विनय साग़र जायसवाल,

गीत--श्रमिक दिवस पर

तुम वर्तमान के पृष्ठों पर ,पढ़ लो जीवन का समाचार ।
क्या पता कौन से द्वारे से ,आ जाये घर में अंधकार।।
🌹
आशा की किरणें लौट गयीं ,बैठी हैं रूठी इच्छायें
प्रात: से आकर पसर गईं ,आँगन में कितनी संध्यायें
इन हानि लाभ की ऋतुओं में, तुम रहो सदा ही होशियार ।।
तुम वर्तमान-----
🍁
चल पड़ो श्रमिक की भाँति यहाँ, छेड़ो  जीवन का महासमर
अवसान हताशा का कर दो ,सुरभित हों मरुथल गाँव नगर
श्रमदेवी कर में भेंट लिये ,आयेगी करने चमत्कार ।।
तुम वर्तमान--------
🌷
प्राची ने शंख बजाया तो ,कर्तव्यों का दिनमान चला
फिर कलश उठाये हाथों में ,जीवन क्रम का अभियान चला
हर गली मोड़ चौराहों पर ,खुल गया दिवस से विजय-द्वार ।।
तुम वर्तमान-----
🌺
स्वागत हो हर श्रमजीवी का ,हर तन को भी परिधान मिले
शिशुओं के आभा-मंडल पर, सुंदर-सुंदर मुस्कान खिले
छँट जाये छाया तिमिर घना ,मिट जाये जग से अनाचार ।।
तुम वर्तमान------
🌱
हर ओर शाँति के दीप जलें , सदभाव फले हर उपवन में
*साग़र* न भयानक रूप दिखे , अपना ही अपने दर्पन में
मानवता के जलजात खिलें ,हो धूल धूसरित अहंकार ।।
तुम वर्तमान-–-----

🖋विनय साग़र जायसवाल,
बरेली


ग़ज़ल

वो फिर फोन अपना घुमाने लगे हैं
ग़ज़ल मेरी मुझको सुनाने लगे हैं

ज़माना हुआ हमसे रूठे हुए थे
हुआ क्या कि नर्मी दिखाने लगे हैं

कभी हमने उन पर जो ग़ज़लें कहीं थीं 
हमें याद वो अब दिलाने लगे हैं

जुदाई के लम्हात हैं जान लेवा
ये सब राज़ हमको बताने लगे हैं

गज़ब ढाती भेजी हैं तस्वीरें अपनी
अदाओं से अपनी रिझाने लगे हैं

जगा दी हमारी भी सोई मुहब्बत
कि अब उस तरफ़ हम भी जाने लगे 

हमें बेवफ़ा मत कहो आप *साग़र*
परेशानी अपनी गिनाने लगे हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
22/4/2021

सुषमा दीक्षित शुक्ला

मैं श्रमिक हूँ  हाँ मैं श्रमिक हूँ  ।
समय का वह प्रबल मंजर ,

भेद कर लौटा पथिक हूँ ।
मैं श्रमिक हूँ हाँ मैं श्रमिक हूँ।

अग्निपथ पर नित्य चलना ,
ही  श्रमिक  का धर्म है ।

कंटको के घाव  सहना ,
ही  श्रमिक  का मर्म है ।

वक्त ने करवट बदल दी,
आज अपने  दर चला हूँ।

भुखमरी के दंश से लड़,
आज वापस घर चला हूँ ।

मैं कर्म से  डरता नही ,
खोद धरती जल निकालूँ।

शहर के  तज कारखाने ,
गांव जा फिर हल निकालूँ ।

कर्म   ही मम धर्म है ,
कर्म पथ का मैं पथिक हूँ।

समय का वह प्रबल मंजर,
भेद कर लौटा पथिक हूँ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

मजदूर हैं हम मजबूर नही------

मजबूर नहीं मजलूम नहीं
मजदूर है हम।
मेहनत मेरा ईमान खून
पसीना बहाते हम।।
मेरा अपना  घर जीवन 
का सपना।
सारे जहाँ का घर बनाते है हम
कल कारखानों में मानव हम
मशीन बन जाते है हम।।
बड़े बड़े महल अटारी बनाते 
हम।
वैसे तो दुनियां का हर मानव
श्रम करता मगर श्रमिक 
 कहलाते हम।।
दिन और रात चिलचिलाती
धुप हो या कड़क सर्द की ठंडी
बारिस हो या तूफ़ान श्रम की
भठ्ठी में खुद को गलते है हम।।
कोई इच्छा अभिलाषा नहीं
विकास निर्माण की कोल्हू में
पिसते जाते हम।।
दो वक्त की रोटी मेरे लिये 
जीवन की सौगात 
आजाद मुल्क में गुलाम सा
जीवन जीते जाते हम।।
गीता में कर्म योग कृष्णा का
ज्ञान सिरोधार्य कर कर्मएव जयते
धर्माएव जयते श्रमएव जयते सत्यमेव जयते को जीते जाते हम।।
खून हमारा पानी जीना
मारना बेईमानी वक्त समय
घुट घुट कर जीते जाते हम।।
अभिमान हमे भी हम है मानव
किला दुर्ग हो या रेल ,प्लेन
हम मजदूर बनाते है।।
अब बिडम्बना मेरी किस्मत का
अपने ही वतन में प्रवासी कहलाते
हम।।
पल पल चलते राष्ट्र धुरी के
इर्द गिर्द साथ चलते जाते 
हम।।
 जो भी हम निर्माण करे 
मेरा अधिकार नहीं रेल
की भीड़ में धक्कम धक्का
खाते है हम।।
आकाश में उड़ते वायुयान
देख खुश हो जाते है
अपने ही कृति कौशल की
दुनियां से अनिभिज्ञ हो जाते
हम।।
ऐसे उद्योगों में जहाँ जहर ही
जिंदगी जीवन की परवाह नहीं
जहर भी पीते जाते हम।।
खेतिहर मजदूर या कामगर
हर प्रातः नगर शहर चौराहों
पर नीलाम हो जाते हम।।
सर्कस या चिड़िया घर के
जानवर मजदूरों का अपनी
भाषा भाव में परिहास उड़ाते है।।
मानव ने ही मुझको गुलाम बनाकर बंदी गृह में कैद किया
फिर भी हम तुम मजदूरों से
बेहतर अपनी मर्जी से जीते
मौज मनाते है।।
कही मेम् का डांगी बेशकीमती
कारो से मुस्काता कहता हम तो
प्राणी अधम जाती कुकर्मो से
जानवर फिर भी मानव मजदूर
तुमसे बेहतर  हम।।
गर हो जाए रोग ग्रस्त 
अस्पताल इलाज के चक्कर में
ही दम तोड़ जाते हम।।
किस्मत से इंसान बदकिस्मत से
मजदूर सिर्फ सांसो धड़कन की
काया में जीते जाते हम।।
ना कोई हथियार हाथ में ना कोई 
दुःख पीड़ा सत्य और आग्रह से
इंकलाब हम गाते है।।
मांगे गर अधिकार शांति से जीवन
जीने का लाठी गोली खाते मारे
जाते हम।।
किसी मिल का द्वार प्रांगण हो
या हो मजदूर किसान के स्वाभिमान की बात पैरों से
रौंदे जाते हम।।
चाहत इतनी काम मिले काम
का न्यायोचित दाम मिले 
जीवन जीने का अवसर उचित
सम्मान मिले।।
मेरी भी पीढ़ी अभिमान 
से जीवन जीना सीखे 
नैतिक मूल्यों के राष्ट्र में
मानव बन कर जीये।।
वैसे तो हर मानव मजदूर
श्रम कर्म की महिमा मर्यादा
मानव मजदूरों में जीना
सीखे ।।
अहंकार नहीं अभिमान नहीं
अधिकार के आयांम में करते
पुकार शंख नाद हम चाहते मजदूरों की खुशहाली सम्मान हम।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

