रवि रश्मि अनुभूति

   मुकुंद / हरिलाल छंद 
 *********************
परिचय ----  चतुर्दशाक्षरावृत्ति
गण संयोजन  ---   तभजजगल 
यति --  8 , 6 
221    211    12 , 1    121    21 

आते नहीं किशन ही , लो विचार ।
साँसों बसे तुम सुनो , अब उबार ।।
मीरा बनी फिर रही , कर पुकार ।
रिश्ता अभी बन गया , मत विसार ।।

ये ही कहूँ किशन मैं , बात मान ।
चरणों पड़ी अब प्रभो , रखो ध्यान ।।
आयी अभी शरण मैं , हृदय जान ।
सेवा करूँ अब सदा , दे न दान ।।

(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '

आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला

विश्व योग दिवस

मानव मन-से भज रहा, आज योग का नाम ।
प्रात:-काल करना रहा, योग सभी का काम ।

सुंदर सुकोमल शरीर हो, मन निर्मल गंग समान ।
सदा योग का काम करें, इसके लाभ को जान।

नियमित योग से करो सदा, काया को निरोग ।
लेना योग गुरु का तुम, उचित सदा  सहयोग ।

स्वस्थ तन-मन से सदा, होता सभी का काम ।
तन-मन सारा शुद्ध है, करना  योग का काम ।

ऋषि पतंजलि ने योग का, दिया नया आयाम ।
फेफड़ा शुद्ध  करता सदा, नियमित प्राणायाम ।

आजाद करे सब रोगों से, अकेला ही एक  योग ।
इक्कीस जून योग दिवस पर, योग कर रहे लोग ।

 आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले

संगीता चौबे पंखुड़ी

विषय। योग दिवस
विधा। कविता
*****************
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।


योग को दिनचर्या का, हिस्सा बनाएं,
रोग को समूल,  हम सब दूर भगाएं ।

योग का अर्थ है, भोग को छोड़ना,
मन को, मोह से तोड़ना,
स्वयं को, प्रकृति से जोड़ना,
चित्त की वृत्तियों को, सिकोड़ना ।
आओ, लुप्त हुई संवेदना को जगाएं ।
योग को दिनचर्या का, हिस्सा बनाएं ।।

बैठ जाएं लेकर, प्रतिदिन आसन,
करें पद्मासन, भुजंगासन या चक्रासन,
आधा घंटा उपरांत ही,
मुख में डालें, कोई प्राशन ।
शरीर शुद्ध, सात्विक,पावक बन जाए ।
योग को दिनचर्या का, हिस्सा बनाएं ।।

योग करता तन को निरोग, देता मन को शांति,
योग करें तो मिट जाए,  सारी भ्रांति,
मन हो जाए, प्रफुल्लित,
मुख पर आ  जाए, ओजस्वी कांति ।
योग से काया को, स्वस्थ, सुडौल बनाएं ।
योग को दिनचर्या का, हिस्सा बनाएं ।।

योग प्राचीन ऋषि पतंजलि का ज्ञान है,
आधुनिक नहीं, बल्कि पुरातन काल का विज्ञान है,
यह केवल भारत तक ही सीमित नहीं,
आज विदेशों में भी, योग के संस्थान हैं ।
हम भी योग को, जन - जन में फैलाएं ।
योग को दिनचर्या का, हिस्सा बनाएं ।।


