डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(भ्रमर-16/14)


बेमौसम घेरे हैं बादल,


गरजें देखो घहर-घहर।


हवा है बहती सर-सर,सर-सर,


पानी बरसे झर-झर-झर।


छोड़ कली को भागो झट-पट-


मेरे प्यारे मीत भ्रमर!!


 


सुनो मीत हे प्रेम-दिवाने,


ग़फ़लत में मत रहना तुम।


मौसम का है नहीं भरोसा,


कभी सरद तो कभी गरम।


जाओ मग़र लौट फिर आना-


इसकी रखना सदा ख़बर।।


        मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


 


सच्चे प्रेमी खाकर कसमें,


वादे सदा निभाते हैं।


मौसम की वे मार भी सहते,


कभी नहीं घबराते हैं।


भले रहें वे दूर कहीं भी-


रखें प्यार पे भली नज़र।।


मेरे प्यारे मीत भ्रमर ।।


 


सुख-दुख तो हैं आते-जाते,


जीवन की इस यात्रा में।


मिलते फूल कभी तो मिलते,


काँटे थोड़ी मात्रा में।


कभी तो मिलतीं समतल राहें-


ऊभड़-खाभड़ कभी डगर।।


        मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


 


कहाँ चंद्रमा पूनम का है,


कहाँ समुंदर की धारा।


दूर गाँव के वासी दोनों,


अवनि-गगन- मिलन नज़ारा।


अमर प्रेम की अमर कहानी-


है जग में सबसे बढ़कर।।


    मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


 


भ्रमर-कली का प्रेम प्राकृतिक,


कभी नहीं बंधन टूटे।।    


जब तक गंग-जमुन-जलधारा,


रहे साथ बरु जग छूटे।


शारीरिक अलगाव सुनिश्चित-


किंतु प्रेम जग रहे ठहर।।


    मेरे प्यारे मीत भ्रमर।।


              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल


मात्रा भार-16


इस भारत भू पर आस जगा,


अपना इसपर विश्वास जगा।।


 


मातृ-भूमि की सेवा के प्रति,


मन में अपने उल्लास जगा।।


 


त्याग और बलिदान लक्ष्य हो,


भोग के भाव न विलास जगा।।


 


जिनमें नहीं भला की भावना,


भाव-शून्य मन उदास जगा।।


 


शिक्षा-दीक्षा जहाँ अधूरी,


जा,शिक्षा-क्रांति-विकास जगा।।


 


असहायों की कर सहायता,


जला आस-दीप हुलास जगा।।


 


मानवता ही धर्म एक है,


जन में ऐसा आभास जगा।।


       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


           9919446372


डॉ० रामबली मिश्र

*मंत्र फूँक माँ...*


 


सिद्धिदायिनी शुभ फल दानी।


विनय प्रदात्री महान ज्ञानी।।


 


लोकातीत मूल्य संवाहक।


विद्या महा अनंत सुनायक।।


 


परम रूपसी प्रेम लुभावन।


सहज ज्ञानश्री दिव्य सुहावन।।


 


मंत्र फूँक माँ शिव बनने का।


शांत गौर शुभ्र रचने का।।


 


तुम उत्सव प्रिय पर्व अनंता।


वैभव लक्ष्मी नित श्रीकंता।।


 


ब्रह्माणी ब्राह्मणी सत्व हो।


सबमें एकीकृत समत्व हो।।


 


ध्यान महान सुजान सुशीला।


प्राण महामय स्वरा सुरीला।।


 


धन्य धर्म सत्कर्म सर्व हो।


महा तपस्विनि यज्ञ पर्व हो।।


 


बनी सांत्वना आ माँ उर में।


गंगा बन बह अंतःपुर में।।


 


दोहा:दिल में आओ बैठकर ,गा माँ मोहक गीत।


ज्ञान-प्रेम अरु भक्ति दे,रच सुंदर मनमीत।।


 


रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


रवि रश्मि अनुभूति

  छठ पूजा 


************


अर्चन करें सूर्य देव का , स्वस्थ जीवन पाने को ।


करते सभी हम नमन उसको , सभी आओ छठ मनाने को ।।


 


हो समर्पित ध्यान धरें सभी ,


        सुख जो सबको देता है ।


कलियाँ खुशियों की दे सबको , 


        जो कण - कण महकाता है ।।


 


