"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
कबीर ऋषि
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
निशा अतुल्य
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार सोनी बड़वानी म,प्र,
शोभा सोनी
बड़वानी जिला बड़वानी
मध्यप्रदेश
शोभांजली काव्य संग्रह
में रचना प्रकाशित
जल्दी ही मंचो पर आना प्रारम्भ किया कोई विशेष सम्मान ओर उपलब्धि अभी नही है।
कविताएं आप सभी के अवलोकन हेतु प्रस्तुत है हौसला अफजाई हेतु
मो0+91 97520 50950
विषय- होली
रँगों की बहार छाई
होली आई रे
स्वरचित -
रँगों की बहार छाई ,रे होली आई रे
खुशियाँ छाई चहुँ ओर ,होली आई रे।
गोकुल में धमाल मचावें
कान्हा संग फाग मनावें
ग्वालो की टोली आई होली आई रे
रगों की बहार छाई ,होली आई रे
रँग गुलाल उड़ावे भर पिचकारी मारे फुमारी
करे बरजोरी हुड़दंग मचावें होली आई रे
रँगों की बहार छाई होली आई रे
ढोल नगाड़ा चंग बजावे
सरस् फाग रसिलो गावे
मुरली फाग रास रमावे ,होली आई रे
रंगों की बहार छाई अरे होली आई रे
गूँजया ठंडाई मेवा मिठाई
खूब लुटावे यशोदा माई
गोपियाँ प्रेम रँग भिगोई
साथ भाँग घोट लाई , होली आई रे
रँगों की बहार छाई .रे होली आई रे।
गोकुल ग्वालो की ले टोली कान्हा पहुँचे बृज को,
रँगने राधा गौरी को बृषभानु की छोरी को।
सखियाँ देख सभी हरषाई होली आई रे।
रँगों की बहार छाई,.रे होली आई रे।
ढूंढ लिया राधे प्यारी को
पकड़ बईया रँग डाला
गोरा बदन सुकुमारी का
लाल पीला कर डाला
कान्हा बदन मस्ती छाई होली आई रे
रँगों की बहार छाई रे होली आई रे।
शोभा सोनी
बड़वानी म,प्र,
होली
स्वरचित
विषय- रँगों में प्यार मिला ले
आओ नफरतों को मिटा दें
जीवन से उदासियाँ हटा दें
काम करे ऐसा आशीष सबकी पालें।
न दर्द दें किसी को न घाव दिल में पालें।
गले लगायें सबको गिले - शिकवे मिटालें।
क्या गरीब क्या अमीर ये रँग भेद न पालें
इन रँगों की तरह हम भी ये फर्क मिटालें
अधरों पर हो मुस्कान सदा जीवन सुखी बनालें।
बन कर किसी का सहारा तन्हाइयाँ मिटादें।
अबकी होली इन रँगों में थोड़ा प्यार का रँग मिलालें।
दिल जिसमे रँगना चाहें ऐसा प्यार का रँग डालें।
कड़वाहट दूरकर,आओ रँगों में प्यार मिलालें।
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
होली
लेखनी की धार से
विषय- कवियों संग होली ( कोरोना)
कौन कहता हैं कि रस कोरोना काल मे
फीका लग रहा हैं होली का त्यौहार
हर कवि कर रहा हैं शब्दो से प्रेम गीतों की बरसात
कभी कान्हा का फाग रस तो
कभी राधे की हया की लाली
हर शब्द को बना दिया हैं
सबने मिल सप्तरंगी रांगोली
कौन कहता हैं कि कोरोन में हमने नही खेली होली
हर रँग में रँगाया हैं वो जो इस पटल पर आया हैं
बड़ी कृपा इन रचनाकारों की जिसने
जीवन के हर पल को सुनहरी शब्दों से सजाया हैं
कई रँग बिखेरे हैं दिल के कोरे कागज पर
रोते सिशकते बेचैन मन को
तन्हाई से हटा ज्ञान पँखो का रँग भर उड़ना सिखाया हैं
हम भी अब इन रँगों में रँगवाने चले आय हैं
अबकी होली हम कवियों संग मनाने चले आये है
शुक्रिया सभी कवि भाई बहनों का
जो भाँती -भाँती के रँगों भरे शब्द बिखेर कर इस
मंच इस पटल को रँगों से भरने आये हैं
सुना हैं ये काव्य रस चढ़ कर उतरता नहीं
हम भी इस रँग में अपना दामन रँगाने आये हैं
अबके होली हम कवियों संग मनाने आये हैं
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
होली
स्वरचित कलम
विषय- भावो के रँग
आज रँगाले आओ दिलो को सच्चे भावो के रँग
करले वादे एक दूजे को कभी ना करेंगे तँग
जीवन के हर पथ में हम सांझा कर पार करेंगे।
मुश्किलों की लहरों पर भी तैर कर दिखलाए गे।
गर कभी आये गम की आंधी
आँखों मे नमी भर जाय
हिम्मत बन एक दूजे की हर तूफ़ान से लड़ जायेगे
क्या हुआ जो आज गुलाल रँग नही लग पाया
तेरी प्रीत भरे भावों के रँग में हम सराबोर हो जायेगे।
अनमोल.रिश्तों की खातिर हम
जीवन कुर्बान कर जायेगे
ऐसे प्यारे रँगों को हम भुला नही पायगे
रंग जाएंगे प्रीत रँग में और प्रीत में खो जायेंगे।
ये भावों के रँग हर रँग से अजीज हैं
इन रँगों की कीमत हम चुका नही पाएंगे।
शोभा सोनी
बड़वानी म,प्र,
होली
स्वरचित विधा कविता
विषय- जीवन होली हो गया
अबके फ़ागुण साजना मोहें बरसाने ले चालो जी
राधे श्याम संग हैं माने फाग राग गाणों जी
सुन्यो हैं जो भी इणसूं रँगावे
रँग वो कभी छुड़ा ना पावें
इनको प्रेम हैं जग सु साचो
जिन पाया सु बदले मानव मन ढांचों
बिरला कोई इन को प्रेम पावें
आपणो जीवन सफल बनावें
ऐसा फाग रसिया सु हैं माने रँगणो जी
अबके फ़ागुण रसिया माने बरसाने ले चलो जी
कोरी कोरी चुंदरी मारी
श्याम रँग रँग लगे ली प्यारी
मारी थे रँगा दीजो चुनर
थाको कुर्तो रँगाजो जी
आपा मिल राधे श्याम जपाला
सुण सजन मंद-मंद
मुस्काया
ले माने बरसाने आया
देख जोड़ी राधेश्याम की
में तो धन्य धन्य हो ली
हेली मिल ऐसो खेलयो फाग
मेंतो बावली हो ली
भूल गई सजना को मोपे
रँग चटकीलो चढ़यो अनोखो
पाके दर्शन राधेश्याम के मन उन में खो गया
आज जीवन होली हो गया
आज जीवन होली हो गया
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,
कोरोना कविता आशावादी रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
कोरोना कविता आशावादी
बाहर न जाओ!
सांस थम रही है, बाहर न जाओ,
घूम रहा वायरस, बाहर न जाओ।
उजड़ रही दुनिया, कुछ तो डरो,
मरोगे बे- मौत, बाहर न जाओ।
मौत से न खेलो,सरकार की सुनो,
तोड़ो न मेरा दिल,बाहर न जाओ।
वीरान हो रहा है, शहर का शहर,
बचो और बचाओ,बाहर न जाओ।
ये लम्हें ज़िन्दगी के बहुत कीमती,
उजड़े न घर अपना,बाहर न जाओ।
मझधार में फंसी यह देख दुनिया,
न डूबे कहीं कश्ती, बाहर न जाओ।
रहोगे जिन्दा, तो सब पा जाओगे,
पर मौत को बुलाने, बाहर न जाओ।
मास्क पहनो औ फासले से रहो,
मना खैर दुश्मन की,बाहर न जाओ।
आँक्सीजन,वेंटिलेटर की देखो कमी,
बरस रही है मौत, बाहर न जाओ।
ज़िन्दगी औ मौत के बीच हम खड़े,
माहौल है खराब , बाहर न जाओ।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
इन दिनों!
बेखौफ़ हो गए हैं परिन्दे इन दिनों,
इंसान डर रहा है,इंसान से इन दिनों।
कोरोना लाया वायरस का रेला,
बे-मौत मर रहा इंसान इन दिनों।
दिशा-निर्देश का न करते जो पालन,
वही हैं ज्यादा परेशान, इन दिनों।
बरस रही है मौत सारे जहां में,
दुनिया हो रही है वीरान, इन दिनों।
चीख -चीत्कार का उसपे असर नहीं,
लाश से दबी कब्रिस्तान, इन दिनों।
श्मशान रो रहा मुर्दों को देखकर,
खाली हो रहा है मकान इन दिनों।
मोटर - कार, रेल के चेहरे उड़े,
हो रहा है भारी नुकसान इन दिनों।
टूटेगी चैन उसकी रहो सभी घर में,
यक़ीनन मरेगा हैवान, इन दिनों।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार सुनीता संतोषी इंदौर
सुनीता संतोषी
शिक्षा - स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र
रुचि- हिन्द साहित्य में लेखन (लघु कथा ,कविता , लेख आदि)
बैडमिंटन बास्केटबॉल
समाज सेवा
अध्यापन - अध्यापन (अनुभव पंद्रह वर्ष )
प्रकाशित रचनाएं- मनभावन सावन, हिंदी विशेषांक, बिटियादिवस ,
दिवाली विशेषांक ,जिंदगी, निर्भया,भजन विशेषांक, जन -गण - मन आदि पुस्तकों में रचनाएं प्रकाशित एवं काव्य रंगोली सांझा संकलन "माँ माँ माँ "मैं रचना प्रकाशित
अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद की मीडिया प्रभारी
महिला दिवस पर मध्यप्रदेश महिला रत्न सम्मान प्राप्त ।
मंच को सादर नमन
होली
कैसी आई आफत की टोली।
इस बार नहीं मना पाये होली ।
नहीं आई इस बार मस्तानों की टोली।
नहीं दिखी बच्चों की रंग बिरंगी पिचकारी।
नहीं ढोल ढमाकों की कोई आवाज आई।
नहीं सुनाई दी होली के हुरियारों की तान सुरीली।
नहीं उड़े फिज़ाओं में रंग सतरंगी।
नहीं आई रसोई से पकवानों की महक लज़ीज़ी।
हाँ, इस बार नहीं मना पाए होली।
हाथ उठे गुलाल लेकर।
मन मचला अबीर होकर।
प्रेम रंग में रंग जाऊं,सारे बंधन तोड़ कर।
पर हाथ रुक गए माथा देखकर।
मन मायूस हो गया गुलाल छोड़कर।
हाँ, इस बार नहीं बना पाए होली।
स्वरचित
सुनीता संतोषी
इंदौर
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
वीर सपूत
उन शहीदों की शहादत को नमन
जो हँसते हुए लुटा गये जाँ औ तन
जिन्हें नम आंखों से याद करता है वतन।
वे वीर भी सुंदर फूल थे अपने चमन के।
युद्ध का फरमान मिलते ही,
एक पल के लिए ही सही ,
दिल धड़का तो होगा
यह विचार तो आया होगा
घर परिवार का क्या होगा?