संगीता चौबे पंखुड़ी,
 इंदौर मध्यप्रदेश
स्व रचित एवम् मौलिक रचना

सुधीर श्रीवास्तव

हास्य व्यंग्य
योग और योग दिवस

आखिरकार
योग दिवस भी आ गया।
चलिए हम सब मिलकर
आज फिर दुनियां को दिखाते हैं,
योग दिवस की भी
औपचारिकता निभाते हैं।
सोशल मीडिया पर 
बड़ी धूमधाम से मनाते हैं,
बधाइयां की औपचारिकता निभाते हैं,
योग करते हुए फोटो खिंचाते हैं
सोशल मीडिया में 
खूब प्रचारित करते हैं,
सरकारी, सामाजिक संगठन भी
नेता,सांसद, विधायक, मंत्री भी तो
बस!एक ही दिन 
योग करते पाये जाते हैं,
इतने ही भर से
मीडिया और समर्थकों में
बड़ा कवरेज़ जो पा जाते हैं।
दरअसल दिवस मनाना भी
मात्र छलावा है,
असली मकसद तो बस
आमजन को बेवकूफ बनाना है,
आखिर प्रचार भी तो
इसी तरह से पाना है।
हम भी तो कुछ कम नहीं हैं
हमें लगता है जैसे
हमारी सबको बड़ी फिक्र है,
पर सच्चाई यह है
किसी को किसी की नहीं पड़ी है।
अरे भाई सिर्फ़ हम ही नहीं
हम ,आप सब भी तो
मुगालते में लड्डू खा रहे हैं।
हमें तो अपनी कम 
औरों की पड़ी है,
अब आपको भला कौन समझाये
हम योग करें, निरोग हो जायें
बहुत अच्छा है,
मगर आपने कभी सोचा भी है
हम सब बीमार ही नहीं होंगे तो
बड़े बड़े अस्पताल
दवाई दुकानदार और उनके कर्मचारी
सरकारी और गैर सरकारी डाक्टर
गली मोहल्लों में फैले 
प्रशिक्षित, अप्रशिक्षित डाक्टर,
दवा की फैक्ट्री और
उसमें काम करने वाले लोगों 
सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय
और उनमें जीविका पाये 
लाखों लोगों ही नहीं और भी 
परोक्ष, अपरोक्ष बहुतेरे लोगों के
घर के खर्च भला कैसे चल पायेंगे?
ऊपर से बड़ी समस्या यह भी तो है
अगले सालों में हम भला
योग और योग दिवस का
महत्व कैसे बता पायेंगे,
योग दिवस भी भला तब
इतने ही उत्साह से कैसे मनायेंगे?
आखिर तब हम योग दिवस की
औपचारिकता कैसे निभा पायेंगे?
करो योग, रहो निरोग
कैसे और किसको बतायेंगे?
तब क्या हम योग के महात्म्य का
उपहास नहीं उड़ायेंगे?
◆ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
   8115285921
©मौलिक, स्वरचित

अमरनाथ सोनी अमर

गजल - सियासत! 

क्या हवा अब चल रही है, क्या सियासत देश में! 
क्या गजब अब ढा रहें हैं, अब हमारे देश में!!1!! 

सब किराना तेल मीठा, भाव इतना बढ़ गये! 
देख लो अब यही ईधन, मार -मारें देश में!!2!! 

ये सियासत कुछ दिये ना ए, सिर्फ़ महगाई दिये! 
जन सभी का माँस नोचें, बांँण मारें देश में!!3!! 

अर्थ ,गल्ले दे निबाला, लूट माँगा था वही! 
पा गया जनमत सभी का, शोर सारे देश में!! 

जन गरीबी में फसें हैं, सरकार माला- माल है!
भूँख में ब्याकुल सभी जन, लूट मारें देश में!! 

है यही सरकार मेरी, ना गरीबी ध्यान दे! 
दे रहीअपने हि चमचों, लूट मारें देश में!! 

देख यह सरकार मेरी, कर रही मन -मान है! 
सब अमीरों को दियें है, दीन मारे देश में!! 

अमरनाथ सोनी "अमर "
9302340662

चेतना चितेरी

पिता
_____
जिनसे जग में मेरी है पहचान 
कर लूं मैं उनका नित ध्यान।
माता– पिता की सेवा ही कर्म सम्मान
कर लूं मैं उनका नित गान।
सारे  तीरथ हैं उनके चरणों में
कर लूं मैं उनकी वंदना बारंबार।

मौलिक_
 चेतना चितेरी, प्रयागराज
21/6/2021,4:45pm

डॉ. अर्चना दुबे रीत

*कुंडलिया*
*योग*

योगा प्रतिदिन कीजिये, रोगों का हो नाश ।
आसन, योगा, ध्यान से, मन नहि होय उदास ।
मन नहि होय उदास, निरोगी काया पाओ ।
योगा का अभ्यास, बगीचा करने जाओ ।
'रीत' रही समझाय, नहीं कुछ तुमको होगा ।
रहिये सदा निरोग, समय से करना योगा ।।

