विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

बड़े खुलूस से जब वो ख़याल करते हैं
इसीलिये उन्हें हम भी निहाल करते हैं

हमें भी दिल पे नहीं रहता अपने फिर काबू
अदाओ नाज़ से जब वो धमाल करते हैं

जवाब कोई मुझे सूझता नहीं उस दम
वो बातों बातों में ऐसा सवाल करते हैं

खँगाल लेते हैं चुपचाप मेरा मोबाइल
*वो इस तरह से मेरी देखभाल करते हैं*

पकड़ में आती हैं जब जब भी  ग़लतियाँ उनकी 
वो उस घड़ी ही मुझे अपनी ढाल करते हैं

ख़ुदा भी बख़्श उनके गुनाह देता है
पशेमाँ होके जो दिल से मलाल करते हैं

बड़े बुज़ुर्ग भी हैरत में आज हैं *साग़र*
ये दौरे नौ के जो बच्चे कमाल करते हैं

🖋️विनय साग़र जायसवाल,बरेली
27/5/2021

नूतन लाल साहू

एक पीली शाम

बिन जल,सब जलते है
जल को पाकर,सब फूलते फलते है
हम फूल कली है,महफिल कलिया के
इन फूलों कलियों को महकाते रहना
पावस पवन तुम जल बरसाओ
जन जन के मन को हरसाओ
किसिम क़िसिम के फूल फूले है
भारत मां के अंगना मा
बहुत ही खूबसूरत लगती है
सूरज की लालिमा शाम को
प्रकृति का पावन महीना में
एक पीली शाम न आवे
पानी की महिमा है अनमोल
इसका नही करो,कोई मोल
पानी तुझको वंदन है मेरा
बार बार अभिनंदन है तेरा
अन्न को पानी,तन को पानी
पानी तेरी अजब कहानी
यत्र तत्र सर्वत्र पानी
बिन पानी न रहेगा नर
और न ही रहेगी नारी
प्रकृति का पावन महीना में
एक पीली शाम न आवे
पंथ जीवन का चुनौती
दे रहा है हर कदम पर
कही कोई संदेश तो नही है
 वक्त की अनिश्चितता का
प्रकृति ने मंगल शकुन पथ
अब तक है संवारे
वह कौन सा विश्वास है इंसान को
 पर्यावरण से कर रहा है छेड़छाड़
बहुत ही खूबसूरत लगती है
सूरज की लालिमा शाम को
प्रकृति का पावन महीना में
एक पीली शाम न आवे

नूतन लाल साहू

मधु शंखधर स्वतंत्र

*मधु के मधुमय मुक्तक*
*प्रयाग*
------------------------------
यह प्रयाग की भूमि ही, ब्रम्हा यज्ञ सुधाम।
गंगा यमुना से मिले, सरस्वती शुभ नाम।
संगम पावन तीर्थ ही , ऋषि मुनियों का वास,
तीर्थराज कहते इसे, भक्ति मुक्ति निष्काम।।

मातु अलोपी प्राग् में, शक्ति हरे सब त्राण।
यहाँ मातु ललिता करें , रक्षा सबके प्राण।
लेटे हनुमत हैं शरण, माँ गंगा के पास,
शक्ति भक्ति के मेल से, होता है कल्याण।।

इस प्रयाग को ही कहें, मनुज इलाहाबाद।
है ऐतिहासिक तथ्यगत , उच्च न्याय संवाद।
राजनीति की धरा ये, जन्मे लाल महान,
आज़ादी का गढ़ बना, दिए प्राण आजाद।।

इस प्रयाग के मूल में, लेखन का अनुराग।
यहाँ निराला का उदय, पंत निहित शुभ भाग।
मधुशाला हरिवंश की , बनी समर्थित ज्ञान,
यहाँ महादेवी रची , नारी का *मधु* त्याग।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*12.06.2021*

