एस के कपूर श्री हंस

।।रचना शीर्षक।।*
*।।प्रभु ने यह जीवन दिया है*
*किसी के उद्धार के लिए।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
इंसान   की   बातों    से इंसान
का पता चलता है।
उजालों के   बाद      रातों  का
पता    चलता   है।।
वक़्त चेहरे   से   चेहरे    उतार
कर    देता  है रख।
कर्मों से   व्यक्ति भाग्य   खातों
का पता चलता है।।
2
ईश्वर ने सांसें दी है इस   संसार
में सरोकार के   लिए।
यह जीवन मिला है     सहयोग
परोपकार के।   लिए।।
केवल खुद के लिए  ही   जीना
पर्याप्त    नहीं   होता।
प्रभु ने जन्म दिया   पीडित  को
खुशी उपहार के लिए।।
3
जानलो कर्मों की फसल संबको
काटनी    पड़ती    है।
अपनी करनी   भी   संबको   ही
छाँटनी    पड़ती    है।।
अपना किया सबको  भोगना ही
है                 पड़ता।
इसी जीवन में अपनी   भूल हमें
चाटनी    पड़ती    है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।      9897071046
                      8218685464


।विषय।।दर्पण।।*
*।।रचना शीर्षक।। दर्पण*
*न्यायाधीश है ,सच और झूठ*
*दिखाने का।।*
*विधा।।मुक्तक।।*
1
मन से पूछो   कि  मन   में
क्या    रहता     है।
जान लो कि    मन में  प्रभु
का वास बहता है।।
मन की सुनो      कि    मन
झूठ   बोलता नहीं।
ईश्वर भीअंतर्मन को *दर्पण*
कहता            है।।

*दर्पण*    सच   का   केवल
शीशा ही नहीं है।
तेरे सामने    बताता  कि तू
गलत    कहीं  है।।
*दर्पण* न्यायाधीश  है सच
और    झूठ   का।
दिखाता *दर्पण*  कि  सत्य
यहीं   वहीं     है।।

टुकड़े टुकड़े      होकर   भी
*दर्पण* रुकता नहीं है।
झूठ के      सम्मुख      कोई
अंश झुकता नहीं है।।
झूठ में हिम्मत  नहीं  *दर्पण*
सामना करने    की।
क्योंकि झूठ  *दर्पण*  सामने
टिकता    नहीं   है।।

*दर्पण* बताता   कैसे आत्म
अवलोकन करना है।
सिखाता कैसे     झूठ    का
अवरोधन करना है।।
*दर्पण* को मान  कर   चलें
शिक्षक       समान।
*दर्पण* दिखाता  अंतःकरण
का शोधन करना है।।

*दर्पण* को झूठ से चिढ़ है
सत्य अर्पण कीजिये।
अपनी अंतरात्मा का    भी
रोज़  *दर्पण* कीजिये।।
प्रतिदिन स्वीकार  करें त्रुटि
*दर्पण*  समक्ष जाकर।
मान कर   देव तुल्य   आप
बस समर्पण कीजिये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।।            9897071046
                     8218685464

निधि मद्धेशिया

*समीक्षार्थ* 

नम-नयन भाव-कंठ अवरुद्ध
कर देगी प्रकृति सभी को बुद्ध। ?


मृत्यु पर क्योंकर हो, अब परिहास
जो जन गए सुरलोक, हुए खास।


सज्ज रहो शरीर, बनने को विदेह
बुन रहा जाल, काल चुनकर देह।

निधि मद्धेशिया
कानपुर
 *सुप्रभातम् काव्य-सृजन के* *सहयात्रियो 🌞🇮🇳🌹🎸🙏🏻*

मधु शंखधर स्वतंत्र

सुप्रभात.... राम राम सभी को.....🌷🌷🙏🏼
*भोर का नमन*
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब, 
मन के सारे दुख मिट जाएँ।
सूर्य क्षितिन्ज्या की लाली में,
तन मन दोनों ही मिल जाएँ।।

नहीं रुदन की आवाजें हों,
नहीं बिलखता बचपन हो अब।
अन्तर्मन की त्रास मिटा दो,
दूरी सारी दूर करो अब।
हाथ - हाथ में हो अपनों के,
सब मिल बैठे नाचें गाएँ।
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे................।।

महाकाल का नृत्य थमे अब,
पहले सा हँसता बचपन हो।
उजड़े न घर बार किसी का,
पुष्पों से खिलता उपवन हो।
धरती पर छाए हरियाली,
ऋतुओं संग त्यौहार मनाएँ
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे.................।।

कटुता कपट कुसंगत भागे,
पर उपकारी भाव बसे अब।
समता, साहस , सरस भावना,
बस जाए जन जन के मन अब।
इर्ष्या द्वेष भुलाकर सारे,
शोभा मधु जग सहज बढ़ाएँ।
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे.................।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल
मात्रा-भार-16
समांत--आर
पदांत--चाहिए
प्रेम-भाव-व्यवहार चाहिए,
सुंदर सोच-विचार चाहिए।।

आपस में बस रहे  एकता,
ऐसा  ही  संसार  चाहिए।।

सुख-दुख में सब हों सहभागी,
मन  में  नहीं  विकार  चाहिए।।

सदा करे उत्थान देश का,
बस ऐसी सरकार चाहिए।।

स्वस्थ पौध से भरे बगीचा,
ऐसा जल-संचार चाहिए।।

वृद्ध जनों का हो सम्मान,
उनका स्नेह-दुलार चाहिए।।

सुख मिलता है मधुर बोल से,
ऐसा  शिष्टाचार  चाहिए।।
         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

तेरा ये फ़ैसला झूठा ज़रूर निकलेगा
कुसूरवार जो था बेकुसूर निकलेगा 

यक़ीं है शोख का इक दिन ग़ुरूर निकलेगा
वो मेरी राह से होकर ज़रूर निकलेगा

पलट रहा है वरक फिर कोई कहानी के 
न जाने कितने दिलों का फ़ितूर निकलेगा

पिला न साक़िया अब और जाम रहने दे 
अभी दिमाग़ में बाक़ी सुरूर निकलेगा

हमारे ख़ूं का मुक़दमा गया अदालत तो 
तुम्हारे नाम का सारा ज़हूर निकलेगा

किसी भी ख़ौफ़ की परवाह क्यों हमें *साग़र*
ये आप सोचिये किसका कुसूर निकलेगा

🖋️विनय साग़र जायसवाल
8/7/1995

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

हमारे मुल्क में ऐसी कोई सरकार आ जाये
सभी के हाथ में अच्छा सा कारोबार आ जाये

खुली सड़को पे पीते हैं शराबी बोतलें लेकर 
इलाक़े का भला ऐसे में थानेदार आ जाये

वबा की मार से हर रोज़ ही इंसान मरते हैं
करोना की दवा इस बार तो दमदार आ जाये

वगर्ना ग़म के सागर में किसी दिन डूब जायेंगे
*कहानी में ज़रूरी है नया किरदार आ जाये*

दुआएं माँ की उस लम्हा भी मेरे  साथ रहती हैं
भले तूफान में कश्ती मेरी मझधार आ जाये 

बहारें मस्त हैं चारों तरफ़ हैं वादियाँ महकी 
मज़ा हो तब अगर ऐसे में अपना यार आ जाये

वो अक्सर रूठ जाता है ख़मोशी ओढ़ लेता है 
मनाने को उसे करना मुझे मनुहार आ जाये

*चुनावी डियुटियों में हम लगा दें मंत्री सारे*
*वबा के दौर में गर हाथ में सरकार आ जाये*

हमेशा भूख से लड़ते ही देखा काश अब *साग़र* 
रईसों की सफ़ों में देश का  फ़नकार आ जाये

