"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को प्रणाम ,आज की रचना में बढ़ रहे अपराध पर लिखने का प्रयास किया ,अवलोकन करें... नैतिक मूल्य गिरे कतनेहौ हालि कैइसे तुँहका बतियाई।। आफति याकु रही ई प्रकृति औ दूजिन जौनु है मानव जाई।। जेलौ सुरक्षितु नाहि रहीयहिका हौं कौनिनु भाँति बुझाई।। भाखत चंचल काव कही जबु रत्क्षक भक्षक रूप देखाई।।1।।। हालि कही चित्रकूट कै जेलि जहाँ पिस्टलु कै अवाजु सुनाई।। एकु नही दुई तीनु मरे मुल आजु सवालु तुहँय समुझाई।। जेलु अधीक्षक या स्टाफ रही करत काव ई कैइसु बताई।। भाखत चंचल लगी सीसी टीवी क्यों बन्द रही नहि उत्तरू आई।।2।। सिस्टमु फेलु हुआ यहू देशु कि नैतिकता जो रसातलु जाई।। मारे गये जनौ ठीकु कहाँ अपराधी मवाली बवाली कहाई।।। मुल या करतारू ना आवै समुझ का यहू कलिकालु कै चालु कहाई।। भाखत चंचल ना आवै समुझ ई मानव कहाँ कबु वासु सुहाई।।3।। घर परिवारू ना पास परोसु नही जौ सुरक्षितु जेलौ बताई।। बीबी औ बच्चे कहाँ ही सुरक्षितु पढ़न्यौ गये जबु आफतु आई।। हे करतारू भवा है ई काव लागै मच्छर माखी ई जनु समुदाई।। भाखत चंचल काव कही असु होतु वही विधिना जो रचाई।।4।। काँपतु आजु शरीरू करेजू औ लागतु तीसरु युद्ध समाई।। मुस्लिम और यहूदी भिडे अस लागत मुस्लिम अंत देखाई।। फसिलु उगाई औ काज जौनु किहे काटन वारू गयौ नचुकाई।। भाखत चंचल कैइसु दशा ई पुरूषनु अऊर प्रकृत्ति देखाई।।5।। आवतु बातु सुनी जेसु पाक तौ बाति वही कै ना समझै मा आई।। इजराइल देशु खडा़ भुजदण्डनु जग मुस्लिम देशु सत्तावनु भाई।।। मिलिके लडै़ सबु देशु मुला वहिकय ना तबौ केऊ पीठि लगाई।। भाखत चंचल पाक बकै बसु मिनिटु मा बारहु देऊँ उडा़ई।।6।। हंस औ बाज कपोत उडे़ मुल आजु गँड़ूलरि धाकु जमाई।। दाना ना पानी घरै मा अँटै मुल जंगु को जीतन खेतनु जाई।। थाम्हि कटोरा घूमै यहु देशनु भीखु ना देनु का कोऊ देखाई।।। भाखत चंचल आवै हँसी वहू इजराइल धौंसु जमाई।।6.।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी,उ.प्र.।।मोबाइल..।8853521398,9125519009।।
जया मोहन
सिसकी
कोरोना के दंश से खुद को बचाना है
युद्धस्तर पर नियमो को अपनाना है
अगर कड़ाई से हम पालन करेंगे
तो न चल पाएगी मनमानी उसकी
हर परिवार में गूँजे की किलकारी शहनाई
अपनो को खोने के कारण
न सुनाई पड़ेगी कही से कोई दर्द भरी सिसकी
दहशत के माहौल से निकलना होगा
हार कर न जींवन खोना होगा
लड़ेगा जो जंग जीत होगी उसकी
लबो से फूटेगे गीत न सुनाई देगी सिसकी
अभी तो हर घर मे मातम छाया
किसी ने भाई किसी ने पति किसी ने पिता है गवाया
रोते रोते बन्ध गयी है हिचकी
खामोशियो को तोड़ती सुनाई देती है सिसकी
न घबरा ये दिन बदल टल जायेग
समय घावों पर मलहम लगाएगा
आ जायेगी फिर जींवन गाड़ी पटरी पर
जो लड़खड़ा कर इधर उधर है भटकी
घंटे ,अज़ान,गुरुवाणी देगी सुनाई
करेगा वही रक्षा जिसने दुनियां बनाई
दुखो का अंधेरा छटेगा
खुशियों का सूरज उगेगा
यही तो है मेहरबानी उसकी
मुस्कुराएगी दुनियां सारी
न होंगे आँसू न निकलेगी सिसकी
स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
सातवाँ-1
*सातवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
उतरहिं जगत बिबिध अवतारा।
लीला मधुर करहिं संसारा।।
बिषय-बासना-तृष्ना भागै।
सुमिरत नाम चेतना जागै।।
मोंहि बतावउ औरउ लीला।
कहे परिच्छित हे मुनि सीला।।
सुनत परिच्छित कै अस बचना।
कहन लगी लीला मुनि-रसना।।
एकबेरि सभ मिलि ब्रजबासी।
उत्सव रहे मनाइ उलासी।।
करवट-बदल-कृष्न-अभिषेका।
जनम-नखत अपि तरह अनेका।।
नाच-गान अरु उत्सव माहीं।
भवा कृष्न अभिषेक उछाहीं।।
मंत्रोचार करत तहँ द्विजहीं।
दिए असीष कृष्न कहँ सबहीं।।
ब्रह्मन-पूजन बिधिवत माता।
जसुमति किन्ह जस द्विजहिं सुहाता।।
अन्न-बस्त्र-माला अरु गाई।
दानहिं दीन्ह जसोदा माई।।
कृष्न लला कहँ तब नहलावा।
सयन हेतु तहँ पलँग सुलावा।।
कछुक देरि पे किसुन कन्हाई।
खोले लोचन लेत जम्हाई।।
