"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सुषमा दीक्षित शुक्ला
निशा अतुल्य
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार चंदन अंजू मिश्रा जमशेदपुर
चंदन अंजू मिश्रा
पता: जमशेदपुर
कृतियां: द फर्स्ट स्टेप, डैडी सहित 7 पुस्तकों में कृतियां ।
चंदन :सुगंध शब्दों की का प्रकाशन
सम्मान :राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित सम्मान पत्र प्राप्त
सामाजिक कार्य:रॉबिनहुड अकादमी की सदस्या
कवितायें:
1)साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
मुझे शहर की भीड़ से दूर ले जाकर,
नैनों की डोर में अपने बाँध लेना।
जो धरा है मेरे मन की बंजर हुई,
इस पर बादल बन जल बरसा देना।
सुनाकर अपने मन की सारी बातें,
संग थोड़ा रो लेंगे और थोड़ा हँसेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
ले आना तुम झुमके एक जोड़ी ,
एक जोड़ी पायल भी ले आना।
बिंदिया वो छोटी काली वाली और,
नैनों के लिए काजल भी ले आना।।
तेरी पसन्द की हुई चूड़ी, बिंदी,
साड़ी, झुमके सब मुझ पर खिलेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
जन्मों - जन्मों की बात कौन जाने,
इसी जन्म में हर वादा पूरा कर लें।
मिटा कर सारे पुराने दाग हम चलो,
एक दूसरे की ज़िंदगी रंगों से भर लें।।
भूल कर इस दुनिया की सारी बातें,
एक दूसरे की आत्मा में खोए रहेंगे।।
साजन आना उस नदी के किनारे,
साँझ को बैठ मन की बातें करेंगे।
-©चंदन "अंजू" मिश्रा
2)*रात्रि के दो पहलू*
गहराई जाती है देखो,
बीतती ही नहीं यामिनी।
पुष्प कुमुदिनी के प्रसन्न,
कि रुकी हुई है चाँदनी।।
किसी मन में व्यथा है ,
किसी मन में उल्लास है।
निशा में छुपी पीड़ा भी,
संग चाँदनी का प्रकाश है।।
किसी मन के प्रतिबिंब को,
झिंझोड़ देती है रात कृष्णा।
और किसी की चन्द्रिका ये,
मिटा देती है मन की तृष्णा।।
जिस साथी से वियोग हुआ,
व्यथित मन को वो याद आए।
रुदन करता विरह में मन,
कि ये रैना क्यों न बीत जाए।।
लेकिन ये शरद रात देखो,
चन्द्रमा को संग लाई है।
खिल उठा दिव्य ब्रह्मकमल,
सुगंध चहुँ ओर छाई है।।
-©चंदन "अंजू " मिश्रा
3)मैं नहीं हूँ कोई लेखिका,
क्योंकि मुझे नहीं करनी आती,
लेखकों की तरह गहरी बातें।
मैं तो बस लिख देती हूँ,
कभी हॄदय में चलते तूफान को,
कभी अकुलाते मन की व्यथा को,
कभी समाज में होते अन्याय को,
कभी विरह को कभी प्रेम को,
कभी कोयल की कूक को,
सड़क पर पड़े किसी गरीब के भूख को।
मैं पीड़ा में अश्रु नहीं बहाती,
नेत्रों में पड़े उन मोतियों को,
मैं स्याह रंगों में सफ़ेद पन्नों पर उकेर देती हूँ,
और बन जाती है रचना,
हाँ, उन लेखकों की तरह मैं गोल-गोल बातें नहीं कह पाती,
मुझे नहीं लिखनी आती कविताएं,
अपनी बेढंगी बातों को आवरण पहना देती हूँ बस।
-©चंदन "अंजू" मिश्रा
सुनीता असीम
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
नूतन लाल साहू
एस के कपूर श्री हंस
डॉ0 निर्मला शर्मा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
डा. नीलम
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
एस के कपूर श्री हंस
भुवन बिष्ट
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
एस के कपूर श्री हंस
रश्मि लता मिश्रा
नूतन लाल साहू
कबीर ऋषि
