कुमार@विशु

माँ का कर्ज चुकाना है।
जिसके  आँचल  के छाँव तले हम बड़े हुए,
जिसकी  मिट्टी  में  खेलकूदकर  खड़े  हुए,
उसके पाँव की मिट्टी को माथे से लगाना है,
अब  हमको भारत माँ का  कर्ज चुकाना है।।

हरियाली धानी कपड़ों को हमने सदा जलाया,
नष्ट किये सारे  वन-उपवन सुनापन अपनाया ,
वृक्ष लगाकर फिर से धरती माँ को सजाना है,
अब  हमको भारत माँ  का  कर्ज  चुकाना  है।।

वो जननी नौ माह हमे निज कोंख में रखती है,
बूँद-बूँद निज रक्त से तन को सिंचित करती है,
पीड़ा  हँसकर  झेल  गयी उसे नहीं रूलाना है,
उस जननी माँ के हित में कुछ फर्ज निभाना है।।

जन्म से लेकर  मृत्यु तलक जिसने है अन्न दिया,
जिसके रजकंण में उठ गिरकर हमने साँस लिया,
झूलसी  केसर  की  क्यारी  को  फिर महकाना है,
अब   हमको  भारत  माँ  का   कर्ज  चुकाना  है।।

उत्तर   में   गिरिराज  हिमालय   पहरा   देता  है,
दक्षिण  में  सागर  निसदिन चरणों को धोता  है ,
भारत  माँ के  श्री  चरणों  में  शीश  झुकाना है,
अब हमसबको  भारत  माँ  का  कर्ज चुकाना है।।

रक्त की नदियाँ बह जाएँ कम शीश नहीं होंगे,
माँ शान अगर गिर जाए तो जीकर क्या करेंगे,
दुश्मन की छाती पर चढ़ ध्वज तेरा फहरान है,
अब  हमसबको भारत माँ का  कर्ज चुकाना है।।

✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना

सुधीर श्रीवास्तव

भावनाएँ बारिश की
****************
ये भी अजीब सी पहली है
कि बारिश की भावनाओं को तो
पढ़ लेना बहुत मुश्किल नहीं
समझ में भी आ जाता है
पढ़कर समझ में भी आता है।
परंतु भावनाओं की बारिश
कब, कहाँ कैसे और
कितनी हो जाय ,
कोई अनुमान ही नहीं।
हमारी ही भावनाएं
कब, कहाँ, कैसे और कितनी
कम या ज्यादा बरस जायेंगी
हमें खुद ही अहसास तक नहीं।
भावनाओं की बारिश के
रंग ढ़ग भी निराले हैं,
अपने, पराये हों या दोस्त दुश्मन
जाने पहचाने हों या अंजाने, अनदेखे
जल, जंगल, जमीन, प्रकृति,
पहाड़, पठार या रेगिस्तान
धरती, आकाश या हो ब्रहांड
पेड़ पौधे, पशु पक्षी ,कीट पतंगे,
झील, झरने,तालाब ,नदी नाले
या फैला हुआ विशाल समुद्र,
सबकी अपनी अपनी भावनाएं हैं
और सबके भावनाओं की
होती है बारिश भी।
इंसानी भावनाएं होती सबसे जुदा,
इन्हें और इनकी भावनाओं को
न पढ़ सका इंसान तो क्या
शायद खुदा भी।
भावनाएं और उसकी बारिश की
लीला है ही बड़ी अजीब सी।
● सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

एस के कपूर श्री हंस

*।।।।।रचना शीर्षक।।।।।।।।*
*धूम्रपान निषेद्ध   दिवस  31* 
*मई  पर   शपथ।।*
*।।।।विधा।।।।।मुक्तक।।।।।*

1
तम्बाकू, गुटका, पान मसाला
की अब  बस  है  आज    से।
कैंसर कारक इन नशों की तो
मानो अब तज है  आज   से।।
आज ही क्या सदैव जीवन में
आगे से उपयोग  नहीं   करेंगें।
प्रण करते  हमसब    धूम्रपान
निषेद्ध दिवस सच हैआज से।।
2
तंबाकू उत्पादों  का     प्रयोग
मानो जहर     का  सेवन   है।
जीवन का तो मानो कि  मौत
के दरिया में   खेवन          है।।
आज अभी से  छोड़  दीजिए
आदत   बुरी   धूम्रपान     की।
बेमौत मरता आदमी    बचता
नहीं     कोई   नाम   लेवन  है।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*"श्री हंस"।।।।*
*बरेली।।।।।।।।।*
*31।।।।05।।।।।2021।।।*
मोब  9897071046।।।।
8218685464।।।।।।।।।

अरुणा अग्रवाल

नमन मंच,माता शारदे,गुणीजन,
शीर्षक-"आलमारी में रखें पुराने खत"
30।05।2021।


 मानव,मानवी स्रष्टा का श्रेष्ठ सृजन 
इनमें दिया है कला,मनन,कौशल,
ज्ञान,बुद्धि,विवेक,कागज,कलम,
ताकि लिख सकें मनका भावना।।


और यह सिलसिला,चलायमान,
मोबाइल से पहले खतका,परंपरा,
एक दूजे के लिऐ लिखता,सुबोध,
और खत के माध्यम से होता रूबरू।।

 नया नौ दिन ओर पुराना सौ दिन,
उसी तरह खत-पुराना है अनमोल
जब कभी फ़ूरसत,पढ़े ,सह-मन,
यादगारी लम्हा,देगा शुकून,अपार।।


चाहे वह बचपन-बन्धु,आत्मिय,
लिखा हो तन,मन,लगन से प्रिय,
जब कभी याद आऐ,पढ़े,खत,
अवश्य मिलेगा शान्ति-मुरार।।


 गहना,आभूषण तो फ़िर मिलेंगे,
पर वह खत,अतुल,गुमनाम न,
होने पाऐ,रखें विशेष-ध्यान,
आलमारी का बढ़ाता रहे मान।।


पाती को मत समझें महज,कागज
वह है बेशकीमती तोहफ़ा,मुचुकंद
सम्भालके रखो उसे आलमारी,में,
ताकि सुशोभित,मंड़ित सम,गहना।।


