निशा अतुल्य

हम दोनों 
29.5.2021

शाम ढली और रात अंधेरी
साजन साथ चले ।
नहीं कमी रही जीवन में कभी
जब नई राह गढ़े ।

शुरू किया जब सफ़र साथ में
तब भी थे हम दोनों
अंत समय में फिर से साजन 
हम दोनों ही हैं ।

पाल-पोस बड़ा किया था जिनको
वो मस्त अपने में रहे।
हम दोनों भी मस्त रहेंगे
जब हम साथ चले ।

छोडों सब बेकार की बात
कुछ न कान धरें
एक दूजे को खुश रखेगें
बस ये बात करें ।

तुम बन जाना छड़ी हमारी
मैं साहस हूँ तेरा 
नहीं किसी विपदा से हारे
जब मन प्रण धर ले।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

अवधेश कुमार वर्मा कुमार

लोकतंत्र
लोकतंत्र के दौर में
सबको मिला अधिकार,
स्वतंत्रता मुखरित हुई
जनता बनी सरकार।
भेद-भाव का टूटा परचम
समभाव जग में आया,
लोकतंत्र के शासन ने
जीना सबको सिखाया।
जन की भागीदारी से
सफल हुआ प्रयास,
लोकतंत्र के पथ चलकर
खूब हुआ विकास ।
लोकतंत्र की गरिमा बढ़े
कभी ना आये आंच,
जन-जन का संकल्प हो
अटल रहे यह ताज।
-अवधेश कुमार वर्मा "कुमार"©
        महराजगंज(उत्तर प्रदेश)
----------------------------------------

डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*कैसे कहूँ* 

दिल में रहते हो हरदम तुम ही सनम, 
दूरियाँ  हैं  बहुत   मै ये कैसे कहूँ ?

साथ  तुम संग चले थे जो दो कदम, 
मिट गये हैं निशाँ उसके कैसे कहूँ ?

पास थे जब कभी तो भी था कब करार? 
बेकरारी खतम अब ये कैसे कहूँ?

सिलसिला ख्वाहिशों का है रुकता नही, 
आरजू थम गयी है ये कैसे कहूँ?

आँख की कोर में अश्क दरिया छिपा, 
जख्म सब भर गये हैं ये कैसे कहूँ?

राख में बाकी चिन्गारियों की चमक, 
शमा बुझ सी गयी है ये कैसे कहूँ?

समझ सको तो इतना ही समझा दो ना ,
इश्क होता है आसाँ ये कैसे कहूँ? 

जिन्दगी की पहेली सुलझती नही, 
ख्वाब हैं' सब मुकम्मल ये कैसे कहूँ?

है बहाने बहुत जीस्त जीने के तो, 
बेसबब जी रही हूँ ये कैसे कहूँ?

उलझनों का सफर कल था और आज भी, 
सूकूँ मंजिल पे होगा ये कैसे कहूँ?

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा*
 *अकबरपुर,*अम्बेडकरनगर* ।

कुमार विशु

घोटालों  का  दौर  बताओ  कब  से  है ,
तुष्टीकरण  की राजनीति यह कब से है ,
भ्रष्ट  राज्य  की नींव  रखी किसने भाई,
देश  जलाने  का  षड़यन्त्र  ये  कब  से  है?

नेता सुभाष का त्याग तुम्हें है याद नहीं,
अध्यक्षीय विस्थापन तुमको याद  नहीं,
शायद  तुष्टीकरण  वहीं से  शुरू हुआ,
ऐसे  नेता की  कुर्बानी कैसे  याद नहीं।।

सैंतालीस का देश विभाजन याद तो है,
अबलाओं की लुटती इज्जत याद तो है,
लाशों पर  जो राजनीति का खेल हुआ,
तड़प  गयी  थी मानवता वो याद तो है।।

नहीं  था  जनमत  कभी  पक्ष  में  नेहरू के,
हर  जनमत  था साथ  रहा  बस बल्लभ के,
सत्ता   की  लोलुपता  जिसके   मन  में  था,
स्वार्थपरायण नर चलते थे संग गाँधी के।।

अड़तालीस   का  जीप  घोटाला  याद  करो,
कृष्र्ण   मेनन  का  सभी   हवाला याद करो,
मुंध्रा  तेजा  पटनायक  मारूति आयल देखो,
बैंक दलाली और सत्यम घोटाला याद करो।।

कृष्णामाचारी  से लेकर  राजघराना शामिल था,
गोपालकृष्णन हर्षद सुखराम तेलंगी शामिल था,
संजय राजीव लालू संग यूरिया व चारा याद करो,
ऐसा लगता देश का सेवक ही ज्यादा जालिम था।।
✍️कुमार@विशु
✍️गोरखपुर 
✍️स्वरचित मौलिक रचना
क्रमशः.......

रामकेश एम यादव

कुदरत!

कुदरत के सिवा इस धरती पर,
कुछ और नहीं भ्रमजाल है ये।
न जादू कोई, न टोना कोई,
औरों की कोई चाल है ये।

कुदरत ने हमें जंगल बख्शा,
हमने उसे उजाड़ दिया।
उसकी सारी हरियाली को,
हमने मौत का हार दिया।
जंगल की उखड़ती सांसों पे,
फिर हमने सवाल किया है ये।
कुदरत के सिवा इस धरती पर,
कुछ और नहीं, भ्रमजाल है ये।

मोटर-गाड़ी बंगले तेरे,
ये सब सुख के मूल नहीं।
पैरों के तले कुचली कलियाँ,
क्या तेरी कोई भूल नहीं?
जीते जी औरों का जीना,
तूने क्यों मुहाल किया है ये।
कुदरत के सिवा इस धरती पर,
कुछ और नहीं, भ्रमजाल है ये।

करेगा जब मूक प्राणी की रक्षा,
तब जाकर संसार बचेगा।
विकास की अंधी दौड़ से लौट,
तब जाकर भूगोल सजेगा।
मत बलि दे उस बकरे की,
वह तो कोई ढाल नहीं है ये।
कुदरत के सिवा इस धरती पर,
कुछ और नहीं भ्रमजाल है ये।

अंधश्रद्धा का झुनझुना बजाना,
अब दुनिया में छोड़ दे।
ईश्वर तो है तेरे अंदर,
अंदर से उसको जोड़ दे।
हक़ीक़त में हो पूजा जिसकी,
उसको क्यों हलाल किया है ये।
कुदरत के सिवा इस धरती पर,
कुछ और नहीं, भ्रमजाल है ये।

