नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

-----–-खोपडी------

ठाकुर सतपाल सिंह का स्मारक बन चुका था अब लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के पास गांव वालों में किसी नए विचार की फसाद का कोई अवसर नही था फिर भी दोनों को चैन इसलिये नही था कि गांव में कोई समस्या नही थी ।शोमारू प्रधान ने ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक से कुछ ही दूरी पर प्राइमरी स्कूल के लिए जमीन दे दी थी जिस पर स्कूल बन चुका था और बच्चों के पठन पाठन का कार्य चल रहा था।गांव वालों को भी चैन था कि ठाकुर सतपाल सिंह के  स्मारक के लिये गांव के दो लोंगो की बलि चढ़ गई एक तो चौधरी सुरेमन प्रधान बेवजह बेगुनाह सजा काट रहे थे और मुसई बेमौत मरा गया गांव वालों को इतनी कुर्बानी के बाद भी शांति मंजूर थी।समय अपनी गति से चल रहा था पंडित महिमा दत्त जिस मानव खोपड़ी को गांव की नदी  के रेता से उठाकर लाये थे उसे उन्होंने छुपा कर अपने व्यक्तिगत कमरे में रख दिया था और प्रतिदिन एक बार कमरा खोल कर उस मानव खोपड़ी को सुरक्षित है कि नही देख लिया करते समय बीत रहा था।सोमारू प्रधान पंडित महिमा दत्त और लाला ग़ज़पति की हर बात को अपना नैतिक कर्तव्य मानकर मानता जा रहा था गांव वालों को भी निश्चिंतता थी कि अब कोई ऐसा कारण नही है जिससे कि पंडित महिमा और लाला ग़ज़पति को नागवार लगे और नया बखेड़ा शुरू हो अमूमन गांव वालों ने दोनों पर ध्यान देना बंद कर दिया ।लाला ग़ज़पति और पंडित महिमा लाला शोमारू प्रधान तक सीमित रह गए जिससे गांव वालों का कोई लेना देना नही था।गांव में नौजवानों की नई पौध नए विचारों के साथ नए समय परिवेश में चल आ चुकी थी ।एकाएक लाला ग़ज़पति ने पंडित महिमा दत्त से कहा पंडित आज कल एक बात गौर किया पंडित सब समझते जानते हुए भी मित्र से अनजान बनते पूछा क्या ?लाला ग़ज़पति ने माथे पर बल देते हुये कहा पंडित आज कल गांव  वाले हम लोगो को तवज्वो  नही देते अब हम लोग गुजरे जमाने के जीते जागते लोग रह गए है जिनकी कोई अहमियत नही है।पंडित महिमा दत्त ने भी सहमती से सर हिलाते हुए कहा सही कह रहे हो लाला अब हम लोग गुजरे वक्त के शेर रह गए है जो आज के समय मे ढेर हो चुके है ।लाला ग़ज़पति ने कहा मगर ये कैसे हो सकता है कि लाला गजपति अभी गांव में जिंदा है और गांव वाले उसकी शान में गुस्ताखी करे भाई पंडित महिमा तू ठहरा पंडित आदमी तोहे स्वर्ग नर्क वेद पुराण देवी देवता पाप पुण्य के भय सतावत बा लेकिन हम कायस्त मनई जिनगी के मौज में विश्वास करीत मरे पे का होई नही मतलब पंडित महिमा ने कहा लाला कौनो जुगत लगा जिससे हम दोनों की पूछ गांव में पहले जैसे हो जाय और फिर से हम लोगन के गांव में सल्तनत
कायम हो जाय लाला ग़ज़पति बोले पंडित धीरज रखो एक बात जानत हो पंडित बोले का लाला गजपति बोले जब भारत आजाद भवा ऊ समय दुई महत्वपूर्ण घटना हुई एक देशवा धरम की नाम पर दुई भाग में बंट गया और आजादी के साथ देशवा को दुई विरासत मिली एक देशवा का नाम बदल गवा भारत से हिंदुस्तान होई गावा दूसरा बटवारा सिद्धान्त मिल गया अब आजद मुल्क भारत के गांव गांव में आज नाही त कल इहे दुई आचरण घर घर गांव गांव में दिखे आज नाही त कल भले केतनो नया पौध नौजवान के आ जावे।हम मुल्क की आजादी की विरासत का इस्तेमाल समझो अपने गांव से शुरू  करीत है ताकि आपन गांव देश के भविष्य के आदर्श गांव के नाम से जाना जाई पंडित महिमा बड़े आश्चर्य से बोले मान गए मित्र झूठे थोड़े कहा जात है कि लाला लहर से नोट छाप दे अब बताओ मित्र तोहरे दिमाग मे का चलत बा लाला ग़ज़पति बोले बुरबक पंडित अब तक नाही समझे आज़ादी के विरासत के प्रयोग गांव में होई मतलब गांव में जेतने जाती के टोला है उनके नाम वोही जाती के टोला के नाम से जाना जाय जैसे चम टोली बिन टोली
लाला टोला पंडित टोला ठाकूरान मिया टोली पंडित महिमा बोले ऐसे का होई ?लाला ग़ज़पति थोड़ा गुस्से में बोले  पंडित जिनगी भर बकलोल रहिगे अरे पंडित यही तो भारत से आजाद हिंदुस्तान की विरासत है एक त वैल्लोर गांव न रहिजाय टोलन में बंटी जाय जैसे वोकर पहिचान जाति  के टोलन से जुड़ी जाई पंडित आतुर होई के सवाल कियेन एके बाद का होइ लाला ग़ज़पति बोले पंडित हर टोला जाती में नेता पैदा होइयन और आपस मे हमेशा लडीहन कटिहन तबे त हमारे जईसन लोगन के राजनीति हनक कायम रही सकत पंडित महिमा बड़े गर्व से बोले मान गए मित्र कायस्त की खोपड़ी लाला  ग़ज़पति बोले देखते जाओ मित्र मैं भारत से हन्दुस्तान की आजादी के विरासत की विसात  पर क्या क्या करते है।पंडित महिमा दत्त को जो कांकल मानव खोपड़ी गाँव नदी में स्नान करके लौटते समय रेत में मिली थी उसको उन्होंने बढे जतन से सम्भाल कर अपने व्यक्तिगत कमरे में  छुपा कर रख दिया था प्रतिदिन एक बार अवश्य कमरा खोल कर आस्वस्त होते की खोपड़ी सुरक्षित है कि नही ।एका एक दिन पंडित महिमा के सपने में ठाकुर सतपाल सिंह आये और बोले पंडित हमार मित्र ते हमरे खोपड़ी को काहे एतना जतन से रखे है पंडित जी बोले हमे का मालूम कि जो खोपड़ी हम नदी की रेता से उठा कर लाये है वो तुमरी खोपड़ी है ठाकुर सतपाल खीज कर बोले ससुर के नाती पण्डित जियत जी हमारे खोपड़ी के दम पर गांव में इतना उधम मचाये मरे के बाद उहि खोपड़ी को पहचानत तक नाही है पण्डित बोले बताओ मित्र हम तुम्हरी खोपड़ी को एतना जतन से रखे है अब का करि ठाकुर सतपाल बोले पंडित जियत जी तोके हम मित्रता के नाम पर ढोवत रहेन मरलो के बाद चैन नाही लेबे देत हौ पंडित बोले का  करि मित्र तोहरे मित्रता खातिर ठाकुर सतपाल बोले सुन पंडित जब हम मरेंन हमारी आत्मा जमराज के दरबार मे पहुंची त ऊ कहिन ठाकुर तूने जिंदगी भर लोंगो को दुख पीड़ा क्लेश कलह जैसी व्यधि से परेशान किया है तो तुम्हे भयंकर सजा और नर्क मिलेगा चुकी धोखा मक्कारी और फरेब से लोगो को तबाह परेशान किया इसलिये तुम पहले सांप के रूप में जन्म लोगे और मैं तुरंत साँप के रूप में जन्म लेकर जब रेंगना शुरू किया तभी मेरी माँ मुझे निगलने के लिये झपटी मैं भाग कर अपनी पिछले जन्म  की मानव खोपड़ी  छिप गया जब तुम खोपड़ी के साथ मुझे उठा कर ले जा रहे थे  तब तुम्हे डसने का  मौका मिला मगर मैने तुम्हे पहचान लिया और तुमको छोड़ दिया मगर गांव के पंचायत सदस्यों की बैठक में पीपल के पेड़ पर बैठा पंचायत की कार्यवाही देख रहा था और मालूम हुआ कि यह मीटिंग मेरे ही स्मारक के लिए है और पंचायत सदस्य मेरा स्मारक सदबुद्धि यज्ञ की हवन कुंड के स्थान पर नही बनने देना चाह रहे है तो मैं जान बूझ कर मैं मुसई पर गिरा और डस लिया और गांव वालों ने मुझे मार डाला मरने के बाद मैं पुनः जमराज के दरबार पहुंचा तो जमराज ने कहा अब तुम्हे चूहे बनकर जन्म लेना होगा हमे लगा कि ई जमराज तो हमे जनम दर जनम परेशान करेगा तब मैंने जमराज के खिलाफ अकेले मोर्चा खोला और जमराज के सारे तंत्र को जमराज का ही शत्रु बना दिया अब जमराज को ही यमपूरी में शासन करना दुरूह हो चुका है हमने जमराज  को फरमान दे रखा है सुन जमराज जब तक हमारे दो मित्र पंडित महिमा दत्त एव लाला ग़ज़पति यहां नही आ जाते तब तक तुम केयर टेकर यमपुरी के शासक बन  व्यवस्था की देख रेख करो मेरे दोनों मित्रो के आने के बाद तुम पृथ्वी पर जाकर बिभिन्न शरीरों में भृमण करोगे और यम पूरी की शासन व्यवस्था हम तीनो मित्र संभालेंगे जम पूरी की संसद  सांसद विधायक पार्षद मेरे प्रस्तव को दो तिहाई से सहमति प्रदान कर चुके है अब हम यहाँ यमपुरी में भावी शासक के तौर पर विशिष्ट अतिथी का शुख भोग रहे है और तुम्हारा और लाला ग़ज़पति के आने का इंतजार कर रहे है मगर इसमें एक पेंच फंस गया है पंडित महिमा दत्त बोले क्या मित्र ठाकुर सतपाल ने बताया कि जब तक मेरे किसी जन्म का अवशेष पृथ्वी लोक में है मुझे यम पूरी का पूर्ण स्वामित्व नही मिल सकता है अतः मेरी खोपड़ी के छोटे छोटे टुकड़े कर गांव की नदी में प्रवाहित कर दो इतना कह कर ठाकुर सतपाल अंतर्ध्यान हो गए पंडित महिमा की निद्रा की तंद्रा टूटी और उन्होंने निश्चय किया कि ठाकुर सतपाल की खोपडी अभी नदी में विसर्जित कर देंगे पंडित तुरंत ही अपने खुफिया व्यक्तित्व कमरे को खोला और खोपडी खोजने लगे मगर उनको ठाकुर सतपाल की खोपड़ी कही नही मिली ।