रामकेश एम यादव

दौलत के भूखे!

अवसर तलाशती ये कैसी दुनिया,
सांसों को चुराये,ये कैसी दुनिया।
दौलत  के   भूखे  दरिंदे  यहाँ  पे,
ऐसे मक्कारों से सजी है दुनिया।

सोती फांकों की चिता, कुछ दुनिया,
दो पाटों के बीच ये पिस रही दुनिया।
खुलेआम बिकती औरतों की अस्मत,
सूली रोज चढ़ती-उतरती वो दुनिया।

ऐसी दुनिया में जीकर क्या करेंगे,
ऐसी दुनिया में रहकर क्या करेंगे?
पल -पल जो बेचे अपने ईमान को,
बदसूरत दुनिया लेके क्या करेंगे?

एक खिलौने के जैसे बना आदमी,
ऊपर से केवल है ये सजा आदमी।
जिन्दा नजर जैसे ये आता नहीं,
बिना सांस के ये चल रहा आदमी।

इंसानियत का मतलब कुछ भी नहीं,
पैसे के अलावा और कुछ भी नहीं।
मुट्ठीभर लोगों के हाँथों में क़ैद,
हम सबका मुकद्दर और कुछ नहीं।

दो गज जमीं, दो गज कफन तक नहीं,
बे-कंधे की लाशें दफ़न तक नहीं।
तैरनी लगी कितनी बदनसीब लाशें,
उन लाशों के मुख तक अगन तक नहीं।

हरिश्चंद्र राजा न ईमान से डिगे,
सिंहासन छोड़ राम वन को गए।
हो क्या गया आजकल के इंशा को,
जिसके लिए भगत सिंह फांसी चढ़े।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी

*राम बाण🏹 सांस रोती रही*
     आज के इस दौर में मुश्किल नहीं हैं काम।
         आदमी बिकने लगे बिकने लगे हैं नाम।

              बोल गूंगो के यहाँ अंधे दिखायें राह।
             दौड़ लँगड़ों के यहाँ,लूले बढ़ायें चाह।
     दोष नजरों का उन्हें दिन को दिखायें शाम।

          द्वंद है इस बात का खुद‌के सतायें लोग।
         कुछ हवाओं साथ थे जिसने बढ़ाये रोग।
          आदमी को तौलते हैं कौड़ियों के दाम।।

            देखता आकाश धरती में हुआ हैं शोर।
              दूर क्यों अपने हुए बेचैन क्यों हैं भोर।
             सांस क्यों रोती रहीं कैसे हवा के नाम।।

                राजसी अंदाज में चलने लगे हैं बोल।
            राज की क्या बात है जो पीटते हैं ढोल।
                 रंग भी बदले हुए जपने लगे हैं राम।।

                  पेड़ ये खामोश हैं पत्ते यहाँ हैं मौन।
            ‌ भूलती सड़कें यहाँ जाने कहाँ हैं कौन।
         बात अनशन की करें सड़कें लगायें जाम।।

          साख की इस धुंध में बदली हुई हैं छाँव।
            याद फिर आने लगे अमराइयों के गाँव।
         धूप का सौदा हुआ बिकने लगी हैं शाम।।

       दिन न बदला है न बदली है यहाँ पर रात।
          पर‌ बदल जाते यहाँ इंसानियत जज्बात।
            मौत के इस खेल में कैसे हुये बदनाम।।
‌ *डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी*

कुमकुम सिंह

शीर्षक-   मुस्कुराहट      
    
   दे सकते हो तो दे दो ,
           किसी को मुस्कुराहट उधार।
 कभी ना उससे वापस मांगना ,
             फिर से मेरे यार ।
मुस्कुराने की वजह बन जाओ ,
            बस यही फलसफा याद रखो
 मेरे दिलदार ।
अगर किसी को कुछ देना है तो ,
        थोड़ी सी खुशियां दे दो ।
गम तो मिल जाते हैं,
        हर मोड़ पे बिन मांगे हजार।
 इसलिए हो सके तो दे दो ,
        खुशियां एक दूसरे को उधार।
 जिस से बनी रहे ,
          खुशियां बेशुमार।

           कुमकुम सिंह

जयश्री श्रीवास्तव

प्रतियोगिता के लिए
अलमारी मे रखे पुराने खत
अलमारी में रखे पुराने खतों ने सोई स्म्रतियों को जगा दिया
बीते हुए सुनहरे  पलो को दुहरा दिया
भूल कर सब काम पढ़ने बैठ गयी
अतीत की गलियों में गुम हो
गयी
कॉलेज में उनसे मुलाकात हुई थी
दिल मे प्यार की शमा जली थी
साथ जीने मरने की कसमें खाई थी
अपने अपने मन की बात ये खतों द्वारा पहुँचायी थी
बहुत कुछ कहना चाहते थे
सामने होने पर चाह कर भी होठ न हिलते थे
डाकिए का रोज करते थे  इंतज़ार
दूर से उसे आता देख लगता मानो आ गया मेरा प्यार
खत ले दौड़ पड़ते थे
छत के किसी कोने में बैठ पढ़ते थे
फिर सहेज अलमारी में धरते थे
गुलाब की पंखुड़ियां उनमें रखते थे
खुश्बू से प्रिय के पास होने का अहसास करते थे
भाग्यशाली थे पाया उसे जिसे करते थे प्यार
प्रभु ने मुझे दिया मनचाहा उपहार
वो फ़ौज में रह देश सेवा करते थे
हमारी मनोभाव ये खत व्यक्त करते थे
तब नही फोन हुआ करता था
सुख दुख की खबर ख़त ही दिया करते थे
आखिरी खत हाथ रह गया था
यही मुझे ज़िन्दगी भर का दर्द दे गया था
आऊँगा अपनी परी को देखने
पर आने से पहले कर्तव्य का खत उन्हें मिला
छुट्टी रद्द हुई सीमा पर जाने का आदेश मिला
मैं राह तकती रही बेटी को लिए
बिन बेटी को देखे वो शहीद हुए
बार बार इन्हें पढ़ती हूँ चूमती हूँ
अपनी अनमोल धरोहर को सहेज अलमारी में बंद रखती हूँ
जब जब अलमारी खोलती हूँ
खतों से यादो की महक आती है 
जो हँसाती, गुदगुदाती रुलाती है
यही तो धन दौलत से बड़ी मेरे जीवन की थाती है

