डा. नीलम

*उष्ण भोर*

खुले किवार क्षितिज के
स्वर्ण किरण रही झांक
कपोत रंगी गगन पर
फैल गया रंगोली का रंग

देख खाली मैदान को
धवल गिरी के पृष्ठ से
निकल आया आदित्य
करने अपनी मनमानी

मंद शीतल बयार के
ऑंचल में उसने अपनी
थोड़ी उष्णता बांध दी
शनै:-शनै: बढ़ने लगी
उसकी मनमानी

क्षणिक देर खग चहक गये
फूल खिल मुर्झा गए
हां अमलताश,पलाश के
दिन खिलने के आ गये
उष्ण भोर आ गई।

         डा. नीलम

सुधीर श्रीवास्तव

संजीदगी
********
अब तो संजीदा हो जाइए
उच्चश्रृंखलता छोड़िए,
समय की नजाकत महसूस कीजिए माहौल अनुकूल नहीं है
जान लीजिए।
लापरवाही और गैरजिम्मेदारी
भारी पड़ती जा रही है,
आपको शायद अहसास नहीं है
कितनों को खून के आँसू रुला रही है।
धन, दौलत, रुतबा भी
कहाँ काम आ रहा है,
चार काँधे भी कितनों को
नसीब नहीं हो रहे हैं,
अपने ही अपनों को आखिरी बार
देखने को भी तरस जा रहे हैं,
सब कुछ होते हुए भी
लावारिसों सा अंजाम सह रहे हैं।
अपनी ही आदतों से हम
कहाँ बाज आ रहे हैं,
खुल्लमखुल्ला दुर्गतियों को
आमंत्रण दे रहे हैं।
कम से कम अब तो 
संजीदगी दिखाइये,
अपने लिए नहीं तो
अपने बच्चों के लिए ही सही
अपनी आँखें खोल लीजिए।
आज समय की यही जरूरत है
संजीदगी को अपनी आदत में
शामिल तो करिए ही,
औरों को भी संजीदगी का
पाठ पढ़ाना शुरु कर दीजिए।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

चंचल हरेंद्र वशिष्ट

🙏🚩'भक्त विनय'🚩🙏
चैत्र शुक्ल नवमी तिथि आई,चहुँ ओर खुशियाँ हैं छाईं।।
शुभ दिन मंगल बेला आई,जन्में अवध में श्री रघुराई।।
नारायण अवतार सुहाई,राजमहल में बजत बधाई।।
भक्तों ने यह टेर लगाई,प्रभु श्रीराम दरस सुखदाई।।

महामारी कोरोना छाई,तुमसे ही प्रभु आस लगाई।।
आकर प्रभु हरो विपदाई,काहे अब तक देर लगाई।।
घोर निराशा है अब छाई,एक आस अब तुम रघुराई।।
दुख की ऐसी बदरी छाई,सुख की किरण न देत दिखाई।।

असुरों से मुक्ति थी दिलाई,आए थे जब त्रेता रघुराई।।
कलयुग में महामारी आई,चले न कोई उपाय मिटाई।।
कोरोनासुर की अधिकाई,आन मिटाओ अब रघुराई।।
विनय हेतु 'चंचल'प्रभु आई,दिखलाओ अपनी प्रभुताई।।

'आस और  विश्वास हमेशा बना रहे जगदीश!
हाथ जोड़ विनती करें हम, कृपा करो हे ईश!'

स्वरचित एवं मौलिक रचना:

चंचल हरेंद्र वशिष्ट,नई दिल्ली
हिंदी प्राध्यापिका ,थियेटर शिक्षिका एवं कवयित्री

सुनीता असीम

जिसे अपना बनाना चाहिए था।
उसे पहले   बताना चाहिए था।
*****
दिवाने जो हैं डरते आशिकी में।
उन्हेंं हिम्मत बंधाना चाहिए था।
*****
ठिकाना जब नहीं तुमको मिला तो।
मेरा दिल ही    ठिकाना चाहिए था।
*****
तुम्हें मेरे ही दिल में जो था रहना।
तो पहले घर बनाना चाहिए था।
*****
 हसाकर क्यूं रुलाया था कन्हैया।
नहीं मथुरा को जाना चाहिए था।
****
जो चाहत थी मेरी ही आपको तो।
मेरे अरमाँ जगाना     चाहिए था।
****
न रहना था पड़े चुपचाप तुमको।
कभी हक भी जताना चाहिए था।
****
मेरे आंसू की कीमत तुम हो मोहन।
तुम्हें  आके दिखाना चाहिए था।
****
सुनीता असीम
१/६/२०२१