मौत जो बरसी, क्यों बरसी,
समझ तू कर्मों का लेखा।
खुदा जो बन बैठे थे जमीं के,
उनको भी मरते देखा।
मज़लूमों का हक़ छीनकर,
तूने ऐसा हाल किया है ये।
कुदरत के सिवा इस धरती पर,
कुछ और नहीं, भ्रमजाल है ये।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी - काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार
-------------------------------------------
संक्षिप्त परिचय
        ---------------------------
नाम - डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
जन्म तिथि - 11 . 10 . 1955
शिक्षा - एम . ए. ( हिन्दी , संस्कृत ), बी . एड . , पी - एच . डी. , डी . लिट्. ( विद्या सागर ) - मानद ।
प्रकाशित साहित्य - 11 ( ग्यारह पुस्तकें ) ।
अनेक पुस्तकें प्रकाशनाधीन एवं अप्रकाशित ।
देश की विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित तथा आकाशवाणी / दूरदर्शन से प्रसारित ।
सम्मान - देश / विदेश की अनेक साहित्यिक , सामाजिक , सांस्कृतिक संगठनों द्वारा लगभग 90 ( नब्बे ) प्रशस्ति पत्रों , प्रतीक चिन्हों आदि से सम्मानित / पुरस्कृत ।
उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन तथा साहित्यिक / सामाजिक / सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय  सहभागिता ।
पत्र व्यवहार का पता -
डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ग्राम / पो. पुजार गाँव ( चन्द्र वदनी )
द्वारा - हिण्डोला खाल
जिला - टिहरी गढ़वाल - 249122 ( उत्तराखंड )
मोबाइल नंबर - 9690450659
ई मेल आईडी -
dr.surendraduttsemalty@gmail.com 
  
  1-            " कविता "
            -----------------
  

साहित्य की ऐसी विधा है कविता ,
आसमान  मे जैसे  होता सविता ।

कविता  मे  होते  हैं  गुण  अनेक ,
आश्चर्य  होता  है  जिनको   देख ।

भावोंमे मेघ सी छा जाती कविता ,
चमकत गरजती बरसती कविता।

कविता   चिड़िया  सी   चहकती ,
प्रातः काल  फूलों  सी   महकती ।

मोर   पक्षी   सा   नृत्य   दिखाती ,
भूगोल इतिहास विज्ञान सिखाती ।

रात  क्यों  चमकते  चाँद- सितारे ,
दिन  मे  क्यों  नहीं  दिखते  तारे ?

कविता  उत्तर  देती  इन  सबका ,
बहुत  बड़ा  विज्ञान  है  जिनका ।

कविता  नैतिकता   पाठ  पढ़ाती ,
उन्नति  की   ओर   सदा  बढ़ाती ।

कविता   याद   कराती   पल  मे ,
सैर  कराती   नभ  थल  जल  मे ।

नवरस मात्रिक वर्णिक  जो छन्द ,
कविता के अन्दर रहते सब बन्द ।

सजता अलंकारों से कविता  तन ,
पढ़कर खुश  होता  सबका  मन ।

शब्द   एक   और  अनेक   अर्थ ,
कोई  भी  नहीं   होता  है   ब्यर्थ ।

रचते कविता  जो भी  कवि गण ,
प्रेरणा  -  शिक्षा   होता  है   प्रण ।

कविता सभी  रसों  का  भण्डार ,
मन   करता  पढ़ें  हम  बारम्बार ।

नर  नारी वृद्ध जवान  या  बच्चा ,
ज्ञान  कराती यह सबको अच्छा ।

जीने की  यह  कला  सिखलाती,
सबको  अच्छी  राह  दिखलाती ।

पहले  मन  मे  उमड़ती  कविता ,
फिर  कागज मे बरसती कविता ।

करती  है  मन  के  तम  को  दूर ,
मनोरंजन-शिक्षा से  होती भरपूर ।


2-  बाल कविता

    " मम्मी जैसा होता कौन ? "
---------------------------------------
    

मम्मी  जैसा   होता  कौन ?
पूछा तो  सबके सब  मौन ! 

सचमुच मे  माँ  होती ऐसी ,
और नहीं  कोई  उस जैसी !

नौ महीने का कठिन सफर ,
तय   करती  है जननी  हर ।

अपना सुख-दुःख सबभूल ,
समझती है शिशु अनमोल ।

पालन - पोषण मे  तल्लीन ,
रहती  धनी  हो  चाहे  दीन ।

माँ जब  काम से घर आती ,
बच्चे से  तब मन  बहलाती ।

देख थकान  फुर्र  हो जाती ,
अपने  भाग्य पर  इठलाती ।

शिक्षा-संस्कार  की आधार ,
करती है  सबकी नय्या पार ।

माँ का सब पर  होता कर्जा ,
सबसे  ऊँचा  इसका   दर्जा ।

कभी न  माँ को  जायें  भूल ,
चरणों मे  सदा चढ़ायें  फूल ।

------------------------------------

3-  बाल कविता 
                   " प्रातः काल "

मुर्गे  ने   जब  बाँग  लगाई  ,
हम बच्चों की  नींद भगाई ।

चिड़ियों ने भी  छेड़ी  तान  ,
भौंरे  गुन - गुन  गाये  गान ।    

दुम   दबाकर   भागे   सारे  ,
जितने  भी  थे   छाये  तारे ।

सूरज  बोला  आ  गये  हम  ,
भाग  चुका  था  गहरा  तम ।

छाई   लाली  हुआ  उजाला  ,
घटता   गया   ओस - पाला ।

तितलियाँ थी  फूलों के संग  ,
मनमोहक  था  जिनका रंग ।

हमनें  शौच   किया   स्नान  ,
लगाया तब  देवों का ध्यान ।

पढ़ाई से  पहले  योग-ध्यान ,
बढ़ाया  इनसे  अपना  ज्ञान ।

बस्ता  लेकर के  गये  स्कूल ,
शिक्षा-संस्कार  का जो मूल ।


4-  बाल कविता - " आँसू "
-------------------------------------

आँसुओं  का  भी   क्या  कहना  ,
बड़ा  कठिन  है  इन्हें  समझना !