स्वरचित
जयश्री श्रीवास्तव
जया मोहन
प्रयागराज

एस के कपूर श्री हंस

*।।पत्रकारिता दिवस*
*30 मई पर।।*
*।।समाज,राष्ट्र का सजग*
*सतर्क प्रहरी,पत्रकार।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
कभी मीठा तो कभी
चीत्कार लिखता है।
कभी विपक्ष  कभी
सरकार लिखता है।।
कलम का  सिपाही
रुकता नहीं   कभी।
हर बात   वह    तो
बार बार लिखता है।।
2
कभी आरपार कभी
कारोबार लिखता है।
कभी विसंगति और 
प्रचार लिखता    है।।
समाज राष्ट्र  के  हर
बिंदु को छूती कलम।
हर विषय की    वह
भरमार   लिखता है।।
3
कभी ओज तो कभी
श्रृंगार     लिखता है।
कभी खिजा   कभी
बहार     लिखता है।।
खुशी गम के     हर
पहलू को  छूता  वो।
कभी जीत तो कभी
हार    लिखता     है।।
4
कभी व्यंग तो कभी
सरोकार लिखता है।
कभी शांति    कभी
अंगार लिखता   है।।
छू जाती है  कलम
दिल को       कभी।
जब भावनाओं का
संसार  लिखता  है।।
5
सब पढ़ते हैं कि वो
जोरदार लिखता है।
कभी दबके या बन
सरदार लिखता  है।।
हर हालात  को  वो
लिखता समझ कर।
सब कोई और नहीं
पत्रकार लिखता है।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।         9897071046
                    8218685464

राजवीर सिंह तरंग

नमन मित्रो, 
पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, 
पत्रकारिता दिवस के अवसर पर एक मुक्तक 

बनाकर आईना सच को कि हम अखबार लिखते हैं, 
सफर में मुश्किलें लाखो मगर मझधार लिखते हैं। 
नहीं करते कभी समझौता हम अपने उसूलों से, 
अगर हो झूठ तो हम झूठ ही हर बार लिखते हैं। 

राजवीर सिंह 'तरंग'
बदायूँ।

निशा अतुल्य

आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस की शुभकामनाएं व बधाई सभी पत्रकार बंधुओ को समर्पित 
30.5.2021

मैं एक विचार हूँ 
चलता फिरता व्यवहार हूँ 
समाज का हूँ आइना 
मैं पत्रकार हूँ ।
क़लम मेरी धारदार
लिखती बहुत कमाल
सत्य का दर्पण बने 
बस मेरी ये पुकार ।
क़लम कभी न मौन हो
चाहे छाया अंधकार हो
गुणगान करे किसी का ये
ऐसा न व्यापार हो ।
कुछ राग अपना गा रहे
पत्रकारिता लज्जा रहे
झूठ को बनाके सच
समाज को भरमा रहे ।
असत्य की खोज कर 
सत्य की तेज धार हो 
देश न कभी बंटे 
न आत्मा पे वार हो।
निडर गुणवान पत्रकार
धर्म अपना निभा 
पत्रकारिता है बड़ा स्तम्भ 
देश को सदा बता ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"


हाइकु 
5,7,5 वर्णिक विधा
30.5.3021

तू चला था क्या
साथ हमसफ़र 
या ख़्वाब टूटा ।

आसान राह
नहीं है कोई यहाँ
मुश्किल है तू ।

ओस की बूंद
कौन था रोया यहाँ 
अकेली रात ।

उदास रात
चाँद तारें है कहाँ
पूछे पहर ।

अंधेरी भोर
है बादलों का शोर
पँछी हैं कहाँ ।

कोटर सूना
घोंसला हुआ जूना
उड़ा परिंदा।

निःशब्द शोर
ये कैसी हुई भोर
नहीं है कोई ।

बीते ये रात
हो उजली सहर
प्रतीक्षा रत।

छोड़ दे अब
निराशा का आँचल
बीतेगी निशा ।

स्वरचित 
निशा"अतुल्य"

सुधीर श्रीवास्तव

वो बरसात की रात
***************
आज भी सिहर जाता हूँ
याद करके वो मनहूस बरसात,
जो मेरी परीक्षा लेते लेते
मेरी अबोध बच्ची को निगल गई।
शायद ईश्वर को यही मंजूर था
तभी तो बेतरतीब हवाऐं
टूटे फूटे छप्पर तक को उड़ा ले गई,
सिर छुपाने का इकलौता
आश्रय भी छीन ले गई।
घुप काली रात,
डरावनें बादलों की गड़गडाहट
रह रहकर कलेजे को चीरती 
चमकती बिजली
ऊपर से मूसलाधार वारिश 
उसमें भीगते हम पति पत्नी
और हमारी मासूम बच्ची,
हम तो कलेजा मजबूत किए
सहने को विवश थे मगर
हमारी बच्ची माँ के सीने से 
चिमटी की चिमटी रह गई
हमें रोता बिलखता छोड़ गई।
● सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा, उ.प्र.
     8115285921
©मौलिक, स्वरचित

लखीमपुर खीरी : स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी जी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष्य में आयोजित वर्चुअल नीरज स्मृति काव्योत्सव 2021 में देश प्रदेश के कलमकारों ने किया सिरकत मिला 106 कलमकारों को नीरज स्मृति साहित्य सम्मान पत्र।

