  हो  रहा  जल
और हम पानी यूँ   ही बहा  रहे हैं।
ग्लेशियर पिघल रहे   और  समुन्द्र
तल   यूँ  ही  बढ़ते  ही जा रहे  हैं।।
काट कर सारे वन  कंक्रीट के कई
जंगल  बसा    दिये    विकास   ने।
अनायस ही विनाश की ओर कदम
दुनिया  के  चले  ही   जा  रहे   हैं ।।
2
पॉलीथिन के  ढेर  पर  बैठ  कर हम
पॉलीथिन हटाओ का नारा दे रहे हैं।
प्रकृति का  शोषण कर   के  सुनामी
भूकंप  का   अभिशाप   ले   रहे   हैं।।
पर्यवरण प्रदूषित हो रहा है  दिन रात
हमारी आधुनिक संस्कृति के कारण।
भूस्खलन,भीषणगर्मी,बाढ़,ओलावृष्टि
की नाव बदले में  आज हम खे रहे हैं।।
3
ओज़ोन लेयर में छेद,कार्बन उत्सर्जन
अंधाधुंध दोहन का ही दुष्परिणाम  है।
वृक्षों की कटाई  बन  गया  आजकल
विकास  प्रगति   का   दूसरा  नाम  है।।
हरियाली को समाप्त करने  की  बहुत
बडी  कीमत चुका रही   है  ये  दुनिया।
इसी कारण ऋतुचक्र,वर्षाचक्र का नित
असुंतलन आज   हो  गया    आम  है।।
4
सोचें  क्या दे  कर  जायेंगे  हम   अपनी 
अगली     पीढ़ी     को    विरासत   में ।
शुद्ध जल और वायु  को ही   कैद  कर
दिया है जीवन  शैली की  हिरासत में।।
जानता  नहीं   आदमी   कि   कुल्हाड़ी
पेड पर  नहीं  पाँव   पर  चल   रही  है।
प्रकृति  नहीं  सम्पूर्ण  मानवता  ही नष्ट
हो जायेगी इस दानवता सी हिफाज़त में।।
*रचयिता।।एस के कपूर  "श्री हंस'"*
*बरेली।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*06  पुष्कर एनक्लेव, टेलीफोन टावर*
*के सामने,स्टेडियम रोड,बरेली 243005*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
*@ मौलिक व स्वरचित रचना।।।।।।।।*



।।माता पिता प्रथम शिक्षक।सर्वोत्तम गुरु।।*
*(क) हमारी माता।हमारी जीवनदायिनी।हाइकु।*
1
माता हमारी
चांद सूरज जैसी
है वह न्यारी
2
माता का प्यार
अदृश्य वात्सल्य का
फूलों का हार
3
माता का क्रोध
हमारे    भले     लिये
कराता   बोध
4
घर की शान
माता रखती ध्यान
करो सम्मान
5
माँ का दुलार
भुला दे हर दुःख
चोट ओ हार
6
माता का ज्ञान
माँ प्रथम  शिक्षक
बच्चों की जान
7
घर की नींव
मकान   घर बने
लाये  करीब
8
त्याग  मूरत
हर दुःख  सहती
हो जो सूरत
9
प्रभु का रूप
सबका रखे ध्यान
स्नेह स्वरूप
10
घर की  धुरी
ममता दया रूपी
प्रेम से  भरी
11
आँसू बच्चों के
माँ ये देख न पाये
कष्ट  बच्चों  के
12
प्रेम निशानी
माँ जीवन दायनी
त्याग कहानी
*(ख)हमारे पिता।हमारे पालनहार।हाइकु।*
1
पिता हमारे
संकट में रक्षक
ऐसे सहारे
2
पिताजी सख्त
घर    पालनहार
ऊँचा है  तख्त
3
पिता का साया
ये बाजार  अपना
मिले   ये  छाया
4
पिता    गरम
धूप में   छाँव जैसे
है भी   नरम
5
घर की धुरी
परिवार  मुखिया
हलवा पूरी
6
पिता जी माता
हमारे जन्मदाता
सब हो जाता
7
पिता साहसी
उत्साह का संचार
मिटे उदासी
8
पिता से धन
हो जीवन यापन
ऋणी ये तन
9
पिता कठोर
भीतर से कोमल
न ओर छोर
10
शिक्षा संस्कार
होते जब विमुख
खाते हैं मार
11
पिता का मान
न  करो अनादर
ये चारों धाम
*रचयिता। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली* 9897071046/8218685464


।।आदमी के बीच दीवारों का हो गया*
*है जमाना।।*
*।।ग़ज़ल ।।   ।।संख्या 70।।*
*।।काफ़िया।।  ।। आरों ।।*
*।।रदीफ़।।   ।। का हो गया है।।*
1
जमाना झूठे  हक़दारों   का  हो गया है।
आदमी के बीच दीवारों   का हो गया है।।
2
पहले मारते और   फिर   करते हैं आगाह।
अब जमाना ऐसे ख़बरदारों का हो गया है।।
3
हर बात में देखते   हैं मतलब पहले अपना।
यह जमाना ऐसे समझदारों का  हो गया है।।
4
चोर चोर मौसेरे भाई वाले   बन गए लोग।
अब जमाना ऐसे पहरेदारों का हो गया है।।
5
किसी को बात चुभती है   तो चुभ जाये।
अब जमाना ऐसे रसूखदारों का हो गया है।।
6
कभी आग पर रोटी , तो कभी रोटी पर आग।
आज जमाना ऐसे सियासतदारों का हो गया है।।
7
*हंस* हर किसी के मुँह पर वैसी ही करें बात।
ये जमाना ऐसे कुछ होशियारों का हो गया है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

