एस के कपूर श्री हंस

।ग़ज़ल।
।काफ़िया।। आल ।
।रदीफ़।। है जिंदगी।।
1
खेलो तो  तब  गुलाल  है   जिंदगी।
बहुत ही यह बेमिसाल है   जिंदगी।।
2
हार जाये जब मन से कोई आदमी।
तो बस फिर इक़ मलाल है जिंदगी।।
3
बस यूँ ही गुजारी तनाव में  गर  तो।
जान लीजिए कि बेहाल है  जिंदगी।।
4
गर ढूंढा न जवाब हर बात का  हमने।
तो मानो सवाल ही सवाल है जिंदगी।।
5
जियो जिंदगी अंदाज़ नज़र अंदाज़ से।
नहीं तो फिर बस   बवाल है   जिंदगी।।
6
गर जी जिंदगी मिलकर   सहयोग  से।
तो जान लो फिर   कमाल है  जिंदगी।।
7
बस लगे रहे हमेशा. अपने मतलब में।
तो बन   जाती    बदहाल  है  जिंदगी।।
8
गर घिर गए हम नफरत के   जाल में।
तो फिर ये   बिगड़ी चाल.  है जिंदगी।।
9
जियो और जीने दो की राह पर चलो।
तो फिर   बनती   जलाल   है जिंदगी।।
10
*हंस* बस हँसकर ही काटो गमों दुःख में।
यकीन मानो रहेगी खुशहाल है जिंदगी।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

सुधीर श्रीवास्तव

गाँव की गलियां
*************
समयचक्र और
आधुनिकता की भेंट
चढ़ गईं हमारे गाँव की गलियां,
लगता ऐसे जैसे कुछ खो सा गया है,
अपनापन गलियों में भी
जैसे नहीं रह गया  है।
धूल,मिट्टी और कीचड़ भरी गलियों में
अजीब सी कशिश थी,
कंक्रीट के साथ जैसे
वो कशिश, अपनेपन की खुशबू भी 
जैसे दफन हो गई है।
अब तो गाँवों की गलियों में भी
बच्चों का शोर ,हुड़दंग और
आपस का द्वंद्व ,शरारतें
गुल्ली डंडा और कंचे खेलना,
अंजान शख्स के दिखते ही
कुत्तों का भौंकना,
खूंटे से बंधे जानवर का 
रस्सी तोड़कर गलियों में
सरपट भागना,
गलियों के मुहाने पर जगह 
उन्हें पकड़ने के लिए
लोगों का मुस्तैद हो जाना ।
बड़े बुजुर्गों के डर से
गली में चुपचाप छुप जाना,
चाचा,दादी,बड़ी मां के पीछे 
गली गली घूमकर
छुपते छुपाते घर में घुस जाना
जैसे जंग जीतने की खुशी का
अहसास करना
सब इतिहास हो गया,
गलियों का भी तो अब जैसे
केंचुल उतर गया।
गलियां भी अब वो गलियां
नहीं रह गई,
जहाँ घुसते ही जैसे
सुरक्षा और सुकून का ही नहीं
अपनों के बीच पहुंच जाने का
अहसास होता था,
अब सब कुछ बिखर सा गया है
गाँवों की गलियों को जैसे
आधुनिकता का भूत चढ़ गया है,
आज तो गाँव की गलियों में भी
बहुत भेद हो गया है,
इंसानी फितूर अब जैसे
गलियों को भी चढ़ गया है।
● सुधीर श्रीवास्तव
     गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
#मौलिक, स्वरचित

जया मोहन

व्यथा
आज फिर वो रोती हुई मेरे पास आई थी
बेटे ने उसे मारा बहते खून की धार दिखाई थी
देख कर मन हो गया दुखी
क्या औलाद पा कर भी लोग न होते सुखी
जिसके पास न हो वो औलाद के लिए रोता है
ऐसी औलाद से कई मन सुखी होता है
याद आ रही उसे वो बात पुरानी
खामोश ज़ुबाँ थी नैनो से बह रहा था पानी
कितने अरमान समेटे आयी थी प्रिय के घर
झूम उठी थी खुशी से जब पेट मे फूटी थी कोपल
हर पल उसके आने की राह जोहती थी
नरम नरम ऊनसे स्वेटर टोपी मोज़ा बुनती थी
एक खुशी मिली तो दूजी खो गई
गोद भरी थी पर मांग सूनी हो गई
खुशी में वो खुल कर न हँस सकी
न दुख में ज़ार ज़ार रो सकी
दुनिया की ठोकरे सहते हुए नन्हे को पाला था
आज नन्हे ने उसे घर से निकाला था
क्या इसी दिन के लिए लोग माँगते है संतान
इससे तो वो भले है जो है निसंतान
क्या सुख पाया जो जींवन तपाया है
नन्हे की मार ने ज़ख्म को हरा किया
सुनहरे सपनो से यथार्थ के धरातल पर पटक दिया

स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

बिरसा मुंडा ---                            


कौन कहता है  क्रांति को चाहिये  कारण और  बहना ।।             

क्रांति तो धर्म कर्म कर्तब्य दायित्व बोध के उत्साह उमंग का है तरन्नुम तराना।। 

जज्बे का जूनून है जज्बातों के रिस्तो रीत प्रीती परम्परा की अक्क्षुणता पर जीना मरना मिट जाना।।

जूनून आग है चिंगारी है मशाल है दुनियां में मिशाल का मशाल है ।।

अपनी हस्ती की हद जमी से आसमान से आगे जहाँ के नए सूरज चाँद की हैसियत की गर्मी ताकत से तक़दीर की इबारत लिखने का आगाज़ अंदाज़ के जांबाज़ से वक्त अपने बदलने की करवट लेता।।

वक्त अपने निरन्तर प्रवाह में उठते गिरती अपने कदमों की ताकत के लिये इंतज़ार करता खुद से गुहार करता खुद में खुदा का इज़ाद करता जहाँ में खुद का खुदाई इज़हार करता।।

दुनियां में इंसान को इंसान से मोहब्बत तकरार की टंकार की गूँज की गवाही देता।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

रामकेश एम यादव

मुझे चाहने लगे हैं!

क्या हुआ है उनको मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये मेरा देखने लगे हैं।

जैसे रस भरे फलों को, कोई चाहता परिंदा,
जैसे रोशनी को तरसे, कोई नेत्र का हो अंधा।
मेरी हुश्न की फसल को, वो सींचने लगे हैं।
क्या हुआ है उनको, मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये, मेरा देखने लगे हैं।

कोई पी रहा हो मयकश,किसी मयकदे में जाकर,
वो लुफ्त ले रहे हैं, मेरी आँख से ही पीकर।
मेरे अनछुए बदन में, रस घोलने लगे हैं,
क्या हुआ है उनको मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये, मेरा देखने लगे हैं।

मेरी झील-सी ये आँखें, मेरा फूल सा बदन ये,
कहीं भूल से न बिखरे, मेरे प्यार का चमन ये।
मेरे अधखुले अंगों से वो अब खेलने लगे हैं,
क्या हुआ है उनको, मुझे चाहने लगे हैं,
मयकशी बदन ये, मेरा देखने लगे हैं।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

कुमार@विशु

वो कवि ही क्या जो चाटुकारिता में नित मुँह खोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।

तुष्टीकरण और जातिवाद की राजनीति हावी हो,
वंशवाद और पूंजीवाद में पिसती निज जनता हो,
जनसेवक ही जहाँ देश का जनशोषक बन जाए,
रक्तपिपासु शासक बन जनधन पे मौज करता हो।।

वो कवि ही क्या जो धर्म त्यागकर सत्ता संग डोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।

तानाशाही  शासक  जब  जुल्म  करे  जनता  पर ,
दमनकारी हो नीति और व्यभिचार करे जनता पर,
सिंसक रहा हो लोकतन्त्र और जनमानस बेबस हो,
प्रजातंत्र  के  सभी  धूरी  हों  टिके भ्रष्ट  शासन पर।।

वो कवि ही क्या जो भ्रष्ट राज का भेद नहीं खोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।

मरती हों प्रतिभाएँ प्रतिपल जब वर्गभेद आरक्षण में,
लुटती  हों अबलाएँ  हरपल  सत्ता  के ही संरक्षण में,
बेशर्म नीति  के ज्ञाता ही  जब न्याय  बेचने लग जाएं,
जब राष्ट्र गौण हो जाता हो परिवारवाद के पोषण में।।

वो  कवि नहीं  जो मंचों से सुर में इनके मुँह खोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।

जब राष्ट्र सुरक्षा में बाधक सरहद की खुद दीवारें हों,
जब मानवता के दुश्मन के साथी भी घर के अंदर हों,
जब  राष्ट्रविरोधी  नारों  की  अंदर ही  गुंज  सुनाई दे,
राष्ट्र घिरा हो संकट  में अवमूल्यन राष्ट्र का करता हो,

वो कवि ही क्या जो ऐसे में नहीं राष्ट्रवाद पर बोलेगा,
जनहित में जन जागृति को नित सुकवि सत्य बोलेगा।।

सीता अनुसुईया के सत पर जहाँ प्रश्न ऊठाए जाते हों,
राम-कृष्ण  जन्मस्थल पर जहाँ भ्रम फैलाए जाते हों,
सत्ता  के  लोलुपता  में  जब  दुर्गापूजन हो प्रतिबंधित ,
कट्टरपंथी  कुछ  तत्वों से  जब देश  जलाए  जाते  हों,

वो कवि ही क्या जो लेखनी से फैला भ्रमजाल ना तोड़ेगा,
जनहित  में जन  जागृति  को  नित  सुकवि  सत्य बोलेगा।।
✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना

निशा अतुल्य

मौसम
मुक्तक मात्रा भार 16

मौसम ने करवट जब बदली,
छाई गहरी काली बदली ।
रिमझिम रिमझिम बूंदे बरसी,
भूमि की खुशबू है संदली ।

दादुर मोर पपीहा गाए,
कोयलिया भी राग सुनाए।
चमक उठी है तड़ित दामिनी,
बरखा की बूंदे ललचाए ।

आँचल तप्त धरा का सींचा, 
बीज प्रस्फुटित अंकुर नीचा ।
निकल आये नवांकुर देखो,
सुन्दर रूप धरा का खींचा ।

आमो पर महकी अमराई,
बूंदों से है भूमि नहाई ।
झम-झम,झम-झम बरखा ने गिर,
देख भूमि की प्यास बुझाई

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

सौरभ प्रभात

शीर्षक - बरगद
विधा - कुण्डलियाँ

बूढ़ा बरगद रो रहा, मिले नहीं अब छाँव।
महुआ पीपल सूखते, प्राण लगे हैं दाँव।।
प्राण लगे हैं दाँव, सिसकती आँगन तुलसी।
मृत्यु विचारे बैठ, प्रिया कब यौवन हुलसी।
पूछे सौरभ आज, समय से उत्तर गूढ़ा।
रोये क्यों चौपाल, छिने जब बरगद बूढ़ा।।

-सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधु के मधुमय मुक्तक*

*झंझावात*
-------------------
जीवन झंझावात से , छुटकारा है एक।
दृढ़ हो ईच्छाशक्ति अरु, साया बने विवेक।
सद्कर्मों की राह पर , मानव का सम्मान।
कंटक बाधा कब बने , साथी हो गर नेक।।

तूफानों का वेग ही, होता झंझावात।
उलझे जीवन डोर भी , ऐसे हो हालात।
सभी समर्थित बन करो, इसका सहज उपाय,
तैयारी सार्थक करो, बन जाए शुभ बात।।

कैसा झंझावात है, मानव जीवन तंत्र।
मूल यहाँ निर्मूल हो, बिगड़े सारे यंत्र।
सजग व्यक्ति की चाह से, होती सुखमय भोर,
अन्तर्मन को शक्ति दे, शिवा शक्ति शुभ मंत्र।।

फँसते झंझावात में  ,  व्यर्थ बनाए चित्र।
प्राप्त लक्ष्य होता तभी , साथ रहे जब मित्र।
सत्य कल्पना साथ हो, अडिग रहे विश्वास
सुरभित जीवन पुष्प से, महके मधुमय इत्र।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*09.06.2021*

नूतन लाल साहू

तरुवर की हरियाली

कोई चांदनी रैन को ढूंढता है
कोई विश्व में चैन को ढूंढता है
देखो पेड़ो की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
मानो संदेश दे रहा है
एकता में ही है खुशहाली
कोई वन में,भगवान को ढूंढता है
कोई धन में ईमान को ढूंढता है
तीर सरीखा,जीवन निकल गया
ये अनमोल जीवन, वृथा ही गंवाया
पर तरुवर से कुछ न सीखा
देखों पेड़ की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
गीत गा रही है कोयल काली
पत्ते बजा रहे है ताली
कौन रहा होगा,वो माली
जिसने की रखवाली
देखो तरुवर की हरियाली
झूम रही है डाली डाली
पर तरुवर से कुछ न सीखा
हरे भरे घने जंगल में
ढूंढ अधिक दिख रहा है
यही है आदि,यही है अंत
इंसान समझ नहीं पा रहा है
देखो पेड़ो की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
तर्क वितर्क के पचड़े में न पड़ो
प्रकृति से खिलवाड़ न करो
दो से हम,तीन हुए
चार हुए और पांच हुए
एकता में तो,दर्पण जैसा
जब बिखरे तो,कांच हो गए
देखो पेड़ की हरियाली
कितने ही पत्ते और एक डाली
मानो संदेश दे रहा है
एकता में ही है खुशहाली

नूतन लाल साहू

डा. नीलम

*उजला निर्झर*

खुशियों का गुलदस्ता लेकर
भोर सुहानी आ गई
हिम अंचल से बहता उजला निर्झर/ रविकिरण सरसा गई

फैला प्राचि भाल सिंदुर
अरुण कन्दुक गगनांचल
लुढ़क आई
उजियारे ने पर फैलाए
तम ने आंचल लिया समेट

छिटक गिरा इक ध्रुव तारा
झट रवि कंदुक ने साध निशाना/ दे ठोकर रजनी के
पीछे किया रवाना

खेल अनूठा क्षितिज का देख
खग वृंद हर्षित हो कुर्ला गया
अमृत वाणी का स्पंदन हवाओं में बह हर जन को जगा गया

धरा ने भी ली अंगड़ाई
भोर निर्झर में नहाई
फूल, पात, वृक्ष ,विटप
हर कोना उजला हो गया।

        डा. नीलम

एस के कपूर श्री हंस

पर्यावरण संरक्षण के स्लोगन।

1
जल बचत की रोज़ करो  चर्चा।
जल रहे सुरक्षित कम हो खर्चा।।
2
ए सी बिजली बत्ती बेकार न चले।
वाहन धुंआ यूँ ही   बेकार न जले।।
3
एक पेड़ कटे दस   वृक्ष लगें
तो बात   होगी        बराबर।
नहीं तो प्राणवायु का संकट
होगी भूल   हमारी  सरासर।।
4
गीले कूड़े   की    बने   खाद
और सूखा कूड़ा रीसायकल।
नहीं तो जान लीजिए  अभी
कूड़ा बनेगा    जंजाल  कल।।
5
पॉलीथिन का करें आप कम प्रयोग।
तभी पर्यावरण संरक्षण का होगा योग।।

