संपूर्णानंद मिश्र

*एक बेटी ऐसी‌ भी*
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   जब आंखें 
   उसकी खुली
 कुछ जानने समझने 
    लायक हुई
मलिन बस्तियां स्वागत में
  खड़ी थी उसके
एक गहन अंधेरा
अगले दिन का सबेरा
   बाप पर कर्ज़ 
और शरीर में असंख्य मर्ज 
ग़रीबी की चादर में लिपटा
इक्कीसवीं सदी का भारत
    पढ़ाने के लिए 
संघर्ष के कागज़ की किताब
    प्रकाश के इस युग में
    अब भी ढिबरी
   रोटी की तलाश में
  भविष्य के फूलों का खिलना
    दूर-दूर तक नहीं
     फटे हुए वस्त्रों में 
    छिपा हुआ बचपन
      इमदाद के लिए
      कोई हाथ नहीं
सुनहले स्वप्न को संजोए
    आंखों में धुंध
सर्वत्र झांकती हुई निराशा
दूर-दूर तक व्याप्त थी
एक ऐसी बेटी को पिता ने
   जन्म पर उसके 
एक नायाब तोहफ़ा कोमल हाथों       में उसकी जिद़ 
के बिना ही दे दिया
इक्कीसवीं सदी की वह बेटी
     उसे लिए 
  एक नए भारत की
    तस्वीर बदलने 
कुज्झटिकाओं से आच्छादित
इस सर्द में फुटपाथ पर
धीरे-धीरे चल पड़ी
एक बेटी ऐसी‌ भी!


संपूर्णानंद मिश्र


ऋद्धि निराला

अब कब आओगे भगवान,
बन के श्री कृष्ण या राम!
तुम तो जग के पालनहार,
बढ़ गये कलयुगी अत्याचार!
पापों का संघार करो,
इस युग का कल्याण करो!
 युग बदल गया ,
शासन बदल गये,
बदल गया संसार ,
अब कब आओगे भगवान,
बन के श्री कृष्ण या राम!
तुम तो अंतर्यामी हो,
 अंतर मन के स्वामी हो,
जग मे छाया है अंधियारा !
इस जग को कर दो उजियारा,
मिटा दो सबके मन का क्लेश,
बना दो इस जग को विषेश,
सब त्याग दे लोभ, मोह और  माया,
हृदय मे हो क्षमा,दया, प्रेम की काया,
बदल जाए संसार,
अब कब आओगे भगवान,
बन के श्री कृष्ण या राम!


धन्यवाद🙏🏻
          _____ऋद्धि निराला✍🏻


राजेंद्र रायपुरी

😌😌 तन में ही दूरी रहे 😌😌


तन में ही दूरी रहे,
                    मन में रहे न कोय।
मन  में  दूरी  जब  रहे, 
              काज सफल नहिं होय।


काम हमारा सफल हो, 
                     करना है वो काम।
'कोरोना'  से  हम  बचें, 
                  और जगत हो नाम।


काम सभी वो ही करें, 
                   कहती जो सरकार।
चाहे  राम- रहीम  हों, 
                    या  जानी-करतार।


रहें सुरक्षित हम सभी, 
                    और  रहे  परिवार।
घर में ही रहना हमें, 
                    इसके ख़ातिर यार।


देव-दूत  ही  हैं  सभी, 
                     करते जो उपचार।
बुरा कभी उनसे नहीं, 
                    करें आप व्यवहार।


विपदा में हों साथ खड़े, 
                     है इसकी दरकार।
बात-बात में हम कभी, 
                    करें  नहीं  तक़रार‌।


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


एस के कपूर "श्री हंस*" *बरेली*।

*हे कॅरोना।मानवता   को यूँ ही*
*मरने नहीं देंगें।*


घर में ही   रहो अभी  चुपचाप,
इस कॅरोना  की    चाल  देखो।
इस विनाशी  कॅरोना  की जरा,
यह   हील हवाल   तो  देखो।।
जबतक नहीं वैक्सीन,प्लाज्मा
थेरेपी से करेंगें इसका उपचार।
हमारे   वैज्ञानिक, डॉक्टर्स  का
फिर   जरा  तुम  कमाल  देखो।।


हाथ धो धो कर   हर  पल  हम,
इस  कॅरोना  को  मारते   रहेंगें।
यह हठी कॅरोना क्या सोचता है, 
कि हम हमेशा   पालते    रहेंगें।।
घर में रह कर ही   करते  रहेंगें,
हर बंधु बांधव से दुआ सलाम।
सामाजिक दूरी , मास्क  से दुष्ट,
कॅरोना के  सपने   हारते  रहेंगें।।