सुषमा दीक्षित शुक्ल

सुगन्ध
कविता

फूलों सी  सुगन्ध  बिखेरो ,
पुष्प हृदय सी विशालता ।

ताल मेल काटों संग सीखो ,
मधुबन जैसी  उदारता ।

उपकार हेतु ही जन्म लिया ,
देखो ! प्रसून की महानता ।

काटों में खिलकर भी हंसता ,
कितनी पावन है उदारता ।

पुष्प सिखाता परिवर्तन को,
 यही पुष्प की महानता ।

प्रेम सिखाता त्याग सिखाता,
 बनकर जग की सुंदरता ।

पुष्पों के  उपकार  निराले ,
सुख दुख में यह साथ निभाता ।

मृत शैया पर ये बिछ जाता,
 यह सुहाग की सेज सजाता।

 दुल्हन का गजरा बन जाता ,
देवों के सिर भक्त  चढाता ।

 राष्ट्र पताका  में जा बंधता 
 औषधियां तक यह बन जाता।

 यह परिवर्तन का द्योतक है,
 जीवन का संदेश सुनाता ।

राग सुनाता गीत सुनाता ,
ये सारे जग को महकाता।

फूलों सी सुगन्ध बिखेरो ,
पुष्प हृदय सी विशालता ।

सुषमा दीक्षित शुक्ल

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

 पहला अध्याय-9
  *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-9
बिधि-बिधान जानै नहिं कोऊ।
संभव करै असंभव सोऊ।।
    आग लगै जब कानन माहीं।
    कठिनइ बहुत बताइ न पाहीं।।
लकड़ी जरी दूरि जे आहीं।
या फिर जरी जवन नकचाहीं।।
   कारन कवन एक तन स्वस्था।
   जानि न पाऊँ अपर अस्वस्था।।
अस बिचार करि मन बसुदेवा।
सुनहु कंस अस कह बिनु भेवा।।
     देवकि भय नहिं तुमहीं कोऊ।
     पुत्रहि भय बस तुमहीं होऊ।।
जदि कोउ पुत्र भवहि अब मोंहीं।
अरपहुँ लाइ ताहि में तोहीं।।
    सुनि अस बचन कंस प्रन त्यागा।
     बध-बिचार तजि भे अनुरागा।।
तब बसुदेव भवन निज आयो।
कंस-प्रसंसा मन न अघायो।।
    रही देवकी सती-साधवी।
    देवन्ह प्रिया औरु माधवी।।
तनय आठ अरु तनया एका।
जनी देवकी बहुतै नेका।।
    प्रथम पुत्र जब कंसहि अरपेयु।
    कंस तुरत बसुदेव समरपेयु।।
प्रथम तनय नहिं मोरा घालक।
कंस कहा बस अठवाँ बालक।।
    कीर्तिमान नाम सुत जासू।
    लौटे बसुदेवइ भरि आँसू।।
तनय-समर्पन बड़ मन छोभा।
बचन-बद्धता साँचहि-सोभा।।
    सत्यसंध जन करहिं निबाहू।
    करहिं न कबहुँ कष्ट-परवाहू।।
नीच न छाँड़ै कबहुँ निचाई।
ग्यानी तजै न कबहुँ सचाई।।
    इस्वर बसहिं जितेंद्री हृदये।
    यहि तें ओनकर सभ सँग निभये।।
अइसन लखि सुभावु बसुदेवा।
कंस तनय तासू नहिं लेवा।।
    पुत्र आठवाँ चाहिय मोंहीं।
     नभ-बानी अस जानउ तोहीं।।
बिहँसत कहा कंस वहिं ठाहीं।
देहु मोंहि जे अठवाँ आहीं।।
दोहा-सत्यसंध बसुदेव तब,लौटे धरि मन आस।
         अहहि कंस बड़ कपट-मन,कस होवे बिस्वास।।
         कहे मुनी सुकदेव पुनि,सुनहु परिच्छित मोंहि।
         नारद औरउ कंस कै,बाति बतावहुँ तोहिं।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919 44 63 72


गीतिका*
          *गीतिका*(कोरोना)
मंज़र बहुत भयानक,पैदा किया कोरोना,
मौतें तमाम हो रहीं,सर्वत्र रोना-धोना ।।

है विश्व में मचा हुआ,कोहराम हादसों से,
लाशें बिछी हुईं हैं,मुश्किल हुआ है ढोना।।

यह आपदा है दैवी,या इंसान का फितूर,
सुलझी नहीं पहेली,इसी बात का है रोना।।

हर देश कर रहा है,अपनी सुरक्षा विधिवत,
संयम-नियम-नियंत्रण, निदान बस कोरोना।।

रहें अलग-थलग तो,शायद बचे ये जीवन,
स्पर्श दूसरे का,करके है प्राण खोना ।।

शायद प्रकृति-प्रकोप का,परिणाम दैत्य-दानव।
आबो-हवा में अब तो,निश्चित सुधार होना ।।

नदियों का नीर निर्मल,नीला दिखे गगन है।
पूरा नक्षत्र-मण्डल,दिखने लगा सलोना।।

लेती अगर है  कुदरत,देती मग़र खुशी भी,
कैसे मिलेंगी फसलें,यदि हो न बीज बोना।।

युग के सुधार ख़ातिर, रावण का जन्म अच्छा,
श्रीराम जी का आगमन,करता है युग को सोना।।

खिलते चमन के फूल को,पत्ते हरे शज़र को,
होता यक़ीन देख,है स्वच्छ कोना-कोना ।।

                   ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919447372

सुनीता असीम

तड़पकर रात दिन चारों पहर जिसको उचारा है।
वही माधव वही मोहन वो गिरधारी हमारा है।
****
 जगाकर भूख मिलने की वो वृंदावन चले जाएं।
चले आओ मेरे मोहन तुम्हें दिल से पुकारा है।
****
निखरती धूप है आंगन चमकता है गगन ऊपर।
तेरा ही चारसू जलवा तू ही प्रीतम हमारा है।
****
 धरा पर पाप बढ़ते हैं तभी आते हो तारन को।
कि साधू हो या संन्यासी सभी को आ उबारा है।
****
तेरे ही प्रेम की प्यासी पुजारिन हूं मैं तेरी ही।
बड़े ही नेम से मैंने ये मन अपना निखारा है।
****
ये तृष्णा बढ़ रही मन की मिलोगे आन कब मुझसे।
तुम्हारी याद में दिल आज रोता फिर बिचारा है।
****
करो तुम दूर दुविधा ये सुनीता की सुनो भगवन।
के तुमने क्यूं नहीं उसको कभी जी भर निहारा है।
****
सुनीता असीम
९/४/२०२१

एस के कपूर श्री हंस

।।तुम हमें जरा पुकार कर तो देखो।।*
*।।ग़ज़ल।।  ।।संख्या  71 ।।*
*।।काफ़िया।।  ।।आर  ।।*
*।।रदीफ़।।।     ।। कर तो देखो ।।*
1
तुम हमें जरा पुकार कर तो देखो।
तुम हमें जरा निहार  कर त देखो।।
2
हमें बनाया ही  गया  है  तेरे  लिये।
तुम हमें जरा निखार कर तो देखो।।
3
तेरा इशारा काफी हर ऐब छोड़ने को।
तुम हमें  जरा  संवार  कर  तो   देखो।।
4
तेरे जलवों में महसूस करते आसमां पर।
तुम हमें जरा नीचे उतार कर तो देखो।।
5
गुजर गया एक जमाना मुलाकात को।
एक   लम्हा साथ गुजार कर तो देखो।।
6
*हंस* जान दे सकते तुम्हारी महोब्बत में।
कभी प्यार से  तुम दुलार कर तो देखो।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।     9897071046
                    8218685464

।।विषय।।जीवन की कठनाई।।
*।।रचना शीर्षक।।*
*।।जो चट्टानों से निकले वह*
*झरना खास होता है।।*
*।।विधा।।  ।।मुक्तक।।*
1
जिन्दगी में  मुश्किलों का
हमेशा        वास होता है।
मरने के बाद   जलने का
भी नहीं एहसास होता है।।
निखरती है    मुसीबत से
शख्सियत भी         यारो।
जो चट्टानों से निकले  वो
झरना    खास    होता है।।
2
जीवन के रंगमंच पर  सब
का अभिनय    जरूरी   है।
मत कोसो    किस्मत  को 
ऐसी क्या    मजबूरी    है।।
बेवजह खुश रहिये   मिले
इससे    ऊर्जा        बहुत।
उत्साह खत्म     होने  का
कारण   तो मगरूरी    है।।
3
जिन्दगी    इक़   सफर है
बस         करते        रहो।
मंजिल   की  ओर  कदम
अपने     भरते          रहो।।
विजेता   रुकते   नहीं   हैं
कभी    भी जीत से पहले।
मत तुम चुनौतियों से जरा
भी       डरते             रहो।।
4
जानलो हर दर्द आदमी को
और   मजबूत   बनाता  है।
हर गलत     अनुभव बहुत
कुछ       सिखाता         है।।
आपकी मेहनत से    बदल
जाता है    हर        नतीज़ा।
वक़्त मुश्किल ही   तुम्हारी
ताक़त तुम्हें  दिखलाता  है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

।वक़्त खुद आईना बन कर दिखाता है।।*
*।।ग़ज़ल ।।। ।।संख्या 72 ।।*
*।।काफ़िया।। ।। आता ।।*
*।।रदीफ़  ।।    ।। जाता है।।*
1
कौन अपना    वक़्त ही     बताता  है।
आगे का रास्ता वक़्त ही   दिखाता है।।
2
वक़्त होता है        बहुत ताकत   वर।
क्या होगा आगे पहले नहीं जताता है।।
3
वक़्त की मार से हमेशा बचकर रहना।
दिन में तारे भी    वक़्त  दिखलाता  है।।
4
कोई नहीं है  जहाँ में   वक़्त से  ऊपर।
वक़्तआनेपाई का हिसाब रखवाता है।।
5
वक़्त डरता नहीं वक़्त से डर कर  रहो।
वक़्तअपने तरीके से दुनिया चलाता है।।
6
जो नहीं सुनते हैं वक़्त की आवाज़   को।
वक़्त फिर अपनी जुबां में समझाता है।।
7
*हंस* वक़्त की इज़्ज़त करो सुनो उसकी।
नहीं तो यही वक़्त आईना बन जाता है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

