अरुणा अग्रवाल

नमन मंच,माता शारदे,गुणीजन।
शीर्षक-बरखा-रानी
01।06।2021।


षट् ऋतुओं का आवाजाही,
मनभावन,सुखद,परिवर्तन,
ग्रीष्म तपिश बाद वरखा-रानी,
शबनमी धरणी,श्यामल-धारी।।


हराभरा खेत,खलिहान की शोभा,
प्रीतिकर,अनुकूल किसान-आशा,
फसल लहराता देखके प्रसन्न-मित
बुन्दा बान्दी वरखा वहार,सुहानी।। 


कवि उठाऐ कलम,कागद,
कुछ करने प्रकृति-चित्रण,
देखके शस्य श्यामल ओढनी,
उपमा अलंकार का मन,मानी।।


 काश की ऐसा नजारा,दीर्घावधि,
होतो जनमानस में होगा,उल्लास,
आऐगा वारिश में पर्व-पर्वाणि,
नानाविध पकवान का लुत्फ़।।



और अब लॉकडाउन से अवकाश,
गृहिणी बनाएं व्यंजन,पसंद,पति,
सुत,सुता का भी रखें ध्यान सघन,
वरखा-रानी ने ठंड़क,लाई,तन-मन।।


भूलके आधि,व्याधि का आक्रोश,
ललना-लली,समर्पित,घर-संसार,
मनोरंजन,आमोद,प्रमोद,भरपूर,
अहो!कितना मोहन है यह बरखा।।!

अरुणा अग्रवाल।
लोरमी।छःगः।🙏

डॉ दीप्ति गौड़ दीप

नशा मुक्ति
नशा नाश कर देता, सारे जीवन के उजियारे को l
पास नहीं बिठलाता कोई, एक नशे के मारे को l
1.भांग,चरस,कोकीन, तम्बाकू, ब्राउन शुगर सब ज़हरीले l
पल में पागल हो जाता है, मद्य का प्याला जो पी ले l
घर की बर्बादी का सूचक, समझो सहज इशारे को l
2.आय से ज्यादा व्यय हो जाता, आमदनी घट जाती है l
जीवन शैली मुख्य धारा से, शनै:-शनै:  कट जाती है l
नशेबाज़ खुद खाक़ मिला देता, सम्मान के तारे को l
3.आज नशे का चलन अनोखा, दुनिया में चल बैठा है
सबके सिर पे भूत नशे का, लेकर बोतल बैठा है l
रोगग्रस्त हो रहे हज़ारों, देखो रोज़ नज़ारे को l
4.गली-गली में खैनी गुटके, बच्चे खाते फिरते हैं l
ड्रग्स नशे के ले-लेकर, तन की बर्बादी करते हैं l
दुनिया है हैरान नशे में, त्यागो इस अंधियारे को l
5.सभी नशे के उत्पादन पर, 
रोक लगा दो सरकारी  l
देश बचाना है तो जल्दी, यह आदेश करो जारी l
‘दीप” करो उपचार, गिरा दो आज नशे के पारे को l
© स्वरचित डॉ दीप्ति गौड़ दीप

सुनीता असीम

कुछ भी हो बस खिलखिलाते जाइए।
जिंदगी  के  सुख      उठाते  जाइए।
****
ख़ार सा जीवन हो जीते  क्यूं भला।
गुल खिला इसको सजाते  जाइए।
****
जुस्तजू जिनकी मुहब्बत हो फकत।
प्यार उनको भी सिखाते जाइए।
****
मत भरो इसमें कभी मायूसियाँ।
प्रेम के दीपक जलाते जाइए।
****
एक होकर हम रहें अद्वैत से।
राज हमको वो बताते जाइए।
****
सुनीता असीम
३१/६/२०२१

नूतन लाल साहू

एक प्रश्न प्रभु जी से

हे परम पिता परमेश्वर
तुम्हीं ने बनाया है
चंदा सूरज तारे, नदिया नारे
और उजियारा
पर कैसे किया,सुख दुःख का बटवारा
ये सोच सोच,मेरा मन हारा
मनुष्य को ही क्यों बड़ा दर्द दिया
एक दो दिन की बात नहीं है
मनुष्य सदियों से रोता आ रहा है
कोई कोई ने सोया,चैन से तो
अनेकों ने रात में जगकर
बिता रहा है
कैसे सजाया है,मनुष्य के
घर की फुलवारी को
ये सोच सोच मेरा मन हारा
पूछे मेरा मन बंजारा
मनुष्य को ही क्यों बड़ा दर्द दिया है
ये दुनिया इक बाजार है
घायल की गति घायल जाने
और न जाने कोई
दुखों से भरी हुई,भारी गठरी
मनुष्य हर युगों में
ढो रहा है
आपने भी तो मनुष्य के रूप में
इस धरा पर,अवतार लिया है
अनेकों कष्टों को सहा है
फिर भी मनुष्य को
बड़ा ही दर्द दिया है
कैसे किया,सुख दुःख का बटवारा
ये सोच सोच मेरा मन हारा
पूछे मेरा मन बंजारा
मनुष्य को ही क्यों बड़ा दर्द दिया है