लखीमपुर खीरी : स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी जी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष्य में आयोजित वर्चुअल नीरज स्मृति काव्योत्सव 2021 में देश प्रदेश के कलमकारों ने किया सिरकत मिला 106 कलमकारों को नीरज स्मृति साहित्य सम्मान पत्र।

लखीमपुर खीरी । उत्तर प्रदेश खमारिया पंडित जनपद खीरी लखिमपुर हिंदी साहित्य एव अवधि साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर नीरज अवस्थी जी का दिनांक 11/05/2021 को कोरोना के कारण स्वर्गवास होगया । नीरज अवस्थी जी की आकस्मिक मृत्यु की खबर आग की तरह फैल गयी जिसके कारण उनके पैतृक गांव खमारिया पंडित एव खीरी लखीमपुर, सीतापुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बरेली , गोरखपुर, महराजगंज एवं आस-पास के जनपद और भारत के कई प्रदेशों के कवि लेखक साहित्य प्रेमियों के मध्य शोक की लहर दौड़ गयी स्वर्गीय नीरज अवस्थी जी द्वारा काव्य रंगोली साहित्यिक पटल श्याम सौभाग्य फाउंडेशन की स्थापना की गई थी जिसके माध्यम से उनको साहित्यिक सामाजिक गतिविधियों को संचालित करते थे । 

        फोटो: स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी जी

अल्प आयु एवं अल्पकाल में ही स्वर्गीय नीरज जी ने जनपद लखीमपुर खीरी और खमारिया पंडित का नाम देश विदेश में  रौशन किया। दिनांक 23/05/2021 को स्वर्गीय नीरज अवस्थी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष्य में नीरज जी की अजेय कीर्ति काव्य रंगोली के माध्यम अंतरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे देश -विदेश के कुल 106 साहित्यकारों कवियों ने हिस्सा लिया दिनांक 30/5/2021 को स्वर्गीय नीरज जी की श्रद्धांजलि के अवसर पर आयोजित काव्य प्रतियोगिता का सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें नीरज स्मृति साहित्य सम्मान- 2021 सम्मान पत्र वितरित किया गया। स्वर्गीय नीरज जी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष में आयोजित काव्य प्रतियोगिता दिनांक 23/5/2021 एव  दिनाक 30/05/2021 को श्रद्धांजलि सभा के प्रतिभागियों के सम्मान सम्मेलन के सार्थक सफल संचालन दायित्व की प्राभावी भूमिका दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल जी मधु शंखधर स्वतंत्र जी, डॉ इंदु झुनझुन वाला जी ने निभाया जिसमें सकारात्मक सशक्त सहयोग की भूमिका का निर्वहन शेषाद्री त्रिवेदी, नन्दलाल मणि त्रिपाठी पिताम्बर, अनिल गर्ग जी, मुन्नालाल मिश्र जी, शिवम् त्रिपाठी शिवम् जी ने प्रदान किया। 

इन अवसरों पर क्षेत्र के गणमान्य नागरिक मीडिया जगत के प्रमुख हस्तियों ने आभासी माध्यम से अपनी भावनाएं संवेदनाओं को व्यक्त किया। अन्त में आभार ज्ञापन रचना अवस्थी जी की धर्म पत्नी रचना अवस्थी जी ने इस भरोसे विश्वाश के साथ करते हुये अनुरोध किया कि उनके पति की विरासत उनके संकल्प निरंतर उद्देश्य पथ की तरफ अग्रसर होते रहेंगे।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

नवाँ-2
   *नवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-2
गाँठ चोटिका जब भे भंजित।
गिरनहिं लगे पुष्प जे गुंथित।।
     सुमुखी मातु जसोदा अंतहिं।
     निज कर गहीं लला भगवंतहिं।।
लगीं डराने अरु धमकाने।
डरपहिं किसुन न जाइ बखाने।।
     धनि-धनि भागि तोर हे माई।
     लखि तव भृकुटी डरैं कन्हाई।।
रोवहिं किसुन नियन अपराधी।
ब्रत टूटे जस रोवहिं साधी।।
      मलत अश्रु कज्जल भे आनन।
      अश्रु बहहि बरसै जस सावन।।
कान्हा कहहिं न डाँटउ माई।
अब नहिं मटुकी फोरब जाई।।
     सुनि अस बचनहिं किसुन बिधाता।
      सिंधु-नेह उमड़ा उर माता ।।
पुनि बिचार जसुमति-मन आवा।
बान्हि रखहुँ जे भाग न पावा।।
     रज्जु लेइ तुरतै तहँ बान्हा।
     जायँ न ताकि पराई कान्हा।।
जानहिं नहिं जनु प्रभु कै महिमा।
बाहर-भीतर नहिं कछु वहि मा।।
    प्रभु कै अंत न औरउ आदी।
     रहँ प्रभु पहिले रह जग बादी।।
बाहर-भीतर जगत क रूपा।
रहहिं प्रभू बस सतत अनूपा।।
     जे कछु इहवाँ परै लखाई।
     प्रभुहिं सबहिं मा जानउ भाई।।
इंद्री परे, अब्यक्त स्वरूपा।
अजित-अमिट अरु अलख-अनूपा।।
दोहा-किसुन अनंत बिराट अहँ,बिष्नु- रूप- अवतार।
        जे नहिं जानै भेद ई,मूरख कह संसार ।।
                    डॉ0हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

एस के कपूर श्री हंस

*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
प्रणाम   स्नेह अभिव्यक्ति
आदर सुविचार हो।
प्रणाम    अभिवादन   का 
इक़   प्रसार      हो।।
प्रणाम हमारी      संस्कार
संस्कृति का है अंग।
*आज प्रातःकाल  प्रेषित*
*प्रणाम स्वीकार हो।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍




पत्रकारिता दिवस 30 मई के अवसर पर।।*
*।।पत्रकार से ही समाचार।।हाइकु।।*
1
पत्रकारिता 
आज की जरूरत
शुद्ध धारिता
2
पत्रकार है
कलम का सिपाही
वफादार है
3
है पत्रकार
शब्दों का जादूगर
विश्व आधार
4
ये समाचार
पत्रकार की देन
हर प्रकार
5
पत्रकारिता
कभी खुशी या गम
रोज़ भरता
6
पत्रकारिता
लिखे भविष्य का भी
दूरदर्शिता
7
ये पत्रकार 
लिखे यह सही ही
हो सरकार
8
ये पत्रकार
आज स्पष्टवादिता
है दरकार
9
ये पत्रकार
गलत सही चुन
बुरा नकार
10
पत्रकारिता
सकारात्मकता हो
तो सार्थकता
11
पत्रकारिता
यह है चौथा स्तंभ
लोकतंत्र का
12
ये पत्रकार
मीडिया का प्रभार
सुने पुकार
13
ये पत्रकार
ये संवाद संचार
आज आधार
14
ये पत्रकार
कलम तलवार
है ललकार
15
ये पत्रकार
कलम तलवार
है ललकार
16
ये पत्रकार
करे ख़बरदार
जवाबदार
17
पत्रकारिता
निष्पक्षवादिता
यही यथार्ता
*रचयिता।।एस के कपूर* " *श्री हंस* *"।।* *बरेली।।*
मोब  9897071046
        8218685464



*।।काफ़िया।। आरी।।*
*।।रदीफ़।। बहुत जरूरी है।।*
1
उसूल से करना वफादारी  बहुत जरूरी है।
हर बात में  सिलसिलेवारी बहुत जरूरी है।।
2
जिन्दगी तो  ऊपरवाले  की दी  नियामत है।
इसकी तो सही से  रखवारी बहुत जरूरी है।।
3
यह वक़्त बवा का   कोई जान जाया न जाये।
इस वक़्त सेहत की समझदारी बहुत जरूरी है।।
4
बाहर निकलना मतलब खुद जोखिम मोल लेना।
अभी कुछ दिन घर की चारदीवारी बहुत जरूरी है।।
5
दवा दुआ के साथ कोशिश करें अंदर टिकने की।
नहीं करे कोई बाहर  सवारी बहुत जरूरी है।।
6
दूर दूर रह  कर निभाने   हैं तुमको रिश्ते भी।
इस बात में तुम्हारी दिलदारी बहुत जरूरी है।।
7
*हंस* यह वक़्त खुद बचनेऔर परिवार बचाने का।
जान  लो कि तुम्हारी जवाबदारी बहुत जरूरी है।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---

मुहब्बत जहां से छुपाना है मुश्किल 
सभी को मगर यह बताना है मुश्किल

छुपा है बहुत कुछ निगाहों में उसकी
मगर उससे नज़रें मिलाना है मुश्किल 

ज़ुबां रूबरू काँप जाती है उसके
मुहब्बत को उस पर जताना है मुश्किल

हवाएं बहुत तेज़ हैं नफ़रतों की
चराग़-ए-मुहब्बत जलाना है मुश्किल

ख़िज़ाँओं के खे़मे हैं चारों तरफ़ ही
यहाँ फूल कलियाँ खिलाना है मुश्किल

किराये के घर में गुज़ारेंगे कब तक
नशेमन बहुत ही बनाना है मुश्किल

है मँहगाई हद से ज़ियादा ही *साग़र* 
ग़रीबी में घर का चलाना है मुश्किल

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली
29/5/2021
रूबरू-समक्ष
ख़ेमे-डेरे
नशेमन-आवास

नूतन लाल साहू

अलमारी में रखें पुराने खत

वही रंग,वही ढंग
वही हाल,वही चाल
अलमारी में रखें पुराने खत
आ गया नया साल
खुशहाली को आफतों ने डस्सी
हास्य व्यंग की पीओ लस्सी
बीता बरस,बात हुई बासी
पूरी हो गई,बारहमासी
अलमारी में रखें पुराने खत
आ गया नया साल
वैसे तो हमें,कोई ख़ास
शुभकामना संदेश नहीं आया
पर दोस्तों को भेजते रहें
शुभ कामनाएं
आधुनिक युग,इक्कीसवीं सदी में भी
है लोग अंधविश्वासी
अलमारी में रखें पुराने खत
आ गया नया साल
ये हंसी भी चीज है करामाती
आती है तो आती है
नही आती है तो नही आती है
आप कोशिश करते रहिए
सबको हंसाने की
नही आयेगी, और
आयेगी तो,बिना बात के बात पर
आ जाएगी
अलमारी में रखें पुराने खत
बहुत ढूंढी,बहुत ढूंढी,नही मिली
पर अचानक,एकांत में
अपनी बत्तीसी खिली
क्योंकि खत लगी हाथ में
खुशहाली को आफतों ने डस्सी
हास्य व्यंग की पीओ लस्सी