तेरे बिन दिन गुज़ारूँगा किसके लिए
नाज़ नखरे दिखाऊँगा किसके लिए

छोड़ कर तन्हा जाओ न ऐ हमनवा
घर में आकर पुकारूँगा किसके लिए

जाते जाते मेरी जां ज़रा सोच लो 
दर्दे-दिल फिर सुनाऊँगा किसके लिए

है क़सम रूठ कर तुम न जाना सनम
तुम कहो फिर मनाऊँगा किसके लिए

ख़ुश मुझे देखकर तुम ही होते हो ख़ुश
अब मैं ख़ुद को सँवारूँगा किसके लिए

उनके आने का जब कोई इम्कां नहीं
घर को आखिर सजाऊँगा किसके लिए

काट खायें न *साग़र* ये तन्हाइयाँ
पास अपने बिठाऊँगा किसके लिए
🖋️विनय साग़र जायसवाल
9/4/2021

नूतन लाल साहू

अन्न का सम्मान
व्यक्ति को बनाता है महान

इस घोर कलयुग में
संयुक्त परिवार का भरण पोषण
हर किसी के बस की बात नहीं है
इसीलिए तो हो रहा है
परिवार का विघटन
जब आता है,कंधो पर जिम्मेदारी
भारी पड़ जाता है
बच्चे और नारी
अन्न अनमोल वस्तु है
जो इसे करता है बरबाद
वो होता है,बड़े गुनाहगार
अन्न का जो करे अनादर
वो दाने दाने के लिए
हो सकता है,मोहताज
व्यक्ति को सिर्फ 
अपने विषय में ही नहीं
पूरी मानवता के हित में
अवश्य ही सोचना चाहिए
पाता वही है, जो देना जानता है
अपने पेट की फिक्र तो
जानवर भी करते है
पर सच्चा इंसान वही है
जो पहले दुसरो की फिक्र
करता है
शिक्षा का अर्थ सही मायने में
इंसानियत होती है
व्यक्ति सिर्फ शिक्षा से नही
अपितु विचारो से महान बनता है
व्यक्ति में जोश जरूरी है
पर साथ ही साथ
होश भी कायम रखना चाहिए
हमारे पड़ोस में,समाज में
राज्य में और देश में
अनेकों आज भी भूखा सोता है
दो वक्त की रोटी भी
नसीब नहीं होता है
अन्न का जो करे सम्मान
वही तो है,महान इंसान

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पहला अध्याय-10
 *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-10
कंसहिं पास जाइ मुनि नारद।
कहत भए अस ग्यान-बिसारद।।
    सुनहु कंस ब्रजबासी सगरो।
    नंद-गोप,नर-नारी-नगरो।।
बृषनि बंस कै जादव सबहीं।
सँग बसुदेवहिं जे जन रहहीं।।
     नंद-देवकी जे जदुबंसी।
     सभें सजाती एकहि अंसी।।
बंधु-बांधव सभ जन एका।
रहहिं एक ह्वै जदपि अनेका।।
    देवइ अहहिं सकल ब्रजबासी।
    सेवक तुम्हरो बनि बिस्वासी।।
बाढ़हिं असुर महा अभिमानी।
कपटी-दंभी,कुटिल-गुमानी।।
    पृथ्बी भार न अब सहि पावै।
    हर बिधि पापहि बोझ दबावै।।
करहिं तयारी अब सभ मिलि के।
असुरन्ह कै बध होई ठहि के।।
    अस कहि नारद गए अकासा।
     कंसहिं मन अस भे बिस्वासा।।
सुर अरु देव अहहिं जदुबंसी।
देवकि-गरभ बिष्नु कै अंसी।।
    जनम लेइ ऊ मारहिं मोंहीं।
    मारब सभें जनम जे होंहीं।।
बान्हि हथकड़ी महँ बसुदेवा।
संग देवकी अपि हरि लेवा।।
     डारा तुरत जेल मा ताहीं।
     मारत रहा सुतन्ह जे आहीं।।
बेरि-बेरि ऊ संका करही।
अबकि बेरि बिष्नू जनु अवही।।
    सुनहु परिच्छित अस परिपाटी।
    अहहिं मही-नृप लोभी-ठाटी।।
परम स्वारथी-निर्मम हृदयी।
बधहिं स्वजन निज कारन अभयी।।
    बंधु-बांधव,भांजा-भांजी।
     मातु-पिता अरु आजा-आजी।।
हतहिं सभें निज प्रानहिं हेतू।
नृप नहिं अहहिं इ राहू-केतू।।
    अवगत कंसइ असुर स्वरूपा।
     कालनेमि प्रगटा यहि रूपा।।
जेहि का बधे बिष्नु भगवाना।
यहि तें कंस दुसमनी ठाना।।
   जदुबनसिन्ह सँग रारि बढ़ावा।
    अब-तब उन्हपर बोलै धावा।।
दोहा-उग्रसेन निज पितुहिं कहँ,डारा तुरतहि जेल।
        लगा करन सूरसेन पै, ऊ सासन कै खेल।।
                     डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

*दोहे*
कवि से ही कविता बनी,कविता ज्ञान-प्रकाश।
ज्ञान-ज्योति से हो सदा, तम-अज्ञान-विनाश।।

उगे सूर्य पश्चिम दिशा, कभी  न संभव मीत।
वचन न संत असत्य हो,उगले अग्नि न शीत।।

अपनी संस्कृति विश्व में, है अतुल्य-अनमोल।
'विश्व  एक  परिवार  है', का  ही  बोले  बोल।।

रंग-मंच  यह  विश्व  है, लीला  नाथ  अपार।
अभिनय करता जगत यह,जब हो मंच-पुकार।।

रखें समय का ध्यान हम,समय होय बलवान।
ग्रहण सूर्य-शशि पर लगे,इसकी प्रभुता जान।।

सूर्य-चंद्र  दें  विश्व  को,अपनी  ज्योति  अनंत।
यही  नेत्र द्वय सृष्टि के, कहते  ज्ञानी - संत।।

जल का संचय सब करें,जल जीवन-आधार।
जल से ही जलवायु का,हो समुचित संचार।।
               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

चौपाइयाँ*(कोमल)
कोमल हृदय दया की शाला।
कोमल हृदयी व्यक्ति निराला।।
सज्जन-संत-स्वभाव मुलायम।
अपर  कष्ट  लख  रहें  नेत्र नम।।

कोमल मन न होय अभिमानी।
निर्मल-सरस-तरल जस पानी।।
प्रेम - भाव - आगार  यही  है।
जहाँ  देव  का  वास  वही है।।

पुष्प सदृश कोमल मन जिसका।
सकल विश्व परिवार है उसका।।
इसे   छलावा   कभी   न  भाए।
करे  कपट  यदि  पुनि  पछताए।।

कोमलता  है  देव - निशानी।
कोमल  हृदयी  होता  दानी।।
तन-मन का जो कोमल प्राणी।
होता  वही  जगत - कल्याणी।।
       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372

डा. नीलम

*बेटी की पाती मॉं के नाम*,
*विधा में थोड़ा लिया घुमाव*
*गद्य में तो पत्र सभी लिखते*
*मैंने पद्य को बनाया आयाम*।
                            