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ-4
  *दसवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
अस कहि नारद कीन्ह पयाना।
नर नारायन आश्रम जाना ।।
     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भ्राता।
     अर्जुन बृच्छ तुरत संजाता।।
तरु यमलार्जुन पाइ प्रसिद्धी।
जोहत रहे कृष्न छुइ सुद्धी।।
    नारद रहे किसुन कै भक्ता।
    निसि-बासर किसुनहिं अनुरक्ता।।
जानि क अस किसुनहिं लइ ऊखल।
खींचत गए जहाँ रह ऊगल ।।
     यमलार्जुन बिटपहिं नियराई।
     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भाई।।
निज भगतहिं बर साँचहिं हेतू।
बिटप-मध्य गे कृपा-निकेतू।।
      रसरी सहित गए वहि पारा।
       अटका ऊखल बृच्छ-मँझारा।।
रज्जु तानि प्रभु खींचन लागे।
उखरि गिरे तरु मही सुभागे।।
     जोर तनिक जब लागा प्रभु कै।
     जुगल बिटप भुइँ गिरे उखरि कै।।
प्रगटे तहँ तब दूइ सुजाना।
तेजस्वी जनु अगिनि समाना।।
दोहा-दिग-दिगंत आभा बढ़ी,प्रगट होत दुइ भ्रात।
        करन लगे स्तुति दोऊ,परम भगत निष्णात।।
                  डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

क्या अजूबा वो मेरे साथ किया करते हैं
दूर रह कर भी निगाहों में रहा करते हैं

क्यों मेरे सामने ख़ामोश ज़ुबां हैं अब तक
आप दुनिया से तो हँस हँस के मिला करते हैं 

हम बनाते ही रहे ख़्वाबों में कई ताजमहल
इनको मिस्मार वो कर कर के हँसा  करते हैं 

हर मुलाकात में तोड़ा है हमारे दिल को 
फिर भी हम हैं जो बराबर ही वफ़ा करते हैं

उनके दीदार को प्यासी हैं निगाहें कबसे 
उनकी आमद के लिए रोज़ दुआ करते हैं 

हमने हर रस्म मुहब्बत की  निभायी फिर भी 
 और वो हैं जो हमेशा ही जफ़ा करते हैं

आप नाराज़ न हो जायें किसी पल हमसे 
हम यूँ हर फ़र्ज़ मुहब्बत के अदा करते हैं 

माना दुनिया में बुरे लोग बहुत हैं  *साग़र*
फिर भी कुछ लोग यहाँ सबका भला करते हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
15/5/2021
2122-1122-1122-22

कुमकुम सिंह

शीर्षक- बादल

देखो- देखो बारिश है आई,
रंग बिरंगी तितिलियाँ,
अपने पंखों को है फैलाए।
आसमान में इंद्रधनुष सतरंगी,
 प्रकृति के रंग में रंग जाए
  
ठंडी ठंडी हवा फुआरो के संग , 
मचल- मचल के अपनी शीतलता 
मन को है खूब लुभाए
जैसे तपती धूप में ,
मिली हो पेड़ों को बादल के साये।

बैरन पिया की याद सताए,
 पी से मिलन को पिया है आए।
कोयल की मीठी कूक दिल को है भाए
सूरज की किरने छुप-छुपकर ,
बादल से हैं मिलने आये।

डाली डाली लिपट रही है ,
पंखुड़ियां है मुस्कराई,
कलियों ने चारों तरफ ,
मंद-मंद खुशबू बिखराए ।
 
बाघ बगीचों  फूलों से
 है महकाते
भौरें मदमस्त होकर हर तरफ  गीत
 गुनगुनाए।
   देखो देखो बारिश है आई।
  
    कुमकुम सिंह

डा. नीलम

*हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता*

मुझको है लगन आसमां में छेद करने की
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

राज ए दिल किसी को बता भी नहीं सकता
ज़ख्म कितना है गहरा दिखा भी नहीं सकता

रात भर चॉंद सफर कहॉं-कहॉं करता रहा
क्यों रही मावस  रात भर बता भी नहीं सकता

कहता रहा वो दास्तां जख्में जिगर की अपनी
ऑंसूं क्यों ऑंख से उसके न गिरा बता भी नहीं सकता

