नूतन लाल साहू

बुढ़ापा मत देना भगवान

सत्तर साल का बुढ़ा को
कहते है,बिल्कुल हो बेकाम
आंत भी नकली,दांत भी नकली
आंख में चढ़ गया है चश्मा
देख के ही,दूर भागते हैं
जैसे लगता हूं,सद्दाम
बुढ़ापा मत देना भगवान
छोटे छोटे बच्चे भी चिढ़ाते है
और कहते है,बाबा खटारा
मेरा भीतर ही भीतर, धधके अंगारा
पर तन हो गया है
जैसे पके हुए,रसीला आम
बीयर और व्हिस्की छूट गई
अब लटकी हुई है
ग्लूकोज की बोतल
अब ऐसा लगता है
जैसे हो गया हूं,गुलाम
बुढ़ापा मत देना भगवान
बोरोप्लस और पावडर की जगह
रगड़ रहा हूं, बाम
 बात बात पर, अपनो ने ही
लगाता है इल्जाम
पाल पोस कर,जिसे बड़े किए
वो लड़के भी, आये न काम
बुढ़ापा मत देना भगवान
लोग पुराना टी वी को बदलकर
नया ले आता है
पर हम वो खटारा है
जो अस्पताल जाते है तो नर्सें
रोज अनेको सुई चुभाते है
कुछ ही लोग बुढ़ापा में भी
होते है,खुशनसीब
पर ऐसी बुढ़ापा भी,क्या काम का
जिसके सामने,खड़ा हुआ है यमराज
सीना तान कर
बुढ़ापा मत देना भगवान

नूतन लाल साहू

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शीर्षक ---जीवन और मौसम

मौसम आते जाते है
मौसम के दिन महीने चार
जीवन के भी दिन चार।।
जीवन मौसम में अंतर 
इतना मौसम का चाल
चरित्र चेहरा नही मौसम नियत काल।।
पल प्रहर दिन रात
बदलता मौसम का
मिज़ाज़ जीवन का एक
चेहरा चाल चरित्र संस्कार।।
गर जीवन भी हो जाये
मौसम जैसा युग सृष्टि
मिट जाएग छा जाएगा आंधेरो का
साम्राज्य।।
कभी कठिन दौर हाहाकार मचाते 
प्राणी प्राण मुश्किल में 
कभी राहआसान मौसम आते
जाते है।।
मौसम का प्राकृति
परिधान मानव प्रबृत्ति प्रधान मौसम प्रकृति प्रधान।।
वर्षा कभी सावन की
रिम झिम फुहार कभी जलप्लावन
डूबता आशाओं का संसार।।
सर्द रात की चाँद चॉदनी प्रेम
प्रीत का राग, ठिठुरते कभी प्राणी
प्राण का करते त्याग।।
मौसम बसंत बाहर
खुशियाँ उमंग का घर समाज परिवार
व्यवहार।।
उत्सव उल्लास का मधुमास
नूतन कोमल किसलय नव
काल कलेवर का प्रकृति
करती सृंगार।।
शिशिर हेमंत ज्वाला तेज
तूफान अंगार कभी हंसाते कभी
रुलाते जीवन वायु प्राण
मौसम आते जाते है
संसय विश्वास।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सुषमा दीक्षित शुक्ला

"गोवर्धन धारी हे! कान्हा,बन  जाओ रखवारे ।
हे! कृष्णा हे! मोहन मेरे तुम बिन कौन उबारे ।

हर  कोई है व्यथित यहाँ  ,तो कोरोना के मारे ।
थोड़ी सी मुस्कान कन्हैया जग को दे दो प्यारे ।

तुम बिन मेरे कान्हा अब ये नइया कौन उबारे ।
तड़प उठी मानवता अब तो केवल तुम्हे पुकारे ।

हे!यदुनन्दन दया करो अब बिलख रहे हैं सारे ।
तुमने तो पहले भी कितने अनगिन असुर सँहारे।

दुष्ट  कंस पूतना  वकासुर  एक एक  कर मारे।
कोरोना का  नाम मिटा दो राधा जी के प्यारे ।

हर  कोई है  व्यथित यहाँ तो  कोरोना के मारे।
हे! कान्हा हे !मोहन मेरे तुम बिन कौन उबारे ।
         सुषमा दीक्षित शुक्ला

निशा अतुल्य

कैद
25.4.2021

शरीर एक पिंजरा
सांसो का पँछी कैद
महसूस करे सभी
ये ही अनुभूति है ।

सुख भी यहीं रहता
दुख आता ही रहता 
कैद नहीं होए कोई
ये सहानुभूति है ।

मौसम सा बदलता
पल छीन जीवन का 
पतझड़ जाता जब 
बहार भी आती है ।

निःशब्द राग सभी
कोयल कुहकी कहीं
इसकी मधुर वाणी 
मन को हर्षाती है ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार चंदन अंजू मिश्रा जमशेदपुर

 


चंदन अंजू मिश्रा

पता: जमशेदपुर

कृतियां: द फर्स्ट स्टेप, डैडी सहित 7 पुस्तकों में कृतियां ।

चंदन :सुगंध शब्दों की का प्रकाशन

सम्मान :राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित सम्मान पत्र प्राप्त

सामाजिक कार्य:रॉबिनहुड अकादमी की सदस्या



कवितायें:



