सौरभ प्रभात

*वर्षागमन (गीत)*

घन घन घोर बदरिया छाये
रह रह के जियरा धड़काये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

सनन सनन सन हवा चले जब
हँसी अधर तब आतीं हैं
पावस की ये पावन बूँदें
मन के कष्ट मिटातीं हैं
नाचे यौवन छम छम छम छम
राग द्वेष सब दे बिसराये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

छनन छनन छन बाजे पायल
सदा सुनाये ताल नया
हाथों में फिर कंगन बोले
कर दे दिल के हाल बयां
कोयल कूके डाली डाली
आम्र गंध आँगन महकाये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

चहके चपला हिरणी बनकर
घूमे देखो गली गली
तीखे तीखे नक्श नयन से
हिय लुटाती है वो चली
बरसे बादल झम झम झम झम
नचे मोरनी पर फैलाये
उमड़ घुमड़ मन भाव सजाके
घूँघट खोल प्रिया हरषाये

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

डाॅ०निधि मिश्रा

*हर एक अदा को मेरी कोई राज समझ लेते हैं* 

हर एक अदा को मेरी कोई राज समझ लेते हैं, 
बेवजह नाम मेरा उसके संग यूँ ही जोड़ देते हैं। 

कसूर है नही किसी का सब वक्त-ए-गुनाह है, 
हम साँस भी लेते हैं वो आहों का नाम देते हैं। 

इन आँखों के तरन्नुम में मेरी सादगी छिपी, 
जाने क्यूँ इनको सभी इश्क़ ए सलाम कहते हैं। 

चहरे को देखते न दिल का आइना देखें, 
हँसीं रुखसार को उसी की मुहब्बत करार देते हैं। 

खुशियाँ तमाम मिल जाये मेरे रकीब को, 
ये सोच कर हम अपने गम पे गुमान करते हैं। 

जिसको नहीं परवाह रश्म-ए-वफा की हो, 
भूले से भी नहीं हम अब उसका लेते हैं। 

 *स्वरचित-* 
 *डाॅ०निधि मिश्रा ,*

रवि रश्मि अनुभूति

मिसरा ----
हर इक प्यासे को बादल लिख रहा है।
****
बह्र  ----
1222    1222    122
*क़ाफ़िया*    ----     अल
*रदीफ़*       ----      लिख रहा है ।
क़ाफ़िया के उदाहरण ---- पागल,बादल,फल,मुसलसल,हलचल,मखमल,जंगल,मक्तल,हल,कल,जल,छल,निर्बल,निर्मल,दलदल,बेकल,कोमल,चंचल,पलपल,संबल,मलमल,मंगल,निश्छल,शीतल,पीतल,इत्यादि ।

पूरा शेर इस प्रकार है  ----
*ये क्या तहरीर पागल,लिख रहा है ।*
*हर इक प्यासे को बादल लिख रहा है ।*


     ग़ज़ल 
  ********
  वो खुद अपने को विस्मिल लिख रहा है .....
ज़माना हमको क़ातिल लिख रहा है .....

उगलता आग  सूरज देखिये तो .....
कोई पागल तो शीतल लिख रहा है .....

बरसते देख ओले बारिशों में .....
अभी से दिल उसे जल लिख रहा है .....

दिखा जो वस्त्र सूती जब उसे तो .....
उसे क्यों वस्त्र मखमल लिख रहा है .....

ज़रा देखी लड़ाई जो उसी ने .....
उसे क्योंकर वो दंगल लिख रहा है .....

बुझी ही प्यास प्यासे की नहीं जो .....
( हर इक प्यासे को बादल लिख रहा है .....) 

जिसे अपने नही अंजाम की ख़बर
मगर वह सुनहरा कल लिख रहा है .....
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति ' 
5.6.2021, 11:04 पीएम पर रचित ।
मुंबई   ( महाराष्ट्र ) ।
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
🙏🙏समीक्षार्थ व संशोधनार्थ ।🌹🌹

1222     1222    122

सौरभ प्रभात

*विज्ञात सवैया*

23 वर्ण 12,11 पर यति के साथ लिखा जाता है
इसमें 4 पंक्ति 8 चरण रहते हैं 
तुकांत सम चरण में मिलाया जाता है 
चारों पंक्ति के तुकांत समान्त रहते हैं।
वाचिक रूप मान्य रहता है।
इसमें गण व्यवस्था और मापनी निम्न प्रकार से रहती है 
रगण तगण तगण मगण, रगण भगण तगण गुरु गुरु
212 221 221 222, 212 211 221 22
*****************************

श्वास की है डोर टूटी सदा देखो,
कामना नित्य रचे भाव काले।
कौन पूछे काल नाचे नचाये क्यों,
आस तोड़े हिय के बंद ताले।
भोर की वो चाँदनी मृत्यु के जैसी,
जीभ से छीन रही क्यों निवाले।
कृष्ण आयेंगें जरा देर तो होगी,
साफ होंगें पर सौभाग्य जाले।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

नूतन लाल साहू

हंसी

हंसी बहुआयामी है
आती है तो आती है
नही आती तो नही आती है
जिगर फेफड़े आंत यकृत तिल्ली
गुर्दे पसली,पेट की झिल्ली
इन सबके लिए व्यायामी है
जो अट्टहास करता है
तो उनके,हाथ पैर 
पेट और पाचन तंत्र
सबकी मशक्कत हो जाती है
जो मनहूस रहता है
उन्हें कब्ज और अनेक
 शारीरिक मानसिक दिक्कत हो सकती है
पर,हंसी आसान नहीं है
आती है तो आती है
नही आती तो नही आती है
और कभी कभी तो 
अकेले में भी,हंसी आ जाती है
कभी कभी,हंसी आती है
शब्दो के उलट फेर में
तो कभी कभी,हंसी आती है
बहुत ही देर से
नवजात बच्चों की हंसी
मां की मुट्ठी में है
बड़े बच्चों की हंसी
स्कूल की छुट्टी में है
पागल हंसे, तो विकार है
दुश्मन हंसे, तो कटार है
हीरो हंसे, तो झंकार है
हीरोइन हंसे, तो बहार है
हंसी धन्य भी है और धिक्कार भी है
द्रौपती ने,दुर्योधन पर हंसी
तो महाभारत युद्ध करा दी
हंसी चीज करामाती है
आती है तो आती है
नही आती तो नही आती है