*डॉ. अर्चना दुबे 'रीत'*✍️
       मुम्बई

अतुल पाठक धैर्य

योगदिवस विशेष 
कविता शीर्षक:-योग करें

योग करें हम योग करें,
आलस सुस्ती दूर करें।

तन-मन रहेगा चुस्त-दुरुस्त,
जीवन को हम निरोग करी।

प्रोत्साहित सबको करें,
योग करें सब लोग करें।

उद्देश्य यही साधा करें,
सृजन स्वस्थ समाज करें।

बिना खर्चे की औषधि है,
इसका हम उपयोग करें।

संजीवनी सा यह है कारगर,
भविष्य इससे बेहतर करें। 

योग करें नित्य प्रयोग करें,
उत्तम जीवन भोग करें।

ॐ मंत्र का योग करें,
श्वास द्वारा ईश्वर से संयोग करें।

मन बुद्धि विवेक को एकाग्र करें,
आओ मिलकर योग करें।

इक्कीस जून को यह प्रण करें,
रोज रोज योग करें दूर खुद से रोग करें ।
@अतुल पाठक "धैर्य"
जनपद हाथरस 
(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित

रजनी राय

विषय-करो योग रहो निरोग
विधा-गीत
योग भगाये रोग
समझने लगे हैं लोग
पावन बड़ी है भोर की बेला
समय बड़ा होता अलबेला
इसका करें उपयोग।
समझने लगे---------
पहला सुख निरोगी काया
काया से घर आती माया
चलते सब उद्योग।
समझने लगे----------
स्वस्थ जब होता है तन
स्वस्थ तब रहता है मन
करें नहीं अब भोग।
समझने लगे---------
देश की ऐसी है यह विधा
कुटुंब बना दी है वसुधा
सुंदर लगता संयोग।
समझने लगे -----------
योग दिवस ने सबको जोड़ा
दृष्टिकोण दुनिया का मोड़ा
होना सबको निरोग।
समझने लगे-----------
रजनी राय-लखनऊ
9621699409

रामबाबू शर्मा राजस्थानी

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामना....
  
         दिनांक :- 21 जून 2021
        *परिवार सहित घर पर ही योग करें*।
        *मास्क लगाये,स्वस्थ रहे,सुखी रहे*।।
          
             *योग करो सुखी रहो*
                     ~~~~         
          
      
          मां से बढ़कर भारत माता,
          मनभावन शान निराली है।
          योग करो सुखी रहो का यह
          हम सब कों पाठ पढ़ाती है।।

          राष्ट्र धर्म से बड़ा न कोई, 
          यही मंत्र हमें सिखलाया है।
          घर आँगन में खुशियाँ फैले,
          जन-जन को यह बतलाया है।।

          योग दिवस की महिमा  देखो,
          घर-घर में परचम लहराती ।
          योग करें,सुखी रहे मानव,
          यह अनुपम संदेश सुनाती।।

          योग दिवस का अभिनंदन 
          हम सबकों मन से करना है।
          विश्व धरा पर योग महिमा को,
          घर-घर जरूर पहुंचाना है।।

          सदियों से सुनते आये हम,
          योग ऋषि मुनियों की दिव्य दवा ।
          अनमोल कला कौशल है यह,
          मिलकर लेवो भाई शुद्ध हवा।।

          वेद पुराणों का भी लेखा,
          समय रहते समझना होगा।
          पावन पवित्र वसुधा पर हमें,
          पौधारोपण करना होगा।।

 

        ©®
           रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)

नंदिनी लहेजा

नमन माँ शारदे 
नमन मंच 
विषय:-योग दिवस 

माना जीवन चिँताओं का घर हुआ हैं जा रहा
हाय यह ना मिला, हाय वह ना मिला सोचकर घबरा रहा
दिनचर्या को कर अपनी अव्यवस्थित
बस हम भागे जा रहे
सब कुछ पाने की चाहत मे
अपनी सेहत हार रहे
अनेक बीमारियों से ग्रस्त हुआ जा रहा मानव जीवन
इनसे बचने ढेरों दवाईयों का कर रहा है सेवन
स्वयं को गर रखना है निरोगी
योग को जीवन मे शामिल कर
योग भगाये रोग शरीर के
और देता है मानसिक बल
योग आज की बात नहीं , सदियों से अपनी पहचान हैं
ऋषि मुनि जो हुए हमारे, उनका यह अभिमान हैं
आओ विश्व योग दिवस पर
हम सब मिल प्रण करते हैं
जीवन में कर योग को शामिल
निरोगी जीवन पाते हैं

नंदिनी लहेजा
रायपुर छत्तीसगढ़
स्वरचित मौलिक 

रामकेश एम यादव

( विश्व योग दिवस)  
               
                 योग !