🖋️विनय साग़र जायसवाल
16/4/2021

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*वृक्ष*
        दोहे(पादप)
पादप की महिमा अकथ,यह धरती का प्राण।
औषधि एक अमोघ यह,करता जन-कल्याण।।

पत्र-पुष्प-फल-स्रोत तरु,करे शुद्ध जलवायु।
इसकी रक्षा से बढ़े, जीव-जंतु की आयु।।

हरियाली ही विटप की,देती हर्ष अपार।
पथिक बैठ तरु-छाँव में,पाता सुख-संसार।।

पादप ठौर-ठिकान है,नभचर-रुचिर निवास।
मधुर कंठ खग-गीत कर,सुखमय चित्त उदास।।

पत्र-पुष्प-फल,जड़-तना,पादप का हर अंश।
हैं जीवन-आधार ये,नष्ट न हों तरु-वंश ।।

प्रकृति अतुल निधि वृक्ष ये,महि-शोभा की खान।
वृक्षारोपण कर्म शुचि,मानव-धर्म महान ।।

करें प्रतिज्ञा एक ही,तरु-रक्षा-अभियान।
पादप-सेवा से मिले,भव-सुख अमिट निधान।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
               9919 44 63 72

*कुण्डलिया*
जपते रह प्रभु राम को,करें विष्णु-शिव जाप,
इसी मंत्र से मीत सुन ,कटे  सकल भव-ताप।
कटे सकल भव-ताप,मिलें खुशियाँ भी सारी,
संकट - मोचक  राम, नाम की महिमा  भारी।
कहें मिसिर हरिनाथ,  काम सब बिगड़े बनते,
घटे सदा अघ-पाप,  राम  को  जपते-जपते ।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा-3
   *चौथा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3
जब तक नर जानै नहिं अंतर।
सुख-दुख सदा रहहि अभ्यंतर।।
    जनम-मरन यहि कारन भवई।
    होतै ग्यान मुक्ति पुनि मिलई।।
'बध्य'-'बधिक' सम मन अग्याना।
देइ सतत दुख जग बिधि नाना।।
     मैं अब 'मरब'व'मारब'तुमहीं।
     अस बिचार अग्यानहिं अहहीं।।
'छमहु मोंहि तुम्ह' साधु-सुभाऊ।
दीनन्ह रच्छक सभ मन भाऊ।।
   अस कहि कंस पकरि तिन्ह चरना।
   रोवत रहा जाइ नहिं बरना ।।
तिनहिं मुक्त करि बंदी-गृह तें।
लगा दिखावन प्रेम हृदय तें।।
   देवकि लखि कंसइ पछितावा।
   दीन्ह छमा तेहिं  प्रेम सुभावा।।
भूलि क तासु सकल अपराधू।
कह बसुदेवहिं नेह अगाधू।।
    तोर बचन हे कंस मनस्वी।
    परम उचित अस कहहिं तपस्वी।
जब 'मैं' भाव जीव महँ आवै।
जीवहि ग्यान-भ्रष्ट कहलावै।।
   'तव'-'मम'-भेद तुरत उपजावै।
   'अपुन'-'पराया'-पाठ पढ़ावै।।
उपजै सोक-लोभ-मद-द्वेषा।
भय उर बसै साथ लइ क्लेसा।।
   जीव न समुझइ भगवत माया।
   रहइ सदा माया-भरमाया ।।
सोरठा-कहे मुनी सुकदेव, सुनहु परिच्छित ध्यान धरि।
           देवकि अरु बसुदेव, छमा कीन्ह कंसहिं तुरत।।
                         डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

चौथा-2
   *चौथा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
कर तें पकरि सिला पे पटका।
निर्मम कंसा दइ के झटका।।
    पर ऊ कन्या नहीं सधारन।
   देबी-बहिन किसुन-मन-भावन।।
तजि कर कंसइ उड़ी अकासा।
आयुध गहि अठ-भुजा उलासा।।
     चंदन मनिमय भूषन-भूषित।
     माला गरे बसन तन पूजित।।
धनु-त्रिसूल अरु बान-कटारा।
गदा-संख-चक-ढालहिं धारा।।
    सिद्ध-अपछरा-चारन-किन्नर।
    नागहिं अरु गंधरबहिं-सुर-नर।।
अर्पन करत समग्री नाना।
लगे करन स्तुति धरि ध्याना।।
    देबि स्वरूपा कन्या कहही।
    सुनहु कंस तू मूरख अहही।।
मारि मोंहि नहिं तुमहीं लाभा।
कहुँ जन्मा तव रिपु लइ आभा।।
    कहत अइसहीं अन्तर्धाना।
    माया भई जगत सभ जाना।।
देबि-बचन सुनि बिस्मित कंसा।
बसू-देवकी करत प्रसंसा।।
    कहा सुनहु मम अति प्रिय बहना।
    नहिं माना बसुदेव कै कहना।।
बधत रहे हम सभ सुत तोरा।
छमहुँ मोंहि तव भ्रात कठोरा।।
    मैं बड़ पापी-अधम-अघोरा।
   बंधुन तजा रहे जे मोरा।।
होंहुँ अवसि मैं नरकहि गामी।
घाती-ब्रह्म-कुटिल सरनामी।।
     मम जीवन भे मृतक समाना।
     बड़ आतम तुम्ह अब मैं जाना।।
नहिं लावहु निज मन-चित सोका।
पुत्र-सोक बिनु रहहु असोका।।
दोहा-सुनहु बसू अरु देवकी, कहा कंस गंभीर।
        कर्म प्रधानहिं जग अहहि,करमहि दे सुख-पीर।।
       माटी तन बिगड़इ-बनइ, पर रह माटी एक।
       अहहि आतमा एक बस,जदपि सरीर अनेक।।
       जानै जे नहिं अस रहसि,समुझइ नहिं ई भेद।
       बपुहिं कहइ आतम उहहि,आतम-बपु न बिभेद।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

एस के कपूर श्री हंस

।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना,अभी जरा ठहर*
*जायो कि तूफान गुज़र जाये।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
हिम्मत रखना दिन वैसे ही
फिर गुलज़ार होंगें।
बीमारी से दूर फिर शुभ
समाचार होंगें।।
दौर पतझड़ का आता है
बहार आने से पहले।
पुराने दिन फिर वैसे ही
बरकरार होंगें।।
2
लौटकरआ जाएंगी खुशियाँ
अभी कठिन वक़्त है।
यह कॅरोना ले रहा जरा
परीक्षा सख्त है।।
समय से लें दवाईऔर ऊर्जा
बढ़ायें अपनी।
इस कॅरोना के खूनी पंजों
में लगा रक्त्त है।।
3
जान बाजी लगा निकलने
की जरूरत नहीं है।
यूँ ही चितायों में जलने
की जरूरत नहीं है।।
भयानक मंजर खूनी खंजर
है इस कॅरोना का।
लापरवाही से काम लेने की
जरूरत नहीं है।।
4
जरा सा ठहर जायो कि
तूफान गुजार जाये।
इस दूसरी लहर का ये नया
उफ़ान गुज़र जाये।।
यूँआँधी में बेवजह निकलना
नादानी होती है।
हम सब निखर कर आयेंगें
ये मुकाम गुज़र जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464

