" माँ गंगा की यात्रा "
मुख गोमुख का अंतस्तल
माँ गंगा का उदगम स्थल
कल-कल छल-छ्ल आगे चल
जा पहुंचीं हरिद्वार पावन स्थल
गिरि के चट्टानों से लड़-लड़ कर
होता पावन अमृत गंगा का जल
पहुँच औद्योगिक कानपुर नगर
दूषण समेट भी अविरल गंगाजल
पहुँच प्रयागराज के पावन भूतल
मिल यमुना जी से गंगा जल
बनता वृहद कुंभ संगम स्थल
कुंभ-राज ये प्रयाग का कुंभस्थल
बढता जाता कर नादि छल-छल
गंगा यमुना का ये मिश्रित जल
दो रंगों का यह अविरल जल
कितना पावन कितना निर्मल
दो-दो सरिता का दोहरा बल
जा पहुँचा विंध्य के विन्ध्याचल
धोता माँ का आँचल पावन जल
कितना पावन गंगा-यमुना जल
आगे जिला बनारस काशी अँचल
विश्वविख्यात पावन तीर्थ स्थल
पग-पग शोभित घाटों से गंगाजल
दशाश्वमेध घाट है गंगा पूजन स्थल
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रचयिता - विजय मेहंदी ( कविहृदय शिक्षक)
कन्या कम्पोजिट इंग्लिश मीडियम स्कूल शुदनीपुर,मड़ियाहूँ,जौनपुर (उoप्रo)
मेरे सम्मानित साथियों आज प्रस्तुत है एक समाजिक कुप्रथा "दहेज़-प्रथा"पर आधारित मेरी एक रचना-- 👇------------
"एक सामाजिक व्यथा-दहेज प्रथा"
(धुन- झिलमिल सितारों का आँगन होगा!
रिमझिम बरसता सावन होगा)
दहेज़ मुक्त समाज अपना जब पावन होगा
कन्या-भ्रूण हत्या मुक्त हर घर आँगन होगा
ऐसा सुन्दर सपना जब जन -जन का होगा
कन्या-जन्म तब हर घर में मन भावन होगा
कांटे बनी कन्याए,कल एक छोटा सा बसाएगीं।
कांटो से नहीं वे बगिया,ममतामयी फूलो से सजायेगी।
माँ कोंख-धरा से अलग-थलग कर,
जब कूड़े में ना फेंकी जायेंगी,
हरित पल्लवित पुष्पलता बनके,
तेरी बगिया को महकायेगीं।
हँसता खिलखिलाता मा का दामन होगा,
दहेज़-प्रथा का जब समाज से अंतगमन- होगा।
नहीं बनेंगी वे बोझ किसी पर,
तन-मन से मेहनत करती जायेगीं।
सूखा, धूप, छाँव सहकर वे,
चोटी पर लहरायेगीं।
ऐसा सुन्दर वैश्विक भारत दर्शन होगा,
भारतीय नारी जीवन विश्व का आकर्षण- होगा।
========================= मौलिक रचना- विजय मेहंदी (कविहृदय शिक्षक) जौनपर