देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

............कुदरत का कहर...........

हर तरफ दिखते हैं कुदरत का कहर।
हर बस्ती,गाँव,जिला,तालूका,शहर।।

जिन पंचतत्व  का बना शरीर हमारा;
कभी सहना पड़ता है उनका कहर।।

प्रकृति से मनुष्य का बढता छेड़छाड़;
इसी बदौलत होते प्रकृति का कहर।।

ताउते,यास,आमफान,तितली आदि;
दिखाते रहते आग -पानी का लहर।।

राजनीति का हर ओर होता घुसपैठ;
घोलता रहता है वैमनस्य का जहर।।

आतताइयोंऔर स्वार्थियों के कारण;
लोगों को पीड़ाते  प्रगति का  ठहर।।

अंत में मिलता प्रकृति से ही"आनंद"
चैन से कटताशेष जीवन का पहर।।

-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

सुधीर श्रीवास्तव

मन की बात
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बेटी की चाहत
************
         आज के दौर में भी जब बेटी बेटा एक समान का ढोल पीटा जा रहा है ,तब 2002 में मेरी बड़ी बेटी का जन्म हुआ।बेटी के जन्म से मेरी बेटी की इच्छा पूरी। हो गई।क्योंकि मुझे बेटियों से कुछ अधिक ही लगाव शुरू से था।
मेरी भतीजी बहुत छोटेपन से ही कई बार मेरे साथ हफ्तों हफ्तों तक मेरे पास रह जाती थी।ये मेरे पढ़ाई के समय की बात है,जब मैं कमरा लेकर किराए पर रहता था।
       मेरी बड़ी बेटी के जन्म के पूर्व मेरी पत्नी भी बेटे की ही इच्छा रखती थी।जैसा की हर नारी की कामना होती है।शायद सास बनने की ये सदइच्छा कुछ अधिक ही प्रबल हो जाती है।खैर....।
लेकिन मेरी पत्नी की चिंता महिलाओं/लड़कियों के साथ हो रही घटनाओं और दहेज की भेंट चढ़ रही बेटियों के खौफ के कारण था।उनका आज भी मानना है कि बेटियों की परवरिश से अधिक चिंता उनकी सुरक्षा को लेकर होती है।बेटी के माता पिता के अंदर हर समय एक अजीब सा असुरक्षा भाव होता है। बात सही भी है,क्योंकि अब हालात जिस तरह हो रहे हैं,उसमें यह डर स्वाभाविक है। विशेष रूप से माँओं के लिए।
फिर एक विडम्बना ये भी है कि बेटा नहीं होगा तो अंतिम संस्कार कौन करेगा?मोक्ष कैसे मिलेगा? मुझे अभी तक समझ नहीं आया कि बेटे की चाह हम जीवन काल के लिए कम वंश चलाने,दाह संस्कार कराने और मोक्ष पाने के लिए अधिक करते हैं।आखिर बेटियों के दाह संस्कार करने से कौन सा पहाड़ टूट जाता है या जायेगा।आखिर हम ही उनकी भी परवरिश करते हैं,पढ़ाते लिखाते हैं,शादी ब्याह करते है,फिर भी उनको इस दायित्व के योग्य भी नहीं मानते हैं। मैंनें अपनी इच्छा अभी से अपनी बेटियों को बता दिया है कि मेरा दाह संस्कार वे ही करें।
      मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आज बेटियां ही नहीं होंगी तो कल बेटा कहाँ से होगा। सृष्टि का नियम कैसे संपूर्ण होगा।
   फिलहाल मेरे पास दो बेटियां हैं और वे ही मेरे लिए सब कुछ हैं,मुझे कभी भी यह विचार नहीं आया कि काश एक बेटा भी होता।मैं अपनी बेटियों के हर सपने को पूरा होने के हर कदम पर मजबूत दीवार की तरह उनके साथ हूँ, जितना अधिकतम संभव हो सकता है,मैं उनके हर सपने के साथ खड़ा हूँ। मुझे अपनी बेटियों पर,उनकी सफलताओं पर गर्व है।
 सच कहूँ तो बेटियों का बाप होकर भी मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूँ।क्योंकि मेरी बेटियां मेरी मेरा मान, सम्मान, स्वाभिमान और अभिमान हैं।
■ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा(उ.प्र.)