भाद्र पद रहे शुक्ल पंचमी , 


        व्रत तो सब करते ही हैं ।


नदी किनारे पूजा होती , 


        खुश मन वे चलते ही हैं ।


 


भोग लगायें आराध्य माँ , 


      धरती पर हरियाली हो ।


करें विनती हे छठी मैया , 


        घर घर में खुशहाली हो ।


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


वैष्णवी पारसे

दिल में उठे सवाल, खुबसूरत से ख्याल, आया एक पल ऐसा, हो गई दिवानी मैं। 


 


 उसमे ही खोई खोई , हरपल रहती हूं , मोह भरी दुनिया से ,हो गई बेगानी में। 


 


दिल में वो बस गया, रंग में वो रंग गया, ऐसा एक नशा छाया, हो गई सयानी मैं।


 


चाहती हूं बस यही, साथ रहे हरदम, तू है मेरा बाजीराव, तेरी हूँ मस्तानी मैं।


 


स्वरचित 


वैष्णवी पारसे


डॉ०रामबली मिश्र

*चतुष्पदियाँ*


 


करो मदद जितना हो संभव,


मत समझो कुछ यहाँ असंभव;


खोजो सत्कर्मों का उद्भव।


बन जाये अति सुंदर यह भव।।


 


अति मोहक प्रतिमा बन चलना,


मधु भावों से सबसे मिलना;


मीठी-मीठी बातें करना।


प्रीति परस्पर करते रहना।।


 


सहज हृदय से चलना-फिरना।


सबका नियमित आदर करना;


दीन-हीन का रक्षक बनना।


मानवता का चिंतन करना।।


 


रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

सजल(मात्रा भार-16)


बाग एक गुलज़ार चाहिए,


जिसमें रहे बहार चाहिए।।


 


कभी न रूखा होए जीवन,


एक अदद बस प्यार चाहिए।।


 


आपस में बस रहे एकता,


ऐसा ही व्यवहार चाहिए।।


 


सत्य-अहिंसा-मानवता ही,


जीवन का आधार चाहिए।।


 


रहे स्वच्छता ध्येय हमारा,


ऐसा उच्च विचार चाहिए।।


 


जो भी हैं असहाय व रोगी,


उचित उन्हें उपचार चाहिए।।


 


घृणा-भाव का हो विनाश अब,


प्रेम-भाव-विस्तार चाहिए।।


       ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


           9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*तिकोनिया छंद*


 


करो कहो मत,


यह है ताकत।


दुनिया सहमत।।


 


मुँह को खोलो,


सुंदर बोलो।


साथ ले चलो।।


 


प्रीति निभाओ,


सेज सजाओ।


पर्व मनाओ।।


 


अति रंगीला,


बहुत छवीला।


परम रसीला।।


 


आ जाओ अब,


गुण गाओ तब।


अब ना तो कब??


 


जोड़ मिलाओ,


रच-बस जाओ।


रस बरसाओ।।


 


प्रीतिपान कर,


नित्य ध्यान कर।


हृदय-स्नान कर।।


 


भंग जमाओ,


मधु महंकाओ।


मौज उड़ाओ।।


 


चलो सरासर,


प्रेम किया कर।


श्याम रूप धर।।


 


रचनाकार: डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


डॉ0 निर्मला शर्मा

दीप और पतंगा


 


दीपक और पतंगे की है अजब कहानी


दीपक पर मर मिटने की पतंगे ने ठानी


निस्वार्थ प्रेम करे है दीप से पतंगा


मंडराता चहुँ ओर मद मस्त सुरंगा


कितनी भी हो पीड़ा सह लेता मुसकाकर


कहता न कभी कुछ त्याग करे इतराकर


दीपक कहता मैं हूँ प्रकाश बिखराता


आओ न निकट तपिश से तन जल जाता


है दीप पतंगे की अमर संसार में जोड़ी


जिसे तोड़ न पाया कोई दिशा न मोडी


दीपक पर प्राण न्यौछावर करे पतंगा


लौ बुझा दीप भी पतंगे संग समाना


एक दूजे के साथ त्याग, प्रेम और समर्पण


ले जीवन का आधार मिटे एक दूजे पर


दे सीख जगत को मर मिटे प्रेम दीवाने


उनकी अमर कहानी को दुनिया माने।


 