___________________________________

*।। भावी पीढ़ी को सुरक्षित पृथ्वी, सौंप* *कर जाना, आज हमारी* *जिम्मेदारी है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
एक ही धरती    और   एक 
ही    आकाश है।
पर्यावरण नहीं  किया   शुद्व
तो तय विनाश है।।
यदि काटते रहे   वृक्ष      यूँ
ही    हम   अंधाधुंध।
जान लीजिए  बिछ  जायेगी
प्राणवायु की लाश है।।
2
हम ही दोषी और  जिम्मेदार
होंगें   विनाश   के।
हमारी भावी  पीढ़ी  सुरक्षित
गलत आभास के।।
हम करेंगें प्रकृति का   दोहन
और   बच जायेंगे।
हम ही जिम्मेदार   होंगे  इस
मिथ्या विश्वास के।।
3
समय से न चेतेआँधी सुनामी
बाढ़ से    तबाह   होंगें।
जाने कैसे और कब हम  इन
ख़तरों से आगाह होंगें।।
आधुनिकीकरण और प्रकृति
रक्षा चले   साथ साथ।
तभी भावी पीढ़ी   के    लिए
सही सलाह राह होंगें।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।      9897071046
                    8218685464

अतुल पाठक धैर्य

महरूम
--------------
जाने कहाँ गए वो दिन,
न जाने कहाँ किस जहाँ में गुम हो गए।
फ़ासले दिलों के जो बढ़ते गए ,
मोहब्बत से हम महरूम हो गए।

मोहब्बत महरूम है पर तेरा ख़्याल नहीं,
ज़िंदगी की सच्चाई है हर तमन्ना गर पूरी हो जाए तो फिर तो तमन्ना तमन्ना ही नहीं यही सोचकर अब कोई मलाल नहीं। 

न मायूस मैं न मोहब्बत मआल है,
हूँ मैं बस अपनी शायरियों में मशरूफ
यही अपना हाल है।
रचनाकार-अतुल पाठक "धैर्य"
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

गीत(16/16)
चहुँ-दिशि मची है चीख-पुकार,
पड़ा है संकट में संसार।।

सबके तन-मन गए हैं काँप,
संकट विकट को कर के भाँप।
लगे  अब  कैसे  बेड़ा  पार-
पड़ा  है  संकट  में  संसार।।

 सयंमित रहना अब तो मीत,
नहीं  तो  होगा  बेरस  गीत।
करो दूर से  अब  नमस्कार-
पड़ा  है  संकट  में  संसार।।

खान-पान में रहे शुद्धता,
मेल-जोल आपसी एकता।
रखना सभी यह सोच-विचार-
पड़ा  है  संकट  में  संसार।।

पर्यावरण शुद्ध अब रखना,
साफ-सफाई करते रहना।
मात्र यही है अब उपचार-
पड़ा है संकट में संसार।।

दुखिया जग की पीर हरो प्रभु,
रोग  सभी  गंभीर  हरो  प्रभु।
खोलो  कृपा  का  कोषागार।।
पड़ा  है  संकट  में  संसार।।
       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
           9919446372

मन्शा शुक्ला

 ....सुप्रभात

शंकर सुत हे गौरी नन्दन।
बारम्बार करूँ मैं वन्दन।।
चन्दन रोली माथ लगाऊँ।
पुष्पहार से कंठ  सजाऊँ।

भोग  लगाऊँ  लड्डू मेवा।
विघ्न हरो हे गणपति देवा।।
सूनो प्रभु अब अरज हमारी।
दुखिया आयी शरण तिहारी।

मन्शा शुक्ला
🙏🙏🙏🙏🙏

मधु शंखधर स्वतंत्र

बिरसा मुण्डा की पुण्यतिथि पर समर्पित एक रचना....🙏🇮🇳
*बिरसा मुण्डा नाम था*
-----------------------------
झारखंड में जन्मा बालक,  बिरसा मुण्डा नाम था ।
सुगना मुंडा करमी हातू , मात पिता शुभ धाम था ।

जग जाहिर यह नाम सदा ही आजादी में भाग लिया ।
भारत मां की गरिमा खातिर जीवन धन भी त्याग दिया।
आदिवासियों का नेता यह रक्षित करना काम था।
झारखंड में जन्मा बालक.......।।

अंग्रेजों से लड़ा लड़ाई नीति नियम ही बतलाया।
शोषण का प्रतिरोध किया था उलगुलान तब सिखलाया।
जल, जंगल, जमीन पर दावा एक यही संग्राम था ।
झारखंड में जन्मा बालक.....।।

जमींदारी, राजस्व व्यवस्था यही बगावत का कारण ।
अंग्रेजों की बद्नियत से रूद्र रूप करता धारण ।
बचा सके संस्कृति स्वयं की यही सुबह अरु शाम था ।
झारखंड में जन्मा बालक.....।।

नहीं तोप अरु बंदूके ही, अटल इरादे तोड़ सकी।
बना इनामी मोहरा तभी, अपनों का रुख मोड़ सकीं।
अपने ने गद्दारी कर दी यही दुखद अंजाम था।
झारखंड में जन्मा बालक.....।।

पाँच सौ रूपये राशि खातिर पता किसी ने बतलाया ।
अंग्रेजों ने कैद किया तब रांची जेल में भिजवाया ।
चाल सफल होते ही गोरे, पाया नया मुकाम था।
झारखंड में जन्मा बालक.......।।
 
उन्नीस सौ पचहत्तर में ही, पन्द्रह नवम्बर जन्म लिया।
दो हजार सन् , नौ जून को वीर पुत्र ने प्राण दिया।
अमर हुई धरती वह उसकी , उलिहातू शुभ ग्राम था।।
झारखंड में जन्मा बालक, बिरसा मुंडा नाम था।
सुगना मुंडा, करमी हातू, मात पिता शुभ धाम था।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*09.06.2021*

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

ग्यारहवाँ-6
  *ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-6
एकमात्र रच्छक जग लोका।
सोक-ग्रस्त कहँ करैं असोका।।
    सो प्रभु कृष्न औरु बलदाऊ।
   बनि चरवाहा बछरू-गाऊ ।।
बन-बन फिरहिं अकिंचन नाईं।
लकुटि-कमरिया लइ-लइ धाईं।।
     एक बेरि बन गाय चरावत।
     सभ गे निकट जलासय धावत।
ग्वाल-गऊ-बछरू पी पानी।
करत रहे उछरत मनमानी।।
     देखे सभें एक बक भारी।
     किसुनहिं निगलत अत्याचारी।।
गिरे सबहिं भुइँ होइ अचेता।
कंसइ असुर रहा ऊ प्रेता।।
    ब्रह्म-पितामह-पिता कन्हाई।
    लीला करहिं सिसू बनि आई।।
उदर बकासुर मा जा कृष्ना।
लगे जरावन वहि बहु तिक्षना।।
    बिकल होय तब उगला प्रेता।
    बाहर निकसे कृपा-निकेता।।
पुनि निज चोंचहिं काटन लागा।
निरमम-निष्ठुर दैत अभागा।।
    तुरत किसुन धइ दुइनउँ चोंचा।
    कसि के फारे बिनु संकोचा।।
मरा बकासुर मचा कुलाहल।
गगनहिं-सिंधु-अवनि पे हलचल।।
    जस कोउ चीरहि गाड़र-क्रीड़इ।
    फारे प्रभू बकासुर डीढ़इ।।
मुदित होइ सभ सुरगन बरसे।
सुमन चमेली-बेला हरसे ।।
    संख-नगारा बाजन लागे।
     पढ़ि स्तोत्र कृष्न-अनुरागे।।
पुनि बलराम-ग्वाल भे चेता।
लखि के किसुन हते सभ प्रेता।।
     सभ मिलि किसुन लगाए गरहीं।
      मन-चित-हृदय मगन बिनु डरहीं।।
दोहा-लवटि आइ सभ गोपहीं,जाइ के निज-निज धाम।
         अद्भुत घटना बरनहीं, किसुन-बकासुर-काम ।।
                        डॉ0हरि नाथ मिश्र।
                         9919446372

कुमार@विशु

वो थी मासुम गुड़िया चली गाँव को,
नन्हीं सी जान वो रख रही पाँव को,
चिलचिलाती भरी  दोपहर रेत की,
वो क्या समझे भला मौत के दाँव को।।

चलते चलते अचानक ठिठक सी गयी,
कहते  कहते  जुबाँ  लटपटा  सी  गयी,
माँगती   नीर  औ   लड़खड़ाने   लगी,
छटपटाती  हुई  भूमि  पर  गिर  गयी।।

मौत के आगोश में भूमि पर सो गई,
प्यासी  पानी की वो दास्ताँ कह गई,
खोल दी पोल उसने प्रबंधन की जो,
भामाशाहों की धरती पर वो मर गई।।

वो क्या समझें जो एसी में जीवन जिए,
राजनीति  ही  जो  लाश  पर  है  किए,
भूखे  लाचार  से  उनको  क्या  वासता,
जो    बुझाते    हमेशा   घरों   के   दिए।।

कैसे कह दूँ कि शासन सुशासन तेरा,
जल प्रबन्धन पे दिखता कुशासन तेरा,
है   छलावा  दिखावा  बहुत  वादों  में,
कैसे  कह  दूँ  प्रगतिशील शासन तेरा।।

सात किलोमीटर का सफर तय किया,
हौसले  संग  कदमों  को  चलने दिया,
राह में ना कोई  स्रोत  जल  का मिला,
बेखबर राज का किस्सा भी कह दिया।।
✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना

देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

...............मौसम उदास...............

कभी  अनावृष्टि से है मौसम  उदास ।
कभी  अतिवृष्टि से है मौसम  उदास।।

जीव जंतु तड़पते,मानवता सिसकती;
असहाय जीवन से  है मौसम उदास।।

किसान,मजदूर रोते,मचता हाहाकर ;
उम्मीद न दिखने से है मौसम उदास।।

कुछ न हम कर पाते,मुट्ठी भींचे रहते;
इस निष्क्रियता से है  मौसम उदास।।

देखते रहे जंगल उजड़ते,कुछ न कहे;
बिगड़ती हालत से है  मौसम उदास।।

हर प्रकार के अन्याय से भारी होकर;
अधिक निर्ममता से है मौसम उदास।।

कहीं तो कोई उम्मीद दिखे "आनंद" ;
सुबुद्धी देख खुश हो मौसम उदास ।।

-------देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"
823डी,मोतीलालगुप्ता रोड,कल82

निकिता चारण

प्रकृति सौंदर्य

यह धरती कितनी अनुपम,कितनी प्यारी है ।
इसके कण-कण में सजी यह प्रकृति सारी है।।

चिड़ियों की चहक में 
फूलों की महक में
 चांद के चमकने में 
सूरज के दमकने में 
तारों के टीमटीमाने में
नदियों के बहने में 
समंदर के गहरे होने में 
पहाड़ के अडिग रहने में
प्रेम के बीज बोने में 
नवअंकुरण में 
नव स्फूर्ण में
 हवा के चलने में 
सांसो से पलने में
आरंभ से प्रारंभ में
प्रकृति को *जोने में,
सजी यह प्रकृति सारी है

अस्तित्व की देन हमको चिरकारी है
 भौतिकता की आड़ में प्रकृति का ना नाश करो 
जागो मनु जीवन में प्रभात करो
अपना ना‌ सर्वनाश करो…

जोना- देखना।
स्थानिय शब्द।


मौलिक, स्वरचित रचना -V.P.A.निकिता चारण
E-mail- nikitacharan106@gmail.com

चंचल हरेंद्र वशिष्ट

शीर्षक: 'प्राणवायु प्रदायक वृक्ष'

ना काटों हमें!
तुम्हारे काम बहुत आएंगे
गर्मी में छाँव
बारिश में ठाँव
फल फूल
प्राणवायु
औषधि
शाक,सब्ज़ी
सभी देते हैं
फिर भी??
बदले में तुमसे
क्या लेते हैं?
पौधेपन में ज़रा सी
देखरेख,और पानी ही?
गर्मी तो सूरज बाबा
ही पहुँचा देते हैं
हवा हौले हौले से
सहला जाती है हमें
बादल भी नेह
बरसा जाते हैं मौसम,बेमौसम
और तो कुछ भी नहीं
चाहते हम किसी से
बस थोड़ा सा प्यार देकर देखो हमें
वादा है तुमसे,तुम्हारे अपनों से भी ज़्यादा काम आएंगे
तुम पर जीभर नेह लुटाएंगे
कभी नहीं बिसराएंगे
तुम्हारी पीढ़ियों को भी दुलराएंगे
जब तक है अस्तित्व हमारा 
तुम्हारा नाम अमर कर जाएंगे
तुम्हारे इस पुण्य से असंख्य प्राणी, मनुष्य और पक्षी ,जीव-जंतु लाभ पाएंगे
और तुम्हें सदैव ढेरों दिल से दुआएँ दिए जाएंगे
विश्वास मानों हमारा
मत काटो हमें!
हो सके तो व्यर्थ प्रतीत हो रहे बीजों,गुठलियों से
और पौधे उपजाओ
हमारी संख्या, प्रजाति बढ़ाओ
मानव जाति का मंगल करो
धरती को हरा भरा बनाओ
प्रदूषण मुक्त बनाओ
ख़ूब पेड़ पौधे लगाओ
 ऐसे पर्यावरण दिवस मनाओ
सिर्फ़ खोखले नारे मत लगाओ।
सिर्फ़ खोखले नारे मत लगाओ।

स्वरचित एवं मौलिक:
चंचल हरेंद्र वशिष्ट
नई दिल्ली
@सर्वाधिकार सुरक्षित

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-दिले जज़्बात
विधा-कविता
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दिले जज़्बात मेरे दिलदार बनकर पढ़ा करो,
आँखों की मस्तियों को लुटाता हूँ तुम भी मस्त निगाहों में उतरा करो।

महकते अल्फ़ाज़ मेरे नव रंग रस में भर रहे हैं,
एहसास को एहसास से ही तुम तराशा करो।

तबस्सुम का सितारा बना करो,
नज़रों से गुफ़्तुगू किया करो।

गुलों का मखमल न चाहिए,
साँसों का संदल बना करो।

प्रेममयी भावनाओं का सुरमयी संसार सजाया करो,
धड़कने तराने बन जाती दिल में बेवक्त आकर सुन जाया करो।

रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

किन्नर अभिशाप नहीं - नंदलाल मणि त्रिपाठी पितम्बर

किन्नर अभिशाप नहीं------

पंडित परमात्मा जी के कोई औलाद नही थी विबाह के लगभग पंद्रह वर्ष बीत चुके थे पण्डित जी एक औलाद के लिये जाने क्या क्या जतन करते सारे तीर्थ स्थलों पर गए कोई मंदिर कुरुद्वारा नही बचा जहां एक औलाद की मुराद न मांगी हो पण्डित जी एक दिन उदास निराश गांव लखपत पुर के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे बैठे थे जेठ की प्रचंड धूप थी बीच बीच मे हवा चलने से बरगद के बृक्ष के नीचे शीतलता का आभास होता पण्डित जी घण्टो से बरगद के बृक्ष के नीचे बैठे जैसे किसी का इंतज़ार कर रहे हों एकएक पण्डित जी ने देखा कि एक सन्यासी केशरिया धारण किये हाथ मे सारंगी लिये उनकी तरफ ही आ रहा था धीरे धीरे सन्यासी पंडित जी के करीब पहुंचे जो भयंकर गर्मी कारण पसीने से लथपथ और व्यथित थे पण्डित जी के पास आकर बोले बच्चा मुझे बहुत प्यास लगी है थोड़ा पानी पिला दो पंडित परमात्मा  जी तुरंत उठे और सन्यासी का कमंडल लेकर गए और पास के कुएं से शीतल जल ले आकर सन्यासी को दिया सन्यासी ने जल पीने के बाद कहा बच्चा तुम बहुत निराश हताश दिख रहे हो जो प्रारब्ध में है ही नही उसके लिये तुम व्यर्थ परेशान हो तुम्हारे किस्मत में संतान सुख है ही नही तो कहा से तुम्हे संतान की प्राप्ति होगी तुम्हारा भाग्य लिखने वाला जगत पिता सबके भविष्य जीवन का निर्धारण करता है और उसे मिटाने की क्षमता स्वयं उसी में है फिर भी तुमने मुझे जल पिलाया है मुझे तुम्हे आशीर्वाद स्वरूप कुछ देना ही होगा मैं भी तुम्हे विधाता के लेख के इतर कुछ नही दे सकता तुम संतान के लिये दुखी हो मैं तुम्हे पुत्र या पुत्री का आशीर्वाद तो नही दे सकता मैं सिर्फ पिता बनने का आशीर्वाद तुम्हे देता हूँ पण्डित परमात्मा आश्चर्य में पड़ गए कि जब पुत्र और पुत्री होगा ही नही तो मैं पिता कैसे बन सकता सन्यासी महाराज बोले मैं सन्यासी हूँ मुझे सांसारिकता से कोई मोह नही है मेरे आशीर्वाद से तुम पिता बनोगे ईश्वर के अर्धनारीश्वर स्वरूप के जो ना पुत्र होगा ना पुत्री वह महाभारत के शिखंडी जैसा होगा इतना कहकर सन्यासी कहां गायब हो गए पता नही चल सका पंडित परमयात्रा व्याकुल होकर इधर उधर ढूढने का बहुत प्रयत्न किए मगर कोई फायदा नही हुआ अंत मे निराश होकर घर चले गए पंडित परमात्मा पहले से ज्यादा व्यथित हो गए उनको लगा कि इससे बेहतर तो निःसंतान होना लेकिन अब कर ही क्या सकते थे इसे ही अपनी नियत मानकर घर गए और पत्नी अनिता को सारी घटना बताई पंडित जी की पत्नी समझदार थी उन्होंने पण्डित जी को समझाया कि जब औलाद हमारे किस्मत में नही है तो जो ही है उसी को प्रारब्ध मानकर स्वीकार करना ही पड़ेगा सर पीटने निराश  होने से  कोई फायदा नही है जो ईश्वर को मंजूर है उंसे ही किस्मत मानकर स्वीकार कर लेने में हर्ज क्या है। पंडित जी ने अपने नियत का लेखा मानकर भविष्य का इंतजार करने लगे। पण्डित परमात्मा का दिन ज्यो त्यों बीत रहा था लगभग डेढ़ वर्ष उपरांत अनिता के घर एक शिशु ने जन्म लिया पंडित जी को सन्यासी की बात पहले से ही याद थी उनको सन्यासी की बात सत्य हुई क्योकि जो बच्चा उनके यहॉ पैदा हुआ था वह वास्तव मे ना लड़का था ना लड़की था पंडित परमात्मा ने पत्नी से कहा कैसे गांव और रिश्ते नातो को घर मे नए मेहमान आने की सूचना दी जाय क्या बताया जाय क्या कहा जाय जो भी जानना चाहेगा पूछेगा की पैदा होने वाली संतान लड़का है या लड़की लेकिन यह बात छिपाई भी तो नही जा सकती है अभी पंडित जी के घर नए मेहमान के आये एक सप्ताह ही हुआ था कि किन्नरों का एक दल बधाई गाने के लिए आ धमका पण्डित जी के समझ में यह नही आ रहा था कि किन्नरों को क्या बताये लेकिन किन्नरों के दल की मुखिया सुरैया ने पण्डित जी से कहा पण्डित जी काहे शर्मा रहे हो हम लोंगो को दुनियां  चाहे जो भी समझे कितना भी अपमानित करे हम लोग दुनियां की खुशियों में ही आशीर्वाद की बधाई देने आते जाते है किसी भी अपसगुन के अवसर पर नही जाते ये हमारा वसूल है अब आप बच्चे को बाहर लाते है या हम ही लोग बच्चे के पास जाए पंडित जी ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर किन्नरों ने पण्डिय जी की एक भी बात न सुनी और सीधे अनिता के पास पहुंच कर नवजात को अपने गोद मे बिठा कर बधाई गाने लगे और पण्डित जी से न्यौछावर की मांग करने लगे तभी किन्नरों के दल की एक सदस्य नीलम ने कहा सुरैया देख तो ले पंडित जी के घर लड़का भवा है या लड़की सुरैया ने तत्काल बच्चे का निरीक्षण कर बताया कि यह तक ना लड़का है ना लड़की यह तक अपनी बिरादरी का है नीलम बोली तब पंडित जी से बधाई क्या लेना ये तो अपने ही परिवार में आया है पंडित जी से बधाई में यही बच्चा मांग लेते है इसे नाचना गाना सिखाएंगे जब हम लोंगन का हाथ पैर थक जाएगा तब ये कमाके खिलायेगा।पंडित जी को जैसे सांप सूंघ गया क्या करे क्या ना करे उनके समझ मे कुछ भी नही आ रहा था किन्नरों और पण्डित जी मे बात विबाद चल रहा था कि बात पूरे गांव में फैल गयी और गांव के लोग किन्नरों का कौतूहल देखने के लिये पण्डित जी के दरवाजे पर एकत्र हो गए पंडित जी किन्नरों से बार बार कहते कि आप लोग अपनी बधाई लो और जाओ मगर सारे किन्नर जिद्द पर आड़े थे कि बढ़ाई में कोई रुपया पैसा नही लेंगे अगर लेंगे तो पण्डित जी का बच्चा ही लेंगे गांव वालों को जब सच्चाई की जानकारी हुई तब सारे गांव वाले पंडित जी के साथ खड़े हो गए  और पंडित जी की बातों का समर्थन करने लगे किन्नरों ने जब देखा कि पूरा गांव पण्डित जी के लिये मरने मारने के लिये खड़ा है तो जाते जाते कहने लगे कि ठिक है पंडित जी आज तो हम लोग जा रहे है लेकिन यह बच्चा हम लोंगो की अमानत है जितने दिन भी इसकी परवरिस आपको नसीब है कर लो यह बच्चा हमारे ही कुनबे की अमानत संमझ कर संभालना किन्नर पंडित जी को चेतावनी धमकी देकर चले गए  पंडित जी का मन किसी अनहोनी आशंका से विचलित होने लगा गांव वालों ने पंडित जी को बहुत ढाढस बधाया मगर मंडित जी की आत्मा को चैन नही था।पंडित जी ने बड़े बिधि विधान से बच्चे के प्रत्येक सांस्कार को सम्पन्न कराया और प्यर से उसका नाम मनोहर रखा पण्डित जी को सदैव याद रहता कि मनोहर सन्यासी के आशीर्वाद की धरोहर उनके पास है अतः मनोहर में सदैव उस सन्यासी का बचपन देखते जिसे उन्होंने कभी देखा नही था उंसे मनोहर के बचपन मे देख रहे थे।धीरे धीरे मनोहर पांच साल का हो चुका था पण्डित जी किन्नरों की धमकी को भी धीरे धीरे भूलने की कोशिश करते एकाएक एक दिन पंडित जी को किसी कार्य से अपनी बहन नीमा के घर जाना पड़ा पंडित जी किसी अनजान खतरे की डर से मनोहर को भी साथ लेते गए पंडित को लौटने में शाम हो गयी गांव के रास्ते अक्सर सूर्यास्त के बाद सुन सान हो जाते है सूर्यास्त होने के बाद जब सुनसान रास्ता शुरू हुआ कुछ देर बाद ही एक भयंकर आवाज पंडित जी के कानों में पड़ी पंडित जी हमारी अमानत को कब तक पालोगे पंडित जी ने देखा कि किन्नरों का दल
जिसका नेतृत्व सुरैया कर रही थी उनको घेर कर खड़ा हो गया पण्डित जी के मुख से घबराहट के मारे कोई
शब्द नही निकल पा रहे थे पंडित जी कुछ बोल पाते उससे पहले किन्नरों ने उन पर धावा बोल दिया और मनोहर को पण्डित जी के आगोश से छुड़ाने का प्रयास करने लगे मगर पंडित जी दो चार पर अकेले ही भारी थे तब जब किन्नरों ने मनोहर को पंडित जी से नही छीन पाए  तब पंडित जी पर डंडों से वार करना शुरू कर दिया फिर भी पण्डित जी ने मनोहर पर आंच नही आने दी जबकि स्वयं खून से लथपथ थे किन्नरों को लगा कि इतनी आसानी से पंडित से मनोहर को नही झीना जा सकता है तब सारे किन्नरों ने पंडित जी को पेट मे छुरा भोंक दिया पंडित जी जमीन पर तड़फड़ाने लगे मगर फिर भी मनोहर को उन्होंने नही छोड़ा किन्नरों ने आस पास से सूखी खास जिसे किन्नरों ने पहले से एकत्र कर रखी थी उसमें आग लगा कर पंडित जी पर डाल दिया अब पंडित जी का सब्र जबाब दे गया लेकिन उन्होंने तब भी मनोहर को अपने गले लगाए रखा जब मनोहर के जिस्म में आग के गर्मी की ज्वाला लगी तो वह स्वयं पण्डित से अलग हुआ ज्यो ही मनोहर पण्डित जी के आगोश से बाहर हुआ सुरैया ने उसे गोद मे उठा लिया और सब किन्नर उसके साथ भागने लगे पण्डित जी ने जो जीवन मृत्यु से स्वयं संघर्ष कर रहे थे जब मनोहर को किन्नरों द्वारा ले जाते देखा तो उन्होनें उस सन्यासी को पुकारते हुए जिसके आशीर्वाद से मनोहर पैदा हुआ था चिल्लाने लगे आपने मुझे कैसा आशीर्वाद दे दिया जो मेरे एव मेरे परिवार के लिये घातक
और खतरनाक है यह तो किसी श्राप से भी बदतर है अब आप ही अपने आशीर्वाद की रक्षा करे इतना कहने के बाद पण्डित जी अचेत हो गए आग तेजी से जल रही थी पंडित जी जलती आग में झुलस रहे थे मगर उनमें इतनी शक्ति नही थी कि अपनी रक्षा कर सके पता नही कब आग बुझी पंडित जी आब अध जले शव की तरह पड़े थे रात समाप्त हो चुकी थी सूर्य की किरणें अपनी नई ऊर्जा के साथ नव प्रभात का शुरुआत कर चुकी थी रास्तो की वीरानियाँ समाप्त हो चुकी थी एका एक गुजरने वाले मुसाफिरों ने देखा कि अधजला शव पड़ा हुआ है पहले तो उनको विश्वास नही हो रहा  था कि यहाँ कौन सा श्मशान है कि अध जला शव यहाँ पडा हुआ है नजदीक जाकर देखा झुलसा जला घायल एक आदमी जो जिंदा है जीवन की आशा में चिल्लाने की कोशिशें तो कर रहा है मगर आवाज नही निकल पा रही है मांसाहारी पंक्षी जानवर जैसे गिद्ध आदि पंडित के ऊपर आस पास मंडरा रहे है।आने जाने वाले मुसाफिरों ने देखा कि पड़ा हुआ व्यक्ति मुर्दा नही बल्कि जिंदा है जल्दी जल्दी उठाकर उंसे पास के गांव ले गए जो कोस की दूरी पर था गांव वाले बिना बिलम्ब किये बैलगाड़ी से नजदीक अस्पताल पहुंचे इतनी ततपरता के बावजूद पँडित परमात्मा को अस्पताल पहुचने में दिन के लगभग तीन बजे चुके थे जब चिकित्सको ने पण्डित जी को  देखा तो इलाज करने से ही इनकार कर दिया मुसाफिरों और गांव वाले जो पंडित जी को जानते तक नही थे उनके बहुत अनुनय विनय पर चिकितको ने चिकित्सा इस आधार पर शुरू की बच गए तो भगवान की कृपा नही बचे तो ईश्वर की मर्जी इधर इलाज शुरू हो गया पंडित जी की पत्नी अनीता ने सोचा कि बहन के घर गए है रुक गए होंगे मगर लगभग एक सप्ताह बाद पंडित जी नही लौटे तब चिंतित होने लगी और पंडित जी के अभिन्न मित्र कृपा शंकर को बुलाया और पंडित जी के बहन के घर भेजा।
कृपा शंकर ने लौट कर बताया कि पण्डित जी तो उसी दिन शाम लोटे रहे थे  जिस दिन गए थे रास्ते की अनहोनी विस्तार से बताया और अनिता को अस्पताल लेकर गए जहाँ
पंडित परमात्मा की चिकिसा चल रही थी अनिता के आने के बाद गांव वाले चले गए।
सुरैया एव अन्य किन्नर जब मनोहर को लेकर अपने अड्डे पहुंचे मनोहर बड़ी करुण पुकार कभी माँ अनिता की करता कभी पिता की पुकार करता क्योकि मनोहर अनिता और परमात्मा के अतिरिक्त किसी को नही पहचानता था मगर किन्नरों में ना तो कोई वात्सल्य भाव था ना ही कोई दया उन्होंने तो मनोहर को व्यवसायिक दृष्टि और अपने निहित स्वार्थ में  अपहृत किया था मनोहर के चीखने चिल्लाने का कोई असर नही था वे निरंतर जल्लाद की तरह मनोहर पर मानसिक दबाव बना रहे थे लेकिन अबोध मनोहर पर कोई असर नही हो रहा था वह निरंतर रोता रहता और अपने माँ बाप को याद करता खाना पीना छोड़ दिया लाख डर भय शाम दाम दंड का उसके बाल हठ पर कोई
असर नही हो रहा था। तब किन्नरों ने मनोहर को एक कमरे बंद कर दिया और अब क्रूरता की हद करने लगे एक तो लगभग दस दिन से मनोहर ने कुछ खाया पिया नही था बावजूद किन्नरों ने मनोहर को लोहे की गर्म सुर्ख लाल सलाखों से उसके गुप्तांगों को बुरी तरह जला  दिया कुछ घंटों के लिये मनोहर अचेत सुध बुध खोया पड़ा रहा फिर उंसे होश आया तो चीखने चिल्लाने लगा अब उसके आवाज में पीड़ा वेदना का वह स्वर था कि भगवान भी कांप गया अब किन्नरों के
लिये और आफत का पहाड़ खड़ा हो गया सुरैया बहुत घबड़ा गयी मगर अब भी उसके मन मे लाकच और नज़रों में
क्रूरता का वहशियाना अंदाज़ था बार बार वह चाहता कि मनोहर को फिलहाल चुप कराया जाय  उसने तुरंत मनोहर के आंखों में लाल मिर्च पीसकर डाल दिया और फिर उसे सुकून  नही मिला उसने सुर्ख सलाखों से मनोहर के सारे बदन को दाग दिया मनोहर फिर बेसुध अचेत हो गया और  जब किन्नरों को लगा कि या तो यह मर जायेगा या तो कम से कम दो दिन तक इसे चेतना नही आयेगी अगर मर गया तो इसे जूते चप्पल मारते नदी में फेंक देगे ऐसी मान्यता है कि किन्नर जब किन्नर मरता है तो उसे जूते चप्पलों से पीटते उसका अंतिम सांस्कार करते है ताकि उसे पुनः दुनियां में किन्नर का जन्म ना मिले यदि मनोहर बच गया तो कितने दिन नही टूटेगा जबसे मनोहर को लेकर किन्नर आये थे किसी धंधे पर नही गए थे सुरैया ने बीड़ी की लंबी कस छोड़ी और बीड़ी के खाली पैकेट मनोहर के पास फेंक कर कमरा बन्द किया और सारे किन्नर धंधे पर निकल पड़े किन्नर दल धंधे के चक्कर मे बहुत दूर निकल गया जहां से लौटना दिन भर में किसी तरह असंभव था इधर शाम को मनोहर को होश आया तो उसकी निगाह सबसे पहले सुरैया के फेके बीड़ी के खोखे पर गयी जिस पर भगवान शंकर की छवि बनी थी वह एक टक भगवान शंकर की छवि को देखता हुआ फिर करुण रुदन करने लगा लगभग रात्रि के बारह बजे दो तीन सन्यासियों का दल उधर से गुजर रहा था उन्होंने करुण रुदन किसी बालक की सुनी तो रुक कर अंदाज़ लगाने लगाने लगे कि आवाज किधर से कहाँ से आ रही है जल्दी ही उन्होंने पता कर लिया कि आवाज सामने बन्द कमरे से आ रही है तीनो सन्यासी  उस मकान के कमरे के सामने गए और किन्नरों के बुजुर्ग मुखिया से कमरा खोलने का संत आग्रह किया किन्नरों का बुजुर्ग मुखिया सुगना ने पुरज़ोर विरोध किया और टांगी उठा कर सन्यासियों  पर आक्रमण कर दिया एक सन्यासी घायल हो गए अब सन्यासियों ने संत परम्परा को त्याग कर  हर हर महादेव जय भवानी बोलते सुगना पर एक साथ धावा बोल दिया चूंकि किन्नरों की बस्ती अमूमन नगर मोहल्लों से दूर होती है और मध्य रात्रि का सन्नाटा अतः सुगना और सन्यासियों के मध्य भयानक भयंकर तकरार मारपीट को भगवान के सिवा कोई नही देख रहा था थोड़ी ही  देर में
तीनो सन्यासियों ने सुगना को मार मार कर अचेत कर दिया और अपने चिमटे से बंद कमरे का ताला तोड़ दिया कमरे के अंदर दाखिल हुए वहाँ का दृश्य देखकर उनके होश उड़ गए जमीन पर पड़ा मनोहर बीड़ी पर भगवान शिव की छवि को एक टक देखता करुण कराह से जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा था उसकी सांस अब तब छूटने ही वाली थी तुरन्त एक सन्यासी ने मनोहर को गोद मे उठाया और तीनों सन्यासी बाहर निकले और चले गए कहा गए ना किसी ने देखा ना किसी को पता नही चला जब दूसरे दिन किन्नर अपने धंधे से लौटे देखा कि सुगना बेहोश पडा है और कमरा खुला मनोहर गायब है किन्नरों का माथा ठनका उनको यह तो कत्तई विश्वास  था कि पंडित परमात्मा तो मनोहर को ले जाने के लिए परमेश्वर के दरबार से नही आये  होंगे क्योंकि उतने घातक प्राण घातक मार और आग में झुलस कर निश्चय ही जिंदा नही होंगे फिर मनोहर को ले कौन गया किन्नरों ने किसी तरह से सुगना को अस्पताल लेकर गए जहां उसे होश आया होश आने और थोड़ा सहज होने पर उसने बताया कि तीन सन्यासि आये और कभी जद्दोजहद करने के बाद भी मनोहर को छुड़ा कर ले गए कहाँ ले गए पता नही सुरैया ने अपने कुछ किन्नरों को साथ छोड़कर कुछ साथियों को साथ लेकर मनोहर की तलाश में निकल पड़े दिन भर मंदिर 
