रामकेश एम यादव

मधुशाला!

है   मंजिल   तेरी  वो   नहीं,
जहाँ   तू   जाता  मतवाला।
फाँके  करते  घर   में   बच्चे,
और  तू   जाता   मधुशाला।

एक तरफ  मंहगाई  डायन,
दूसरी    तरफ   मधुशाला।
दो   पाटों  के  बीच   फँसी,
देख    तुम्हीं     ऊपरवाला।

यौवन-रस से भरा  हुआ है,
ये   मेरे  तन   का   प्याला।
अंतर-मन की प्यास बुझा ले,
छोड़ वहाँ की  साकीबाला।

कितना काम है और जरुरी,
नहीं   समझता   मतवाला।
दीवाल फटी है, छत है चूती,
तू   जाता    है    मधुशाला।

पीने का मतलब तू नहीं समझा,
अरे  !   सजन    भोलाभाला।
आओ  घर  में  राम-नाम  की,
मिलके    खोले     मधुशाला।

पीता    है  कलियों   से  भौंरा,
भर-  भर  के  मन का प्याला।
पीते   हैं   वो    पंख-    पखेरू,
कभी   न    जाते    मधुशाला।

पीने   और    पिलाने   में   तू,
जीवन   नरक    बना   डाला।
दुनिया मंगल-चाँद पर पहुँची,
तुझको  दिखता  बस प्याला।

खेत  बेच  या   नथिया  बेच,
या     बेच    तू     खंडाला।
तृप्त आज तक नहीं हुआ है,
कोई       भी      पीनेवाला।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

सुनीता असीम

इक बार कृष्ण मेरी     गुज़ारिश तो देखिए।
बस आपको रिझाने की कोशिश तो देखिए।
****
हो दर्द की लहर या सुखों की फुहार हो।
पर नाम की तेरे ही निबाहिश तो देखिए।
****
मैं डूबती  दुखों  में   हमेशा   रहूं  कहो।
इक बार मुझ गरीब की गर्दिश तो देखिए।
****
कितना बुझाओ अग्नि विरह बुझ नहीं सकी।
बुझती हुई सी राख में आतिश तो देखिए।
****
दिल की धरा थी सूखी था वीरान सा जहाँ।
उसपर हुई है नाम की बारिश तो देखिए।
****
सुनीता असीम
२७/५/२०२१

रामकेश एम यादव

लॉकडाउन और मजदूर!

मत घबराओ मजदूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।
लॉकडाउन से बंद पड़ा था,
वो रफ़्तार पकड़नेवाला।

थमी -थमी -सी सड़कें थीं,
वो थे उलझन में चाँद-सितारे।
चहल -पहल उठ खड़ी होगी,
टूटेंगे मौन हमारे।
कल तक थमा था नीलाम्बर,
अब वो भी है चलनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

तू है जग का वो शिल्पी,
पर दिखता जुगुनू जैसा।
गागर में सागर भरता,
पर नीड़ न पाता वैसा।
तेरी मेहनत के बूते,
मीनार, महल बननेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

तेरे हिलने से हिलती है,
मानव-जीवन डाली।
है कीमती हीरा तू,
हे ! बगिया के माली।
बिस्तर समेट चुका अब तम,
है मधु -प्रभात आनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

उर में उमड़ रही है जो,
वो विद्युत फिर चमकेगी।
थी पहले जैसी दुनिया,
वैसे फिर गमकेगी।
सृजन-शक्ति परवान चढ़ेगा,
देख रहा ऊपरवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

जन्म-मरण की ये दुनिया,
धूप -छाँव से मत डरना।
मानवता के पथ चलकर,
झरने के जैसे बहना।
तेरे हाथों मरुस्थल में,
कोई नया जहां बसनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

जहां में पतझड़ कहाँ टिका,
पांव वक़्त का कब है रुका?
जीवन -कलरव का प्रवाह,
वो किसके रोके से रुका?
कल-कारखानों का निस्तेज बदन,
वो हाथ तेरे सजनेवाला।
मत घबराओ मज़दूरों,
बाज़ार है खुलनेवाला।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*मधुमय जीवन*
मधुमय जीवन 
मधुर चिंतन-मधुर लेखन-मधुर वाणी हमारी है,
मधुरता से अगर जी लो मधुर दुनिया तुम्हारी है।
नहीं शिकवा किसी से हो,नहीं नफ़रत ज़माने से,
फ़साना गर मधुर तेरा,मधुरिमा भी तुम्हारी है।।
                                    मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
बड़ा कोई नहीं होता,कभी भी कद व काठी से,
मधुर ब्यवहार से मित्रों,वो होता सब पे भारी है।
मधुर ममता-मधुर माता मधुर होती मोहब्ब्त,है
जहाँ में बस इसी कारण,मधुर ममता ही न्यारी है।।
                                 मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
मधुर हो चाल भी जिसकी,चलन भी हो मधुर जिसका,
समझ लो बस चलन ऐसी ही सबको प्राण-प्यारी है।
मधुर रातें-मधुर बातें-मधुर जीवन-मधुर बंधन।
मधुर जीवन जो जीता है,वही मानव सुखारी है।।
                                 मधुर चिंतन-मधुर लेखन....
                                     ©डॉ. हरि नाथ मिश्र
                        9919446372

डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*वाणी* 

वाणी का ही भेद है,पिक अरु काक समान।
जब तक मुंह ना खोलते, होती ना पहिचान।

शिक्षित की पहचान है,वाणी है आचार ।
जब भी कुछ भी बोलिये, कीजै तनिक विचार।

शब्द घाव तीखे बहुत, लगे विष के तीर।
शब्द नहीं है भूलते,देते निसदिन पीर।

वाणी में बहु बल भरा, लेती हिय को जीत। 
सरस नेह से नित भरो ,इक दूजे में प्रीत ।

तीखे वचन न बोलिये ,करत घाव गम्भीर।
क्रोध पाप का मूल है, कुछ क्षण रख ले धीर।

मधु से मीठे शब्द ही, दिलवाते हैं मान। 
मीठी वाणी बोलकर, बन जा नेक सुजान।

सन्त कबहु नहि कटु कहै, सन्तहिं मीठे बोल।
पाना हो सम्मान तो, हिय में मिश्री घोल।

वाणी से मत आँकिये, है जन कौन महान। 
मनुज स्वार्थी के लिये ,मीठ बोल आसान। 

मन में रख कर कुटिलता, बोले मीठे बोल। 
मतलब के दिन बीतते, खुल जाती है पोल। 

परहित का रख ध्यान नित, बोलो सत्य सुजान। 
मीठी वाणी में बसे, स्वयंमेव भगवान।

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा ,* 
 *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर*

एस के कपूर श्री हंस

ग़ज़ल।। संख्या 103।।*
*।।क़ाफ़िया।। इया  ।।*
*।।रदीफ़।। बनो ।।*
1
हो सके किसी के काम का जरिया बनो।
नफरत नहीं   महोब्बत का  दरिया बनो।।
2
जरूरत नहीं है   तुमको खुदा बनने की।
बस सिर्फ इंसान नेक और बढ़िया बनो।।
3
जरूरत नहीं  बस दुनिया में  दिखावे की।
दे जो इमारत को बुलंदी  वो सरिया बनो।।
4
किसी दर्द की दवा , बनो जख्म का मरहम।
बुझाये किसीकी प्यास ,तुम वो नदिया बनो।।
5
हैं अलगअलग बनो उनके, जोड़ की तरकीब।
जो बिखरों को जोड़ दें,तुम वो कड़ियाँ बनो।।
6
तुम इस दुनिया के गुलशन के, फूल हो जैसे।
कोशिश करके तुम बस, फूलों की लड़ियाँ बनो।।
7
*हंस* बिना भेद के दे , जो संबको  उजाला।
हो सके तो तुम वैसा  चिराग ए  दिया बनो।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464


*।।कॅरोना।। दवा तंत्र,साथ ही बचो और बचाओ,ये ही है मंत्र।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
लॉक डाउन बढ़ा  दिया है
पुनः अब     सरकार    ने।
बेमतलब बेवजह   कतई
न निकलें आप बाजार में।।
घर पर ही रह  कर   आप
दे सकते कॅरोना को  मात।
बस अभी हंसी खुशी वक्त
आप  बिताइये परिवार  में।।
2
स्वास्थ्य ही धन है कि यह
बात दुबारा जान लीजिए।
अभी घर रहने  में भलाई
बस यही   ज्ञान   दीजिए।।
कॅरोना के   साथ  चलना
रहना हमें  सीखना होगा।
अनुशासन     अनुपालना
का बस अहसान कीजिए।।
3
लॉक डाउन की  रियायत
का कोई दुरुपयोग  न हो।
बेवजह न निकलो  बाहर
कि कॅरोना से योग न  हो।।
मत जाओ     कि   जहाँ
जमा हों   बहुत से  लोग।
मत एकत्र   करें   सामान
ज्यादा कि यूँ ही रोग न हो।।
4
फांसला बना   कर   रहना
आज हमारा यही  कर्म  है।
कॅरोना   काल में  यही  तो
अब   सर्वोपरि    धर्म    है।।
दूरी मजबूरी नहीं  ये तो  है
आज समय  की    जरूरत।
वही बचेगा जीवित अब कि
समझ लिया जिसने मर्म है।।