खिला -खिला रहता है जीवन,
जो भी योग अपनाता।
छिपी हैं योग में अनंत शक्तियाँ,
पर विरला इसे जगाता।

प्राणायाम के माध्यम से हम,
अपना विश्वास बढ़ाएँ ।
अनुलोम-विलोम,कपालभाती से,
जीवन दीर्घायु बनाएँ।

चुस्ती-फुर्ती रहती दिनभर,
मन प्रसन्न भी रहता।
बुद्धि-विवेक बढ़ता है निशिदिन,
अवसाद नहीं फिर टिकता।

फूलता-पचकता नहीं पेट तब,
कहीं विकार नजर न आता।
वैद्य-हकीम  की क्या जरुरत,
चार-चाँद लग जाता।

अब बदलो सूरत जहां -देश की,
ये अनमोल है थाती।
जिसके संग में योग रहेगा,
मस्त जलेगी जीवन -बाती।

रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई

अब्दुल हमीद इदरीसी

योग दिवस के दोहे

तन मन  सारा  शुद्ध कर, करता  रोज़ निरोग।
सेहत की चाहत अगर, नियमित करिये योग।

योग शुरू यदि कर दिया,अब करना कम भोग।
योग  गुरू  का  हर  समय, लेना  तुम सहयोग।

धर्म कर्म का हर  घड़ी, रख कर चल संयोग।
बीत  चुके  कल का  नहीं, कभी मनाना सोग।

भले  आदमी  का  सदा, करना तुम सहयोग।
इस पर देना  ध्यान मत, क्या कहते  हैं लोग।

हमीद कानपुरी
अब्दुल हमीद इदरीसी
वरिष्ठ प्रबन्धक सेवानिवृत
पंजाब नेशनल बैंक,
मण्डल कार्यालय कानपुर
208001

अरुणा अग्रवाल

नमन मंच,माता शारदे,सुधिगण
शीर्षक "योग दिवस"
21।06।2021।

विश्व "योग दिवस"की शुभकामना
समग्र जगत में फैले योग-मोहन,
भारतवर्ष है उसका जननी-महती,
आज हर देश ने योग को अपनाया।।

आधि,व्याधि,उपाधि रहित,जीवन
बड़ा भाग्य से मिलता कहें,मुनियों
योग का सम्मिलित होना,दिनचर्या
नितान्त है जरूरत,मिले निरोगी-काया।।

निरोगी काया बिना माया बेकार,
चूंकि न उपभोक्ता,आनंद,पाता,
गलत दिनचर्या,खान-पान,से रोग,
वृद्धावस्था आ जाता,शीघ्रतिशीघ्र।।

दर दर भटकता व्यक्ति,पिछे वैद्य,
दवा का सेवन,तनाव से व्याकुल,
योग और आध्यात्म बिना,दुर्दशा,
समझने लगा विश्व आज,योग का मूल्य।।

भारतका पुरातन सभ्यता,सनातन
जिसने शुरू किया योग,आसन,
ब्रह्ममूहूर्त से उठाने का है फायदा
जनमानस के लिऐ वेशकीमती-धन।।

आज से नहीं अभी से हो शुरू,
ताकि न हो परेशानियां,काया,
निरोगी काया है सर्वाधिक,जरूरी
"योग दिवस"पे सबको,सद्भावना।।

अरुणा अग्रवाल।
लोरमी,छःगः,
🙏🌹🙏

नूतन लाल साहू

योग 

हमारे देश का प्रजातंत्र
वह तंत्र है
जिसमे हर बीमारी स्वतंत्र है
पर जो नियमित करता है योग
वह योगी स्वस्थ है
अस्पतालों की भरमार है
और डाक्टर चाहता है कि
दवा चलती रहे, लोग बीमार पड़ते रहे
आमदनी होती रहें
हम ऊपर से दिखने में तो चिकना है
भगवान जाने रस कितना है
यह ऋषि मुनियों और संतो का देश है
पेट को तो, कुरते के लायक बनाइये
यही तो हरि इच्छा है,जनाब
हमारे देश का प्रजातंत्र
वह तंत्र है
जिसमे हर बीमारी स्वतंत्र है
पर जो नियमित करता है योग
वह योगी स्वस्थ है
अनजान सफ़र है ये
भ्टका हुआ रहबर है
चलना भी जरूरी है
खो जाने का  डर भी है
पर योग के लिए करता है,लाखो बहाने
दुनिया को तो फतह कर लिया है
पर खुद से ही हारा है
इंसान के पास स्वास्थ्य के लिए
समय ही नही है
इतिहास साक्षी है
भगवान कृष्ण स्वयं योगी है
करो योग,रहो निरोग
हमारे देश का प्रजातंत्र
वह तंत्र है
जिसमे हर बीमारी स्वतंत्र है
पर जो नियमित करता है योग
वह योगी स्वस्थ है

नूतन लाल साहू

दुर्गा प्रसाद नाग

मंच–काव्य रंगोली
विधा– मुक्तक
विषय– योग
________________________
योग सभी के जीवन का अब अंग बने
मानवता का जीवन रक्षक संग बने
पूरी दुनिया पीड़ित है बीमारी से
करो योग फिर नव जीवन में रंग बने
_________________________
यदि निरोग रहना है तो फिर योग करो
सबके साथ मिलो बैठो संयोग करो
शाकाहारी बनने का प्रयत्न करो
मांस और मदिरा का कम उपयोग करो
_________________________
योग सभी की काया का है शुद्धिकरण
योग कोई न माया है  न  वशीकरण
जीवन का अध्यात्म और तप योग ही है
योग ही तो निर्धारित करता जन्म मरण
______________________
दुर्गा प्रसाद नाग
ग्राम, पोस्ट व ब्लॉक–नकहा
जिला–लखीमपुर खीरी
(उत्तर प्रदेश)262728
मोo- 9839967711
E mail– durganaag200892@gmail.com

(रचना– मौलिक व अप्रकाशित है)

डॉक्टर रश्मि शुक्ला

योगा दिवस 

योग साधना कर सब, सद्विचार का संकल्प संचार करें,

प्राणपुंज ॠषिचिंतन द्वारा,सबमें नूतन प्राणा भरें।

आत्म जागरण ही जीवन की,खुशियों का आधार, 

योगा -धयान के बिना न होता, सबका बेड़ापार ।

योग को अपनाकर, जन मानस को तैयार करें,

जिएँ देश-हित, मरें देश-हित, रामराज्य साकार करें।

दृढ़संकल्प, विश्वास, योग से, मानवता की मुर्ति गढ़े, 

जीवन-पौरूष की शाला में,आदर्शो का पाठ पढ़े।

शाश्वत आत्म चेतना जागे,घर-घर मंगल दीप जलें,

युग निर्माण योजना-पथ पर,आओ हम सब योगा कर लें।

करो न देर बढ़ो मिल-जुलकर, योग-समय लगाओ,

जन-जन की पीर मिटेगी, सब जन योगा करते जाओ।

करूण कराह मिटे जगती की,प्रातःकाल योगा को अपनाओ ,

तुम गीत खुशी के गाओ,विश्व योग दिवस मनाओ।

संरक्षित हो राष्ट्र हमारा,यही पतंजली कहते,

विश्व योग दिवस के इस महत् पर्व पर,
योग संकल्प करते। 


डॉक्टर रश्मि शुक्ला(समाज सेविका)
अध्यक्ष सामाजिक सेवा एवम् शोध संस्थान 
 प्रयागराज 
उत्तर प्रदेश

जयप्रकाश अग्रवाल काठमांडू नेपाल

योग और योग दिवस

योग- हमारी ऋषि परंपरा,
जीवन में जिससे आनंद भरा ।

सहस्राब्दियों से विकसित ज्ञान,
स्वीकारा जग ने वैज्ञानिक मान ।

ऋषि पतंजलि ने लिपिबद्ध किया,
आज दुनिया ने है अपना लिया ।

योग तो है अष्टांग योग,
मिटाये तन मन के सब रोग।

रोगों के मिटाता यह कारण,
नियंत्रण साथ ही करे निवारण ।

यम-नियम-आसन-प्राणायाम,
इनके साथ ही सूक्ष्म व्यायाम ।

प्रत्याहार-धारणा-समाधि-ध्यान,
होते तन मन दोनों बलवान ।

क्या नहीं करें बतलाते यम,
करना क्या सिखाते नियम ।

लचीला करते तन को आसन,
मन लचीला भर अनुशासन ।

साँसों की गति का करें नियंत्रण,
प्राणायाम से सहज आचरण ।

अंतर से जोड़ता प्रत्याहार,
स्वस्थ हो फिर विचार-व्यवहार ।

धारणा-समाधि और ध्यान,
एकाग्रता-शान्ति ये करें प्रदान ।

सब करें और करवायें योग,
पास न फटकेंगे कभी रोग ।

जयप्रकाश अग्रवाल काठमांडू नेपाल

डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*बाल गीत*
बच्चों खेल-तमाशा छोड़ो,
पढ़ने से अब नाता जोड़ो।
घर पर रहकर करो पढ़ाई-
विद्या करती सदा भलाई।।

कोरोना से बच कर रहना,
साफ-सफाई भी नित करना।
पापा-मम्मी जैसा कहते-
अच्छे बच्चे वैसा करते।।

चुन्नू - मुन्नू, रोली - मोनी,
राधा-मोहन,सरिता-सोनी।
दूध गाय का पीते रहना-
अच्छी-अच्छी बातें करना।।

आदर सभी बड़ों का करना,
सदा मानना उनका कहना।
किसी बात की ज़िद मत करना-
आपस में मिल-जुल कर रहना।।

जो अवसर को कभी न खोते,
बच्चे सफल वही हैं होते।
ऐसे आगे बढ़ते रहना-
काम समय से अपना करना।।
           ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
                9919446372

निशा अतुल्य

बाल कविता
चलो योग करो 

चुन्नू मुन्नू जल्दी आओ
योगशाला मिलकर सजाओ
योग दिवस नहीं कोई एक दिन
नित जीवन में करो कराओ 
अपने जीवन को स्वस्थ बनाओ ।

थोड़ा थोड़ा प्राणायाम
फिर थोड़ा सा सूक्ष्म व्यायाम
अंदर से हो जाओ तगड़े
बाहर से चमकाओ भाल ।

आसन होते बहुत सरल हैं
इनको नित जीवन अपनाओ 
स्वस्थ शरीर और मानसिक दृढ़ता
हर बीमारी को दूर भगाओ ।

पहले थोड़ा जॉगिंग करना
फिर करो तुम सूर्य प्रणाम
साधो श्वासों को फिर तुम
व्यायाम से बलशाली बन जाओ ।

चलो चलो सब मिल कर आओ
योग शाला को आज सजाओ 
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को
सब देशों के संग मिल मनाओ ।

स्वरचित 
निशा"अतुल्य"

विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल---

दिखाई दे रहे हैं फिर वही हालात पानी में
गयी फिर ज़िन्दगी की आज भी सौगात पानी में
हुस्ने मतला--
पता चल जायेगा होते हैं क्या असरात पानी में
ग़रीबों से कभी तो पूछिये हालात पानी में

उठीं ग़म की घटाएं फिर कहीं दिल के समुंदर से
लिखेंगी फिर कहीं आँखे कई नग़मात पानी में

सभी चेहरों पे घबराहट सभी की आँख रोती है 
कोई पूछे भी अब कैसे किसी की बात पानी में

वो दिल में आज भी महफ़ूज़ हैं ताज़ा गुलाबों से
गुज़ारे थे कभी जो पल तुम्हारे साथ पानी में

कभी आँखों में शोले थे कभी पहलू में अंगारे
लगाये आग रहते थे कभी दिन रात पानी में

कहीं बोतल खुलेगी औ'र कहीं छलकेंगे पैमाने
कोई रिन्दों के तो देखे ज़रा जज़्बात पानी में

निकालो हसरतें दिल की सजा लो दिल के काशाने
मुबारक हो तुम्हें *साग़र* मिलन की रात पानी में

🖋️विनय साग़र जायसवाल
1/1/2007

डॉ० रामबली मिश्र

दिव्य भाव (सजल)