पंडित महिमा दत्त को जब ठाकुर सतपाल सिंह की खोपड़ी सारे प्रयत्न के नही मिली तो खीज कर अपनी पत्नी पंडिताइन विमला पूछा कि मैंने अपने कमरे में एक मानव खोपडी रखी थी क्या तुमने देखा पंडिताइन बोली हाँ मैँ आज घर की सफाई कर रही थी मुझे ख्याल आया कि महीनों से तुमरे कमरे की सफाई नही की है उसकी साफ सफाई करनी चाहिये जब मैं सफाई कर रही थी तभी मैन देखा कि वहाँ एक मानव खोपड़ी रखी है पहले तो मुझे यही नही समझ मे आ रहा था कि तुमरे कमरे में ये मानव खोपड़ी आई तो कैसे क्योकि ई कमरा तो तुमरे अलावा कोई खोलत नाही फिर सोचा कि तुम तो सठियाई गए हो अनाप सनाप हरकत करत रहत हो ये तुमरी ही कारस्तानी है  तुम्हें नही मालूम कि घर मे मुर्दा या हड्डी रखना अपशगुन होत है।तुम तो शेष नाग की फुंकार की तरह फुंकार मारीक़े सोई रहे थे हमने डाँगी डोम को पूरे बीस रुपये दिया तब जाकर उसने खोपड़ी के छोटे छोटे टुकड़े करके गांव की नदी में विसर्जित कर दिया पता नही किसकी खोपड़ी थी बेचारे की आत्मा भटक रही होय अब कम से कम स्वर्ग चाहे नरक में वोका कौनो जगह तो मील जाई पंडित महिमा दत्त प्रफुल्लित हो बोले शाबाश पंडिताइन आज जिनगी में नीक काम किये हऊ पंडताईंन बोली ऊ सब त ठीक है मगर ई खुराफात तोहरे दिमाग मे कहाँ से आई गइल की जाने केकर खोपड़ी उठाई लाये और इहो ना समझे कि घर मे मुर्दा क हड्डी रखे अशुभ होत है पंडित तू पगला त पहिले गई रहे अब सठियाई गइल हवो
पंडित जी ने पंडताईंन का कोई जबाब ना देकर पंडिताइन  को चुप रहने को विवस कर दिया।पंडित महिमा दत्त के पेट मे खलबली मची हुई थी वे जल्द से जल्द ठाकुर सतपाल सिंह से सपने  की मुलाकात और खोपडी के साथ सांप के रहस्य को लाला ग़ज़पति से साझा करना चाहते थे फटाफट पंडित तैयार होकर लाला ग़ज़पति से मिलने के लिये चलने को हुए पंडताईंन ने उन्हें जल जलपान के लिये रोकना चाहा मगर पंडित ने पंडताईंन  की एक भी बात नही सुनी और घर से निकल पड़े तुरंत ही वह लाला ग़ज़पति के घर पहुंच गए लाला ग़ज़पति उनको देखकर आश्चर्य से सवाल दाग दिया बोले का पंडित तू रात भर सोए नाही पंडित बोले लाला झट से कुछ जल जलपान कराव स्थिर होई जात हई त तबशील से सारा किस्सा बतावत हई लाला जी स्वयं घर के अंदर गए और जोरदार जलपान की व्यवस्था साथ लेकर आये लाला जी खाने पीने के शौकीन थे पंडित जी ने जलपान शुरू करने से पहले कहा लाला आज लगत ह की हमहू मनई हई एतना बढ़िया जलपान त हम छठे छ मासे करीत है लाला अभिमान से अहल्लादित होकर बोले पंडित जी तोहरे यहाँ त दही चुड़ा और पूड़ी सब्जी वियाह भोज यज्ञ पारोज में चलत ह तू का जान खाय पिये के शौक चल जलपान पाव और बताव की का बाती रही कि तू भागे भागे सुबहे फाटि परे पंडित जी जलपान का  निवाला घोटते हुए रात अपने सपने में
ठाकुर सतपाल से मुलाकात की बात बताई और नदी से नहा के लौटते समय खोपडी और सांप का पूरा किस्सा बताया लाला पंडित की सारी बात सुनने के बाद बोले पंडित लागत है तोहरी दिमागी हालत ठीक नाही है आरे ठाकुर जियत जी कबो कही जात रहा सारा खुराफात हम लोगन के बुलाई के शामिल बाज़ा की तरह बजावत रहा मरे के बाद पड़ा होई कही सपनो में आवे खातिर कुछ मेहनत करे क पड़ी उ त खुराफात क पकापकया माल बैठे खाय का आदि रहा तू नाही जनत हमने के साथी रहा
पंडित बोले लाला विश्वाश करो हम सही बोल रहे है लाला बोले अब पंडित सही बोल या गलत हमे विश्वाश नाही है पंडित बोले भाई गजपति एक दिन तुहु ई सच्चाई के मान जॉब और सुन लाला ठाकुर सतपाल यमराज की सत्ता के चुनौती दिए हन उहा के सारे कारिंदा सांसद विधायक पार्षद के आपने पक्ष में करिके जमराज के अकेला औकात बताई दिए हैं लाला पंडित की बात गौर से सुनने के बाद झट से पंडित की नाड़ी पकड़े बोले पंडित वैसे त तोहार तबियत खराब नाही दिखत बा फिर भी तोहे इलाज की जरूरत बा चाहे तू सठियाई गए हो अनाप सनाप बक़े जाई रहा हौ पंडित बोले लाला तू जौन चाहे बक मगर सच्चाई ईए है लाला ग़ज़पति ने कहा माना ठाकुर सतपाल की खुराफाती खोपडी के लोहा गांव भर मानत रहा और ऊके सिक्का हम लोग चलावत रहे मगर जमपुरी में उनकर औकात कौनो नरक के कीड़ा मकोड़ा के होई
पंडित महिमा दत्त बोले लाला मान चाहे ना मान एक दिन सच्चाई समझ जाब। लाला गजपति बोले छोड़ पंडित ई सब बवाल अब गाँव मे कईसे हम दुनो मनई राज करि ए पर विचार करो पंडित ने मशवरा झट लाला ग़ज़पति को दिया बोले पूरे गांव के टोलो को जो पहले  से जाति के आधार पर बांट दिया है उनको सिर्फ एहसास करके उनमें एक एक नौजवान नेता रूरल बैरिस्टर पैदा कर देते है फिर क्या हम लोग गांव के बादशाह और बादशाहत कायम।।लाला को पंडित का यह सुझाव सटीक लगा और उस पर अमल की कार्य योजना बनाकर रण नीति  कार्य योजना पर विचार विमर्श के बाद पंडित अपने घर चले गए और लाला अपने खुराफात की रणनीति में मशगूल हो गए।दिन बीतने के बाद लाला ग़ज़पति रात्री को खाना खा कर सोने लगे जब लाला ग़ज़पति गहरी नींद में सोए हुए थे कि नीद में एकाएक ठाकुर सतपाल अवतरित होकर बोले लाला ग़ज़पति पंडित महिमा तोहरे पास सपने में हमारी मुलाकात की बात कहेन तू भरोसा काहे नाही किये वैसे तो जिंदा रहित जितना झूठ फरेब कहत करत बोलित तीनो मित्र केहू केहू पर सवाल खड़ा नाही करत मगर आज काहे ना विश्वास कीहै लाला ग़ज़पति बोले हम भूत प्रेत में विश्वास नाही करीत ठाकुर सतपाल बोले सुनो लाला हम भूत उत नाही है हम त भूत बनावे वाला यमराज के भूत बनावे वाला हई तू और पंडित  जब उहा से शरीर छोड़ कर आईब तब यमपुरी की शासन व्यवस्था हम तीनों के हाथ मे रही और यमराज जएहन जमीन पर जमराज के भूत बनके त लाला ग़ज़पति जल्दी से मिशन वैल्लोर पूरा करके यहां आओ यमपुरी की सत्ता संभालनी है और सुनो लाला तू चित्र गुप्त और  जमराज  पंडित यमपुरी की न्याय व्यवस्था सम्भालेंगे न्याय के मुख्य दंडा अधिकरी होंगे और मैं स्वय यमराज की भूमिका निभाउंगा देखो भाई लाला गज़पति हमने यमपुरी की सत्ता हथियाने के लिये यमपुरी में यमराज से अकेले लोहा लिया और सल्तनत कायम की है तुमको पोर्टफोलियो और पद को लेकर कोई संसय हो तो बताओ लाला गजपति बोले नही ठाकुर सतपाल यहाँ भी जीते जी तुमने  हमे और पंडित के लिये सत्ता सुख सोमारू को माध्यम बनाकर सौंपी थी और मरने के बाद भी तुमने दोस्ती का  ख़याल रखा हमे ठाकुर सतपाल का हर फैसला स्वीकार है ।तब ठाकुर सतपाल बोले लाला अब जल्दी से तुम और पंडित मिलकर गाँव बिल्लोर  में हमेशा के लिये हम लोंगो की विचार धरा की स्थाई सत्ता की मुस्तकिल बुनियाद बनाकर यहाँ आओ और हम यहॉ की सत्ता से सम्पूर्ण संसार पर शासन की बागडोर संभाले इतना कह कर ठाकुर सतपाल अंतर्ध्यान हो गए लाला गजपति की नीद खुली सुबह हो चुकी थी लाला गजपति को सुबह नई उर्जा दे रही थी उठकर वे पंडित महिमा का इंतज़ार करने लगे कुछ ही देर सूरज चढ़ने पर पंडित महिमा लाला गजपति के सामने हाज़िर थे उनको देखते ही लाला बोल उठे पंडित तू सही कहत रहे राती  के ठाकुर सतपाल हमरे सपने में भी आयन और सारी बात बताएंन उनकर इच्छा है की हम दुइनो मिलके विल्लोर में अपनी सिद्धान्त की सत्ता जल्दी से मुस्तकिल कर देई अब समय कम है हमे तोहे साथ चलीके जमपुरी में उहोके सत्ता ठाकुर सतपाल के साथ सभालेके बा अब जेतना जल्दी हो सके ईहां के काम पूरा किया जाय पंडित महिमा दत्त ने कहा देखा मित्रता ठाकुर सतपाल दोस्ती के मिशाल कायम किहेन ठाकुर सतपाल की जय जय जय ।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