अरुणा अग्रवाल।
लोरमी।छःगः।🙏

डॉ. कवि कुमार निर्मल

अलमारी में रखे पुराने खत
    
अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज सुधिजनों  को बतानी थी।
कुछ लिखते खत में मन बाहर की, मिलने पर बातें होती जुवान थी।।

अब है चैटिंग की सुविधा अनंत, तब 'श्याही' होती भरवानी थी।
अनलिमिटेड डाटा है आज, तब कागज पर कलम चलानी थी।।

खत की बात निराली, लिख कर पत्र-मंजुषा में डाली  जाती थी।
कोने में सिमट एकांत देख, मन की कुछ बातें लिखी जाती थी।।

पहले तो दूरियां अक्सर रहती, पढ़ाई नौकरी की बातें पुरानी थी।
जबसे लॉक डाउन, रहना घर- बगल में बैठ चैटिंग फरमानी थी।।

आज अलमारी में रखे पुराने खत पढ़ यादों की बारात सजानी थी।
कपाट खोलते हीं, खतों से 'इत्र अल काबा'  की खुशबू आनी थी।।

एक खत मिला प्रियतमा का- उफ! दर्द भरी लम्बी एक कहानी थी।
विरह की अगन बह आँसुओं संग- चिट्ठी में पीड़ा लिखी पुरानी थी।।

गर्मी की तपिश हो या फिर जाड़े की ठिठुरन, बात  खतों में घोली थी।
बारिश की पहली फुहार से भड़की तिश्नगी- खत में वो  लिखती थी।।

कभी आँसुओं की धार टपकती दिखती- श्याही पसरी जो रहती थी।
कभी लिखती नाम खून से- मन की श्याही अगन से सूखी रहती थी।।

कुछेक पुराने अलमारी में रखे दबे-मुचड़े खत खोज- बातें तो कहनी थी।
मित्र भले छुपालें- हम हैं निश्छल- अनुभव की बातें यथावत् रखनी थी।।

अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज  सुधिजनों को बतानी थी।
लिखते खतों में बात मन की कुछ औरों की लिख सारी  बतानी थी।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार 845438

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-लिहाज़
विधा-विधामुक्त
----------
थोड़ी सी लिहाज़ रक्खा तो करो,
बूढ़े मां बाप को अपने ज़रा देखा तो करो।

जिन्होंने ख़ुद की ख़ुशियाँ त्याग दी हों तुम्हें कामयाब बनाने में,
उनकी थोड़ी परवाह किया तो करो।

कभी सोचा है माँ बाप के आत्मसमान को कितनी चोट पहुँचती होगी,
जब अपने ही बच्चे उनको दर-दर की ठोकरें खाने पे मजबूर करते हों।

उस वक्त  माँ बाप भी ख़ुदा से यही कहते होंगे,
 कि ये दिन दिखाने के लिए कभी ऐसी औलाद दिया न करो।

बागबान जैसी फिल्म बनाई न जाती,
गर आज के दौर में ग़ैरत से भी बदतर संतान पाई न जाती।

रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

जया मोहन

आज तम्बाखू निषेध दिवस पर
सीख
आव गया आदर गया 
गए सुपारी पान
सिगरेट के  कस ले रहा
खुश हो नवजवान
गुटखा मुँह में दबा लिया
चढ़ा सुरा का रंग मस्त हो गए भैया जी पी लोटा भर भंग
मना किया घरवालों ने पर खूब की मनमानी
रोगों से तन घिर गया अब याद आ रही नादानी
मुख कैंसर हो जाने से नही खा पाते खाना खांसते रहने के कारण नही हो पाता सोना
रोते हैं पछताते है सबसे यही बताते है
छोड़ो दारू गुटखा पान
नही बढ़ती इससे शान
मुझे देख कर ले लो सीख
नही तो तुम माँगोगे भीख
ज़िन्दगी की है ये सौत
समय से पहले देती मौत

स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज

निशा अतुल्य

बालगीत
गर्मी का मौसम
31.5.2021

आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया
मन को मेरे बहुत ही ललचा गया
बहुत मीठे है भाई तरबूज,खरबूजे
भर गया पेट,पर मन तरसा गया ।

माँ कहती रोटी भी खाओ
तन को अपने स्वस्थ बनाओ
मुझको पर भाता है आम
बाबा का गुस्सा खाना खिला गया
आम,लीची,आड़ू के मौसम आ गया ।।

गर्मी में बहुत अच्छा लगता है शरबत
मगर आम का पन्ना दिल तरसा गया
बचपन अपना पतंगों संग उड़ाया मैंने
रिमझिम बारिश का पानी तन भीगा गया ।
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।। 

दोपहरी भर खेलते लड़ते संगी साथी
मस्तियों का आलम बेशुमार छा गया 
छुट्टी हुई पाठशाला की छूटी जान
सबके घर आने से उत्सव सा छा गया 
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।। 