आता  जब   दुख  का  अम्बार , 
सहन न कर सकती आँखें भार ।

गिराती   इन्हें   धरा  पर   नीचे ,
कहानी होती  हर एक के पीछे ।

आँसू खुशी मे भी  हैं  छलकते ,
भाव  खुशी के  स्पष्ट  झलकते ।

इनके पीछे छिपा होता विज्ञान ,
ए  बनते  कैसे  बच्चे  लें  जान ।

बहकर आँसू सुख -दुख कहते,
इन्हें   देखकर   और  समझते ।

5- बाल कविता -" मोबाइल "
---------------------------------------

बहुत   उपयोगी   है  मोबाइल ,
जीत चुका है यह सबका दिल ।

हरपल   रखते    अपने   पास   ,
इस पर सबसे अधिक विश्वास।

अनेक  सुविधाओं  से  भरपूर ,
कराता   बात   बहुत   है   दूर  ।

कार्यक्रम   गतिविधियाँ   सब ,
दिखाता   है   मोबाइल   अब  ।

कल्कुलेटर     टार्च      कैमरा ,
इसके  अंदर  सबकुछ है भरा ।

इण्टरनेट   आँनलाइन   काम  ,
मनोरंजन अनेक रखे हैं थाम ।

मोबाइल  बन  चुका  है  अंग ,
उसके सब काम करवाते दंग ।

हर  पल  रहता  सबके  साथ ,
करवाता  रहता  सबसे  बात ।

नेटवर्क   यदि  करे   न  काम ,
तब सिम हो जाता है बदनाम ।

बहुत काम इससे होते आसान ,
बन गया  यह  दुनियां की शान ।

इसका  सही  उपयोग करें सब ,
मिलते हैं सारे लाभ  इससे तब ।

जो जन  गलत प्रयोग हैं  करते ,
बिना  मौत  के  मानों  वे  मरते ।

बच्चों  के  जितने  भी  खिलौंने ,
मोबाइल   के  आगे  सब   बौंने ।

उछलना  -  कूदना   और  हँसी ,
मोबाइल   के   अन्दर  हैं  बसी ।

बाहर     घूमना      सगे   साथी ,
ए   सब   लगते  सफेरद   हाथी ।

तर्जनी   उँगली   कोमल   हाथ ,
मोबाइल  पर  घूमते  दिन-रात ।

------------------------------------- ---
ग्राम / पो . पुजार गाँव(चंद्र वदनी) 
द्वारा- हिण्डोला खाल
जिला- टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)- 2449122
मोवाईल नं .- 9690450659
ई मेल - 
dr.surendraduttsemalty@gmail.com

लता विनोद नौवाल - काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

1- श्री गणेशाय नमः
एकदंताय  विशालकाय 
विद्या बुद्धि प्रदायक 
गुणों के ईश 
विघ्न विनाशक देवाय नमः 
सबसे पहले आपकी पूजा
 बाद में होगा काम कोई दूजा
 संकट हरता मंगल दाता 
दीन दुखियों के भाग्य विधाता
 दूर करें विघ्न चिंता क्लेश 
आप की महिमा अमिट अशेष सकल सुमंगल मूल
 जीवन सुख शांति दो 
सदा रहो अनुकूल
   - लता विनोद नौवाल


 2- तेरे चरणों में जब शीश झुका
मेरा रोम रोम हरसाया
हे प्रभु जिसदिन इन आँखों नें 
तेरी एक झलक बस पाया
मेरा मन खोया तेरी गलियों में
तन होगया ज्यों बरसाना
प्रभु तुझे छोड़ नही जाना.......

१) हे श्याम तेरी मैं विरहन हूँ 
भटकूँ तुझ बिन मैं वन वन हूँ
आशा के बुझते दीपक को 
प्रभु अब रोशन कर जाना ।

२) मैं जनम जनम की प्यासी हूँ
शबरी जैसी तेरी दासी हूँ
मैं बन बैठी जोगन तेरी
प्रभु मुझको भी अपना लेना

३) तू तो करुणा का सागर है ।
रीता ह्रदय का गागर है ।
नैनों को दर्शन देकर के 
ह्रदय की प्यास बुझा जाना


3- Lyrics: Lata Vinod Nowal

तेरे प्रेम का रंग है न्यारा रे 
सारा जग ही लगे अब प्यारा रे 
हर ओर है अब उजियारा रे 
मोहे सुध न रही दिन रैन की 
मोहे सुध न रही दिन रैन की   

कान्हा से न रह गई कोई दूरी रे 
अधजल गगरी आज हुई है पूरी रे 
नाँचू ओढ़ चूनर सिंदूरी रे 
बुझी प्यास जो मन बेचैन की 
मोहे सुध न रही दिन रैन की 

पी की हो गई रही न अब दुखियारी रे 
पल में काट के रख दी दुविधा सारी रे 
चली ऐसे जिया पे कटारी रे 
मोहन तेरे सुन्दर नैन की 
मोहे सुध न रही दिन रैन की     

प्रीत की डोर अब तो ये टूटे नहीं 
मेरे माधो रंग तेरा छूटे नहीं 
सांस टूटे लगन मेरी छूटे नहीं 
तेरे मधु से मीठे बैन की 
मोहे सुध न रही दिन रैन की


4- डसती है ये काली रतिया, और बैरन तन्हाई 
मोहे याद पिया की आई। 
पिया से मिलन की आस में पगली ये आँखें भर आई 
 मोहे याद पिया की आई।   

१) बालों में गजरा सूख गया है, साजन (प्रीतम) मोसे रूठ गया है। 
कंगन चूड़ी खनकत नाही, अब तो आ जा प्यारे माही।।
रुत सावन की आई, मोहे याद पिया की आई 

२) तारे गिन गिन रैन बिताऊं, दिल को कैसे मैं समझाऊँ। 
नैनों से निंदिया उड़ गई है, मेरी दुनिया उजड़ गई है।।
लौट के आ हरजाई, मोहे याद पिया की आई

5- मैं हूं प्रेम दीवानी 
सखी री, मैं हूं प्रेम दीवानी!
 कोई समझे ना कोई जाने ना,
 तू भी रही अनजानी!!
 सूरत उसकी इतनी मोहनी,
 रंगत श्याम सलोनी 
बिन देखे अखियां न मानी, 
मंद मंद मुस्कानी!!
ऐसो कर दियो
 मुझ पर जादू 
हो गई मैं मस्तानी
 प्रेम रंग में लता रंग गई 
सुध बुध भी न जानी !
सखी री, मैं हूं प्रेम दीवानी 
  लता विनोद नौवाल