विजय मेहंदी

" कवि और कविता "

             कवि कविता कवित्र का,
             महके       ऐसा      इत्र,
             औरन  को  शीतल करे,
             गर्व   करें     सब   मित्र।

             कविता  उर का भाव है,
             बिनु स्वर  करती  जिक्र।
             रह कर ये  अनबोल भी, 
             करती  सब  की   फिक्र।।

             शक्ति कल्पना की आंके,
             कवि का  रचित  कवित्र। 
             कविता कवि की भी करे,
             चित्रण     सभी    चरित्र।। 

             सूरदास तुलसी कवीर की, 
             कृति  हैं   रस   की  खान।
             मर के  भी  वे   अमर हुए,
             करते    सब     रस   पान।।

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रचयिता- विजय मेहंदी (कविहृदय शिक्षक)
कम्पोजिट इंग्लिश मीडियम स्कूल शुदनीपुर,मड़ियाहूँ,जौनपुर (यूपी)
📱91 98 85 22 98

चन्दन सिंह चाँद

सड़क 

मैं सड़क हूँ , मैं सड़क हूँ 
सबको अपनी मंजिल तक हूँ मैं पहुँचाती
हर किसी का भार मैं सहर्ष उठाती

चलती हैं मुझपर रोज़ अनगिनत गाड़ियाँ
इन गाड़ियों के झरोखों से झाँकते हैं बच्चे प्यारे 
कूदते हैं और मचलते देखकर चलते नज़ारे

कोई यात्री ले रहा नींद में डूबा खर्राटा
और कोई चल पड़ा है आज करने सैर - सपाटा

पहले चलते थे मुझपर पथिक पैदल और चलती थी साइकिलें 
अब इस मोटरकार की बाढ़ से बढ़ी हैं मेरी मुश्किलें

खाँसती हूँ और सँभलती इन काले धुओं के गुबार से 
दिल मेरा छलनी है होता इन मनुजों के व्यवहार से

पता नहीं आज किसे लगेगा धक्का ? कौन होगा घायल ? किसकी होगी दुर्घटना ? 
सोचकर विह्वल मैं रहती और करती हूँ सर्वमंगल प्रार्थना 

नहीं चाहिए मुझे रक्तरंजित आँचल , नहीं देख सकती तड़पते हुए प्राण 
कृपा करो , कृपा करो , कृपा करो हे दयानिधान !

लोग मुझको स्वच्छ बनाएँ ,
मेरे दोनों छोर पर वृक्ष लगाएँ
चलते समय रहें सतर्क और सावधान 
घायल व्यक्ति पर दें सब समुचित ध्यान 
स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।
स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।।

- ©चन्दन सिंह 'चाँद'
   जोधपुर (राजस्थान)

डॉ अर्चना प्रकाश

-; हर तरफ धुआं धुआं -;
      हर तरफ धुँआ धुँआ ,
       हर शख्स सहमा हुआ ।
       कौन किससे क्या कहे, 
        सांत्वना के पंख टूटे ।
         एक लहर से त्राहि माम् हुआ 
         हर तरफ धुँआ ---------
          किसी की हो रही कमाई,
          किसी कि श्वासें थम गई ।
          रहस्य क्या ये चल रहा ,
         कैसी साजिश कहर बरपा हुआ।
         हर तरफ धुँआ---------------
         आंकड़ो के इस खेल में ,
         सीढ़ी सर्प कौन कर रहा ?
         होते होते स्वस्थ कैसे ,
           दुनियां से वो विदा हुआ।
        हर तरफ धुँआ धुँआ------------
            जैविक युद्ध माहिरों ने,
            क्रूर दानवों सा छल किया।
           जयचंदी करिश्मो से ,
         देश अपना क्या से क्या हुआ ।
       हर तरफ धुँआ धुँआ ,
        हर शख्स सहमा हुआ ।
               डॉ अर्चना प्रकाश 
               लखनऊ ।

जया मोहन

कुदरत का कहर
कुदरत ने ये कैसा कहर बरपाया है
हर इंसान मौत के ख़ौफ़ से थर्राया है
ज़िन्दगी के पहिये थम से गये
सुख गुम हुआ दुख के टीम से घिर गए
प्रकृति को नाराज़ करने का फल पाया है
कुदरत।।।।।।।
कुदरत ने तो दी थी शस्य शयमला धरा
नदी,वन,पर्वतों की मनोरम छटा
प्राणवायु देने वाले वृक्षो को हमने ही कटवाया है
बिना ऑक्सीजन मर रहे उसी का फल पाया है
कुदरत।।।।।।।
कुदरत ने दिए थे अनुपम उपहार
तू करने लगा उनका व्यापार
तू खुद को नियंता समझ बैठा
इसीलिए ईश्वर तुझसे रूठा
वो एक साथ कई मुसीबतें ले आया है 
कुदरत।।।।।।।
अब घर मे बंद हो प्रभु को याद करता है
अपनो से मिलने को तरसता है  सुखद भोर होने की राह ताकता है
सब खोकर अब खुद को याद करता है
क्यों बनाने वाले ने अपनी कृतियों को मिटाया है
तू भूल न अपने निर्माता को यही स्मरण कराने को
कुदरत ने कहर बरपाया है

स्वारचित
जया मोहन
प्रयागराज

रामकेश एम यादव

मधुशाला!