श्रीकांत त्रिवेदी

मर गया जो भूख से,वो क्या करे!
अब उसे जन्नत मिले,तो क्या करे!
मिला सहरा जिंदगी भर प्यास को,
मौत पर दरिया मिले,तो क्या करे!
उम्र भर पाया न ,अपना प्यार जो,
फिर उसे हूरें मिलें , तो क्या करे !
ईदी न दे पाया,कभी गुर्बत में जो,
दौलतें पा के भी फिर वो क्या करे!
जिसको तुमने नफरतें दीं उम्र भर,
कब्र में इस प्यार का,वो क्या करे!
मां बाप, तेरी बेरुखी से मर गए ,
तस्वीर के इस हार का,वो क्या करे!
जीते जी तो कद्र ,उसकी की नहीं,
बुत पुजे उसका तो अब,वो क्या करे! 
बहते  रहे थे अश्क, उसके  उम्र भर ,
तुमको अब मोती लगे, तो क्या करे! 
ढूंढती ही रह गई,जिंदगी पहचान को,
मौत को शोहरत मिले, तो क्या करे !!
    ........ श्रीकांत त्रिवेदी,लखनऊ

डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*सँभल जरा* 

प्रचण्ड अट्टहास आज, 
कर रहा है काल बाज, 
क्या घडी़ प्रलय की है,
सँभल जरा। 

सहम सहम हृदय डरे, 
दृग में अश्रु हैं भरे ,
स्पन्द गति थम रही, 
सँभल जरा। 

मृत्यु का है कृत्य, 
या कि पाप का हुआ उदय, 
कर्म गति टले नहीं, 
सँभल जरा। 

धधक -धधक चिता जले, 
मौत संग में चले,
स्तब्ध शब्द हैं सभी,
सँभल जरा।

विष की बेलियाँ बने, 
गरल सुधा नहीं बने, 
वेदना ये कह रही, 
सँभल जरा। 

सिमट गये हैं लोग सब, 
सिसक रहे हैं साज सब, 
स्वयं से युद्ध तय है अब, 
सँभल जरा। 

कर भरोसा खुद पे आज,
 हौसले पे होगा नाज, 
आत्मशक्ति को जुटा, 
सँभल जरा।

स्वरचित- 
डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा, 
अकबरपुर ,अम्बेडकरनगर ।
( *सर्वाधिकार सुरक्षित)*

सुधीर श्रीवास्तव

सायली छंद
-----------------
  क्षमा
----------
क्षमा
उत्तम भाव
जीवन में उतारिये
बड़ा होगा
व्यक्तित्व।
   ■■
बड़प्पन
दिखता है
क्षमा करने से
करके देखिए
सूकून भाव।
   ■■
सीखिए
क्षमा करना
मान सम्मान बढ़ेगा
गुणगान होगा
आपका।
   ■■
दिखाता
बड़ा दिल
क्षमा करने वाला
पाने वाला
नतमस्तक।
   ■■
बनाता
सरल हमें
क्षमा भाव से
मन हल्का
हमेशा।
  ■■
विनती
क्षमा कीजिए
भूल मेरी है
बड़ा दिल
दिखाइये।
   ■■
भगवन
क्षमा कीजिए
अब भूल हमारी
कृत्य हमें
स्मरण।
 ■■
✍ सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा ,उ.प्र.
    8125285921
©मौलिक,स्वरचित

चंचल हरेंद्र वशिष्ट

संकट की बेला में श्री राम भक्त हनुमान और संकटमोचन वीर बजरंगी के जन्मोत्सव पर लिखी एक करबद्ध प्रार्थना:

'हम भक्तों की है ये करुण पुकार,
संजीवनी ले आओ फिर एक बार'

'हाथ जोड़ विनती करूँ सुनो वीर हनुमान
दया कीजिए भक्तों पर, संकट में हैं प्राण'

पवन पुत्र अंजनि के  लाला
विनय सुनो हनुमंत कृपाला

संकट मोचन मारुति नंदन
हाथ जोड़ करूं अभिनंदन

चहुँ ओर संकट  गहराया
कोरोना व्याधि का साया

केहि विधि   होय उपचारा
त्राहि त्राहि है विश्व  पुकारा

कौन हरे जन जन की पीड़ा
तुम्हरे काँधे अब यह बीड़ा

तुमको देख काल डर भागे
जाप करें तो भाग्य हैं जागे

बेगि आओ हनुमान गुसाईं
करो कछु विधि तुम्हीउपाई

अपनी शक्ति पुन:दिखाओ
संजीवनी धरा पर   लाओ

तुम हो अजर अमर रणधीरा
देहु शक्ति संसार    को बीरा

रामभक्त तुम अति सुखदाई
जाने सब   तुम्हरी  प्रभुताई

भक्तों को है अब आस तुम्हारी
सुन लीजो अब विनय  हमारी

तुम्हरो दरस केहि विधि पाऊँ
केहि भाँति मैं   तुम्हें    मनाऊँ

जिस पर होय कृपा तुम्हारी
आनंद मंगल होय   सुखारी

तुम्हरो    हमें भरोसा भारी
मिटा देहु प्रभु यह महामारी

सुनहुं अरज हे  बजरंग बाला
भक्तन पर होऊ सदा दयाला

'मेरी यह विनती सुनो  हे पवनपुत्र हनुमान
विपदा को हर लीजिए,कीजे तुरत निदान'