---------स्मारक-------


गांव में अमूमन शान्ति का माहौल था 
क्योकि गांव के खुराफातियों ठाकुर सतपाल की मृत्यु हो चुकी थी और लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त का मन पसंद शोमारू गांव का प्रधान हो चुका था ।शोमारू कम पढ़ा नही था सिर्फ साक्षर  और सीधा साधा गंवार किस्म का अतिसाधारण ग्रामवासी था उसे किसी खुराफात से कोई मतलब नही था एव ना ही प्रधान होने का गुरुर या लालच।जो भी लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त कहते करता जाता उसके लिये लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के आदेश का पालन ही अपना धर्म कर्म था इसके अतिरिक्त वह अपना कुछ भी दिमाग नही लगाता कुल मिलाकर लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त की चाकरी ही करता।धीरे धीरे समय बीत रहा था गांव वाले भी सुकून में थे किसी को गांव के विकास की कोई फिक्र नही थी खुशी इस बात पर थीं कि गांव में कोई नया फसाद नही खड़ा हो रहा था गांव वालों को लग रहा था गांव का विकास हो या ना हों अमन चैन बना रहे उनको यह भी चिंता नही थी कि पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति शोमारू से अनाप सनाप कार्य एव निर्णय कराते रहते ।चौधरी सुरेमन के प्रधान रहते गांव में विकास की एक धारा बह रही थी और उनकी लोकप्रियता से गांव की खुराफाती तिगड़ी पंडित महिमा दत्त ठाकुर सतपाल एव लाला गजपति उसे परेशान करने की खुराफ़त करते जिसमे वे सफल भी हो गए थे मगर गांव वालों को विकास से अधिक शांति प्रिय लगी और मात्र तीन साल बाद पुनः प्रधानी का चुनाव होना निश्चित था अतः गांव वालों ने  पंडित महिमा दत्त और लाला गजपत की कारगुजारियों की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया।इधर पण्डित महिमा दत्त एव लाला गजपति की मनमानी को शोमारू अपना कतर्व्य मान उनके आदेश का पालन करता जा रहा था।
उधर गांव का चुना प्रधान चौधरी सुरेमन अपनी सजा काट रहा सजा समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहा  था।
 पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति इस बात पर आनंदितआत्मआल्लादित
थे कि मित्र ठाकुर सतपाल ने जाते जाते भी दोस्ती निभाई और हम दोनों मित्रो को अपनी कुर्बानियों से गांव की सत्ता दिलाई बेचारे सतपाल ने दोस्ती की ऐसी मिशाल कायम की जो दूँनिया  में कम ही मिलती है दोस्त सतपाल ने
अपनी  चिता भी मांगी तो मोक्ष या मुक्ति के लिये नही वरन हम दोनों मित्रो के लिये दोस्त हो तो ऐसा पंडित महिमा एव लाला गजपति ने आपस मे विचार किया कि क्यो न हम लोग गांव में ठाकुर सतपाल सिंह के नाम का स्मारक बनवाये  इस कार्य के लिये इस वक्त से मुफीद वक्त नही मिलने वाला क्योकि शोमारू प्रधान है तो मित्र सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जगह भी मिल जाएगी और पैसा भी पंडित महिमा दत्त एव लाला गजपति ने आपस मे सलाह मशविरा करके गांव में जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वही जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये सबसे उचित लगी दोनों स्वयं प्रधान शोमारू के पास गए और ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के वावत बात की जब ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक की बात चल रही थी ठीक उसी समय शोमारू की पंद्रह साल की बेटी चबेना और गुड़ लेकर वहाँ आयी पंडित महिमा और लाला गजपति की निगाह शोमारू की बेटी सुगनी पर पड़ी दोनों ने एक टक देखने के बाद शोमारू से पूछा शोमारू यह तुम्हारी बेटी है सीधा साधा शोमारू निश्चल निर्विकार बोला हाँ हुज़ूर यह मेरी बेटी सुगनी है दसवीं जमात में पढ़ती है अब तक गांव की कउनो लड़की इतना नाही पढ़े है। पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा तोर भाग शोमारू देख आज तक तोरे बिरादरी में केहू प्रधान होखे खातिर  सोच सकत रहे देख ते प्रधान है और एमा हमरे मित्र ठाकुर सतपाल केतनी बड़ी कुर्बानी दिए है ।सुगनी वहां से जा चुकी थी पुनः पंडित महिमा और लाला गजपति ठाकुर सतपाल के स्मारक के लिये विचार विमर्श करने लगे शोमारू प्रधान बोले हुज़ूर आप तो जनते हो हम ठहरे नीरा गवार जहां कहेंगे वहां हम ठाकुर साहब का स्मारक की जमीन की जगह के लिये अंगूठा लगाई देब तब पंडित महिमा एव लाला गजपति ने बड़ी होशियारी से शोमारू को समझाना शुरू किया पंडित महिमा दत्त बोले देखो शोमारू जहाँ सदबुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी वह जगह मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जी के लिये वाजिब होगी क्योंकि सदबुद्धि यज्ञ की आग से ही मुखाग्नि की ठाकुर साहब की अंतिम इच्छा थी और वे उसी अग्नि में समहित भी हुए शोमारू ने पूछा हुज़ूर जब ठाकुर साहब गांव में आग लागे से पहले मर चुके थे तब का उनका मुर्दा आग में कूदा रहा तब लाला गजपति एव पंडित महिमा ने अभियान में एक साथ बोला बक बुरबक कही मुर्दा आग में कूद सकत है और बात को बादलते हुए बोले ई वखत एकर समय नाही है कि मरहूम ठाकुर सतपाल सिंह जिंदा आग में कूदे या जिंदा मणनसन्न अवस्था मे उनका कोउ फेंक दिहेस ई समय उनके स्मारक की बात हुई रही है शोमारू बोला मालिक सदबुद्धि यज्ञ की जमीन त गांव में प्राइमरी पाठशाला खातिर हौ हाकिम लोग जांच पड़ताल करके गवाँ है पुनः लाला  गजपति और पंडित महिमा दत्त ने शोमारू को समझाना शुरू किया बोले देख शोमारू गांव में प्राइमरी पाठशाला खुले ना खुले वोसे ना ते गांव प्रधान बने है और खुलिओ जाय त फिर ना बनपैबे सोमारू बोला हुज़ूर हम प्रधान रही चाहे ना रही मगर गांव में प्राइमरी पाठशाला खुले से गांव के लड़िका पढ़िये लिखिए त गांव के तरक्की होई तब दबाव और भय की राजनीति का दांव खेलते पंडित महिमा और लाला गजपति ने कहा कि देख शोमारू गांव में पाठशाला खुले ना खुले सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति कुंड की जमीन पर ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक जरूर बनी चाहे उनकर बने चाहे तोहरे साथ बने शोमारू को अंदाजा लग गया कि अगर अब उसने आना कानी की तो निश्चित ही दोनों मिलकर उसे सांसत में डाल सकते है शोमारू ने तुरंत कहा हुज़ूर गांव आपोके है आप लोग होशियार मनई ह कुछ गलत थोड़े करब ठीक है ठाकुर साहब के स्मारक जहाँ कहत ह वही बने तब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति एक साथ बोले कल गांव पंचायत सदस्यन से प्रस्ताव पारित कराके सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये निश्चित कराइलेव भईया प्रधान जी शोमारू बाबू इतना कह कर पंडित महिमा और लाला गजपति शोमारू के घर से निकले रास्ते मे पंडित महिमा दत्त बोले कि देखा लाला गजपति सोमारुआ के बिटिया कैसी जवान लाज़बाब गुदड़ी क लाल लागी रही थी लाला गजपति बोले पंडित जी बात त ठिके कहत हौव् मगर समय के इन्तज़ार कर रस और मीठा होई पंडित महिमा दत्त बोले लाला जी सुगनी के हाथे क गुड़ चबेना खाईके हम मताई गइल हई अब त लगता कि गुड़ चबेना खाये रोजे जाएके परी लाला गजपति बोले पंडित तू पगलाई गइल हव सबर कर सबर क फल मीठ होत है जैसे पंडित जी कलेजे पर जैसे पत्थर रख दिया गया हो बोले ठिके ह लाला जी काल हम जात हई नदी नहाए ससुरा गाँवई के पंजरे नदी लरिकाई में सांझा सुबह दुपहरिया हर दम नहात रहेन अब दस वरस होई गइल होली संक्रांति पुर्नवासीओ ना नहाइत काल भोरे जाब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति दोनों अपने घर चले गए।