है   मंजिल   तेरी  वो   नहीं,
जहाँ   तू   जाता  मतवाला।
फाँके  करते  घर   में   बच्चे,
और  तू   जाता   मधुशाला।

एक तरफ  मंहगाई  डायन,
दूसरी    तरफ   मधुशाला।
दो   पाटों  के  बीच   फँसी,
देख    तुम्हीं     ऊपरवाला।

यौवन-रस से भरा  हुआ है,
ये   मेरे  तन   का   प्याला।
अंतर-मन की प्यास बुझा ले,
छोड़ वहाँ की  साकीबाला।

कितना काम है और जरुरी,
नहीं   समझता   मतवाला।
दीवाल फटी है, छत है चूती,
तू   जाता    है    मधुशाला।

पीने का मतलब तू नहीं समझा,
अरे  !   सजन    भोलाभाला।
आओ  घर  में  राम-नाम  की,
मिलके    खोले     मधुशाला।

पीता    है  कलियों   से  भौंरा,
भर-  भर  के  मन का प्याला।
पीते   हैं   वो    पंख-    पखेरू,
कभी   न    जाते    मधुशाला।

पीने   और    पिलाने   में   तू,
जीवन   नरक    बना   डाला।
दुनिया मंगल-चाँद पर पहुँची,
तुझको  दिखता  बस प्याला।

खेत  बेच  या   नथिया  बेच,
या     बेच    तू     खंडाला।
तृप्त आज तक नहीं हुआ है,
कोई       भी      पीनेवाला।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

सुनीता असीम

इक बार कृष्ण मेरी     गुज़ारिश तो देखिए।
बस आपको रिझाने की कोशिश तो देखिए।
****
हो दर्द की लहर या सुखों की फुहार हो।
पर नाम की तेरे ही निबाहिश तो देखिए।
****
मैं डूबती  दुखों  में   हमेशा   रहूं  कहो।
इक बार मुझ गरीब की गर्दिश तो देखिए।
****
कितना बुझाओ अग्नि विरह बुझ नहीं सकी।
बुझती हुई सी राख में आतिश तो देखिए।
****
दिल की धरा थी सूखी था वीरान सा जहाँ।
उसपर हुई है नाम की बारिश तो देखिए।
****
सुनीता असीम
२७/५/२०२१

रामकेश एम यादव

लॉकडाउन और मजदूर!

मत घबराओ मजदूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
लॉकडाउन से बंद पड़ा था,
वो रफ़्तार पकड़नेवाला।

थमी -थमी -सी सड़कें थीं,
वो थे उलझन में चाँद-सितारे।
चहल -पहल उठ खड़ी होगी,
टूटेंगे मौन हमारे।
कल तक थमा था नीलाम्बर,
अब वो भी है चलनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

तू है जग का वो शिल्पी,
पर दिखता जुगुनू जैसा।
गागर में सागर भरता,
पर नीड़ न पाता वैसा।
तेरी मेहनत के बूते,
मीनार, महल बननेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

तेरे हिलने से हिलती है,
मानव-जीवन डाली।
है कीमती हीरा तू,
हे ! बगिया के माली।
बिस्तर समेट चुका अब तम,
है मधु -प्रभात आनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

उर में उमड़ रही है जो,
वो विद्युत फिर चमकेगी।
थी पहले जैसी दुनिया,
वैसे फिर गमकेगी।
सृजन-शक्ति परवान चढ़ेगा,
देख रहा ऊपरवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

जन्म-मरण की ये दुनिया,
धूप -छाँव से मत डरना।
मानवता के पथ चलकर,
झरने के जैसे बहना।
तेरे हाथों मरुस्थल में,
कोई नया जहां बसनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