*रचयिता।एस के कपूर " श्री हंस*"
*बरेली*।
मो     9897071046
         8218685464

*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
आपकी   खुशी  की हम
हर  बात खास करते हैं।
रोज़ सुबह आपके लिए
इक़   अरदास करते हैं।।
यह नया दिन  नई आस
लेकर आयेआपके लिए।
*अपने नित प्रणाम से हम*
*प्रकट विश्वास  करते हैं।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍

*दिनाँक.  27.   05.      2021*
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️

नूतन लाल साहू

ऐसा क्यों हो रहा है

सृष्टि का परम पिता है एक
नाम रख डालें किंतु अनेक
वही है राम,वही है अल्लाह
वही है खुदा,वही है गॉड
वही है कृष्ण,वही है क्राइस्ट
इंसान बनाया है,अपना अपना इष्ट
सभी ने दिया है जग में,प्रेम संदेश
मगर क्यों,धर्म के नाम पर
झुलस रहा है, देश
न जाने, क्या होगा अंजाम
धर्म के नाम पर,कब तक होगा कत्लेआम
ऐसा क्यों हो रहा है
नफरत और घृणा की आग
सुनाई देता है, हर ओर
छीन ली है, अधरों से मुस्कान
मानवता हो रहा है लहूलुहान
अगर प्यारा है हिंदुस्तान तो
लगाओ इस पर शीघ्र विराम
धर्म के नाम पर, कत्लेआम
ऐसा क्यों हो रहा है
मिलजुलकर कुछ ऐसा करें कि
अपनापन तनिक न हो, बाधित
खुदा के बंदों, मनु जी का संतान
धर्म के नाम पर, न घोलो जहर
आगजनी,लूट और हत्या को
रोकना ही है,मानव का धर्म
सभी रहें,खुशहाल
ऐसा ही कुछ करों उपाय
धर्म के नाम पर कत्लेआम
ऐसा क्यों हो रहा है

नूतन लाल साहू

विनय सागर जयसवाल

ग़ज़ल--

दिखावे की अदाकारी करेगा
किसी की कौन ग़मख़्वारी करेगा

जिसे है ख़ौफ मुखिया का बता वो
हमारी क्या तरफ़दारी करेगा

बराबर बिक रहे ईमान हर सू
भला कब तक तू ख़ुद्दारी करेगा 

बचा कर चलते हैं काँटों से दामन
तू इतनी तो समझदारी करेगा

उतारो तुम गुनाहों का लबादा
सफ़र यह और भी भारी करेगा 

न घर का घाट का रह पायेगा वो
वतन से जो भी ग़द्दारी करेगा

मिले जब पेट भर रोटी न उसको
बशर वो फिर तो मक्कारी करेगा 

लिखा करता हूँ पुरखों के यूँ क़िस्से
कभी कोई अमलदारी करेगा

फ़ना फ़नकार हो जायेगा जिस दिन
ज़माना तब ये गुलबारी करेगा

निभाई तुमने गर *साग़र* न हमसे 
जहां में कौन फिर यारी करेगा
22/2/2021
ग़मख़्वारी-सहानभूति ,हमदर्दी
हर सू-हर दिशा ,हर तरफ़
अमलदारी - अपनाना ,इख़्तियार करना ,
बहर मुफाईलुन मुफाईलन फऊलुन

मधु शंखधर स्वतंत्र

🙏🏼 *सुप्रभातम्*🙏🏼
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *द्वार*🌹🌹
____________________

◆ द्वार ह्रदय का खोलिए, वास करें जगदीश।
शोभित जीवन साधना , भाव रहे अवनीश।
सत्य भावना हो ह्रदय, नैतिक हो व्यवहार,
दूजों के प्रति हो दया, स्वयं बसें हिय ईश।।

◆ द्वार खुला हो वह सतत, जिसके हिय अति प्यार,
मानव के प्रति प्रेम हो , रहे सहज व्यवहार।
दीन हीन सेवा करे, कर्म धर्म शुभ जान,
ईश्वर की है यह कृपा, एक यही आधार।।

◆ निर्मल गंगा बह रहीं, शिव बसते हरिद्वार।
संतो की यह भूमि है, धर्म रूप विस्तार।
धरा सुखद है लाल से, कर्म बढ़ाए मान,
जननी हिय में प्रेम का, भाव बसा संसार।।

◆ संकल्पों में जो अटल, खुले सतत शुभ द्वार।
राम मिला वनवास तो, त्याग चले घर बार।
त्याग समर्पण भावना, साथ अटल विश्वास।
मर्यादा पालन किए, राम बने करतार।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*27.05.2021*

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुशियों का पल परिवार----

प्राणि प्रकृति परमेश्वर 
ब्रह्मांड युग अवयव निर्माण
प्राणि जीवन परिवार समाज।।
प्रेम भाव भावना रिश्ता
समाज का आधार सुख
दुख गम खुशी मुस्कान।।
रिश्तो की दुनियां का
अपना रीति रिवाज
संस्कृति सांस्कार जन्म
जीवन का लम्हा लम्हा साथ।।           

