नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

आस्था का आभाष विश्वास       


सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता बचपन से ही धर्म भीरु
और भारतीय परम्परा में विश्वास करने वाली माँ बाप का अभिमान थी। पढ़ने लिखने में सदैव अव्वल अपने मोहल्ले शहर का गुमान रहती मोहल्ले आस- पास के पड़ोसी अपने बच्चों को नम्रता जैसा बनने की नसीहत देते रहते।
नम्रता धीरे सारे सदगुणों की दक्ष हो चुकी थी पाक शास्त्र ,सिलाई कड़ाई बुनाई ,नृत्यसंगीत आदि शिक्षा भी स्नातकोत्तर करने के उपरांत पूरी हो चुकी थी।अब सेठ जमुना दास को अपनी सर्वगुण संपन्न पुत्री के लिये योग्य वर कीतलाश थी। मगर मुश्किल यह था की नम्रता के योग्य क़ोई वर मिल ही नहीं पा रहा था।एका एक एक दिन सेठ जमुना दास के मित्र सेठ मंशा राम अचानक पुराने मित्र जमुना दास से मिलने आये सेठ जमुना दास ने बचपन के मित्र का जोरदार स्वागत किया सेठ मंशा राम को पुराने मित्र से मीलकर अपार प्रसन्नता हुई दोनों अपने बचपन की यादो को ताज़ा करते और उन यादों  को बातों ही
बात  साझा कर रहे थे।की अचानक सेठ मंशा राम के मुख से निकल ही पड़ा की यार जमुना मेरा लड़का जवान हो चुका है उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुका है सुशील और सौम्य है उसके लिये बिरादरी में क़ोई
लड़की हो तो बताओ ।तब तक नास्ते से भरा ट्रे लेकर नम्रता कमरे में दाखिल हुई ट्रे मेज पर ज्यो ही रखा सेठ जमुना ने कहा बेटा ये है सेठ मंशा राम इनका आशीर्वाद लो ये हमारे बचपन केमित्र है ।नम्रता ने सेठ मंशा राम के पैर छुकर आशीर्वाद लिया ।मंशा राम ने आश्चर्य से कहा जमुना ये तेरी बेटी है जमुना ने ठहाके लगाते हुये कहा हां मंशा भगवान् ने मेरे हिस्से में यही एक अदत लक्ष्मी पुत्री के रूप में बक्शी है।सेठ मंशा ने कहा फिर तो भगवान् ने मुझे आज सही मुहूर्त पर तेरे पास भेजा है जमुना ने कौतुहल बस पूछा क्या मतलब तब मंशा ने कहा आज मेरी पुत्री की तलाश पूरी हुई मैं नम्रता को अपने पुत्र की बधू और अपनी बहू बेटी बनाना चाहता हूँ। सेठ जमुना को बैठे बैठाये मन की मुराद मिल गयी और दोनों ने अपने बेटी बेटों का विवाह निश्चित कर दिया।सेठ मंशा राम के एकलौते बेटे मृगेन्द्र और सेठ जमुना दास की एकलौती बेटी नम्रता का विवाह बड़े धूम धाम से संपन्न हुआ। बचपन की दोस्ती रिश्ते में बदल गयी दोनों ही परिवार में ख़ुशी का वातावरण वैवाहिक संबंध से बन गया।धीरे धीरे एक वर्ष बीतगया दोनों ही परिवारों में दिन दुनीरात चौगुनी तरक्की होती रही एकाएक दोनों परिवारों की ख़ुशी में चार चाँद लगाने वाली ख़ुशी आ गयी नम्रता माँ बनने वाली थी नौ माह बाद नम्रता ने बेहद खूबसूरत बेटे को जन्म दिया दोनों परिवारों के खुशियों का  ठिकाना ही न रहा।नवजात का नामकरण अन्नपरशन आदि संस्कार संपन्न कराये गए नवजात का नामकरण  संस्कारिक नाम माधव रखा गया घरेलू नाम
कारन रखा गया धीरे धीरे दोनों परिवारों के लाड प्यार में करन बड़ा होने लगा और देखते देखते एक वर्ष का हो गया  पहली वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई गयी सारे मित्र, रिश्तेदार बेशकीमती तोहफे का  नज़राना तोहफा लेकर आये दावते हुई खुशियो का आदान प्रदान हुआ पहले वर्ष गाँठ के उत्सव समाप्ति के बाद मध्य रात्रि को करन जगा हुआ था और मकान के हर कमरे आँगन में बेरोक टोक घूम खेल ऊधम मचा रहा था की अचानक एक जहरीले सांप ने उसे डस लिया उसकी तत्काल मृत्यु हो गयी सेठ मंशा राम के परिवार में हाहाकार मच गया धीरे धीरे यह खबर पूरे कस्बे में फ़ैल गयी और सेठ जमुना दास भी अपने पुरे पतिवार के साथ सेठ मंशा राम के घर आ पहुंचे सबका रोते रोते बुरा हाल था।अब सुबह हो चुकी थी सबने मिल कर
यह निर्णय लिया की कारन् का अंतिम संस्कार कर दिया जाय सब लोग जब करन के अंतिम संस्कार के लिये करन को उठाने के लिये चले तभी नम्रता हाथ में तलवार लिये रणचंडी की भाँती
बोली खबरदार किसी ने यदि मेरे करन को हाथ लगाया वह  मरा नहीं है रात अधिक शोर शराबे के कारण थक कर सौ रहा है। लोंगो के लाख समझाने के बाद भी नहीं मानी और जिद्द पर अड़ी रही नम्रता के आँख में ना आँसू थे ना ही कोई बेचैनी डाक्टर को बुलाया गया जिसे देखकर नम्रता ने पुनः रौद्र रूप धारण कर लिया डॉक्टर भय के मारे भाग खड़े हुए।।
जब किसी का कोइ बस नहीं चला तब लोगो ने नम्रता को करन् के शव के साथ अकेला छोड़ दिया ।
नम्रता करन का शव गोद में लेकर घर के आँगन में बैठ गयी और कहती बेटा सो जब नीद पूरी हो तब उठाना ये लोग तुम्हारी नीद में खलल डाल रहे है और तुम्हे सदा की नीद सुलाने का इंतज़ाम कर रहे है। मेरे रहते तुह्मारा क़ोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता मैं माँ हूँ तेरी रक्षा करुँगी।इस तरह बेटे के शव के साथ एक दिन दो दिन बीतते गए तेज धुप वारिश् ने भी नम्रता के मातृत्व शक्ति की परीक्षा लेने की बहुत कोशिश की परन्तु नम्रता को उसके इरादे से डीगा नहीं सका सेठ मंशा राम की हवेली एक नया तीर्थ स्थल में तब्दील हो गया नम्रता को देखने इतनी भीड़ होने लगी की प्रसाशन के लिए चुनौती बन गयी ।नम्रता का आभास एहसास वास्तव में उसके मातृत्व की ममता की आस्था की अवनि आकाश पराकाष्ठा लोंगो को आश्चचर्य चकित कर रखा था। करन् को मरे पैतालीस दिन  हो चुके थे मगर उसके शारीर से ना कोइ दुर्गन्ध थी ना ही सड़ने के लक्षण लोगों के लिए यह कौतुहल का विषय था। नम्रता भी पैतालीस दिनों से जैसा करन को लेकर गोद में बैठी थी वैसी ही बैठी एक टक कारन् को निहारती ना भूख ना प्यास सिर्फ कारन के नीद से जागने का आभास विश्वास छियालिसवे दिन करन एकाएक सुबह जैसे रोज उठता था सूरज की लालिमा के साथ मुस्कूराते हुये उठा माँ माँ करता नम्रता की आँखों में तब वात्सल्य के आंसू छलके चारों और नम्रता के मातृत्व ममत्व का शोर नम्रता कलयुग में ऐसी माँ जिसने मृत बेटे का जीवन काल जमराज से छीन लिया।
लोंगो का कहना था कि मातृत्व शक्ति
दूँनिया में कुछ भी असंभव को संभव
कर सकती है ये कोई आभास विश्वाश नहीं यह तो आस्था के अतिस्त्व माँ की
ममता है।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर

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--जन्मों के प्यार का इंतज़ार------   