कॅरोना की इस बेल को ज्यादा
हम   अब  पनपने   नहीं   देंगे।
हे   यमराज   के  दूत    कॅरोना
तुझे अब और खपने नहीं देंगें।।
तेरे नापाक   इरादों  की  खबर 
सारी दुनिया को लग  चुकी  है।
पर विश्वास जान इस  मानवता
सम्पूर्ण को बेबस मरने नहीं देंगें।।


*रचयिता।एस के कपूर "श्री हंस*"
*बरेली*।
मो      9897071046
          8218685464


विनय साग़र जायसवाल

ग़ज़ल----


जश्नने-दीवानगी यूँ मनाया करो
जाम आँखों से अपनी पिलाया करो


रोज़ छाती नहीं है घटा प्यार की 
प्यार की बारिशों में नहाया करो


दिल को तुमसे बिछड़ना ग़वारा नहीं
मेरी आवाज़ सुन लौट आया करो 


जब उतरने लगे मयकशी का नशा
मेरी आँखों में तुम डूब जाया करो


सारी महफ़िल की नज़रें हैं अपनी तरफ़़
तीर नज़रों के छुप-छुप चलाया करो


शीशा-ऐ-दिल है मेरा ये नाज़ुक बहुत
मुझपे जौर-औ-सितम यूँ न ढाया करो 


टूट जाये न *साग़र* ये मेरा यक़ीं
अपना वादा कभी तो निभाया करो 


🖋विनय साग़र जायसवाल


निशा"अतुल्य"

निशा"अतुल्य"
देहरादून


अभी दूरी बनाए रखनी है
25.4.2020



संगरोध न हो कहीं
एकांत में रहो सभी 
होगी समाजिक दूरी
पानी गर्म पीजिये।


देश बड़े खौफ़ में हैं
तालाबंदी सब में है
मानव का धर्म सेवा
बस दान करिये।


ये हैं बात छोटी छोटी 
अलगाव क्यों जरूरी
मुँह ढक कर रहें
हाथ धोते रहिये।


ताप तेज नही साथ
घबराने की ना बात 
खाँसी छींक या जुकाम
सावधानी रखिये ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
    *"सोचकर देखो जरा"*
"क्या-खोया,क्या-पाया
साथी,
इस जीवन में-
सोचकर देखो जरा।
तेरा-मेरा करते -करते साथी,
कितना-कुछ खोया हमने-
सोचकर देखो जरा।
अपने अपनो और देश हित में साथी,
घर में रह कर दिया योगदान-
सोचकर देखो जरा।
विपत्ति के समय में साथी,
तुम्हारा धैर्य देख रहा विश्व,
सोचकर देखो जरा।
तुम चाहोगें तो ये भी साथी,
बीत जायेगी काल रात्रि-
सोचकर देखो जरा।
होगा जीवन का नया सबेरा साथी,
छायेगी खुशियाँ ही खुशियाँ-
सोचकर देखो जरा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः        25-04-2020


कालिका प्रसाद सेमवाल मानस सदन अपर बाजार रूद्रप्रयाग उत्तराखंड

हे मां वीणा धारणी
***************
हे मां शुभ्र वस्त्रधारिणी,
दिव्य दृष्टि निहारिणी,
 हे मां वीणा धारणी ,
पाती में वीणा धरै,
तू कमल विहारिणी।


पवित्रता की मूर्ति तू,
सद् भाव की प्रवाहिनी,
हे मां सुमति दायनी,
ज्ञान का वरदान दे,
मैं प्रणाम कर रहा हूं।
******************
कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार
रूद्रप्रयाग उत्तराखंड


सत्यप्रकाश पाण्डेय

मन भावन अति रूप सुहावन
जगत पिता मां बृज ठकुरानी
पीत वसन राजत अति पावन
बृषभानु सुता श्री कुंज बिहारी


सारा जगत विमोहित तुमसे
जग रक्षक जग पालन हार
मोर मुकुट प्रभु सिर पर धारे
जग भूषण जग सृजन हार


"सत्य"करे हे गोविन्द प्रार्थना
सदा अनुग्रह रहे युगलरूप का
कष्ट मिले नहीं तेरे भक्त को
आशीर्वाद रहे जगत भूप का।


युगलरूपाय नमो नमः🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


_अश्क़ बस्तरी_

तेरी हर याद को दिल से मिटाना....चाहता हूँ मैं,
ख़ुदी ख़ुद से ख़ुदी को भूल जाना...चाहता हूँ मैं,


