डॉ. कवि कुमार निर्मल

आज का कविमन जाग उठा है
शंखनाद् कर आगे चल पड़ा है

कंटकाकीर्ण पथ है पर  परवाह नहीं है
जन जागरण हुआ मशाल जल उठी है

क्षल प्रपंच की चहुंओर व्याप्त है छाया
तमसा से कुपित हुआ मन और काया

विषाणुओं का प्रचण्ड विनाशकारी ताण्डव की  छाया 
कवि हुंकृति कर सात्विकता का ध्वज आज फहराया

डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, बिहार

अलका जैन आनंदी

रक्तदान दोहे

बडा न इससे दान हैं, सदा बचाता जान।
 रक्त तो बहुमूल्य है, कीमत लो पहचान।।
 रक्तदान जो कर रहे, है यह दान महान।
 बने दुबारा जल्द ही, देते जो श्रीमान ।।

संकट में जो दान दे,करे सभी सम्मान ।
रक्त पुनः बन जाएगा, लौट न आती जान।।
 हर पल होता कीमती, कर लो लोगों दान,
खोया अवसर नींद में, कैसे हो सम्मान।।

 कर्म धर्म के साथ में, हुआ परीक्षा काल। 
 मौका मिला भाग्य से, तुम बन जाओ ढाल।।
दान रक्त भारत करें, जिसमें हो संस्कार ।
सदा बचाता जान है, पावन बड़े विचार।।

 पाँच जून उत्तम दिवस, रक्त दान को मान ।
  त्रि मास अंतराल से,  सब देते  सम्मान।।
दाता बनकर तुम जियो, जीवन है संगीत।
 रक्तदान उत्तम बड़ा ,जानो मेरे मीत।।

 ज्ञान ध्यान सब कुछ करो ,जग में पाओ मान।
 कार्य बड़ा महान है ,रक्त करें जो दान।।
जाति धर्म कोई रहे ,रंग रक्त का लाल ।
संकट में जो साथ दे, बनताद वही मिशाल।।

 रक्तदान करके मिले, हृदय को सुख अपार।
 समय पर जो कर न सका,फिर देखें लाचार।।
लौह तत्व लेते नहीं, होता फिर कम खून।
 सेव अमरूद लीजिए,होए लहू फिर दून।।

अलका जैन आनंदी

डॉक्टर रश्मि शुक्ला

रक्त दान दिवस 

कुछ न अपना हित सँजोता, रक्त दान में है हर्ष, 
मनुज को जीवन देता, सतत कितने वर्ष। 
प्यार, करूणा और दया से भर रहा है मर्म, 
दुःख सहन, मनुज सेवा, त्याग रक्त दाता के धर्म। 

मानवीय मन में पले न अब कोई दुर्भावना, 
श्रेष्ठता अंकुरित हो,यही रक्त दाता की है सबसे कामना।

रक्त दान कर ही 'लोकसेवी 'व्यक्तित्व निखरता है,
दुर्लभ मनुष्य जीवन, यूँ ही तो सँवरता है।

सब प्राणियों में मानव ही श्रेष्ठतम इस लिए है,
 दान,धर्म, दया,करूणा, विवेक की भी संपदा लिए है।

इस हेतु दान में महा दान रक्त दान करते रहें सदा ही,
'सर्वे भवन्तु सुखिनः का मंत्र स्मरणशक्ति सर्वदा ही।

देश-समाज, लोक-मंगल हित, स्वस्थ मनुज हँसकर रक्त दान करे,
भरें उदात्त भावना उर में, दुखी बिमार की पीर हरें।

अंधकार, अज्ञान, अनय की,छाया से हम दूर रहें,
फुलों-सी मुस्कान बिखेरे,आतप, वर्षा, शीत सहें।

मुरझाए, कुम्हलाए,मूर्च्छित, प्राण-पुष्प हों हरे-भरे,
समता-ममता की छाया में मानव से मानव रक्त दान करे।


डॉक्टर रश्मि शुक्ला(समाज सेविका)
 प्रयागराज
उत्तर प्रदेश

चंचल हरेंद्र वशिष्ट

'रक्त का रक्त ही विकल्प'

रक्तदान है महापुण्य,इससे बड़ा न धर्म
मरते को जीवित करे,जान लीजिए मर्म

रक्त न देखे जात-धर्म,रंग लहु का एक
रक्तदान कर प्राण बचाले,कर्म यही है नेक

रक्तदान है महादान,इसका नहीं विकल्प
स्वस्थ हो तो आज ही रक्तदान का लें संकल्प
चंचल हरेंद्र वशिष्ट,नई दिल्ली

एस के कपूर श्री हंस

*।।ग़ज़ल।। संख्या 112।।*
*।।काफ़िया।। आन ।।*
*।।रदीफ़।। बन कर देखो।।*
1
तुम गैरों पर भी मेहरबान बन कर  देखो।
तुम जरा सही    इंसान   बन कर देखो।।
2
बच्चों के साथ   बच्चे बन  कर   खेलो।
तुम भी जरा मासूम नादान बनकर देखो।।
3
मत भागो   हमेशा झूठी शोहरत के पीछे।
तुम  औरों के भी कद्रदान बन कर  देखो।।
4
जमीं पर ही रह कर जरा सोच रखो ऊँची।
तुम जरा ऊपर    आसमान बन कर देखो।।
5
जड़ से उखाड़  फेंकें  काँटों के पेड़ को।
तुम जरा  वह   तूफान   बन   कर  देखो।।
6
जज्बा  और जनून   हो खूब  अंदर तेरे।
तुम वैसे   इक़   रहमान   बन  कर देखो।।
7
अपने ही सुख में मत मशगूल रहो हमेशा।
किसीऔर के गम में परेशान बनकर देखो।।
8
मसीहा सी सूरत संबको नज़र आये तुममें।
तुम ऐसी ही   सबकी शान बन कर देखो।।
9
*हंस* अपने अंदर भी   झांको  टटोलो खूब।
तुम खुदअंदर दुनिया जहान बन कर देखो।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।।*
मोब।।।।।        9897071046
                      8218685464

ज्योति तिवारी

मंगल मूर्ति मारूति नंदन
पवनपुत्र हनुमान

श्री राम भक्त बलशाली
तुम हो दयानिधान
करि‌  जोर विनती करूं
दीजो यह वरदान

रोग  शोक सब दूर हो
सुखी समृद्ध ज़हान
बाबा तिहारे चरणों में
विनती करूं धरि ध्यान
विपदा आई जगत में
दूर करो‌ हनुमान
तुम्हारे भक्त तुम्हें पुकारे
रखियो सबका मान
मेरी विनती सुनो हनुमान।।
🙏🏻🌹 सुप्रभात

ज्योति तिवारी
बैंगलुरू

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

बारहवाँ-5
  *बारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-5
स्तुति-पाठ द्विजहिं सभ कीन्हा।
गा प्रसाद गंधर्बहिं लीन्हा ।।
   पर्षद सभें कीन्ह जयकारा।
   हते अघासुर प्रभु उपकारा।।
सुनतै स्तुति-मंगल गाना।
उछरि-कूदि आनंद मनाना।।
    ब्रह्मा ब्रह्म-लोक तें आए।
    किसुनहिं महिमा लखि सुख पाए।।
कीन्हेउ अघासुरै उद्धारा।
काल-मुहहिं तें गोप उबारा।।
     भई मही जनु पाप-बिहीना।
     सभें सरन निज नाथहिं लीना।।
प्रभु के छुवन मात्र अघ भागै।
सोवै पाप पुन्य जग जागै।।
    कारन-करम व ब्यक्त-अब्यक्ता।
    पुरुषइ परम सनेही-भक्ता।।
बाल-रूप जग लीला करहीं।
प्रभु परमातम सभ जन कहहीं।।
दोहा-एक मूर्ति प्रभु राखि के,करै जे नित-प्रति ध्यान।
         हिय मा रखि निरखै छबी,होय तासु कल्यान।।
        वहि सालोक्य-समीप्यही,वइसै गति कै दान।
        अस जन मिलै सतत इहाँ,अह जे भगत प्रधान।।
              डॉ0हरि नाथ मिश्र
               9919446372

नूतन लाल साहू

आजकल

ढंडी हवाओं की झोंको में
सुबह सुबह
हरी घास पर टहलना
मुझे अच्छा लगता है
लेकिन गर्म चाय की
प्याली के साथ
अखबार की सुर्खियों में
जब पढ़ता हूं
अपहरण, बलात्कार
और मारकाट की
दर्जनों जघन्य घटनाएं
तब सिहर उठता है मेरा मन
और प्रश्न उठता है मेरे मन में
कि कब बंद होगा
जर, जोरू और जमीं के लिए
कत्लेआम
और खून बहाना
निर्दोष को सताना
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
रंग रंगीले लोग
गिरगिट की तरह,रंग बदल रहे है
निजोन्मुख,स्वार्थरत
जानते ही नहीं है
प्यार का स्पर्श
और वाणी के मधु रस को
मानाकि जीवन एक कैनवास है
उस पर है, आड़ी तिरछी लकीरें
उन लकीरों से ही
बनते है, संवरते है
कुछ सजीव कुछ निर्जीव रिश्ते
पर प्रश्न उठता है मेरे मन में
शिक्षित और सर्व सुविधा संपन्न
वह आदमी
कब बनेगा, एक अच्छा इंसान
क्या यही इक्कीसवीं सदी है
आजकल ये क्या हो रहा है