1)साजन आना उस नदी के किनारे,

साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।


मुझे शहर की भीड़ से दूर ले जाकर,

नैनों की डोर में अपने बाँध लेना।

जो धरा है मेरे मन की बंजर हुई,

इस पर बादल बन जल बरसा देना।

सुनाकर अपने मन की सारी बातें,

संग थोड़ा रो लेंगे और थोड़ा हँसेंगे।।

साजन आना उस नदी के किनारे,

साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।


ले आना तुम झुमके एक जोड़ी ,

एक जोड़ी पायल भी ले आना।

बिंदिया वो छोटी काली वाली और,

नैनों के लिए काजल भी ले आना।।

तेरी पसन्द की हुई चूड़ी, बिंदी,

साड़ी, झुमके सब मुझ पर खिलेंगे।।

साजन आना उस नदी के किनारे,

साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।


जन्मों - जन्मों की बात कौन जाने,

इसी जन्म में हर वादा पूरा कर लें।

मिटा कर सारे पुराने दाग हम चलो,

एक दूसरे की ज़िंदगी  रंगों से भर लें।।

भूल कर इस दुनिया की सारी बातें,

एक दूसरे की आत्मा में खोए रहेंगे।।

साजन आना उस नदी के किनारे,

साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।


-©चंदन "अंजू" मिश्रा



2)*रात्रि के दो पहलू*


गहराई जाती है देखो,

बीतती ही नहीं यामिनी।

पुष्प  कुमुदिनी के प्रसन्न,

कि रुकी हुई है चाँदनी।।


किसी मन में व्यथा है ,

किसी मन में उल्लास है।

निशा में छुपी पीड़ा भी,

संग चाँदनी का प्रकाश है।।


किसी मन के प्रतिबिंब को,

झिंझोड़ देती है रात कृष्णा।

और किसी की चन्द्रिका ये,

मिटा देती है मन की तृष्णा।।


जिस साथी से वियोग हुआ,

व्यथित मन को वो याद आए।

रुदन करता विरह में मन,

कि ये रैना क्यों न बीत जाए।।


लेकिन ये शरद रात देखो,

चन्द्रमा को संग लाई है।

खिल उठा दिव्य ब्रह्मकमल,

सुगंध चहुँ ओर छाई है।।



-©चंदन "अंजू " मिश्रा



3)मैं नहीं हूँ कोई लेखिका,

क्योंकि मुझे नहीं करनी आती,

लेखकों की तरह गहरी बातें।


मैं तो बस लिख देती हूँ,

कभी हॄदय में चलते तूफान को,

कभी अकुलाते मन की व्यथा को,

कभी समाज में होते अन्याय को,

कभी विरह को कभी प्रेम को,

कभी कोयल की कूक को,

सड़क पर पड़े किसी गरीब के भूख को।


मैं पीड़ा में अश्रु नहीं बहाती,

नेत्रों में पड़े उन मोतियों को,

मैं स्याह रंगों में सफ़ेद पन्नों पर उकेर देती हूँ,

और बन जाती है रचना,

हाँ, उन लेखकों की तरह मैं गोल-गोल बातें नहीं कह पाती,

मुझे नहीं लिखनी आती कविताएं,

अपनी बेढंगी बातों को आवरण पहना देती हूँ बस।


-©चंदन "अंजू" मिश्रा






सुनीता असीम

शोख हवा में आंचल उनके उड़ते हैं।
आशिक दिल के पुरजे ऊँचे उड़ते हैं।
***
एक हसीं की मस्त नज़र से घायल हो।
मजनू सारे चलते चलते   उड़ते है
***
तप्त मरू सा जलता है तन उनका तब।
दिल के अरमाँ भाप सरीखे उड़ते हैं।
***
कुछ पक्के कुछ कच्चे हैं रह जाते वे।
जो भी सपने डरते डरते उड़ते हैं।
***
और हुआ जाता ख़ारा सागर है तब ।
जब आंसू के अंबर उसपे उड़ते हैं ।
****
सुनीता असीम
२४/४/२०२१

कोरोना की जात
#############

जात पूछकर कोरोना की लतिया दो अब इसको।
कर बचाव सुरक्षा अपनी औकात बतला दो अब इसको।
रहने को घर नहीं मिलेगा तब तड़पेगा-
जिन्दगी की कीमत क्या समझा दो अब इसको।
***
सुनीता असीम

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा-7
 *तीसरा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-7
अस कहि कृष्न,कहहिं सुकदेवा।
रूप सिसू कै तुरतयि लेवा।।
    वहि पल जनीं जसोदा तनया।
     देवकि-जसुमति जननी उभया।।
नंद-नंदिनी जोगहिं माया।
देवकि सुतहिं कृष्न कै छाया।।
    बेड़ी-मुक्त भए बसुदेवा।
    परमइ कृपा कृष्न कै लेवा।
माया-बल,प्रभु-जोग-प्रतापा।
थमा बंदिगृह-आपा-धापा।।
    निज सुत लइ निकसे बसुदेवा।
    भे जब सभ अचेत जे सेवा।।
बंदीगृह कै टूटा ताला।
टुटी जँजीरहिं नाथ कृपाला।।
     लेतइ जनम कृष्न उजियारा।
     छटै उदित रबि जस अँधियारा।।
बरसन लगे मगहिं जब बादर।
निज फन तानि सेष जस छातर।।
    चलन लगे बसुदेवहिं पाछे।
     प्रभुहिं बचावत आछे-आछे।।
जल जमुना कै बाढ़न लगा।
प्रभु प्रति प्रेम पाइ अनुरागा।।
    सकल तरंगहिं जमुना-जल कै।
    प्रभु-पद चाहहिं छुवन उछरि कै।।
छूइ चरन पुनि भईं सिथिल वै।
पार भए बसुदेव अभय ह्वै।।
     राम हेतु जस सागर-नीरा।
     वैसै भे जमुना-जल थीरा।।
दोहा-कृष्णसिसुहिं बसुदेव लइ,सिंधु-जमुन-भव- पार।
         भव-बंधन-बन्दीगृहहिं,मुक्ती प्रभु-आधार।।
                    डॉ0हरि नाथ मिश्र।
                      9919446372

*कुण्डलिया*
कोरोना का है कहर,करती मौत तबाह,
नगर-गाँव छूटा नहीं,जहाँ न होय कराह।
जहाँ न होय कराह,लाश पर लाश पड़ी है,
दिखता नहीं बचाव,मौत घर-द्वार खड़ी है।
कहें मिसिर हरिनाथ, मचा है रोना-धोना,
छोड़ सियासी चाल,कहें भग जा कोरोना।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

नूतन लाल साहू

मौसम आते जाते है

आत्मविश्वास को न डिगा
निरंतर बढ़ते ही जा
तू अपने लक्ष्य पथ पर
मौसम तो आते जाते है
भयभीत न हो मुश्किलों से
मुश्किलें किसके जीवन में
कभी न कभी, नहीं आया है
विश्व तो उस पर भी,हंसेगा
जो मुश्किलों से घबराता है
निरंतर बढ़ते ही जा
तू अपने लक्ष्य पथ पर
मौसम तो आते जाते है
तेरी यौवन का,तेरी जीवन का
अंत तो निश्चित है
मृत्यु पथ पर भी तुम
मोद से गुनगुनाता चल
सिर्फ अपनी,धैर्य न खो
मौसम तो आते जाते है
अवहेलना से न डर
आत्मविश्वास के आगे,अपशकुन क्या
कर्म कर,कर्म फल अवश्य ही मिलेगा
मौसम तो आते जाते है
कर लें,अटल संकल्प
कर,अथक संघर्ष
शक्तियां अपनी न जांची
दोष दुनिया का नहीं है
यदि कहीं है तो,दोष मन में है
स्वर्णिम स्वप्न के लिए
जोश अपने मन में भर लें
निरंतर बढ़ते ही जा
तू अपने लक्ष्य पथ पर
मौसम तो आते जाते है

नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

 *।।रचना शीर्षक।।*
*।।दूर दूर रह कर इस कॅरोना*
*को सबक सिखाना है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
जरा अड़ियल  सा दुश्मन  ये
मुँह नहीं लगाना है।
दूर दूर रह कर  इसको  जरा
सबक सिखाना है।।
आज सलामत रहे तो   ज़मीं
को जन्नत बना देंगें।
भूल कर भी इसको हमें गले 
नहीं    लगाना  है।।
2
यह शत्रु ऐसा कि तुम  छू लो
तुम्हारा हो जायेगा।
मिलाया हाथ तो  तन   में ही
तुम्हारे खो जायेगा।।
हम सब की जंग यह    मिल
कर    लड़नी     है।
नहीं संभले गर तो यह  जहर
बहुत  बो  जायेगा।।
3
आज जुदाई   का घूँट  पियेंगे
कल बेहतर बनाने को।
आज का गलत कदम  काफी
है कल    रुलाने    को।।
ये कॅरोना खतरनाक  वायरस
अदृश्य      दुश्मन    है।
इससे आँख मिलना काफी है
मृत्यु निंद्रा सुलाने को।।
4
वक़्त नाजुक घर में बंद  रहना
बहुत     जरूरी    है।
समझो  कि यह आज  हालात
की  मजबूरी        है।।
यह युद्ध थोड़ा अलग  है  और
दूर से    हमें लड़ना।
तोड़ दी गर कॅरोना कड़ी खत्म
हो जायेगी मशहूरी है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।      9897071046
                      8218685464

।ग़ज़ल।।संख्या   87।।*
*।।काफ़िया।। आ(स्वर) ।।*
*।।रदीफ़।। हो गई है  ।।*
1
आज दूरी    ही    दवा हो      गई है।
बात मिलने    की हवा     हो गई  है।।
2
इस कातिल बीमारी ने   डेरा   डाला।
पूरी दुनिया में फैल ये वबा हो गई है।।
3
यूँ पाबन्दियों का दौर ऐसा   चला है।
जिन्दगी मानों कि सज़ा   हो गई  है।।
4
जिन्दगी का हिसाब किताब बिगड़ गया।
घर बैठना जिंदा रहने की वजहा हो गई है।।
5
वहाँ बिलकुल न जाईये जहाँ जमा हों लोग।
कॅरोना जैसे इक़ जानलेवा कज़ा हो गई है।।
6
अभी कुछ दिन बन्द रहना है घर में जरा।
इस बात के लिए सबकी रज़ा हो गई है।।
7
*हंस* भीतरआ रही हालात लड़ने की ताक़त।
अंदर सबके जमा अब अज़ा हो गई है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

वबा         मुसीबत।महामारी
अज़ा        शक्ति
क़ज़ा        मौत



।।आज का विषय। बाल कविता/बाल गीत।।*
*।।शीर्षक। बच्चों   को   चमक ही*
*चमक नहीं , रोशनी चाहिये।।*
1
बच्चों को मंहगे त्यौहार  नहीं,
उन्हें संस्कार  दीजिये।
उनको अपनी  अच्छी  सीखों,
का   उपहार  दीजिये।।
आधुनिक खिलौने तो ठीक है,
परन्तु  उनके लिए तो।
कैसे करें   बड़ों से  बात   वह,
उचित व्यवहार दीजिये।।
2
बच्चों   को   अभिमान   नहीं,
स्वाभिमान   सिखाइये।
आलस्य  नहीं    गुण    उनको,
काम    के      बताइये।।
बच्चों को   चमक   ही  चमक,
नहीं    चाहिये   रोशनी।
दिखावा नहीं आदर आशीर्वाद,
का गुणगान  दिखाइये।।
3
बच्चों को भी सिखाइये   कैसे,
बनना  है   आत्मनिर्भर।
प्रारम्भ से ही    बताइये    कैसे,
चलना है  जीवन सफर।।
अच्छी आदतें  पड़ती हैं   अभी,
कच्ची   मिट्टी    में    ही।
जरूर सुनाइये कथा साहस की,
दूर करना है उनका डर।।
4
नींव ही   समय  है    बनने   को,
बुलंद    इमारत     का।
कैसी होगी आगे  की    जिन्दगी,
उस    इबारत      का।।
आगे बढ़ने के गुण   डालिये शुरू,
से  ही    भीतर  उनके।
वह शुरू से ही  पाठ   पढ़ें मेहनत,
और     शराफत    का।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।*
मो।।।       9897071046
               8218685464

डॉ0 निर्मला शर्मा

ऑक्सीजन की कीमत 

कोरोना ने आज 
हमें ऑक्सीजन की 
कीमत समझाई है।

मानव ने किया निरन्तर,
प्रकृति का दोहन,
सजा उसी की पाई है।

साँसों का होता है
आज कारोबार
पर पेड़ों का हमने
कभी नहीं माना उपकार।

सदैव दोहन किया
 प्रकृति का
लगाए न पेड़
धरती को रौंदा।

आज उसी धरती ने
पलटकर प्रदूषण की
हानि समझाई है।

रोका न गया
प्रदूषण को अगर
जीवन की डोर
टूट जानी है।

स्वस्थ रहने के लिए
हमें धरती को
बचाना होगा।

एक-एक पौधे को
सहेज कर समाज को
मिल जगाना होगा।

साँसों की डोर
टूटे न कभी मिले
सभी को स्वच्छ वातावरण।

सिलेण्डर लगाने की
नौबत न आये मिले
सभी को सुभाषित आवरण।

पृथ्वी दिवस पर 
आज विनती है 
सभी संकल्प लें।

जीवनदायी इस ग्रह
पर बचाना है जीवन
सभी का प्रतिज्ञा करें।

डॉ0निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शीर्षक -युग बदल जायेगा

सपने खूबसूरत सच
तमस जीवन  पथ का
छँट जायेगा चहुँ ओर
सूरज का दिन
चाँद की चाँदनी का
बसेरा हो जाएगा।।

निराशा में आशा उमंग
कल्पना नही परछाई सा
संग  तुम अगर मील गए  जीवन से उद्देश्यों का विश्वास मील जाएगा।।

कठिन चुनौतियों से भी टकरा
जाएंगे तुम अगर मिल गए पथ विजय वरण करते जाएंगे।।

आग आँगर शुलों से भरे पथ में
वर्तमान के प्रकाश पल प्रहर में
आस्था का नया आयाम बता देंगे
शुलों को फूलों में बदलते जाएंगे।।
इच्छा परीक्षा की सीमाए
कर देंगे ध्वस्त तुम अगर मील गए
हर शत्रु को कर देंगे पस्त घृणा
द्वेष दंभ की दीवार गिरा देंगे
परस्पर प्रेम की दुनियां बनाएंगे।।
नए प्रभा प्रभात का नव गीत
गाएंगे विखरे हुये युग को प्रेम
संस्कृति संस्कार की काया माया से
मिलाएंगे।।
काल समय तेरे मेरे मिलन
बिरह बेदना उत्साह का
नव राग रंग तरंग का प्रसंग
युग समाज को बतलाता जाएगा।।

तुम अगर मिल गए युग उत्सव की 
परिभाषा परिणाम का पुराष्कार
मिल जाएगा।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

डा. नीलम

*नींद के ज़जीरे पर*

नींद के ज़जीरे पर
ख्वाबों का मुसाफिर
निकल पड़ा खामोश
रात के सफर पर

चॉंदनी की नदिया में
सितारों की लहरे थीं
दूर कहीं जल रहा था
आकाश दीप-सा चॉंद

खामोशियों की सरगम
पर हवाओं की रागिनी
गुनगुनाती तन्हाई में
थी रुहानी आशिकी

बीती थी जो मधुयामिनी
जागने लगी फिर रात में
ख्वाब जाग कर करने लगे
प्रेमालाप अपने आप में