देशभक्ति को सर्वोपरि रखते हुए ,
भावनाओं को दिल के
किसी कोने में दफ़न करते हुए।
चल दिया वह वीर सिपाही
सारे रिश्ते नाते छोड़ कर,
नेह बंधनो को तोड़ कर
भुख प्यास और नींद भुलाकर,
घनेरी पहाड़ियों से बर्फीली राहों पर
अपना कर्तव्य निभाने के लिए।
कर्तव्य पथ पर चलते हुए
दुश्मन को छकाते हुए,
अनेकों पर भारी पड़तें हुए
वह वीर सघर्ष करते हुए
लगा रहा था जाँ की बाजी।
दुश्मन पड़ गया भारी
सीना चीर गई दुश्मन की गोली
हुआ शहीद वीर।
तिरंगे मे लिपटा निर्जीव तन
पहुंचा अपने घर आगंन
निहार रहे थे पथरीले नयन
शरीर निश्चल शांत और गंभीर।
सुकून था ,देदीप्यमान मुख पर
वतन के प्रति कर्तव्य निभा कर।
चेहरा पढ़ रहे थे दो पनीले नयन
शांत चेहरे पर थी अनगिनत लकीर।
उनके बीच ऐसी भी थी एक लकीर
जो कह रही थी मैं हूं कर्जदार,
उस रिश्ते का जिसे निभा न सका।
जिसके अरमान पुरें न कर सका।
वो रिश्ते निभाने,अरमान पुरे करने,
तेरा कर्ज चुकाने।मै आऊंगा जरूर
बारंबार बारंबार, बारंबार।
जय हिंद जय हिंद
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
स्वरचित
सुनीता संतोषी
इंदौर
आंसू
सीप मे है मोती जैसे
अंखियों मे है आंसू ऐसे।
खुशी हो या गम दोनों
मे छलक आये एक जैसे।
यह आंसू बड़ें अनमोल है
वक्त बेवक्त बता जाते मोल है
कभी दर्द बन दिल मे समाये।
कभी गमों की निर्झरा बन बह आये।
विरहाग्नि में टपके तो ,
लगे शीतल बूंद जैसे ।
स्नेह मिलन में गिरे तो,
लगे रिश्तों की मिठास जैसे।
प्रेम मिलन में गिरे तो,
लगे कुछ कुछ नमकीन से।
जहां इन्सानियत शर्मसार हो
वहां गिरे तो ,
लगे कड़वाहट भरे कसैले से।
हर हालात में है,
स्वाद जु़दा- जुदा।
है अपनी कहानी
खुद बयां करने की अदा ।
मिलता ही नहीं,
कोई हिसाब इनका।
अंखियों की कोर
ठिकाना है जिनका।
स्वरचित
सुनीता संतोषी
इंदौर
🌷🌷🌷🌷🌷
निर्भया
युगो युगो से देती आई परीक्षा नारी।
दुराचारी पुरुष, पर अपराधी नारी।
सीता जी का अपराधी रावण
छल से कर गया माता का हरण।
दुर्योधन की अभद्रता पर ,
बड़ों के मौन के कारण।
दुराचारी दुशासन ने किया,
द्रोपदी का चीर हरण।
किन्हीं भी परिस्थितियों में हो,
बेबस, लाचार ,शिकार है नारी।
दुनिया को हिला देने वाली,
काली स्याह रात का सत्य है।
निर्भया .....
किशोर वय एवं मासूमियत पर,
विश्वास का परिणाम है।
निर्भया.....
समान अधिकार के पक्षधर देश में,
हैवानियत का शिकार है।
निर्भया......
अपने सपने अपनी अस्मिता को
तार तार होते हुए देखने का नाम है।
निर्भया....
पीड़िता होते हुए भी कतिपय ,
लोगों की नाराजगी का उपालंभ है।
निर्भया...
जिस बर्बरता के किस्से सुनकर
हर नारी की रूह़ कांप उठे वह है।
निर्भया..
न्याय तो मिला ,पर मन मे
एक फांस सी रह गयी,
जिसनें दरिंदगी की हदे पार कर दी।
वहीं घूम रहा है कही बेखौफ।
पांचसाल, तीनसाल ,तीन महीने
की, नन्ही बच्चियां क्यों?
हो रही दरिंदगी का शिकार।
जिनसे इंसानियत हो रही शर्मसार।
क्यों ?नहीं इन् नर पिशाचों को,
तत्काल दिया जाता मार।
हे ईश्वर कोई बना दे एसी डगर,
जिस पर से गुजरे हर बेटी निडर।
बेपरवाह बेफ़िकर।
🌷🌷🌷🌷🌷
स्वरचित
सुनीता संतोषी
इंदौर
🌷🌷🌷🌷🌷
जिंदगी
अल्हड़ बचपना अपने आप में मस्त।
दीन दुनिया से बेखबर।
आज का पता न कल की फ़िकर।
यही तो है जिंदगी.............
कुछ पा लेने की चाहत में खोता बचपन।
स्वयं को स्वयं में खोजता यौवन।
अपनी ही उलझन में ढूंढता सुलझन।
यही तो है जिंदगी...............
कुछ कर गुजरने के ख्वाब लिए नयन।
छूटता अपना घर आंगन।
कामयाबी के पर लगा छुता आसमान।
यही तो है जिंदगी...............
जो चाहा वह पा लिया।
जो ना चाहा वह भी पाया।
फिर भी मन रिक्त हो आया।
खुद से खुद को ही ठगा पाया।
यही तो है जिंदगी.............
हर सांस में है जिंदगी।
हर आस में है जिंदगी।
जिसे कोई सुन ना सका,
वह सन्नाटे की आवाज है जिंदगी।
यही तो है जिंदगी..........
सारी उम्र गुजार दी पढ़ते-पढ़ते।
जीना सिखा गई जिंदगी चलते-चलते।
🌷🌷🌷🌷🌷
स्वरचित
सुनीता संतोषी
इंदौर
जोड़ घटाना गुणा भाग में बैठे हैं सब लोग, पल में हारें पल में जीतें प्रत्याशी सब लोग। - दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
जोड़ घटाना गुणा भाग में बैठे हैं सब लोग।
पल में हारें पल में जीतें प्रत्याशी सब लोग।।
नफ़रत में सब प्यार घोल कर दौड़े हैं सब रोज।
घुरहू और कतवारू को देखो भाव बढ़ायें रोज।
जीत अगर इंसानों की हो हार गया सम्मान,
गली कूच में ताक रहे हैं दाव - चाव में रोज।
नहीं चाहिए गांव विकास की करें चुनाव हर रोज
अफवाहों पर फौरन दौड़े गप्पी सारे लोग.....
जोड़ घटाना गुणा भाग में बैठे हैं सब लोग,
पल में हारें पल में जीतें प्रत्याशी सब लोग।।
पानी बिकने लगा हंसी हो हवा बिके परिहास
नहीं होश है मानव संकट में हार रहा इतिहास।
जब भी रावण खड़ा सामने दिख जाये लो चेत,
संहारक हैं कृष्ण धरा की करें श्रीराम सा हेत।
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम हाहाकार चहुंओर,
लेकिन तृष्णा नहीं गयी है गज़ब चरित्र के लोग...
जोड़ घटाना गुणा भाग में बैठे हैं सब लोग,
पल में हारे पल में जीते प्रत्याशी सब लोग।।
गांव पंचायत बनने को रहा चुनाव पर जोर,
मानवता अब शर्मसार है मृत्यु है हर ओर।
फिल्म उजाले में बनता है सभी जानते लोग,
वही फिल्म जब दिखे हाल में अन्धकार हर ओर।
हमने सारी राजनीति की पढ़ी विषय कर ध्यान,
भाईचारा वजन शब्द है डालें चारा सब लोग....
जोड़ घटाना गुणा भाग में बैठे हैं सब लोग,
पल में हारें पल में जीतें प्रत्याशी सब लोग।।
जब-जब कुर्सी की खातिर पड़े वोट पर वोट,
जिनको तुमने घास न डाली रूठ गये ले बोट।
कहते अबकी बारी उनकी जिन्हें चाहते लोग,
धोखा उसने हमें दिया है रपट करेंगे चोट।
अरमानों का मटका उसने लात मारकर फोड़ा,
इन्तजार में थक-हार कर पीछा सबने छोड़ा।
सभी जानते हैं कुदरत का नियम है हर रोज,
खून बढ़ाने की ख़ातिर ही हंसते हैं सब लोग...
जोड़ घटाना गुणा भाग में बैठे हैं सब लोग,
पल में हारें पल में जीतें प्रत्याशी सब लोग।।
व्याकुल कवि सब रचना करके ग़ज़लें गीत सुनाते,
मृत्यु का सब दर्द बांटकर अपना सम्मान बढ़ाते।
कितने ख़बर छपे जा रहे अख़बारों में रोज
पत्रकार और टीवी वालों चिल्लायें सब लोग....
जोड़ घटाना गुणा भाग में बैठे हैं सब लोग,
पल में हारें पल में जीतें प्रत्याशी सब लोग।।
- दयानन्द_त्रिपाठी_व्याकुल
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य'
नाम----पुष्पा जोशी
'प्राकाम्य'
माता का नाम--श्रीमती
कलावती जोशी
पिता का नाम----स्व.श्री
गौरीदत्त जोशी
शिक्षा----टि॒पल एम. ए.--इतिहास, अर्थशास्त्र, अंग्रेजी, संगीत प्रभाकर,
विद्यावाचस्पति, बी. एड., बी. टी. सी.(प्रशिक्षण)
संप्रति----शिक्षक (राजकीय विद्यालय उत्तराखंड)
मोबाइल--8267902090
ईमेल-mailto.joshipushpa@gmail.com
विधा--कविता,कहानी, गीत, नवगीत, दोहे,छंद लघुकथा,लेख/निबन्ध आदि।
प्रकाशित पुस्तकें--
1--प्राकाम्य काव्यकलश,
2--नाचें परियाँ छम-छम-छम,
3--मुन्ना गाए ये हरदम 4--धूम-धूम-धूम-तक-धिना-धिन,
5--झूम-झूमकर नाचें हम',
6--बालकाव्यांजलि
7--कहानी संग्रह (प्रकाशनाधीन)
सम्मान/पुरस्कार----
1--गवर्नर अवार्ड-2015
2---विभिन्न राज्यों की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा साहित्यिक सम्मान/पुरस्कार आदि।
आकाशवाणी, दूरदर्शन पर प्रसारण कवि सम्मेलनों आदि में प्रतिभाग व मंच संचालन आदि।
( *होली पर कुछ रचनाएँ)*
( *1* )
*नज़राना*
सजन जी आज होली है,
मुझे रंगों से भर देना।
सजा देना सितारों-सा,
दो नजराना तो ये देना।
सजन जी आज होली है,,,,,,,।
मेरे कंगनों की खन-खन तुम,
तुम्हीं पायल की रुन-झुन हो।
करो बारिश जो फूलों की,
तो बाँहों में भी भर लेना।
सजा देना सितारों-सा,
दो नजराना,,,,,,,,,,।
मेरा श्रृँगार महकेगा,
किया दीदार जो तुमने।
लुटाना प्यार जी भरके,
करो बरजोरी,कर लेना।
सजा देना सितारों-सा,
दो नजराना,,,,,,,,,,।
तुम्हीं संगीत जीवन का,
बहारें तुम हो जीवन की।
लूँ जब-जब भी जनम सजना!