जन्म दिन मुबारख हो बेटा रिया  आज तुम्हारा दसवीं का परिणाम भी आने वाला है आज का दिन तुम्हारे जीवन के लिये बहुत महत्व्पूर्ण है आज का दिन  तुम्हारी ढेर सारी खुशियो और जीवन कि दिशा दृष्टि के लिये बहुत महत्व पूर्ण है। तो बेटा जल्दी से तैयार हो जाओ सबसे पहले हम लोग मंदिर जाएंगे उसके बाद महेश सिंह ने पत्नी मनोरमा से कहा आज रिया का जन्म दिन है और हर साल इस साल से कुछ ख़ास हम सभी मंदिर जाएंगे आप और मिलिंद जल्दी से तैयार हो जाओ मैंने रिया से तैयार होने के लिये बोल दिया है।महेश सिंह मनोरमा मिलिंद रिया हम दो हमारे दो कुल चार सदस्यों का परिवार था महेश मनोरमा  दोनों बहुत खुश थे एक तो रिया के पेपर बहुत अच्छे हुए थे दूसरे कुल पुरोहित ने भी बताया था कि रिया बिटिया कि जन्म में बृहस्पति प्रवल है अतः शिक्षा के क्षेत्र में सदैव नाम और ख्याति अर्जित करेगी महेश, मनोरमा बेटे मिलिंद बेटी रिया को लेकर शहर के सारे  मंदिरों  पर गए आशिर्बाद लिया लगभग दिन के एक बजे घर लौटे देखा कि रिया कि स्कूल टीचर मैडम लियोनी पहले से ही पड़ोसीकृपा शंकर मिश्र के घर बैठी थी ।महेश मनोरमा को बहुत आश्चर्य हुआ कि पड़ोसी कृपा जी कि कोइ संतान तो रिया के साथ पढ़ती नहीं फिर रिया कि स्कूल टीचर वहाँ क्यों क्या ख़ास बात हो सकती  है। इसी उधेड़ बन में महेश और मनोरमा अपने घर का दरवाज़ा खोल ही रहे थे कि अचानक कृपा शंकर मिश्र और मैडम लियोनी आते ही एक साथ बोल उठे बधाई हो रिया बिटिया ने दसवीं कि परीक्षा में पूरे जनपद में प्रधम स्थान प्राप्त किया है ।कृपा शंकर जी ने बड़े आत्म अभिमान से कहा कि हमे आपका पड़ोसी होने पर गर्व है रिया बिटिया ने सारे मोहल्ले और ख़ास कर सभी पड़ोसियों का सर गर्व से ऊँचा कर दिया ।मनोरमा और रिया ने बड़े बिनम्र भाव से कहा कि रिया कि मेहनत आप सभी लोगो कि शुभकामना और आशिर्बाद से बिटिया ने सफलता हासिल किया है। घर का दरवाजा खोलते हुए मनोरमा ने मैडम लियोनी और कृपा शंकर जी से अंदर आने का आग्रह किया सभी लोग महेश सिंह जी के ड्राइंग रूम में दाखिल हुए और बैठे तब रिया ने सबका पैर छूकर आशिर्बाद लिया तब तक मिलिंद सबके लिये मिठाई लेकर आया सबने रिया कि शानदार सफलता कि मिठाई खाई तब मैडम लियोनी ने बोलना शुरू किया महेश जी चुकी रिया ने इतनी शानदार सफलता मेरे विद्यालय से प्राप्त कि है अतःमै चाहती हूँ कि रिया आगे भी हमारे स्कूल की छात्रा बनी रहे महेश और मनोरमा को क़ोई आपत्ति नहीं हुई वहां बैठे कृपा शंकर जी ने भी सहमति जताई मैडम लियोनी ने फिर बोलना शुरू किया कि जिन स्टूडेंट ने स्कूल प्रतिष्ठा बड़ाई है उनके पेरेंट्स को हम लोग सम्मानित करना चाहते है अतः आप मेरा अनुरोध निमंत्रण स्वीकार करे फिर मैडम लियोनी ने रिया को अपने पास बुलाकर कहा वेल डन माय स्वीट बेबी गॉड ब्लेस्  यू और जाने कि इज़ाज़त मागने लगी लियोनी के जाने के बाद घर में जश्न का माहौल हो गया मोहल्ले में सभी को मालूम हो चूका था कि महेश सिंह की बेटी रिया ने दसवी क्लास में जिले में सबसे अब्बल आयी है ।धीरे धीरे मोहल्ले वालों के आने और बधाईयों का सिलसिला शुरू हुआ ।सभी ने रिया कि शानदार सफलता के लिये बधाई और शुभकामनाये दी महेश  और मनोरमा को बेटी रिया पर गर्व महसूस हो रहा था ।छुट्टियां समाप्त होने वाली थी और नए सत्र का शुभारम्भ होने वाला था रिया नए सत्र नए क्लास में पढ़ने गयी तो बहुत से पुराने सहपाठीयो कि जगह नए स्टूडेंट्स ने ले रखी थी।पहले दिन स्कूल के हर क्लास में रिया को ले जाया गया और उसकी शानदार सफलता से नए पुराने सभी को प्रेरणा के रूप में अवगत कराया गया। स्कूल के सभी शिक्षकों ने बड़ी गर्मजोशी से रिया का स्वागत किया स्कूल में विल्कुल नया स्टूडेंट जिसने दसवी कि परीक्षा दूसरे जनपद से पास की थी यहाँ आगे कि पढ़ाई के लिए आया था बड़ी तन्मयता से स्कूल कि पहले दिन की गतिविधियों को देख रहा था नाम भी तन्मय पाण्डेय । वह बार बार रिया कि खूबसूरती मासूमियत को निहारता पता नहीं क्यों तन्मय कि कोमल भावनाये रिया कि तरफ पहले दिन ही आकर्षित हो गयी उसके मन में यह बात बार आती कि रिया ही उसकी सबसे अच्छी दोस्त हो सकती है। तन्मय प्यार जैसी किसी भी जज्बे से वाकिफ नहीं था शाम के चार बजे स्कूल कि छुट्टी हुई तन्मय अपने आप को रोक न सका वह रिया के पास जाकर बोला मै तन्मय पाण्डेय तुम्हारी क्लास में पड़ता हूँ हम दोनों को अगर पढ़ाई के दौरान किसी हेल्प कि जरुरत पड़ी तो आपस में साझा एवं सहयोग कर सकते है ।रिया ने उस वक्त तो क़ोई ध्यान नहीं दिया और धन्यवाद कहकर चली गयी दोनों अपने अपने घर चले गए रिया कि माँ और महेश सिंह ने पूछा बेटा स्कूल में नए क्लास के सत्र का पहला दिन कैसा रहा रिया ने सारा वाकिया बताया सुनकर माँ बाप का सीन गर्व से चौड़ा हो गया ।रात को जब रिया सोने के लिये अपने कमरे में गयी तब यकायक उसके सामने तन्मय का चेहरा घुमाने लगा बार बार तन्मय के कहे शब्द हाय मै तन्मय पाण्डेय रिया के कानो में गुजने लगे रिया को भी इसका क़ोई मतलब समझ नहीं आ रहा था छत कि दीवार देखते देखते कब सो गयी पता नही चला। समझ में नहीं आ  रहा था उधर तन्मय भी सोच रहा था कि रिया ने उसको नोटिस क्यों नहीं किया दूसरे दिन दोनों ही क्लास में अपनी अपनी सीट पर बैठकर क्लास करने लगे।जुलाई से सितम्बर तक रिया और तन्मय एक दूसरे पर क़ोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।सितम्बर में टीचर पेरेंट्स मीटिंग में उमेश सिंह और मनोरमा को रिया के बेस्ट परफोर्नेन्स के लिये सम्मानित किया जाना था।तन्मय के पिता धीरेन्द्र पाण्डेय एक साधारण किसान थे वे धोती कुर्ता में आये थे समारोह प्रारम्भ हुआ प्राचार्य अल्वर्ट के साथ लियोनी मैडम समारोह में उपस्थित थी उन्होंने बोलना शुरू किया रेस्पेक्टेड पेरेंट्स आज हम रिया के मदर फादर को सम्मानित करने के लिए गेदर हुए है रिया ने डिस्टिक में नबर वन रैंक हासिल कर स्कूल का नाम रौशन किया हैं रिया के इस अचीवमेंट में उसके मदर फादर के कंट्रीब्यूसन को नेग्लेक्ट नहीं किया जा सकता है अब हम प्रिंसिपल साहब से रिक़ुएस्ट  करते है कि रिया के मदर फादर को ऑनर करे पूरा हाल तालियों के गडग़ड़ाहट से गूँज उठा। फिर प्राचार्य अल्बर्ट ने मनोरमा और महेश सिंह का सम्मान करने के बाद बोलना शुरू किया उन्ही गार्जियन का बच्चा कुछ अच्छा करता है जिनके गार्जियन जिम्मेदार और बच्चों को अच्छा कल्चर देते है आज हमे मनोरमाऔर महेश सिंह जैसे गार्जियन बनने कि जरुरत है हाल एकबार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। प्रिंसिपल अल्वर्ट ने आगे बोलना शुरू किया मैं इस अवसार पर धीरेन्द्र पाण्डेय जी को इग्नोर नहीं कर् सकता जिनका सन् तन्मय पाण्डेय पुरे प्रदेश में ट्वेंटी फिफ्थ रेन्क पाकर हमारे स्कूल में डॉटर रिया के क्लास में ही स्टडी कर रहा है एकाएक हाल में तालियों कि गड़गड़ाहट गूंजने लगी रिया ने बड़े गौर से तन्मय कि तरफ मुस्कुराते हुये देखा। प्रिंसिपल अल्वर्ट बोलते रहे उन्होंने बताया कि धीरेन्द्र पाण्डेय जी एक साधारण किसान है और उन्होंने अपने सन् को हाई कल्चर दिया है यह आल गार्जियन के लिए इंस्पिरेशन है ।
 प्रिंसिपल अल्वेर्ट के सम्बोधन के बाद समारोह सम्पन्न हुआ सभी अभिभावक अपने अपने घर को चले गए रिया घर पहुंचकर तन्मय से पहले दिन कि मुलाक़ात के ख्यालो में खो गयी अगले तीन दिनों तक विद्यालय बंद था।तीन दिन की छुट्टिया रिया के लिये मुश्किल से बीती वह जल्दी से जल्दी खुद को तन्मय का बेस्ट फ्रेंड बनना चाहती थी इसके लिये आवश्यक था कि वह तन्मय से शीघ्र मिले छुट्टी बीताने के बाद स्कूल खुला रिया सबसे पहले स्कूल के मेन गेट पर तन्मय का इंतज़ार करने लगी तन्मय जब स्कूल मैन गेट पर ज्यों ही पहुंचा रिया  फ़ौरन उसके पास पहुंची और बड़े भोले अंदाज़ में बोली तन्मय आई ऍम सॉरी मैं आपको तब  समझ नहीं पाई जब आप पहले दिन हमारे पास आये थे क्या हम अब वेस्ट फ्रेंड हो सकते है तन्मय अपने अंदाज़ में मुस्कराते हुये बोला साँरी भी क्या वर्ड है जिसने भी इस वर्ड कि खोज कि होगी बहुत बुद्धिमान होगा यह एक शब्द सारे तकलीफ को  भुला देता है। फिर बोला हाँ बाबा मुझे तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड बनना है ।मेरे लिये प्राउड है रिया ने तुरंत सवाल किया रोज तो तुम स्कूल सबसे पहले पहुचते हो आज देर क्यों हो गयी  तन्मय ने मुस्कुराते हुये कहा कभी कभी भगवान् भी अच्छाई कि परख करते छोटी मोटी परीक्षाये लेता रहता है आज मेरी सायकिल पंचर हो गयी थी ।दोनों अपने वार्तालाप में मसगुल थे कि उधर से गुजरती मैडम लियोनी ने दोनों को वार्तालाप करते देखा कहा गूड तुम दोनों एक दूसरे के साथ हेल्दी कॉम्पेटिसन के साथ दोस्ती करो और स्कूल का नाम रौशन करो।अब लगभग प्रतिदिन रिया और तन्मय आपस में बात करते दोनों ही विज्ञानं और गणित के छात्र थे अतः किसी भी  बिषयागत प्रॉब्लम पर बात करते और मिलकर समाधान खोजते रिया के माँ बाप महेश और मनोरमा को भी रिया कि इस दोस्ती पर क़ोई एताराज नहीं था ।धीरे धीरे पूरे स्कूल में फ्रेंडशिप ऑफ़ टू एक्ससिलेन्ट ऑफ़ स्कूल के नाम से तन्मय और रिया की जोड़ी मशहूर हो गयी ।इसी तरह फर्स्ट इयर के होम एग्जाम में दोनों ने अपने कठिन परिश्रम से सयुक्त रूप से फर्स्ट रैंक हासिल कर् सेकंडियर यानि बारहवी कक्षा की तैयारी में जुट गए दोनों ने अपनी एक्ससलेंट फ्रेंड शिप ऑफ़ स्कूल को कायम रखते अपने अपने मकसद पर आगे बढ़ रहे थे सेकेंडियर के एग्जाम हुये रिजल्ट आया तो फिर दोनों के मार्क्स बराबर थे और दोनों ने ही जिले नहीं वल्कि पूरे प्रदेश में पांचवा स्थान हासिल कर अपने स्कूल का मान बढ़ाया ।अब रिया और मयंक का स्कूल से विदा हो कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाने का वक्त आ गया स्कूल द्वारा फिर से दोनों के विदाई समारोह सम्मान के लिये रखा गया सम्मान समारोह में प्राचार्य ने फिर कहा  रिया के मेरे स्कूल में पढने के बाद और तन्मय के आने के बाद शहर का हर गार्जियन कि चाहत है कि उनका वार्ड इस स्कूल में पढे यह अचीवमेंट हमारे और हमारे स्कूल के लिये बहुत प्राउड का सब्जेक्ट है। फ्यूचर में हम कोशिश करेंगे कि हमारे यहाँ पड़ने वाला हर स्टूडेंट रिया और तन्मय को फॉलो करे।अब रिया और तन्मय दोनों ही उच्च शिक्षा के अध्य्यन के लिये कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने हेतु निर्णय अपने अपने अभिभावको पर छोड दिया। तन्मय अपने गांव चला गया रिया को लगता कि उसकी सफलता तन्मय के बिना अधूरी है और वह तन्मय कि यादो और स्कूल में बीते दिनों कि याद में खोई रहती  ।पंडित धीरेन्द्र पाण्डेय ने अपने बेटे को जे एन यू पढ़ाई के लिये भेजा तन्मय को आसानी से दाखिला मिल गया और वह अपने अध्ययन कार्य में जुट गया उसे अपने किसान पिता के सपनो को सच साबित करने का जूनून था। मगर नियत कुछ और खेल खेलना चाहती थी अचानक एक दिन तन्मय लेक्चर रूम में बैठा अपने खयालो में खोया था तभी प्रोफेसर  वाजिद लेक्चर रूम में दाखिल हुए और क्लास शुरू किया जब प्रोफेसर वाजिद कि नज़र क्लास में बैठी एक नई लड़की पर पड़ी तभी उन्होंने इशारे से उस लड़की को खड़े  होने  के लिये कहा वह ज्यो ही खड़ी हुई प्रोफेसर वाजिद ने पूछा आपका नाम रिया सर तब भी तन्मय ने क़ोई ध्यान नहीं दिया फिर प्रोफ़ेसर वाजिद ने पूछा कि इस क्लास में तुम्हारा क़ोई मित्र है रिया ने तुरंत जबाब दिया यस सर प्रोफेसर वाजिद ने पूछा कौन रिया ने जबाब दिया तन्मय पाण्डेय अब तन्मय ने अपना सर घुमा कर देखा तो वास्तव में रिया ही थी। उसको अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था प्रोफेसर वाजिद ने तन्मय पाण्डेय से पूछा कि क्या  रिया को जानते हो तन्मय ने कहा यस सर हम दोनों ही एक ही स्कूल में पड़ते थे और एक ही रैंक से टॉप किया था। प्रोफेसर वाजिद ने कहा गुड तुम दोनों  एक दूसरे का ख्याल रखना दिल्ली में अक्सर नए स्टूडेंट के साथ कुछ न कुछ गलत हो जाता है तुम दोनों बाहर से आये हो और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते और समझते हो तन्मय और रिया ने स्वीकारोक्ति से सर हिलाया इसके बाद क्लास शुरू हुआ क्लास ख़त्म होते ही तन्मय रिया बाहर निकले तो तन्मय ने पूछा यहाँ कैसे आ गयी? रिया ने कहा कि तुम जे एन यू जाकर पड़ो और प्रशासनिक सेवाओं कि तयारी करों तोऔर  मैं भी यहाँ आ गयी वही उद्देश्य लिये जो तुम लेकर आये हो।चलो अच्छा ही हुआ अब हम दोनों मिलकर दिल्ली में जे एन यू में टॉप करेंगे और हां मैं गर्ल्स होस्टल में रहती हूँ और आप जनाब तन्मय ने  कहा मैं अपने दूर के रिश्तेदार के घर पर रहता हूँ रिया और तन्मय दोनों को अनजान महानगर में जरुरत थी दोनों एक दूसरे के पूरक थे दोनों  कि मुलाकाते रोज होती और अध्य्यन के विषयो पर दोनों एक दूसरे कि जानकारी साझा करते। लेकिन अब दोनों में इन मुलाकातो का अर्थ बदला हुआ था दोनों को प्यार के आकर्षण कि हद  अधिक अनुभूति होने लगी और दोनों कि पहली मुलाकात अब सहपाठी कि सीमा से पार कर प्रेम  कि पराकाष्ठा तक पहुँच गयी दोनों एक दिन भी एक दूसरे से मिले बिना नहीं रह सकते थे ।लेकिन दोनों के शैक्षिक स्तर पर उनके प्यार का कोईं प्रभाव नहीं पड़ा दोनों ने स्नातक कि परीक्षा में अपना लोहा पुनः जे एन यू में मनवाया तीन वर्ष कैसे बीत गए पता ही नहीं चला एका एक दिन रिया के घर से उसके मामा  रमेश सिंह जी दिल्ली आये और रिया से गोरखपुर घर चलने को कहा और बताया कि माँ मनोरमा को लकवा मार गया है अतः उनकी देख रेख के लिये चलना होगा ।चूंकि भाई मिलिंद डॉक्टर होकर अमेरिका में शिफ्ट हो अमेरिकन लड़की से शादी कर चुका था अतः उसका माँ कि सेवा के लिये आना संभव नहीं था रिया ने मामा जी से तन्मय से मिलने कि अनुमति मांगी और वह तन्मय से मिलते ही फुट फुट कर रोने लगी तन्मय ने उसे चुप कराते हुये कहा मेरा प्यार इतना कमजोर नहीं कि उसकी आँखों से मोती से भी कीमती आंसुओ का शैलाभ आ जाए। बताओ क्या बात है रिया ने माँ मनोरमा के बीमार होने कि बात बताई और कहा हमे अभी गोरखपुर जाना है तन्मय ने कहा कि घबराओ नहीं यह तुम्हारे लिए सौभाग्य कि बात है कि तुम्हे माँ कि सेवा का अवसर मिल रहा है ये मत भूलो कि तुम्हारे अस्तित्व और संस्कार कि स्तम्भ है आज उस माँ को अपनी बेटी कि जरुरत है। जिसने अपनी बेटी के लिये ना जाने कितनी रातें इसलिये जाग कर बिताई होंगी कि बेटी सो सके बहुत सी अपनी  इच्छाओं  का दमन किया होगा जिससे कि तुम्हारी इच्छाये पूरी हो सके यह मेरे लिये आत्म अभिमान कि बात है कि मेरा प्यार मेरी रिया जीवन मूल्यों कि परीक्षा में जा रही है वहाँ भी एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगी। रही बात मेरे मिलने कि तो मैंने आज तक तुम्हारे अलावा किसी दूसरी लड़की का चेहरा नहीं देखा प्यार कि नज़र से अतः मै वचन देता हूँ कि जीवन के अंतिम पल में भी तुम ही मेरे साथ होगी हर जन्म में तुम ही मेरा प्यार रहोगी तुम्हे मुझमे मिलना ही होगा मैं जन्म पे जन्म लेते हुये तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा या जन्म जन्म तुम्हारे साथ रहूँगा दोनों ने एक दूसरे को प्यार कि दुहाई की बिदाई दी ।रिया मामा जी के पास लौटी और सामान पैक करना शुरू कर दिया और मामा जी के साथ गोरखपुर चलने कि तैयारी करने लगी उसके मन में अपने प्यार के प्रति आत्म संतोष और विश्वास का भाव था सफर कि सारी तैयारी होने के बाद रिया मामा जी के साथ गोरखपुर चलने के लिये तैयार हो स्टेशन रवाना हुई नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उसकी ट्रेन भी तैयार थी रिया मामा रमेश के साथ ट्रेन में बैठी थोड़ी देर बाद  ट्रेन भी चल दी पूरी रात सफ़र करने के बाद रिया मामा जी के साथ दूसरे दिन बारह बजे दिन में गोरखपुर पहुँच गयी और लगभग आधे घंटे बाद वह अपने घर माँ मनोरमा और पिता महेश के सामने खड़ी थी ।माँ को जब रिया ने देखा माँ मनोरमा  बिस्तर पर लेटी घर के छत को एक टक निहारते ही जा रही थी रिया ने माँ के पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरती बोली माँ मैं आ गई हूँ अब आप चिंता ना करो मनोरम ने जब बेटी रिया को देखा तो उसे गले लगाने कि कोशिश में उठने का अथक प्रयास करती रही मगर उनके शारीर में ना तो शक्ति थी ना ही चेतना सिर्फ उनकी आँख में विवसता कि अश्रु धरा का प्रवाह फुट रहा था रिया माँ कि इस दशा को  देखकर फुट फुट कर् रोने लगी पिता महेश और मामा रमेश ने रिया को सात्वना दिलाशा दे कर चुप कराया ।अब माँ कि सेवा ही रिया के जीवन का वर्तमान ध्येय बन गया था वह बेटी होने के फ़र्ज़ को जिए जा रही थी हर तीसरे दिन डॉक्टर चेक करने आता मगर माँ मनोरम कि हालत सुधरने कि बजाय और गंभीर होती जा रही थी भाई मिलिंद भी पिजड़े में फड़फड़ाते किसी पंक्षी की भांति डॉक्टरों से प्रतिदिन बात करता और चुकी वह खुद भी एक डॉक्टर था तो उचित सलाह भी देता ।धीरे धीरे  एक साल माँ मनोरमा को बिस्तर पर बीमार पड़े हो चुके थे ।तन्मय प्रतिदिन रिया को उसकी माँ के स्वास्थ कि जानकारी बाबत एक पत्र लिखता मगर रिया जबाब नहीं दे पाती प्रतिदिन के पत्रो को पढ़ती और सभाल कर रख लेती काल  अपनी निरंतर गति से चल रहा था लगभग दो साल बीत गए। माँ मनोरमा कि हालत जैसी कि तैसी ही थी अंततः महेश सिंह ने बेटी रिया से कहा बेटा तेरी माँ की नसीब में बीमार रहना ही लिखा है अतः तुम माँ कि देख रेख के साथ कुछ अध्ययन भी शुरू करो ग्रेजुएसन हो ही गया है बी एड कर लो रिया को बात समझ में आयी और उसने बी एड का फार्म भरा उसे तुरंत दाखिला मिल गया उसने कालेज जाना भी शुरू कर् दिया लेकिन माँ कि देख भाल में क़ोई कमी नहीं रखी इधर प्रतिदिन तन्मय के पत्रों का शिलशिला जारी रहा ।रिया ने बी एड किया एम एड किया माँ कि सेवा भी पूरी निष्ठां से करती रही माँ को बीमार बिस्तर पर पड़े पड़े पांच साल गुजर चुके थे मगर उसकी हालत में सुधार कि बात तो दूर नहीं  बिस्तर पर पड़े रहने से कई और बीमारियों ने जकड़ लिया डॉक्टरों ने उसके बचने कि रही सही उम्मीद भी छोड़ दी मिलिंद डॉक्टरो से निरंतर बात करता अपनी जानकारी के अनुसार माँ कि हालत को भगवान पर छोड़ दिया मिलिंद ने पिता महेश सिंह से बहन रिया के बिवाह के लिये कहा पिता महेश को भी महसूस हुआ कि बेटा ठीक कह रहा है  महेश सिंह ने भी हाँ करते हुये बताया कि गोरख पुर के बड़हल गंज निवासी उनके बचपन के मित्र सतमन्यु सिंह जो उत्तर प्रदेश पुलिश में इंस्पेक्टर थे और भिंड में डांकुओ से मुठभेंड में शहीद हुये थे का पुत्र समरेंद्र सिंह उनकी जगह पर अनुकम्पा पर  इन्स्पेटर नियुक्त हुआ है उसी से रिया का विवाह करना है क्योकि मैंने और सतमन्यु ने समरेंद्र और रिया का रिश्ता बहुत पहले ही पक्का कर दिया था मिलिंद भी इस सच्चाई को जनता था अतः उसने तुरंत हामी भर दी महेश सिंह ने रिया को बुलाया और समझाने के लहजे में बोले कि बेटी परया धन होती है उसे एक ना एक दिन बाबुल का घर छोड़ना ही होता है और तेरी माँ कि हालत सुधरने का नाम नहीं ले रही इसकी भी इच्छा यही है कि तुम्हारी शादी धूम धाम से होते हुए देखे मैंने अपने बचपन के मित्र स्वर्गीय सतमन्यु सिंह ने बचपन में तेरा और समरेंद्र का रिश्ता निश्चित कर दिया था। मैं जानता हूँ बेटी तुम्हे यह रिश्ता रास नहीं आएगा मै यह भी जानता हूँ कि तुम तन्मय को चाहती हो मगर तन्मय से तुम्हारा विबाह इस जन्म में सम्भव नहीं है तन्मय का पिछले पांच वर्षो से निरंतर पत्रो का आना तुम्हारे और तन्मय के प्यार का प्रमाण है मैं जनता हूँ तन्मय बहुत अच्छा लड़का है मगर मैं और मेरा समाज बिजातीय बिबाह कि अनुमति नहीं देता ।हमारा परिवार राजपूतो का है और तन्मय भूमिहार इसके अलावा भी बहुत कारण है जो तुम्हे बताना आवश्यक नहीं समझाता।