माँ बाप से शुरू रिश्ता
समाज माँ बाप से सफर
सुरु ना जाने कितने ही 
रिश्ते नातो का आना जाना
समाज।।
परिवार परस्पर नेह स्नेह
सामाजिक नैतिक संबंधों
रिश्तो का विचार व्यवहार ।।
घर एक मंदिर 
भाव भावना की दीवारे
आस्था विश्वाश की बुनियाद।।
हर रिश्ता एक दुजे की खातिर
एक दूजे की खुशियाँ  सौगात।।
एक दूजे का साथ हाथ
चाहे जो भी स्तिति परिस्तिति
दुःख चुनौती लम्हा लम्हा साथ।।
एक साथ जब होते साथ
खुशियों की वारिस सौगात।।
माँ बाप दादी दादा भाई बहन
जाने क्या क्या रिश्तो का
परिवार।।                                   

एक  साथ जब होते
परमेश्वर मुस्काता
देख अपनी दुनियां
का परिवार समाज।।
द्वेष दंम्भ गृणा बैर
नाही चाहता है ईश्वर
चाहत उसकी प्रेम करुणा
का संसार।।

भाव भावना की
अनुभूति अनुभव रिश्तो
खुशियों का परिवार समाज
प्राणि प्रकृति ब्रह्मांड।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

जेठ माह के प्रथम दिन की मेरी पहली रचना!! लक्ष्य!! का अवलोकन करें, पावन मंच को मेरा हार्दिक कोटि कोटि प्रणाम स्वीकार हो:::::::::::                     भिन्ननु भिन्न तू काजु करौ चहय लक्ष्य निगाह मुलैकहु लाई!!                                 सोवतु जागतु रैनुदिना नु मा ना तुम वाहि दयौ बिसराई!!                              चक्र मा घूमत मीन के चक्षु मा तीर चुभावतु पारथु पाई!!                              भाखत चंचल गुरूवर हीन  मुला एकलव्य धनुर्धर  सांई!! 1!!                      काज अनेकहु सीखु मुला  निज लक्ष्य निगाहु ना दूजो तू लाई!!                          मारगु भिन्न बहंय नदियानु  मुला गंतव्य तौ सागरू भाई!!                                 भिन्ननु काजु सिखौ गुन नीकु मुला करतव्य सुपंथु सुहाई!!                            भाखत चंचल देखनोहार निगाहु नही सकत्यौ तू छुपाई!! 2!!                              लगन विचार धरौ  हिय नीकु  औ दीनदयाल भजौ प्रभुताई!!                       पावन पुण्य विचारू रहै  औ कुपंथ नु  पै जौ ना पांव बढाई!!                                   श्रम खूब करौ अनुशासनु धै  नहि लोभु  करौ जियरा मा धराई!!                          भाखत चंचल ता परिणामु  मिलै सबु नीकु बिलम्बु ना लाई!! 3!!                      भोरहि तै धरि धीरजु धै अरु तन मन काजु करौ प्रभुताई!!                         लोभु औ लालचि दूर धरौ  औ नाहि ईमानु का दूर हटाई!!                              काजु करौ परमेश्वर का भजि  नीकु मिलै फलु याहि  सचाई!!                        भाखत चंचल जौ छल छद्म  तौ होय विकासु ना रामु दुहाई!! 4!!                      आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल!! ओमनगर सुलतानपुर उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल फोन***"*8853521398, 9125519009!!