।।ग़ज़ल।।संख्या 89।।*
*।।काफ़िया।। ऊर ।।*
*।।रदीफ़।। न बन जाये।।*
1
देखना कि कोई ज़ख्म नासूर न बन जाये
बिना वजह कोई बात कसूर न बन जाये
2
लाज़िम कि बोलें हर बात सोच समझ के
कोई बात यूँ ही बेहूदा शहूर न बन जाये
3
दिल दुखाने का किसी को अख्तियार नहीं
चाहे कोई कितना भी क्यों मशहूर न बन जाये
4
धन दौलत यह सब तो आनी जानी माया है
रखना ध्यान कि अंदर तेरे गरूर न बन जाये
5
दिलों से दिलों की तुरपन हमेशा करते रहना
देखना कि तेरे सामने कोई मजबूर न बन जाये
6
बच्चों को भी हर बात खूब सिखाते रहना
अपने पैरों खड़े होने को भरपूर न बन जाये
7
दोस्ती हर दोस्त से निभायो कुछ इस हद तक
आपके दरमियाँ महोब्बत का सरूर न बन जाये
8
*हंस* कोशिश करते रहो हर दिन अच्छा बनने की
जब तक अंदर अच्छा इंसान जरूर न बन जाये

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464

*।।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना   सावधानी हटी*
*दुर्घटना घटी।।*
*।।विधा।।हाइकु।।*
1
यह   कॅरोना
दूर दूर रहना
पर    डरोना
2
ये    जानलेवा
बाहर न घूमना
पत्नी हो बेवा
3
समझदारी
दो गज़ की हो दूरी
ये जिम्मेदारी
4
खतरनाक
वायरस अदृश्य
हो अचानक
5
बचके यार
सदी में एक बार
रोग दुश्वार
6
कॅरोना रोग
क्षमता   बढ़ाइये
छोड़िये भोग
7
रोग भगाना
बाहर   निकल न
हमें जगाना
8
ये महामारी
दूर   रहो    इससे
हल बीमारी
9
कॅरोना चाल
तोड़नी है श्रृंखला
हो अच्छा हाल
10
ये है वैश्विक
साथ दो ओ साथ लो
न हो ऐच्छिक
11
अदृश्य अणु
अंजान    शत्रु     यह
रोगी  विषाणु

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।     9897071046
                     8218685464

[28/04, 8:33 am] +91 98970 71046: *।।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना महामारी, रुकना घर*
*में ,तेरी हार नहीं जीत है।।*
*।।विधा ।।मुक्तक।।*
1
रुकना घर में तेरी हार
नही जीत है।
यह कॅरोना नहीं तेरा
कोई मीत है।।
चोट देनी है इस दुश्मन
को बहुत करारी।
दुश्मन अनदेखा छिपकर
लड़ो यही रीत है।।
2
दो ग़ज़ की दूरी मास्क है
जरूरी प्रमुख गीत है।
जरा सी असावधानी से
जीवन जाता बीत है।।
सब्र का फल समस्या का
हल निकलेगा जरूर।
इस धैर्य में ही अंतर्निहित
जीवन संगीत है।।
3
आज वक़्त बुरा है दौर यह
कल गुजर जायेगा।
दवाई से हालात जरूर ही
अब सुधर जायेगा।।
वक़्त रहते जो हम चेत गये
तो जान लीजिए।
खत्म इस दुष्ट कॅरोना का 
हो सफर जायेगा।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464
[28/04, 8:33 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।। संख्या 88।।*
*।।काफ़िया।। अना।।*
*।।रदीफ़।। चाहिये।।*
1
आँधियों में भी ये चराग जलना चाहिये।
हर दिल में जज्बा हमेशा पलना चाहिये।।
2
हाथ छूना नहीं और साथ छोड़ना नहीं।
ख्याल सबकाअभी यूँ रखना चाहिये।।
3
खैरियत इसी में कि जरा घर में टिको
अभी यूँ बेवजह नहीं निकलना चाहिये।।
4
अभी शहर का मंजर कुछ जुदा जुदा सा है।
जरा रखो सब्र कि दौर गुज़र जाना चाहिये।।
5
अनदेखा अनजाना सा यह कोई वायरस है।
लड़ने को भी दुश्मन जाना पहचाना चाहिये।।
6
कदमों का रुकना मजबूरी नहीं जरूरी है।
यूँ ही दुश्मन को घर अपने नहीं बुलाना चाहिये।।
7
*हंस* फिर वैसी ही जिन्दगी हमारी मुस्करायेगी।
अभी मिलकर इस कॅरोना को हराना चाहिये।।

*रचयिता।।एस के कपूर" श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464
[28/04, 8:33 am] +91 98970 71046: *।।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना महामारी, आज का*
*प्रयत्न दुनिया को सुनहरा*
*कल देगा।।*
*।।विधा।। मुक्तक।।*
1
क्यों यूँ ही जिन्दगी का 
जुर्माना भरना है।
क्यों जानते हुए कदम
बाहर धरना है।।
जान लीजिए कि जान
है तो है जहान।
क्यों कॅरोना की कड़ी
मजबूत करना है।।
2
अभी तक संबको लग रही
ये दवाई है।
तबतक पालन करना अभी
जरूरी कड़ाई है।।
आज वक़्त बुरा कल अच्छा
भी जरूर आयेगा।
किसीसे अभी न मिलो छिपी
सबकी भलाई है।।
3
आज का धीरज कल संतोष
का सुफल देगा।
इस बीमारी का उचित निदान
और हर हल देगा।।
प्रकृति से जुड़े और प्रतिरोधक
क्षमता को बढ़ायें।
हमारा आज का प्रयत्न दुनिया
को सुनहरा कल देगा।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                      8218685464

नूतन लाल साहू

अतीत का सच

व्यक्ति को अपना गुजरा हुआ वक्त
कभी नहीं भूलना चाहिए
जो व्यक्ति अतीत का बुरा वक्त
हमेशा याद रखता है
उनका पांव सदा जमीन पर ही
टिके रहता है
अहंकार कभी भी उन पर
हावी नहीं हो पाता
हमें उस व्यक्ति के प्रति
सदा श्रद्धा से नतमस्तक
रहना चाहिए
जो हमारी जरुरते पूरी करता है
दुःख के समय जिसने
हमें ढांढस बंधाया
बुरे वक्त में जिसने
हमारे आंसू पोंछे है
इसीलिए व्यक्ति को अपना गुजरा वक्त
कभी नहीं भूलना चाहिए
बाधाओं से घबराने के बजाय
दृढ़ता से,उनका मुकाबला करना चाहिए
क्योंकि हौंसले जीतते है
और बाधाएं टूटती है
हमारे जीवन में, जो बाधाएं आई थी
वही हमे संघर्ष करने का
मुसीबत से लड़ने का और
आगे बढ़ने का
हौसला प्रदान करती है
जिंदगी जीना आसान नहीं होता
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता
जब तक न लगे हथौड़े की चोंट
पत्थर भी भगवान नही बनता है
संघर्ष ही व्यक्ति को
सचमुच में सच्चा इंसान बनाता है
यही तो अतीत का सच है

नूतन लाल साहू

विश्वास

यदि आप कठिन परिस्थिति से
घिर गए है, तो भी
निराश न हो
सोचिए, विचारिए और देखिए
आपने कहां कहां और
क्या क्या गलतियां की है
यदि आपमें राई के दाने
जितना भी विश्वास है तो
आप अवश्य सफल होंगे
गलतियों को सुधारिए और
एक नया जोश के साथ
एक नया विश्वास के साथ
दोबारा काम शुरू कीजिए
भूलकर भी,स्वयं की योग्यता पर
अविश्वास नहीं करना चाहिए
हमें नया सोचना चाहिए
काम भले ही,पुराना हो
समय की मांग के अनुसार
परिवर्तन कर
नए ढंग से,काम करना चाहिए
वक्त के साथ,बदलने वाला व्यक्ति
किसी भी क्षेत्र में, मात नही खाते है
दूरदर्शिता से काम लें
मन,मस्तिष्क और आंखे
हमेशा खुली रखें
आत्मविश्वास ही तो
सफलता की सीढ़ी है
लाख दल दल हो
पैर जमाएं रखिए
हाथ अगर खाली हो तो
हाथ ऊपर उठाए रखिए
कौन कहता है कि
चलनी में पानी नहीं रुकता है
सिर्फ बर्फ जमने तक
हौसला बनाएं रखिए