सुघड़ वर बनके वर लेना।
सजा देना सितारों-सा, दो नजराना,,,,,,,,,,।
सजन जी आज होली है,
मुझे रंगों से भर देना।
पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य'
शक्तिफार्म सितारगंज ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड
( *2* )
*घनाक्षरी*
अबिर-गुलाल लिए,भर-भर थाल लिए,
नैनन में प्यार लिए,गोरी मुस्काय रही।
नैनन से वार किए,वश भरतार किए,
हाथ भर-भर रंग,पिया को लगाय रहीं।
लिए पिचकारी हाथ,मारें किलकारी साथ,
छोटे-छोटे हाथ-पैर,बाल भी चलाय रहे।
भर पिचकारी रंग,बोलते गज़ब ढंग,
तोतली जुबान बोल,सबको रिझाय रहे।
पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य'
शक्तिफार्म सितारगंज ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड
( *3* )
*होली पर दोहे*
रंग प्रथम अर्पित करूँ,प्रथम पूज्य देवेश।
फाग मनाने आइये,हरि-हर- ब्रह्मा देश।।०१।।
सारे देवी-देवता,आमंत्रित कर धाम।
रंग-पुष्प अर्पित करूँ,सादर करूँ प्रणाम।।०२।।
सकल सृष्टि को हो विनत,सादर करूँ प्रणाम।
लगा भाल कुंकुम तिलक,बोलूँ सीता-राम।।०३।।
रंग-भंग मत कर सके,होली में हुड़दंग।।
होली मिलकर खेलिए,चढ़ें प्रेम के रंग।।०४।।
देवर-भावज खेलते,यों होली के रंग।
नहले पर दहला जड़ें,मन में लिए उमंग।।०५।।
होली की शुभकामना,और बधाई साथ।
सिर पर सबके ही रहे,परमपिता का हाथ।।०६।।
पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य'
शक्तिफार्म सितारगंज ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड
( *4* )
*रंगों का त्योहार,*
होली रंगों का त्योहार,
हम संग खेलें साँवरिया।
होली फागुन फाग बहार,
दुनिया हो रही बावरिया।
होली रंगों का त्योहार,
हम संग खेलें साँवरिया,
अबीर-गुलाल के थाल भरे हैं,
रंग से कलश भरे हैं।
बागों में फूल पलाश खिलें हैं,
दिल से दिल भी मिलें हैं।
हो रही रंगों की बौछार,
हम संग खेलें साँवरिया।
देवर-भाभी, जीजा-साली,
सजनी सजन संग खेलें,
रंगों का त्योहार मनाएँ,
मार रंगों की झेलें।
मीठे रिश्तों का ये प्यार,
हम संग खेलें साँवरिया।
चाय-पकौड़ी,पापड़-गुजिया,
खाए और खिलाएँ।
कोई खिलाए भाँग पकौड़े,
घोट के भंग पिलाएँ।
मीठी छेड़छाड़ मनुहार,
हम संग खेलें साँवरिया।
ढोल मृदंग मंजीरों के संग,
गीत मिलन के गाएँ,
घर-घर छिड़ती राग रागिनी,
मीठी तान सुनाएँ।
है ये खुशियों का त्योहार,
हम संग खेलें साँवरिया।
होली रंगों का त्योहार,
हम संग खेलें साँवरिया।
होली पावन पर्व है ऐसा,
नफ़रत-बैर मिटाए।
प्यार से सब रूठे लोगों को,
फिर से पास बिठाए।
मारें पिचकारी की धार,
हम संग खेलें साँवरिया।
होली रंगों का त्योहार,
हम संग खेलें साँवरिया।
पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य'
शक्तिफार्म सितारगंज ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड
( *5* )
*फागुन"*
रंगों की बरसे बदरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
रंग भरी छलके गगरिया,
मेरी लचके कमरिया।
होली मिलन ऋतु फागुन की आयी,
मन में उमंग और मैं शरमायी।
आये पिया जब अटरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
रंगों की बरसे बदरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
अबीर-गुलाल के थाल भरें हैं,
कोरे कलश रंगों से भरे हैं।
पड़ गयी पिया की नजरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
रंगों की बरसे बदरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
बचने पिया जी से बागों में भागी,
बागों में भागी तो नींदों से जागी।
ली जब पिया ने खबरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
रंगों की बरसे बदरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
प्रीत की नजरों से जो रंग डाला,
होली के रंग को भी फीका कर डाला।
गोरी की सज गई नगरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
रंगों की बरसे बदरिया,
मेरी भीगे चुनरिया।
रंग भरी छलके गगरिया,
मेरी लचके कमरिया।
पुष्पा जोशी 'प्राकाम्य'
शक्तिफार्म सितारगंज ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड'
मोबाइल--8267902090
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
गवर्नर अवार्ड 2015 है।
श्री राम नवमी राम जन्म 2021श्रीकांत त्रिवेदी लखनऊ
इस रामनवमी पर दो मुक्तक और "कलम आज कुछ ऐसा लिख" सीरीज का नया पुष्प, प्रभु श्रीरामके चरणों में समर्पित!
🙏💐🙏
हे राम! तुम्हारी धरती मां,
फिर से है तुम्हें पुकार रही!
रामत्व तुम्हारा याद इसे,
आशा से तुम्हें निहार रही!!
मानवता करती त्राहि त्राहि,
दानवता फिर हुंकार रही!!
कोदंड धनुष पर रामबाण ,
संधानो , राह निहार रही !!
**********************
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
राम अवतरण जैसा लिख !!
आज अयोध्या पुण्यभूमि लिख,
तट सरयू के जैसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
मध्य दिवस का सुखद समय हो,
तिथि, नवमी भी मंगलमय हो,
लग्न कर्क हो , पुनर्वसू हो,
सब ग्रह शुभ हों ऐसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
सूर्य, शुक्र,शनि,मंगल,ग्रह गुरु,
सभी उच्च हो, लग्न चंद्र ,गुरु!
ज्योतिष के शुभ योग सभी ये,
आज सफल हों ऐसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!
आज प्रकृति श्रृंगार कर रही,
वायु सुखद गुंजार कर रही!
सृष्टि प्रतीक्षा स्वयं कर रही,
वो पल आए ऐसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
कौशल्या का कक्ष अचानक,
ज्योतिर्मय हो गया अचानक!
तेज पुंज पर दृष्टि न ठहरे,
कोटि सूर्य के जैसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
फिर उस अनुपम तेजपुंज में,
ज्योत्सना के महाकुंज में,
परम पुरुष वे चतुर्भुजी हो,
स्वयं प्रकट हों ऐसा लिख !!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
बाल रूप की कांति मिली जब,
मां के मन को शांति मिली तब,
जगत नियंता बालरूप में,
मिला पुत्र बन ऐसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
श्रीहरि बाल रूप में प्रकटित,
धरती हर्षित,जग आनंदित!
दर्शन पा सब देव प्रफुल्लित,
जीवन धन्य हुआ ऐसा लिख !!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
त्रेता बीता , द्वापर बीता,
एक चरण कलयुग का बीता,
धरती करती त्राहिमाम फिर,
प्रभु फिर प्रकटें ऐसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
हो सुख शांति पुनः धरती पर,
स्वर्ग अवतरित हो धरती पर!
हर घर बने अयोध्या जैसा,
रामराज्य हो ऐसा लिख !!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
कलम आज कुछ ऐसा लिख!!
........ श्रीकांत त्रिवेदी लखनऊ
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार रवि प्रताप सिंह शब्दाक्षर प्रमुख कोलकाता
नाम-रवि प्रताप सिंह
पिता का नाम-स्व.शेर बहादुर सिंह
माता का नाम-स्व.नंदेश्वरी सिंह
जन्म तिथि- 8 फरवरी 1971कानपुर (उ.प्र.)
पुस्तैनी निवास- ग्राम:असहन जगतपुर,बछरावां, जिला-रायबरेली(उ.प्र.)
पैतृक आवास- बाईपास रोड, नवाबगंज, जिला-उन्नाव(उ.प्र.)
वर्तमान आवास- 14,आशुतोष घोष लेन,मृणालिनी रेजीडेन्सी-||,फ्लैट न.4सी,चौथा तल्ला,पो-श्रीभूमि,कोलकाता-700048(प.बं.)
लेखन विधाएँ-ग़ज़ल,गीत,कविता,लघु कथा एवं कहानियाँ ।
साहित्यिक गतिविधियाँ-कोलकाता दूरदर्शन,आकाशवाणी,ताजा टी.वी. इत्यादि पर साहित्यिक एवं काव्य गतिविधियों में सक्रिय सहभागिता। प्रतिनिधि समाचार पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन। काव्य मंचों पर अनवरत भागीदारी ।
विशेष अभिरुचि-पत्रकारिता ।
अनुवाद-कुछ रचनाएँ हिन्दी से बंगला भाषा में अनुदित एवं प्रकाशित ।
संस्था-संस्थापक अध्यक्ष 'शब्दाक्षर' साहित्यिक-साँस्कृतिक संस्था ।
सम्मान- 'सृजन रत्न सम्मान', 'राजभाषा सम्मान', 'आर्य कवि सम्मान', आई. आई.खड़गपुर 'टी.एल.एस.सम्मान', 'गंगा मिशन सम्मान', 'साहित्य मंजरी सम्मान', 'प्रवज्या सम्मान',रविन्द्र नाथ ठाकुर सारस्वत साहित्य सम्मान','कवितीर्थश्री सम्मान', 'कवि कुम्भ सम्मान' तथा 'महाकवि कुम्भ' सम्मान से सम्मानित।
संप्रति-रेलसेवा।
मोबाइल-8013546942
ई-मेल-singh71rp@gmail. com
ऋतु बसंती आ गयी मौसम गुलाबी हो गया।
रंग के छींटे पड़े चेहरा शराबी हो गया।
मद भरे वातावरण में छा गईं मदहोशियां,
दिल फ़क़ीरों का भी होली में नवाबी हो गया।
अनुछुआ तन छू गयी जब फागुनी चंचल पवन,
शब्द चित्रित देह का अंतस किताबी हो गया।
चक्षु की भाषा मुखर कुछ इस तरह से हो गयी,
मौन का हर पक्षधर हाज़िर-जवाबी हो गया।
काम ने रति के कपोलों पर मला ऐसा गुलाल,
गौरवर्णी रूप तपकर आफ़ताबी हो गया।
............................................................
(रवि प्रताप सिंह,कोलकाता,8013546942)
वो निशाने पे सजी मिसाइलें
पहाड़ से टूटे पत्थरों की भाँति
गोदामों में पड़े परमाणु बम !
सब के सब हो गए भोथरे
एक अदृश्य विषाणु के सामने !
परिंदों को पिंजडों
में कैद करने का शौक़ीन आदमजात
फड़फड़ाने लगा अपने ही बनाये दड़बों में
एक शब्द लॉकडाउन बन गया
सभी भाषाओं का इकलौता पर्यायवाची
बुल्गारिया से लेकर होनूलुलू तक
इस एक शब्द ने घेर ली जगह शब्दकोशों में
शनै शनै मद्धिम पड़ने लगेगी
लॉकडाउन शब्द की गूँज
जैसे दूर वादियों में गूंजती
आवाज दम तोड़ने
लगती है धीरे-धीरे !
रहेगा वही
दमकता हुआ
चेहरा दुनिया का !
या फिर धरती भी
हो जायेगी दागी चाँद जैसी !
वो बस अड्डों की भीड़-भाड़
लोकल ट्रेनों की धक्का-मुक्की
वो कारों के चीखते हार्न
ऑटो में खूबसूरत बदन से बदन
रगड़ने का क्षणिक सुख
पार्क में दिन-दिन भर
गुटरगूँ करते प्रेमी जोड़े
गर्ल्स हॉस्टल के चौराहे पर
एक सिगरेट शेयर करते
पांच जवां होंठ !
क्या बन जायेंगे
किसी युवा उपन्यासकार के
उपन्यास का कथानक !
सुनाया करेगा कोई
नया नया सेवानिवृत्त हुआ बाबू
मोहल्ले में नये नये जवान हुए
छोकड़ों को अपनी आप बीती !