एस के कपूर श्री हंस

*।।विषय।।।।मजदूर दिवस।।*
*।।रचना शीर्षक।।कॅरोना संकट और प्रवासी मजदूरों का पलायन।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
क्या सोच कर वह हज़ारों मील
नंगे पांव   चला   होगा।
कितना   दर्द   उसके  सीने  के 
भीतर     भरा       होगा।।
सवेंदना शून्य रास्तों पर     कैसे
बच्चों ने होगा कुछ खाया। 
जाने कब तक यह जख्म उसके
सीने में    हरा        होगा।।
2
प्रवासी से आज फिर  से     वह
स्वदेशी   हो    गया    है।
लौट कर वापिस  अपनी   मिट्टी
फिर प्रवेशी हो गया है।।
कुछ जड़े कहीं  तो   कुछ  कहीं
अब   गई हैं बिखर सी।
अपनो के बीच भी लगता   जैसे
परदेसी ही   हो गया  है।।
3
पाँव  चल  रहा  था  और    पांव
जल       रहा        था।
अरमान टूट रहे  थे और  परिवार
कैसे    पल   रहा था।।
फूट रहे थे सब सपने और बिखर
रहा था संसार उसका।
मजदूर अपनी आँखों  में     आज  
खुद  ही खल रहा था।।
4
जरूरत है उसको   हमारे    और 
अपनों के      याद     की।
फिर से जोड़ने   तिनका  तिनका
उन सपनों   के साथ की।।
सरकार को भी आगे    चल   कर
उसका हाथ थामना होगा।
लगाने को मरहम    उन      रिसते 
जख्मों पर प्यारे हाथ की।।

*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस* "
*बरेली।*
मो।।             9897071046
                    8218685464

।।गजल।। संख्या 90।।*
*।।काफ़िया।। उम्मीद।दीद। खरीद*। *तसदीक।नज़दीक।तरकीब*। *रदीफ़।*
*मुरीद।करीब। फ़रीद।।*

*।।रदीफ़।। जिंदा रखना।।*
1
हमेशा जीने की उम्मीद   जिंदा   रखना
सबके लिए दिल में    दीद जिंदा रखना
2
वक़्त बहुत नाजुक जगह नहीं नफ़रत की
हमेशा महोब्बत की खरीद  जिंदा रखना
3
हर हालात में हमें जीत कर ही आना है
इस बात की भी  तसदीक जिंदा रखना
4
कभी आँख के आँसू   सूखने    नहीं देना
सबका दर्द दिल के नज़दीक जिंदा रखना
5
वक़्त पर काम आयें सब एक  दूसरे के
हमेशा ऐसी कोई तरकीब जिंदा रखना
6
 यूँ ग़ज़लें कहती रहें हालाते ज़िंदगी पर
ऐसी गज़लों के लिए रदीफ़ जिंदा रखना
7
एक ही मिली है जिंदगी  मिलेगी न दुबारा
खुद को बना सबका मुरीद जिंदा रखना
8
शुकराना अदा करो हमेशा ऊपरवाले का
किसीकी तकलीफ़ दिल करीब जिंदा रखना
9
*हंस* चंद सांसें मिली तुमको चार दिन के लिए
खुद को बना कर आदमी  फ़रीद जिंदा रखना

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464

दीद             प्रसंशा।उत्साहवर्धन
तसदीक       प्रमाणिकता

फ़रीद           बेमिसाल बेहतरीन
                    नायाब   अनुकरणीय
                    उदाहरण योग्य


।।रचना शीर्षक।।*
*।।वही काटता है व्यक्ति, जो वो*
*बोता है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
मन की अदालत का  फैंसला
जरूर    सुना   करो।
अंतर्मन की बात को       तुम
जरा      गुना    करो।।
कहते हैं अंतर्मन में  परमात्मा
का वास     होता  है।
ईश्वर का    आदेश   मान कर
उसे न अनसुना करो।।
2
दिल की अदालत का फैंसला
गलत नहीं होता है।
जो मानता नहीं समय से  वह
फिर आगे   रोता है।।
दूसरे की देखने से  पहले जरा
अपनी गलती  देखो।
यही नियम कि वही     काटता
व्यक्ति जो   बोता है।।
3
जियो और जीने दो का      तंत्र
रखो    जीवन   में।
सद्भावना व सहयोग का     यंत्र
रखो     जीवन   में।।
जीवन को बनायो तुम   उदाहरण
योग्य सबके    लिये।
भाग्य नहीं केवल कर्मशीलता का
मंत्र रखो जीवन में।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464