नूतन लाल साहू

प्रो0 शरद नारायण खरे

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

(1)नाम----प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
(2)जन्म- 25-09-1961
(3) शिक्षा-एम.ए(इतिहास)(मेरिट होल्डर),एल-     एल.बी,पी-एच.डी.(इतिहास) 
(4)व्यवसाय----शासकीय सेवा,  
प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य
कार्यालय----शासकीय जे.एम.सी.महिला महीविद्यालय,मंडला(म.प्र.)
(5)प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां --
*चार दशकों नें देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित 
*गद्य- पद्य में कुल 20 कृतियां प्रकाशित (चुभन,हक़ीक़त,विवेचना के स्वर,अनुभूतियाँ,कसक आदि)
*प्रसारण-----रेडियो(38 बार),भोपाल दूरदर्शन (6बार),ज़ी-स्माइल,ज़ी टी.वी.,स्टार टी.वी., ई.टी.वी.,सब-टी.वी.,साधना चैनल से प्रसारण ।
*संपादन---9 कृतियों व 8 पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन ।
*विशेष---सुपरिचित मंचीय हास्य- व्यंग्य कवि, संयोजक,संचालक,मोटीवेटर,शोध- निदेशक,विषय विशेषज्ञ,रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के इतिहास विभाग के अध्ययन मंडल के तीसरी बार व शासकीय पी.जी.ओटोनॉमस कॉलेज, छिंदवाड़ा इतिहासअध्ययन मंडल के सदस्य ।   
एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
150 से अधिक कृतियों में प्राक्कथन/ भूमिका का लेखन ।
300 से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में160 से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति
सम्मेलनों/ समारोहों में 350 से अधिक व्याख्यान 
300 से अधिक कवि सम्मेलन ।
475से अधिक कार्यक्रमों का संचालन ।
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र------देश के लगभग सभी राज्यों में 700 से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन ।सर्वप्रमुख अवार्ड--- म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड(51000/ रु)।
संपर्क/वर्तमान पता-आज़ाद वार्ड-चौक,मंडला,मप्र,
मो.9425484382
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(1)
प्रकाश का गीत
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अँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!

           पीड़ा,ग़म है,व्यथा-वेदना,
             दर्द नित्य मुस्काता
            जो सच्चा है,जो अच्छा है,
             वह अब नित दुख पाता

किंचित भी ना शेष कलुषता,शुचिता को अब वरना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!

           झूठ,कपट,चालों का मौसम,
          अंतर्मन अकुलाता
          हुआ आज बेदर्द ज़माना,
            अश्रु नयन में आता

जीवन बने सुवासित सबका,पुष्प सा हमको खिलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!

              कुछ तुम सुधरो,कुछ हम सुधरें,
               नव आगत मुस्काए
               सब विकार,दुर्गुण मिट जाएं,
             अपनापन छा जाए

औरों की पीड़ा हरने को,ख़ुद दीपक बन जलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
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2- गीत
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गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की
बढ़ रही है रोज़ ही,आफ़त यहाँ इंसान की

न सत्य है,न नीति है,
बस झूठ का बाज़ार है
न रीति है,न प्रीति है,
बस मौत का व्यापार है
श्मशान में भी लूट है,दुर्गति यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की।।

बिक रहीं नकली दवाएँ,
ऑक्सीजन रो रही
इंसानियत कलपे यहाँ,
करुणा मनुज की सो रही
ज़िन्दगी दुख-दर्द में,शामत यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की।।

हो रहे लाशों के ठेके,
मँहगा है अब तो कफ़न
चार काँधे भी नहीं हैं,
रिश्ते-नाते हैं दफ़न
साँस है व्यापार में पीड़ित यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही,क़ीमत यहाँ इंसान की।।

जोंक बन अब आदमी,
चूसता नित ख़ून है
भावनाएँ बिक रही हैं,
हर तरफ तो सून है
बच सकेगी कैसे अब,क़ीमत यहाँ इंसान की।
गिर रही है रोज़ ही क़ीमत यहाँ इंसान की।।
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      3-    समकालीन गीत
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रोदन करती आज दिशाएं,मौसम पर पहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो,घाव बहुत गहरे हैं !!

बढ़ता जाता दर्द नित्य ही,
संतापों का मेला
कहने को है भीड़,हक़ीक़त,
में हर एक अकेला

रौनक तो अब शेष रही ना,बादल भी ठहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे वो,घाव बहुत गहरे हैं !!

मायूसी है,बढ़ी हताशा,
शुष्क हुआ हर मुखड़ा
जिसका भी खींचा नक़ाब,
वह क्रोधित होकर उखड़ा

ग़म,पीड़ा औ' व्यथा-वेदना के ध्वज नित फहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं !!

व्यवस्थाओं ने हमको लूटा,
कौन सुने फरियाद
रोज़ाना हो रही खोखली,
ईमां की बुनियाद

कौन सुनेगा,किसे सुनाएं,यहां सभी बहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे है वो घाव बहुत गहरे हैं !!

बदल रहीं नित परिभाषाएं,
सबका नव चिंतन है
हर इक की है पृथक मान्यता,
पोषित हुआ पतन है

सूनापन है मातम दिखता,उड़े-उड़े चेहरे हैं !
अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं !!
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4- समसामयिक गीत
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दिल छोटे,पर मक़ां हैं बड़े,सारे भाई न्यारे !
अपने तक सारे हैं सीमित,नहीं परस्पर प्यारे !!

       दद्दा-अम्मां हो गये बोझा,
        कौन रखे अब उनको
        टूटे छप्पर रात गुज़ारें
        परछी में हैं दिन को

हर मुश्किल से दद्दा जीते,पर अपनों से हारे !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

          मीठा बचपन भूल चुके सब,
          वर्तमान की बातें
           दौलत,धरती,बैल-ढोरवा,
            की ख़ातिर आघातें

अपनी करनी से बेटों ने,फैलाये अँधियारे !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

             खेत सिंच रहे,पर दिल सूखे,
               जगह-जगह हरियाली
              रिश्ते तो अब रिसते हर दिन,
               रची अमावस काली

कोर्ट-कचहरी रोज़ाना ही,ह्रदय-मुकदमे हारे  !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

              बिलख रहीं चौपालें अब तो,
             नीम खड़ा रोता है
            पीपल वाला मंदिर भी तो,
          रोज़ श्राप देता है

आज वक्त की इस देहरी पर,सब करनी के मारे !!
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!