अभी मरा नहीं है वो रक्तबीज
जिसने पैदा किया है
दुनिया भर में ईज़ाद एक शब्द लॉकडाउन !
कब कहाँ कोई मानव बम फटेगा
बिखर जायेगा
बारूद बन कर !
वो अदृश्य राक्षस
जिससे बचने के लिए
सुस्ताने लगे सारी गाड़ियों चक्के
चैन की सांस लेने लगीं रेल की पटरियाँ
पर कब तक रहेगी ऐसी दुनिया
क्या फिर से रहेगी वही दुनिया
जैसी थी लॉकडाउन के पहले !!
...........................................
(रवि प्रताप सिंह,कोलकाता,8013546942)
'साल भर का मौसम'
--------------------
माँ ने एक दिन खुश होकर
एक रूपया मेरी छोटी-सी हथेली पर
प्यार से रख दिया था
मैं बाजार की ओर सरपट दौड़ा
मैंने दस पैसे की धूप और
चार आने की बारिश खरीदी
पन्द्रह पैसे उस दुकान के लिए
रख छोडे, ज़हाँ
कड़कड़ाती ठण्ढ बिकती थी
बसंती बयार पर भी चार आने लुटाये
बाकी बचे चार आने,
सावन और पतझड पर उड़ाये.
उस दिन माँ ने मुझे आंचल में छुपाकर
मेरी बुध्दिमत्ता को माना था,
एक रूपये में साल भर का
मौसम मिलता है,
मैंने पहली बार जाना था |
........(रवि प्रताप सिंह)........
-----तुम आये-----
-----------------
तुम आये तो पत्थरों से स्वर फूटे
तुम आये तो धूप ने छाया दे दी
तुम आये तो सरिता हुई सागर
तुमने सिखलाया
सूरज को शीतल होना
चाँद को तपना
फूलों को हँसना
पहाड़ों ने तान छेड़ी
झरनों ने गीत गाये
जब तुम आये
तुम्हारे आने से बहुत कुछ बदला जिंदगी में
सोना-जगना
रोना-गाना
खाना-पीना
यूँ ही जीना
और भी बहुत कुछ !
क्या कुछ नहीं बदला तुम्हारे आने से
हाँ……
नहीं बदला तो साँसों का आना-जाना
पंछियों से बातें करना
अकेले में चुप रहना
भीड़ में गुनगुनाना
देखकर भीगी पलकें
आँखों का नम हो जाना
जिंदगी का व्याकरण तुम्हीं से सीखा मैंने
कितने मायने होते हैं जिंदगी शब्द के तुम से ही जाना
छोटे से दिल का भूगोल कितना विस्तृत है
हृदय के स्पंदन पर उँगलियों के पोर रख समझाया था तुमने ही
तुम्हीं ने बताया था कि आँखे बोलती भी हैं
अधरों की थरथराहट सिर्फ कम्पन न होकर तृष्णा तृप्ति का मौन आमंत्रण भी है
तुम आये तो बहुत कुछ अजाना जाना मैंने
फिर एक दिन ……
चुपचाप चले गये जिंदगी से तुम
हो गया सबकुछ यथावत पहले जैसा
जैसा था तुम्हारे आने से पहले|||
..........(रवि प्रताप सिंह)..........
7.
ये धरती न होती है ये अंबर न होता।
ये पर्वत न होते ये समंदर न होता।
जगत वाटिका में न होती खिली तुम,
किसी बाग में कोई मधुकर न होता।
नूपुर छन-छना-छन न बजते तुम्हारे,
झरनों में झंकृत मधुर स्वर न होता।
दिवस-रात्रि का क्रम न होता धरा पर,
नभ में भी शशि और दिवाकर न होता।
सुशोभित न होता नयन में जो काजल,
तो 'रवि' ने लिखा एक अक्षर न होता।
श्री राम जन्म रामनवमी आशुकवि नीरज अवस्थी
राम जन्म राम नवमी 21 अप्रेल 2021
जब कौशलराज के भाग्य जगे ,
पट खोलि निहारि रही चपला।
हरि जन्म लियो अवधेश के घर ,
सब लोग निहारति राम लला।
महतारी बिलोकि रही सुत को
नहि लाल के लागै कोई बला।
नभ् से सुर पुष्प करै वर्षा,
घर आँगन डोलति राम लला
(
फोटो गूगल से साभार)
आशुकवि नीरज अवस्थी 9919256950
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार बसंत कुमार शर्मा, IRTS
काव्य रंगोली पेज हेतु
संक्षिप्त परिचय
नाम - बसंत कुमार शर्मा, IRTS
पिता - स्व0 श्री दौलत राम शर्मा
माता - स्व0 श्रीमती कमला प्रसाद शर्मा
शिक्षा - एम. कॉम
संप्रति -उप मुख्य सतर्कता अधिकारी,
पश्चिम मध्य रेल, जबलपुर
लेखन विधाएँ - गीत, नवगीत, दोहा, छंद, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा, संस्मरण आदि
संपर्क-
बसंत कुमार शर्मा,
354, रेल्वे डुप्लेक्स,
फेथ वैली स्कूल के सामने,
पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स,
जबलपुर (म.प्र.)
पिनकोड- 482001
मोबाइल : 9479356702
ईमेल : basant5366@gmail.com
प्रकाशन - विभिन्न साझा संकलनों एवं पत्र/पत्रिकाओं में दोहा, गीत, नवगीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, लघुकथा आदि का सतत प्रकाशन
पुस्तक प्रकाशन -
(1) बुधिया लेता टोह - गीत-नवगीत संग्रह - वर्ष 2019 - काव्या प्रकाशन, दिल्ली
(2) शाम हँसी पुरवाई में - ग़ज़ल संग्रह - वर्ष 2020 - ब्लू रोज पब्लिशर्स, नई दिल्ली
गीत (१)
हुई नगर की जीत
आज गाँव
फिर हार गया है,
हुई नगर की जीत
मचल रहा है
मेरे मन में,
एक और नवगीत
हरिया के
खेतों में कारें,
सरपट रेस लगातीं
सुबह शाम
खूँटे पर गायें,
भूखीं रोज रँभातीं
मुनिया को
टूटे छप्पर में,
सता रहा है शीत
खुला नया
जनपद का ऑफिस,
छत पर
सोलर पैनल
डिस्क लगाकर
देखें साहब,
टी वी पर हर चैनल
खोज रहे
मादक नर्तन में, जनसेवा की रीत
कुल्हड़; पत्तल;
दोने सब पर,
हुआ प्लास्टिक भारी
आम पलाश
नीम पीपल को,
श्वासों की दुश्वारी
हरी भरी तुलसी आँगन की
रहती है भयभीत
करे आजकल
नंदनवन में,
जिप्सी रोज सफारी
कालिंदी के
तट को लगते
हैं कदंब अब भारी
कहाँ राधिका, कृष्ण, गोपियाँ
कहाँ सरस नवनीत
गीत (२)
ढँग से जी लो
वर्तमान को,
सबके सँग मिलजुल
किसे पता
जीवन की बत्ती,
कब हो जाये गुल
कोयल की
मीठी बोली
सँग,
गीत प्रीत के गाओ
सागर से गहरे
नयनों में,
सपने नए सजाओ
देखो वहाँ डाल पर बैठी,
क्या सोचे बुलबुल
तोरण बाँधो
दरवाजे पर
खुशियाँ आएँगी
कोमल अधरों
पर मुस्कानें
खिल-खिल जाएँगी
इधर-उधर की
गलत बात तो सोचो मत बिलकुल
हिंसा, नफरत
छोड़-छाड़ कर,
बन जाओ गौतम
अक्षर-अक्षर
हो अनुरागी,
अधर गीत-सरगम
सारी दुनिया
गले लगाने
हो जाये आकुल
गीत (३)
तोता-मैना
गौरैया का,
आँगन ठाँव भुला बैठे.
बरगद, पीपल,
आम, नीम की,
शीतल छाँव भुला बैठे.
भूले कच्ची
दीवारों के,
हम रिश्ते पक्के.
आज वही
रिश्ते खाते हैं,
सडकों पर धक्के.
क्यों शहरों की
चकाचौंध में,
अपना गाँव भुला बैठे.
प्यार मुहब्बत
की अमराई,
नदिया नाव-खिवैया.
भूले सखियाँ
सखा अनोखे,
पोखर ताल-तलैया.
उलटे-पुलटे
याद हो गए,
सीधे दाँव भुला बैठे.
कंगन, बिंदिया,
हरी चूड़ियाँ,
आँखों का कजरा.
हार मोतियों जड़ा सलौना,
बेला का गजरा.
पायल, बिछिया और महावर,
वाले पाँव भुला बैठे.
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार।डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति कानपुर
नाम- डॉ0 कमलेश शुक्ला
साहित्यक उपनाम- "कीर्ति"
निवास-कानपुर, उत्तर प्रदेश
शिक्षा - कानपुर यूनिवर्सिटी से एम0ए0 हिंदी, एम0 ए0 अर्थशास्त्र ,बी0एड0,
पी0एच 0 डी 0 विद्या वाचस्पति उपाधि ,विद्या सागर डी0 लिट्0
शिक्षण कार्य- कानपुर यूनिवर्सिटी से सम्बध्द महाविद्यालय में ।
विधा- गीत, गजल,दोहा,छंद मुक्त कविता,छंद युक्त कविता,बाल कविता ,मुक्तक,हायकु , कहानी।
मुख्य विधा- गीत -ग़ज़ल।
कईगीत ,गजल,कविता ,अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में एवम लखनऊ,कानपुर,शाहजहांपुर,फतेहपुर,दिल्ली ,प्रयागराज, उज्जैन ,समेत कई राज्यों में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों ,पत्रिकाओं एवम बेब पोर्टल आदि में प्रकाशित ।
कार्य क्षेत्र- साहित्य एवम समाज
सम्मान- सारस्वत सम्मान,शारदा सम्मान,हिंदी गौरव सम्मान,हिंदी काब्य सम्मान,महादेवी वर्मा सम्मान, साहित्य शिखर सम्मान, दिल्ली द्वारा काब्य गौरव सम्मान,वाग्देवी रत्न से सम्मान ,वीर भाषा एकेडमी मुरादाबाद द्वारा अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में साहित्य प्रतिभा सम्मान , राजस्व परिषद बार एसोसिएशन प्रयागराज द्वारा सम्मान, एवम,विश्व हिंदी रचना मंच द्वारा हिंदी सेवी सम्मान, अमर उजाला समाचार पत्र द्वारा अतुल महेश्वरी सम्मान, भारत उत्थान न्यास परिषद द्वारा सम्मान , दिल्ली में युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से श्रेष्ठ रचनाकार,वीर भाषा हिंदी साहित्य पीठ मुरादाबाद द्वारा अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में साहित्य गौरव सम्मान, काब्य शिरोमणि सम्मान , प्रयागराज में मीरा बाई सम्मान से सम्मानित पुरवार शिक्षण संस्थान ,वज्र इंद्राभिब्यक्ति मंच ,माध्यमिक साहित्यिक मंच ,विकासिका साहित्यिक मंच ,तरंग साहित्यिक मंच,,इसके अलावा कई साहित्यिक मंच, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ उज्जैन से वाचस्पति विद्या उपाधि ,विद्या सागर से सम्मानित एवम देश के कई विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई प्रकार के सम्मानों से सम्मानित ।
सचिव ,उत्तर प्रदेश (मध्य इकाई)महिला काब्य मंच की।
प्रकाशित कृति- खेल धूप छाँव के, ( गीत एवम गजल) संग्रह ,मैं कविता हूँ (काब्य सँग्रह) (मीरा बाई सम्मान से सम्मानित)
तीसरा (गीत सँग्रह) " लहरें सागर की "
कई साझा काब्य संकलन जीवंत हस्ताक्षर,काब्यलोक ,काब्य त्रिपथगा ,बाल साहित्य आदि।
मोबइल नम्बर-9453036314
कानपुर ।
गीत--------
देखकर चाँद को चाँद के प्यार में
चाँदनी बन भ्रमण साथ करती रही।
गीत गा ना सकी साथ में प्यार के
रात भर चाँद को ही निरखती रही।
देखकर भोर बेला वहाँ पर तभी
आह भरकर तभी लौटने है लगी।
रह गया तब अधूरा मिलन है वहाँ
उसकी यादें दिल में धड़कती रही।
राह में बैठ दिन भर निहारा उसे
प्रीति दिल में बसाकर पुकारा उसे।
आ भी जाओ प्रिय हम निहारें तुम्हें
उर बसा वेदनाएं कलपती रही।
जा रहे छोड़कर तुम मुझे अब कहाँ
रोक दो तुम गगन का भ्रमण अब यहाँ।
रात का यह पहर बीत जाए न अब
प्रिय तेरे लिए ही संवरती रही।
डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
छंदमुक्त रचना----
आत्मा और परमात्मा
दोनों का प्यार
असीमित अपरंपार
दोनों की चाहत
एक दूसरे के लिए
आत्मा परमात्मा को देखती
और परमात्मा आत्मा को
दोनों के बीच
मौन संवाद
एक दूसरे में होने
की अनुभूति
दिलाता हर समय
जीवन पर्यन्त
बिन बोले ही
दोनों का प्रगाढ़ सम्बंध
यही तो है आध्यात्मिक प्रेम
जो महसूस तो होता है
पर दिखता नहीं
हर जगह मैजूद है
पर प्रकट नहीं
आत्मा हमेशा
परमात्मा में मिलना चाहती
परमात्मा आत्मा को
आत्मसात कर
एकनिष्ठ प्रेम!
डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
गीत--- नारी महान है
**********************
प्रभु ने सुंदर छवि देकर बना के भेजा नारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
अम्बर सी ऊँचाई दी सागर सी दे दी गहराई।
सहनशक्ति दे दी धरती सी तब नारी है बनाई।।
ज्ञानकर्म सब सद्गुण देकर दे दी जिम्मेदारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी सृष्टि सारी है।।
कुंदन सा तपाकर भेजा सुंदर बना दी है काया।
पुरुषों के संरक्षण को बना दी उसको है छाया।।
उसकी खुशबू से महकाकर बना दी फुलवारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
घर की जिम्मेदारी दे सजग रहना उसे सिखाया।
मर्यादा में रहकर ही जीना उसको सदा बताया ।।
दुनियाँ को प्रभु ने दे दी ऐसी कृति यह प्यारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
प्रभु ने सुंदर छवि देकर बना के भेजा नारी है।
उर में ममता का सागर दे रचा दी श्रष्टि सारी है।।
डॉ. कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
9453036314
होली गीत--तेरे प्यार में मैंने साँवरे।
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तेरे प्यार में मैंने साँवरे ऐसा तन रंग डाला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरली वाला।।
ज्ञान कर्म की बात बताकर, तुम ऊधौ को नहीं भेजो।
मेरा मन तो प्यार ही जाने, यहाँ ज्ञान रसिक न भेजो।।
नेहदीप जल रही है मन में तुम करो न गड़बड़ झाला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।।
जैसे पंक्षी उड़कर आकाश में लौट नीड़ को आये।
हमें ऊधौ कितना समझाएं पर मन तुमको ही ध्यावे।।
कोई ज्ञान हमें न भावे जपूं तेरे नाम की माला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।
तन तो मेरा एक है कान्हा ,मन भी है एक हमारा।
तेरे चरणों में लगा दिया जब ,हो गया अब यह तुम्हारा।।
कोई रंग हमें न भावे , तू सुन ले नन्द के लाला।
दूजा कोई रंग चढ़े न अब तू सुन ले मुरलीवाला।
डॉ .कमलेश शुक्ला कीर्ति
कानपुर।
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'
डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'
जन्मः इन्दौर(म.प्र.) जुलाई 1985
शिक्षाः एम.ए.(हिन्दी साहित्य),पी-एच.डी.दे.अ.वि.वि.(इन्दौर),
(एस.आई.टी.डी.)कम्प्यूटर टीचर
ट्रेनिंग,पी.जी.डी.आई.टी.से डीप्लोमा
बी.म्युज.(सितार)
- दे.अ.वि.वि. की शोध निर्देशक सन्2018 सेl
-यू.जी.सी.की शोध परियोजना "प्रभा खेतान और मन्नू भंडारी का अंर्तद्वंद-आत्मकथाओं के संदर्भ में"2016 में पूर्णl
सदस्यताः राधाकृष्ण किताब क्लब,नई दिल्ली की सदस्य
- अखिल भारतीय कवियित्री संघ की सदस्य
-संगीत कला परिषद इन्दौर की सदस्य
- राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों,वर्कशाप एवं सेमिनारों में निरंतर सहभागिताI
- विभिन सांझा संकलनों,पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं एवं शोधपत्रों का प्रकाशनl
- महाविद्यालय में सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन एवं संयोजनI
सम्मान- प्रतिभा सम्मान
मातृत्व ममता सम्मान
कल्पना चावला अवार्ड
नारी शक्ति सम्मान
शब्द सुगंध सम्मान
नारी रत्न सम्मान
संप्रतिः सहायक प्राध्यापक हिन्दी,स्वशासी महाविद्यालय,
संपर्क: 327,जवाहर नगर देवास (म.प्र.)
फोन: 99261-53862
अजन्मा
नहीं पता था
क्या छुपा था
काल के गर्भ में
पता नहीं कब
कैसे वो पड
गया बीज कोख में
पर उस बीज के पनपने से
पहले ही कर दिया छिन्न भिन्न
उसे अनचाहा करार देकर
किसी ने नहीं सोचा
क्या बीती उस
माँ के दिल पर
अपना कलेजा दबाये
निकाल दिया उसे
शरीर से अपने
पर आत्मा उसे
आज भी नहीं भूली
ओ मेरी अजन्मी संतानll
अभिलाषा
नयन अधिर
अविराम एकटक
निहारे तेरी राह मुरारी
हे! कृपानिधान
हे!दयानिधान
हम पर आई है
विपदा भारी
कष्ट निवारो
रोग भगाओ
इस महामारी से
हमको तारो
सकल जगत है
प्रलयन्कारी
राह दिखाओ
हे!त्रिपुरारी
पहले जैसा
जीवन कर दो
हम सब की
बस यही अभिलाषा
इस कारावास से
मुक्ति दे दो
तुम बिन ना
कोई ठौर हमारो
हम पर कृपा
करो हे!मुरारी
पूर्ण करो
मन की अभिलाषाl
चिडिया
मेरे कच्चे आँगन में
अंबिया की डाली पर
चहकती है
सुबह से चिडियों की टोली
गुनगुनी धूप में
यहां वहां फुदकती रहती है
नन्हे बच्चों की तरह
चिडियों का चहकना
अच्छा लगता है
मन को
सुकुन देती है
उसकी
सुंदर क्रीडाएँ
जिसको देख
भूल जाती हूँ
अपनी पीडा
खो जाती हूँ उनमें
पलभर के लिए
गृहस्थी के
जोड घटाव से दूर
पंख फैलाकर
उडते-उडते
दे जाती है वो
हौसला जिंदगी
जीने का
ऊँचे आसमान में
उडने का
अपने सपनो में
रंग भरने का
उन्हें साकार करने काl
रिश्तें
रिश्तों की महक है
रसोई के मसालों सी
कुछ तीखी,कुछ मीठी
तो कभी खट्टी मीठी
और फीकी सी
हर स्वाद का
अपना जायका,अपना स्वाद
हर रिश्ते का अपना ढ़ंंग,
अपनी रंगत
कोई किसी से कम नहीं
न कोई किसी से ज्यादा
बिल्कुल नमक की भांति
सधा हुआ,नपातुला
हर स्वाद का अपना नाम
अपनी पहचान
हर रिश्ते का अपना मान
अपना सम्मान
रिश्तों की एकता मॆं है
जीवन का सार
रसॊई कॆ मसालों मॆं है
जायकॊ का स्वाद
रिश्तों की गहराई ही है
सुखी परिवार का आधारll
डॉ.नंदिनी शर्मा'नित्या'
देवास(म.प्र.)
9926153862
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार श्रीमती सरोज सिंह ठाकुर बिलासपुर छग
जीवन परिचय
पूरा नाम... श्रीमती सरोज सिंह ठाकुर
माता का नाम.... श्रीमती बिमला ठाकुर
पिता का नाम... स्वर्गीय श्रीमान चतुर सिंह ठाकुर
पति का नाम.. श्रीमान् मधुसुदन सिंह वर्मा
स्थाई निवास... इन्द्र सेन नगर सत्ताईस खोली.. जिला बिलासपुर.. छतीसगढ़।
मोबाइल नंबर.. 9406288063
मै एक साहित्यिक कार हूँ।
विधा.. लेखन छतीसगढ़ी, हिन्दी
वर्तमान में छतीसगढ़ महिला कान्ती सेना की प्रदेश संगठन सचीव हूँ ।
बिलासपुर महिला साहित्य समिति समन्वय संस्था की संगठन सचीव हूँ।
अपने राजपुत समाज की प्रदेश मंत्री हूँ।
सम्मान... साहित्य समिति बस्तर द्वारा बेस्ट लेखिका सम्मान.
अकाशवाणी जगदलपुर से गीत कहानी कविता का प्रसारण टीवी पर अभिनय
शौक... गायन, लेखन,
की मंचो पर संचालन का दायित्व
भ्रष्टाचार
...........
भ्रष्टाचार की इस नदी में।
मै भी गोता लगा गई।
कल तक थी अंजान यहां से।
आज मै सब कुछ जान गई
क्या होती राज और।
क्या होती है राजनिति।
क्या नेता और क्या अभिनेता।
सबकी चाल अब जान गई।
भ्रष्टाचार चार की इस नदी में मै भी गोता लगा गई।
कल तक थी मै झोपड़ी में।
आज महलों मे आ गई।
घूमती थी जिनके आगे पीछे।
वो घुम रहे अब, मेरे आगे पीछे।
नेता और चमचों की भाषा।
आज मै जान गई।
भ्रष्टाचार की इस नदी में।
मै भी गोता लगा गई।
इंतजार "
मुझे इंतजार उस दिन का है
जिस दिन मेरे घर आंगन में
प्रेम और विश्वास के दीप जलेगे
मेरी आंखें उस पल का इंतजार कर रही है जब
मेरे जीवन की बगिया में
प्रेम प्यार और त्याग के
फुल खिलेगे।
मै जिन्दगी को जीना चाहती हू।
मै भी अपने मन मंदिर में तुम्हे बिठाकर पुजना चाहती हू।
तुम्हारे साथ जीवन के अंगिनत पलो जीना चाहती हू।
मेरे हृदय के तार उस पल को महसूस करना चाहती है।
जब।
तुम मुझे आकर कहो प्रिये
मेरा जीवन मेरा तन, मन सब
तुझको ही अर्पण है
मै सदैव तुम्हारा हु। और सदा तुम्हारा ही रहुगा।
मुझे उस पल का इंतजार रहेगा
मोदी की राजनीती
..........................