नूतन लाल साहू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

ग्यारहवाँ-5
   *ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
कछुक काल बीते दोउ भाई।
लगे चराने बछरू जाई।।
    जहँ रहँ गऊ चरैं तहँ बछरू।
    निज पग किसुन बजावैं घुघुरू।।
कबहुँ बजाय बाँसुरी नटवर।
चित-मन-पीर हरैं जग प्रियवर।।
     फेंकैं ढेला-गोली कबहूँ।
      बिगैं गुलेल राम सँग हुबहू।।
खेलहिं खेल कबहुँ दोउ भाई।
गाय-बैल बनि धाई-धाई ।।
     कबहुँ साँड़ बनि हुँकड़हिं दोऊ।
     बोलहिं जनु पंछी बनि सोऊ।।
कोयल-बानर-मोरहिं बोली।
बोलि-बोलि वै करहिं ठिठोली।।
     बनि साधारन बालक नाईं।
     खेलत अइसइ रहे गोसाईं।।
एक बेरि बलराम-कन्हाई।
जमुना-तट रह गाय चराई।।
    दइत एक तहवाँ तब आवा।
     रूप बच्छ गो-झुंडहिं जावा।।
जानि दइत इक बच्छहि रूपा।
वहि लखाय बलराम अनूपा।
    पकरि पुच्छ तिसु किसुन पछारे।
    फेंकि गगन तरु कैथय डारे।।
कैथ तरू पे गिरतै दैता।
छटपटाइ भे प्रानहिं रहिता।।
   ग्वाल-बाल सभ करैं प्रसंसा।
   मारे किसुन बृषभ जस भैंसा।।
वाह-वाह सभ लागे कहने।
सुमन सुरहिं सभ लगे बरसने।।
          डॉ0 हरि नाथ मिश्र
          9919446372


ग्यारहवाँ-4
*ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4
बाबा नंद सकल ब्रजबासी।
होइ इकत्रित सबहिं उलासी।।
आपसु मा मिलि करैं बिचारा।
भवा रहा जे अत्याचारा।।
     ब्रज के महाबनय के अंदर।
     इक-इक तहँ उत्पात भयंकर।।
गोपी एक रहा उपनंदा।
जरठ-अनुभवी मीतइ नंदा।।
    कह बलराम-किसुन सभ लइका।
    खेलैं-कूदें नहिं डरि-डरि का ।।
यहि कारन बन तजि सभ चलऊ।
कउनउ अउर जगह सभ रहऊ।।
      सुधि सभ करउ पूतना-करनी।
       उलटि गयी लढ़ीया यहि धरनी।।
अवा बवंडर धारी दइता।
उड़ा गगन मा किसुनहिं सहिता।।
     पुनि यमलार्जुन तरु महँ फँसई।
     सिसू किसुन आपुनो कन्हई।।
बड़-बड़ पून्य अहहि कुल-देवा।
किसुनहिं बचा असीषहिं लेवा।।
     करउ न देर चलउ बृंदाबन।
      बछरू-गाइ समेतहिं बन-ठन।।
हरा-भरा बन बृंदाबनयी।
पर्बत-घास-बनस्पति उँहयी।।
      बछरू-गाइ सकल पसु हमरे।
      चरि-चरि घास उछरिहैं सगरे।।
                डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शीर्षक--विरह

रचना--

छोड़ गए जबसे जीवन विरान हुआ
विरह वेदना में गुलशन उजाड़ हुआ
पल पल खुशबू का मौसम मधुवन
मौसम कुछ उदास है।।
रिम झिम सावन की फुहार
तेरा शर्माना सावन की घाटाओं
जैसे जुल्फों में तेरे चाँद से चेहरे
का छुप जाना बस यादों का ही
साथ है ।।                              

खुशियां कब आयी कब चली गईं
जिंदगी खुशियों यादों का इंतज़ार है शायद फिर दुनियां में मेरे आ जाये बहार उम्मीदों का साथ है ।।
राह निहारु संदेशा भेजूं दिल की गहराई से दूं आवाज़ जीवन का विश्वास सांसों धड़कन का राज आ जा अब भी बची हुई कुछ आस हैं।।
बीराने सुने मन मे अब बसता
नही भगवान है तेरे जाने से भाग्य
समय काल भगवान भी रूठा।  
सुख बैभव सब कुछ है दुनियां में
मौसम भी मधुमास है तेरे ही ना
होने से मौसम कुछ उदास है।।
बारिस का पानी कागज़ की
कस्ती बचपन अंजाने का 
प्यार जाने कब एहसास हुआ
जीवन का व्यवहार है।।
तुमने भी जीवन खाब सजाए
जाने कितनी कसमे खाये कसम
तोड़ दिए सारे भूल गए प्यार के
सारे रीति रिवाज।।
दिल दुनियां दामन में क़िस्मत
खुशियां शीतल चाँद की चॉदनी
सावन की सर्द सुहानी हवाए  
वासंती बयार है तेरे ही ना होने से
मेरी दुनियां में दर्द बहुत मौसम
कुछ उदास।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

मधु शंखधर स्वतंत्र

मधु के मधुमय मुक्तक
🌹🌹 *धरोहर*🌹🌹
----------------------------------
◆ बसा धरोहर भाव से, मात पिता को मूल।
जन्मदायिनी माँ सुखद, पिता प्रेम अनुकूल।
सेवा से जो कर सको, कर्म निहित सत्कार,
स्वयं श्रेष्ठता भाव से, लो चरणों 
की धूल।।

◆ बनी धरोहर सभ्यता, शुचि पावन आधार ।
पौराणिक सब ग्रंथ में, शुभ गीता का सार।
श्रेष्ठ मनुज कर्तव्य ही, सार्थक जीवन ध्येय,
सतत सहेजे प्राण सम, बाँटे कुल  में प्यार।।

◆ पूज्य धरोहर पूजते, देवालय सम  रूप।
बचा स्वयं संस्कृति को , छाँव बना लो धूप।
पीपल बरगद नीम को, ईश रूप में मान,
पूज रहे हैं आज भी, धरती के सब भूप।।

◆ सिन्धु सभ्यता आज तक , बनी धरोहर शुद्ध।
राम कृष्ण की भूमि भी, रक्षित करते बुद्ध।
सत्य मूल में है बसा , वही धरोहर ज्ञान,
संकल्पित शुभ भावना, प्रेम विजेता  क्रुद्ध।। 
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*07.06.2021*

एस के कपूर श्री हंस

विषय।।मुक्तक।।*
*।।रचना शीर्षक।।*
*।पत्थर के मकान।कंक्रीट का जंगल बन गया जहान।*
1
आजकल घर नहीं पत्थर के मकान होते हैं।
सवेंदना शून्य  खामोश से वीरान होते हैं।।
घर को रैन बसेरा कहना   ही  ठीक होगा।
कुत्ते से सावधान दरवाजे की शान होते हैं।।
2
घर में चहल पहल नहीं सूने  ठिकाने हैं।
मकान में कम बोलते मानो कि बेगाने हैं।।
सूर्य चंद्रमा की   किरणें  नहीं आती यहां।
संस्कारों की बात वाले हो चुके पुराने हैं।।
3
हर किरदार में अहम  का  भाव होता है।
स्नेह प्रेम नहीं दीवारों   से लगाव होता है।।
समर्पण का समय   नहीं  किसी के पास।
आस्था आशीर्वाद का नहीं बहाव होता है।।
4
आदमी नहीं मशीनों यहाँ  का वास होता है।
पैसे  की चमक का मतलब खास होता है।।
मूर्तियाँ ईश्वर की होती बहुत ही आलीशान।
पर आचरण कहीं नहीं  आसपास होता है।।
5
जमीन नहीं यहां पर   बड़े  मकान होते हैं।
मतलब के  ही आते कुछ  मेहमान होते हैं।।
दौलत से मिलती सारी   नकली खुशी  यहाँ।
पैसे पर खड़े ये घर नहीं ऊँचे   मचान होते हैं।।
*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस।।*
*बरेली।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