सुधीर श्रीवास्तव

जप/सुमिरन
########
जप ,सुमिरन,पूजा पाठ
महज एक माध्यम है,
चित्त की शान्ति के लिए
सहज बहाना है।
अपने ईष्ट में रमने का
उसे याद करने का
खुद को संयमित, संयोजित
और छल प्रपंच से दूर रहने
कु्विचारों,कुकृत्यों से डरने
सात्विक, सरल, सुसंस्कृति के लिए
ये सब तो मात्र बहाना है।
गलत कामों से बचने का
स्वार्थ, लोभ से डरने का
सत् पथ पर चलने का
संवेदनशील होने के लिए
ईश्वर से डरने का भी,
जप ,तप ,सुमिरन ,भजन,कीर्तन
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा
गुरुद्वारे में जाने का भी
ये सब एक बहाना है।
सबकी अपनी भावना है
सबके अपने तर्क भी हैं,
बस! उद्देश्य सबका एक ही है
अपने अपने मन में 
ईश्वरीय सत्ता के प्रति
अपने भाव जगाने का,
जैसे जिसको समझ में आता
ईश्वर कृपा को पाने का।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आठवाँ-9
  *आठवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-9
उमड़त नेह लगै जस सागर।
जसुमति-हृदय कृष्न प्रभु नागर।।
    जसुमति-पुत्र उहहिं भगवाना।
     बेद-सांख्य जे जोग बखाना।।
सकल उपनिषद महिमा गावैं।
जे प्रभु भजत भगत सुख पावैं।।
     सो प्रभु जनम भयो गृह जसुमत।
     धनि-धनि भागि जाय नहिं बरनत।।
धनि-धनि भागि जसोदा मैया।
जाकर स्तन पियो कन्हैया।।
     बाबा नंद त जोगी रहईं।
     यहिं तें कृष्न लला सुत पवईं।।
लला जसोदा लीला करहीं।
गोपी-सखा परम सुख लहहीं।।
     जसुमति-नंद अनंदित होवैं।
     पर सुख अस बसुदेवयि खोवैं।।
अस सुख मिलै न मातु देवकी।
कारन कवन बता मुनि अबकी।।
   अस सुनि प्रस्न मुनी सुकदेवा।
   कहे परिच्छित सुनु चित लेवा।।
दोहा-धरा-द्रोन-उर मा रहइ, ब्रह्मा-भगति अपार।
        मिलइ उनहिं किसुनहिं भगति,कह जा ब्रह्मा द्वार।।
       एवमस्तु तब तुरत कह,ब्रह्मा दियो असीष।
        अगले जनमहिं पाइ ते,तनय रूप जगदीस।।
        द्रोन भए ब्रज नंदहीं,धरा जसोदा रूप।
         पुत्र तिनहिं कै कृष्न भे,लीला करहिं अनूप।।
         पति-पत्नी कै रूप मा,गोपी-गोपिहिं साथ।
         निरखहिं लीला किसुन कै,अरु बलरामहिं नाथ।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र
                          9919446372

सुनीता असीम

सपनों के आकार बदलता रहता हूं।
अपनों से बेकार उलझता रहता हूँ।
****
थाह नहीं जिसकी एक समंदर ऐसा।
प्रेम नदी में जिसकी बहता रहता हूँ।
****
सागर मंथन दुख सुख का होता अक्सर।
ज्वार सरीखा सिर्फ उफनता रहता हूँ।
****
चाहूं सबका सिर्फ भला दुनिया वालो।
लेकिन क्या क्या सबसे सुनता रहता हूं।
****
वो  मेरे  हैं या  मैं    उनका हूं साथी।
इस उलझन में रोज उलझता रहता हूँ।
****
सुनीता असीम
२६/५/२०२१

सन्दीप मिश्र सरस

✍️ *सुनो बुद्ध! तुम कह कर जाते*✍️

सुनो बुद्ध! तुम कह कर जाते,
मैं सहर्ष ही करती स्वागत।

मुझ पर घर का बोझ डालकर,
चले जगत का भार उठाने।
मेरी पीड़ा सुन न सके तुम,
जा बैठे उपदेश सुनाने।

मैं यशोधरा भार धरा का,
तुम गौतम से हुए तथागत।1।

वैभव से निर्लिप्त रहे तो
महलों में भी तप सम्भव है।
मन में हो वैराग्य भावना
तो गृहस्थ में जप सम्भव है।

यदि मुझ पर विश्वास जताते,
जोगन बन होती शरणागत।2।

सुनो तथागत! पता लगा है,
नाम तुम्हारा बुद्ध हो गया।
चिंतन से प्रक्षालन करके,
अन्तर्मन भी शुद्ध हो गया।

मुझको भी भिक्षुणी बनाते,
मैं क्यों बैठी रही अनागत।3।

सन्दीप मिश्र सरस
बिसवाँ सीतापुर

डॉ0 निर्मला शर्मा

भक्त शबरी

राम नाम की धुन लगी, शबरी के मन माय।
राम नाम ही हिय बसा, करती सुमिरन जाय।
भीलपुत्री शबरी चली,मातु-पिता गृह त्याग।
सांसारिक सुख तज दिये, प्रभु चरणन अनुराग।
गुरु मतंग के आश्रम में, जपे राम का नाम।
शबरी नित आशा करे, कबहु पधारे राम।
राह बुहार शूल चुनती, मन में हरपल आस।
फूल बिछाऊं राह में, प्रभु मिलन की प्यास।
राम चरण कुटिया पड़े, खुशी न हृदय समाय।
प्रभु चरणों की धूल पा, जीवन ज्योति समाय।
घन सम नैनन नीर बहे, चरण रहा ज्यों पखार।
शबरी की भक्ति फली, मिट गये सभी विकार।
बेसुध सी शबरी हुई, चख-चख रखती बेर।
भगवन का आतिथ्य करे, उन्हें खिलाए बेर।