माँ का हाथ बटाऊँ,आज मेरे दिल में आ गया
देख थकी सूरत माँ की,समय मुझको बड़ा बना गया
मेरा प्यारा बचपन,मुझको समझदार बना गया 
मैं जिद नहीं करती,फल अब भी भाते हैं बहुत 
समय सबकी अहमियत मुझको समझा गया
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ-3
  *दसवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3
जे नहिं कंटक-पीरा जानै।
ऊ नहिं पीरा अपरै मानै।।
    नहीं हेकड़ी,नहीं घमंडा।
    रहै दरिद्री खंडहिं-खंडा।।
नहिं रह मन घमंड मन माहीं।
जे जन जगत बिपन्नय आहीं।।
    रहै कष्ट जग जे कछु उवही।
    ओकर उवहि तपस्या रहही।।
करि कै जतन मिलै तेहिं भोजन।
दूबर रह सरीर जनु रोगन ।।
     इन्द्रिय सिथिल, बिषय नहिं भोगा।
     बनै नहीं हिंसा संजोगा ।।
कबहुँ न मनबढ़ होंय बिपन्ना।
होंहिं घमंडी जन संपन्ना ।।
     साधु पुरुष समदरसी भवहीं।
    जासु बिपन्न समागम पवहीं।।
नहिं तृष्ना,न लालसा कोऊ।
जे जन अति बिपन्न जग होऊ।।
     अंतःकरण सुद्धि तब होवै।
      अवसर जब सतसंग न खोवै।।
जे मन भ्रमर चखहिं मकरंदा।
प्रभु-पद-पंकज लहहिं अनंदा।।
     अस जन चाहहिं नहिं धन-संपत्ति।
    संपति मौन-निमंत्रन बीपति ।।
प्रभु कै भगति मिलै बिपन्नहिं।
सुख अरु चैन कहाँ सम्पन्नहिं।।
      दुइनिउ नलकूबर-मणिग्रीवा।
      बारुनि मदिरा सेवन लेवा।।
भे मदांध इंद्री-आधीना।
लंपट अरु लबार,भय-हीना।।
      करबै हम इन्हकर मद चूरा।
      चेत नहीं तन-बसन न पूरा।।
अहइँ इ दुइनउ तनय कुबेरा।
पर अब पाप इनहिं अस घेरा।।
     जइहैं अब ई बृच्छहि जोनी।
     रोकि न सकै कोउ अनहोनी।।
पर मम साप अनुग्रह-युक्ता।
कृष्न-चरन छुइ होंइहैं मुक्ता।।
दोहा-जाइ बीति जब बरस सत,होय कृष्न-अवतार।
        पाइ अनुग्रह कृष्न कै, इन्हकर बेड़ा पार ।।
                     डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जन्म दिन-----

जश्न जोश का बहाना चाहिये
जन्म दिन उत्साह उमंग से 
मानना चाहिए।।

सच्चाई की जीवन की 
लम्बाई जिंदगी  छोटी होती हर
जन्म दिन पर एक वर्ष
उम्र कम होती गम नही
जीवन मे जीने का अंदाज़ चाहिये।।

जन्मदिन के जश्न में 
कोई परंपरा भारतीय नही
ना कैंडल्स ना केक फिर भी
गर्व अभिमान भारतीय है हम
भारतीयता को अपनाना चाहिये।।

जन्म दिन की खुशियों में
शुमार दावत दारू नाच गान
उपहार हैप्पी बर्थ डे जिओ
हज़ारों साल होना चाहिये।।

गर मौका मिल जाए
गर्ल फ्रेंड की बाहों में बाहें डाल
घुमाना चाहिये शायराना अंदाज़
बडा नाज़ जन्म दिन आता साल
में एक बार इश्क मोहब्बत प्यार
आजमाना चाहिए ।।

पूरे जश्न जोश खो जाए
होश दोस्तो संग मौज 
मौके का जौक शौख का
खास खुशियों का खुमार
आना चाहिये।।
भारत भारतीयता की परम्परा
तकिया नुकुसी जन्म दिन पर
भी मंदिर देवता आशीर्वाद
मन्नत मुराद नीरस नीरसता
पास भी नही जाना चाहिये।।

घटती सिमटती जिंदगी में
दान पुण्य पाप जन्म दिन
पर गर कर दिया रक्त दान
क्या फायदा बेवजह जन
कल्याण से खुद को बचाना
चाहिये।।
जोश जश्न से जन्म दिन मनाना
चाहिए।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सौरभ प्रभात

शीर्षक - *कृष्ण सुदामा मिलन*
विधा - *आल्हा छंद*


दीन सुदामा के चरणों में
बैठा देखो यूँ जगपाल।
पाँव पखारे निज अँसुवन से
बाल सखा का पूछे हाल।।1।।

नैन छिपाये उर की चिन्ता
होंठ सजाये इक मुस्कान।
प्रेम तड़ित से विचलित होकर
नीर बहायें रस की खान।।2।।

देख फटी वो पाँव बिवाई
कोमल मन करता चित्कार।
कैसा हूँ मैं मित्र अधम जो
संगी को न दिया आधार।।3।।

काँख छिपी फिर देखी गठरी
छीन लिये उसको करतार।
सूखे चावल खाते जाते
और लुटाते नेह अपार।।4।।

विप्र अचंभित सोच रहा है
कैसे कह दूँ अपना हाल?
बिन बोले पर घर भर डाला
ऐसा नटवर नागर ग्वाल।।5।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

मधु शंखधर स्वतंत्र

मधु के मधुमय मुक्तक

🌹🌹 *गौहर*🌹🌹
-----------------------------

◆ गौहर सागर में छिपा , विरले सीपी साथ।
माला की शोभा बने, पहने दीनानाथ।
उज्ज्वल आभा देख कर, हर्षित ह्रदय अपार।
शांत चित्त पर्याय है, आए जब यह हाथ।।

◆ गौहर सौहर ने दिया, जड़ी अँगूठी बींच।
सुख सौन्दर्य बढ़ा करे , रखती प्रतिपल भींच।
चाहत में सबकी बसे, सच्ची हो पहचान,
प्राप्त इसे जो कर लिया, त्वरित इसे ले खींच।।

◆ गौहर संज्ञा श्रेष्ठ है, शुभग सदा पहचान।
रंक प्राप्ति इच्छा धरे, भूप लुटाए शान।
चमक विशेषण भी बने, ये विशेष्य के साथ,
धरते गौहर शान से, आभा का प्रतिमान।

◆ गौहर सम संज्ञा मिले, धारा वही विशेष।
माला में धारण करे, शोभा अनुपम भेष।
सदा मनुज की धीरता, गौहर का संदेश,
धैर्य सहज अरु शांत ही, भाव बसे अनिमेष।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*31.05.2021*