बाल-कविता
गुल गुलाब का अतिशय सुंदर,
काँटों में खिलता है।
रामू चाचा का कहना है-
दुख में सुख पलता है।।

श्यामू भैया तुम भी सुन लो,
सचमुच बात यही है।
पहले कसरत कर लो कस के-
तब मधु फल मिलता है।।

कहें गाँव के पंडित जी भी,
प्यारे बच्चों सुन लो।
जो कक्षा में मेहनत करता-
अफ़सर वह बनता है।।

खेल-कूद भी बहुत जरूरी,
गीत-नृत्य भी सीखो।
तन-मन को ये रखें मुदित नित-
पाठ रुचिर लगता है।

छोटू-चुन्नू-मुन्नू तुम सब,
ज्ञान बात की मानो।
पहले रात अँधेरी रहती-
तब सूरज उगता है।।
     गुल गुलाब का कितना सुंदर,
      काँटों में खिलता है।।
               ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

कुमकुम सिंह

इम्तिहान है जिंदगी 

इम्तिहान ही तो है यह जिंदगी,
 इतना आसान थोड़ी है जिंदगी।
कभी हंसाती कभी रुलाती,
कभी तो खुद पर परेशान हो जाती है जिंदगी।

संघर्ष का नाम ही इम्तिहान है,
बहुत कुछ सुन के चुप रह जाना भी तो इम्तिहान है।
 दरो दीवार से टकराकर,
सहज हो जाना भी तो इम्तिहान है जिंदगी।

कभी आसमा तो कभी जमीन के लिए तरसती है जिंदगी,
कभी शक्त और खामोश होकर गुजरती है जिंदगी।
इस पथरीले राह पर चलना भी तो ,
इम्तिहान है जिंदगी।

दिल से प्रार्थना कर गुजरती है जिंदगी,
सत्य से मिलना है झूठ से बिगड़ती है जिंदगी।
सत्य और झूठ का ,
सामना करना भी तो इम्तिहान है जिंदगी।

ए जिंदगी तू इतना इम्तिहान मत ले ,
टूट के बिखर जाऊं मैं तेरे दर पर ।
तू इतना परेशान मत कर,
परेशानियों में भी तो इम्तिहान है जिंदगी


कुमकुम सिंह

निशा अतुल्य

अन्न
7.6.2021

जीवन का संघर्ष सदा है ,
कभी बुझा और कभी हरा है।
पेट पीठ से बांध प्रभु ने,
कर्मपथ प्रशस्त किया है ।

पेट अगर न होता पीठ संग,
क्षुधा भी नही होती जग में ।
कोई करता कर्म  नहीं यहाँ, 
अनाज की जरूरत कहाँ होती ।

सोच समझ मानव को बनाया,
ईश्वर का है विधान बड़ा ।
क्या रहा उसके मन में समाया,
कौन भला ये जान सका ।

अब अनाज ही जीवन सबका,
कृषक अनाज उपजाता है ।
हो जाती तैयार फसल जब,
मंडी बेचने आता है ।

भागमभाग जीवन की ,
अनाज पर जा कर खत्म हुई।
जीवन पूरा अनाज पर निर्भर,
हमको ये समझाता है ।

करो सम्मान सदा तुम अन्न का,
शरीर इससे ही अमृत रस पाता है।
जीवन तब तक चलता रहता,
जब तक अन्न चलाता है ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

इश्क़ की आबरू हम बढ़ाते रहे
अश्क पीते रहे मुस्कुराते रहे

एक मुद्दत हुई जिनसे बिछड़े हुए
हर नफ़स वो हमें याद आते रहे

यूँ तो वाबस्तगी हर क़दम पर रही 
जाने क्यों हौसले डगमगाते रहे 

इक ज़रा देर की रौशनी को फ़कत
अहले-दानिश भी घर को जलाते रहे

इस कदर बढ़ गयी ख़्वाहिश-ए - मयकशी
मककदे में ही हर शब बिताते रहे

वो ग़ज़ल इस कदर ख़ूबसूरत लगी
रात भर ही उसे गुनगुनाते रहे

दौरे- *साग़र* चला मयकदे में मगर
जश्ने-तशनालबी हम मनाते रहे

🖋️विनय साग़र जायसवाल ,बरेली

रामकेश एम यादव

मेहनत!

बिना मेहनत के कुछ हो नहीं सकता,
पृथ्वी गति न करे, तो दिन निकल नहीं सकता।
मेहनत से ही चलता है किस्मत का सिक्का,
मेहनत बिना जीवन संवर नहीं सकता।
मेहनत की खुशबू से है धरा महकती,
उड़ें न भौरा तो कली तक पहुँच नहीं सकता।
सजा रहता है झूठ हमारी जुबानों पे,
डगर सत्य की न पकड़ें मोक्ष मिल नहीं सकता।
किसान अगर वो मेहनत से बीज न बोये,
तो एक भी दाना खेत से मिल नहीं सकता।
सिंहासन भी बिना मेहनत के मिलता नहीं,
बिना हिम्मत के कोई जंग जीत नहीं सकता।
कुदरत से अदावत करना घाटे का सौदा,
तनी उसकी भृकुटी तो कोई बच नहीं सकता।
एटम-बम,मिसाइलें,  बारूद दरिया में डाल,
संयम के बिना जहां में टिक नहीं सकता।
मेहनत का फल आज नहीं,तो कल मिलेगा,
बिना बूँद के सागर कभी भर नहीं सकता।
मनुष्य है अपने भाग्य का स्वयं निर्माता,
बिना कठोर श्रम के सृजन कर नहीं सकता।
_________________________________

दिल तेरा चुरायेंगे!