लागे करन रुदन बहु जोरा।
स्तन-पान हेतु जसु-छोरा।।
रह बहु ब्यस्त जसोदा मैया।
सुनि नहिं पाईं रुदन कन्हैया।।
प्रभु रहँ सोवत छकड़ा नीचे।
रोवत-उछरत पाँव उलीचे।।
छुवतै लाल-नरम पद प्रभु कै।
भुइँ गिरि लढ़िया पड़ी उलटि कै।।
दूध-दही भरि मटका तापर।
टूटि-फाटि सभ गे छितराकर।।
पहिया-धुरी व टूटा जूआ।
निन्ह पाँव जब लढ़िया छूआ।।
करवट-बदल क उत्सव माहीं।
जसुमति-नंद-रोहिनी ताहीं।।
गोपी-गोप सकल ब्रजबासी।
कहन लगे सभ हियहिं हुलासी।।
अस कस भयो कि उलटी लढ़िया।
जनु कछु काम होय अब बढ़िया।।
तहँ खेलत बालक सभ कहई।
उछरत पाँव कृष्न अस करई।।
बालक-बाति न हो बिस्वासा।
भए मुक्त सभ कारन-आसा।।
सोरठा-होय ग्रहन कै कोप,अस बिचार करि जसुमती।
लेइ द्विजहिं अरु गोप,पाठ कराईं सांति कै।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
नूतन लाल साहू
गम ही गम है विधाता
स्थानीय समस्या पर आधारित
कोरोणा के कहर का गम
बैमौसम बारिश का गम
बंदरों के उत्पात का गम
जंगली जानवरों के आतंक का गम
बैठकर दुःख न मनाएं तो
क्या करें विधाता
क्या आप चाहते है कि
हम घुट घुट के मर जाएं
हम अपना गम न सुनाएं तो
क्या करें विधाता
हर ओर दुःख का साया
मानाकि हमसे कुछ भूल हुई
पर,सब कुछ उजड़ गया है
कुछ भी नही सुहाता
इतना बेरहम,क्यों हो गया है
तेरी कृपा कहां है विधाता
लौटा नहीं पाऊंगा मैं
जो लिया हूं,धन पराया
ये मुंह कहां छिपाऊ
अब तुम ही,बता दो विधाता
आबाद हुआ,बरबादी
क्या गत मेरी बना दी
अपने ही अंश को कष्ट देना
ये क्या अदा है,तेरी
तेरी इस अदा पर,सभी दुखी है हम
अपने सीने में,गम ही गम है
आंख नम करके सितम ढाता है
जाने क्यों तुम क्यों समझ न पाता है
बैठकर दुःख न मनाएं तो
क्या करें विधाता
अपना गम न सुनाएं तो
क्या करें विधाता
अपने सीने में,गम ही गम है
इतना बेरहम, क्यों हो गया है विधाता
नूतन लाल साहू
मधु शंखधर स्वतंत्र
🌷🌷 *सुप्रभातम्*🌷🌷
*गीत*
*विषय - दर्पण*
🪞🪞🪞🪞🪞🪞
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दर्पण सच्चा एक मीत सा, सत्य सदा दिखलाता है।
पर्दा होता अगर सामने , मौन तभी हो जाता है।
सोने चाँदी नहीं काँच का , बनता सुंदर दर्पण है।
यथा भाव से सत्य उजागर , सत्य सदा ही अर्पण है।
सर्व विदित है सहज आचरण , झाँकी सतत दिखाता है।
दर्पण सच्चा एक मीत सा....।।
जड़ा हुआ हो दर्पण चाहे , मोती मूँगा रत्नों से।
झूठ नहीं बोलेगा वह तो , मिथ्या मानव यत्नों से।
जो दिखता है वही दिखाता , यही समर्थित नाता है।
दर्पण सच्चा एक मीत सा.....।।
दर्पण जैसा सच्चा साथी, भला कहाँ तुम पाओगे।
अस्त व्यस्त को भला व्यवस्थित , कैसे तुम कहलाओगे।
सत्यनिष्ठ दर्पण जो देखे , झलक
स्वयं की पाता है।
दर्पण सच्चा एक मीत सा.....।।
दर्पण एक सजाओ मन में, अन्तर सारे पहचानो।
सत्य बिना जीवन मिथ्या है, राज सभी जन यह जानो।
सुख सौन्दर्य सत्य परिभाषा , दर्पण मूल बसाता है।
दर्पण सच्चा एक मीत सा.....।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*16.05.2021*
एस के कपूर श्री हंस
।।विश्व घर परिवार दिवस,*
*15 मई के अवसर पर।।*
*।।प्रेम से भरा , घर परिवार ,*
*स्वर्ग से सुंदर ,उसका संसार।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
जहाँ प्रेम का उपहार हो
वो घर परिवार है।
जहाँ सहयोग ही आधार हो
वो घर परिवार है।।
जहाँ लोग जीते मरते हों
एक दूजे के लिए।
जहाँ आशीर्वाद आभार हो
वो घर परिवार है।।
2
जहाँ माता पिता से सीखते
हों संस्कार बच्चे।
जहाँ दादा दादी से लातें
हों प्यार बच्चे।।
जहाँ सुख दुःख के साथी हों
सब ही घर वाले।
वो ही घर परिवार जहाँ पाते
सबका दुलार बच्चे।।
3
घर परिवार में रहती भावना
बस समर्पण की।
एक दूजे के लिए करने को
कुछ भी अर्पण की।।
छल कपट भेद भाव से दूर
घर होता स्वर्ग समान।
ऐसे परिवार को जरूरत नहीं
किसी भी दर्पण की।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