नूतन लाल साहू

सफलता का सफर

सफलता का सफर
रास्ता है मुश्किल
यहां हर मोड़ पर
दुश्मन खड़ा है
स्वार्थों के अंधेरों ने
घेरा हुआ है
जीतता वही है
जो स्वयं से लड़ा है
जो अंतर्रात्मा की आवाज सुनता है
वहां से जो ज्ञान
निकल कर आता है
वही तो
भविष्य का रास्ता सुझाता है
सही मायने में
सफलता का सफर के लिए
एक दर्पण होता है
दृढ़ संकल्प के साथ
जो चलता है
और निरंतर आगे बढ़ते ही
रहता है
चाहे कितना ही,मारो उसे ठोकर
आत्मविश्वास और संयम ही
वक्त से लड़ने का
उनका हथियार होता है
जीतता वही है
जो स्वयं से लड़ा है
कल को किसने है,देखा
मेहनत से ही बदलेगी
भाग्य का सारा लेखा
सफलता का सफर में
पक्का संकल्प आवश्यक है
दुनिया तो है, इक बाजार
रास्ता खुद ही बनाना होगा
यही तो सफलता का सफर है

नूतन लाल साहू

जयप्रकाश चौहान अजनबी

*विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर स्वरचित गीत*

*शीर्षक:- बीड़ी -सिगरेट पीना नही*

 मैं कभी ये नहीं कहता कि तुम शौक मत करना।
पर घी दूध छोड़ तम्बाकू का भोग मत करना।


बीड़ी -सिगरेट ,बीड़ी -सिगरेट पीना नहीं।
घी -दूध को छोड़कर घी- दूध को छोड़कर ।

पल-पल बीड़ी तेरा गला जलाएगी। 
सिगरेट तेरे गले में छालो को बुलाएगी।
जब बीड़ी पिएगा तेरा फेफड़ा गलाएगी ।
इस सुडौल काया को  जर्जर कर जाएगी।

 बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट......

तुमने बीड़ी को पिया उसका स्वाद लिया।
तूने पगले जान के रोग को न्योता दिया ।
अब बन गया आदि तूने यह नया रोग लिया ।
तब ना सोचा ना समझा यह कैसा भोग किया।

 बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट......

अब तुझको यह बीड़ी की आदत तड़फाएगी।
ना पिएगा तो तुझे चैन से नींद ना आएगी ।
अगर तुम सिगरेट छोड़ना भी चाहोगे ।
तो तुम जानकर भी ना छोड़ पाओगे ।

बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट...... 

अब सुन ले मेरे यारा तू वादा निभाना ।
इस बीड़ी सिगरेट को तू कर दे बेगाना ।
तंबाकू को छोड़ अब अच्छा बन के दिखाना।
अजनबी कहे तब तुझे इज्जत देगा यह जमाना ।

बीड़ी- सिगरेट बीड़ी- सिगरेट पीना नहीं ।
घी -दूध को छोड़ के घी -दूध को छोडक़े।

 जयप्रकाश चौहान अजनबी
 जिंदोली,अलवर(राजस्थान)

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(पहचान)
अपनी ही पहचान का,होता सरल न ज्ञान।
लिया समझ जो स्वयं को,समझो वही महान।।

मिलती कभी न पूर्णता,भले कहें हम पूर्ण।
ऐ मूरख इंसान सुन,अंत होय मद चूर्ण।।

साधु-संत,ऋषि-मुनि कहें,खुद की निजता जान।
अपने ही गुण-दोष की,करो उचित पहचान।।

रहो भले या मत रहो, जग जाता है भूल।
याद करे जब बाँट दो,काँटा बदले फूल।।

यही पूर्ण पहचान है,यही सत्य-आधार।
मनुज-धर्म उपकार है,कर्म बाँटना प्यार।।

मद-घमंड से तो नहीं,मिले कभी पहचान।
जन-सेवा,उपकार से,हो प्रसिद्ध अनजान।।

मातृ-भूमि-हित प्राण दे,होता अमर जवान।
अन्न-फूल-फल दे कृषक,पाए नित सम्मान।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

          नशा नाश की जड़ है
                        ~~~
          विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर,
          जनमानस को समझाता हूँ।
          नशा नाश की जड़ है भैया,
          अवगुण इसके बतलाता हूँ।।

          दोस्त मित्र चुटकी भर देते,
          फिर हम ही आदी बन जाते।
          धीरे-धीरे परवान चढ़े,
          नहीं मिले,कुछ भी कर आते।।

          पावन पवित्र शरीर हमारा,
          गाल गलाये गुटखा खाकर।
          दाँतों की मनभावन शोभा,
          हर कोई बतलाये आकर।।

          बीड़ी,सिगरेट जान लेवा,
          धुआं उडाते है सम्मान से।
          कितना भी समझालो उनकों,
          डरते नहीं है अपमान से।।

          खाँस-खाँस कर शोर मचाते,
          घर वाले होते परेशान।
          दुष्परिणाम की जब बात करो,
          बन जाते है वो ज्ञानवान।।

          छोटे-बड़े युवा किशोर सब,
          मिलकर जब जर्दा मसलते है।
          बार-बार,थप-थप से अपनी,
          बहुत बड़ी शान समझते है।।

          समय रहते नहीं सुधरे तो,
          कोरोना से जुड़ जाओगे।
          कई बिमारियों से एक साथ,
          फिर कैसे तुम बच पाओगे।।

          पान मसाला गुटका खाकर,
         इतराते रहते इधर-उधर।
         कर जोड़ नम्र निवेदन मेरा,
         लत छोड़ नशे की,अब सुधर।।

        ©®
           रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

सुधीर श्रीवास्तव

हाइकु
********
नशे की लत
खोखला कर देती,
चेत जा जरा।
++++++++
नशा मुक्त का
प्रण कर लो तो,
जीवन हर्ष।
++++++++
नशे के साथ
जीवन का हो नाश,
बचना होगा।
+++++++++
घाव नशे का
बहुत रूलाता है,
संयम रख।
+++++++++
नशीला जहां
मौत का कुँआ जैसा,
बचना होगा।
+++++++++
बच लो यारों
नशे के जहर से,
बड़ा सूकून।
++++++++
नशा कुँआ है
हमारी मौत पक्की,
बच लो भाई।
+++++++++
★सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा(उ.प्र.)
    8115285921