नूतन लाल साहू

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल--

मौसम-ए-गुल है सनम लुत्फ़ उठाने के लिए
कितना अच्छा है समाँ प्यार जताने के लिए

दिल की बेताब तमन्नाएं मचल उठ्ठी हैं
साज़े -दिल छेड़ ज़रा गीत सुनाने के लिए 

यह बुज़ुर्गों ने बताया है कई बार हमें
बात बन जाती है गर सोचो बनाने के लिए

इससे बेहतर था मुलाकात न करते उनसे
जब भी मिलते हैं तो बस दिल को दुखाने के लिए

ऐसे रूठे कि न आने की क़सम  खाके गये
*हमने क्या क्या न किया उनको मनाने के लिए*

 उनके घरवाले मुहब्बत को तरस जाते हैं
जो भी परदेस गये रोज़ी कमाने के लिए 

हमने जो पेड़ लगाये है यहाँ पर *साग़र*
छोड़ जायेंगे  विरासत ये ज़माने के लिए

🖋️विनय साग़र जायसवाल, बरेली
1/6/2021

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*दोहे*(भोर)
पंछी-कलरव भोर का,देता हर्ष अपार।
जीवन के संगीत का,यही दिव्य आधार।।

भोर तिमिर-उर फाड़ कर,दे जग को उजियार।
उदित सूर्य की लालिमा,सुंदरता-आगार।।

जल-थल-नभ तीनों दिखें,परम दिव्य शुचि लोक।
भोर-भास्कर-किरण पा, प्राणी  रहें  अशोक।।

भोर-काल के सूर्य को,सब जन करें प्रणाम।
सूर्य-नमन के लाभ का, लगे न कोई दाम।।

तन-मन को ऊर्जा मिले, महिमा भोर महान।
भोर-काल का है यही, अति उत्तम अवदान।।
            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

मधु शंखधर स्वतंत्र

बरसात
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मौसम है बरसात का, बूँदे हैं चितचोर।
काले बादल आ गए, घिरी घटा घनघोर।
छम छम करती बूँद की, मनमोहक आवाज,
आकर्षित करी सदा , सुखद लगे यह भोर।।

यादों में बरसात वो , जिसमें साथी साथ।
बूँद बूँद से खेलते, हाथ लिए सब हाथ।
कागज की नैया बना, बहा दिए जलधार,
डूबे जब नैया वहाँ , धैर्य बसाते नाथ।

पल्लव की शोभा बढ़ी, आह्लादित बरसात।
पक्षी कलरव कर रहे , इंद्रधनुष सौगात।
मधुर गीत संगीत से, झूम रहे सब लोग,
लोकगीत सावन कहे, सुगम सुखद हर बात।।

हे ईश्वर ऐसी करो, नेह सुधा बरसात।
द्वेष मिटाए रवि नवल , सुंदर सुखद प्रभात।
सृजन कर्म की भूमि पर,सुरभित होते पुष्प,
रंग बिरंगे भाव में, भक्ति मुदित *मधु* बात।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️

रामकेश एम यादव

हे! ईश्वर

प्यार की बारिश करके प्रभु तू,
जग का मन निर्मल कर दो।
घूम रहा है वायरस जग में,
जल्दी उसे दफ़न कर दो।

सांसों की सरगम न टूटे किसी की,
होंठों पे खिलती बहार रहे।
उड़ने वाले वो उड़ें गगन में,
हमसे गगन क्यों दूर रहे।
खाली झोली में हे! ईश्वर,
अब तू चैनो-अमन भर दो।
घूम रहा है वायरस जग में,
जल्दी उसे दफ़न कर दो।
प्यार की बारिश करके प्रभु तू,
जग का मन निर्मल कर दो।

वक़्त के हाथों कैसा ये खंजर,
दिल में रोज उतरता है।
जल रही लाशों के संग में,
कितना सिंदूर उजड़ता है।
बरस रही इस मौत को मालिक,
इसका अब तू हवन कर दो।
घूम रहा है वायरस जग में,
जल्दी उसे दफ़न कर दो।
प्यार की बारिश करके प्रभु तू,
जग का मन निर्मल कर दो।

जुल्फों के साये में धड़के धड़कन,
लहरों पे सबकी शाम ढले।
घुट-घुट कर क्यों घर में रहे हम,
अब तो पुराने दोस्त मिलें।
दूर करो जहरीली हवा ये,
हर घर को रोशन कर दो।
घूम रहा है वायरस जग में,
जल्दी उसे दफ़न कर दो।
प्यार की बारिश करके प्रभु तू,
जग का मन निर्मल कर दो।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/16)
आओ गले लगा लूँ प्रियवर,
हर्षित मेरा मन हो जाए।
तेरे नरम छुवन से मेरा-
तन शीतल चंदन हो जाए।।

कब तक दूर रहोगे मुझसे,
दूरी सदा प्रेम की बाधक ।
साथ-साथ जो सुख-दुख बाँटे,
वही प्रेम का सच्चा साधक।
आओ बैठ करें हम बातें-
जीवन-वन नंदन हो जाए।।
      तन शीतल चंदन हो जाए।।
      आओ गले लगा लूँ प्रियवर।।

प्यासा मन यह तड़प रहा है,
प्यास बुझाने आओ साजन।
प्रेम सघन घन बन सावन का,
अमृत जल बरसाओ राजन।
एक बूँद ही हलक उतर जा-
माटी तन कंचन हो जाए।।
    तन शीतल चंदन हो जाए।।
     आओ गले लगा लूँ प्रियवर।।

प्रेम पलायन कभी न चाहे,
यद्यपि जग अवरोधक रहता।
बाधाओं को पार सदा कर,
यह मधुर मिलन निश्चित करता।
मिलो गले आ बिघ्न पार कर-
अमर प्रेम-बंधन हो जाए।।
      तन शीतल चंदन हो जाए।।
       आओ गले लगा लूँ प्रियवर।।

आओ हम तुम दोनों मिलकर,
फिर जीवन को सुखमय कर दें।
उजड़ी-उजड़ी बाग रही जो,
उसको फिर से मधुमय कर दें।
नव-नव पुष्प खिलेंगे जैसे-
यह कुसुमित उपवन हो जाए।।
      तेरे नरम छुवन से मेरा-
      तन शीतल चंदन हो जाए।।
      आओ गले लगा लूँ प्रियवर।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

अलका जैन आनंदी



चेतना
*1* सब लोग करें अपने मन की,
 हमको अब काम सदा करना।
 मानव तन ये अनमोल मिला,
 कर कर्म सदा पडता भरना।।
 भवसागर पार लगा हमको,
 दुखिया दुख दूर सदा हरना।
 मत देख सुनो अपने तन की,
 नदियाँ बहती बहते झरना।।

*2* अतिवीर सदा हरते दुख को,
 भवसागर पार हमें करिए।
भटका मन पाप पुण्य समझे,
 अब दूर करो विपदा सुनिए।।
हम तो ठहरे मति मूढ सदा,
 अब छोड़ दिया उत्तम चुनिए।
 हम क्रोध सदा झटसे करते,
 अब सोच सके मन में भरिए।।

आनंदी@©️®️

निशा अतुल्य

बदरिया घिर आई

बदरिया घिर आई
सावन की ऋतु छाई
काले काले मेघ उठे
बूंदे बरसाए हैं ।

झूले अम्बवा पे डाले
ऊंची पींग तू बढाले 
दामिनी चमक रही
मन भीग जाए हैं ।

कजरी मैं गाऊँ कैसे
दिन आये है सुहाने 
मन लगे नहीं यहाँ 
पीया याद आए है ।

बाबुल का देश छूटा
पीया का संग अनूठा
दिल कहीं लगे नहीं 
मन भरमाए है ।

स्वरचित
निशा"अतुल्य"

सुधीर श्रीवास्तव

सदाचार
*******
आचार, विचार, व्यवहार संग
सदाचार भी जरूरी है,
ऐसा करना जरुरी नहीं
इसीलिए तो और भी जरूरी है।
सदाचार के बिना
सब बिखरता जायेगा,
लाख कोशिशों के बाद भी 
आपका अपना ही व्यक्तित्व
खोता जायेगा।
एक बार जो खो गया व्यक्तित्व तो
लाख कोशिशों के बाद
शायद ही लौट पायेगा,
मगर तब तक आप
जो कुछ भी खो चुके होंगे,
वह वापस कभी भी
न ही लौट पायेगा।
इसलिए अब तो भाइयों, बहनों
अच्छा है जाग ही जाइये,
खुशहाल जीवन के लिए
सदाचार अपनाइए।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
       गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित

देवानंद साहा आनंद अमरपुरी

.................कागज के फूल..................