गुज़र जाए न यूँ ही बेख़याली...... में उमर सारी,
कि अब तेरी वफ़ा को आज़माना...चाहता हूँ मैं।


नहीं हूँ मैं ख़ुदा जो वक़्त को फ़िर से बदल डालूँ,
ख़ुशी रूठी उसे ही फ़िर मनाना.... चाहता हूँ मैं।


कभी ग़र आ गयी बीते दिनों की याद मुझको तो
कसम से तेरे सारे ख़त जलाना......चाहता हूँ मैं।


सुना है तुझ से ज़्यादा ख़ूबसूरत.......शह्र तेरा है,
बुला लेना कभी उस ओर आना......चाहता हूँ मैं।


शज़र के पात पीले हो रहे पतझर ये......आया है,
बहारों को घटाओं से बुलाना..........चाहता हूँ मैं।


लिये फ़िरता हूँ आँखों में समन्दर अश्क़ का मैं भी,
दरो दीवार रोके है गिराना..............चाहता हूँ मैं।


*_अश्क़ बस्तरी_*


लक्ष्मी तिवारी फूलपुर अंबेडकरनगर

दर्द का श्रृँगार कर



वक्त की हर माँग को पहचान कर चलते रहो,
दर्द का श्रृँगार कर सुख-दीप सा जलते रहो
अर्न्तकलह से दूर रहो हर साँस का एहसास कर,
तू कर्म कर सब भूलकर तू ख़ुद में ही विश्वास कर
मजबूरीयों की डाल पर, हर वक्त तुम फलते रहो,
वक्त की हर माँग को पहचान कर चलते रहो
दर्द का श्रृँगार कर सुख-दीप सा जलते रहो


हर एक बंदिश को तोड़कर तू काम को अँजाम दे,
जो आजतक है ना हुआ कर, दुनिया को पैगाम दे
इस बेपनाहों के शहर में, कफन पे पलते रहो
वक्त की हर माँग को पहचान कर चलते रहो
दर्द का श्रृँगार कर सुख-दीप सा जलते रहो


मुस्कुराने की वजह को ढूँढना मुश्किल यहाँ,
ज़िन्दगी की दौड़ में हम भूल गये जाना कहाँ
जद्दोजहद की कंटकों में फूल-सा खिलते रहो
वक्त की हर माँग को पहचान कर चलते रहो
दर्द का श्रृँगार कर सुख-दीप सा जलते रहो


सर्वाधिकार सुरक्षित🖊🙏🏻
लक्ष्मी तिवारी
ग्राम फूलपुर (भगवानपुर)
पोस्ट- जमुनीपुर
जिला- अंबेडकरनगर
पिन कोड- 224122
राज्य- उत्तर प्रदेश