वाह मोदी जी ने कर दिया कमाल
पल भर में ही कर दिया सबका बन्टा धार।
क्या नेता क्या अभिनेता।
सब थे अब तक माला माल।
पल भर मै ही कर दिया रे सबको कंगाल।
कहां जाऊ कहां जाऊ की हो रही है अब भागंभाग। कहां छुपाऊ अब तक का सारा काला माल।
कुछ बात समझ में नहीं आई।
रातो रात जनता नेता अभिनेता सबकी नीद उड़ाई।
जनता को दुख है थोड़ा। पर
खुश है कि रातो रात काले धन पर लग गया अब अब ताला।
न सोच थे जनता और न समझ पाऐ ऐ नेता की दिन ऐसा भी आऐगा। कि।
चुप चुप बैठे मोदी।
ऐसा तीर भी चलाऐगा।
पल भर में ही ऐसा हाहाकार।
सारे जहाँ मे मच जाऐगा।।
अब होगी शान्ति देश में।
अब जनता चैन की नींद
सो पाऐगा।
छुपा हुआ सारा काला धन।
अब बहार आ जाऐगा
अब होगी जनता खुश।
अब लहराऐगा तिरंगा।
आसमान में।
सत्य शान्ति और अमन 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹
धुप
,,,,,,,,,
इस,,,,, तपती धूप में।
चलो,,, कही छांव ढूंढ ले।
कुछ पल,, रुक कर।
आओ मंजिल की ओर बढ़ ले...
इस,,, तपती धूप में चलो,,,
कहीं छांव ढूंढ ले।
माना कि मंजिल,,, दुर है अभी।
पर '' इस तपती धूप में।
हमारे "कदम यु न लड़खडांऐ। आगे।
ऐसी एक छांव ढूंढ ले।
इस तपती धूप में चलो।
कही छांव ढूंढ ले।
देती है... धुप जिन्दगी में आगे बढ़ने की।
गर कर लो दोस्ती इससे।
तो मंजिल भी मिल जाऐ।
ऐसी एक बुनियाद रख लो
आओ इस तपती धूप में।
कही छांव ढूंढ ले।
सच्चाई है जिन्दगी की यही
मौत नहीं देखती... क्या
धुप है या छांव
क्यो की इन्सान की।
असलीयत ही है,,
मरधट की छांव।
साथ
........
ईश्वर से करना है प्रार्थना
दोनो.. हाथों का साथ चाहिए।... मांगनी है दुआ.. किसी के लिऐ... ईश्वर का साथ चाहिए।
आनाथो को किसी अपनो का।... भुखे को रोटी का, बेसहारा को सहारा का, साथ चाहिए... हर हाथ को काम चाहिए..।
रथ को सारथी का. शव को अर्थी का, पंडित को आरती का, माँ भारती को सच्चे हिन्दुस्तानी का साथ चाहिए।... आज देश के लिऐ मर मिटे... ऐसा सच्चा सिपाही का साथ चाहिए।
हाथ से हाथ मिला, जीवन में, जीने का साथ मिला... धरती को अकाश का साथ मिला... अंधियारे को उजाला का साथ मिला।
माता को पिता का, बच्चों को माता पिता का, घर को परिवार का, भाई को बहन का,, मुझे ऐसा परिवार मिला... संस्कृति संस्कार का साथ मिला... शुक्रगुजार हूँ की मुझे विश्वंमंच का साथ मिला.... दोस्तो.. सखियों से भरा परिवार मिला....
सरोज सिंह ठाकुर 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌹
कभी नीम. नीम।
कभी शहद. शहद।
लगती है जिन्दगी।
भुझको कहीं रंगो से भरी।
तो कहीं बेरंग सी लगती है।
लगती है जिन्दगी....
कभी नीम नीम।
कभी शहद शहद
लगती है जिंदगी
देखती हूँ... जब पन्ने।
जिन्दगी के खोल के।
कभी बेबस।, तो कभी।
लचार सी... लगती है।
जिन्दगी...
कभी नीम नीम।
कभी शहद शहद।
लगती है। जिदंगी
खुशी और गमों के
रंगो का मेल है... ऐ जिन्दगी।
गम को छोड़ के।
दामन भर लो खुशियों के रंग से.... अपनी जिंदगी।
लगने लगेगा फिर.... शहद है जिदंगी।
कभी शहद शहद।
तो कभी नीम नीम है।
जिन्दगी।
प्रेम
....
मौत के आगे हर कोई हारता है.. यहां
सच तो यही है... जब तक जीवन है तब तक आस
तोड़ नफरत की दिवार आज।
प्रेम को अपनाओ।
छोड़ मै मै को आओ हम हो जाओ।
प्रेम का रस पीकर देखो आज
नफरत का जहर भुल जाओगे
कल तक दुर थे अपनो से
आज उनको करीब अपने पाओगे।
प्रेम हमेशा जोडता है जीवन से बस आज इसी को अपनाओ
आओ मै से बस हम बन जाओ
काव्य रंगोली आज का सम्मानित कलमकार मनीषा जोशी मनी ग्रेटर नोयडा
संक्षिप्त परिचय. नाम मनीषा जोशी
जन्म 13मई
पता सिल्वर सिटी ग्रेटर नोयड़ा
कवयित्री..कई संस्था से सम्मानित तीन पुस्तकें प्रकाशित.कई मंचों से काव्यपाठ व पत्र पत्रिकाओं मे रचनाऐं लेख व कहानियां प्रकाशित.
mj0001997@gmail.com
यशोधरा..कविता 1
बरसों बाद हुए हैं दर्शन,आज तुम्हारे
निष्ठुर, पाथर ,भगवन बोलों कैसे
करूं तुम्हें संबोधन ...
अर्ध रात्री की स्वप्न बेला में छोड़ अकेला
सरल राह को मेरी अंचित कर डाला..
विरह अश्रु आहें यादें थी. आत्म ग्लानि..
वेदना के हर एक क्षण में थी कहानी..
थे भयावह कितने मेरे वो स्वप्न जिनमें..
वन में वृक्षों के मध्य तुम जाते दिखे थे
मार कर सम्पूर्ण इच्छाऐं मेरे ह्दय की.
वन गमन कर तुम समर्पित हो गये थे
मोह माया तज खड़े हो आज जो तुम बुद्ध बनकर
मैं भी पालनहार बनी हूं कर्तव्यों को यू सिद्ध कर
काट लिया एकाकी ही मैनें ये जीवन सारा
अपने भीतर की शक्ति को जब ललकारा
रोते राहुल को तब लगाकर मैं छाती से...
पालती थी पोसती थी जलती थी बाती सी
ज्ञान हुआ तुमको तो मुझको भी भान हुआ.
स्त्री की पूर्णता का शक्ति का अनुमान हुआ..
मैं सृष्टि, मैं धरती, मैं जीवन के प्रतिमानों सी.
मैं यौगिक, मैं नैतिक, मैं दुख: के निदानों सी.
आज स्वागत तुम्हारा है भगवन इस आँगन में .
हे बुद्ध अब तनिक भी कटुता नहीं इस मन में.
@मनीषा जोशी मनी..
खिड़कियाँ--कविता 2
दिन ढलते ही काटने लगता है अकेलापन, बोझ से लगते है दरवाजे ,डराने लगती है खिड़कियां, गुज़र रहें है दिन बस यू ही थकान भरी साँसो की तरह।
अकसर जब मैं देखती हूं इन खिड़कियों के शीशे से मई जून की चिलचिलाती धूप, नस नस में मेरी उबलने लगतीं हैं वो उजली सुनहरी यादें,
जब पड़ता है इन खिडकियों के शीशे में आग सा चमकता सूरज पिघलने लगता है सालों पुराना दर्द बूंद- बूंद कर बहने लगता है मेरे गालों पर। वही बरसात में जब नम आखों से देखती हूं मैं इन खिड़कियों को छूती बारिश भीग जाती हूं भीतर तक खुद ब खुद कई बार होने लगती है इन आँखों से ढेरों बरसात, और कांटों सी चुभती है ये सर्दियों की ठंडी रातें जब जमती इन कांच की खिड़कियों में ओस की बूंदें और धीरे- धीरे फिसल कर मिटाती बनाती हैं अनेक डरावनी आकृतियाँ बिलकुल वैसी जैसे मेरे मन के भीतर बनती बिगड़ती रहती हैं ना जाने क्यों इन खिड़कियों और मुझमे बहुत कुछ समान लगने लगता है उस पल, लेकिन फिर भी मुझसे कही ज्यादा भाग्यशाली है ये खिड़कियां ,जिन पर हर वक़्त रहती है मेरी नज़रें तुम्हारे इंतज़ार में, कुछ नया कुछ अलग देखने की चाह में, पर मुझ पर??? नहीं- मुझ पर नही रहती किसी की नज़र न किसी को है मेरा इंतज़ार जब से तुम गये हो छोड़कर मुझको पतझड़ में।
@मनीषा जोशी।
ग्रेटर नोएडा ।
3 श्रद्धांजलि
बोझिल मन है ,रोती आँखे
राह दिखाने वाला देखो
आज हमें यू ,छोड़ चला है
शान्त देह है मौन कवि मन _
अश्रु लिए हैं विश्व के जन जन
दूर दूर तक ,भीड़ जमा है _
आज एक सूरज ,अस्त हुआ है
शोकाकुल है ,समस्त दर्शक
जीवन पथ का ,पथ प्रदर्शक.
जीवन से मुँह ,मोड चला है
आज रो रहे ,भारतवासी
ह्रदय ह्रदय ,में भरी उदासी _
एक युग का अंत हुआ है
कोई ना ऐसा संत हुआ है
राजनीति में रहकर जिसने
पाठ पढ़ाया मानवता का
अर्पण किया देश को जीवन _
लोभ न था जिसको सत्ता का .
कर्म प्रधान था जिसका तन मन_
जिसका धन था ये कविताधन
मुखमंडल मे तेज सजा था
वाणी मे भी अोज भरा.था
जिसने वाणी के गौरव से
मन से बांधें मन के धागे
राह दिखाई, अटल जो हमको
हम सब चले उसी पर आगे _
अमृत की अभिलाषा है जब
विष के पीछे क्यो हम भागें
अमृत की अभिलाषा है जब
विष के पीछे क्यों हम भागे
मनीषा जोशी मनी
गीत 4
मन से मन में बीज लगन का बोना बहुत ज़रूरी है
प्रेम अगर है संवादों का होना बहुत ज़रूरी है।
कुंठित मन होगा तो कैसे रिश्तों में खुशबू महकेगी।
त्याग समर्पण से ही तो आँगन में हर खुशी चहकेगी
छोटे छोटे दुख सुख को जब हम आपस में बाँटेंगे।
मन में तब वो नेह भरी फूलों की डाली लहकेगी।
रिश्तों की गागर को मन से ढोना बहुत ज़रूरी है
प्रेम ....
एक दूजे की पीड़ा को आँखों से पढ़ना होता है।
प्रेम भरी औषधि से मतभेदों को भरना होता है।
खट्टी मीठी बातों से मीठे को चुनना होता है।
अन्तर्मन से पावन संबंधों को गढ़ना होता है।
दुख में सुख में साथ चलें, ये चलना बहुत ज़रूरी है
प्रेम अगर है...
अलसाई सी आँखों से रातों को जगना पड़ता है।
अर्पण कर सर्वस्व कभी खुद को ही ठगना पड़ता है।
निश्चित करना उस क्षण खुद तुम सच्चाई पर चलना है।
प्रेम नगर नें विश्वासों के पीछे चलना पड़ता है।
छल को पथ से दूर करे जो, टोना बहुत ज़रूरी है।
प्रेम अगर है....