 रिया पापा को बहुत समझाने कि कोशिश करते उसने कहा पापा तन्मय को भी आप उतना ही जानते है जितना मुझे तन्मय बहुत अच्छा लड़का है शाकाहारी है अच्छे परिवार खानदान का उसके पिता किसान होते हुये भी अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिये है तन्मय मुझे ज्यादा खुश रख सकेगा और देखिये माँ कि बीमारी में उतना दूर रहते हुये भी एक दिन भी ऐसा नहीं गया जिस दिन उसने माँ के स्वास्थ् के विषय में जानकारी के लिये पत्र न लिखा हो वह माँ और आपको भी उतना ही सम्मान करता है जितना मै और मिलिंद भैया जितना खुद अपने माँ बाप को इज़्ज़त देता है रही बात जाती कि तो जाती में भी वह हमसे उच्च ही है मेरी पसंद है मिलिंद भैया भी इस रिश्ते को पसंद करेंगे। पिता महेश सिंह ने कहा मिलिंद को समरेंद्र का रिश्ता पसंद है रिया ने कहा की भैया को तन्मय के बारे में आपने बताया ही नहीं होगा मैं भैया से बात करती हूँ महेश सिंह ने आदेशात्मक लहजे से कहा खबरदार जो तुमने मिलिंद से इस सम्बन्ध में और कुछ बात किया तो तुम्हारे लिये रिश्तों के सभी दरवाजे बंद हो जाएंगे रिया ने फिर पापा को समझने के लहजे में कहा कि भैया ने तोअन्तर्धर्मीय विवाह कर मानवीय मूल्यों को तरजीह दी है हम तो तन्मय जो उच्च कुल का भारतीय है इतना सुनते ही महेश सिंह आग बबूला हो गए जैसे उनकी दुखती रग पर रिया ने हाथ रख दिया हो बड़े ही  क्रोध में कहा तेरी माँ तो मरणासन्न है ही यदि तुमने और बहस इस सम्बन्ध में किया तो मेरा मरा हुआ मुँह देखेगी ।अब रिया के पास कोइ जबाब नहीं था वह रोती हुई माँ के  पास गयी माँ ने जब रिया को देखा तो बोलने कि कोशिश करती अपनी सबसे प्यारी औलाद से कुछ कहना चाहती मगर बेबस लाचार अपनी बेटी कि आँखों का आंसू देखती उसके आँखों में उसी तरह अश्रु धारा बहने लगे जैसा रिया के दिल्ली से वापस आने के बाद बहे थे ।माँ बेटी कि विवसता के आंसू देख कर विधाता भी अपनी विधान पर सोचने को विवस हो गया लेकिन रिया कि तकदीर भी उसीने लिखी थी अतः अपने निर्धारित भविष्य का खेल वह देखता रहा।रिया किसी तरह हिम्मत करके उठी और उसने तन्मय को एक पत्र लिखा पत्र में उसने तन्मय को सम्बोधन में लिखा प्रियतम हमारे प्यार का इस जन्म में परवान चढ़ना संभव नहीं है मेरे पापा ने मेरी  शादी कहीं और बचपन में तय कर राखी थी और वहीं मेरी शादी करना चाहते है मै विवस नहीं हूँ मगर मम्मी पापा कि परिवरिश के संस्कारिक संसार के रीती रिवाज को निभाना मेरा नैतिक तायित्व है वह मैं निभाने जा रही हूँ। लेकिन तुम मेरा इंतज़ार करना क्योकि मैं जब तक तुम्हारा प्यार नहीं पा लेती हूँ तब तक जन्म दर जन्म लेती रहूंगी तुम्हारी रिया पत्र पोस्ट करने के बाद उसने अपने आंसू पोछे और अब वह एक निर्जीव निरुत्साह जीवन्त शारीर या यूँ कहे कि कठपुतली या रोबोट कि तरह रह गयी थी जिसमे भाव और आत्मा नाम की कोइ जागृति नहीं थी सिर्फ कठपुतली या रोबोट जिसका संचालन उसके पिता के हाथ में था ।तन्मय ने रिया का पत्र प्राप्त किया पढ़के बाद उसे अपने प्यार रिया पर भरोसा और बढ़ गया उसे यकीन हो गया कि रिया का निर्णय उसके आत्मीय बोध का सच्चा  प्यार है। प्यार शारीरिक वासनाओं और भौतिक बंधनो से ऊपर है वह रिया का इंतज़ार करता रहेगा चाहे जितने बार जन्म लेना पड़े ।
 वह पूर्व कि भाँती रिया के माँ के स्वस्थ के जानकारी के लिये पत्र लिखता रहा और रिया उसे उसके प्यार की अमानत समझ सहेज कर रखती गयी और वह भी समय आ गया जब रिया को अपना प्यार अपना घर बार छोड़कर ससुराल जाना था महेश सिंह ने रिया कि शादी में रिया का  पिता बनकर रिया का कन्या दान किया तो अपने स्वर्गीय मित्र सतमन्यु कि तरफ से उसे उसके सुखी जीवन कि गारन्टी दी रिया का पति समरेंद्र और सास शांति देवी रिया को पाकर बहुत खुश थे उनको उनकी कल्पनाओ से अधिक खुबसूरत बहु और रिश्ता मिला था ।रिया कि शादी में अमेरिका से मिलिंद भी आया था उसने अपनी लाड़ली बहन कि बिदाई बड़े भाई के फ़र्ज़ का क़र्ज़ निभाते हुये किया रिया ससुराल जाने से पूर्व माँ के पास गयी और बंद जुबा और आँखों में बहती अश्रुधारा से माँ से अंतिम विदाई ली पता नहीं क्यों उसे आभास हो गया था कि उसके जाते ही माँ भी दुनियां छोड देगी माँ से भवनात्मक विदा लेकर वह ससुराल जाने के लिये बाबुल के घर से रुखसत हुई ।रिया के जाने के बाद घर वीरान हो गया तीन दिन बाद मिलिंद कि अमेरिका कि फ्लाइट थी विवाह कि भीड़ भाड़ से घर खाली हो चुका था अब मनोरमा कि देख भाल करने को रिया नहीं थी मनोरमा कि नजरे बार बार रिया को ढूंढ रही थी और बेबस लाचार आँखों से आंसू बहा रही थी मगर रिया तो सदा के लिये जा चुकी थी अन्ततः मनोरमा ने रिया के ससुराल जाने के तीसरे दिन जिस दिन मिलिंद की अमेरिका कि फ्लाइट थी दुनियां छोड़ दी महेश सिंह पर जैसे आफत का पहाड़ टूट पड़ा ।रिया के हाथों कि मेहंदी भी हल्कि नही पड़ी थी किसी तरह से मनोरमा का अंतिम संस्कार हुआ रिया भी आयी मगर अब घर वीरान हो चुका था अब सिर्फ घर में मिलिंद और उसके पापा महेश सिंह जी ही रह गए थे चुकी मिलिंद अमेरिका से अकेले ही बहन रिया के बिवाह में आया था उसकी अमरिकन पत्नी  कुछ आवश्यक कारणो से नहीं आ पायी थी मिलिंद ने पापा महेश सिंह से कहा कि क्यों न इस मकान और अन्य प्रापर्टी जैसे गाव कि खेती बाड़ी  कि देख भाल का जिम्मा मामा रमेश जी को सौंप दे और प्रापर्टी का एटॉर्नी रिया को नियुक्त कर आप मेरे साथ अमेरिका ही चले महेश सिंह को यह बात जच गयी उन्होंने एडवोकेट जयंती लाल जी से पवार ऑफ़ एटॉर्नी और कस्टोडियन रमेश सिंह के पक्ष में बनवा कर एक एक प्रति रिया और रमेश को देने के बाद निश्चिन्त हो गए पत्नी मनोरमा के तेरही के तीसरे दिन मिलिंद महेश सिंह रिया और समरेंद्र साथ साथ एयर पोर्ट गए और भाई मिलिंद और पिता को रिया ने अमेरिका के लिये विदा किया रिया और समरेंद्र बड़हल गंज लौट आये हवाई जहाज हवा से बाते करता आकाश में उड़ता जा रहा था महेश सिंह के दिमाग में एक  बात बार बार आ रही थी कि यदि अमेरिका में उनकी अमेरिकन बहु ने उन्हें मन से नाही स्वीकार किया तो क्या होगा जिसकी संभावना थी लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि यदि ऎसा हुआ तो उन्हें अच्छी खासी पेंशन मिलती है वे भारत वापस आकर ईश्वर को जैसा मंजूर होगा वैसी जिंदगी जिएंगे।
 मिलिंद पापा के साथ अमेरिका पहुँच गया और माहेश् सिंह को फौरी तौर पर वैसा कुछ महसूस नहीं हुआ जैसा कि उन्हें भारत से आते समय डर सता रहा था।अब रिया अपनी सास शांति देवी के साथ रह रही थी समरेंद्र कि पोस्टिंग दूसरे जनपद में चौकी प्रभारी के रूप में हो गयी वह वहां कार्य भार ग्रहण कर चुका था उसे पुलिस कि नौकरी में घर आने  का मौका नहीं मिलता रिया अकेले में हमेशा तन्मय कि यादों में खोई रहती थी इसे सौभाग्य कहे  या दुर्भाग्य समरेंद्र कि पोस्टिंग उसी जगह थी जहाँ तन्मय का घर था । तन्मय भी प्रसासनिक सेवा कि तैयारी के लिये दिल्ली ही रहता था वह तीन चार महीने कि छुट्टी में घर आया था जब उसे पता लगा कि उसके मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी पर कोई नैजवान् प्रभारी आया है तो वह मिलने चला गया पहली मुलाक़ात दो नौजवानो कि धीरे धीरे दोस्ती में बदल गयी ।अब दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे दोनों का मिलना जुलना रोज कि आदतो में सम्मिलित रोज मर्रा की जीवन शैली बन गयी ।समरेंद्र ने अपने दोस्त तन्मय से कहा कि मेरी नई शादी है सोचता हूँ कि परिवार ले आऊँ कुछ दिन परिवार को भी साथ रखु पता नहीं पुलिस कि नौकरी में कब ऐसी जगह पोस्टिंग हो जाए कि परिवार रखना सम्भव ही न हो तो दोस्त एक अच्छा सा पारिवारिक किराये के मकान कि ब्यवस्था कर दो पुलिस वालों को जल्दी क़ोई मकान किराये पर नहीं देता ।तुम लोकल हो तुम्हारे माध्यम से मकान किराये पर आसानी से उपलब्ध हो जाएगा तन्मय ने कहा दोस्त यह बहुत छोटी सी बात है आप समय निकालो मैं कुछ मकान दिखा देता हूँ तुम्हे जो पसंद हो किराए पर ले लेना ।दूसरे दिन तन्मय समरेंद्र को मकान दिखाने ले गया दो तीन मकान देखने के बाद उसे एक मकान पसंद आया जिसका अग्रिम किराया देकर समरेंद्र बोला कि अगले सप्ताह मैं परिवार लेने जाऊँगा ।अगले सप्ताह समरेंद्र घर गाया तो माँ शांति देवी ने कहा तू तो बिलकुल अपने बाप कि तरह पुलिस वाला बन गया है उन्होंने पुलिस कि नौकरी कि निष्ठा में जान दे दी और मुझे अकेला छोड गए तुम्हे तो अपनी नई नवेली दुल्हन के लिये फुरसत नहीं समरेंद्र ने कहा माँ तुम तो जानती हो कि पुलिस कि नौकरी में दिन रात कोल्हू के बैल कि तरह खटना पड़ता है और हर समय खतरे भी रहते है लेकिन मैं अब सोचता हूँ कि रिया को जितने दिन भी मौका मिले साथ रखूं माँ शांति देवी को लगा की समरेंद्र ने उसके मन कि बात कह दी शांति देवी ने तुरंत सहमति दे दी एक दिन घर रहने का बाद समरेंद्र रिया को लेकर अपने साथ चला गया रिया किराये के मकान को एकदम सजा सवारकर एक खूबसूरत आशियाने कि शक्ल दे दी ।परिवार लाने के बाद पहले दिन अपनी पोलिस चौकी जब समरेंद्र गया सबसे पहले उसने तन्मय को बुलवाया और कहा दोस्त मैं अपना परिवार ले आया हूँ और रोज मर्रा कि जरुरत जैसे गैस कनेक्सन अखबार दूध आदि कि व्यवस्था करवा दो चूकी दोनों हम उम्र थे अतः दोस्ती में औपचारिकता नहीं थी तन्मय ने समरेंद्र के कहे अनुसार उसी दिन सारी व्यवस्थाये कर दी ।रिया को कोई तकलीफ नहीं थी तन्मय अक्सर समरेंद्र से चौकी पर ही मिल लेता इस तरह लगभग एक माह बीत गए ।एक दिन जब तन्मय समरेंद्र से मिलने चौकी पर गया तब समरेंद्र ने कहा तन्मय तुमने हमारी गृहस्ती बसाने  में इतनी मदद कि है हमारे घर पर तुम्हारा एक कप चाय का हक तो बनाता ही है ऐसा करो तुम आज शाम को हमारे घर आओ ।तन्मय चला गया और समरेंद्र भी डियूटी पर गस्त पर निकल पड़ा जब शाम समरेंद्र घर पहुंचा उसके आधे घंटे बाद तन्मय भी पहुच गाया तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने कहा भाई तन्मय आपके शहर और आपके घर में आपका स्वागत है तन्मय सहम सा गया अपने पुलिस वाले दोस्त कि बात सुनकर और बोला समरेंद्र क्या बात करते हो समरेंद्र ने कहा ठीक ही तो कह रहा हूँ शहर तुम्हारा है और मकान तुम्हारी वजह से मुझे मिला है ।अब बेवजह का सवाल छोड़ो और बैठो तन्मय ड्राईंग रूम के शोफे पर बैठा समरेंद्र अंदर गया और पत्नी रिया को चाय लेकर आने को बोला और आकर ड्राईंग रूम में बैठ गया दोनों दोस्त आपस में गप्पे लड़ाने में मशगूल थे तभी रिया चाय लेकर ड्राईंग रूम दाखिल हुई रिया ने ज्यो ही तन्मय को देखा उसके होश उड़ गए उसके हाथ में चाय का ट्रे गिरने ही वाला था कि समरेंद्र ने सभल लिया और ट्रे मेज पर रखते बोला अरे दोस्त मेरी बीबी तो तुम्हे देख कर चकरा गयी क्या ख़ास बात है तुमसे तो हम तो रोज ही मिलते है तन्मय कि स्थिति और भी गभ्भिर थी उसे तो पूरी दुनियां घूमती नज़र आ रही थी पल भर के लिये रिया
तन्मय कि नजरे मिली और सदियों कि बाते कर गयी । तन्मय कुछ बेचैन होने लगा वो  बैठा तो समरेंद्र के ड्राईंग रूम में जरूर था मगर उसका मन अतीत में रिया के साथ गुजरे वक्त कि यादों में खो गया तन्मय सोचने लगा नियति कौन सा अजीब खेल उसके साथ खेल रही है उसने जल्दी जल्दी चाय ख़त्म की और तन्मय से जाने कि इज़ाज़त लेकर बहार निकल गया जल्दी जल्दी घर पहुंचा और रिया के खयालो में खो गया उसे ना तो भूख थी ना ही प्यास थी सिर्फ रिया के प्यार कि चाह की राह उसे यक़ीन नहीं था कि रिया कि उसकी मुलाक़ात ऐसे मुश्किल दो राहे पर होगी वह बड़ी दुविधा कि स्थिति में था। किसी तरह रिया कि यादों में जागता रात बीती सुबह वह सामान्य दिखने की और खुद की भावनाओं पर नियंत्रण करने कि कोशिश करता रहा शाम होते ही वह समरेंद्र से मिलने गया और समरेंद्र उसे अपनी बुलेट पर बैठा घर लेता चला गया फिर साथ बैठकर चाय पीना और गप्पे लडाना दो तीन बार समरेंद्र तन्मय को साथ अपने साथ घर ले गया अब तन्मय के मन से झिझक कम हो गयी वह अक्सर समरेंद्र से मिलने जाता कभी समरेंद्र के साथ उसके घर चला जाता कभी समरेंद्र गश्त में हल्के में चला जाता तो तन्मय अकेले ही समरेंद्र के घर पहुच जाता और रिया के साथ घंटो बात करता रहता  यह सिलशिला चलता रहा  एकाएक एक दिन शाम को समरेंद्र से तन्मय मिलने गया और वहाँ से समरेंद्र अपने चौकी क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में गस्त पर निकल गया इस बात को समरेंद्र को जरा भी इल्म नहीं था कि तन्मय उसकी अनुपस्थिति में भी उसके घर जाता है उस दिन समरेंद्र को गस्त करते रात के तीन बज गए तन्मय और रिया में आपस में बात करने में मशगूल थे तभी समरेंद्र ने दरवाजा खटखटाया दरवाजा  तन्मय ने ही खोला समरेंद्र के होश् उड़ गए उसने आश्चर्य से पूछा तुम इतनी रात यहाँ क्या कर रहे हो तन्मय ने कहा रिया ने कहा बैठो जब तक वो नहीं आ जाते मै बैठ गया बातो ही बातो में पता ही नहीं चला कब इतना टाइम हो गया समरेंद्र ने तन्मय से कहा मित्र शरीफ व्यक्ति इतनी रात को किसी के घर उसकी अकेली बीबी से बात नहीं करते । तन्मय अपने घर चला गया समरेंद्र बिना कुछ कहे सो गया कहते है कि पुलिस शक के बिना पर असली मुजरिम तक पहुँच जाते है समरेंद्र सुबह उठा और अपने चौकी पहुँच कर् उसने अपने सबसे विश्वाश पात्र सिपाही को तन्मय के विषय में जानकारी हासिल करने के लिये गोपनीयता कि हिदायत के साथ लगा दिया और खुद अपने पड़ोसियों से तन्मय के अपनी अनुपस्तिति में आने के बाबत सूचना इकठ्ठा किया तो पता चला कि तन्मय लगभग रोज रात्रि के दी तीन बजे तक समरेंद्र के घर से   बहुत दिनों  आता जाता देखा जा रहा है कोई बोलता इसलिये नहीं है कि एक तो पुलिस से सम्बंधित और दूसरे दोस्ती का मामला ।समरेंद्र के दिमाग में क्या चल रहा था किसी को नहीं पता समरेंद्र अंतर्मुखी व्यक्तित्व था जिसका अंदाज़ा लगा पना बहुत कठिन था एक सप्ताह बाद समरेंद्र द्वारा नियुक्त विश्वसनीय सिपाही ने तन्मय के बचपन से वर्तमान तक का पता लगा कर बता दिया उसने बताया कि रिया और तन्मय इंटरमीडिएट से साथ साथ पढ़ते थे दोनों में बहुत प्यार था रिया ने तन्मय से शादी के लिये बगावत कर दी थी मगर दोनों का विवाह रिया के पिता महेश सिंह जी के जिद्द के कारण नहीं हो पाया समरेंद्र ने जानकारी हासिल करने के बाद अब स्वयं भी ख़ुफ़िया तरीके से तन्मय के अपने घर आने जाने के सिलसिले कि तस्दीक करने लगा वह जान बुझ कर चौकी से निकल जाता और अपने घर के आस पास अपने ही घर कि निगरानी करता।समरेंद्र ने प्रतिदिन देखा कि तन्मय उसके घर आता है और रिया से रोज रात एक दो बजे तक बात करता है समरेंद्र चाहता था कि तन्मय और रिया जब भी आपत्ति जनक स्थिती में हो तो उनको वह रंगे हाथों पकड़े मगर रिया और तन्मय का प्यार ईश्वर का विधान था जिसमे वासना का क़ोई स्थान नहीं था फिर भी समरेंद्र को तन्मय और रिया का मिलना नागवार लगता था एक तो पुलिस में कार्य करने से शक सुबहा उसके जीवन  का अभिन्न हिस्सा बन गया था मन ही मन उसने दृढ़ निश्चय कर् लिया तन्मय को रिया कि जिंदगी से हटा कर दम लेगा  अंतिम दिन जब तन्मय रिया से मिलकर जाने लगा उसने कहा अब हम मिलने नहीं आएंगे जन्म जन्मान्तर तुम्हारे आने कि प्रतीक्षा में रहेंगे ख़ुफ़िया निगरानी कर रहे समरेंद्र ने तन्मय कि बात सूनी ।तन्मय के जाने के आधे घंटे बाद वह घर में गया और सो गया सुबह उठा तो वह काफी गंभीर और प्रतिशोधात्मक लग रहा था रिया ने माहौल को हल्का करने के लिये मज़ाकिया अंदाज़ में कहा क्या किसी खतरनाक मुजरिम से पाला पड़ा था जो आप इतने गंभीर गुमसुम है समरेंद्र कुछ बिना बोले तैयार होकर चला गया रिया का मन किसी अनहोनी के डर से घबराने लगा शाम हुई रोज कि भाँती तन्मय समरेंद्र से मिलने पुलिस चौकी आया उस वक्त चौकी में सिर्फ समरेंद्र था उसने अपनी योजना के अनुसार सभी मातहतों को बाहर डियूटी पर भेज दिया था तन्मय दोस्त कि दोस्ती के गुरुर में था उसे जरा भी इल्म नहीं था कि उसका पुलिस दोस्त उसके लिये साक्षात् काल का रूप धारण कर चुका है तन्मय के पहुचते ही समरेंद्र ने सवाल किया तुम देर रात मेरे घर मेरी पत्नी से बात करने क्यों जाते हो क्या कोइ दोस्त अपने दोस्त कि गैरहाजिरी में उसके घर रात दो तीन बजे तक उसकी पत्नी से अकेले में बात करता है यह  तुम्हारे साथ मैं करूँ तो कैसा लगेगा तन्मय ने समरेंद्र को समझने कि बहुत कोशिश कि उसने बताया कि रिया उसके साथ पढ़ी है मगर समरेंद्र ने कहा दोस्त पुलिस वाले कि दोस्ती कि धार तुमने देखी है अब उसके दुश्मनी कि मार झेलो इतना कहते उसने कहते उसने अपने सर्विस रिवाल्वर निकली और सारी गोलियां तन्मय के कनपटी सीने पेट में इस विश्वाश से उतार दी कि वह किसी हाल में जीवित ना बचे तन्मय जमीन पर गिरा तड़फड़ा रहा था समरेंद्र ने तुरंत ऑटो वाले को जिसे उसने पहले से बोल रखा था को बुलाया और तन्मय को उसमे अर्ध मृत्य अवस्था में लादते हुये कहा इसे सरकारी अस्पताल ले जाओ पुलिस चौकी के पास रहने वालों ने इस घटना को देखा उनमे से एक नौजवान चौकी के सामने तन्मय कि नृशंस हत्या पुलिस द्वारा किये जाने पर जनपद निवासियो को जोरदार ललकारा अब जनता का हुजूम ईकठ्ठा हो चुका था मौके कि नज़ाकत देख समरेंद्र फरार हो गया जनता के हुजूम ने जनपद के थाने पुलिस चौकियों को फूक डाला जनता कि मांग थी खून का बदला खून मगर समरेंद्र का कही पता नहीं था।जब घटना कि जानकारी रिया को मिली तो वह स्वयं मृत सामान हो गयी उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह क्या करे ।जनपद की जनता उद्वेलित आंदोलित थी करोड़ो रुपये कि सरकारी सम्पति जनता के आक्रोश के भेट चढ़ गए सरकार द्वारा जनपद में अनिश्चित कालीन कर्फ्यू लगा दिया प्रशासनिक अमले का स्थानातरण कर दिया और नयी प्रशासनिक प्रणाली स्थापित की गयी चुकी इस पूरे घटना में रिया का दोष नहीं था अतः उसे प्रशासन ने  चोरी छिपे जनता के आक्रोश से बचते बचाते उसके घर भेज दिया घटना के लगभग पंद्रह दिनों बाद समरेंद्र ने न्ययालय में आत्म समर्पण कर दिया ।शहर का माहौल समरेंद्र के आत्म समर्पण के बाद शांत होने लगा ।यह सुचना जब महेश सिंह और मिलिंद को मिली तो महेश सिंह आनन फानन भारत लौट आये और अपनी बेटी रिया को अपने घर वापस ले आये रिया का सब कुछ लुट चूका था पति अपराधी जेल में था और प्रेमी जन्म जन्म के इंतज़ार के लिये मर चुका था रिया एक स्कूल टीचर हो अपने इस जीवन का निर्वहन करती अगले जीवन में तन्मय के प्यार के इंतज़ार में जिए जा रही थी पिता महेश सिंह उसकी बेदना को मूक बनकर देखते पश्चाताप के आंसू बहाते सोचते काश वे रिया कि बात मान उसकी शादी तन्मय से किये होते मगर पश्चाताप का ना तो कोई फायदा था ना ही प्राश्चित ।