प्रकृति के फूल  तो बहुत  ही सुंदर  होते हैं।
कागज के फूलभी कम सुंदर नहीं होते हैं।।

भले ही इनमें  प्राकृतिक खुशबू  नहीं होते;
पर इनमें काँटे-सी चुभन  तो नहीं होते हैं।।

माना कि ये देवी -देवों पर नहीं चढ़ा करते;
पुजन बाद इन्हें फेंकनेभी तो नहीं होते हैं।।

खिलने वक्त  की खुबसुरती  इनमें न सही;
मुरझाने  से भी  तो कोसों  दूर ही होते हैं।।

भँवरे भले ही इन पर गुंजन न करें ,न उड़ें;
पराग चुसभागने के भय तो नहीं होते हैं।।

फूलवारी का  मजा भले हमें  न दें ये फूल;
सिंचाई  के  मेहनत भी  तो नहीं  होते हैं।।

जीवन में हो कागज  के फूल-सा"आनंद";
उतार चढ़ाव की संभावनाएं नहीं होते हैं।।

-----------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"

कुमार@विशु

प्रदत्त विषय-गजानन
==========================
हे! सिद्धिविनायक गणनायक, हे! गजाननाय विघ्न हरो,
हे! विघ्नेश्वर रिद्धि-सिद्धिदायक,हे! गजवदनाय कृपा करो।।

प्रथमे पूजत नर नारी सदा ,हे! एकदन्त भव पार करो,
हे ! वक्रतुण्ड हे ! उमासुतं, हे! लम्बोदर सब कष्ट हरो।।

जो जपता नाम तिहारो नित , प्रभु तुम उसके भय नाश करो,
हे !  भालचन्द्र  हे !  विनायकं , दुष्टों  का  अब  संहार   करो।।

हे !  धूम्रवर्ण  कृष्णपिंगाक्षं , हे !  सुरप्रियाय मद नाश करो,
मंगल  कर्ता  भवभय हर्ता , हे ! विघ्नराजा तन त्रास हरो।।

हे ! त्रिपुण्ड  सुण्ड हे! गणपतये ,  तुम कृपा  करो क्षमा  करो ,
हे !  पुरारिपूर्नन्दनम् हे !त्रयम्बकै ,  मुदा करो मम हृदय रहो ।।

✍️कुमार@विशु
✍️स्वरचित मौलिक रचना

स्व0 नीरज जी की स्मृति में समर्पित रचनाएं जिसके लिए नीरज स्मृति साहित्य सम्मान से कलमकारों को सम्मानित किया गया......कलमकारों की भाव पूर्ण श्रद्धांजलि......देखें।

स्व. नीरज जी की स्मृति में समर्पित यह रचना...एक भाव पूर्ण श्रद्धांजलि.....🙏🏼💐


कहाँ तुम चले गए नीरज?
प्रश्न यह बार बार आता।
जहां से ऐसे हँस कर के अचानक कौन है जाता।

हमेशा बात करते रहे  गगन को आप छूने की।
सदा साहस बढ़ाते रहे  नया रचने रचाने की।
आशु कविता मधुर प्रति जन  आशु जाना नहीं भाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

कभी बचपन था भोला सा कभी परिपक्व ज्ञाता थे।
बना साहित्य साथ जीवन सृजनता के विधाता थे।
बना साहित्य का सुंदर काव्य रंगोली का नाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज.....।।

श्याम सुंदर के जाए थे श्याम सुंदर सा लाला है।
बना रचना को ही साथी बँधा बंधन निराला है।
छोड़ कर अपने प्यारों का रुलाकर क्यूँ गए ज्ञाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज...।।

बसाए थे ह्रदय दर्पण  सहज मन भाव में अपने।
ह्रदय के साफ सच्चे थे  सजाए थे बहुत सपने।
सभी बहनों में नटखट तुम  थे प्यारे एक ही भ्राता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

भक्ति की भावना लेकर यहाँ संगम पे आए थे।
दुबारा भी है आना अब यही वादा बताए थे।
बहुत सम्मान दे कहते देवी जी शब्द याद आता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

यहाँ से ले विदेशों तक सदा परचम ही फहराए।
दिलों में वास करते हो सभी को तुम बहुत भाए।
तुम्हें श्रद्धांजलि मेरी नैन मधु नीर बह जाता।
कहाँ तुम चले गए नीरज....।।

मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज ✒️

 नीरज अवस्थी जी श्रद्धा सुमन स्वरूप  कुछ पंक्तियां

वो आया गुदगुदाया हंसाया चला गया।
अपना बनाया और रुलाया चला गया।

ये उसकी थी नादानी या की शरारतें।
कुछ मेरी सुनी अपना सुनाया चला गया।

इस चार दिन की जिंदगी के हैं बड़े नखरे।
उसने भी अपना पाठ निभाया चला गया।

तू भी उसे खोकर नही पा सकती अब हया।
उसने तुझे सँवारा सजाया चला गया।

नीरज कि ही मानिंद खिला सा रहा नीरज।
वन बागवा बिठाया लगाया चला गया।

वो तो गया जहां से यादें हमारे पास।
इक आईना बनाया दिखाया चला गया।

दर साल दर घड़ी तुम्हे ढूंढेंगे बेवफा।
ये क्या हुनर सिखाया बताया चला गया।
       अखिलेश तिवारी डाली बल्दीराय सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश


 इंदु दीवान
C/303
पायनियर पार्क 
सेक्टर 61
गुरुग्राम
हरियाणा
पिन कोड 122011
मोबाइल 9448933596

आशुकवि नीरज को श्रद्धांजलि

काव्य रंगोली रचाकर भाई, तुम कहाँ चले गए?
इतनी छोटी वय में क्यूँ हमसे मुख मोड़ गए?

हम सबको रोते-बिलखते छोड़ कर तुम, 
अनंत अमर यात्रा पर जाने क्यों चले गए?

काव्य रंगोली को कामायनी से सजाया,
जयशंकर प्रसाद जी का खूब मान बढ़ाया।

हिंदी भाषा का है तुमने गौरव बढ़ाया,
अपनी कविताओं से उसे खूब सजाया।

साहित्य रथ को चलाने वाले सारथी, 
आशुकवि नीरज भाई, 
तुमने हम सबको साहित्य मार्ग दर्शाया। 

प्रकाशक बन तुमने साहित्य को गले लगाया,
नवोदित साहित्यकारों का हौंसला बढ़ाया।

अनगिनत कविताओं के तुम जनक 
जाने किस लोक में होगा अब तुम्हारा पटल?

कलम क्यूँ मौन हो गई स्याही क्यूँ सूख गई।
ये कैसी आपदा, तुम्हारी वाणी हमसे रूठ गयी 

तुमसा कवि संपादक कहाँ अब अवतरित होगा?
कहाँ अब तुमसा रचनाकार हमसे मुखरित होगा 

साहित्य का करुण-क्रंदन शायद तुम सुन भी पाओगे
लेकिन क्या हमारे अश्रुपुरित हृदय को समझा पाओगे 

काव्य मंच का करुण रुदन, तुमको वापस न ला पाएगा।
किंतु हमारा दिल तो सदा तुम्हारी ही कविताएँ दोहराएगा 

अविरल अश्रु  कदाचित समय के चलते सूख भी जाएँगे 
लेकिन अपने दिल से तुम्हारी यादें न कभी मिटा पाएँगे 

कहाँ अब काव्य रंगोली को तुमसा रचनाकार मिल पाएगा 
तो कहाँ हमें तुमसा कवि, प्रकाशक और भाई मिल पाएगा 

नीरज भाई तुम कहाँ चले गए? क्यूँ चले गए?
सदा ही विजेता बने तो यह समर कैसे हार गए?

टूटे हृदय से तुम्हारे शृंगारित इस काव्य मंच हम चलाएँगे 
संभवतः यही अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि हम तुमको दे पाएँगे
इंदु दीवान


 बिछुड़े साथी आशुकवि नीरज अवस्थी जी के प्रति
     ==============================
     नाम----प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
     पता--- आज़ाद वार्ड,मंडला,मप्र
    मोबाइल--9425484382
                     गीत
                  =====
हुआ यकायक सूर्य अस्त,देखो फैला अँधियारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।

तुम थे नीरज,खिले कँवल-से,चहरे पर मुुस्कान रही
सरस्वती के वरद् पुत्र तुम,नेह-प्रेम की गंग बही
तुमने सबका साथ निभाया,यारों के तुम यार बने
तुम सच में ही दिव्य पुरुष थे,भाव तुम्हारे प्यार सने
तुम बिन हमसब बिलख रहे हैं,मातम पसरा सारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।

आशुकवि सचमुच तुम चोखे,औरों को सम्मान दिया
हर लेखक,नव कवि को तुमने,जी-भरकर अरमान दिया
ख़ूब सँवारा,और सेवा की,फूल खिलाए हर डाली
 तुम तो थे सच्चे रखवाले,उपवन के थे तुम माली
तुमने साथ बीच में छोड़ा,हमसे छिना सहारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।


हुआ यकायक सूर्य अस्त,देखो फैला अँधियारा है।
हम सारे स्तब्ध हो गए,लुप्त हुआ उजियारा है।।
        *************************


आशुकवि नीरज अवस्थी जी की याद में कुछ पंक्तियाँ* 

नीरज जी थे एक अच्छे इंसान
करते थे साहित्य सेवा काम महान।
सबको रुला गया उनका जाना 
आसान नहीं उनको भूल पाना।

साहित्य के आप चमकते सितारे थे
कठिनाइयों से कभी न हारे थे।
संस्कार आप में कूट-कूट कर भरा था 
आपका साहित्य से संबंध गहरा था ।।

इतना जल्दी आपको नहीं जाना था
साहित्य सेवा का कर्म अभी निभाना था।
आपको हम कभी भूल नहीं पाएँगे
याद आएँगे आँखों में आँसू लाएँगे।

आप सरल हृदय, संयमी, मृदुभाषी थे
सबसे अच्छा था व्यवहार।
कर्मठ इमानदार और जिंदादिल
आप में दृढ़ इच्छाशक्ति थी अपार।।

आपको याद कर श्रद्धा सुमन चढ़ाते हैं
आपके काम मिलकर आगे बढ़ाते हैं।।

डाॅ. आलोक कुमार यादव
ग्राम- फुलवरिया मल्हनी
लक्ष्मीपुर, महाराजगंज


कवि नीरज स्मृति सम्मान 
 विषय - #नीरज से जुड़ी स्मृति #
 विधा - छंद मुक्त कविता 
आशुकवि नीरज अवस्थी जी की याद में कुछ  पंक्तियाँ समर्पित कर रहीं हूँ ।
 
बेरहम कोरोना ने, तुम्हें भी लिया लूट।
नहीं जानतीं थीं, इतनी जल्दी हम सब से  जाओगे छूट ।।