 *दि०९-०४-२१                           *अजमेर*

         *श्रद्धेय मॉं*
         *सादर चरण स्पर्श*

मॉं प्यारी मॉं
जानती हूॅं,तुझे चिंता
बहुत है मेरी
पर...जताती नहीं
नानी को भी होती थी
चिंता तेरी 
वो भी तो कहॉं जता 
पाती थी
घर में दादा,बाबा,काका
के होते 
सदियों यही तो 
होता आया था
घर के बीचोंबीच
था तुलसी चौरा
और एक मंदिर जिसमें
स्थापित कुल देवी थीं
हर बार बरस के तीन
नवरात्रें मनाए जाते थे
बड़ी श्रद्धा से 
सब शीश नवाते थे
पर... ‌.....
मॉं सच सच बताना 
क्या नारी को भी वो इतना
ही सम्मान देते थे?
नहीं मॉं झूठ नहीं कहना
तेरी ऑंखों के कोर में 
अटका तेरी भावों का मोती
गिरता नहीं पर
मनोदशा सब दर्शा देता था
सबके सामने नहीं
हॉं आधी रात 
मेरे बिस्तर पर बैठ
मेरा सर सहला देना 
मुझे हिला देता था
पर मॉं चिंता मत कर 
मैं यहॉं ससुराल में
स्वस्थ हूॅं,सुरक्षित हूॅं
सबसे बड़ी बात
यहॉं मैं तेरी ही तरह
हर भाव ऑंसूं पीकर
रहती हॅं।
मुझे याद है वो
चॉंद-सितारों की साक्षी में
सप्तपदी पश्चात्
तेरा मुझको चंद बातों में
शिक्षा दे वादा लेना....
*धरा की सहनशीलता,पर्वतकीदृढ़ता,नीर की निर्मलता,आकाश कीअसीमता के साथ मैं थोड़ीअग्नि तत्व तुझे देतीहूॅं,बेटी मान,सम्मान,संस्कार,संस्कृति,गरिमा सदा बनाए रखना*
           देख न मॉं ,कुछ नहीं भूली ,विवाह की आज दसवीं
सालगिरहा में
कोख की जमीन पर 
अजन्मी बेटी की 
आठवीं कब्र खोद आई हूॅं,
फिर भी *अचल,सहनशीला,निर्मला,असीमा हूॅं*
बस.......वो आग जो
तूने मेरे सीने में रख दी थी
उसे ही सुलगाए हुए 
भीतर ही भीतर सुलग रही हूॅं,
बह रही है,गंगा-यमुना
हृदय तल में
जज्बात जज्ब हैं 
कहीं अतल गहराई में,
नैसर्गिक धड़कन ह
धड़क कर मेरे
जीवित होने की साक्षी है
पर मॉं तू फिकर मत कर
अभी ही आई अस्पताल से
और फिर .. ....
स्नान-ध्यान कर 
सहनशीलता का वसन
ओढ़,लग गई हूॅं,
फिर से घर सजाने को
कल से नवरात्रें
शुरु होने वाले हैं न ..
तो लानी है देवी मॉं
जो सबसे सुंदर,विशाल और
पवित्र होगी,
जिसकी स्थापना करनी है।
देख न मॉं मैनें तेरी,
नानी की,परनानी की
सबकी फरंपरा को बचाए 
रखा है
कुछ बदलने नहीं दिया,
बस....एक बात जो
आज तुझे बता रही हूॅं
मैंने इस परंपरा को आगे
बढ़ने से रोक दिया है
मैं नहीं चाहती 
मेरी बेटी भी ,फिर
उसी परंपरा को निभा
भीतर ही भीतर सुलगती रहे।
हॉं प्रण अपने आप से
ले लिया,...
*कि अबकी बार मेरी बेटीजबमेरी कोख मेंआएगी,तबदफ्न नहीं करुॅंगीउसे कोख की कब्र में,सारे वचन ओढ़कर भी मैंस्वतंत्र अमीमहो जाऊॅंगी और अकेले रह कर ही सही बेटी को उसका आकाश दूंगी,दूंगी उसको उसके हिस्से की धूप और धरा,बहने दूंगी उसे निर्मल नीर सी हवाओं के बहाव में*।
सच मॉं जबसे मन ही मन
ये प्रण लिया है,
मैं हल्कापन महसूस कर
रही हूॅं,
बस इस बार के व्रत
सब उस अजन्मी बेटी के लिए।
 बाकी सब ठीक है,
तुम्हारे दामाद
चरण-स्पर्श कहे हैं
बाबा को मेरा प्रणाम
भाई-भाभी को स्नेह
(बस आखरी बात मॉं 
भईया की बिटिया और 
भाभी को उनका दाय देना,
कभी नारी होने की
विवशता और पीड़ा में
उन्हें न घुलने देना )
सब मैं बोल सकती थी
फोन पर मॉं,
पर जानती हूॅं शब्द हवा 
हो जाते
पर मेरा ये पत्र तुम
भाभी को जरुर पढ़ाना।
       आपकी सोभागवती बेटी

         डा. नीलम

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रियांजुल ओझा

 नाम - प्रियांजुल ओझा

शिक्षा- स्नातक 2017- 18(इलाहाबाद विश्वविद्यालय); परास्नातक 2019- 20  ( जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्विद्यालय), संस्कृत विषय में द्विवर्षीय डिप्लोमा, तीन बार हिंदी में नेट उत्तीर्ण

सम्मान : मणिपुर की राज्यपाल आदरणीय नज़मा हेपतुल्ला द्वारा सम्मानित , प्रसिद्ध साहित्यकार अशोक वाजपेयी के  हाथों सम्मानित , बैंक ऑफ बड़ौदा मेधावी विद्यार्थी सम्मान से सम्मानित, कोटक महिंद्रा बैंक मेधावी विद्यार्थी सम्मान से सम्मानित , पंद्रह से अधिक अंतर- विश्वविद्यालयी एवं विश्वविद्यालयी वाद - विवाद तथा भाषण प्रतियोगिताओं में स्थान अर्जित करने पर सम्मान ।

लेखन : विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं एवं सम्प्रेषण के अन्य आभाषी पटलों पर शोध आलेख तथा कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं ।

निवासी : प्रयागराज

मोबाइल नं. 7309671510



प्यार लिखूं सृंगार लिखूं 

और लिखूं अनुराग

अधराधर पल्लव से

यही था तेरा गान..

कोमल हांथों से हाथों का

वो तेरा बंधन लिखूँ

या लिखूँ कातर दुःख में मेरे

तेरा प्रथम स्पर्श एहसास

छोंड़ कर अपनी कक्षा

मिडिवल में आकर

आंखों में तुम्हे बसाना लिखूँ

या लिखूँ सिविल लाइंस का

स्कूटी वाला प्यार

इन सब स्मृतियों को तज कर

निःस्वार्थ प्रेम का मित्रता लिखूँ

या लिखूँ लड़ना 

रूठना औ मनाना

इन सबसे भी बढ़ कर ..

वो तेरा संस्कृति- संस्कार

सद्व्यवहार और परिधान लिखूँ

या लिखूँ अपना सच्चा प्रेम,

आदर्श,प्रेरणा ,साधना औ सौभाग्य ।।


©प्रियांजुल ओझा



न जाने कब वो आएगी

करवा चौथ  मनाएगी

मेहंदी माहुर चुनरी बिंदी

औ कजरारी आंख सजायेगी

चाँद का अपने प्यारा मुखड़ा देख

न जाने कब वह  मुस्काएगी

अपने  मेहंदी वाले हाँथो से

व्यंजन खूब पकाएगी

खुद निच्छलता का व्रत रखकर

मुझको बड़े प्यार से खिलाएगी

न जाने कब वो आएगी

करवा चौथ मनाएगी


@प्रियांजुल ओझा "प्रिय"



: विश्व गौरैया दिवस विशेष: 


मन गौरैया गौरैया चिल्लाए

मेरे बच्चे इनको देख न पाएं

क्या  होती  ये ?

कैसी  होती ?

शिख पर कलगी होती ?

या मोर - सा लंबा पंख होता ?

ऐसी व्याकुलता भरा

मेरे बच्चों का प्रश्न होता....

अब क्या बतलाऊँ मैं इनसे

अपने हाथों से ही उनको मारा है

कभी न दिया दाना - पानी

औ वृक्षों से भी बसेरा उजाड़ा है...

चलो क्या हुआ !

संवेदना भले मरी हो मेरी

पर स्वार्थ लिप्सा अभी भी बाकी है

इसलिए मत कर मेरे बच्चे तू चिंता

मै तुझको गौरैया दिखलाऊँगा

चाहे पिंजड़े में ही बंद करके लाऊँ

पर मैं तुझको गौरैया दिखलाऊँगा ।


           ©प्रियांजुल ओझा


काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार पंवार जोधपुर ( राजस्थान )

 परिचय

नाम:- बसन्ती पवांर 

जन्म:- 5 फरवरी, 1953 (बसन्त पंचमी), बीकानेर 

माता-पिता:- स्व. श्रीमती रूकमा देवी , स्व. श्री राणालाल 

शिक्षा:- एम. ए. (राजस्थानी भाषा), बी. एड.