ख्वाबों में हम-तुम गुम
बस जाग रही थीं रुहें
ख्वाबों का मुसाफिर
नींद के ज़जीरे पर ,कर 
रहा था खामोश सफर।

       डा. नीलम

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*तीसरा*-5
    *तीसरा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
सबहिं नाथ तव लीला अहहीं।
निमिष-बरस व काल जे रहहीं।।
     तुमहिं सक्ति-कल्यान-निधाना।
     तुम्हरे सरन नाथ मैं आना।।
जीवहि मृत्युग्रस्त रह लोका।
मृत्यु-ब्याल भयभीत ससोका।
     भरमइ इत-उत बहुतै भ्रमिता।
     अटका-भटका बिनु थल सहिता।।
बड़े भागि प्रभु पदारबिंदा।
मिली सरन यहिं नाथ गुबिंदा।।
   सुत्तइ जिव अब सुखहिं असोका।
   भगी मृत्यु तजि जगहिं ससोका।।
तुमहिं त नाथ भगत-भय-हारी।
करहु सुरच्छा बाँकबिहारी।।
    दुष्ट कंस भयभीता सबहीं।
    सबहिं क करउ अभीता तुमहीं।।
नाथ चतुर्भुज दिब्यहि रूपा।
सबहिं न प्रकटेऊ रूप अनूपा।।
    दोऊ कर जोरे मैं कहहूँ।
     पापी कंस न जानै तुमहूँ।।
धीरज भवा मोंहि तव छूवन।
रच्छ माम तुम्ह हे मधुसूदन।।
   पर डरपहुँ मैं कंसहिं अबहीं।
   तव अवतार न जानै जगहीं।।
रूप अलौकिक अद्भुत मोहै।
पंकज-गदा-संख-चक सोहै।।
     सकै न जानि चतुर्भुज रूपा।
     कंस दुष्ट-खल-करम-कुरूपा।।
रखहु छिपा ई रूप आपनो।
सुनो जगात्मन मोर भाषनो।।
दोहा-कहहिं देवकी मातु पुनि,बहुत कृपा प्रभु तोर।
        पुरुष तुमहिं परमातमा,आयो गर्भहिं मोर।।
        भई धन्य ई कोंख मम,धारि तुमहिं हे नाथ।
         अद्भुत लीला तव प्रभू, नमहुँ नवाई माथ।।
                         डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

एस के कपूर श्री हंस

।।ग़ज़ल।।संख्या  85।।*
*।।काफ़िया।। आर ।।*
*।।रदीफ़।।  बने ।।*
1
रुक कर घर में    जीत के  दावेदार बने
सावधानी का   दूसरों को इश्तिहार बने
2
सलीकाअभी जीने का कुछ बदलना पड़ेगा
आप इस मुसीबत में इक़ सिपहसालार बने
3
ऐसी क्या मजबूरी जिन्दगी से ज्यादा जरूरी
क्यों अपनों के लिए ही आप सितमगार बने
4
खुद से खुद पर ही  लगाओ जरा  पाबंदी
आप खुद से ही  जरा अपनी सरकार बने
5
यह जान लेवा खूनी    महामारी बीमारी में
जरा हुकूमत के आप भी इक़ मददगार बने
6
क्या जरूरी है बेवजह   बाहर घूमना फिरना
आप इस कॅरोना कड़ी तोड़ने के सरदार बने
7
इस मुश्किल घड़ी मेंअदा करना है फ़र्ज़ अपना
मत आप यूँ   इंसानियत    के   कर्जदार बने
8
यह वक़्ती बीमारी चाहतीआपकी जिम्मेदारी
बन कर समझदार आप देश के वफादार बने
9
*हंस* आपको अदा करनी अपनी पूरी अक्लमंदी
इस खूनी कॅरोना रोकने की आप इक़ दीवार बने

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464

।।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना संकट।।घर में रहना*
*ही आज की, सबसे बड़ी*
*सच्चाई और जरूरत है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
वजह बेवजह    हाथों को 
धोते    ही   रहिये।
घर पर ही काम करतेऔर
सोते   भी    रहिये।।
यही तो ज़रूरत   है आज
की    सबसे    बड़ी।
सावधानियों से   लगातार
परिचित होते रहिये।।
2
घर पर  ही   टिके  रहने में
ही  बहुत    भलाई  है।
इस कॅरोना काल में जीवन
में उधड़ी हुई सिलाई है।।
यह दौर नाज़ुकऔर कटेगा
बस    बचाव   से    ही।
यही ध्यान रहे कि समय से 
लेनी संबको दवाई  है।।
3
इक बात कॅरोना ने     सभी
को सिखलाई        है।
प्रकृति से नाता  जोड़ने  की
राह   दिखलाई      है।।
धन अर्जन से   भी   अधिक
जरूरी स्वास्थ्य रक्षा।
इस महामारी ने बात ये खूब
ही  बतलाई        है।।

*रचयिता।एस के कपूर"श्री हंस*"
*बरेली।*
मोब।            9897071046
                    8218685464

भुवन बिष्ट

"( रचना- शारदे वंदना )
विनय करूँ माता वीणावादनी। 
जय जय शारदे माँ वरदानी।। 
            मातु सदा ही वाणी विराजे।
            हाथ सदा ही वीणा साजे।। 
हंस वाहिनी माँ कहलाती। 
राह सदा ही माँ दिखलाती। 
            जय जय शारदे ज्ञान की दानी। 
            जय वीणापाणी माँ वरदानी।। 
अंधकार जग से मिट जाये। 
ज्ञान दीप मन में जल जाये।।
            जब जब बजती वीणा की झंकार।
            चहुं दिशा में ज्ञान का होता संचार।
सदमार्ग साहस सदा ही देना।
आलोकित हर पथ कर देना।। 
             नित वंदन करते सब ध्यानी। 
             जग पूजे सब जग के ज्ञानी।।
विनय करूँ माता वीणावादनी। 
जय जय शारदे माँ वरदानी।।      
             ...........भुवन बिष्ट
            रानीखेत (उत्तराखंड)