सुबह चार बजे ब्रह्म मुहूर्त में पंडित महिमा दत्त उठे और पंडिताइन से बताया कि आज गांव के पास नदी स्नान के लिये जा रहे हैं  गांव के पंचायत सदस्यों की बैठक सतपाल सिंह के स्मारक के जमीन पर प्रस्ताव हेतु सहमति पर बैठक से पहले लौट आएंगे । लोटा धोती लेकर स्नान के लिये घर से निकल पड़े नदी गांव से लगभग  आधे मिल दूरी पर थी अतः कुछ ही देर में पंडित महिमा दत्त नदी तट पहुंचे तुरंत नित्य कर्म से निबृत्त होकर नदी में स्नान किया और फिर गांव की ओर चलने लगे। ज्यो ही दस कदम आगे बढ़े उनके दाहिने पैर का अंगूठा नदी की रेत में किसी खोखले बस्तु में फंस गया पंडित जी ने गौर से देखा तो वह किसी मानव की खोपड़ी की अस्ति पंजर थी जिसमे उनके पैर का अंगूठा फंस गया था पंडित जी ने विचार किया कि अभी नदी स्नान कर निकले है यह भगवान की कृपा है कि यह मानव खोपड़ी किसी विशेष भविष्य में छिपे रहस्य के कारण ही टकराई है क्यो न इसे संभाल कर घर ले चला जाय पंडित जी ज्यो ही उस खोपड़ी को उठाने के लिये नीचे झुके देखा कि खोपड़ी में गेहुआँ सांप कोबरा छिपा बैठा था पंडित जी को लगा जैसे भगवान स्वयं उस मानव खोपड़ी में सांप बनकर बैठे है सो पंडित जी ने  मानव खोपड़ी को अपने भीगे कपड़े में बड़ी मुश्किल से लपेट लिया जिसमें खोपड़ी के साथ साथ साँप भी उसी गीले कपड़े में बंध गया अब पंडित जी खोपड़ी और उसमें छिपे सांप को अपने डंडे के एक किनारे बांध लिया और डंडे को कंधे पर रख कर गांव में  वही पहुंचे जहां गांव के देवता के स्थान पर पीपल के पेड़ के निचे ठाकुर सतपाल के स्मारक की जमीन के प्रस्ताव पर विचार विमर्श चल रहा था जब पंडित जी वहां पहुंचे तो पंचायत के जले भुने सदस्यों ने व्यंग मारते हुए एक स्वर में कहा आईये यहां लाला गजपति तो थे ही आपही की कमी थी पंडित जी ने भी उसी अंदाज में जबाब दिया तुम गांव वालों की क्या मजाल जो मेरे और लाला गजपति के बिना कोई भी कार्य कर सको लो मैँ हाजिर हो गया।
अब पुनः ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक के लिये जमीन पर चर्चा शुरू हुई पंचायत के सारे सदस्य अड़े थे कि सदबुद्धि यज्ञ के पुर्णाहुति की जगह गांव में प्राइमरी स्कूल के लिये है अतः उसे स्मारक के लिये नही दिया जा सकता पंडित जी के आने से पहले लाला गजपति ग्राम पंचायत के सदस्यों को संमझा कर तंग आ चुके थे मगर कोई असर नही हुआ। शोमारू प्रधान ने कह रखा था कि गांव पंचायत सदस्यों को मनाना पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति का काम है।तेज हवा पछुआ भी चल रही थी और बसंत का खुशगवार मौसम था पंडित जी ने अपने गीली धोती में बंधी मानव खोपड़ी अपने डंडे सहित पीपत के पेड़ में किसी तरह अटका रखी थी जब पंडित जी पंचायत की बैठक में आये और पीपल के पेड़ में अपनी लाठी में बंधे खोपड़ी को   रखने की जुगत कर रहे थे तभी बैठक में बैठे सभी पंचायत सदस्यों को किसी खुराफात की आसंका हुई मगर किसी ने ध्यान इसलिये नही दिया कि कोई खास बात  नज़र नही आई।पंडित जी की पुरानी धोती में बंधी खोपडी गांव पंचायत बैठक में पहुचते पहुचते फट चुकी थी पंडित जी की लाठी के एक किनारे लटकी खोपड़ी से सांप कभी कभार अपना फन निकाल कर बाहर निकलने की आहट लेता मगर डंडे के एक किनारे लटके होने के कारण अपना फन फिर खोपड़ी में छुपा लेता अब वह पीपल के पेड़ पर फ़टी धोती से निकल कर पंचायत सदस्यों की चल रही बैठक के ठीक ऊपर वाली पतली डाल पर बैठा हवा के झोंको का आनंद ले रहा था।लाला लाजपत ने पंडित महिमा को बताया कि उनके आने से पहले उसने पंचायत सदस्यों को समझाने की बहुत कोशिश की मगर पंचायत सदस्य सद्बुद्धि यज्ञ हवन कुंड की जगह प्राइमरी विद्यालय बनाने को आड़े है।पंडित महिमा के समझ मे आ गया कि बात सीधे नही बनने वाली है उन्होंने बोलना शुरू किया देखो भाई पंचायत सदस्यों सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड के जगह पर तो मरहूम ठाकुर सतपाल जी का स्मारक ही बनेगा चाहे जितना बखेड़ा खड़ा करना हो कर लो ठाकुर सतपाल ने शरीर छोड़ा  है ना तो हम लोगों का साथ छोड़ा है ना गांव ठाकुर आदमी जो चाहते है उसे जिंदा या मुर्दा किसी तरह पूरा ही करते है।अब मैँ ठाकुर सतपाल से ही पूछता हूं बताओ मित्र तुम्हारा स्मारक सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड पर बनेगा की नही पंचायत के सारे सदस्य पंडित महिमा का चेहरा देखते कहने लगे पण्डितवा पगलाई गवा का ई ससुर जियत है तो स्मारक के जमीन खातिर कुछ करि नाही पावत हैं अब मुर्दा ठग सतपाल का करि जब जिंदा लाला गजपति और ई कुछ नाही करि सकत अभी संसय परिहास के मध्य पंचायत सदस्य पड़े हुये थे कि खोपड़ी का सांप जो खोपड़ी से निकल  पीपल के डाल पर बैठा था एकाएक पंचायत सदस्य मुसई पर गिरा और उसको डस लिया मुसई गिरकर तड़फड़ाने लगा बाकी लोगों ने मिलकर साँप को मारने की कोशिश और बड़ी मुश्किल से उसे मार सके अब मुसई के उपचार में झाड़ फूंक हुआ मगर मुसाई  को बचाया नही जा सका ।गांव वालों के बीच चर्चा आम हो गई कि सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड की जगह ठाकुर सतपाल के स्मारक हेतु दे  दी जानी चाहिए नही तो जीते जी ठाकुर ने कम परेशान किया मरने के बाद और परेशान करेगा जैसा कि पंडित महिमा कह रहे थे अब  पंचायत के सभी सदस्य एकमत होकर  सदबुद्धि यज्ञ की जमीन ठाकुर सतपाल सिंह जी के स्मारक के लिये दे दी और सभी ने मिलकर ठाकुर का भव्य स्मारक बनवाया और बड़े जोर शोर से उसका उद्घाटन विधि विधान से करवाया और ठाकुर साहब की प्रतिमा के समक्ष खड़े होकर गांव की हिपज़त का आशीर्वाद मांगते हुए प्रार्थना की ठाकुर साहब आपने जीवित रहते हुए अपने दो मित्रो लाला गजपति और पंडित महिमा के साथ मिल कर गांव वालों को बहुत परेशान किया मरते मरते भी आपने चैधरी सुरेंमन को जेल भेज दिया और अब मुसाई की जान आपके ही स्मारक के चक्कर मे अखड़ेरे चली गयी अब आप हम गांव वालों पर रहम करो ।गाँव वालों की प्रार्थना सुनकर पंडित महिमा और लाला गजपति बोले गांव वाले आप चिंता ना करो हम लोग ठाकुर सतपाल की आत्मा को मनाएंगे और कोशिश करेंगे कि अब गांव में शांति सौहार्दपूर्ण वातावरण बरकरार रहे मगर इसके लिये गांव के हर घर से ठाकुर सतपाल सिंह के स्मारक पर एक रुपया हर इतवार को चढ़ाया जाना होगा गांव वालों ने खुशी खुशी पंडित और लाला की शर्त स्वीकार कर ली अब क्या था हर इतवार को लाला और पंडित के पास पांच सौ रूपये आ जाते जिससे वे अपनी अनाप सनाप जरूरतों हेतु खर्च करते।गांव में अमूमन शांति का माहौल कायम था।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सुधीर श्रीवास्तव