जहां में पतझड़ कहाँ टिका,
पांव वक़्त का कब है रुका?
जीवन -कलरव का प्रवाह,
वो किसके रोके से रुका?
कल-कारखानों का निस्तेज बदन,
वो हाथ तेरे सजनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*मधुमय जीवन*
मधुमय जीवन 
मधुर चिंतन-मधुर लेखन-मधुर वाणी हमारी है,
मधुरता से अगर जी लो मधुर दुनिया तुम्हारी है।
नहीं शिकवा किसी से हो,नहीं नफ़रत ज़माने से,
फ़साना गर मधुर तेरा,मधुरिमा भी तुम्हारी है।।
                                    मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
बड़ा कोई नहीं होता,कभी भी कद व काठी से,
मधुर ब्यवहार से मित्रों,वो होता सब पे भारी है।
मधुर ममता-मधुर माता मधुर होती मोहब्ब्त,है
जहाँ में बस इसी कारण,मधुर ममता ही न्यारी है।।
                                 मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
मधुर हो चाल भी जिसकी,चलन भी हो मधुर जिसका,
समझ लो बस चलन ऐसी ही सबको प्राण-प्यारी है।
मधुर रातें-मधुर बातें-मधुर जीवन-मधुर बंधन।
मधुर जीवन जो जीता है,वही मानव सुखारी है।।
                                 मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
                                     ©डॉ. हरि नाथ मिश्र
                        9919446372

डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*वाणी* 

वाणी का ही भेद है,पिक अरु काक समान।
जब तक मुंह ना खोलते, होती ना पहिचान।

शिक्षित की पहचान है,वाणी है आचार ।
जब भी कुछ भी बोलिये, कीजै तनिक विचार।

शब्द घाव तीखे बहुत, लगे विष के तीर।
शब्द नहीं है भूलते,देते निसदिन पीर।

वाणी में बहु बल भरा, लेती हिय को जीत। 
सरस नेह से नित भरो ,इक दूजे में प्रीत ।

तीखे वचन न बोलिये ,करत घाव गम्भीर।
क्रोध पाप का मूल है, कुछ क्षण रख ले धीर।

मधु से मीठे शब्द ही, दिलवाते हैं मान। 
मीठी वाणी बोलकर, बन जा नेक सुजान।

सन्त कबहु नहि कटु कहै, सन्तहिं मीठे बोल।
पाना हो सम्मान तो, हिय में मिश्री घोल।

वाणी से मत आँकिये, है जन कौन महान। 
मनुज स्वार्थी के लिये ,मीठ बोल आसान। 

मन में रख कर कुटिलता, बोले मीठे बोल। 
मतलब के दिन बीतते, खुल जाती है पोल। 

परहित का रख ध्यान नित, बोलो सत्य सुजान। 
मीठी वाणी में बसे, स्वयंमेव भगवान।

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा ,* 
 *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर*

एस के कपूर श्री हंस

ग़ज़ल।। संख्या 103।।*
*।।क़ाफ़िया।। इया  ।।*
*।।रदीफ़।। बनो ।।*
1
हो सके किसी के काम का जरिया बनो।
नफरत नहीं   महोब्बत का  दरिया बनो।।
2
जरूरत नहीं है   तुमको खुदा बनने की।
बस सिर्फ इंसान नेक और बढ़िया बनो।।
3
जरूरत नहीं  बस दुनिया में  दिखावे की।
दे जो इमारत को बुलंदी  वो सरिया बनो।।
4
किसी दर्द की दवा , बनो जख्म का मरहम।
बुझाये किसीकी प्यास ,तुम वो नदिया बनो।।
5
हैं अलगअलग बनो उनके, जोड़ की तरकीब।
जो बिखरों को जोड़ दें,तुम वो कड़ियाँ बनो।।
6
तुम इस दुनिया के गुलशन के, फूल हो जैसे।
कोशिश करके तुम बस, फूलों की लड़ियाँ बनो।।
7
*हंस* बिना भेद के दे , जो संबको  उजाला।
हो सके तो तुम वैसा  चिराग ए  दिया बनो।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464


*।।कॅरोना।। दवा तंत्र,साथ ही बचो और बचाओ,ये ही है मंत्र।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
लॉक डाउन बढ़ा  दिया है
पुनः अब     सरकार    ने।
बेमतलब बेवजह   कतई
न निकलें आप बाजार में।।
घर पर ही रह  कर   आप
दे सकते कॅरोना को  मात।
बस अभी हंसी खुशी वक्त
आप  बिताइये परिवार  में।।
2
स्वास्थ्य ही धन है कि यह
बात दुबारा जान लीजिए।
अभी घर रहने  में भलाई
बस यही   ज्ञान   दीजिए।।
कॅरोना के   साथ  चलना
रहना हमें  सीखना होगा।
अनुशासन     अनुपालना
का बस अहसान कीजिए।।
3
लॉक डाउन की  रियायत
का कोई दुरुपयोग  न हो।
बेवजह न निकलो  बाहर
कि कॅरोना से योग न  हो।।
मत जाओ     कि   जहाँ
जमा हों   बहुत से  लोग।
मत एकत्र   करें   सामान
ज्यादा कि यूँ ही रोग न हो।।
4
फांसला बना   कर   रहना
आज हमारा यही  कर्म  है।
कॅरोना   काल में  यही  तो
अब   सर्वोपरि    धर्म    है।।
दूरी मजबूरी नहीं  ये तो  है
आज समय  की    जरूरत।
वही बचेगा जीवित अब कि
समझ लिया जिसने मर्म है।।