अभी पूरा करना था, कितने ही काम।
हो रहा था जग में  तुम्हारा  नाम ।।

हमें याद आ रहा है, वो सुहाना दिन ।
बाईस नवबंर अठारह के पल छिन ।।

भारत के  कोने-कोने से जुटें थें 
साहित्यकार ।
नीरज खड़े थें सबका , करने को सत्कार ।।

आज आँखो में वही मंज़र उभर कर आया है ।
 नीरज के कर कमलों से, साहित्य भूषण सम्मान पाया  है ।।

सभी को राह दिखाया, चाहतें थें सभी का हित ।
 क्यूं चल दिए नीरज , बना कर सबको मीत ।।

रीत , प्रीत , सीख मीत, मासूम  चेहरा ।
आज पूछती हूँ ईश्वर से, क्यूं लगा 
दिया पहरा ।।

आपके  साहित्य  शब्दों का  योग्दान।
युग युग तक रहेगी विश्व में  पहचान ।।

रत्ना वर्मा 
204अम्बिका अपार्टमेंट 
धनबाद -झारखंड



अर्चना वालिया
पता: मुंबई
मो०: 9220550712
कवि नीरज स्मृति सम्मान प्रतियोगिता

कविता: *साहित्य रत्न नीरज भाई*

हिंदी साहित्य-रथ के सारथी,
प्रिय भाई नीरज अवस्थी।
माँ भारती की सेवा में अविरल रत,
हिंदी के युवा साहित्यकार।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है। 

काव्य रंगोली मंच के संस्थापक,
आप थे साहित्य जगत के महानायक।
नवोदित कवियों को दिया गौरवशाली मंच,
उनकी लेखनी को दिया पूर्ण संबल।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है।

आप थे महाबली हनुमान के परम भक्त,
आप में था अद्भुत नेतृत्व कौशल।
हनुमान जयंती पर महायज्ञ रचाया था,
सबको उसमें शामिल करवाया था।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है।

आपने प्रकाशन का दायित्व संभाला था,
हमारी पुस्तक रामायण का प्रकाशन करवाया था।
हमें रामराज्य दर्शाया था,
हमारे सपनों को साकार करवाया था।
आपको नमन है, बारम्बार नमन है।

महामारी में सृजनता का बीज अंकुरित किया था।
सबका हौंसला बढ़ाया था।
पर स्वयं अकेले ही दुख सह लिया।
परिवार को बेसहारा छोड़ दिया। 
श्रद्धा-सुमन अर्पित कर परम शांति की कामना करती हूँ।

💐💐

23 मई, 2021
*अर्चना वालिया*



अभय सक्सेना एडवोकेट
48/268,सराय लाठी मोहाल,
जनरल गंज, कानपुर नगर।
9838015019,8840184088

*************************सूरज अपना अस्त हो गया 
*************************
अभय सक्सेना एडवोकेट
            #######
काव्य जगत के पटल पर,
उदय हुआ एक सूरज।
अपनी काव्य रश्मियों से,
पायी खूब शोहरत।।

काव्य जगत को उसने फिर,
एक नया आयाम दिया।
जन जन के मन-मस्तिष्क पर,
देखा कैसा राज किया।।

मंच मंच की शान था वो,
कविताओं की खान था वो।
हम सबकी आंखों का तारा,
"नीरज" उसका नाम था प्यारा।।

काव्य रंगोली की अलख जगाई,
हम कवियों की प्यास बुझाई।
हमेशा करते सबका सम्मान,
तनिक नहीं करते अभिमान।‌।

समय  बड़ा बलवान था,
कोरोना सा भयंकर काल था।
गिरफ्त में आ गये नीरज भैया,
खूब लड़े पर सो गये भैया।।

ग्यारह मई को पस्त हो गया,
सूरज अपना अस्त हो गया ।
"नीरज"अपना विलीन हो गया,   
प्रभु चरणों में लीन हो गया।।

अश्रुपूर्ण दें "अभय "श्रृद्धांजलि,
रखकर चरणों में पुष्पांजलि ।।
×====×=====×====×===



🌹नीरज स्मृति सम्मान 🌹
     
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
नाम के ही अनुरूप,किया जिसने है काम।
पंक में भी पुष्प खिले,नीरज वो नाम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
लाख बाधाएं को जैसे,चीरते चले नीरज।
आम आदमी में नहीं,आदमी वो आम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
जल में ही जलज के,खिलने से खिले ताल।
बिन सुना लगे गले,द्वार और धाम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
नीरज नसीब देख,टूटकर जिन्दगी से।
राम चरणों में यश,सुबा और शाम है।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग


श्रद्धा सुमन💐 *नीरज़ज़ी*💐

काव्य पाठ में शामिल होना सिखाया आपने,
प्रदान भी की दिशा नयी जीवन में हमारे आपने,
काव्य रंगोली के माध्यम से एक संसक्त मंच भी दिया आपने,
अंगुली पकड़ के चलना भी सिखाया आपने,
अब हज़ारों महफ़िलें भी है लाखों मेले भी है,
लेकिन बिना आपके *नीरज़जीं*हम सब एकदम अकेले है।
बिछड़े ...आप कुछ इस तरह की रुत ही बदल गयी,
एक आप की सक्शियत सारें शहर को वीरान कर गयी,
हम नम अश्रुपूर्ण आँखो से देखते ही रह गए....
आप यूँ जीवन विराम की गाड़ी पकड़, ईश्वर में अनायास विलीन हो गये ।
🙏🙏
अरुना शाह (प्रेरणा)
कोलकाता



 *आहत स्मृति की काव्यांजलि*

युग युग का लगा परिचय, सात महीने का संवाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

नीरज थे नीरज से कोमल,
अद्भुत था लेखनी का कौशल ।
जुड़ता उनसे जो एक बार,
थे बन जाते उसका संबल ।
समर्पित-लगनशील-प्रेमी, माँ वाणी का पवित्र प्रसाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

निर्दयी काल ने लिया छीन,
छोड़ गये, न होता यक़ीन ।
है रुँधा गला, वाणी नि:शब्द,
क्षुब्ध लेखनी, मन उदासीन ।
पता चला कितना असहाय, हिय करता है आर्त्तनाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

काव्य रंगोली हुई अनाथ,
पहला एकल आपके साथ ।
गीता पर भी बोला था मैं,
उनका ही पकड़ कर हाथ ।
यह अपनापन, यह रिक्तता, नहीं मिटेगा यह अवसाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।

नम आँसू से मेरे लोचन,
दु:खी करता यह खालीपन ।
आत्मा शान्ति हेतु प्रार्थना,
अर्पित हृदय के श्रद्धा सुमन ।
मित्र बने कई इस अवधि में, नीरज तो विशेष अपवाद ।
खोया बहुत अपना खोया, वर्षों तक आयेगी याद ।


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


(जयप्रकाश अग्रवाल काठमांडू नेपाल ।)



स्मृति शेष नीरज अवस्थी जी को समर्पित मेरी मुक्त कविता-
★क्या लिखूँ, क्या छोड़ूँ!★

क्या लिखूँ, क्या छोड़ूँ!
कुछ मुझे समझ नहीं आता!
क्यों हाथ छुड़ाकर चले गये,
ये बात समझ नहीं आता! 

आप "साहित्य के सूरज" थे,
ऐसे ढल नहीं सकते!
आप हम कवियों के अगुआ थे,
ऐसे छोड़ नहीं सकते! 

नये-नये परिंदों को,
आप "खुला आसमां" देते थे!
हम सबके गलतियों को,
कैसे?  हँसकर भुला देते थे! 

आपके कदमों को,
हम सब मंजिल तक पहुँचाएंगे!
नये-नये कलमकारों को,
"काव्य रंगोली" मंच बताएंगे! 

हे! "हिन्दी-सहित्य" के वट-वृक्ष!
कवियों के तुम प्रथम पृष्ठ!
ऐसे जाना कुछ ठीक नहीं, 
यूँ अपनों को रुलाना ठीक नहीं! 

आप होकर भी "स्मृति-शेष"
 हम सब कवियों के लिए "विशेष"
क्या पता था, यूँ छोड़ जाओगे!
रोयेंगे हम, आप तारा बन जाओगे! 

आपके इस "साहित्य-प्रेम" को
हृदय से नमन करता हूँ!
आपके अन्तिम बेला पर,
मैं कबीर "पुष्प अर्पित" करता हूँ!

– ऋषि कबीर
पता- बांसी सिद्धार्थनगर, उ.प्र.
पिन कोड- 272153
सम्पर्क सूत्र-9415911010
ईमेल- rishikabir1010@gmail.com
            -----★★★------



आशुकवि नीरज अवस्थी जी के स्मृति के उपलक्ष्य में एक कविता सादर समर्पित! 

नीरज जी भारत के अपने, आशुकवी  हैं प्यारे! 
भारत नहीं बिदेशों में भी, 
छापे गीत  खजाने!! 

कविता, गीत छंद सार से, 
नीरज भरते सागर! 
सभी गमों को दूर भगाते, 
सुख के भरते सागर!! 

उनके काब्य में लहरें उठती, 
बहती थी प्रेम की धारा! 
सभी गमों दुख दूर भगाते, 
सभी को लगते न्यारा!! 

नीरज जग के सभी बेदना,
काब्य के जरिये टाला! 
गीत, गजल, दोहा से अपने, 
सब मन किये उजाला!! 

रुलाते वे कभी नहीं थे, 
रोते ब्यक्ति हसाये! 
जीवन जीना कला सिखाये, 
कविता गीत बताये!! 

नीरज असमय मृत्यु हो गई 
अर्क अस्त हो जाना! 
नीरज मिले पंच तंत्र में, 
प्रभू चरण का जाना!! 
                                  अमरनाथ सोनी "अमर" सीधी म.प्र.