नूतन लाल साहू

निशा अतुल्य

भक्ति गीत
29.4.2021

प्रभु जी सबकी विपदा टारो ,
प्रभु कर दो सब पर उपकार ,
हम बालक बड़े हैं नादान ,
करो अब तुम ही बेड़ा पार ।

हम मूढ़ है, हम है अज्ञानी ,
तेरी महिमा किसने जानी ,
तू तो सबसे महान प्रभुवर ,
प्रभु कर दो सब पर उपकार ।

तेरी शक्ति से गिरिवर कापें,
कंठ में तूने गरल साधे ,
करने जग का कल्याण शम्भु,
करो अब तुम ही बेड़ा पार 

शक्ति तुम्हारी दुर्गा माता ,
अर्धनारीश्वर कहलाता ,
करें हम करुण पुकार प्रभु जी,
करो सब पर तुम ही उपकार ।

तुम विध्वंसक तुम बैरागी
तुमने पढ़ाई प्रेम की पाती
प्रभु घूमे ले सती ब्रह्मांड 
दे दो हमें भी नवदा ज्ञान 
करो हम पर उपकार प्रभु जी ।
करो भव से बेड़ा पार प्रभु  ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गीत

ये मुकाम आ गया है यूं ही राह चलते चलते!।                                         ये मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते।।                                      ईमान है या धोखा मंज़िल हैं या मौका तूफ़ाँ मुश्किलों में जिन्दगी के हर कदम पे एक चिराग जलाया हमने ये चिराग मुस्कुराते यादों के आॖईने में।।       

ए मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते!।                                       

यकी आरजू के वादों कोशिशों में कितने ही दौर गुजरे कल भी अधूरा इंसा आज भी अधूरा आदमी!।           ये मुकाम आ गया है यूँ राह चलते चलते!।                                 

जिन्दगी कही खूबसूरत कभी मंजिलों मंज़र कही मुस्कान का मुसाफिर कभी 
आसुओं का समन्दर।।
ये मुकाम आ गया है यूं ही राह चलते 
चलते।।          

जिंदगी के रास्तों में रिश्तों का वास्ता, खुशियों का नशा है ग़म कि है गहरायी!।                                     
ये कहाँ आ गये हम जिंदगी कि तलाश करते करते !                                  
ये मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते।।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सुषमा दीक्षित शुक्ला

,,,रेत ,,,,

रेत सा फिसलता रहता ,
बेदर्द वक्त बंद मुट्ठी से ,
फिर भी मन में है मचलती,
आसमान की  सी उमंगे ।
रेत के टीले  सी उन्मुक्त,
ढहती हुई  जिंदगानी ,
फिर भी मानव की उम्मीदी देखो।
 बस एक मुट्ठी देह में ही ,
 ये आकाश जैसे मन संवरते ।
नैनों की  नन्ही सी कोठरी में
गगनचुंबी ख्वाब पलते ।
 रेत तू तो रेत  ही ठहरी  न ,
कब बन सके  हैं तेरे महल ।
एक तिनका उड़ा देता है तेरा वजूद ।
फिर भी तेरे मीलों लम्बे ऊँचे गुंबद।
 जगाते हैं एक अजीब सी उम्मीद।
 हवा के साथ उड़कर ,
ऊंचाई को छू लेने की तेरी जिजीविषा ।
शायद यही है जीवन व्यथा ,
यही है तेरी मेरी कहानी भी ।
तेरी  यही मौन अभिव्यक्ति
यही  है संवेदना  तेरी ।
और तेरे हौसले की उड़ान भी ।
तेरा वजूद है कितना नाजुक,
 और कितना शक्तिशाली भी ,
जब तू अपने बवंडर से ,
ले उड़ती है पूरी की पूरी बस्तियां।
 परन्तु ये भी  बदनसीबी ही है 
रेत के घर  सजाने वालों की ।
कि जब जब जगी उम्मीद ,
कोई जलजला बहा ले गया ,
रेत का घर हो  महल ।
 जिंदगी सी मचल कर 
रह जाती है किसी की मासूमियत
 फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ती दामन।
 फिर से तलाशती  है जीवन ।
 शायद  यही है मंथन ,
यही है यही दर्शन जीवन दर्शन ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा-1
  *चौथा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
सोरठा-पुनि कह मुनि सुकदेव,सुनहु परिच्छित धीर धरि।
          जब लवटे बसुदेव, भवा कपाटहिं बंद सभ।।
सिसू-रुदन सुनतै सभ जागे।
कंसहिं पास गए सभ भागे।।
   देवकि-गरभ सिसू इक जाता।
    कहे कंस तें सभ यहि बाता।।
पाइ खबर अस धावत कंसा।
गे प्रसूति-गृह ऐंठत बिहँसा।।
    लड़खड़ात पगु अरुझे केसा।
    कुपित-बिकल मन रहा नरेसा।।
काल-आगमन अबकी बारा।
सोचत रहा करब संहारा।।
   कंसहिं लखि कह देवकि माता।
    पुत्र-बधुहिं सम ई तव भ्राता।
कन्या-बध अरु स्त्री जाती।
नृप जदि करै न बाति सुहाती।।
    सुनहु भ्रात ई बाति हमारी।
    कहहुँ तमहिं तें सोचि-बिचारी।।
तेजवंत मम बहु सुत मारे।
तुम्हतें बचन रहे हम हारे।।
     अहहुँ लघू भगिनी मैं तोरी।
     बिनती करउँ न छोरउ छोरी।।
पापी रहा कंस बड़ भारी।
सुना न बिनती अत्याचारी।।
   झट-पट तुरतहिं लइकी छीना।
   किया देवकिहिं सुता बिहीना।।
दोहा-निष्ठुर-निर्मम कंस बहु,सुना न देवकि-बात।
       दियो फेंकि कन्या गगन,बरनन कइ नहिं जात।।
                      डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919र46372

निशा अतुल्य

विशेष निवेदन
हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर

सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
दोनों ही दीन के दुःख हरता है
दोनों ही है बल के धाम
दोनो है घट घट के वासी
दोनों ही है,आनंद प्रकासी
प्रभु श्री राम और कृष्ण के दिव्य भजन से
मिलता है विश्राम
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
क्षण भंगुर है,जीवन की कलिका
कल प्रातः न जाने
खिली या ना खिली
सब दोस्त है,अपने मतलब के
दुनिया में किसी का कोई नही है
डरते रहो कि,यह जिंदगी
कहीं बेकार ना हो जाये
जो ध्यावै फल पावै
दुःख विनसै मन का
भक्त जनों के संकट
क्षण में दूर करें
सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
करो हरी जी का भजन प्यारे
जैसे हनुमान जी ने किया था
तीन लोक चौदह भुवन में
हनुमान जी को याद कर रहे है