नूतन लाल साहू

घमंड

अहंकार,इंसान के पतन की
पहली सीढ़ी है
जिस पर खुशी खुशी
पांव रखकर,चढ़ता चला जाता है
फिर एक दिन,पतन के गर्त में
समा जाता है
व्यक्ति को कभी भी अहंकार
नही करना चाहिए
क्योंकि कोई भी व्यक्ति
कितना ही बड़ा क्यों न हो
कितना भी धनवान क्यों न हो
दुनिया में,वही अंतिम नही है
धन दौलत और ऐश्वर्य
चलती दिखाई नहीं देती
लेकिन हकीकत में
ये चलती है और
मालिकाना हक़,बदलती रहती है
धन और संपत्ति,हाथ का मैल है
व्यक्ति को चाहिए कि
यदि आपके पास,पैसा है तो
उससे सुकीर्ति खरीदें
यह सुकीर्ति ही उसको
सम्मान दिलाती है
हमें कभी भी,कठोरता का
प्रदर्शन नहीं करना चाहिए
क्योंकि कहा जाता है कि
जो झुकता नहीं है,वह टूट जाता है
जीवन में,कठोरता का रुख
नही अपनाना चाहिए
जैसे कि,दांत भी हालाकि
जीभ के बाद,मुंह में आते है
लेकिन कठोरता के कारण
पहले टूटता है
नम्रता ही,सुखी और लंबे
जीवन का आधार है
अहंकार,इंसान के पतन की
पहली सीढ़ी है
व्यक्ति को कभी भी घमंड
नही करना चाहिए

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा-4
  *चौथा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
गया कंस तुरतै निज गेहा।
मन प्रसन्न अरु पुलकित देहा।।
    निसा-बिगत बुलाइ निज सचिवहिं।
   तिनहिं बताया माया-कथनहिं।।
मंत्री तासु न नीतिहिं निपुना।
असुर-सुभाउ, बोध तिन्ह किछु ना।।
    रखहिं सुरन्ह सँग रिपु कै भावा।
    अस मिलि सभ कंसहिं समुझावा।।
भोजराज! तव आयसु मिलतइ।
लघु-बड़ गाँव-नगर महँ तुरतइ।।
     हम सभ जाइ अहीरन्ह बस्ती।
     जे सिसु लिए जनम निज नियती।।
पकरि क तिनहिं बधहुँ तहँ जाई।
अस करनी महँ नाहिं बुराई।।
     नहिं करि सकहिं लराई देवा।
     समर-भीरु ते का करि लेवा।।
तव धनु कै सुनतै टंकारा।
भागहिं सभें बिनू ललकारा।।
    लखतै तव सायक-संधाना।
    इत-उत भागहिं देवहिं नाना।।
केचन तजहिं भूइँ निज सस्त्रा।
केचन खोलि चोटि-कछ-बस्त्रा।।
    आवहिं तुम्हरे सरनहिं नाथा।
     कर जोरे नवाय निज माथा।।
कहहिं नाथ भयभीतहिं हम सब।
रच्छा करहु नाथ तुमहीं अब।।
     मारउ तू नहिं तिनहीं नाथा।
     सस्त्र-बिहीन रथहिं नहिं साथा।।
दोहा-जुधि तजि जे भागै तुरत,मारहु तिन्ह नहिं नाथ।
          तुमहिं पुरोधा पुरुष हौ,कहा सचिव नइ माथ।।
                      डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

एस के कपूर श्री हंस

।।रचना शीर्षक।।*
*।।प्रभु ने यह जीवन दिया है*
*किसी के उद्धार के लिए।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
इंसान   की   बातों    से इंसान
का पता चलता है।
उजालों के   बाद      रातों  का
पता    चलता   है।।
वक़्त चेहरे   से   चेहरे    उतार
कर    देता  है रख।
कर्मों से   व्यक्ति भाग्य   खातों
का पता चलता है।।
2
ईश्वर ने सांसें दी है इस   संसार
में सरोकार के   लिए।
यह जीवन मिला है     सहयोग
परोपकार के।   लिए।।
केवल खुद के लिए  ही   जीना
पर्याप्त    नहीं   होता।
प्रभु ने जन्म दिया   पीडित  को
खुशी उपहार के लिए।।
3
जानलो कर्मों की फसल संबको
काटनी    पड़ती    है।
अपनी करनी   भी   संबको   ही
छाँटनी    पड़ती    है।।
अपना किया सबको  भोगना ही
है                 पड़ता।
इसी जीवन में अपनी   भूल हमें
चाटनी    पड़ती    है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।      9897071046
                      8218685464


।विषय।।दर्पण।।*
*।।रचना शीर्षक।। दर्पण*
*न्यायाधीश है ,सच और झूठ*
*दिखाने का।।*
*विधा।।मुक्तक।।*
1
मन से पूछो   कि  मन   में
क्या    रहता     है।
जान लो कि    मन में  प्रभु
का वास बहता है।।
मन की सुनो      कि    मन
झूठ   बोलता नहीं।
ईश्वर भीअंतर्मन को *दर्पण*
कहता            है।।

*दर्पण*    सच   का   केवल
शीशा ही नहीं है।
तेरे सामने    बताता  कि तू
गलत    कहीं  है।।
*दर्पण* न्यायाधीश  है सच
और    झूठ   का।
दिखाता *दर्पण*  कि  सत्य
यहीं   वहीं     है।।

टुकड़े टुकड़े      होकर   भी
*दर्पण* रुकता नहीं है।
झूठ के      सम्मुख      कोई
अंश झुकता नहीं है।।
झूठ में हिम्मत  नहीं  *दर्पण*
सामना करने    की।
क्योंकि झूठ  *दर्पण*  सामने
टिकता    नहीं   है।।

*दर्पण* बताता   कैसे आत्म
अवलोकन करना है।
सिखाता कैसे     झूठ    का
अवरोधन करना है।।
*दर्पण* को मान  कर   चलें
शिक्षक       समान।
*दर्पण* दिखाता  अंतःकरण
का शोधन करना है।।

*दर्पण* को झूठ से चिढ़ है
सत्य अर्पण कीजिये।
अपनी अंतरात्मा का    भी
रोज़  *दर्पण* कीजिये।।
प्रतिदिन स्वीकार  करें त्रुटि
*दर्पण*  समक्ष जाकर।
मान कर   देव तुल्य   आप
बस समर्पण कीजिये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।।            9897071046
                     8218685464

निधि मद्धेशिया

*समीक्षार्थ* 

नम-नयन भाव-कंठ अवरुद्ध
कर देगी प्रकृति सभी को बुद्ध। ?