श्रीमती लता विनोद  नौवाल
राष्ट्रीय महासचिव इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल नई दिल्ली कवयित्री होने के साथ-साथ एक समाज सेविका भी हैं दिल्ली के इंद्रप्रस्थ कॉलेज से हिंदी ऑनर्स की पढ़ाई की संस्कृत मे 1 साल का कोर्स किया 1980 में 16 साल की उम्र में पहली हास्य व्यंग्य की कविता क्रिकेट कविताएं पुस्तक प्रकाशित हुई जिसकी काफी सराहना हुई दूसरी किताब बोल उठा मन एवं तीसरी किताब आशनाई  जिसका विमोचन  8 मार्च को  पदम  श्री सुरेंद्र शर्मा जी ने किया, 
              उनके संपादन में चार किताबें छपी है, दो किताबें रामायण पर आधारित हैताकि आज की युवा पीढ़ी रामायण के पात्रों के बारे में जान सके  
   श्रेष्ठ कवियों के साथ मंच पर कविताएं पढ़ना, श्री विश्वनाथ सचदेवा जी, नौटियाल जी, डॉ राम मनोहर त्रिपाठी जी, नंदलाल पाठक जी, सुरेंद्र शर्मा आदि के साथ काव्य पाठ किया प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं छपती रहती हैं बोल उठा मन का कन्नड़ में भी अनुवाद हुआ। 
             इनरव्हील क्लब के अध्यक्ष पद पर  भी रही, और उनके अच्छे कार्यों के लिए उन्हें सुप्रीम स्वर्ण पदक अवार्ड मिला। 
             राष्ट्र के प्रहरी राष्ट्र सेना में समर्पित सैनिकों तथा उनके परिवार को कोटि-कोटि नमन करते हुए जो योद्धा वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं वह समय उनके परिवार के लिए अत्यंत दुखदाई होता है कठिनाई भरा होता है कर्नाटक में उनके लिए जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन से से मिलकर एक संस्था बनाई जिसमें 400 परिवार रजिस्टर किए गए जिसके तहत सैनिकों को एक हीरो का सम्मान देना  उनके परिवार को कॉलोनी में बुलाना एक एक्सपर्ट को बुलाकर उनकी जो कानूनी समस्याएं होती है उन को सुलझाने की  कोशिश होती है उनके व उनके बच्चों के रोजगार की समस्या सुलझाने की काफी प्रयास किया जाता है
     सैनिकों को हीरो की दर्जा दिलवाना मकसद है उनका जो हमारे देश के सच्चे हीरो हैं। 
     30 साल बाद वह अपने गांव गई वहा 2280 मेगा वाट का लड़कियों के स्कूल में सोलर सिस्टम दिया वहा लाइट नही रहती ताकी वह अच्छे से पढाई कर सके 
      हर आदमी को सुधरने का एक मौका मिलना चाहिए  इसके तहत लता नौवाल ने अपना जन्मदिन कैदियों के साथ मनाया  और उन्हें योगा की ट्रेनिंग भी दी गई लगातार  जिससे सकारात्मक असर उनके दिमाग पर पडे, 
   देश के सभी भाषाएं एक दूसरे के पूरक हैं   सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिए, इसके लिए कन्नड़, हिंदी कवयित्री सम्मेलन किया गया, 
          सबसे बड़ी म्यूजिक कंपनी T-series से  सूफी गीत एवं भजन रिलीज होते रहते हैं, उनके गीत जावेद अली एवं साधना सरगम जी ने गाए, जो बहुत फेमस हुआ तस्वीर उनकी मेरे दिल में उतर गई, एक चैनल LV sound भी है जिसमे जिसमें तीन लाख से भी ज्यादा फॉलोवर्स हैं।

कवियत्री समाज सेविका 
राष्ट्रीय महासचिव इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल नई दिल्ली 
लता विनोद नौवाल

मन्शा शुक्ला

अतुकांतिका

नीव की ईट और नारी
...........................,

नीव की ईट और नारी में
होती है कितनी समानता
दोनों ही बनी आधार
देती  रहती है सम्बल
परिवार और उँची सुन्दर
ईमारतों ,अट्टालिकाओं को।
देखा जाता है बाहरी स्वरूप
सुन्दरता,बनावट मजबूती 
    मिलती है   सराहना ,प्रशंसा।
कोई नही जानना चाहता
नीवं की उन ईटों के बारे में
किस हाल में है वो कमजोर
टुटती  या  है मजबूत अब भी।

सुन्दर संस्कार युक्त व्यक्तित्व
सुव्यवस्थित  साज सज्जा
व्यवस्था कि होती है  सराहना
समय के अन्तराल के साथ
भूल जाते हैं उस नीवं की ईट को
जो अंधेरो  में  गुमनाम  पडी़
प्रतीक्षा रत  है  आज भी जाननें
 को अपनी पहचान ,असतित्व को।

 पाने को मान सम्मान ,अधिकार
जिसकी है वो वास्तिवक हकदारहै
आवश्यकता  होती है
उचित देखभाल की समय के साथ
नीवं की ईट को भी ताकि बना रहे
सुन्दर ईमारतों का और पीढीयों तक
हस्तांतरित होते रहे संस्कार संस्कृति
पीढ़ी दर पीढ़ी, त्याग समर्पणभाव
की प्रतिमूर्ति होती है नारी वं नीव की ईट, बड़ी समानता होती है दोनों  में।

मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावन मंच को मेरा सादर एवं सप्रेम प्रणाम, आज की रचना!! लालच!! का अवलोकन करें*******                               लालिचु नीकु रही ना कबौ जगु नाहिनु नीकि रही चतुराई!!                             दीन ईमानु तिलांजुलि  दय दय  लायौ घरा मंहय दौलतु भाई!!                            धाये बेमारी अजारी  तमामु औ देइहौ ताहि बजार लुटाई!!                                 भाखत चंचल गाढ़े पसीने कै  दौलतु मांहि विकासु देखाई!! 1!!                          याहय तौ मुनि जनु संतु बतावतु  बाति यहय इतिहासौ बताई!!                                खून पसीने कै पूजा करौ बेईमानी के ढिंग  कबौ नहि जाई!!                          रूखै सूखा तै पेट भरौ मुल चाह ना रख्खौ तू रबडीं मलाई!!                           भाखत चंचल शीतल पानी  है बेहतरू  जौनु फ्रीजु तै लाई!! 2!!                           मेहनतु जौनु मिलै तोरी भागि रखु संतोषु भजौ रघुराई!!                                चूपरी  देखि पराई जना नहि धारौ  मना मंहय लालिचु भाई!!                              लेखी विधाता वहय मिलिहंय मुल देखि अंटारी  मना बहराई!!                           भाखत चंचल काव कही धरि लालिचु  ना धन पावहु सांई!! 3!!                         बेहतरू देखतु हैं पशु पक्षिऊ  जिन्हैं नहि लालिचु कै अधिकाई!!                        ऊंचौ टंगौ अंगूर निहारि  लोखरी कच्चौ कै भाव हू लाई!!                                  छांडि़ हटी तहंवा  तै वहौ  अरू घूमत घामत मन बहराई!!                                  भाखत चंचल रे मनुआ धिक्कार तुंहय मन लोभु ना जाई!! 4!!                            आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल!! ओमनगर सुलतानपुर उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल फोन**""8853521398, 9125519009!!