डॉ0 निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-26


मुक्त करउँ सरनागत-पापी।


कोटिक जनम अघी-संतापी।।


     कपटी-कुटिल-छली नहिं पावैं।


     निरछल-निरमल मन मोंहिं भावैं।।


सुनु कपीस मम हानि न भवही।


जदपि भेद लेवन ई अवही।।


     एकहि पल मा लछिमन बधहीं।


      जे केहु निसिचर जग मा अहहीं।।


राखउँ सरनागत जिमि प्राना।


करउँ अभीत ताहि जग जाना।।


     जाहु लाउ ऊ जे केहु होवै।


     परहित करि नर कछु नहिं खोवै।


कहत राम जय अंगद चलहीं।


पवन-पुत्र लइ सभ कपि-दलहीं।।


      सादर आइ बिभीषन तहवाँ।


      कृपानिधान रहहिं तब जहवाँ।।


पावा लोचन-सुख अभिरामा।


निरखि क अनुज सहित श्रीरामा।।


      अपलक नेत्र लखै भय-मोचन।


      साँवर तन-कंजारुन लोचन।।


देखहि बहुरि राम छबि-धामा।


बाहु अजान अतुल बल रामा।।


     केहरि-कंध,बिसालइ बच्छा।


     मदन असंख्य मोहित मुख अच्छा।।


सजल नयन अरु पुलकित गाता।


कहा नाथ मैं रावन-भ्राता।।


     तामस देह जनम निसिचर-कुल।


      जिमि उल्लू रह तम बिनु ब्याकुल।।


हरहु पीर प्रभु भव-भय-भंजन।


रच्छ मोंहि हे प्रभु चितरंजन।।


दोहा-सुनि अस बाति बिभीषनइ, राम उठे मुसकाय।


         पाद छुवत जब ऊ रहा,निज उर लिए लगाय।।


                     डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


कालिका प्रसाद सेमवाल

*हे मां शारदे*


******************


विद्या की देवी मां शारदे,


नित तेरी आराधना करु,


ऐसी मुझे विमल मति दे मां


गौ, गंगा की मैं नित सेवा करु,


मुझे तुम वरदान दो मां।


 


हे मधुर भाषिणी मां शारदे,


तिमिर का तू नाश करती,


 कुविचार का तू सर्व नाश करती,


सबको सुविचार और ज्ञान दे मां,


और जीवन में उमंग ला दे मां।


 


हे शुभ्र वस्त्र धारणी मां शारदे,


जो भी तुम्हारे शरण में आये,


उसे सही राह बताना मां,


उसे सद् बुद्धि दे देना मां,


विनम्रता का दान देना मां।


 


हे मां सरस्वती ऐसा वरदान दो,


दीन दुखियों की सेवा सदा करु,


राह से भटके राही को मैं सही राह बताओं,


नित नित तेरा ही ध्यान करु मां,


अपने चरणों में स्थान दो मां।


********************


कालिका प्रसाद सेमवाल


मानस सदन अपर बाजार


रुद्रप्रयाग उत्तराखंड


डॉ०रामबली मिश्र

*संशोधन*


 *(दोहा)*


 


कर्म करो चलते रहो,देख कर्म का रूप।


मूल्यांकन करते रहो, दो अति सहज स्वरूप।।


 


क्रिया हेतु कोशिश करो, गलती खोजो नित्य।


सतत सुधारो खामियाँ, क्रिया बने नित स्तुत्य।।


 


संशोधन व्यक्तित्व में, लाता सतत निखार।


संशोधन से आगमन, करता शुभद विचार।।


 


जिद पर कभी अड़ो नहीं, पूर्वाग्रह को छोड़।


संशोधन की ओर ही, अपने मन को मोड़।।


 


संशोधन उपकरण है, यह जीवन का भाग।


संशोधन की राह के, प्रति रख नित अनुराग।।


 


सामाजिक अस्तित्व का, संशोधन वरदान।


स्वस्थ समाजीकरण के, लिये यही भगवान।।


 


बिन संशोधन के नहीं, बनता स्वस्थ समाज।


जीवन के हर क्षेत्र में, संशोधन का राज।।


 


संशोधन से व्यक्ति में, विकसित होत विवेक।


सद्विवेक से मनुज बन, जाता सुंदर नेक।।


 