व्यवसाय:-’निरामय जीवन’’ एवं ’’केन्द भारती’’ मासिक पत्रिका जोधपुर के प्रकाशन विभाग कार्या लय में 

निःशुल्क कार्यरत, रिटायर्ड वरिष्ठ अध्यापिका । 

जुड़ाव:- महिलाओं की साहित्यिक संस्था ’’सम्भावना’’ की सचिव, ’’खुसदिलान-ए-जोधपुर’’, ’‘नवोदय 

सबरंग साहित्यकार परिषद’’, ’‘लॅायंस क्लब जोधपुर’’ की सक्रिय सदस्य । 

प्रकाशन:- 1’‘सौगन‘’, 2 ’’ऐड़ौ क्यूं ?’’ (दो राजस्थानी उपन्यास), एक हिन्दी कविता संग्रह ’’कब आया

बसंत’’ । राजस्थानी कहानी संग्रह ’‘नुवाै सूरज‘’ । एक राजस्थानी कविता संग्रह-’‘जोवूं एक विस्वास’’

हिन्दी व्यंग्य संग्रह ’नाक का सवाल’, ( अंग्रेजी में अनुवाद भी )हिन्दी काव्य संग्रह ’’नन्हे अहसास’’ प्रकाशित । दो बाल साहित्य की 

पुस्तकें-राजस्थानी में एक-‘‘खुश परी’’ कहानी संग्रह एवं एक कविता संग्रह, हिन्दी उपन्यास ’प्यार की 

तलाश में प्यार’ एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन । 

 राजस्थानी और हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, लेख, लघुकथा, संस्मरण, पुस्तक 

समीक्षा आदि का लगातार प्रकाशन । 

 आकाशवाणी जोधपुर, जयपुर दूरदर्शन से वार्ता, कहानी, कविता आदि का प्रसारण । राजस्थानी 

भाषा के ’’आखर’’ कार्य क्रम में भागीदारी (जयपुर) 

विशेषः-राजस्थानी भाषा की पहली महिला उपन्यासकार । 

 यू ट्यूब पर ’’मैं बसंत’’ नाम से चेनल । 

पुरस्कार और सम्मान:

1. ‘राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर’ से ’’सौगन‘’, राजस्थानी उपन्यास पर 

’‘सावर दैया पैली पोथी पुरस्कार’’ -1998 

2. पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, शिलांग मेघालय की तरफ से ’‘डा. महाराजा कृष्ण जैन स्मृति सम्मान

’’-2011 

3. तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी चैन्नई और तमिलनाडु बहुभाष�

4 ’आकाश गंगा चेरीटेबल ट्रष्ट’ लूणकरणसर, बीकानेर से सम्मान-2011

   5.’‘नवोदय सबरंग साहित्यकार परिषद’’ जोधपुर से ’‘बेस्ट स्टोरी राइटर’’ सम्मान -2011 

   6. ’‘जगमग दीपज्योति ‘मासिक पत्रिका अलवर की तरफ से ’’श्रीमती नवनीत गांधी स्मृति’’ 

      सम्मान-2013 

   7. बैंक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, जोधपुर से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोज्य कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2014                          

   8. ’मरूगुलशन’ त्रेमासिक पत्रिका के 75 वें अंक के लोकार्पण समारोह में सम्मान-2014

   9. लाॅयनेस क्लब जोधपुर द्वारा कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2015

   10. ‘सर्जनात्मक संतुष्टी संस्थान ’द्वारा प्रो. प्रेम शंकर श्रीवास्तव स्मृति पर आयोज्य कार्यक्रम में मरूगुलश में प्रकाशित ’’नारी संवेदना’’ रचना पर ’’गुणवंती सम्मान’’-2015                                                                           

   11. न्यू ऋतंभरा साहित्य मंच कुम्हारी, जिला दुर्ग -छ. ग. द्वारा न्यू ऋतंभरा मुंशी प्रेमचंद एवं साहित्य 

      अलंकरण-2015 

   12. महिमा प्रकाशन -छ.ग. द्वारा ’’त्रिवेणी साहित्य सम्मान’’-2015 

   13. ‘डाॅ. नृसिंह राजपुरोहित राजस्थानी साहित्य प्रतिभा पुरस्कार’’-2016 

   14. बृजलोक साहित्य-कला-संस्कृति अकादमी, फतेहाबाद (आगरा) उ. प्र. द्वारा ’‘श्रेष्ठ साहित्य साधिका सम्मान-2017

   15. ’’वीर दुर्गादास राठौड़ सम्मान’’ (रजत पदक )-2017 

   16. ’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता अजमेर)-2017  

   17. ’’दिव्यतूलिका साहित्यायन’’ सम्मान-2017 (ग्वालियर, मध्य प्रदेष)

   18. ’’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय व्यंग्य प्रतियोगिता अजमेर)-2018 

   19. ’’महादेवी वर्मा सम्मान’’(साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान, हल्दीघाटी नाथद्वारा)-2018

   20. ’’पत्र लेखन सम्मान’’(डाॅ. सूरज सिंह नेगी, सनातन प्रकाशन, जयपुर)-2019

   21.  साहित्य क्षेत्र में सतत् सराहनीय योगदान हेतु ’’मधेषवाद के प्र. नेता गजेन्द्रनारायण सिंह सम्मान’’ 

       (नेपाल भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन, काठमांडौ रौतहट, नेपाल से)-2019

   22. ’’मत प्रेरणा सम्मान’’-2019 (निखिल पब्लिशर्स, आगरा, उत्तर प्रदेश)

   23.  राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूॅंगरगढ़ (बीकानेर) द्वारा ’’पं. मुखराम सिखवाल स्मृति रा. साहित्य   सृजन पुरस्कार’’ (14 सितम्बर 2019)

   24. स्टोरी मिरर द्वारा ’’लिटरेरी केप्टिन’’ सम्मान-2019

   25. ’’अखिल भारतीय माॅं की पाती बेटी के नाम’’ प्रतियोगिता-2019, सम्मान (जिला प्रसाशन एवं महिला अधिकारिता, बून्दी द्वारा)

   26. अखिल हिन्दी साहित्य सभा (अहिसास) नासिक (महाराष्ट्र) द्वारा पुस्तक-’’नाक का सवाल’’ पर ’’साहित्य श्री’’ सम्मान-2019 

   27. ’’क्रान्तिधरा अंतरष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान’’ (क्रान्तिधरा मेरठ, साहित्यिक महाकुम्भ-2019 में )

   28. ’’आध्यात्मिक काव्यभूषण’’ की मानद उपाधि (भारतीय संस्कृति एवं भाषा प्रचार परिषद करनाल (हरियाणा) तथा कलमपुत्र काव्य कला मंच मेरठ उ. प्र. (भारत) द्वारा हरिद्वार (उत्तराखण्ड) में आयोजित कार्यक्रम में ।

   29. ’’अग्निशखा गौरव रत्न’’ सम्मान (साहित्य एवं सामाजिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए, अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच मुम्बई द्वारा ) - 2019

   30. ’’मैना देवी पांड्या स्मृति राजस्थानी लेखिका पुरस्कार-2019 (नेम प्रकाशन, नागौर, डेह)

   31. ’’चौपाल साहित्य रत्न सम्मान’’-राष्ट्रीय कवि चैपाल, शाखा-दौसा (राजस्थान)-2020

   32. ’’नव सृजन कला प्रवीर्ण अवार्ड’’-छत्रपति प्रशिक्षण संस्थान (रजि.) कानपुर (उ. प्र.) द्वारा-2020

   33. ’’शब्द तरंग सम्मान - सुशील निर्मल फाउंडेशन, आणि शब्दांगण कला साहित्य सांस्कृतिक परिषद, वसई (महाराष्ट्र) द्वारा-2020

   34. शब्द निष्ठा सम्मान (श्रेष्ठ समीक्षक)-2020

   35. ’मनांजलि साहित्य सम्मान’ (मनांजलि मंच, चण्डीगढ़)-2020

   36. जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा-अटल रत्न सम्मान, कोरोना योद्धा रत्न सम्मान, तिरंगा सम्मान, शिक्षक उत्थान रत्न सम्मान, गोस्वामी तुलसीदास सम्मान, 2020 में 101 साहित्यकार 2020 रत्न सम्मान-2020 । स्वामी विवेकानन्द सम्मान-2021, गणतंत्र दिवस पर भारत गौरव सम्मान-2021 

   37. ’’विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’’ अदबी उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा-2021

   38. ’’भामाशाह सम्मान’’ लायंस क्लब इंटरनेशनल द्वारा-2021 

   39. ’’लोक साहित्य रत्न सम्मान’ (अवनि सृजन साहित्य कला, मंच इंदौर, म.प्र. द्वारा)-2021

   40. विश्व मायड़ भाषा दिवस 21 फरवरी 2021, महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, बाबा रामदेव शोधपीठ, राजस्थानी विभाग और इंटेक चेप्टर की ओर से सम्मान-2021 

   41. ’’हिन्दी साहित्य मनीषी’’ मानद उपाधी, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा से । 2021

                        बसन्ती पंवार

                ’विष्णु’, 90, महावीरपुरम,

               चौपासनी फनवल्र्ड के पीछ, 

               जोधपुर -342008 (राज.), 

                   मो. 9950538579     

                         Basantipanwar53@gmail.com 

                          

*धीमें*

धीमें-धीमें  

गीले ईंधन 

की तरह 

जलती नारी.....