एस के कपूर श्री हंस - काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार

कवि- परिचय
(साहित्यिक/समाजिक/सेवाकाल)
*1* नाम:एस के कपूर"श्री हंस"
*2*. पिता का नाम :स्व0 बृज लाल कपूर जी
*3* माता का नाम :स्व0 सावित्री देवी कपूर जी
*4*.पति का नाम (विवाहिता हेतु):,,,,,,
*5* जन्म तिथि:07 जून 1950
*6* जन्म स्थान: नई दिल्ली
7.वर्तमान स्थायी पता: 06,पुष्कर एनक्लेव,टेलीफोन टॉवर के सामने
स्टेडियम रोड,बरेली ,उत्तर प्रदेश पिन
243005
*8*. शिक्षा : एम एस सी (रसायन शास्त्र)
सी ए आई आई बी (भाग 1)
*9* लेखन की विधाएँ: गद्य(आलेख,निबंध, संस्मरण, समाचार पत्र सूचना आदि)
पद्य(मुक्तक, मुक्तक माला,हाइकु,छंद मुक्त(तुंकान्त व अतुकांत), कुंडलियां,मनहरण छंद(8 8 8 7) आदि) ग़ज़ल अभी लगभग 100 (विशेष। लगभग 10000 मुक्तकों की रचना अब तक)
*10*. कृतित्व:
*(क)* प्रकाशित ग्रंथ ई पत्रिका (हारेगा कॅरोना) लोकार्पण दिनाँक 20।06।2020
*(ख)* अप्रकाशित ग्रंथ ई पत्रिका( व्यक्तित्व विकास पर केंद्रित)
*(ग)* संपादन सलेक्टेड न्यूज़ समाचार पत्र,बरेली(मई 2014 से मई 2016)
पीलीभीत मिड टाउन जेसीज व अवध जेसीज की स्मारिकाओं का संपादन।
*(घ)* पत्र पत्रिका में प्रकाशन,,,,आई नेक्स्ट(144 लेख प्रकाशित) ,कलीग,हम दोस्त।संवाद।सेकंड इनिंग्स, परफेक्ट जरनीलिस्ट,हेल्थ वाणी,गीत प्रिया, प्रेरणा अंशु,रोहिलखण्ड किरण।काव्या मृत।काव्य स्पंदन।
काव्य रंगोली।काव्य धारा।स्वर्ण धारा।
इंकलाब व अनेकानेक विश्व जन चेतना ट्रस्ट ,साहित्य संगम संस्थान दिल्ली व अन्य ई पत्रिकाओं में रचनायों व लेखों का प्रकाशन।
विभिन्न संस्थाओं के ब्लॉग।।पोर्टल।।वेबसाइट।।यू ट्यूब।।टी वी चैनल।। गूगल पेज।। आदि पर रचनाओं।।लेखों का प्रकाशन व वीडियो अपलोडिंग।
*11* सम्मान ,पुरस्कार व अलंकरण।
लगभग 600 से अधिक , भौतिक व डिजिटल प्रमाण पत्र प्राप्त।पुरुस्कार।ट्रॉफी।मैडल विभिन्न साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त।
*12*. अन्य उपलब्धियां: 
दूरदर्शन, आकाशवाणी, बरेली, रामपुर से प्रसारण।
ऑन लाइन कवि मंचों का संचालन आदि। बरेली में अनेक कवि गोष्ठीयों का संचालन।
उत्तर प्रदेश बुक ऑफ रिकॉर्डस में नाम दर्ज।ट्रॉफी प्रमाण पत्र प्राप्त।
संस्थापक अध्यक्ष।पीलीभीत मिड टाऊन जेसीस।वर्ष1986।
1988 वर्ष। उत्तर प्रदेश राज्य जेसीस उपाध्यक्ष।
1990। उ प राज्य जेसीस प्रशिक्षक।
संस्थापक अध्यक्ष
सेवा निर्वत एस बी आई अधिकारी सामाजिक क्लब।बरेली।2016 से 2018(वर्तमान में सरंक्षक पद पर आसीन)
जिलाध्यक्ष।भारतीय हिंदी सेवा पंचायत।बरेली।2020 से 2023।
वरिष्ठ उपाध्यक्ष।संस्कार भारती।बरेली
उपाध्यक्ष।सक्षम संस्था।बरेली
संयुक्त सचिव।मानव सेवा क्लब। बरेली
पूर्व सचिव।वरिष्ठ नागरिक कल्याण समिति।बरेली
कई अन्य साहित्यिक संस्थाओं में पदाधिकारी।
21 अगस्त 2020 को बरेली वरिष्ठ नागरिक सामाजिक क्लब।बरेली की स्थापना।
03 सितंबर को विश्व जन चेतना ट्रस्ट
भारत के जय जय हिंदी बरेली मंडल
प्रखंड की स्थापना तथा बरेली जिले व
मंडल के अध्यक्ष के रूप में मनोनयन।
लगभग 24 व्हाट्सएप ग्रुप के समूह नियंत्रक।
जिला विज्ञान क्लब बरेली के नियमित 
निर्णायक मंडल के सदस्य।
2019 में अन्य बैंक सामाजिक क्लब की स्थापना बरेली में सहयोग प्रदत।
सेवा काल में राजभाषा प्रतियोगिता में
30 से अधिक पुरुस्कार प्राप्त।
*12(अ)* विशेष अभिरुचि। बचे हुए अथवा बेकार सामान से विभिन्न प्रकार के हैंडिक्राफ्ट बनाना।
क्विज़। सभी प्रकार की क्विज स्वयं बनाना व
क्विज का संचालन/आयोजन करना।
*13*. संप्रति: सेवा निर्वत प्रबंधक।भारतीय स्टेट बैंक।बरेली।वर्ष 2010..........
चीफ आफ इंटरव्यू बोर्ड। महेंद्रा बैंक कोचिंग।बरेली।वर्ष 2011 से 2017 तक।
*14*. मोबाइल संख्या: 9897071046
8218685464
*15* . व्हाट्सप्प संख्या : 9897071046
*16*. ई मेल : kapoorsk32@gmail.com
Skkapoor5067@ gmail.com