*।। प्रातःकाल वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
नव दिवस में नई ऊर्जा
हर स्वप्न साकार आपको।
सुख स्वास्थ्य और शान्ति
से ही रहे सरोकार आपको।।
नव प्रभात की धवल रश्मि
हर ले हर दुःख ओ संताप।
*प्रातःकाल का ह्र्दयतल से*
*वंदन नमस्कार आपको।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।। एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍
*दिनाँक 16 05 2021*
।।आज का विषय।।बाल साहित्य।।*
*।।शीर्षक। बच्चों को चमक ही*
*चमक नहीं,रोशनी चाहिये।।*
1
बच्चों को मंहगे त्यौहार नहीं,
उन्हें संस्कार दीजिये।
उनको अपनी अच्छी सीखों,
का उपहार दीजिये।।
आधुनिक खिलौने तो ठीक है,
परन्तु उनके लिए भी।
कैसे करें बड़ों से बात वह,
उचित व्यवहार दीजिये।।
2
बच्चों को अभिमान नहीं,
स्वाभिमान सिखाइये।
आलस्य नहीं गुण उनको,
श्रम दान बताइये।।
बच्चों को चमक ही चमक नहीं,
चाहिये उनको रोशनी।
दिखावा नहीं आदर आशीर्वाद,
का गुणगान दिखाइये।।
3
बच्चों को भी सिखाइये कैसे,
बनना है आत्मनिर्भर।
प्रारम्भ से ही बताइये कैसे,
बढ़ना है जीवन सफर।।
अच्छी आदतें पड़ती हैं अभी,
कच्ची मिट्टी में ही।
जरूर सुनाइये कथा साहस की,
दूर करना है उनका डर।।
4
नींव ही समय है जब बात हो,
बुलंद इमारत की।
कैसी होगी आगे की जिन्दगी,
उस इबारत की।।
आगे बढ़ने के गुण डालिये शुरू,
से ही भीतर उनके।
वह शुरू से ही पढ़ाई पढ़ें मेहनत,
और शराफत की।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।*
मो।।। 9897071046
8218685464
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल--
कुछ दोस्तों ने प्यार ही इतना जता दिया
दुनिया का दर्द हमने भी हँसकर भुला दिया
ख़ुशबू हरेक गुल में है अपनी अलग अलग
रिश्तों को बस ये सोच के हमने निभा दिया
मैं मुनतज़िर था देगा कोई तो
जवाब वो
उसने मेरे सवाल पे बस मुस्कुरा दिया
ऐ दोस्त मुझको लाके ख़यालों की भीड़ में
इस ज़िन्दगी ने और भी तन्हा बना दिया
दुनिया से जाके आँख मिलाऊँ तो किस तरह
इल्ज़ाम उसने ऐसा मेरे सर लगा दिया
परछाईं मेरी आके मेरे पाँव पड़ गयी
जब मैंने चढ़ते शम्स को सर पर बिठा दिया
*साग़र* फ़ज़ाएं आज हैं क्यों कर धुआँ-धुआँ
शायद किसी ने मेरा नशेमन जला दिया
🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
मुन्तज़िर-प्रतीक्षा रत
शम्स-सूरज
नशेमन-आवास ,घोंसला,
विजय मेहंदी
👨👩👧👦-परिवार-👩👩👧👦
हो आशियाना जब एक छत के नीचे,
स्नेहिल अपनापन एक दूजे को खीचे,
हो खाना-पीना एक साथ ही जीना,
काम-धंधे में बहे जब सब का पसीना,
एक दूजे के प्रति हो जब सब की निष्ठा,
एक दूजे की समझें अपनी प्रतिस्ठा,
एक दूजे के प्रति हो सबकी आशा,
यही एक सच्चे परिवार की परिभाषा।।
परिवार-----परिवार-----परिवार,
परिवार के होते तीन प्रकार।
एकल परिवार संयुक्त परिवार,
तीजा नाम मात्र संयुक्त परिवार।
शिर्फ मियाँ-बीबी बच्चों का परिवार,
भइया-भाभी दादा-दादी से ना हो दरकार,
ऐसा संकुचित जो हो घर संसार,
है कहलाता वह एकल परिवार,
मीयाँ-बीवी दादा-दादी भईया-भाभी --,
का भी हो जिसमें उर से दरकार,
सबका हो जब सबसे स्नेहिल प्यार,
है कहलाता वह सच्चा व संयुक्त परिवार।
अलग-थलग घर-छत में हैं रहते,
अलग-अलग रसोईं का है भोजन करते,
शादी विवाह जैसे शुभ,अशुभ मौकों पर,
छड़िक एकजुट समय पर हैं होते रहते,
ऐसे मौकों पर साथ में रहते दिनों दो चार,
है वह कहलाता नाममात्र संयुक्त परिवार।
👫👨👩👦👨👩👧👦👩👩👧👦👨👨👧👦👨👨👦👦👩👩👧👦👨👨👧👦👨👨👦👦👨👨👧👧
कलमकार- " विजय मेहंदी " (कविहृदय शिक्षक)
कन्या कम्पोजिट विद्यालय शुदनीपुर,मड़ियाहूँ,जौनपुर,(यूपी)🙏
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
गीतिका
हम लगाते इस हृदय से प्रेम से दिलबर तुम्हें
काश तू भी पास होती आज इस बरसात में
पास आओ अब सनम दिल से हमें तुम लो लगा
खोल बाहें तुम पिला दो अब अधर रस रात में
खींचता हरपल हमें है ज्यों कमल शुभ भृंग को
है नशा दिलबर निराला सुर्ख़ कोमल गात में