संशोधन करते रहो, यह अत्युत्तम पंथ।


इसी प्रक्रिया से बनो, इक दिन पावन ग्रंथ।।


 


यही संस्करण आत्म का, करता जीर्णोद्धार।


फलीभूत होता सतत, शुभ शिव उच्च विचार।।


 


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

😊😊 सुबह-सुबह 😊😊


 


सुबह -सुबह उठकर करो, 


                प्रभु को प्रथम प्रणाम।


माॅ॑गो प्रभु से वर यही, 


                   पूरे हों सब काम।


 


पानी पीकर गुनगुना,


                   चलो सुबह को सैर। 


तभी साथ देंगे सुनो,


                  जीवन भर ये पैर।


 


आलस करना है मना,


                 सुबह-सुबह श्रीमान।


सोऍ॑ कभी न देर तक, 


                  लम्बी चादर तान।


 


देखें सूरज सुबह का,


                   उसको करें प्रणाम।


ऊर्जा से भरपूर तब, 


                    रहता सूर्य ललाम।


 


स्वस्थ रहें चाहत अगर,


                     इतना करें ज़रूर।


कहना मेरा मानिए, 


                    विनती यही हुज़ूर।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

मेहनत


 


मेहनत अगर आदत बन जाए


तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती हैं


दिन कितने रात भी कितनी


तेरी बीती होगी चिंतन में


तय करना होगा जिससे कि


होगी सम्मुख सुख सुविधा तेरी


कठिन मेहनत करके तूने


क्षीण किया होगा अपने तन को


लिया प्रलोभन भांति भांति के


सांसारिक माया ने भी भरमाया होगा


बिना किसी संकोच लक्ष्य बना ले


जो कुछ तुझको पाना हैं


तेरी आंखो के आगे


गीता का ज्ञान,मार्गदर्शन करेगी


मेहनत अगर आदत बन जाए


तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती हैं


उस निश्चय से निकली होगी


चिंता तेरे अंतश से


असहाय मानव का भी सहारा है मेहनत


एक आशा की किरण शेष होती हैं


खोजती फिरती किसे है तू


इस तरह पागल विकल होकर


बीच भंवर में तू फंस जायेगा


विश्व से आशा लगाते लगाते


कहीं खो न जाये तेरा विश्वास


विश्व की संवेदना में


वह घड़ी भी निश्चित आयेगी


चिंता नहीं होगी तेरे पास में


मेहनत अगर आदत बन जाए


तो कामयाबी मुकद्दर बन जाती हैं


नूतन लाल साहू


एस के कपूर श्री हंस

*रचना शीर्षक।।*


*मनुष्य के कर्मों से ही मनुष्य*


*के जीवन का निर्माण होता*


*है।।*


 


कोई दलील चलती नहीं है


प्रभु की अदालत में।


झूठी गवाही कोई दे नहीं


सकता वहां वकालत में।।


ईश्वर की लाठी में जान लो


कोई आवाज़ होती नहीं।


गुनाहगार मत बनो तुम इस


नफरत की जलालत में।।


 


सब के काम आते रहिये


कोई नुकसान नहीं होगा।


बेवजह जीवन में मुश्किलों


का फरमान नहीं होगा।।


यूँ ही निरर्थक चले गए


बस इस दुनिया से।


फिर बाकी दिल में कोई


ऐसा अरमान नहीं होगा।।


 


जब मेहनत करोगे तुम तो


सफलता खुद शोर मचाएगी।


तेरी मंजिल तुझको तब


नज़र पास और आयेगी।।


कुदरत का एक उसूल है कि


कोशिश की हार नहीं होती।


चीर कर इन अंधेरों को 


खुद जाग भोर जायेगी।।


 


भीड़ के पीछे नहीं कोई 


राह जरा तुम खुद बनायो।


कर्म और श्रम मिला कर


चाह भाग्य की खुद बनायो।।


बांस से तीर ही नहींजरा तुम


देखो बाँसुरी बना कर भी। 


भुला कर अतीत तुम जरा 


वाह भविष्य की खुद बनायो।।


 


*रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब।। 9897071046


                     8218685464


आचार्य गोपाल जी

 अक्षय नवमी की शुभकामनाएं


 