सायली छंद 
**********
माचिस
+==+==+
माचिस
चूल्हा जलाए
घर भी जलाए
करें कैसे
उपयोग
+++ 
खुद
जल जाऊँगी
तुम्हारे काम आऊँगी
यही स्वभाव
मेरा
+++
तीली
मात्र एक
परिदृश्य बदल देती
सावधान रहिए
विचारिये।
+++
माचिस
न रहे
चूल्हा नहीं जलेगा
नहीं पकेगा
भोजन
+++
औकात
मत देखो
आप सब मेरा
सोच लीजिए
पछताओगे।
+++
सिर्फ़
एक तीली
औकात बता देती
हर कोई
नतमस्तक
+++
माचिस
सिखाती हमें
एकता का महत्व
बँटकर हुए
अस्तित्वहीन
+++
मुझे
भड़काओ मत,
अस्तित्व विहीन होगे
मेरे साथ
तुम
+++
◆ सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

रामकेश एम यादव

वर्षा ऋतु!
रिमझिम फुहारों से दिल फिर खिलेंगे,
मेघों के काँधे नभ हम उड़ेंगे।
बात करेंगे उड़ती तितलियों से,
भौंरों के होंठों से नगमें चुनेंगे।
चिलचिलाती धूप से कितना जले थे,
मिलकर बरखा से शिकायत करेंगे।
पाकर उसे खेत -खलिहान सजते,
आखिर उदर भी तो उससे भरेंगे।
धरती का सारा खजाना है वो,
उसकी बदौलत परिन्दे उड़ेंगे।
अगर वो नहीं, तो ये दुनिया नहीं,
तख़्त-ए -ताऊत रहके क्या करेंगे?
वही है जड़, और वही है चेतन,
उसकी अदा पे हम मरते रहेंगे।
गदराई दामिनी दमकेगी कैसे,
नदियों के घूँघट कैसे उठेंगे।
बहेगी संपदा जीवन की जग में,
उसके ही सहारे वो झूले सजेंगे।
हे! वर्षा ऋतु, तू ऋतुओं की रानी,
पांव तेरे नूपुर कब छम-छम करेंगे?

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

कुमार@विशु

अन्नपूर्णा हो तुम घर की।
====================
तुम  साँस हो मेरे जीवन की,
शोभा हो तुम घर-आंगन की,
तुम सरल हृदय गृहलक्ष्मी हो
अन्नपूर्णा हो तुम इस घर की।।
====================
है  त्याग  समर्पण जीवन में,
है   प्रेम  बसा  अन्तर्मन   में,
निश्छल सेवा का भाव लिए,
तपती रहती मन ही मन में।।

सहचरी सदा हो तुम नर की,
एहसास  दिए अपनेपन की,
जीवन पथ को आसान करे,
प्रेरणास्रोत  बनकर  नर की।।

गृह  प्रगति  देख तुम हर्षाती,
घर को तुम स्वर्ग बना जाती,
पोषित करती परिवार सदा,
सो अन्नपूर्णा हो तुम घर की।

तुम  धूरी  गृहस्थी जीवन की,
तुम दिव्यपुंज हो दिनकर की,
भरती  प्रकाश घर  आंगन में,
खुद दर्द  हृदय  सहती रहती।।

जीवनरथ का तुम हो पहिया,
बारिश हो सुखकर सावन की,
है  कठिन  साधनामय जीवन,
तुम सजग साधिका हो घर की।।

नर  जीवन  के   संघर्षों   में,
भरती हो शक्ति सदा रण की,
खुशियों  के  द्वार खुले तुमसे,
अन्नपूर्णा हो तुम इस घर की।।

कब सूरज ने जगते देखा है,
कब देखा  सोते निशिचर ने,
गृहजन को  सदा  जगाया है,
तेरे कंठ से निकले भजनों ने।।

सर्दी हो या बारिश का मौसम,
तपती दोपहरी  सा  है जीवन,
है  स्वार्थहीन  निर्मल  जीवन,
तुम निर्झर तरंगिणी सी पावन।।

वात्सल्य लुटाती माँ बनकर,
कली हो तुम हर आँगन की,
अर्धांगिनी सदा नर संग चले,
अन्नपर्णा हो तुम इस घर की।।

🙏कुमार@विशु
❣️स्वरचित मौलिक रचना

जया मोहन

पतंगा
शमा ने कहा आओ मेरे पतंगे
हम सुकून की थोड़ी साँसे और जी ले
फिर तो मेरी लौ जलेगी
तेरे जींवन को खत्म करेगी
मेरा क्या मैं जल कर बुझ जाऊँगी तू हट जा मत फना हो मुझ पर
हँस कर पतंगा बोला  मैं बेवफा नही मेरी दिलबर
तू तो    मेरी मंज़िल है
तुझको पाना मेरी ज़िद है
ये सच है हमारी उम्र कम है
क्या करे रब ने मोहब्बत इतनी दी है
पगली तू क्यों रोती है
तू भी तो मेरे लिए जलती है
न जाने किन कर्मो का श्राप विधाता ने हमे दिया है
जो ऐसी प्रीत से हमे रंगा है
मेरे मरने पर तेरी लौ थरथराती है
खुद को जला कर तू चुपके से बुझ जाती है