बात फूलों से सुनी दिलबर तुम्हारे रूप की ,
ओस की ज्यों बूंद सजती है कमल के पात में।
ये पयोधर का खजाना शुचि अधर रस साथ में
प्रेम अपना दो सनम अब तो मुझे सौगात में।
संदीप कुमार विश्नोई रुद्र
दुतारांवाली अबोहर पंजाब
डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी
*राम बाण🏹चमचों का कानून*
चमचों का कानून हो,निर्णय आप सुनाय।
चमचे दोनों पक्ष सुन,बैर नहीं उपजाय।।
चमचे करते पैरवी, चमचे रखते पक्ष।
चमचे तथ्य सबूत को, माने सच्चा दक्ष।।
मकान बिकने से बचे,बचता दीन ईमान।
देंगे चमचे न्याय तो,मिल जाये सम्मान।।
समझौता कानून का, देता नेक सलाह।
कोई बैर रखे नहीं , चमचों की है चाह।।
चक्कर खाना कोर्ट के, बच जायेंगे लोग।
चमचों के कानून से, मिट जायेंगे रोग।।
चिंता कारण रोग का,चमचे करें निदान।
पले रोग अन्याय के, मिट जाते श्रीमान।।
चमचे जैसे कोर्ट में, होगा नहीं वकील।
जज वकील होंगे नहीं,होगी नहीं दलील।।
चमचे कोर्ट अपील में, पूरी करते जाँच।
चक्कर खाने से बचें, चमचे करें उवाच।।
सुप्रिम, हाईकोर्ट में , नहीं चलेंगे केस।
चमचे अपने न्याय से, बदल रहे हैं देश।।
ढूँढे केस वकील फिर, तारीख रखे कौन।
चमचों के इस न्याय से, सत्ता होगी मौन।।
*डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी*
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी
काव्य प्रतियोगिता हेतु।। कवि सम्मेलन।। प्रेषित नवीनतम रचना, विषय... परिवार, अवलोकन करें...। हम भी ही रहें दो हमारे भी दो कतना बढि़या यहु लागतु है।। पूतहि एकहु या करतार औ बेटी कहाँ केऊ दुई चाहतु है।। सुक्ख दिनानु तौ नीको लगे मुल बातु दुखे कसु भावतु है।।। भाखत चंचल आए दिना दुख सहयोगी रहेगे ना लागतु है।।1।।। जबु शादी वियाहे कै चाहु रहे तौ सगे सम्बन्धी मिलैंगे कहाँ।। लाओगे मौसी को खोजि जहाँ जे रही है सदा ही है माँ की महाँ।। चाह उठय जौ चाचा हिया अरु और हु चाची को पावो यहाँ।।। भाखत चंचल दादी औ दादा को ढूँढि़ जहान मा लावो कहाँ।।2।।। जबु आवेगी ई त्यौहारू घडी़ सुनसानु लगैगा भवन तुमरा।। उठैगी जो चाह विदेशु चाकरी मातु पिता कै प्रबन्धु खरा।।। अरु बाबा औ आजी कहोगे किसे औ फूफी व फूफा कहोगे जरा।।। भाखत चंचल नीकु सदा दुई मुल ई संबन्धु विलुप्त परा।।3।।। संयुक्त कुटुम्ब रहा बहु नीकु जे संकट मा सहयोगी रहा।। गाढे़ मुसीबतु आये दिना औ दुक्खू निशा कटि जात रहा।। ईश्वरू कै यहु देनु रही ना तोवंश की चाह अभाऊ रहा।। भाखत चंचल या मँहगाई तौ एकु बहानो ना साँचु रहा।।4।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी,उ.प्र.।। मोबाइल... 8853521398,9125519009।।
नोट.ः अप्रकाशित एवम् स्वरचित नवीनतम रचनाएँ।
: इस समय समूची दुनिया कोरोना से तो जूझ ही रही है ,मगर कल से खबर आ रही है कि आतंकवादियों का पनहगार फिलिस्तीन इजरायल को ललकार दिया ,आगे मेरे सवैया छन्दों में अपनी समझ से सुलझाने का प्रयास किया ,अवलोकन करें..... फलस्तीनु हमाम उठी चिंगारी दिशा इजराइल धाय चली।।। आयरन डोम रचा जेहिकय वहिकय ना गलाई ही दाल गली।। विरोधी रहे धुर एकदुजो मुल सोवत साँपु कै आँखि चली।। भाखत चंचल काव कही डारी मिसाइल पतौ ना चली।।1।। सोवतु बाघ जगाय दियौ तब तड़पतु हालि हौं काऊ कही।।। आधा ही शहरू विलाइ गयो ऊ दशानु दशा नहि जात कही।।। अमरीकौ कै चालु हु सफलु भयी इजराइल कै बौछारू बही।।। भाखत चंचल देखि दशा अबु लागत जग दुई भागु सही।।2।।। नयनु गडा़ए है देखतु हिन्द औ पाक सियारू तौ जाय अँटी।।। दुइ भागु मा लाग बँटा जग हू ईरान औ तुर्की हु जाइ सँटी।।। अबु देखतु हिन्द दशानु इहय जबु मारू कोरोना रहा निपटी।। भाखत चंचल या करतारू ई यू एन ओ ना सकै डपटी।।4।। हाल बेहाल लगै फलस्तीनु रहा अंन्दाज कबौ ना सही।। रमजानु महीना जो पाक रहा तँह खून कै धारु गलीनु बही।। भहराय परी तौ अँटारी अँटा लगै कैइसु बयारु विरूद्ध बही।।। भाखत चंचल या करतारू ना सोवत शेर जगाऊ सही।।5।। आतंकगढी़ टर्की याकि पाक चाहै गाजा रहै या हमास कही।। भारत कै ऐलानु यहय नहि साथी हयी जो भया नु सही।। पाक तौ साथी अँटा हु तौ गाजा हमास अँटा जे रहा ना कही।।। भाखत चंचल या करतारू ई दुष्टनु कै यहु याहु सही।।6।। शेष आगे ..... आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल। ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी, उ.प्र.।। मोबाइल... 8853521398,9125519009।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