मृत्यु पर क्योंकर हो, अब परिहास
जो जन गए सुरलोक, हुए खास।


सज्ज रहो शरीर, बनने को विदेह
बुन रहा जाल, काल चुनकर देह।

निधि मद्धेशिया
कानपुर
 *सुप्रभातम् काव्य-सृजन के* *सहयात्रियो 🌞🇮🇳🌹🎸🙏🏻*

मधु शंखधर स्वतंत्र

सुप्रभात.... राम राम सभी को.....🌷🌷🙏🏼
*भोर का नमन*
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब, 
मन के सारे दुख मिट जाएँ।
सूर्य क्षितिन्ज्या की लाली में,
तन मन दोनों ही मिल जाएँ।।

नहीं रुदन की आवाजें हों,
नहीं बिलखता बचपन हो अब।
अन्तर्मन की त्रास मिटा दो,
दूरी सारी दूर करो अब।
हाथ - हाथ में हो अपनों के,
सब मिल बैठे नाचें गाएँ।
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे................।।

महाकाल का नृत्य थमे अब,
पहले सा हँसता बचपन हो।
उजड़े न घर बार किसी का,
पुष्पों से खिलता उपवन हो।
धरती पर छाए हरियाली,
ऋतुओं संग त्यौहार मनाएँ
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे.................।।

कटुता कपट कुसंगत भागे,
पर उपकारी भाव बसे अब।
समता, साहस , सरस भावना,
बस जाए जन जन के मन अब।
इर्ष्या द्वेष भुलाकर सारे,
शोभा मधु जग सहज बढ़ाएँ।
हे प्रभु ऐसी भोर करो अब,
मन के सारे.................।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल
मात्रा-भार-16
समांत--आर
पदांत--चाहिए
प्रेम-भाव-व्यवहार चाहिए,
सुंदर सोच-विचार चाहिए।।

आपस में बस रहे  एकता,
ऐसा  ही  संसार  चाहिए।।

सुख-दुख में सब हों सहभागी,
मन  में  नहीं  विकार  चाहिए।।

सदा करे उत्थान देश का,
बस ऐसी सरकार चाहिए।।

स्वस्थ पौध से भरे बगीचा,
ऐसा जल-संचार चाहिए।।

वृद्ध जनों का हो सम्मान,
उनका स्नेह-दुलार चाहिए।।

सुख मिलता है मधुर बोल से,
ऐसा  शिष्टाचार  चाहिए।।
         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

तेरा ये फ़ैसला झूठा ज़रूर निकलेगा
कुसूरवार जो था बेकुसूर निकलेगा 

यक़ीं है शोख का इक दिन ग़ुरूर निकलेगा
वो मेरी राह से होकर ज़रूर निकलेगा

पलट रहा है वरक फिर कोई कहानी के 
न जाने कितने दिलों का फ़ितूर निकलेगा

पिला न साक़िया अब और जाम रहने दे 
अभी दिमाग़ में बाक़ी सुरूर निकलेगा

हमारे ख़ूं का मुक़दमा गया अदालत तो 
तुम्हारे नाम का सारा ज़हूर निकलेगा

किसी भी ख़ौफ़ की परवाह क्यों हमें *साग़र*
ये आप सोचिये किसका कुसूर निकलेगा

🖋️विनय साग़र जायसवाल
8/7/1995

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

हमारे मुल्क में ऐसी कोई सरकार आ जाये
सभी के हाथ में अच्छा सा कारोबार आ जाये

खुली सड़को पे पीते हैं शराबी बोतलें लेकर 
इलाक़े का भला ऐसे में थानेदार आ जाये

वबा की मार से हर रोज़ ही इंसान मरते हैं
करोना की दवा इस बार तो दमदार आ जाये

वगर्ना ग़म के सागर में किसी दिन डूब जायेंगे
*कहानी में ज़रूरी है नया किरदार आ जाये*

दुआएं माँ की उस लम्हा भी मेरे  साथ रहती हैं
भले तूफान में कश्ती मेरी मझधार आ जाये 

बहारें मस्त हैं चारों तरफ़ हैं वादियाँ महकी 
मज़ा हो तब अगर ऐसे में अपना यार आ जाये

वो अक्सर रूठ जाता है ख़मोशी ओढ़ लेता है 
मनाने को उसे करना मुझे मनुहार आ जाये

*चुनावी डियुटियों में हम लगा दें मंत्री सारे*
*वबा के दौर में गर हाथ में सरकार आ जाये*

हमेशा भूख से लड़ते ही देखा काश अब *साग़र* 
रईसों की सफ़ों में देश का  फ़नकार आ जाये

🖋️विनय साग़र जायसवाल
16/4/2021

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*वृक्ष*
        दोहे(पादप)
पादप की महिमा अकथ,यह धरती का प्राण।
औषधि एक अमोघ यह,करता जन-कल्याण।।

पत्र-पुष्प-फल-स्रोत तरु,करे शुद्ध जलवायु।
इसकी रक्षा से बढ़े, जीव-जंतु की आयु।।

हरियाली ही विटप की,देती हर्ष अपार।
पथिक बैठ तरु-छाँव में,पाता सुख-संसार।।

पादप ठौर-ठिकान है,नभचर-रुचिर निवास।
मधुर कंठ खग-गीत कर,सुखमय चित्त उदास।।

पत्र-पुष्प-फल,जड़-तना,पादप का हर अंश।
हैं जीवन-आधार ये,नष्ट न हों तरु-वंश ।।

प्रकृति अतुल निधि वृक्ष ये,महि-शोभा की खान।
वृक्षारोपण कर्म शुचि,मानव-धर्म महान ।।

करें प्रतिज्ञा एक ही,तरु-रक्षा-अभियान।
पादप-सेवा से मिले,भव-सुख अमिट निधान।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
               9919 44 63 72

*कुण्डलिया*
जपते रह प्रभु राम को,करें विष्णु-शिव जाप,
इसी मंत्र से मीत सुन ,कटे  सकल भव-ताप।
कटे सकल भव-ताप,मिलें खुशियाँ भी सारी,
संकट - मोचक  राम, नाम की महिमा  भारी।
कहें मिसिर हरिनाथ,  काम सब बिगड़े बनते,
घटे सदा अघ-पाप,  राम  को  जपते-जपते ।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा-3
   *चौथा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3
जब तक नर जानै नहिं अंतर।
सुख-दुख सदा रहहि अभ्यंतर।।
    जनम-मरन यहि कारन भवई।
    होतै ग्यान मुक्ति पुनि मिलई।।
'बध्य'-'बधिक' सम मन अग्याना।
देइ सतत दुख जग बिधि नाना।।
     मैं अब 'मरब'व'मारब'तुमहीं।
     अस बिचार अग्यानहिं अहहीं।।
'छमहु मोंहि तुम्ह' साधु-सुभाऊ।
दीनन्ह रच्छक सभ मन भाऊ।।
   अस कहि कंस पकरि तिन्ह चरना।
   रोवत रहा जाइ नहिं बरना ।।
तिनहिं मुक्त करि बंदी-गृह तें।
लगा दिखावन प्रेम हृदय तें।।
   देवकि लखि कंसइ पछितावा।
   दीन्ह छमा तेहिं  प्रेम सुभावा।।
भूलि क तासु सकल अपराधू।
कह बसुदेवहिं नेह अगाधू।।
    तोर बचन हे कंस मनस्वी।
    परम उचित अस कहहिं तपस्वी।
जब 'मैं' भाव जीव महँ आवै।
जीवहि ग्यान-भ्रष्ट कहलावै।।
   'तव'-'मम'-भेद तुरत उपजावै।
   'अपुन'-'पराया'-पाठ पढ़ावै।।
उपजै सोक-लोभ-मद-द्वेषा।
भय उर बसै साथ लइ क्लेसा।।
   जीव न समुझइ भगवत माया।
   रहइ सदा माया-भरमाया ।।
सोरठा-कहे मुनी सुकदेव, सुनहु परिच्छित ध्यान धरि।
           देवकि अरु बसुदेव, छमा कीन्ह कंसहिं तुरत।।
                         डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