*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस*"
*बरेली*।
मो     9897071046
         8218685464

*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
आपकी   खुशी  की हम
हर  बात खास करते हैं।
रोज़ सुबह आपके लिए
इक़   अरदास करते हैं।।
यह नया दिन  नई आस
लेकर आयेआपके लिए।
*अपने नित प्रणाम से हम*
*प्रकट विश्वास  करते हैं।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍

*दिनाँक.  27.   05.      2021*
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नूतन लाल साहू

ऐसा क्यों हो रहा है

सृष्टि का परम पिता है एक
नाम रख डालें किंतु अनेक
वही है राम,वही है अल्लाह
वही है खुदा,वही है गॉड
वही है कृष्ण,वही है क्राइस्ट
इंसान बनाया है,अपना अपना इष्ट
सभी ने दिया है जग में,प्रेम संदेश
मगर क्यों,धर्म के नाम पर
झुलस रहा है, देश
न जाने, क्या होगा अंजाम
धर्म के नाम पर,कब तक होगा कत्लेआम
ऐसा क्यों हो रहा है
नफरत और घृणा की आग
सुनाई देता है, हर ओर
छीन ली है, अधरों से मुस्कान
मानवता हो रहा है लहूलुहान
अगर प्यारा है हिंदुस्तान तो
लगाओ इस पर शीघ्र विराम
धर्म के नाम पर, कत्लेआम
ऐसा क्यों हो रहा है
मिलजुलकर कुछ ऐसा करें कि
अपनापन तनिक न हो, बाधित
खुदा के बंदों, मनु जी का संतान
धर्म के नाम पर, न घोलो जहर
आगजनी,लूट और हत्या को
रोकना ही है,मानव का धर्म
सभी रहें,खुशहाल
ऐसा ही कुछ करों उपाय
धर्म के नाम पर कत्लेआम
ऐसा क्यों हो रहा है

नूतन लाल साहू

विनय सागर जयसवाल

ग़ज़ल--

दिखावे की अदाकारी करेगा
किसी की कौन ग़मख़्वारी करेगा

जिसे है ख़ौफ मुखिया का बता वो
हमारी क्या तरफ़दारी करेगा

बराबर बिक रहे ईमान हर सू
भला कब तक तू ख़ुद्दारी करेगा 

बचा कर चलते हैं काँटों से दामन
तू इतनी तो समझदारी करेगा

उतारो तुम गुनाहों का लबादा
सफ़र यह और भी भारी करेगा 

न घर का घाट का रह पायेगा वो
वतन से जो भी ग़द्दारी करेगा

मिले जब पेट भर रोटी न उसको
बशर वो फिर तो मक्कारी करेगा 

लिखा करता हूँ पुरखों के यूँ क़िस्से
कभी कोई अमलदारी करेगा

फ़ना फ़नकार हो जायेगा जिस दिन
ज़माना तब ये गुलबारी करेगा

निभाई तुमने गर *साग़र* न हमसे 
जहां में कौन फिर यारी करेगा
22/2/2021
ग़मख़्वारी-सहानभूति ,हमदर्दी
हर सू-हर दिशा ,हर तरफ़
अमलदारी - अपनाना ,इख़्तियार करना ,
बहर मुफाईलुन मुफाईलन फऊलुन

मधु शंखधर स्वतंत्र

🙏🏼 *सुप्रभातम्*🙏🏼
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *द्वार*🌹🌹
____________________

◆ द्वार ह्रदय का खोलिए, वास करें जगदीश।
शोभित जीवन साधना , भाव रहे अवनीश।
सत्य भावना हो ह्रदय, नैतिक हो व्यवहार,
दूजों के प्रति हो दया, स्वयं बसें हिय ईश।।

◆ द्वार खुला हो वह सतत, जिसके हिय अति प्यार,
मानव के प्रति प्रेम हो , रहे सहज व्यवहार।
दीन हीन सेवा करे, कर्म धर्म शुभ जान,
ईश्वर की है यह कृपा, एक यही आधार।।