जयश्री श्रीवास्तव जया मोहन  प्रयागराज

एक कहानी बुंदेली 
करिया
रात भर चांदनी के साथ अठखेलियां कर चंदा सूरज के उगने की आहट सुन शर्मा कर जा रहा था ।सूर्यदेव अपने रश्मि रथ पर सवार हो जग को प्रकाशित करने आ रहे थे।उनकी किरणों के धरती चूमते ही निद्रा मग्न धरती में हलचल शुरू हो गयी।रैन बसेरे से पक्षी निकल कर मधुर ध्वनि करने लगे।ऐसा लगा मानो वो अपने देवता को ऊष्मा व प्रकाश देने के लिए धन्यवाद  दे रहे हो।बैलो के गले मे पड़ी घंटियां रुनझुन बजने लगी।मानव भी आलस त्याग नित्य क्रिया से फारिग होने के बाद अपने कामो में लग गया। रसोईघर से खाने की खुशबू फ़िज़ा में तिर गई।कोई अखबार के साथ चाय की चुस्की लेने लगा कोई हल  लेकर खेत चला बच्चे स्कूल जाने को तैयार।
धीरे धीरे सूरज देवता अपनी पूर्ण आभा से पृथ्वी को प्रकाशित करने लगे। बस नही उठी थी तो करिया।अरे चौकिये मत मैं आपको एक  बुन्देलखण्ड की बेटी की कहानी वही की भाषा मे सुनाने जा रही हूं।करिया हाँ यही शीर्षक है मेरी कहानी का ।चलिए अब वही की भाषा मे कही जाय क्या कहा समझ नही आएगी।लो भैया  तो फिर हम किस बात की दवा है। हर शब्द का अर्थ हम कोष्ठ में लिखेगे।अब ना मत करियेगा।एक ही तरह का भोजन मन को आह्लादित नही करता वैसे थोड़ा सा भाषा का स्वाद भी बदल कर देखिए।
बात बहुत दिनन की है।वरा नाम को एक गांव हतो(  था) उते(वहाँ,)के ठाकुर साहब बड़े खेतिहर हते।जानत हो भैया की उते की जमीन इते(यहाँ) जैसी नाइ होत। सौ बीघा वारो धरणीधर भी गरीब रहत है। काय की उते पानी को साधन नाही भुइ (धरती,,) पथरीली होत है।बस अगर भगवान जी की किरपा भई समय से बरस गाओ तो गल्ला(आनाज़) घरे आ गों नही तो तकत रहो ।
हो सो मैं कहत ती उनके एक ठो मौड़ी*(लड़की)हती।उको नाम हतो कली पर उको रंग कारो हतो ऐसे सबरे(सब)उखा करिया करिया कहत ।उखी दादी तो भौतै गरियात हती।ओ मोरे ईसुर काहे के लाने जो उलटो तवा मोरे घर भेज दाओ।एक तो मौड़ी ऊ पे करिया।कौनौ उखो प्यार न करत।बेचारी भौताई दुखी रहत।महतारी करिया का करेजे से लगाय रहत।करिया रोवत तो कहत चमक जा(चुप हो जा) बिन्नू(बेटी) तोखा ,तुझे, कोनऊ चाहे न चाहे मैं तो चाहत हूं तोय।करिया अपनी बाई(माँ) के पीछू पीछू लगी रहत।उखा तनको देर उठे में हो जाय तो दादी चिचियात भुनसारो कबइ का हो गाओ जा महारानी की निदई न टूटत।घाम चढ़ आओ।करिया दिरात दिरात उठत दादी मोय जुड़ी(बुखार) सी चढ़ी है।एई लाने न उथ पाये।हौ हौ(हा हाँ) जा कुइयां पे जा के सपर ले((नहा) हुन्न आ,लत्ता(कपड़ा)) फीच(धो) लाइये और इत्ते सुन बाबा की पर्दनिया( धोती) फीच लाइये।हौ दादी।सारे घरहि को काम करिया करत।कछु दिनन से बाई की तबियत खराब हती।सारो घर सम्भलवे वारी करिया कौनौ कहत करिया गड़ई ( लोटा) में पानी दे जा दादी कहत खोरा( कटोरा) में दूध धर दे जा से ठंडो हो जाय ।छुटकी कहत जिज्जी मोरे बाल उँछ दे( कंघी कर दे) मोखा अबेर होत है स्कूल जाय खा। सबरन के काम मे करिया दौड़त रहत  खोबई घाम चढ़ आत तबे खा पात करिया। रात में पलका( पलँग) पे गिरत तो होशीइ न रहत की कब भुनसारो हो गाओ।
करिया जब पूजा करत तो कहत ओ भगवान हमहि का काहे का एसो रंग दे दाओ।बाई कहत बिन्नू राम जी जौन करत है भले के लाने करत है। अम्मा के साथ काम करत करत सबइ काम मे करिया होशियार हो गई। अम्मा का दादी सुनात न जाने का खा के जनि जा मौड़ी। शादी के लाने मोर बिटवा के लोहे की लतकरिया( जूते) घिस जाहे। करिया बुंदेली सबरे गीत गा लेत जो कोउ सुनत कहत ठाकुर की मौड़ी गात है इत्तो मीठो को कानन में रस सो घुरो जात है।सिलाई बुनाई कड़ाई ऐसी करत की देखन वरन की आँखे फटी रह जाती।अचार बड़ी पापड़ एसो बना त की लोग अंगुरिया चाट ले। 
सारे गांव की बिन्नू गुट्टी( बेटी बहु)उसे सीखती सबइ कहत हीरा है हीरा।करिया की पक्की गुइयां की बारात आयी करिया नही गई वो अड गई मोरी गुइयां न आहे तो हम ब्याब न कराहे। अरे बुला लाओ करिया खा।करिया के पहुँचत मौड़ी चिपट गई काय एसई निभाई जात है दोस्ती।करिया हर रीत पे खूब गीत गाये बाराती पूछन लगे को आ गा रहो इत्तो मीठो तभी एक मौडा( लड़का) ने एक बिटिया को अपने एंगर( पास) बुलाओ।काय बिन्नू ये जो को गया रहो।जे तो हमारी करिया जिज्जी है हमे मिलवा दो धत कह वह मौड़ी भाग गई।कमरे में घुसत भई बोली उते बरातिन्ह में एक मौडा करिया जिज्जी से मिरवाबे को कहत है।तभी एक जनि बोली देख तो नौनिया को आय।
नौनिया मौड़ी संग गई का भाई का कहत रहे मौड़ी से।अरे जौन गात रही उन्ही से मिकने है।काय ब्याब करने है।नही कुछु जनि बोली मिला दो उनने दूरहि से दिखा दी वो देखो वो रही बस रंग से कम है सबरे कामम में बहुतै होशियार है। ।अम्मा रंग को का गुण तो है।
कछु दिनन बाद करिया के इते एक लिफाफों आओ।की की चिठ्ठी हूहे हमे का  पतो। दादी बोली अरे खोल कर देखो कोनऊ जुजु बाबा नही हैकि काट खाहे।हौ बाई पढ़त है। जे तो करिया के ब्याब के लाने आई है। का।का मोरे कान सही सुन रहे है।हौ हौ । दद्दा भी आ गए का हो रहो है।जो पत्र आओ है कौन इंजीनियर को।का कहत हो रामधाई( राम कसम) जे तो गज़ब हो गाओ।दादी बोलू कोनऊ ने मज़ाक करो हुईहै ।अंदर आती करिया की गुइयां बोली नही है सच्ची है।। जे मेरे दूर के देवर है सबइ जने खुश हो गए।दादी बोली बड़भागिनी है मोर करिया।अरे पतो कर लो कोनऊ खोट न हो मौडा में।नही बाबा हम जिम्मेकारी लेट है।
धूम धाम से करिया का ब्याब हो गाओ।बहुत कम आ पाती करिया।।
करिया बड़े बड़े कार्यक्रम में गाने लगी विदेश हो आयी फिल्मों में भी गाने लगी।पूरा गांव गर्व करता।करिया के गोरा चिट्टा बेटा है।दादी बाबा गोलोकवासी हो गए।
आज करिया की फैक्ट्री का उदघाटन है। अम्मा आंचल फैला कर कहती सूरज देवता तोरे आते ही अंधेरे छंट जाते है वैसे भाग्य पलटते ही दिन बहुर जाते है सही रात के बाद भोर हॉट है।मोरी करिया को भी भिनसार हो गाओ।कबहु उखो दुख न दाइयों भौताई दुख सहे है ऊने। अब सब उसका सही नाम बुलाते है कली सुन कर अम्मा कहती अब मोर जियरा जुड़ाने सब नाम तो सही बोलत है
अरे का सोचन लागी अबेरा हो गई तो गाड़ी छूट जाहे।नहीं नही चलो हमार करिया न कली सिंह हमरी राह जोहत हुईहै।कली ने फैक्ट्री का फीता अम्मा से कटवाया।आज चारो तरफ कली की सुगन्ध फैल रही है।