गली-गली बन रांझा फटेहाल वो घूमता रहा
सदा लैला को क्यों न दे सका
बता भी नहीं सकता

महफ़िल में वो सबके दिलों की धड़कन रहा
मगर उसकी धड़कन पे नाम किसका है बता भी नहीं सकता।

   ‌‌   *हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता*

मुझको है लगन आसमां में छेद करने की
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

राज ए दिल किसी को बता भी नहीं सकता
ज़ख्म कितना है गहरा दिखा भी नहीं सकता

रात भर चॉंद सफर कहॉं-कहॉं करता रहा
क्यों रही मावस  रात भर बता भी नहीं सकता

कहता रहा वो दास्तां जख्में जिगर की अपनी
ऑंसूं क्यों ऑंख से उसके न गिरा बता भी नहीं सकता

गली-गली बन रांझा फटेहाल वो घूमता रहा
सदा लैला को क्यों न दे सका
बता भी नहीं सकता

महफ़िल में वो सबके दिलों की धड़कन रहा
मगर उसकी धड़कन पे नाम किसका है बता भी नहीं सकता।

   ‌‌   डा. नीलम

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिम्मेदार इंसान---

नशा जिंदगी का अभिशाप
नशा नाश विनाश को देता
दावत नशा जिंदगी का पाप।।
नशा दौलत का ,ताकत का,
शोहरत का ,हुश्न का नशा
अंतर मन का खोखला
अभिमान।।
नशा शराब धीरे धीरे गलता
इंसान शराब दौलतमंद का
नशा दारू ठर्रा महुआ गरीब
का अहंकार।।
गांजा भांग चरस अफीम
हीरोइन हसीस जाने क्या
क्या नाम नही मिलता
परम्परागत नशा तो ड्रग
एडिक्सन नए युग का नशा
नायाब।।
खैनी गुटका पान धूम्रपान
तंबाकू बीमारी पैसा देकर
खरीदता इंसान।।।                       

अब तो ऐसे
हालात नादान सिगरेट
बीड़ी का कस खिंचते वर्तमान
भविष्य के कर्णधार।।         

पर्यावरण प्रदूषित प्रकृति
परेशान ना जाने कितनी
बीमारिया प्रदूषण पर्याय।।

तम्बाकू खैनी बीड़ी सिगरेट
जीवन में छैनी धीरे धीरे
खोखला करती  जिंदगी
मजधार में ही निबट जाता
इंसान।।

बीड़ी सिगरेट के धुएं में 
पल प्रहर जलता घुट घुट
कर मरता इंसान।।

कैंसर जैसी भयंकर बीमारी
को बैठे बैठे दावत देता सुर्ती
तंबाकू के सेवन से इंसान।।

पीताम्बर का आवाहन 
युग विश्व के मानव सुनो
ध्यान लगाय सुर्ती तंबाकू
बीड़ी सिगरेट से तौबा 
कसम उठाओ आज।।

बीबी बच्चों पर तो कुछ
रहम करो जिनका जीवन
तुमसे तुम ही हो उनके जीवन
खुशियों के नाज़।।
असमय अगर बीमारी के
बन गए ग्रास महंगा बहुत
इलाज इलाज में ही जाते कंगाल ।।
जीवित गर रह पाए तब
भी जीवन भार नही रहे
यदि परिवार झेलता सजा
दर दर फटेहाल।।

नौबत ही क्यो आये तुम
जिम्मेदार इंसान ऐसा कुछ
भी ना पालो सौख नशा
जीते जी ही मर जाए चाहत 
का परिवार।।                   