चोरी -चोरी दिल तेरा चुरायेंगे,
रफ्ता -रफ़्ता पास तेरे आयेंगे।
दिन  गुजरेँगे  सारी  मस्ती में,
हम  जमाने को भूल  जायेंगे।
बुझेगी प्यास हम दीवानों की,
जामभरी आँख में डूब जायेंगे।
सुलग रही आग बिना पानी की,
तेरी  दरिया में उसे   बुझायेंगे।
घुट रहा है दम दरो -दीवारों में,
जुहू - बीच जाके लौट आयेंगे।
कैसे  जाओगे  लॉकडाउन में,
आसमां में आशियाँ  बसायेंगे।
तन्हाइयों से कोई कितना खेले,
प्यार का  गुल नया  खिलायेंगे।
हया भरी है  मेरी इन आँखों में,
मंद -मंद  मुस्कान वो  चुरायेंगे।
रात -रात नींद मुझे नहीं आती,
हम  ख़्वाबों में रोज सुलायेंगे।
अब आ रही है जुदाई की बेला,
दो जिस्म, एक जां हो जायेंगे।
चोरी -चोरी दिल तेरा चुरायेंगे,
रफ़्ता -रफ़्ता पास तेरे आयेंगे।
दिन  गुजरेंगे  सारी  मस्ती   में,
हम  जमाने  को  भूल  जायेंगे।

रामकेश एम. यादव(कवि,साहित्यकार), मुंबई

कुमार@विशु

साथ हो  तुम अगर  ,  राह  आसां लगे  जिंदगी का,
साथ दो तुम अगर , कट ये जाए सफर जिंदगी का।।

वादियाँ ये फिजाएँ बुलाए , 
बिन तेरे ये मुझे ही सताए,
देख झरने भी क्या गुनगुनाए,
बिन तेरे गीत ना मन को भाए।।
उठ  रही  है  लहर  देख कैसे,
प्यार पाने को आतुर हो जैसे,
बूँद बारिश की तन को जलाए,
जैसे सावन अगन नित लगाए।।
साथ हो तुम अगर , शबनमी हर प्रहर जिंदगी का,
साथ दो तुम अगर , कट ये जाए सफर जिंदगी का।।

फुल तुम बिन लगे काँट जैसे,
सेज  चुभता  कटे  रात  कैसे,
चाँदनी  भी  तपन  है  बढ़ाती,
जेठ  का  दोपहर  मानो  जैसे।।
बाहों  का तेरे  मिलता  सहारा,
काले केशों का हो छाँव प्यारा,
खिलखिलाती हैं सारी दिशाएँ,
दो नयन ज्यों ही करते इशारा।।
कुछ रहा ना खबर , दिल बना हमसफर जिंदगी का,
साथ दो तुम अगर , कट ये जाए सफर जिंदगी का।।

थक गया चाँद पर ना थके तुम,
ढल गया दिन मगर संग थे तुम,
जिंदगी ने  दिए  जख्म जब भी,
बनके  मरहम  रहे  साथ में तुम।।
अश्रु  बनकर  कभी  दर्द  छलका,
खारा जल बनके आँखों से बरखा,
हर कदम तुमने दिल को सम्भाला,
बेबसी  में  कदम  जो  ये  बहका।।
कितना गिरता अगर , हिस्सा होते ना तुम जिंदगी का,
साथ  दो  तुम  अगर , कट ये जाए सफर जिंदगी का ।।
✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-सुकून मिलता है
विधा-कविता
------------------------------------
सबा में ठंडी हवा घुल जाए सुकून मिलता है,
तेरा ख़्याल दवा बन जाए सुकून मिलता है।

कुरेदने वाला गर दिल सिल जाए सुकून मिलता है,
बेक़रार दिल को क़रार आ जाए सुकून मिलता है।

बेशक़ तसव्वुर में आए पर हक़ से इस दिल में रुक जाए सुकून मिलता है,
मेरी ख़ामोशियों के मंज़र को मौसीक़ी-ए-मोहब्बत बना जाए सुकून मिलता है।

कोई सादापन का इंसान अपनापन दे जाए सुकून मिलता है,
बाहों में आकर अपने होने का एहसास करा जाए सुकून मिलता है।

अरमान-ए-गुल खिलकर दिल को कन्नौज सा महका जाए सुकून मिलता है,
दिन हो या रात संग रहे तू पास तेरे लिए जो लिखूँ गर वो अल्फ़ाज़ हमको हमराज़ बना जाए सुकून मिलता है।

रचनाकार-अतुल पाठक धैर्य
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

एस के कपूर श्री हंस

।।हे कॅरोना सुन ले बात ,यह
खरी खरी।।

1
जिन्दगी है  जैसे  डरी     डरी।
चाल आदमी की  मरी    मरी।।
हवा बन गई     जली    जली।
कॅरोना आफत  बड़ी     बड़ी।।
2
घर में ही रहो बस  घड़ी  घड़ी।
टिके उनकी उम्र चढ़ी     चढ़ी।।
बात करना नहीं  बड़ी     बड़ी।
दूर से दोस्ती जैसे  लड़ी  लड़ी।।
3
दौलत रह जायेगी  धरी    धरी।
धोते    रहो हाथ    घड़ी   घड़ी।।
काहे को भीड़ में  खड़ी   खड़ी।
कुछ दिन घर  रहो    पड़ी पड़ी।।
4
क्यों खाते डिब्बाबंद सड़ी सड़ी।
फल सब्जी खाओ  हरी     हरी।।
कॅरोना आया  है   मुड़ी     मुड़ी।
रोग रोधी क्षमता हो बड़ी   बड़ी।।
5
कॅरोना इक़    दुष्ट     विषाणु   है।
ये जैसे छोटा   बम  परमाणु    है।।
करना है इसको      समूल    नष्ट।
मानव जाति पर न   कृपाणु    है।।
6
नियम पालन दवाई  और  कड़ाई।
करनी कॅरोना पे मिलकर   चढ़ाई।।
लगवायें वैक्सीन   जल्दी   जल्दी।
सबने मिल कर लड़नी ये   लड़ाई।।
7
सुन ले बात ये कॅरोना कड़ी  कड़ी। 
दवाई की खुराक   है  चली   चली।।
तुझको भारत में हम टिकने न देंगें।
सुन लो कॅरोना बात यह खरी खरी।।

______________________


आपकी खुशी का सरोकार
करते हैं   हम।
दिल से आपके   लिए प्यार
करते हैं   हम।।
आज की   प्रभात   बेला में
किया   है याद।

यशपाल सिंह चौहान

हकीक़त जाननी

गर हकीकत जाननी है तो अपने अंदर झाँक के देख।
किसी को नजर में गिराने से पहले आंँख मिला के देख।।

सारे जहांं में मुकम्मल नहीं है कोई भी दस्तकार ।
गैरत बचाने के लिए इंसानियत को तराश के देख।।

क्यूँ ना जाने बेशुमार मुगालते पाल रखे हैं तुमने।
ईमान से झूठ फरेब का यह दामन छुड़ाकर के देख।।

 इस नफरतों से भरे दिल में बढ़ी हैं खलिश बेइंतेहाँ।
टूटे हुए दिलों पर मोहब्बत भरा लेप चढ़ा के देख।।

जुनून,पागलपन आपसी तनाज़ा, दिलों में खौफ है यश।
ऐसे उजड़े चमन की बेबसी खुद महसूस करके देख।।