चंचल हरेंद्र वशिष्ट,नई दिल्ली
हिंदी प्राध्यापिका,थियेटर शिक्षिका एवं कवयित्री
९८१८७९७३९०

सौरभ प्रभात

,
          *परशुराम-लक्ष्मण संवाद*
                      *(आल्हा छंद)*

मिथिला में जब टूटा धनु तो
भृगुसुत करते आये रोष।
किसने है ललकारा पौरुष?
बोलो किसका है ये दोष।।

          हँसकर बोले लक्ष्मण, मुनिवर!
          करते हो क्यों इतना क्रोध।
          कितने धनु हीं तोड़े हमने
          आप बने न कभी अवरोध।।

बालक! ये धनु शिव शंकर का
बंद करो अपना आलाप।
दंड मिलेगा दुष्ट अधम को
सह न सकेगा मेरा ताप।।

          लक्ष्मण बोले, फरसा धारी!
          हमको लगते सम सब चाप।
          एक पुराने धनु का भंजन
          क्योंकर लगता तुझको पाप।।

          दोष नहीं रघुवर का इसमें
          शौर्य नहीं सह पाया चाप।
          मात्र छुअन से भग्न हुआ ये
          करते हो तुम व्यर्थ प्रलाप।।

भृगुवंशी ने भौंहें तानी
लाल नयन से घूरे बाल।
रोष प्रकट करते फिर बोले
सम्मुख तेरे आया काल।।

शौर्य अमिट है अनुपम मेरा
बालक तू कितना नादान।
कितने क्षत्रिय मारे मैनें
क्या है तू इससे अनजान।।

          आप बड़ाई करने वाले
          देखें मैनें बहुतों वीर।
          एक गरज जो रघुकुल मारे
          हो जायेगा फरसा धीर।।

          ब्राह्मण गौ सुर और उपासक
          रघुकुल करता इनका मान।
          फरसे के धारक का वरना
          मिट जाता फिर नाम निशान।।

मारा जायेगा मेरे हाथों
विश्वामित्र इसे संभाल।
दोष नहीं फिर मेरा देना
या मुख इसके अंकुश डाल।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर,बिहार

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-प्रेम की भाषा ही समझे दिल
विधा-कविता
---------------------------------------------
तेरी साँसों की गरमाहट में मेरी दुनिया बसी हुई है,
प्यार के दो पल जीने को दिल की दुनिया बसी हुई है।

प्रेम ही मंदिर प्रेम ही पूजा प्रेम से बढ़कर नहीं कोई दूजा,
प्यार का मौसम लाने को बरसात रूमानी हुई है।

प्यार मिले तब इकरार मिले जब जीने का विश्वास मिले जब,
मन के मुरझाए बागों को प्रेमप्रसून खिलने का एहसास मिले जब।

बिखरे दिल के ज़ख़्मों को मैं मद्धम मद्धम सहलाता हूँ,
साया हूँ तेरे प्यार का मैं एहसास को पास बुलाता हूँ।

चल बन जाएं हमराही दो क्या रखा है और जीवन में,
प्यार के दो पल जी ही लो सब सूना है प्रेम बिन जीवन में।

मुँह फेर न लेना कभी मुसाफ़िर ये सफ़र रोज़ न आता है,
प्यार में जीलो जीवन सारा ये नश्वर जीवन फिर लौटके न आता है।

प्रेम की भाषा ही समझे दिल प्रेम अभिलाषा ही रक्खे दिल,
प्रेम पथिक बन जाने को सफ़र है करता रहता दिल।
रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

रामकेश एम यादव

दुनिया सजा लेते हैं!