अक्षय आंवला के नाम से ,


कार्तिक नौमी तिथि को जान ।


आंवला वृक्ष पूजन रक्षण कर, 


करें प्रकृति का सब सम्मान ।


पालक विष्णु भगवान का,


पूजन का है अजब विधान ।


आंवला केला कभी कदम में 


करे निवास प्रभु नित ये जान ।


संरक्षण हो पर्यावरण का,


सब मिल इसका धरो ध्यान ।


 


✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला बरबीघा वाले


एस के कपूर श्री हंस

*आज का विषय।।मित्र/मित्रता।।*


*रचना शीर्षक।।कोशिश करो कि*


*जिन्दगी हमारी अपनी मित्र*


*बन जाये।।*


 


मुस्करा कर ही जीना तुम


इस जिंदगानी में।


माना कि कुछ रास्ते खराब भी


हैं इस रवानी में।।


जान लो कि जिन्दगी फिदा है


इस मुस्कराहट पर।


चाहे कितने गम हों जीत कर ही


आओगे इस कहानी में।।


 


यह जीवन बस इम्तिहानों का ही


दूसरा नाम है ।


एक रास्ता बंद हो तो भी जान लो


दूसरे तमाम हैं ।।


तुम्हारा भाग्य तुम्हारे कर्म की ही


मुट्ठी में होता है कैद ।


यह किस्मत की लकीरें तेरे परिश्रम


का ही ईनाम हैं ।।


 


गमों में भी मुस्कारनें की यह आदत


बहुत अलबेली है।


तन्हाई में भी जिन्दगी कभी रहती


नहीं अकेली है ।।


तनाव अवसाद फिर असर नहीं


करते आदमी पर ।


कभी यह जिन्दगी हमारी बनती


नहीं फिर पहेली है ।।


 


कोशिश करें कि जिन्दगी हमारी


अपनी ही मित्र बन जाये।


वक़्त मुश्किलों का भी हमारा


सचरित्र बन जाये।।


बस खुश रहें हम हर वक़्त और


हर दर्दो गम में ।


जिसका हर जवाबो हल हो बस


जिंदगी ऐसा चित्र बन जाये।।


 


 एस के कपूर श्री हंस


*बरेली।।*


मोब 9897071046


                            8218685464


निशा अतुल्य

राधे राधे 


🙏🏻😊


 


भज मन गोविंद गोविंद हरे मुरारी 


ज्ञान और शिक्षा दे दो हमें सारी ।


प्रज्ञा बढ़ाओ गोविंद मुरारी ।


 


बन जायेगा तू मीरा तभी से 


रटे है जब तू गोविंद मुरारी 


रटता जब मन कान्हा कान्हा 


तब बन जाता तू ही तो राधा ।


भज मन गोविंद गोविंद हरे मुरारी 


ज्ञान और शिक्षा दे दो हमें सारी ।


 


एक तेरा ही तो रूप सब में समाया


कभी बने मीरा तू,कभी बन जाये राधा 


भज मन गोविंद गोविंद हरे मुरारी 


ज्ञान और शिक्षा दे दो हमें सारी ।


 


मुरली तेरी अधर पर साजे 


उससे राधा राधा बाजे


ग्वालबाल सँग लीला रचाई 


गोपी सारी हो मदमस्त नाचे ।


भज मन गोविंद गोविंद हरे मुरारी 


ज्ञान और शिक्षा दे दो हमें सारी ।


 


प्रेम की भाषा जिसने भी जानी 


वो तर गया हे कृष्ण मुरारी


दे कर गीता का ज्ञान जग को,


कर्मक्षेत्र में डटे हर नर नारी ।


भज मन गोविंद गोविंद हरे मुरारी 


ज्ञान और शिक्षा दे दो हमें सारी ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-25