               ---प्रो.शरद नारायण खरे

सुनीता असीम

मेरी तो जान भी तुझमें बसी है।
कन्हैया तू ही मेरी जिंदगी है।
***
हमारा है मेरी सांसों में जबसे।
खुशी मिलती मुझे तो नित नई है।
***
नज़र जबसे  मिली मेरी हैं तुमसे।
जगी दिल में नई इक रोशनी है।
***
बड़े हो बे-मुरव्वत नंदलाला।
पिला नज़रों से दे दी तिश्नगी है।
***
यहीं सोचूं तुम्हें अपना बनाकर।
मेरे दिल ने करी क्यूं खुदकुशी है।
***
जरा ले लो सुनीता को शरण में।
हे मोहन इल्तिज़ा ये आखिरी है।
***
सुनीता असीम
२९/५/२०२१

डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी

हरिहरपुरी का सवैया

मिलना प्रिय से करना दिल से, हर बात कहा करते रहना।
भर अंक सदा रमते रहना, मुँह में मुँह डाल बहा करना।
सब पीर हरो हर क्लेश कटे, उसके मन को पढ़ना लिखना।
मन में अति प्यार भरा करना, प्रिय के दिल से जुड़ते चलना।
मत वाद करो प्रतिवाद नहीं, शुभ भाव बने मन से बहना।
चल हाथ मिलाय निहाल हुए,उसके प्रति स्नेहिल हो दिखना।
मिल एक बने चलना फिरना, मधु  सावन मास सुधा बनना।
अति आतुर भाव बहे मन में , उर आँगन रास सदा रचना।

रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801

सुनीता असीम

आंख में अश्के-रवानी दर्द की।
है यही केवल कहानी दर्द की।
****
इक कसक उठती रहे दिल में कहीं।
दर्द ही  खालिस निशानी दर्द की।
****
 रो रहा हो दिल मगर चहरा हंसे।
जात ये ही है      पुरानी दर्द की।
****
दर्द की खुशियां लगे प्यारी इसे।
आंख करती कद्रदानी दर्द की।
****
कह नहीं पाए किसी से दर्द को।
कौन सुनता खुदबयानी दर्द की
****
सुनीता असीम
२८/५/२०२१

एस के कपूर श्री हंस

।।कॅरोना को खुली चिठ्ठी।।*
*।। जल्द दुनिया से गायब तेरा* 
*गंद होगा।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
कॅरोना महाशय जी आपको
हमारा प्रणाम   है।
जल्द मिलने वाला    आपसे
संबको आराम है।।
तेरी तबाही और तेरे   सबक
सब    याद रखेंगे।
दुनिया भर में हो चुका तू अब
बदनाम        है।।
2
परमाणु हो  या   विषाणु   हो
काट सबको   होती है।
वक़्त आने पर मौत     की तो
आहट संबको होती है।।
जो उड़ता    उसको   होता है 
गिरना                भी।
एक दिन अंत  की   घबराहट
तो  संबको  होती है।।
3
सुन लो कॅरोना माना कि तुम
खून के    प्यासे हो।
विपरीत काल    वाले      तुम
बुद्धि    विनाशे हो।।
लेकिन अब तेरे जाने के  दिन
आ     गए         हैं।
सम्पूर्ण संसार के लिए  केवल
सत्यानाशे       हो।।
4
दवा ने तेरी विदाई अब    तय 
कर       दी     है।
तेरे सीने में भी     आग    पूरी
भर     दी       है।।
तेरे आने से हमें  कमियों   का
भी चला है   पता।
व्यवस्था भी   अब       दुरुस्त
कर    दी       है।।
5
हे कॅरोना तेरे     कहर     और
लहर का अंत होगा।
दूर आँखों से       हमारे    यह
जहर     मंद   होगा।।
फिर वैसा रंग        और    ढंग
वापिस    लायेंगे।
जल्द ही दुनिया     से   गायब
तेरा ये गंद  होगा।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।       9897071046
                     8218685464


*हमारे भारतीय त्यौहार।।।केवल पर्व ही नहीं।।।।संबधों की प्रगाढ़ता का सुअवसर।।।*
होली ,दीवाली, दशहरा,रक्षा बंधन, दुर्गा पूजा,नवरात्रि,लोहड़ी व अन्य  केवल रंगों के खेलने व आतिशबाजी व अन्य बातों के त्यौहार ही नहीं है,अपितु दिलों का रंगना,मिलना इसमें  परम आवश्यक है।रंगों के बहने के साथ ही मन का मैल बहना भी बहुत आवश्यक है ,तभी होली की सार्थकता है।और दीपावली पर जाकर मिलना ,उनके हाथ से मीठा खाना, साथ हंसना बोलना ही पर्व की सार्थकता है।
कहा  गया है कि, अंहकार मनुष्य के पतन का मूल कारण है। अंहकार मनुष्य की बुद्धिविवेक , तर्कशक्ति , मिलनसारिता तथा अन्य गुणों का हरण कर लेता है।व्यक्ति का जितना वैचारिक पतन होता है  ,उतना ही उसका अंहकार बढता जाता है। अंहकार से देवता भी दानव बन जाता है और अंहकार रहित मनुष्य देवता समान हो जाता है।बड़ी से बड़ी गलती के तह में  यदि  जाये ,तो मूल स्रोत में अंहकार को ही पायेंगे।
ईर्ष्या व घृणा का मूल कारण भी अंहकार ही होता है ,जो अन्ततः कई क्षेत्रों में  असफलता का कारण बनता है। होली ,दीपावली व अन्य त्योहार वो अवसर है ,जब कि ,मनुष्य समस्त विद्वेष व कुभावना का त्याग कर  शत्रु को भी मित्र बना सकता है।अंहकारी सदैव विनम्रता विहिन होता है।अंहकार आने से  मनुष्य अपने वास्तविक रूप से भी  ,धीरे धीरे दूर हटने लगता है और एक बहुरूपीये समान बन जाता है।वह कई झूठे  आवरण अोढ लेता है और उसकी  अपनी  असलियत ही लुप्त होने लगती है।अंहकारी में , हम की भावना नहीं  होती है।उसमें  केवल  मैं की  भावना ही होती है।यह भावना नेतृत्व क्षमता  व समाजिक लोकप्रियता के लिए अत्यंत घातक है।अंहकारी व्यक्ति में धीरे धीरे ,धैर्य  , निष्ठा ,सदभावना का अभाव होने लगता है।अंहकार का खानदान बहुत बड़ा है और यह अकेले नहीं आता है और  साथ में कोध्र, स्वार्थ, घृणा ,अहम,लालच, नीचा दिखाने की प्रवर्ति, अलोकप्रियता  ,अधीरता , आलोचना ,निरादर ,कर्मविहीन सफलता की लालसा ,अतिआत्म विश्वास, त्रुटि को स्वीकार न करना, आदि अनेक अवगुण स्वतः ही साथ आ जाते हैं।अतएव ,त्योहारों में बड़ापन दिखायें, एक कदम आगे बढे, दिल से गले लगायें।आप पायेंगे नफरत की बहुत मजबूत सी दिखने वाली दिवार, भरभरा कर एक झटके में ढह जायेगी।
सारांश यही है कि, होलिका दहन मे अहंकार को भी जला कर नाश कर दिया जाना चाहिए।जन्माष्टमी का प्रसाद का आदान प्रदान करें।दीपावली में एक दूसरे के यहाँ अवश्य जाये।रक्षा बंधन पर भाई बहन के यहाँ जाकर राखी बंधवाये।मिलकर दशहरा पर्व पर रावण दहन करें।तभी  इन  पवित्र पावन पर्व की सार्थकता है।पहल करके देखिये, एक कदम बढ़ाइये, आप पाएंगे कि पहले ही दो कदम आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।गले भी लगिये और दिलों को भी मिलाइये।आप देखेंगे कि त्योहारों की यह मिलन सारिता, एक सकारात्मक परिणाम आपके जीवन में लेकर आयेगी।
*लेखक।।।।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
9897071046
8218685464