स्वरचित
जयश्री श्रीवास्तव
जया मोहन 
प्रयागराज


संजय जैन (मुम्बई)

बहिना तुम्हें नमन*
विधा : गीत भजन
(तर्ज: तेरे नाम तेरे नाम....)


तेरे नाम परिवार की शान,
बहिना तुझ पर है अभिमान।
ओहो ओहो तुम पर, 
हम को है अभिमान।
प्यार बहुत करते है तुझसे,
माता पिता और भाई बहिन।
ओहो माता पिता और भाई बहिन।।


हर पल हर दिन,
तेरी याद आती है।
धर्मकर्म वाली तेरी बाते,
हम सब को भाती है।
जैन धर्म से नाता 
तेरा पूर्वभव का है।
मेरी लाड़ो तुम पर 
सबका आशीष है।
तभी तो तभी तो 
बेटी धर्म ध्यान इतना,
हर्ष उल्लास के साथ करती हो।
ओहो ओहो हर्ष और, 
उल्लास से करती हो।।


तेरी धर्म की अनुमोदना,
संजय भी करता है।
तुमको हाथों में लेकर,
सब जन चलते है।
ज्ञान ध्यान साधना तेरी,
हम सब को दिखाती है।
तेरे ही कारण हम को,
अब ख्याति मिल रही है।
तू ही अब तू ही अब,
पूरे परिवार की जान है।
ओहो ओहो परिवारकी शान है।।


तेरे नाम परिवार की शान,
बहिना तुझ पर है अभिमान।
ओहो ओहो तुम हमको अभिमान।
प्यार बहुत करते है तुझसे
माता पिता और भाई बहिन।
माता पिता और भाई बहिन।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
23/04/2020