स्वारचित
जया मोहन
प्रयागराज

डा. नीलम

*उष्ण भोर*

खुले किवार क्षितिज के
स्वर्ण किरण रही झांक
कपोत रंगी गगन पर
फैल गया रंगोली का रंग

देख खाली मैदान को
धवल गिरी के पृष्ठ से
निकल आया आदित्य
करने अपनी मनमानी

मंद शीतल बयार के
ऑंचल में उसने अपनी
थोड़ी उष्णता बांध दी
शनै:-शनै: बढ़ने लगी
उसकी मनमानी

क्षणिक देर खग चहक गये
फूल खिल मुर्झा गए
हां अमलताश,पलाश के
दिन खिलने के आ गये
उष्ण भोर आ गई।

         डा. नीलम

डाॅ० निधि मिश्रा

*कुण्डलिया* 

दिया सदा उम्मीद का,  मन में  रखो जलाय, 
हो निराश क्यूँ रात- दिन, अँखियन नीर बहाय, 
अँखियन नीर बहाय, हौसला हारे है क्यूँ?
मिट जायेगा तिमिर, उगेगा प्राची रवि ज्यूँ। 
कहें नव्य निधि दीप, जो भी आस जगा लिया। 
बनकर सूरज तेज,  जगती को जीवन  दिया।

स्वरचित- 
डाॅ०निधि मिश्रा

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

दसवाँ-5
  *दसवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
छूइ चरन तब धाइ प्रभू कै।
करन लगे स्तुती किसुन कै।।
    हे घनरूप सच्चिदानंदा।
    हे जोगेस्वर नंदहिं नंदा।।
अहउ तमहिं परमेस्वर नाथा।
सकल चराचर तुम्हरे साथा।।
     तुमहिं त जगतै स्वामी सभ जन।
     अंतःकरण-प्रान अरु तन-मन।।
तुम्ह अबिनासी अरु सभ-ब्यापी।
रहहु अदृस सभकर बपु थापी।।
    तुम्ह महतत्वयि प्रकृति स्वरूपा।
    सुक्ष्मइ सत-रज-तमो अनूपा ।।
तुम्ह परमातम जानन हारा।
सूक्ष्म-थूल-तन कर्मन्ह सारा।।
     समुझि न आवै तुम्हरी माया।
     जदि उर बृत्ति-बिकार समाया।।
तुमहीं अद्य-भविष्यत-भूता।
नाथ भगत जन एकल दूता।।
    बासुदेव प्रभु करहुँ प्रनामा।
     पर ब्रह्महिं प्रभु सभ गुन-धामा।।
प्रनमहिं हम दोउ भ्रात तुमहिं कहँ।
तुमहिं भगावत पाप मही कहँ।।
     लइ अवतारहिं धारि सरीरा।
     हरहिं नाथ सभ बिधि जग-पीरा।।
पुरवहिं प्रभू सकल अभिलासा।
बनै निरासा तुरतै आसा ।।
     साधन-साध्यइ अहहिं कन्हैया।
     मंगल अरु कल्यान कै नैया।।
परम सांत जदुबंस-सिरोमन।
निसि-दिन रहैं सबहिं के चित-मन।।
      प्रभु अनंत हम सभ प्रभु-दासा।
       प्रभुहिं त आसा अरु बिस्वासा।।
दोहा-नारद कीन्ह अनुग्रहहि, भयो दरस प्रभु आजु।
        तारे प्रभु हम पापिहीं,सुफल जनम भे काजु।।
                    डॉ0हरि नाथ मिश्र
                      9919446372

ज्योति तिवारी बैंगलोर

जीवन में शब्दों ‌का व्यापक है मोल
जो कुछ मुख से बोलिए पहले लीजे तोल

नीरस मन से जग में
होवे ना कोई काज
प्रफुल्लित उर विकसित करें
सुंदर सभ्य समाज

बड़ी विवशता  उर में
कैसे उन्हें बताएं
मुख दर्पण वर्णन करें
मन में जो है समाए।।

सुप्रभात🙏🏻🌹

ज्योति तिवारी बैंगलोर

नूतन लाल साहू

मैं जल हूं

मेरे स्वर में कल कल है
एक कल में इतिहास का बोध
दूसरे कल में
भविष्य का शोध है
सतत प्रवाहमान
मेरी है पहचान
मैं जल हूं
गति में चंचल
पर भावना में अचल
प्यास बुझाने के पहले
नही पूछता
दोस्त हो या दुश्मन
हर कोई प्यार से नहाएं
और जी भर के पीता है
मैं जल हूं
सूर्य भगवान के लिए
मैं अर्ध्य बन जाता हूं और
दुखी मनुष्यो के आंखो में
आंसू बनकर
मैं ही तो रोता हूं
गर्मियों में आनंदमयी
फुहार बन जाता हूं
मैं जल हूं
मेरी बूंद बूंद अक्षर है
गति कभी,मंद ना हुई
सभ्यताएं मुझमें समाती है
घुल मिल जाती है
कभी कभी धूप में
गुनगुना होकर
गुनगुनाता हूं
सीने में रहूं या पसीने में
शीतलता का गीत गाता हूं
मैं जल हूं

नूतन लाल साहू

मधु शंखधर स्वतंत्र

🙏🏼 *सुप्रभातम्*🙏🏼
*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷
🌹🌹 *जाग्रत*🌹🌹
----------------------------------
◆ जाग्रत मानव ही करे , सत्य स्वयं स्वीकार।
कर्म विचारों से अधिक, संकल्पित आधार।
छूना चाहे आसमां, पाना चाहे नेह,
जाग्रत मन की सोच का, भिन्न भिन्न व्यवहार।।

जाग्रत ही सुशुप्त मनुज, देता है पहचान।
प्रतिपल सार्थक वो करे, कर्म पथिक का मान।
अगणित कंटक की डगर, बाधाएँ सब ओर।
कर्म भाव में सजगता, जाग्रत का संज्ञान।।

जाग्रत मन की अवस्था, जीव बनाए बुद्ध।
बुद्धि विचारों में प्रबल, अन्तर्मन से शुद्ध।
सतत कर्म की कल्पना, जीवन का विश्वास।
कामचोर को देखकर, जाग्रत ही हो क्रुद्ध।।

जाग्रत को होता नहीं, जीवन पथ का त्रास। 
लक्ष्य प्राप्ति करता वही, अटल धरे विश्वास।
भावों की संकल्पना, प्रतिपल का उपयोग,
जाग्रत मानव ही बने, जीवन पथ पर खास।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*02.06.2021*

एस के कपूर श्री हंस

हार्दिक शुभकामनाओं सहित 
स्नेहिल अभिनंदन    आपका।
आशाओं से       परिपूर्ण प्रातः 
कालीन   नमन        आपका।।
सुख सम्रद्धि और   चैन शांति 
की वर्षा    होती    रहे निरंतर।
*एक नई    सुबह पुनः   से  है*
*अभिवादन   वंदन   आपका।।*
👌👌👌👌👌👌👌👌
*शुभ प्रभात।।।।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।  एस के कपूर*
👍👍👍👍👍👍👍👍

*दिनाँक. 02. 06. 2021*

1
पल पल  रोज़ बदलती कुछ 
नया रंग   है          जिन्दगी।
चुनौतियों का  करो  सामना 
यही      ढंग है       जिन्दगी।।
जिन्दगी की  जंग हार  कर 
बैठना.    ठीक  नहीं   होता।
अगर खुद पर है  विश्वास तो
जीत       के संग है जिन्दगी।।
2
मानवता आदमी.   को इक़
इंसान बना        देती      है।
कोशिश हर  मुश्किल    को
आसान बना        देती    है।।
कर्म को यूँ ही   नही   कहा
जाता            है         पूजा।
मेहनत से  तराशो     पत्थर
भगवान बना           देती है।।
3
कुछ ऐसा करो  कि  चलती
जिंदगी  कारवाँ  बन   जाये।
निगाह हर  किसी  की  तुझ
पर   मेहरबां   बन      जाये।
तेरी कोशिश हो  बस किसी
और के  आँसू  पोंछने    की।
जुड़  कर यह   दुनिया   इक
प्यार  का जहाँ   बन    जाये।।

*रचयिता।।।।एस के कपूर*
*"श्री हंस"।।।।बरेली।।।।।*
मोब  9897071046।।।।
8218685464।।।।।।।।।

रामबाबू शर्मा राजस्थानी


              बाल मनुहार
               ~~~~~~
               आसमान में,
               पंछी  चहके..
               मन हर्षाया।
             आँगन महका,
               फूल  खिले..
               देखो भाया।।