।।हर दिन इक़ नया संग्राम
है जिन्दगी।।
।।विधा।।मुक्तक।।
1
बस सुखों का  ही आराम
नहीं है जिंदगी।
दुःखों का ना नामोनिशान
नहीं है जिंदगी।।
संघर्षों का   दाम वसूलती
भी ये जिंदगी है।
गमों पर     लगा    विराम
नहीं है जिंदगी।।
2
ऐशो आराम का तामझाम
नहीं है  जिंदगी।
खाली खुशियों का पैगाम
नहीं है जिंदगी।।
कभी   खुशी   कभी  गम
का ही नाम यह।
कोशिशों का   ही  मुकाम
है यह   जिंदगी।।
3
हर सुख का    मिला जाम
नहीं है जिंदगी।
बस    यूँ    ही      गुमनाम 
नहीं है जिंदगी।।
संघर्ष की   आग   पर  तप
कर बनता है सोना।
बसअपने स्वार्थ से ही काम
नहीं है जिंदगी।।
4
सुख दुःख का छाया   घाम
है यह    जिंदगी।
हर दिन इक़   नया   संग्राम
है यह   जिंदगी।।
अपने लिए   नहीं   दूजों के
लिये भी जीना यहाँ।
सरोकारों का     चारों  धाम
है  यह   जिंदगी।।

रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"
बरेली।।।।
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

।।हमारे बुजुर्ग।।दुआओं की
सौगात है, बुजुर्गों के पास।।
।।विधा।।मुक्तक।।
1
क्षमा दुआ अनुभव और  आस,
है बुजुर्गों    के  पास।
बहुत ही  जिम्मेदारी  अहसास,
है बुजुर्गों   के  पास।।
छोटे बड़ों का ध्यान   और करें, 
घर की रखवाली  भी।
संस्कृति,  संस्कारों  का वास है,
बुजुर्गों        के  पास।।
2
बहुत  दुनिया    देखी   बड़ों  ने,
उनसे  ज्ञान    लीजिये।
उन्होंने  किया    लालन  पालन,
उन पर   ध्यान  दीजिए।।
उनके मान सम्मानआशीर्वाद से,   
संवरताआपका भी भाग्य।
आ जाता  कुछ  चाल   में  अंतर, 
नही   अपमान   कीजिये।।
3
हर किसी  के लिए खूब जज़्बात,
हैं   बुजुर्गों    के  पास।
अनुभवों की   इक लंबी    बारात, 
हैं बुजुर्गों     के   पास।।
दिल है   दिमाग है     हर  बात है,
पास    बुजुर्गों      के।
दुआओं ही दुआओं की   सौगात,
है    बुजुर्गों  के   पास।।
4
पैसे की   तो      बहुत    कदर  है,  
बुजुर्गों     के    पास।
बहुत ही ज्यादा   पारखी नज़र है,
बुजुर्गों    के     पास।।
रखते  तजुर्बा हर मौसम  बरसात,
का    बुजुर्ग     हमारे।
एक पूरी   जिन्दगी  का   सफर है,
बुजुर्गों    के     पास।।

रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"
बरेली।।
मोब।।            9897071046
                     8218685464


*।।समाज,राष्ट्र का सजग*
*सतर्क प्रहरी,पत्रकार।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
कभी मीठा तो कभी
चीत्कार लिखता है।
कभी विपक्ष  कभी
सरकार लिखता है।।
कलम का  सिपाही
रुकता नहीं   कभी।
हर बात   वह    तो
बार बार लिखता है।।
2
कभी आरपार कभी
कारोबार लिखता है।
कभी विसंगति और 
प्रचार लिखता    है।।
समाज राष्ट्र  के  हर
बिंदु को छूती कलम।
हर विषय की    वह
भरमार   लिखता है।।
3
कभी ओज तो कभी
श्रृंगार     लिखता है।
कभी खिजा   कभी
बहार     लिखता है।।
खुशी गम के     हर
पहलू को  छूता  वो।
कभी जीत तो कभी
हार    लिखता     है।।
4
कभी व्यंग तो कभी
सरोकार लिखता है।
कभी शांति    कभी
अंगार लिखता   है।।
छू जाती है  कलम
दिल को       कभी।
जब भावनाओं का
संसार  लिखता  है।।
5
सब पढ़ते हैं कि वो
जोरदार लिखता है।
कभी दबके या बन
सरदार लिखता  है।।
हर हालात  को  वो
लिखता समझ कर।
सब कोई और नहीं
पत्रकार लिखता है।।
*रचयिता।। एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।         9897071046
                    8218685464


4- *।।ग़ज़ल।। संख्या  107 ।।*
*।।काफ़िया।। मक/नक।।*
*।।रदीफ़।। दवा बन जाये।।*
1
ऐसा हो  जख्म की नमक दवा बन जाये।
ऐसा हो आँखों की चमक दवा बन जाये।।
2
जख्म दिल के भर जायें बस मीठे बोल से।
बस दर्द की धमक ही कोई दवा बन जाये।।
3
बात पीछे छूट जाये   दिमागी तनाव की।
जिन्दगी की जनून ए रमक दवा बन जाये।।
4
सोच बनेआदमी के दिल की इतनी अच्छी।
चेहरे का तेजओ दमक ही दवा बन जाये।।
5
हंस कुछ ऐसा हो कि बेमेल भी मेल ही लगे।
हार जीत की  सनक भी दवा बन जाये।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।   9897071046
                 8218685464