कुछ तो  रहम करो खुद पर ना आये कोई बीमारी आफत जंझाल।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावन मंच को प्रणाम, धनवन्तरि शतक भाग दो के आगे के भाग का अवलोकन करें****""*******""*"पेटनु रोगु अनेक भरे  जेहिमा  कछू कै हम नामु गनाई!!                                          आध्मान अपच या कही अफरा मचली या डकार का काव बताई!!                       गैसु खुलै तौ लगै असकिनु मानौ मध्य सभानु मा आफत आई!!                      भाखत चंचल उलटी कही या कही जौनु पेचिस धाय जो आई!! 1!!                 भगन्दरु अर्श कही  हौं जाकौ  केहू केहु जे बवासीर कहाई!!                             आंव गिरै चाहै होय सफेद या रक्तम रक्त जे ढेरु लगाई!!                               लीवर याकि खराब कही याकि गोला जे वायु कै नाव कमाई!!                         भाखत चंचल और बहूत जो राज अपरू मंहय दुजो  कहाई!! 2!!                  अर्क कही तुलसी पंचामृत जाहि रसायन वैद्य बताई!!                          एक्ट कही हौं गैस बदे  जे कैप्सूलनु आवतु सांई!!                                    सीरपु स्मृति लैफु कही याकि जौनु सी आई डी नामु गनाई!!                            भाखत चंचल एक्ट आक्सीडेन्ट  या लाइव सीरपु नाव गनाई!! 3!!                 कैप्सूलहु पाइल्स एक्ट कही याकि पाउडर हू लै आवहु भाई!!                           सीरप लिवो लिन ही गनी  अरू पथ्यनु ध्यानु ते खावहु सांई!!                           पथ्य परहेज करौ कछू दिवसु औ टेबलेट त्रिफला को साथहू लाई!!                  भाखत चंचल जोरू कहौं  तबु उत्तिमु सेहतु पावहु सांई!! 4!!                            नारी कही जे तौ आधी अबादी   विशेषनु  पार्टी जेशासनु आंई!!                            रोगु मा नैकहूं आई कमी एहि कारनु आजु हौं रोगु गनाई!!                              मासिक होय अनियमित याकी या पानी सफेद या लाल गनाई!!                             भाखत चंचल गोद भरी नहि झंखत सूनी जे ताहि जनाई!! 5!! आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल, ओमनगर सुलतानपुर उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल फोन::::::8853521398, 9125519009!!

कुमार@विशु

माँ का कर्ज चुकाना है।
जिसके  आँचल  के छाँव तले हम बड़े हुए,
जिसकी  मिट्टी  में  खेलकूदकर  खड़े  हुए,
उसके पाँव की मिट्टी को माथे से लगाना है,
अब  हमको भारत माँ का  कर्ज चुकाना है।।

हरियाली धानी कपड़ों को हमने सदा जलाया,
नष्ट किये सारे  वन-उपवन सुनापन अपनाया ,
वृक्ष लगाकर फिर से धरती माँ को सजाना है,
अब  हमको भारत माँ  का  कर्ज  चुकाना  है।।

वो जननी नौ माह हमे निज कोंख में रखती है,
बूँद-बूँद निज रक्त से तन को सिंचित करती है,
पीड़ा  हँसकर  झेल  गयी उसे नहीं रूलाना है,
उस जननी माँ के हित में कुछ फर्ज निभाना है।।

जन्म से लेकर  मृत्यु तलक जिसने है अन्न दिया,
जिसके रजकंण में उठ गिरकर हमने साँस लिया,
झूलसी  केसर  की  क्यारी  को  फिर महकाना है,
अब   हमको  भारत  माँ  का   कर्ज  चुकाना  है।।

उत्तर   में   गिरिराज  हिमालय   पहरा   देता  है,
दक्षिण  में  सागर  निसदिन चरणों को धोता  है ,
भारत  माँ के  श्री  चरणों  में  शीश  झुकाना है,
अब हमसबको  भारत  माँ  का  कर्ज चुकाना है।।

रक्त की नदियाँ बह जाएँ कम शीश नहीं होंगे,
माँ शान अगर गिर जाए तो जीकर क्या करेंगे,
दुश्मन की छाती पर चढ़ ध्वज तेरा फहरान है,
अब  हमसबको भारत माँ का  कर्ज चुकाना है।।

✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना

सुधीर श्रीवास्तव

भावनाएँ बारिश की
****************
ये भी अजीब सी पहली है
कि बारिश की भावनाओं को तो
पढ़ लेना बहुत मुश्किल नहीं
समझ में भी आ जाता है
पढ़कर समझ में भी आता है।
परंतु भावनाओं की बारिश
कब, कहाँ कैसे और
कितनी हो जाय ,
कोई अनुमान ही नहीं।
हमारी ही भावनाएं
कब, कहाँ, कैसे और कितनी
कम या ज्यादा बरस जायेंगी
हमें खुद ही अहसास तक नहीं।
भावनाओं की बारिश के
रंग ढ़ग भी निराले हैं,
अपने, पराये हों या दोस्त दुश्मन
जाने पहचाने हों या अंजाने, अनदेखे
जल, जंगल, जमीन, प्रकृति,
पहाड़, पठार या रेगिस्तान
धरती, आकाश या हो ब्रहांड
पेड़ पौधे, पशु पक्षी ,कीट पतंगे,
झील, झरने,तालाब ,नदी नाले
या फैला हुआ विशाल समुद्र,
सबकी अपनी अपनी भावनाएं हैं
और सबके भावनाओं की
होती है बारिश भी।
इंसानी भावनाएं होती सबसे जुदा,
इन्हें और इनकी भावनाओं को
न पढ़ सका इंसान तो क्या
शायद खुदा भी।
भावनाएं और उसकी बारिश की
लीला है ही बड़ी अजीब सी।
● सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