कहानीकार--नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

मजदूर - नंदलाल मणि त्रिपाठी पिताम्बर

मजदूर भाग-2--- रामू अपने कार्यालय में एक दिन  सुबह ठीक दस बजे पहुचता है और बाहर से आये पत्रो को और समस्याओं को पढ़ता है और उसके उचित निदान का निर्देश अपने पी आर ओ को देता जाता है एकाएक रामू की निगाह एक बंद लिफ़ाफ़े पर पड़ती है जिसके
प्रेषक का नाम लिखा होता है रामानुजम तोत्रादि अर्नाकुलम केरल जल्दी जल्दी बंद लिफ़ाफ़े को खोलता है और  पत्र पढना शुरू करता है पत्र में तोताद्रि जी ने लिखा था ----
प्रिय रामू
मैं आज बड़े ही भारी उदास मन से नितांत अकेले बैठा हुआ हूँ शांति इतनी कि साँस लेता हूँ तो
खुद के स्वांस की आवाज़ पवन के तूफान जैसी महसूस होती है
लगता है मेरी अपनी ही सांस मुझे संसार से जीते जी उड़ा कर किसी
ऐसे स्थान पर ले जायेगी जहाँ प्राश्चित अफ़सोस का स्थान तो होगा ही नहीं होगा तो सिर्फ जन्म से जीवन की यात्रा का सुखद दुखद बृतांत जिसकी अनिभूति को देखा और जिया गया है व्यथित करती हुई सिर्फ मानस
पटल की यादों की परतो में आती जाती व्यथित करती रहेगी।मेरे पिता अर्नाकुलम में नारियल बागानों में साधारण से मजदूर हुआ करते थे मैं तीन बड़ी बहनो में सबसे छोटा भाई था आज मेरी
तीनो बहने अमेरिका में अपने परिवार के साथ स्थाई रूप से बस चुकी हैं मेरे पिता ने मेरी  बहनो का विवाह बड़ी गरीबी में निम्नतम मजदूर परिवार में किया था अब इसे भाग्य का खेल कहूँ या भगवन कृष्ण के गीत के कर्म ज्ञान का पुरुषार्थ मेरे तीनो बहन के पतियो ने अपने मजदूर मजबूर पिता को अपने मेहनत लगन निष्ठां से समाज में शिखरतम प्रतिष्ठा दिलाई आज उन्होंने साबित कर दिया की भगवान उन्ही के लिये है जो भगवान द्वारा प्रदत्त जन्म जीवन के मौलिक
उद्देश्यों को अपने पराक्रम पुरुषार्थ द्वारा प्रमाणित कर सकने में सक्षम होता है।मैंने भी अपने पिता की बेबस आँखों में उनकी आकांक्षाओं की लाचारी का द्वन्द देखा स्कूल से विद्यालय विश्वविद्यालय तक आर्थिक तंगी के अपमान का विष पिता रहा फिर एम् एस सी पी  एच डी आदि अध्ययन करता रहा कभी स्कालर शिप मिली कभी लोगो ने प्रोत्साहित किया चूँकि दक्षिण भारत में वर्ग भाषा और स्तर में बहुत विवाद भेद मौजूद है मैं  उच्च ब्राह्मण परिवार से होने के कारण मेरी योग्यता की स्विकार्यता बहुत कठिन चुनौतियों जलालत के बाद हुई चूँकि मेरे पिता अनपढ़ भूमिहीन थे अतः उनके पास अपने परिवार पोषण का एक मात्र साधन शारीरिक श्रम की चाकरी यानि मजदूरी ही थी।उन्होंने अपना जीवन अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिये मशीन बना दिया और अपने जीवन की आकांक्षाओं को अपनी संतानो की उपलब्धि में साकार किया मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ की मैं तुम्हे अपनी जिंदगी के विषय में बताकर क्या हासिल करना चाहता हूँ मगर मन ने आवाज दी और लिखना शुरू कर दिया मेरे जीवन का संघर्ष किसी भी कुरुक्षेत्र के महायुद्ध से कम नही है नौकरी के लिए मसक्कत शिक्षा प्राप्त करने के लिये कदम कदम पर संघर्ष कभी गिरीबी अगर अभिशाप है तो मजदूरी महापाप जिसकी जलालत इंसान को प्रत्यक्ष झेलनी भोगनी पड़ती है।
मैंने जो अपने जीवन को देखा मेने कोशिश किया की उन परिस्तितियों का सामना मेरी संतान को न झेलनी पड़े मैंने सभी परिस्थियां संसाधन उनके बेहतर भविष्य के लिये उपलब्ध कराये
और मेरी संतानो ने उसका लाभ भी उठाया और अपनी मन मर्जी की मंजिल के मुसाफिर बन गए मेरी एक बेटी आयर लैंड में वरिष्ठ और जानी मानी नेफ्रो सर्जन है उसने आयरिस से विवाह कर अपना घर बसा लिया है तो बेटा
मेरा एकलौता विश्व का जाना माना कार्डियोलॉजिस्ट है और उसने फ़्रांस में अपना आशियाना बना लिया है दो जानी मानी सन्तानो का पिता आज अकेले अपनी अंतिम सांसो का घुट घुट कर इंतज़ार कर रहा है पत्नी विमला की मृत्यु हो चुकी है और सामने उसकी तस्वीर से बात करता रहता हूँ।भोजन बनाने के
लिए बाई आती है और चली जाती है बेटे बेटी से बात करने की कोशिश करता हूँ तो बड़ी मुश्किल से उनका फोन उठता है जब भी फोन उठाते है सिर्फ यही कहते है यहाँ आ जाओ बृद्धाश्रम बहुत है
या इण्डिया में ही बृद्धाश्रम हो वहां चले जाओ।मने  अपना विशाल माकन बच्चों के स्कूल के लिये दान कर दिया है अनेको बीमारियों ने जकड़ रखा है और अब सिर्फ मृत्यु के समंध का इंतज़ार कर रहा हूँ।आज वो रामानुज तोताद्री अपनी किस्मत पर तड़फड़ा रहा है जिसके
मैंने जीवन की इस विषम घड़ी में तुमको साझा करना क्यों उचित समझा स्वयं नहीं समझ पा रहा हूँ
मैं जीवन भर शिक्षक रहा हूँ लाखो विद्यार्थियो को शिक्षा और उनका भविष्य सवारने में अपनी योग्यता से ईमानदार प्रयास किया जब भी मैं बहार निकलता बाज़ार हाट या किसी सार्वजनिक स्थान पर हमारे विद्यार्थी श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते मुझे कभी कभी अभिमान का दीमक अंदर से खोखला करने का प्रयास करता मगर मैं कभी बसीभूत नहीं हुआ आज मुझे खुद के होने का बेहद अफ़सोस हो रहा है मुझे जीवन यात्रा की वेदना ने छलनी
कर दिया है।मैं एक मजदूर की संतान होकर मजबूर पिता को मजबूरी के मकड़ जाल से निकलने का संकल्प सत्य किया मजदूर पिता को मजदूर माहात्म्य
का महानायक बनाने में कोइ कोर
कसर बाकि नहीं रखा ।आज मै खुद मजबूर और अपने मजदूर पिता के इर्द गिर्द महसूस कर रहा हूँ।रामानुज तोताद्री का पत्र पढ़कर रामु की आँखे भर आती है तुरंत ही अपने कार्यालय सहयोगियों की मीटिंग बुलाई और कार्यालय का एक सप्ताह के कार्यो का निर्देश जिम्मेदारी प्रत्येक को  निश्चित हिदायत के साथ सौंपते हुए अर्नाकुलम् जाने का फैसला कर लिया।अगले दिन अर्नाकुलम के लिये रवाना हो गया
दो दिन बाद अर्नाकुलम रामानुज
तोद्रादि जी के घर पहुँच गया।तोताद्री जी रामु को देखकर अचानक भौचक्के रह गए उन्होंने रामु का कुशल क्षेम पूंछा और भावनात्मक सत्कार में स्नेह विह्वल आंसुओ के प्रवाह से किया रामू तोताद्री जी की दशा देखकर
उसे अपने पिता की याद ताज़ा हो गयी जब वह हर सुबह उसे जीवन मूल्यों की शिक्षा देकर मजदूरी के
काम पर निकलते।रामू और तोताद्री ने अपने बीते दिनों की यादों को अपनी बात चीत के शीलशिले के लिए आधार बनाया दोनों के मध्य यादो के पर्त खुलने लगे दर्द और शुख दुख के एहसास का अतीत वर्तमान में रिश्तों को मजबूती प्रदान करने में कारगर होने लगे ।दोनों के वार्तालाप में पता ही नहीं चला की
शाम कब हो गयी टोटाद्री जी का
खाना बनाने वाली बाई आई तब रामु ने उसका हिसाब करते हुये बताया की आब तुम्हे खाना बनाने की आवश्यकता नहीं है टोटाद्री जी की दैनिक दिनचर्या में जो लोग भी सम्मिलित थे रामू ने सबको स्वयं जाकर एक एक का हिसाब कर दिया जैसे चिकित्सक
वासरमैंन बाई आदि और यह भी
बता दिया की अब तोताद्रि ्री जी को आपके सेवाओं की आवश्यकता नहीं होगी आपलोगो ने जितनी लगन निष्ठां के साथ तोताद्री जी की सेवा की उसके लिये आप सभी को ह्रदय से आभार कृतज्ञता इसके उपरांत रामू ने उस स्कूल प्रबंधन से मुलाक़ात किया जिसको विद्यालय खोलने हेतु तोताद्री जी ने अपना मकान दान
कर दिया था और उनसे रामानुज तोताद्रि के नाम से विद्यालय खोलने एवं उदघाटन करने का अनुरोध करते हुये बीस हज़ार रुपये दान स्वरुप इस निवेदन के
साथ किया की विद्यालय पूजन तोताद्री जी के कर कमलो द्वारा संपपन्न होगा विद्यालय प्रबंधन ने इस गौरवशाली आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया ।तोताद्री
जी समझ नहीं पा रहे थे की रामू
क्या करना चाहता है ।लेकिन उन्हें भरोसा था की वह गलत नहीं हो सकता जिसके अपने बेटों ने चका
चौध की दुनियां और भौतिकता के आकर्षण में अपने नैतिक दायित्वों कर्तव्यों की तिलांजलि दे दी हो उसे रामू से क्या शिकायत हो सकती थी चुप चाप रामू के निर्णयों को सिरोधार्य करते उसके साथ कदम से कदम मिलते जा रहे थे ।रामू को आये लगभग दस दिन हो चुके थे और वह स्वयं नाश्ता खाना बनाता जी की ऐसी देख भाल करता जैसे ईश्वर स्वयं रामू की शक्ल में उनका तीसरा बेटा दे दिया हो। आखिर वह दिन आ ही गया जब रामानुज तोताद्री
कालेज का विधिवत पूजन शुभारम्भ होना था रामू ने स्वयं तोताद्री साहब को नहला धुला कर तैयार कर पूजन में साथ लेकर गया और पूजन विधिवत विद्यालय प्रबंधन समिति के सभी
सदस्यों की उपस्तिति में सम्पन्न हुआ पूजन सम्पन्न होते ही रामू ने प्रबंध समिति को लगभग एक हजार वर्ग मीटर की भव्य इमारत जो तोताद्री जी के जीवन के सपनो संस्कारो की प्रत्यक्ष धरोहर थी की चाभी दस्तावेज प्रबंध समिति के अध्यक्ष तोताद्री जी के कर कमलों से समुगम नागरान् को सौप दिया चाभी सौपते वक्त तोताद्री जी बहुत भाउक हो गए और उन्होंने बोलना शुरू किया मैं रामानुज तोताद्री अपने स्वर्गीय माता पिता और ईश्वर को साक्षी मानकार मैं अपने भौतिक जीवन की उपलब्धि आप लोगों को इस विश्वास के साथ सौंपता हूँ की इस विद्यालय में गरीब मजदूरों और असहाय बेसहारा बाच्चो को उनके जीवन मूल्य उद्देश्य के लिये
शिक्षित कर सबल सक्षम नागरिक बनाकर राष्ट्र समाज को प्रस्तुत करेगा तभी मेरे मजदूर पिता के
मेहनत के पसीनों से सिंचित यह भूमि मेरे पुरुखों को शांति प्रदान कर सकेगी यदि संभव हो तो रामू का नाम इस विद्यालय के प्रबब्धन में अवश्य रखियेगा मुझे विश्वाश है की रामू मेरी इस इच्छा का आदर
करेगा ।मैं जीवन भर शिक्षक रहा हूँ यहाँ विद्यार्थियो को पढ़ते बढ़ते देख जीवित और मृत दोनों स्तितियों में मुझे शांति और ख़ुशी
मिलेगी इतना कहकर रामानुज तोताद्री ने गहरी सांस छोड़ते हुए अपने अरमानो के आशियाने को भर नज़र निहारा उनकी आँखे गवाही दे रही थी उनके गुजरे अतीत की यादो को जिसको तोताद्री जी ने उस भवन में गुजारा था उनकी आँखों से आंसू छलक रहे थे ।इतनी देर में रामू ने तोताद्री जी के आवश्यक सभी सामान जो पहले से ही पैक थे बाहर रामू ने कहा सर चलिए अब आप मेरे साथ रहेंगे तोताद्री जी बिना कुछ कहे रामू के साथ चल दिए विद्यालय प्रवंधन कमेटी के सभी सदस्यों ने समुगम जी के नेतृत्व में
अश्रुपूरित नम और भावों के प्रवाह से रामू और तोताद्री जी को बिदा किया ।रामू तोताद्री को लेकर अर्नाकुलम रेलवे स्टेशन पहुंचा करीब एक घंटे बाद ट्रेन चलने को तैयार हुए तोताद्री जी ने
अपनी जन्म भूमि की मिटटी अपने माथे लगाया और बोले हे मेरी पावन मात्र भूमि मैंने तेरे ही आँचल में पला बढ़ा मेरे पिता पुरखे भी तेरी ही  परिवरिस से जाने पहचाने गए तेरा ऋण मेरे खून के कण कण खानदान पे है
कोई भी  प्राणी जननी जन्म भूमि
का ऋण नहीं चूका सकता मगर जन्म और मृत्यु तेरे दामन में सौभाग्य है जो मेरे पुरुखों को तो
प्राप्त हुआ मगर शायद मुझे प्राप्त न हो होगा भी कैसे मेरी संतानो को तूने संभवतः को कुछ ज्यदा ही प्यार कर दिया जिसके कारण 
अभिमान के अभिभूत तेरी सेवा से बिमुख वहां चले गए जहाँ से उनका दूर दूर तक कोइ रिश्ता नहीं है संभवतः मेरे ही किसी अनजाने अपराध के अंतर मन की सजा के कारण वे अपने नैतिक कर्तव्यों से विमुख हो गए 
मुझे क्षमां कर दे मातृभूमि मैं जब भी जन्म लूँ तेरी ही मिटटी की
बचपन जवानी मुझे नसीब ट्रेन अपनी गति से चलती जा रही थी रामू और तोताद्री आपस में बाते करते रहते जब कभी ख़ामोशी होती दोनों हो तोड़ने की कोशिश करते।रामू और तोताद्री जी वातानुकूलित प्रथम श्रेणी डिब्बे में सवार थे दोनों की बर्थ आमने सामने थी यह वह दौर था जब भारत में मोबईल का चलन नहीं था लेकिन संचार क्रांति का दौर प्रारम्भ हो चूका था जगह जगह प्राइवेट काल आफिस खुले थे।
 ट्रेन निरंतर चल रही थी रामू और तोताद्री के वार्ता का क्रम चलता कभी रुक जाता तो आस पास बैठे यात्रियों को खामोशी का एहसास होता प्रथम श्रेणी कोच
तब व्यक्ति के संभ्रांत और प्रतिष्टित होने की पहचान थी जो
अब भी बरकरार है बातों ही बातों
में तोताद्री साहब को कब नीद आ गयी और वो सो गए ट्रेन के कोच
में लंबी खामोशी छा गयी रामू भी शांत बैठा अपनी धुन ध्यान में तभी  उसी कोच में बैठी सुजाता जो बड़े ध्यान से रामू और तोताद्री जी की आपसी बातो को सुन रही थी ने खामोशी तोड़ते हुए पूछा ये
आपके पिता है रामू ने जबाब दिया नहीं मगर पिता समान है
मैं एक मजदूर का बेटा हूँ जिसकी
मृत्यु एक इमारत के निर्माण में कार्य करते वर्षो पहले हो चुकी है
ये इलाहाबाद विश्वविद्याल के कुलपति तोताद्री सर है मैं लखनऊ में अकेला रहता हूँ इन्हें
अपने पास ले जा रहा हूँ।सुजाता
ने झट दूसरा सवाल किया इन्होंने
ऐसा क्या आपके लिये किया जिसके लिये आप इनको अपने
पिता से बढ़कर मान दे रहे है इनके कुलपति काल में तो हज़ारों विद्यार्थियों ने शिक्षा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण ?रामू ने उत्तर दिया मेरे पिता की दुर्घटना में मृत्यु
हुई थी इन्होंने अपनी सरकारी कार से मुझे इलाहाबाद से लखनऊ भेजा साथ ही साथ अध्य्यन के दौरान सदैव मेरी मदद
पुत्र की तरह की सत्य है इनके कुलपति कार्य काल में हज़ारों
बच्चों ने शिक्षा ली मगर मेरे लिये
और इनके लिये मैं पिता पुत्र की
तरह ही थे।सुजाता रामू का बेवाक जबाब सुनकर आश्चर्य से
रामू का चेहरा देखने लगी कुछ
देर ख़ामोशी के बाद रामू ने प्रश्न किया आप कहाँ जा रहीं है तब सुजाता ने बड़ी संजीदगी से जबाब दिया मैं लखनऊ जा रही
हूँ मैं केरल घूमने अपने दोस्तों के
साथ गयी थी वापस में मेरे दोस्तों का कार्यकम और कुछ दिन रुकने का था मुझे लौटना था इसलिये मैं
वापस जा रही हूँ।फिर रामू और बातों ही बातो आपस में घंटो बीता दिये पता ही नहीं चला
इसी बीच तोताद्री साहब ने एक बार लंबी सांस छोड़ी रामू को पुकारा और फिर निद्रा की मुद्रा में
चले गए रामू ने बहुत जगाने की कोशिशि की मगर तोताद्री साहब 
नहीं उठे सुजाता ने भी बहुत कोशिश की मगर जब तोताद्री जी नहीं उठे तब रामू घबड़ाया रामू की घबराहट देखकर सुजाता ने कहा आप घबड़ाओ नहीं इनकी
साँसे धड़कन ठीक है ये अस्थाई
कोमा में जा चुके है रामू को सुजाता की ये बात सुनकर झुंझलाते हुये गुस्से से बोला आप इतने विश्वाश से कैसे कह रही है
की ये कोमा में है सुजाता ने उत्तर दिया जनाब मैं किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ में न्यूरोलोगी विभाग में सहायक प्रबक्ता हूँ मेरे पास ऐसे अनेक मरीज लगभग रोज आते है रामू ने तुरंत साँरी बोला और पूछा अब हमे क्या करना चाहिये सुजाता ने
कहा जनाब आप घबड़ाये नहीं
एक डॉक्टर आपके साथ है मगर अब कोच कंडक्टर से कह कर जल्दी से जल्दी अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकवाये जहाँ इनको मेडिकल
सपोर्ट मिल सके रामू तुरंत कोच कन्डक्टर स्वामीनाथन के पास गया और उनको अपने बर्थ के पास लाकर तोताद्री जी के की बिगड़ती हालत को दिखाया स्वामीनाथन ने कोमा में सोये तोताद्री जी का पैर छुआ और उसके आँख से आंसुओ धार निकल पड़ी रामू ने आश्चर्य से
पूछा क्या आप इनको जानते है
स्वामीनाथन ने बताया की जब वह स्नातक में पड़ता था तब तोताद्री साहब ने ही किताबे फीस
देकर उसकी मदत की थी मेरे बाप के पास इतनी हैसियत ही नहीं थी की वो मुझे स्नातक पढ़ा
सकें आज मैं कुछ भी इनकी सेवा में कर सका तो मेरे लिये सौभाग्य होगा अगला स्टेशन वारंगल आ रहा है वहाँ ट्रेन रुकेगी वहाँ समुचित मेडिकल सुविधाये भी है वहीँ इनके इलाज़ की व्यवस्था करते है।
कुछ ही देर ट्रेन चलने के उपरान्त वारंगल स्टेशन पहुंची बड़ी तेजी से स्वामीनाथन स्टेशन मास्टर के केविन जाकर मरीज के सम्बन्ध में जानकारी दिया और निवेदन किया किया की ट्रेन को तब तक रुकवा दे जब तक मरीज के इलाज़ को समुचित व्यवस्था नहीं
हो जाती फिर स्ट्रेचर मंगाने और मरीज को ट्रेन से उतरने और हस्पताल तक पहुँचाने हेतु निवेदन किया स्टेशन मास्टर सूर्या राव घबराये विश्वनाथन की बाते सुनने के बाद स्वय उठकर ट्रेन के गार्ड का वस्तुस्थिति से अवगत कराने के बाद स्ट्रेचर ट्रेन के कम्पार्टमेंट में भेजा जहाँ रामू तोताद्री के पास बैठा गंभीर मुद्रा में सोच में डूबा था अचानक स्ट्रेचर आया तब उसका ध्यान टुटा तुरंत उठकर वह् तोताद्री जी को स्ट्रेचर पर लाने में अन्य लोंगों
की मदत करने लगा कुछ ही मिनट में रामू तोताद्री जी को लेकर ट्रेन से निचे उतरा तभी सुजाता भी अपना सामान लेकर उतरी ट्रेन के निचे स्वामीनाथन खड़े थे अम्बुलेंस स्टेशन के बाहर खड़ी थी जब रामू तोताद्री जी को स्ट्रेचर से लेकर स्टेशन से बाहर जाने से पहले सुजाता की तरफ
मुखातिब होकर बोला
सूजाता जी आप क्यों अपनी यात्रा बीच में ही छोड़ रही है तोताद्री जी मेरी जिम्मेदारी है आप खामख्वाह क्यों परेशान हो रही है सुजाता रामू की बात को बड़े ध्यान धैर्य से सुनने के बाद बोली रामू जी क्या आपका इन माहशय से कोई खून का रिश्ता है रामू ने कहा नहीं फिर क्यों इनके लिये अर्नाकुलम तक गए इनके बेटे इनसे मिलने नहीं आते पत्रो का जबाब भी नहीं देते देते तो इनको आहत करते आप ऐसा क्यों कर रहे है जैसे ये आपके लिए भगवान हो रामू लगभग चिल्लाने के अंदाज़ में बोला हाँ हमारे लिये ये भगवान ही हैं तब सुजाता ने दृढ़ता पूर्वक कहा की यदि एक सादरण इंसान आपके लिए भगवान् है तो मेरे लिए क्यों नहीं वो भी जो जीवन मृत्यु की शय्या पर पड़ा हो मैं एक।डॉक्टर हूँ मेरा कर्तव्य है की हम तब तक इनकी देखभाल करे जब तक ये स्वस्थ नहीं हो जाते ये मेरा फ़र्ज़ है स्वामीनाथन रामू और सुजाता की बाते बड़े ध्यान से सुन रहे थे उन्होंने निवेदन के स्वर में रामू से कहा रामू किसी तरह दबे मन से सुजाता को साथ चलने की स्वीकृति दे दी अब सुजाता स्वामीनाथन और रामू एम्बुलेंस से स्टेशन से बाहर निकले और थोड़ी ही देर में बाला नर्सिंग होम जो वारंगल का सबसे प्रतिष्टित नर्सिंग होम था पहुँच गए जहाँ सुजाता सबसे पहले नर्सिंग होम के स्वागत कक्ष में दाखिल।हुई और वहाँ के चिकित्सक के बारे में अपना परिचय एक डॉक्टर के रूप में देकर पूंछा तब तक डॉक्टर सुब्बा राव रेड्डी बाहर निकले स्वागत कक्ष में बैठी महिला ने इशारा किया सुजाता तुरंत डॉ रेड्डी से मुखातिब हुई और अपना परिचय देने के बाद 
मर्ज और मरीज के विषय में बताया इसी बीच स्वामीनाथन और रामू स्ट्रेचर लेकर दाखिल हुए
डॉ रेड्डी ने बिना बिलंब तोताद्री जी का इलाज़ शुरू कर दिया 
स्वामीनाथन सुजाता और रामू नर्सिंग होम के  सामने एक साधारण होटल में रुकने के लिये कमरे ले लिये बारी बारी से तीनों 
तोताद्री जी की सेवा एवं देख भाल करते इसी बीच सुजाता और रामू जब भी समय मिलता बाते करते धीरे धीरे एक दूसरे के मन मतिष्क ह्रदय से एक दूसरे पर करीब होते गए पता नहीं दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया दोनों को भी एहसास हो पाया डॉ सुब्बाराव ने सारी कोशिश कर लिया मगर तोताद्री जी को कोमा से बाहर नहीं आ सके लगभग दो सप्ताह का समय  बीत चूका था सुजाता भी बहुत चिंतित थी चूँकि वह स्वयं जानती थी की अधिक दिनों तक कोमा में तोताद्री जी का रहना अच्छा नहीं वह चिंता सोच में बैठी थी तभी वहां रामू ने आकर सुजाता को चिंता ध्यान को तोड़ते हुए बोला क्या सोच रही है सुजाता बोली रामू जी आप बार बार आप कहके शर्मिंदा कर रहे है आपको यह नहीं लगता है ट्रेन में अचानक हम लोंगो का मिलाना तोताद्री जी का अचानक  बीमार होना और  फिर हम लोंगो का साथ होना यह मात्र संयोग नहीं इस संयोग नहीं ईश्वर की इच्छा आशिर्बाद है मैं प्रति दिन अपने पिता जी से बता दिया है की मैंने अपनी शादी के लिये अपने आपकी पसंद लड़का पसंद कर लिया है रामू ने भी बिना झिझक सुजाता के प्रेम विवाह की सहमति देते हुये बोला मेरी भी अन्तरात्मा की यही आवाज़ है अतः मैं तुम्हे आज दशों दिशाओं सारे देवी देवताओ अवनि आकाश पर्वय नदियां झरने झील पेड़ पौधों वनस्पतियो को साक्षी मानकर तुमसे उचित समय आने पर विवाह करने का वचन देता हूँ।
सुजाता ने तुरंत ही एक सवाल
किया रामू तुमने इतनी जल्दी फैसला लेने के लिये किस ख़ास बात ने विवश किया मेरे निस्वार्थ प्रेम ने या कोई अन्य कारण से
रामू ने बड़े ध्यान से सुजाता की आँखों में आँखे डाल कर देखा
और बोला सुजाता क्या तुम जानती हो की मैं कौन हूँ मेरा बेक ग्राउंड क्या है मैं क्या करता हूँ मेरे क्योकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानता हो हूँ की तुम किंग जार्ज मेडिकल कालेज में