बहुत से लोग बहुत कुछ गंवा देते हैं।
बहुत से अपनी दुनिया सजा लेते हैं।
बाप की कमाई से दुनिया नहीं सजती,
कुछ अपने बूते आसमां हिला देते हैं।
वफ़ा में मिटते थे उस जमाने के लोग,
अब हवा से मिलके चराग़ बुझा देते हैं।
दुनिया में अच्छे लोगों की भी कमी नहीं,
अपना खून देकर वो जान बचा देते हैं।
जरुरत के पहाड़ झुर्रियाँ आने नहीं देते,
बेकाम के लोग जवानी गंवा देते हैं।
सिकंदर खाली हाथ ही गया दुनिया से,
फिर भी मूर्ख ऑक्सीजन चुरा लेते हैं।
हम करते रहते हैं अक्सर गलतियाँ,
मगर इल्जाम दूसरों पर लगा देते हैं।
वो सबकी राहों में फूल बिछाता है,
लोग उसकी राहों में काँटे बिछा देते हैं।
सांस कब ख़त्म होगी, कुछ पता नहीं,
कुछ परिन्दे की जगह अण्डे उड़ा देते हैं।
यादें उसकी झलकती हैं आज भी साफ,
वैसी पाक नजर लोग कहाँ रखते हैं।
पहले के बोते थे कलम से इंक़लाब,
अब तो दुश्मन से हाथ मिला लेते हैं।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

निशा अतुल्य

अपना क्या है 
1.6.2021

मात पिता ने दिया ये जीवन 
उनका बड़ा उपकार हुआ 
तन मन सब दिया उन्होंने
अपना क्या है जीवन में ।

अहंकार क्योंकर आता है
संस्कार नहीं ये उनके 
जीवन में जो पाई सफलता 
अथक परिश्रम हैं उनके ।

रंगमंच ये दुनिया सारी
सबको एक किरदार मिला
निभाया चरित्र सबने अपना
फिर दुनिया से कूच किया ।

मेरा मेरा मत कर बंदे
जो कुछ है सब मिला यहीं
सांसो की माला का मनका
बिखर जाएगा यूँहीं कहीं ।

साथ न आया था कुछ भी
साथ न कुछ अब जाएगा 
माटी का जो तन मिला है
पंचभूत मिल जाएगा ।

कर्मपथ को छोड़ न मानव
जीवन ये बड़भाग मिला
रीत निभानी है समाज की
रह विरक्त हर काम किया।

अपना क्या है इस जीवन में 
बस अपनापन साथ गया
याद करेगी दुनिया बाद में 
नश्वर जग जब छोड़ चला।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावन मंच को प्रणाम, आज की रचना धनवन्तरि शतक भाग दो के आगे के भाग का अवलोकन करें """""""""                पुष्प जौ आवै नहीं समयानु तौ आस कबौ  फल कय नहि कीजै!!                    बसन्त  ना फूल लगै अमराई तौ कूकिहंय कोकिल आस ना कीजै!!             नाते यही बस देव अशोका तौ पुष्प सदा धनवन्तरि  लीजै!!                            भाखत चंचल मर्ज बढ़ नहि अऊर जवानी मा धन नहि दीजै!! 1!!               पानी बहन जौ रिसाय रिसाय तौ हल्के मा नाहि कबो यहु लीजै!!                          घाव बनया गर्भाशय महंय जे देहु कै नाशु के नाशु कय कारनु लीजै!!               दुई भांति बहय संकोचु लगै कहूं श्वेत रहै कहूँ लाल कहीजै!!                          भाखत चंचल आवै कछू दिनु कारनु एहि ना गोद भरीजै !! 2!!                         रसधारु मा पानी बहै  दिनुरैनु औ मासिक केरु ना बातु करीजै!!                      पौडर सीरपु लायको लेऊ  औ बैद्य कहंय तौ अशोका हु दीजै!!                       मासहु तीनि पिता घरनी  तौ उत्तमु स्वास्थ्य कै खानु कहीजै!!                          भाखत चंचल स्वस्थ रहैं औ सौ उपरान्त तौ पीकर लगीजै!! 3!!                सुन्दरू स्वस्थु रहैं घर नारि तौ यै अवतार तौ लक्ष्मी कहीजै!!                    सुन्दरू बाल गोपाल जनैं अरू गोद नही तौ खाली लखीजै!!                               भाखत चंचल काव कही सम्पन्न कुटुम्ब  तौ अवनी कहीजै!!                                   छोटु रहै परिवार खुशाल ओ चन्द्र कलानु  लौं नीकु लगीजै!! 4!!                आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल!! ओमनगर सुलतानपुर उलरा चन्दौकी अमेठी उत्तर प्रदेश मोबाइल फोन;;;;885352139८, 9125519009!!