मनीषा जोशी मनी
गीत5
मैंने जीवन मे जो खोया तुमको वो न खोने दुंगी
वादा है तुमसे ये बिटियाँ तुमको मैं न रोने दुंगी
पल पल मान गवाँया मैंने पल पल मैंने अश्रु पिये है मेरी पीड़ा मे बस मैं थी
ऐसे भी दिन रात जिये हैं
जैसा जीवन ढोया मैने तुमको वो न ढ़ोने दुंगी।
वादा है तुमसे ये बिटियाँ तुमको मैं न रोने दुंगी।
तुम चंदन तुम पारस मेरी
तुम सच्चे मोती का दाना।
तुम गंगाजल तुम निर्मल मन ।
जीवन क्या है तुमसे जाना।
बचपन की प्यारी बगियाँ मे काँटे मै न बोने दुंगी।
वादा है तुमसे यह बिटिया तुमको मैं ना रोने दूंगी ।
क्षमता का भंडार बना दूं ।
मैं तुम को हथियार बना दूं।
छू ना सके कोई कपटी मन
तुमको मैं तलवार बना दूं।
तुमको बल दिखलाए कोई ऐसा मैं ना होने दूंगी वादा है तुमसे बिटियाँ तुमको मैंने रोना दूंगी ।
@मनीषा जोशी मनी
ग्रेटर नोयडा
mj0001997@gmail.com
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार प्रीतम कुमार झा महुआ, वैशाली, बिहार
संक्षिप्त परिचय
प्रीतम कुमार झा, अंतरराष्ट्रीय युवा कवि, गायक सह शिक्षक, महुआ, वैशाली, बिहार
भारत प्रभारी अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच, तंजानिया, अफ्रीका
राज्य प्रभारी सामयिक परिवेश बिहार अध्याय
राज्य सचिव राष्ट्रीय साहित्य वाटिका
श्रृंगार और वीर रस कवि
अब तक 1000 से अधिक राज्यस्तरीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
हिन्दी साहित्य रत्न, पद्म श्री विष्णु वाकणकर पुरस्कार, सारस्वत सम्मान, वैशाली साहित्य रत्न सम्मान, साहित्य श्री सम्मान, पूर्वी अफ्रीका तंजानिया से अंतर्राष्ट्रीय काव्य प्रेमी मंच पुरस्कार,साहित्य गौरव सम्मान,समरस साहित्य सम्मान,हिंदी सेवी सम्मान-2021 इत्यादि ।स्वप्न-साहित्य सेवा,भारत सेवा ।
रचना की झलक-
"अपनी अंतर्ज्योति से तम का नाश कर दूं,
तेरे नाम मैं अपनी सारी तलाश कर दूं,
मैं खुद की खोज में भटकता रहा अब तलक,
अब आंखें मूंद के तुझपर सारा विश्वास कर दूं ।"
अधूरी प्यास
सूनी हो गयी, दिल की गलियां,
सूख गयी है,प्यार की कलियाँ
अब तो दरस दिखा जा,
बिछड़े साथी आजा-2
तुम हो हमारे, हम भी तुम्हारे,
हर पल दिल अब,तुझको पुकारे
अब तो सामने आजा,
बिछड़े साथी आजा-2
तेरी बिन अब जी ना सकेंगे,
जख्मों को अब सी ना सकेंगे
तूं हीं राह दिखा जा,
बिछड़े साथी आजा-2
मन में बसी है सूरत तेरी,
मेरी पूजा मूरत तेरी
प्यार को प्यार दिला जा
बिछड़े साथी आजा-2
---प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार ।
शहीद उधम सिंह जी।
है तुझे मां नमन,जां से प्यारा वतन,
जग का सिरमौर है,शांति का ये चमन।
दासता को मिटाने, उस अंग्रेज से-2
बांध सर पे वो आया था,जिसने कफन।
है तुझे.....!!!
जन्मे पंजाब के गाँव सुनाम में,
रह सके ना अधिक, ममता की छांव में ।
फिर तो भटके उधम,इस गली-उस गली-2
कितने छाले पड़े,फूल से पांव में ।
है तुझे....!!!
आयी वैशाखी की एक पावन घड़ी,
सबके मन में समायी,खुशी की लड़ी।
आ गया फिर अचानक, वो डायर तभी-2
जिस तरफ बाग में, देखो लाशें पड़ी ।
है तुझे...!!!
मन में उस दिन उधम ने इरादा किया,
मार दूंगा उस डायर को वादा किया ।
तोड़ दूंगा गुलामी की सब बेड़ियां-2
बाजुओं के भरोसे को ज्यादा किया ।
है तुझे....!!!
आग बदले की दिल में तो जलती रही,
साल पे साल और रूत बदलती रही।
फिर तो आया वो दिन जिसका इंतजार था-2
गोली पापी के सीने पे चलती रही।
है तुझे...!!!
राम सिंह हैं मोहम्मद वो आजाद हैं,
हर बुराई से जीते वो फौलाद हैं ।
फंदे को चुमकर चढ़ गये फांसी वो,
आज भी सबके दिल में, वो आबाद हैं।
है तुझे...!!!
---प्रीतम कुमार झा,बिहार, भारत ।
गोरा-बादल का बलिदान
धन्य भूमि है भारत तेरी, सबसे अलग पहचान है,
तुमने वीर जने हैं कितने, हमको ये अभिमान है।
तेरी इज्जत की खातिर मां,सबकी जां कुर्बान है,
है हमको ये फख्र ये मैया, हम तेरी संतान हैं ।
वीर वो धरती जहां अमर सिंह, रहते स्वाभिमान से,
प्यार उन्हें था जान से बढ़कर, अपने वतन की शान से।
काल चक्र ने कुचक्र चलाया, काली घटा घिर आयी,
खिलजी की सेना से नौबत,आर-पार की आयी ।
जब देखा पापी खिलजी ने,पार कठिन है पाना,
किया षड्यंत्र उसने धोखे से,कुंवर को किया निशाना ।
तब पद्मिनी मां ने बढ़कर, थाम लिया बागडोर,
घोष हुआ धरती-अंबर में ,किया सबने था गौर।
गोरा-बादल पूत थे सच्चे, रानी से किये कुछ वादा,
सकुशल लायेंगे अपने कुंवर को,दृढ़ था उनका इरादा।
मां पद्मिनी साथ चली,डोली संग चतुर कहार,
मानो दुश्मन दलन को उद्यत, स्वयं कालिका तैयार ।
हुई लड़ाई ऐसी जैसा, देखा ना कोई जग में,
बिजली बनकर टूट पड़े,दुश्मन के वो पग-पग में ।
जो ठाना था मन में सबने,आखिर पूर्ण हुआ वो,
पर गोरा-बादल कब होते,दुश्मन से कभी काबू।
प्रलय बने वो,काल बने वो,मच गया हाहाकार,
दुश्मन सेना डरकर भागी,मच गयी चीख पुकार ।
तभी अचानक सबने मिलकर, घेर लिया बांकुरों को,
जैसे गीदड़ घेर हैं लेते,कभी-कभी कुछ शेरों को।
जबतक जान बची थी तन में, हाहाकार मचाये,
शीश कट गये फिर भी,दोनों मस्तक नहीं झुकाये।
वीर शिरोमणि कहलाये वो,अमर बने इतिहास में,
नाम रहेगा हरदम उनका, हर सांसों की सांस में ।
---प्रीतम कुमार झा।
महुआ, वैशाली, बिहार
9525564374
चलो एक बार फिर से
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चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम,
खो के एक-दूजे में खुद को,अब भूल जायें हम।
बहुत रोये तेरी खातिर, मगर अब रो न पायेंगे,
बहुत खोया है उल्फत में, मगर अब खो न पायेंगे ।
बने मिसाल कुछ ऐसे, वहीं करके दिखायें हम,
चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।
माना यार दुनियां में कठिन ,राहें मोहब्बत की,
मगर दिल का करूं अब क्या, जरूरत एक-दूजे की।
सफर इस इश्क का मिलकर, सनम ऐसे बिताये हम,
चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।
जुनून-ए-प्यार का हमपर,असर ये है भला कैसा,
मुझे सारी लगे दुनियां, तुम्हारे ख्वाब के जैसा ।
बस्ती में दीवानों की,अब अव्वल तो आयें हम,
चलो एक बार फिर से प्यार में, सपने सजायें हम ।
---प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली बिहार
बेटी
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बेटियाँ जान हैं, बेटियाँ मान हैं-2
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
घर में बेटी जो है,फिर तो रौशन है घर,
बेटियों से है होता, सुख से बसर।
बेटियाँ ख्वाब हैं, दिल के अरमान हैं,
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
हर कदम साथ दे,सबसे आगे रहे,
भाग्य उनसे हमारे ये जागे रहे ।
सच कहूं बेटियाँ, सबकी मुस्कान हैं,
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
जग का है वो सृजक,है खुशी से चहक,
रूप कितने धरे,फूलों की हैं महक ।
बेटियाँ जो न हो,फिर तो क्या शान है,
बेटियों से हमारी ये पहचान है।
---प्रीतम कुमार झा
महुआ, वैशाली, बिहार
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार दावानी
परिचय
नाम लक्ष्मण दावानी
पिता स्व.श्री हरपाल दास दावानी
शहर जबलपुर
जिला जबलपुर
राज्य मध्य प्रदेश
गीतिका
दिल मुहब्बत में उसे अपना जलाते देखा
अपना दामन उसे अश्कों से भिगाते देखा
हर तरफ फैल रहा है ये उजाला जिस से
चाँद आँचल में उसे वो ही छुपाते देखा
थी नसीबों में लिखी जिस के बुलंदी छूना
सब से नजरें उसी को ही है चुराते देखा
दाग दामन पे थे उस के बे बसी के शायद
सर इबादत में सदा उस को झुकाते देखा
प्यार , इजहार , मुहब्बत पे भरोसा कर के
अश्क आंखों से उसे हमने बहाते देखा
आईना खुदको बनाकर के हकीकत का अब
ऐब अपने ही उसे सब से छुपाते देखा
अनबुझी प्यास थी दिलमें या शराफत उसकी
रिश्ता अपनो से उसे खूब निभाते देखा
दिलो के दर्द का कोई सहारा क्यों नहीं होता
भरी दुनिया में भी कोई हमारा क्यों नहीं होता
तड़फ कर दे रही है आरजू भी ये सदाएं अब
निगाहों में हमारी अब नजारा क्यों नहीं होता
मुहब्बत कसमसाती ही रही है उम्र भर दिल में
हमारे इश्क का कोई , किनारा क्यों नहीं होता
भटकता ही रहा हूँ मैं जमाने से अंधेरो में
दिखादे जो हमें मंजिल वोतारा क्यों नहीं होता
नहीं है जब नसीबो में , लिखी मेरे मुहब्बत तो
बिना इसके मेरा फिर ये गुजारा क्यों नहीं होता
बसा है दिल में जो मेरे जमाले हुस्न ओ यारा
निगाहों से मेरी उसका उतारा क्यों नहीं होता
समा बाहों में तुम अपना, ठिकाना भूल जाओगे
करूँगा प्यार में इतना , ज़माना भूल जाओगे
लगा के देख लो हमको गले अपने कभी जानम
अदा से इस तरह हम को , रिझाना भूल जाओगे
चुरा लूँगा निगाहों से तेरी में इस तरह काजल
शरारत से किसी का दिल , चुराना भूल जाओगे
अंदाजे गुफ्तगू मेरा कभी जो देख लोगे तुम