◆ निर्मल गंगा बह रहीं, शिव बसते हरिद्वार।
संतो की यह भूमि है, धर्म रूप विस्तार।
धरा सुखद है लाल से, कर्म बढ़ाए मान,
जननी हिय में प्रेम का, भाव बसा संसार।।

◆ संकल्पों में जो अटल, खुले सतत शुभ द्वार।
राम मिला वनवास तो, त्याग चले घर बार।
त्याग समर्पण भावना, साथ अटल विश्वास।
मर्यादा पालन किए, राम बने करतार।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*27.05.2021*

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुशियों का पल परिवार----

प्राणि प्रकृति परमेश्वर 
ब्रह्मांड युग अवयव निर्माण
प्राणि जीवन परिवार समाज।।
प्रेम भाव भावना रिश्ता
समाज का आधार सुख
दुख गम खुशी मुस्कान।।
रिश्तो की दुनियां का
अपना रीति रिवाज
संस्कृति सांस्कार जन्म
जीवन का लम्हा लम्हा साथ।।           

माँ बाप से शुरू रिश्ता
समाज माँ बाप से सफर
सुरु ना जाने कितने ही 
रिश्ते नातो का आना जाना
समाज।।
परिवार परस्पर नेह स्नेह
सामाजिक नैतिक संबंधों
रिश्तो का विचार व्यवहार ।।
घर एक मंदिर 
भाव भावना की दीवारे
आस्था विश्वाश की बुनियाद।।
हर रिश्ता एक दुजे की खातिर
एक दूजे की खुशियाँ  सौगात।।
एक दूजे का साथ हाथ
चाहे जो भी स्तिति परिस्तिति
दुःख चुनौती लम्हा लम्हा साथ।।
एक साथ जब होते साथ
खुशियों की वारिस सौगात।।
माँ बाप दादी दादा भाई बहन
जाने क्या क्या रिश्तो का
परिवार।।                                   

एक  साथ जब होते
परमेश्वर मुस्काता
देख अपनी दुनियां
का परिवार समाज।।
द्वेष दंम्भ गृणा बैर
नाही चाहता है ईश्वर
चाहत उसकी प्रेम करुणा
का संसार।।

भाव भावना की
अनुभूति अनुभव रिश्तो
खुशियों का परिवार समाज
प्राणि प्रकृति ब्रह्मांड।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

जेठ माह के प्रथम दिन की मेरी पहली रचना!! लक्ष्य!! का अवलोकन करें, पावन मंच को मेरा हार्दिक कोटि कोटि प्रणाम स्वीकार हो:::::::::::                     भिन्ननु भिन्न तू काजु करौ चहय लक्ष्य निगाह मुलैकहु लाई!!                                 सोवतु जागतु रैनुदिना नु मा ना तुम वाहि दयौ बिसराई!!                              चक्र मा घूमत मीन के चक्षु मा तीर चुभावतु पारथु पाई!!                              भाखत चंचल गुरूवर हीन  मुला एकलव्य धनुर्धर  सांई!! 1!!                      काज अनेकहु सीखु मुला  निज लक्ष्य निगाहु ना दूजो तू लाई!!                          मारगु भिन्न बहंय नदियानु  मुला गंतव्य तौ सागरू भाई!!                                 भिन्ननु काजु सिखौ गुन नीकु मुला करतव्य सुपंथु सुहाई!!                            भाखत चंचल देखनोहार निगाहु नही सकत्यौ तू छुपाई!! 2!!                              लगन विचार धरौ  हिय नीकु  औ दीनदयाल भजौ प्रभुताई!!                       पावन पुण्य विचारू रहै  औ कुपंथ नु  पै जौ ना पांव बढाई!!                                   श्रम खूब करौ अनुशासनु धै  नहि लोभु  करौ जियरा मा धराई!!                          भाखत चंचल ता परिणामु  मिलै सबु नीकु बिलम्बु ना लाई!! 3!!                      भोरहि तै धरि धीरजु धै अरु तन मन काजु करौ प्रभुताई!!                         लोभु औ लालचि दूर धरौ  औ नाहि ईमानु का दूर हटाई!!                              काजु करौ परमेश्वर का भजि  नीकु मिलै फलु याहि  सचाई!!                        भाखत चंचल जौ छल छद्म  तौ होय विकासु ना रामु दुहाई!! 4!!                      आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल!! ओमनगर सुलतानपुर उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल फोन***"*8853521398, 9125519009!!

