डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी
आत्मज -श्रीमती पूनम देवी तथा श्री सन्तोषी लाल त्रिपाठी
जन्मतिथि .१६ जनवरी १९९१
जन्म स्थान. हेमनापुर मरवट, बहराइच ,उ.प्र.
शिक्षा- एम.बी.बी.एस. ,
एम. एस. जनरल सर्जरी(द्वितीय वर्ष छात्र)
पता.- रूम न. 8, 100 पीजी ब्वायज हास्टल ,बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज गोरखपुर,उ.प्र.
प्रकाशित पुस्तक - तन्हाई (रुबाई संग्रह)
उपाधियाँ एवं सम्मान - साहित्य भूषण (साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी ,परियावाँ, प्रतापगढ़ ,उ. प्र.द्वारा)
शब्द श्री (शिव संकल्प साहित्य परिषद ,होशंगाबाद ,म.प्र.) द्वारा
श्री गुगनराम सिहाग स्मृति साहित्य सम्मान, (गुगनराम सोसायटी भिवानी ,हरियाणा द्वारा)
अगीत युवा स्वर सम्मान २०१४( अ.भा. अगीत परिषद ,लखनऊ द्वारा)
पंडित राम नारायण त्रिपाठी पर्यटक स्मृति नवोदित साहित्यकार सम्मान २०१५, (अ.भा.नवोदित साहित्यकार परिषद ,लखनऊ द्वारा)
जय विजय रचनाकार सम्मान(गीत विधा)2019 , जय विजय हिंदी मासिक वेब पत्रिका द्वारा।
इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक ,शैक्षणिक ,संस्थानों द्वारा समय समय पर सम्मान । पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन तथा काव्य गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनों मे निरंतर काव्यपाठ ।
१.(गीत)
उर में अवसाद है ।
चाँदी सी शुभ्र रात
हवा भी मचल रही है।
नदिया के तन पे,धवल-
चाँदनी फिसल रही है।
पूर्ण प्रकृति, रिक्त हृदय ,
कैसा अपवाद है। ?
उर में अवसाद.........
नैनों में बाढ़ हुई ,
उर मे पतझार हुआ।
टूट चुके सपनों को ,
पीड़ा से प्यार हुआ ।
मौन हुए ,गीतों का ,
निष्फल संवाद है ।
उर में अवसाद ...।
कोयल की कुंजन से,
भौरों के गुंजन से ।
एक नव बसंत हुआ,
महक चली उपवन से।
जल भुन बैठा जवास ,
चहुँ दिशि उन्माद है ।
उर में अवसाद.......
२.(गीत)
क्षितिज तीर पीड़ा के गहरे से चित्र हुए ,
ज्यों ज्यों गहराने लगी, जाड़ों की रात है।
अल्पायु दिन बीता ,लंबी सी रात हुई ।
ठिठुर गयें पेड़ों से,शीत की बरसात हुई।
घाम और कुहरा जब आपस में मित्र हुए,
सूरज बिन गायब अब सर से जलजात है।
क्षितिज तीर .........................
कुत्तों की कुकुराहट ,हूँकते सियारों से।
निष्ठुर सी रात हुई , हिम भरी बयारों से।
भटकी सी लोमड़ी के हाल भी विचित्र हुए,
कौं-कौं कर ढूँढ रही बिल नही सुझात है ।
क्षितिज तीर.........................
बलवती बयार हुई, कथरी कमजोर लगे ।
हर तरफ से सेंध करे ,जाड़ा एक चोर लगे।
अतिथि कलाकार सरिस धूप के चरित्र हुए,
पता नही कब आये,कब ये चली जात है।
क्षितिज तीर.............................
३.(गीत)
कोशिशें बहुत करीं पर ,कुंभकरण जागे नही ।
अंत में परिणाम आया ,ढाक के बस तीन पात।
देकर के आसरा हर बार वो टरकाते रहे ।
तब भी हम ऊसर में बीज नित बहाते रहे।
भैंसो के आगे हम बीन भी बजाते रहे ।
बहरों के आगे हम मेघ राग गाते रहे ।
फिर हमने जाना बाँझ जाने क्या प्रसव की बात।
अंत में परिणाम आया...........................।
कुर्सियों कें खटमल,मोह खून का न छोड़ सके।
पीड़ा के व्यूह का एक द्वार भी न तोड़ सके।
अंहकार पद का था ,रास्ते भी भटक गये ,
मोड़ने चले थे धार,नाली तक न मोड़ सके ।
बुझा के मशाल बने चोर, देख काली रात ।
अंत में परिणाम आया.........................।
अपनी तो पीर हुई, गैर की तमाशा है ।
शासन तिमिर का है ,दीप को निराशा है।
गिद्धों के अनुगामी, तंत्र में विराजमान,
लाशों की टोह करें, इस तरह पिपासा है ।
उल्लुओं ने राय रक्खी ,रोकों भावी प्रभात !
अंत में परिणाम..............................
४.(गीत)
पनपे कंकरीट के जंगल, बड़े मंझोले पेड़ काटकर,
पीपल की बरगद से चाहकर बात नही होती ।
सावन की पुरवैय्या सूनी ।
दादी की अंगनैय्या सूनी ।
सरिता का संगीत शोकमय,
बंधी घाट पर नैय्या सूनी ।
महुए की सुगंध से महकी रात नही होती ।
पीपल की बरगद.............................
कहीं खो गये कोयल ,खंजन।
दूर हो गये झूले सावन ।
उजड़ रहे वन बाग नित्यप्रति,
उजड़े धरती माँ का आँगन ।
अब कतारमय क्रौंचो की बारात नही होती।
पीपल की बरगद.........................
फीकी बारिश की बौछारें ।
धूमिल रंग धरा के सारे ।
अब मानव कृत्रिम में खुश है,
प्राकृतिक से किये किनारे ।
मलयज वायु सुरभित सुंदर प्रात नही होती ।
पीपल की बरगद से .......................
५.(गीत)
हृदय व्याकुल, नैन में घन-घोर,वो आये नहीं।
कोशिशें मैंने करी पुरजोर,वो आये नहीं ।
कोयलों ठहरों ,सुनो, मत गीत गाओ!
मधुकरों कलियों पें तुम मत गुनगुनाओं!
हो रहा है कर्णभेदी शोर, वो आये नहीं।
कोशिशें …………………….
भीड़ में दिन कट गया फिर, रात तनहा आ गई।
अंधेरे की एक चादर ,मेरे मन पे छा गई ।
कल्पनाएँ हो गई कमजोर,वो आये नही ।
कोशिशें…………………
गिन के तारे रात काटी ,चाँद बूढ़ा हो गया।
ओड़कर ऊषा की चादर,तिमिर देखो सो गया।
आ गया किरणों को लेके भोर, वो आये नहीं।
कोशिशें…………………………….
आ गया पतझार बूढ़ा,पात पीले हो गये ।
हो चुके बेरंग उपवन, देख मधुकर रो गये ।
टूटती साँसो की हर दिन डोर,वो आये नहीं ।
कोशिशें ……………
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी