*झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर सादर समर्पित यह रचना........🙏🙏🇮🇳🇮🇳*
*गीत*
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झाँसी वाली रानी की अनुपम गाथा बतलानी है।
नारी जिसका दिव्य शौर्य था उसकी झलक दिखानी है।।
जन्म हुआ ब्राम्हण कुल उनका , मोरोपंत पितृ छाया से।
भागीरथी माँ धर्मनिष्ठ थी, सुसंस्कृत सभ्य माया से।
मणिकर्णिका नाम धरा था, मात पिता ने प्यारा सा।
मनु सबकी ही प्यारी बेटी , लाड बहुत ही न्यारा सा।
माँ की मृत्यु बाद फर्ज सब, पिता पक्ष धर बानी है ।
झाँसी वाली रानी........।।
बाजीराव द्वितीय सभा में, जाते जब भी वहाँ पिता।
साथ सदा ही ले जाते थे, मनु भावों की बात बता।
मनु की शिक्षा शस्त्र ज्ञान भी, वहीं मिला था सार सभी।
नाना साहेब बने सखा थे, ढाल कृपाण की धार सखी।
दरबारी सब प्यार से कहते, नाम छबीली सानी है।
झाँसी वाली रानी............।।
बनी दुल्हन जब हुई सयानी, झाँसी उसको धाम मिला।
गंगाधर की नार नवेली, लक्ष्मीबाई नाम मिला।
एक पुत्र जो उनका जन्मा , तीन महीने बाद मरा।
रोग तभी से गंगाधर को, अन्तर्मन से आन धरा।
मृत्यु हुई राजा की जैसे, बेरंग राजधानी है।
झाँसी वाली रानी.............।।
दत्तक पुत्र लिया रानी ने, दामोदर था लाल वही।
डलहौजी की हड़प नीति थी, चाल ब्रिटिश की नहीं सही।
चला मुकदमा बात बढ़ी थी, कुछ समझे कुछ मान गए।
डलहौजी चाहे झाँसी को, किला बसाए शान नए।
नीति नियम सब धरे ताख पर, करते फिर मनमानी है।
झाँसी वाली रानी............।।
सन् सत्तावन क्रांति सजग का, केन्द्र बिन्दु कुछ खासी था।
सदा सुरक्षा भाव बसाए, सुदृढ़ करना झाँसी था।
स्वयं सेवक सेना का तभी, रानी ने निर्माण किया।
झलकारी जो रानी जैसी, प्रमुख सैन्य का मान दिया।
दतिया ओरछ राजाओं ने, शक्ति नई पहचानी है।
झाँसी वाली रानी............।।
अट्ठावन में ब्रिटिश सैन्य ने, झाँसी बढ़ना शुरु किया।
दो हफ्तों तक युद्ध चला जो, शहर सकल वह घेर लिया।
रानी निकली तभी किले से, दामोदर रक्षक बनकर।
पहुँच कालपी स्वयं लक्ष्य धर, तात्या टोपे से मिलकर।
दोनों की संयुक्त शक्ति की, ग्वालियर जीत सयानी है।
झाँसी वाली रानी..........।।
राखी भेजी थी रानी ने, अलीबहादुर (द्वितीय) साथ दिया ।
झाँसी की रक्षा की खातिर , सबने अपना हाथ दिया।
शक्ति समर्थित रानी बनकर, अंग्रेजों से द्वंद रहा।
बादल उनका प्रिय घोड़ा था,
मृत्यु समय तक साथ रहा।
रानी आयी युद्ध क्षेत्र में, साहस में मर्दानी है।
झाँसी वाली रानी..........।।
बादल घोड़े के मरते ही, पवन अश्व की बारी थी।
ले तलवार पीठ पे सुत को, लगती तेज कटारी थी।
लड़ी युद्ध जब अंग्रेजों के, खट्टे उसने दाँत किया।
अनुपम शक्ति दिखाई तब वह, अग्रेंजों को मात दिया।
नदी स्वर्ण रेखा के तट पर, अंतिम साँसे पानी है।
झाँसी वाली रानी..........।।
नया अश्व था पवन यहाँ पर , भागा सका न डटा वहीं।
ऐसा वार किया दुष्टों ने, रानी का सिर कटा वहीं।
गिरी धरा पर लक्ष्मीबाई , आभा वही दिखानी है।
झाँसी वाली रानी............।।
अंग्रेजी जनरल ह्यूरोज ने, कहा धरा पर देख उसे।
सब पुरुषों में मर्द यही बस, देखेगा इतिहास जिसे।
सुंदरता, चालाकी, दृढ़ता, सब उसकी पहचान थी।
खतरनाक थी विद्रोही पर, झाँसी की वह जान थी।
अमर कहानी देशभक्त की, जन जन तक पहुँचानी है।
झाँसी वाली रानी...............।।
जन्म हुआ सन् अट्ठाइस में, मृत्यु अट्ठावन में जानो।
तीस वर्ष की अमर कहानी, शक्ति निहित थी यह मानो।
वो शहीद हो गई मगर वह झुकी नहीं दुश्मन आगे।
उनके चेहरे की आभा से, दुश्मन खुद पीछे भागे।
लिखी स्वयं जो अमर कहानी, सबको याद दिलानी है।
झाँसी वाली रानी.......।।
ऐसी दुर्गा माँ अवतारी, धरती को भी तार गईं।
जीते जी बस देश की रक्षा, मरते मरते सार भईं।
वीरांगना शक्ति की देवी, जीवन अपना त्याग चलीं।
शीश नहीं वह कभी झुकाई, नीति बसाए शाम ढली।
सतत नमन है रानी जी को, मधुमय शीश झुकानी है।
झाँसी वाली रानी...........।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
*18.06.2021*