आशुकवि नीरज अवस्थी जी को श्रद्धांजलि स्वरूप एक रचना....* 
*गीत*
नीरज जी की सोच का अनुपम प्यारा यह आधार है।
संकल्पित आधार शिला पर काव्य रंगोली सार है।।

कर्मशील बेबाक व्यक्ति तुम सदा बहुत ही मान दिए।
शंकर जी कहते थे हमको, हम तुम पर अभिमान किए।
सदा सत्य को अपनाए थे , नैतिकता व्यवहार है।
नीरज जी की सोच का अनुपम...........।।

एक अचानक आँधी आई तिनके जैसा गिरा महल।
हार गए जीवन तुम अपना, मन होता है बहु विह्वल।
महाकाल की इच्छा जैसी करना बस स्वीकार है।।
नीरज जी की सोच का अनुपम.......।।

आना जाना सतत सत्य है , पर होता स्वीकार नहीं।
सूना यह साहित्य जगत है, दिखता अब उस पार नहीं।
जो भी लोग जुड़े थे तुमसे, उनका प्यार अपार है।
नीरज जी की सोच का अनुपम......।।

यही कामना है ईश्वर से , साहस अपनों को देना।
पत्नी पुत्र का संबल बनकर , सुंदर सपनों को देना।
श्याम सुंदर ही नीरज जी के,  सपनों का संसार है।
नीरज जी की सोच का अनुपम......।।
*ब्रजेश कुमार शंखधर*
*प्रयागराज*


" नीरज जी को श्रद्धा सुमन "
----------------------------------------
      - डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी

शब्द  अटक  रहे  हैं  मुंह  पर ,
गिर  रहे   हैं  आँसू   झर-झर !
हे   ईश्वर !  तेरा   जो  बिधान ,
कभी  न  सकते  हैं  हम जान ।
ग्यारह    मई   का  प्रातःकाल ,
छीन   ले  गया  जबरन  काल  !
साहित्य जगत का था सितारा ,
नीरज अवस्थी  सबका प्यारा ।
विलखता  छोड़  कर  परिवार ,
विधाता  तेरी  यह  कैसी मार ?
थे काव्य रंगोली के संस्थापक ,
समीक्षक  व  प्रवन्ध संपादक ।
क्रूर  काल  ले  गया  छीनकर ,
तड़फ  रहा  साहित्यकार  हर ।
उनके  पद चिन्हों पर चलकर , 
समाज सेवा  करे  मानव  हर ।
होगी  यही  श्रद्धांजलि  सच्ची ,
शिक्षा  लें  सब  बच्चा - बच्ची ।
---------------------------------------
   - डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ग्राम/पो.पुजार गाँव(चन्द्र वदनी)
द्वारा - हिण्डोला खाल
जिला - टिहरी गढ़वाल - 249122 (उत्तराखंड)
मोबाइल नंबर - 9690450659



कवि श्रेष्ठ नीरज जी को समर्पित यह कविता
🙏🙏🙏🙏🙏
काव्य जगत के दिव्य पुष्प हो,
इस उपवन की शोभा हो,
तुमसे सुरभित काव्य प्रांगण,
तुम साहित्य पुरोधा हो।
यथार्थ और जीवन को तुमने,
एक साथ है वहन किया,
जो कुछ तुमने देखा समझा,
काव्य रूप है उसे दिया,
अंतर्मन थी गहन वेदना ,
कलम उसे बाहर लाई,
प्रेम गीत जब लिख डाले तो,
प्रेम बेलि थी मुस्काई,
आंसू से उपजी जब पीड़ा,
नीरज का पद प्राप्त हुआ,
फूल अगर कोई मुरझाया,
तो नीरज को संताप हुआ,
काव्य रंगोली सजा के तुमको,
आज नमन मैं करती हूं,
हर युग में तुम आओ फिर से,
पुष्प समर्पित करती हूं।

स्वरचित
स्मिता पांडेय लखनऊ।



 नीरज जी की स्मृति में कुछ पंक्तियाँ


काव्य रंगोली से जिसने पहचान बनाई।
देश के विभिन्न प्रान्तों में काव्य गंगा बहाई।।

मातापिता के सच्चे सेवक नीरज ने बात बताई।
इनकी सेवा में रह जिसने साहित्य साधना पाई।।

नवोदित रचनाकारों को देश के बड़े मंच दिए।
काव्य रचनाएं कर प्रकाशित जग में की बढाई।।

सौम्य मृदुभाषी मिलनसार प्रकृति के लेखक थे भाई।
सम्पादक प्रकाशक कवि नीरज ने ऐसी  अलख जगाई।।

आशुकवि नीरज अवस्थी लाखों दिलों में है।
उन्होंने घर घर साहित्य ज्योति जगाई।।

बहुरंगी पत्रिका काव्य रंगोली जिसके हाथ आई।
श्रेष्ठ सम्पादन की करी पाठकों ने जमकर बढ़ाई।।

आज भले नीरज जी मध्य नहीं है हमारे।
लेकिन उनकी काव्य कृतियों ने उनकी याद दिलाई।।

डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
कवि,साहित्यकार
भवानीमंडी
जिला झालावाड
राजस्थान



कवि श्रेष्ठ नीरज अवस्थी जी को श्रद्धा सुमन 💐💐💐💐

अपने सुकृत से जग को 
देकर तुम अनुपम उपहार 
हे साहित्यदीप छोड चले 
असमय क्यूं यह संसार 

पाकर प्रेरणा तुमसे कई 
बने नवीन कई कलमकार 
और तुम्हारी सुकृतियों मे 
झलके तुम्हारे शब्दविचार 

दिव्य व्यकित्व व कृतित्व
अनुगामी जिसका संसार 
कालक्रुर ने छीना कैसे ये 
अनुपम सुंदरतम उपहार 

देती रहेगी प्रेरणा जग को 
आपकी बाते और विचार 
युग युग तक गाएगा जग 
हे 'नीरज' आपकी जयकार 

मौलिक व स्वरचित 
कमलेश जोशी 
कांकरोली राजसमंद 
9950741177
[23/05, 12:57] +91 91164 88506: *नीरज स्मृति सम्मान 2021*

*आशुकवि नीरज अवस्थी को समर्पित एक गीत*
🙏
*गीत*

है ! हिमगिरि के कलकल निर्झर
       निर्झर आँखे कर डाली।
चला गया काव्य का *नीरज*
       कविता है खाली खाली।।
-   -----
सत्य न्याय और कर्म पुजारी 
    आध्यात्मिक शुचिता धारी।
*काव्य रंगोली* के निर्माता
     सजा गया एक फुलवारी।।

 *लखीमपुर खीरी*  आँसू  में 
    क़लम डुबाकर  लिखती है।
प्रेम दूत के असमय निधन पर
    कुदरत भी  दुःख सहती है।।

धीरे धीरे फैल रही थी
             सूख गई वो हरियाली।
चला गया काव्य का *नीरज*
         कविता है खाली खाली।।
----
कोरोना के विषम समय पर
      लड़ता रहा वीर शमशीर।
राष्ट्र और मानवता के हित
        जूझा बहुत क़लम का वीर।।

याद हमे आता अंतिम पल
      एक बड़ा अनुष्ठान किया।
कोरोना में सबके हित को
      आध्यात्मिक आह्वान किया।।

औरों के  हित लड़ने वाले
       ख़ुद अपनी बलि दे डाली
चला गया काव्य का *नीरज*
         कविता है खाली खाली।।
- -----
आज नही तो कल नही तो 
           परसों आना ही होगा।
नीरज का जो रुका कारवां।
            आगे ले जाना होगा।।

काव्य चमन के उस माली के
            रथ को दौड़ाना होगा।
उनके सारे उद्देश्यों को
             पूर्ण बनाना ही होगा।।

सच्ची श्रदांजलि होगी तब
          जब ले हम सब जिम्मेदारी।
चला गया काव्य का *नीरज*
           कविता है खाली खाली।।
🌈🌈
*------------*
*रचनाकार*
*पवन गौतम बमूलिया*
*बाराँ(राज) 9116488506*
[23/05, 13:03] +91 88501 21797: स्व.आशुकवि श्री नीरज अवस्थी जी के श्री चरणों मे कोटि कोटि नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि 

थे मेरे साहित्यिक गुरु
किया मेरा साहित्य का सफर शुरू

था साहित्य मे परचम उनका 
थे साहित्य के महारथी

सरल सौम्य मृदुभाषी थे
कविता के थे खूब धनी

हँसते रहना खूब् हँसाना
एक अलग पहचान थी उनकी

नित नए करना आयोजन
था साहित्य को जीवन समर्पण

साफ सुथरी बेदाग छवि
थे महा धुरंधर आशुकवि

रचनाये थी अति उपयोगी
मनुष्य रूप थे वो जोगी

सबको प्रेम और सबको सम्मान 
नीरज जी थे कवि महान

अल्पायु मे ही परम धाम को प्रस्थान किये
रहे अमर आप सदा युगो युगो मे नाम रहे

सत्येंद्र पाण्डेय 'शिल्प'
गोंडा उत्तरप्रदेश
[23/05, 13:18] +91 88272 71176: * *आशुकवि नीरज अवस्थी जी के स्मृति में  प्रस्तुत कविता*