*।।  प्रातःकाल   वंदन।।*
🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂
श्रद्धेय करते  आपका  हम
अभिनन्दन   हैं।
हर्षित गर्वित करतेआपका  
हम   मन      हैं।।
आपका सुख   सम्रद्धि ही
है    हमारा ध्येय।
*आज प्रभातबेला में करते*
*आपका वंदन हैं।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍
दिनाँक. 29.   05.     2021
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल-

वो यक़ीनन ही मजबूरे-हालात थी 
टालती रहती  हर दिन मुलाकात थी

उसका चेहरा नज़र आता चारों तरफ़
इश्क़ था या कि कोई करामात थी 

दिल फ़िदा होके सब कुछ लुटाता रहा 
उसकी मासूमियत में अजब बात थी 

सर से पा तक सराबोर रहता था मैं
प्यार की इतनी करती वो बरसात थी 

प्यार से उसने जादू सा क्या कर दिया
मेरे सारे ग़मों की हुई मात थी

उसके लफ़्जों से दिल का चमन खिल उठा
 यह  ग़ज़ल थी या कोई मुनाजात थी

जिसकी तारीफ़ करते न *साग़र* थका
इस जहां में अकेली वही ज़ात थी

 🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
28/5/2021
मुनाजात-ईश प्रार्थना

नूतन लाल साहू

ये लफ्ज आईनें है

सुनों सुनोंं प्यारे
बातें तो है,बहुत पुरानी
पर है ये अमर कहानी
यहां बड़े बड़े बलवान हुए
धनवान हुए,गुणवान हुए
पर इस दुनिया में
कोई न बचे
जिसने भी अच्छा कर्म किया
उसका गाथा अमर हुआ
अंत समय में उसने मुक्ति पाया
ये लफ्ज आईनें है
मानुष जन्म उन्ही का सफल हुआ
चुन चुन लकड़ी महल बनाया
मूरख कहें घर मेरा
ना घर तेरा ना घर मेरा
चिड़ियां रैन बसेरा
जब तक पंछी बोल रहा है
सब राह देखें तेरा
प्राण पखेरु उड़ जाने पर
कौन कहेगा मेरा
जीवन की डोर जिसने भी किया
हरि के हवाले
उसके जीवन में,हर रोज
आया इक नया सवेरा
ये लफ्ज बोलते है
मन का झुकना बहुत जरूरी है
मानुष जन्म उन्ही का सफल होता है
जो भी आया,प्रभु जी के शरण में
उसे ही, भव से पार उतारा
जो पड़ा,माया मोह के चक्कर में
उसे बीच भंवर में छोड़ा
ये लफ्ज आईने है
जिसे मिला प्रभु जी का सहारा
मानुष जन्म उन्ही का सफल हुआ

नूतन लाल साहू

सुधीर श्रीवास्तव

फौजी
******
फौजी आन,बान,शान है
देश का गौरव,स्वाभिमान है
अपने देश के फौजियों पर
हम सबको बड़ा ही नाज है।
फौजी है तो देश सुरक्षित
दुश्मन तो पूरी तरह ही
पाता है खुद को असुरक्षित,
देश में आई हर विपदा से 
आंधी, तूफान, बाढ़,महामारी
अन्यान्य प्राकृतिक आपदा में
भीषण दुर्घटना, 
देशविरोधी ताकतों से
देश के भीतर बाहर 
षडयंत्रकारियों से
हमें और राष्ट्र को बचाता
हमारा ही फौजी।
हर स्थिति, परिस्थिति में
डटा रहता, जुटा रहता
एक शपथ की खातिर
जान हथेली पर रखता,
देश की खातिर खुद को ही नहीं
परिवार को भी भूल जाता
हमारे देश का जाँबाज़ फौजी।
बिना डरे,झुके या विचलन के
हर हाल में भूख,प्यास और
मोह ,ममता, भय अथवा लालच के
निष्ठुर निर्मोही बनकर
सिर्फ़ कर्तव्य पथ पर डटा रहता
हमारे देश का जाँबाज फौजी।
देश ही नहीं, हम भी हैं 
तभी तो पूर्ण सुरक्षित हैं,
हमारा फौजी जब मुस्तैद है
सुख सुविधा छोड़ जब डटा है।
जब हम चैन से घरों में सोते हैं 
तब हमारी नींद में खलल न पड़े
सुख,सुविधा,नींद तजे दिन रात
अपने कर्तव्य पथ पर चौकन्ना
हमारे देश का जाँबाज फौजी।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