सुधीर श्रीवास्तव

सिंदूर
******
ऐसे कहने को तो मात्र 
लाल पीला पाउडर भर है,
पर अहमियत में देखिए
तो कितना बड़ा है।
मात्र एक चुटकी सिंदूर का
कितना महत्व है,
पल भर में ही जब 
किसी नारी की माँग में सजता है,
सुर्ख जोड़े में सजी धजी
दुल्हन बनी नारी का सौंदर्य
तेज बनकर निखर उठता है,
दो अनजाने शख्स का
रिश्ता अटूट बन जाता है।
आज तक जो नाजों से 
पल बढ़ रही थी,
नाममात्र का सिंदूर 
माँग में क्या सजा
पराये घर परिवार का
अटूट हिस्सा बन जाती है।
एक चुटकी सिंदूर का
ये पराक्रम देखिए
जिस घर परिवार में जन्मी
खेली कूदी पढ़ लिखकर बड़ी हुई,
वहीं से सारे अधिकार से मुक्त हुई,
लेकिन यह विडंबना ही तो है
कि अब वो अंजाने घर परिवार
का हिस्सा बनकर,
सर्वस्व अधिकृत  हो गई।
एक चुटकी सिंदूर 
माँग में सजाकर जीवन भर
सुहागिन बन इठलाती है,
सिंदूर की खातिर ही नारी
खुद को भी कुर्बान करने के लिए
हर क्षण तैयार रहती है।
क्या गजब सिंदूर की महिमा है
इसी के इर्दगिर्द चलता सृष्टि चक्र
और संसार की खुशहाली है।
● सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
     8115285921
 © मौलिक, स्वरचित

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*स्वाभिमान*(दोहे)
स्वाभिमान अभिमान में,अंतर केवल एक।
स्वाभिमान रक्षक-कवच,अभि दे कष्ट अनेक।।

स्वाभिमान व्यक्तित्व में,लाता सदा निखार।
यह आभूषण मनुज का,पा हो हर्ष अपार।।

अभिमानी रावण मरा, मिटा कंस-संसार।
स्वाभिमान से पांडु-सुत,रखे लाज परिवार।।

यह रक्षक अस्तित्व का,करे अमर यह नाम।
सदा बढ़ाकर आत्मबल,करता बिगड़ा काम।।

स्वाभिमान मत त्यागिए, है यह जीवन-कोष।
अमिट स्रोत बस है यही,शांति-सकल सुख-तोष।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

बारहवाँ-1
  *बारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-1
सुनहु परिच्छित कह सुकदेवा।
बन महँ लेवन हेतु कलेवा।।
    नटवर लाल नंद के छोरा।
   लइ सभ गोपहिं होतै भोरा।।
सिंगि बजावत बछरू झुंडहिं।
तजि ब्रज बनहीं चले तुरंतहिं।।
    सिंगी-बँसुरी-बेंतइ लइता।
    बछरू सहस  छींक के सहिता।।
गोप-झुंड मग चलहिं उलासा।
उछरत-कूदत हियहिं हुलासा।।
     कोमल पुष्प-गुच्छ सजि-सवँरे।
     कनक-अभूषन पहिरे-पहिरे।।
मोर-पंख अरु गेरुहिं सजि-धजि।
घुँघची-मनी पहिनि सभ छजि-छजि।।
     चलें मनहिं-मन सभ इतराई।
     सँग बलदाऊ किसुन-कन्हाई।।
छींका-बेंत-बाँसुरी लइ के।
इक-दूजे कै फेंकि-लूटि कै।।
     छुपत-लुकत अरु भागत-धावत।
     इक-दूजे कहँ छूवत-गावत ।।
चलै बजाइ केहू तहँ बंसुरी।
कोइल-भ्रमर करत स्वर-लहरी।।
     लखि नभ उड़त खगइ परिछाईं।
      वइसे मगहिं कछुक जन धाईं।।
करहिं नकल कछु हंसहिं-चाली।
चलहिं कछुक मन मुदित निहाली।
     बगुल निकट बैठी कोउ-कोऊ।
     आँखिनि मूनि नकल करि सोऊ।।
लखत मयूरहिं बन महँ नाचत।
नाचै कोऊ तहँ जा गावत ।।
दोहा-करहिं कपी जस तरुन्ह चढ़ि, करैं वइसहीं गोप।
       मुहँ बनाइ उछरहिं-कुदहिं, प्रमुदित मन बिनु कोप।।
                           डॉ0हरि नाथ मिश्र
                            9919446372