अरुणा अग्रवाल

नमन मंच,माता शारदे,गुणीजन
शीर्षक"तुम मेरी मौन हो"
28।05।2021।

 तुम मेरी मौन हो,ओर क्या हो,
लाशों से तब्दील हो रही जिन्दगी,
कुछ इस कदर की ताण्ड़व हो,
चाहे वैशिक महामारी या तुफ़ान!!


तुम मेरी मौन हो,अफ़सोस हो,
बहुत कम उम्र में जाना,दुखद,
न कोई रही उम्मीद की छोर,
तुफ़ान ने कर दी साफ,मौन हो!!


तुम मेरी अधुरी कहानी हो,
कुछ अरमान था मेरा,शेष,
पर कालचक्र के ग्रासनली में,
दावानल सा हू-हू जलके,राख हो!!


 तुम मेरी तबसूम-मौन क्यूँ हो,
क्या दया न आई मुझ पर,बोलो,
कुछ सपना का यूँ टूटना,है दुखद,
पर अब कुहूनी से बह गया नीर हो!!


 तुम मेरी और कुछ नहीं,मौन हो,
मरुस्थल में मरीचिका धावन,सम,
अनबुझी पहेली,सहेली ,हो,तुम,
तुम मेरी मौन हो और मौन हो!!

अरुणा अग्रवाल।
लोरमी।छःगः।🙏

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नवाँ-1
  *नवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
एक बेरि जसुमति नँदरानी।
मथन लगीं दधि लेइ मथानी।।
     सुधि करतै सभ लला कै लीला।
     दही मथैं मैया गुन सीला।।
कटि स्थूल भाग पै सोहै।
लहँगा रेसम कै मन मोहै।।
    पुत्र-नेह स्तन पय-पूरित।
     थकित बाँह खैंचत रजु थूरित।।
कर-कंगन,कानहिं कनफूला।
हीलहिं जनु ते झूलहिं झूला।।
     छलक रहीं मुहँ बूंद पसीना।
     पुष्प मालती चोटिहिं लीना ।।
रहीं मथत दधि जसुमति मैया।
पहुँचे तहँ तब किसुन कन्हैया।।
     पकरि क तुरतै दही-मथानी।
      चढ़े गोद मा जसुमति रानी।।
लगीं करावन स्तन-पाना।
मंद-मंद जसुमति मुस्काना।।
     यहि बिच उबलत दूध उफाना।
     लखि जसुमति तहँ कीन्ह पयाना।।
छाँड़ि कन्हैया बिनु पय-पानहिं।
जनु अतृप्त-छुब्ध अवमानहिं।।
    क्रोधित कृष्न भींचि निज दँतुली।
    लइ लोढ़ा फोरे दधि-बटुली।।
निज लोचन भरि नकली आँसू।
जाइ क खावहिं माखन बासू।।
     उफनत दूध उतारि क मैया।
     मथन-गृहहिं गइँ धावत पैंया।।
फूटल मटका लखि के तहवाँ।
जानि लला करतूतै उहवाँ।।
     प्रमुदित मना होइ अति हरषित।
     बिहँसी लखि लीला आकर्षित।।
उधर किसुन चढ़ि छींका ऊपर।
माखन लेइ क छींका छूकर।।
     रहे खियावत सभ बानरहीं।
     बड़ चौकन्ना भइ के ऊहहीं।।
कर गहि छड़ी जसूमति मैया।
जा पहुँची जहँ रहे कन्हैया।।
   देखि छड़ी लइ आवत माई।
   डरि के कान्हा चले पराई।।
बड़-बड़ मुनी-तपस्वी-ग्यानी।
सुद्ध-सुच्छ मन प्रभुहिं न जानी।।
     सो प्रभु पाछे धावहिं माता।
     लीला तव बड़ गजब बिधाता।।
दोहा-आगे-आगे किसुन रहँ, पाछे-पाछे मातु।
         भार नितम्भहिं सिथिल गति,थकित जसोदा गातु।।
                          डॉ0हरि नाथ मिश्र
                            9919446372

नूतन लाल साहू

दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार

कितने झटके,कितने सदमे
कितने नाटक,कितने मजमे
हवा भी हो गई जहरीली
कितना धुंआ,कितनी लाशें
आफत की बरसात
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
अब उम्मीद है शेष इक्कीस से
तू इतना नही सताएगा
इतना ही कर दें,बस
इंसान कुछ मुस्कुराएं, कुछ बतिताएं
पर लाक डाउन, न लगने पाएं
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
एक साल से जमीं हुई है कोरोना
विद्यार्थियों की शिक्षा थमीं हुई है
खाईयां सी खुद गई है
हर इंसान के दिलों में
अब उम्मीद है शेष इक्कीस से
कोरोना फिर से नही आयेगा
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
कह रहे है,प्रभु जी के भक्तों ने
मांगी हमने भरपूर दुआं
बेहतर हो कल,लेकिन नही हुआ
दो हजार बीस इक्कीस में
पूरा न हुआ,कोई भी सपना
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार
पीड़ा है,फिर भी मुस्कुराएं
मन में,नई आशा की किरणें लाएं
तन मन हो अति सुन्दर
सभी रहें खुशहाल
जन धन की ऐसी बरबादी
और कभी न हो इतनी
अब उम्मीद है शेष इक्कीस से
सोचें कुछ बुनियादें बातें
दो हजार बीस इक्कीस तुझे धिक्कार