यशपाल सिंह चौहान
  नई दिल्ली

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

पावनमंच को प्रणाम, धनवन्तरि शतक भाग दो के आगेका अवलोकन करें.....          रजः प्रवर्धनी लेहु अशोका याकि चन्द्र प्रभा कै प्रभाऊ गनाई।।                     मुसली सफेदु गहो कछू गोलिनु टेबलेट सतावरी बैद सुझाई ।।                           कछुवै बैद्य कहै सर्पगन्धा औ संग मा जौ त्रिफला कू देहु चलाई ।।                   भाखत चंचल काव कही तबु गोद मा बाल तो लेहू खेलाई ।।1।।                         जोड़नु पीरू उठै दिनुरैनु उ चाहय बुढापा जवानु देखाई।।                           लोग बतावतु ग्रीसु घटै औ दूजनु कार्बनु नामु गनाई ।।                                      पीर उठै यहु भाँति शरीरू बरननि काहुनु भाँति ना जाई।।                         भाखत चंचल जानौ इहय जस सरवरु मीनहु काढि़ बहाई।।2।।                         नारी कहूँ या कहूँ नर को नाहि विलोकतु उमरि कहाई।।                       बैठतु उठतु या धावतु डोलतु दस पाँचौ कदम नहि दूरि ना जाई।।                       नामु गनावतु बैद्य यहय कह़ू साटिका या कहो गठिया हु भाई।।                       भाखत चंचल काव कही धनवन्तरि मा बहु नीकु दवाई ।।3।।                            गैरलिक टेबलेट ज्वाइन्ट एक्ट औ आयल रोमा जौ लेहु धराई।।                          पेन रिलेक्सो रखौ घर माँहि या खावहु त्रिफला कै गोली जौ धाई।।                      कैल्सियम टेबलेट डी बी यस कै औ अर्क मा तुलसी पियो अबु जाई।।                        भाखत चंचल खाय लियौ कछू मासु तौ दौड़ जवान पछारहु जाई।।4।।                   आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल ।ओमनगर,सुलतानपुर, उलरा,चन्दौकी, अमेठी ,उ.प्र.।। मोबाइल नंबर..... 8853521398,9125519009।।

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

ग्यारहवाँ-1
  *ग्यारहवाँ अध्याय*(कृष्णचरितबखान)-1
भई भयंकर ध्वनि तरु गिरतै।
दुइ तरु अर्जुन भुइँ पे परतै।।
      बाबा नंद औरु सभ गोपी।
      बज्र-पात जनु भयो सकोपी।।
सोचि-सोचि सभ भए अचंभित।
अस कस भयो सबहिं भे संकित।।
     डरतइ-डरत सभें तहँ गयऊ।
     लखे बृच्छ अर्जुन भुइँ परऊ।।
जदपि न जानि परा कछु कारन।
लखे कृष्न खैंचत रजु धारन।।
     ऊखल-बँधी कमर सँग रसरी।
     तरुहिं फँसल रह खींचत पसरी।।
अस कस भवा सोचि उदबिग्ना।
मन सभकर रह सोचि निमग्ना।।
     कछु बालक तहँ खेलत रहऊ।
      लगे कहन सभ किसुना करऊ।।
ऊखल फँसा त खैंचन लागे।
गिरत बिटप लखि हम सभ भागे।।
    निकसे तहँ तें दुइ तनधारी।
    सुघ्घर पुरुष स्वस्थ-मनहारी।।
पर ना होय केहू बिस्वासा।
किसुन उखरिहैं तरु नहिं आसा।।
     अति लघु बालक अस कस करई।
     नहिं परितीति केहू मन अवई ।।
सुधि करि लीला पहिले वाली।
सभ कह किसुन होय बलसाली।।
      प्रिय प्रानहुँ तें लखि निज सुतहीं।
      रसरी बँधा कृष्न जहँ रहहीं।।
बाबा नंद गए तहँ तुरतइ।
किसुनहिं मुक्तइ कीन्ह वहीं पइ।।
    कबहुँ-कबहुँ प्रभु कृपा-निकेता।
     नाचहिं ठुमुकि गोपि-संकेता।।
खेल देखावैं जस कठपुतली।
नाचहिं किसुन पहिनि वस झिंगुली।।
    लावहिं कबहुँ खड़ाऊँ-पीढ़ा।
     आयसु लइ गोपिन्ह बनि डीढ़ा।।
                डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

जिंदगी और रेल गाड़ी----

जिंदगी समय काल 
संग नित्य निरंतर 
चलती सुख दुख की
अनुभूति।।
जिंदगी रेलगाड़ी 
रिश्तो के डिब्बो का
साथ रिश्तो के डिब्बों में
भावनाओ का सवार ।।
अपनी रफ्तार से मंजिल
की तरफ बढ़ती कभी
खुशियों का प्लेटफार्म
उमंग उत्साह के स्टेशन
पर करती विश्राम।।
पल दो पल विश्राम 
उपरांत नए स्टेशन की
रफ्तार ।।
कभी दुःख पीड़ा के प्लेटफॉर्म
पर ठहरती शांत लेकिन ठहरती
नही वहाँ फिर चल पड़ती।।
दौड़ती जिंदगी की राह 
पर जोखिम बहुत घटना
दुर्घटना की आशंका से
नही इनकार।।
जिंदगी रेलगाड़ी की तरह
अपना सफर पूरा कर पहुँच
जाती यार्ड जहाँ से गंदगी
होती साफ जैसे कर्मानुसार
जिंदगी का इंजन और डिब्बो
का रिश्ता सफर।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

नूतन लाल साहू

पछतावा

जीवन का वो,खूबसूरत पल
माना कि,वह बेहद प्यारा था
तुम थे, उस पर न्यौछावर
वह चली गई,पर
तू क्यों, रोता है
चिल्लाता है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई
अंबर की ओर तो देखों
कितने इसके तारें टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
पर क्या,अंबर
शोक मनाता है
सुख और दुःख तो
जीवन का अभिन्न अंग है
पर तू क्यों, रोता है
चिल्लाता है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई
धरती की तरु, लताओं
की ओर तो, जरा देखोंं
सुखी कितनी इसकी कलियां
मुरझाई कितनी शाखाएं
सुखी हुई फूल,फिर कहां खिली
पर बोलो,सूखे फूलों पर
मधुबन कब,शोर मचाया है
पर तू क्यों रोता है
चिल्लाता क्यों है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई
सोच न कर,सूखे नंदन का
देता जा बगिया में पानी
एक सत्य के ऊपर होती है
सौ सौ सपनों की कुर्बानी
सुख और दुःख तो
जीवन का अभिन्न अंग है
पर तू क्यों,रोता है
चिल्लाता क्यों है
इतना पछतावा क्यों है
जो बीत गई सो बात गई