मंदिर तलाश करने के बाद मनोहर का
तो कोई बात नही किसी सन्यासी का कोई पता नही चला शाम को मायूस सुरैया लौटी सुगना के हालत में सुधार
हो रहा था अब प्रतिदिन सुरैया अपने साथियों के साथ मनोहर को खोजने जाती और हर शाम निराश होकर लौट आती बहुत प्रयास के बाद भी जब मनोहर का कही पता नही चला तब सुरैया ने किन्नरों की महासभा बुलाई और उसमें मनोहर की कहानी आप बीती बताई मगर यह नही बताया कि 
उसने मंनोहर के पिता के साथ क्या किया सारे किन्नरों ने मनोहर को जमीन आसमान से खोज निकलने का बीड़ा उठाया सारे किन्नर अपने अपने दल बल के साथ मनोहर को खोजने का प्रयास करने लगे उधर पंडित परमात्मा की हालत में उतार चढ़ाव का नियमित सिलसिला जारी था एक महीने का समय बीत चुका था पंडित परमात्मा की हालत स्थिर नही हो रही थी चिकित्सको के दल को भी निराशा होने लगी । इधर तीनो सन्यासी जिसमे स्वामी गंभीरा नंद जी महाराज घायल थे शेष दो स्वामी निरंजन जी एव स्वामी अखंडानंद जी लगभग मरणासन्न मनोहर को एक गुफा में जहाँ  शंकर भगवान का प्राचीन मंदिर था पहुंचे जहां किसी भी प्राणि का पहुँच पाना सम्भव नही था वहाँ पहुंचकर उन्होंने मनोहर और स्वामी गंभीरा नंद की जंगली जड़ी बूटियों से
इलाज शुरू किया जितनी भी कोशिश
उस निर्जन स्थान पर की जा सकती थी सन्यासियों ने की लगभग पन्द्रह दिनों की कठिन परिश्रम के बाद मनोहर को होश आया और स्वामी गंभीरा नंद विल्कुल भला चंगा हो चुके थे अब संन्यासीयो को विश्वास हो चुका था कि जिस बालक को वे साथ लाये थे वह स्वस्थ हो जाएगा उन्होंने पूरे ईश्वरीय आस्था से बालक का गहन उपचार जारी रखा लगभग छ महीने बाद मनोहर भी जंगा हो गया
अब सन्यासियों ने मनोहर को स्वामी
बालक नाथ नाम देकर उसी संबोधन से बुलाते मनोहर को भी इतनी क्रूरता की यातना से सन्यासियों का स्नेह भाने लगी और वह भी मगन होकर
भगवत भजन करता उसका मन भी लगता ।सुरैया प्रतिदिन जहाँ भी जाती  मनोहर के विषय मे अपने तौर तरीके से पता करती मगर मनोहर का कही पता नही चलता उधर सन्यासियों ने मनोहर को साथ लेकर हरिद्वार नासिक उज्जैन आदि अनेको तीर्थ स्थलो का दर्शन कराया मनोहर का बाल मन उस क्रूर काल को भूलने लगा और उसका मन सन्यासियों की संगत में रमने लगा सन्यासी लोग जब भी फुर्सत पाते मनोहर को संस्कृत व्याकर्ण धर्म शत्रो का अध्ययन कराते 
जिसमे बालक राम मनोहर का मन खूब लगता धीरे धीरे समय बीतने लगा
उधर पंडित परमात्मा को अस्पताल में ईलाज होते एक वर्ष से अधिक हो चुका था लेकिन कोई खास फायदा नही था पण्डित परमात्मा ब्रेन डेड की स्तिथि में थे लेकिन उस वक्त चिकित्सा विज्ञान आज की तरह विकसित नही था अतः कोई इलाज संभव नही था एकाएक चिकित्सा कर रहे चिकितक
डॉ शोभन थॉमस को लगा कि क्यो न 
परमात्मा को इमोशनल ट्रीटमेंट दिया जाय एकाएक सुबह डा शोभन थॉमस
उठे और सीधे पंडित परमात्मा के पास पहूँचे और बेड के पास बैठकर एका एक बोले परमात्मा जी उठिए देखिये कौन आया है जल्दी उठिए आपकी इकलौती औलाद आपसे मिलने आई  है इसी बात को डा थॉमस ने पहले धीरे धीरे फिर बाद में जोर जोर से दोहराने लगे उन्होंने देखा कि पण्डित परमात्मा के निर्जीव शरीर मे हरकत हो रही है डा थॉमस और तेज उसी बात को दोहराते रहे एकाएक पण्डित
परमात्मा को होश आ गया और होश आते ही उन्होंने पूछा मनोहर कहा है 
डॉ थॉमस ने कहा कि पँडिन जी धीरज रखिये मनोहर भी आ जायेगा डा थॉमस का प्रयोग कारगर हुआ और पंडित परमात्मा के स्वस्थ में तेजी से सुधार होने लगा जब पंडित परमात्मा पूरी तरह से संजीदा और होश में रहने लगे तो डॉ थॉमस ने पुलिस को सूचना
दी जिसे परमात्मा के अस्पताल में भर्ती होने से पूर्व भी सूचित किया गया था थोड़ी ही देर में दारोगा विश्वेन्द्र सिंह आ गए और उन्होंने पंडित परमात्मा की पूरी कहानी सुनी सुनकर उनके आंखों में आंसू भर आये लेकिन  भारतीय दण्ड संघीता में इस प्रकार के अपराध जिसमे किन्नर शामिल हो पर कोई धारा दफा नही थी फिर भी दारोगा विश्वेन्द्र सिंह ने पण्डित परमात्मा को आश्वस्त किया कि जो सम्भव होगा करेंगे ।पंडित परमात्मा लवभग चौदह माह चिकित्सा के बाद घर वापस लौटे उनकी पत्नी अनिता को कुछ औलाद पति दोनों के खोने की विपात्ति से एक तरफ से निश्चिन्ता हुई घर आने के बाद पंडित जी की पत्नी ने खूब सेवा की और जल्द ही पंडित जी पहले की तरह स्वस्थ हो गए पंडित जी ने गांव वालों को बुलाकर आप बीती सुनाई गांव वालों ने एक स्वर में पंडित जी के साथ संकल्प लिया कि मनोहर को किसी प्रकार ढूंढ निकालेंगे अब पण्डित परमात्मा के साथ पूरे गांव के लोग जहां भी जाते सुरैया का हवाला देकर उसके विषय मे पूछते इधर दारोगा विश्वेन्द्र भी  अपने स्तर से तहकीकात में जुट गए यह बात जब सुरैया के कानों में पड़ी तो वह पूरी मंडली लेकर मध्यप्रदेश होते हुए महाराष्ट्र चली गयी गांव वाले और पंडित परमात्मा निरंतर सुरैया की खोज करते रहे मगर कुछ पता नही चल रहा था धीरे धीरे लगभग दो वर्ष का समय बीत चुका था दारोगा विश्वेन्द्र का स्थानांतरण दूसरे थाना हो गया मगर ना तो सुरैया का कोई सुराग मिल रहा था ना ही मनोहर का कुछ पता चल रहा था उधर सन्यासियों के मध्य मनोहर को लगभग तीन वर्ष हो गए थे इतने दिनों में इसने गीता रामायण आदि धर्म ग्रंथो का गम्भीरता से अध्ययन कर लिया था संस्कृति व्यकर्ण आदि का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया था जहाँ भी मनोहर सन्यासियों के साथ जाता वहाँ उनकी प्रतिष्ठा अपने आचरण ज्ञान और योग्यता से बढ़ाता महज़ आठ साल की अवस्था मे उंसे लगभग सम्पूर्ण ज्ञान हो गया था एक दिन स्वामी गंभीरा नंद ने कहा अब इस बालक का हम लोंगो के सानिध्य का समय पूर्ण हुआ अब इसे जगत में अपना कार्य पूरा करना होगा चलो हम लोग इसके जन्मदाता माँ बाप की खोज करते है लेकिन कहां गंभीरा नंद जी ने कहा कि हवा के विपरीत दिशा चलना होगा सन्यासी गंभीरा नंद जी मनोहर एव साथियों के साथ पूरब दिशा को चल दिये दिन भर गांव गांव घूमते जो मील जाता उंसे शाम को मनोहर के साथ ग्रहण करते मनोहर सन्यासियों के साथ रहते पाक कला में भी निपुण हो चुका था समय बीतते देर नही लगती एक वर्ष से ऊपर का समय मनोहर को सन्यासियों के साथ घूमते फिरते बीत चुके थे।पंडित परमात्मा और अनिता गांव वालों के साथ मनोहर के मिलने की अपेक्षा छोड़ चुके थे शिव रात्रि का दिन था पंडित जी ने भगवान की पूजा अर्चना करने के उपरांत अश्रुपूरित नेत्रों से दोनों हाथ जोड़कर शिव लिंग के समक्ष खड़े होकर करुण पुकार करते बोले है औघड़ दानी भूत भाँवर विश्वेशर शिव शम्भू भोले शंकर आप काल महाकाल  त्रिलोक के सुख दुख के दाता है आपने भी मुझे निःसंतानी के कलंक से मुक्त करते अपना ही अर्धनारीश्वर रूप औलाद के रूप में दिया मैन उंसे आपका आशीर्वाद मानकर बड़े लाड प्यार से पांच वर्ष तक पाला उंसे बचाने के लिये स्वयं मौत को चुना मौत मुझे छूकर चली गयी सारे यत्न करने के उपरांत मनोहर को बचा नही पाया और किन्नर उसको पता नही किस हाल में कहा रखे होंगे आप उसकी रक्षा करना प्रार्थना करने के बाद पण्डित परमात्मा गांव के उसी पुराने बरगद के बृक्ष के नीचे बैठ गए धूप नही थी बौछारें और हल्की बारिस रुक रुक कर हो रही थी पण्डित परमात्मा अतीत की यादों में खोए हुये थे तभी तीन सन्यासी सामने आकर रुके उनके पीछे मनोहर था स्वामी गंभीरा नंद जी बोले किस बात की चिंता करते हो तुम्हारा मनोहर साथ लाये हैं पंडित जी को जैसे भगवान मिल गए तब तक मनोहर पँडित परमात्मा के चरण पकड़कर रोने लगा परमात्मा की आंखों से जैसे अश्रु की गंगा जमुना बह पड़ी पिता पुत्र के इस मिलन को देख बैरागी सन्यासियों का भी मन करुणा से भर गया फिर स्वामी गंभीरा नंद जी ने पंडित परमात्मा से कहा आज हम सभी आपके यहाँ विश्राम करेंगे और सुबह चले जायेंगे मनोहर के लौटने को बात पूरे गांव में आग की तरह बात फैल गयी  जैसे सबके मन का आकर्षण आ गया हो पूरा गाँव उस पुराने बट बृक्ष के नीचे एकत्र होकर सन्यासियों के प्रति कृतज्ञता से नतमस्तक होकर कृतज्ञता आभार व्यक्त करने लगा।पंडित परमात्मा ने सन्यासियों का आतिथ्य सत्कार पाकर अपने भाग्य कर्म ईश्वर  के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की पत्नी अनिता से कहा आज हमारे भाग्य है जो स्वयं भगवान भोले नाथ सन्यासियों के वेश में पधारे है इनको कही से ये न लगे कि हमारी सेवा में कोई त्रुटि या कमी रह गयी अनिता ने भी बड़ी सावधानी श्रद्धा से सन्यासियों के लिये भोजन  आदि की व्यवस्था की सन्यासियों के भोजन के उपरांत जब  सोने के लिये गए तब पंडित परमात्मा मनोहर एव अनिता ने उनके पांव दबाना शुरू किया सन्यासियों के आदेश पर ही मनोहर अनिता एव पण्डित परमात्मा सोने के लिये गए सुबह हुई तब सन्यासी उठे दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर साधना ध्यान आदि नियमित पूजा की उसके बाद उन्होंने अनिता और पंडित परमात्मा के साथ मनोहर को बुलाया तीनो एक साथ उपस्थित हुये तब स्वामी गंभीरा नंद जी महाराज बोले देखो पंडित जी एक बार भगवान भोले नाथ स्वयं अर्ध नारीश्वर स्वरूप मनोहर को अनिता के कोख में दे गए थे अब पुनः उसकी रक्षा का माध्यम हम सन्यासियों को बनाया वैसे तो इस पर कोई आंच आएगी नही फिर भी अगर कोई बात आती है तो भगवान शिव का ध्यान करिएगा  आपकी परेशानी तुरंत दूर हो जाएगी ।इतना कह कर तीनो सन्यासी उठे और चल दिये लाख अनुनय विनय करने पर भी नही रुके ।मसनोहर को सन्यासियों के बिछड़ने की पीड़ा बर्दास्त नही हो पा रही थी। सन्यासियों ने मनोहर की शिक्षा के दौरान समाज संसार जीवन मृत्यु मोह संबंधों के संबंध में शिक्षित किया था जो मनोहर के बाल मन पर पत्थर की लकीर की तरह छा गयी थी अतः समूर्ण दुख पीड़ा से बाहर निकल कर  वह अपने जीवन के उद्देश्य पथ पर निकल पड़ा पंडित परमात्मा ने मनोहर की शिक्षा के लिये लगभग सभी विद्यालयों के दरवाजों को खटखटाया मगर किसी ने भी प्रवेश देने से इनकार यह कह कर दिया कि मनोहर के आने से विदयलय का वातावरण दुषित हो सकता है अतः प्रवेश असम्भव है हार थक कर पंडित परमात्मा ने मनोहर को स्वयं मार्ग दर्शन में शिक्षा देना शुरू किया सारी पुस्तके विषयनुक्रम और सलेबस के अनुसार खरीद कर लाते और मनोहर उन्हें स्वयं पड़ता संसय का हल खोजता  और व्यक्तिगत परीक्षा देता इसी प्रकार समय बीतता गया मनोहर ने आयुर्वेद साहित्य व्याकर्ण गणित ज्योतिष आदि में उच्च योग्यता हासिल कर ली और संबंधित परीक्षाएं उत्तिर्ण कर ली  शिक्षा उपाधि प्राप्त करने के बाद मनोहर ने पाँच वर्ष तक स्वयं अध्ययन से विषया गत परिपक्वता हासिल किया और गांव के बाहर बरगद बृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना किया गांव वालों ने मिल कर खूबसूरत भगवान शंकर का मंदिर बनवा दिया जहाँ सुबह शाम दोपहर जब जिसको समय मिलता मंदिर पर आता मनोहर से आध्यात्मिक सानिध्य प्राप्त करता मसनोहर ने आयुर्वेद नृत्य गायन आदि कला में दक्षता हासिल की थी अतः गांव की कन्याओं को नृत्य गायन कला सिखाता कोई लड़का भी सीखना चाहता उंसे भी सिखाता गांव के बच्चों को पढ़ाता कोई बीमार होता तो उसको अपने पास रख कर इलाज करता धीरे धीरे मनोहर की ख्याति दूर दूर तक फैल गयी आस पास के बच्चे बच्चियां उसके पास अध्ययन करने आते नवयुवकों के लिये जीवन उपलब्धि नामक सत्र चलाता देश के विभिन्न भागों से जिनको चिकितको द्वारा इलाज से इनकार कर दिया जाता वे मरीज आते मनोहर की कीर्ति इस प्रकार देश के कोने कोने फैल गयी। इधर सुरैया का दल महाराष्ट्र में बहुत दिनों से घूमता फिरता ऊब चुका था और आय भी नही होती सुरैया बीमार रहने लगी और लाख इलाज के  बाद चिकित्सको ने जबाब दे दिया कि अब भगवान ही कोई चमत्कार  कर सकता हैं सुरैया ने कहा कि मरना ही है तो अपने देश ही मरेंगे सुरैया के दल के सभी सदस्य सुरैया को लेकर लौट आये और उसके मरने का इंतजार करने लगे चूंकि किन्नरों के ठौर कभी एक जगह नही होता है सुरैया के साथी भी रोज धंधे पर निकलते कही से उनको पता चला कि मनोहर नाम के कोई जाग्रत संत है वहाँ सुरैया को ले जाने पर वह निश्चित ठिक हो जाएगी सुरैया के साथी उसको लेकर मनोहर के पास गए जहाँ गांव वाले और बुजुर्ग हो  चुके पंडित परमात्मा भी मौजूद थे जब गांव वालों एव परमात्मा ने देखा कि सुरैया के साथी सुरैया को मरणासन्न ले कर आये है सभी ने कहा मारो मारो जब यह आवाज़ सुरैया के कानों में पड़ी तो उसने अपने साथियों से कहा मुझे गांव वालों एव परमात्मा के समक्ष ले चलो उसके साथी उसको लेकर वहाँ गए सुरैया ने बड़े करुणा भाव से कहा मैं आप लोंगो की अपराधी हूँ आप लोग मुझे मार डाले मेरे अपराध का दंड भी पूरा हो जाएगा और मुझे भयंकर भयानक बीमारी की पीड़ा से मुक्ति भी
इतने में भीड़ को चीरता हुआ मनोहर सुरैया के सामने पहुँचा और बोला यह तो स्वयं मरणासन्न है इसे मारने से क्या फायदा इसे मंदिर पर ले चलिये इसका इलाज हम करेंगे सुरैय्या को लेकर उसके साथी मंदिर पर गए मनोहर ने उनका इलाज शुरू किया लगभग एक माह की चिकित्सा के बाद सुरैया को फायदा होना शुरू हो गया लगभग छः माह बाद सुरैया विल्कुल स्वस्थ हो गया अब सुरैया किन्नरों के कार्य से विरत मंदिर में सेवा करता और मनोहर के कार्यो में हाथ बताता उसके सभी साथी भी उसी के रास्ते पर चल पड़े।एक दिन एका एक भोर में उठा देखा कि मंदिर की सीढ़ियों पर नवजात शिशु के रोने की आवाज़ आ रही है तब उसने मनोहर को जगाया मनोहर ने उस बालक को देखा वह किसी  तेजश्वी की तरह लग रहा था पौ फटा सुबह हुई गांव के लोग एकत्र हुए उस अदभुत बालक को गांव वालों ने एक स्वर में कहा यह भगवान की तरफ से मनोहर को पुरस्कार है जो पंडित पमात्मा के खानदान को रोशन करेगा क्योंकि वह बच्चा लड़का था पंडित परमात्मा के परिवार एव गांव की खुशी की लहर दौड़ गयी सुरैया और उसके साथी एक स्वर में बोल उठे की हम लोंगो ने किन्नर का कार्य छोड़ दिया है मनोहर की संगत में मगर आज हम लोग पंडित परमात्मा के वारिस के लिये बड़ाई गाएंगे झट सुरैया ने अबोध बालक को गोद मे उठा लिया और सारे साथी घंटो नाचते गाते उस बालक को अनिता के गोद मे देते हुये बोले आज भी हम बधाई नही लेंगे क्योकि बधाई में हम लोंगो ने मनोहर मांगा था जो मिल गया जिसने जलालत अपमान के जीवन मे सूरज की रोशनी दिखाकर हम किन्नरों को नया जीवन दिया है पंडित जी आप धन्य हो जिसे मनोहर जैसा ईश्वर का अर्धनारीश्वर संतान मिली जिसने ईश्वरीय विधान में दोष देखने वालों का मान मर्दन कर दिया अब हम लोग बधाई में आपको आपकी पीढ़ी सौंपते है और इसके सलामती के लिये ईश्वर से प्रार्थना करते है पूरे गांव आस पास के गांवों में उल्लास उत्साह का माहौल था मनोहर की ख्याति उपलब्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही थी।