नूतन लाल साहू

मधु शंखधर स्वतंत्र

*सुप्रभातम्*🙏🙏
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *तूफान*🌹🌹
----------------------------------
◆ कैसा ये तूफान है , शक्ति कर रहा ह्वास।
कभी ताउ ते आ रहा, और कभी है यास।
मानव जीवन त्रस्त है , आया विकट प्रकोप,
सन् इक्कीस करा रहा, सत्य प्रकृति अहसास।।

◆ तूफानों का दौर है, साहस रखना पास।
कोरोना से जीत कर , अभी हराओ यास।
संकट में जो डर गया, पाए कैसे जीत,
शक्ति निहित हो कर्म तो, सफल बने वह खास।।

◆ प्रकृति सदा संयम सहित, करती नव शुभ काज।
भूल उसी के मर्म को, दोहन किया समाज।
आज प्रकृति यह रुष्ट है, आयी बन तूफान,
प्रकृति रूप विकराल भी, चेतो मानव आज।।

◆ तूफानों में ढह गए , कितनों के अरमान।
ईश आपदा रूप यह, होता कहाँ निदान।
सीख धरो मानव सभी, प्रकृति बचाओ आप,
प्रकृति सुरक्षा से सदा, मधु जीवन गतिमान।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*28.05.2021*

एस के कपूर श्री हंस

।।आस में विश्वास का नाम ही*
*जीवन है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
आस में आस   का नाम
ही  जीवन है।
विश्वास      का      नाम
ही  जीवन है।।
धैर्य विवेक     हैं     धुरी 
सफलता की।
जीने की प्यास का नाम
ही जीवन है।।
2
खुद को समझना  खास
ही   जीवन है।
बनना भाग्य   का   दास
नहीं जीवन   है।।
असफलता में  समाहित
है सफलता शब्द।
अपनी ऊर्जा   का  नाश
नहीं    जीवन है।।
3
बिन ध्येय के जिंदा लाश
नहीं जीवन  है।
दूसरे के पैरों पर बैसाख
नहीं जीवन है।।
जीवन तो नाम है सपनों 
की उड़ान का।
केवल    निष्कर्म     रास
नहीं जीवन है।।
4
श्रम का करना    उपहास
नहीं   जीवन है।
बस हार    जीत अहसास
नहीं जीवन हैं।।
उठो जागो बढ़ो यही    तो
जीवन का नाम दूजा।
यदि मन से हुए निराश तो
नहीं   जीवन   है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

*।।काफ़िया।। आनी ।।*
*।।रदीफ़।।लिखनी होगी।।*
1
कुछ तो अब नई सी कहानी लिखनी होगी।
नए सिरे से बात  पुरानी  लिखनी होगी।।
2
रास्ते जो पीछे  छूट गए   यूँ   ही  कहीं।
ढूंढ कर बात   अनजानी लिखनी होगी।।
3
यूँ ही जान माल का न नुकसान होता रहे।
सोच समझ के समझदानी लिखनी होगी।।
4
असर करे जो   अंदर सीने में उतर कर।
अब वो सब बात जुबानी लिखनी होगी।।
5
काबू के बाहर बहुत कुछ निकला जा रहा।
अब करने सीधाऔघड़दानी लिखनी होगी।।
6
जो जोश कुछ कमजोर हुआ है इस बवा में।
अब खून में वही जोश रवानी लिखनी होगी।।
7
*हंस* लौट कर आये वापिस वही रंग और ढंग।
लहू में फिर वही जनून- ए- रवानी लिखनी होगी।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464

*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
ह्र्दयतल से      अभिवादन
अभिसिंचित हैआपको।
दिल से   प्रभात         वंदन 
सिंचित   है   आपको।।
हर दुआ हर सुभावना     है
सुरक्षित आपके लिए।
*सप्रेम सस्नेह सादर प्रणाम* 
*मंचित है आपको।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍
*दिनाँक. 28.    05.   2021*
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

दिल की चादर ज़रा बड़ी कर ली
घर की बगिया हरीभरी कर ली

ग़म के सारे पहाड़ ढहने लगे
दिल्लगी से जो दोस्ती कर ली

दिल में इक चाँद को बिठा कर के
हमने हर रात चाँदनी कर ली 

जिसको दिल में बसा के रख्खा है
रोज़ उसकी ही बंदगी कर ली

जैसी महबूब की रही ख़्वाहिश
हमने वैसी ही ज़िन्दगी कर ली 

जब भी शाख-ए-गुलाब मुरझाई
सींच कर  अश्क से हरी  कर ली

तेरे वादे का था यक़ी  *साग़र*
पार इससे ही इक सदी  कर ली

🖋️विनय साग़र जायसवाल
25/2/2021
2122-1212-22

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*सजल*
मात्रा-भार--16
समांत--आल
पदांत--भरा है
जीवन यह जंजाल भरा है,
मन में सभी मलाल भरा है।।

नहीं प्रसन्नता दिखती इसमें,
शत्रु विषाद विशाल भरा है।।

जहाँ देखिए लूट मची है,
केवल लूट-धमाल भरा है।।

जीवित तन-मन भी लेकर यह,
लगता नर-कंकाल भरा है।।

प्रेम-भाव-संबंध-क्षेत्र भी,
पूरा लगे दलाल भरा है।।

दया हीन पाषाण हृदय का,
इसमें अरि विकराल भरा है।।

कपट-दंभ,छल-छद्मों वाला,
इसमें छलिया जाल भरा है।।
         ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

मासूम ---

बच्चे मन के सच्चे 
भगवन को लगते प्यारे
माँ बाप की आंखों के तारे।।
सपनों के रंग हज़ार
माँ बाप के राज दुलारे।।
बच्चे माँ बाप ही नहीँ  राष्ट्र
समाज के भविष्य वात्सल्य
वर्तमान हमारे।।
बच्चों में धीरज धर्म मर्म
मर्यादाओ की संस्कृति सांस्कार
निखारे।।
आदर्श स्वयं माँ बाप  समाज
आचरण  उदाहरण बच्चे
अनुसरण मार्ग पर चलते बढ़ते
जाए।।
कच्चे मिट्टी सा बच्चे माँ
बाप समाज प्रजापति ब्रह्मा
जैसा चाहे वैसा ही बच्चे बन जाए।।
चूक कहीं भी हो जाये 
पछताना ही भाग्य हिस्से में
आएं।।                                     