*सजल*
मात्रा-भार--16
समांत--ईर
पदांत--गा
नदियों में जब नीर रहेगा,
शीतल तभी समीर बहेगा।।
वही सफल होता जीवन में,
जो कष्टों में धीर रहेगा।।
मानो संत उसी को सच्चा,
जो भक्तों की पीर सहेगा।।
देश-सुरक्षा सोच है जिसमें,
वह ही सैनिक वीर बनेगा।।
जिसके हृदय प्रेम है बसता,
यह जग उसे फकीर कहेगा।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
छठवाँ-7
*छठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-7
प्रभु-पद-पंकज जे मन लागा।
जाके हृदय नाथ-अनुरागा।।
पाई उहहि अवसि सतधामा।
निसि-दिन भजन करत प्रभु-नामा।।
ब्रह्मा-संकर-बंदित चरना।
करहिं सुरच्छा जे वहिं सरना।।
प्रभु निज चरनन्ह दाबि पूतना।
पिए दूध तिसु जाइ न बरना।।
दियो परम गति ताहि अनूपा।
मिली सुगति जस मातुहिं रूपा।।
बड़ भागी ऊ गउवहिं माता।
जाकर स्तन पियो बिधाता।।
अमरपुरी-सुख ते सभ पहिहैं।
किसुनहिं-कृपा-अनुग्रह लहिहैं।।
प्रभू-अनुग्रह होतै मिलई।
मुक्ति 'केवल्य' जगत जे कहई।।
जे जे गोपिहिं औरउ गैया।
जाकर दुधय पिए कन्हैया।।
जीवन-मरन-मुक्ति ते पाई।
भव-सागर तुरतै तरि जाई।।
तिनहिं न होई भौतिक-तापा।
माया-मोह न आपा-धापा।।
सुनहु परिच्छित मोरी बचना।
मुनि सुकदेवहिं कह मधु रसना।।
भए सकल ब्रजबासी चकितै।
बालक कृष्न सुरच्छित लखतै।।
निकसत धुवाँ सुगंधित तन कहँ।
अचरज भवा तहाँ सभ जन कहँ।।
बाबा नंद छूइ सिर कृष्ना।
पुनि-पुनि सूँघि बिगत जनु तृष्ना।।
होंहिं अनंदित अपरम्पारा।
धारे किसुनहिं निज अकवारा।।
दोहा-एक बेरि ब्रह्मा हरे,सकलइ ग्वाल व बच्छ।
बछवा बनि तब कृष्न तहँ,दूध पिए गउ स्वच्छ।।
सकल गऊ तब तें भईं,किसुनहिं जनु निज मातु।
धन्य-धन्य लीला किसुन, बरनत जी न अघातु।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
नूतन लाल साहू
हम कहा जा रहें है
ये दुनिया एक बाजार है
और बाजार की एक थीम होती है
यहां वही चीज ज्यादा बिकती है
जिसके साथ कोई न कोई
स्कीम होती है
लुभावनी स्कीमें आती है
जिनसे उपभोक्ता ललचाता है
प्रोडक्ट घर लें जाता है
कौन सा विश्वास है जो
खींचता जाता है निरंतर
विश्व की अवहेलना क्या
अपशकुन क्या
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े है
हम कहा जा रहें है
व्यक्ति विकास के पथ पर
आगे बढ़ रहा है या
विनाश के पथ पर
आगे बढ़ रहा है
यह एक यक्ष प्रश्न है
ये दुनिया मतलब की है
न जाने क्यों लोग,समझ नहीं पा रहे है
इस विज्ञान के युग में
इंसान सुखी कहा है
आधुनिकता की भूल भुलैया में
व्यक्ति घर से निकल नही पा रहा है
जान बूझकर,अनजान बनता है
जैसे वो सदा जिंदा रहेगा
प्रकृति से छेड़छाड़ का
दुष्परिणाम तो,अवश्य ही मिलेगा
अधिकांश व्यक्ति अपना बुढ़ापा
देख ही नहीं पायेगा
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े है
हम कहा जा रहें है
नूतन लाल साहू
अतुल पाठक धैर्य
शीर्षक-सकारात्मक सोच
विधा-कविता
चुनौतियों को स्वीकार कर,
हौंसलों की उड़ान भर।
मुश्किलों का काम तमाम कर,
खुद पे तू विश्वास कर।
न गुमान कर इस रंग-रूप पर,
न ग़ुरूर कर इस धन-दौलत पर।
न कुछ साथ आया था,
न कुछ साथ जाएगा।
ज़िन्दगी क़ुदरत का इक हसीन तोहफ़ा है,
इसे दिल से क़बूल कर।
दो पल की ये ज़िन्दगी है ,
इसे बेहतरी से जिया कर।
उम्मीद की किरण फिर जागेंगी,
इसलिए मुस्कान बिखेरो चेहरे पर।
मिट्टी की सोंधी सी ख़ुशबू,
दूर तलक छा जाती है।
बारिश की रिमझिम बूंदों से,
दिल की ज़मी भी नम हो जाती है।