एस के कपूर श्री हंस

*।।।।।रचना शीर्षक।।।।।।।।*
*धूम्रपान निषेद्ध   दिवस  31* 
*मई  पर   शपथ।।*
*।।।।विधा।।।।।मुक्तक।।।।।*

1
तम्बाकू, गुटका, पान मसाला
की अब  बस  है  आज    से।
कैंसर कारक इन नशों की तो
मानो अब तज है  आज   से।।
आज ही क्या सदैव जीवन में
आगे से उपयोग  नहीं   करेंगें।
प्रण करते  हमसब    धूम्रपान
निषेद्ध दिवस सच हैआज से।।
2
तंबाकू उत्पादों  का     प्रयोग
मानो जहर     का  सेवन   है।
जीवन का तो मानो कि  मौत
के दरिया में   खेवन          है।।
आज अभी से  छोड़  दीजिए
आदत   बुरी   धूम्रपान     की।
बेमौत मरता आदमी    बचता
नहीं     कोई   नाम   लेवन  है।।
*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*"श्री हंस"।।।।*
*बरेली।।।।।।।।।*
*31।।।।05।।।।।2021।।।*
मोब  9897071046।।।।
8218685464।।।।।।।।।

अरुणा अग्रवाल

नमन मंच,माता शारदे,गुणीजन,
शीर्षक-"आलमारी में रखें पुराने खत"
30।05।2021।


 मानव,मानवी स्रष्टा का श्रेष्ठ सृजन 
इनमें दिया है कला,मनन,कौशल,
ज्ञान,बुद्धि,विवेक,कागज,कलम,
ताकि लिख सकें मनका भावना।।


और यह सिलसिला,चलायमान,
मोबाइल से पहले खतका,परंपरा,
एक दूजे के लिऐ लिखता,सुबोध,
और खत के माध्यम से होता रूबरू।।

 नया नौ दिन ओर पुराना सौ दिन,
उसी तरह खत-पुराना है अनमोल
जब कभी फ़ूरसत,पढ़े ,सह-मन,
यादगारी लम्हा,देगा शुकून,अपार।।


चाहे वह बचपन-बन्धु,आत्मिय,
लिखा हो तन,मन,लगन से प्रिय,
जब कभी याद आऐ,पढ़े,खत,
अवश्य मिलेगा शान्ति-मुरार।।


 गहना,आभूषण तो फ़िर मिलेंगे,
पर वह खत,अतुल,गुमनाम न,
होने पाऐ,रखें विशेष-ध्यान,
आलमारी का बढ़ाता रहे मान।।


पाती को मत समझें महज,कागज
वह है बेशकीमती तोहफ़ा,मुचुकंद
सम्भालके रखो उसे आलमारी,में,
ताकि सुशोभित,मंड़ित सम,गहना।।


अरुणा अग्रवाल।
लोरमी।छःगः।🙏

डॉ. कवि कुमार निर्मल

अलमारी में रखे पुराने खत
    
अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज सुधिजनों  को बतानी थी।
कुछ लिखते खत में मन बाहर की, मिलने पर बातें होती जुवान थी।।

अब है चैटिंग की सुविधा अनंत, तब 'श्याही' होती भरवानी थी।
अनलिमिटेड डाटा है आज, तब कागज पर कलम चलानी थी।।

खत की बात निराली, लिख कर पत्र-मंजुषा में डाली  जाती थी।
कोने में सिमट एकांत देख, मन की कुछ बातें लिखी जाती थी।।

पहले तो दूरियां अक्सर रहती, पढ़ाई नौकरी की बातें पुरानी थी।
जबसे लॉक डाउन, रहना घर- बगल में बैठ चैटिंग फरमानी थी।।

आज अलमारी में रखे पुराने खत पढ़ यादों की बारात सजानी थी।
कपाट खोलते हीं, खतों से 'इत्र अल काबा'  की खुशबू आनी थी।।

एक खत मिला प्रियतमा का- उफ! दर्द भरी लम्बी एक कहानी थी।
विरह की अगन बह आँसुओं संग- चिट्ठी में पीड़ा लिखी पुरानी थी।।

गर्मी की तपिश हो या फिर जाड़े की ठिठुरन, बात  खतों में घोली थी।
बारिश की पहली फुहार से भड़की तिश्नगी- खत में वो  लिखती थी।।

कभी आँसुओं की धार टपकती दिखती- श्याही पसरी जो रहती थी।
कभी लिखती नाम खून से- मन की श्याही अगन से सूखी रहती थी।।

कुछेक पुराने अलमारी में रखे दबे-मुचड़े खत खोज- बातें तो कहनी थी।
मित्र भले छुपालें- हम हैं निश्छल- अनुभव की बातें यथावत् रखनी थी।।