एस के कपूर श्री हंस

*।।रचना शीर्षक।।*
*वृद्धावस्था।।जिंदगीअभी बाकी है।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
बुढ़ापा जीवन में ,मानो    वरदान होता है।
अनुभव की   लिये ,एक खान   होता है।।
सफर का    आखिरी ,मुकाम  नहीं ये तो।
फिर दुबारा चलने ,का ही   नाम होता है।।
2
उम्र से बुढ़ापे का लेना देना, नहीं होता है।
विचार जवान बुढ़ापा ,कँही और खोता है।।
जीने की  चाह   और   राह ,   ना  हो अगर।
आदमी जवानी में भी, बुढ़ापे सा ही रोता है।।
3
जीवन की शाम नहीं ,यह    तो दूसरी पारी है।
जो नहीं कर पाये ,अब तो उसकी बारी है।।
कोई बंदिश नहीं उम्र की ,नया सीखने के लिए।
कुछ नया करने और सोचने ,की तैयारी है।।
4
नये पुराने दोस्तों    संबंधियों ,से अब मिलना है।
साथ साथ मिल कर   ,हँसना और खिलना है।।
उठाना बोझअपना ,जिंदा को कंधा नही मिलता।
स्वास्थ्य की तुरपन को भी, तुम्हें ही सिलना है।।
5
वरिष्ठ नागरिक का दर्जा ,सम्मान का होता है।
कुछ काम और कुछ ,आराम का होता है।।
जिंदगी में अभी कुछ नया ,करने को है बाकी।
पूरे करने को उन सब ,अरमान    का होता है।।
6
समाज और परिवार को, अब नई राह दिखायें।
पर सुने बच्चों की ज्यादा,  अपनी ना चलायें।।
तृप्ति और संतोष का, मार्ग होता   सर्वोत्तम है।
वृद्धावस्था को जीवन का ,आदर्श काल बनायें।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"।।*
*बरेली।।।।*
मोब  9897071046।।।।।।।।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

..........तेरी आवाज से दूर.............

पास हैं हम पर , तेरी आवाज़  से दूर।
कभी-कभी कितने,हो जाते मजबूर।।

क़ायल हैं हम कितने,तेरी गायिकी के;
रह नहीं सकते कभी ,हम इससे दूर।।

मौशिकी  तेरी रहे , हमेशा बुलंदी पर;
दुआ किया करेंगे हम,रब से भरपूर।।

मयस्सर हो ज़माने की,सारी खुशियाँ;
हो गायिकी  की दुनियाँ में , मशहूर।।

लग  जाये  तुम्हें , हमारी  उम्र  बांकी;
रखे  ख़ुदा  तुम्हे , क़यामत  से  दूर।।

बचाये  बुरी  नज़रों से , परवरदिगार;
रखे जहाँ की हर,मुश्किलात से दूर।।

न रहे हद कोई,जिंदगी में"आनंद"की;
इल्तज़ा  रहेगी,यही खुदा से भरपूर।।

-----देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

वट सावित्री व्रत पर एक छोटी सी कविता 

वट वृक्षों की पूजा पतियों का सम्मान,
रहे निर्जला सुहागिनें लेकर ये विधान।
गाँवों से शहरों तक है जीवन का मान,
करें सुहागिनें अमर वर हो लें पूजन विधान।।

हम सबके संस्कारों में वट हैं ईश समान,
करें कामना सुहागिनें पति रहें सत्यवान।
रीति रिवाजों से है जीवन मूल्य आधार,
वट  वृक्ष  नहीं  त्रिदेवों  का  है  स्थान।।

वट वृक्षों की छाया पथिकों को देती आराम,
कड़ी धूप हो जली धरा हो ठंडी पवन चलाय।
वट पर सोच ये प्राणी ज्ञान समुंदर पर बल दे,
वसुधैव - कुटुम्बकम की  राहों का है सहाय।।

 ऐसे  ही  नहीं  होते  वट  वृक्षों  की  पूजा,
अमृत जीवनधारा के रहे होंगे कारण दूजा
व्याकुल बंधीं पत्नियां सतजन्मों के फेरों से,
वट तरु व्रत सदृश है सावित्री सी वट पूजा।।

रचना-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
              उत्तर प्रदेश ।

अतुल पाठक धैर्य

शीर्षक-ख़ामोशी कुछ कहती है
विधा-कविता
----------------------------------
ख़ामोशी कुछ कहती है,
कभी तो इसको सुना करो
गवाह है दिल ये अंदर अपने
असंख्य जज़्बात रखती है।