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

अविनि की पुकार

पृथ्वी कहती है मानव
मैं तेरी जननी माँ जैसी
माँ तो सिर्फ नौ माह कोख
में रखती ।।
अविनि मैं जीवन भर
तेरा पोषण लालन पालन
करती तू मेरे बक्ष को
चीरता अन्न दाता कहलाता।।
जब भी चीरता मेरा बक्ष
असह वेदना सहती 
फिर भी कुछ ना कहती
जल वन पहाड़ मेरे ही
श्रृंगार।।
मांग उजड़ जाती माँ की
करते चीत्कार 
मेरी सोलह श्रृंगार जल 
वन पहाड़ बृक्ष आधार।।
अंधा धुंध रोज काटते हरियाली
मेरी मुझको पल प्रहर
करते तार तार।।
जल मेरा अस्तित्व 
प्राण जल का करते
दुरपयोग आने वाली
तेरी ही पीढ़ियां जल
जीवन के लिये
युद्ध लड़ेगी अब दिन
बहुत नही दूर।।
मैं अविनि मेरी ताकत
शक्ति को छीन रहे हों
पल पल मैं हो रही कमजोर।।
ऋतुएं मौसम मेरे कर्म धर्म
ऋतुओं मौसम ने भी
लिया मुझसे ही मुहँ मोड़।।
मैं नही चाहतीं की तेरा
अहित हो मैं बेवस लाचार।।
जीव जंतु जो पृथ्वी
प्राकृति के प्राण आधर
जंगल काट काट कर
कर दिया उनको विलुप्त बेघर।।
विलुप्त हो गयी जाने
कितने ही प्राणि अब
इतिहास के पन्नो दादी
नानी के किस्सों में मशहूर।।
मानव मैं पृथ्वी अविनि धारा
करती हूँ तेरा आवाहन
 मेरा संरक्षण संवर्धन
तेरा सर्वोत्तम भविष्य वर्तमान।।
ध्वनि प्रदूषण वायु प्रदूषण
जल प्रदूषण प्रदूषण से
सांसत आफत में मेरा
अस्तित्व प्राण।।।                    

अविनि
तेरी जननी जैसी कर 
मेरा उद्धार लाज बचाओ
मेरी मैं तेरे माँ जैसी सुन
रही पुकार।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर 
गोरखपुर उत्तर प्रदेश

किताब---

किताब काल तिथि वर्तमान
पुस्तक पूर्ण वास्तविक युग
दर्शन होती ना किताब युग
होता स्वयं सेअंजान।।
संस्कृति संस्कार सभ्यता 
अतीत वर्तमान ना होता धर्म
कर्म का कोई युग यथार्थ
किताब वक्त काल का दर्पण
पहचान।।
गीता ,कुरान ,बाइबल ,गुरुबानी
किताब हाथ रख कर सच्चाई
की कसमें खाता मानव मर मिटता
किताब ही जीवन मूल्य मर्यादा 
मान।।
किताब ज्ञान का दीपक किताब
अन्वेषक आधार किताबों से ही
निकला ना जाने कितने शोध 
साक्ष्य का सत्य विज्ञान।।
किताब से युग काल का शुरू अंत 
जीवन कदमो का दिया चिराग किताब
पद चाप किताब  निश्चय दिशा प्रवाह किताब।।
किताब कर्म की जननी धर्म धैर्य
आस्था विश्वास किताब प्रेरणा प्रेरक
किताब युग सत्य मर्म का साक्ष्य।।
किताब सुरक्षित युग काल सुरक्षित
वर्तमान अतीत का भाव मूल्य 
अर्थ भविष्य का मार्ग अक्षुण अक्षय
भविष्य का मार्ग सुरक्षित।।
संविधान किताब जिसकी
शपथ लेता राजा राज्य प्रधान
संसय भय का निर्णय किताब
किताब युग काल समय की
परिभाषा हिसाब।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(पृथ्वी/धरा)
कहे धरा अब हाथ जोड़कर,
आओ लाल बचा लो मुझको।
नहीं रहूँगी तो क्या होगा-
आता नहीं समझ में तुझको??

देखो हवा बहे जहरीली,
जल का स्तर घटता जाए।
नहीं ठिकाना शरद-ग्रीष्म का,
सिंधु-नीर भी बढ़ता जाए।
वन-वृक्षों का रूप भयावह-
द्रवित नहीं क्या करता सबको??
       आता नहीं समझ में तुझको??

नहीं हवा जब शुद्ध बहेगी,
नहीं नीर भी मिल पाएगा।
ऋतु वसंत जब नहीं रहेगी,
पुष्प बाग क्या खिल पाएगा?
क्या होगा जब नदी न होगी-
इसका क्या आभास न जग को??
       आता नहीं समझ में तुझको??

अभी वक़्त है मुझे बचा लो,
वरन, सभी जन पछताओगे।
जीना दूभर होगा इतना,
बिना अन्न-जल मर जाओगे।
मैं हूँ तो अस्तित्व है तेरा -
कहती फिरूँ सतत जन-जन को।।
     आता नहीं समझ में तुझको??

जल से जीवन,जीवन से जग,
अखिल जगत मेरे सीने पर।
नदी नहीं तो नीर नहीं है,
जीवन बचता जल पीने पर।
सभी बचा लो वन-वृक्षों को-
कहती पृथ्वी खोजो हल को।।
    आता नहीं समझ में तुझको??
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372


तीसरा-6
  तीसरा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-6
सुनु हे देबी कह भगवाना।
भवा जगत जब तुम्हरो आना।।
    प्रथम जनम मन्वंतर भवई।
    पहिला नाम प्रिस्न तव रहई।।
प्रजापती सुतपा बसुदेवा।
नामहिं तासु सकल जग लेवा।।
    दोऊ जन रह सुचि उरगारी।
    दिब्य रूप प्रभु परम पुजारी।।
लइके ब्रह्मा कै उपदेसा।
देउ जनम संतान निदेसा।।
    दोऊ जन हो इन्द्रिय-निग्रह।
    कीन्ह तपस्या प्रभुहिं अनुग्रह।।
बायुहिं-घाम-सीत अरु बरसा।
गरमी सहत रहेउ चित हरषा।।
   करत-करत नित प्रणायामा।
   कियो हृदय-मन अति सुचि धामा।।
सुष्क पात खा,पवनहिं पाना।
चितइ दूइनू सांति-निधाना।।
     तुम्ह सभ कियो अर्चना मोरी।
     सीष झुकाइ उभय कर जोरी।।
दस-दूइ-सहस बरस देवन्ह कै।
कीन्ह तपस्या तुम्ह सूतन्ह कै।।
    सुनहु देबि हे परम पुनीता।
     दुइनउ जन लखि भगति अभीता।।
तव अभिलाषा पूरन हेतू।
प्रगटे हम हे नेह निकेतू।।
    माँगेयु तुम्ह सुत मोरे जैसा।
     रचा खेल अद्भुत मैं ऐसा।।
तुम्ह न रहेउ रत भोग-बिलासा।
रही नहीं सन्तानहिं आसा।।
    बर व मोच्छ नहिं हमतें माँगा।
    माँगा सुत जस मोंहि सुभागा।।
'एवमस्तु' कह तब मैं निकसा।
तुम्ह सभ भए भोग-रत-लिप्सा।।
     'प्रश्निगर्भ' तब रह मम नामा।
      माता-पिता तुमहिं बलधामा।।
दूसर जनम 'अदिति'तुम्ह रहऊ।
कस्यपु मुनि बसुदेवइ भयऊ।।
    तबहूँ रहे हमहिं सुत तोरा।
    नाम 'उपेंद्र'रहा तब मोरा।।
अति लघु तन तब मोरा रहई।
'बामन'मोंहि जगत सभ कहई।।
     पुनि मम जनम भवा जब तीसर।
      सुनहु देबि मैं कृष्न न दूसर।।
तव समच्छ प्रगटे यहि रूपा।
भूलउ ताकि न मोंहि अनूपा।।
दोहा-भाव देवकी तुम्ह सबहिं,रखेउ पुत्र अरु ब्रह्म।
         मोरे सँग श्रद्धा सहित,बिनू भरम अरु मर्म।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