               दादा  बोला,
               उठ  जाओ..
              खुशी मनाओ।
             समय सुबह का,
              सब  मिल कर..
              मंगल  गाओ।।

              माँ से बढ़़कर,
             है भारत माता..
          इस पर जन्म लिया।
             शीश झुकाकर,
             सब करो वंदना..
         हमकों अन्न खिलाया।
                🌾🌾
           ©®
  
            रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)



                  कविता

            *जीवनसाथी*
                  ~~~~ 
      जीवन साथी साथ निभाता,
      नैतिकता की भी जिम्मेदारी।
      सफलता की राह दिखाता,
      सामाजिकता की पहरेदारी।।

      अनजान मुसाफ़िर मिलकर,
      अरमानों का महल सजाते हैं।
      जीवन की बगिया में सजकर,
      खुशियों के  फूल खिलाते हैं।।

      परम्पराओं का यह मेल-जोल,
      सतकर्मो से ही जुड़ पाया है।
      इस धरती पर स्वंय परमेश्वर,
      जीवन साथी रूप में आया है।।
     
      सुख-दु:ख का भी आना-जाना,
      प्रीत लग्न की ये रीत निभाता।
      छोटी-छोटी बातों का टकराना,
      फिर मिल प्यार से बातें करता।।
     
      कितना सुखद नजारा है यहाँ
      देखो ये रंग-रंग के फूल खिले।
      सभी कामना करते हमें वापस,
      ऐसा ही जीवन आधार मिले।।

        ©®

     रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिंदगी और हवाई जहाज़---

जिंदगी हवाई जहाज
ख्वाबों खयालो कल्पना
उड़ानों में उड़ती ।।
खूबसूरत कल्पना लोक
विचरती कभी कल्पना
ख़्वाब खयाल वास्तविकता
वास्तव के रनवे पर चक्कर
काटती एरोड्रम पर रुकती।।
करती कुछ विश्राम ।।
नई सोच नई कल्पना की 
उड़ान उड़ती नए अम्बर की
ऊंचाई का पंख परवाज़।।
उड़ते आकाश में कभी
आशाओ के बादल साफ
निराशाओं का अंधकार।।
डगमगाता खतरे के देता
संकेत कभी सभल जाता
कभी अविनि पर चकनाचूर।।
अविनि से जीवन शुरू
अविनि ही शमशान कब्रिस्तान
कल्पनाओं ख्वाब की उड़ान
विखर जाती टुकड़े हज़ार।।
हवाओं में उड़ना इंसानी
जिंदगी फितरत अंदाज़
जिंदगी का जांबाज 
पंख परवाज हवाई जहाज।।
कल्पना लोक में उड़ते 
समय मौसम खराब
तमाम खतरे तमाम 
फिर भी बेफिक्र लड़ता
जीवन की कल्पनो की
उड़ान भरता जिंदगी में
इंसान।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गंगा दोहा-चौपाई मिश्रित प्रयास(अवधी में)
             गंगा माँ
अहहि गंग-जल परम पुनीता।
भगत पान करि भवहिं अभीता।।

करि स्नान ध्यान करि गंगा।
नर जावहिं भव-पार उमंगा।।

दोहा-गंगा-जल अमरित अहहि, तन-मन करै निरोग।
         करि नहान यहि नीर मा, पायँ मुक्ति सब लोग।।

सगर आदि तरिगे छुइ सलिला।
कबहुँ न नीर गंग  मट मइला ।।

सुरसरि अहहि अभूषन संकर।
हरहि तुरत भव-कष्ट  भयंकर।।

दोहा-संकर-सिर-सोभा इहै,करैं इहै कल्यान।
        सकल तीर्थ इन मा बसै,सुभकर होय नहान।।

ऋषीकेस-कासी-हरिद्वारा।
बहहि गंग हरि ताप अपारा।।

संगम-गंग-जमुन-स्थाना।
तरहिं लोंग जा करि स्नाना।।

दोहा-गंग-जमुन-संगम सुखद,तीरथराज प्रयाग।
         कुंभपर्व- महिमा प्रबल,सब हिय रह अनुराग।।

सत-सत नमन करउँ कर जोरी।
सुरसरि  मातु  गंग  मैं तोरी।।

दोहा- अमरित-औषधि गंग-जल,करै जगत-कल्यान।
         धन्य भूमि भारत इहै ,जासु  गंग  सम्मान ।।
                           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                             9919446372

कुमकुम सिंह

माटी के देहिया माटी मिल जाएगी,

मिट्टी है मिट्टी में मिल जाना है
 चाहत है लाखों करोड़ों की।
लेकिन यही सब रह जाना है 
खाली हाथ आए थे खाली हाथ ही जाना है।

क्या अपना क्या पढ़ाया 
सब है मोह माया।
बस दस्तूर को निभाना है
कुछ नहीं बचा जो कि लेकर जाना है।

क्या रंक क्या हे राजा
सबको पंछी बन उड़ जाना है।
जीवन कुछ दिन के खेल है प्यारे
अंत में सांसे भी साथ छोड़ जाना है।

ले ले हरी का नाम
चाहे ना जाओ चारों धाम।
दिल में हो सांवरिया की सूरत
आंखें बंद कर दर्शन पाना है।

हरि का नाम जपते जपते
आंखें बंद कर जाना है।
क्यों करता है हाय हाय रे बंदे
खाली हाथ ही तो जाना है।
दिल की तमन्ना कसक मेरे मन की

  तेरे जाने की कसक ,
दिल में अभी बाकी है।
उसी मोड़ पे खड़ी हूं मैं, 
जहां से वापस आना मेरा अभी बाकी है।

********************

तेरा आना दिल में ,
यू जगह बनाना। 
जैसे बादल में था ,
सूरज का छुप जाना।

वही आग, वही तपन ,
दिल में आज भी लगी है। 
जैसे पहली बार, मिले थे हम।
राज अभी बताना बाकी है


कॉलेज में कक्षा के आखिरी सीट में बैठना, 
बार-बार झांकना और नजरें को फिर झुकाना।
नजर मिलते ही अपनी नजरों को इधर-उधर घुमाना। और वह तेरा धीरे से मुस्कुराना ।

वो प्यार कितना सच्चा था,
उसमें तनिक भी कच्चापन्न था।
एक दूसरे को दिल से चाहते थे,
ना कोई हवस ना कोई बालापन था।

अपने दिल से उस ख्याल को ,
निकालना अभी बाकी है।

तेरा मुझ पर वो हक जताना ,
किसी और को देखने पे वो नजरें टिकाना।
जैसे कि अंदर से आत्मा को चीर कर रख देना,
वो पीर अभी दिल से निकालना बाकी है।

और मुझे इशारों से बताना। यह ठीक नहीं है, 
उससे बचा कर रखना।
तेरा वह नजराना ,
दिल में मेरे अभी बाकी है।

वह पहले मिलन की आह,
ढूंढती है फिर से वही निगाह।
दिल का कत्लेआम करना,
 अभी बाकी है।

🙏🏻कुमकुम सिंह🙏🏻

निशा अतुल्य

कविता
अंतर्मन
2.6.2021

अंतर्मन का कोलाहल
जब हद से बढ़ जाता है
तब मौन मुखरित होता है
मन फिर सबकुछ पा जाता है ।

सुन हृदय की बात जरा 
मन को अपने साधो 
ये जग बहुत ही सुन्दर है
बात हमें बतलाता है ।

जीने के लिए जरूरी जितना
वो ईश्वर राह चलाता है
इच्छाओं की अभिलाषा
जीवन को भटकाता है ।

थोड़ा बोलो,थोड़ा सा गुनो
सोच समझ कर आगे बढ़ो
जीवन जीना है बहुत सरल 
अतीत हमें बतलाता है ।

अपने बचपन को याद करो
ज्यादा की न थी अभिलाषा
जितना पाया खुश रहे सदा
सखि-सखे के संग बांटा ।

कमी कभी न तब देखी
न जीवन इधर उधर भागा
इच्छाएं थी बहुत सीमित 
और संग थी प्रेम की परिभाषा।

सब सच्चे थे जो अपने थे
उनसे ही लड़े और प्रेम किया
अब क्यों न विचार रहे ऐसे
अब क्योंकर जीवन कठिन हुआ।

अब आत्म निरीक्षण जरूरी है
स्वयं की पहचान जरूरी है 
क्या चाहते हो तुम बन मानव
बस एक सद्भाव जरूरी है ।

अपने मन को पहचानो तुम 
उसकी ही बात को मानो तुम
कोई काम बुरा नहीं करना
ये जीवन सरल बना लो तुम 

हो विपदा में जब भी कोई
तब संकट उसका टारो तुम
संजीवनी न ला पाओ तो 
जीवन आस बंधा दो तुम ।

शिव को मन से पहचानो तुम 
विष शब्दों का,कंठ में धारो तुम
फिर मुश्किल न कभी कोई होगी
बस अंतर्मन पहचानो तुम ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

श्रीमती चंचल हरेंद्र वशिष्ट

०२/०६/२०२१
-*----*----*----*----*----*-
शीर्षक: 'बुद्ध के मार्ग  पर चल'

बुद्ध के मार्ग पर चल रे प्राणी!,बुद्ध के मार्ग पर चल
बुद्ध की राह निर्मल,रे प्राणी!बुद्ध की राह निर्मल।

अष्टांगिक मार्ग अपनाकर जीवन को बना सफल......
सत्पथ पर ही पाएगा प्राणी जीवन का सार सकल।
टेक:   रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल..... 