अनकही जुबाँ इसकी,
कभी तो तुम समझा करो।

हवा का झोंका साथ ले आया,
गुमसुम सी बातें और स्मृतियों का साया।

मेरे साथ मेरे हक़ में कुछ भी नहीं है अब,
ख़्वाबों की दुनिया और तसव्वुर ही है अब।

ख़ामोशी मेरे सूने से जीवन की बहार ढूंढती है,
ख़ुशबू से महकती समाँ ढूंढती है।

बंज़र मन में तेरे कदमों की आहट ढूंढती है,
बेबसी अब थककर मुस्कुराहट ढूंढती है।
रचनाकार-अतुल पाठक "धैर्य"
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित रचना

चंचल हरेंद्र वशिष्ट

🌳' वट सावित्री पर्व पूजन '🌳
           🙏🌳🙏
           
आज सौभाग्य पर्व मनाएँ सखी
चलो वट पूजन को जाएँ सखी
शुभ दिन,ज्येष्ठ मास अमावस
मंगल गीत हम सब गाएँ सखी

सती सावित्री और सत्यवान की 
वो अमर कथा हम सुनाएँ सखी
सुख,समृद्धि,अखंड सुहाग का
चलो हम भी आशीष पाएँ सखी

अक्षय वृक्ष को सब जल से सींचे
और परिक्रमा दे आएँ री सखी
धूप,दीप,रोली और कुमकुम 
चलो अर्पित कर आएँ री सखी

हल्दी,चावल,गुड़ और चना ले
चलो सब भोग लगा आएँ सखी
फल, मिष्ठान्न,खीर और हलवा
आनंद से सबको खिलाएँ सखी

सास,ससुर और मात पिता के
चरणों में शीश हम नवाएँ सखी
सदा सुहाग का आशीष पाएँ
मंगलकामना करके आएँ सखी

सावित्री जैसा चिर सुहाग मिले
परिवार में सब सुख पाएँ सखी
वट अमावस व्रत पूजन करके
चलो पुण्य धन   कमाएँ सखी

अक्षय वटवृक्ष का पूजन कर
पेड़ों का महत्त्व बताएँ सखी
प्रत्येक वृक्ष की पूजन परंपरा
हमको यह समझाए री सखी

पेड़ न काटो, पेड़ों को सींचों
ये हैं अनमोल उपहार री सखी
प्रकृति का मिला वरदान हमें ये
सबको है जीवन दान री सखी

चलो वट पूजन को जाएँ सखी।
आज सौभाग्य पर्व मनाएँ सखी।
         🙏🌳🙏
चंचल हरेंद्र वशिष्ट,नई दिल्ली 
आर के पुरम,नई दिल्ली
21:05:2020

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

शीर्षक--जिंदगी
विषय- अतीत की आवाज

जिंदगी ऐसे मोड़ पर आ गयी
निराश हताश ,जाने कहाँ खो गयी
खोजता हूँ ,जिंदगी जीने के बहाने
अतीत की आवाज आ गयी।।
इंसा वही हो जिंदगी में तमाम
मकसद मुकाम  हासिल किये
क्या बात हुई जिंदगी ठहर सी गयी।।
अतीत की आवाज़ दिलों दिमाग
पे छा गयी जिंदगी फिर नई मुकाम
पा गयी चल पड़ी फिर अंदाज़ नया
आतीत की आवाज़ क्या बात आ गयी।।
मुश्किलों दुश्वारियों में भी जिंदगी का
जज्बा नही छोड़ा मौके धोखे परखना
सीखा बीते जिंदगी में जाने कितने
तारीख का नाज़ अतीत की आवाज 
चाह की राह बता गयी।।
कितनी ठोकरों से घायल 
जहाँ को कर दिया कायल
जिंदगी को जिंदगी की हद
हस्ती याद आ गयी।।
अतीत की आवाज़ कदमों के
निशां जिंदगी में जिंदगी की
सच्चाई जिंदगी को जिंदगी की
हद बता गयी।।
मायूस जिंदगी जाग गयी
अपनी हैसियत पहचान गयी
विखरे जज्बात जुड़ गए 
जिंदगी  अपनी रवानगी में चल गई।।
हर इंसान की जिंदगी अतीत के कुछ
लम्हे दुनियां के लिए खास
जिंदगी की राहों में जब भी 
नजर आए अंधेरा पीछे मुड़ कर
देख लीजिये अतीत की आवाज़
सुन लीजिए।।
टूट जाएगी मुश्किलों की ठोकरे 
जिंदगी , जिंदगी की राह आईने
की तरह साफ, जिंदगी नए उमंग
नई मंजिल पा गई।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*बरगद*(दोहे)
पूजनीय वट-वृक्ष है,शीतल इसकी छाँव।
शुद्ध वायु का स्रोत यह,परम रुचिर खग-ठाँव।।