ख़ुशियों की चाहत के फूल भले ही आज मुरझा से गए हैं,
पर हिम्मत बरक़रार रखा कर।
उमंगे भरकर बहारें इक दिन आएंगी,
खुशियों के रंगों से सजा इंद्रधनुष साथ लाएंगी।
आएगा वही मौसम ख़ुशनुमा ज़िन्दगी का,
बस थोड़ा धैर्य रख कर कैद रहो अपने घरों पर।
मौलिक/स्वरचित रचना
रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
एस के कपूर श्री हंस
*।।कॅरोना से जंग।।हर किसी को बनना होगा कॅरोना सेनानी।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
इस आपदा प्रबंधन में हर किसी
का सहयोग चाहिए।
इस आपत्तकॉल में साहस और
दृढ़ मनोयोग चाहिए।।
एक सौ तीस करोड़ योद्धा चाहियें
महामारी से लड़ने को।
अन्न भंडारण के कण कण का
अब सदुपयोग चाहिए।।
2
हम सब जागरूक हों प्रतिरक्षा
शक्ति को बढाने के लिए।
हुम् सब अपनी ताकत लगा दें हर
किसीको समझाने के लिए।।
घर में ठहर कर बने आप अपने
और देश के स्वस्थ रक्षक।
बस आप कतई बाहर मत निकलें
कॅरोना को बुलाने के लिए।।
3
तेरा मेरा और हम सब का आज
एक ही लक्ष्य होना चाहिये।
हर कोई कॅरोना सेनानी की भांति
साहसी दक्ष होना चाहिये।।
भारत कीअर्थव्यवस्था मजबूत भी
मिल कर हमें करनी होगी।
हरा कर कॅरोना को राष्ट्र विकास
अब बहुत भव्य होना चाहिये।।
4
दवा भी लें और हर किसी को भी
हम दवा दिलवायें।
निराशाअफवाहों से दूर हम साहस
का वातावरण बनवायें।।
साहस व धैर्य ही मन्त्र है महामारी
से लड़ने के लिए।
सावधानी अनुशासन पाठ आज
संबको ही पढवायें।।
*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस* "
*बरेली।*
मो 9897071046
8218685464
।।ग़ज़ल।।संख्या 99।।*
*।।काफ़िया।। आम।।*
*।।रदीफ़।। हो तुमको।।*
1
जिस गली से गुजरो सलाम हो तुमको।
सबकी खुशी का पैगाम हो तुमको।।
2
महसूस हो दर्द सबका तुम्हारे दिल में।
सुन सबकी खैरियतआराम हो तुमको।।
3
हर किसी के ही काम तुम आ सको।
जो भी मिले खास ओ आम हो तुमको।।
4
महोब्बत से तो भरोसा कभी न उठे।
चाहे लगे इसका मंहगा दाम हो तुमको।।
5
कभी दामन सच का तुम मत छोड़ना।
चाहे मिले न कोई ईनाम हो तुमको।।
6
खुद पर यक़ीन कभी मत तुम छोड़ना।
चाहे मिले नाउम्मीदी कलाम हो तुमको।।
7
*हंस* कभी गैरतऔर जमीर बिकने न पाये।
चाहे बुरा से बुरा भी अंजाम हो तुमको।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।। 9897071046
8218685464
*।। प्रातःकाल वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
हर सुबह मिले सबका
मुस्कराता सलाम आपको।
नये दिवस में मिले कोई
नई सी पहचान आपको।।
यश कीर्ति मान सम्मान की
नव वर्षा हो जीवन में।
*प्रातःकाल का ह्र्दयतल से*
*अभिनंदन प्रणाम आपको।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।। एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍
*दिनाँक 15 05 2021*
विनय साग़र जायसवाल
ग़ज़ल----दो काफ़ियों में
मुफ़लिसी से मेरी यूँ चालाकियाँ चलता रहा
ज़हनो-दिल में वो मेरे ख़ुद्दारियाँ भरता रहा
मैं करम के वास्ते करता था जिससे मिन्नतें
वो मेरी तक़दीर में दुश्वारियाँ लिखता रहा
मोतियों के शहर में था तो मेरा भी कारवाँ
फिर भला क्यों रेत से मैं सीपियाँ चुनता रहा
कहने को मुश्किल नहीं था दोस्तो मेरा सफ़र
मेरा माज़ी राह में चिंगारियाँ रखता रहा
दिल की हर दहलीज़ पर थे नफ़रतों के ज़ाविये
मैं तो हर इक रहगुज़र के दर्मियाँ डरता रहा
ख़त के हर अल्फाज़ में थीं इस कदर चिंगारियाँ
मेरे दिल के साथ मेरा आशियाँ जलता रहा
कोई आकर छेड़़ता रहता था रोज़ाना मुझे
मैं फ़कत दामन की अपने धज्जियाँ सिलता रहा
जब भी बाँहों में समेटे चूमना चाहा उसे
मेरे होंठो पर हमेशा उंगलियाँ धरता रहा
जीत की ख़्वाहिश थी *साग़र* उसके दिल में इस कदर
अपनी हारों पर मेरी क़ुर्बानियाँ करता रहा
🖋विनय साग़र जायसवाल,बरेली
रामबाबू शर्मा राजस्थानी दौसा
.
*अक्षय तृतीया* एवं *भगवान परशुरामजी जन्मोत्सव* के अवसर पर भगवान परशुराम जी के श्री चरणों में....