शीर्षक- *आशुकवि नीरज अवस्थी जी*

काव्य रंगोली के संस्थापक,
*नीरज अवस्थी* जी की योगदान अपार।
कवि लोक की उज्जवल चमकता तारा,
कवि हृदय से आपको नमन बारम्बार ।
कविता,छंद ,दोहे और चौपाई,
लखीमपुर खीरी के पावन भूमि का मान बढ़ाया है ।
लेखन कौशल से दुनिया भर में,
अपने सम्पादन कला से श्रेष्ठता का परिचय कराया है ।
विनम्रता और शिष्टाचार की धनी,
सरस्वती माँ के सच्चे उपासक हुआ ।
काव्य सरोवर के राजहँस,
*आशुकवि नीरज*  नाम अनमोल हुआ ।
नवोदित कलमकारों को मँच दिया,
उनके रचनात्मक गुणो को नव आकार दिया ।
मँच में सभी को सम्मान दिया,
रचनाओं का प्रकाशन कर सपना साकार किया ।
कर्मशील सत्यता के अनुरागी,
*नीरज* के दिये प्रेरक शब्द  अमूल्य है।
आपकी विचार एवं कल्पना अनन्त,
काव्य और भाषा शैली,विषय वस्तु अतुल्य है ।।
------------------------------------------------
*खेमराज साहू "राजन "*
*दुर्ग,छत्तीसगढ़*
[23/05, 13:20] +91 93361 74235: *स्वर्गीय नीरज जी को मैं इस कविता के माध्यम से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूं*।


थे साहित्य पुरोधा ज्ञानी काव्य रंगोली की शोभा।
 नवांकुरों की रहे प्रेरणा ऐसा था व्यक्तित्व घना।

प्रबल समर्थक राम राज्य के साहस सदा दिखाते थे ।
संयम, नियम  और दृढ़ता से नित्य नया रच जाते थे।

साहित्यिक परिवार बनाया काव्य रंगोली नाम दिया ।
कर अनाथ परिवार रंगोली काल तुम्हें ले कहाँ गया।

तुम बिन सूना पन छाया है चहुंदिस घिरी उदासी है ।
काव्य रंगोली  फीकी सी है आंखें नीर बहाती हैं ।

नीरज भाई दिया ज्ञान जो ,उसको सदा बढाएंगे ।
विफल न होगा कर्म तुम्हारा ज्ञान  ज्योति फैलाएंगे।
 
शब्द सुमन अंजुली में भर कर पुष्पांजलि चढ़ाते है ।
परमशक्ति में तुम विलीन हो, शत शत शीश नवाते हैं ।
मंजूषा श्रीवास्तव 'मृदुल, लखनऊ
[23/05, 13:41] +91 98970 71046: *(जाने तुम कहाँ चले गए।)*
*।।आ0 स्व0 नीरज जी की स्म्रति में ।।*
*((काव्य रंगोली लखीमपुर )पटल व संस्था*
*की विशिष्टता एवम स्व0 आ0 नीरज के काव्य रंगोली के प्रति समर्पण पर आधारित*
*रचना।)*
1
रंग रंग बिखरे हैँ   साहित्य
के     जहाँ    पर।
नित प्रतिदिन    नव सृजन
होता    वहाँ   पर।।
सुविख्यात  काव्य   रंगोली
संस्था कहलाती वो।
रचनाकारों  का      सम्मान
होता    यहाँ     पर।।
2
जिला स्थान  छोटा ही सही
दिल बहुत बड़ा था।
*नीरज जी* सा व्यक्ति स्वागत 
को आतुर  खड़ा था।।
हर उत्सव पटल   मनाता था
हर्षोल्लास        से।
कविता रंग   यहाँ हर   किसी
पर    चढ़ा       था।।
3
व्यवस्था  व  अनुशासन यहाँ
के प्रमुख   मापदंड हैं।
सहयोग व  सहभागिता  यहाँ
के मुख्य  मानदंड   हैँ।।
सीखने और सीखाने का क्रम
रहता यहाँ निरंतर जारी।
प्रतियोगिता  आयोजन संस्था
के मुख्य    मेरुदंड   है।।
4
भांति भांति के  रंग   मिलकर
बन गई है काव्य रंगोली।
प्रत्येक सिद्ध साहित्यकार की
यह तो    है   हम जोली।।
कविता लेख कहानी   हैं तरह
तरह        के           रंग।
 *स्व0 नीरज  जी* के कारण ये
बन गई सबकी मुँह बोली।।

*रचयिता।।एस के कपूर 'श्री हंस"*
*बरेली।।।*
मोब।।।           9897071046
                      8218685464
[23/05, 15:00] +91 94489 33596: इंदु दीवान
C/303
पायनियर पार्क 
सेक्टर 61
गुरुग्राम
हरियाणा
पिन कोड 122011
मोबाइल 9448933596

आशुकवि नीरज को श्रद्धांजलि

काव्य रंगोली रचाकर भाई, तुम कहाँ चले गए?
इतनी छोटी वय में क्यूँ हमसे मुख मोड़ गए?

हम सबको रोते-बिलखते छोड़ कर तुम, 
अनंत अमर यात्रा पर जाने क्यों चले गए?

काव्य रंगोली को कामायनी से सजाया,
जयशंकर प्रसाद जी का खूब मान बढ़ाया।

हिंदी भाषा का है तुमने गौरव बढ़ाया,
अपनी कविताओं से उसे खूब सजाया।

साहित्य रथ को चलाने वाले सारथी, 
आशुकवि नीरज भाई, 
तुमने हम सबको साहित्य मार्ग दर्शाया। 

प्रकाशक बन तुमने साहित्य को गले लगाया,
नवोदित साहित्यकारों का हौंसला बढ़ाया।

अनगिनत कविताओं के तुम जनक 
जाने किस लोक में होगा अब तुम्हारा पटल?

कलम क्यूँ मौन हो गई स्याही क्यूँ सूख गई।
ये कैसी आपदा, तुम्हारी वाणी हमसे रूठ गयी 

तुमसा कवि संपादक कहाँ अब अवतरित होगा?
कहाँ अब तुमसा रचनाकार हमसे मुखरित होगा 

साहित्य का करुण-क्रंदन शायद तुम सुन भी पाओगे
लेकिन क्या हमारे अश्रुपुरित हृदय को समझा पाओगे 

काव्य मंच का करुण रुदन, तुमको वापस न ला पाएगा।
किंतु हमारा दिल तो सदा तुम्हारी ही कविताएँ दोहराएगा 

अविरल अश्रु  कदाचित समय के चलते सूख भी जाएँगे 
लेकिन अपने दिल से तुम्हारी यादें न कभी मिटा पाएँगे 

कहाँ अब काव्य रंगोली को तुमसा रचनाकार मिल पाएगा 
तो कहाँ हमें तुमसा कवि, प्रकाशक और भाई मिल पाएगा 

नीरज भाई तुम कहाँ चले गए? क्यूँ चले गए?
सदा ही विजेता बने तो यह समर कैसे हार गए?

टूटे हृदय से तुम्हारे शृंगारित इस काव्य मंच हम चलाएँगे 
संभवतः यही अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि हम तुमको दे पाएँगे
इंदु दीवान
23/05/21
[23/05, 16:30] +91 99908 68117: आशुकवि नीरज अवस्थी जी को श्रद्धांजलि 💐💐🙏

तरह तरह के फूलों से 
काव्य रंगोली की बगिया सजा गये,
हर नये रचनाकारों को
मंच पे आने का मौका दिला गये।।

हर जरुरत मंद की सहायता
करने का हुनर सिखा गये,
खुद से बन पड़ता है जो करते रहना
ऐसा ज्ञान मार्ग हमें वो दिखा गये। 

काव्य जगत को एक नई
दिशा अनूठी दे गये,
नवांकुर रचनाकारों को
लिखना बहुत कुछ सिखा गये।।

अवस्थी जी चले गये अब
छोड़ शरीर पावन धाम को,
पर जग में पीछे छोड़ गये
कवि नीरज के पावन नाम को।।
🙏🙏💐💐

चंपा पांडे
उत्तराखंड अल्मोड़ा(चौखुटिया)
[23/05, 16:52] +91 75870 72912: आशुकवि आद. नीरज अवस्थी जी
को समर्पित भाव पुष्प
सादर श्रंद्धाजलि
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


सच्चें सेवक मातु के,अनुपम रचना कार।
भाव पुष्प अर्पित करूँ, ले शब्दों का हार।।

काव्य रंगोली पटल हमारा।
हमको लगता सबसे प्यारा।।
बहती जहाँ काव्य रसधार।
भैया  नीरज  थे  कर्णधार।।

सृजनकार  विचारक  ज्ञानी।
करूँ नमन आदर सनमानी।।
जथा नाम तस गुण अवधारें।
  कोमल भाव सदा उर  धारें।।

ज्ञान ज्योति का दीप  जलाया।
सृजन हेतु  नव राह  दिखाया।।
लोप  हुई   यह   नश्वर काया।
प्रभु की अदभुत लीला माया।।

अमिट भाव बन मन बसें, निशदिन आती याद।
दो नैना आँसू भरें,  करते है फरियाद।।


वन्दहुँ गरुवर पदकमल,सदा नवाऊँ शीश।
पावहुँ सदा सर्वदा, गुरु कृपा आशीष।।

  मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर
सरगुजा छ. ग.
[23/05, 17:06] +91 98266 68572: नीरज जी आप बहुत याद आते हो।
काव्य रंगोली को सुन्दर सजाते थे।
वादा दो दूर तक साथ निभाने का था।
ईश्वर की मर्जी का सम्मान करना था।
वादा खिलाफी की यहा कोई बात नही।
अकेला छोड हमे आप जो चले गये।
यादों मे हमारे हमेसा के लिये बस गये।
मंच हमारा सुना विराण सा हो गया हैं।
ईश्वर आप को अपने चरणों में स्थान दे।
प्रार्थना यही कुन्दन ईश्वर से करता हैं।
कुन्दन पाटिल देवास मध्य प्रदेश
सम्पर्क - 9826668572
[23/05, 17:28] +91 93505 05009: *आशुकवि भाई नीरज अवस्थी जी को स्मृति स्वरूप विनम्र श्रद्धांजलि*