सुधीर श्रीवास्तव

जप/सुमिरन
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जप ,सुमिरन,पूजा पाठ
महज एक माध्यम है,
चित्त की शान्ति के लिए
सहज बहाना है।
अपने ईष्ट में रमने का
उसे याद करने का
खुद को संयमित, संयोजित
और छल प्रपंच से दूर रहने
कु्विचारों,कुकृत्यों से डरने
सात्विक, सरल, सुसंस्कृति के लिए
ये सब तो मात्र बहाना है।
गलत कामों से बचने का
स्वार्थ, लोभ से डरने का
सत् पथ पर चलने का
संवेदनशील होने के लिए
ईश्वर से डरने का भी,
जप ,तप ,सुमिरन ,भजन,कीर्तन
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा
गुरुद्वारे में जाने का भी
ये सब एक बहाना है।
सबकी अपनी भावना है
सबके अपने तर्क भी हैं,
बस! उद्देश्य सबका एक ही है
अपने अपने मन में 
ईश्वरीय सत्ता के प्रति
अपने भाव जगाने का,
जैसे जिसको समझ में आता
ईश्वर कृपा को पाने का।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आठवाँ-9
  *आठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-9
उमड़त नेह लगै जस सागर।
जसुमति-हृदय कृष्न प्रभु नागर।।
    जसुमति-पुत्र उहहिं भगवाना।
     बेद-सांख्य जे जोग बखाना।।
सकल उपनिषद महिमा गावैं।
जे प्रभु भजत भगत सुख पावैं।।
     सो प्रभु जनम भयो गृह जसुमत।
     धनि-धनि भागि जाय नहिं बरनत।।
धनि-धनि भागि जसोदा मैया।
जाकर स्तन पियो कन्हैया।।
     बाबा नंद त जोगी रहईं।
     यहिं तें कृष्न लला सुत पवईं।।
लला जसोदा लीला करहीं।
गोपी-सखा परम सुख लहहीं।।
     जसुमति-नंद अनंदित होवैं।
     पर सुख अस बसुदेवयि खोवैं।।
अस सुख मिलै न मातु देवकी।
कारन कवन बता मुनि अबकी।।
   अस सुनि प्रस्न मुनी सुकदेवा।
   कहे परिच्छित सुनु चित लेवा।।
दोहा-धरा-द्रोन-उर मा रहइ, ब्रह्मा-भगति अपार।
        मिलइ उनहिं किसुनहिं भगति,कह जा ब्रह्मा द्वार।।
       एवमस्तु तब तुरत कह,ब्रह्मा दियो असीष।
        अगले जनमहिं पाइ ते,तनय रूप जगदीस।।
        द्रोन भए ब्रज नंदहीं,धरा जसोदा रूप।
         पुत्र तिनहिं कै कृष्न भे,लीला करहिं अनूप।।
         पति-पत्नी कै रूप मा,गोपी-गोपिहिं साथ।
         निरखहिं लीला किसुन कै,अरु बलरामहिं नाथ।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

सुनीता असीम

सपनों के आकार बदलता रहता हूं।
अपनों से बेकार उलझता रहता हूँ।
****
थाह नहीं जिसकी एक समंदर ऐसा।
प्रेम नदी में जिसकी बहता रहता हूँ।
****
सागर मंथन दुख सुख का होता अक्सर।
ज्वार सरीखा सिर्फ उफनता रहता हूँ।
****
चाहूं सबका सिर्फ भला दुनिया वालो।
लेकिन क्या क्या सबसे सुनता रहता हूं।
****
वो  मेरे  हैं या  मैं    उनका हूं साथी।
इस उलझन में रोज उलझता रहता हूँ।
****
सुनीता असीम
२६/५/२०२१

सन्दीप मिश्र सरस

✍️ *सुनो बुद्ध! तुम कह कर जाते*✍️

सुनो बुद्ध! तुम कह कर जाते,
मैं सहर्ष ही करती स्वागत।

मुझ पर घर का बोझ डालकर,
चले जगत का भार उठाने।
मेरी पीड़ा सुन न सके तुम,
जा बैठे उपदेश सुनाने।

मैं यशोधरा भार धरा का,
तुम गौतम से हुए तथागत।1।

वैभव से निर्लिप्त रहे तो
महलों में भी तप सम्भव है।
मन में हो वैराग्य भावना
तो गृहस्थ में जप सम्भव है।

यदि मुझ पर विश्वास जताते,
जोगन बन होती शरणागत।2।

सुनो तथागत! पता लगा है,
नाम तुम्हारा बुद्ध हो गया।
चिंतन से प्रक्षालन करके,
अन्तर्मन भी शुद्ध हो गया।