नूतन लाल साहू

मधु शंखधर स्वतंत्र

मधु के मधुमय मुक्तक
          योग
-----------------------------------
◆ योग व्यक्ति की साधना, संकल्पित शुभ मंत्र।
योग करे सो स्वस्थ हो, शारीरिक यह तंत्र।
सभी करो नित योग को, ईश साधना मान,
योग स्वस्थता का सफल, वैचारिकता तंत्र।।

◆ योगी की जब साधना, ईश्वर का संधान।
सहज रोग सब दूर हो, शंका करे निदान।
सुखद एक अहसास सा, अन्तर्मन का ध्यान।
ईश्वर की आभा मिले, मुखमण्डल पर मान।।

◆ ऋषि पतंजलि ने दिया, योग साधना ज्ञान।
शुद्ध आचरण मन सहज, जीव धरे शुभ ध्यान।
एक कल्पना मन बसा, मिलन करूँ जगदीश,
स्वयं एक हो ध्यान से, प्रभु मानव सम जान।।

◆ मई इक्कीस को सब कहे , योग दिवस है आज।
सफल तभी हो साधना, योग करे नित राज।
 हो आध्यात्मिक ज्ञान भी, साथ एक विश्वास,
प्राप्त सहज प्रभु को करे, योग निहित मधु राज ।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज
03.06.2021

डॉ. कवि कुमार निर्मल

कविता (उर्दू)

अपने करमों से सवाँरा है हमने जोभी इस जनम में
हासिल कहीं और जा होगा रहना नहीं इस भरम में

यहाँ का कर्ज यहीं मुकम्मल सबको चुकता करना हीं पड़ेगा
दोज़ख  यहीं विहिस्त  भी यहीं जनाजे के बाद कुछ न होगा

दोज़ख है महज़ एक खौफ़-  मुल्लाओं खातिर रकम है
जन्नत है महज़ इक भुलावा  बेबुनियाद बात यह भ्रम है

इज़ाद ये कुछ सिरफिरों की महजबी गफलत है
कोई कहीं गया कहाँ ? कि वापस लौट आता है

न कोई किसी आसमान कभी बसने जाएगा
नगद भुगतान यहीं सारा  इंसान पा  जाएगा

मज़हबी फलसफ़ा जिंदगी करता बरबाद है
कमाने का गलत जरिया है  गुनाह, हराम है

पिण्ड दान पण्डों का घर सदा सजाता है
पितृ यज्ञ है धर्म-  रोज दोहराया जाता है

जिन्दे माँ बाप के आँसुओं को तो  जरा पोंछ लो
कर्ज दूध का है बहुत तुम पहले यह भी सोचलो

जज्बात नहीं हकिकत की फ़िक करो
सामने है उसका हीं पहले जिक्र  करो

नेकी की राह पे चलना हीं ज़िन्दगी है
बदी की राह  बेमौत कफ़न बेमानी है

यही है मज़हबी तालीम यही नेह की  पाक डगर है
ज़ालीम इन्सान, हैवान से भी हुआ आज बदतर है

नेक इन्सान, फरिस्ते से भी बढ़ कर अदब के हकदार है
बुराई में मशगूल जो- हर सजा करती उनका इंतजार है