कहानीकार ---नंदलाल मणि त्रिपाठी पितम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

          -----काबा जाए कि काशी--------           


पंडित धर्मराज के तीन बेटे हिमाशु ,देवांशु ,प्रियांशु थे तीनो भाईयों में आपसी प्यार और तालमेल था पूरे गाँव वाले पंडित जी के बेटो के गुणों संस्कारो का बखान करते नहीं थकते पंडित जी के पास एक अदद झोपडी कि तरह घर था खेती बारी भी नहीं थी पंडित जी के  परिवार कि परिवरिस आकाश बृत्ति से चलती थी पंडित जी के यजमानो के दान दक्षिणा से परिवार का भरण पोषण होता ।पंडित के बच्चे भी पंडित जी के पुश्तैनी कार्य में हाथ बटाते पंडित जी ने अपने बेटों को बचपन से ही पांडित्य कर्म कि शिक्षा दी थी पंडित धर्मराज जी कि गृहस्थी बड़े आराम से गुजर रही थी।पंडित जी के गांव में लगभग सौ परिवार मुस्लिम समाज का रहता था गांव का माहौल बहुत ही सौहादरपूर्ण था हिन्दू मुस्लिम सभी एक दूसरे के सुख दुःख में सम्मिलित होते आपस में क़ोई धार्मिक या जातीय भेद भाव नहीं था गाँव को लोग अमन चैन भाई  चारे के नजीर के रूप में मानते ।पंडित जी का भी परिवार इस गाव कि शान था आर्थिक सम्पन्नता बहुत अधिक नहीं थी फिर भी पंडित जी के रसूख में क़ोई कमी नहीं थी।धीरे धीरे समय बीतता गया पंडित जी के तीनों बच्चे जवान हो चुके थे बड़े बेटे हिमांशु का विवाह हो गया और परिवार में एक सदस्य संख्या बढ़ गयी आमदनी सिमित थी और खर्ज बढ़ गया देवांशु को परिवार कि आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा था सरकारी नौकरी तो मीलने वाली नहीं थी अतः उसने योग कि शिक्षा प्राप्त कि और पहले गाँव पर ही लोगो को इकठ्ठा कर योग शिविर लगाने लगा धीरे धीरे जब गांव वालों को योग से अनेको बीमारियों से लाभ हुआ और लोग स्वस्थ होने लगे तब हिमांशु की ख्याति एक दक्ष योग गुरु के रूप में होने लगी और आमदनी होने लगी  कुछ दिनों बाद हिमांशु को एक अवसर शहर में योग शिविर लगाने का प्राप्त हुआ संयोग से उस शिविर में पोलेंड के मिस्टर ट्राम अपने कुछ मित्रों के साथ आये थे वे सभी हिमासु के योग कला से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने हिमासु को पोलैंड आने का निमंत्रण दे दिया ।हिमांशु लगभग एक वर्ष बाद पोलेंड गया वहाँ उसे पोलेंड वासियों ने हाथो हाथ उठा लिया हिमांशु वहां दिन रात तरक्की कि सीड़ी चड़ता जा रहा था फिर उसने अपनी पत्नी को भी वहां बुला लिया और पूर्ण रूप से पोलेंड वासी हो गया।पंडित जी का दूसरा बेटा दिव्यांसु मुंबई में अंतरराष्ट्रीय बड़ी कंपनी में इज़्ज़त और रसूक के पद पर कार्यरत था वैसे तो पंडित जी के दो बेटो ने पंडित जी का नाम बहुत रौशन किया लेकिन दोनों बेटे दूर थे और क़ोई ख़ास आर्थिक मदद नहीं करते पंडित जी ने सोचा कि तीसरे बेटे को कही नहीं जाने देंगे और उसे पुश्तैनी कार्य पांडित्य कर्म में लगा देते है हिमांशु और देवांशु तो दूर न चुके थे अब पंडित धर्म राज और उनकी पत्नी सत्या और तीसरा बेटा प्रियांसु तक परिवार सिमट गया था प्रियांशु यजमानो के बुलावे पर उनके मांगलिक कार्य संपन्न करता दिन धीरे धीरे गुजर रहे थे कि एक दिन प्रियांसु शाम को किसी यजमान के यहाँ से लौट रहा था रास्ते में देखा कि बहुत ही खूबसूरत खोडसी सड़क के किनारे कराह रही थी प्रियांशु उसके नजदीक पंहुचा तो देखा कि लड़की के सर से खून का रिसाव हो रहा है प्रियांशु जल्दी जल्दी उसे अपने कंधे पर लादा अपनी सायकिल वही छोड़ दी और लगभग दो किलोमीटर पैदल चल कर प्राथमिक स्वस्थ केंद्र मोती चक ले गया जहा ड़ॉ तौकीस ने उसका तुरंत उपचार प्रारम्भ किया और पूरी रात निगरानी में रखने को कहा प्रियांशु तो आफत में फंस गया क्योकि उसके माँ बाप परेशान होंगे मरता क्या न करता वह मन मार कर उस अनजान लड़की कि देखभाल कर रहा था रात के लगभग बारह बजे रात को उस लड़की को होश आया तब प्रियांशु ने पूछा तुम्हारा नाम क्या है तरन्नुम लड़की ने बताया प्रियांशु ने पूछा किस गाँव कि रहने वाली हो लड़की ने बताया बंगाई प्रियांशु ने कहा बगाई तो मेरा गाव भी है मगर मैंने तुम्हे कभी नहीं देखा लड़की ने बताया वह मुसलमान हूँ और खलील कि बेटी हूँ इधर पंडित धर्मराज और सत्या प्रियांशु के घर न आने के कारण चिंतित थे सुबह के पांच बजने वाले थे डा तौकिश ने प्रियांशु से कहा अब आप इसे ले जा सकते है फिर डा तौकीस ने कहा बैसे आपकी ये लड़की क्या लगाती है जोड़ी खुदा के करम से बहुत शानदार खूबसूरत है खुदा तुम दोनों को सलामत  रखे प्रियंशु बिना कुछ बोले डा तौकीस का धन्यबाद ज्ञापित किया और तरन्नुम को साथ लेकर प्राथमिक स्वतः केंद्र से बाहर निकाला सौभाग्य से एक तांगा बंगाई गाँव जा रहा था प्रियांशु ने तरन्नुम को उस पर बैठा दिया और किराया देता बोला क़ि इन्हें छोड़ देना जहाँ से ये आसानी से घर पहुँच सके।प्रियांशु पैदल चला और जहाँ पिछले शाम अपनी सायकिल छोड़ कर गया था वहां पंहुचा वहां उसकी सयकील सुरक्षित पडी थी सायकिल लिया और घर चल पड़ा थोड़ी देर बाद घर पहुंचा तब माँ सत्या और पिता धर्मराज ने विलम्ब का कारण पूछा प्रियांशु ने बड़ी ईमानदारी से पूरी घटना बता दिया ।पंडित धर्मराज ने पूछा मुसलमान कि लड़की को छुआ तू अपवित्र हो गया है जा जल्दी से स्नान करो मैं पंचगव्य बनाता हु जिससे तुम पवित्र हो सकोगे प्रियांशु ने स्नान किया और पञ्च गव्य वैदिक रीती स ग्रहण कर पवित्र हुआ।
 प्रियांशु इस घटना को भूल चुका था
 लेकिन तरन्नुम प्रियांशु को नहीं भूल पायी वह कोइ न कोई बहाना खोज लेती और प्रियांशु को छेड़ती प्रियांशु तरन्नुम से दूर भगता क्योकि पिता धर्मराज का डर उसका पीछा नहीं छोड़ रहा था एक बार पंचगव्य से शुद्ध होकर दुबारा अशुद्ध नहीं होना चाहता था तरन्नुम कि शोखियों शरारते उसके मन को झकझोरती फिर भी वह दूरी बनाये रखता एक दिन तरन्नुम ने अपनी शरारतो में कह ही दिया पोंगा पंडित यह  बात प्रियांशु को ज्यादा संजीदा कर गयी अब वह तरन्नुम के शरारतो को निमंत्रित करता इसी तरह धीरे धीरे दोनों में प्यार हो गया और दोनों के प्यार कि बात गांव में घर  घर चर्चा का विषय बन गयी।जब इसकी जानकारी दोनों के परिवारो में हुई तो पूरे गाँव का माहौल तनाव पूर्ण हो गया और अमन प्यार का गांव नफ़रत के जंग का मैदान बन गया।
गाँव में एक तरफ हिन्दू और दूसरी तरफ मुसलमान आपस में कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे किन्तु कुछ हिन्दू विद्वानों और कुछ मुस्लिम विद्वानों ने सर्व सम्मति से यह निर्णय दिया कि प्रियांशु और तरन्नुम गांव छोड़कर चले जाय क्योकि पंडित धर्मराज के यजमानो का कहना था कि आपका बेटा धर्म भ्रष्ठ हो चुका है और उसे ब्राह्मण समाज में रहने का कोइ हक नहीं है उधर मुस्लिम समाज ने कहा तरन्नुम ने एक काफ़िर से मोहब्बत करने कि जरुरत कि है अतः उसे इस्लाम में रहने का हक नहीं है।
इसी बीच तरन्नुम ने प्रियांशु का हाथ पकड़ा और दोनों सम्प्रदाय के मध्य जाकर खड़ी शेरनी कि तरह दहाड़ मारती उसने अपने हाथ और प्रियांशु के हाथ कि हथेली पर चाक़ू से गहरा घाव बना दिया दोनों के हथेलियों से खून बहने लगा तब तरन्नुम ने दोनों सम्प्रदायो के लोगो से सवाल किया अब बताओ किसका खून इस्लाम का है किसका खून हिन्दू का है जब अल्लाह खुदा भगवान् ने सिर्फ इंसान बनाया तब तुम लोग कौमो और फिरको में बाँट कर नफरत क्यों फैलाते हो ।दोनों सम्प्रदाय के लोग आवाक रह गए फिर तरन्नुम ने ही सवाल किया बताओ हम दोनों कहाँ जाये काबा या काशी।
 दोनों ने एक दूसरे का हाथ थामा और गांव छोड़कर चले गए दोनों और मुम्बई पहुच गए तरन्नुम कपड़ो कि सिलाई करती और प्रियांशु मजदूरी करता खली समय में दोनों पड़ते कहते है न कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते है तो नई मंजिल कि उड़ान का रास्ता खुल जाता है करीब दस सालो के कठोर परिश्रम से तरन्नुम का चयन भारतीय प्रसाशनिक  सेवा में हुआ और प्रियांशु का भारतीय पुलिस सेवा में दोनों कि नियुक्ति उनके राज्य में ही  हुई ।आज उनके गॉव के हिन्दू मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग फक्र से कहते है तरन्नुम और प्रियांशु उनके गाव के अभिमान है।