निशा"अतुल्य"

साया
सायली
1,2,3,2,1 वर्णिक विधा


साया
चलता साथ
नही छोड़ता कभी
तन्हाइयों में
भी।



घेरते
जब अंधेरे
मुझे सरेराह दिखता
साया लैम्पपोस्ट 
नीचे।


ऊर्जा
देता सोचने
की शक्ति देता
सदा मुझे
साया


रोशनी
जरूरी आत्मविचार
रहेंगे साथ सभी
ख्यालों में 
चाहे।


मेरा
साया हमदम
नही छोड़ता साथ
ग़ुरबत में
भी ।


साया
होता जीवन 
जब तक रहता
साथ सदा
सबके।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


सुनीता असीम

दिल में जब भगवान रहेगा।
धरती पर       इंसान रहेगा।
***
हम सब भूलें दुख के लम्हे।
क्या ऐसा आसान रहेगा।
***
पास खुदा के जाना सबको।
कब तक तू अनजान रहेगा।
***
जब तक कोरोना का डर है।
जीवन ये सुनसान रहेगा।
***
अपने भय से खुद जो जीते।
बस वो ही बलवान रहेगा।
***
वक्त सजग रहने का है ये।
बेसुध तो     नादान रहेगा।
***
धीरज खोया गर जो सबने।
 कटता फिर चालान रहेगा।
***
सुनीता असीम
२३/४/२०२०


अनुराग मिश्र

हम निरंतर बढ़ चले हैं, प्रगति की  एक राह में l
दया करुणा भावनाओं, से रहित संसार में ll
धूल ने अब लील ली, जो लालिमा थी भोर में l
पंछियों की चहचहाहट, दब गयी अब शोर में ll
जंगलों के  जीव जंतू , में भरा आवेश है l
प्रेम था जो मानवों से, अब कहाँ वो शेष है ll
है जमीं बंजर, कहीं तो बादलों में रोष है l
है प्रकृति बेजार सारी पर किसे अब होश है ll
राह तकती माँ की आंखे, हो रही निष्प्राण हैं l
है हृदय विह्वल विरह से, पर उसे ना भान है ll 
साधनों, संसाधनों पर, प्रथम अधिकार हो l 
हों अधम जितने भी भरसक ,सब सहज स्वीकार हों ll
नदियां झरने पर्वत सागर, हो उठे व्याकुल सभी l
करके दूषित इस धरा को, लक्ष्य है मंगल अभी ll
जीवन की इस निर्बाध गति को, फिर  अगर यूं थामना l
कारणों को बदल देना, है प्रभु ये कामना ll


अनुराग मिस्र


आलोक मित्तल

ग़ज़ल
********


हम भी यार दिवाने है
वो लौ हम परवाने है ।।


दिल जला किसी का यारो,
दीये और जलाने है ।।


छोड़ना नही हाथ कभी,
रिश्ते सभी निभाने है ।।


हर दिन है नया बहाना,
जग मे बहुत बहाने है ।।


कर्जा ले कर आये हम,
इक इक सभी चुकाने है।।


साथ साथ रहना है तो,
झगड़े नही बढ़ाने है।।


इश्क मुश्क छुपते है कब,
उनके बहुत फ़साने है ।।


** आलोक मित्तल **


  डा.नीलम

*जज्बात मेरे*


महफूज रक्खें हैं मेरे जज्बात अक्षरों की
शक्ल में
दिल की किताब से
निकाल कर उन्हें
सजा लिया है
पुस्तक की शक्ल में
तनहाई में अक्सर
पलट कर पन्ने
घूम आती हूँ
अतीत की गलियों में
जहाँ कहीं बचकानी
फिसलन पर 
पैर संभालती  हूँ
कहीं लड़कपन की
अठखेलियों में
मुस्कराती हूँ
कभी उन सपनों से 
मिलती हूँ
जो नींद खुलने के
साथ ही टूट गये
मिल आती हूँ
उन पगडण्डियों से भी
जिन पर चल कर
कभी तुम आ जाते थे
एक झलक पाने को
सच तो ये है
उन पुस्तकों में
मैने भोर से साँझ ढले
साँझ से रात तक के
लम्हें समेट रक्खें हैं
जो मुझे कभी तन्हा
नहीं रहने देते
उनमें कई पन्ने
मेरी सिसकियों और
दबी हुईं चीखों के हैं
जो कभी मैं
खुलकर व्यक्त ना
कर सकी
बहते दरिया से दर्द
अल्फाज में बहते हैं
मेरे दिल के जज्बात
मेरी पुस्तक में
उतर आये हैं।


      डा.नीलम


सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता " झज्जर (हरियाणा ) संपर्क - +91-

खामोश सब... 