नूतन लाल साहू

नूतन लाल साहू

विशेष निवेदन
हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर

सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
दोनों ही दीन के दुःख हरता है
दोनों ही है बल के धाम
दोनो है घट घट के वासी
दोनों ही है,आनंद प्रकासी
प्रभु श्री राम और कृष्ण के दिव्य भजन से
मिलता है विश्राम
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
क्षण भंगुर है,जीवन की कलिका
कल प्रातः न जाने
खिली या ना खिली
सब दोस्त है,अपने मतलब के
दुनिया में किसी का कोई नही है
डरते रहो कि,यह जिंदगी
कहीं बेकार ना हो जाये
जो ध्यावै फल पावै
दुःख विनसै मन का
भक्त जनों के संकट
क्षण में दूर करें
सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
करो हरी जी का भजन प्यारे
जैसे हनुमान जी ने किया था
तीन लोक चौदह भुवन में
हनुमान जी को याद कर रहे है

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*
कृपा-सिंधु प्रभु राम की,रहती कृपा असीम।
हरे कष्ट निज भक्त का,सुमिरन राम- रहीम।।

अथक परिश्रम से बने, देखो रंक नरेश।
कृपा करें श्रम-भक्त पर, ब्रह्मा-विष्णु-महेश।।

अटल रहे विश्वास यदि, पत्थर हो भगवान।
श्रद्धा होती फलवती,प्रभु की कृपा महान।।

प्रभु की लीला अकथ है,महिमा नाथ अपार।
दुष्ट-दलन के हेतु प्रभु, जग में लें अवतार।।

अनल-पवन-क्षिति-नीर-नभ,पंच-भूत ये तत्त्व।
इनसे ही निर्मित जगत, इनका परम महत्त्व।।

संत-कथन उत्तम सदा ,उसमें रख विश्वास।
उसको देता परम सुख ,मन जो रहे उदास।।

अटल-अमिट रवि-शशि-किरण,लिए तेज प्रभु राम।
रामचंद्र रवि - वंश के , एक मात्र सुख - धाम।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372



(हनुमत वंदन)
हनुमत वंदन सब करें,निश्चित हो कल्याण।
हरें कष्ट हनुमान जी, कहते वेद - पुराण।।

राम-भक्त हनुमान जी,हैं अंजनि के लाल।
लाल सूर्य को देखकर,गए लील रवि बाल।।

रावण की लंका जला, लिए सीय को खोज।
संकट को काटें वही,यदि हो सुमिरन रोज।।

पवन-पुत्र हनुमान जी, को पूजे संसार।
इनके पूजन मात्र से, होता रिपु-संहार।।

बल-पौरुष देते यही, हरते बुद्धि-विकार।
हनुमत वंदन से मिले,मन को हर्ष अपार।।

इनके ही उर में बसे, राम-सीय का रूप।
धन्य-धन्य हे पवन-सुत,सेवक राम अनूप।।

लाल अंजनी की करें, सब जन मिल जयकार।
अर्चन-पूजन साथ में, तजकर सब तकरार।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

रवि रश्मि

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

    🙏🙏

 *हनुमान जयंती की आप ह भी को हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ*

   *जय जय हनुमान*
 ********************
जय जय जय हनुमान सुनो अब  , दुखियों के सब कष्ट हरो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....

करते वंदना दयानिधान , मंगल करो तुम हनुमान 
दुर्गुण से तो हमें बचाना , कभी करें न हम अभिमान  
सीधी सबको राह चलाना , सीधी सबकी राह करो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....

अंजनीपुत्र तुम्हीं हनुमान , हम करें तुम्हारा वंदन 
तुम हो सहायक करते भक्ति , राम भक्त मारुति नंदन   
कह दो सबको हे हनुमान , सभी राम की भक्ति करो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....

राम - सिया को जपने वाले , सबको समझे हो समान 
केसरी नंदन तुम बलवान , सभी के प्यारे हनुमान 
महिमा बड़ी है अपरंपार , सभी के मन तुम शक्ति भरो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धारो .....

जय जय जय हनुमान सुनो अब , दुखियों के सब कष्ट हरो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$

(C) रवि रश्मि  ' अनुभूति '
27.4 .2021 , 1:04 पीएम पर रचित ।
मुंबई  ( महाराष्ट्र  ) ।
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मंगल शर्मा

हनुमान जन्मोत्सव पर 



महावीर बजरंग का , नित करले जो ध्यान 
काम रुके कोई नहीं , पावे जग में मान 
भानु रुप बजरंग तुम , सूरज के अवतार 
मन से ध्यावे आपको , उसका बेड़ा पार 
रामदूत हनुमान हो , जान आपकी राम 
चरण पखारे दास अब , बारम्बार प्रणाम 
तारे अंजना मात के , पिता केसरी नाम 
सुबह शाम बस राम ही , जपना तेरा काम 
चैत शुदी जन्मे प्रभू , बजरंगी हनुमान
काज बनाए राम के , मन में सीता राम
वानर कुल के ताज तुम , भक्त शिरोमणि नाम
सालासर बजरंग का , बडा अनोखा धाम 
मेहंदीपुर के नाम से , कट जाते सब रोग
नहीं सताए डर तुम्हे , रोज लगाओ धोक 

कवि मंगल शर्मा 
स्वरचित
रेवाडी , हरियाणा
M.9813185427

काव्यरंगोली आज के सम्मानित कलमकारडॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी

डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी 



आत्मज -श्रीमती पूनम देवी तथा श्री सन्तोषी  लाल त्रिपाठी

 

जन्मतिथि .१६ जनवरी १९९१

 जन्म स्थान. हेमनापुर मरवट, बहराइच ,उ.प्र.

शिक्षा- एम.बी.बी.एस. ,

                   एम. एस. जनरल सर्जरी(द्वितीय वर्ष छात्र)


 पता.- रूम न. 8,  100 पीजी ब्वायज हास्टल ,बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज गोरखपुर,उ.प्र. 

प्रकाशित पुस्तक - तन्हाई (रुबाई संग्रह)


 उपाधियाँ एवं सम्मान - साहित्य भूषण (साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी ,परियावाँ, प्रतापगढ़ ,उ. प्र.द्वारा)


 शब्द श्री (शिव संकल्प साहित्य परिषद ,होशंगाबाद ,म.प्र.) द्वारा

श्री गुगनराम सिहाग स्मृति साहित्य सम्मान, (गुगनराम सोसायटी भिवानी ,हरियाणा द्वारा)

अगीत युवा स्वर सम्मान २०१४( अ.भा. अगीत परिषद ,लखनऊ द्वारा)

 पंडित राम नारायण त्रिपाठी पर्यटक स्मृति नवोदित साहित्यकार सम्मान २०१५, (अ.भा.नवोदित साहित्यकार परिषद ,लखनऊ द्वारा)

जय विजय रचनाकार सम्मान(गीत विधा)2019 , जय विजय हिंदी मासिक वेब पत्रिका द्वारा।

इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक ,शैक्षणिक ,संस्थानों द्वारा समय समय पर सम्मान । पत्र पत्रिकाओं में निरंतर लेखन तथा काव्य गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनों मे निरंतर काव्यपाठ ।


१.(गीत)


उर में अवसाद है ।


चाँदी सी शुभ्र रात  

हवा भी मचल रही है।

नदिया के तन पे,धवल-

चाँदनी फिसल रही है।


पूर्ण प्रकृति, रिक्त हृदय ,

कैसा  अपवाद  है। ?


उर में अवसाद.........


नैनों  में  बाढ़  हुई ,

उर मे पतझार हुआ।

टूट चुके सपनों को ,

पीड़ा से प्यार हुआ ।


मौन हुए ,गीतों का ,

निष्फल  संवाद है ।


उर में अवसाद ...।


कोयल की कुंजन से,

भौरों   के  गुंजन  से ।

एक नव बसंत हुआ,

महक चली उपवन से।


जल भुन बैठा जवास ,

चहुँ  दिशि  उन्माद है ।

उर में अवसाद.......