अलमारी में रखे पुराने खत की बात आज  सुधिजनों को बतानी थी।
लिखते खतों में बात मन की कुछ औरों की लिख सारी  बतानी थी।।

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार 845438

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-लिहाज़
विधा-विधामुक्त
----------
थोड़ी सी लिहाज़ रक्खा तो करो,
बूढ़े मां बाप को अपने ज़रा देखा तो करो।

जिन्होंने ख़ुद की ख़ुशियाँ त्याग दी हों तुम्हें कामयाब बनाने में,
उनकी थोड़ी परवाह किया तो करो।

कभी सोचा है माँ बाप के आत्मसमान को कितनी चोट पहुँचती होगी,
जब अपने ही बच्चे उनको दर-दर की ठोकरें खाने पे मजबूर करते हों।

उस वक्त  माँ बाप भी ख़ुदा से यही कहते होंगे,
 कि ये दिन दिखाने के लिए कभी ऐसी औलाद दिया न करो।

बागबान जैसी फिल्म बनाई न जाती,
गर आज के दौर में ग़ैरत से भी बदतर संतान पाई न जाती।

रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

जया मोहन

आज तम्बाखू निषेध दिवस पर
सीख
आव गया आदर गया 
गए सुपारी पान
सिगरेट के  कस ले रहा
खुश हो नवजवान
गुटखा मुँह में दबा लिया
चढ़ा सुरा का रंग मस्त हो गए भैया जी पी लोटा भर भंग
मना किया घरवालों ने पर खूब की मनमानी
रोगों से तन घिर गया अब याद आ रही नादानी
मुख कैंसर हो जाने से नही खा पाते खाना खांसते रहने के कारण नही हो पाता सोना
रोते हैं पछताते है सबसे यही बताते है
छोड़ो दारू गुटखा पान
नही बढ़ती इससे शान
मुझे देख कर ले लो सीख
नही तो तुम माँगोगे भीख
ज़िन्दगी की है ये सौत
समय से पहले देती मौत

स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज

निशा अतुल्य

बालगीत
गर्मी का मौसम
31.5.2021

आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया
मन को मेरे बहुत ही ललचा गया
बहुत मीठे है भाई तरबूज,खरबूजे
भर गया पेट,पर मन तरसा गया ।

माँ कहती रोटी भी खाओ
तन को अपने स्वस्थ बनाओ
मुझको पर भाता है आम
बाबा का गुस्सा खाना खिला गया
आम,लीची,आड़ू के मौसम आ गया ।।

गर्मी में बहुत अच्छा लगता है शरबत
मगर आम का पन्ना दिल तरसा गया
बचपन अपना पतंगों संग उड़ाया मैंने
रिमझिम बारिश का पानी तन भीगा गया ।
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।। 

दोपहरी भर खेलते लड़ते संगी साथी
मस्तियों का आलम बेशुमार छा गया 
छुट्टी हुई पाठशाला की छूटी जान
सबके घर आने से उत्सव सा छा गया 
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।। 

माँ का हाथ बटाऊँ,आज मेरे दिल में आ गया
देख थकी सूरत माँ की,समय मुझको बड़ा बना गया
मेरा प्यारा बचपन,मुझको समझदार बना गया 
मैं जिद नहीं करती,फल अब भी भाते हैं बहुत 
समय सबकी अहमियत मुझको समझा गया
आम,लीची,आड़ू का मौसम आ गया।।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ-3
  *दसवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-3
जे नहिं कंटक-पीरा जानै।
ऊ नहिं पीरा अपरै मानै।।
    नहीं हेकड़ी,नहीं घमंडा।
    रहै दरिद्री खंडहिं-खंडा।।
नहिं रह मन घमंड मन माहीं।
जे जन जगत बिपन्नय आहीं।।
    रहै कष्ट जग जे कछु उवही।
    ओकर उवहि तपस्या रहही।।
करि कै जतन मिलै तेहिं भोजन।
दूबर रह सरीर जनु रोगन ।।
     इन्द्रिय सिथिल, बिषय नहिं भोगा।
     बनै नहीं हिंसा संजोगा ।।
कबहुँ न मनबढ़ होंय बिपन्ना।
होंहिं घमंडी जन संपन्ना ।।
     साधु पुरुष समदरसी भवहीं।
    जासु बिपन्न समागम पवहीं।।
नहिं तृष्ना,न लालसा कोऊ।
जे जन अति बिपन्न जग होऊ।।
     अंतःकरण सुद्धि तब होवै।
      अवसर जब सतसंग न खोवै।।
जे मन भ्रमर चखहिं मकरंदा।
प्रभु-पद-पंकज लहहिं अनंदा।।
     अस जन चाहहिं नहिं धन-संपत्ति।
    संपति मौन-निमंत्रन बीपति ।।
प्रभु कै भगति मिलै बिपन्नहिं।
सुख अरु चैन कहाँ सम्पन्नहिं।।
      दुइनिउ नलकूबर-मणिग्रीवा।
      बारुनि मदिरा सेवन लेवा।।
भे मदांध इंद्री-आधीना।
लंपट अरु लबार,भय-हीना।।
      करबै हम इन्हकर मद चूरा।
      चेत नहीं तन-बसन न पूरा।।
अहइँ इ दुइनउ तनय कुबेरा।
पर अब पाप इनहिं अस घेरा।।
     जइहैं अब ई बृच्छहि जोनी।
     रोकि न सकै कोउ अनहोनी।।
पर मम साप अनुग्रह-युक्ता।
कृष्न-चरन छुइ होंइहैं मुक्ता।।
दोहा-जाइ बीति जब बरस सत,होय कृष्न-अवतार।
        पाइ अनुग्रह कृष्न कै, इन्हकर बेड़ा पार ।।
                     डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जन्म दिन-----