धीमें-धीमें 

जलकर भी

वो कार्बन 

नहीं उगलती....

जीवन भर 

देती रहती है 

सभी को

ऑक्सीजन......


घर-परिवार 

के लिए 

नींव का पत्थर बन

कंगूरों की सुरक्षा....

सुन्दरता के लिए 

पूरा जीवन 

अंधेरों में गुजारती....

नहीं बनती 

वह कंगूरा.....


धूपबत्ती की

तरह जलती है 

धीमें-धीमें 

सुवास बिखेरकर 

मिटा देती 

अपना अस्तित्व.....


धीमें-धीमें 

अंतिम सांस 

लेने के बाद भी

वह हिलती 

तक नहीं.....

अपनों के  

कंधों पर 

शान से 

चलती है धीमें-धीमें.......

           बसन्ती पंवार 

      जोधपुर  ( राजस्थान )



हमने 

टूटे धागों पर

गांठें तो

खूब कस कर 

लगाई......

मगर 

खोलने वालों के 

नाख़ून 

बहुत पैने थे .....

      बसन्ती पंवार 

          जोधपुर




(कविता)  *इच्छाएं*


जीवन  के  सफर  में 

न जाने  क्यों  जन्म  लेती हैं 

चाहे  छोटी-छोटी  ही  सही 

मन  में  मचलती  तो  है......


मचलती  इच्छाएं 

और  बड़ी  हो  जाती  हैं 

किसी  लड़की  की  तरह.....


मन  को  झकझोरती  है 

अन्तर्मन  में  फैलती  है 

पर  कहां  पूरी  हो  पाती  हैं....


कभी  कोई  कुचल  देता  है

तो  कभी  हम  स्वयं  ही 

कफन  से  ढक  देती  हैं.....


कुचले  जाने  से  पहले 

कुचले  जाने  के  दर्द  से 

कितना  छटपटाती  हैं .....


कितने  आंसू  कितने  दर्द 

मासूम  मन  की  छोटी - छोटी 

चाहतें  उनकी  बेदर्दी  से  मोत

देखता  रहता  जीवन  ......


मन  कठोर  पाषाण  बन जाता 

पूछता  है  बार-बार 

क्यों  जन्म  लेती  हैं इच्छाएं......


इतनी  मीठी  इतनी  सुन्दर 

शायद  ही  कोई  इच्छा 

अपना  पूरा  जीवन  जीती  होगी 


कुछेक  मरती  है  प्रकृति  से

बाकी  तो  तड़प - तड़प  कर 

मरने  के  लिए  ही  जन्मती  हैं... 


जीवन  बेचारा  क्या  करे 

पल-पल  रिसता  जीवन 

जीवन  कहां  रह  पाता  है .... 


पहले  प्रौढ़  होता 

फिर  बुढ़ापे  के  सहारे 

अपनों  की  ओर  

निहारती  इच्छाएं ......


जीवन  में  जन्मी - पली  इच्छाएं 

उसी  के  भीतर  सिमट 

माटी  हो  जाती  हैं .......


एक  भावभीना  मन 

सारा  दर्द  

चुपचाप  सहता  रहता......


शायद  इच्छाओं  का  

दर्द  सहना  ही  भाग्य  है 

और  इच्छाओं  का  दमन 

जीवन  की  विवशता ......

             ---- बसन्ती पंवार 

            जोधपुर  ( राजस्थान )




*प्रेम*

प्रेम 

नगद या उधार.....

मृत  या  जिन्दा.....

या  प्लास्टिक  का.....

हाँ,  यह ठीक  है 

सदियों  तक  रहेगा 

न  पानी  न  खाद......

न  धूप  न  हवा 

की  जरुरत ......

धूल  जमें  झाड़  देना .....

धो  देना .......

फिर  ताज़ा 

हो  जाएगा 

मगर  क्या 

प्लास्टिक  के  प्रेम  से

अहसास  और 

संवेदनाएं  

महसूस  कर  सकोगे  ? 

       ----- बसन्ती पंवार 

        जोधपुर ( राजस्थान )



संघर्ष 

      स्वयं  को  खोजना 

      स्वयं  के  भीतर  तक

      कठिन  लगता  है 

      यह  स्वयं  से  ही  संघर्ष  है 

      ढूंढ-ढूढ  कर  बाहर        

      निकालना--

      ईर्ष्या.....द्वेष.... 

      क्रोध.....कामनाएं.....

      तेरे- मेरे  की  भावनाएं 

      तब  तक  ढूँढ़ना 

      जब  तक  कि  

      वह  सभी 

      बाहर  न  आ  जाए 

      पर....परंतु.....

      हम  स्वयं  को 

      पहचान  कर  भी 

      संघर्ष  करते  हैं 

      स्वयं  से  ही 

      हमारा  अस्तित्व 

      निरंतर  संघर्ष  है 

      अतीत  से  वर्तमान  तक 

      जन्म  से  मृत्यु  तक....

         --- बसन्ती पंवार 

         जोधपुर ( राजस्थान )


एस के कपूर श्री हंस

।।हर शेर में इक़ बात इंसानी रहती है।।*
*।।ग़ज़ल।।   ।।संख्या 68 ।।*
*।।काफ़िया।।  ।। आनी  ।।*
*।।रदीफ़।।     ।।रहती है ।।*
1
हर शेर में एक     रवानी   रहती है।
शेर वो है कि इक़ कहानी रहती है।।
2
हर शेर    कुछ   बात    कहता    है।
उसमें कुछ बात   दीवानी  रहती है।।
3
दो मिसरों में मुकम्मल  होता है शेर।
इक़ शेर में पूरी जिन्दगानी  रहती है।।
4
हर शेर रख देताआदमी को हिलाकर।
हर शेर में ऐसी  रोशनदानी   रहती है।।
5
इक इक़ शेर बयां करता  हक़ीक़त यूँ।
उसमें दुनिया की निगहबानी रहती है।।
6
*हंस* हर शेर है ग़ज़ल के हार का मोती।
इसमें छिपी गहरी बात इंसानी रहती है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464
जिन्दगी का साथ निभाने में ही*
*जिन्दगी की वाह है।।*
*।।ग़ज़ल ।। ।।संख्या 67।।*
*।।काफ़िया।। ।। आह।।*
*।।रदीफ़।।    ।। है     ।।*
1
मर मर कर जीना  तो  गुनाह है।
खुल कर  जियो तो  ही  वाह है।।
2
खूबसूरती है   बस  निभाने   में।
क्यों दिखाना किसी को आह है।।
3
महोब्बत भर कर जियो  सीने में।
नाश कर देगी दिल की   डाह  है।।
4
सब कुछ कर सकताआदमी यहाँ।
गर जिन्दगी में  जीने की  चाह है।।
5
एहसास की नमी बेहद जरूरी है।
पता चलता  रिश्तों की परवाह है।।
6
सूखी रेत फिसल जाती  हाथों से।
जान लो   पूरी दुनिया    गवाह है।।
7
क्यों जी रहे  जिंदगी के  अंधेरों में।
जब कि सामने    खड़ी  सुबाह है।।
8
*हंस* खुशी से जियो और जीने दो।
जिन्दगी जीने की यही एक राह है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