इल्ज़ामों का सज रहा मंडप. 
वकील-पुलिस की हुई झड़प. 


हाथ उठ गया एक दूजे पर, 
धरनों  से भर गयी सड़क. 


समाज में गलत सन्देश गया , 
ज़िम्मेदारियाँ हुई  बेइज़्ज़त. 


स्वाभिमान कमजोरी नहीं, 
किस बात की इतनी अकड़. 


है सज़ा के हक़दार दोनों, 
जाने सरकार क्यों है चुप. 


"उड़ता" लिखना व्यर्थ है, 
खामोश होकर बैठे हैं सब. 



स्वरचित मौलिक रचना. 


द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )


संपर्क - +91-9466865227


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.

*"पुस्तक"*(वर्गीकृत दोहे भाग2)
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*पुस्तक युग-अभिलेख है, धर्म-सृजक पहचान।
साधक की है साधना, मंगल वाणी जान।।11।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*पुस्तक नींव चरित्र की, महत मान सम्मान।
सींचे जीवन-मूल्य को, सरसित सुधा समान।।12।।
(14गुरु, 20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*गुरुओं की गुरु पुस्तकें, देतीं सबको सीख।
इनमें मुखरित है हँसी, कभी किसी की चीख।।13।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*पुस्तक प्रकाश-पुंज है, परिमल पावन ग्रंथ।
होता जिसके भान से, परम प्रभासित पंथ।।14।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*लहके खेत किताब में, सुरभित बहे बयार।
इसमें पर्वत-श्रृंग है, नदिया की भी धार।।15।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*पुस्तक में आनंद है, उपवन का सा भान।
गुन-गुन करते भृंग हैं, द्विजगण गाते गान।।16।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*भेद छिपे विज्ञान के, दर्शन अरु इतिहास।
परिपूरित तकनीक से, पुस्तक प्राग-प्रभास।।17।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*उत्तम प्रबंध आज का, पुस्तक से है जान।
भावी कल की योजना, विकसित पल आह्वान।।18।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*मोती-मूँगों से भरा, सागर सरिस किताब।
जितने चाहे घट भरो, अमल अपरिमित आब।।19।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*होकर नेत्र विहीन भी, नैन-लगे अभिराम।
पुस्तक प्रीत-प्रकाशिनी, "नायक" नव-गुणधाम।।20।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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हलधर

मुक्तिका (ग़ज़ल)
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बाहर  सन्नाटा  पसरा  है  अंदर  अंदर  शोर क्यों ।
साहूकार जिसे माना था वो ही निकला चोर क्यों ?


तन से साफ दिखाई देता मैन में जिसके मैल है ,
देह रूप से दिखे देवता अंतस आदम खोर क्यों ?


सहज सरल दिखलाई देता है पक्का शैतान वो ,
मज़हब का चोला पहने ये आतंकी घनघोर क्यों ?


मेरी कविता को पढ़कर क्यों खड़े हो गये कान जी ।
सबसे कम अनुभव वाला ही नेता रोम किशोर क्यों ?


नंदी की पीछे पीछे ज्यों  दौड़ा  भूखा  सिंह जी ,
मैया के वाहन से बोलो शिव वाहन कमजोर क्यों ?


बैठे बैठे कविता लिख दी घर अपने ही का कैद हैं ,
हलधर "की कविता से पाठक होंवें भाव विभोर क्यों ?


         हलधर -9897346173


नूतन लाल साहू

पंचायती राज
धन दौलत अडबड़ कमायेन
अब आगे हमर बुढ़ापा
अब जाये के बेरा म
पतवार बने हे पंचायती राज ह
फोकट म सरकार हा कापी
किताब गणवेश सिलाथे
पड़ही लिखही बने बने
मध्यान्ह भोजन करावत हे
धन दौलत अडबड़ कमायेन
अब आगे हमर बुढ़ापा
अब जाये के बेरा म
पतवार बने हे पंचायती राज ह
हम गरीब ह रहथन
छानी के टीना टप्पर घर म
पथरा दबा के रखथन
आंधी तूफान म
पक्का घर बनवावत हे
पंचायती राज के सरकार ह
धन दौलत अडबड़ कमायेन
अब आगे हमर बुढ़ापा
अब जाये के बेरा म
पतवार बने हे पंचायती राज ह
नवा किसानी आगे भइया
ट्रैक्टर लिए किसान
नांगर बइला घलो नंदागे
लुए मिजे बर धान
फसल बीमा घलों हावय
सरकारी लोन मिलत हे
घाटा नी होय संगवारी
किसान के जिनगी बने बने हे
इही पंचायती राज आय
धन दौलत अडबड़ कमायेन
अब आगे हमर बुढ़ापा
अब जाये के बेरा म
पतवार बने हे पंचायती राज ह
नूतन लाल साहू


भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"पुस्तक"*(वर्गीकृत दोहे भाग 1)
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*अच्छी पुस्तक मित्र सम, करती हमसे बात।
देती जीने की कला, मिले ज्ञान-सौगात।।1।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*पुस्तक अनुभव-सार है, देती है संदेश।
भावों का उद्घोष है, नाना विधि उपदेश।।2।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*सबसे प्रीति किताब को, कोई करे न भेद।
अपना लो तुम भी इसे, मन में रहे न खेद।।3।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*पुस्तक बाँटे ज्ञान को, देती सीख-महान।
होकर यह बेजान भी, भर देती है जान।।4।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*पढ़ लो पुस्तक से सभी, मानवता का पाठ।
चिंतन के ही सार से, ज्ञानवान का ठाठ।।5।।
(17गुरु,14लघु वर्ण, मर्कट दोहा)


*पुस्तक वाचन से सदा, बनते हैं गुणवान।
यह हल है हर प्रश्न का, समझे इसे सुजान।।6।।
(13गुरु,22लघु वर्ण, गयंद/मृदुकल दोहा)


*पुस्तक सोता अनवरत, बहे ज्ञान की धार।
चाहे जितने गुण गहो, घटे न यह भंडार।।7।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*बनकर माटी मूक है, लगे प्राण-प्रतिमान।
जीवित प्रतिभा को गढ़े, पुस्तक का अवदान।।8।।
(14गुरु,20लघु वर्ण, हंस/मराल दोहा)


*पावन पुस्तक को पढ़ो, ज्ञान-गहो भरपूर।
भटका दे जो ध्यान को, रहना उससे दूर।।9।।
(15गुरु,18लघु वर्ण, नर दोहा)


*धरती खुली किताब है, देता दिव भी ज्ञान।
होता "नायक" बोध से, परम ज्योति का भान।।10।।
(16गुरु,16लघु वर्ण, करभ दोहा)
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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धनंजय सिते(राही)

*विश्व पुस्तक दिवस*
     *23 अप्रेल*
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किताब केवल किताब नही
हमारा सबसे अच्छा मित्र है!
मानव जीवन को महका दे
पुस्तक ऎसा सुगंधित ईत्र है!!
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
जीवन स्तर उंचा करना हो
तो बात बतात हूं मै सच्ची!
सौ मित्रो से कई बेहतर है
समझो एक किताब अच्छी!!
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
एक तो सबको ज्ञानी बनाए
और जिवन मे लाएँ मोड!
मैतो कहता छोड दे तु सब
और पुस्तक से नाता जोड़!!
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
जिसने अच्छी किताबे पढ़ी
उसका जीवन ही सुधर गया!
कडवाहट जीवन से गायब
जीवन उसका मधुर हूंआँ!!
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
 विचारो मे होता परिवर्तन
जीवन सुदृढ हो जाता है!
प्रतिदिन जोभी शौक से
नई नई किताबे पढ़ता है!!
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
प्रेरणा नई राह जीवन को
बस किताबे दिखलाती है!
अंधेरा जीवन से हटाकर
वह नई रोशन लाती है!!
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
धार्मिक ग्रंथ सतत पढ़े तो
मन आनंदमय हो जाता!
विचार जीवन मे गर उतारे
जीवन सुखमय हो जाता!!
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
*धनंजय सिते(राही)*
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यशवंत"यश"सूर्यवंशी

🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
       भिलाई दुर्ग छग



विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं



🍂विधा कुण्डलिया छंद🍂



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महिमा पुस्तक की बड़ी,पढ़-लिख साक्षर होय।
बचपन गुजरा घूम फिर,अनपढ़ कहकर रोय।।
अनपढ़ कहकर रोय,सोंच पछता सर ठोंके।
दर-दर मिलती मात,पढ़ाने बालक झोंके।।
कहे सूर्य यशवंत, पढ़े यश फैले गरिमा।
पढ़-लिख कहते विज्ञ,विश्व में पुस्तक महिमा।।


📖📖📖📖📖📖📖📖



🌷यशवंत"यश"सूर्यवंशी🌷
      भिलाई दुर्ग छग


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