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
निशा अतुल्य
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार सोनी बड़वानी म,प्र,
शोभा सोनी
बड़वानी जिला बड़वानी
मध्यप्रदेश
शोभांजली काव्य संग्रह
में रचना प्रकाशित
जल्दी ही मंचो पर आना प्रारम्भ किया कोई विशेष सम्मान ओर उपलब्धि अभी नही है।
कविताएं आप सभी के अवलोकन हेतु प्रस्तुत है हौसला अफजाई हेतु
मो0+91 97520 50950
विषय- होली
रँगों की बहार छाई
होली आई रे
स्वरचित -
रँगों की बहार छाई ,रे होली आई रे
खुशियाँ छाई चहुँ ओर ,होली आई रे।
गोकुल में धमाल मचावें
कान्हा संग फाग मनावें
ग्वालो की टोली आई होली आई रे
रगों की बहार छाई ,होली आई रे
रँग गुलाल उड़ावे भर पिचकारी मारे फुमारी
करे बरजोरी हुड़दंग मचावें होली आई रे
रँगों की बहार छाई होली आई रे
ढोल नगाड़ा चंग बजावे
सरस् फाग रसिलो गावे
मुरली फाग रास रमावे ,होली आई रे
रंगों की बहार छाई अरे होली आई रे
गूँजया ठंडाई मेवा मिठाई
खूब लुटावे यशोदा माई
गोपियाँ प्रेम रँग भिगोई
साथ भाँग घोट लाई , होली आई रे
रँगों की बहार छाई .रे होली आई रे।
गोकुल ग्वालो की ले टोली कान्हा पहुँचे बृज को,
रँगने राधा गौरी को बृषभानु की छोरी को।
सखियाँ देख सभी हरषाई होली आई रे।
रँगों की बहार छाई,.रे होली आई रे।
ढूंढ लिया राधे प्यारी को
पकड़ बईया रँग डाला
गोरा बदन सुकुमारी का
लाल पीला कर डाला
कान्हा बदन मस्ती छाई होली आई रे
रँगों की बहार छाई रे होली आई रे।
शोभा सोनी
बड़वानी म,प्र,
होली
स्वरचित
विषय- रँगों में प्यार मिला ले
आओ नफरतों को मिटा दें
जीवन से उदासियाँ हटा दें
काम करे ऐसा आशीष सबकी पालें।
न दर्द दें किसी को न घाव दिल में पालें।
गले लगायें सबको गिले - शिकवे मिटालें।
क्या गरीब क्या अमीर ये रँग भेद न पालें
इन रँगों की तरह हम भी ये फर्क मिटालें
अधरों पर हो मुस्कान सदा जीवन सुखी बनालें।
बन कर किसी का सहारा तन्हाइयाँ मिटादें।
अबकी होली इन रँगों में थोड़ा प्यार का रँग मिलालें।
दिल जिसमे रँगना चाहें ऐसा प्यार का रँग डालें।
कड़वाहट दूरकर,आओ रँगों में प्यार मिलालें।
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
होली
लेखनी की धार से
विषय- कवियों संग होली ( कोरोना)
कौन कहता हैं कि रस कोरोना काल मे
फीका लग रहा हैं होली का त्यौहार
हर कवि कर रहा हैं शब्दो से प्रेम गीतों की बरसात
कभी कान्हा का फाग रस तो
कभी राधे की हया की लाली
हर शब्द को बना दिया हैं
सबने मिल सप्तरंगी रांगोली
कौन कहता हैं कि कोरोन में हमने नही खेली होली
हर रँग में रँगाया हैं वो जो इस पटल पर आया हैं
बड़ी कृपा इन रचनाकारों की जिसने
जीवन के हर पल को सुनहरी शब्दों से सजाया हैं
कई रँग बिखेरे हैं दिल के कोरे कागज पर
रोते सिशकते बेचैन मन को
तन्हाई से हटा ज्ञान पँखो का रँग भर उड़ना सिखाया हैं
हम भी अब इन रँगों में रँगवाने चले आय हैं
अबकी होली हम कवियों संग मनाने चले आये है
शुक्रिया सभी कवि भाई बहनों का
जो भाँती -भाँती के रँगों भरे शब्द बिखेर कर इस
मंच इस पटल को रँगों से भरने आये हैं
सुना हैं ये काव्य रस चढ़ कर उतरता नहीं
हम भी इस रँग में अपना दामन रँगाने आये हैं
अबके होली हम कवियों संग मनाने आये हैं
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
होली