 न्यूरो बिभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हो सुजाता ने जबाब दिया मेरे लिये इतना ही काफी है की तुम्हारा दिल आइने की तरह है जिसमे दिल और चेहरा साफ़ साफ़ दिखता है मेरे लिये इतना बहुत है प्यार करने के लिये जिंदगी में रामू ने कहा फिर भी मैं तुमको बताना चाहता हूँ की तुमको पछतावा न हो मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी हूँ और लखनऊ में विशेष सेवा मे पोस्टिंग है मेरी अभी दोनों की वार्ता चल ही रही थी की स्वामीनाथन भागे भागे आये और बोले तोताद्री सर को होश आ गया सुजाता और रामू भागे भागे बाला जी नर्सिंग होम के उस रूम में पहुंचे जिसमे तोताद्री साहब की  चिकित्सा चल रही थी तोताद्री जी ने रामू को।देखते ही कहा रामू मैं बहुत गहरी नींद में सो गया था मगर नींद में भी तुम्हारी परेशानी का कारण मैं हूँ चिंता रहती आज लगा की तुम जीवन में कुछ खुश हो तो नीद तुम्हारी ख़ुशी देखने के लिये टूट गयी रामू की आँखे भर आयी रानू ने तुरंत ही सुजाता की तरफ मुखातिब होते हुए सुजाता का परिचय कराते हुए बोला ये डॉ सुजाता है हमी लोंगो के डिब्बे में सफ़र कर रही थी ये न्यूरो बिभाग 
किंग जार्ज मेडिकल कालेज में सहायक प्रोफ़ेसर है आपकी बिमारी की स्थिति में अपना सफ़र बीच में ही  छोड़ कर हम लोंगो के साथ उतर कर आपकी देख रेख बड़ी लगन से किया है तोताद्री साहब ने सुजाता को गौर से देखा और बोले बेहद खूबसूरत और होनहार है मेरा आशिर्बाद है बेटा सुजाता और कुछ दे भी नहीं सकता क्योकि रामू के शिवा मेरे पास तुम्हे देंने के लिये कुछ भी नहीं है और रामू तुम्हारे साथ है ।
फिर तोताद्री जी विश्वनाथन की तरफ मुखातिब हुते हुए बोले ये निराकार विश्वनाथन मेरा प्रिय शिष्य मैं जीतनी बार जन्म लूँ हर बार विश्वनाथन और रामू जैसे बेटो पिता बनना मेरी एकमात्र
इच्छा होगी मैं ईश्वर से सदैव यही 
मांगूगा।
इन्ही बार्ता के मध्य डॉ सुब्बाराव रेड्डी वहां पहुचे उन्होंने तोताद्री जी
की रूटीन चेक उप करने का बात वहां उपस्थित सभी लोंगो को हिदायत दी की आप सभी तोताद्री जी को आराम की जरुरत है फ़ौरन विश्वनाथन सुजाता और रामू तोताद्री जी को आराम देने की नियत से वहां से हट गए ।अब प्रतिदिन तोताद्री जी की सेहत में तेजी से सुधार होने लगा एक हफ्ते बाद पूरी तरह ठीक हो गए बाला जी नर्सिंग होम वारंगल में 
तीन सप्ताह तक इलाज़ इलाज़ के बाद तोताद्री जी पूरी तरह स्वस्थ हो गए डॉ सुब्बाराव रेड्डी ने कुछ आवश्यक हिदायत सुजाता को समझाया और नर्सिंग होम से छुट्टी दे दी नर्सिंग होम में इलाज़ का पूरा खर्च निरंकार विश्वनाथन ने चुकाया और लखनऊ तक जाने का ट्रेन टिकट के साथ सुजाता रामू और तोताद्री जी के साथ रेलवे स्टेशन आया और ट्रेन में बैठाने आदि की व्यवस्था की और तोताद्री जी के पौरों पर सर रख कर आशिर्बाद लेकर सुजाता रामू के साथ तोताद्री जी को विदा किया ट्रेन वारंगल से च्लने लगी निरंकार स्वामीनाथन एक तक जाती ट्रेन को देखते रहे उनकी आँखों से अश्रु धरा बह रही थी धीरे धीरे ट्रेन आँखों के सामने से ओझल हो गयी ।विश्वनाथन भी अपने घर लौट गए।विश्वनाथन दूसरे दिन  पुरे तीन सप्ताह की
छुट्टी आवेदन ले कर अपने कार्यालय पहुंचे जब वे अपने अधिकारी रामामूर्ति को छुट्टी का
आवेदन दिया रामामूर्ति जी आग बबूला हो गए और बोले मैं जनता हूँ की आपके पिता को ये दुनियां छोड़े वर्षो हो गए मगर फिर भी आपने लिखा है की आपके पिता जी की तबियत खराब होने के कारण डियूटी पर नहीं आ सके ये नया बाप कहाँ से आ गया ?विश्वनाथन को अपने अधिकारी रामामूर्ति जी की बात बड़ी नागवार गुजरी फिर भी उन्होंने बड़े धैर्य से जबाब दिया सर उन्होंने मुझे पढ़ाने में बहुत मदत की थी मेरे बाप के पास इतना संसाधन ही नहीं था की वो मुझे स्नातक की शिक्षा दिला पाते वो तो भला हो तोताद्री जी का जिनकी कृपा से मैं स्नातक भी हुआ और आपके समक्ष यह अवकाश प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर की हद हैसियत राममूर्ति जी को समझते देर नहीं लगी उन्होंने फ़ौरन अवकाश स्वीकृत करते हुए अपनी कुर्सी से उठे विश्वनाथन की
पीठ थापथाई और बोले तुम धन्य हो तुम्हारे जैसा इंसान जमाने में मिशाल है और यह कहते हुए उनकी आँख भर आयी बोले तुम सदा ही अपने उदेशय पथ पर सफल हो।।
 ट्रेन अपना सफ़र पूरा करते हुए लखनऊ को पहुंची रामू सुजाता और तोताद्री साहब ट्रेन से उतारे और फ़ौरन रिजर्व टैक्सी कर अपने घर को चल दिए सुजाता ने भी कहा हमभो घर तक साथ चलेंगे और वह भी साथ हो ली 
लहभग आधे घंटे में तीनो रामू के सरकारी आवास पहुचे जहाँ रामू की दोनों बहने अपने भाई रामू और तोताद्री जी का इंतज़ार कार  रही थी सुजाता ने तोताद्री साहब का कमरा विस्तर ठीक कराया और रामू की बहनों को तोताद्री साहब की देख भाल का खास हिदायत देकर चलने के लिये विदा लेने के लिये रामू की दोनों बहनों राशि और रोहिणी की तरफ मुखातिब हुई तभी दोनों बहनो ने कहा अच्छा भाभी आपकी हिदायत के अनुसार ही हम लोग बाबूजी की देखभाल करेंगे सुजाता को बहुत तेज झटका लगा उसने विस्मय कारी दृष्टि से राशि और रोहिणी की तरफ देखा तभी दोनों बहनो ने एक साथ बोला माफ़ करना भाभी आपकी शादी जिससे होगी वह् भी हम बहनो के भाई जैसा ही होगा सुजाता ने हल्की मुस्कान बिखेरी और अपने घर जाने को बाहर निकली दोनों बहने अपने भाई रामू के साथ बाहर निकाला और तीनो ने भावनात्मक अभिवादन से सुजाता को विदा किया। सुजाता कुछ ही देर में अपने घर पहुँच गयी घर पहुँचते ही सुजाता की पापा शमशेर बहादुर सिंह ने अपनी एकलौती बिटिया का बेहद भावनात्मक स्वागत किया और बिलम्ब का कारण पूछा सुजाता ने पुरे तप्सिल से बताया समशेर बहादुर अपनी बेटी पर बहुत प्रशन्न हुये सुजाता सफ़र की थकान बोझ से सामान्य होकर
अगले दिन से अपने डियूटी पर जाने लगी रामू भी अपने कार्य पर जाने लगा दिन धीरे धीरे सामान्य दिन जिंदगी सामान्य होने लगी राशि और रोहिणी जल्दी ही तोताद्री जी से घुल मिल गयी और तोताद्री जी को बाबूजी कहती और तोताद्री जी को भो दो बेटिया मिल गयी थी तोताद्री जी का मन विल्कुल ऐसा लग गया जैसे की अपने घर अर्नाकुलम में ।उधर सुजाता जब भी अपने डियूटी से खली होती रामु से मिलने जाती दोनों घंटो बाते करते कभी कभी साथ घुमने भी पार्क रेस्त्रां चले जाते दोनों की प्रेम कहानी किंग जार्ज मेडिकल कालेज और लखनऊ के प्रशासनिक अमलों में चर्चा का विषय बन गयी थी धीरे धीरे यु ही दिन बितते गए।एकाएक एक दिन तोताद्री जी ने रामू से कहा बेटा रामू राशि और रोहिणी अब विवाह योग्य हो चुकी है दोनों के लिए विवाह योग्य बर देखकर विवाह कर दो या यदि इन दोनों की पसंद का कोई लड़का हो उनसे ही इनका विवाह कर दो रामू को तोताद्री जी की बात अच्छी लगी उसने पहले ही सुरेन्द्र नायक के परिवार में उनके दोनों बेटों को जो डॉक्टर थे अपनी बहनों के लिए पसंद कर रखा था
दूसरे दिन रामू सुरेन्द्र नायक के घर जाकर अपने बहन राशि और रोहोणि का विवाह निश्चित कर दिया बड़े धूम धाम से दहेज़ रहित विवाह रामू ने अपनी बहनो का किया सुरेन्द्र नायक जी की ख़ुशी का क़ोई ठिकाना नहीं रहा  रोहिणी और राशि जैसी सुलक्षणा सुन्दर  बहुओं को पाकर तोताद्री जी ने दोनों कन्याओ का कन्या दान किया जब दोनों बहने बिदा होने लगी रामू और तोताद्री जी ने
भरी आँखों से बिदा किया सुजाता विवाह के एक सप्ताह पहले सुबह आ जाती और विवाह की तैयारी शॉपिंग आदि करती कभी दस बजे कभी बारह बजे रात्रि को अपने घर जाती उसने अपनी ननदो की।शादी में क़ोई कोर कसर नहीं रखी इसी तरह तीन महीने एकाएक दिन तोताद्री जी ने रामू को प्यार से बैठाया और कुछ देर पुरानी बातों की याद ताज़ा करते हुये बोले रामू अब तक तुमने अपनी सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया किसी भी परिवार को तुम पर नाज़ हो सकता है मगर अब तुम्हे अपने बारे में सोचना है तुम शादी कर लो सुजाता अच्छी लड़की है उसके आने से तुम्हे जीवन की सारी खुशियाँ मिलेंगी पढ़ी लिखी डॉक्टर है सुन्दर है मिलनसार है
सर्वथा तुम्हारे योग्य है आज ही तुम सुजाता से कहो की वो तुम्हारी शादी के लिये आएं और विवाह की तिथि निश्चित करे रामू ने सहमति से सर हिलाया और तैयार होकर कार्यालय को चल दिया उस दिन सुजाता जल्दी जल्दी अपने काम से छुट्टी पाकर रामू से मिलने के लिये फोन करके बुलाया रामू कार्यालय से खाली होकर जल्दी जल्दी सुजाता से मिलने गया सुजाता पहले से इंतज़ार कर रही थी रामू के पहुँचते ही सुजाता ने कहा कब से मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ आज मै सरप्राइज देने वाली हूँ रामू ने कहा मैं भी तुम्हे सरप्राइज देनेवाला हूँ सुजाता ने झट कहा पहले तुम बताओ रामू ने कहा पहले तुम बताओ रामू ने कहा पहले तुम पहले तुम लखनऊ के नबाबों का हाल मत करो तुम पहले से आकर इंतज़ार कर रही हो अतः पहले तुम ही बताओ सुजाता ने कहा अच्छा बाबा मैं ही बताती हूँ तो सुनो मेरे पापा पंडित ह्रदय शंकर त्रिपाठी कल आपके घर मेरे रिश्ते की बात लेकर जाने वाले है जनाब मेरे पापा काफी कड़क ऊँचे ओहदेदार खानदानी आदमी है जरा संभल कर बात कीजियेगा फिर दोनों काफी देर तक बातें करते रहे फिर दोनों अपने अपने घर को चले गए दूसरे दिन अवकाश का दिन रविबार था
ठीक सुबह नौ बजे ह्रदय शंकर त्रिपाठी रामू के घर पहुंचे दरवाजे का कालवेल बजाया तो तोताद्री जी ने ही दरवाजा खोला और आदर के साथ बैठाया थोड़ी देर 
बाद रामू ड्राईंग रूम में दाखिल हुआ और ह्रदय शंकर त्रिपाठी को देखकर बोला आप यहाँ कैसे यहाँ आने हिम्मत हुई तेज आवाज सुनकर तोताद्री साहब ड्राईंग रूम में दाखिल हुए बोले बेटा इनको मैंने इनको बैठाया है ये सुजाता के पिता है क्या बात है रामू बहुत गुस्से में बोला बाबूजी ये वाही कॉन्ट्रेक्टर है जिनकी सुजाता अपार्टमेंट में काम करते मेरे पिता की मृत्यु हुई थीं और इन्होंने मेरी माँ को बहुत अपमानित किया था ह्रदय शंकर त्रिपाठी को समझ नहीं आ रहा था की वो बात को किस प्रकार शुरू करें उन्होंने तोताद्री जी से निवेदन किया सर वह एक दुर्घटना थी जिसके कारण मैं भी बहुत मानसिक दबाव में था मैं अपनी गलती के लिये क्षमा मांगता हूँ मेरी एकलौती बेटी ने मुझे यहाँ भेजा है रामू से अपने रिश्ते के लिए वो रामु से ही प्यार करती है और रामू से ही विवाह करना चाहतीं है मैं लाचार विवश पिता हूँ मुझे चाहे जो सजा दे दें लेकिन मेरी बेटी की ख़ुशी के लिये ये रिश्ता स्वीकार करें उसे नहीं पता की रामू के पिता की मृत्यु उसके पिता के ही प्रोजेक्ट में हुई थी और जब उसे बता चलेगा तो मुझसे नफ़रत करने लगेगी कहते हुये तोताद्री जी के पैर पकड़ लिया तोताद्री जी ने ह्रदय शंकर त्रिपाठी को उठाया और कहा धीरज रखिये रामू ने कहा हरगिज नहीं अब तो ये रिश्ता नहीं हो सकता।
 रामू ने तोताद्री जी से कहा सर जिस व्यक्ति में मानवता नाम की कोई संस्कार न हो उससे किसी भी प्रकार का रिश्ता ईश्वर का अपमान है मेरे पिता के मृत्यु के समय के दो किरदार जिनकी भूमिका मैं नहीं भूल सकता उसमे एक आप है जिनमे मुझे अपना पिता नज़र आते है दूसरे ये महाशय है जिनमें मुझे अपने दुर्दिन के अपमान जलालत और इंसानी जिंदगी का कोफ़्त नज़र आता है मैं इनके व्यवहार आचरण से इतना आहत हुआ की जिंदगी भर मजदूर का बेटा होने का दर्द सताता रहेगा ।सर इनसे कहिये ये इसी वक्त यहाँ से चले जाय नहीं तो मैं कुछ भी धृष्टता करने पर विवस हो सकता हूँ। इतने में हृदय शंकर त्रिपाठी जी ने विवस लाचार असहाय होकर कहा बेटा मेरी एक ही बेटी सुजाता मेरे जिंदगी की तमाम खुशिया है मैं उसके लिए आया हूँ मैं उस दिन की कृत के लिये बहुत शर्मिंदा हूँ माफ़ी मांग रहा हूँ बेटे इतना कठोर न बन तू तेरे पिता रामू ने मेरे लिये जान गवांयी आगर वो आज होते तो शायद इतना पत्थर दिल नहीं होते रामू तुमारे पिता ने कभी मेरी बात नहीं टाली रामू ने तुरंत पलट कर जबाब दिया सही कह रहे है उसी मजदूर की विधवा पत्नी मेरी माँ
जीवन भर उनकी बेवसी को हमे याद दिलाती इस दुनिया से चली गयी मैं उसे क्या जबाब दूंगा क्या
क्या कहूँगा की तेरे पति की लाश
पर हैवानियत का नंगा नाच किया
उन्ही के सपनों के आशियाने बना रहा है तू बड़ा लायक बेटा है एक मजदूर की मजबूरी का उसका बेटा मज़ाक उड़ा रहा है ठीक उसी तरह जिन्होंने  मजदूरो की लाश की बोटियों की कीमत दौलत के महल बनाये लोगों की लाचारी का  समाज में जुलुस निकाले क्या वहीँ बचे है दुनियां में रिश्तों के लिये।तोताद्री जी रामू के मुख मंडल की भाव भंगिमा से उसकी मानसिक और आहत ह्रदय के प्रतिशोध् को प्रत्यक्ष देख रहे थे ।
उनको खुद नहीं समझ आ रहा था की जिसने अपने जीवन में बड़ी से बड़ी समस्या को और भयंकर नफरत की आग को शान्तं कर सर्वस्वीकार सम्मानित समाधान दिया है वो आज खुद इतना विवस क्यों? तोताद्री जी ने 
धैर्य पूर्वक बोलना शुरू किया कहा बेटा तुम्हारा ह्रदय विशाल है
देखो मुझे जिसके सगे बेटो ने ठुकरा दिया लेकिन तुमने खुद के बेटो से भी अधिक मान देकर पूरी मानवता को एक सन्देश  पिता जो अपने जवानी मेंअपनी संतान को अपने कंधे पर बैठाकर दिन दुनियां को बताता है की मेरी संतान उसे उसके आखिरी सांस तक उसके अभिमान को जिवंत रखेगा उसके जवानी के कर्म धर्म
के पुरस्कार के परिणाम से अभिभूत कर उसे जीवन समाज में संबंधो का अभिमान की अबुभुति करायेग आज कितनी संताने रामु है जो आदर्श है देखो
मेरी ही औलाद जिनके लिये मैंने अपने जीवन की सभी दौलत लूटा दी और वे ही आज मेरी जिंदगी को असहाय छोड़कर चले गए और उनके पास वक्त तक नहीं की जानने की कोशिश करें की उनका बाप है भी मर गया है तो किस हालात में।क्या ऐसे पिता जीना छोड़ देते है तुम्हारा जन्मदाता तो धन्य है जो खुद तो दुनियां छोड गया लेकिन अपनी औलाद के रूप में तुम्हे अपनी भावनाओ जिनको जिया  सपनो को जिनको
देखा का साकार रामू दुनियां में उसके अस्तित्व उसके सपनो की हकीकत का सत्य है।आज तुम पर दुनियां को गर्व है उन मूल्यों को धूलधुसित न होने दो जिसके लिये तुम्हारे पिता जीते रहे तुम्हे अच्छी शिक्षा तालीम मिले उसके लिये कितना भी थके हारे हो तुम्हे ब्रह्म बेला में तुम्हे नीद से जगाना नहीं भूलते थे वो खुद अनपढ़ होते हुये भी तुम्हारी शिक्षा संबंधी जानकारी हासिल कर कही कोई कमी होने नहीं होने देते उनकी चाहत थी की तुम दुनियां में सक्षम व्यक्ति बनो।तुमने भी उनकी आशाओं को सच साबित कर दिया ।जहाँ तक सुजाता से तुम्हारे विवाह का प्रश्न है तो तुमने देखा ही की बिना किसी जान पहचान के एक दो घंटे की सफर में मुलाक़ात में उसने अपना सफ़र बिच में छोड़ कर तुम्हारे साथ पुरे तीन हफ्ते मेरी सेवा करती रही इतना पर्याप्त नहीं है उसके पिता की माफ़ी के लिये यदि इतना पर्याप्त नहीं है तो तुम इस सत्य को नहीं झुठला सकते हो की तुम सुजाता को खुद भी खुद से ज्यादा चाहते हो और तुमने सुजाता को वचन दिया है की तुम उसे जीवन संगिनी बनाओगे और वह्  तुम्हारे लिये सर्वथा उपयुक्त भी है।
तुम्हारे तो मेरे ऊपर बहुत ऋण है शिष्य होने का फ़र्ज़ इस तरह निभाया है तुमने की दुनियां में अर्जुन कृष्ण और भीष्म जैसा याद करेगी मैं किसी भी जन्म में तुम्हारा गुरु पिता बनना ईश्वर से अपने किसी भी सद्कर्मो के लिये वरदान में मांगूंगा यदि ईश्वर मुझे कुछ भी देना चाहे मैं ना तो तुम्हे सुजाता से विवाह के लिये आदेश देने की स्थिति में हूँ ना ही सुझाव मेरा मात्र निवेदन है की तुम उचित समझो तो सुजाता से पाणिग्रहण स्वीकार करो तोताद्री जी की आँखे भर आयी रामू ने तुरंत ही तोताद्री जी के पैर पकड़ कर बोला आपका आशिर्बाद मेरे लिये मेरे पिता का आदेश होगा यदि आपकी इच्छा यही है तो हम सुजाता से विवाह करने को तैयार है मगर मेरी शर्त यह है की शादी मंदिर में होगी ह्रदय नारायण त्रिपाठी को लगा जैसे अंधे को दो आँखे मिल गयी तोताद्री जी ने विवाह का मुहूर्त निश्चित करके विवाह की तैयारी के लिये जुट गए
सुजाता और रामू का विवाह मंदिर पर सादगी के साथ हुआ।
रिसेप्शन रामू के निवास के समीप मैरेज लान में आयोजित किया गया जिसमे रामू और सुजाता की जोड़ी को सभी ने सराहा।रामू रिसेप्शन शुरू होने के साथ ही तोताद्री जी को डायस पर ले जाकर बोलना शुरू किया आज के इस कार्यक्रम में उपस्थित लखनऊ के सभी सम्मानित गणमान्य सज्जन आज मैं अपने उस पिता से आपको परिचित करता हूँ जिसने मुझे जन्म तो नहीं दिया मगर जीवन का मकसद हौसला और जीवन की सच्चाई से लड़ने की ताकत दी
ये है हमारे जीवन के मार्ग दर्शक गुरु पिता और जीवन की उंचाईयों की उड़ान के पंख आदरणीय पुज्जनिय श्री रामानुज तोताद्री ये नहीं होते तो आज मेरा अस्तित्व नहीं होता मैं तो एक साधारण मजदूर पिता की संतान जिसमे ना तो समाज में स्वाभिमान से जीने का साहस होता है ना ही संबल देने वाला समाज मजदूर अपने खून पसीने से सिर्फ अपने परिवार को बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी दे सकता है और नीद के लिए झोपडी उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती की वह समाज में खड़े होकर किसी से बराबरी से बात कर सके उसकी जिंदगी तो बाबूजी मालिक कहते बीत जाती है और जी हुज़ूरी जलालत भी उसे जिंदगी में ईश्वर की कृपा आशिर्बाद लगती है कीड़ों मकोड़ो की जीत जिंदगी मजदूर का बेटा सपने देखने का हक नहीं रखता ऊँचे सपने तो बहुत दूर की बात है मेरे जन्मदाता पिता भी डरी सहमी जिंदगी के बोझ तले एक इमारत बनाते वक्त उसी के मलबे में जमीदोज हो गए उस मुर्दा मजदूर को भी सुकून के दो गज़ कफ़न और श्मशान नसीब नही हो सकी आज मैं जहाँ भी हूँ उस मरहूम मजदूर के प्रतिनिधि के रूप में जिसे हुनर से तरासा है आदरणीय रामानुज तोताद्री जी ने आगर ईश्वर सत्य है तो इस दुनियां में टोटाद्री जी उसके जीवन्त जाग्रत स्वरुप है।हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा सुजाता और रामु ने तोताद्री जी का पैर चु कर आशिर्बाद लिया तोताद्री जी ने बोलना शुरू किया दुनियां अजीब है कोइ अपना होकर साथ छोड देता है कोई परया प्रेम के रिश्तों में ऐसा बाँध लेता है की अपनों की काली याद तक नहीं आती मैंने भी पैदा की संताने है जिनके सपनों को साकार करने के लिये अपनी हर संभव कोशिश की आज वो सम्मानित संपन्न भी है मगर उन्हें फुरसत नहीं की इस बूढे का हाल चाल ले सके यदि यही समाज की प्रगति है तो ऐसी प्रगति
प्रगति बिलकुल नहीं होनी चाहिये जिसमे प्रगति की प्रतिष्ठा ही दांव पर लग जाय और प्रगति की बुनियाद हिल जाय यदि क़ोई प्रगति की परिभाषा हो सकती है तो उसका प्रतिनिधित्व करता है रामू जो जीवन समाज के विखरे एक एक पन्ने तिनके को इकठ्ठा कर् प्रगति प्रतिष्टा का प्रेरक वर्तमान का युग राष्ट्र समाज का अभिमान है आज मेरे अपने खून ने मुझे तिरस्कृत किया तो मर्यादा के देवता यदि राम ने त्रेता में राम राज्य के प्रेरक पुरुष है तो आज उन मर्यादाओं का प्रतिनिधित्व करता है प्रत्यक्ष है रामू मेरे बेटों ने
मुझे ठुकरादिया तो क्या हुआ राम मेरे साथ है जिसने आज यह प्रमाणित कर दिया की रिश्ते खून से ही नहीं मानवीय मूल्यों की संवेदनाओं की बुनियाद पर खड़े होते है आज मैं फक्र के साथ स्वीकार करता हूँ की रामू ही हमारा बेटा है आज मैं इसे यह अधिकार देता हूँ की यदि मैं न रहूँ तो रामू मेरे बेटों को कोई सूचना नहीं देगा और मेरी चिता को अग्नि उसी प्रकार देगा जैसे इसने अपने जन्म दाता पिता को दिया था यह अधिकार मैं रामू को देता हूँ।एकबार पूरा हाल तालियों की
गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
 रिसेप्शन की पार्टी पुरे शबाब पर जोश खरोश से सम्पन हुई सबने नव दंपति सुजाता और रामू को उनके सफल सुखी जीवन का आर्शीवाद दिया मंगल कामनाये की पार्टी समाप्त हुई सुजाता बहु के रूप में तोताद्री जी की पसंद थी जैसा नाम वैसा गुण सुजाता ने घर का वातावरण घुसनुमा बनाने में हर संभव कोशिशि की तोताद्री जी का ख्याल अपने पिता की भाँती करती दोनों ननदे त्यौहार ख़ास अवसरों पर आती और भाभी सुजाता से खुश रहती महदूर का विखरा परिवार समाज का प्रतिष्टित परिवार बन गया।
धीरे धीरे दिन बितते गए तोताद्री जी को अपने बेटों की याद तक नहीं आती ।