5- ।।रचना शीर्षक।।*
*।। पहले बिखर कर ही आदमी*
*फिर निखर कर आता है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
आशा का   दीप  सदा
जलाये रखना।
प्रभु में     आस्था सदा
बनाये रखना।।
कभी   मंद      ना पड़े
उम्मीद की लौ।
काम में    लगन   सदा
लगाये रखना।।
2
कभी      संवेदना   का
साथ   छूटे ना।
विश्वास का      कदापि
हाथ    छूटे ना।।
अधीरता        हो    पर
जमीर जिंदा रहे।
तरकश  से     अनुचित
वाण छूटे ना।।
3
नैतिकता   की   लकीर
मिटने ना पाये।
दिल से दूसरों   की पीर
मिटने ना पाये।।
संघर्ष रहे  और    शक्ति
रहे  लड़ने  की।
दुखों में  भी     कर्मवीर
मिटने ना  पाये।।
4
कठिन परिश्रम    ही  तो
आत्मबल लाता है।
तपिश में तपकर  व्यक्ति
सोना बन पाता है।।
उत्साह उमंग   जीवन में
मंद ना हो     कभी।
बिखर कर  ही    आदमी
निखर कर आता है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।।    9897071046
                    8218685464

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खतरे में लोकतंत्र का चौथ स्तम्भ

लोकतंत्र की ख़ास खासियत   जन जन तक 
जन जन का संवाद 
अभिव्यक्ति की आजादी
सूचना का अधिकार।।
न्याय पालिका, कार्यपालिका,
विधायिका लोकतंत्र महिमा
महत्व सार।।                      

चौथा संवाद
संचार का माध्यम मिडिया
का संसार।।
गांधी जी के तीन बन्दर आज
प्रसंगिग उल्टा दिखता मिडिया
सच नहीं देखता सच
नहीं दिखाता सच का कर देता
है त्याग।।                             

सच बोलने की हिम्मत
गर दिखलाता बतलाता कोईं
सच सिद्धान्त पर हो जाता
बलिदान।।

मिडिया के रूप अनेको प्रिंट मिडिया इलेक्ट्रानिक मिडिया सोशल मिडिया ना जाने कितने
अवतार।।

पीत पत्रकारिता टी आर पी
वायरल का कारोबार।।

सच को झूठ ,झूठ को सच का
खेल बनगया तमाशा लोकतंत्र
का चौथा अलम्बरदार।।

जन जन में अब अवधारणा
कौन सुनाएगा सच आज 
कोई बिक जाता है कोई बिकने
का करता इंतज़ार।।

ये कुछ सचाई है मगर आज भी
संजीदा संवेदनशील है लोक
तंत्र का चौथा स्तम्भ की धार।।

कितनो ने जान गवाई सच्चाई का
छोड़ा नहीं कभी भी साथ
सच के साथ खड़ा मौलिक
मूल्यों का लोक तंत्र का मजबूत
चौथा स्तम्भ मिडिया संवेदनशील बाज़।।                            

मिडिया लोकतंत्र का अतिमहत्वपूर्ण लोकतंत्र का आधार।।

मिडिया चाहे जो रातो रात
बाना दे किसी को महान
चाहे तो नैतिकता के गांधी
और महात्मा को भी कर दे शर्मशार।।

लोक तंत्र में मिडिया अहम
कलाकार किरदार।।

गर शासन प्रशासन को
रखना है संवेदन शील 
जन जन का हो कल्याण
जन जन को अधिकारों का
हो ज्ञान मिडिया स्वतंत्र निष्पक्ष
निडर निर्भीक लोक तंत्र अभिमान।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

हिन्दी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभाकमनएं और बधाई।

हिन्दी शिक्षा है  आधार तुम्हारा
कलम  बना  है  हथियार प्यारा,
कांटो    में    राह    बनाते    हो
तुम   सच्चाई    दिखलाते   हो।

निर्भय निश्छल हो पथ पर चलकर
सामाजिक दर्दों को सामने लाते हो
कितने उलहनाओं को  सुन सहकर
संवेदनाओं को नई दिशा दे जाते हो।

कैसा  भी  हो   संकट   सारा
राष्ट्र  समर्पण   भाव   तुम्हारा
लोकतंत्र  के  चौथेस्तम्भ  की
भूमिका का है कर्तव्य तुम्हारा।

बिना  डरे  कर्म पथ  पर  चल पड़े
कलम का प्रभाव लिए निकल पड़े
दृढ़  निश्चय   संकल्प   बिना   भय 
भाषा की मर्यादा में खड़े रहे अड़े।

कभी दर्द बन कभी अश्रु बन
अन्याय  नहीं   सह  पाते  हो
थाम लेखनी निकल पड़े जब
उन्नत वेग  से  बढ़ते  जाते हो।

हिन्दी शिक्षा है  आधार तुम्हारा
कलम  बना  है  हथियार प्यारा,
कांटो    में    राह    बनाते    हो
तुम   सच्चाई    दिखलाते   हो।
     
        - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावनमंच को प्रणाम ,आज का विषय ...धूम्रपान ,रचनाओं का अवलोकन करें....                                 पान तौ नीकु लगै कतना वतना हमते नहि लिखि पढि़ जाई।।                           पान चढा़ देवी देव सदा नित होय नही बिनु याके पुजाई।।                                  पान बतावतु है मुखभूषन  शोभा कहाँ बिनु या पहुनाई।।                                  भाखत चंचल नाशु भयो जबु आय मिली यहु धूम्र बुराई।।   1।।                     पान विभूषित है रंगरूप जो आदरू औ सम्मान बढा़वै।।                                       आवैं जौ द्वारे कोऊ मेहमानु  तौ स्वागतु मा जलपानहिं धावै।।                             मुल आवै शुरूर जबै मनमा  जबु पान संगै मदपानहिं आवै।।                           भाखत चंचल होवै बहूत जौ नाली गिरैं  अरू शीश झुकावैं।।2।।                         पूत औ  पतनी दुआरे लखैं अरू स्वामी खडे़ मधुशाला रखावैं ।।                        खाता जौ बैंकु कय खाली परै  तौ खेते मकान कय नम्बर लावैं ।।                         कछू दिनु पीवै मधुपमहारानी बादि मँहय वै वनका पी जावैं ।।                       भाखत चंचल काव कही बिनु भोजनु नारि अपर घर धावैं ।।3।।                         आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।ओमनगर

मधु शंखधर स्वतंत्र

*सुप्रभातम्... जय श्री राम..*🙏🚩
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *अख्यायिका*🌹🌹
-----------------------------------
◆ दिखलाती  अख्यायिका, जीवन के सब खेल।
जमींदार की धारणा, दीन हीन का मेल।
सभी बिन्दु की बात हो, अभिव्यक्ति हो मूल,
रुचि आधारित जब पढ़े, मन की दौड़े रेल ।।