तारों के घराने का टिमटिम करता एक तारा,
उभरा था काव्य जगत के आसमां पर न्यारा।

बिखेर कर अपनी प्रतिभा चारों दिशाओं में
रुखसत हो गए नीरज भाई दूर कहीं जहाँ में।

क्यों छोड़ कर चल दिए काव्य रंगोली मंच को?
कौन होगा अब सारथी‌ सोचा न एक पल को।

इस जहाँ में सदा रहता नहीं कोई हरदम,
पर आप जैसे गए ऐसे भी नहीं कोई होता रुखसत।

कवि कभी मरते नहीं जिंदा रह जाते हैं
रंगमंच छोड़ अपनी कविताओं में।

आती रहेगी याद हमेशा कविताएँ जो आप लिख गए।
प्रेरणा लेकर हम चलते रहेंगे काव्य रंगोली मंच पर।

काव्य-पथ पर चलना आप सिखा गए।
मंजिल तक पहुँचने की दौड़ अभी है शेष। 

दुखमय दिन था 11 मई का जब अन्तिम पर्दा गिर गया 
निहारते रहे सब बेबस गमगीन निगाहों से और पंछी उड़ गया।

जाओ नीरज भाई, आप ज्यादा दूर मत जाना। 
जहाँ भी जाना पर वापसी की राह बनाना।

*डॉ वैंडी जैस*(स्वरचित)23/05/2021
 C-4-E /115, जनकपुरी,नई दिल्ली
110058
9350505009
[23/05, 17:34] +91 81046 39622: जो सजाता रहा काव्य के रंगों की रंगोली  ,
छोड़ गया रंगों की महफ़िल था सभी का हमजोली। 

शख्सियत थी अद्भुत बनाये नव प्रतिमान  ,
तनिक भी चिंता ना की था वो होनहार। 

बुझ गया वो सितारा जो सबको जलाता रहा, 
ना कोई स्वार्थ सबमें साहित्य की अलग जलाता रहा। 

सरस्वती का वरद पुत्र बहुमुखी प्रतिभा का धनी, 
खिलाता रहा रंगों की महफ़िल थाबहुत वो गुणी। 

चला गया ना जाने किस देश साहित्य का पुजारी, 
हमें मान दिया, सम्मान दिया हम है बहुत आभारी। ।

डाॅ राजमती पोखरना सुराना भीलवाड़ा राजस्थान
[23/05, 17:53] Yashpal Sir: *स्मृतिशेष नीरज अवस्थी जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मेरी श्रद्धांजलि*

*काल चक्र*

हे प्रभु भूत भविष्य वर्तमान से परे, तू अनंत समय का स्वामी है। 
दिवस निशा चलते अविरल, तू कालचक्र का स्वामी  है।।

तेरे उपवन में अगणित कलियां, खिलती हैं मुड़ जाती है। 
सागर की उत्तल तरंगे, उठ उठ गिर गिर जाती हैं।।
ये आना जाना चक्र बना, प्रभु तू ही अन्तर्यामी है।।

संध्या आती है सुख देने, चांँद सितारे लिए प्रकाश ।
नव प्रकाश का स्वागत करने, जन-जन ने देखा आकाश।।
ये जीवन मधु प्रकाश निहित, यह सतत लोक शुभ गामी है।।

गाँव में नीरज का जन्म हुआ, साहित्य के पथ पर चलता रहा।
अविरल चलते रहने पर भी , मंजिल तक वह न पहुंँच सका।
हे महाकाल तेरी लीला, तू ही जाने तू नामी है।।

यह मायाजाल अनोखा है, हर जन्म स्वयं में धोखा है।
रिश्ते नातों में फँसा हुआ, यह जीवन बहुत अनोखा है।।

हे प्रभु ,नीरज की विनती सुन, मैं बँधा स्वयं निज धर्मों से।
साहित्य जगत का तारा बन, मुझे मुक्त करो सब कर्मों से ।
मेरे जो कर्म बचे जग में , तू पूर्ण करे यह हामी है।
 *यशपाल*
*नई दिल्ली*
[23/05, 17:59] +91 93500 55495: बिन्दु सिकन्द
C4E/125
जनकपुरी
नई दिल्ली
पिन कोड 110058
मोबाइल 9350055495

आशुकवि नीरज को श्रद्धांजलि

काव्य रंगोली का मंच सजाकर,
नये कवियों का हौंसला बढ़ा कर
ऐसे क्यों मुख मोड़ गए?
जग से क्यों नाता तोड़ गए?

प्रकृति ने कहर बरपाया।
कोरोना जैसा वायरस आया।
नीरज भैया को जकड़ लिया।
पर हौंसला उन्होंने टूटने न दिया।

इक दिन इसको हरा दूँगा।
जंग की  बाजी जीत जाऊँगा।
सकारात्मक सोच मैं रखूँगा।
मन को अपने हारने न दूँगा।

पालने में बच्चा सोया था।
घर वाले सब देख रहे थे।
दिल ही दिल में घबरा रहे थे।
पत्नी उम्मीद की बाती जलाए हुई थी।

11 मई ये दिन कैसा आया?
उगता सूरज अस्त हो गया।
करोना की जंग हार गया महायोद्धा।
अनंत यात्रा पर निकल गया।

देकर नयी सुबह हमको।
खुद अँधेरों में चले गए।
तुम अनंत यात्रा पर चले गए
सबको अलविदा कह गए।
[23/05, 18:19] +91 98384 06215: स्मृति शेष नीरज अवस्थी जी को विनम्र श्रद्धांजलि🌷🌷🌷


काव्य रंगोली वृक्ष को नीरज गए लगाए,
जड़ को सिंचित कर रहा सकल विश्व समुदाय,
बात आपकी बोलता तरुवर का हर पात,
लता तना से लिपट कर करे बहुत संताप,
नयन नीर निकसत नही बने सरोवर नैन,
"नीरज"नीरज सम खिले अब "अनुज"बहुत बेचैन
पापा पापा तुम कहा दिखते नही है आप
छोड़ भवर में है दिया क्या किया था हमने पाप
नीरज रचना देखकर "रचना"हुई अधीर
विधना तुमने क्या किया क्या लिखी मेरी तकदीर
हास्य व्यंग्य की बात अब हृदय करे आघात,
नही भुलाये भूलती वह लौकी वाली बात,

मुन्ना लाल मिश्र"अनुज"
ग्राम खमरिया पंडित
जिला लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश
पिनकोड-262722
[23/05, 18:41] +91 99860 58503: स्वर्गीय श्री नीरज अवस्थी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि। 
----------------------------------------रंगोली  पटल  का  ध्रुव तारा
साहित्य जगत का उजियारा
इस दुनियां से मुंह मोड़ गया
असमय जगत कोछोड़ गया।

कोरोना  उनका  बना  काल
फेंका उन पर  यम का जाल
परिजन को  छोड़ उदासी में 
छोडे़ जग  को बस खांसी में।

नीरज सम कोई भी विभूति 
आती जग आलोकित करने
कर्तव्य  तुला पर  खरा उतर
परलोक पहुंचती रीता भरने। 

हे! कवि  श्रेष्ठ  तुम मरे नहीं 
हमको  रीता  कर  चले गये 
कोरोना के कठिन कलुष से 
तुम  असमय  में  छले  गए।

नव कवियों के पथ प्रदर्शक 
साहित्य जगत की शान बने
समाज सेवा में असीम रुचि
हम सबके यों अभिमान बने।

प्रभु चरणों  में जा कर आप
कह  देना  जनता  का  हाल
और  विनती  कर  कह  देना
प्रभु खत्म करो करोना काल। 

हृदय  की असीम गहराई से 
तेरी  याद में  आहें  भरते हैं 
निजशीशझुका तवचरणों में 
श्रद्धानत नमन  हम करते हैं।

महेन्द्र सिंह राज 
मेढ़े चन्दौली उ. प्र.
[23/05, 18:46] +91 87264 32299: स्व. नीरज जी को समर्पित एक रचना साथ मे नम आँखों से श्रंद्धाजलि🙏🙏🙏

तुम कहाँ गए तुम क्यों गए
ये बात समझ न आती है
तुम आए थे तुम्हे जाना था
ये बात पच न पाती है
जब जाना ही था तुमको
फिर जीवन मे क्यों लाए थे।।

मधुर मधुर स्वप्न दिखा कर
तुम मन मंदिर में आ बैठे
जब बढ़ने लगी मेरी बेचैनी
तुम दूर गगन में जा बैठे
साथ यहीं तक है अपना
तुमने ये भी तो न बोला था
अंत समय मै पास में था
तुमने मुह भी नही खोला था
क्या कम जाता तुम्हारा जो
अपना पता मुझे बता देते
या जहाँ गए हो वहाँ का
रास्ता ही मुझे दिखा देते।।
ममता वाला आँचल गया
गया प्रेम मेरा अभिमान
ऐसा लगता है नीरज
जैसे गया सकल जहान

©️सम्राट की कविताएं
[23/05, 19:10] +91 88268 41722: उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ...
लोभ मोह से भरी ये दुनिया
अपने पंखन की आस🕊️।
उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ...