कहानीकार- नंदलाल मणि त्रिपाठी पिताम्बर

बंद कमरे के एक वर्ष - नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

------ बंद कमरे के एक वर्ष---


 राज बहादुर सुबह सुबह उठे और बेटे अरबिंद को जगाने लगे बहुत आवाज़ देने के बाद जब अरबिंद नही उठा तब  उन्होंने पूरा लोटा पानी भरकर उसके ऊपर डाल दिया एकाएक अरविंद उठा और आंख मलते हुये बोला बापू कितना खूबसूरत सपना देख रहा था आपने जगा दिया राजबहादुर बोले बेटा जरा खुली आंख  भी सपना देख लिया कर सोते हुये  सपने अक्सर ख्वाब होते है जो इंसान की कमजोरी हुआ करते है जो इंसान चेतन अवस्था मे अपनी हसरते पूरी करने में अक्षम होता है वह सोते हुये सपने में ख्वाब को हकीकत मान बैठता है यह कमज़ोर इंसान की कमजोरी के लक्षण है ।अरविंद बोला बापू आज मैं सही खूबसूरत ख्वाब देख रहा था जो लगता है एक न एक दिन अवश्य पूरी करूँगा ।राजबहादुर बेटे अरबिंद के विचार आत्म विश्वास से भरे सुने तो बोले बेटा अब बता भी दे कि ख्वाब सोते सोते क्या देख रहा था जिसे पूर्ण होने का तुम्हे इतना विश्वास हैं अरविंद बोला बाबू मैं जिले का कलक्टर बन कर अपने जिले के विकास के लिये मीटिंग कर मातहदो को तमाम निर्देश दे रहा था तभी एक बूढ़ी सी औरत दुखियारी तमाम सुरक्षा कर्मियों से मुझसे मिलने की जिद्द कर रही थी की आज अभी क्लक्टर साहब से मुझे मिलना है उसके सुरक्षा कर्मचारियों से बात विवाद की आवाज मेरे कानों में गूंजी तो मैं मीटिंग छोड़ कर स्वयं  बाहर गया और उससे पूछा माई क्या बात है क्यो इतना शोर मचा रही हों उसने बताया कि मेरा नाम शोभना है मैं स्वस्थ विभाग में परिचारिका थी मेरे पति स्वर्गीय तिरथ स्वास्थ बिभाग में बाबू थे उनकी मृत्यु दुर्घटना में होने के कारण मुझे उनके जगह पर अनुकम्पा के आधार पर परिचारिका की नौकरी मिली थी अब मैं सेवा निबृत्त हो चुकी हूं जब मैंने अपनी पति के जगह अनुकम्पा के आधार पर नौकरी प्रारम्भ की थी तब मेरे तीन बेटे थे सुरेंद्र रबिन्द्र मुनीन्द्र मैने अपनी सीमित आय में अपने बेटों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी और उनके जीवन मे माँ बाप दोनों का प्यार दिया और एक सम्मान जनक परिवरिस की तीनों बेटों की शादी विवाह उनकी मर्जी और पसंद से जहां उन्होंने चाहा कर दिया  मेरे तीनो बेटे उच्चपदस्थ अधिकारी है तीनो की पत्नियां भी सरकारी सेवारत अधिकारी है उनको कमी किसी बात की नही है।मेरे सेवा निवृत होने के बाद मेरे बेटे तब तक मेरी आवभगत करते रहे  जब  तक मुझे सेवा निबृत्ति में मिली धनराशी प्राविडेंट फण्ड आदि समाप्त नही हो गए और मेरे स्वर्गीय पति तिरथ द्वारा बनाये मकान को बेंच कर तीनो ने आपस मे न बांट लिया जब मेरे सेवा निबृत्त के प्राप्त नगद लाभ समाप्त हो गए और मेरे पति का मकान भी मेरे पास न रहा तब तीनो ने आपस मे मिलकर फैसला किया कि माँ चार चार माह हर बेटे के पास रहेगी मुझे बेटों की खुशी के लिये यह भी मंजूर था और मैं हर बेटे के घर चार चार माह रहती और उनकी संतानो की देख रेख करती मगर हाय रे कलयुग मेरे बेटों बहुओं को यह भी रास नही आया और उन्होंने मुझे अपने घर की नौकरानी बना दिया चूंकि तीनो बेटों की पत्नियां भी उच्च पदों पर कार्यरत थी अतः जब तीनो बेटों में से किसी बेटे के यहाँ मेरे रहने का अवसर आता बेटे और बहू घर के नौकरों को छुट्टी दे देते मुझे ही चौका वर्तन झाड़ू पोछा और खाना बनाने का कार्य करना पड़ता अब मैं अपने ही संतानो के लिये माँ न होकर एक आया बन कर रह गयी बेटे मुझे पेंशन से प्राप्त होने वाली राशि जबरन कभी बहाना बनाकर कभी कुटिलता से भूखे भेड़िये या यूं कहूँ की भुख्खड़ कंगाल कुत्तों की तरह झपट लेते मैं जब अत्यधिक जरा बूढ़ी हो गयी और उनके घर का चौका बर्तन नही हो पाता तो वे मुझे बृद्धाश्रम छोड़ गए ।जब से बृद्धाश्रम छोड़कर गए तबसे आज दस वर्षों में एक बार भी मिलने नही आये और ना ही उन्होंने बृद्धाश्रम का पैसा दिया वो तो भला हो उस आश्रम का की उन्होंने मेरी इस लाचारी विवसता में भी मेरी पेंशन की रकम से अबतक पाला ।
आप जिले के कलक्टर है आपके कंधों पर जिले की जिम्मेदारी है आप इतने बड़े पद पर है क्या हम जैसी दुखियारी के लिये आपके पास कोई सम्मान जनक न्याय सम्मत समाधान है ।अरविंद अपने सपने को अपने बाबू को बता रहा था और उसके आंख से अश्रुधारा बहती ही जा रही थी अरविंद फिर बोला बाबू उस बूढ़ी औरत शोभना ने मुझसे एक सवाल इतनी मासूमियत से किया कि मेरे स्वयं के संयम ने जबाब दे दिया उसने पूछा क्या बेटा तुम्हारे मां बाप जिंदा है क्या तेरा व्यवहार भी अपने माँ बाप के लिये मेरे ही बेटों जैसा है
बाबू उस बूढ़ी शोभना के प्रश्न सुनकर दंग रह गया और उसे अपने साथ अपने घर लाया और  तभी आपने पानी डालकर मुझे नीद के ख्वाब से जगा दिया राजबहादुर बोले बेटा इतने बड़े बड़े सपने देखता है तुम्हारे ख्वाब में भी एक बात खास है कि तुम ख्वाब में भी दुखियों के साथ उनके दुख को समझने की शक्ति रखते हो और खास बात यह है कि तुम ख्वाब में भी मानवता को नही भूले हो सकता है कि मेरे किसी सदकर्म का फल है जो
तुममे मानवता प्रधान व्यक्तित्व का बीज सुरक्षित है जो निश्चय ही फल फूल कर बड़ा बृक्ष बनेगा और समय के साथ लोग उसकी छाया में शांति शुख की अनुभूति कर सकेंगे एक बात ध्यान रखना बेटे अरबिंद इस नेक विचार को जो बचपन के ख्वाब में भी तेरे कोमल मन मे बीज के रूप में सुरक्षित है उंसे अंकुरित होकर प्रस्फुटित होने दो शायद लोगो का स्नेह आशीर्वाद तुम्हे तुम्हारे सपने को हकीकत का जामा पहनाने में मददगार साबित हो अरबिंद ने बापू की भावनाओं को जीवन की सीख मानकर गांठ बांध लिया बोला बापू मैं अपने जीवन मे कभी आपको निराश नही होने दूंगा।राजबहादुर बोले इस समय गर्मी की छुट्टी है और हम लोंगो की पालन पोषण करने के लिए मात्र सहारा खेती ही है तो बेटा तुम अबकी इस गर्मी की छुट्टी में एक सिख अपने जीवन मे ग्रहण करो नियमित ब्रह्म बेला में उठो और कुछ खेती बरी के कार्य मे योगदान करो अरबिंद एक आज्ञाकारी बेटे की तरह बापू के आदेश को जीवन मूल्य मानक स्वीकार किया राजबहादुर फिर बोले बेटा नदी के किनारे रेत की जमीन जो पूरे बरसात पानी मे डूबी  रहती है हम किसानों के लिये सोना उगलती है उस जमीन को प्रतिवर्ष किसी न किसी कुंजड़े को करेला तरबूज ककड़ी खीरा आदि की खेती करने के लिये दिया जाता है और खेती की लागत दी जाती है और उपज की आय का साठ प्रतिशत मुनाफा हम लोंगो का होता है और चालीस प्रतिशत कुंजड़े ले जाते है क्योंकि बेचारे दिन रात मेहनत करते है और फसल की रखवाली करते एव बाजार में बेचते है ।इस बार करीम कुंजड़े को नदी के किनारे का रेता खेती के लिये दिया  गया है और हा बेटा यह सिर्फ माघ से बैशाख यानी चार माह की खेती है क्योंकि असाढ़ से बरसात शुरू हो जाती है और नदी का किनारा जलमग्न हो जाता है पिछले वर्ष कुल साठ हजार की आमदनी हुई थी जबकि लगत ही पच्चीस तीस हजार की आयी थी इस बार इस खेती का भार तुम पर है क्योकि तुम्हारे स्कूल भी जुलाई में खुलेंगे तब तक ही यह खेती कार्य भी चलेगा राज बहादुर बोलते ही जा रहे थे उन्होंने एक बार बेटे अरबिंद की आंखों में आंखे डाल कर कहा बेटा हम ठहरे किसान तुम्हे पिकनिग के लिये गर्मी की छुट्टियों में कही भेज तो सकते नही क्योकि हमारी औकात नही है सो तुम इसे अपनी जिम्मेदारी समझो या पिकनिक यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करता है अरबिंद को समझने में देर न लगी कि बापू ने उसके समक्ष एक चुनौती उसकी क्षमता दक्षता को भांपने के लिये दी है अरविंद आठवी कक्षा उत्तीर्ण करके नौंवी कक्षा में प्रवेश ले चुका था वह औसत दर्जे का विद्यार्थी था मगर उसमें आत्म विश्वास जबरदस्त था उसने बाबू को आश्वासन दिया कि बाबू इस वर्ष नदी के किनारे की खेती से आय चारगुना ज्यादा होगी राजबहादुर को लगा कि उनका बेटा अरविंद या तो अति आत्मविश्वास में है या नीद के ख्वाब से उसको खुद का अंदाज़ा नही है।अरबिंद उठा और बापू के पैर छू कर आशीर्वाद लिए और बोला बाबू अब हिसाब मेरे स्कूल जाने से पूर्व बताइएगा पिता पुत्र की वार्ता में समय का पता ही नही चला कब दिन के आठ बज चुके है अरबिंद उठकर दैनिक क्रिया के लिये चला गया और राजबहादुर अपने कार्यो में मशगूल हो गए ।अरविंद के मन मस्तिष्क में पूरे दिनरात के ख्वाब और बापू की शिक्षा और  जिम्मेदारी के रूप में दी चुनौती घूमती रही उंसे संमझ में नही आ रहा था कि उसने बापू से चौगुना इस बार की फसल से आय का वादा करके कोई भूल की है या वास्तव मे यह सम्भव भी है इसी उहापोह में सारा दिन बीत गया उसकी समझ मे नही आ रहा था कि वह क्या करे या क्या ना करे दिन ढलने को आया लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर नही पहुँचा तभी उसके मन मे बाबू के छुट्टियों में बड़े घर के बच्चों के पिकनिक मनाने की बात ध्यान आयी फिर नदी का किनारा खेती एका एक वह उठा और कुछ किताबें कांपिया उसने ली और बापू से बोला बापू मैं पिकनिक मनाने जा रहा हूँ राजबहादुर सन्न रह गए बोले बेटा कहा पिकनिक मनाने जा रहे हो अरबिंद बोला मैं नदी के किनारे जा रहा हूँ वही करीम की छोपडी में रहूँगा और खेती की भी देख भाल करूँगा राजबहादुर को लगा अरबिंद अभी बच्चा है उंसे सुख दुख का  कोई आभास नही है दो चार दिन में नदी के किनारे दिन की तेज धूप में तपती रेत की गर्मी और रात अनेक जानवरो का खौफ पिकनिक का भूत अरबिंद के सर से उतार  देगा सो उन्होंने अरबिंद से कहा बेटा यह तो बहुत उत्तम विचार है मैं करीम को तुम्हारे खाने पीने के राशन भेजवा देता हूँ तुम निश्चिन्त होकर जाओ अरबिंद को बापू की सहमति मिलने पर बहुत खुशी हुई। वह अपनी किताब काँपी लेकर नदी के किनारे रेत वाले खेत पर पहुंच गया वहां पहुचते देखा कि करीम कुंजड़ा अपनी पत्नी और  एक बेटी और एक बेटे के साथ छोपडी बनाकर रहते है खाना कंडे लकड़ी पर जैसे तैसे बनाते है करीम ने जब देखा कि छोटे मालिक आये है तो वह उठा बोला मालिक कोई जरूरत रहे तो हमहि को बुलाय लेते काहे आप कष्ट उठाये अरबिंद बोला कि हम आये नही है हम पूरे तीन  महीने तोहरे साथ यही झोपडी में रहेंगे करीम को लगा कि छोटे मालिक को अभी जीवन का कोई तजुर्बा तो है नही रात भर रह कर और यहॉ की समस्याओं से त्रस्त होकर सुबह चले जायेंगे करीम कुंजड़ा बोला अच्छा छोटे मालिक हम आपके रहने खाने की व्यवस्था तो कल ठिक से करेंगे आज तो आप हम लोंगो के साथ जैसे तैसे गुजार लीजिये अरबिंद बोला ठीक है।उस रात करीम ने अपनी पत्नी से कहा छोटे मालिक अब हम लोंगो के साथ रहेंगे इनके खाने पीने का खास खयाल रखना कोयली करीम की पत्नी बोली यहाँ कौनो परेशानी छोटे मालिक को नाही होई मालती के बापुआप बेफिक्र रहे।उस दिन कोयली ने बाटी चोखा बनाया अरविंद को घर के खाने से बेहतर लगा खुला मैदान नदी का किनारा चारो तरफ सन्नाटा अंधेरा और सिर्फ एक टिमटिमाता दिया जिसकी रोशनी में खाना बनता और खाना होता टार्च अवश्य  किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिये पर्याप्त था नदी का किनारा किसी महंगे टूरिस्ट स्पॉट के पिकनिक से बहुत अच्छा था अरबिंद ने खाना खाया कुछ देर दिये कि रोशनी में पढ़ाई की फिर सो गया और ब्रह्म मुहुर्त में ही उठकर दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर पढ़ाई में जुट गया कुछ देर बाद करीम उठा और अपने कार्यो में व्यस्त हो गया सुबह सूरज की पहली किरण ने जैसे अरबिंद के जीवन मे नए विश्वास का संचार लिये आया हो करीम ने अरबिंद का मन टटोलने के लिये बोला आज हम आपके बापू बड़े मालिक से मिलने जा रहे है आप भी चलिये अरबिंद बोला हम तो चार महीने बाद ही जाएंगे तुम चले जाओ करीम लवभग आठ बजे अरबिंद के बापू से मिलने गांव गणेश पुर गया करीम को देखते ही राजबहादुर बोले अरबिंद गया है वह कब लौटेगा करीम बोला मालिक छोटे मालिक त  बोले है कि चार फसल खत्म होने के बाद ही आएंगे राजबहादुर  बोले कोई बात नही तुम अरबिंद की खुराकी का राशन और खर्चा लेते जाओ जितने दिन बाद वह आना चाहे आये और  अपनी पत्नी को आवाज लगाई और उनके बाहर आते ही बोले सुनो जी पांच पसेरी आटा पांच पसेरी चावल दो किलो दाल दो किलो तेल और पांच लीटर किरासन तेल हर महीना तीन महीना तक करीम को भेजते रहना अबकी खुद आये है पत्नी शोभना ने तुरंत ही पति के आदेशों का पालन किया करीम सारा राशन पताई लेकर नदी के किनारे झोपड़ी पर पहुंचा तो दिन चढ़ चुका था  और रेत तपने लगी थी लेकिन अरविंद के चेहरे पर शिकन तक नही थी।अरविंद पूरी तरह से करीम के साथ उसकी जिंदगी का हमसफर बन गया था खेती में जो कार्य करीम करता अरबिंद आगे बढ़कर हाथ बटाता दिन में करीम के साथ अक्सर मछली का शिकार करता और मछली चावल मछली रोटी का स्वादिष्ट आहार करता दिन बीतते गए अब फसलें तैयार हो चूंकि थी नित्य उंसे बाज़ार ले जाकर बेचना था फसलों में तरबूज़ ,खरबूज ,करेला, ककड़ी ,खीरा आदि थे जिनकी मांग गर्मी पर जोरो पर होती है अरविंद करीम से बोला एक एक दिन एक फसल ही बाज़ार जाएगी जैसे एक दिन तरबूज एक दिन खरबूज आदि और किसी छोटे वाहन से बात करके उसे नियमित फसल मंडी पहुचाने के लिये  निश्चित ठेका कर देते है और मंडी एक दिन आप और एक दिन हम जाएंगे करीम को लगा छोटे मालिक ने तो तमाम समस्याओं का सुगम रास्ता ही निकाल दिया अतः करीम अरबिंद के साथ जाकर एक मिनी ट्रक से फसल नियमित मंडी पहुचाने का अनुबंध कर लिया अगली सुबह से नियमित  एक उपज मंडी जाती और एक दिन करीम तो एक दिन अरबिंद मंडी जाता जो भी आमदनी होती दोनों ही मंडी के निकट बैंक में जमा कर देते और ट्रक का भाड़ा अदा कर देते ।
अरबिंद को आये दो माह बीत चुके थे मगर उसके अंदर ना तो कोई भय था ना ही कोई हताशा वह नित्य नए  उत्साह से उठता और अपने कार्य मे लग जाता करीम  की बेटी मालती और बेटा मुरारी को भी समय निकालकर पढ़ाता दो महीने में मालती और मुरारी हिन्दी अंग्रेजी की वर्णमाला सौ तक गिनती जोड़ घटाना इमला के दक्ष हो गए थे अरबिंद ने करीम को कह रखा था कि मालती और मुरारी अगले सत्र से स्कूल जाएंगे करीम को भी छोटे मालिक की बात वाजिब लगी सो उसने भी इरादा कर लिया बच्चों को स्कूल भेजने के लिये।अरबिंद को किसी भी महंगे टूरिस्ट स्पॉट से कम मजा नही आ रहा था उधर पिता राजबहादुर नियमित उसके
खाने पीने के लिये राशन आदि भेजते रहते अरबिंद रात देर तक दिए के उजाले में पढ़ता जबकि करीम कोइली सो जाते अरबिंद के साथ मालती और मुरारी भी पढ़ते और साथ साथ सोते और साथ उठते दिन में मछलियों का शिकार रात में नदी की धाराओं का कलरव जीवन और प्राकृति के समन्वय के प्राणी आनंद के नैसर्गिकता को  परिभाषित प्रमाणित कर रहे थे अरबिंद को बहुत मज़ा तो आ ही रहा था उंसे जीवन समाज और परिस्थिति परिवेश का गहन अध्ययन और अनुभव अनुभूति नीत आकर्षित कर रही थी।इसी तरह दिन बीतते गए पता नही कैसे दिन बीत गए अब वर्षा ऋतु के आगमन में सिर्फ बीस दिन शेष रह गए थे फसलों का उत्पाद भी समाप्त होने के कगार पर था। ऐसे एक दिन एका एक अर्ध रात्रि को अरबिंद की नींद खुली  वह लघुशंका करने छोपडी से कुछ दूर गया तभी उसके कानों में कुछ आवाज़ आयी वह निर्भीक कुछ दूर और आगे गया तो देखकर दंग रह गया उसने देखा कि कुछ लोग एक नौजवान को बड़ी बेरहमी से गला रेतने के लिये जमीन पर पटक कर कसाइयों जैसा व्यवहार कर रहे है अरविंद ने तुरंत मौके की नजाकत को संमझ बड़ी तेजी से मगर किसी को पता नही चला क्योकि टार्च होते हुये भी अरबिंद ने टार्च नही जलाई और जो लोग जबर्दस्ती कर रहे थे उनको एक एक कर सबको अकारी मारकर धराशाही कर दिया तब तक करीम भी उठ गया अरबिंद बोला करीम चाचा बड़ी रस्सी लाओ करीम भाला चॉपर और रस्सी लेकर पहुंचे अरबिंद और करीम ने मिलकर अरबिंद की अकारी की मार से घायल छवो बदमाशों को रस्सी से कस कर हाथ पैर दोनों बांध दिया फिर उस नौजवान को जिसका गला रेतने  का प्रयास बदमाश कर रहे थे उसके गले को अंगौछे से बांधा जिसमे खून का रिसाव बंद हो जाय इसके बाद करीम ने तेज चिल्लाना और थाली पीटना शुरू किया जिसकी आवाज से नजदीक के गांव वाले जग गए और एकत्र होकर हाथों में लुकार टार्च जिसके पास जो भी था लेकर ला
लाठी डंडों के साथ नदी के किनारे करीम की छोपडी के पास पहुंच गए ज्यो ही गांव वालों का हुज़ूम नदी किनारे पहुचकर छ लोंगो के बंधे होने को देखा तो सभी ने उनकी पहचान जनपद के मशहूर अपराधियों के रुप मे की और अरबिंद और करीम को बहादुरी के लिये बधाई देते हुये कृतज्ञता व्यक्त की फिर उस घायल बच्चे की शिनाख्त की जिसे अरबिंद और करीम द्वारा पकड़े गए बदमाशों ने कुछ दिन पहले अपहरण कर लिया था जो जनपद के मशहूर चिकित्सक डॉ  बी आर शर्मा का बेटा था और पांच लाख फिरौती न मिलने पर हत्या की धमकी रोज देते यह खबर रोज समाचार पत्रों और मीडिया के माध्यम से पंद्रह दिनों से आ रही थी पुलिसः प्रशासन पर शिथिलता और अकर्मण्यता के आरोप नित्य लग रहे थे गांव का हर आदमी उस रात बड़े अभिमान से गर्व से करीम और अरबिंद द्वारा पकड़े गए अपराधियों को लाठी बल्लम से मारता हालांकि अरबिंद की अकारी के मार से वे पहले ही बुरी तरह घायल थे गांव के कुछ लोग जल्दी से नजदीकी थाने पहुंचकर  सारी खबर बता चुके थे थोड़ी देर में दारोगा मौलिक सिंह दल बल के साथ पहुंचे और करीम और अरबिंद द्वारा पकड़े गए अपराधियों को अपने कब्जे के लिया डॉ बी आर शर्मा के बेटे को लेकर अस्पताल दाखिल कराया सुबह अखबार मीडिया में यह खबर छा गयी 
डॉ बी आर शर्मा ने व्यक्तिगत करीम और अरबिंद से मिलकर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की और अरबिंद के अनुरोध पर करीम के बेटी मालती और बेटे मुरारी की शिक्षा का दायित्व स्वीकार कर अभिमानित और आल्लादित हुये ।राजबहादुर को जब अपने बेटे के कारनामों का हाल औरों से सुना तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा लेकिन बेटे को दिये बचन से मजबूर थे कि वह नदी वाले खेत तब तक नही जाएंगे जब तक अरबिंद स्वयं न बुलावे ।अब रेत की फसल का समय समाप्त हो चुका था और अरबिंद करीम को लेकर बापू राज बहादुर के पास फसल की आमदनी का हिसाब और बैंक पासबुक लेकर पहुंचा जिसमे दस लाख रुपये फसल की बिक्री से आय के थे राजबहादुर के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा क्योकि हर साल दो ढाई लाख से अधिक की आमदनी नही होती थी राजबहादुर ने तुरंत चार लाख करीम को दे दिये और कहा करीम मैं अगले साल के लिये अभी से तुम्हे ठेका देता हूँ करीम बोला बड़े मालिक एक शर्त है कि छोटे मालिक हमारे साथ रहेंगे।।
अरविंद की छुट्टियां खत्म हो चूंकि थी और जून समाप्त हो चुका था अब स्कूल खुल चूके थे अरबिंद के बापू के मन मे एक शंका घर कर गयी थी कि कही अरबिंद का मन खेतिहर मजदूर के आकर्षण में शिक्षा दीक्षा को तिलांजलि न दे दे अरबिंद नौंवी कक्षा में नए सत्र में स्कूल जाना शुरू किया चूंकि जूनियर हाई स्कूल तक लगभग सभी बच्चों का मन पूर्णतया अपरिपक्व और अत्यधिक भावुक होता है अतः बहुत संभावना परिस्थितियों के कारण नकारात्मक बदलाव की भी रहती है इसी शंका में की अरबिंद पूरे तीन महीने अप्रेल से जून बिल्कुल सामान्य भारतीय वातावरण के यथार्थ के में बिताए है जो उसके मानसिक सोच को परिवर्तित करने के लिये पर्याप्त है फिर भाग्य और  भगवान के भरोसे छोड़ नियति को देखने का फ़ैसला किया राजबहादुर ने इधर इन सब बातों से बेफिक्र अरबिंद अपने स्कूल निययमित जाता और घर शाम और फिर ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठ कर अपने अध्ययन की जिम्मेदारी का निर्वहन करता उसने वो तीन महीनों का जिक्र कभी नही करता जिसके लिये उसके बापू ने उसे चुनौती दी थी जिसे उसने पूर्ण किया था ना ही उसके क्रिया कलाप से उसकी कोई छाप झलकती थी वह जब भी अपने बापू से बात करता तब अपने किसी शिक्षक के तारीफ में या अपने प्राप्तांकों के विषय मे सदैव उसकी कोशिश रहती की वह स्कूल और क्लास में टॉप कर प्रथम स्थान ग्रहण करे मगर उसे अपेक्षित सफलता नही मिल रही थी नौंवी कक्षा के फाइनल एक्ज़ाम होने के दिन करीब आ गए थे तभी एक दिन कक्षा में एकाएक प्रधानाचार्य नीलकंठ सिंह आये क्लास के सभी बच्चों ने प्राचार्य का खड़े होकर अभिवादन किया प्रचार्य महोदय ने सभी बच्चों का अभिवादन स्वीकार कर उन्हें बैठने के लिये आदेश दिया सभी बच्चे शांत भाव से प्रचार्य के आदेशानुसार बैठ गए तब प्रचार्य जी ने बोलना शुरू किया मेरे प्यारे बच्चों आज मेरे एव मेरे स्कूल के लिये बड़े गौरव की बात है कि इस क्लास का एक होनहार छब्बीस जनवरी को बीरता के लिये देश के चौबीस बहादुर बच्चों में  शुमार है जिसे पच्चीस जनवरी को प्रधानमंत्री भारत द्वारा राष्टपति बालपुरस्कार से विशेष शौर्य  बहादुरी के लिये पुरस्कृत किया जाना है आप सभी बच्चों से अनुरोध है कि आप सभी अंदाजा लगाकर बताये वह  आपसभी में से कौन है क्लास के सभी बच्चे एक दूसरे का मुंह ताकने लगे लवभग कुछ मिनटों के सन्नाटे के बाद प्रचार्य महोदय ने फिर बोलना शुरू किया अच्छा अगर तुम लोग ही अपने अभिमान को नही समझ पा रहे हो तो मैं बताता हूँ तुम्हारे क्लास स्कूल और शहर जनपद का देश मे नाम रौशन करने वाले होनहार का नाम है अरबिंद ज्यो ही अरबिंद ने अपना नाम सुना भौचक्का रह गया उंसे विश्वास नही हो  रहा था कि उसे किस बीरता शौर्य के लिये चुना गया है डॉ बी आर शर्मा के बेटे की अपहरण कर्ताओं के चंगुल से झुडाना उंसे बहुत साधारण घटना लगी और  उसे वह भूल चुका था प्रचार्य जी ने फिर दोहराया कि अरबिंद को यह पुरस्कार डॉ बी आर शर्मा के पुत्र को अपहरणकर्ताओ के चंगुल से बीरता पूर्वक लड़ते हुये मुक्त कराने हेतु उसकी बहादुरी शौर्य के लिये दिया जा रहा है पूरा क्लास तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा प्रचार्य नीलकण्ठ ने अरबिंद को पास बुलाया और उसका स्कूल की तरफ से माल्यार्पण कर स्मृति चिन्ह प्रदान किया सारे विदयालय में अरबिंद की चर्चा जोरों पर होने लगी स्कूल की बात तो दीगर पूरे शहर जनपद में अरबिंद की गूंज हर अखबार मीडिया ने अरबिंद की बहादुरी और शौर्य में कशीदे पढ़े राजबहादुर अरबिंद के बापू ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सबका आभार व्यक्त करते हुये अरबिंद के लिये सबसे आशीर्वाद की कामना कर रहे थे। अंत मे वह दिन भी आ गया जब भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अरबिंद को गणतंत्र दिवस की पूर्व सांध्य पर संम्मानित किया जाना था अरबिंद के साथ उसके क्लास टीचर मान्धाता  सिंह प्रचार्य नीलकंठ सिंह और पिता राजबहादुर गए थे अरबिंद को प्रधानमंत्री द्वारा संम्मानित किये जाने के बाद एक प्रश्न पूछा गया की तुम जीवन मे क्या बनना चाहोगे अरबिंद ने जबाब दिया देश राष्ट्र के सम्मान में जो कुछ भी कर सकूंगा वही मेरा बनना विगड़ना होगा अरबिंद का उत्तर सुनकर सभी दंग रह गए सम्मान समारोह समाप्त होने के तीन दिन तक अरबिंद अपने क्लास टीचर प्राचार्य पिता के साथ दिल्ली की सैर किया फिर लौट कर अपने गांव आ गया ।दिल्ली से लौटने के बाद अरबिंद अपनी पढाई में जुट गया और नौंवी कक्षा अच्छे नम्बरो से उतीर्ण कर लिया इस बार उसके पास सिर्फ डेढ़ माह का ही समय नदी के रेत की खेती के लिये मिले जिसे उंसे पहले से जानकारी थी अतः उसने करीम चाचा को बाजिब सलाह दे रखा था अब सिर्फ कोइली और करीम ही नदी किनारे छोपडी में रहते थे क्योंकि मालती और मुरारी डॉ बी के शर्मा के संरक्षण में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे ।स्कूल की छुट्टि होते ही अगले ही दिन वह किताब काँपी लेकर नदी के किनारे रेत के खेत पे चला गया अब बापू राजबहादुर उंसे रोकने की बजाय उसकी हौसला आफ़ज़ाइ करते अरबिंद  खेत पहुंच कर पिछले वर्ष की भांति अपने कार्य मे जुट गया वही जीवन चर्या दिन में मछली का शिकार समय मिलने पर पठन पाठन शाम देर रात और ब्रह्मबेला  तो सिर्फ और सिर्फ उसके अध्ययन के लिये ही निर्धारित था अंत मे फिर वर्षात का समय निकट आ गया नदी के रेत की खेती का समय समाप्त होने वाला था अरबिंद और करीम पिछले वर्ष की तरह फिर राजबहादुर के पास बैंक का पासबुक लेकर गए जिसमें बारह लाख रुपये थे यानी पिछले वर्ष से भी दो लाख अधिक राजबहादुर  ने शर्तो के मुताबिक चार लाख अस्सी हजार रुपए करीम को दे दिये करीम पिछले वर्ष के चार लाख रुपयों में सिर्फ डेढ़ लाख ही खर्च कर पाया था। पुनः जुलाई माह में स्कूल खुल चुका था अबकी बार अरबिंद को दसवीं क्लास में बोर्ड की परीक्षा देनी थी बापू राजबहादुर ने खास हिदायत दे रखी थी अरबिंद अपनी पूरी क्षमता निष्ठा के साथ अध्ययन कार्य मे जुटा था हाई स्कूल की फाइनल बोर्ड परीक्षा देने के बाद अरबिंद पिछले दो वर्षों की भांति पुनः नदी के किनारे करीम चाचा के साथ रहने चला गया उधर मालती और मुरारी की शिक्षा भी बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थीं ।इस वर्ष भी छुट्टियों में पूरी एकाग्रता से   अपने द्वारा शुरू किये गए रेत के खेत से सोना उगाने में पूरी क्षमता दक्षता और पूर्व के खट्टे मीठे अनुभतियो को संजोए उनसे प्रेरित होते सिख लेते अपने उद्देश्य पथ पर बढ़ता जा रहा था अरबिंद हाई स्कूल का परीक्षाफल निकला और वह प्रथम श्रेणी से प्रत्येक विषय मे ऑनर्स के साथ उत्तिर्ण हुआ अरबिंद को अपने हाई स्कूल के परिणाम उसके बापू स्वयं राजबहादुर बताने करीम की झोपड़ी तक नदी के किनारे आये थे अरबिंद ने अपना परीक्षाफल जाना लेकिन उसके  चेहरे पर कोई भी अभिमान या अहंकार के भाव नही थे उंसे तो अपने उद्देश्य पथ पर निर्विकार निरंतर निष्काम कर्म सिद्धान्त के पथ से आगे बढ़ते जाना था वह अपने कार्य मे जुटा रहा बरसात का मौसम पुनः दस्तक देने वाला था उसने पिछले वर्षों की भांति खेती के उपज से आय का पूरा व्योरा बापू राजबहादुर को सौंप दिया और करीम चाचा के पक्के मकान बनवाने का सम्पूर्ण खाका खिंचकर करीम चाचा को सारी बातों को समझाते अपने अगले कदम की तरफ बढ़ गया उसने कक्षा इग्यारह में दाखिला लिया और आपने अध्ययन कार्य मे जुट गायक कक्षा ग्यारह की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर वह पुनः नदी के किनारे रेत के खेत की तरफ चल दिया दो माह करीम चाचा के साथ रहने के बाद उसने फिर पिछले तीन वर्षों की भांति उपज की आय अपने बापू राज बहादुर को सौंप दिया और इंटरमीडिएट के अंतिम वर्ष के अध्ययन में जुट गया और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की भी  तैयारी करने लगा उसने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे नम्बरो से उत्तिर्ण किया और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में भी उसने सफलता हासिल किया उंसे आई आई टी खड़कपुर में मैकेनिकल ब्रांच में दाखिला मिल गया।अरबिंद के पास जो भी समय बचा उंसे करीम चाचा के साथ पिछले वर्षों की भांति बीता कर फसल की उपज का पूरा हिसाब बापू राजबहादुर को सौंप इंजीनियरिंग कॉलेज के लिये अरबिंद चल पड़ा अरबिंद के जाने से सबसे ज्यादा दुखी करीम और उसकी पत्नी कोइली को हुआ क्योकि पिछले चार वर्षों में अरबिंद के साथ रहने से उसकी हैसियत बढ़ गयी थी जिसकी उसने कभी कल्पना तक नही की थी उसकी संताने मालती और मुरारी डा बी के की देख रेख में अच्छे वातावरण में अच्छे स्कूलों से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे साथ ही साथ पिछले चार वर्षों की अच्छी फसल से आमदनी से करीम का मकान पक्का बन चुका था अरबिंद के बापू राजबहादुर एव माँ रमा को अरबिंद के जाने का बेहद कष्ट था मगर बेटे के बेहतर भविष्य के लिये  कलेजे पर पत्थर रख लिया अरबिंद इंजीनियरिंग कलेज पहुंच कर अपने अध्ययन में जुट गया अब उसे गांव आने की फ़ुर्सत नही मिलती कभी त्योहारों की छुट्टियों में दो चार दिन के लिये आता वह जब भी आता करीम चाचा मिलने अवश्य आते इसी तरह चार साल कैसे बीत गए पता ही नही चला अरविंद को दक्षिण कोरिया की कम्पनी में कैम्ब सलेक्शन मिल गया
अच्छी सेलरी सुविधा ओहदा सब कुछ  
अरविंद अब दक्षिण कोरिया जाने की तैयारी में जुट गया अरबिंद के बापू को लगा कि एकलौता बेटा दूर देश जा रहा है कही इधर उधर के चक्कर मे पड़कर फँसगया तो  लेने के देने पड़ जाएंगे अतः उन्होंने अरबिंद की सहमति से उसका विवाह एक होनहार शुशील कन्या बिशा से कर दिया बिशा कि आने से राजबहादुर का घर गुलज़ार हो गया कुछ दिन बाद अरविंद दक्षिण कोरिया चला गया वह भी उसने अपनी ईमानदारी मेहनत से जल्दी ही सबका मन मोह लिया।
लेकिन ईश्वर ने तो अरबिंद की किस्मत में कुछ और ही लिख रखा था एक दिन अरबिंद का अधिकारी वर्कशाप के केविन में आकस्मिक निरीक्षण के लिये बैठा था उसी समय बाहर काम करते समय अरबिंद के हाथों छूट कर टूल किट्स की पेटी गिरी जिससे जोरो की आवाज़ हुई जिसके केबिन में बैठे अधिकारी जिंकिंग की चाय की प्याली उनके सूट पर गिर गयी सारा सूट खराब हो गया जिंकिंग केबिन से बाहर निकले और गुस्से से अरबिंद की तरफ मुखातिब होते बोले यु बास्टर्ड इंडियंस यु डोन्ट नो मैनर्स गेट आउट फ्रॉम वर्कशॉप नाउ अरबिंद को तुरंत प्रधानमंत्री द्वारा प्राप्त शौर्य पुरस्कार का वक्त याद आ गया जब उससे पूछा गया था कि वह क्या जीवन मे बनना चाहेगा उसने उत्तर दिया था जी राष्ट के सम्मान के लिये जो कुछ कर सकता है करेगा ।अरबिंद ने तुरंत जिंकिंग से पलट कर कहा माइंड योर लैंग्वेज बीईंग इंडियन आई प्राउड माइ कंट्री  व्हाट वाज यु वेयर  सेयिंग पीपुल आर अनमैननरेड एंड बास्टर्ड लाईक ट्र्सपासर आई एम गोइंग तो रिजाइन एंड रिटर्न्स टू आवर बिलवेड  कंट्री जिंकिंग सर पीटता रह गया अरबिंद ने त्यागपत्र देकर तुरन्त भारत लौटने के लिये हवाई जहाज पर बैठ गया और अपने गांव पहुंच गया बापू राजबहादुर एव माँ रमा तथा पत्नी विषु ने एकएक लौटने का कारण तो नही पूछा क्योकि  सभी को अरबिंद के निर्णय पर भरोसा एव विश्वाश था अरबिंद ने भी कुछ ऐसा बहाना बनाया की सबने उंसे स्वीकार कर लिया अरबिंद ने बताया कि दूर देश मे मन नही लग रहा था हर पल घर और आप लोंगो की याद सताती किसी काम मे मन नही लगता इसीलिए मैं चला आया सभी ने अरबिंद के निर्णय को शिरोधार्य किया लवभग एक सप्ताह बाद अरबिंद बोला कि मैं  और बिशु एक वर्ष के लिये दिल्ली जा रहे है बापू राजबहादुर ने फिर कोई प्रश्न बेटे से नही किया और उसके और बिशु के दिल्ली जाने की व्यवस्था कर दी अरबिंद और बिशु दिल्लीः पहुचकर एक कमरे का मकान किराए पर लिया और पत्नी बिशु से बोला हम अब एक वर्ष इस कमरे से बाहर नही निकलेंगे क्योकि हमे आगे के भविष्य के लिये कुछ पढाई करनी है जो भी समान खाने पीने का सामान लाना होगा उंसे तुम लाओगी और तुम सिर्फ हमे समय से खाना बनाकर दोगी बिशु ने भी पति के आदेश का पालन एक आर्दश पत्नी की तरह पालन किया अरबिंद कमरे सिर्फ एक यज्ञ पर बैठ गया वह भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी बिना किसी अतिरिक्त सहयोग के वह स्वयं तैयारी करने लगा अरबिंद पूरे एक वर्ष कमरे से बाहर नही निकला निकला तो सिर्फ भरतीय प्रशासनिक सेवा की लिखित परीक्षा के लिये अरबिंद ने पूरी तैयारी से परीक्षा दी और मेरिट लिस्ट में आया पुनः साक्षात्कार में भी वह अव्वल रहा भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर दसंवी रैंक लाकर अपने जनपद गांव और प्रदेश का नाम रौशन किया राजबहादुर  रमा और बिशु की खुशी का कोई ठिकाना ही नही रहा जगह जगह अरबिंद की सफलता के लिये जश्न मनाए जा रहे थे अंत मे अरविंद प्रशिक्षण हेतु भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी गया और एक वर्ष के प्रशिक्षण के उपरांत उसकी नियुक्ति उपजिलाधिकारी जिला विकास अधिकारी के महत्वपूर्ण पदों पर हुई जब जहां भी बेटे की नियुक्ति रहती राजबहादुर एव रमा कुछ दिनों के लिये बहु विषु की सहूलियत के लिये जाते और कुछ दिन रहने के बाद लौट आते  अरबिंद की नियुक्ति पहले जिलाधिकारी के तौर पर जनपद सम्बल हुई तब भी राजबहादुर औऱ रमा बेटे बहु के पास कुछ दिनों के लिये गए थे एक दिन जिलाधिकारी आवास पर ही जनपद के फरियादियो की भीड़ जमा थी राजबहादुर को बेटे के न्याय को देखने की इच्छा हुई उन धीरे से फरियादियों  के बीच मे जाकर
छुप कर खड़े हो गए तभी एकाएक भीड़ को चीरती एक महिला अरबिंद के पास पहुंची और बोली मेरा नाम शोभना है मेरे पति स्वस्थ विभाग में क्लर्क थे एकाएक उनकी दुर्घटना में मृत्यु हो गयी और मैं अनुकम्पा के आधार पर उनकी जगह पर परिचारिका की नौकरी की इतना सुनते ही राजबहादुर भीड़ को चीरते शोभना के बगल में आकर बोले आपके तीन बेटे है और आप अनाथलय से आई है शोभना ने पूछा आपको कैसे मालूम तब राजबहादुर ने अरबिंद से कहा बेटे तुम अपने उस ख्वाब को याद करो जब गहरी नींद में तुम थे और पानी का भरा लोटा तुम्हारे ऊपर डाल दिया था तब तुमने अपने नीद के ख्वाब की बात बताई थी आज वही ख्वाब हकीकत तुम्हारे सामने है शोभना को अपने साथ हम लोंगो के साथ रखो यही कुदरत का न्याय और निर्णय है अरबिंद भी अपने उस ख्वाब की हकीकत को देख कर दंग रह गया और शोभना से बोला माई मेरा भाग्य है की आप हम लोंगो को अपनी सेवा का अवसर दे शोभना ने खुशी खुशी अरबिंद के आमंत्रण को स्वीकार करते ईश्वर का धन्यवाद किया।।