◆ मुंशी जी अख्यायिका , रही कृषक ही नाम।
दो बैलों की बात पर, ईदगाह की शाम।
सभी लोकप्रिय हैं यहाँ, पढ़ते देकर ध्यान।
शिक्षाप्रद होती सदा, सद् चरित्र शुभ काम।।

◆ एक लिखो अख्यायिका ,जिसका जीवन नाम।
बच्चों को भाए सतत, पढ़े सुबह से शाम।
पाएँ जीवन सत्य वो, समझें निज उद्देश्य,
यही भावना हो सुखद, लेखक का सुख धाम।।

◆ भाव भरी अख्यायिका, देती है संदेश।
सदा सहेजो संस्कृति, जैसे सुंदर केश।
सुंदर भावों से सजी, रामायण में बात।
अमर बाल्मीकि कर गए, अवध और अवधेश।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*30.05.2021*

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शीर्षक-- लब्ज़ों की हकीकत

लब्जों का दिल से रिश्ता
लब्ज़ दिल गहराई जज्बात है।।
लब्ज़ दिल परछाई चेहरा
लब्जों से बनते विगड़ते जिंदगी का
राज है।।                                       

ये लब्ज़ आईने है इंसानी हद हस्ती
लब्ज दिल की सच्चाई बया हाल है।।
लब्ज़ इंसानी हद हकीकत दासता वास्ता ये लब्ज़ आईने है इंसान इंसानियत पहचान है।।
लब्ज़ दिल जज्बे का तूफ़ान
दोस्त दुश्मन की शान आन
ये लब्ज़ आईने है आबरू बेआबरू बताते बनाते है।।
लब्ज़ विखरे दिल को भी 
जोड़ मोहब्बत के दामन
समेटता ये लब्ज़ आईंने है
दिल आईने का सेहरे है।।
लब्ज़ों से सजते जंग के मैदान
दोस्त दुश्मन ,दुश्मन दोस्त अंदाज़
मोहब्बत महफिलो कि रौशनी है।।
ये लब्ज़ आइने है जिंदगी की
चाहत की राह दिखाते इश्क इबादत की ईमान है।।
असली नकली का फर्क 
लब्ज़ों की दुनियां का यक़ी
सच ये लब्ज़ आईने है आवाज़
दिल मे उतरते है।।
लब्ज़ों की दुनियां ही दिन
ईमान कुदरत की शान
ये लब्ज़ आईने है दिख
जाता जिसमें दुनियां जहाँ है।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

रामकेश एम यादव

दौलत के भूखे!

अवसर तलाशती ये कैसी दुनिया,
सांसों को चुराये,ये कैसी दुनिया।
दौलत  के   भूखे  दरिंदे  यहाँ  पे,
ऐसे मक्कारों से सजी है दुनिया।

सोती फांकों की चिता, कुछ दुनिया,
दो पाटों के बीच ये पिस रही दुनिया।
खुलेआम बिकती औरतों की अस्मत,
सूली रोज चढ़ती-उतरती वो दुनिया।

ऐसी दुनिया में जीकर क्या करेंगे,
ऐसी दुनिया में रहकर क्या करेंगे?
पल -पल जो बेचे अपने ईमान को,
बदसूरत दुनिया लेके क्या करेंगे?

एक खिलौने के जैसे बना आदमी,
ऊपर से केवल है ये सजा आदमी।
जिन्दा नजर जैसे ये आता नहीं,
बिना सांस के ये चल रहा आदमी।

इंसानियत का मतलब कुछ भी नहीं,
पैसे के अलावा और कुछ भी नहीं।
मुट्ठीभर लोगों के हाँथों में क़ैद,
हम सबका मुकद्दर और कुछ नहीं।

दो गज जमीं, दो गज कफन तक नहीं,
बे-कंधे की लाशें दफ़न तक नहीं।
तैरनी लगी कितनी बदनसीब लाशें,
उन लाशों के मुख तक अगन तक नहीं।

हरिश्चंद्र राजा न ईमान से डिगे,
सिंहासन छोड़ राम वन को गए।
हो क्या गया आजकल के इंशा को,
जिसके लिए भगत सिंह फांसी चढ़े।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी

*राम बाण🏹 सांस रोती रही*
     आज के इस दौर में मुश्किल नहीं हैं काम।
         आदमी बिकने लगे बिकने लगे हैं नाम।

              बोल गूंगो के यहाँ अंधे दिखायें राह।
             दौड़ लँगड़ों के यहाँ,लूले बढ़ायें चाह।
     दोष नजरों का उन्हें दिन को दिखायें शाम।

          द्वंद है इस बात का खुद‌के सतायें लोग।
         कुछ हवाओं साथ थे जिसने बढ़ाये रोग।
          आदमी को तौलते हैं कौड़ियों के दाम।।

            देखता आकाश धरती में हुआ हैं शोर।
              दूर क्यों अपने हुए बेचैन क्यों हैं भोर।
             सांस क्यों रोती रहीं कैसे हवा के नाम।।

                राजसी अंदाज में चलने लगे हैं बोल।
            राज की क्या बात है जो पीटते हैं ढोल।
                 रंग भी बदले हुए जपने लगे हैं राम।।

                  पेड़ ये खामोश हैं पत्ते यहाँ हैं मौन।
            ‌ भूलती सड़कें यहाँ जाने कहाँ हैं कौन।
         बात अनशन की करें सड़कें लगायें जाम।।

          साख की इस धुंध में बदली हुई हैं छाँव।
            याद फिर आने लगे अमराइयों के गाँव।
         धूप का सौदा हुआ बिकने लगी हैं शाम।।

       दिन न बदला है न बदली है यहाँ पर रात।
          पर‌ बदल जाते यहाँ इंसानियत जज्बात।
            मौत के इस खेल में कैसे हुये बदनाम।।
‌ *डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी*

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...