जश्न जोश का बहाना चाहिये
जन्म दिन उत्साह उमंग से 
मानना चाहिए।।

सच्चाई की जीवन की 
लम्बाई जिंदगी  छोटी होती हर
जन्म दिन पर एक वर्ष
उम्र कम होती गम नही
जीवन मे जीने का अंदाज़ चाहिये।।

जन्मदिन के जश्न में 
कोई परंपरा भारतीय नही
ना कैंडल्स ना केक फिर भी
गर्व अभिमान भारतीय है हम
भारतीयता को अपनाना चाहिये।।

जन्म दिन की खुशियों में
शुमार दावत दारू नाच गान
उपहार हैप्पी बर्थ डे जिओ
हज़ारों साल होना चाहिये।।

गर मौका मिल जाए
गर्ल फ्रेंड की बाहों में बाहें डाल
घुमाना चाहिये शायराना अंदाज़
बडा नाज़ जन्म दिन आता साल
में एक बार इश्क मोहब्बत प्यार
आजमाना चाहिए ।।

पूरे जश्न जोश खो जाए
होश दोस्तो संग मौज 
मौके का जौक शौख का
खास खुशियों का खुमार
आना चाहिये।।
भारत भारतीयता की परम्परा
तकिया नुकुसी जन्म दिन पर
भी मंदिर देवता आशीर्वाद
मन्नत मुराद नीरस नीरसता
पास भी नही जाना चाहिये।।

घटती सिमटती जिंदगी में
दान पुण्य पाप जन्म दिन
पर गर कर दिया रक्त दान
क्या फायदा बेवजह जन
कल्याण से खुद को बचाना
चाहिये।।
जोश जश्न से जन्म दिन मनाना
चाहिए।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सौरभ प्रभात

शीर्षक - *कृष्ण सुदामा मिलन*
विधा - *आल्हा छंद*


दीन सुदामा के चरणों में
बैठा देखो यूँ जगपाल।
पाँव पखारे निज अँसुवन से
बाल सखा का पूछे हाल।।1।।

नैन छिपाये उर की चिन्ता
होंठ सजाये इक मुस्कान।
प्रेम तड़ित से विचलित होकर
नीर बहायें रस की खान।।2।।

देख फटी वो पाँव बिवाई
कोमल मन करता चित्कार।
कैसा हूँ मैं मित्र अधम जो
संगी को न दिया आधार।।3।।

काँख छिपी फिर देखी गठरी
छीन लिये उसको करतार।
सूखे चावल खाते जाते
और लुटाते नेह अपार।।4।।

विप्र अचंभित सोच रहा है
कैसे कह दूँ अपना हाल?
बिन बोले पर घर भर डाला
ऐसा नटवर नागर ग्वाल।।5।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

मधु शंखधर स्वतंत्र

मधु के मधुमय मुक्तक

🌹🌹 *गौहर*🌹🌹
-----------------------------

◆ गौहर सागर में छिपा , विरले सीपी साथ।
माला की शोभा बने, पहने दीनानाथ।
उज्ज्वल आभा देख कर, हर्षित ह्रदय अपार।
शांत चित्त पर्याय है, आए जब यह हाथ।।

◆ गौहर सौहर ने दिया, जड़ी अँगूठी बींच।
सुख सौन्दर्य बढ़ा करे , रखती प्रतिपल भींच।
चाहत में सबकी बसे, सच्ची हो पहचान,
प्राप्त इसे जो कर लिया, त्वरित इसे ले खींच।।