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, पश्चिम चंपारण, बिहार

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

-----सद बुद्धि यज्ञ-----

लाला गजपति विल्लोर गाँव के संपन्न कायस्थ परिवार के मुखिया थे उनके परम् मित्र थे ठाकुर सतपाल सिंह और पंडित महिमा दत्त तीनो मित्रो के ही विचार गाँव में सिद्धांत संस्कार संसकृति हुआ करते ।तीनो साथ मिलकर गाँव में क़ोई न कोइ बखेड़ा खड़ा किया करते ।किसी भी फसाद की शुरुआत लाला गजपति की पहल पर होती ठाकुर सतपाल सिंह किसी एक पक्ष के साथ खड़े हो जाते और पंडित महिमा दत्त दोनों पक्षो के मध्य विवाद का सर्वमान्य रास्ता निकालने की पहल करते और फिर फसाद समाप्त हो जाता सारे गाँव वाले भी लाला गज़पति, ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा दत्त की तिगड़ी के तिकड़म को समझते मगर कुछ भी कर सकने में सक्षम नहीं हो पाते।स्थानीय पुलिस और प्रशासन भी बिल्लौर के किसी भी विवाद में लाला गज़पति ठाकुर ,सतपाल और पंडित महिमा दत्त को ही तवज़्ज़ह देते गाँव के लोग बिना किसी दैवीय आपदा के गाँव के खुराफाती त्रिदेवो के कुचक्र में जाल की आसहाय पंक्षी की भाँती
फड़फड़ाते मगर कुछ भी कर् सकने में असहाय निरीह कुछ भी नही कह पाते
असहाय सब कुछ जानते हुये भी अन्याय सहने को बिबस थे गाँव वालों ने एक साथ मिलकर आपस मे विचार किया कि क्यो न लाला गजपति ठाकुर    सतपाल और पंडित महिमा की आत्मा परिवर्तन का सद्बुद्धि यज्ञ गांव में करवाया जाए ।
गांव  वालों ने आपस मे चंदा एकत्र किया और लाला गजपति और ठाकुर
सतपाल एवं पंडित महिमा से अनुरोध किया कि आप तीनो ही सद्बुद्धि यज्ञ के मुख्य यजमान बने जिससे कि गांव के लोगो मे सद्बुद्धि सन्मति सम्प्पन्नता आये तीनो ने गांव वालों के अनुरोध पर विचार करने का कुछ समय मांगा यज्ञ शुरू होने में तीन चार दिन का समय बाकी था।फिर लाला गजपति ठाकुर सतपाल एवं महिमा पंडित ने आपस मे विचार विमर्श कर इस नतीजे पर पहुंचे की चूंकि गांव का सम्मिलित सद्बुद्धि कार्यक्रम है अतः मुख्य यजमान गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन का ही मुख्य यजमान बनाना उचित होगा गाँव वालों को तीनों त्रिदेव की इस मंशा के पीछे कोई कुचक्र नज़र नही आया हालांकि मुखिया के चुनाव में तीनों के द्वारा सामर्पित उम्मीदवार पलटन पहलवान को कुछ दिन पूर्व ही चौधरी सुरेमन ने हराया था फिर भी भोलेभाले गाँव वालों के मन मे चौधरी सुरेमन के सद बुद्धि यज्ञ मुख्य यजमान बनने में कोई षड्यंत्र 
दूर दूर तक प्रतीत नही हुआ।
 धीरे धीरे सदबुद्धि यज्ञ प्रारम्भ होने की तिथि आयी और सदबुद्धि यज्ञ की शुरुआत बड़े धूमधाम से हुई चौधरी सुरेमन मुख्य यजमान की भूमिका में थे सात दिन का श्रीमद भागवत कथा का आयोजन एवं सायं कालीन गांव के नौजवानों द्वारा बिभिन्न एतिहासिक पात्रों पर आधारित नाटक एवं गांव के विकास पर ग्राम वासियों की भूमिका एवं कर्तव्य दायित्व पर चर्चा का आयोजन सुनिश्चित था जो सदबुद्धि यज्ञ के प्रथम दिन से ही बड़े सुनियोजित और प्रभावी तरीके से प्रारम्भ हुआ और प्रति दिन चलने लगा लाला गजपति ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया सदबुद्धि यज्ञ में पूरा गांव इस आस्था विश्वास के साथ पूरे उत्साह से भाग ले रहे थे कि शायद लाला गजपति ठाकुर ,सतपाल और पंडित महिमा का ह्रदय परिवर्तन सदबुध्दि यज्ञ से हो जाय एवं गांव में शांति आ जाये।बड़ी धुम धाम से गांव में सदबुद्धि यज्ञ चल रहा था यज्ञ के समापन से एक दिन पूर्व कथावाचक व्यास पंडित सुदर्शन शुक्ल जी ने मानव जीवन जीवात्मा के श्रेष्ठ पुर्जन्मजन्मार्जित कर्मो का फल एवं मानव जीवन में क्षमा दया सेवा और किसी भी प्राणी मात्र को दुख दर्द न पहुचाना ही सबसे बड़ा धर्म बताया पंडित जी के प्रवचन को लाला गजपति ठाकुर ,सतपाल पंडित ,महिमा बड़े ध्यान से सुन रहे थे प्रवचन समाप्त होने के बाद तीनों ने आपस मे विचार किया लाला गजपति बोले कि निश्चय ही हम लोंगो ने पिछले जन्म में कुछ सदकर्म किये थे कि हम लोंगो को मानव जन्म मिला है फिर ठाकुर सतपाल बोले कि इस जनम में तो हम लोगो ने अब तक कोई ऐसा काम नही किया कि अगले जनम में फिर मानव जनम मील पाए सारी जिंदगी हम तीनों गाँव वालों को परेशान कर खून के आंसू रुलाते रहे पंडित महिमा बोले बात तो सही है मगर अब हम तीनों कब्र में पैर लटकाए उमर के चौथे पन में है पता नही कब चोला दामन छोड़ दे अतः अब तो कुछ ऐसा करने की जरूरत है कि अगर हम जनम ले तो किसी ताकतवर जीव के रूप में जैसे इस मानव जनम में हम लोंगो ने सारे गांव को नाच नचाया वैसे जिस शरीर मे रहे हमारी दहसत कायम रहे लाला गजपति और ठाकुर सतपाल को बात जच गयी और तीनो ने कहा अब पश्चाताप और प्रायश्चित का कोई फायदा नही है अतः जैसा हम लोंगो ने जीवन भर किया है वैसा ही करते रहे जो होगा देखा जाएगा तीनो आपस मे विचार विमर्श कर अपने अपने घर चले गए रात्रि बहुत हो चुकी थी जाकर सो गए अगले दिन सदबुद्धि यज्ञ की पूर्ण आहुति होनी थी सुबह पूरा गांव जल्दी उठा और गांव के सामुहिक सदबुद्धि यज्ञ के पूर्णाहुति में जुट गया पूर्णाहुति बड़े विधि विधान से पंडित सुदर्शन शुक्ल ने कराया गांव वाले और मुख्य यजमान मुखिया सुरेमन चौधरी ने पंडित जी को बड़ी श्रद्धा के साथ दान दक्षिणा देकर विदा किया पूरे गांव में सामूहिक भोज का आयोजन किया गया सदबुद्धि यज्ञ का निर्विघ्न समापन  निश्चित तौर पर गांव वालों के लिये एक बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि गांव के खड़्यंत्रकारी  त्रिदेव लाला गजपति, ठाकुर सतपाल और पंडित महिमा तीनो ने पूरे यज्ञ के दौरान कोई बाधा नही पैदा की साथ ही साथ पूरे मनोयोग से सहयोग करते रहे ।जिस दिन सदबुद्धि यज्ञ की समाप्ति हुई उस दिन पश्चिम दिशा से बड़ी तेज हवा चल रही थी अचानक ठाकुर सतपाल सिंह की तबियत खराब हुई उन्होंने अपने दो परम् मित्रो पंडित महिमा और लाला गजपति को बुलाया दोनों ही तुरंत हाज़िर हो गए ठाकुर सतपाल ने अपने मित्रों से कहा देखो भाई मेरा आखिरी समय आ गया है  मैं चाहता हूँ कि एक बार सदबुद्धि यज्ञ के मुख्य यजमान गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन से मिल कर जीवन भर किये कुकर्मो का बोझ कुछ कम कर लूं क्योकि भगवान अपने भक्तों की अधिक सुनते है अतः भगवान के पास जाने से पूर्व भगवत भक्त चौधरी सुरेमन से मेरा मिलना बहुत आवश्यक है।