२.(गीत)


क्षितिज तीर पीड़ा के गहरे से चित्र हुए ,

ज्यों ज्यों गहराने लगी, जाड़ों की रात है।


अल्पायु दिन बीता ,लंबी  सी  रात  हुई ।

ठिठुर गयें पेड़ों से,शीत की बरसात हुई।


घाम और कुहरा जब आपस में मित्र हुए,

सूरज बिन गायब अब सर से जलजात है।

क्षितिज तीर .........................


कुत्तों की कुकुराहट ,हूँकते सियारों से।

निष्ठुर सी रात हुई , हिम भरी बयारों से।


भटकी सी लोमड़ी के हाल भी विचित्र हुए,

कौं-कौं कर ढूँढ रही बिल नही सुझात है ।

क्षितिज तीर.........................



बलवती बयार हुई, कथरी कमजोर लगे ।

हर तरफ से सेंध करे ,जाड़ा एक चोर लगे।


अतिथि कलाकार सरिस धूप के चरित्र हुए,

पता नही कब आये,कब ये चली जात है।

क्षितिज तीर.............................



३.(गीत)


कोशिशें बहुत करीं पर  ,कुंभकरण जागे नही ।

अंत में परिणाम आया ,ढाक के बस तीन पात।


देकर के आसरा हर बार वो टरकाते  रहे ।

तब भी हम ऊसर में बीज नित बहाते रहे।

भैंसो के आगे हम बीन  भी   बजाते  रहे ।

बहरों के आगे हम  मेघ  राग  गाते    रहे ।


फिर हमने जाना बाँझ जाने क्या प्रसव की बात।

अंत में परिणाम आया...........................।


कुर्सियों कें खटमल,मोह खून का न छोड़ सके।

पीड़ा के व्यूह का एक द्वार भी  न  तोड़  सके।

अंहकार  पद  का  था ,रास्ते  भी  भटक  गये ,

मोड़ने चले थे धार,नाली तक न  मोड़  सके ।


बुझा  के  मशाल  बने  चोर, देख काली  रात ।

अंत में परिणाम आया.........................।


अपनी तो पीर  हुई, गैर   की   तमाशा  है ।

शासन तिमिर का है ,दीप  को निराशा  है।

गिद्धों के अनुगामी, तंत्र  में  विराजमान,

लाशों की टोह करें, इस तरह पिपासा  है ।


उल्लुओं ने  राय रक्खी ,रोकों  भावी  प्रभात !

अंत में परिणाम..............................



४.(गीत)


पनपे कंकरीट के जंगल, बड़े मंझोले पेड़ काटकर,

पीपल की बरगद से  चाहकर  बात  नही  होती ।


सावन की पुरवैय्या सूनी ।

दादी की अंगनैय्या सूनी ।

सरिता का संगीत शोकमय,

बंधी घाट पर नैय्या सूनी ।


महुए की सुगंध से महकी रात नही होती ।

पीपल की बरगद.............................


कहीं खो गये कोयल ,खंजन।

दूर     हो  गये  झूले  सावन ।

उजड़ रहे वन बाग नित्यप्रति,

उजड़े धरती माँ का आँगन ।


अब कतारमय क्रौंचो की बारात नही होती।

पीपल की बरगद.........................


फीकी बारिश की बौछारें ।

धूमिल  रंग  धरा  के  सारे ।

अब मानव कृत्रिम में खुश है,

प्राकृतिक से किये किनारे ।


मलयज वायु सुरभित सुंदर प्रात नही होती ।

पीपल की बरगद से .......................


५.(गीत)



हृदय व्याकुल, नैन में घन-घोर,वो आये नहीं।

कोशिशें मैंने करी पुरजोर,वो आये नहीं ।


कोयलों ठहरों ,सुनो, मत गीत गाओ!

मधुकरों कलियों पें तुम मत गुनगुनाओं!

हो रहा है कर्णभेदी शोर, वो आये नहीं।

कोशिशें …………………….


भीड़ में दिन कट गया फिर, रात तनहा आ गई।

अंधेरे की एक चादर ,मेरे मन पे छा गई ।

कल्पनाएँ हो गई कमजोर,वो आये नही ।

कोशिशें…………………


गिन के तारे रात काटी ,चाँद बूढ़ा हो गया।

ओड़कर ऊषा की चादर,तिमिर देखो सो गया।

आ गया किरणों को लेके भोर, वो आये नहीं।

कोशिशें…………………………….


आ गया पतझार बूढ़ा,पात पीले हो गये ।

हो चुके बेरंग उपवन, देख मधुकर रो गये ।

टूटती साँसो की हर दिन डोर,वो आये नहीं ।

कोशिशें ……………

        

  © डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी

निशा अतुल्य

हनुमान जयंती पर लिखी 
सुन बजरंगी
25.4.2021

राम धुन लागी रे बजरंगी
भक्ति का दे दे हमें दान बजरंगी 
राम धुन लागी रे, राम धुन लागी 
अब तू ही करेगा बेड़ा पार बजरंगी ।

जीवन भंवर में छोड़ दी नैया
अब तू ही सम्भाल बजरंगी 
मैं तो तुझसे करूं मनुहार रे
मैंने सौंपा तुझे जीवन भार बजरंगी 
मुझे दे दे भक्ति का ज्ञान बजरंगी ।

राम धुन की अमर प्रीत अब
आत्मा में बस जाए मेरे बजरंगी 
हर सुख दुख से अब तू ही छुड़ाए
मुझको नही कोई फिक्र बजरंगी 
आकर मुझे संभाल रे 
कर दे बेड़ा पार बजरंगी ।
तू ही तारण हार रे बजरंगी 

अंजनी के पुत्र अधिक बलशाली
रवि भक्ष लियो समझ कर लाली 
कर दियों जग अंधियार बजरंगी
तेरी महिमा अपरम्पार बजरंगी 
तू ही संकट निवार रे 
मैंने सौंप दिया जीवन भार बजरंगी ।

तुझसा न भक्त हुआ कोई जग में 
अवध बिहारी आये स्वयं ही मिलने 
तूने उनके भी कारज संभारे बजरंगी
राम चरणन के तुम दास रे 
अब सुनलो मेरी पुकार बजरंगी 
करो दुखो से बेड़ा पार बजरंगी ।

लक्ष्मण जियाये, सियाय मिलाए
फिर भी कोई बड़ाई न चाहे
प्रभु चरणन के दास बजरंगी 
आशीष पाये अजर अमर हो गए
भक्तों के बनाते बिगड़े काम कलियुग में 
बिगड़े बने सारे काम बजरंगी 
दे दो भक्ति का ज्ञान रे 
सुनलो मेरी पुकार बजरंगी ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार रेनू बाला सिंह , गाजियाबाद ,उत्तर प्रदेश

 

*नाम*- रेनूबाला सिंह
*पता*-A-312 पार्श्वनाथ मैजेस्टिक फ्लोर्स इंदिरा पुरम,गाज़ियाबाद (यू.पी.)
२०१०१४
*शिक्षा*- बी.ए,ब्रिज कोर्स एम.ए (मध्यकालीन
इतिहास),बी.एड..
डिप्लोमा- होटल मैनेजमेंट
रुचि- योग, संगीत (गायन,वादन,नृत्य)
पठन-पाठन
*भाषा*- हिन्दी,भोजपुरी,अंग्रेजी

*शिक्षण-कार्य* केंद्रीय विद्यालय मालीगांव गुवाहाटी  में २ वर्ष
एडहाक शिक्षिका के रूप
में सेवारत।

*संस्कार वैभव हिन्दी सभा* नामक संस्था से सदस्य के रूप में स्वतंत्र लेखन का कार्य,कलरव  नामक पत्रिका में १०वर्षों से कविताएँ व लेख प्रकाशित हो रहे हैं।