चौथा-2
   *चौथा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
कर तें पकरि सिला पे पटका।
निर्मम कंसा दइ के झटका।।
    पर ऊ कन्या नहीं सधारन।
   देबी-बहिन किसुन-मन-भावन।।
तजि कर कंसइ उड़ी अकासा।
आयुध गहि अठ-भुजा उलासा।।
     चंदन मनिमय भूषन-भूषित।
     माला गरे बसन तन पूजित।।
धनु-त्रिसूल अरु बान-कटारा।
गदा-संख-चक-ढालहिं धारा।।
    सिद्ध-अपछरा-चारन-किन्नर।
    नागहिं अरु गंधरबहिं-सुर-नर।।
अर्पन करत समग्री नाना।
लगे करन स्तुति धरि ध्याना।।
    देबि स्वरूपा कन्या कहही।
    सुनहु कंस तू मूरख अहही।।
मारि मोंहि नहिं तुमहीं लाभा।
कहुँ जन्मा तव रिपु लइ आभा।।
    कहत अइसहीं अन्तर्धाना।
    माया भई जगत सभ जाना।।
देबि-बचन सुनि बिस्मित कंसा।
बसू-देवकी करत प्रसंसा।।
    कहा सुनहु मम अति प्रिय बहना।
    नहिं माना बसुदेव कै कहना।।
बधत रहे हम सभ सुत तोरा।
छमहुँ मोंहि तव भ्रात कठोरा।।
    मैं बड़ पापी-अधम-अघोरा।
   बंधुन तजा रहे जे मोरा।।
होंहुँ अवसि मैं नरकहि गामी।
घाती-ब्रह्म-कुटिल सरनामी।।
     मम जीवन भे मृतक समाना।
     बड़ आतम तुम्ह अब मैं जाना।।
नहिं लावहु निज मन-चित सोका।
पुत्र-सोक बिनु रहहु असोका।।
दोहा-सुनहु बसू अरु देवकी, कहा कंस गंभीर।
        कर्म प्रधानहिं जग अहहि,करमहि दे सुख-पीर।।
       माटी तन बिगड़इ-बनइ, पर रह माटी एक।
       अहहि आतमा एक बस,जदपि सरीर अनेक।।
       जानै जे नहिं अस रहसि,समुझइ नहिं ई भेद।
       बपुहिं कहइ आतम उहहि,आतम-बपु न बिभेद।।
                       डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

एस के कपूर श्री हंस

।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना,अभी जरा ठहर*
*जायो कि तूफान गुज़र जाये।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
हिम्मत रखना दिन वैसे ही
फिर गुलज़ार होंगें।
बीमारी से दूर फिर शुभ
समाचार होंगें।।
दौर पतझड़ का आता है
बहार आने से पहले।
पुराने दिन फिर वैसे ही
बरकरार होंगें।।
2
लौटकरआ जाएंगी खुशियाँ
अभी कठिन वक़्त है।
यह कॅरोना ले रहा जरा
परीक्षा सख्त है।।
समय से लें दवाईऔर ऊर्जा
बढ़ायें अपनी।
इस कॅरोना के खूनी पंजों
में लगा रक्त्त है।।
3
जान बाजी लगा निकलने
की जरूरत नहीं है।
यूँ ही चितायों में जलने
की जरूरत नहीं है।।
भयानक मंजर खूनी खंजर
है इस कॅरोना का।
लापरवाही से काम लेने की
जरूरत नहीं है।।
4
जरा सा ठहर जायो कि
तूफान गुजार जाये।
इस दूसरी लहर का ये नया
उफ़ान गुज़र जाये।।
यूँआँधी में बेवजह निकलना
नादानी होती है।
हम सब निखर कर आयेंगें
ये मुकाम गुज़र जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464

।।ग़ज़ल।।संख्या 89।।*
*।।काफ़िया।। ऊर ।।*
*।।रदीफ़।। न बन जाये।।*
1
देखना कि कोई ज़ख्म नासूर न बन जाये
बिना वजह कोई बात कसूर न बन जाये
2
लाज़िम कि बोलें हर बात सोच समझ के
कोई बात यूँ ही बेहूदा शहूर न बन जाये
3
दिल दुखाने का किसी को अख्तियार नहीं
चाहे कोई कितना भी क्यों मशहूर न बन जाये
4
धन दौलत यह सब तो आनी जानी माया है
रखना ध्यान कि अंदर तेरे गरूर न बन जाये
5
दिलों से दिलों की तुरपन हमेशा करते रहना
देखना कि तेरे सामने कोई मजबूर न बन जाये
6
बच्चों को भी हर बात खूब सिखाते रहना
अपने पैरों खड़े होने को भरपूर न बन जाये
7
दोस्ती हर दोस्त से निभायो कुछ इस हद तक
आपके दरमियाँ महोब्बत का सरूर न बन जाये
8
*हंस* कोशिश करते रहो हर दिन अच्छा बनने की
जब तक अंदर अच्छा इंसान जरूर न बन जाये

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464

*।।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना   सावधानी हटी*
*दुर्घटना घटी।।*
*।।विधा।।हाइकु।।*
1
यह   कॅरोना
दूर दूर रहना
पर    डरोना
2
ये    जानलेवा
बाहर न घूमना
पत्नी हो बेवा
3
समझदारी
दो गज़ की हो दूरी
ये जिम्मेदारी
4
खतरनाक
वायरस अदृश्य
हो अचानक
5
बचके यार
सदी में एक बार
रोग दुश्वार
6
कॅरोना रोग
क्षमता   बढ़ाइये
छोड़िये भोग
7
रोग भगाना
बाहर   निकल न
हमें जगाना
8
ये महामारी
दूर   रहो    इससे
हल बीमारी
9
कॅरोना चाल
तोड़नी है श्रृंखला
हो अच्छा हाल
10
ये है वैश्विक
साथ दो ओ साथ लो
न हो ऐच्छिक
11
अदृश्य अणु
अंजान    शत्रु     यह
रोगी  विषाणु

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।     9897071046
                     8218685464

[28/04, 8:33 am] +91 98970 71046: *।।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना महामारी, रुकना घर*
*में ,तेरी हार नहीं जीत है।।*
*।।विधा ।।मुक्तक।।*
1
रुकना घर में तेरी हार
नही जीत है।
यह कॅरोना नहीं तेरा
कोई मीत है।।
चोट देनी है इस दुश्मन
को बहुत करारी।
दुश्मन अनदेखा छिपकर
लड़ो यही रीत है।।
2
दो ग़ज़ की दूरी मास्क है
जरूरी प्रमुख गीत है।
जरा सी असावधानी से
जीवन जाता बीत है।।
सब्र का फल समस्या का
हल निकलेगा जरूर।
इस धैर्य में ही अंतर्निहित
जीवन संगीत है।।
3
आज वक़्त बुरा है दौर यह
कल गुजर जायेगा।
दवाई से हालात जरूर ही
अब सुधर जायेगा।।
वक़्त रहते जो हम चेत गये
तो जान लीजिए।
खत्म इस दुष्ट कॅरोना का 
हो सफर जायेगा।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464
[28/04, 8:33 am] +91 98970 71046: *।।ग़ज़ल।। संख्या 88।।*
*।।काफ़िया।। अना।।*
*।।रदीफ़।। चाहिये।।*
1
आँधियों में भी ये चराग जलना चाहिये।
हर दिल में जज्बा हमेशा पलना चाहिये।।
2
हाथ छूना नहीं और साथ छोड़ना नहीं।
ख्याल सबकाअभी यूँ रखना चाहिये।।
3
खैरियत इसी में कि जरा घर में टिको
अभी यूँ बेवजह नहीं निकलना चाहिये।।
4
अभी शहर का मंजर कुछ जुदा जुदा सा है।
जरा रखो सब्र कि दौर गुज़र जाना चाहिये।।
5
अनदेखा अनजाना सा यह कोई वायरस है।
लड़ने को भी दुश्मन जाना पहचाना चाहिये।।
6
कदमों का रुकना मजबूरी नहीं जरूरी है।
यूँ ही दुश्मन को घर अपने नहीं बुलाना चाहिये।।
7
*हंस* फिर वैसी ही जिन्दगी हमारी मुस्करायेगी।
अभी मिलकर इस कॅरोना को हराना चाहिये।।

*रचयिता।।एस के कपूर" श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                    8218685464
[28/04, 8:33 am] +91 98970 71046: *।।रचना शीर्षक।।*
*।।कॅरोना महामारी, आज का*
*प्रयत्न दुनिया को सुनहरा*
*कल देगा।।*
*।।विधा।। मुक्तक।।*
1
क्यों यूँ ही जिन्दगी का 
जुर्माना भरना है।
क्यों जानते हुए कदम
बाहर धरना है।।
जान लीजिए कि जान
है तो है जहान।
क्यों कॅरोना की कड़ी
मजबूत करना है।।
2
अभी तक संबको लग रही
ये दवाई है।
तबतक पालन करना अभी
जरूरी कड़ाई है।।
आज वक़्त बुरा कल अच्छा
भी जरूर आयेगा।
किसीसे अभी न मिलो छिपी
सबकी भलाई है।।
3
आज का धीरज कल संतोष
का सुफल देगा।
इस बीमारी का उचित निदान
और हर हल देगा।।
प्रकृति से जुड़े और प्रतिरोधक
क्षमता को बढ़ायें।
हमारा आज का प्रयत्न दुनिया
को सुनहरा कल देगा।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
                      8218685464

नूतन लाल साहू

अतीत का सच

व्यक्ति को अपना गुजरा हुआ वक्त
कभी नहीं भूलना चाहिए
जो व्यक्ति अतीत का बुरा वक्त
हमेशा याद रखता है
उनका पांव सदा जमीन पर ही
टिके रहता है
अहंकार कभी भी उन पर
हावी नहीं हो पाता
हमें उस व्यक्ति के प्रति
सदा श्रद्धा से नतमस्तक
रहना चाहिए
जो हमारी जरुरते पूरी करता है
दुःख के समय जिसने
हमें ढांढस बंधाया
बुरे वक्त में जिसने
हमारे आंसू पोंछे है
इसीलिए व्यक्ति को अपना गुजरा वक्त
कभी नहीं भूलना चाहिए
बाधाओं से घबराने के बजाय
दृढ़ता से,उनका मुकाबला करना चाहिए
क्योंकि हौंसले जीतते है
और बाधाएं टूटती है
हमारे जीवन में, जो बाधाएं आई थी
वही हमे संघर्ष करने का
मुसीबत से लड़ने का और
आगे बढ़ने का
हौसला प्रदान करती है
जिंदगी जीना आसान नहीं होता
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता
जब तक न लगे हथौड़े की चोंट
पत्थर भी भगवान नही बनता है
संघर्ष ही व्यक्ति को
सचमुच में सच्चा इंसान बनाता है
यही तो अतीत का सच है

नूतन लाल साहू

विश्वास

यदि आप कठिन परिस्थिति से
घिर गए है, तो भी
निराश न हो
सोचिए, विचारिए और देखिए
आपने कहां कहां और
क्या क्या गलतियां की है
यदि आपमें राई के दाने
जितना भी विश्वास है तो
आप अवश्य सफल होंगे
गलतियों को सुधारिए और
एक नया जोश के साथ
एक नया विश्वास के साथ
दोबारा काम शुरू कीजिए
भूलकर भी,स्वयं की योग्यता पर
अविश्वास नहीं करना चाहिए
हमें नया सोचना चाहिए
काम भले ही,पुराना हो
समय की मांग के अनुसार
परिवर्तन कर
नए ढंग से,काम करना चाहिए
वक्त के साथ,बदलने वाला व्यक्ति
किसी भी क्षेत्र में, मात नही खाते है
दूरदर्शिता से काम लें
मन,मस्तिष्क और आंखे
हमेशा खुली रखें
आत्मविश्वास ही तो
सफलता की सीढ़ी है
लाख दल दल हो
पैर जमाएं रखिए
हाथ अगर खाली हो तो
हाथ ऊपर उठाए रखिए
कौन कहता है कि
चलनी में पानी नहीं रुकता है
सिर्फ बर्फ जमने तक
हौसला बनाएं रखिए