डॉ रामकुमार चतुर्वेदी

*राम बाण🏹 कुण्डलियाँ छंद*

    बातें उनकी योजना, वादें करें जरूर।
     धंधा पानी बंद हैं, झेल रहा मजदूर।।
    झेल रहा मजदूर, कौन ये पीड़ा जाने।
भूखे घर में बैठ, नियित‌ ये सबकी माने।।
     कहते कविवर राम,करें चौपाये घातें।
सेवक बनकर घात,करें फिर मीठी बातें।।
           *डॉ रामकुमार चतुर्वेदी*

सुखमिला अग्रवाल

दिनांक-1/6/21
लघुकथा 
*शुभ झींक*
•••••••••••••••••••••••
      अरे...रे..!!छींक दिया..!!
घर की बडी बुजुर्ग एक साथ बोल उठीं।
   प्रभा की शादी के मंगल गीत गाते हुए अचानक ओहो.. छींक दिया..!
छींक दिया..!!करने लगीं। 
   प्रभा को तेल हल्दी लगायी जा रही थी।
पंडित जी पुकार रहे थे,” कन्या को बुलाईये,”
कन्या को चौकी पर बैठाया गया।
पंडित जी फिर बोले,” दादाजी दादीजी को बुलाईये,सबसे पहले वे ही तेल चढायेंगे,”
  प्रभा की छोटी बहिन जल्दी से दौड कर दादाजी दादीजी का हाथ पकड कर ले आयी।
पंडित जी ने तेल,हल्दी,दूब दादाजी के हाथ में देकर समझाया कि तेल कन्या को कैसे लगाना है।
  जैसे ही दादाजी तेल लगाने झुके,,
सुनैना( प्रभा की छोटी बहिन)को जोर से छींक आ गयी।
  तभी से सब औरतें उसको तिरछी नजर से देख रहीं हैं..!!उनमें से एक बुजुर्ग ने कहा,” रूक जाईये भाईसाहेब शुभ काम में छींकना अच्छा नहीं होता, कुछ देर बाद चढाईयेगा,”
    दूसरे कमरे में प्रभा के बडे भाई, जो पेशे से डॉक्टर हैं,कथा दकियानुसी बातें बिल्कुल नहीं मानते हैं, निकलकर आये और सब लेडीज को देखकर बोले,”
अरे..ताईजी आपको पता नहीं है क्या ,सुनैना की छींक तो बडी शुभ है,मैं इसकी छींक का इन्तजार करता हूँ कोई भी शुभ काम करने से पहले।,” फिर सुनैना को देखकर बोले,” थैंक्यू सुनैना,”
   आज सुनैना के पैर जमीन पर नहीं पड रहे थे।
भैया के आगे सब निरूत्तर .....
•••••••••••••••••••••••••
 सुखमिला अग्रवाल,
‘भूमिजा’
      स्वरचित मौलिक
     सर्वाधिकार सुरक्षित्
         मुम्बई

देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

.................मुहव्वत के खत..............

दिल को  सुकून  मिलता , तेरी पनाह में।
खत को मजबुन मिलता,तेरी पनाह  में।।

दौड़ना  पड़ता है , चारों तरफ  ही मगर ;
मन को  जुनून  मिलता , तेरी पनाह में।।

कोशिश  करता हूं , हर राग  बजाने की ;
गीतों  को धुन  मिलता , तेरी  पनाह में।।

परेशानियों से होती है मन में चिंता मगर;
चिंता  को  घुन  लगता , तेरी  पनाह में।।

लाख  जलजले  दिख जाएं , निगाहों में;
मरघट देहरादून लगता , तेरी पनाह में।।

मुफलिसी ने बदन से निचोड़ लिए सब ;
दिल  को खून  मिलता , तेरी पनाह में।।

आलमारी में रखे पुराने खत देते'आनंद'
मिलते संतोष , प्रसन्नता,तेरी पनाह में।।

---------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

.................मुहव्वत के खत..............

दिल को  सुकून  मिलता , तेरी पनाह में।
खत को मजबुन मिलता,तेरी पनाह  में।।

दौड़ना  पड़ता है , चारों तरफ  ही मगर ;
मन को  जुनून  मिलता , तेरी पनाह में।।

कोशिश  करता हूं , हर राग  बजाने की ;
गीतों  को धुन  मिलता , तेरी  पनाह में।।

परेशानियों से होती है मन में चिंता मगर;
चिंता  को  घुन  लगता , तेरी  पनाह में।।

लाख  जलजले  दिख जाएं , निगाहों में;
मरघट देहरादून लगता , तेरी पनाह में।।

मुफलिसी ने बदन से निचोड़ लिए सब ;
दिल  को खून  मिलता , तेरी पनाह में।।

आलमारी में रखे पुराने खत देते'आनंद'
मिलते संतोष , प्रसन्नता,तेरी पनाह में।।

---------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

लखीमपुर खीरी में अंतर्राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन करके साहित्यकार स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी को दी गयी श्रद्धांजलि - इण्डियन ट्रेडर्स टाइम्स