डॉ0 निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान

सुधीर श्रीवास्तव

सायली छंद 
**********
गुमनाम
^^^^^^^
गुमनाम
रहकर भी
काम कर जाता
बिना शोर
नाम
^^^^^
बेबस
लाचार क्यों
हौसला तो कीजिए
गुमनामी से
निकलिए।
^^^^^
गुमनाम
मत रहिए
कुछ नया कीजिए
पहचान बनेगी
स्वयं।
^^^^^
कल 
गुमनाम था
आज नाम वाला
क्या किया
उसने।
^^^^^
◆सुधीर श्रीवास्तव
     गोण्डा, उ.प्र.
    8115385921
©मौलिक, स्वरचित

मधु शंखधर स्वतंत्र

🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹
*गीत*
*मौन मत होइए*
------------------------
मौन मत होइए कुछ कहा कीजिए।
भाव अपने ह्रदय के बता दीजिए।

वेदना जो छिपाते रहे आज तक।
सामने मुस्कुराते रहे आज तक।
मान कर मीत अपना जरा रीझिए।
मौन मत होइए..........।।

शब्द माध्यम बने भाव अभिव्यक्ति का।
साधना तब दिखे मूल आसक्ति का।
गीत महफिल नया गुनगुना लीजिए।।
मौन मत होइए.............।।

शांति ऐसी कभी रास आती नहीं।
बोल प्रियजन बिना चैन पाती वहीं।
बोल मीठे मधुर रस पिला पीजिए।।
मौन मत होइए............।।

नैन से बात कह दो कहो तो सही।
भावना व्यक्त करना गलत भी नही।
सत्यधारा ह्रदय पौध को सींचिए।
मौन मत होइए............।।

जिन्दगी की किताबें पढ़े जो सभी।
याद उनको करो भाव फूटे अभी।
*मधु* ह्रदय नीर वर्षा सतत भींजिए।।
मौन मत होइए........ ।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*26.05.2021*

नूतन लाल साहू

ये कैसा नौतप्पा है

इस साल भी नौतप्पा आ गया
सोचा था,सूरज से आग बरसेगा
सुनी सुनी सी होगी, सड़के और
सूखेगा गला,निकलेगा पसीना
दिखेगा,सूरज का विशाल रूप
पर चल रही है हवा,छा गया है बादल
लगता है,पानी भी बरसेगा
बस,समझने की देरी है
यहां ईश्वर की मर्जी ही चलेगा
अभी भी वक्त है,संभल जाओ
प्रकृति से न करो, छेड़छाड़
भगवान का घर दूर नही है
भगवान मेरे क्रूर नही है
प्रभु जी के नही है,कोई गैर
प्रभु जी के घर, अंधेर नही है
घुरुवा का दिन भी बहुरता है
यदि प्रकृति सेइंसान, प्यार किया तो
आ जावेगा,पुराना दिन
पंछी की भांति,चाहे उड़ लें आकाश में
पग तो,धरती पर ही पड़ेगा
पल की महिमा पल ही जानें
कोई समझ नही पा रहा है
पल में जीवन,पल में मृत्यु
पल पल में परिवर्तन हो रहा है
इस साल भी नौतप्पा आ गया
दे रहा है,अनिश्चितता का संदेश
पल में हंसना,पल में रोना
न जाने आगे और क्या होगा
नैतिकता घट रहा है
बढ़ने लगी है,आबादी
बस समझने की देरी है
यहां ईश्वर की मर्जी ही चलेगा

नूतन लाल साहू

एस के कपूर श्री हंस

।।ग़ज़ल।।संख्या 104।।*
*।।काफ़िया।। आत।।*
*।।रदीफ़।। साथ साथ रहिये।।*
1
हर इक़ बात में साथ  साथ    रहिये।
हर जज्बात में साथ   साथ    रहिये।।
2
वक़्त   बदल   रहा    बहुत  तेजी से।
बदले हालात में    साथ साथ  रहिये।।
3
मिल कर जीने   की   बात   ही  और है।
खुशियों की सौगात में साथ साथ  रहिये।।
4
बढ़ रही है भीड़ हर   चौक  चौराहे पर।
हो सके तो बारात में साथ साथ रहिये।।
5
जब बात आ ही जाये साबित करने की।
दिखाने कोऔकात ज़रा साथ साथ रहिये।।
6
मौसम सब हो गये हैं समझ से परे ही।
हो आँधी बरसात  साथ  साथ   रहिये।।
7
हो जाती बातचीत पर न हो दिल से दूर।
न मिलें ख्यालात पर साथ साथ रहिये।।
8
अनबन भी   महोब्बत की निशानी है।
बस करके मुलाकात साथ साथ रहिये।।
9
मिलकर काम रहना खुद इक़ ताक़त है।
हो अंधेरी रात बस  साथ   साथ रहिये।।
10
*हंस* पूरी दुनिया के लिए बस एक पैग़ाम ।
मिलकर सब हज़रात साथ साथ रहिये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464