कहानीकार---
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

सुधीर श्रीवास्तव

संस्मरण
माँ की महिमा
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    वर्ष 2014 की बात है।उस समय मैं हरिद्वार में लियान ग्लोबल कंपनी में काम करता है।
          वैसे तो हरिद्वार में चण्डी देवी, मंशा देवी, हरि की पैड़ी, शान्ति कुँज,आदि कई स्थानों पर घूम चुका था।अपने रुम पार्टनर अरविंद मिश्रा (कानपुर) से कई बार सुरेश्वरी माता की चर्चा सुन चुका था।सो मेरी भी इच्छा उनके दर्शन की प्रबल हो रही थी।कई बार प्रोग्राम बनता बिगड़ता रहा।क्योंकि फैक्ट्री में ओवरटाइम का मामला आ जाता रहा।
         आखिर एक रविवार मिश्रा जी के साथ प्रोग्राम बना, मगर मिश्रा जी को अचानक ओवर टाइम के लिए बुला लिया गया।मैं निराश हो गया।फिर कालोनी के दो लोग तैयार हो ही गये।
     खैर....जैसे तैसे कमरे से निकले।आगे हम एच ए एल पहुंचे ही थे कि मेरे साथियों ने वापसी का फैसला किया और मुझे आश्वस्त करने लगे कि किसी और दिन चलेंगें।दरअसल वो छुट्टी के कारण पीने पिलाने के चक्कर में उलझ गये।मैं बड़े असमंजस में था।फिर मैनें अकेले ही जाने का निर्णय कर आगे बढ़ गया।पूछते पूछते अंततः रानीपुर स्टेट बैंक/स्टेडियम के पास पहुँचने पर मुझे अपना लक्ष्य करीब महसूस होने लगा।
        थोड़ा आगे बढ़ने पर मुझे बन विभाग का बैरियर मिला।
          बताता चलूं कि मां के मंदिर जाने का एक मात्र रास्ता वो बैरियर ही था।क्योंकि माँ का मंदिर जंगल के मध्य पहाड़ियों में और वन विभाग की निगरानी में है।वहां जंगली जानवरों का खतरा अधिक रहता है।खैर..।
       मैनें बैरियर पर वनकर्मी से आगे रास्ता पूछने के उद्देश्य से बात कि तो उसने सीधे सपाट लफ्जों में बता दिया कि बिना साधन किसी को भी जाने की 
परमीशन नहीं है।
      बिना कुछ कहे सुने मैं वापस पुनः स्टेडियम के पास आया और एक दुकान पर चाय पीते हुए दुकान वाले से चर्चा की ।तब उसनें बताया कि जंगली जानवरों के डर से किसी को बिना वाहन नहीं जाने दिया जाता।
         फिर लोग कैसे जाते हैं?मैनें जानने के उद्देश्य से दुकान वाले से पूछा, तब उसनें बताया कि लोग अपनी मोटरसाइकिल,कार से या फिर टैक्सी, टैम्पो बुक कराकर जाते हैं।आप पैदल हो ,इसलिए अच्छा ही कि लौट जाओ।
 मैनें चाय के पैसे दिये और फिर एकबार उसी बैरियर की ओर चल दिया।क्योंकि मै बिना दर्शन किये वापस न होने के बारे में सोच रहा था।
     वहाँ पहुंच कर देखा कि एक वनकर्मी बाहर कुर्सी पर बैठा सामने छोटी सी बेंच रखकर कुछ कागजी काम निपटा रहा है।पास में एक खाली कुर्सी भी पड़ी थी।मैं चुपचाप उसी पर बैठ गया।कुछ देर बाद सामान्य बातचीत के बाद मैनें अपना उद्देश्य बताया।
       उसने भी वही बातें दोहरा दी जो चायवाले ने कही थी,मैं निराश  होता जा रहा था।लेकिन हिम्मत कर जब मैनें उससे कहा कि मैं बहुत दूर से आया हू्ँ और माँ के दर्शन की प्रबल इच्छा है।तब शायद वह सोचने पर विवश हो गया और माँ की महिमा ने अपना असर दिखाया। तब तक करीब दो बजने को हो रहे थे।
उसनें मुझे समझाया कि यूं जाना खतरे से खाली नहीं है ,फिर भी माँ के भरोसे ही मैं अपनी रिस्क पर आपको जाने दे रहा हूँ, रास्ते में सावधानी से जाना आना और पाँच बजे से पहले पहले वापस आ जाना।
       मुझे लगा कि मुझे मनचाही मुराद मिल गई।मैं का नाम ले आगे बढ़ गया। बैरियर से ही थोड़ी दूर चलने पर एक बुजुर्ग एक छोटे बच्चे के साथ आते दिखाई दिए।मैनें उनसे मंदिर की दूरी पूछी।तब उन्होंने उन्होंने लगभग तीन किमी. बताते हुए मेरे इस तरह पैदल अकेले जाने पर आश्चर्य भी व्यक्त किया और मुझ पर चुपके से आने का संदेह व्यक्त करने लगे।
      जब मैनें पूरी बात बताई तो उन्होंने ने भी सावधानी बरतने और जल्दी वापसी की ताकीद भी की।जब मैने उनके बारे में में पूछा तो पता चला कि वे किसी वनकर्मी के परिवार से हैं।
        ...और फिर इस तरह मैं फिर आगे बढ़ गया।।पुनः थोड़ी दूर जाने पर जंगलो के बीच काफी बड़ा क्षेत्र खेतो का था।उन्हीं के बीच दो छोटे नालों को पार करतेे हुए डर और आशंकाओं से घिरा मैं मंदिर की ओर बढ़ रहा था।बार चौकन्नी निगाहों से इधर उधर देखते हुऐ आगे बढ़ने के दौरान जंगली जानवरों की आवाजें सिहरन भी पैदा कर रही थीं।
डर इस बात का भी था उस दूर तक फैले खेतों के मध्य न तो एक पेड़ थाऔर न ही कोई झोपड़ी ।यही नहीं पूरे रास्ते मुझे एक भी व्यक्ति दूर दूर तक दिखाई नहीं दिया ।
       अंततः मुझे पहुँचने से पहले ही मंदिर दिखाई पढ़ने लगा तब थोड़ा संतोष हुआ और खुशी भी।आखिरकार मुझे मेरी मंजिल मिल ही गई और मै मंदिर पहुंच गया।
         माँ का धन्यवाद किया और मंदिर से लग कर बहने वाली नदी में हाथ पैर धुलकर थोड़ा आराम की मुद्रा में मंदिर के नीचे बैठा रहा।
         थोड़ी देर बाद दर्शन का सौभाग्य मिला ,बड़े सूकून से दर्शन पूजन कर मंदिर प्रांगण में टहलता रहा।जानकारी लेता रहा ,उस समय मंदिर परिसर में बमुश्किल 12-15 लोग ही थे।जिसमें भी पाँच लोग मंदिर के महंत आदि थे।
       माँ का खूबसूरत मंदिर घने जंगलों में पहाड़ की तलहटी में है।माँ पहाड़ की जड़ में ही प्रकट हुई बताई जा रही है ।मंदिर का उस समय भी सतत विकास जारी था।मुख्य मंदिर के पूरे परिसर को लोहे की जाली से सुरक्षित किया गया था।क्योंकि जंगली जानवर विचरण करते हुए बहुत बार मंदिर प्रागंण तक जंगली जानवर आ जाते थे।घंटे घड़ियाल पर पूर्ण प्रतिबंध था,यहांँ तक कि प्रसाद बिक्री की भी कोई दुकान नहीं थी।हाँ,मंदिर में में अनेक दुर्लभ वृक्ष जरूर लगे हैं,जिनमें रूद्राक्ष का वृक्ष भी शामिल है।कारण कि सामान्य दिनों में गिने चुने श्रद्धालु ही आते थे।जिन्हें पता होता था वो आते हुऐ प्रसाद साथ लेकर ही आते थे।मंदिर में रोशनी के लिए सौर उर्जा का प्रबंध था।चार लोग ही मंदिर में रात्रि में रूकते थे।मंदिर की हर जरूरत का प्रबंध चार बजे तक हो जाता था।क्योंकि तीन- चार बजे के बाद मंदिर में रुकने वालों को छोड़कर किसी को सुरक्षा कारणों से वापस कर दिया जाता था। वन विभाग के बैरियर पर गर्मियों में पाँच व जाड़े में चार बजे तक पहुंचना होता था।
     ...और इस तरह माँ सुरेश्वरी देवी की महिमा से उनके दर्शन की असीम खुशियों के साथ मैं सकुशल ससमय लौट आया।  बैरियर पर एक दूसरे वनकर्मी ने तमाम शंका समाधान के बाद जाने दिया, जब मैनें उसे संतुष्ट किया कि मैं उन्हीं के सहयोगी की सहमति से ही गया था।
इस तरह रोमांच से भरी यात्रा के बीच माँ सुरेश्वरी देवी के प्रथम दर्शन का सौभाग्य मिला।
         आपको बताता चलूं कि केवल नवरात्रों में ही आने जाने की खुली छूट होती है,लेकिन समय सीमा के भीतर।नवरात्रि में माँ के दरबार में विशाल भंडारे का भी आयोजन होता है।मैं भी एक बार माँ के भंडारे का प्रसाद ग्रहण कर माँ की असीम अनुकम्पा हासिल करने का सौभाग्य प्राप्त कर चुका हू्ँ।लेकिन बरसात में मंदिर बंद रहता है क्योंकि मंदिर से सटकर बहने वाले नाले में उफान सा रहता है।
 जय माँ सुरेश्वरी देवी की जय
@सुधीर श्रीवास्तव 
गोण्डा, उ.प्र.,भारत
8115285921
Email-sudhirsri921@gmail.com