लखीमपुर खीरी में अंतर्राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन करके साहित्यकार स्व0 आशुकवि नीरज अवस्थी को दी गयी श्रद्धांजलि

इण्डियन ट्रेडर्स टाइम्स ।
 उत्तर प्रदेश खमारिया पंडित जनपद खीरी लखिमपुर हिंदी साहित्य एव अवधि साहित्य के जाने माने हस्ताक्षर नीरज अवस्थी जी का दिनांक 11/05/2021 को कोरोना के कारण स्वर्गवास होगया । नीरज अवस्थी जी की आकस्मिक मृत्यु की खबर आग की तरह फैल गयी जिसके कारण उनके पैतृक गांव खमारिया पंडित एव खीरी लखीमपुर, सीतापुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बरेली , गोरखपुर, महराजगंज एवं आस-पास के जनपद और भारत के कई प्रदेशों के कवि लेखक साहित्य प्रेमियों के मध्य शोक की लहर दौड़ गयी स्वर्गीय नीरज अवस्थी जी द्वारा काव्य रंगोली साहित्यिक पटल श्याम सौभाग्य फाउंडेशन की स्थापना की गई थी जिसके माध्यम से उनको साहित्यिक सामाजिक गतिविधियों को संचालित करते थे । 

अल्प आयु एवं अल्पकाल में ही स्वर्गीय नीरज जी ने जनपद लखीमपुर खीरी और खमारिया पंडित का नाम देश विदेश में  रौशन किया। दिनांक 23/05/2021 को स्वर्गीय नीरज अवस्थी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष्य में नीरज जी की अजेय कीर्ति काव्य रंगोली के माध्यम अंतरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे देश -विदेश के कुल 106 साहित्यकारों कवियों ने हिस्सा लिया दिनांक 30/5/2021 को स्वर्गीय नीरज जी की श्रद्धांजलि के अवसर पर आयोजित काव्य प्रतियोगिता का सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें नीरज स्मृति साहित्य सम्मान- 2021 सम्मान पत्र वितरित किया गया। स्वर्गीय नीरज जी की श्रद्धांजलि के उपलक्ष में आयोजित काव्य प्रतियोगिता दिनांक 23/5/2021 एव  दिनाक 30/05/2021 को श्रद्धांजलि सभा के प्रतिभागियों के सम्मान सम्मेलन के सार्थक सफल संचालन दायित्व की प्राभावी भूमिका दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल जी मधु शंखधर स्वतंत्र जी, डॉ इंदु झुनझुन वाला जी ने निभाया जिसमें सकारात्मक सशक्त सहयोग की भूमिका का निर्वहन शेषाद्री त्रिवेदी, नन्दलाल मणि त्रिपाठी पिताम्बर, अनिल गर्ग जी, मुन्नालाल मिश्र जी, शिवम् त्रिपाठी शिवम् जी ने प्रदान किया। 

इन अवसरों पर क्षेत्र के गणमान्य नागरिक मीडिया जगत के प्रमुख हस्तियों ने आभासी माध्यम से अपनी भावनाएं संवेदनाओं को व्यक्त किया। अन्त में आभार ज्ञापन रचना अवस्थी जी की धर्म पत्नी रचना अवस्थी जी ने इस भरोसे विश्वाश के साथ करते हुये अनुरोध किया कि उनके पति की विरासत उनके संकल्प निरंतर उद्देश्य पथ की तरफ अग्रसर होते रहेंगे।
  - काव्य रंगोली परिवार

अरुणा अग्रवाल

नमन मंच,माता शारदे,गुणीजन।
शीर्षक-बरखा-रानी
01।06।2021।


षट् ऋतुओं का आवाजाही,
मनभावन,सुखद,परिवर्तन,
ग्रीष्म तपिश बाद वरखा-रानी,
शबनमी धरणी,श्यामल-धारी।।


हराभरा खेत,खलिहान की शोभा,
प्रीतिकर,अनुकूल किसान-आशा,
फसल लहराता देखके प्रसन्न-मित
बुन्दा बान्दी वरखा वहार,सुहानी।। 


कवि उठाऐ कलम,कागद,
कुछ करने प्रकृति-चित्रण,
देखके शस्य श्यामल ओढनी,
उपमा अलंकार का मन,मानी।।


 काश की ऐसा नजारा,दीर्घावधि,
होतो जनमानस में होगा,उल्लास,
आऐगा वारिश में पर्व-पर्वाणि,
नानाविध पकवान का लुत्फ़।।



और अब लॉकडाउन से अवकाश,
गृहिणी बनाएं व्यंजन,पसंद,पति,
सुत,सुता का भी रखें ध्यान सघन,
वरखा-रानी ने ठंड़क,लाई,तन-मन।।


भूलके आधि,व्याधि का आक्रोश,
ललना-लली,समर्पित,घर-संसार,
मनोरंजन,आमोद,प्रमोद,भरपूर,
अहो!कितना मोहन है यह बरखा।।!