मानव जन्म अनमोल मिला सत्कर्म करले निश्च्छल 
प्रेम,अहिंसा,दया धर्म, और सत्य मार्ग पर चल।
टेक:  रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल .....

बुद्ध ने जो संदेश दिया सदा उस पर करना अमल
वसुधैव कुटुंबकम् की भावना अपनाके ही चल।
टेक: रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल........

दया,दान,सेवा कर उनकी हैं जो दीन हीन निर्बल
सभी संतान हैं एक ईश की करना ना किसी से छल।
टेक:   रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल......

इस नश्वर संसार में ज्ञान और संयम ही है तेरा बल
दुनिया के हर जीव पर बरसा तू नेह भाव अविरल।
टेक:  रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल.....

सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने की राह नहीं थी सरल
दृढ़संकल्प,ज्ञान और इच्छा शक्ति थी अति प्रबल।
टेक:  रे प्राणी! बुद्ध के मार्ग पर चल......

ज्ञान की खोज में अडिग बढ़े जो करके निश्चय अटल
मध्यम मार्ग को अपनाकर ही बनती है राह सरल।

-*----*----*----*----*----*----*----*----*----*-
स्वरचित रचना:
श्रीमती चंचल हरेंद्र वशिष्ट,
हिंदी प्राध्यापिका,थियेटर शिक्षिका एवं कवयित्री
आर के पुरम,नई दिल्ली

जया मोहन

कविता
छोड़ चला
एक ही आवाज कानो में आती है बार बार
और हम सबको करती है आगाह
इस दुनियां की नाट्यशाला में अपना अभिनय पूरा करके जाना सभी को है
एक ही मंज़िल पर छोड़ इस जहाँ को तोड़ ममता मोह को
साथ न ले जा पाओगे
धन दौलत का अंबार
याद किया जायेगा तेरा
अच्छा य बुरा व्यवहार
क्यों गर्व दिखाता है प्राणी
क्या जरा धन या  ज़मीन के झगड़े
तेरी बताते नही नादानी
अभी भी सुधर जा अभी भी वक्त है
वर्ना चार लोगों के कंधों की पालकी पर अरमानों को समेटे
बैठे की जगह लेटे जाएगा तू श्मशान घाट और कानों में आएगी यही आवाज़
छोड़ चला जीव एक दुनियां का तख्तों ताज
आ रही एक ही आवाज 
कानो में बार बार

स्वारचित

जया मोहन
प्रयागराज

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

.
            *दो जून की रोटी*
                  ~~~~
       संस्कृतियों की आन-बान-शान,
       अपनापन सा सिखलाती है।
       यह *दो जून की रोटी* सब्जी,
       हम सबकी भूख मिटाती है।।

       ऋषि मुनियों का देश हमारा,
       मानवता की पहरेदारी।
       यह *दो जून की रोटी* सब्जी,
       एक दूसरे की जिम्मेदारी।।

       जन्म-मरण तक का पावन बंधन,
       जैवविविधता का रखवाला।
       यह *दो जून की सब्जी* रोटी,
       मन से खाये,जो मतवाला।।

       रिश्तेदार, दोस्त,परिवार जन,
       मनभावन से तीज त्योहार।
       यह *दो जून की रोटी* सब्जी, 
       समय पर गाती मंगलाचार।।

       परमेश्वर से यही कामना
       हाथ जोड़ हमारी प्रार्थना।
       यह *दो जून की रोटी* सब्जी,
       जन जन को *बराबर* बाँटना।।

      ©®
     रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

सुधीर श्रीवास्तव

सायली छंद 
**********
माचिस
+==+==+
माचिस
चूल्हा जलाए
घर भी जलाए
करें कैसे
उपयोग
+++ 
खुद
जल जाऊँगी
तुम्हारे काम आऊँगी
यही स्वभाव
मेरा
+++
तीली
मात्र एक
परिदृश्य बदल देती
सावधान रहिए
विचारिये।
+++
माचिस
न रहे
चूल्हा नहीं जलेगा
नहीं पकेगा
भोजन
+++
औकात
मत देखो
आप सब मेरा
सोच लीजिए
पछताओगे।
+++
सिर्फ़
एक तीली
औकात बता देती
हर कोई
नतमस्तक
+++
माचिस
सिखाती हमें
एकता का महत्व
बँटकर हुए
अस्तित्वहीन
+++
मुझे
भड़काओ मत,
अस्तित्व विहीन होगे
मेरे साथ
तुम
+++
◆ सुधीर श्रीवास्तव
        गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

अनिल गर्ग कानपुर

💕काव्य रंगोली परिवार 💕

*हमारा ग्रुप प्यार का मंदिर है,
*बहुत सुन्दर है!*
*इसे और सुन्दर बनाओ।*
*मन ऐसा रखो कि*
*किसी को बुरा न लगे।*
*दिल ऐसा रखो कि*
*किसी को दुःखी न करे।*
*रिश्ता ऐसा रखो कि*
*उसका अंत न हो।*
*हमने रिश्तों को संभाला है!*
*मोतियों की तरह*
*कोई गिर भी जाए तो*
*झुक के उठा लेते हैं!*
*ग्रुप नहीं ये परिवार है,*
*बसता जहाँ प्यार है।*
*सुख के तो साथी हजार है*
*यहां सब जिंदगी के आधार है*
*अपनों सा प्यार है यहाँ*,
*इसके लिए सबका आभार है*
*काम हो कोई तो बता देना*
*इस ग्रुप में हर कोई तैयार है*
*सब को साथ जोडने के लिए*
*सभी का दिल से आभार है*
*बांटना है तो बांट लो खुशी…*
*क्यो की आंसू तो सबके पास हैं*!!
*नीरज* तुम सिर्फ ग्रुप बना गये हों,
पर इस ग्रुप को तो सभी सदस्य मिलकर चलाते हैं देखो कैसे काव्य रचनाओं से रंगोली सजाते हैं।
निष्ठुर तुमने दगा कर दिया इस बार 

अनिल गर्ग, कानपुर

डा. नीलम

*उष्ण भोर*

खुले किवार क्षितिज के
स्वर्ण किरण रही झांक
कपोत रंगी गगन पर
फैल गया रंगोली का रंग

देख खाली मैदान को
धवल गिरी के पृष्ठ से
निकल आया आदित्य
करने अपनी मनमानी

मंद शीतल बयार के
ऑंचल में उसने अपनी
थोड़ी उष्णता बांध दी
शनै:-शनै: बढ़ने लगी
उसकी मनमानी

क्षणिक देर खग चहक गये
फूल खिल मुर्झा गए
हां अमलताश,पलाश के
दिन खिलने के आ गये
उष्ण भोर आ गई।

         डा. नीलम

सुधीर श्रीवास्तव

संजीदगी
********
अब तो संजीदा हो जाइए
उच्चश्रृंखलता छोड़िए,
समय की नजाकत महसूस कीजिए माहौल अनुकूल नहीं है
जान लीजिए।
लापरवाही और गैरजिम्मेदारी
भारी पड़ती जा रही है,
आपको शायद अहसास नहीं है
कितनों को खून के आँसू रुला रही है।
धन, दौलत, रुतबा भी
कहाँ काम आ रहा है,
चार काँधे भी कितनों को
नसीब नहीं हो रहे हैं,
अपने ही अपनों को आखिरी बार
देखने को भी तरस जा रहे हैं,
सब कुछ होते हुए भी
लावारिसों सा अंजाम सह रहे हैं।
अपनी ही आदतों से हम
कहाँ बाज आ रहे हैं,
खुल्लमखुल्ला दुर्गतियों को
आमंत्रण दे रहे हैं।
कम से कम अब तो 
संजीदगी दिखाइये,
अपने लिए नहीं तो
अपने बच्चों के लिए ही सही
अपनी आँखें खोल लीजिए।
आज समय की यही जरूरत है
संजीदगी को अपनी आदत में
शामिल तो करिए ही,
औरों को भी संजीदगी का
पाठ पढ़ाना शुरु कर दीजिए।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...