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

ग्यारहवाँ-5
  *ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
गोपी-गोप-गाय-हितकारी।
बृंदाबन हर बिधि उपकारी।।
    भेजउ पहिले सभ गउवन कय।
     रहँ जे संपति हम लोगन्ह कय।।
सभ जन बाति मानि उपनंदा।
छकड़ी-लढ़ीया लेइ अनंदा।।
    कीन्ह पयान सभ बृंदाबनहीं।
    झुंड लेइ गो-बछरू सँगहीं।।
भूषन-बसन पहिनि गोपी सब।
लीला किसुनइ गावत अब-तब।।
     निज-निज छकड़हिं बैठि क चलहीं।
     हरषित-प्रमुदित,मिलि-जुलि सबहीं।।
गो-गोपिहिं लइ छकड़ा आगे।
तुरुही रहत बजावत भागे।।
     गोपी-मंडल पैदल चलहीं।
     साथहिं-साथ पुरोहित रहहीं।।
बालक-बृद्ध सकल ब्रज-नारी।
लढ़ीयन भरी समग्री सारी।।
   हो निस्चिन्त चलहिं सभ आगे।
   धनु-सर लइ गोपहिं पछि भागे।।
रोहिनि-जसुमति दुइनउँ माता।
भूषन-बसन धारि जे भाता।।
     लइ बलदाऊ-किसुनहिं लढिया।
     बइठि चलहिं करि बातिहिं बढ़िया।।
सुनि-सुनि तोतलि बोली तिन्हकर।
जाइँ उ लोटि-पोटि हँस-हँस कर।।
      बृंदाबन प्रबेस सभ कइके।
       अर्धचंद्र इव लढ़यन धइ के।।
एक सुरच्छित स्थल कीन्हा।
बछरू-गाइ उहाँ रखि दीन्हा।।
दोहा-बृंदाबन अति रुचिर बन,गोबरधन गिरि-धाम।
        जमुना-तट मन-भावनइ, बलरामहिं-घनस्याम।।
       बलदाऊ अरु किसुन मिलि, सबहिं अनंदहिं देहिं।
       गोकुल इव बृंदाबनइ, तोतलि बानि सनेहिं।।
                      डॉ0हरि नाथ मिश्र।
                       9919446372

नूतन लाल साहू

कड़वा सच

आंख खोलकर देख प्यारे
जगत मुसाफिर खाना है
राजा रंक पुजारी पंडित
सबको एक दिन जाना है
कंचन जैसी कोमल काया
तुरंत जलाई जायेगी
कोई न तेरे साथ चलेगा
काल तुझे भी खायेगा
जर्रे जर्रे पर मूरत भगवान की
क्यों भूल गया, उस मालिक को
इस झूठे जगत की माया में
भूला उस घर को, जहां वापिस जाना है
क्या लेकर तू आया जग में
हाथ पसारे ही जाना है
दो चार दिनों की चांदनी है
फिर रात अंधेरी आती है
तेरा धन दौलत माया पत्नी
सब यहां ही रह जायेंगे
क्यों डूबा है,इन झमेलों में
दो चार दिनों का मेला है
आंख खोलकर देख प्यारे
जगत मुसाफिर खाना है
समय बड़ा बलवान है,जगत में
सोच समझ लें रे मन मूरख
संसार में पार उतरने को
बस नाम हरि का काफी है
ये वायदा करके आया था जग में
तुझे याद करूंगा जीवन भर
कुछ कर लें,पार उतरने को
आखिर में पछताएगा
आंख खोलकर देख प्यारे
जगत मुसाफिर खाना है
जगत मुसाफिर खाना है

नूतन लाल साहू

विनय साग़र जायसवाल

भजन-हनुमान जी का

ओ भोले हनुमान मैं निशिदिन करूँ तुम्हारा ध्यान।
सियाराम के प्यारे सबका करते तुम कल्यान।।

प्रभु के संकट में भी तुमने उनके काज बनाए
राम मुद्रिका सीता मय्या तक तुम ही पहुँचाए
जला के लंका हिला दिया था रावण का अभिमान।।
सियाराम के-----

अपने भक्तों की विपदा में तुरंत दौड़ कर आते 
राम के भक्तों पर भी अपना दया भाव बरसाते 
राम काज में सदा दिया है अपना भी अनुदान ।।
सियाराम के----

लक्ष्मण के जब शक्ति लगी तो संजीवन भी लाए
नागपाश से राम लखन के बंधन मुक्त कराए 
राम की सेवा ऐसे समझी जैसे हो वरदान ।।
सियाराम के---

राम भक्ति से बनी है जग में तेरी ऐसी गरिमा
कलियुग में दोहराता है जन जन तेरी ही महिमा 
राम के अनुजों ने भी तुझको दिया सदा सम्मान।।
सियाराम के-----

जहाँ भी अंजनि नंदन होता तेरे नाम का फेरा 
काली रातों में भी हनुमन लगता वहाँ सवेरा 
*साग़र* के भी प्रेम का रख लो भगवन अब तो मान ।।
सियाराम के प्यारे सबका करते तुम कल्यान ।।
ओ भोले हनुमान मैं निशिदिन करूँ तुम्हारा ध्यान ।।

🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधु के मधुमय मुक्तक*

*रामायण*

रामायण श्री राम की, श्रेष्ठ कथानक रास।
मर्यादा धारण किए , रघुकुलनंदन खास।
भक्ति बसाए हिय सदा, लिखे पूर्ण वृत्तांत,
संत शिरोमणि श्रेष्ठ वो, कहते तुलसीदास ।।

 दशरथ के सुत चार थे, रामायण के पात्र।
सबकी महिमा लिख रहे, कृपा दृष्टि से मात्र।
शस्त्र ज्ञान गुरुकुल मिला, नैतिकता परिवार ।।
राम सभी में ज्येष्ठ थे , गुरु वशिष्ठ के छात्र।।

रामायण में राम की , हनुमत भक्ति साज।
भरत लखन शत्रुघन सहित , करते सब पर नाज।
राम सहज व्यक्तित्व से , नीति बसाए मूल।
पिता वचन पालन किए , त्याग दिए खुद राज ।।

रामायण सा ग्रंथ ही, महाकाव्य के रूप।
राम कथा से प्राप्त हो, सुख अनुभूति अनूप।
राम मनुज में श्रेष्ठतम, विष्णु का अवतार।
अवध राज्य की भूमि पे, एक राम  मधु भूप।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुदा का नूर, चश्मे बद्दूर गुले गुलज़ार कि  ख्वाहिश ख्वाब खुशबू बाहर कि मस्ती कि हस्ती कि रौनक !!
नादा, नाज़ुक, कमसीन भोली करम किस्मत कि खिली कली कमल सुर्ख सूरज कि लाली ओठों, गलों का ईमान  हुस्न के इश्क के दीदार कि रौनक !!
 ख्वाबों कि हसरत, जन्नत कि जीनत सांसो, धड़कन कि चाहत, राहत कि रौनक !!
 फिजाओं की हवाओं में विखरी जुल्फों में छुपा चांद सा चेहरा दिवानों कि दीवानगी के जज्बात कि रौनक!!

जवां दिल कि दस्तक, जुनून कि जानम मोहब्बत कि मल्लिका जिन्दगी मकसद मंज़िल  सौगात कि रौनक!!

मतवाली, बलखाती, मचलती जमीं पे चांद कि चांदनी बाला हाला मधुशाला कि शान कि रौनक!!
तमाम मन्नातों मुरादों कि हकीकत दुनियाँ कि अजीम नाज़ कि दौलत आरजू के आसमान कि रौनक!! किसी नज़रों का पैमाना किसी के अरमां का खजाना किसी कि आँहो का बहाना जमीं कि चांदनी जमाने के मुस्कान कि रौनक!!
 
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

एस के कपूर श्री हंस

इस खुशनुमा   सुबह में 
आपको याद    करते हैं।
सबेरे आपकी खुशी की
फरियाद    करते       हैं।।
आपकी स्म्रति   दिल में
बनी रहे हमेशा यूँ     ही।
*सुप्रभात के   साथ बस*
*यही इक़ बात  करते हैं।।*
________________________

*।।कॅरोना,अभी जरा ठहर*
*जायो ,कि फिर सब गुलज़ार होगा।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
हिम्मत रखना दिन  वैसे ही
फिर गुलज़ार    होंगें।
बीमारी से दूर    फिर   शुभ
समाचार        होंगें।।
दौर पतझड़  का    आता है
बहार आने से पहले।
पुराने दिन फिर      वैसे  ही
बरकरार         होंगें।।
2
लौटकरआ जाएंगी खुशियाँ
अभी कठिन वक़्त है।
यह कॅरोना    ले    रहा   था
परीक्षा    सख्त     है।।
समय से लें दवाईऔर ऊर्जा
बढ़ायें         अपनी।
इस कॅरोना के    खूनी  पंजों
में लगा गया रक्त्त  है।।
3
जान   बाजी लगा  निकलने
की जरूरत नहीं है।
यूँ ही   चितायों    में   जलने
की जरूरत नहीं है।।
भयानक मंजर खूनी  खंजर
देखा है कॅरोना का।
लापरवाही से  काम लेने की
जरूरत     नहीं  है।।
4
जरा सा ठहर जायो  कि सब
सही  गुज़र    जाये।
इस दूसरी लहर  का ये   नया
उफ़ान  गुज़र  जाये।।
यूँ आँधी में बेवजह निकलना
अभी ठीक नहीं  है।
हम सब निखर कर    आयेंगें
ये मुकाम गुज़र जाये।।
______________________

*।।पत्थर के होते जा रहे संवेदना शून्य बड़े शहर।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
बड़ी अजीब सी     बड़े शहरों 
की रोशनी  होती है।
दिन खूब   हँसता  पर      रात
बहुत  रोती         है।।
उजालों में भी     चेहरे     यहाँ
पहचाने   नहीं  जाते।
सच सिसकता और   झुठलाई
नींद चैन की सोती है।।
2
आदमी भटकता रहता है यहाँ
कंक्रीट के जंगलों में।
संवेदना सुप्त  रहती  है   यहाँ
सबकी धड़कनों  में।।
फायदे नुकसान के  गणित में
गुम रहते हैं लोग यहाँ।
हर बात  उलझती  रहती यहाँ
राजनीतिक दंगलों में।।
3
संबंध निभाने का समय लोगों
के पास होता नहीं है।
पाने को  रहता  आतुर  हमेशा
कुछ   खोता नहीं   है।।
एकल परिवार का चलन   बढ़
रहा   बड़े   शहरों   में।
दूर ही   रहते  बेटा,  बहु,  पास
होते ,पोती,पोता नहीं हैं।।
4
अजब गजब सा सन्नाटा पसरा
रहता है यहाँ  घरों में।
भगदड़ मची रहती  यहाँ  बाहर
हर आदमी के परों में।।
खामोशी में    छिपा रहता कुछ
अज्ञात कोलाहल सा।
मीलों की     दूरी रहती हर पास 
की ही दीवार  दरों  में।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।         9897071046
                     8218685464

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

.
                    अराधना
                🙏 पिता 🙏
                        ~~
घर परिवार अपनत्व की,आन-बान-शान है पिता।
हिम से ऊंचा,जीवनरूपी रथ का पहिया,है पिता।।
क्षमा करआगे बढ़ने का हर अवसर देता है पिता।
इच्छा रूपी स्वाद को,चखने का जरिया है पिता।।

भाईचारा,प्यार की एक सच्चीपाठशाला है पिता।
बचपन रुपी खेलों की सुगम कार्यशाला है पिता।।
कितना भी हो,घोर अंधेरा दीपक सी लो है पिता।
नजर-टोटकों-करतूतों, की औषध डोरी है पिता।।

थका- हारा भी, कमजोरी नहीं दिखाता है पिता।
धन्य हो जाते है हम ,जब खुशी लुटाता है पिता।।
कुछ नहीं खाया, कहकर खुद खिलाता है पिता।
सचमानें तो ईश्वर का दूसरा ही अवतार है पिता।।

कितनीही डगर कठिन हो,सुलभ रास्ता है पिता।
जीवनकी नैया मेंअसली तश्वीर सजाता है पिता।।
कितनी भी हो सर्दी,गर्मी,रक्षाका कवच है पिता।
कर्मपथ के भूमण्डल में कुदरत का रुप है पिता।।

भला कर भला होगा, संस्कार सिखाता है पिता।
हो कितनी भी मजबूरी,मान की चौखट है पिता।।
मुसीबत से छुटकारा, खुशी की सौगात है पिता।
इस तपस्या का सही में, सच्चा हकदार हैं पिता।।

   ©®
      रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/16)
अखिल विश्व कर रहा रुदन है,
नहीं कुछ सूझे अब आधार।
मिले शीघ्र यदि नाथ सहारा-
मिले नाव को तभी किनारा।।

संकट की इस विकट घड़ी में,
नाथ-वंदना कष्ट मिटाए।
मूल मंत्र-जप नाथ-नाम है,
यह विपदा को दूर भगाए।
महा समर में मिले सफलता-
निर्मल-ठोस सोच के द्वारा।।
     मिले नाव को तभी किनारा।।

प्रभु-वंदन के साथ एकता,
भी तो रहती संकट- मोचन।
है असीम बल भरी एकता,
फलतः होता ऊँचा चिंतन।
कटे कष्ट श्रेष्ठ चिंतन से-
जिससे खुलता सुखद पिटारा।।
      मिले नाव को तभी किनारा।।

प्रभु का सुमिरन हर क्षण होता,
विचलित मन का शांति-प्रदाता।
साहस और विवेक बढ़ा कर,
संकट से लड़ना सिखलाता।
घोर अँधेरा यही छाँटता-
आशा रूपी उगा सितारा।।
      मिले नाव को तभी किनारा।।

सुख-दुख हैं परिभाषा जग की,
यह जग इनका ही डेरा है।
एक गया तो निश्चित समझें,
लगता दूजे का फेरा है।
चले बिठाकर ताल-मेल जो-
सुख-दुख का बस वही दुलारा।।
      मिले नाव को तभी किनारा।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

सुधीर श्रीवास्तव

हाइकु
*****
राहत
*****
बेटी विदा हो
अपने घर गई
राहत मिला।
***
औपचारिकता
बाढ़ की विभीषिका
राहत कार्य।
***
बेटी तो है न
फिर क्यों करें शोक
नाम चलेगा।
***
दाह संस्कार
बेटी करेगी तो भी
मोक्ष मिलेगा।
***
सेवानिवृत्त
होकर घर आया
अब राहत।
***
भरोसा रखो
खुद पर अपने
राहत पाओ।
***
कौन जानता
कल तक क्या होगा
आज राहत।
***
मंत्री के घर
गरीबों का राहत
बंटता कैसे।
***
राहत पाओ
मंत्री से तुम सब
गुलामी करो।
***
बेटे बहू तो
अपने में मस्त हैं
हमें राहत।
***
अपनी चिंता
आप खुद कीजिए
राहत पायें।
***
राहत पाना
राहत के लिए भी
राहत ही है।
***
बेटी का बाप
राहते अहसास
न गमे साथ।
***
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
©मौलिक, स्वरचित

सम्राट

प्रेम जो कहने के लिए खत्म हो जाता है
पर वास्तव में कभी खत्म नही होता
हाँ नये उम्मीद और नये ख्वाब के लिए
दिल के किसी कोने में दफ़न जरूर हो जाता है
पर वही प्रेम मौके बे मौके पर
कभी कभी याद बन के 
अपने को जिंदा रखता है
हाँ अब प्रेम का स्वरूप बदल गया होता है
जिसको याद कहते हैं
पर वास्तव में ये प्रेम ही होता है
जो कभी होठों पर हँसी
तो कभी आँखों में मोती ले आता है
मसलन वो प्रेम करने वाले लोग
जो कहते हैं कि हमनें उसे भुला दिया
सीधे सीधे झूठ बोल रहे होते हैं
क्योंकि प्रेम को कभी भी,
भुलाया नहीं जा सकता।

©️सम्राट की कविताएं

निशा अतुल्य

कैसा प्रेम

कैसा है कोलाहल मन में 
कैसी मन की धारणा 
राह तकुं और थके नयन न 
भव से मुझको तारना ।

धूमिल रूप हुआ ये सारा
गहरी मन की वेदना 
रटती रहती नाम तुम्हारा
मुझको तुम ही थामना ।

कैसा है कोलाहल मन में 
कैसी मन की धारणा ।।

चाहे राह विकट हो कितनी
धैर्य बना रहे सदा 
उत्कंठा पाने की ख़ुद को
पूर्ण हो ये साधना।

कैसा है कोलाहल मन में 
कैसी मन की धारणा ।।

अब तुम ही हो प्रियतम मेरे
तुम ही हो आराधना 
रहे समर्पित जीवन तुम को 
बस ये ही है चाहना ।

कैसा है कोलाहल मन में 
कैसी मन की धारणा ।।

कभी न मैं इस जग से हारूँ 
मन करे ये प्रार्थना
अंतर्मन में चाह बसी है
रहे कल्याण भावना ।

कैसा है कोलाहल मन में 
कैसी मन की धारणा ।।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डॉक्टर रश्मि शुक्ला

भष्ट्राचार

करो कृपा, जग जननी भवानी,हमारा राष्ट्र भष्टाचार से मुक्त कर पाएँ हम।

पाकर कृपा तुम्हारी कविगण, गाते हैं मधुरिम गीत से भष्टाचार दुर करें हम।

दे दो शक्ति साधना की माँ,जीवन पथ चल पाएँ हम।

राष्ट्र का प्रदूषण बुहारें, विश्व नेतृत्व क्षमतावान बनें हम।

कहीं भी निराशा दिखाई न देगी,चलो!आज भष्टाचार को भगाएँ हम।

वासंती उल्लास तुम्हारा, जीवन में पा जाएँ हम।

आत्म विश्वास करते-करते,परहित में लग जाएँ हम।

सजल श्रध्दा से,प्रखर प्रज्ञा से,शुचिता से जुड़ जाएँ हम।

जगमग ज्योति जला जीवन की,जीवन भर मुस्काएँ हम।

मानवी वेदना को हरें सुप्त देवत्व जागे,धरा मुक्त संताप से अब करें हम

सभी सभ्य ,शालीन हों,सभी शक्तिमान, हो नहीं उदासीन हम।

न कोई अशिक्षित रहे, न कोई पराश्रित रहे,समृद्धिशाली रचना बनाएँ हम।

कलम शक्ति का बोध हो प्रगति फिर मेरी अधुरी भष्टाचार मुक्त रचना पूरी कर पाएँ हम। 



डॉक्टर रश्मि शुक्ला 
प्रयागराज

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दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...