बच्चे के पल प्रहर प्रगति
गति चाल पर मन दृष्टि भाव
लगाए।।
सड़क गली मोहल्लों पर 
नन्ही सी जान किसी जोखिम
में ना पड़ जाए।।
घर से बाहर बच्चे हो
जब भी माँ बाप संरक्षक की नज़रों
से ओझल ना पाए।।
बच्चों को मालूम नही 
जोखिम कहां प्यार कहाँ
बच्चे तो मासूम अनजान
उनको सारी दुनियां  भाए।।
भले बुरे की पहचाना नही ,
ज्ञान नही प्राणि प्राण में बच्चे देखते
अपनी मासूमियत का भगवान माँ बाप समाज की जिम्मेदारी बच्चे अंजान
मुसीबत में ना फंस जाए।।

कोमल भाव नाज़ुक नन्हीं
नादा जिद्द बच्चे राष्ट्र की फुलवारी के
फूल हुई जरा भी चूक जोखिम
काल समय के भौंरे ना जाने क्या  हरकत कर जाए बचपन छीन जाए
बागवान सर धुन पछताए।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

............कुदरत का कहर...........

हर तरफ दिखते हैं कुदरत का कहर।
हर बस्ती,गाँव,जिला,तालूका,शहर।।

जिन पंचतत्व  का बना शरीर हमारा;
कभी सहना पड़ता है उनका कहर।।

प्रकृति से मनुष्य का बढता छेड़छाड़;
इसी बदौलत होते प्रकृति का कहर।।

ताउते,यास,आमफान,तितली आदि;
दिखाते रहते आग -पानी का लहर।।

राजनीति का हर ओर होता घुसपैठ;
घोलता रहता है वैमनस्य का जहर।।

आतताइयोंऔर स्वार्थियों के कारण;
लोगों को पीड़ाते  प्रगति का  ठहर।।

अंत में मिलता प्रकृति से ही"आनंद"
चैन से कटताशेष जीवन का पहर।।

-----देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

सुधीर श्रीवास्तव

मन की बात
------------------
बेटी की चाहत
************
         आज के दौर में भी जब बेटी बेटा एक समान का ढोल पीटा जा रहा है ,तब 2002 में मेरी बड़ी बेटी का जन्म हुआ।बेटी के जन्म से मेरी बेटी की इच्छा पूरी। हो गई।क्योंकि मुझे बेटियों से कुछ अधिक ही लगाव शुरू से था।
मेरी भतीजी बहुत छोटेपन से ही कई बार मेरे साथ हफ्तों हफ्तों तक मेरे पास रह जाती थी।ये मेरे पढ़ाई के समय की बात है,जब मैं कमरा लेकर किराए पर रहता था।
       मेरी बड़ी बेटी के जन्म के पूर्व मेरी पत्नी भी बेटे की ही इच्छा रखती थी।जैसा की हर नारी की कामना होती है।शायद सास बनने की ये सदइच्छा कुछ अधिक ही प्रबल हो जाती है।खैर....।
लेकिन मेरी पत्नी की चिंता महिलाओं/लड़कियों के साथ हो रही घटनाओं और दहेज की भेंट चढ़ रही बेटियों के खौफ के कारण था।उनका आज भी मानना है कि बेटियों की परवरिश से अधिक चिंता उनकी सुरक्षा को लेकर होती है।बेटी के माता पिता के अंदर हर समय एक अजीब सा असुरक्षा भाव होता है। बात सही भी है,क्योंकि अब हालात जिस तरह हो रहे हैं,उसमें यह डर स्वाभाविक है। विशेष रूप से माँओं के लिए।
फिर एक विडम्बना ये भी है कि बेटा नहीं होगा तो अंतिम संस्कार कौन करेगा?मोक्ष कैसे मिलेगा? मुझे अभी तक समझ नहीं आया कि बेटे की चाह हम जीवन काल के लिए कम वंश चलाने,दाह संस्कार कराने और मोक्ष पाने के लिए अधिक करते हैं।आखिर बेटियों के दाह संस्कार करने से कौन सा पहाड़ टूट जाता है या जायेगा।आखिर हम ही उनकी भी परवरिश करते हैं,पढ़ाते लिखाते हैं,शादी ब्याह करते है,फिर भी उनको इस दायित्व के योग्य भी नहीं मानते हैं। मैंनें अपनी इच्छा अभी से अपनी बेटियों को बता दिया है कि मेरा दाह संस्कार वे ही करें।
      मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आज बेटियां ही नहीं होंगी तो कल बेटा कहाँ से होगा। सृष्टि का नियम कैसे संपूर्ण होगा।
   फिलहाल मेरे पास दो बेटियां हैं और वे ही मेरे लिए सब कुछ हैं,मुझे कभी भी यह विचार नहीं आया कि काश एक बेटा भी होता।मैं अपनी बेटियों के हर सपने को पूरा होने के हर कदम पर मजबूत दीवार की तरह उनके साथ हूँ, जितना अधिकतम संभव हो सकता है,मैं उनके हर सपने के साथ खड़ा हूँ। मुझे अपनी बेटियों पर,उनकी सफलताओं पर गर्व है।
 सच कहूँ तो बेटियों का बाप होकर भी मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूँ।क्योंकि मेरी बेटियां मेरी मेरा मान, सम्मान, स्वाभिमान और अभिमान हैं।
■ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा(उ.प्र.)

विजय मेहंदी

" कवि और कविता "

             कवि कविता कवित्र का,
             महके       ऐसा      इत्र,
             औरन  को  शीतल करे,
             गर्व   करें     सब   मित्र।

             कविता  उर का भाव है,
             बिनु स्वर  करती  जिक्र।
             रह कर ये  अनबोल भी, 
             करती  सब  की   फिक्र।।

             शक्ति कल्पना की आंके,
             कवि का  रचित  कवित्र। 
             कविता कवि की भी करे,
             चित्रण     सभी    चरित्र।। 

             सूरदास तुलसी कवीर की, 
             कृति  हैं   रस   की  खान।
             मर के  भी  वे   अमर हुए,
             करते    सब     रस   पान।।

===========__✍️==========
रचयिता- विजय मेहंदी (कविहृदय शिक्षक)
कम्पोजिट इंग्लिश मीडियम स्कूल शुदनीपुर,मड़ियाहूँ,जौनपुर (यूपी)
📱91 98 85 22 98

चन्दन सिंह चाँद

सड़क 

मैं सड़क हूँ , मैं सड़क हूँ 
सबको अपनी मंजिल तक हूँ मैं पहुँचाती
हर किसी का भार मैं सहर्ष उठाती