अरुणा अग्रवाल।
लोरमी।छःगः।🙏

डॉ दीप्ति गौड़ दीप

नशा मुक्ति
नशा नाश कर देता, सारे जीवन के उजियारे को l
पास नहीं बिठलाता कोई, एक नशे के मारे को l
1.भांग,चरस,कोकीन, तम्बाकू, ब्राउन शुगर सब ज़हरीले l
पल में पागल हो जाता है, मद्य का प्याला जो पी ले l
घर की बर्बादी का सूचक, समझो सहज इशारे को l
2.आय से ज्यादा व्यय हो जाता, आमदनी घट जाती है l
जीवन शैली मुख्य धारा से, शनै:-शनै:  कट जाती है l
नशेबाज़ खुद खाक़ मिला देता, सम्मान के तारे को l
3.आज नशे का चलन अनोखा, दुनिया में चल बैठा है
सबके सिर पे भूत नशे का, लेकर बोतल बैठा है l
रोगग्रस्त हो रहे हज़ारों, देखो रोज़ नज़ारे को l
4.गली-गली में खैनी गुटके, बच्चे खाते फिरते हैं l
ड्रग्स नशे के ले-लेकर, तन की बर्बादी करते हैं l
दुनिया है हैरान नशे में, त्यागो इस अंधियारे को l
5.सभी नशे के उत्पादन पर, 
रोक लगा दो सरकारी  l
देश बचाना है तो जल्दी, यह आदेश करो जारी l
‘दीप” करो उपचार, गिरा दो आज नशे के पारे को l
© स्वरचित डॉ दीप्ति गौड़ दीप

सुनीता असीम

कुछ भी हो बस खिलखिलाते जाइए।
जिंदगी  के  सुख      उठाते  जाइए।
****
ख़ार सा जीवन हो जीते  क्यूं भला।
गुल खिला इसको सजाते  जाइए।
****
जुस्तजू जिनकी मुहब्बत हो फकत।
प्यार उनको भी सिखाते जाइए।
****
मत भरो इसमें कभी मायूसियाँ।
प्रेम के दीपक जलाते जाइए।
****
एक होकर हम रहें अद्वैत से।
राज हमको वो बताते जाइए।
****
सुनीता असीम
३१/६/२०२१

नूतन लाल साहू

एक प्रश्न प्रभु जी से

हे परम पिता परमेश्वर
तुम्हीं ने बनाया है
चंदा सूरज तारे, नदिया नारे
और उजियारा
पर कैसे किया,सुख दुःख का बटवारा
ये सोच सोच,मेरा मन हारा
मनुष्य को ही क्यों बड़ा दर्द दिया
एक दो दिन की बात नहीं है
मनुष्य सदियों से रोता आ रहा है
कोई कोई ने सोया,चैन से तो
अनेकों ने रात में जगकर
बिता रहा है
कैसे सजाया है,मनुष्य के
घर की फुलवारी को
ये सोच सोच मेरा मन हारा
पूछे मेरा मन बंजारा
मनुष्य को ही क्यों बड़ा दर्द दिया है
ये दुनिया इक बाजार है
घायल की गति घायल जाने
और न जाने कोई
दुखों से भरी हुई,भारी गठरी
मनुष्य हर युगों में
ढो रहा है
आपने भी तो मनुष्य के रूप में
इस धरा पर,अवतार लिया है
अनेकों कष्टों को सहा है
फिर भी मनुष्य को
बड़ा ही दर्द दिया है
कैसे किया,सुख दुःख का बटवारा
ये सोच सोच मेरा मन हारा
पूछे मेरा मन बंजारा
मनुष्य को ही क्यों बड़ा दर्द दिया है

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ-4
  *दसवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
अस कहि नारद कीन्ह पयाना।
नर नारायन आश्रम जाना ।।
     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भ्राता।
     अर्जुन बृच्छ तुरत संजाता।।
तरु यमलार्जुन पाइ प्रसिद्धी।
जोहत रहे कृष्न छुइ सुद्धी।।
    नारद रहे किसुन कै भक्ता।
    निसि-बासर किसुनहिं अनुरक्ता।।
जानि क अस किसुनहिं लइ ऊखल।
खींचत गए जहाँ रह ऊगल ।।
     यमलार्जुन बिटपहिं नियराई।
     नलकूबर-मणिग्रीवहिं भाई।।
निज भगतहिं बर साँचहिं हेतू।
बिटप-मध्य गे कृपा-निकेतू।।
      रसरी सहित गए वहि पारा।
       अटका ऊखल बृच्छ-मँझारा।।
रज्जु तानि प्रभु खींचन लागे।
उखरि गिरे तरु मही सुभागे।।
     जोर तनिक जब लागा प्रभु कै।
     जुगल बिटप भुइँ गिरे उखरि कै।।
प्रगटे तहँ तब दूइ सुजाना।
तेजस्वी जनु अगिनि समाना।।
दोहा-दिग-दिगंत आभा बढ़ी,प्रगट होत दुइ भ्रात।
        करन लगे स्तुति दोऊ,परम भगत निष्णात।।
                  डॉ0हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