 शीर्षक।। हर जन मानस*
*ना हो सुरक्षित, वो सुखी संसार नहीं* *होता।।विधा ।।मुक्तक।।*
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस।।*
*1..* 
बिन मेहनत के    दौलत का 
कोई हकदार नहीं होता।
लेकर न चले साथ   सब को
वो सरदार  नहीं  होता।।
बिना काबलियत   के   ताज
न मिले     किसी   को।
जो निकल पड़े    मांगने  को
वो खुद्दार   नहीं होता।।
*2....* 
जो टिक न पाये   वायदे   पर
वो असरदार   नहीं है।
जो काम न आये    किसी  के
वो रसूखदार नहीं है।।
जो न बिके   वही    होती   है
सच्ची      ईमानदारी।
बगिया न हो  गुलज़ार    कोई
वो बसंत बहार नहीं है।।
*3....*
 जो न रख पाये काबू जुबां  पे
वो समझदार नहीं है।
सामने से न दो चुनौती  तो वो
ललकार   नहीं   है।।
तन अच्छा मन अच्छा हो वही
है       ठीक    सुधार।
जब न मिले कीमत  पसीने की
तो वो रोजगार नहीं है।।
*4....* 
हर मुद्दे पर  करनी   नुक्ताचीनी
बात शानदार नहीं है।
जो देश के लिए  न   सोचे  वह
तो वफ़ादार   नहीं है।।
माता पिता के उपकार को कोई
उतार   नहीं   सकता।
माँ बाप के लिए  सेवा तो  कोई
उपहार     नहीं    है।।
*5.....*
पेट भरा हो  जिसका खूब   वह 
तो जरूरतदार  नहीं है।
बेवजह जो उड़ाये  मजाक   वो
आदमी मजेदार नहीं है।।
जिसने किया था  काम को वही
है   सही        दावेदार।
जिसे पहचान नहीं     खरे  सोने
की वो सुनार    नहीं है।।
*6....* 
सब्र बहुत जरूरी  हर  बात तुरंत
पलट वार  नहीं होता।
दर्द किसी का न समझ  पायें जब
वो सरोकार नहीं होता।।
संवेदनाएं बहुत  जरूरी मानवता 
के    उद्धार   के  लिए।
हर जन मानस न हो सुरक्षित  वो
सुखी संसार नहीं होता।।
*रचयिता।।एस के कपूर"श्री हंस",बरेली।।*
9897071046/8218685464


*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
खुशियाँ हमेशा झाँके
आपके.   द्वार।
जीवन में सदा  बरसे
प्यार ही प्यार।।
सुखों से  झोली आप
की    भरी रहे।
*आज सुबह सबेरे का*
*आपको नमस्कार।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍
*दिनाँक. 26.   05.   2021*

मन्शा शुक्ला

परम पावन मंच का सादर नमन
  .....   सुप्रभात
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

मनहरण घनाक्षरी

पतित पावन नाम
जपिए सुबह शाम
सुमरि सुमरि नाम
मन शुद्ध कीजिए।

राम नाम औषधि है
हरती सब व्याधि है
प्रेम भाव से इसका
नित्य पान कीजिए।

संसार तो आसार है
राम नाम आधार है
सुमिरन नौका चढ़
 पार भव कीजिए।

जपिए धर  के ध्यान
मिटता  तम अज्ञान
ज्ञानदीप रामनाम
सत्य पहचानिए।

मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(शबरी)
नवधा भक्ति उपासिका,शबरी तुम्हें प्रणाम।
खाकर जूठी बेर प्रभु,दिए तुम्हें सुर-धाम।।

जग-सेवक प्रभु राम जी,हुए बहुत अभिभूत।
पाकर तुझ सी सेविका,बेर चखे अनुकूत।।

रही ताकती देर से, प्रभु-आवन की राह।
धन्य-धन्य प्रभु राम जी,पूर्ण किए तव चाह।।

निर्मल जल,निर्मल कुटी,निर्मल मन व शरीर।
से कर प्रभु की अर्चना,दिया भगा भव-पीर।।

बिना कपट शुचि भाव से,सबको मिलते राम।
ऐसे ही शबरी तरी,रट शुचि मन प्रभु-नाम।।
          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

मधु शंखधर स्वतंत्र

🌹🌹 *सुप्रभातम्* 🌹🌹
बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं....
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*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *बुद्ध*🌹🌹

◆ क्षत्रिय कुल में जन्म ले, देवतुल्य प्रतिमान।
शुद्धोधन के अंश थे, विश्व बढ़ाए शान।
जन्म लुम्बिनी में हुआ, मातु दिवस बस सात,
लालन पालन गौतमी, माँसी धरती ध्यान।।