*यू. एस. एम. पत्रिका*,गाज़ियाबाद में गत १२ वर्षों से *वंदना लेख,कविताएँ ,व्यंग* प्रकाशित हो रहे हैं।

*रेलवे महिला कल्याण संगठन* में *सचिव/अध्यक्षा* के पदों पर  दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों में पच्चीस वर्षों तक गरीब महिलाओं एवं बच्चों के शिक्षण (प्रशिक्षण) *हस्तकला के विकास में समाज सेवा* का कार्य किया।
*कंटेनर कार्पोरेशन महिला कल्याण संगठन* में *सचिव* के पद पर रहते हुए प्रतिभावान बच्चों को पुरस्कृत किया।

*हुनर स्टार्ट-अप* सेमिनार आन एंटरप्रनारशिप- *प्रशस्ति पत्र*
बटोही साहित्यिक सांस्कृतिक व सामाजिक *प्रशस्ति पत्र*

*संस्कार वैभव हिन्दी सभा* में हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति व राष्ट्रीय एकता को समृद्ध बनाने के लिए *प्रशस्ति पत्र*

*लाइनेस क्लब अपराजिता*
इंदिरापुरम,गाज़ियाबाद में *सदस्य/ सचिव* पद पर
३ वर्ष तक कार्य किया।

इंदिरापुरम  में  पिछले १० वर्षो से *योग शिक्षण* में सेवारत

*सलाम नमस्ते रेडियो स्टेशन ९०.४ एफ एम* पर नियमित रूप से आयोजित सम सामयिक   विषयों पर सहभागिता...

*खुदा को कर बुलंद इतना* सामयिक विषयों पर *वामा पत्रिका* में सहभागिता।

*प्रकृति के आस पास*
नामक काव्य संग्रह प्रकाशित।

वर्तमान समय में *आदिराजआफ डांस* स्कूल से संबद्ध।

धन्यवाद!🙏🙏

*तो समझो होली है।*

शीत ऋतु की हो विदाई ग्रीष्म रस रंग गंध इंद्रधनुष धरा पर जब रंगों की छटा बिखराए ,तो समझो होली है।

सुनहरी धूप में कोयल कूके किरणों संग मुस्काए  अमरैया बौराए, बेला चंपा चमेली हिना गुलदाउदी आंगन महकाए ,
तो समझो होली है।

मोगरा गुलाबों से गुलजार सजे फुलवारी औ' द्वार ,
मौसम बदले प्राकृतिक नज़ारे, नाचे मन जैसे मयूर तो समझो होली है।

बच्चे मुस्काए जवानों में जब दिखे तरुणाई और बूढ़े गदराए, उत्साह नटखट चुलबुलाहट मन में हिलोरें हुलसाए, तो समझो होली है।

बच्चे धूम मचाते रंग भर गुब्बारे, पिचकारी बाल्टी गलियों ढोल ,बाजे नगाड़े मृदंग मजीरे, बांसुरी भी खींचे लंबी लंबी तानें, तो समझो होली है।

नैनों से जब नैन मिले अधर देख मुस्काए ,गाल गुलाबी लाल, बिना रंगे बिखर जाए, प्रीत डोर खींच मन प्रियतम देख मदमस्त हो जाए, तो समझो होली है।

गुझिया, मालपुआ ,दही बड़ा सब मिल बैठ खाएं पूरी खीर और बताशे, भूलकर भी दुख गम गिले-शिकवे हो न, हमजोली सब गले मिले,
तो समझो होली है।

होलिका दहन, संग में बुराई घृणा नफरत की, देकर आहुति, जात पात कलह क्लेश दोष मिटा, होली मिलन की बात हो जहां,
तो समझो होली है।

दहलीज के भीतर बंद कमरों में छाई रहे खुशहाली प्रेम सौहार्द्र और स्नेहिल भाव से रंग जाए दुनिया सारी ,
तो समझो होली है

धन्यवाद

रेनू बाला सिंह

*पसरा कोरोना दोबारा*
           *होली में*

आंखों को कुछ तरेर कर

हथेली में गुलाल मल कर
चुलबुलाहट होने लगी है

पीछे से दोस्तों के छुप कर,
लाल करें गालों को रगड़ कर

मगर कैसे क्या करें  हम आज

मुश्किल हो गया जीने का अंदाज

ढोल नगाड़े बंद हैं सभी साज

सखियों में उमड़ा नखरा नाज़

अब होने लगी है मोबाइल पर, होली मिलन की बात

माना मुश्किल है हाथ से हाथ मिलाना

नामुमकिन भी है अब गले मिलना

दूरी बना मास्क लगा पालन
कर वैक्सीन लगा

गुलाल जब बादल बन उड़ा

फेसबुक व्हाट्सएप पर

रंगों की पिचकारी भर कर

कहीं होली गुलाल अबीर  भीगेगा नहीं शरीर पर

मन को सराबोर होने पर

रोक सकेगा न कोई
रोक सकेगा न कोई

धन्यवाद
रेनू बाला सिंह , गाजियाबाद ,उत्तर प्रदेश


201014

मंच को नमन🙏🙏
*बसंत ऋतु पर दोहे*

कोयल बैठी डार पर,
इत उत डोलत जाय ।
भंवरा गुंजत बाग में ,
पी  पराग  मद  होए।।

फूले अमवा बौराए
पुलकित मनवा होय ।
कोयल कूके गाए ,
बिरहनी बोली सुनाए।।

तितली डोलत बाग में,
उड़त फिरत झूमत है।
हंसी ठिठोली साथ में,
मन ही मन हंसत है।।

रेनू बाला सिंह

विधा- *कविता*
शीर्षक-- *नववर्ष इसे ही कहलाने दो*
रचना- *रेनू बाला सिंह*

प्रतिवर्ष नववर्ष हम क्यों मनाते
पश्चिमी देशों की है यह प्रथा
साथ में मिलकर खुशियों की कथा
दोहराई अपनाई उमंग भरी
नव वर्षीय गाथा
प्रतिवर्ष नववर्ष::::

सर्दी की गलन से ठिठुराते जेब से हाथ बाहर नहींआते
कान मफ़लर से ढ़कते जाते जुरार्बें दस्ताने चढ़ाएं रहते
प्रतिवर्ष नववर्ष:::::

नगाड़े की थाप पर नाचते गाते
पश्चिमी देशों की योजना में रमते जाते
स्याह घने गहराते कोहरे में सजते
चकाचौंध बिजली बाती में चमकते
प्रतिवर्ष नववर्ष:::::::

अंधेरी बीती रात झालरों से जगमगाते
टिक टिक करती घड़ी के जैसे ही मिलते
हैप्पी न्यू ईयर्स का नारा लगाते
संबंध बढ़ा प्यार से एक दूजे से गले मिलते
प्रतिवर्ष नववर्ष::::::::

नव कोपल नव पुष्प खिलें
ठिठुरन विदा ले
नव प्रभात नव प्रकाश उजागर हो
बासंती बयार नव ऊर्जा का संचार हो
फुलवारी बसंत मुस्काए आंगन आंगन
प्रतिवर्ष नववर्ष :::::

पीली सरसों के फूलों से सजी वसुंधरा
प्रकृति बिखेरती हरित
स्नेह धारा
उत्साह उल्लास उमंग उत्सव आने दो
शुक्ल चैत्री दिवस प्रथम
नववर्ष इसे ही कहलाने दो
नववर्ष इसे ही कहलाने दो

रचना--रेनू बाला सिह

*शिवरात्रि*

*काव्य रंगोलीमंच को नमन*

आध्यात्मिक मकसद शिवरात्रि मनाने का
शरीर के कण-कण को जीवंत करने का
भांति भांति के संघर्षों को त्यागने का
आध्यात्मिक मकसद:::