नूतन लाल साहू

निशा अतुल्य

भक्ति गीत
29.4.2021

प्रभु जी सबकी विपदा टारो ,
प्रभु कर दो सब पर उपकार ,
हम बालक बड़े हैं नादान ,
करो अब तुम ही बेड़ा पार ।

हम मूढ़ है, हम है अज्ञानी ,
तेरी महिमा किसने जानी ,
तू तो सबसे महान प्रभुवर ,
प्रभु कर दो सब पर उपकार ।

तेरी शक्ति से गिरिवर कापें,
कंठ में तूने गरल साधे ,
करने जग का कल्याण शम्भु,
करो अब तुम ही बेड़ा पार 

शक्ति तुम्हारी दुर्गा माता ,
अर्धनारीश्वर कहलाता ,
करें हम करुण पुकार प्रभु जी,
करो सब पर तुम ही उपकार ।

तुम विध्वंसक तुम बैरागी
तुमने पढ़ाई प्रेम की पाती
प्रभु घूमे ले सती ब्रह्मांड 
दे दो हमें भी नवदा ज्ञान 
करो हम पर उपकार प्रभु जी ।
करो भव से बेड़ा पार प्रभु  ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गीत

ये मुकाम आ गया है यूं ही राह चलते चलते!।                                         ये मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते।।                                      ईमान है या धोखा मंज़िल हैं या मौका तूफ़ाँ मुश्किलों में जिन्दगी के हर कदम पे एक चिराग जलाया हमने ये चिराग मुस्कुराते यादों के आॖईने में।।       

ए मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते!।                                       

यकी आरजू के वादों कोशिशों में कितने ही दौर गुजरे कल भी अधूरा इंसा आज भी अधूरा आदमी!।           ये मुकाम आ गया है यूँ राह चलते चलते!।                                 

जिन्दगी कही खूबसूरत कभी मंजिलों मंज़र कही मुस्कान का मुसाफिर कभी 
आसुओं का समन्दर।।
ये मुकाम आ गया है यूं ही राह चलते 
चलते।।          

जिंदगी के रास्तों में रिश्तों का वास्ता, खुशियों का नशा है ग़म कि है गहरायी!।                                     
ये कहाँ आ गये हम जिंदगी कि तलाश करते करते !                                  
ये मुकाम आ गया है यूँ ही राह चलते चलते।।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सुषमा दीक्षित शुक्ला

,,,रेत ,,,,

रेत सा फिसलता रहता ,
बेदर्द वक्त बंद मुट्ठी से ,
फिर भी मन में है मचलती,
आसमान की  सी उमंगे ।
रेत के टीले  सी उन्मुक्त,
ढहती हुई  जिंदगानी ,
फिर भी मानव की उम्मीदी देखो।
 बस एक मुट्ठी देह में ही ,
 ये आकाश जैसे मन संवरते ।
नैनों की  नन्ही सी कोठरी में
गगनचुंबी ख्वाब पलते ।
 रेत तू तो रेत  ही ठहरी  न ,
कब बन सके  हैं तेरे महल ।
एक तिनका उड़ा देता है तेरा वजूद ।
फिर भी तेरे मीलों लम्बे ऊँचे गुंबद।
 जगाते हैं एक अजीब सी उम्मीद।
 हवा के साथ उड़कर ,
ऊंचाई को छू लेने की तेरी जिजीविषा ।
शायद यही है जीवन व्यथा ,
यही है तेरी मेरी कहानी भी ।
तेरी  यही मौन अभिव्यक्ति
यही  है संवेदना  तेरी ।
और तेरे हौसले की उड़ान भी ।
तेरा वजूद है कितना नाजुक,
 और कितना शक्तिशाली भी ,
जब तू अपने बवंडर से ,
ले उड़ती है पूरी की पूरी बस्तियां।
 परन्तु ये भी  बदनसीबी ही है 
रेत के घर  सजाने वालों की ।
कि जब जब जगी उम्मीद ,
कोई जलजला बहा ले गया ,
रेत का घर हो  महल ।
 जिंदगी सी मचल कर 
रह जाती है किसी की मासूमियत
 फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ती दामन।
 फिर से तलाशती  है जीवन ।
 शायद  यही है मंथन ,
यही है यही दर्शन जीवन दर्शन ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चौथा-1
  *चौथा अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
सोरठा-पुनि कह मुनि सुकदेव,सुनहु परिच्छित धीर धरि।
          जब लवटे बसुदेव, भवा कपाटहिं बंद सभ।।
सिसू-रुदन सुनतै सभ जागे।
कंसहिं पास गए सभ भागे।।
   देवकि-गरभ सिसू इक जाता।
    कहे कंस तें सभ यहि बाता।।
पाइ खबर अस धावत कंसा।
गे प्रसूति-गृह ऐंठत बिहँसा।।
    लड़खड़ात पगु अरुझे केसा।
    कुपित-बिकल मन रहा नरेसा।।
काल-आगमन अबकी बारा।
सोचत रहा करब संहारा।।
   कंसहिं लखि कह देवकि माता।
    पुत्र-बधुहिं सम ई तव भ्राता।
कन्या-बध अरु स्त्री जाती।
नृप जदि करै न बाति सुहाती।।
    सुनहु भ्रात ई बाति हमारी।
    कहहुँ तमहिं तें सोचि-बिचारी।।
तेजवंत मम बहु सुत मारे।
तुम्हतें बचन रहे हम हारे।।
     अहहुँ लघू भगिनी मैं तोरी।
     बिनती करउँ न छोरउ छोरी।।
पापी रहा कंस बड़ भारी।
सुना न बिनती अत्याचारी।।
   झट-पट तुरतहिं लइकी छीना।
   किया देवकिहिं सुता बिहीना।।
दोहा-निष्ठुर-निर्मम कंस बहु,सुना न देवकि-बात।
       दियो फेंकि कन्या गगन,बरनन कइ नहिं जात।।
                      डॉ0हरि नाथ मिश्र
                        9919र46372