एस के कपूर श्री हंस

*।।ग़ज़ल।।संख्या 86 ।।*
*।।काफ़िया।।      आर।।*
*।। रदीफ़।।          थी  ।।*
1
गज़ब के  दिन और रात  गुलज़ार थी
मिलने जुलने का दौर  और बहार थी
2
रोक टोक की तो कोई   बात  छोड़िये
जैसे अपना राज़ अपनी   सरकार थी
3
पिज़्ज़ा बर्गर चाट मसालाओ समोसा
रोग प्रतिरोधकता की नहीं दरकार थी
4
घर का खाना   नियमित   दिन   चर्या
यह बात तो संबको लगती  बेकार थी
5
प्रकृति का दोहन  और शोषण चलता
किसी की न पेड़ बचाने की पुकार थी
6
खूब थी  रौनक  जिन्दगी के  सफ़र में
दोस्ती दुश्मनी   एक बेजा औज़ार थी
7
खुशी ही खुशी    बिखरी थी हर तरफ
फिर भी जाने क्यों  जिंदगी  बेज़ार थी
8
जब हमने टटोला  मसले को अंदर तक
हवा पानी पेडपौधों से दूरी बरक़रार थी
9
*हंस* जब आई   यह    कॅरोना महामारी
देखा जीनेका तरीका हम पे हथियार थी
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464
।।रचना शीर्षक।।*
*।।भाग्य फल नहीं,कर्म फल है*
*सफलता की कुँजी।।*
*।।विधा ।।मुक्तक।।*
1
हौंसले मुसीबत में   ताकत 
की  दवा   देते हैं।
जो रखते हैं जरा संयम  वो
जंग जीत लेते हैं।।
माना कि बुरा वक्त  सताता
पर है सिखाता भी।
वही हुऐ  सफल जो  हमेशा
वक़्त से     चेते  हैं।।
2
वक़्त ख़राब हो पर  ये  बीत 
ही    जाता       है।
हमारी आंतरिक   शक्ति  को
बना मीत लाता है।।
नहीं घबराते जो यूँ ही  किसी
भी   कठनाई   से।
वही आगे चल कर   सफलता
गीत    गाता   है।।
3
स्नेह संवाद से रिश्तों  की जरा
तुरपन   करते रहें।
सदैव अपना सर्वश्रेष्ठ  ही आप
समर्पण करते रहें।।
मन से आप सम्पन्न बनाये सदा
अपने  आप     को।
आप अपना आत्म  अवलोकन
दरपन  करते   रहें।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

रश्मि लता मिश्रा

कोरोना हाहाकार

कहीं ऑक्सीजन की कमी
कही कम पलँग की व्यवस्था
तनाव बढ़ रहा प्रति दिन
कैसे होगी सुरक्षा।

भ्रष्टाचार में लिपटे 
मानव रूप में दानव हैं
इन्हें मतलब नही पुण्य पाप
वो पेट नोटों से भरता।

हुए घर खाली रेे खाली
जो कल तक चहका करते थे।
हाल है आज उस घर एक
दिया तक भी नही जलता।

कैसी ये आपदा जो बन कहर
धरती पे आई है।
लगता डर बड़ा कितना
जो घर से कोई निकलता।

त्राहिमाम त्राहिमाम शोर
मचता  जाए चारों ओर
सहारा चार कांधो का
जनाजे को नही मिलता।

न कोई कर्म न ही कांड
सब बेकार हो बैठे
जाने किस जनम का पाप
आज धोए नही धुलता।

सुनो तुम प्रार्थना मेरी
हो जग के तुम ही पालनहार
कहो कैसे मनाए हम
हमारा वश नही चलता।

करो तुम मुक्त इस जग को
कोरोना से,
प्रभु तेरी मर्जी बिन
तो पत्ता तक नही हिलता।

रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर सी जी

नूतन लाल साहू

अगर तुम मिल गये

प्रेमी ने प्रेमिका से कहां
मै तुम्हारे लिए
आसमान से तारे
तोड़कर ला सकता हूं
सूरज का सिर 
फोड़कर दिखा सकता हूं
तुम कहो तो
हिमालय की बर्फ जला दूं
इशारा करो तो
समुद्र में डुबकी लगा दूं
पर, उस जनाब से प्रश्न है कि
विवाह के उपरांत
क्या आदर्श पति के
कर्तव्य निर्वाह कर सकता है
क्योंकि ये किस्सा कहानी नहीं है
हमारे हिंदू धर्म के अनुसार
जन्मोजन्म का
जीवनसाथी होता है
और माता पिता तो
साक्षात ईश्वर का रूप होता है
उसके लिए,भावुक क्यों
 नहीं होता है
प्रेमी और प्रेमिका का जीवन
कुछ वर्षो तक तो
सुखमय रहता है
पर शादी होने के बाद
अक्सर बर्बादी शुरू होता है
इसका किसी को भी
पहले से पता नही चलता है
इसीलिए मैं सच कहता हूं
अगर शंकर पार्वती और
राधा कृष्ण,सीता राम जैसे
जीवन साथी मिल जाये तो
जीवन का हर दुःख
एक नया इतिहास लिखता है

नूतन लाल साहू

कबीर ऋषि

★ये कैसी सरकार है★ 

ये कैसी सरकार है!
अमीरों से अलग गरीबों से अलग
न जाने कैसा व्यवहार है
ये कैसी सरकार है! 

लोग अस्पतालों में मर रहे हैं
नेता जी चुनावी रैली कर रहे हैं
जनता पूरी तरह लाचार है
ये कैसी सरकार है! 

लोग रोटियों को तरस रहे हैं
रुपये तो चुनाव में बरस रहे हैं
ये तमाशा भी शानदार है
ये कैसी सरकार है! 

लोग ज़िन्दगी से लड़ रहे हैं
न जाने कितने समझौते कर रहे हैं
चारों ओर मौत का समाचार है
ये कैसी सरकार है! 

कोरोना बहुत बड़ी महामारी है
तुम्हारे लिए तो बस कुर्सी प्यारी है 
लोगों पर कैसा अत्याचार है
ये कैसी सरकार है! 