पहला अध्याय-8
  *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-8
सुनहु कंस ई भगिनी तोरी।
तव तनया सम थोरी-थोरी।।
    सद्यहि भवा बिबाह यही कै।
    मंगल-चिन्ह न मिटा कहीं कै।।
ताकर उचित नहीं बध करना।
तुम्ह सम दीनबंधु जे अपुना।
    पुनि सुकदेव कहत अस भयऊ।
     कंसहि बहुबिधि बसु समुझवऊ।।
भयहि-भेद अरु साम-प्रसंसा।
पुनि-पुनि कीन्ह कंस-अनुसंसा।।
     पर नहिं कंसा केहु बिधि माना।
      देवकि-बध निज मन रह ठाना।।
जलन-दंभ-हठ खलहिं सुभावा।
कपट-कुटिलता भरा छलावा।।
    तब बिचार बसुदेवहिं कीन्हा।
     केहु बिधि बध-अवसर नहिं दीन्हा।।
जे जन प्रबुध-बिबेकी अहहीं।
निज प्रयास करि संकट टरहीं।।
     टरै न संकट जदि केहु भाँती।
     दोसी नहीं,नहीं ऊ घाती ।।
दोहा-अब मैं देबउँ निज तनय,दुष्ट कंस के हाथ।
          प्रान बचाइब देवकी, बिधिना दैहैं साथ।।
          होई जब मोरे सुतय, कंसहि जनु मरि जाय।
          बिधि-बिधान जनु मोर सुत,कंसहि मारि गिराय।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919446372

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--
फ़लक से क़मर को उतारा कहाँ है
अभी उसने ख़ुद को सँवारा कहाँ है

उदासी में डूबी है तारों की महफ़िल
बिना चाँद के ख़ुश नज़ारा कहाँ है

हुआ जा रहा है फ़िदा दिल उसी पर
अभी हमने उसको निखारा कहाँ है

है बरसों से कब्ज़ा  तो इस पर हमारा 
ये दिल अब तुम्हारा  तुम्हारा कहाँ है

फ़साने में तन्हा हो तुम ही तो रोशन
कहीं नाम इसमें हमारा कहाँ है

लबों को सिया अपने इस वास्ते ही 
तुम्हें मेरा लहजा  गवारा कहाँ है 

भरोसा है तुझ पर बड़ा हमको *साग़र*
किसी और को यूँ पुकारा कहाँ है 

🖋️विनय साग़र जायसवाल
7/4/2021
फ़लक-आसमान ,गगन
क़मर-चाँद ,शशि 
फ़िदा-क़ुर्बान ,आशिक़
रोशन-प्रकाशमान ,प्रदीप्त 
गवारा-स्वीकार, पसंद

सीमा शुक्ला अयोध्या

टपक रहा छप्पर से पानी वह निर्मम  बरसात  लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

सिसक  रही  हैं भारत माता, दंगे की तस्वीर  लिखो।
बचपन में जो बोझ उठाते वह बिगड़ी तकदीर लिखो।
जेठ  दोपहरी  स्वेद  बहाते  हलधर  की लाचारी को।
जो  दहेज की भेंट  चढ़ी लिख दो अबला बेचारी को।

छोड़ गया जिस मां को बेटा उस मां के जज्बात लिखो
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

लिख  दो  मूक  सिसकियां  रोती  जो अंधेरी रातों  में।
दानव  भेष  घूमते  मानव  हवस भरी जिन आंखों में।
तड़प  रही  है भूख बिलखती नित्य पड़ी पुटपाथों  पर,
कागज  कलम  नहीं  ईंटें  है  नन्हे  - नन्हे  हाथों  पर।

नहीं जला जिस घर में चूल्हा उस घर  के हालात  लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

लिखो बाण से शब्द करें जो भेद कुटिल व्यभिचारी पर।
शब्दों  से  कर  दो  प्रहार  दानव  से   अत्याचारी   पर। 
लिखो बेबसी ममता की तुम, व्याकुल थकी निगाहों को,
पड़े   फफोले जहां  पांव   दुष्कर  पथरीली   राहों  को।

निर्धन  के  मंडप  से  लौटी  बिन  फेरे  बारात  लिखो।
लिखो कहानी फिर हल्कू की पूस ठिठुरती रात लिखो।

 सीमा शुक्ला अयोध्या।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*मन बंजारा*
            *मन बंजारा*(गीत-16/14)
नहीं ठहरता एक जगह पर,
सचमुच मन बंजारा है।
निरख कली की सुंदर छवि को-
जाता वह गुरु-द्वारा है।।

कभी चढ़े यह गिरि-शिखरों पर,
कभी सिंधु-तट जा ठहरे।
कभी खेत-खलिहानों से हो,
वन-हरीतिमा सँग लहरे।
पवन-वेग सी गति है इसकी-
मन चंचल जलधारा है।।
      सचमुच मन बंजारा है।।

मन विहंग सम डाल-डाल पर,
कसुमित पल्लव-छवि निरखे।
पुनि बन मधुकर विटप-पुष्प के,
मधुर पाग-मकरंद चखे।
पुनि हो हर्षित निरख रुचिर मुख-
गोरी का जो प्यारा है।।
     सचमुच मन बंजारा है।।

कभी दुखित हो मन यह रोता,
जब अपार संकट होता।
पर विवेक को मीत बनाकर,
धीरज कभी नहीं खोता।
रखकर ऊँचा सदा मनोबल-
मन तो कभी न हारा है।।
     सचमुच मन बंजारा है।।

मन अति चंचल चलता रहता,
जीवन-पथ पर इधर-उधर।
कभी हो कुंठित,कभी सजग हो,
बस्ती-बस्ती,नगर-नगर।
लाभ-हानि,यश-अपयश,सुख-दुख-
मन जय-हार-सहारा है।।
     सचमुच मन बंजारा है।।

कभी गगन-शिख तक ले जाता,
कभी रसातल दिखलाता।
कभी स्वप्न अति नूतन रचकर,
बलखाते यह ललचाता।
कभी कराए मधुर पान मन-
कभी स्वाद जो खारा है।।
       सचमुच मन बंजारा है।।
                  ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

*कुण्डलिया*
होती जग में मित्रता,बचपन की ही गाढ़,
ऐसे  ही  संबंध  में, रहे  प्रेम  की  बाढ़।
रहे  प्रेम  की बाढ़, त्याग का भाव पनपता,
नहीं होय बिखराव,काम भी नहीं बिगड़ता।
कहें मिसिर हरिनाथ, ज़िंदगी कभी न रोती,
यदि हो सच्चा साथ, मित्रता  सच्ची  होती।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

चलते पकड़े हाथ दो, बच्चे  मीत  समान,
बचपन की ही मित्रता,में  बसते भगवान।
में  बसते  भगवान, न  मित्रता  ऐसी  टूटे,
कहते  वेद-पुराण, लुटेरा  कभी  न  लूटे।
कहें मिसिर हरिनाथ,मीत दो कभी न लड़ते,
दुनिया करे विरोध, हाथ  वे  पकड़े  चलते।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ. सीमा भाँति “नीति”, अमेरिका

 संक्षिप्त परिचय:

डॉ. सीमा भाँति “नीति “ , अमेरिका महाविद्यालय प्रधानाचार्या , पद से स्वेच्छिक अवकाश ग्रहण !

एम. ए., एम. एड., पीएच . डी., पी. जी. डिप्लोमा इन कम्प्यूटर साइंस !

कहानी ,कविता आलेख लेखन ,विभिन्न साझा संकलन, पत्रिकाओं में प्रकाशन !

राष्ट्रीय  एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों  में सहभागिता व संचालन !

राष्ट्रीय  एवं अन्तराष्ट्रीय  पुरस्कार !

काव्य संग्रह -शीघ्र प्रकाश्य 

सम्प्रति : अध्यक्ष, नेचुरल प्रोडक्ट कम्पनी  !

स्वतंत्र लेखन ,वेबिनार: गोष्ठी   आयोजन, सहभागिता, संचालन !

      पेटिंग, हस्तकला, फूड कार्विंग, कारपेट मेकिंग, क्ले मॉडलिंग , ज्वैलरी डिज़ाइनिग, इन्टीरियर, वेस्ट मेटिरियल रीसाइक्लिंग आदि!