निशा अतुल्य

विशेष निवेदन
हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर

सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
दोनों ही दीन के दुःख हरता है
दोनों ही है बल के धाम
दोनो है घट घट के वासी
दोनों ही है,आनंद प्रकासी
प्रभु श्री राम और कृष्ण के दिव्य भजन से
मिलता है विश्राम
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
क्षण भंगुर है,जीवन की कलिका
कल प्रातः न जाने
खिली या ना खिली
सब दोस्त है,अपने मतलब के
दुनिया में किसी का कोई नही है
डरते रहो कि,यह जिंदगी
कहीं बेकार ना हो जाये
जो ध्यावै फल पावै
दुःख विनसै मन का
भक्त जनों के संकट
क्षण में दूर करें
सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
करो हरी जी का भजन प्यारे
जैसे हनुमान जी ने किया था
तीन लोक चौदह भुवन में
हनुमान जी को याद कर रहे है

नूतन लाल साहू

नूतन लाल साहू

विशेष निवेदन
हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर

सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
दोनों ही दीन के दुःख हरता है
दोनों ही है बल के धाम
दोनो है घट घट के वासी
दोनों ही है,आनंद प्रकासी
प्रभु श्री राम और कृष्ण के दिव्य भजन से
मिलता है विश्राम
जग में सुंदर है दो नाम
चाहे कृष्ण कहो या राम
क्षण भंगुर है,जीवन की कलिका
कल प्रातः न जाने
खिली या ना खिली
सब दोस्त है,अपने मतलब के
दुनिया में किसी का कोई नही है
डरते रहो कि,यह जिंदगी
कहीं बेकार ना हो जाये
जो ध्यावै फल पावै
दुःख विनसै मन का
भक्त जनों के संकट
क्षण में दूर करें
सदा रहो अलमस्त श्री राम जी की
धुन में हो जा मतवाला
मस्त हुए हनुमान जी को देखो
उर में राम दिखा डाला
करो हरी जी का भजन प्यारे
जैसे हनुमान जी ने किया था
तीन लोक चौदह भुवन में
हनुमान जी को याद कर रहे है

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*
कृपा-सिंधु प्रभु राम की,रहती कृपा असीम।
हरे कष्ट निज भक्त का,सुमिरन राम- रहीम।।

अथक परिश्रम से बने, देखो रंक नरेश।
कृपा करें श्रम-भक्त पर, ब्रह्मा-विष्णु-महेश।।

अटल रहे विश्वास यदि, पत्थर हो भगवान।
श्रद्धा होती फलवती,प्रभु की कृपा महान।।

प्रभु की लीला अकथ है,महिमा नाथ अपार।
दुष्ट-दलन के हेतु प्रभु, जग में लें अवतार।।

अनल-पवन-क्षिति-नीर-नभ,पंच-भूत ये तत्त्व।
इनसे ही निर्मित जगत, इनका परम महत्त्व।।

संत-कथन उत्तम सदा ,उसमें रख विश्वास।
उसको देता परम सुख ,मन जो रहे उदास।।

अटल-अमिट रवि-शशि-किरण,लिए तेज प्रभु राम।
रामचंद्र रवि - वंश के , एक मात्र सुख - धाम।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372



(हनुमत वंदन)
हनुमत वंदन सब करें,निश्चित हो कल्याण।
हरें कष्ट हनुमान जी, कहते वेद - पुराण।।

राम-भक्त हनुमान जी,हैं अंजनि के लाल।
लाल सूर्य को देखकर,गए लील रवि बाल।।

रावण की लंका जला, लिए सीय को खोज।
संकट को काटें वही,यदि हो सुमिरन रोज।।

पवन-पुत्र हनुमान जी, को पूजे संसार।
इनके पूजन मात्र से, होता रिपु-संहार।।

बल-पौरुष देते यही, हरते बुद्धि-विकार।
हनुमत वंदन से मिले,मन को हर्ष अपार।।

इनके ही उर में बसे, राम-सीय का रूप।
धन्य-धन्य हे पवन-सुत,सेवक राम अनूप।।

लाल अंजनी की करें, सब जन मिल जयकार।
अर्चन-पूजन साथ में, तजकर सब तकरार।।
              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

रवि रश्मि

9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

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 *हनुमान जयंती की आप ह भी को हार्दिक बधाइयाँ व शुभकामनाएँ*

   *जय जय हनुमान*
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जय जय जय हनुमान सुनो अब  , दुखियों के सब कष्ट हरो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....

करते वंदना दयानिधान , मंगल करो तुम हनुमान 
दुर्गुण से तो हमें बचाना , कभी करें न हम अभिमान  
सीधी सबको राह चलाना , सीधी सबकी राह करो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....

अंजनीपुत्र तुम्हीं हनुमान , हम करें तुम्हारा वंदन 
तुम हो सहायक करते भक्ति , राम भक्त मारुति नंदन   
कह दो सबको हे हनुमान , सभी राम की भक्ति करो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....

राम - सिया को जपने वाले , सबको समझे हो समान 
केसरी नंदन तुम बलवान , सभी के प्यारे हनुमान 
महिमा बड़ी है अपरंपार , सभी के मन तुम शक्ति भरो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धारो .....

जय जय जय हनुमान सुनो अब , दुखियों के सब कष्ट हरो .....
दे दो हमको भी आशीषें , सिर पर अपना हाथ धरो .....
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(C) रवि रश्मि  ' अनुभूति '
27.4 .2021 , 1:04 पीएम पर रचित ।
मुंबई  ( महाराष्ट्र  ) ।
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मंगल शर्मा

हनुमान जन्मोत्सव पर 



महावीर बजरंग का , नित करले जो ध्यान 
काम रुके कोई नहीं , पावे जग में मान 
भानु रुप बजरंग तुम , सूरज के अवतार 
मन से ध्यावे आपको , उसका बेड़ा पार 
रामदूत हनुमान हो , जान आपकी राम 
चरण पखारे दास अब , बारम्बार प्रणाम 
तारे अंजना मात के , पिता केसरी नाम 
सुबह शाम बस राम ही , जपना तेरा काम 
चैत शुदी जन्मे प्रभू , बजरंगी हनुमान
काज बनाए राम के , मन में सीता राम
वानर कुल के ताज तुम , भक्त शिरोमणि नाम
सालासर बजरंग का , बडा अनोखा धाम 
मेहंदीपुर के नाम से , कट जाते सब रोग
नहीं सताए डर तुम्हे , रोज लगाओ धोक 

कवि मंगल शर्मा 
स्वरचित
रेवाडी , हरियाणा
M.9813185427

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