शीघ्र ही पंडित महिमा और लाला गजपति ने  जाकर गांव के मुखिया चौधरी सुरेमन से अपने मित्र  ठाकुर सतपाल की हालत को बताते हुए उनकी अंतिम इच्छा मुखिया चौधरी सुरेमन से मिलने की बताई चौधरी सुरेमन ने कहा कोई बात नही चलिये चलते है और ठाकुर सतपाल की इच्छा का सम्मान करते है कुछ ही देर में पंडित महिमा लाला गजपति और मुखिया चौधरी सुरेमन ठाकुर सतपाल के पास पहुंचे उनके पहुचते ही ठाकुर सतपाल ने कहा चौधरी सुरेमन जी आपने आज ही मुख्य यजमान की हैसियत से सद्बुद्धि यज्ञ की पूर्णाहुति कराई है मेरी इच्छा है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी  अत्येन्ष्टि पूर्णाहुति की आग से ही कि जाय अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप यज्ञ के यज्ञ कुंड से पूर्णाहुति की आग गांव के पश्चिम दिशा की ओर गांव से बाहर रख दे जिससे कि मेरी मृत्य के बाद आग मेरे घर वाले वहां से लेकर मेरी अत्यष्टि कर देंगे जिससे पवित्र सदबुद्धि यज्ञ की आग भी पवित्र बनी रहेगी चौधरी सुरेमन को ठाकुर सतपाल की इस बात में कोई साजिश नज़र नही आई उन्होंने फौरन ठाकुर सतपाल की बात मान कर बोले ठाकुर साहब अभी मैँ सदबुद्धि यज्ञ के हवन कुंड से आग गांव के पश्चिम रख देता हूँ और सभी ग्राम वासी भी मेरे साथ जाएंगे कुछ  देर बाद चौधरी सुरेमन वहाँ से चले गए और गांव वालों को इकठ्ठा कर ठाकुर सतपाल की मरने से पूर्व इच्छा बताई गांव वालों को भी इसमें कोई अनुचित बात नही प्रतीत हुई अतः सभी ग्राम  वासी चौधरी सुरेमन के नेतृत्व में यज्ञ कुंड की अग्नि ले गांव के पश्चिम गांव  के सिवान के बाहर सद्बुद्धि यज्ञ के हवन कुंड  की  आग रख कर चले आये और आकर मुखिया चौधरी सुरेमन ने ठाकुर सतपाल को बता दिया कि यज्ञ कुंड के पूर्णाहुति की आग गांव के सिवान के बाहर रख दी गयी है मुखिया सुरेमन चौधरी की बात सुनते ही ठाकुर सतपाल ने राहत की सास ली और उनके प्रति कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते बोला आब मैँ चैन से मर सकूंगा ।मुखिया सुरेमन चौधरी के जाने के बाद ठाकुर सतपाल ने कहा अच्छा अब हमारा अंतिम समय है मित्रो जीवन भर हर तरह से साथ  निभाने के लिये आप दोनों का आभार मैंने भी जाते जाते मित्रता और जीवन भर के संबंधों की मर्यादा का निर्वहन कर दिया है और ठाकुर सतपाल के प्राण पखेरू उड़ गए।अब दोनों मित्र पंडित महिमा और लाला गजपति बड़ी चिंता में पड़ गए कि जाते जाते ठाकुर सतपाल ने किस मित्रता का निर्वहन किया है बड़ी माथापच्ची और दिमाग लगाने के बाद नतीजे पर पहुंचे की आज तो पछुआ तेज हवा चल रही है जिधर गांव के ज्यादातर गेंहू के पके खेत है उसके बाद सोमारू का घर टोला है जिसमे लगभग सत्तर अस्सी घर हरिजन  एवम अन्य जातियों के है और पिछले मुखिया चुनाव में जिस सोमारू को  तीनो मित्रों ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया था और जो चौधरी सुरेमन से हार गया था ।अब रात भर पंडित महिमा और लाला गजपत अपने मित्र ठाकुर सतपाल के शव के पास बैठे मित्रता का निर्वहन कर रहे थे कि अचानक गांव के पश्चिम से पुरब की तरफ आग की तेज लपटे आसमान को छूने लगी देखते ही देखते सोमारू के टोले तक आग ने आपने आगोस में जकड़ लिया  गेहूँ के खेत और सोमारू का टोला हनुमान की पूँछ की लगाई सोने की लंका की तरह धूं धु करकें जलने लगा अब क्या था पंडित महिमा और लाला ग़ज़पत ने विचार विमर्श कर अपने मित्र ठाकुर सतपाल सिंह के शव को धूं धूं जलते आग से शोमारू की टोला  में डाल  दिया तेज आग  में जाने कब ठाकुर सतपाल का शव खाक हो गया अब दोनों मित्रो ने राहत की सांस ली क्योकि मित्र की इच्छानुसार सदबुद्धि यज्ञ के कुंड की पुर्णाहुति की आग से जलते खेत और गांव में अत्येन्ष्टि सर्वथा मित्र की इच्छा के अनुरूप और सर्वश्रेष्ठ थी। पूरे गांव वालों में अफरा तफरी मची थी सब मुखिया चौधरी सुरेमन को गालियाँ देते बदुआ देते आग बुझाने में जुटे हुये थे बड़ी मुश्किल से आग पर काबू पाया जा सका मगर तब तक सब खाक हो चुका था आग बुझाते बुझाते सुबह हो गयी यह जानकारी नजदीक के पुलिस थाने तक चली गयी सुबह थाने की पुलिस गांव पहुंच कर दोषियों की पहचान तलाश करने लगी।
सारे गांव वालों का कलमबंद बयान दर्ज किया गया सभी ने बताया कि चौधरी सुरेमन ने ठाकुर सतपाल की
अंत्येष्टि के लिये ही सद बुद्धि यज्ञ की आग गांव के पश्चिम सिवान के बाहर 
रखवाई थी उस दिन तेज पछुआ हवा 
चल रही थी यह जनते हुए और अपने विरोधी जिसने पिछले चुनाव में चुनाव लड़ा था से चुनाव रंजिश का बदला चुकाने के लिये ।अब पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति के बयान की बारी थी दोनों ने पुलिस को बताया कि
चौधरी सुरेमन के खिलाफ प्रधान के  चुनाव में शोमारू को मेरे महरूम दोस्त ठाकुर सतपाल ने चुनाव में खड़ा किया था इसी कारण चौधरी सुरेमन ने
मेरे मरहूम दोस्त को मार कर धूं धू जलते गांव में जिंदा जला दिया अब क्या था पुलिस ने पक्के सबूत गवाहों के बिना पर चौधरी सुरेमन को जेल भेज दिया जैसा कि न्यायिक व्यवस्था में होता है तारीख पर तारीख पर सुनवाई के बाद माननीय विद्वान न्यायाधीश महोदय ने चौधरी सुरेमन से पूछा कि आपको क्या कहना है चौधरी सुरेमन ने कहा जज साहब आज कल भारतीय गांवों में जहाँ से भारत की वास्तविक तस्वीर बनती है का वातावरण दूषित कलुषित और अविश्वसनीय हो चुका है मैँ यह सोचता था कि गांव से शहरों की तरफ का पलायन का कारण बेरोजगारी हैं नही योर आनर एक कारण यह भी है
की गांव के लोग अब भोले भाले न होकर अपनी संकीर्ण सोच और आचरण के कारण भारत के गांवों की पहचान खोता जा रहा है ।मैन इसी वातावरण को बदलने के लिये लोकतांत्रिक तरीके से प्रधान का चुनाव लड़ा मैँ अपने गांव को एक आदर्श भरतीय गांव बनाना चाहता था
मैन ईमानदारी से कोशिश भी की मगर
अब सच्चाई और फरेब के बीच आपकी सजा का इंतजार कर रहा हूं।
जज साहब ने पूछा कि आप भविष्य क्या करना चाहेंगे चौधरी सुरेमन ने कहा जिस उद्देश्य को पूरा नही कर पाया उसे पूरा करूँगा मगर अब जीवन मे प्रधानी का चुनाव कभी नही लडूंगा।चूंकि ठाकुर सतपाल को आग में फेकते किसी ने नही देखा था मगर उनकी जली हड्डियाँ जले गांव की राख में ही बरामद हुई थी अतः विद्वन न्यायाधीश ने चौधरी सुरेमन को पंद्रह साल की कैद बा मुस्ककत कि सजा सुनाई चौधरी सुरेमन जेल की हवा खा रहे थे इधर गांव में प्रधानी चुनाव पर दूसरे स्थान पर रहे शोमारू को नया ग्राम प्रधान बना दिया अब क्या था लाला गजपति और पंडित महिमा की
पौ बारह होगयी।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश

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