दिव्य भाव बनकर बहना है।
सुंदर मानव सा रहना है।।

कदम-कदम पर धाम बनाओ।
उत्तम कर्म सदा करना है।।

आकर्षक हों कर्म निरन्तर।
सात्विक भाव सदा गढ़ना है।।

शुभ भावों का सहज मिलन हो।
हाथ जोड़ सबसे मिलना है।।

कर्म प्रधान विश्व में स्थापित।
कर्म पथिक बनकर चलना है।।

देवों को आदर्श बनाकर।
मानव को दानी बनना है।।

जो देता है यश पाता है।
सदा यशस्वी बन जीना है।।

सुंदर कर्म करो दिन-राती।
प्रेम सरस अमृत पीना है।।

नेक इरादे हों संकल्पित।
सबके प्रति अच्छा करना है।।

पूर्वाग्रह को दुश्मन जानो।
मन को वस्तुनिष्ठ रखना है।।

कच्चा कान कभी मत रखना।
सच्चाई को खुद चुनना है।।

जालसाज से दूर खड़ा हो।
ताना-बाना खुद बुनना है।।

रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


मेरी पावन शिव काशी

गायेंगे हम दोनों जमकर,वरुणा-अस्सी के संगम;
नाचेंगे हम झूम-झूम कर, बड़े प्रेम से नित हरदम;
हाथ मिलाकर अंक में भरकर, मुस्कएँगे रात-दिवस;
तड़प रहा है भावुक मन यह, देखन को पावन काशी।

आयोजन होगा निश्चित ही,बनना है काशीवासी;
रूप बनेगा प्रेमपरायण,भक्तिभावमय आवासी;
पावन निर्मल साथ रहेगा, गंग धार होगी उर में;
सहज भावमय हृदय मिलन की, होगी अनुपम शिव काशी।

रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801

तृप्ति विरेंद्र गोस्वामी काव्यांशी

विषय- करो योग रहो निरोग

पहला सुख निरोगी काया   
         स्वास्थ हमारी अनमोल माया
मानव की यह अमुल्य सम्पति            
          जीवन की यही शीतल छाया

स्वास्थ हमारा सुख अवलंब
             सुख में पनपें ढेरों आशा          
आशाओं में आश्रित सफलता  
             स्वास्थ मनुष्य को नहीं हताशा

प्रतिदिन करें योग प्राणायाम
              स्वास्थ हेतु उचित व्यायाम
सदा करें संतुलित आहार
              प्रात:काल हो या हो शाम

जल्दी सोकर उठना जल्दी
              रहो स्वस्थ आये स्फूर्ति
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन
              रोग बचाव की अद्भुत शक्ति

प्रसन्नता ही स्वास्थ्य आधार 
               मुदित मन और शुद्ध विचार
स्वस्थता ही संपूर्णता
               हर्षित मन से करों स्वीकार
        
                         स्वरचित
            तृप्ति विरेंद्र गोस्वामी "काव्यांशी"  
                    जोधपुर राजस्थान

जय जिनेंद्र देव

*योग दिवस*
विधा : कविता

रोज सबेरे तुम सब जागो 
नित्य क्रियाओं से निवृत हो। 
फिर योग गुरु को याद करो
और योग साधना तुम करो। 
स्वस्थ और निरोगी रहोगे तुम
और एकदम सुंदर दिखाओगें। 
मानव शरीर का अंग व पुर्जा 
एक दम से तुम्हारा चुस्त रहेगा।। 

बाग या घरका आंगन में 
तुम नित्य करो योगसन। 
महापुरुषो ने बनाये थे
अपनी त्याग तपस्या योगसन। 
जो भी योग को जीवन मे अपनाता 
पूरी जिंदगी अपने को स्वस्थ पाता। 
इसलिए योग से मिट जाते 
मानव शरीर से पुराने आदि रोग।। 

बैठकर इसकी साधना में तुम
अपने आपको रोगों से बचाओ। 
दवा डाक्टर आदि के चक्कर से
नित्य योग करके अपने को बचा लो। 
भागम भाग भरे इस जिंदगी में 
अपने आपको चुस्त रखने के लिए। 
शाम सबेर कम से कम आधा घंटे
रोज योगा करने का नियम ले लो।
और योग दिवस को सार्थक बन दो।। 

जय जिनेंद्र देव 
संजय जैन "बीना" मुंबई
21/06/2021

दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हाइकू 

योग साकार
    देता है जीवन को
          नया आकार।

रोग निकट 
   आता है मानव के
            मार देता है।

मेरा दावा है 
   योग हो नियम तो 
          भाग लेता है।

जग में मौत
  ताण्डव करे रोग
         उपाय योग।

दिवस एक
   मनायें हैं उत्सव 
       चले ये रोज।

योग देती है 
    हमें उर्जा क्षमता
        औ खुशियाली।

हो देह रूग्ण
    तो मन में चैतन्य
        भर देती योग।

- दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...