सत्यम्- शिवम्-सुंदरम् अपनाने का।
धर्म अर्थ काम मोक्ष  की अति कृपा का
शिवरात्रि का उत्सव स्मरण करने का
आध्यात्मिक मकसद::: 

'शि'अर्थ पापों को नाश करने का
'व' का अर्थ देने वाले यानी दाता का
साधक और भक्तों के सिद्धांतों का ।
आध्यात्मिक मकसद:::

प्रतिनिधित्व करता हमारी आत्मा का ।
आभामंडल और हमारी चेतना का।
ब्रह्मांडीय चेतना पृथ्वी तत्व को छूने का ।
आध्यात्मिक मकसद शिवरात्रि बनाने का धन्यवाद ।
स्वरचित -
रेनू बाला  सिंह 🖋️
गाजियाबाद

रामचरितमानस पर आधारित प्रश्नोत्तरी सम्पन्न

 लखनऊ 25 अप्रैल नवीन परिवेश नवीन पहल के अंतर्गत मां विंध्यवासिनी ट्रस्ट के द्वारा पूर्व की भांति ही रामचरितमानस पर आधारित प्रश्नोत्तरी


का कार्यक्रम रविवार को संपन्न हुआ कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व मंत्री आदरणीय अवधेश मिश्रा जी प्रतापगढ़ से उपस्थित रहे कार्यक्रम का प्रारंभ सुप्रसिद्ध गायिका नृत्यांगना प्रोफेसर रेखा मिश्रा जी द्वारा सुंदर वाणी वंदना से हुआ,कार्यक्रम का संचालन साधना मिश्रा विंध्य द्वारा संपन्न किया गया कार्यक्रम में देश विदेश के बहुत से प्रतिभागी सम्मिलित हुए कार्यक्रम में नीलम शुक्ला जी कीर्ति तिवारी जी गीता पांडे जी शिवा सिंघल जी रजनी शुक्ला जी गायत्री ठाकुर जी सरला विजय जी अनीता त्रिपाठी जी डॉ.ज्योत्सना सिंह साहित्य ज्योति जी अपर्णा त्रिपाठी जी संतोष सिंह हसौर जी वैभवी सिंह जी वीना आडवाणी जी योगिता चौरसिया जी कामिनी श्रीवास्तव जी रेनू मिश्रा जी अर्चना चंचल जी आशुतोष जी मोहन सिंह जी रीमा ठाकुर जी चंद्र प्रकाश चंद्र जी सुशील कुमार जी अंशु तिवारी जी वरिष्ठ कवि आनंद खत्री जी नगेंद्र बालाजी डॉ.सुषमा तिवारी जी आराध्या दुबे जी शशि तिवारी जी कुमारी चंदा जी नूतन मिश्रा जी राजेश्वरी जी चंद्रकला जी इंदिरा जी नीलम वंदना जी चेतना चेतन जी आदरणीय विद्या शुक्ला जी अर्चना चंचला जी दीपिका शर्मा जी तथा अभिजीत शर्मा जीउपस्थित रहे और प्रतिभाग के द्वारा सभी ने कार्यक्रम को भव्यता प्रदान की कार्यक्रम के अंत में मां विंध्यवासिनी ट्रस्ट की संस्थापिका साधना मिश्रा विंध्य जी ने सभीका आभार व्यक्त करते हुए कहा कार्यक्रम का उद्देश्य वर्तमान में चल रही कठिन परिस्थितियों में नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मकता की ओर बढ़ने का एक प्रयास है जो कि मात्र धर्म और संस्कृति के  द्वारा ही संभव है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय अवधेश मिश्रा जी ने कार्यक्रम की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा रामचरितमानस त्यागी की कथा है हम सभी को अपने अंदर विद्यमान अन्याय का त्याग करना होगा हम बदलेंगे जग बदलेगा हम सभी को सुधार के साथ नई पीढ़ी को संस्कृति और संस्कारों से जोड़ना होगा।कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों को सम्मान पत्र देकर प्रोत्साहित किया गया ,संस्कृति के संवर्धन के साथ कार्यक्रम पूर्णता सफल रहा।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

तीसरा-8
*तीसरा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-8
रह अचेत सोवत पुरवासी।
नंदहिं गोकुल गाँव-निवासी।।
    अस लखि तब बसुदेवा तुरंता।
    जसुमति-खाटहिं रखि भगवंता।।
तहँ तें लइ कन्या नवजाता।
बंदीगृह आए जहँ माता।।
    कन्या सुता देवकी-सैया।
     जसुमति-खाटहिं किसुन कन्हैया।।
निज पगु बँधि बेड़ी-जंजीरा।
गए बैठि तहँ धरि हिय धीरा।।
    सकीं न जानि जसोदा माता।
    कइसन अहहि तासु नवजाता।।
लइका अथवा लइकी अहही।
माया-जोग अचेतइ रहही।।
दोहा-जे केहु धारन प्रभु करै, हिय रखि प्रेम अपार।
         जग-बेड़ी-बंधन कटै,जाय सिंधु-भव पार।।
         जमुन-नाम कृष्ना अहहि,कृष्न जमुन कै नीर।
         अस बिचार करि जमुन-जल,कृष्न हेतु भे थीर।।
        सूर्यबंस मा जब रहा,राम प्रभुहिं अवतार।
        चंद्र पिता बाँधे रहे,सागर-नीर अपार।।
        चंद्रबन्स अब प्रभु अहहिं, सुता अहहुँ मैं भानु।
        अस बिचार जमुना भईं,थीर प्रभुहिं पहिचानु।।
        कहहिं जगत-सत्पुरुष सभ,रख जे हिय भगवान।
        लहहि अलौकिक सुख उहहि,रहइ उ पुरुष-प्रधान।।
       ह्रदय प्रभुहिं रखि जमुन-जल,भे पुनीत जल-नीर।
       करतै मज्जन जेहि मा,सुचि मन होय सरीर।।
                   डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

नूतन लाल साहू

बुढ़ापा मत देना भगवान

सत्तर साल का बुढ़ा को
कहते है,बिल्कुल हो बेकाम
आंत भी नकली,दांत भी नकली
आंख में चढ़ गया है चश्मा
देख के ही,दूर भागते हैं
जैसे लगता हूं,सद्दाम
बुढ़ापा मत देना भगवान
छोटे छोटे बच्चे भी चिढ़ाते है
और कहते है,बाबा खटारा
मेरा भीतर ही भीतर, धधके अंगारा
पर तन हो गया है
जैसे पके हुए,रसीला आम
बीयर और व्हिस्की छूट गई
अब लटकी हुई है
ग्लूकोज की बोतल
अब ऐसा लगता है
जैसे हो गया हूं,गुलाम
बुढ़ापा मत देना भगवान
बोरोप्लस और पावडर की जगह
रगड़ रहा हूं, बाम
 बात बात पर, अपनो ने ही
लगाता है इल्जाम
पाल पोस कर,जिसे बड़े किए
वो लड़के भी, आये न काम
बुढ़ापा मत देना भगवान
लोग पुराना टी वी को बदलकर
नया ले आता है
पर हम वो खटारा है
जो अस्पताल जाते है तो नर्सें
रोज अनेको सुई चुभाते है
कुछ ही लोग बुढ़ापा में भी
होते है,खुशनसीब
पर ऐसी बुढ़ापा भी,क्या काम का
जिसके सामने,खड़ा हुआ है यमराज
सीना तान कर
बुढ़ापा मत देना भगवान

नूतन लाल साहू

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

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