मुझको भी भिक्षुणी बनाते,
मैं क्यों बैठी रही अनागत।3।

सन्दीप मिश्र सरस
बिसवाँ सीतापुर

डॉ0 निर्मला शर्मा

भक्त शबरी

राम नाम की धुन लगी, शबरी के मन माय।
राम नाम ही हिय बसा, करती सुमिरन जाय।
भीलपुत्री शबरी चली,मातु-पिता गृह त्याग।
सांसारिक सुख तज दिये, प्रभु चरणन अनुराग।
गुरु मतंग के आश्रम में, जपे राम का नाम।
शबरी नित आशा करे, कबहु पधारे राम।
राह बुहार शूल चुनती, मन में हरपल आस।
फूल बिछाऊं राह में, प्रभु मिलन की प्यास।
राम चरण कुटिया पड़े, खुशी न हृदय समाय।
प्रभु चरणों की धूल पा, जीवन ज्योति समाय।
घन सम नैनन नीर बहे, चरण रहा ज्यों पखार।
शबरी की भक्ति फली, मिट गये सभी विकार।
बेसुध सी शबरी हुई, चख-चख रखती बेर।
भगवन का आतिथ्य करे, उन्हें खिलाए बेर।

डॉ0 निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान

सुधीर श्रीवास्तव

सायली छंद 
**********
गुमनाम
^^^^^^^
गुमनाम
रहकर भी
काम कर जाता
बिना शोर
नाम
^^^^^
बेबस
लाचार क्यों
हौसला तो कीजिए
गुमनामी से
निकलिए।
^^^^^
गुमनाम
मत रहिए
कुछ नया कीजिए
पहचान बनेगी
स्वयं।
^^^^^
कल 
गुमनाम था
आज नाम वाला
क्या किया
उसने।
^^^^^
◆सुधीर श्रीवास्तव
     गोण्डा, उ.प्र.
    8115385921
©मौलिक, स्वरचित

मधु शंखधर स्वतंत्र

🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹
*गीत*
*मौन मत होइए*
------------------------
मौन मत होइए कुछ कहा कीजिए।
भाव अपने ह्रदय के बता दीजिए।

वेदना जो छिपाते रहे आज तक।
सामने मुस्कुराते रहे आज तक।
मान कर मीत अपना जरा रीझिए।
मौन मत होइए..........।।

शब्द माध्यम बने भाव अभिव्यक्ति का।
साधना तब दिखे मूल आसक्ति का।
गीत महफिल नया गुनगुना लीजिए।।
मौन मत होइए.............।।

शांति ऐसी कभी रास आती नहीं।
बोल प्रियजन बिना चैन पाती वहीं।
बोल मीठे मधुर रस पिला पीजिए।।
मौन मत होइए............।।

नैन से बात कह दो कहो तो सही।
भावना व्यक्त करना गलत भी नही।
सत्यधारा ह्रदय पौध को सींचिए।
मौन मत होइए............।।

जिन्दगी की किताबें पढ़े जो सभी।
याद उनको करो भाव फूटे अभी।
*मधु* ह्रदय नीर वर्षा सतत भींजिए।।
मौन मत होइए........ ।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*26.05.2021*

नूतन लाल साहू

ये कैसा नौतप्पा है

इस साल भी नौतप्पा आ गया
सोचा था,सूरज से आग बरसेगा
सुनी सुनी सी होगी, सड़के और
सूखेगा गला,निकलेगा पसीना
दिखेगा,सूरज का विशाल रूप
पर चल रही है हवा,छा गया है बादल
लगता है,पानी भी बरसेगा
बस,समझने की देरी है
यहां ईश्वर की मर्जी ही चलेगा
अभी भी वक्त है,संभल जाओ
प्रकृति से न करो, छेड़छाड़
भगवान का घर दूर नही है
भगवान मेरे क्रूर नही है
प्रभु जी के नही है,कोई गैर
प्रभु जी के घर, अंधेर नही है
घुरुवा का दिन भी बहुरता है
यदि प्रकृति सेइंसान, प्यार किया तो
आ जावेगा,पुराना दिन
पंछी की भांति,चाहे उड़ लें आकाश में
पग तो,धरती पर ही पड़ेगा
पल की महिमा पल ही जानें
कोई समझ नही पा रहा है
पल में जीवन,पल में मृत्यु
पल पल में परिवर्तन हो रहा है
इस साल भी नौतप्पा आ गया
दे रहा है,अनिश्चितता का संदेश
पल में हंसना,पल में रोना
न जाने आगे और क्या होगा
नैतिकता घट रहा है
बढ़ने लगी है,आबादी
बस समझने की देरी है
यहां ईश्वर की मर्जी ही चलेगा

नूतन लाल साहू

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

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