चलती हैं मुझपर रोज़ अनगिनत गाड़ियाँ
इन गाड़ियों के झरोखों से झाँकते हैं बच्चे प्यारे 
कूदते हैं और मचलते देखकर चलते नज़ारे

कोई यात्री ले रहा नींद में डूबा खर्राटा
और कोई चल पड़ा है आज करने सैर - सपाटा

पहले चलते थे मुझपर पथिक पैदल और चलती थी साइकिलें 
अब इस मोटरकार की बाढ़ से बढ़ी हैं मेरी मुश्किलें

खाँसती हूँ और सँभलती इन काले धुओं के गुबार से 
दिल मेरा छलनी है होता इन मनुजों के व्यवहार से

पता नहीं आज किसे लगेगा धक्का ? कौन होगा घायल ? किसकी होगी दुर्घटना ? 
सोचकर विह्वल मैं रहती और करती हूँ सर्वमंगल प्रार्थना 

नहीं चाहिए मुझे रक्तरंजित आँचल , नहीं देख सकती तड़पते हुए प्राण 
कृपा करो , कृपा करो , कृपा करो हे दयानिधान !

लोग मुझको स्वच्छ बनाएँ ,
मेरे दोनों छोर पर वृक्ष लगाएँ
चलते समय रहें सतर्क और सावधान 
घायल व्यक्ति पर दें सब समुचित ध्यान 
स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।
स्वीकार करो यह विनती हे जग के करुणानिधान ।।

- ©चन्दन सिंह 'चाँद'
   जोधपुर (राजस्थान)

डॉ अर्चना प्रकाश

-; हर तरफ धुआं धुआं -;
      हर तरफ धुँआ धुँआ ,
       हर शख्स सहमा हुआ ।
       कौन किससे क्या कहे, 
        सांत्वना के पंख टूटे ।
         एक लहर से त्राहि माम् हुआ 
         हर तरफ धुँआ ---------
          किसी की हो रही कमाई,
          किसी कि श्वासें थम गई ।
          रहस्य क्या ये चल रहा ,
         कैसी साजिश कहर बरपा हुआ।
         हर तरफ धुँआ---------------
         आंकड़ो के इस खेल में ,
         सीढ़ी सर्प कौन कर रहा ?
         होते होते स्वस्थ कैसे ,
           दुनियां से वो विदा हुआ।
        हर तरफ धुँआ धुँआ------------
            जैविक युद्ध माहिरों ने,
            क्रूर दानवों सा छल किया।
           जयचंदी करिश्मो से ,
         देश अपना क्या से क्या हुआ ।
       हर तरफ धुँआ धुँआ ,
        हर शख्स सहमा हुआ ।
               डॉ अर्चना प्रकाश 
               लखनऊ ।

जया मोहन

कुदरत का कहर
कुदरत ने ये कैसा कहर बरपाया है
हर इंसान मौत के ख़ौफ़ से थर्राया है
ज़िन्दगी के पहिये थम से गये
सुख गुम हुआ दुख के टीम से घिर गए
प्रकृति को नाराज़ करने का फल पाया है
कुदरत।।।।।।।
कुदरत ने तो दी थी शस्य शयमला धरा
नदी,वन,पर्वतों की मनोरम छटा
प्राणवायु देने वाले वृक्षो को हमने ही कटवाया है
बिना ऑक्सीजन मर रहे उसी का फल पाया है
कुदरत।।।।।।।
कुदरत ने दिए थे अनुपम उपहार
तू करने लगा उनका व्यापार
तू खुद को नियंता समझ बैठा
इसीलिए ईश्वर तुझसे रूठा
वो एक साथ कई मुसीबतें ले आया है 
कुदरत।।।।।।।
अब घर मे बंद हो प्रभु को याद करता है
अपनो से मिलने को तरसता है  सुखद भोर होने की राह ताकता है
सब खोकर अब खुद को याद करता है
क्यों बनाने वाले ने अपनी कृतियों को मिटाया है
तू भूल न अपने निर्माता को यही स्मरण कराने को
कुदरत ने कहर बरपाया है

स्वारचित
जया मोहन
प्रयागराज

रामकेश एम यादव

मधुशाला!

है   मंजिल   तेरी  वो   नहीं,
जहाँ   तू   जाता  मतवाला।
फाँके  करते  घर   में   बच्चे,
और  तू   जाता   मधुशाला।

एक तरफ  मंहगाई  डायन,
दूसरी    तरफ   मधुशाला।
दो   पाटों  के  बीच   फँसी,
देख    तुम्हीं     ऊपरवाला।

यौवन-रस से भरा  हुआ है,
ये   मेरे  तन   का   प्याला।
अंतर-मन की प्यास बुझा ले,
छोड़ वहाँ की  साकीबाला।

कितना काम है और जरुरी,
नहीं   समझता   मतवाला।
दीवाल फटी है, छत है चूती,
तू   जाता    है    मधुशाला।

पीने का मतलब तू नहीं समझा,
अरे  !   सजन    भोलाभाला।
आओ  घर  में  राम-नाम  की,
मिलके    खोले     मधुशाला।

पीता    है  कलियों   से  भौंरा,
भर-  भर  के  मन का प्याला।
पीते   हैं   वो    पंख-    पखेरू,
कभी   न    जाते    मधुशाला।

पीने   और    पिलाने   में   तू,
जीवन   नरक    बना   डाला।
दुनिया मंगल-चाँद पर पहुँची,
तुझको  दिखता  बस प्याला।

खेत  बेच  या   नथिया  बेच,
या     बेच    तू     खंडाला।
तृप्त आज तक नहीं हुआ है,
कोई       भी      पीनेवाला।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

सुनीता असीम

इक बार कृष्ण मेरी     गुज़ारिश तो देखिए।
बस आपको रिझाने की कोशिश तो देखिए।
****
हो दर्द की लहर या सुखों की फुहार हो।
पर नाम की तेरे ही निबाहिश तो देखिए।
****
मैं डूबती  दुखों  में   हमेशा   रहूं  कहो।
इक बार मुझ गरीब की गर्दिश तो देखिए।
****
कितना बुझाओ अग्नि विरह बुझ नहीं सकी।
बुझती हुई सी राख में आतिश तो देखिए।
****
दिल की धरा थी सूखी था वीरान सा जहाँ।
उसपर हुई है नाम की बारिश तो देखिए।
****
सुनीता असीम
२७/५/२०२१

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...