🙏 *भगवान परशुराम* 🙏
वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया,सफल हुई कामना,
भगवन विष्णु अवतारी,श्रीपरशुराम जन्म हुआ।
धन्य हो गया इंदौर जिला,ग्राम मानपुर हर्षाया,
जानापाव पर्वत पर नई चेतना का आभास हुआ।।
भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि ने पूजा सम्पन्न करवाई,
देवराज इन्द्र की वरदानी महिमा सबके मन भाई।
सुन किल कारी,मातु रेणुका मन ही मन हर्षाई,
मंगल गीतों की,घर-आंगन बज उठी शहनाई।।
मात-पिता के आज्ञापालक,शस्त्र विधा के ज्ञाता,
एकादश छंदयुक्त"शिव स्तोत्र" की महिमा न्यारी।
नारी जाग्रति के पक्षधर सफल अभियान चलाया,
विष्णु के छठे अवतार चिरंजीव तेरी लीला प्यारी।।
बाल्यअवस्था में ही,पशु पक्षियों की भाषा जानी,
भीष्म,द्रोण,कर्ण,में भी शिक्षा की ज्योति जलाई।
पृथ्वी पर प्रकृति प्रेमी की अनुपम पहचान कराई,
खूंखार-कनैले उन पशुओं ने भी मित्रता निभाई।।
सकल सृष्टि के हितकारी भृगु नंदन की जय हो,
नारायण त्रैलोक्य विजयकवच वाले तेरी जय हो।
ब्रह्मर्षि कश्यप से वैष्णव मंत्र धारी तेरी जय हो,
भोलेशंकर से विध्या प्राप्त,परशुराम की जय हो।।
©®
रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)
आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल
पावनमंच को शतशत नमन ,वन्दन व अभिनन्दन,आज की रचना ।। लालच।। पर है,अवलोकन करें.... लालिचु नीकि कतौ ना कबौ यहु सुधरतु काजु नसावतु है।। आदि ना अन्त ना इच्छा कबौ जतनै मिलि जात ना भावतु है।। मुल याकिनु बातु बुझाइ रहा गम नीकु तुँहय समुझावतु है।। भाखत चंचल नजर झुकाइ चलै पथु तौ नाहि कबौ भरमावतु है।।1।। ऊँची निगाहु चलै नहि पंथ इहय सबु संत बतावतु हैं।। जौनै दिहे करतार तुहँय वहि माँहि जोई सुख पावतु है।। घोडा़ औ हाथी लहो सुख नाहि याकि रत्न नवौ नहि आवतु है।। भाखत चंचल बंद मुठी जबु आयहु तौ अरु हाथ पसारेहु जावतु है।।2।। गज ढाई जमीन मिली सबुका अरु वतनै कफनु हु तौ पावहुगे।। ह्वैहँय काव अँटारी अँटा नहि जीवनु मा सुख पावहुगे।। धन धान्य ईमान मिलै जतना वतनेनु मा तू आदरू पावहुगे।। भाखत चंचल दीनु ईमानु नसै पुनि ताहि ना पावहुगे।।3।। उत्तिमु जबु आचारु विचारु जौ नीकु तौ वैइसेनु भाऊ मिलै।। मुला याहि गये सत्कारु नसा नयनानु कतौ ना सुभाऊ मिलै।। भूपति मान मिलै तेहि राजु मुला विद्वानु समानु मिलै।।। भाखत चंचल त्यागहु लालिचु औ विपरीतु स्वभाऊ मिलै।।4।। रूखा औ सूखा मिलय घरुका अरू शीतल पानी मिलै तुहँका।। नीकु मिलय औ मलाईमिलै मुला जबही अपमानु हियाका।। व्यौहारू मा काजू मिलय मनमारि तौ नीकु कहाँ ई विचार कतौ का।। भाखत चंचल काव कही जौ नसा स्वाभिमान नसै मनुका।।5।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।। ओमनगर, सुलतानपुर, उलरा ,चन्दौकी, अमेठी,उ.प्र.।।प्रोडक्ट प्रचारक व सेल्स इक्जीक्यूटिव धनवन्तरि बायोसाइंस प्रा.लि.कोलकाता व एल आई सी . आफ इण्डिया, सलाहदाता, पत्रकार ।।द ग्राम टुडे।।दैनिक व साप्ताहिक।। मासिक मैग्जीन, यू ट्यूव चैनल भी।। गाँव देहात की खबर,शहर पर भी नजर।।जय हिन्द ,जय भारत ,जय जय जय धनवन्तरि।। वन्दे मातरम्।। मोबाइल... 8853521398,9125519009।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
सभी को परशुराम जयंती व अक्षय तृतीया की अनंत शुभकामनाएं....💐💐🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🙏🏼🙏🏼
*परशुराम*
ऋषि जमदाग्नि के सुत को, शत शत करूँ प्रणाम।
विष्णु अवतार थे छठे, सत्य सनातन नाम।
भृगु पितामह ने दिया, राम नाम आशीष,
मातु रेणुका से मिला , धरा व्यवस्थित धाम।।
शिव का पा वरदान ये , परशु धनुष शुभ शान।
ब्राम्हण कुल की शान थे, आवेशित प्रतिमान।
आज्ञा पालन में किए , मातृ पक्ष का त्याग,
पिता मान से फिर किए , जीवित प्राण निदान।।
रामायण में भी बसा, लखन साथ संवाद।
परशु उठा करके किए, क्रोधित होकर नाद।
देख राम की शीलता, क्रोध गए वह भूल,
जान विष्णु का रूप वो, भूले हिय अवसाद।।
अक्षय तृतीया जन्म है, विष्णु रूप अवतार।
क्षत्रिय कुल संहारते , संकल्पित व्यवहार।
आज दिवस का मान है, संस्कृति बसे समाज,
परशुराम का जन्मदिन, अक्षय *मधु* शुभवार।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
अतुल पाठक धैर्य
शीर्षक-ईद पर मुराद मेरी
विधा-कविता
-----------------------
ए खुदा बख़्श दे अब,
कुछ पल सुकूँ के दे रब।
तमाम ज़िन्दगियों को न छीन अब,
मेरी फ़रियाद सुन ले रब।
ज़िन्दगी को एक बार फिर ख़ुशनुमा पैग़ाम दे रब,
जीने की चाहत कम न हो ऐसा कुछ आयाम दे अब।
बग़ैर तेरी रज़ामंदी के भला कभी कुछ हुआ है रब,
इस ईद पर दिली मुराद है मेरी ज़िन्दगी को थोड़ी सी राहत भी दे अब।
मौलिक/स्वरचित रचना
रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
अभय सक्सेना एडवोकेट
आप सभी को अभय सक्सेना एडवोकेट एवं समस्त परिवार की तरफ से अक्षयतृतीया एवं भगवान परशुराम जयंती की हार्दिकशुभकामनाएं ।
राधे-राधे!