अपनापन  दिखावा है सब, मिथ्या सबकी बात
उस चेहरे के पीछे छिपा, जाने कौन नकाब👺
मन चंचल, पथ भटक गया है, कैसी अंधियारी ये रात🌚
बस कुछ पहर का खेल है *नीरज*💐, फिर क्या शह और मात
डूब रही है नैया 🛶अपनी, अब कैसी ये ठाट🛀
उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ
लोभ मोह से भरी ये दुनिया, अपने पंखन की आस🕊️
उड़ चल रे पंछी🐦 कोई न दीजे साथ

दुसरो से क्या शिकवा करें जब अपने लगाएं घात
दुख की दुपहरी बीत रही🌞, अब होने को है सूर्यास्त🌥️
जीवन के इस भागदौड़ में🏃, कौन सुने जज़्बात⛄
नज़र बंदी का खेल है जग ये🎭, कोई नही करामात
'प्रभु भक्ति' की डोर में ही🙏, बंधी है अपनी सांस
लोभ मोह में डूबी ये दुनिया, अपने पंखन की आस🕊️
उड़ चल रे पंछी🐦, कोई न दीजे साथ।
               - ई० शिवम कुमार त्रिपाठी
Email: tripathishivam5@gmail.com

स्वरचित....सर्वाधिकार सुरक्षित
[23/05, 19:56] +91 97136 79207: आशु कवि नीरज जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यह गीत प्रस्तुत करती हूं ।
नीरज जी की गौरव गाथा, गाती आज तराने में । 
यशोगान हो रहा आपका, देखो आज ज़माने में ।
1.सकारात्मक सोच प्रेरणा, देते सबको रहते थे ।
सम्मानों से किया अलंकृत, उपकृत हमको करते थे ।
अश्रुधारा हो रही प्रवाहित, स्मृति दीप जलाने में ।
2. समरसता का भाव भरे, अपनत्व आपका था सबसे ।
जहां रहो खुश रहना कविवर, प्रार्थना मेरी है रब से ।
योगदान अप्रतिम आपका, काव्य की सरिता बहाने में । 
3.काव्य रंगोली के संस्थापक, आशु कवि थे आप निराले।
सबका रखते ध्यान सदा ही, साहित्य क्षेत्र के रखवाले।
अर्पित है श्रद्धा के सुमन,साहित्य की जोत जगाने में ।
© रचनाकार
डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप" 
शिक्षाविद् एवम् कवयित्री
ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत
Mob 9713679207

सौरभ प्रभात

                   त्रासदी
                 किरीट सवैया

विधान
किरीट सवैया नामक छंद आठ भगणों से बनता है। तुलसी, केशव, देव और दास ने इस छन्द का प्रयोग किया है। इसमें 12, 12 वर्णों पर यति होती है।

211 211 211 211, 211 211 211 211
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जीवन का सुख भूल गया अब, चाह नहीं कुछ और मिले मन।
सावन सूख गया तन का फिर, बादल क्यों बरसे घर आँगन।
पूछ रहा कब साथ चले यह, दुष्ट नराधम संचित साधन।
फूट पड़ी दुख की गगरी जब, पीर हरे अब कौन सनातन।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

कुमकुम सिंह

मैंने तुम संग प्रीत लगाई

प्रीत हमारी तुझे रास ना आई ।
तुम खास हो मेरे लिए यह तुमको समझ में ना आएं।
 तुमसे मिलकर दिल ले जाना।
 दिल का धड़कना धड़कन ने पहचाना।
 यह रीत तो जगने है बनाई ।
दिल से मिलन होकर फिर कहां  है जुदाई।
  तन से तन का मिलन हो ना पाना ये कोई गम की बात नहीं।
तुम मुझे समझ ना सका बस इस बात की है दर्द सारी।
इसका ठिकाना क्या ?
मन का मिलना कम है कोई खजाना।
 तुझ पर सब दौलत बार दूं।
तेरे लिए घर बार सब छोड़ दुं।
 तू कह कर तो देखता रे वावड़ा।
तेरे लिए सह लेती सब रुसवाई।
प्रीत की रीत सदा चली आई।
 जिसने भी इसे समझा उसकी हुई हमेशा जग हंसाई।
किसने ये प्रीत है बनाई।

कुमकुम सिंह

मन्शा शुक्ला

शीर्षक  कागज के फूल
............................

मन मोहक सुन्दर काया
अनुपम   साज  श्रृंगार
कागज के फूलों से कभी
आती  नही  है  सुवास ।

छद्म  रूप  आवरण का
होता  नही है असतित्व
जैसे सत्य के समक्ष असत्य
 का होता नही  कोई वजूद ।

सदगुण सत्कर्मों से सजता
काया  का  रूप  स्वरूप
प्रेम सुवास से  सुवासित
होता जीवन का हर  रूप ।

त्याग दिखावा आगें बढ़ना
नीति  यही  है सिखलाती
पर सेवा उपकार भावना
जीवन  सदा  सजाती है।

प्रेम सुवास मधुर सुगंध से
जग का आँगन महकायें
बन  उपवन  का कुसुम
खार बीच भी मुसकाये।


मन्शा शुक्ला
अम्बिकापुर

सुधीर श्रीवास्तव

 जीतने के लिए
************
पिता पुत्र को
जीवन के ढंग बताता है,
संघर्ष करते हुए
हौसले के गुण सिखाता है।
जीवन जीने के लिए
लड़ना पड़ता है,
यही बात पिता
पुत्र को समझाता है।
जीवन कुश्ती के अखाड़े जैसा है
जहां हर पल हर किसी से
किसी न किसी रुप में 
भिड़ना ही पड़ता है,
सिर्फ़ भिड़ने भर से भी
कुछ नहीं होता,
जीतने के लिए
भिड़ने से पहले
हिम्मत, हौसला, जुनून
पैदा करना ही पड़ता है।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
©मौलिक, स्वरचित

एस के कपूर श्री हंस

।मौत से पहले मरने को तैयार नहीं,*
*कॅरोना तुझसे हार हमें स्वीकार नहीं।।*
*।।विधा।।मुक्तक।।*
1
मौत से   पहले     मरने   को
तैयार    नहीं       हम।
तेरी    दहशत से   डर   जाएं
वो किरदार नहीं हम।।
सावधानी दवाई और योग से
हराएंगे तुझको जरूर।
कॅरोना     तुझको    रखेंगे दूर
तेरे    यार   नहीं हम।।
2
माना पकड़ बहुत     पर  वार
हमारा भी   खाली नहीं।
माना कि    तुम  अदृश्य    पर
बच न सकें बेहाली नहीं।।
जो हमने खोया  उससे   कुछ
सीखा   समझा भी    है।
तुझसे   बचाव न   कर    सकें
ऐसी भी बेख्याली नहीं।।
3
माना कि हम   सब ने   संकट
भोगा   बहुत   भारी  है।
पर तेरी हर   लहर से   निपटने
का    प्रयास   जारी   है।।
तेरी हर काट की   काट    ढूंढी
अब    है    जा      रही।
जान ले   कॅरोना   अब    होगी 
तेरी ही     दुश्वारी     है।।
4
विषम परिस्थिति ही हमें आत्म
बल   संदेश     देती   है।
हमको सामना   करने का  इक़
नया परिवेश    देती   है।।
कर्म,सहयोग,खोज, अनुसंधान
का मिलता नव आवरण।
नव निर्माण के    आवाह्न     का
श्री  गणेश     देती      है।।


*।।रचना शीर्षक।।*
*।।बेटी,तुम ही बनती जाकर बहन,पत्नी,माँ हो।। तुम केंद्र ,तुम धुरी, सृष्टि की रचनाकार हो।।*
*।।विधा।। मुक्तक।।*
1
तुम केंद्र तुम  धुरी  तुम सृष्टि
की   रचनाकार हो।
तुम धरती    पर    मूरत  प्रभु
की   साकार  हो।।
तुम जगत    जननी    हो तुम
संसार     रचयिता।
बेटी,माँ,बहन,पत्नी,जीवन में
हर   प्रकार      हो।।
2
बेटी से ही  ममता    स्नेह प्रेम
जीवित रहता   है।
मन सच्चा कभी   कपट कुछ
नहीं   कहता   है।।
त्याग समर्पण    का    जीवंत
स्वरूप   हो  तुम।
तन मन में बेटी तेरे   प्यार का
दरिया बहता है।।
3
तुम से ही घर     आँगन  और
चारदीवारी     है।
हरी भरी    जीवन     की  हर
फुलवारी       है।।
तुमसे ही आरोहित    संस्कार
संस्कृति  सृष्टि में।
तुमसे ही उत्पन्न  होती  बच्चों
की किलकारी है।।
4
तुमसे ही बनती हर   मुस्कान
खूबसूरत      है।
दया श्रद्धा की बसती साक्षात
मूरत           है।।
तुझसे से ही है  मानवता   का
आदि  और अंत।
चलाने को संसार  प्रभु को भी
तेरी जरूरत है।।

*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली।।।*
मोब।।            9897071046
                     8218685464

नूतन लाल साहू

जीवन पथ

कुछ पा करके कुछ खोना
कुछ खोकर के कुछ पाना
उलट पुलट कर आती जाती
चलती फिरती है नई उमंगे
कभी सीधा तो कभी टेढ़ा
हमारा जीवन पथ है
सामान सजाकर यहां वहां
बरसों की करते है चिंता
विरह मिलन का चक्र सतत
कभी भटकना तो कभी मटकना
कभी सीधा तो कभी टेढ़ा
हमारा जीवन पथ है
ऊंचे ऊंचे ख्वाब संजोति
कभी इतराना तो कभी घबराना
कभी हंसाती तो कभी रुलाती
हर दिन बदलती हुई कहानी है
कभी सीधा तो कभी टेढ़ा
हमारा जीवन पथ है
एक नदी सा कल कल करती
गूंज रही है जिसकी धार
कभी कभी पंछी सा उड़कर
मानो नभ को छू रही है
कभी सीधा तो कभी टेढ़ा
हमारा जीवन पथ है
अपने शब्दों के सहारे
नई जान फूंक देती है
आवाज को तलाशती पुकारती
चहुं ओर घूमती है
कभी सीधा तो कभी टेढ़ा
हमारा जीवन पथ है

नूतन लाल साहू

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