◆ गौहर संज्ञा श्रेष्ठ है, शुभग सदा पहचान।
रंक प्राप्ति इच्छा धरे, भूप लुटाए शान।
चमक विशेषण भी बने, ये विशेष्य के साथ,
धरते गौहर शान से, आभा का प्रतिमान।

◆ गौहर सम संज्ञा मिले, धारा वही विशेष।
माला में धारण करे, शोभा अनुपम भेष।
सदा मनुज की धीरता, गौहर का संदेश,
धैर्य सहज अरु शांत ही, भाव बसे अनिमेष।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*31.05.2021*

नूतन लाल साहू

सफलता का सफर

सफलता का सफर
रास्ता है मुश्किल
यहां हर मोड़ पर
दुश्मन खड़ा है
स्वार्थों के अंधेरों ने
घेरा हुआ है
जीतता वही है
जो स्वयं से लड़ा है
जो अंतर्रात्मा की आवाज सुनता है
वहां से जो ज्ञान
निकल कर आता है
वही तो
भविष्य का रास्ता सुझाता है
सही मायने में
सफलता का सफर के लिए
एक दर्पण होता है
दृढ़ संकल्प के साथ
जो चलता है
और निरंतर आगे बढ़ते ही
रहता है
चाहे कितना ही,मारो उसे ठोकर
आत्मविश्वास और संयम ही
वक्त से लड़ने का
उनका हथियार होता है
जीतता वही है
जो स्वयं से लड़ा है
कल को किसने है,देखा
मेहनत से ही बदलेगी
भाग्य का सारा लेखा
सफलता का सफर में
पक्का संकल्प आवश्यक है
दुनिया तो है, इक बाजार
रास्ता खुद ही बनाना होगा
यही तो सफलता का सफर है

नूतन लाल साहू

जयप्रकाश चौहान अजनबी

*विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर स्वरचित गीत*

*शीर्षक:- बीड़ी -सिगरेट पीना नही*

 मैं कभी ये नहीं कहता कि तुम शौक मत करना।
पर घी दूध छोड़ तम्बाकू का भोग मत करना।


बीड़ी -सिगरेट ,बीड़ी -सिगरेट पीना नहीं।
घी -दूध को छोड़कर घी- दूध को छोड़कर ।

पल-पल बीड़ी तेरा गला जलाएगी। 
सिगरेट तेरे गले में छालो को बुलाएगी।
जब बीड़ी पिएगा तेरा फेफड़ा गलाएगी ।
इस सुडौल काया को  जर्जर कर जाएगी।

 बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट......

तुमने बीड़ी को पिया उसका स्वाद लिया।
तूने पगले जान के रोग को न्योता दिया ।
अब बन गया आदि तूने यह नया रोग लिया ।
तब ना सोचा ना समझा यह कैसा भोग किया।

 बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट......

अब तुझको यह बीड़ी की आदत तड़फाएगी।
ना पिएगा तो तुझे चैन से नींद ना आएगी ।
अगर तुम सिगरेट छोड़ना भी चाहोगे ।
तो तुम जानकर भी ना छोड़ पाओगे ।

बीड़ी -सिगरेट बीड़ी -सिगरेट...... 

अब सुन ले मेरे यारा तू वादा निभाना ।
इस बीड़ी सिगरेट को तू कर दे बेगाना ।
तंबाकू को छोड़ अब अच्छा बन के दिखाना।
अजनबी कहे तब तुझे इज्जत देगा यह जमाना ।

बीड़ी- सिगरेट बीड़ी- सिगरेट पीना नहीं ।
घी -दूध को छोड़ के घी -दूध को छोडक़े।

 जयप्रकाश चौहान अजनबी
 जिंदोली,अलवर(राजस्थान)

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(पहचान)
अपनी ही पहचान का,होता सरल न ज्ञान।
लिया समझ जो स्वयं को,समझो वही महान।।

मिलती कभी न पूर्णता,भले कहें हम पूर्ण।
ऐ मूरख इंसान सुन,अंत होय मद चूर्ण।।

साधु-संत,ऋषि-मुनि कहें,खुद की निजता जान।
अपने ही गुण-दोष की,करो उचित पहचान।।

रहो भले या मत रहो, जग जाता है भूल।
याद करे जब बाँट दो,काँटा बदले फूल।।

यही पूर्ण पहचान है,यही सत्य-आधार।
मनुज-धर्म उपकार है,कर्म बाँटना प्यार।।

मद-घमंड से तो नहीं,मिले कभी पहचान।
जन-सेवा,उपकार से,हो प्रसिद्ध अनजान।।

मातृ-भूमि-हित प्राण दे,होता अमर जवान।
अन्न-फूल-फल दे कृषक,पाए नित सम्मान।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...