स्वरचित कलम
विषय- भावो के रँग
आज रँगाले आओ दिलो को सच्चे भावो के रँग
करले वादे एक दूजे को कभी ना करेंगे तँग
जीवन के हर पथ में हम सांझा कर पार करेंगे।
मुश्किलों की लहरों पर भी तैर कर दिखलाए गे।
गर कभी आये गम की आंधी
आँखों मे नमी भर जाय
हिम्मत बन एक दूजे की हर तूफ़ान से लड़ जायेगे
क्या हुआ जो आज गुलाल रँग नही लग पाया
तेरी प्रीत भरे भावों के रँग में हम सराबोर हो जायेगे।
अनमोल.रिश्तों की खातिर हम
जीवन कुर्बान कर जायेगे
ऐसे प्यारे रँगों को हम भुला नही पायगे
रंग जाएंगे प्रीत रँग में और प्रीत में खो जायेंगे।
ये भावों के रँग हर रँग से अजीज हैं
इन रँगों की कीमत हम चुका नही पाएंगे।
शोभा सोनी
बड़वानी म,प्र,
होली
स्वरचित विधा कविता
विषय- जीवन होली हो गया
अबके फ़ागुण साजना मोहें बरसाने ले चालो जी
राधे श्याम संग हैं माने फाग राग गाणों जी
सुन्यो हैं जो भी इणसूं रँगावे
रँग वो कभी छुड़ा ना पावें
इनको प्रेम हैं जग सु साचो
जिन पाया सु बदले मानव मन ढांचों
बिरला कोई इन को प्रेम पावें
आपणो जीवन सफल बनावें
ऐसा फाग रसिया सु हैं माने रँगणो जी
अबके फ़ागुण रसिया माने बरसाने ले चलो जी
कोरी कोरी चुंदरी मारी
श्याम रँग रँग लगे ली प्यारी
मारी थे रँगा दीजो चुनर
थाको कुर्तो रँगाजो जी
आपा मिल राधे श्याम जपाला
सुण सजन मंद-मंद
मुस्काया
ले माने बरसाने आया
देख जोड़ी राधेश्याम की
में तो धन्य धन्य हो ली
हेली मिल ऐसो खेलयो फाग
मेंतो बावली हो ली
भूल गई सजना को मोपे
रँग चटकीलो चढ़यो अनोखो
पाके दर्शन राधेश्याम के मन उन में खो गया
आज जीवन होली हो गया
आज जीवन होली हो गया
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
कोरोना कविता आशावादी रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
कोरोना कविता आशावादी
बाहर न जाओ!
सांस थम रही है, बाहर न जाओ,
घूम रहा वायरस, बाहर न जाओ।
उजड़ रही दुनिया, कुछ तो डरो,
मरोगे बे- मौत, बाहर न जाओ।
मौत से न खेलो,सरकार की सुनो,
तोड़ो न मेरा दिल,बाहर न जाओ।
वीरान हो रहा है, शहर का शहर,
बचो और बचाओ,बाहर न जाओ।
ये लम्हें ज़िन्दगी के बहुत कीमती,
उजड़े न घर अपना,बाहर न जाओ।
मझधार में फंसी यह देख दुनिया,
न डूबे कहीं कश्ती, बाहर न जाओ।
रहोगे जिन्दा, तो सब पा जाओगे,
पर मौत को बुलाने, बाहर न जाओ।
मास्क पहनो औ फासले से रहो,
मना खैर दुश्मन की,बाहर न जाओ।
आँक्सीजन,वेंटिलेटर की देखो कमी,
बरस रही है मौत, बाहर न जाओ।
ज़िन्दगी औ मौत के बीच हम खड़े,
माहौल है खराब , बाहर न जाओ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
इन दिनों!
बेखौफ़ हो गए हैं परिन्दे इन दिनों,
इंसान डर रहा है,इंसान से इन दिनों।
कोरोना लाया वायरस का रेला,
बे-मौत मर रहा इंसान इन दिनों।
दिशा-निर्देश का न करते जो पालन,
वही हैं ज्यादा परेशान, इन दिनों।
बरस रही है मौत सारे जहां में,
दुनिया हो रही है वीरान, इन दिनों।
चीख -चीत्कार का उसपे असर नहीं,
लाश से दबी कब्रिस्तान, इन दिनों।
श्मशान रो रहा मुर्दों को देखकर,
खाली हो रहा है मकान इन दिनों।
मोटर - कार, रेल के चेहरे उड़े,
हो रहा है भारी नुकसान इन दिनों।
टूटेगी चैन उसकी रहो सभी घर में,
यक़ीनन मरेगा हैवान, इन दिनों।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...