कहानीकार- नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

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-----बिचित्र प्राणी बिशन-----


किशन सुबह ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठा और शाम के दिये बापू के आदेशों को याद कर बेचैन हो गया बापू ने शाम को किशन को समझाते हुए कहा था बेटा हम लोग गरीब है कोई रोजगार तो है नही सिर्फ थोड़ी बहुत खेती है जिसके कारण दो वक्त की रोटी मिल जाती है और खेती मेहनत श्रद्धा की कर्म पूजा मांगती है ।तुम्हारे ऊपर दोहरी जिम्मेदारी है एक तो एकलौते संतान होने के कारण खेती बारी में मेरा सहयोग करना और दूसरा मनोयोग से पढ़ना जिससे कि जो अभाव परेशानी मुझे अपने जीवन मे झेलनी पड़ी वह तुम्हे न उठानी पड़े मेरे पिता जी यानी तुम्हारे दादा जी ने मुझे अच्छी शिक्षा देने की अपनी क्षमता में पूरी कोशिश की मगर आठ जमात से अधिक  नही पढा सके जिसका उन्हें मरते दम तक मलाल था। मैं मजबूरी में पढ़ नही सका इसका मलाल मुझे मरते दम तक रहेगा किशन शाम को दी बापू  की नसीहत से खासा बैचैन था क्योंकि खेत मे प्याज की रोपाई  होनी थी और अभी खेत पूरी तरह तैयार नही था ।जल्दी जल्दी किशन उठा दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर माँ से गुड़ मांगा और गुड़ पानी पीकर फावड़ा लेकर खेत की तरफ चल दिया खेत पहुंच कर खेत की गुड़ाई का कार्य करने लगा और खेत के खास को निकाल एकत्र करता   जिसे अपनी गाय के लिए ले जाना था किशन अपने  कार्य को बड़ी एकाग्रता के साथ कर रहा था सुबह के लगभग साढ़े चार ही बजे थे गांव के एक्का दुक्का महिलाएं बाहर जाती दिख जाती कभी कभार गांव के अधेड़ बुजुर्ग भी दिखाई पड़ते किशन को आठ बजे घर पहुचकर स्कूल जाने की तैयारी करनी थी अतः वह बिना समय गंवाए पूरी तल्लीनता से अपने कार्य मे  मशगूल था तभी उसके सामने एक अजीब सा प्राणी नज़र आया किशन बिना ध्यान दिए अपना कार्य करता चला जा रहा था आज सोमवार था और तीन दिन बाद उसे बृहस्पतिवार को खेत मे प्याज़ के फसल की रोपाई करनी थी एकाएक वह अजीब सा दिखने  वाला प्राणि किशन के बिल्कुल सामने आ गया किशन खेत की गुड़ाई का कार्य रोक कर उस अजनवी की तरफ मुखातिब हुआ उसने देखा कि उस अजीब प्राणी की बनावट बड़ी विचित्र थी वह पृथ्वी के इंसानों से बिल्कुल भिन्न तो था ही किसी जानवर से भी मेल नही खा रहा था कुछ देर के लिये किशन सहमा और डरा भी मगर उस अजीब से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार दोस्ताना और प्यार भरा था अतः किशन ने उससे पूछा क्यो भाई आप कौन है और कहां के बिचित्र प्राणी है यहाँ पृथ्वी पर क्यो भटक रहे है किशन के इतने सारे प्रश्नों का मतलव वह विचित्र प्राणी नही समझ पा रहा था अतः उसने आकाश की तरफ इशारा करते बताया कि मैं वहां से आया हूँ किशन को लगा कि वह विचित्र प्राणी कह रहा हो कि वह भगवान के यहां से आया है किशन को उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी का व्यवहार बहुत अपनापन सा लग रहा था अतः किशन उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी से अपने दोस्त शुभचिंतक की तरह बात इशारों में करने लगा कुछ इशारों को वह संमझ पाता और कुछ इशारों को नही संमझ पाता यही दशा किशन की थी वह उस बिचित्र प्राणी के कुछ इशारों को संमझ पाता और कुछ को नही किशन और उस बिचित्र प्राणी के इशारों इशारों की बातों में सुबह कब पौ फ़टी सूर्योदय हो गया पता नही चला सुबह के लगभग आठ बजने ही वाले थे किशन खेत के गुड़ाई  का कार्य के उस दिन के निर्धारित लक्ष्य से बहुत पीछे उस बिचित्र प्राणी के चक्कर मे रह गया था। मगर उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी का अपनापन प्यार उसके मन मे लक्ष्य अधूरा रहने के मलाल को जन्म नही दे रहा था किशन को घर लौटना था वह असमंजस में था कि यदि उस विचीत्र से दिखने वाले प्राणी को अकेला छोड़ दिया तो गांव वाले उसे मार डालेंगे इशारों इशारों में उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने भी आशंका जाताई थी एकाएक किशन ने निश्चय किया कि वह उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को अपने साथ घर ले जाएगा और वह उस बिचित्र से दिखने वाले प्राणी को लेकर घर की ओर चल दिया घर चलने से पहले उसने  उसे अपने अंगौछे से ढक दिया रास्ते मे गांव वाले पूछते किशन ये क्या है किशन कहता कुछ नही यह मेरा दोस्त है किशन उस बिचित्र प्राणी को लेकर घर पहुंचा तो किशन के बापू अरदास बोले बेटा ये क्या है किशन ने बड़ी सहजता से जबाव दिया यह मेरा दोस्त  है किशन ने ज्यो ही उस बिचित्र प्राणी से अपना अंगौछे को हटाया किशन के बापू अरदास दंग रह गए बोले बेटा यह तुम्हारा दोस्त कैसे हो सकता है यह तो इस पृथ्वी के ना तो किसी जीव जंतु जैसा है ना ही आदमी जैसा तभी उस अजीब प्राणी ने बड़े ही आदर से झुक कर किशन के पिता अरदास के पैर छुए अरदास आश्चर्य से भौचक्के रह गए और उनका क्रोध समाप्त हो गया उन्होंने किशन से पूछा बेटा यह तुम्हे कहाँ मिला किशन ने अपने बापू से उस बिचित्र प्राणी से मुलाक़ात का पूरा व्योरा बताया और बोला बापू हम तो अभी स्कूल चले जायेंगे इस बिचित्र प्राणी का ख्याल रखना  और गांव वालों की नज़र  से बचाना अरदास बोले ठिक है बेटा लेकिन अपनी अम्मा को इससे मिला दो और उन्हें बता दो वह इसका बेहतर ख्याल रखेंगी किशन उस बिचित्र सा दिखने वाले प्राणी को लेकर ज्यो ही माँ मैना के पास गया उस बिचित्र प्राणी ने झट जा माँ मैन के पैर छूकर उनकी गोद मे बैठ गया कुछ देर के लिये तो माँ मैना डर के मारे सहम गई मगर उस बिचित्र प्राणी का प्यार भरा व्यवहार देखकर निडर होकर किशन से पूछा ये  क्या है बेटा किशन बोला माँ यह मेरा दोस्त  है जैसे माँ तू मेरा ख्याल रखती हो ठीक वैसा ही यह भी तुम्हारा खयाल रखेगा हमे स्कूल  जाना है देखना इस पर गांव वालों की नज़र ना पड़े माँ मैना बोली बेटा ठीक है तुम निश्चिन्त होकर स्कूल जाओ यह मेरे पास उसी प्रकार रहेगा जिस प्रकार तुम रहते हो किशन तैयार होकर स्कूल चला गया इधर वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणि माँ मैना के साथ घर पर माँ के हर काम मे हाथ बटाने लगा माँ बर्तन मज़ती वह शुरुआत ही  करती मगर सारा बर्तन थो देता कपड़ा साफ करना हो या खाना बनाना सभी कामो में माँ की आगे बढकर हाथ बटाता मैना को तो एक ही दिन में लगने लगा कि बिचित्र सा प्राणी उनका ही छोटा बेटा है।
एक ही दिन में बिचित्र सा दिखने वाला  प्राणी किशन के माँ बापू का दुलारा बन गया उसका व्यवहार इसांनो से अधिक संवेदनशील और व्यवहारिक था उसके  व्यवहार आचरण में औपचारिकता बिल्कुल नही थी  आभास ही नही होता था कि बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी किसी शिष्ट सभ्य समाज से ताल्लुक नही रखता सिर्फ फर्क था तो मात्र इतना कि वह कार्य सभी इंसानों वाला करता मगर कुछ भी खाता पिता नही सिर्फ वह चूल्हे की आंच के सामने कुछ देर बैठ कर ही तरोताज़ा ताकत ऊर्जा से भरपूर हो जाता उसके आचरण व्यवहार को देख किशन के पिता अरदास पत्नी मैन से बोले आज जब इंसानों के समाज  द्वेष ,घृणा, लालच, स्वार्थ में अंधे एक दूसरे की टांग खिंचते कभी कभी एक दूसरे के खून के प्यासे हो नैतिक मूल्यों मर्यादाओं का परिहास उड़ाते है ऐसे में यह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी पृथ्वी वासी मनुष्यों के लिये एक सिख देता मार्गदर्शक  है ।निश्चय ही मेरे किशन ने इस जन्म या पूर्व जन्म में कुछ अच्छे कर्म किये है जिसके कारण किशन की मुलाकात इस प्राणी से हुई मैना  भावुक होकर बोली जी मैं तो चाहती हूँ कि यह हमारे घर हमारा दूसरा बेटा बनकर रहे लेकिन पता नही क्यो डर लगता है कि कही यह हमें छोड़ कर चला न जाये जिसने सुबह से शाम केवल एक दिन में ही मर्यादा प्रेम और संस्कारों के भाव मे ऐसा बांध लिया है कि मुक्त होना कठिन है।शाम होने को आई किशन भी स्कूल से आ चुका था किशन के आते ही वह बिचित्र सा प्राणि किशन के साथ दूसरे भाई की तरह हो लिया किशन को इस बात पर बहुत आश्चर्य था कि अम्मा बापू पर इस अबोध अंजान बिचित्र से दिखने वाले प्राणी ने  कौन सा जादू कर दिया है कि वे लोग उससे ज्यादा प्यार और सम्मान उस प्राणी का कर रहे है रात को जब किशन जब पढ़ने बैठा तब वह बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी भी किशन के साथ बैठा और किशन को उसकी पढाई में सहयोग करता उलझे प्रश्नों का उत्तर बताता पढाई समाप्त करने के बाद किशन खाना खा कर सोने के लिये गया तो वह बिचित्र प्राणी भी साथ हो लिया सुबह किशन उठा तो वह विचित्र प्राणी भी साथ उठा वह कब सोया यह किशन को  मालूम नही हो सका किशन जल्दी से दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर गुड़ पानी पी कर खेत की गुड़ाई करने चल दिया साथ साथ वह विचित से प्राणी भी साथ चल पड़ा
जब किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था  तब विचित्र सा  दिखने वाले प्राणी ने फावड़ा किशन के हाथ से ले लिया और जैसे जैसे किशन खेत की गुड़ाई कर रहा था वह करने लगा और लगभग तीन घंटे में पूरे खेत की गुड़ाई कर दी किशन को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने उस विचित सा दिखने वाले प्राणी जिसकी लम्बाई साढ़े तीन फीट और बनावट अजीब सी थी को गले लगा लिया औऱ भावुक होकर बोला कि तुम अब विचित्र प्राणी नही तुम मेरे भाई बिशन हो वह विचित्र प्राणि यानी बिशन अब पृथ्वी वासियों की भाषा समझने लगा था और बोलने की कोशिश करता किशन और बिशन दोनों साथ घर की तरफ चल दिये घर पहुंचकर बापू अरदास को किशन ने बताया कि विचित्र प्राणि  को सभी लोग बिशन नाम से बुलाएंगे अरदास और मैना बिशन के आने से किशन के साथ बहुत खुश थे परिवार में एक ऐसा सदस्य जुड़ गया था जो सबका ख्याल रखता था उसकी अपनी जरूरते बहुत सीमित थी पूरे परिवार में उल्लास उत्साह और खुशी का माहौल बिशन के आने से बन गया था।बिशन को आये दो दिन ही हुये थे कि मेंहदी पुर गांव में कानो कान खुसर फुसर चल  रही थी कि अरदास के यहॉ एक बहुत खास और बिचित्र प्राणी पता नही कहां से आया  है किशन स्कूल जाते समय बापू से बोला बापू आज गांव के कुछ लोंगो ने बिशन को खेत मे मेरे साथ देखा है सम्भव है मेरे स्कूल जाने के बाद गांव के लोग आपसे बिशन के विषय मे जानकारी चाहे मगर बापू मेरी कसम आप किसी को कुछ मत बताना नही तो सब मिलकर हमारे बिशन को हमलोंगो से दूर कर देंगे अरदास बोले बेटा तुम निश्चित रहो मेरे होते हुये बिशन को कोई हमसे अलग नही कर सकता किशन निश्चिन्त होकर स्कूल चला गया जैसी की आशंका थी किशन के स्कूल जाने के कुछ ही देर बाद गांव वाले गांव के मुखिया मुनेश्वर के साथ अरदास के दरवाजे आ धमके अरदास ने जब देखा कि गांव वाले उनके दरवाजे आ धमके उनको अंदाजा तो था ही उन्होंने अपनी पत्नी मैना को हिदायत दी कि किसी भी सूरत में बिशन बाहर ना निकले अपने दरवाजे पर गांव वालों को देख कर अरदास ने सबको गुड़ का शर्बत पिलाया और आदर सम्मान से बैठाया और पूछा आप लोग हमारे दरवाजे की शोभा बढ़ाने आये हम आप लोंगो की क्या सेवा करे प्रधान मुनेश्वर बोले अरदास जी सुना है आपके घर कोई बिचित्र सा दिखने वाला प्राणी आया है गांव वालों की मंशा है कि आप उंसे गांव वालों से मिलवाये परिचय करवाए अरदास  बोला प्रधान जी एक तो हमारे यहां कोई विचित्र प्राणि नही रहता जो रहता है वह मेरा दूसरा बेटा बिशन है जो पंद्रह साल पहले विकृत पैदा  हुआ था सो हमने उसे समाज के तानों और परिहास से बचाने के लिये छिपा के रखा मगर आज मैंना उंसे लेकर बाहर गयी है उसका इलाज झाड़ फूँक करवाने क्योकि उसकी तबीयत कुछ गड़बड़ लग रही थी  ज्यो बिशन स्वस्थ होगा पूरे गांव वालों से उसका परिचय करवा देंगे अरदास ने इतना सटीक और खूबसूरत बहाना बनाया की गांव वाले निरुत्तर हो गए  और  चले गए मगर गांव वालों के मन मे दुविधा बनी रही कि अरदास झूठ क्यो बोल रहे है अब गांव में हर घर चर्चा होने लगी कि अरदास की बीबी मैना ने ऐसा बालक जना है कि जो पृथ्वी के किसी प्राणि से मेल नही खाता धीरे धीरे यह बात आग की तरह पूरे इलाके जनपद में फैल गयी हर दिन अरदास के दरवाजे पर सुबह से शाम हज़ारों लोंगो उस बिचित्र संतान को देखने की जिद करते मगर किशन उंसे लेकर कभी इधर कभी उधर छिपता फिरता इसी चक्कर मे उसका स्कूल जाना बंद हो गया बात फैलते फैलते स्थानीय पुलिस और  जिलाधिकारी तक पहुंच गयी जिलाधिकारी सुबोध मुखर्जी मीडिया पोलिस और पूरे जनपद के संभ्रांत लोंगो के साथ साथ चिकित्सको और दिल्ली से कुछ खास वैज्ञानिकों की एक टीम बनाकर अरदास के दरवाजे मेहंदी पुर गांव पहुंचे अरदास इतने बड़े बड़े हाकिम और पुलिस को देखकर हैरत और भय में टूट गया बोला हाकिम बिशन जो मेरे बेटे के समान है उंसे मैं आपलोगों के समक्ष तभी प्रस्तुत कर पाऊंगा जब आप लोग यह लिखित आश्वासन दे कि आप लोग  द्वारा उसका कोई नुकसान नही किया जाएगा और उसे हमारे  परिवार से अलग नही किया जाएगा  काफी ना नुकुर करने के बाद पूरे प्रशासनिक अमले ने विचार विमर्श करके इस निष्कर्ष पर पहुंची की अरदास जो कह रहा है उंसे लिख कर देकर आश्वस्त करने में कोई हर्जा नही है  तुरंत जिलाधिकारी सुबोध मुकर्जी ने लिखित आश्वाशन वैसा ही दे दिया जैसा अरदास चाहते थे अब अरदास अपने घर के अंदर गए और मैना  के साथ बिशन किशन को साथ लेकर बाहर आये बिशन मैना की गोद मे उसी प्रकार बैठा था जैसे कोई बेटा अपनी माँ की गोद मे बैठता है जब जिलाधिकारी और उनकी टीम जिसमें बैज्ञानिक चिकित्सक और इलाके के संभ्रांत लोग थे के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा क्योकि अरदास जिसे अपना विकृत दूसरा बेटा कह रहे थे वास्तव मे वह परग्रही प्राणी एलियन था जो किसी कारण भटक कर अरदास के परिवार को मिल गया था वैज्ञानिकों और डॉक्टरों के लिये शोध खोज का विषय था जिसके लिये उंसे साथ ले जाना आवश्यक था मगर जिला अधिकारी ने लिखित आश्वासन दे रखा था कि उसे अरदास के परिवार से अलग नही किया जा सकता है। अतः सभी मन मसोश कर चल दिये ।
अब प्रतिदिन अरदास के दरवाजे पर सुबह पूरे प्रदेश और जनपद के सुदूर इलाको के लोंगो की भीड़ लग जाती टी वी चैनल्स अखबार वालो के लिये मसालेदार खबर थी जिससे उनके चैनल्स और अखबार की स्वीकृति और रेटिंग बढ़ रही थी आने वाले लोंग और चैनल्स अखबार वालो ने जमकर अरदास के परिवार वालो पर पैसे की बरसात की अरदास ने पच्चीस एकड़ का फार्महाउस खरीद लिया और शानदार हवेली बनवा की बिशन को आये लगभग एक वर्ष पूरे हो चुके थे लेकिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ का तमाशा कम होने का नाम ही नही ले रहा था प्रतिदिन भीड़ बढ़ती ही जा रही थी इस बात की खबर सबको थी अब कुछ बाहुबलियों की निगाह अरदास के कमाई पर पड़ी और उन लोंगो ने अरदास को आदेश दिया कि बिशन को उसके हवाले कर दे उधर प्रदेश औऱ देश की सरकारें बिशन को अपने कब्जे में लेकर शोध कार्य करना चाहती थी अरदास पर चौतरफा दबाव था देश की सरकार ने एक प्रतिनिधिमंडल बाकायदे राज्य सरकार की सहमति से बिशन को लाने के लिये भेजा प्रतिनिधि मंडल अरदास के घर बिशन को लेने पहुंचा अरदास की संमझ में कुछ भी नही आ रहा था कि वह अपने जिगर के टुकड़े जैसे एलियन बिशन को सौंपे या नही अन्त  में अरदास ने फैसला किया कि वह किसी भी सूरत में बिशन को किसी को नही सौंपेगा सरकारी प्रतिनिधिओ ने बिशन को सौंपने के एवज में अच्छी खासी रकम अरदास को देने की पेशकश की वार्तालाप में लगभग एक सप्ताह का समय बीत चुका था मगर कोई हल निकलता नही दिख रहा था ठिक आठवें दिन अरदास के दरवाजे पर भीड़ एकत्र थी सरकार के प्रतिनिधि भी मौजूद थे उसी समय एलीयन्स का एक समूह वहां उतरा जिसे देखते ही बिशन अरदास को उनकी तरफ इशारा किया अरदास और मैना और किशन बिशन को लेकर भीड़ को चीरते हुए एलियन्स के समूह के पास गए ज्यो ही वे उनके समूह के पास गए उनमें से एक मैना के पास आया जिसकी गोद मे बिशन बेटे की तरह बैठा था उसने बिशन को अपनी तरफ आने का इशारा किया अरदास ने मैना से कहा यह बेटा हम लोंगो के लिये इतने ही दिनों के लिये ही अपनी माँ परिवार से बिछड़ कर आया था तुम एक माँ हो अब तुम्हारी जिम्मेदारी है कि बिशन को उसके परिवार माँ के हवाले कर दो मैना के आंख से आंसु के धार फुट पड़े किशन और अरदास भी रोने लगें वहां एकत्र भीड़ यह करुण दृश्य देखकर गमगीन हो गई मैना ने भारी मन से बिशन को ज्यो ही अपनी गोद से छोड़ा सारे एलियन्स खुशी खुशी बिशन को लेकर आकाश की ओर उड़ चले सभी यह दृश्य देखकर हतप्रद रह गए ।।

कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

        ---------मौन------

जुबान ,जिह्वा और आवाज़ जिसके संयम संतुलन खोने से मानव स्वयं खतरे को आमंत्रित करता है और ईश्वरीय चेतना की सत्ता को नकारने लगता है।अतः जिह्वा जुबान का सदैव
संयमित संतुलित उपयोग ही नैतिकता नैतिक मूल्यों को स्थापित करता है जिह्वा जुबान का असंयमित असंतुलित प्रयोग घातक और जोखिमो को आमंत्रण देता है ।प्रस्तुत लघुकथा इसी ईश्वरीय सिद्धान्त पर आधारित आत्मिक ईश्वरीय तत्व  का बोध कराती समाज को एक सार्थक संदेश देती है-- जमुनियां गांव में बहुत बढ़े जमींदार मार्तंड सिंह हुआ करते थे आठ दस कोस में उनसे बड़ा जमींदार कोई नही था उनके परिवार की सेवा में पूरे गांव के लोग चाकरी करते थे चाहे खुद जमींदार मार्तण्ड सिंह की ही बिरादरी के लोग क्यो न हो ।मार्तण्ड सिंह के गांव के ही उनके पट्टीदार थे अनंत सिंह जो बहुत साधारण हैसियत के व्यक्ति थे किसी प्रकार उनका खर्चा चलता जब उन पर जमींदार मार्तण्ड  सिंह की कृपा होती ।अनंत सिंह  का बेटा मार्तण्ड सिंह का घरेलू कार्य करता जैसे मालिक को नहलाना
उनकी मालिश करना पैर दबाना आदि
मार्तण्ड सिंह के दो बेटे और एक बेटी थी जिनका नाम शमसेर सिंह दुर्जन सिंह और बेटी का नाम प्रत्युषा था तीनो अंग्रेजी कान्वेंट स्कूल में क्लास थर्ड फोर्थ फिफ्थ में पढ़ते थे अनंत सिंह के बेटे  निरंकार सिंह को भी पढ़ने का बहुत शौख था मगर एक तो अनंत सिंह की हैसियत नही थी दूसरे मार्तण्ड सिंह का खौफ वे हमेशा कहते खाने का ठिकाना नही बेटे को हाकिम
कलक्टर बनाने का सपना देखोगे तो  दो रोटी पूरे परिवार को मेरी चाकरी से मिलता है उसे भी बंद करा दूंगा।अनंत सिंह एवं उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी मार्तण्ड सिंह की गुलामी ईश्वर का न्याय और भाग्य मानकर मन मसोस करते जाते।मगर उनका बेटा निरंकार मन ही मन ईश्वर की शक्ति अपनी आत्मा से प्रतिज्ञ था कि वह पिता की विवसता की दासता तोड़ेगा वह मार्तण्ड सिंह की चाकरी करता और बेवजह चाबुक लात बेत की मार ठकुराई जमीदारी के शान की खाता रहता इन सबके बीच वह  समय निकाल कर मार्तण्ड सिंह के बेटे बेटियों की किताब माँगकर पढ़ता
मार्तण्ड सिंह के बेटो बेटी को पढ़ने में
कोई रुचि नही रहती सिर्फ बाप के भय से पढ़ने की औपचारिकता करते 
इधर निरंकार मार्तण्ड सिंह की चाकरी  में प्रतिदिन चाबुक डंडे लात घूंसों की
मार सहता कभी नाक फूटती कभी
हाथ पैर में घाव के दर्द से परेशान हो
जाता फिर भी वह अपने पिता अनन्त सिंह से कुछ नही बताता ना ही इतने जुल्म पर मार्तण्ड सिंह से ही कुछ कहता सिर्फ मौन रह सबकुछ बर्दास्त करता अपने उद्देश्य पथ शिक्षा हेतु सारे प्रयास करता एक दिन ठाकुर मार्तण्ड सिंह ने निरंकार को पढ़ते देख लिया और कुछ सवाल किया उनको लगा कि निरंकार उनके बेटे बेटियों से ज्यादा तेज और कुशाग्र है सो उन्होंने क्रोध से उसे सलाखों से दाग दिया छटपटात तड़फड़ाता निरंकार कुछ नही बोला और फिर नित्य की भाँती अपनी कार्य मे लग गया।समय बीतता गया निरंजन ने चोरी चोरी हाई स्कूल प्राईवेट पास प्रथम श्रेणि में पास किया जिसकी जानकारी मार्तण्ड सिंह जी को नही थी।उनके दोनों बेटों एव बेटी ने भी किसी तरह हाई स्कूल पास कर लिया अब ठाकुर मार्तण्ड सिंह ने माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिये अपने बच्चों को शहर के स्कूल भेजा और निरंकार को साथ बच्चों का भोजन बनाने और सेवा के लिये साथ भेजा आब क्या था निरंकार को ईश्वर ने अवसर दे दिया वह खुशी खुशी शमशेर दुर्जन प्रत्यूषा के साथ साथ लखनऊ चला गया और वहां इनका खाना बनाता बर्तन माजता कपड़े साफ करता और समय निकाल कर उन्ही की किताबो से चोरी छिपे पड़ता रहता धीरे धीरे मार्तण्ड सिंह के बच्चों ने इंटर मीडिएट स्नातक की परीक्षा पास की  निरंजन ने स्नातक व्यक्तिगत छात्र के रूप में विश्विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया जब समाचार पत्रों में खबर छपी तब शमशेर दुर्जन ने उसकी इतनी धुनाई की वह लगभग मरणासन्न हो गया उसे मरा जानकर शमसेर एव दुर्जन ने पास की झाड़ी में फेंक दिया।सुबह फजिर की नवाज़ से पहले मिया नासिर उधर से गुजर रहे थे कि किसी इंसान के कराहने की आवाज़ सुनाई दी फौरन जाकर देखा तो एक इंसान जो मरणासन्न था मगर सांसे चल रही थी मिया साहब उसे उठाकर अपने घर ले गए और उसका देशी इलाज शुरू किया होश आने पर जब उसका नाम नासिर ने पूछा तो उसने सारी घटना  आप बीती बताकर अपना असली नाम छुपाने की बिना पर नासिर को अपना  असली नाम बताते हुये उसे छुपाने का आग्रह किया और नकली नाम रहमान से परिचय करवाया नासिर को कोई आपत्ति नही थी । नासिर जूते चप्पलों की मरम्मत का काम करता था नासिर के ही कार्य को रहमान उर्फ निरंकार ने शुरू किया।एक दिन फुटपाथ पर बैठा रहमान जूतो चप्पलों की मरम्मत का कार्य कर रहा था कि उधर से गुजरते शमशेर और दुर्जन की नज़र उस पर पड़ी दोने जाकर अपने जूते पालिश करवाये और उसके उपरांत उसे अपने बूटों से इतनी तेज मारा की निरंकार सड़क के एक किनारे जा गिरा उसके नाक हाथ मे घाव हो गए और खून गिरने लगा फिर भी वह कुछ नही बोला देखने वाले लोगो को दया और शर्मिदगी महसूस हुई मगर वे भी कुछ बोल नही सके। इसी तरह समय बीतता गया निरंकार ने स्नातकोत्तर में विश्विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया ।अब उसका मकशद जीवन भर की जलालत जुर्म की जिंदगी को स्वयं परिवार को आज़ाद कराना उसने दिन रात कड़ी मेहनत की और भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित हुआ उसके चयन की खबर उसके गांव उसके पिता और मार्तण्ड सिंह को हो चुकी थी ।चयन होने के बाद निरंकार नासिर के साथ अपने गांव गया और सबसे पहले अपने पिता का आशिर्वाद प्राप्त किया उसके पिता अनंत देव अपना आशीर्वाद देने के बाद अपने बेटे को ठाकुर मार्तण्ड सिंह के पास ले गए ठाकुर मार्तण्ड सिंह ने पिता
अनंत देव सिंह से कहा तुम्हारे बेटे ने  हमारे परिवार के क्रूरता अन्याय अत्याचार को अपने संयम संतुलन आचरण से बर्दाश्त किया  कभी कुछ नही बोला मौन रहा ठीक
उसी प्रकार जैसे कोई पत्थर की मूर्ति
संवेदन हीन जिसे दर्द पीड़ा का एहसास नही था यह निरंकार की निरंकुशता के खिलाफ सहनशक्ति थी और उसके चैतन्य सत्ता आत्मा में जीवन मूल्य उद्देध्य की जागृति का जांगरण का परिणाम हैं जिसने उसे सफल किया जैसे कि मरे हुये जानवर की खाल की सांस से लोहा भस्म हो जाता है ठीक उसी प्रकार निरंकार के मौन ने हमारी निरंकुशता की जमीदारी को भस्म करने की प्रतिज्ञा पूर्ण की है तुम भाग्यशाली हो ठाकुर अनंत सिंह और हम अन्याय क्रुरता में रक्त सम्बन्धो को भूलने वाले
अब शनै शैन अपने समाप्त होने की दर्द पीड़ा में जलते जाएंगे।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश


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-------संस्कार की शिक्षा----------

एक गाँव मे एक गरीब ब्राह्मण रहते थे    उस गरीब ब्राह्मण के पास अपनी छोपडी के अलावा खेती की कोई जमीन नही थी जिसके कारण पंडित जी अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिये पांडित्य कर्म करते उससे भी परिवार का पेट नही भरता तो भिक्षाटन भी करते बड़ी मुश्किल से  परिवार का गुज़र बसर हो पाता कभी कभार भाका मस्ती के कारण पानी पी कर ही दिन रात गुजारनी पड़ती।पंडित  की चार पुत्र थे  जिनका पढने लिखने में मन नही लगता पंडित जी अपनी पूरी क्षमता से कोशिश करते कि उनके बेटे कम से कम इतना तो पढ़ ही ले कि कम से कम पांडित्य कर्म करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकने में सक्षम हो सके मग़र उनके चारों पुत्रो पर कोई प्रभाव नही पड़ा धीरे धीरे समय बीतता गया और पंडित जी के चारों बेटे जवान हो गए मगर शिक्षा के नाम पर मात्र संस्कृत के कुछ अक्षर शब्द ज्ञान तक ही सीमित थे।अब पंडित जी के ऊपर जवान चार बेटो के भरण पोषण का भी भार था पंडित जी को देखकर अक्सर लोग कहते थे पंडित जी की क्या किस्मत है जिसके चार चार जवान बेटे नाकारा हो क्या कहा जाय भगवान के न्याय को पंडित जी कोल्हू के बैल जैसे दिनरात खटते और पत्नी के साथ साथ चार जवान बेटों का पेट भरते पंडित जी बूढ़े भी हो चुके
थे एक दिन पंडित जी ने अपने चारों बेटों सुरेश ,रमेश, दिवेश ,शिवेश को बुलाया और वात्सल्य से भाव विभोर होते हुए कहा मेरे प्यारे सुपुत्रों मैन तुम लोगो पर कभी कोई दबाव पिता होने के नाते नही बनाया तुम लोंगो की जब जो इच्छा हुई करते रहे मैने सदैब तुम लोंगो की प्रसन्नता में खुद की भलाई और खुशी का अनुभव किया अब मैं बूढ़ा हो चुका हूँ पता नही कब ईश्वर के यहाँ से बुलावा आ जाय मैं चाहता हूँ कि तुम लोग अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास करो इतना कहने के बाद पंडित जी की आंखों से आंसू आ गए पंडित जी के चारो बेटो ने जब पिता शुखराम की स्वयं के कारण यह दशा देखी चारो ने एक स्वर में कहा पिता जी अब हम लोग आपको अपनी शक्ल तभी दिखाएंगे जब कुछ समाज मे आपके लिये कर सकने में सक्षम होंगे इतना कह कर चारो भाई उठे और एक साथ आपस मे मंत्रणा करने लगे कि वे ऐसा क्या करे कि उनके बुढे पिता को आत्म सन्तोष मिले चारो ने कहा कि चुकी हम लोंगो ने अपने पिता को जबान दे रखा है कि
हम लोग अपनी शक्ल तभी दिखाएंगे जब समाज मे किसी सम्मान जनक स्तर पर पहुँच जाएंगे चारो भाईयो ने किसी तरह रात काटी और ब्रह्म मुहूर्त की बेला में साथ उठे और स्नान आदि नित्य क्रिया से निबृत्त होकर बिना किसी को बताए घर छोड़ बाहर निकल पड़े चारो भाई एक साथ पैदल चलते चलते थक चुके थे एक जामुन के बृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे तभी जामुन के बृक्ष से जामुन का एक फल नीचे गिरा बड़ा भाई सुरेश बोला (जामुनी अन्त न पाईओ) थोड़ी देर विश्राम करने के उपरांत चारो भाई फिर भूखे प्यासे चल पड़े कुछ दूर चलने के बाद फिर चारो भाई एक पीपल के बृक्ष के नीचे बैठ कर विश्राम करने लगे उसी समय दो व्यक्ति आपस  मे लड़ते झगड़ते चले जा रहे थे जिनको देखकर दूसरे भाई रमेश के मुँह से बरबस निकल पड़ा (ता पर मंडे  रार) पंडित सुखराम की नीद खुली तब उन्होंने अपनी पत्नी सुचिता से पूछा कि हमारे चारों पुत्र कहां चले गए सुचिता ने कहा कि आपसे कल चारो ने कहा था कि वे जब तक समाज मे सम्मानित स्तर पर नही पहुंच जाते तब तक अपनी शक्ल नही दिखाएंगे पता नही कब चारो कहाँ चले गए और फुट फुट कर रोने लगी पंडित सुख राम ने सुचिता को ढाढ़स बधाया और। बोले हमने पूरे जीवन मे किसी का कभी कुछ नही बिगाड़ा विश्वास रखो मेरी संतानों का भी अनभल भगवान नही करेगा किसी तरह से सुचिता ने अपने कलेजे पर पत्थर रख दिन रात अपने बेटों के इंतज़ार करने लगी।ईधर दो दिन से भूखे प्यासे चारो भाई चलते थकते विश्राम करते फिर चलते ना कोई उद्देश्य था ना निश्चित रास्ता चारो विश्राम कर रहे थे कि दो व्यक्ति आपस मे प्रेम करते जा रहे थे तभी तीसरे भाई के मुख से निकला (प्रीत करंता द्वी जने)  फिर चारो भाई साथ चलना शुरू किया कुछ दूर पैदल चलने के बाद फिर चारो भाई एक बट बृक्ष के नीचे विश्राम करने लगे तभी चारो ने देखा कि एक पुरुष एक स्त्री को जबरन हाथ पकड़ कर घसीटते ले जाने की कोशिश कर रहा है शिवेश के 
जुबान से निकला(ता हरि लाओ नारी)
अब चारो भाईयो ने तय किया कि हम चारो ने जो शब्द बोले है उन्हें इकठ्ठा करके देखते है कि क्या हमने कुछ सार्थक किया या नही चारो ने क्रमश अपने शब्द बोलना  प्रारम्भ किया (जामुनी अंत न पाईओ ,ता पर मंडे रारी ,प्रीति करंता द्वी जने ता हरि लायो
नारी।।)चारो भाईयो ने देखा कि उनके द्वारा बोले शब्दो से बहुत सुंदर श्लोक का निर्माण  हो गया जो किसी वेद पुराण या धर्म शास्त्र में नही मिलेगा चारो भाई बड़े उत्साह से भूख प्यास भूल  कर चल पड़े लगभग एक सप्ताह की भूखे प्यासे  यात्रा के बाद चारो ने अपने राज्य की सीमा पार कर ली अब वे अपने देश राज्य की सीमा से बहुत दूर निकल चुके थे दूसरे राजा के राज्य सिमा में ज्यो चारो भाईयो ने प्रवेश किया तभी देखा कि बहुत से लोग राज दरबार की ओर जा रहे थे तभी चारो भाईयो ने जिज्ञासाबस जानना चाहा कि इतनी भीड़ कहाँ किस उद्देश्य से जा रहे है लोगो ने बताया कि   काम्पिल्य के राजा विभ्राट ने विद्वानों की एक सभा बुलाई है और शास्त्रार्थ का आयोजन किया है जो भी शास्त्रार्थ में विजयी होगा उसे राज पंडित की उपाधि प्रदान कर कीमती हीरे मोती जवाहरात के पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाएगा ।चारो भाईयो ने निश्चय किया कि वे भी राजा विभ्राट की विद्वत शास्त्रार्थ में भागीदारी करेंगे चारो दस दिनों से भूखे पेड़ के पत्तो से झुधा मिटाते किसी तरह राजा विभ्राट की विद्वत सभा मे जा पहुंचे राजा चारो भाईयो को देख बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला कि ये हमारे लिये गौरव की बात है कि हमारी विद्वत सभा के शात्रार्थ में दूर देश के विद्वत जन पधारे   चारो भाईयो का राज दरबार मे विधिवत सम्मान और स्वागत हुआ और राजकीय अतिथि के रूप में ठहराया गया ।दूसरे दिन शास्त्रार्थ प्रारम्भ हुआ सभी विद्वान एक दूसरे को परास्त करते रहे अब अंत मे चारो भाई सुरेश, रमेश, दिवेश ,शिवेश की बारी आई चारो भाईयो ने कहा हम चारो भाई एक एक शब्द बोलेंगे जिससे एक श्लोक का निर्माण होगा उसका अर्थ इस विद्वत सभा को बताना होगा तब राजा विभ्राट ने आदेश दिया आप चारो भाई अपना शब्द बोले एक एक कर चारो भाईयो ने अपना शब्द बोलना शुरू किया -।।जामुनी अंत न पाईओ ता पर मंडे रार
प्रीत करंता द्वी जने ता हरि लायो नारी।।अब राजा विभ्राट ने विद्वत सभा को आदेश दिया कि चारो भाईयो द्वारा निर्मित श्लोक का अर्थ विद्वत सभा बताये।विद्वत सभा ने वैचारिक मंथन शुरू किया मगर कोई अर्थ नही समझ आ पा रहा था क्योंकि उक्त श्लोक किसी धर्म शास्त्र वेद पुराण से तो था नही जिसे किसी ने पढ़ा हो अतः एक माह का समय बीतने के बाद भी कोई विद्वान चारो भाईयो द्वारा निर्मित श्लोक का अर्थ नही बता पाया अंत मे काम्पिल्य नरेश विभ्राट ने चारों भाईयो को स्वय निर्मित श्लोक का अर्थ बताने का आदेश दिया तब बड़ा भाई सुरेश बोला जमुनी अंत न पाईओ अर्थात जिसका ऋषि मुनियों ने अंत नही पाया दूसरे भाई रमेश ने अपने शब्द ता पर मंडे रार का अर्थ बताया जिससे  जबरजस्ती दुश्मनी किया तीसरे भाई दिवेश ने अपना शब्द बोला प्रीति करंता द्वी जने अर्थात राम लक्ष्मण जैसे भातृत्व प्रेम करने वाले भाईयो चौथा भाई शिवेश बोला ता हरि लायो नारी अर्थात जिनकी भार्या को छल पूर्वक हरण कर लिया फिर राजा विभ्राट ने चारो भाईयो के शब्दार्थों की संयुक्त व्यख्या के लिये कहा तब सुरेश ने तीनों भाईयो का प्रतिनिधित्व करते बोला महाराज --जिसका ऋषि मुनियों ने अंत नही पाया जो राम लक्ष्मण जैसे भ्रातृत्व प्रेम के आदर्श है ऐसे दयालु कृपालु भगवान राम की पत्नी सीता माता का छल पूर्वक हरण कर दुष्ट रावण ने दुश्मनी मोल ली ।राजा विभ्राट बहुत प्रसन्न हुए और चारो भाईयो को विद्वत शिरोमणी के सम्मान  से पुरस्कृत कर ढेर सारे हीरे मोती आती कीमती रत्नों से सम्मानित किया   और राज्य का पंडित घोषित किया।
 धीरे धीरे चारो भाईयो की यश कीर्ति का पताका चहु ओर लहराने लगा एक राजा विभ्राट भी चारो भाईयो से बहुत प्रसन्न रहते थे एक दिन राजा ने चारों भाईयो से कहा हम आपके माता पिता से मिलना चाहते है आप अपने गांव का पता बताये हमारे सैनिक आपके माता पीता को संम्मान यहां ले आएंगे चारो भाईयो ने राजा का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया राजा को अपने गांव का पता बता दिया राजा  ने उन्हें आदर के साथ लाने हेतु अपने सैनिकों को आदेश दिया राजा का आदेश पाते ही सैनिक गए और चारो के माता पिता पंडित सुखराम और माँ सुचिता को साथ लेकर आये राजा विभ्राट ने स्वयम पंडित सुखराम और सुचिता को उनके चारो पुत्रो से मिलवाया पंडित सुखराम और माँ सुचिता गर्व से अभिभूत हो कर प्रसन्न हुए ।
अब पंडित सुखराम सुचिता अपने चारों बेटो के साथ राजा विभ्राट के राज्य में सम्मान के साथ रहने लगे एक दिन राजा विभ्राट और पंडित सुखराम सुचिता और उनके चारो बेटों को बुलवाया और पंडित सुखराम से प्रश्न किया कि आपने अपने चारों बेटो को क्या शिक्षा दी पंडित सुखराम ने कहा सत्य आचरण नैतिकता और वचन बद्धता की संस्कृति संस्कार की मैं बहुत गरीब ब्राह्मण था फिर भी मेरे जवान बेटो ने कभी भी अनैतिक आचरण पर चलना स्वीकार नही किया और जब इन्होंने मुझे वचन दिया कि ये तब तक अपनी शक्ल नही दिखाएंगे जब तक कि ये समाज मे सम्मान जनक स्तर पर नही पहुंच जाते इन्होंने अपने वचन का निर्वहन किया ये पंद्रह दिनों तक भूखे प्यासे रहे लेकिन किसी अनैतिक रास्ते पर  नही गए और इस भीषण चुनौती में भी इनमें कुछ करने की जिज्ञासा जागृत रही और अनेको कठिनाईयों में भी चारो भाईयो में परस्पर प्रेम में कोई कमी नही आई यहां तक कि आपके दरबार मे जिस श्लोक की चर्चा है उसे चारो भाईयो ने संयुक्त रूप से निर्माण किया ।महाराज यही शिक्षा मैन गरीबी में अपने चारों पुत्रो को दी है राज विभ्राट पंडित सुखराम की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए बोले यदि संसार के सभी माता पिता पंडित सुखराम और सुचिता जैसे हो जाय तो निश्चित ही संसार ही स्वर्ग बन जाय।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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