आओ धरा पे...
आओ धरा पे कृष्ण जी,तेरी धरा को चाह है,
आकर उबारो कष्ट से,चारो तरफ बस आह है।
काली घटाओं से घिरा है,जिंदगी का व्योम यह-
अब तो सुनाई पड़ रही यहाँ,चाँद की कराह है।।

इस विश्व पे है पड़ रही छाया किसी शैतान की,
यह है दिखे साज़िश कुदरती,या किसी हैवान की।
आकर बचा लो नाथ अब,अभिशप्त इस संसार को-
आशीष दे अब शुष्क कर दो,कष्ट-सिंधु अथाह है।।

तेरा बनाया लोक यह,रक्षक तुम्हीं तो नाथ हो,
जो डस रहा है इस समय,तक्षक कोई तो नाग हो।
तेरी महिमा नाथ अद्भुत,तुम तो करुणा-सिंधु हो-
फण को कुचल कर नाग के,कर दो सुगम जो राह है।।

देखते बनती नहीं है,यह विकट अब नाश-लीला,
आता नहीं कैसे कसें ,जो हुआ संबंध ढीला।
गीता का वाचन कर के फिर,मंत्र कोई फूँक दो-
कर दो क्षमा अपराध सारे,जो हुआ गुनाह है।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

मधु शंखधर स्वतंत्र

🚩 *सुप्रभातम्*🚩
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *हस्ताक्षर*🌹🌹
---------------------------------

◆ हस्ताक्षर पहचान है , यही बताता मोल।
जहाँ चले भाषा यही , चले न कोई बोल।
सत्य सिद्ध करता सदा, नीति नियम की बात,
हस्ताक्षर को मान लो, संविधान  का गोल।।

◆ शिक्षित हस्ताक्षर करे , लिखित बढ़ाए मान।
लगा अँगूठा मानते, इसका यही निदान।
सोच समझ पढ़ कर करो, हस्ताक्षर सब जान,
छल कपटी से यह करे, मनुज को सावधान।।

◆ हस्ताक्षर देता सदा, मानव को संकेत।
अक्षर का कर ज्ञान लो, बन जाओ अनिकेत।
जहाँ बसे अज्ञानता, मानव जीवन मूल।
ढह जाए वह स्वयं ही, जैसे टीला रेत।।

◆ हस्ताक्षर से स्वयं की, सोच बने संकल्प।
यही सतत मानें सभी, इसका नहीं विकल्प। 
चेतन मन संज्ञान से, मानव बने महान,
हस्ताक्षर है दीर्घता, मान नहीं यह अल्प।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*29.05.2021*

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुशियों का दिया----

रंगोली की बोली उत्साह उमंग है
मन भावो का रंग खास  खुशियां
प्रसंग है।।
आशा अभिलाषा की पूर्णतया 
सुख शांति बैभव का आगमन है।।
दिया जला है प्यार उजियार  का
तमस मन का मिटाना संकल्प है।।
सुख बैभव का आचार व्यवहार
दुःख क्लेश से मुक्ति का आश्वाशन
 आवाहन है।।
जीवन मे भय रोग  बाधा
ना हो, दृश्य अदृश्य शत्रु का
समापन आस्था संस्कार है।।
हताशा निराशा पल ना आवे
नित्य नियमित रिद्धि सिद्धि 
आराधना अवसर अपरिहार्य है।।
जल गए दिये जीवन संचार में
मनौती मान्यता प्राप्ति प्रमाणिकता
प्राथमिकता का अनुष्ठान है।।
बच्चों की चाहत खुशियां 
लौ दिए कि तरह, कुटुंब
परिवार की राह का प्रकाश है।।
फुलझड़ियों आतिश बाजी
द्वेष दंम्भ घृणा के अंधकार
दुनियां पे प्यार मोहब्बत
के जग मग जग मग चिराग है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-गुज़रे हुए लम्हे
विधा-कविता
---------------------
मुस्कुराता हुआ चेहरा उसका जब करीब से देखा था,
हुआ शादाब दिल जो खिल उठा था।

गुज़रे हुए लम्हे फिर लौटकर तो नहीं आते,
पर यादों का कारवाँ होंठों पे हँसी मुस्कान ज़रूर ले आता है।

वो ख़ुशनुमा पल कैसे भूल सकता मैं,
उसके मीठे अल्फ़ाज़ और जादूई मुस्कान को आज भी याद करता मैं।

ज़िन्दगी को सही मायने में जीने के लिए ज़िन्दादिल होना बेहद ज़रूरी है,
दो पल की ज़िन्दगी है इसे यादगार बनाना ज़रूरी है।

खुद को कहीं गुम न होने देना,
खुद को अपनेआप में तलाशना भी ज़रूरी है।

*********************************

शीर्षक-असमानता का चश्मा
विधा-कविता
---------------------------
असमानता का चश्मा जब तक अपनी समझ से न हटा पाओगे,
तब तक न अपने समाज को सुंदर और न अपने देश को मेरा भारत महान बना पाओगे।

जहां बेटियों और महिलाओं को समान दर्जा न दिला पाओगे,
वहां कभी सशक्त समाज की कल्पना भी न कर पाओगे।

आज किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कतई कमतर नहीं फिर भी अगर बेटियों को आगे बढ़ने का अवसर न दे पाओगे,
तो याद रखना समाज में कभी सही मायने में विकास न कर पाओगे।

रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

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