(प्रकाशन हेतु)
अक्षय तृतीया की
विश्व में महिमा अपरम्पार
*************************
अभय सक्सेना एडवोकेट
+++++
बैशाख शुदी तृतीया की
विश्व में महिमा अपरम्पार।
परशुराम के रूप में
लीन्ह विष्णु अवतार।
मां अन्नपूर्णा अवतरित हुई
भरन सभयी भण्डार।
मां गंगा के पावन चरण
धोई दिन पाप अपार।
बहुत ही शुभ मूहूर्त है
महिमा अपरम्पार।
ब्रह्मा पुत्र अवतरित हुए
नाम अक्षय कुमार।
लक्ष्मी मैया कृपा करिन
भरें सभी भंडार।
कुबेर को आज ही दीन्ह
खजाना अपरम्पार।
सुदामा कृष्ण की मित्रता
दीन्ही नव संचार।
भिखारी से राजा कीन्हा
मिली खुशी अपार।
अक्षय तृतीया पर प्रारंभ भया
सतयुग त्रेता का संचार।
दर्शन के लिए खुल गया
बद्रीविशाल का मंदिर द्वार।
वृंदावन में जाइए
बांके बिहारी मंदिर।
आज ही दर्शन पाइए
खुले हैं विग्रह चरण।
चीरहरण जैसे भयो
द्रौपदी कीन्ह गुहार।
बचाई लीन्ह लाज तभी
कृष्ण हैं संकट हार।
महाभारत युद्ध समाप्त भया
दुष्ट दुर्योधन को मार।
करी धर्म की स्थापना
करके अधर्म का संहार।
लक्ष्मी नारायण कृपा करें
फैल रहा कोरोना हर ओर।
अक्षय तृतीया पर समाप्त करें
विनती करत "अभय "कर जोर।
#####################
अभय सक्सेना एडवोकेट
48/268, सराय लाठी मोहाल
जनरल गंज, कानपुर नगर।
मो.9838015019,8840184088
रेनू बाला सिंह
काव्य रंगोली मंच को नमन। 🙏
श्रद्धेय श्री नीरज अवस्थी जी को श्रद्धांजलि देते हुए अक्षय तृतीया पर एक कविता प्रस्तुत करती हूँ।
दिनाँक-14-0 5-2021
दिन-शुक्रवार
शिवजी ने दिया धनुष
जग माने श्रीराम परशु
देख तेजमुखी लाल,पिता जमदाग्नि माँ रेणुका हरषु
जीतने वाले हैं परशुराम शिष्य हुए जिनके श्री राम विष्णुदेव के छठे अवतार कहलाए भगवन् परशुराम
भ्रगुवंशी पुरुषार्थ,पराक्रम स्वयंवर क्रोधाग्नि परिपूर्ण
फरसा धारी ध्यानी ज्ञानी गिरिवासी धरती के प्राणी
अक्षय तृतीय पुण्यतिथि शिव भक्त विष्णु अवतारी पिता के बहुतहिआज्ञाकारी गर्दन माता की काट डारी
पिता पुत्र की महिमा न्यारी वर मांगो पुत्र सुसंस्कारी
मां का जीवन दे दो मुझको उसके बिना है झोली खाली
पाप पुण्य सब अक्षय होते बिन मुहूर्त सब काम पनपते स्वर्णिमसबअभिनंदनकरते
अक्षय तृतीया वंदन करते ।
धन्यवाद ✍️
रेनू बाला सिंह
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश 201014
निशा अतुल्य
परशुराम जयंती
14.5.2021
रेणुका जमदग्नि पुत्र बन
विष्णु ने लिया अवतार
दिन अक्षय तृतीया
पाया परशुराम नाम ।
शिव भक्त ज्ञानी,ध्यानी
आप प्रचंड क्रोधी
सब विधा के ग्याता आप
आप धनुष, फरसा धारी
शिव की अखंड भक्ति कर
पाया शिव धनुष
घूमें वन वन की तपस्या घोर।
आप सा नहीं कोई
पिता का आज्ञाकारी
पितु आज्ञा पा
मातु शिश आप उतारी
माँ का जीवन
पाया फिर उनसे ही वरदान ।
शिव धनुष तोड़ा राम ने
तब रौद्र रूप दिखाया
लक्ष्मण ने जब आप को सताया
आपने क्रोधित स्वरूप दिखाया,
राम रूप विष्णु पहचान लिए
जब क्षमा में राम ने कर जोड़ दिए।
परशुराम रूप में
फिर एक बार आओ
कलयुग में सताए मानव को
कोई राह अब दिखाओ
की जो गलतियां हमने प्रभु
करो क्षमा,लाचारी मिटाओ ।
मौन मन के भाव मेरे
अंतर्नाद सुनो प्रभु मेरे
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
सुनीता असीम
तड़पता है इंसाँ बिचारा तुम्हारा।
कि केवल है अब तो सहारा तुम्हारा।
****
करो खत्म अब तो तबाही के मंजर।
बहुत हो चुका है ख़सारा तुम्हारा।
****
तुम्हारी है नाराजगी की वजह क्या।
समझ में न आए इशारा तुम्हारा।
****
निहोरे किए और की हैं चिरौरी।
कि रस्ता बड़ा है निहारा तुम्हारा।
****
अरज आपसे है यही मेरी कान्हा।
करो पूरा अपना वो वादा तुम्हारा।
****
सुनीता असीम
१४/५/२०२१
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