अस कहि तुरतै चला बिभीषन।


त्यागि लंकपुर तन-मन-हिय सन।।


       संत-अवग्या काल समाना।


       सुख-सम्पति अरु उमिरि गवाँना।।


रावन-नास अवसि अब होई।


बंधु बिभीषन जस जे खोई।


      हरषित होइ बिभीषन चलई।


      राम-दरस जे तुरंतहिं पवई।


तरी अहिल्या छुइ पद रामा।


पाइ चरन भे दंडक धामा।।


      सीय-हृदय चरनन जे लागा।


       कपटी मृग पाछे जे भागा।।


सिय-हिय-सर-सरोज जे चरना।


बड़ मम भागि तिनहिं अब धरना।।


     आजु दरस मैं पाउब तिन्ह कै।


      पाद-त्राण भरत-उर जिन्ह कै।


करत सोच अस सागर लाँघा।


पहुँचा निकट कपिन्ह सो बाघा।


      आवत देखि बिभीषन बानर।


       सोचे जनु रिपु-दूत निसाचर।।


देखि बिभीषन कहा कपीसा।


रावन-अनुज आय जगदीसा।।


      राच्छस-माया राच्छस जानहिं।


      भेष बदलि सभ कछु करि डारहिं।।


मम मन कहहि सुनहु रघुराई।


भेद हमारा जानन आई।।


      एका रखब बाँधि हम सबहीं।


       सुनि प्रभु राम तुरत अस कहहीं।।


सरनागत-रच्छा मम धरमा।


जदपि कहेउ नीतिगत मरमा।।


      सुनि प्रभु-कथन मुदित हनुमाना।


       सरनागत-रच्छक भगवाना।।


दोहा-अनहित जानि के त्यागहीं, सरनागत जे लोग।


         मिलहु न तिन्ह बड़ नीच ते,तजु इन्ह जानि कुभोग।।


                    डॉ0हरि नाथ मिश्र


                      9919446372


डॉ०रामबली मिश्र

*धर्म*


           *(चौपाई)*


लो संकल्प मनुज बनने का।


दीनों की सेवा करने का।।


 


अंतस में करुणा रस भर लो।


दुःखियों का मन शीतल कर दो।।


 


सहानुभूति का बिगुल बजाओ।


संवेदना हृदयमें लाओ।।


 


जीना सीखो सबके हित में।


सारे कर्म करो परहित में।।


 


सद्विवेक का परिचय देना।


न्यायी बनकर दुःख हर लेना।।


 


ईश्वर को देखो कण-कण में।


सुदृढ़ बने रहो हर प्रण में।।


 


सबको अपना मीत बनाओ।


ममतावादी नीति सिखाओ।।


 


कर विश्वास सदा समता में।


रखो हृदय में मनुष्यता को।।


 


स्वार्थ छोड़कर बन परमार्थी।


धर्म सीख बनकर विद्यार्थी।।


 


लो गुरु मंत्र सहज बनने का।


भीतर से सज-धज रहने का।।


 


सीखो सतत मनुज बनने का।


सुंदर काम सदा करने का।।


 


कभी बनावट मत पसंद कर।


छोड़ मिलावट चल सुपंथ पर। 


 


प्रेमसिंधु उर में धारण कर।


वृंदावन में बन वंशीधर।।


 


चक्रसुदर्शन लेकर चलना।


क्रूर भाव को सदा कुचलना।।


 


बनकर राम चलो जंगल में।


सारा जीवन हो मंगल में।।


 


सेवादानी बनकर चलना।


रक्षक बनकर सतत विचरना।।


 


मन में धारण कर सात्विकता।


जागे पृथ्वी पर मधुमयता।।


 


सुंदर हरा-भरा जनमानस।


मने कर्मणा भाव अमावस।।


 


करना क्रमिक विकास निरंतर।


दिखें चतुर्दिक धर्मधुरंधर।।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


राजेंद्र रायपुरी

😌 सपने में मत खोए रहना 😌


 


सभी युवाओं से है कहना।


  सपने में मत खोए रहना।


    पूरे अगर नहीं हों सपने,


      भारी दुख पड़ता है सहना।


 


सपने देखो बुरा नहीं है। 


  बिन सपने कुछ हुआ कहीं है?


    पर अपनी क्षमता पहचानो।


      पूरा करने ज़िद मत ठानो।


 


चील बहुत ऊॅ॑चे उड़ जाती।


  गौरैया क्या है जा पाती।


    भाॅ॑ति- भाॅ॑ति के वृक्ष धरा पर।


      बरगद जैसा छाॅ॑व कहाॅ॑ पर ?