–कबीर ऋषि
सम्पर्क सूत्र- 09415911010
पता-पण्डितपुरम प्रतापनगर बांसी, सिद्धार्थनगर उत्तर प्रदेश
पिनकोड- 272153
ईमेल आईडी- kabirrishi1010@gmail.com

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल
मात्रा-भार--14
समांत---आली
पदांत-----है
यद्यपि सूरत काली है,
दिखती किंतु निराली है।।

नहीं  देखना  मुखड़े  को,
गोरा दिल का  खाली  है।।

पुष्प देखकर मन कहता,
कविता  बनने  वाली है।।

मिलें  न  उत्तर  प्रश्नों  के,
दुनिया  मात्र  सवाली  है।।

उचित सोच का लोप हुआ,
लगता  जग  कंगाली  है।।

नहीं भरोसा उसका जो,
होता  सदा  पिचाली है।।

मिले गले जो बोल मधुर,
समझो  वही  बवाली है।।
        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
            9919446372

निशा अतुल्य


विश्व पुस्तक दिवस 
23.4.2021
सच्ची मित्र~पुस्तक 
हिन्दी साहित्य अँचल मंच 2/10

पुस्तक में लिखी कहानी
एक राजा एक रानी 
हो गई चिर स्थायी 
सबने ही पहचानी ।

पुस्तक में लिखी कविता
पुष्प की अभिलाषा 
सोच, ओज बढाती
जो पढ़ें देश भक्ति में डूब जाता।

पुस्तक लिखी व्यथा थी
एक नानी का मटका थी
खो जाती थी जब चीजे
उसमें मिला करती थी ।

भूदान,निर्मला,बैल की जोड़ी
हो गई अमर कहानी
लिखी जब लेखक ने 
पुस्तक रूप में ढाली ।

सच्ची मित्र पुस्तक है 
इससे बड़ा न सत्य कोई 
जब भी राह न सूझे 
तुम पढ़ मन में ध्यान धरो 
राह आसान सी निकल ही जाएगी
तुमको राह सुझाएगी ।
बस मन में संकल्प हो अपने
ये पुस्तक मित्र है अपने ।

बदल गया है जमाना
सब ऑन लाइन ही मिल जाता
पर जो सच्चा सुख मानव
किताब पढ़ कर है आता 
वो ऑन लाइन नहीं मिल पाता ।

चलो करें संरक्षित फिर से एक बार मिलकर
कुछ किताब हम खरीदे 
कुछ पढ़े स्वयं, कुछ दे पढ़ने को दूजो को
मानसिक अवसाद से बचने का ये है एक सहारा
सच मानो मेरी बात 
पुस्तक सबसे बडी मित्र हमारी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"

विश्व पुस्तक दिवस 
23.4.2021
सच्ची मित्र~पुस्तक 
हिन्दी साहित्य अँचल मंच 2/10

पुस्तक में लिखी कहानी
एक राजा एक रानी 
हो गई चिर स्थायी 
सबने ही पहचानी ।

पुस्तक में लिखी कविता
पुष्प की अभिलाषा 
सोच, ओज बढाती
जो पढ़ें देश भक्ति में डूब जाता।

पुस्तक लिखी व्यथा थी
एक नानी का मटका थी
खो जाती थी जब चीजे
उसमें मिला करती थी ।

भूदान,निर्मला,बैल की जोड़ी
हो गई अमर कहानी
लिखी जब लेखक ने 
पुस्तक रूप में ढाली ।

सच्ची मित्र पुस्तक है 
इससे बड़ा न सत्य कोई 
जब भी राह न सूझे 
तुम पढ़ मन में ध्यान धरो 
राह आसान सी निकल ही जाएगी
तुमको राह सुझाएगी ।
बस मन में संकल्प हो अपने
ये पुस्तक मित्र है अपने ।

बदल गया है जमाना
सब ऑन लाइन ही मिल जाता
पर जो सच्चा सुख मानव
किताब पढ़ कर है आता 
वो ऑन लाइन नहीं मिल पाता ।

चलो करें संरक्षित फिर से एक बार मिलकर
कुछ किताब हम खरीदे 
कुछ पढ़े स्वयं, कुछ दे पढ़ने को दूजो को
मानसिक अवसाद से बचने का ये है एक सहारा
सच मानो मेरी बात 
पुस्तक सबसे बडी मित्र हमारी ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"

स्वेच्छिक सृजन 
वायु
24.4.2021

वायु मंद मंद बहे
पेड़ हर ओर लगे
धरा का श्रृंगार कर
स्वस्थ सांस पाइए ।

हर्षित हर मन हो
वायु शुद्ध निर्मल हो 
तन मन स्वस्थ रहे
सब को बताइए ।

प्राणायाम योग करो
थोड़ा थोड़ा रोज चलो
सांस नियंत्रित कर
क्षमता बढाइए ।

हर ओर खुशी रहे
प्राणवायु शुद्ध रहे 
बलशाली जीवन हो
वृक्ष ही लगाइए ।

स्वरचित
निशा "अतुल्य"

काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार सोनी बड़वानी म,प्र,

  शोभा सोनी 

बड़वानी जिला बड़वानी 

 मध्यप्रदेश 

 शोभांजली काव्य संग्रह

में रचना प्रकाशित

जल्दी ही मंचो पर आना प्रारम्भ किया कोई विशेष सम्मान ओर उपलब्धि अभी नही है।

कविताएं आप सभी के अवलोकन हेतु प्रस्तुत है हौसला अफजाई हेतु

मो0+91 97520 50950


विषय- होली

 रँगों की बहार छाई 

होली आई रे 


स्वरचित -


रँगों की बहार छाई ,रे होली आई रे


खुशियाँ छाई चहुँ ओर ,होली आई रे।


गोकुल में धमाल मचावें

कान्हा संग फाग मनावें

ग्वालो की टोली आई होली आई रे

रगों की बहार छाई ,होली आई रे


रँग गुलाल उड़ावे भर पिचकारी मारे फुमारी

करे बरजोरी हुड़दंग मचावें होली आई रे

रँगों की बहार छाई होली आई रे


ढोल नगाड़ा चंग बजावे

सरस् फाग रसिलो गावे

मुरली फाग रास रमावे ,होली आई रे

रंगों की बहार छाई अरे होली आई रे


गूँजया ठंडाई मेवा मिठाई

खूब लुटावे यशोदा माई

गोपियाँ प्रेम रँग भिगोई

साथ भाँग घोट लाई , होली आई रे

रँगों की बहार छाई .रे होली आई रे।


गोकुल ग्वालो की ले टोली कान्हा पहुँचे बृज को,

रँगने राधा गौरी को बृषभानु की छोरी को।

सखियाँ देख सभी हरषाई होली आई रे।

रँगों की बहार छाई,.रे होली आई रे।


ढूंढ लिया राधे प्यारी को 

पकड़ बईया रँग डाला

गोरा बदन सुकुमारी का

लाल पीला कर डाला


कान्हा बदन मस्ती छाई होली आई रे

रँगों की बहार छाई  रे होली आई रे।


शोभा सोनी

बड़वानी म,प्र,



होली 

          स्वरचित 


विषय- रँगों में प्यार मिला ले 



आओ नफरतों को मिटा दें

जीवन से उदासियाँ हटा दें


काम करे  ऐसा आशीष सबकी पालें।

न दर्द दें किसी को न घाव दिल में पालें।


गले लगायें सबको गिले - शिकवे मिटालें।

क्या गरीब क्या अमीर ये रँग भेद न पालें


इन रँगों की तरह हम भी ये फर्क मिटालें

अधरों पर हो मुस्कान सदा जीवन सुखी बनालें।


बन कर किसी का सहारा तन्हाइयाँ  मिटादें।

अबकी होली इन रँगों में थोड़ा प्यार का रँग मिलालें।


 दिल जिसमे रँगना चाहें ऐसा प्यार का रँग डालें।

कड़वाहट दूरकर,आओ रँगों में प्यार मिलालें।




शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,




होली


लेखनी की धार से


विषय- कवियों संग होली ( कोरोना) 