सदियों तक सेवा करे,बूढ़ा बरगद पेड़।
औषधीय यह वृक्ष है,इसको कभी न छेड़।।

देव तुल्य वट-वृक्ष का,रखना है अब ध्यान।
नया वृक्ष रोपण करें, तब होगा सम्मान।।

जागरूक अब हो सभी,रोकें वृक्ष-कटान।
जीवन में वट-वृक्ष का,है अद्भुत अवदान।।

आओ मिलकर सब करें,बरगद-रोपण-काम।
पीपल-बरगद-नीम से,बने धरा सुख-धाम।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446373

रामकेश एम यादव(

आशिकी!

बारिश की बूंदें टपकने लगी हैं,
आशिकी जहां की बढ़ने लगी है।
छाई थी उदासी दुनिया में कब से,
बीमारी जमीं से उखड़ने लगी है।
हुई अंकुरित जड़  कारखानों की,
ऋतुएँ विकास की पनपने लगी हैं।
हवाओं के आँचल हो  गए चंचल,
दिशाएँ दशों फिर थिरकने लगी हैं।
बागों में लौटे  फिर से वो भौरें,
घूँघट से कलियाँ निरखने लगी हैं।
मर -मर के दुनिया जिए ये कहाँ तक,
जिंदगी में रस फिर घोलने लगी हैं।
लगी है छलकने मोहब्बत की हाला,
प्यासी ये दुनिया पीने लगी है।
ठहर-सी गई थी जो डालें पवन की,
वो डालें हवा से लचकने लगी हैं।
जादू भरा है कुदरत में देखो!
दुआएँ सभी पर बरसने लगी है।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

अभय सक्सेना एडवोकेट

विद्या: कुंडली
शीर्षक: डरता हूं मैं
********************
अभय सक्सेना एडवोकेट

डरता हूं मैं,नये काव्य सृजन से
चुरा ना ले कोई, हमारी कलम से
हमारी कलम से,होती अनूठी रचना
हमेशा करता हूं  नये विचारों की सरंचना 
कह रहे अभय कहीं खो ना जाऊं मैं
क्यों ऐसे स्वप्न से हमेशा डरता हूं मैं।
************************
अभय सक्सेना एडवोकेट
48/268, सराय लाठी मोहाल
जनरल गंज,कानपुर नगर।
9838015019,8840184088
saxenaabhayad@gmail.com
स्व-रचित/मौलिक/ अप्रकाशित/सर्वाधिकार सुरक्षित

डाॅ० निधि त्रिपाठी मिश्रा

*शय जिन्दगी है दिलकश* 

शय जिन्दगी है दिलकश, उनको पता नहीं, 
जिनको कभी किसी से ,मुहब्बत हुई नही।

लज्जत बड़ी तड़प में, वफा क्या पता नहीं, 
चाहत की चोट दिल पर, जिनके लगी नही।

मदहोश बेखुदी का ,आलम पता नही, 
आँखों में जिनके सूरत ,हमदम बसी नही।

क्या इंतजार होता, है बेशक पता नहीं, 
आँखें ये मुन्तजिर कभी, जिनकी हुई नही।

दिल की किताब पढ़ ले, नजर कब पता नही, 
अहसास की कहानी, लब ने कही नही। 

करते जतन सभी, क्यूँ न सम्भले पता नही ?
चाहत सनम जहाँ में ,छुपती कभी नही ।

सौदागरी वफा की उनको पता नही। 
जिसने कभी मुहब्बत, शर्तों पे की नही।

स्वरचित- 
डाॅ०निधि त्रिपाठी मिश्रा 
 अकबरपुर ,अम्बेडकरनगर

निशा अतुल्य

हाइकु
प्रकृति
10.6.2021

प्रकृति देख
बारिश की बूंदों से
भरे आँचल ।

तपती धरा
अब सूखे विटप 
भूले खिलना ।

चाँद चमका
आसमान से देखो
रात है रोई ।

पपीहा बोला
है चातक अधीर 
रात रोहिणी ।

बीते जो पल
जीवन का अतीत
वास्तविकता ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