सम्पर्क: 

 Ph.+15516661713


#1

#विषय: समाज

#रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “ नीति”, अमेरिका 

#स्वरचित मौलिक रचना 


समाज वर्तमान, भूत, भविष्य का दर्पण,

सभ्यता, संस्कार, संस्कृति को अर्पण,

निरंतर पल्लवित करता रहता सुसंस्कृत,

सुसंस्कृत जन ही करते समाज को अलंकृत,

ये ही हैं जीवन्त समाज के कुबेर सशक्त स्तंभ,

अपने हुनर, कर्म से कीर्ति के नित नए लगाए खंभ।


मूल इकाई समाज की व्यक्ति से बना परिवार, 

जिसमें हो स्नेह, सामंजस्य, समरसता की बहार,

जन जो कुटुंब व समाज का अभिन्न विशेष अंग,

उसमें सद्गुण, सच्चाई के साथ कुछ बुराई के दंश,

है संवाहक कुरीति-रीति, रूढ़िवादी, विवेकपूर्ण का,

यहाँ दर्शन रीति रिवाज के नाम पर नित नये स्वाँग का।


कुरीति- दहेज, शोषण, भ्रूण हत्या, नारी व्यभिचार,

धार्मिक उन्माद, दंगा, भ्रष्टाचार, भेदभाव, दुष्कर्म,

विषबेल पोषित अब जड़ से उखाड़ करो सत्कर्म,

हर स्तर पर हो समाज सुख-समृद्ध, सशक्तिकरण,

सजृनात्मकता, हुनर प्रेरणा, स्वस्थ समाज अनुसरण,

स्वतंत्रता, दायित्व, नारी, बुजुर्ग आदि मान अंत:करण।


समाज व्यक्ति में निरंतर चलता रहे ह्रदय मंथन,

कुरीति, रूढ़िवादिता, व्यभिचार, अवगुण उन्मथन,

सद्भाव, प्रेम, सद्गुण, धर्म, जाति सबका मान उन्नयन,

स्वस्थ व्यक्ति समाज स्नेहशील बनाना प्रथम ध्येय,

“नीति” कहे संतुलित समाज, सद्गुण ओज अनुष्ठेय,

सत्त कर्तव्य पथ पर समरस समाज राष्ट्र हमारा उद्देश्य, हमारा उद्देश्य........



               डा. सीमा  भाँति “नीति”, अमेरिका 

               स्वरचित मौलिक  रचना


#2


# विषय: नन्हें दिल की एक प्यार भरी गुहार

# स्वरचित मौलिक रचना

# रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका    


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एक नन्हा दिल, जो अभी इस दुनिया में ही नहीं आया,

बस उसके होने का एहसास कोख को ही हो पाया।

गुफ़्तगू माँ-बाप की सुनते ही वो बहुत  घबराया,

माँ को सकुचाता घबराता रोता देख अधिक बिचकाया।

तन्हाई पा के थोड़ा घबराते हुए इस तरह बोला, 

ये अल्ट्रसाउंड, डॉक्टर ना जाने बाबा क्या बोला।


क्यूँ कोने में बैठी सुबक सुबक रोती हो करहाती ,

क्यूँ अभी तक चुपचाप यूँ तकिया पर बिलखती।

अब मेरे ना होने के आदेश को चुपचाप करती अमल,

ओ माँ ! इतनी जल्दी क्या है मुझे करने की अलग ।

तू ही तो कहती थी बस ये है मेरा नौ महीने घर,

फिर तू आयेगा इस खलक में करने रोशन घर ।


क्या मुझसे हुई कोई गुस्ताखी तो फिर बता ना माँ,

अभी पकड़ता ‘कान’, पर कैसे? कान तो है ही नही माँ।

चाहता हूँ बात करना बाबा से भी माँ मैं , दिल ,

पर जब वो तुझ से बात नहीं करते हिलमिल।

डर लगता है, तो मैं कैसे? तू ही कुछ कर ना माँ,

अपने लिए कभी ना हुई खड़ी पर अब तो हो माँ।


मेरी ख़ातिर ही अड़ा अंगद पैर माँ, ओ मेरी प्यारी माँ,

नन्हा प्यार दिल सिसक सिसक कर के पुकारे माँ।

माँ सुन लो, दादी सुन लो, कोई तो सुन लो मेरी गुहार,

मुझे अभी ज़बरदस्ती नहीं बिलकुल नहीं आना बाहर।

नौ महीने आराम से इस गुलाबी मख़मली में रहने दो घर में,

बस मारो मत, बचाओ माँ ! आने दो साकार रूप में इस प्यारे जहाँ में, इस प्यारे जहाँ में ........ 


💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞💔💕💔💞


             डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका    

              स्वरचित मौलिक रचना


#3


#विषय: मानवता के लाल

# स्वरचित मौलिक रचना

# रचियत्री: डॉ. सीमा भाँति “नीति” , अमेरिका 


सुनी थी पारियों ( angles) की कहानी दादी - नानी से , 

आज इस धरा पे अवतरित है करोना वोर्रीरस आसमाँ से । 

हथेली पर जान , परिवार , सब लेकर निस्वार्थ भाव से , 

फिर भी कुछ मानवता के दुश्मन खड़े हुए इस राह में स्वार्थ से ।

अब तो हो गयी हद ही अश्लीलता व उनके व्यवहार से , 

देवदूत जो करने आए थे रक्षा हमारी , पड़ गए जान के लाले उनके । 

साष्टांग प्रणाम उन माताओं को, ये निकले  जिनकी गोद से , 

“नीति”  सहित कण कण ब्रह्मांड का , नतमस्तक इनके समक्ष कृतज्ञता से । 

प्रार्थना , एकता , समर्पण मूलमंत्र केवल , एकमात्र मूलमंत्र दिल से ,

विजयी अवश्यभामि , जय हो, जय हो, ‘मानवता के लाल’ जय हो !!!


               स्वरचित मौलिक रचना

             डॉ. सीमा भाँति “नीति”, अमेरिका


डॉ0हरि नाथ मिश्र

पहला अध्याय-7
    *पहला अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-7
भोज-बंस कै तुमहिं अधारा।
एकमात्र बंसज होनहारा।।
    बड़-बड़ सूर-बीर-बलवाना।
    तुम्हरो जसु गावहिं बिधि नाना।।
अहहि एक ई अबला नारी।
दूजे ई तव बहिना प्यारी।।
    तीजा मंगल-परिनय-अवसर।
    यहि का बध नहिं होई सुभकर।।
सुनहु बीरवर धरि के ध्याना।
होय जनम सँग मृत्युहिं आना।।
    आजु होय वा कबहूँ होवै।
     कहहुँ साँच ई होवै-होवै।।
होवै जब सरीर कै अंता।
धरहि जीव बपु अपर तुरंता।।
    जिव तन तजै करम अनुसारा।
     जस पग-चापहि उठै दुबारा।।
तजहि तिरुन जबहीं जल-जोंका।
अपर तिरुन कै मिलतै मौका।।
    कबहुँ-कबहुँ नर जाग्रत-काले।
    बैभव चहइ इंद्र कै पा ले।।
भाव-बिभोर मगन ह्वै सोचै।
निज विपन्न गति सपन बिमोचै।।
    बिसरै जनु अस्थूल सरीरा।
    अमरपुरी-सुख लहहि अधीरा।।
भूलै जीव अइसहीं देहा।
कर्म-कामना विह्वल नेहा।।
    प्रबिसहि अपर सरीरहि जीवा।
    कइके प्रथम बपू निरजीवा।।
जीव क मन बिकार-भंडारा।
इच्छा-तृष्ना-बिषय-अगारा।।
     जेहि मा अंत समय मन रमई।
      ताहि सरीर जीव पुनि धरई।।
चंचल जीव समीरहि नाई।
जल बिच ससी-रबी-परिछाँई।
      इत-उत हिलै पवन लइ बेगा।
      वइसइ रहै जीव संबेगा।।
रहइ जीव जग जे-जे देहा।
रखइ मोह,मानै निज गेहा।।
     यहि सरीर कै आवन-जावन।
      भ्रम बस समुझइ निजहि करावन।।
जे चाहसि जग निज कल्याना।
करिव न द्रोह कबहुँ अपमाना।।
दोहा-द्रोही जन भयभीत रहँ, सत्रुन्ह तें यहि लोक।
        मरन बाद डरपहि उहइ, जाइ उहाँ परलोक।।
                          डॉ0हरि नाथ मिश्र
                            9919446372

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