क्या अजूबा वो मेरे साथ किया करते हैं
दूर रह कर भी निगाहों में रहा करते हैं

क्यों मेरे सामने ख़ामोश ज़ुबां हैं अब तक
आप दुनिया से तो हँस हँस के मिला करते हैं 

हम बनाते ही रहे ख़्वाबों में कई ताजमहल
इनको मिस्मार वो कर कर के हँसा  करते हैं 

हर मुलाकात में तोड़ा है हमारे दिल को 
फिर भी हम हैं जो बराबर ही वफ़ा करते हैं

उनके दीदार को प्यासी हैं निगाहें कबसे 
उनकी आमद के लिए रोज़ दुआ करते हैं 

हमने हर रस्म मुहब्बत की  निभायी फिर भी 
 और वो हैं जो हमेशा ही जफ़ा करते हैं

आप नाराज़ न हो जायें किसी पल हमसे 
हम यूँ हर फ़र्ज़ मुहब्बत के अदा करते हैं 

माना दुनिया में बुरे लोग बहुत हैं  *साग़र*
फिर भी कुछ लोग यहाँ सबका भला करते हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
15/5/2021
2122-1122-1122-22

कुमकुम सिंह

शीर्षक- बादल

देखो- देखो बारिश है आई,
रंग बिरंगी तितिलियाँ,
अपने पंखों को है फैलाए।
आसमान में इंद्रधनुष सतरंगी,
 प्रकृति के रंग में रंग जाए
  
ठंडी ठंडी हवा फुआरो के संग , 
मचल- मचल के अपनी शीतलता 
मन को है खूब लुभाए
जैसे तपती धूप में ,
मिली हो पेड़ों को बादल के साये।

बैरन पिया की याद सताए,
 पी से मिलन को पिया है आए।
कोयल की मीठी कूक दिल को है भाए
सूरज की किरने छुप-छुपकर ,
बादल से हैं मिलने आये।

डाली डाली लिपट रही है ,
पंखुड़ियां है मुस्कराई,
कलियों ने चारों तरफ ,
मंद-मंद खुशबू बिखराए ।
 
बाघ बगीचों  फूलों से
 है महकाते
भौरें मदमस्त होकर हर तरफ  गीत
 गुनगुनाए।
   देखो देखो बारिश है आई।
  
    कुमकुम सिंह

डा. नीलम

*हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता*

मुझको है लगन आसमां में छेद करने की
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

राज ए दिल किसी को बता भी नहीं सकता
ज़ख्म कितना है गहरा दिखा भी नहीं सकता

रात भर चॉंद सफर कहॉं-कहॉं करता रहा
क्यों रही मावस  रात भर बता भी नहीं सकता

कहता रहा वो दास्तां जख्में जिगर की अपनी
ऑंसूं क्यों ऑंख से उसके न गिरा बता भी नहीं सकता

गली-गली बन रांझा फटेहाल वो घूमता रहा
सदा लैला को क्यों न दे सका
बता भी नहीं सकता

महफ़िल में वो सबके दिलों की धड़कन रहा
मगर उसकी धड़कन पे नाम किसका है बता भी नहीं सकता।

   ‌‌   *हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता*

मुझको है लगन आसमां में छेद करने की
हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

राज ए दिल किसी को बता भी नहीं सकता
ज़ख्म कितना है गहरा दिखा भी नहीं सकता

रात भर चॉंद सफर कहॉं-कहॉं करता रहा
क्यों रही मावस  रात भर बता भी नहीं सकता

कहता रहा वो दास्तां जख्में जिगर की अपनी
ऑंसूं क्यों ऑंख से उसके न गिरा बता भी नहीं सकता

गली-गली बन रांझा फटेहाल वो घूमता रहा
सदा लैला को क्यों न दे सका
बता भी नहीं सकता

महफ़िल में वो सबके दिलों की धड़कन रहा
मगर उसकी धड़कन पे नाम किसका है बता भी नहीं सकता।

   ‌‌   डा. नीलम

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