◆ यशोधरा अर्धांगिनी, राहुल सुत का नाम।
छोड़ दिए घरबार को, सत्य खोज के काम।
दुख का कारण खोजकर, पाए सुखमय ज्ञान,
बोधि वृक्ष ही ज्ञानमय ,  गया बना शुभ धाम।।

◆ ज्ञान प्राप्त कर बुद्ध हो, भूले वह सिद्धार्थ।
बौद्ध धर्म को विश्व में, पहुँचाए लोकार्थ।
घृणा प्रेम से दूर हो, सत्य बुद्धि प्रतिमान,
भारत माँ की गोद यह , होती पुण्य कृतार्थ।।

◆ सतत नमन है बुद्ध को, बुद्ध पूर्णिमा आज।
धर्म सदा सद्ज्ञान दे, पर उपकारी काज।
ज्ञान धर्म के मेल से, संगम पुण्य विचार,
पावन दिन का मान है, मधु हिय करती नाज।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️

शुभा शुक्ला मिश्रा अधर

🌺 बुद्ध पूर्णिमा 🌺
***************
सत्य यही है कोटि यत्न कर,
        सब बुद्ध नहीं बन पाते हैं।
हे सिद्धार्थ! तुम्हारे सद्गुण,
      जग-जीवन को महकाते हैं।।

सुनो शांति के हे अन्वेषक!
         सदाचार के पालनकर्ता।
पोषक हो तुम शोषित जन के,
          करुणा सागर पीड़ा हर्ता।।
राजा-रंक मुदित मन होकर,
       आष्टांगिक पथ अपनाते हैं।।
हे सिद्धार्थ!तुम्हारे सद्गुण,
      जग-जीवन को महकाते हैं।।
         
सुन्दर सरल मधुर वाणी से,
       जीवन-दर्शन रहे सुनाते।
ईश शरण में हैै सुख सच्चा,
         ज्ञान बोध सबको करवाते।।
शांति क्षमा का भाव हृदय में,
         नित आकर स्वयं जगाते हैं।।
हे सिद्धार्थ! तुम्हारे सद्गुण,
       जग-जीवन को महकाते हैं।।

बुद्ध! तुम्हारे पग चिन्हों पर,
       चलना इतना आसान नहीं।
सुख-वैभव परिवार त्यागकर,
      शान्ति खोजना आसान नहीं।।
लोभ-मोह में रत ही मानव,
            निर्मोही तुम्हे बताते हैं।
हे सिद्धार्थ!तुम्हारे सदगुण,
       जग-जीवन को महकाते हैं।।

मोह जगत है मिथ्या जाना,
    शासक बनकर क्या है पाना?
दुखदायी नश्वर तन कबतक,
       चाहेगा यह साथ निभाना?
इन्हीं विचारों से आकुल हो,
    लघु मानव-मन कतराते हैं।।
हे सिद्धार्थ! तुम्हारे सद्गुण,
    जग-जीवन को महकाते हैं।।

सत्य यही है कोटि यत्न कर,
       सब बुद्ध नहीं बन पाते हैं।।
    

आप सभी को बुद्धपूर्णिमा की हार्दिक बधाई एवं असीम शुभकामनाएँl💞💐😊
आप आत्मीयजनों से अनुरोध है कोरोना को हराना है🔥तो कृपया जीवन-रक्षक निर्देशों का पालन अवश्य करें। सदैव शुभ हो।🙏🌹

   शुभा शुक्ला मिश्रा 'अधर' ❤️✍️

डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*वही है बुद्ध* 


 हृदय से जो शुद्ध, 
अनीति के विरुद्ध, 
ऐन्द्री सुख निरुद्ध ,
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध।

आत्म में लीन, 
परमात्म में तल्लीन, 
सकल विकार विहीन, 
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध। 

प्रतिपल चिन्तशील, 
निरन्तर प्रगतिशील, 
अपनाये जो पंचशील ,
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध। 

धारण करे सत्य, 
त्यागे मदिरा मत्स्य 
अखिल विश्व स्तुत्य, 
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध। 

धारे ईश्वर रूप, 
संदेश दे अनूप ,
ज्ञान से भरे हृद कूप, 
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध। 

अपनाये वैराग, 
मोह माया त्याग,
जिसकी जाये प्रज्ञा जाग, 
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध। 

परहित धर्म, 
सन्मार्ग कर्म, 
समझाये ईश मर्म,
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध। 

करे युग परिवर्तन ,
विसंगतियों का परिमार्जन, 
हर्ष का उत्सर्जन, 
वही है बुद्ध, वही है बुद्ध। 

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा ,* 
 *अकबरपुर, अम्बेडकरनगर।*

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...