कौन कहता हैं कि रस कोरोना काल मे 

फीका लग रहा हैं होली का त्यौहार


हर कवि कर रहा हैं शब्दो से प्रेम गीतों की बरसात

कभी कान्हा का फाग रस तो

कभी राधे की हया की लाली


हर शब्द को बना दिया हैं 

सबने मिल सप्तरंगी रांगोली 


कौन कहता हैं कि कोरोन में हमने नही खेली होली 


हर रँग में रँगाया हैं वो जो इस पटल पर आया हैं


बड़ी कृपा इन रचनाकारों की  जिसने 


जीवन के हर पल को  सुनहरी शब्दों से सजाया हैं


कई रँग बिखेरे हैं दिल के कोरे कागज पर


रोते सिशकते बेचैन मन को 


तन्हाई से हटा ज्ञान पँखो का रँग भर उड़ना सिखाया हैं


हम भी अब इन रँगों में रँगवाने चले आय हैं 


अबकी होली हम कवियों संग मनाने चले आये है



शुक्रिया सभी कवि भाई बहनों का 


जो भाँती -भाँती के रँगों भरे शब्द बिखेर कर इस 


मंच इस पटल को रँगों से भरने आये हैं


सुना हैं ये काव्य रस चढ़  कर उतरता नहीं


हम भी इस रँग में अपना दामन रँगाने आये हैं


अबके होली हम कवियों संग मनाने आये हैं




शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,





होली

 स्वरचित कलम 


विषय- भावो के रँग


आज रँगाले आओ दिलो को  सच्चे भावो के रँग


करले वादे एक दूजे को कभी ना करेंगे तँग


जीवन के हर पथ में हम सांझा कर पार  करेंगे।


मुश्किलों की लहरों पर भी तैर कर दिखलाए गे।



गर  कभी आये गम की आंधी

आँखों मे नमी भर जाय


हिम्मत बन एक दूजे की हर  तूफ़ान से लड़ जायेगे


क्या हुआ जो आज गुलाल रँग नही लग पाया


तेरी प्रीत भरे भावों के रँग में हम सराबोर हो जायेगे।



अनमोल.रिश्तों की  खातिर हम 

जीवन कुर्बान कर जायेगे


ऐसे प्यारे रँगों को हम भुला नही पायगे


रंग जाएंगे प्रीत रँग में और  प्रीत में खो जायेंगे।


ये भावों के रँग हर रँग से अजीज हैं 

इन रँगों की कीमत हम चुका नही पाएंगे।


शोभा सोनी

बड़वानी म,प्र,




होली


स्वरचित विधा कविता


विषय- जीवन होली हो गया

 

अबके फ़ागुण साजना मोहें बरसाने ले चालो जी 


राधे श्याम संग हैं माने फाग राग गाणों जी


सुन्यो हैं जो भी इणसूं रँगावे 

रँग वो कभी छुड़ा ना पावें


इनको प्रेम हैं जग सु साचो

जिन पाया सु बदले मानव मन ढांचों


बिरला कोई इन को प्रेम पावें

आपणो जीवन सफल बनावें


ऐसा फाग रसिया सु हैं माने रँगणो जी 


अबके फ़ागुण रसिया माने बरसाने ले चलो जी


कोरी कोरी चुंदरी मारी

श्याम रँग रँग लगे ली प्यारी  


मारी थे रँगा दीजो चुनर

थाको कुर्तो रँगाजो जी


आपा मिल राधे श्याम जपाला 


सुण सजन मंद-मंद

मुस्काया


ले माने बरसाने आया 


देख जोड़ी राधेश्याम की

में तो धन्य धन्य हो ली 


हेली मिल ऐसो खेलयो फाग 

मेंतो बावली हो ली 


भूल गई सजना को मोपे

  रँग चटकीलो चढ़यो अनोखो


पाके दर्शन राधेश्याम के  मन उन में खो गया 


आज जीवन होली हो गया 

आज जीवन होली हो गया


शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,


शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,


कोरोना कविता आशावादी रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

 कोरोना कविता आशावादी


बाहर न जाओ!


सांस थम रही है, बाहर न जाओ,

घूम रहा वायरस, बाहर न जाओ।

उजड़ रही  दुनिया, कुछ तो डरो,

मरोगे  बे- मौत, बाहर न  जाओ।

मौत से न खेलो,सरकार की सुनो,

तोड़ो न मेरा दिल,बाहर न जाओ।

वीरान  हो रहा है, शहर  का शहर,

बचो और बचाओ,बाहर न जाओ।

ये लम्हें ज़िन्दगी के बहुत  कीमती,

उजड़े न घर अपना,बाहर न जाओ।

मझधार में  फंसी यह  देख  दुनिया,

न डूबे कहीं कश्ती, बाहर न जाओ।

रहोगे  जिन्दा, तो  सब पा  जाओगे,

पर मौत को बुलाने, बाहर न जाओ।

मास्क  पहनो  औ  फासले  से  रहो,

मना खैर दुश्मन की,बाहर न जाओ।

आँक्सीजन,वेंटिलेटर की देखो कमी,

बरस  रही है  मौत, बाहर न  जाओ।

ज़िन्दगी औ  मौत  के बीच हम खड़े,

माहौल  है  खराब , बाहर  न  जाओ।


रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई


इन दिनों!


बेखौफ़  हो गए हैं  परिन्दे  इन दिनों,

इंसान डर रहा है,इंसान से इन दिनों।

कोरोना   लाया   वायरस   का  रेला,

बे-मौत  मर   रहा इंसान  इन  दिनों।

दिशा-निर्देश का न करते जो पालन,

वही  हैं  ज्यादा  परेशान,  इन  दिनों।

बरस   रही  है   मौत  सारे   जहां  में,

दुनिया हो रही  है  वीरान, इन  दिनों।

चीख -चीत्कार का उसपे असर नहीं,

लाश  से दबी  कब्रिस्तान, इन दिनों।

श्मशान  रो  रहा  मुर्दों  को  देखकर,

खाली  हो रहा है  मकान  इन  दिनों।

मोटर -  कार,   रेल  के   चेहरे   उड़े,

हो रहा  है भारी नुकसान  इन  दिनों।

टूटेगी  चैन  उसकी रहो  सभी घर में,

यक़ीनन   मरेगा  हैवान,  इन   दिनों।


रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई


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