 


क्षमता भर तुम जोर लगाओ।


 यदि असफल अवसाद न लाओ।


    यही सभी से फिर कहना है।


      खोए नहीं सपन रहना है।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


नूतन लाल साहू

सत्संग से मिलता है ज्ञान


 


आत्मा भी अंदर है


परमात्मा भी अंदर है


और उस परमात्मा से मिलने का


 रास्ता भी अंदर है


तेरा निर्मल रूप अनूप है


नहीं हाड़ मांस की काया


निराकार निर्गुण अविनाशी


चेतन अमल सहज सुखरासी


अलख निरंजन सदा उदासी


तू व्यापक ब्रम्ह स्वरूप है


फिर भी भुलाकर अपने रूप को


तू कहां कहां भटक रहा है


तू तो सब प्राणियों में श्रेष्ठ हैं


सत्संग से मिलता है ज्ञान


आत्मा भी अंदर है


परमात्मा भी अंदर है


और उस परमात्मा से मिलने का


रास्ता भी अंदर है


जगत में जीवन है,दिन चार


कल के लिए कोई काम न टाल


जो सोया सो खोया


जो जागा सो पाया


पशु पक्षी सहित सब जीवन में


ईश्वर अंश निहार


मधुर वचन है औषधि 


कटुक वचन है तीर


किसका तू है और है कौन तुम्हारा


स्वारत रत है संसार


जग में सुंदर है दो नाम


चाहे कृष्ण कहो या राम


सत्संग से मिलता है ज्ञान


आत्मा भी अंदर है


परमत्मा भी अंदर है


और परमात्मा से मिलने का


रास्ता भी अंदर है


नूतन लाल साहू


डॉ निर्मला शर्मा

छठ पूजा


 


 हे छठ महामाई तुम्हें प्रणाम


 करती सब के पूरे काम 


निर्जला व्रत में करुँ तुम्हारा 


नाम जपु माँ बारंबारा


 करो कृपा माँ विनती जान 


बिगड़े बनाए सबके काम


 गुड और खीर का भोग लगाउँ


 कोरे -कोरे कलश में जल भर लाऊँ


 करो भोग मेरा स्वीकार


 मेरी आराधना करो अंगीकार 


गली-गली में धूम मची है 


खुशियों की बौछार हुई है


 सब जन पूजें आठो याम


 हे महामाई तुम्हें प्रणाम 


 


डॉ निर्मला शर्मा


 दौसा राजस्थान


सुनीता असीम

शमा जली है जो मन्दिर की बंदगी जागी।


मिला खुदा का बसेरा तो ज़िन्दगी जागी।


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जो मैल मन को लगा भावना बुरी जागे।


कि स्वच्छता को हटाया तो गन्दगी जागी।


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 हटाके घोर अंधेरा दिया जला मन का।


मिला खुदा का सहारा तो रोशनी जागी।


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मुझे सुलाके ही सोया है बंशीवाला वो।


सुबह जो नींद खुली खूब ताजगी जागी।


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जो हसरतें सो रही थीं कभी सुनीता की।


कि खास उनके इशारों से रफ्तगी जागी।


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सुनीता असीम


डॉ० रामबली मिश्र

*प्यार*


प्यार करके भले ही मर जायेंगे,


इसे कभी भी नहीं भूल पायेंगे।


 


भले ही इकतरफा ही सही है सही,


जिंदगी को दांव पर हम लगायेंगे।


 


मरना सभी की है नियति यह बात याद रख,


इक दिन सभी जहां से निर्बाध जायेंगे।


 


माना कि हम मनुज हकदार प्यार के,


पंछी भी प्यार करते इक रोज जायेंगे।


 


कोई भले न प्यार दे इस बात का न गम,


हम प्यार करते विश्व से हर रोज जायेंगे।


 


दिल में गिला न शिकवा हम आप में जगत,


हम प्यार करते प्यार से हर बार जायेंगे।


 


कोई न रोक सकता हमको यहाँ जहां में,


 हक जताते प्यार पर हम रोज जायेंगे।


प्यार का पैगाम लिये आये धरा पर,


प्यार करते हर किसी से लौट जायेंगे।


हमको बुरा न समझो हम दूत ईश के,


प्यार के संदेश को हम गुनगुनायेंगे।


एकतरफा प्यार भी तो प्यार की कली,


पुष्प की मुकाम पर एक रोज जायेंगे।


विश्व की महान शक्तियाँ भी विफल हैं,


बुलंदियों तक प्यार को पहुँचा के मानेंगे।


 


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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