कुण्डलियां

पूजा जग वट वृक्ष की,है वैज्ञानिक सोच,
सावित्री वट वृक्ष को,पूजा निःसंकोच।
पूजा निःसंकोच,मिला पति उसको वापस,
पिघले श्री यमराज,देख सावित्री तापस।
कहें मिसिर हरिनाथ,जगत में और न दूजा-
 बरगद तरु-व्रत सदृश,जो सावित्री-वट-पूजा।।

            ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

नूतन लाल साहू

पहली बरसात

जीवन एक कहानी है
कभी हंसाती है कभी रुलाती है
पर आज मैं बहुत खुश हूं
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात
धूप में तपते
पसीने से तमतमाया चेहरा
काला सा पड़ गया था
बहुत ही अखरता था
रात में करवट बदलना
आने दो
मौसम की बहारों को
सुनहरें मधुमास को
छलक पड़े है, खुशियों की आंसू
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात
हरी कोंपले फूटेंगी
पंछी भी डोलेंगे
उत्सवों के गीत गाए जायेंगे
आसमां के आंगन में
उमड़ घुमड़ मेघों संग
दामिनी दमक उठी है
बदरी भी गरज रही है
देखते ही देखते
झूम रहा है सबका मन
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात
आ नीचे चंचल बूंदों संग
मानो भू से मिलना चाह रही है
आतुर सी लग रही है
भू की प्यास मिटाने को
छल छल छल छल झर झर झर झर
कभी जोरो से बरसती
शीतल जल से सहला रही है
आहिस्ता आहिस्ता
हो रही है पहली बरसात

नूतन लाल साहू

सुधीर श्रीवास्तव

परमहंस
********
मन ,वचन, कर्म से
पवित्र है जो,
नीति, नियम, धर्म का
भाव जिसमें है,
लोभ, मोह से मुक्त हो,
दया,करुणा से युक्त हो
समभाव का गुण हो जिसमें
चाल,चरित्र ,चेहरे में
समग्रता ,सद्व्यवहार लिए
भय, क्रोध, लालच से
मुक्त है भक्तिभावी
ज्ञान की गंगा में
नित स्नान करे,
देता ही रहे सबको
लेने की भावना न रखे
निंदा, नफरत, ईर्ष्या से
कोसों दूर हो,
जाति,पंथ,धर्म, मजहब
ऊँच नीच का भेद न करे,
आत्मज्ञानी, तत्वदर्शी
परमसत्ता से संबद्ध हो
हरहाल में सम हो जो
मन से वैरागी हो
तन से साधुसम
सभी जीवात्मा में
देखता हो ईश्वर को
ऐसा पुण्यात्मा ही
ईश्वर का दूत बन धरा पर
जीवन बिताता है
परमहंस कहलाता है।
■ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
© मौलिक, स्वरचित

मधु शंखधर स्वतंत्र

मधु के मधुमय मुक्तक
विषय - मार्गदर्शन

प्रथम मार्गदर्शन करे ,  मात पिता गृह धाम।
दूजे शिक्षक से मिले, सतत ज्ञान निष्काम।
सफल साधना  से मिले ,  सामाजिक शुभ ज्ञान,
यही सफलता मंत्र है, प्राप्त करे जग नाम।।

करे मार्गदर्शन वही, होता है गुरुदेव।
धर उदार वह भावना, रहे सुंदर स्वमेव।
लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में जीवन वह सुखधाम।
मिले सुखद नव राह तो, सच्ची होती ठेव।।

साथ मार्गदर्शन मिले, और मिले नित ज्ञान।
विकसित स्वयं समाज में, प्राप्ति सुखद सम्मान।
सदा समर्पित भावना , पहुँचाए शुभ लक्ष्य,
बाधाएँ सब दूर हों , स्वयं साथ भगवान।।

वही मार्गदर्शन करे, जिसके उच्च विचार।
श्रेष्ठ भावना को धरे, सामाजिक आधार।
नहीं लोभ ईर्ष्या  बसा, नहीं ह्रदय में रोष ,
सदा समर्पित ही रहे, ह्रदय बसे मधु प्यार।।

मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल ---
1.
क्या खाक जुस्तजू करें हम सुब्हो-शाम की 
जब फिर गईं हों नज़रें ही माह-ए-तमाम की 
2.
शोहरत है इस कदर जो हमारे कलाम की
नींदें उड़ी हुई हैं यूँ हर खासो-आम की 
3.
हर शख़्स हमको शौक से पढ़ता है इसलिए
करते हैं बात हम जो ग़ज़ल में अवाम की 
4.
जो कुछ था वो तो लूट के इक शख़्स ले गया 
जागीर रह गई है फ़कत एक नाम की
5.
 खोली किताबे-इश्क़ जो उसकी निगाह ने
उभरीं हरेक हर्फ़ से मोजें पयाम की 
6.
ज़ुल्फों में उसकी फूल भला कैसे टाँकता
हिम्मत बढ़ाई उसने ही अदना गुलाम की 
7.
ज़ुल्फ़े-दुता का नूर अँधेरों को बख़्श दे 
प्यासी है कबसे देख ये तक़दीर शाम की 
8.
*साग़र* धुआँ धुआँ है फ़जाओं में हर तरफ़
शायद लगी है आग कहीं इंतकाम की 

🖋️विनय साग़र जायसवाल बरेली
जुस्तजू -खोज ,तलाश
माह-ए-तमाम-पूर्णमासी का चंद्रमा 
ज़ुल्फ़े-दुता-स्याह गेसू 
नूर-प्रकाश 
इंतकाम-बदला 
24/5/1979

सुधीर श्रीवास्तव

हाइकु
सुख दु:ख
=======
सुख दुःख तो
आते जाते रहेंगे,
फिक्र न कर।
+++++++
दु:ख आया है
पहाड़ बनकर,
जाने के लिए।
++++++++
सुख दु:ख तो
स्थाई भाव नहीं,
चला ही जाता।
+++++++++
सब कहते
सुख दु:ख जीवन,
सत्य वचन।
+++++++++
सुख आया है
चला भी तो जायेगा,
आने के लिए
+++++++++
@सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
@मौलिक, स्वरचित,

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

.
                     कविता
               *बेटी की विदाई*

      बेटी अनमोल रत्न,घर की वो शान,
      हर पिता को उस पर,है अभिमान।
      संस्कार-संस्कृति का पावन बंधन ,
      हर समय रखती जो,घर का मान।।


       बेटी की विदाई,सत्कर्मों का फल,
       फिर भी न जाने,कैसा होगा कल।
       विश्वासों की गठरी सा है यह तल,
       मन होता है विचलित पर तू चल।।


       माँ-बाप की,बेटी ने लाज बचाई,
       ओस बूंद सी ये,सबके मन भायी।
       मनभावन बन्धन की रीत बनाई,
       इसलिए करते हैं बेटी की विदाई।।

       पिता के भाल का बेटी है चंदन,
       तभी तो हम सब करते हैं वंदन।
       विदाई की इस बेला को  नमन,
       आओ सब करें हम अभिनंदन।।

       आओ,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,
       घर-आंगन में सब खुशियाँ लाओ।
       एहसासों की इस बदली को मानों,
       सत्कर्मो का पुण्य फल है जानों।।

        ©®
        रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

ग्यारहवाँ-7
  *ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-7
सुनतै सभ जन भए अचंभित।
भईं नंद सँग जसुमति चिंतित।।
      सभ जन आइ निहारैं किसुनहिं।
      करैं सुरछा सभ मिलि सिसुनहिं।।
यहि क अनिष्ट करन जे चाहा।
मृत्य-अगिनि हो जाए स्वाहा।।
    आवहिं असुर होय जनु काला।
    मारहिं उनहिं जसोमति-लाला।।
साँच कहहिं सभ संत-महाजन।
होय उहइ जस कहहिं वई जन।।
    कहे रहे जस गरगाचारा।
    वैसै होय कृष्न सँग सारा।।
मारि क असुरहिं किसुन-कन्हाई।
सँग-सँग निज बलरामहिं भाई।।
    गोप-सखा सँग खेलहिं खेला।
   नित-नित नई दिखावहिं लीला।।
उछरैं-कूदें बानर नाई।
खेलैं आँखि-मिचौनी धाई।।
दोहा-नटवर-लीला देखि के,सभ जन होंहिं प्रसन्न।
         भूलहिं भव-संकट सभें,पाइ प्रभू आसन्न।।
        संग लेइ बलरामहीं,कृष्न करहिं बहु खेल।
        लीला करैं निरन्तरहिं,ब्रह्म-जीव कै मेल।।
                    डॉ0 हरि नाथ मिश्र
                     9919446372

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