जुबां से तुम मुझे अपनी लुभाना भूल जाओगे
अगर जो देख लोगे जख्म सीने पर मुहब्बत के
नजर से तीर तुम अपने , चलाना भूल जाओगे
अधूरे ख्वाब जलते देख आँखों में मुहब्बत के
सुहाने खाब नज़रो में सजाना भूल जाओगे
( लक्ष्मण दावानी )
ख्वाब झूठे सजाने से क्या फायदा
रेत पर घर बनाने से क्या फायदा
जो अंधेरे मिटा ही न पाएँ मेरे
दीप ऐसे जलाने से क्या फायदा
जो बना दे तमाशा तेरी जीस्त को
उनसे रिश्ता निभाने से क्या फायदा
मौत से ज़िन्दगी जीत सकती नहीं
उस से नज़रें चुराने से क्या फायदा
तुलते हों रिश्ते धन के तराजू में जो
उनकोअपना बनाने से क्या फायदा
काम नाआए मजलूम के जो किसी
ऐसी दौलत कमाने से क्या फायदा
( लक्ष्मण दावानी ✍जबलपुर )
20/9/2020
मैल ही मैल हो जब भरा मन में तो
ऐसे गँगा नहाने से क्या फायदा
थाम ले हाथ मेरा आज सवँर जाने दे
भर ले बाहों में मुझे आज बिखर जाने दे
आग जो दिल में मुहब्बत कि लगी है मेरे
अपने दिल मे तू उसे आज उत्तर जाने दे
ओढ़ कर अपने लिहाफो में मुझे ऐ हमदम
अपने पहलू में मुझे आज ठहर जाने दे
माँग के लाये हैं हम चन्द मिलन की घड़ियाँ
प्यार में डूब के मुझे अपने मर जाने दे
हम छुपा लेंगे नशेमन में बसा कर तुम को
साथ इक पल तो जरा अपने गुजर जाने दे
( लक्ष्मण दावानी
✍ )
शिल्पी भटनागर हैदराबाद तेलंगाना
नारी
कभी घाम
कभी सांझ सुहानी
कभी दवा
कभी पीर पुरानी।
कभी क्रंदन,
कभी तान निराली
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।।*
कभी निर्जल
कभी सजल सांवरी
कभी पतित
कभी उत्थित अज्ञारी।
कभी अरण्य
कभी रम्य हरियाली
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।।*
कभी तमस
कभी दिव्य उजाली
कभी सुप्त
कभी जप्य जागृती l
कभी सूक्ष्म
कभी पूर्ण आहुती
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।।*
कभी वेद
कभी संतन गुरबानी
कभी वेग
कभी ठहरा सा पानी।
कभी गीत
कभी अनकही कहानी
कभी तृष्णा
*कभी नदी है नारी।
*शिल्पी भटनागर
*
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार सुनीता उपाध्याय वासिन्द
नाम -सुनीता उपाध्याय
पता -जे. एस. डब्ल्यू., वासिन्द
संपर्क - एल. वी. साउंड, ग्रुप
मो0+91 75071 42333
उपलब्धियां - कविताओं के रंग लता नौवाल के संग भाग -1 साझा संकलन
रामायण के प्रासंगिक पात्र भाग 1
सोशल मीडिया पर आयोजित विभिन्न सम्मान एवम प्रतिभाग
कला साहित्य समाजिक सरोकारों हेतु असंख्य मंचो पर सफल प्रस्तुति एवम पुरस्कार
कोई भी शाशकीय पुरस्कार प्राप्त नही
Jsw टाउनशिप वाशिंदा मुम्बई
जिन बचपन के दिनों मे था, हॅसना - खेलना
वो तो मजदूरी के दलदल मे धंस गया
उसकी आँखें तो तरसती थी दो वक़्त के खाने को
मगर धिक्कार के धक्के से भूखा ही सो गया
भूखे पेट मे जान नहीं, क्या ये बच्चा इंसान नहीं??
बचपन क्या होता है, यह ना जान पाया
नन्हे का बचपन तो मजदूरी मे खो गया
बाल मजदूरी महापाप है, नियम तो बना दिया है
देश के उज्जवल भविष्य के लिए बाल मजदूरी को हराना है.
धन्यवाद 🙏
सुनीता उपाध्याय,
वासिन्द
सुप्रभात
ना हो तुम निराश, देर अगर जो हो जाये
ऐसा कुछ नहीं जग मे, जो तुमसे ना हो पाये
राह नहीं आसान है यह, मुश्किलें तो रास्ते मे आयेंगी
ज्ञान हो अगर लक्ष्य का निश्चित सफलता मिल जाएगी
गिरने मे नहीं लगता वक़्त, लगता है नाम कमाने मे
खुद ही चलना पड़ता है, ना साथी कोई जमाने मे
कुछ भी करना जीवन मे, करना ना काम बदनामी का
रहना इस तरह कि बना रहे सम्मान जीवन का
किस्मत पर भरोसा मत करना, ये राह तुम्हें भटकाएगी
खड़े रहना सीना तान निश्चित सफलता मिल जाएगी
वसंत ऋतु
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आया है ऋतुराज वसंत ,
लाया है संग नव यौवन l
खिली है रंगत मौसम में ,
फूली है - सरसों खेतों में l
किया है फूलों का श्रृंगार धरती ने,
फैलाया है वसंती बयार प्रकृति ने l
कल कल करते झरनों जैसा,
सुनाई देता कलरव चिड़ियों का l
नयी उमंग, नयी तरंग जैसा,
छाया है मधुमास चमन का l
माँ सरस्वती का करें आव्हान
नववर्ष में खुशियों का दें वरदान l
आशियाना
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चलो एक नया आशियाना बनायें,
प्यार से मिल - जुलकर उसे सजायें l
भरोसे की नींव से मजबूत हों दीवारें,
दूसरा कोई गम ना उसमें समाये l
मिले प्यार और आशीर्वाद अपनों का,
बढ़ते क़दमों को नयी मंज़िल मिले l
जगमगा उठे आँगन,बुजुर्गों की मुस्कान से
और बन जाये एक सुन्दर आशियाना l
जीवन
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जीवन एक रेलरूपी यात्रा है,
जिसका कोई अंत नहीं है l
यह स्वयं में एक बेहतरीन किस्सा है,
जिसमें ढेरों कहानियाँ छिपी है l
जहाँ इसमें प्रेम और वैराग्य है,
वहीं यह एक सुन्दर नगमा भी है l
इसमें हर कदम पर चुनौतियाँ है,
तो मुकाबला करने की ताकत भी है l
जीवन में समर्पण का भाव हो,
तो वह प्रेरणादायी बन जाता है l
धन्यवाद
सुनीता उपाध्याय
काव्यरंगोली आज का सम्मानित कलमकार कवि कुमार गिरीश गंगागंज राज0
🌹 जीवन परिचय --🌷
~~~~~~~~~
1- नाम -- गिरीश कुमार सोनवाल
2 - उपाधि-- (A)कविराज
(B) रौद्र निराला
3- पिता का नाम -------रामचरण सोनवाल
4- माताजी -------संतरा देवी
5-जन्म एवं जन्म स्थान---25may 1995 ,मिर्जापुर गंगापुर सिटी ,
कर्मभूमी - जयपुर
6-- पता :- गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर (राजस्थान )
7-- फोन नं.---------9667713522, 6378510174
8- शिक्षा............. स्नातकोत्तर, upsc aspirant
9- व्यवसाय-------- student
10- प्रकाशित पुस्तकों की संख्या एवं नाम_____
○चारू काव्य धारा ,
○अक्षर सरिता धारा
○आधुनिक युवा श्रृंगार
○आज की प्रीत
○मां-भारती कविता संग्रह
○हौसलो की उड़ान
11-लेखन विधाएं: -
वीर (ओज), रोद्र एवं श्रृंगार ,मुक्तक छन्द, कहानिया, सामाजिक एवं आध्यात्मिक लेखन कार्य ,
साहित्य के क्षेत्र में सम्मान भी प्राप्त,विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित रचनाएं
🌹संभल जा मानव🌹
संभल जा अब मानव तू जरा ,
समझ जा़ वक्त है अब भी तेरा ।
बिलख कर रोता रह जाएगा ,
समय की धारा समझो जरा ।।
मत बनो तुम लापरवाह अब ,
संभल जा अब मानव तू जरा ।
कुछ नहीं जाएगा रे तेरा ,
चंद दिनों की बात है ये जरा ।
वरन जान से जाएगा व्यर्थ ,
संभल जा अब मानव तू जरा ।।
मुश्किल ये दौर चला गया ,
तब भले चाहे जो कर लेना ।।
समझ जा वक्त है अब भी तेरा ,
सितम कर ना किसी पर जरा ।
बिलख जाएगा सारा जहां ,
कर न तू लापरवाही अब ।।
........
कवि कुमार गिरीश
9667713522
गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर
(राजस्थान)
🌹 बेटियां🌹
बड़े नसीबों से मिलती है,
भाग्य वालों को मिलती है ।
किस्मत वाले होते हैं वो,
जिनको बेटियां मिलती है।।
वो घर रोशन हो जाता है,
जिस घर होती है बेटियां ।
घर भी जन्नत बन जाए ,
बेटी के जो पग पड़ जाए।।
बेटियां है तो सब कुछ है,
वरना सारा जग वीरान ।
बेटियों से ही है हम सब ,
और सारा जगत-जहान।।
दौलत-शोहरत घर की,
मान-सम्मान हमारा है ।
मिलती है जिनको बेटियां ,
भाग्य स्वर्ग से प्यारा है ।।
किस्मत वाले हैं वो जिनको ,
ये प्यारी बेटियां मिलती है।
बड़े नसीबों से मिलती है ,
भाग्य वालों को मिलती है।।
.....
....
कवि कुमार गिरीश
गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर
राजस्थान
9667713522
🌹क्या भूल गई तुम🌹
हे नारी !
आदिशक्ति!
क्यूॅ तुमने अपनी ,
पहचान गवाॅ दी ।
क्या भूल गई तुम ,
अपना वीराना इतिहास।।
इक बार उठाकर ,
इतिहास तुम देख लो ।
तुम हो वही जिसने ,
नामर्दो को धूल चटा दी ।।
निज दूध - री ,
लाज बचाने खातिर ।
कंगन उतारे हाथो से ,
हटाई माथे की बिंदिया ।।
हाथो मे उठाऐ भाले ,
भाल पर लगाई माटी ।
कूद पडी जौहर मे ,
ज्वाला चण्डालिका बन ।।
तुम बैठी हो यूॅ ,
शरमा - इठलाकर ।
और कितने उदाहरण ,
ढूढकर लाऊ मै ।।
इस पावन धरा पर ,
जितने भी संग्राम हुए ।
क्या भूल गई तुम ,
तुम्हारे ही पीछे हुये ।।
तुम्हारा इतिहास बडा ,
वीराना और खौफनाक है ।
नर मुण्डो की माल गले ,
पहनती वो , आदिशक्ति हो ।।
दहक-दहक-दहके ज्वाला ,
तुम वो प्रचण्ड अग्नि हो ।
अरे क्या भूल गई तुम ,
तुम झांसी मर्दानी हो ।।
सुध लो और अब ,
जाग जाओ उठ जाओ ।
लाज शर्म छोडकर ,
पहन केसरिया बाना ।।
कंगन - चूडी की जगह ,
हथियार धारण कर ।
रण मे उतरकर अबला ,
संग्राम महाभारत कर दो ।।
तुम जगदम्बा चंडालिका ,
कालिका श्री चरणों में ।
वाशिंदगी बिच उठने वाले ,
सारे मुंड माल डाल दो ।।
कुकृत्य कलुषित्ता का तुम ,
कर दो ,हां कर भी दो संहार ।
अबला नारी का एक परिचय ,
दिखा दो फिर से दुनिया को।।
...........
कवि कुमार गिरीश
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